किनारा कहां है
सहारा कहां है
क्षितिज पर ठहरती
नहीं हैं निगाहें
समंदर की लहरें
कदम चूमती हैं…
हवा चल रही है
किसे छल रही है
झुका जा रहा है
ये मदहोश अंबर
सुवासित हवाएं
यहां झूमती हैं…
किसी ने पुकारा
मिला फिर किनारा
ये जुल्फों का साया
ये दिलकश नजारा
निगाहें तुम्हारी
मुझे चूमती हैं.
– अहद ‘प्रकाश’
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