बदलापुर
‘बदलापुर’ बदले वाली फिल्म है. अब तक बौलीवुड में बदले पर जितनी भी फिल्में बनी हैं, सभी में बहुत खूनखराबा दिखाया जाता रहा है. ‘बदलापुर’ कुछ अलग किस्म की है. ऐसा नहीं है कि इस फिल्म में हिंसा नहीं है, नाममात्र की है. असल में यह एक साइकोलौजिकल थ्रिलर फिल्म है. निर्देशक श्रीराम राघवन ने फिल्म की कहानी को नए तरीके से पेश किया है. इस तरह की कहानियों को डार्क कहानियां कहा जाता है जिन्हें हिंदी में श्यामा कहा जा सकता है. इन में सभी काम खलनायकी व्यवहार वाले होते हैं. इन कहानियों का अलग मजा होता है और जीवन के ये अधिक निकट होती हैं. ‘बदलापुर’ का हीरो वरुण धवन है, जो अब तक 2-3 फिल्में कर चुका है. अब तक उस ने कौमेडी और कूदनेफांदने वाली भूमिकाएं ही की हैं. इस फिल्म में उस ने मैच्योर ऐक्ंिटग की है. वह काफी परिपक्व लगा है. निर्देशक ने उस के किरदार को काफी गंभीर बनाया है. वह सोचीसमझी चाल के तहत अपना बदला पूरा करता है. हालांकि फिल्म देखते वक्त शुरू में ही आभास हो जाता है कि नायक कैसे और किस से बदला लेगा लेकिन फिर भी दर्शक कुछ हद तक बंधे से रहते हैं, यह जानने के लिए कि नायक का बदला लेने का तरीका क्या होगा.
श्रीराम राघवन ने खुद की लिखी कहानी और पटकथा का बढि़या ट्रीटमैंट किया है. राघव उर्फ रघु (वरुण धवन) एक नौजवान है. वह अपनी पत्नी मीशा (यामी गौतम) और बेटे के साथ रहता है. अचानक एक दिन एक बैंक डकैती के दौरान बैंक लुटेरे मीशा और उस के बेटे को किडनैप कर मार डालते हैं. बैंक डकैती में शामिल एक युवक लायक (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) पकड़ा जाता है और दूसरा हरमन (विनय पाठक) फरार हो जाता है. लाख कोशिशों के बाद भी लायक अपने पार्टनर का नाम पुलिस को नहीं बताता. उसे 20 साल की सजा हो जाती है.
उधर रघु हर पल कातिल से बदला लेने के बारे में सोचता रहता है. बदला लेने के मकसद से वह छोटे से शहर बदलापुर पहुंचता है. वहां उसे कातिलों के बारे में पता चलता है, जो बैंक डकैती में शामिल थे. वह पहले लायक की प्रेमिका झिमली (हुमा कुरैशी) की मदद से लायक तक पहुंचता है, जो 15 साल की सजा काट कर रिहा हुआ है. फिर उसे उस के दूसरे साथी हरमन का पता चलता है, जो अपनी पत्नी कोको (राधिका आप्टे) के साथ ऐयाशी की जिंदगी गुजार रहा है. राघव हरमन और उस की बीवी की हत्या कर देता है. हरमन को मारने से पहले वह उस से ढाई करोड़ रुपए ले लेता है जो लायक का हिस्सा था. पुलिस अफसर का शक राघव पर है. वह राघव को ब्लैकमेल करता है और ढाई करोड़ रुपए देने को कहता है. इधर लायक को यह महसूस हो जाता है कि राघव उसे भी जान से मार डालेगा. वह हरमन और कोको की हत्या का इलजाम अपने सिर लेता है और फिर से जेल पहुंच जाता है. इस तरह राघव का बदला पूरा होता है और वह अपने शहर लौट जाता है. फिल्म की पटकथा काफी कसी हुई है. हालांकि फिल्म बीचबीच में झटके भी देती है और कई दृश्य अनावश्यक से लगते हैं, फिर भी निर्देशक की पकड़ बनी रहती है. निर्देशक ने किरदारों को डार्कशेड में दिखाया है. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. वरुण धवन का काम तो अच्छा है ही, नवाजुद्दीन सिद्दीकी का अभिनय भी शानदार है. फिल्म देखते वक्त दर्शक इन दोनों किरदारों से खुद को जुड़ा सा महसूस करते हैं. फिल्म में सभी कलाकारों ने चरित्र भूमिकाएं ही निभाई हैं, कोई भी कलाकार पूरी तरह हीरो या हीरोइन नहीं है. यामी गौतम को कम फुटेज दी गई है, फिर भी उस ने खुशनुमा ऐक्ंिटग की है. हुमा कुरैशी ने वेश्या का किरदार निभाया है. राधिका आप्टे ने अपनी ऐक्ंिटग से चौंकाया है. दिव्या दत्ता साधारण है. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष अच्छा है. छायांकन अच्छा है.
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रौय
यह फिल्म रूखीरूखी सी, उदासी में लिपटी हुई है. फिल्म में न तो ऐक्शन है न कौमेडी, न ड्रामा और न ही उत्तेजना देने वाला रोमांस. जैकलीन फर्नांडिस और अर्जुन रामपाल के लिप टु लिप किस सीन देख कर दर्शकों को सिहरन नहीं हो पाती क्योंकि अर्जुन रामपाल की बढ़ी दाढ़ी और खिचड़ी बाल देख कर दर्शकों को मजा ही नहीं आ पाता. रणबीर कपूर के साथ भी जैकलीन के किस सीन हैं, वे भी दर्शकों को गरमाई नहीं दे पाते, क्योंकि रणबीर कपूर पूरी फिल्म में बुझाबुझा सा नजर आया है. जहां तक फिल्म की कहानी की बात है, कहानी एकदम सुस्त है. कहानी को आगे बढ़ाने में निर्देशक विक्रमजीत सिंह को काफी मशक्कत करनी पड़ी है. फिल्म में एक किरदार कहता भी है कि जब कहानी आगे नहीं बढ़ रही हो तो उसे वहीं खत्म कर देना चाहिए. निर्देशक विक्रमजीत सिंह की यह पहली फिल्म है. उस ने अपना पूरा ध्यान जैकलीन फर्नांडिस पर ही केंद्रित किया है. जैकलीन ने सिर्फ एक गाने ‘चिट्टियां कलाइयां वे’ में अपनी सैक्सी परफौर्मेंस दे कर डांस किया है. यह गाना दर्शकों को पसंद आएगा. वैसे फिल्म में जैकलीन की दोहरी भूमिका है परंतु दोनों ही भूमिकाओं में वह एक जैसी ही लगी है.
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक फिल्ममेकर कबीर गे्रवाल (अर्जुन रामपाल) से. एक फिल्म निर्माता कबीर के निर्देशन में एक फिल्म बनाना चाहता है परंतु कबीर को फिल्म की कहानी पर अभी सोचना बाकी है. वह स्क्रिप्ट पर काम शुरू करता है. वह एक बैंक में पड़ी डकैती की घटना पर काम शुरू करता है. शूटिंग के लिए वह मलयेशिया जाता है, जहां पहले से लंदन की एक फिल्म मेकर आयशा (जैकलीन फर्नांडिस) अपनी एक फिल्म की शूटिंग करने आई हुई है. कबीर और आयशा में नजदीकियां बढ़ती हैं. वह अपनी स्क्रिप्ट पर काम शुरू करता है. उस की कहानी का हीरो रौय (रणबीर कपूर) एक चोर है जो पेंटिंगें चुराता है. कबीर अपनी फिल्म के लिए आयशा की शक्ल से मिलतीजुलती एक लड़की टिया (जैकलीन की दूसरी भूमिका) को लेता है. टिया रौय से प्यार करती है. तभी एक दिन आयशा कबीर से नाराज हो कर चली जाती है. आयशा के जाने के बाद कबीर निराश हो जाता है. लेकिन फिर वह एक दिन फिल्म पूरी करने का फैसला लेता है और पूरी भी कर लेता है. फिल्म हिट होती है और कबीर आयशा से मिलने हौंगकौंग जाता है. वहां आयशा फिर से उस की बांहों में आ जाती है. दूसरी तरफ टिया और रौय भी एकदूसरे का हाथ थाम लेते हैं.
फिल्म की यह कहानी दुनिया के सब से बड़े चोर रौय से शुरू होती है. रौय की डिक्शनरी में कोई भी काम नामुमकिन नहीं है. परंतु जल्दी ही यह कहानी कबीर और आयशा पर केंद्रित हो जाती है. रौय के किरदार में कोई रहस्य नजर नहीं आता. फिल्म की लंबाई भी बहुत ज्यादा है. इसे कम से कम आधा घंटा कम किया जा सकता था. कई सीन तो बहुत ज्यादा लंबे हो गए हैं. फिल्म की फोटोग्राफी बहुत अच्छी है. मलयेशिया की खूबसूरती को कैमरामैन ने अपने कैमरे में कैद किया है. फिल्म के गाने भी अच्छे हैं, पहले से ही खूब बज रहे हैं.
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एमएसजी : द मैसेंजर
आखिरकार डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत रामरहीम की फिल्म ‘एमएसजी’ रिलीज हो ही गई. फिल्म के पहले दिन थिएटरों में ज्यादातर उस के समर्थक ही फिल्म देखने पहुंचे. इस फिल्म को बड़े बजट की डौक्यूमैंटरी फिल्म कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. फिल्म में डेरा प्रमुख रामरहीम की स्तुति की गई है. फिल्म का निर्माण खुद डेरा प्रमुख ने किया है. हमारे देश में बाबाओं की कमी नहीं है. ये बाबा उलटेसीधे चमत्कार दिखा कर अपने शिष्यों को बेवकूफ बनाते हैं और उन का शोषण तक करते हैं. इस फिल्म में रामरहीम के नाम पर चमत्कारिक घटनाओं को जोड़ा गया है. फिल्म इस तथाकथित धर्मगुरु की कहानी पेश करती है. फिल्म में बाबा रामरहीम लोगों को शराब और ड्रग्स की लत से दूर कर अपना अनुयायी बनाता है तो शराब माफिया उस का दुश्मन बन जाता है लेकिन रामरहीम अपनी चमत्कारिक शक्तियों से अपने शिष्यों को ड्रग और शराब माफिया से बचाता है. आम आदमी के रूप में क्या यह आंदोलन नहीं छेड़ा जा सकता.
यह फिल्म बनाना, अपनी चमत्कारी शक्तियों का प्रचार करना एक नए प्रकार का पाखंड है. फिल्म की क्वालिटी बेहद खराब है. फिल्म में नाचगाने भी हैं और रामरहीम की बेकार की ऐक्ंिटग भी है. इस फिल्म के विरोध में पंजाब और हरियाणा के शहरों में खूब प्रदर्शन हुए हैं.