लड़की के जवान होते ही मातापिता को चिंता सताने लगती है कि कम से कम दहेज में ज्यादा से ज्यादा पैसे व प्रतिष्ठा वाला घरवर मिल जाए तो जिम्मेदारी खत्म हो और लड़की सुखचैन से ससुराल में रहे. इस बाबत कितनी भागादौड़ी करनी पड़ती है और कैसेकैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं, यह बात वही व्यक्ति बता सकता है जो विवाहयोग्य बेटी का पिता हो. राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में निवास कर रहे जैन समुदाय में स्थिति उलट है. वहां चिंता जवान होते लड़के के मातापिता करते हैं. फर्क इतना है कि पैसे वाले माने जाने वाले इस समाज में अभिभावकों की चिंता लड़के का नकारा होना या पैसों की कमी नहीं, बल्कि यह है कि गरीब ही सही लड़की अपनी जाति की मिल जाए जिस से वंशानुगत शुद्धता बनी रहे ताकि समाज में इस बाबत सिर नीचा न करना पड़े कि लड़के की शादी दूसरी बिरादरी में करनी पड़ी.

जैन समाज में लड़कियों का टोटा नहीं है. भौगोलिक रूप से देश की आबादी के 70 लाख जैनी देशभर में फैले हुए हैं. लिहाजा, उन्हें वैवाहिक रिश्ते जोड़ने में कई तरह की कठिनाइयां पेश आने लगी हैं जिन के चलते वे वैवाहिक विज्ञापनों के अलावा मैरिज ब्यूरो की सेवाएं लेने से हिचकिचाते नहीं. आमतौर पर धनी माने जाने वाले जैन समाज में गरीबों की भी कमी नहीं है, पर इस जाति का गरीब भी किसी गैर खासतौर से हिंदुओं के मध्यवर्ग के शख्स की आमदनी की हैसियत वाला होता है. कुछ इलाकों में ही सही, जैनियों ने लड़कियों की कमी से निबटने व शादी के मामले में अमीरीगरीबी की खाई पाटना शुरू की तो देखते ही देखते यह जिम्मेदारी कुछ ठगों ने उठानी शुरू कर दी. इन में मैरिज ब्यूरो संचालक बड़े पैमाने पर शामिल हैं. दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर ये पकड़े भी गए तो मध्य प्रदेश के मालवानिमाड़ अंचलों को जोड़ते औद्योगिक शहर इंदौर में, जहां इस समुदाय के लोग काफी संख्या में रहते हैं.साल 2014 में शिकायतों की बिना पर 2 मैरिज ब्यूरो वाले ऐसे पकड़े गए थे जिन्होंने फर्जी लेकिन दिलचस्प तरीके से गैर जैनी लड़कियां पैसे वाले जरूरतमंद जैन घरानों को टिका दी थीं और रिश्ता तय कराने में भारीभरकम फीस वसूली थी. 

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...