बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं
ये आंसू तो मेरे तुम पर गए हैं
जो तुम ने मेरी पलकों में रखे थे
वो सपने मुझ को शूल से गड़े हैं
न रांझा है यहां, न हीर कोई
चरित्र ऐसे कथाओं में मिले हैं
जो आने के बहाने ढूंढ़ते थे
वो जाने के बहाने अब गढ़े हैं
हवाएं सावनी जो पढ़ सको तुम
उन्हीं पे आंसुओं ने खत लिखे हैं.
- आलोक यादव
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
सब्सक्रिप्शन के साथ पाए
500 से ज्यादा ऑडियो स्टोरीज
7 हजार से ज्यादा कहानियां
50 से ज्यादा नई कहानियां हर महीने
निजी समस्याओं के समाधान
समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और