बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं
ये आंसू तो मेरे तुम पर गए हैं
जो तुम ने मेरी पलकों में रखे थे
वो सपने मुझ को शूल से गड़े हैं
न रांझा है यहां, न हीर कोई
चरित्र ऐसे कथाओं में मिले हैं
जो आने के बहाने ढूंढ़ते थे
वो जाने के बहाने अब गढ़े हैं
हवाएं सावनी जो पढ़ सको तुम
उन्हीं पे आंसुओं ने खत लिखे हैं.
- आलोक यादव
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
(1 साल)
USD48USD10

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
(1 साल)
USD100USD79

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और