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सफर अनजाना

यह घटना तब की है जब मैं छोटी थी और अपने मम्मीपापा के साथ रहती थी. हमारे पापा अस्पताल में सरकारी अधिकारी थे. हम लोग का क्वार्टर अस्पताल कैंपस में ही था. एक दिन पड़ोस की आंटी को देव घूमने का मन किया, तो उन्होंने हम लोगों के सामने देव जाने की योजना बनाई. देव औरंगाबाद जिले में पड़ता है. यह बिहार का एक धार्मिक स्थल है. यहां का सूर्य मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. देव में मेरी मौसी की ससुराल भी थी, इसलिए इस शहर से हम लोग अनजान न थे. हम लोगों ने रविवार के दिन देव जाने की योजना बनाई. रविवार की सुबह हम 4 लोग यात्रा पर जीप से निकले. जीप को मंदिर परिसर में लगा कर मंदिर के अंदर चले गए. हम लोग मंदिर परिसर में ही घूम रहे थे कि एक बड़ा सा भैंसा अचानक आया और आंटी के आंचल को अपनी सींग में लपेट लिया. फिर क्या था, आंटी भैंसे के साथ घिसटती चली गईं. अचानक मेरी नजर भैंसे पर पड़ी और झट से दौड़ कर मैं ने भैंसे का सींग पकड़ लिया और आंटी का आंचल उस से अलग कर दिया. इस तरह मैं ने अपनी जान की परवा किए बगैर उन की जान बचाई. वहां पर और भी लोग थे लेकिन किसी ने मदद करने की कोशिश नहीं की. इस तरह मैं ने बहुत बड़ा हादसा होने से बचा लिया. आज भी जब यह बात याद आती है तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

सुनीता कांत, गया (बिहार)

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मैं, मेरी पत्नी, मेरे दोनों बेटे और मेरे सासससुर पुरी के निकट चिलका झील देखने गए. हम ने एक मोटरबोट किराए पर ली और झील भ्रमण करने लगे. हम ने मोटरबोट वाले को बताया कि हम वह जगह भी देखना चाहते हैं जहां समुद्र का पानी झील में मिलता है. वापसी के समय वह हमें समुद्र के पास ले गया. शायद उस समय समुद्र शांत था, इसलिए वह हमें काफी अंदर तक ले कर गया. अचानक तेज लहरें उठने लगीं और हमारी मोटरबोट डगमगाने लगी. यह देख कर हमारे होश उड़ गए और हम बोट वाले से वापस जाने के लिए कहने लगे. बोट वाले ने हिम्मत दिखाई और मेहनत कर के काफी मुश्किल से हमें लहरों से बाहर निकाल लाया. हम ने देखा हमारे आसपास एक भी मोटरबोट नहीं थी. बाद में वापस पहुंचने पर उस ने हमें बताया कि इस बोट से समुद्र के पास नहीं जाते हैं क्योंकि यह बोट लहरों में नहीं चल सकती और पलट जाती है. आज भी उस दृश्य के बारे में सोच कर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

डी एन चौबे, रायगढ़ (छ.ग.)

आतंक का पर्याय बनते शिक्षक

आज से 6 वर्ष पहले 15 नवंबर, 2009 को जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने एक शिक्षक को 1 लाख रुपए मुआवजे की सजा से दंडित किया था, जिस ने फैसले से ठीक 12 वर्ष पहले अपने छात्र को पूरे दिन निर्वस्त्र खड़ा रखा था, तब एक उम्मीद बंधी थी कि सम्माननीय शिक्षक समाज के वे सदस्य जो परिस्थितिवश अपने आचरण के विपरीत कदम उठा लेते हैं, कोई सबक लेंगे. उस समय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में उक्त शिक्षक को निर्देश दिया था कि वह बतौर मुआवजा 1 लाख रुपए पीडि़त छात्र को अदा करे.  मार्च, 1997 को दिल्ली के एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक पी सी गुप्ता ने उस 13 वर्षीय छात्र को विद्यालय के तालाब में नहाते हुए पकड़ लिया. वे इतने नाराज हुए कि उन्होंने पहले उसे जम कर पीटा, फिर पूरे समय तक विद्यालय में निर्वस्त्र खड़ा रखा. अभिभावकों ने उन के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, मुकदमा चला और 19 मार्च, 2007 को निचली अदालत ने गुप्ता को 1 वर्ष की कैद और ढाई हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई. गुप्ता ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी. उन की उसी अपील के आलोक में अदालत ने यह फैसला दिया. लेकिन हालात सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ते चले गए. न जाने हमारे देश के शिक्षकशिक्षिकाओं को आखिर क्या होता जा रहा है कि वे आएदिन अपनी करतूतों से अभिभावकों का विश्वास तारतार कर रहे हैं. कहीं छात्रछात्राओं की पिटाई हो रही है, तो कहीं यौन उत्पीड़न या उस का प्रयास.

बिहार में 15 अक्तूबर को चोरसुआ गांव में नालंदा पब्लिक स्कूल के शिक्षक ने प्रथम वर्ग के छात्र की पिलर से बांध कर बेरहमी से पिटाई की. जिस से बच्चा बुरी तरह से जख्मी हो गया और उस का बायां हाथ टूट गया. इसी तरह 15 सितंबर को उत्तर प्रदेश के कानपुर में क्लासरूम में एक बच्चे को खेलता देख एक शिक्षक ने उस की इतनी पिटाई की कि बच्चे की आंखों की रोशनी चली गई. इस वर्ष अगस्त माह के अंतिम सप्ताह में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में शिक्षक समाज उस समय एक बार फिर शर्मसार हुआ जब पुलिस द्वारा चलाए जा रहे औपरेशन सखी के तहत दिल्ली के उत्तरपूर्वी जिले के खजूरी थानांतर्गत एक सरकारी विद्यालय की छात्राओं की काउंसलिंग के दौरान शिकायत मिली कि गणित पढ़ाने वाला शिक्षक आतेजाते समय एवं कक्षा में उन्हें गलत तरीके से छूता है. जांच में शिकायत सही मिली और उक्त शिक्षक को पास्को के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.

इस से पहले बीते 5 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने शालीमार बाग के बीटी ब्लौक स्थित सरकारी विद्यालय के एक शिक्षक के खिलाफ अपने छात्र के उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज किया. उक्त शिक्षक ने अपने 8 वर्षीय छात्र को इसलिए उठा कर पटक दिया क्योंकि उस ने घर जा कर अभिभावकों व विद्यालय के अन्य कर्मचारियों पर यह राज जाहिर कर दिया था कि उक्त शिक्षक उस से और दूसरे छात्रों से पैर दबवाता है, मालिश कराता है. कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के कानपुर में नौबस्ता स्थित एक विद्यालय में पहली कक्षा की 6 वर्षीया छात्रा अविका अपनी शिक्षिका के वहशीपन का शिकार बन गई. कानपुर के पूर्णादेवी गर्ल्स इंटर कालेज में कक्षा 6 की छात्रा रूपा को मोबाइल रखने के आरोप में सब के सामने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया. नतीजतन, घर आ कर उस ने फांसी लगा ली.

कानपुर के ही विजय नगर स्थित राजकीय इंटर कालेज में कक्षा 6 के छात्र विनीत ने महज इस बात पर फांसी लगा कर जान दे दी क्योंकि उस से स्कूल की एक बैंच असावधानीवश बैठने से टूट गई और उस के लिए उस से 1,500 रुपए हर्जाने की मांग की गई. जब विनीत ने उक्त रकम देने में असमर्थता जताई तो शिक्षकों ने उस की जम कर पिटाई की. अपमान से क्षुब्ध विनीत घर आ कर फांसी पर लटक गया. इस से पहले अप्रैल माह में 5 खबरें आई थीं. पहली अकोला (महाराष्ट्र), दूसरी व तीसरी कांचीपुरम एवं सलेम (तमिलनाडु) और चौथी व 5वीं बाराबंकी एवं मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) से. अकोला में जवाहर नवोदय विद्यालय में 49 छात्राओं के यौन शोषण के आरोप में 3 शिक्षक गिरफ्तार किए गए. आरोपी शिक्षक छात्राओं से अश्लील बातें करते और उन्हें जबरन आलिंगन में लेते थे.

कांचीपुरम स्थित एक सरकारी विद्यालय की 7वीं कक्षा की 13 वर्षीय छात्रा के साथ दुष्कर्म करने वाले शिक्षक को पुलिस ने धरदबोचा. आरोपी शिक्षक ने अपनी मासूम छात्रा के साथ कई बार दुष्कर्म किया, नतीजतन वह गर्भवती हो गई. सलेम में एक सहायक प्रोफैसर अपनी छात्रा को घर पर बुला कर उस का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ. उस ने अध्ययन संबंधी दिक्कतें दूर करने के नाम पर अपनी छात्रा की अस्मत लूटी. बाराबंकी के रहलामऊ में 2 रुपए की कलम चोरी के आरोप में प्रधानाचार्य ने 6 वर्षीय छात्र को इतना पीटा कि उस की मौत हो गई. उक्त सभी घटनाएं देशभर के अभिभावकों के लिए किसी सदमे से कम नहीं हैं, जो अपने बेटेबेटियों का भविष्य उज्ज्वल बनाने की खातिर उन्हें स्कूलकालेज भेजते हैं, उन के भविष्य और सुरक्षा के प्रति निश्चिंत रहते हैं. लेकिन जब ऐसी घटनाएं प्रकाश में आती हैं तो उन का सारा विश्वास डगमगा जाता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में आएदिन ऐसी घटनाएं सुननेपढ़ने को मिलती रहती हैं. इस से अभिभावकों के दिल हमेशा आशंकित रहते हैं कि कब, कौन सा शिक्षक या शिक्षिका उन के बच्चे के साथ बदसलूकी कर गुजरे. कई बार तो सुनने में आया कि मामूली सी गलती पर बच्चे को ऐसी सजा दे दी गई कि अभिभावक ने भयवश उसे स्कूल से निकाल लिया.

आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के एक कौन्वैंट स्कूल की शिक्षिका ने एलकेजी में पढ़ने वाले एक छात्र को मूत्र पीने के लिए मजबूर कर दिया. उस का कुसूर यह था कि उस ने अपनी प्लास्टिक की बोतल में पेशाब कर दिया था. पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के गोपाल नगर स्थित एक स्कूल की शिक्षिका ने कथित रूप से पैसे चोरी करने के आरोप में 8वीं कक्षा की छात्रा के न सिर्फ कपड़े उतरवाए, बल्कि सहपाठियों के सामने उस की तलाशी ली. मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के नौगांव स्थित एक विद्यालय की शिक्षिका ने 2 चोटियां बांध कर न आने के अपराध में 10वीं कक्षा की 3 छात्राओं  के बाल काट दिए. राजस्थान के भीलवाड़ा में बोरडा गांव स्थित एक सरकारी स्कूल की पिं्रसिपल ने 35 छात्राओं के बाल कतर डाले. वजह, उक्त छात्राएं 2 चोटियां बना कर नहीं आई थीं.

मध्य मुंबई स्थित एक स्कूल की पिं्रसिपल एवं एक शिक्षिका के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया कि उन्होंने 3 छात्रों को न केवल चैन से बांध कर उन की परेड कराई, बल्कि उन्हें शौचालय की सफाई करने को मजबूर किया. सूरत (गुजरात) के अडाजण थानांतर्गत एलएनबी स्कूल की 9वीं कक्षा के छात्र हर्ष ने फांसी लगा कर जान दे दी. अपने सुसाइड नोट में हर्ष ने लिखा, ‘पापा, मेरी आखिरी इच्छा है कि आप पीटी वाले सर के गाल पर 10-20 थप्पड़ मारना.’ हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के संतोषगढ़ स्थित एक निजी स्कूल में पाठ न याद करने की सजा के बतौर, छात्रों की टाई और छात्राओं के बालों की चोटियों में जूते बांध दिए गए. उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के थाना हियोरनिया अंतर्गत राठ स्थित एक निजी स्कूल में नर्सरी कक्षा के विद्यार्थी को टीचर ने इस कदर पीटा कि वह हेड इंजरी का शिकार हो गया और अस्पताल पहुंच कर उस ने दम तोड़ दिया. उस का कुसूर यह था कि वह होमवर्क कर के नहीं लाया था.

फरीदाबाद स्थित होली चाइल्ड स्कूल की 8वीं कक्षा के छात्र कौश्तुब पंडित ने स्कूल के बाथरूम में खुद पर पैट्रोल डाल कर आग लगा ली. गंभीरावस्था में उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दाखिल कराया गया, जहां मौत ने उस से बाजी जीत ली. कौश्तुब होमवर्क वाली कौपी घर पर भूल गया था, जिस के लिए उस की शिक्षिका ने उसे जम कर डांट पिलाई थी. गाजियाबाद के कविनगर स्थित महर्षि दयानंद विद्यापीठ में एक शिक्षिका ने होमवर्क पूरा न करने पर छात्र मोहित को इतना पीटा कि उस के कान के परदे में छेद हो गया. गाजियाबाद के ही टीला शाहबाजपुर स्थित डायमंड सीनियर सैकंडरी स्कूल में 7वीं कक्षा का छात्र सचिन अपनी होमवर्क की फाइल घर पर भूल आया था. इस से नाराज शिक्षक ने उसे जम कर पीटा, जिस से वह बेहोश हो गया.

गलीमहल्ले में खुलने वाले कथित मौंटेसरी, पब्लिक स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकशिक्षिकाएं अपनी अल्प, अपर्याप्त और सीमित आमदनी के चलते अकसर अनेक दिक्कतों से दोचार रहते हैं. उन्हें अपनी काबिलीयत का सही मोल न मिल पाने की कुंठा वक्त-बेवक्त सताती रहती है. लेकिन इस का मतलब यह तो कतई नहीं है कि नियोजकों के प्रति उपजा गुस्सा किसी मासूम पर उतारा जाए. सरकारी स्कूलों के शिक्षक तो इस के अपवाद हैं. उन्हें पर्याप्त वेतन और सुविधाएं हासिल हैं, बावजूद इस के वे भी संवेदनशून्य होते जा रहे हैं. असल चिंता तो यह है कि शिक्षकों में हिंसा घुसपैठ करती जा रही है क्योंकि प्रशिक्षण में कोई कमी रह जाती है. बाल मनोविज्ञान न समझ पाने की खीझ उन्हें हिंसक और अमानवीय बनने को मजबूर कर रही है. हालात बहुत गंभीर हैं. बच्चों के मन में स्कूल और शिक्षकों के प्रति भय घर करता जा रहा है. इस का इलाज कानूनी कार्यवाही, निलंबन या बदले में मारपिटाई से संभव नहीं.

ऐसा भी होता है

मेरे पति के औफिस में काम करने वाले एक सहकर्मी भट्टाचार्यजी का हृदयाघात से 9 वर्ष पूर्व निधन हो गया था. तब उन की एक लड़की स्नातक कर रही थी और लड़का इंजीनियरिंग में प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उन के हालात को देख कर मेरे पति और सहकर्मियों ने उन की आर्थिक मदद की थी. समय की मार थी, उन के परिवार को कालोनी का सरकारी मकान छोड़ कर बाहर किराए के मकान में जाना पड़ा था. समय गुजरता रहा उन का भी, फिर पता नहीं चला कि वे लोग कहां और कैसे हैं. एक दिन मिसेज भट्टाचार्य औफिस में आईं, मेरे पति से मिलीं और बताया कि उन के हालात अब अच्छे हैं. लड़की नौकरी कर रही है और उस की शादी भी हो चुकी है. लड़का मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर है. अब धन्यवाद के साथ उन तीनों के पैसे लौटाने आईं हैं. मेरे पति ने पैसे लेने से मना किया मगर उन्होंने कहा, ‘‘ये पैसे तो आप ले ही लीजिए, अगर इस्तेमाल नहीं करना चाहें तो मेरी ही तरह बहुत से जरूरतमंद होंगे, उन की इन पैसों से मदद कर दीजिएगा.

मंजू शर्मा, नवी मुंबई (महाराष्ट्र)

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मेरे ससुरजी डिप्टी कलैक्टर थे और उन की पोस्ंिटग हमारे ही शहर में हुई थी. बाबूजी अकेले ही रहते थे. एक दिन उन के औफिस का ही एक आदमी मिल गया जो नजदीक के गांव से आता था. दोपहर को खाना खाने व थोड़ा सा आराम करने के लिए उस को कोई ठिकाना चाहिए था. बाबूजी ने उसे आश्वस्त किया कि यहां अगर कोई ठौरठिकाना नहीं है तो तुम हमारे ही घर आ जाया करो. बाबूजी ने उस के लिए एक चारपाई निकाल कर दे दी और उस पर नई बैडशीट बिछवा दी. वह रोजाना आने लगा. एक दिन मेरे देवर बाबूजी से मिलने गए तो उन्होंने आदरसम्मान के साथ रेडियो और पैंटशर्ट का कपड़ा भेंट स्वरूप बाबूजी को दिए. उन्होंने वे चीजें अलमारी में रख दीं. उस के बाद शाम को देवर को छोड़ने स्टेशन चले गए. वह आदमी घर पर ही था. बाबूजी के घर से निकलते ही घर का सारा सामान अलमारी में से निकाल कर चलता बना. जब बाबूजी घर आए तो देखा कि घर खुला पड़ा है और अलमारी की सारी चीजें गायब हैं. पिताजी घबरा गए, उन को यकीन हो गया कि यह काम किस का है. दूसरे दिन से वह आदमी घर पर नहीं आया. भलमनसाई का बदला उस आदमी ने जिस थाली में खाया उसी में छेद कर के दिया.  

देविला गांधी

पिया की आस

तनहातनहा बेकरार
हर रुत से बेजार
दिल करे पी की पुकार
कैसे मन को चैन मिले?

मुख कमल क्योंकर खिले? 
जब तन विरहा में जले
खड़े पलक पांवड़े बिछाए
कब पिया लौट कर आएं?

रहरह कर नैन भर जाएं
कहीं टूट न जाए आस
थम न जाए चलती सांस
यूं ही गुजर न जाए मधुमास

आ जा कि आ गई बरसात
तुझे पुकारे नशीली रात
फिर हम दोनों हों साथ.

       – शकीला एस हुसै

तेरी याद रुला गई

शोलों की आंच दिल को पूरा जला गई
जब भी आई याद तेरी मुझ को रुला गई
कटती रही यह जिंदगी तेरे बगैर कुछ यूं
सांसों में मौत जैसे अपनी आहट मिला गई

मजबूरियां जिंदगी की बढ़ती गईं इतनी
हर सांस जिंदगी में और जहर मिला गई
आई बहार जग में तो दिल रोया जारजार
ताजा फूलों की खुशबू मेरे जख्म खिला गई

किए बहुत जतन हम ने खुश रहने के मगर
हर कोशिश गमों के समंदर में मिला गई.

                    – हरीश कुमार ‘अमित’

दुनिया पर छाने की तैयारी में बिहार ब्रांड

जल्दी ही बिहार में पैदा होने वाले खास जैव उत्पाद बिहार ब्रांड के नाम से दुनिया भर में डंका बजाएंगे. राज्य में जैविक खेती में आई तेजी को देखते हुए जैव उत्पादों की ब्रांडिंग की कवायद शुरू की गई है. बिहार में उपजाए गए जैव उत्पादों की ब्रांडिंग और उन के सर्टिफिकेशन की कवायद शुरू की गई है. इस के लिए बिहार राज्य बीज एवं जैविक प्रमाणीकरण एजेंसी का गठन किया जाएगा. कृषि विभाग का दावा है कि एजेंसी के गठन का काम अंतिम चरण में है. किसी भी कृषि उत्पाद के जैविक होने पर पहले उसे सी 1 और उस के बाद सी 2 सर्टिफिकेट दिया जाएगा. तीसरे साल उसे सी 3 का सर्टिफिकेट मिलेगा. उस के बाद से जैविक उत्पाद किसी भी बड़े बाजार में भेजे जा सकेंगे या उन का इंटरनेशनल लेबल पर निर्यात किया  जा सकेगा. इस से बिहार में जैविक खेती कर रहे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलेगा और बाकी किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन मिलेगा.

फिलहाल अपने जैव उत्पादों को बाजार में भेजने के लिए किसानों को केंद्रीय एजेंसी ‘एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट एजेंसी’ से सर्टिफिकेट लेना पड़ता है. यह सर्टिफिकेट हासिल करने का काम काफी पेचीदा होने की वजह से किसान इस से कन्नी काटते रहे हैं. जल्द ही बिहार समेत पूरे देश में बिहार ब्रांड का गेहूं और चावल मिलने लगेगा. बिहार सरकार चावल और गेहूं के आटे की ब्रांडिंग कर के देश भर में इस की पहचान बनाने की मशक्कत में लगी हुई है. बिहार से काफी मात्रा में गेहूं और चावल दूसरे राज्यों में जाते हैं, पर उन की ब्रांडिंग नहीं हो पाती. कृषि विभाग और राज्य  के उद्यमियों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद कतरनी, बासमती, आनंदी, गोविंदभोग और बादशाहभोग किस्म के चावलों की ब्रांडिंग पर सहमति बन गई है. राज्य सरकार इस बात पर भी जोर दे रही है कि जिन इलाकों में जिस अनाज, सब्जी और फल का ज्यादा उत्पादन होता है, वहां उन्हीं उत्पादों पर आधारित उद्योग लगाए जाएं. जो उद्यमी इसे ध्यान में रख कर उद्योग लगाएंगे उन्हें खास रियायत दी जाएगी. पिछले 6 सालों में 16 चावल मिलों, 5 गेहूं मिलों व 3 मकई मिलों के अलावा 4 फल आधारित, 2 शहद आधारित और 1 मखाना आधारित उद्योग लगाए गए हैं, जिन में उत्पादन चालू हो गया है.

इसी तरह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की मशहूर शाही लीची बिहार ब्रांड के तहत विश्व बाजार में चीन और थाईलैंड को टक्कर देने की तैयारी में है. शाही लीची की क्वालिटी और उत्पादन में सुधार की कवायद का बेहतर नतीजा मिला है. इस के लिए किसानों को स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है, जिस के बाद किसानों को प्रति हेक्टेयर 10 लाख रुपए तक की आमदनी हो सकेगी. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र से मिली जानकारी के मुताबिक बिहार के लीची उत्पादकों के लिए साल भर की योजना तैयार की गई है. इस के तहत फसल काटने के दूसरे दिन से ही अगली फसल की तैयारी शुरू कर दी जाएगी. क्वालिटी में सुधार के लिए मिट्टी की सेहत और कीटप्रबंधन का पुख्ता इंतजाम किया गया है. इस योजना पर काम करने वाले किसानों को सरकार माली मदद भी देगी. गौरतलब है कि बिहार की शाही लीची पश्चिमी देशों में खूब पसंद की जाती है. सूबे में 30 लाख हेक्टेयर में लीची की खेती होती है और 10 लाख टन लीची का उत्पादन होता?है. वैज्ञानिक सलाहों की कमी और नई तकनीकों को नहीं अपनाने की वजह से शाही लीची चीन की लीची के मुकाबले क्वालिटी में थोड़ी कमजोर साबित होती है और 20 से 25 फीसदी लीची का नुकसान भी हो जाता है.

कृषि वैज्ञानिक वीएन सिंह कहते हैं कि वर्ल्ड मार्केट में बने रहने और बेहतर स्थिति बनाने के लिए बिहार सरकार ने कमर कसी है. आमतौर पर लीची उत्पादक फसल के समय ही खेतों पर ध्यान देते हैं, जबकि क्वालिटी के लिए पूरे साल काम करने की दरकार है. क्वालिटी में सुधार होने से बाजार में लीची  की मांग निश्चित रूप से बढ़ेगी और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी. यूरोपीय देशों में 700 से 1500 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से लीची की बिक्री होती है. लीची के साथ ही बिहार में पिछले एक दशक से बड़े पैमाने पर मशरूम का उत्पादन हो रहा है. राज्य में फिलहाल 1500 टन मशरूम का उत्पादन हो रहा है. किसानों को इस के उत्पादन के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल करने के लिए ट्रेंड किया जा रहा?है. मुख्यमंत्री नीतीश कई मौकों पर कहते रहे हैं कि बिहार के किसानों ने धान और आलू के उत्पादन का वर्ल्ड रिकार्ड तोड़ा है और अब हाई क्वालिटी के मशरूम उत्पादन की बारी है. बिहार के भागलपुर जिले के कतरनी चावल के दीवाने देशविदेश में हैं. यह एक किस्म का खुशबूदार चावल है, जिस के दाने लंबे व पतले होते हैं. भागलपुर के किसान इस चावल को सैकड़ों सालों से पैदा कर रहे हैं. इस किस्म के धान की रोपनी चाहे जब की जाए, मगर उस में फूल 20 अक्तूबर से 30 अक्तूबर के बीच ही आते हैं. दिसंबर के पहले हफ्ते तक फसल तैयार हो जाती है.

कृषि वैज्ञानिक ब्रजेंद्र मणि बताते हैं कि कतरनी धान के पौधे 140 से 160 सेंटीमीटर लंबे होते हैं. खुशबूदार होने की वजह से इस का चावल और चूड़ा देश भर में काफी पसंद किया जाता है. इस के खुशबूदार पुलाव और बिरयानी का जायका लाजवाब होता है. विदेशों में इस की खासी मांग है. किसान और कतरनी चावल के व्यापारी सरकार से मांग कर रहे हैं कि भागलपुर में कतरनी चावल एक्सपोर्ट जोन बनाया जाए, जिस से विदेशों में आसानी से इस की सप्लाई की जा सके. बिहार में पैदा होने वाली देसी मछलियों की भी ब्रांडिंग का काम शुरू किया गया है. बिहार में मछली का उत्पादन भले ही कम हो, पर विदेशों में बिहार की देसी मछलियों की काफी मांग है. ‘पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग’ से मिली जानकारी के मुताबिक पूर्वी और पश्चिमी चंपारण से कतला और रोहू मछलियां नेपाल भेजी जा रही हैं, जबकि दरभंगा में पैदा होने वाली बुआरी और टेंगरा मछलियां भूटान में खूब पसंद की जा रही हैं. वहीं भागलपुर और खगडि़या जिलों में पैदा की जाने वाली मोए और कतला मछलियां सिलीगुड़ी भेजी जा रही हैं. मुजफ्फरपुर और बख्तियारपुर से बड़ी तादाद में मछलियां चंडीगढ़ और पंजाब के व्यापारियों के द्वारा मंगवाई जा रही हैं.

दरभंगा के मछलीउत्पादक रामचंद्र झा बताते हैं कि बिहार की मछलियों के लाजवाब स्वाद की वजह से दूसरे राज्यों और देशों के लोग इन के दीवाने बन रहे हैं. इस से जहां बिहार की मछलियों की दुनिया में डिमांड बढ़ रही है, वहीं उत्पादकों को तगड़ी कीमत भी मिल रही है. इसी वजह से मछलीउत्पादक भी मछलियों को दूसरे देशों और राज्यों में भेजने में दिलचस्पी ले रहे हैं. गौरतलब है कि बिहार में मछली की सालाना खपत 5 लाख 80 हजार टन है, जबकि सूबे का अपना उत्पादन 4 लाख 30 हजार टन है. बाकी मछलियों को आंध्र प्रदेश समेत दूसरे राज्यों से मंगवाया जाता है.

बिहार में धूम मचाएगी ‘रेड लेडी’

रेड लेडी बिहार में धूम मचाने के लिए पूरी तरह से तैयार है. ताइवान का मशहूर रेड लेडी पपीता अब बिहार के खेतों में लहलहाएगा. बिहार के कृषि विभाग ने ताइवान के पपीते की खेती के लिए बड़ी योजना तैयार की है. किसानों को इस का पौधा 8 रुपए में मुहैया कराया जाएगा. इस किस्म के पपीते की खेती बिहार के किसी भी हिस्से में की जा सकती है. ताइवान के पपीते की इस किस्म की खासीयत यह है कि इस से प्रति पेड़ 97 से 99 फीसदी तक फल पाए जा सकते हैं, जबकि सामान्य पेड़ों से 50 से 60 फीसदी तक ही फल मिल पाते हैं. इस का 1 पेड़ सामान्य पपीते की किस्म के 3 पेड़ों के बराबर होता है. इस पपीते के पेड़ की लंबाई 8 से 10 फुट होती है और पौधा लगाने के 1 साल बाद ही उस में फल आने शुरू हो जाते हैं. हर पेड़ से ढाई से 3 सालों तक फल मिलते हैं.

इस ताइवानी किस्म के 50 ग्राम बीजों को 1 हेक्टेयर खेत में लगाया जा सकता है, जबकि इतने ही रकबे में साधारण किस्म के पपीते के 400 ग्राम बीजों की खपत हो जाती है. फिलहाल सूबे के हर जिले में पपीते की खेती की जाती है, लेकिन गोपालगंज, पटना और उत्तर बिहार के जिलों में इस की ज्यादा खेती की जाती है. बिहार में पपीते का सालाना उत्पादन 1 लाख टन है.

जुर्म छोड़ खेती से संवारा जीवन

इनसान भूख से बेचैन हो कर कुछ भी कर सकता है. हालात तब और?भी खराब हो जाते हैं, जब परिवार का पालन करना हो और बुनियादी सहूलियतें भी न हों. कामधंधे के लिए लोग भूखे पेट गांव से निकल कर शहर पहुंचते हैं, लेकिन चोरीचकारी के डर से कोई दिहाड़ी मजदूरी पर भी नहीं लगाता. तकरीबन 8-10 साल पहले ऐसे ही हालात थे राजस्थान के सिरोही जिले के आबूरोड व पिंडवाडा में अरावली इलाके के भील व गरासिया समुदाय के लोगों के. लेकिन अब ये अरावलीपुत्र मेहनतकश बन चुके हैं और नकदी फसल की खेतीबारी कर के खुशहाली से जीवन गुजार रहे हैं. भील व गरासिया परिवारों के जीवन में यह बहार किसी तरह की सरकारी खैरात से नहीं आई है. यह मुमकिन हुआ है, जिले के सौंफ उत्पादक किसानों की कोशिशों से, जिन्होंने न केवल इन परिवारों को कामधंधा दिया, बल्कि उन्नत तरीके से सौंफ की खेती कर के पैसा कमाना भी सिखाया.

गौरतलब है कि एकडेढ़ दशक पहले तक सिरोही जिले का सौंफ उत्पादन में नामोनिशान भी नहीं था, लेकिन किसानों की मेहनत ने अब अमेरिका तक आबू व सिरोही की सौंफ के चर्चे कर दिए हैं. गुजरात की उंझा मंडी भी आबू की सौंफ से महकती है. सौंफ की महक को अमेरिका तक पहुंचाने में यहां के आम किसानों के साथसाथ भील व गरासिया समुदाय के लोगों की मेहनत भी जुड़ी हुई है. इस समुदाय के लोगों ने बड़े किसानों के खेतों पर दिहाड़ी मजदूरी करते हुए उन्नत तरीके से सौंफ उत्पादन का तरीका सीखा. इस के बाद इन लोगों ने अपनी 1-1, 2-2 बीघे छोटी जमीनों पर सौंफ की खेती शुरू की. यह इसी का नतीजा है कि आबूरोड व पिंडवाडा इलाके में सौंफ उत्पादन का रकबा लगातार बढ़ रहा है. सिरोही के पिंडवाडा व आबूरोड इलाके में 5.5 हजार हेक्टेयर रकबे में सौंफ का उत्पादन होता है. इलाके के खेतों में सौंफ का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल हो रहा है. इतना ही नहीं, सौंफ उत्पादन के बाद मिली रकम से आई खुशहाली का ही नतीजा है कि अब भील व गरासिया परिवारों के बच्चे भी पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगे हैं.

ऐसे आया बदलाव

तकरीबन 8-10 साल पहले किसानों ने सौंफ उत्पादन लेना शुरू किया. इशाक अली, गुलाम अली, सुलतान, नरेंद्र व बदरी वगैरह ऐसे किसान हैं, जिन्होंने सौंफ की खेती को जिले में बढ़ावा देने का काम किया. किसान इसाक बताते हैं कि शुरूशुरू में सौंफ की खेती करने के लिए कोई तैयार नहीं था. बंजर व पथरीली जमीन की वजह से लोग सिंचाई वाली फसलें करने को तैयार नहीं थे. लेकिन जो लोग पथरीली व बंजर भूमि में गुजरात से सौंफ के उत्पादन का काम सीख कर आए थे, उन्होंने सब को खेती में बदलाव लाने के बारे में बताया. इन लोगों की मदद से यहां के लोगों ने सौंफ की खेती करना सीखा. वे सौंफ के पौधों को पहले नर्सरी में तैयार करते हैं. फिर इस के बाद इन को 1 से डेढ़ फुट की दूरी पर रोप देते हैं. इस के बाद बूंदबूंद सिंचाई तकनीक से पौधों को सींचा जाता है.

दिलचस्प बात तो यह रही है कि बड़े किसानों के यहां दिहाड़ी मजदूरी का काम करने वाले भील व गरासिया परिवारों के लोगों ने भी सौंफ उत्पादन के काम को सीखा और अपने छोटेछोटे खेतों में सौंफ उपजाने लगे. सौंफ की रोपाई से ले कर कटाई तक भील व गरासिया परिवारों के लोग इस काम से जुड़े रहते हैं. इन्हें हर रोज 2-2 सौ रुपए दिहाड़ी मजदूरीके मिल जाते हैं. बाकी बचे समय में वे अपने खुद के खेतों में काम करते हैं.

पहले ये थे हालात

एक दशक पहले तक इलाके के भील व गरासिया परिवार के लोग चोरीचकारी कर के अपना व परिवार का पेट पालते थे. इन को इलाके में चोरों की कौम के नाम से जाना जाता था. एक समय तो इन की हालत ऐसी हो गई थी कि सिरोही व आबू शहर में इन्हें कोई रोजगार देने को तैयार नहीं होता था. ज्यादातर भील व गरासिया परिवारों की यही हालत थी. बाद में इलाके के लोग इन्हें दिहाड़ी मजदूरी पर अपने खेतों में काम पर रखने लगे. कई लोगों को तो जंगली जानवरों से फसल की हिफाजत के लिए भी रखा जाने लगा. धीरेधीरे मेहनत के बूते पर इन्होंने संपन्न किसान परिवारों का भरोसा जीता. अब हालत यह है कि ये परिवार चोरीचकारी के काम को पूरी तरह से छोड़ चुके हैं और इन्हें अब शराफत की नजरों से देखा जाने लगा है.         – 

सरसों कचरा डिसपोजल प्लांट फसल कचरे से किसान हो रहे मालामाल

यह वक्त के साथ हुई तरक्की का ही नतीजा है कि बीते जमाने में फसल की बोआई के लिए रुकावट व आफत बनने वाला सरसों का कचरा अब किसानों के लिए फायदे का सौदा बन रहा है. तकनीक के सहारे कचरे से प्रदूषण रहित कोयला बना कर किसानों ने कचरे का सही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. सरसों के कचरे के दाम हर साल बढ़ने से किसानों का मुनाफा भी लगातार बढ़ रहा है. किसान कोयले के लिए कचरे की गिट्टियां बन कर बेच रहे हैं. कई जगह किसान इस कचरे को ईंटभट्टों व प्लाईवुड फैक्टरियों को भी भेज रहे हैं. इस से किसानों को अच्छे दाम मिल रहे हैं. सरसों के कचरे का निस्तारण  यानी डिसपोजल (इस्तेमाल) कर के कमाई करने की दिशा में टोंक जिले की निवाई तहसील के भगवानपुरा गांव के किसान शिवराम जाट ने इलाके में सब से पहले पहल की. उन्होंने फरीदाबाद से कचरे की गिट्टियां बनाने की 16 लाख रुपए की मशीनें खरीदीं. ये मशीनें आज आसपास के इलाके के गांवों के रहने वाले किसानों की तकदीर संवार रही हैं. यह मशीन प्रतिघंटा 8 क्विंटल कचरे का निबटेरा कर के गिट्टियां बनाती है.

सरसों के कचरे से बनने वाले कोयले को प्रदूषण रहित माना गया है. इसी वजह से इस की मांग तेजी से बढ़ रही है. माहिरों का कहना है कि सरसों के कचरे से बनने वाली गिट्टियों में मोनो आक्साइड पाया जाता?है. इस कारण इस के कोयले से निकलने वाला धुआं प्रदूषणरहित होता है. किसानों को सरसों के कचरे से अच्छा मुनाफा मिलने के साथसाथ प्रदूषणरहित कचरा क्षेत्र के किसानों के लिए कमाई की नई राह खोल रहा है. गौरतलब है कि सरसों की फसल लेने के बाद आगे की फसल की बोआई को ले कर किसान समय पर खेत खाली नहीं कर पाते थे. ऐसे में किसानों के लिए परेशानी और खर्च दोनों बढ़ जाता था. इतना ही नहीं कचरा प्रबंधन की व्यवस्था नहीं होने से पहले किसान सरसों की फसल के कचरे को फेंकते या जलाते थे. इस से वायु प्रदूषण होता था और पैसा भी खर्च होता था. लेकिन अब किसान इस कचरे को बेच कर न केवल कमाई कर रहे हैं, बल्कि आबोहवा को भी साफ रख रहे हैं.

कचरा डिसपोजल प्लांट लगने के बाद किसानों के दिन बदल गए हैं. अब तो हाल यह है कि सरसों की फसल निकालने के समय ही कचरा खरीदने वाले कारोबारियों की लाइन लग जाती है. 3 से 4 सौ रुपए प्रति क्विंटल के भाव से ये कचरा हाथोंहाथ बिक जाता है. कहना गलत नहीं होगा कि किसानों को आम के आम गुठलियों के भी दाम मिल रहे हैं. सरसों से मिली उपज के साथसाथ कचरे के भी मिल रहे अच्छे दामों ने किसानों की तकदीर ही संवार दी है. भगवानपुरा में कचरा निस्तारण (डिसपोजल) प्लांट व मशीन लगाने से पहले कचरे के भाव 50 रुपए प्रति क्विंटल थे, जो अब 3 सौ से 4 सौ रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं. वहीं गिट्टियां बनने के बाद इस के भाव 6 सौ से 7 सौ रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच जाते हैं. बड़े कारोबारियों तक पहुंचने पर इस के भाव और भी ऊंचे हो जाते हैं. कचरा इस्तेमाल करने व कचरे से अच्छा मुनाफा कमाने की यह तकनीक किसानों के फायदे की सब से बढि़या तकनीक है. मगर अफसोस की बात यह है कि यह प्लांट बड़े किसान या करोबारी ही लगा सकते हैं. मशीनें महंगी होने से छोटे किसान इन्हें खरीद नहीं सकते. अगर सरकार प्लांट लगाने पर सब्सिडी की व्यवस्था करे तो किसानों को व्यापारियों के हाथों लुटना नहीं पड़ेगा.

सरकार वैसे तो उद्योगों, कारखानों व मिलों वगैरह को चलाने के लिए खूब सब्सिडी दे रही है, लेकिन किसानों के लिए फायदेमंद इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कोई रुचि नहीं दिखा रही. किसानों का कहना है कि अगर सरकार मदद करे तो हर गांव में कचरा डिसपोजल के प्लांट लग सकते हैं, जिस से किसानों की कमाई तो बढ़ेगी ही साथ आबोहवा भी साफसुथरी होगी.

सुधरे तरीकों से मुरगीपालन ज्यादा कमाई का साधन

हमारे देश में मुरगीपालन का सिलसिला बहुत पुराना है. इस काम में सहूलियत यह है कि 2-4 मुरगियों से ले कर सैकड़ों मुरगियों तक अपनी कूवत के मुताबिक पूंजी लगाई जा सकती है. खेती के साथ सहायक रोजगार के रूप में मुरगीपालन बहुत फायदेमंद है, बशर्ते उसे बेहतर तरीकों से किया जाए. ज्यादातर मुरगीपालक मुरगियों के आहार में खनिजों पर पूरा ध्यान नहीं देते. इस लापरवाही से अंडे कम बनते हैं, अंडों की परत कमजोर बनती है, चूजों की बढ़त रुक जाती है व मुरगियां बीमार हो कर मरने लगती हैं. इस से फायदे की जगह नुकसान होता है. लिहाजा माहिरों से हमेशा तालमेल बना कर रखें व उन से राय लेते रहें. कृषि विज्ञान केंद्र या रिसर्च स्टेशनों के वैज्ञानिकों की सलाह से मुरगियों के आहार में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीज, जस्ता, तांबा, नमक, सल्फर, आयरन, आयोडीन, कोबाल्ट, सेलेनियम व फ्लोरीन की सही मात्रा शामिल करें. अगर किसी मुरगी में बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो उसे तुरंत दूसरी मुरगियों से अलग कर दें.

मुरगीपालन का कारोबार करने के लिए मुरगेमुरगियों की नस्ल, उन के रहने की जगह, उन के दानापानी व बीमारियों से बचाव आदि का पुख्ता इंतजाम होना बेहद जरूरी है. तभी मुरगेमुरगियों से ज्यादा अंडे व उम्दा मीट मिल सकेगा. फिलहाल अंडा उत्पादन में भारत दुनिया भर में तीसरे व पोल्ट्री मीट के मामले में 5वें नंबर पर है. नई तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ने से मुरगीपालन के पुराने तरीके पीछे छूट गए हैं. देश में अंडों का उत्पादन साल 2011-12 में 66 बिलियन व साल 2012-13 में 69.73 बिलियन था. साल 2014 में पोल्ट्री की सालाना बढ़त दर 5 फीसदी रही और प्रति आदमी अंडों की उपलब्धता 57 व मुरगे के मांस यानी चिकन का उत्पादन 326 लाख टन आंका गया.

पोल्ट्री प्रोसेसिंग

मुरगीपालन से मिलने वाले अंडे व मांस जल्द इस्तेमाल करने लायक चीजें हैं. इन्हें ज्यादा दिनों तक रोक कर नहीं रखा जा सकता. वैसे भी अब जमाना हाईटेक डिजाइनर अंडों व पोल्ट्री मीट की प्रोसेसिंग का है, लेकिन ज्यादातर लोग अभी तक सिर्फ आमलेट, अंडे की भुजिया व एग करी पर ही अटके हैं. लिहाजा मुरगीपालन के कामधंधे में तकनीकी सुधार व तौरतरीकों में बदलाव करना लाजिम है, ताकि अंडे व मीट ज्यादा दिनों तक खाने लायक रहें. बरेली के इज्जतनगर इलाके में चल रहे केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, सीएआरआई के माहिरों ने अंडों से एल्बूमिन रिंग्स, एग रिंग्स, एग पेन केक, एग पैटीज, एग क्रस्ट पिज्जा, बटेर के अंडों का अचार, बेक्ड अंडा, एगरोल, भरवां लेपित अंडा, एग स्ट्रिप व एग मीट पैटीज बनाने की कामयाब तकनीकें निकाली हैं. किसान उन्हें अपना कर कामयाब करोबारी बन सकते हैं.

इस संस्थान ने पोल्ट्री मीट से मीट वैफर्स, मीट फिंगर चिप्स, चिकन स्टिक्स, मिक्स चिकन लोफ, चिकन सासेज, चिकन गिजार्ड सिरके का अचार, चिकन गिजार्ड सरसों के तेल का अचार, चिकन गिजार्ड स्नैक्स और कुक्ड चिकन रोल आदि बहुत सी ऐसी चीजें बनाने की तकनीकें निकाली हैं, जिन से पोल्ट्री उत्पादों की मियाद बढ़ जाती है. ज्यादातर मुरगीपालक नहीं जानते कि सीएआरआई के माहिरों ने लहसुन, दालचीनी व लौंग की मदद से मुरगे के मांस को 8-10 दिनों तक खाने लायक बनाए रखने की तकनीक निकाली है. उन्होंने पोल्ट्री मीट को ज्यादा मुलायम करने की नायाब तकनीक भी निकाली है. इस संस्थान के 5 पोल्ट्री उत्पादों को पेटेंट मिल चुका है.

कचरा भी बेकार न हो

आमदनी बढ़ाने के लिए पोल्ट्री में बचे हुए कचरे का भी बेहतर इस्तेमाल करना जरूरी है. मसलन पंख छोड़ कर पोल्ट्री मीट के बचे हुए हिस्सों से कुत्तों के लिए उम्दा आहार बनाया जा सकता है. सीएआरआई, बरेली के माहिरों ने इस का उम्दा तरीका खोजा है, ताकि कचरे को भी कीमती बना कर कमाया जा सके. इसी तरह मुरगेमुरगियों की बीट सड़ा कर खाद के तौर पर खेती में काम आ सकती है. इसे बेच कर भी पैसे कमाए जा सकते हैं. देश के कुल अंडा उत्पादन का करीब 30 फीसदी हिस्सा पिछड़े हुए ग्रामीण इलाकों से आता है. यदि छोटे व कमजोर मुरगीपालकों को पोल्ट्री प्रोसेसिंग की सुधरी व किफायती तकनीक सिखा कर उन्हें सहूलियतें दी जाएं, तो उस से अंडा उत्पादों की क्वालिटी बढ़ेगी. साथ ही छोटे किसानों की आमदनी व गांवों में रोजगार के मौकों में भी इजाफा होगा.

हाईटेक अंडे

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली की हाईटेक लेयर्स फार्म्स कंपनी ने बिना बदबू के ब्राउन व 4 तरह के सफेद अंडे 30 व 10 की पैकिंग में बाजार में उतारे हैं. चाइल्ड ग्रो बच्चों की बढ़त के लिए, स्ट्रांग बोन स्वाइनफलू से बचाव व हड्डियों की मजबूती के लिए, हाईटेक प्लस विटामिनों व खनिजों की कमी पूरी करने के लिए और हैपी हार्ट कोलेस्ट्राल घटाने व दिल के मरीजों के लिए है. इन अंडों की पैकिंग पर उत्पादन की तारीख व खाने की मियाद छपी रहती है. ये अंडे बर्डफ्लू, एंटीबायोटिक हारमोंस, सेलमोनेला व कोलिफोर्म बैक्टीरिया आदि से बेअसर बताए जाते हैं.

‘संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे’ का नारा बुलंद कर के अंडों की मांग व खपत बढ़ाने वाली नेशनल एग कोर्डीनेशन कमेटी, एनईसीसी दुनिया भर में मुरगीपालकों का सब से बड़ा संगठन है. मुरगीपालकों को अंडों की वाजिब कीमत दिलाने के मकसद से यह संस्था साल 1982 में बनी थी. आज 25 हजार से भी ज्यादा मुरगीपालक इस संस्था के मेंबर बन चुके हैं.

सरकारी इंतजाम

पोल्ट्री को बढ़ावा दे कर सालाना 200 अंडे लेने के मकसद से चंडीगढ़, भुवनेश्वर, मुंबई व हैस्सरघट्टा में केंद्र सरकार के 4 संगठन काम कर रहे हैं. वहां किसानों को तकनीकी जानकारी, ट्रेनिंग व चूजे दिए जाते हैं. गुड़गांव में केंद्रीय कुक्कट कार्य निष्पादन परीक्षण केंद्र, सीपीपीटीसी है, जो अंडे व मीट देने वाली किस्मों की जांचपरख करता है. इस के अलावा मिल्क बूथों की तरह जल्द ही देश भर में अंडा बिक्री की आटोमैटिक मशीनें भी लगेंगी. साल 2009-10 से गांवों में घरेलू मुरगीपालन बढ़ाने की स्कीम चल रही है. इस में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वालों को मुरगीपालन के लिए माली इमदाद दी जाती है. खेती मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक साल 2013-14 में 1.16 लाख मुरगीपालकों को 40 करोड़ रुपए दिए गए. इस स्कीम के तहत 31 मार्च, 2014 तक 6 लाख 13 हजार मुरगीपालकों की मदद की जा चुकी है. कुक्कुट उद्यम पूंजी कोष, पीवीसीएफ की स्कीम साल 2011-12 से चल रही है. इस में पोल्ट्री कारोबार की कूवत बढ़ाने व तकनीकी अपनाने के लिए छूट पर पूंजी मुहैया कराई जाती है. इस की मदद से लोग पोल्ट्री फार्म चालू कर सकते हैं या मुरगीदाना बनाने का कारखाना लगा सकते हैं. इस स्कीम की मदद से मुरगीपालन से जुड़े और भी तमाम काम किए जा सकते हैं.

केंद्र सरकार के खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने मीट व पोल्ट्री उद्योग को बढ़ावा देने के लिए साल 2009 में राष्ट्रीय मांस एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड, एनएमपीपीबी बनाया था. यह बोर्ड मीट व पोल्ट्री कारोबारियों की कई तरह से मदद करता है, ताकि प्रसंस्करण के काम में तकनीकी सुधार हो और देश में ऐसे उम्दा क्वालिटी के मीट व पोल्ट्री उत्पाद बनें, जिन्हें दूसरे मुल्कों को निर्यात भी किया जा सके. राष्ट्रीय मांस एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड, मीट व पोल्ट्री के कारोबार में लगे लोगों को सफाई व बेहतर पैकेजिंग आदि के नए तौरतरीके सिखाने के लिए ट्रेनिंग व सलाह देता है, ताकि पोल्ट्री उद्योग में बदलाव आ सके.

पोल्ट्री को बढ़ावा

उत्तर प्रदेश में मुरगीपालन को बढ़ावा देने के मकसद से पशुपालन महकमा कई तरह की स्कीमें चला रहा है, मसलन कारोबारी लेयर्स, ब्रायलर पैरेंट व हैचरी फार्म खोलने की योजना. सघन कुक्कुट विकास योजना, कुक्कुट प्रशिक्षण योजना और आहार परीक्षण व रोग निदान की प्रयोगशाला भी पशुपालन महकमे की स्कीमों में शामिल हैं. पशुपालन महकमा लोगों को ट्रेनिंग दिलाने के साथसाथ कर्ज भी मुहैया कराता है. इस के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीण इलाकों में घूमघूम कर बीमार मुरगियों का इलाज करने के लिए मोबाइल वैनें भी चला रखी हैं, ताकि इस काम में लगे किसानों व उद्यमियों को दिक्कत न हो. जरूरत सिर्फ जानकारी होने व फायदा उठाने की है.

हैचरी

किसान मशीनों की मदद से गैस की गरमी के जरीए अंडों से चूजे निकालने का काम भी कर सकते हैं. लेकिन इस के लिए ट्रेनिंग लेना जरूरी है. हैचरी के काम में तय तापमान पर साफसुथरे अंडे करीने से गरमाहट में रखे जाते हैं. अनउपजाऊ अंडों को छांट कर निकाला जाता है व निकले हुए चूजों को संभाला जाता है. पोल्ट्री का दायरा दिनोंदिन बढ़ रहा है. मुरगी के अलावा बतख, ईमू, बटेर, तीतर व कई दूसरे देशीविदेशी पंछी भी पाले जा रहे हैं. किसानों को पहले इन के बारे में पूरी जानकारी हासिल करनी चाहिए. इस के बाद ट्रेनिंग भी जरूर लेनी चाहिए. पोल्ट्री फार्म के लिए किसान बैंकों से कर्ज ले सकते हैं. आपस में मिल कर स्वयं सहायता समूह या कोआपरेटिव सोसायटी भी बना सकते हैं. किसान राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, पोल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड या राष्ट्रीय वाटरशेड विकास स्कीम से भी फायदा उठा सकते हैं. मुरगीपालन के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए किसान अपने ब्लाक, जिले के लघु उद्योग, ग्रामोद्योग व पशुपालन महकमे से संपर्क कर सकते हैं. मुरगीपालन से जुड़ी नई से नई बातें जानने के लिए नीचे दिए तों पर भी संपर्क किया जा सकता है :

* निदेशक, केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, सीएआरआई, इज्जत नगर, बरेली  : 243122 (उत्तर प्रदेश)

* सचिव, राष्ट्रीय मांस एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण बोर्ड, एनएमपीपीबी, 7/6 एएमडीए बिल्डिंग, सीरी फोर्ट, अगस्त क्रांति मार्ग, नई दिल्ली : 110049    

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