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फिल्म की आड़ में प्रचार : गुलाटी बनेंगे होस्ट

दीवाली के दौरान रिलीज होने वाली फिल्मों को ले कर दर्शकों में जोरदार के्रेज होता है. उस पर अगर फिल्म में सलमान खान हो तो यह क्रेज और भी ज्यादा हो जाता है. शायद इसी बात को भांपते हुए भाजपा सरकार ने फिल्म की आड़ में अपना प्रचार करने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया. खबर है कि कई सिनेमाघरों में फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ के शो शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रचार के लिए सैंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी द्वारा तैयार किया गया वीडियो दिखाया गया. जाहिर है इस वीडियो में सरकार की उपलब्धियों का बखान किया गया है. बिहार चुनावों में मिली करारी हार के बाद पार्टी की इस तरह की प्रचारबाजी समझ से परे है. अच्छा होता अगर पार्टी हार के कारणों पर मंथन करती.

पानी से परेशान

निर्देशक शेखर कपूर ने भले ही कई फिल्में बना ली हों लेकिन उन की एक फिल्म को सालों से कोई निर्माता नहीं मिल रहा है. इस फिल्म का नाम है पानी. करीब 10-15 साल पहले इस फिल्म को शेखर कपूर ने आमिर खान समेत कई कलाकारों के साथ बनाने की योजना बनाई मगर बारबार विफल रहे. यशराज बैनर ने न सिर्फ इस फिल्म को पूरा करने का जिम्मा उठाया बल्कि इस के लिए अभिनेता सुशांत राजपूत को साइन भी कर लिया. ऐसे में सब को यही उम्मीद थी कि अब यह फिल्म पूरी होगी लेकिन खबर है कि जल संकट और भविष्य की त्रासदी जैसे विषय पर आधारित यह फिल्म एक बार फिर अटक गई है.

परदे पर राहुल

सुधीर मिश्रा अलग तरह की फिल्मों के लिए जाने जाते हैं. इन दिनों वे दासदेव फिल्म बना रहे हैं. यह फिल्म देवदास पर अलग तरीके से चोट करती है. गौरतलब है अभिनेता राहुल भट्ट इस के लिए फिल्म अगली के बाद वापसी करने जा रहे हैं. वैसे दासदेव का पहले देवदास नाम रखा गया था. बाद में इसे बदल कर दासदेव कर दिया गया है. देवदास की मौडर्न एप्रोच में राजनीति का जोरदार तड़का लगाया गया है और जो किरदार राहुल भट्ट निभा रहे हैं वह कथित तौर पर राहुल गांधी से प्रभावित है. हो सकता है यह पब्लिसिटी स्टंट हो. बहरहाल, फिल्म में पारो के रूप में रिचा चड्ढा और चंद्रमुखी के रूप में अदिति राव हैदरी दिखेंगी.  देवदास पर बनी फिल्म देव डी ने भी दर्शकों को चौंकाया था. अब दासदेव से भी यही आशा है.

दीपिका की चिंता

बौलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने शाहरुख खान के साथ ओम शांति ओम, चेन्नई ऐक्सप्रैस और हैप्पी न्यू ईयर जैसी सफल फिल्मों में काम किया है. मैडम दीपिका अब चाहती हैं कि शाहरुख की हर फिल्म में उन्हें ही लिया जाए. यह हम नहीं बल्कि खुद दीपिका का कहना है. हाल में फिल्म बाजीराव मस्तानी से जुड़े एक कार्यक्रम के दौरान दीपिका का कहना था कि उन की फिल्मों के सैट पर मुझे खुद का न होना अखरता है. वे कहती हैं कि शाहरुख के साथ की गई फिल्मों की बदौलत उन्हें व्यावसायिक सफलता मिली है जबकि फाइंडिंग फैनी और रामलीला ने उन के अंदर की अभिनेत्री को निखारा है. बाजीराव मस्तानी भी इसी तरह की फिल्म है. साफ जाहिर है कि अभिनय प्रधान फिल्मों के बजाय कमर्शियल फिल्मों की सफलता ज्यादा लुभाती है.

फिल्म समीक्षा

तितली

यह तितली फूलों से पराग इकट्ठा कर शहद बनाने वाली नहीं है, फिर भी अपनी छटपटाहट से दर्शकों को चौंकाती जरूर है. फिल्म का प्रमुख किरदार तितली अपने 2 भाइयों के साथ रहता है और छोटीमोटी चोरियां करता है. उस का सपना है 3 लाख रुपए जुटा कर एक मौल में पार्किंग स्पेस खरीदना. इसीलिए वह अपने भाइयों की हां में हां मिला कर लूटपाट का धंधा करता है. साथ ही, वह हर वक्त छटपटाता भी रहता है कि कब वहां से भाग निकले. उस की यही छटपटाहट दर्शकों को बांधे रखती है कि वह अपने भाइयों के चंगुल से कैसे निकल पाता है. ‘तितली’ कम बजट की नए हीरो-हीरोइन को ले कर बनाई गई फिल्म है. इस फिल्म को दिवाकर बनर्जी और प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक दिवंगत यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा ने मिल कर बनाया है. फिल्म देख कर बहुत शर्म महसूस हुई कि जो यश चोपड़ा हमेशा से साफसुथरी, पारिवारिक फिल्में बनाया करते थे, उन के बेटे ने गालियों से भरपूर ऐसी फिल्म बनाई है. इस फिल्म को विदेशी फिल्म समारोहों में भले ही दर्जनों अवार्ड्स मिले हों लेकिन गालियों के दम पर अवार्ड्स जीतना गर्व की बात नहीं कही जा सकती.

‘तितली’ की कहानी 3 भाइयों की है. सब से बड़ा भाई विक्रम (रणवीर शोरी), मंझला बावला (अमित स्याल) और सब से छोटा तितली (शशांक अरोड़ा) है. तीनों भाई मिल कर छोटीमोटी चोरियां करते हैं. घर में कोई महिला नहीं है. विक्रम की बीवी अलग रहती है और उस से तलाक चाहती है. पैसे कमाने की चाह में विक्रम और बावला मिल कर तितली की शादी नीलू (शिवानी रघुवंशी) से करा देते हैं. नीलू दहेज में सामान के अलावा ढाई लाख की एफडी भी साथ में लाती है. शादी के बाद नीलू अपने प्रेमी प्रिंस के पास जाना चाहती है. तितली और नीलू में डील होती है कि तितली उसे उस के प्रेमी से मिलवाएगा और वह उसे ढाई लाख रुपए दे देगी. तितली को ढाई लाख रुपए मिल जाते हैं और वह मौल में पार्किंग स्पेस खरीदने पहुंचता है लेकिन उस के अंदर की छटपटाहट उसे रोक देती है. उधर नीलू अपने प्रेमी से मिलने जाती है तो उसे पता चलता है कि वह शादीशुदा है. वह अपने मायके लौट आती है. तितली थकहार कर नीलू के मायके पहुंच जाता है और उस से अपनी गलती की माफी मांगता है. दोनों फिर से एक हो जाते हैं. फिल्म की विशेषता इस की कहानी और किरदार हैं. फिल्म में किरदारों का रहनसहन निम्न वर्ग का दिखाया गया है जो हर वक्त आपस में झगड़ते हैं और गालीगलौज करते हैं. निर्देशक ने एक बेरोजगार युवा की पैसे पाने की ललक को खूबसूरती से दिखाया है. पैसे पाने के लिए वह अपनी पत्नी का हाथ इंजैक्शन से सुन्न कर उस की कलाई तोड़ देता है ताकि उस का बड़ा भाई उस की पत्नी से एफडी पर साइन न करा सके. फिल्म का माहौल दर्शकों को कुछ हद तक बांधे रखता है. शशांक अरोड़ा की ऐक्ंिटग अच्छी है. रणवीर शोरी कुछ खास नहीं कर सका है. फिल्म कलात्मक टच लिए हुए है. मल्टीप्लैक्स कल्चर की यह फिल्म टिकट खिड़की पर भीड़ जुटा पाएगी, इस में संदेह है. फिल्म में गीतों की गुंजाइश नहीं थी, पार्श्व संगीत ठीकठाक है. छायांकन अच्छा है.

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प्रेम रतन धन पायो

करीब 27 साल पहले बनी राजश्री प्रोडक्शंस की फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ ने कामयाबी के सभी रिकौर्ड तोड़ डाले थे. उस के बाद ‘हम साथसाथ हैं’ और ‘हम आप के हैं कौन’ ने भी खूब धूम मचाई. इन फिल्मों से यह स्पष्ट हो गया कि सूरज बड़जात्या साफसुथरी पारिवारिक फिल्में ही बनाते हैं. लेकिन सचाई यह है कि उन की फिल्मों में अगर नयापन ढूंढ़ा जाए तो वह नदारद मिलेगा. उन की हर फिल्म की स्टाइल लगभग एक जैसी होती है. लंबेलंबे सीन, आदर्शवादी किरदार, गानों की भरमार और एक सुपर स्टार का आकर्षण. उन की नई फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ में भी नयापन नहीं दिखा. फिल्म का नायक सलमान खान एक सुपरस्टार है, दर्शकों में उस का आकर्षण है. फिल्म में उस के किरदार को एकदम आदर्शवादी दिखाया गया है. लेकिन फिर भी फिल्म में कुछ कमी दिखाई देती है.

इस बार फिल्म की कहानी भी पारिवारिक कम, राजसी षड्यंत्र की ज्यादा लगती है. इसीलिए फिल्म में रोचकता कम हो गई है. ‘हम आप के हैं कौन’ की चुहलबाजी ‘दीदी तेरा देवर दीवाना.’ इस फिल्म में गायब है. फिल्म की नायिका सोनम कपूर में भी न तो चुलबुलापन दिखा न ही वह खुल कर हंसी है. सूरज बड़जात्या ने हालांकि फिल्म को काफी भव्य बनाया है. खूबसूरत सैट लगाए हैं, शीशमहल का सैट तो देखने लायक है. फिल्म में ग्लौसी लुक है. खूबसूरत दृश्य आंखों को चौंधियाते हैं. फिर भी फिल्म में गंभीरता की कमी खटकती है. फिल्म एक सिनेमाई ड्रामा बन कर रह गई है. फिल्म की कहानी शुरू होती है एक सीधेसादे रामभक्त प्रेम दिलवाले (सलमान खान) की प्रेमलीला (रामलीला नहीं) से. इस प्रेमलीला में कुछ मनचले सीता के किरदार से छेड़छाड़ करते हैं तो प्रेम उन्हें बाहर खदेड़ देता है.

इस प्रेमलीला में कमाई गई धनराशि को वह राजकुमारी मैथिली (सोनम कपूर) के एक एनजीओ को दान कर देता है. वह राजकुमारी मैथिली से एक बार मिलना चाहता है. उधर राजकुमारी मैथिली की शादी प्रीतमपुर के युवराज विजय (सलमान की दूसरी भूमिका) के साथ उस के राजतिलक के बाद होनी तय हुई है. प्रेम दिलवाला अपने दोस्त कन्हैया (दीपक डोबरियाल) के साथ प्रीतमपुर जाने का प्रोग्राम बनाता है. इसी बीच विजय सिंह का सगा भाई अजय (नील नितिन मुकेश) एक षड्यंत्र रच कर विजय सिंह पर जानलेवा हमला कराता है. रियासत के दीवान (अनुपम खेर) को जब महाराज विजय सिंह के हमशक्ल प्रेम दिलवाले के बारे में पता चलता है तो वह प्रेम को विजय सिंह बनने पर मजबूर कर देता है, विजय सिंह को छिपा देता है और उस का गुपचुप इलाज कराता है. अब प्रेम दिलवाला महाराज विजय सिंह बन कर राजकुमारी मैथिली से मिलता है. वह उस से प्यार करने लगता है. महल में रहते हुए प्रेम दिलवाला सारे षड्यंत्र को बेनकाब करता है और महाराज विजय सिंह को उस की अमानत राजकुमारी मैथिली को सौंप देता है. परंतु मैथिली तो प्रेम दिलवाले को पसंद करने लगी थी. अत: महाराजा विजय सिंह मैथिली की शादी प्रेम दिलवाला से करवा देते हैं.

फिल्म की इस कहानी की शुरुआत श्लोक और रामलीला से होती है. यह कहानी एकदम काल्पनिक लगती है. निर्देशक द्वारा राजसी षड्यंत्र की बात करना आज के युग में बेमानी लगता है. मध्यांतर से पहले बना फिल्म का माहौल मध्यांतर के बाद बिखर सा जाता है. फिल्म के अधिकांश सीन लंबे हो गए हैं. इस बार सूरज बड़जात्या सलमान के किरदार को पावरफुल बनाने में असफल साबित हुए हैं. फिल्म में 10 गाने हैं. इन गानों की वजह से फिल्म बेवजह लंबी खिंच गई है. टाइटल सौंग के अलावा कोई गाना याद नहीं रह पाता. फिल्म की पटकथा फीकी बन कर रह गई है. फिल्म में कई अतार्किक बातें भी भरी हुई हैं. महाराजा विजय सिंह की बहनों वाला प्रसंग नाटकीय ज्यादा हो गया है. राजकुमारी मैथिली की भूमिका में सोनम कपूर फिल्म की कमजोर कड़ी है. अनुपम खेर जंचा है. नील नितिन मुकेश का किरदार कमजोर है. छायांकन अच्छा है. फिल्म का क्लाइमैक्स जबरन लंबा खींचा गया है. फिल्म के अंत में एक गाना और डाला गया है, जिस की जरूरत नहीं थी.

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शानदार

‘शानदार’ फिल्म अपने टाइटल के अनुरूप शानदार नहीं है. वैडिंग डैस्टिनेशन पर आधारित इस फिल्म में निर्देशक वह कमाल नहीं दिखा सका है जो वह अपनी पिछली फिल्म ‘क्वीन’ में दिखा चुका है. ‘क्वीन’ फिल्म का गाना ‘सारा लंदन ठुमकता…’ आज भी दर्शकों की जबान पर थिरकता है. फिल्म में शाहिद कपूर और आलिया भट्ट की जोड़ी परदे पर पहली बार आई है. दोनों की कैमिस्ट्री जमी खूब है लेकिन फिल्म की कहानी और पटकथा इतनी ज्यादा कमजोर है कि यह फिल्म शीघ्र ही भूल जाने वाली बन गई है. शाहिद कपूर ने जो उम्दा ऐक्टिंग फिल्म ‘हैदर’ में की थी उस पर उस ने पानी फेर दिया है. आलिया भट्ट की तो क्या कहें, अपनी निजी जिंदगी में हमेशा चुटकुले सुनाती यह छोरी इस फिल्म में भी गूगल गर्ल बनी नजर आती है. दर्शकों को लुभाने के लिए उस ने एक बिकिनी सीन भी किया है, फिर भी वह दर्शकों पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाई है. फिल्म की शुरुआत कार्टून कैरेक्टरों से होती है. ये ग्राफिक्स और कार्टून दिलचस्प लगते हैं लेकिन शीघ्र ही फिल्म वैडिंग डैस्टिनेशन पर पहुंच जाती है. निर्देशक ने इस वैडिंग को दिखाने के लिए करोड़ों रुपए फूंक डाले हैं.

कहानी की थीम भारीभरकम दुलहन और अमीरों की चोंचलेबाजी है. भारीभरकम दुलहन की त्रासदी को इस फिल्म से पहले ‘दम लगा के हइशा’ फिल्म में देखा जा चुका है. फिल्म की कहानी शुरू होती है वैडिंग से. एक अमीर घर की लड़की ईशा (सना कपूर) की शादी एक सिंधी परिवार के युवक रौबिन (दिलजीत दोसांझ) से हो रही है. यह शादी 2 अमीर घरानों के बीच एक सीक्रेट डील की तरह है. ईशा की दादी (सुषमा सेठ) अपने परिवार को दिवालिया होने से बचाने के लिए यह शादी करा रही है. ईशा मोटी है, इसीलिए रौबिन शादी में ईशा का मजाक उड़ाता है. इस शादी का वैडिंग प्लानर है जोगिंदर (शाहिद कपूर), जिसे पहली नजर में ईशा की बहन आलिया (आलिया भट्ट) से प्यार हो जाता है. उधर ईशा के पिता विपिन अरोड़ा (पंकज कपूर) को लगता है कि इस शादी के बाद उस के दिन फिर जाएंगे. वह हर वक्त सबकुछ छोड़छाड़ कर भागने की बातें करता रहता है. उधर शादी के दौरान जोगिंदर और आलिया छिपछिप कर आपस में मिलते हैं. विपिन अरोड़ा को भी जोगिंदर और आलिया के प्यार की भनक लग जाती है. यहां यह भी क्लीयर हो जाता है कि आलिया विपिन अरोड़ा की सगी बेटी नहीं है. शादी की तैयारियों के बीच जोगिंदर और आलिया ईशा को एहसास कराते हैं कि वह कितनी स्पैशल है. परिस्थितियां इस प्रकार घटती हैं कि ईशा की दादी का देहांत हो जाता है. ईशा अपने पिता को ईशा और जोगिंदर के प्यार के बारे में बताती है. विपिन ईशा की शादी कराने से इनकार कर देता है और आलिया और जोगिंदर का मिलन कराता है. फिल्म की सब से बड़ी खामी इस की पटकथा है. शाहिद कपूर का काम कुछ अच्छा है. सना कपूर ने भी अच्छी ऐक्ंिटग की है. आलिया ग्लैमरस लगी है. पंकज कपूर की ऐक्ंिटग सब से अच्छी है. अधिकांश फिल्म की शूटिंग लंदन में की गई है. संगीत अमित त्रिवेदी का है. एक गीत ‘गुलाबो…’ अच्छा बन पड़ा है. छायांकन अच्छा है.

खेल खिलाड़ी

रूसी करतूतों का परदाफाश

एंटी डोपिंग के स्वतंत्र आयोग ने मांग की है कि रूस पर ओलिंपिक सहित सभी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भागीदारी पर प्रतिबंध लगे. आयोग ने कहा है कि वर्ल्ड एंटी डोपिंग यानी वाडा की हिदायत के बावजूद मास्को प्रयोगशाला में मौजूद डोपिंग के 1400 नमूने नष्ट कर दिए गए.

खेलों में डोपिंग का मामला आएदिन उठता रहता है और समयसमय पर वाडा इस पर कार्यवाही करता रहता है. बावजूद इस के, डोपिंग के मामले कम होने के बजाय बढ़ ही रहे हैं. अगस्त महीने में तुर्की की एथलीट अजल्ह चैकिर अल्पतेकिन से 2012 के ओलिंपिक खेलों में 1500 मीटर दौड़ में जीता गया स्वर्ण पदक छीन लिया गया और उन पर 8 साल का बैन भी लगाया गया है. इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय एथलेटिक्स एसोसिएशनों के महासंघ यानी आईएएएफ ने जांच के बाद 28 खिलाडि़यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का फैसला किया था. ऐसे एक नहीं, कई मामले हैं और सैकड़ों एथलीट सवालों के घेरे में हैं. कइयों के रक्त नमूने लिए जा चुके हैं और जांच चल रही है पर इस का खिलाडि़यों पर असर कम ही दिखाई पड़ रहा है. अगर ऐसा होता तो डोपिंग का एक भी मामला सामने नहीं आता. डोपिंग मामले को ले कर खिलाडि़यों को खुद ही सतर्क रहना होगा. क्योंकि यह मामला ऐसा है कि एक बार आप इस चक्कर में पड़ गए तो समझ लीजिए, कैरियर खत्म. विदेशी खिलाड़ी तो इस के लिए बदनाम हैं ही भारत भी अब इस की चपेट में बदनाम होने लगा है. अधिकारियों का सुस्त रवैया और खिलाड़ी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. शौर्टकट अपनाने के चक्कर में वे ऐसी प्रतिबंधित दवाओं का सेवन कर लेते हैं जिन से कुछ देर के लिए शरीर में चुस्तीफुरती तो आ जाती है पर सेहत पर क्या असर पड़ता है शायद उन्हें मालूम नहीं. खिलाडि़यों को अगर बेहतर भविष्य और लंबे समय तक खेलना है तो इस से बाहर आना होगा. और खासकर उन नए खिलाडि़यों को इस से सबक लेने की जरूरत है जिन को खेल में अभी बहुत आगे बढ़ना है.

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भरोसे को कायम रखने की पहल

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई में इन दिनों स्वच्छता अभियान चल रहा है. बीसीसीआई ने मुंबई में अपनी वार्षिक आम सभा की बैठक में आर्थिक अनियमितता और स्पौट फिक्ंिसग के आरोप झेल रहे एन श्रीनिवासन को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड यानी आईसीसी के अध्यक्ष पद से हटा दिया. अब वर्ष 2016 तक बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर आईसीसी का अध्यक्ष पद संभालेंगे. ऐसा तो होना ही था क्योंकि स्पौट फिक्ंिसग के बाद अब क्रिकेट को संदिग्ध नजर से देखा जाने लगा है जो भारतीय क्रिकेट के लिए खतरनाक संकेत है. बीसीसीआई अध्यक्ष बनते ही शशांक मनोहर ने संकेत दे दिए थे कि नया माहौल बनाने के लिए बोर्ड को कुछ कारगर कदम उठाने की जरूरत है.

एजीएम मीटिंग में बोर्ड ने कुछ पदाधिकारियों के हितों के टकराव के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए रोजर बिन्नी को चयन समिति से हटा दिया क्योंकि रोजर के बेटे स्टुअर्ट बिन्नी भारतीय टीम में हैं और रोजर के रहने से स्टुअर्ट को इस का फायदा मिल सकता था. बिन्नी की जगह एमएसके प्रसाद को नया चयनकर्ता बनाया गया है, वहीं टीम डायरैक्टर रवि शास्त्री की आईपीएल गवर्निंग काउंसिल से छुट्टी कर दी गई. तकनीकी समिति में अनिल कुंबले को हटा कर सौरभ गांगुली को लाया गया. इस के अलावा सुधार के लिए एक रिटायर्ड जज ए पी शाह को बीसीसीआई में बतौर लोकपाल नियुक्त किया गया है. इतना ही नहीं, एक और अच्छी पहल यह हुई है कि अब जो खिलाड़ी जैसा प्रदर्शन करेगा उसी के हिसाब से उस का ग्रेडेशन किया जाएगा. बोर्ड ने अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर टैस्ट क्रिकेट खेल चुके क्रिकेटर और अंपायर, जिन की मृत्यु हो चुकी है, उन की पत्नियों के लिए आजीवन तयशुदा राशि मिलते रहने की घोषणा भी की है.

अगर क्रिकेट को बचाना है और क्रिकेट के प्रति कम होते भरोसे को फिर से जगाना है तो बीसीसीआई को एक कुशल प्रशासन देना होगा और बोर्ड को इस तरह के कड़े फैसले आगे भी लेने होंगे. बीसीसीआई में स्वच्छता अभियान चलाना होगा तभी क्रिकेट का भला हो सकेगा. हालांकि जब कोई सिस्टम करप्ट हो जाता है तो उसे सुधारने के लिए बड़े कदम उठाए जाते हैं. तबादलों से ले कर निलंबन तक की कार्यवाही होती है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नई शासन प्रणाली और अधिकारी किस हद तक इस सिस्टम को करप्शन से मुक्त करा पाएंगे? खेल हो या राजनीति, भ्रष्टाचार को ले कर हमेशा से ही नईनई कमेटी गठित हुई हैं लेकिन नतीजे वही ढाक के तीन पात वाले साबित हुए.

दिन दहाड़े

मेरे पीहर शाहपुरा (भीलवाड़ा, राजस्थान) में एक दिन दोपहर को एक ट्रक घर के पास वाले चौक पर आ कर रुका. ट्रक वाला कपड़े धोने के साबुन की टिकिया भर कर लाया था. वह बोला, ‘‘मैं ट्रक दिल्ली से लाया हूं और कंपनी ने कम कीमत की धोने की टिकिया बनाई है.’’ वह टिकिया तौल कर बेचने लगा. उस ने बालटी में पानी भर कर टिकिया से कपडे़ धो कर लोगों को दिखाए. इस तरह 50 रुपए किलो के हिसाब से साबुन बेच कर चला गया. शाम को लोगों ने साबुन की टिकिया से कपड़े धोने का प्रयास किया तो टिकिया में से झाग के बजाय रेत सा पाउडर बिखर कर कपड़े पर चिपकने लगा और पूरी टिकिया समाप्त हो गई, पर कपड़ा नहीं धुला.

ज्योति प्रभा शर्मा, अजमेर (राज.)

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एक बार मेरे भतीजे की दुकान पर एक आदमी 3-4 बोरे लपेट कर और 1 बोरा अलग से ले कर आया. लिस्ट में लिखा 50 किलो चावल, दाल, चीनी, आटा आदि सामान निकाल कर परचा बनाने के लिए कहा. एकाएक कुछ याद कर उस ने 50 किलो दाल को तोलने के लिए कहा और यह कह कर कि आप सब सामान निकाल कर तैयार कीजिए, मैं दाल पहुंचा कर आ रहा हूं. भतीजे ने सारा सामान बोरे में, थैले में पैक कर दिन भर इंतजार किया लेकिन वह ग्राहक नहीं लौटा. इस प्रकार वह लगभग 2 हजार रुपए का चूना लगा कर चला गया.

वैशाली श्रीवास्तव, वाराणसी (उ.प्र.)

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बेंगलुरु के एक बगीचे में हम घूमने गए थे. एक आदमी सामने आ कर बोला, ‘‘तुम्ही मराठी बोलता, कोणत्या गावाचे आहात?’’ हम ने कहा कि हम सोलापुर के रहने वाले हैं. वह बोला, ‘‘मैं लातूर से हूं. बीवीबच्चों के साथ बेंगलुरु देखने आया हूं. किसी ने मेरी जेब काट ली. मेरे पास एक भी पैसा नहीं है. आज ही मैं वापस लातूर जाना चाहता हूं. आप लोग दिलवाले नजर आते हैं. आप हमें जाने के लिए 800 रुपए दे दीजिए, मैं लातूर पहुंचने के बाद मनीऔर्डर कर के आप के पैसे लौटा दूंगा. अपना पता हमें दे दो. हमारा पता और फोन नंबर ले लो. 2 छोटे बच्चे और बीवी साथ हैं. मैं अकेला होता तो किसी भी तरह चला जाता. हाथ जोड़ कर मैं विनती करता हूं, मुझ पर दया करो. घर पहुंचने के लिए पैसे दे दो.’’ ‘‘दुनिया में ऐसे बहुत से लफंगे हैं,’’ मैं ने अपने बेटे से कहा. लेकिन बेटे को उस पर बहुत दया आई. थोड़ी पूछताछ कर के और तुरंत पैसे वापस भेजने को कह कर उस ने उसे 800 रुपए दे दिए. पैसे ले कर धन्यवाद देते हुए वह चला गया. आज तक हम पैसे का इंतजार कर रहे हैं. उस का दिया हुआ पता भी झूठा निकला.

उषा धर्मराव लोणी, सोलापुर (महा.)

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