मेरे पति के औफिस में काम करने वाले एक सहकर्मी भट्टाचार्यजी का हृदयाघात से 9 वर्ष पूर्व निधन हो गया था. तब उन की एक लड़की स्नातक कर रही थी और लड़का इंजीनियरिंग में प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उन के हालात को देख कर मेरे पति और सहकर्मियों ने उन की आर्थिक मदद की थी. समय की मार थी, उन के परिवार को कालोनी का सरकारी मकान छोड़ कर बाहर किराए के मकान में जाना पड़ा था. समय गुजरता रहा उन का भी, फिर पता नहीं चला कि वे लोग कहां और कैसे हैं. एक दिन मिसेज भट्टाचार्य औफिस में आईं, मेरे पति से मिलीं और बताया कि उन के हालात अब अच्छे हैं. लड़की नौकरी कर रही है और उस की शादी भी हो चुकी है. लड़का मल्टीनैशनल कंपनी में इंजीनियर है. अब धन्यवाद के साथ उन तीनों के पैसे लौटाने आईं हैं. मेरे पति ने पैसे लेने से मना किया मगर उन्होंने कहा, ‘‘ये पैसे तो आप ले ही लीजिए, अगर इस्तेमाल नहीं करना चाहें तो मेरी ही तरह बहुत से जरूरतमंद होंगे, उन की इन पैसों से मदद कर दीजिएगा.

मंजू शर्मा, नवी मुंबई (महाराष्ट्र)

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मेरे ससुरजी डिप्टी कलैक्टर थे और उन की पोस्ंिटग हमारे ही शहर में हुई थी. बाबूजी अकेले ही रहते थे. एक दिन उन के औफिस का ही एक आदमी मिल गया जो नजदीक के गांव से आता था. दोपहर को खाना खाने व थोड़ा सा आराम करने के लिए उस को कोई ठिकाना चाहिए था. बाबूजी ने उसे आश्वस्त किया कि यहां अगर कोई ठौरठिकाना नहीं है तो तुम हमारे ही घर आ जाया करो. बाबूजी ने उस के लिए एक चारपाई निकाल कर दे दी और उस पर नई बैडशीट बिछवा दी. वह रोजाना आने लगा. एक दिन मेरे देवर बाबूजी से मिलने गए तो उन्होंने आदरसम्मान के साथ रेडियो और पैंटशर्ट का कपड़ा भेंट स्वरूप बाबूजी को दिए. उन्होंने वे चीजें अलमारी में रख दीं. उस के बाद शाम को देवर को छोड़ने स्टेशन चले गए. वह आदमी घर पर ही था. बाबूजी के घर से निकलते ही घर का सारा सामान अलमारी में से निकाल कर चलता बना. जब बाबूजी घर आए तो देखा कि घर खुला पड़ा है और अलमारी की सारी चीजें गायब हैं. पिताजी घबरा गए, उन को यकीन हो गया कि यह काम किस का है. दूसरे दिन से वह आदमी घर पर नहीं आया. भलमनसाई का बदला उस आदमी ने जिस थाली में खाया उसी में छेद कर के दिया.  

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