तनहातनहा बेकरार
हर रुत से बेजार
दिल करे पी की पुकार
कैसे मन को चैन मिले?

मुख कमल क्योंकर खिले? 
जब तन विरहा में जले
खड़े पलक पांवड़े बिछाए
कब पिया लौट कर आएं?

रहरह कर नैन भर जाएं
कहीं टूट न जाए आस
थम न जाए चलती सांस
यूं ही गुजर न जाए मधुमास

आ जा कि आ गई बरसात
तुझे पुकारे नशीली रात
फिर हम दोनों हों साथ.

       – शकीला एस हुसै

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