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रणवीर ने किया ‘बाजीराव मस्तानी’ से जुड़ा एक बड़ा खुलासा

बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह का कहना है कि वह अपनी मां को फिल्म बाजीराव-मस्तानी नहीं दिखाना चाहते थे. हालांकि रणवीर के अभिनय की तारीफ सुनकर उनकी मां ने बाजीराव-मस्तानी देख ली.

दरअसल रणवीर की मां उन फिल्मों से नफरत करती है जिनके क्लाइमैक्स में रणवीर द्वारा निभाए गए किरदार की मौत हो जाती है. 'बाजीराव मस्तानी' के अंत में भी बाजीराव मारा जाता है और रणवीर को पता था कि मां यह सीन देख दुखी होंगी इसलिए उन्होंने मां को फिल्म देखने से मना किया था, लेकिन उनकी मां ने फिल्म देख ली.

रणबीर की मां अपने बेटे के अभिनय से अभिभूत हो गईं. फिल्म खत्म होते ही उन्होंने रणवीर को गले लगा लिया.

संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनी फिल्म 'बाजीराव-मस्तानी' में रणवीर सिंह ने मराठा शासक पेशवा बाजीराव का दमदार किरदार निभाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है.  इसे रणवीर की अब तक की बेहतरीन फिल्म करार दिया जा रहा है.

जमाने के साथ चलना जरूरी: तौफीक कुरैशी

52 वर्षीय तबला वादक और संगीतकार तौफीक कुरैशी ने अपने प्रशंसकों को संगीत के कई नएनए वाद्ययंत्रों से परिचित करवाया है. उन्होंने अफ्रीका के एक प्राचीन वाद्य ‘जिम्बे’ को हिंदुस्तानी संगीत के साथ जोड़ कर फ्यूजन संगीत बनाया जिसे देश में ही नहीं, विदेश में भी लोग आश्चर्य से सुनते हैं.

बचपन से ही शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाले तौफीक के पिता उस्ताद अल्ला रक्खा और भाई उस्ताद जाकिर हुसैन हैं. उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ली. इस के बाद की शिक्षा उन्होंने पंडित विक्कू विनायक्रम और घाटम विधवान से ली. वे लाइव परफौर्मेंस के लिए जाने जाते हैं. शुरुआती दौर में उन का म्यूजिक बैंड ‘सूर्या’ काफी प्रसिद्ध रहा. देशविदेश में उन्होंने कई प्रस्तुतियां दीं. आज भी उन के किसी भी कौन्सर्ट में हजारों लोगों की भीड़ जुटती है.

उन्होंने टीवी सीरियल्स, ऐड जिंगल्स, एलबम आदि सभी के लिए काम किया है. वे ‘जिम्बे’ के अलावा डफ, बोंगो, बाताजौन आदि बजाते हैं. शास्त्रीय संगीत के दौर के बारे में पूछे जाने पर वे बताते हैं, ‘‘शास्त्रीय संगीत आज भी जीवित है. पिछले 10-15 सालों में संगीत के क्षेत्र में काफी बदलाव आए हैं पर आज भी अच्छा संगीत सभी पसंद करते हैं.

‘‘हालांकि हमारे सभी साथी कलाकार अपनी कला में परिवर्तन कर रहे हैं लेकिन संगीत का आधार हमेशा शास्त्रीय संगीत ही रहेगा. बिना शास्त्रीय संगीत के कोई भी फ्यूजन या नया संगीत नहीं बन सकता.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘संगीत में पारंगत होने के लिए रियाज जरूरी है और रियाज के लिए धैर्य का होना अति आवश्यक है और धैर्य, आज के युवाओं में कम है. आज का युवा जल्दी पैसा कमाने की सोचता है. ऐसे में बहुत कम युवा इस दिशा की ओर आगे बढ़ रहे हैं. शास्त्रीय? संगीत में कामयाबी के लिए 4 घंटे प्रतिदिन रियाज करना पड़ता है.’’

वे बताते हैं, ‘‘युवा कई तरह के हैं. कुछ ऐसे हैं जो ग्लैमरस वाद्य जैसे गिटार बजाना चाहते हैं. कुछ अल्टरनेटिव रख कर चलते हैं, तो कुछ युवा संगीत सम्मेलन में सुनने जाते तो हैं पर आधापौने घंटे बाद उठ कर बाहर चले जाते हैं. उन की रुचि कम हुई है.

‘‘संगीत में आज जो अवसर हैं वे पहले नहीं थे. आज के लोग अलगअलग गाना सुनना चाहते हैं. मैं क्लासिकल को नए पैकेज में प्रस्तुत करता हूं. वही राग अगर इलैक्ट्रिक गिटार, सितार और ड्रम पर बजा दिया जाए तो सुनने में नया लगेगा लेकिन फाउंडेशन हमेशा शास्त्रीय संगीत ही रहना चाहिए.’’

आज के श्रोता और दर्शक हमेशा नई चीज खोजते हैं. इसलिए तौफीक संगीत में नएनए प्रयोग करते रहते हैं. वे हंसते हुए कहते हैं कि बदलाव हमेशा अच्छा होता है. यही वजह है कि हम फ्यूजन करते हैं. आज के दर्शकों को ‘बुफे’ की आदत लग चुकी है. उन्हें हर तरह के संगीत का आनंद लेना पसंद है. पर फ्यूजन करते वक्त वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि वह पौप संगीत न बन जाए. शास्त्रीय संगीत को आधार बना कर ही वे फ्यूजन का प्रयोग करते हैं. उन के पिताजी कहा करते थे कि संगीत ऐसा होना चाहिए जिसे सुन कर लोग पांव नहीं, सिर हिलाएं. सो, उन की कोशिश वही रहती है. वे जमाने के साथ चलने पर विश्वास रखते हैं.

तौफीक को देश और विदेश दोनों स्थानों पर संगीत में मजा आता है. लेकिन पुणे, गोआ, चेन्नई आदि स्थानों के औडियंस संगीत का आनंद अधिक लेते हैं. इस बाबत वे कहते हैं, ‘‘मेरे परिवार में संगीत का वातावरण हमेशा रहा है. मेरे पिता कहा करते थे, ‘ताल में लय से चलना, लय को थामे रखना, कभी तुम लय और ताल से न हटना,’ ये बातें मुझे हमेशा याद रहती हैं. आज लोगों की लय में अंतर आ चुका है. ताल ‘क्रैश’ हो रही है. ऐसे में मैं एकदूसरे की लय और ताल को मिलाने की कोशिश कर रहा हूं. करीब 50 शिष्य मेरे यहां संगीत सीखने आते हैं. यह मुझे अच्छा लगता है. मैं किसी भी परफौर्मेंस के बारे में अपने बड़े भाई जाकिर हुसैन से परामर्श करता हूं. उन्हें मैं अपना गुरु मानता हूं.’’

यशस्वी भव:आखिर क्यूं भड़के हुए हैं चिदंबरम

पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम भड़के हुए हैं. वजह, उन के व्यवसायी बेटे कीर्ति के व्यावसायिक मित्रों के यहां चेन्नई में आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मारे गए छापे हैं बावजूद इस के कि इन छापों के 48 घंटे पहले वे आपातकाल और सलमान रुशदी की किताब ‘द सैटेनिक वर्सेस’ के प्रतिबंध को अपनी सरकार की गलती मान चुके थे.

अपने पूर्व आकाओं राजीव और इंदिरा गांधी की निंदा तक से ये एजेंसियां नहीं पसीजीं तो जाहिर है देश के मौजूदा आका अपनी पर उतारू हो आए हैं और कांग्रेसी नेताओं व उन के चिरंजीवों को चुनचुन कर बता रहे हैं कि घोटालों का परदाफाश लोकतंत्र के हित में बेहद जरूरी है. यही वक्त की मांग और तकाजा है. अब, जिसे तिलमिलाना है वह तिलमिलाता रहे.

शेख चिल्ली: सीएम अखिलेश का विचित्र फार्मूला

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अब समझ आ रहा है कि सबकुछ ठीकठाक नहीं है. बिहार के नतीजों ने कम से कम यह तो जता ही दिया है कि 2017 में उत्तर प्रदेश में कोई एक पार्टी अकेले दम पर सत्ता में नहीं आ सकती. सपा व बसपा के गठबंधन की चर्चाओं या अफवाहों के बीच अखिलेश ने एक विचित्र सा फार्मूला यह दिया है कि अगली बार उन के पिता मुलायम सिंह पीएम और राहुल गांधी डिप्टी पीएम बनें.

सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठा सी इस बात के कोई दीर्घकालिक या तात्कालिक माने किसी ने नहीं निकाले, उलटे, बेचारगी से अखिलेश की तरफ देख सोचा कि वे कब परिपक्व होंगे. 5 लोकसभा सीटों के दम पर सपा के उपमुखिया सब से बड़ी कुरसी के सपने देख रहे हैं तो उन के सोचने की दाद देनी ही पड़ेगी कि सोचने में कंजूसी क्यों, सोचो तो बड़ा ही सोचो. गनीमत है, उन्होंने 2019 का केंद्रीय मंत्रिमंडल घोषित नहीं किया.

बुजुर्गों की हत्या: अपने ही बहा रहे अपनों का खून

उम्र के आखिरी पड़ाव में अपनों की मार झेलते बुजुर्गों की सुरक्षा पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. अक्तूबर 2015, मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के ग्राम बडेरी में बेटे ने दौलत की खातिर मां और मामा के साथ मिल कर अपने ही पिता की हत्या कर डाली.

अक्तूबर 2015, शहडोल के पाली थाना के औढेरा गांव में एक युवक अपनी पत्नी को पीट रहा था. उसी दौरान उस का बेटा वहां पहुंच गया और पिता को रोकना चाहा. लेकिन जब पिता नहीं माना तो उस ने पिता पर लाठी से वार कर दिया जिस से उस की मौत हो गई.

सितंबर 2015, जशपुरनगर जिले के दुलदुला थाना क्षेत्र के बांसपतरा टीपन टोली में 25 सितंबर को संतोष राम पिता रतिराम के साथ गांव से शराब पी कर घर पहुंचे. नशे में धुत्त बेटे का मां से किसी बात को ले कर विवाद हो गया. गुस्साए संतोष राम ने मां धनमेत बाई पर लाठी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. 2 सितंबर 2015 को हरियाणा के रोहतक में परिजनों की रोकटोक से नाराज बेटे ने दोस्तों के साथ मिल कर मां की गला घोंट कर हत्या की और पिता पर भी धारदार हथियारों से हमला कर दिया. सभी आरोपी नाबालिग.

मई 2015, उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक व्यक्ति ने जमीन नहीं बेचने पर अपने मांबाप की हत्या कर दी. बेटे ने बिना पुलिस को सूचित किए मांबाप का अंतिम संस्कार कर दिया और लोगों को बताया कि दोनों ने आत्महत्या कर ली.

धन और जमीन का लालच

चंद महीनों में इस तरह की सैकड़ों वारदातें बताती हैं कि बुजुर्ग अपने ही घर में सुरक्षित नहीं रहे. देश के हर कोने में कहीं संपत्ति तो कहीं संबंधों की उलझन के चलते कभी बेटा पिता का कत्ल कर रहा है तो कहीं जमीन हथियाने के लिए करीबी रिश्तेदारों द्वारा मांबाप की सामूहिक हत्या की जा रही है. बिहार का हालिया मामला भी इसी बात की तस्दीक करता है कि बुजुर्गों की नृशंस हत्या के मामले में ज्यादातर अपराधी अपना ही खून होते हैं.

बिहार की राजधानी पटना का पुराना और घना इलाका पटना सिटी की पटनदवी कालोनी. पिछले 19 सितंबर को सुबह 9 बजे चीखपुकार मचती है. 78 साल की दौलती देवी का उस के 55 साल के बेटे विजय के साथ पैसों को ले कर अनबन शुरू होती है. दौलती ने जब विजय को रुपया देने से इनकार कर दिया तो गुस्से से हैवान बने विजय ने अपनी मां को जोर से धक्का दे दिया.

बूढ़ी दौलती मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी और उस के मुंह से खून बहने लगा. दौलती के छोटे बेटे सुजय ने जख्मी मां को उठाया और अस्पताल ले गया. जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि दौलती की मौत हो चुकी है. मां की मौत होने के बाद गुस्साए सुजय ने घर पहुंच कर विजय पर ईंट, पत्थरों और धारदार हथियार से हमला कर दिया. मौके पर ही विजय की मौत हो गई.

इस दोहरे हत्याकांड के पीछे रुपए और जमीन का ही विवाद था. आसपास के लोगों ने बताया कि दौलती और उस के बेटों के बीच अकसर रुपयों के लेनदेन को ले कर जम कर झगड़ा होता रहता था. दौलती के पति फकीरा महतो सरकारी मुलाजिम थे और रिटायर होने के कुछ ही दिनों के बाद उन की मौत हो गई थी. उन की पैंशन दौलती देवी को मिलती थी. पैंशन की रकम को ले कर हमेशा मांबेटों में विवाद होता था. इस के अलावा ढाई कट्ठे (3,350 वर्गफुट) जमीन के कुछ हिस्से में घर बना हुआ था और अगले हिस्से को मोटरगैराज वाले को किराए पर दिया गया था. किराए का पैसा छोटे बेटे सुजय को मिलता था.

विजय की निगाह पैंशन की रकम पर लगी रहती थी और इसी को ले कर वह झगड़ा करता रहता था. कुछ हजार रुपए के लिए विजय ने अपनी मां की जान ले ली. उस ने मांबेटे के रिश्ते को तारतार कर डाला. जमीन के टुकड़े और कुछ रुपयों को हथियाने के चक्कर में पूरा परिवार तबाह हो गया. दौलती और विजय की तो जान गई, सुजय की पूरी जिंदगी अब जेल की सलाखों के पीछे कटेगी. विजय की बीवी किरण देवी और उस की 3 बेटियों के साथ ही सुजय की बीवी रानी की जिंदगी भी तबाह हो चुकी है.

इसी तरह 15 जुलाई, 2014 को पटना के पीरबहोर थाना क्षेत्र के बिहारी साव लेन में कारोबारी धीरज सहाय की गोली मार कर हत्या कर दी गई. पुलिस को इस मामले में आज तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. पुलिस को शक है कि संपत्ति हथियाने की नीयत से धीरज के किसी अपने ने ही उस की हत्या की है. मई 2013 में दानापुर के व्यापारी हरिमोहन लाल को नासरीगंज इलाके के उन के घर में चाकुओं से गोद कर मार डाला गया. इस मामले में पुलिस अपराधियों को दबोचने में कामयाब हो गई.

अपराधियों ने बताया कि हरिमोहन के परिवार के ही एक सदस्य ने हत्या की सुपारी दी थी, पर नाम का खुलासा नहीं हो सका. दिसंबर 2012 में पाटलीपुत्र थाना क्षेत्र के इंद्रपुरी महल्ले में देवेश नाम के युवक ने अपनी सौतेली मां व 2 बहनों का खून कर डाला. देवेश ने संपत्ति को हथियाने के लिए एकसाथ 3 लोगों की जान ले ली.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट बताती है कि साल 2014 में देशभर में बुजुर्गों से जुड़े 18,714 मामले अलगअलग पुलिस थानों में दर्ज किए गए और इन मामलों के तहत 19,008 बुजुर्ग अपराध के शिकार हुए.

रिपोर्ट के मुताबिक, बुजुर्गों से जुड़े अपराध के सब से ज्यादा 3,981 मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए. अन्य राज्यों–मध्य प्रदेश में 3,438, तमिलनाडु में 2,121, आंध्र प्रदेश में 1,852, राजस्थान में 1,034 और दिल्ली में 1,021 मामले पुलिस थानों में दर्ज किए गए. बिहार में बुजुर्गों की हत्या, लूट और प्रताड़ना के 496 मामले दर्ज किए गए. इन मामलों में 521 बुजुर्गों को अपराधियों ने निशाना बनाया.

दौलत और रुपयों की खातिर बुजुर्गों के बेटे, रिश्तेदार, दोस्त आदि ही उन का कत्ल करने लगे हैं, जिस से परिवार में भरोसा नाम की चीज खत्म होती जा रही है और अपराध का नया व घिनौना चेहरा सामने आने लगा है. रुपयोंपैसों और जमीनजायदाद के लिए पिता, मां, दादा, चाचा आदि का अपने करीबी रिश्तेदारों द्वारा खून करने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.

ब्यूरो के आंकड़ों को देख कर महसूस किया जा सकता है कि रिश्तेदारी और दोस्ती पर दौलत किस कदर भारी पड़ने लगी है. बुजुर्ग और असहाय रिश्तेदारों को मार कर उन की दौलत हड़पने के बढ़ते मामलों से रिश्तों के भरोसे का भी खून हो रहा है.

दौलत को हथियाने के लिए आज अपने खून, अपने जाए ही अपनों का बेरहमी से खून बहा रहे हैं. पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि ऐसे मामलों में परिवार के सदस्य बड़ी ही सफाई से और मौके का इंतजार कर बड़ी ही चतुराई के साथ हत्या को अंजाम देते हैं. इस से पुलिस को पड़ताल में काफी दिक्कतें आती हैं. ऐसे ज्यादातर  मामलों में हत्यारे या हत्या की साजिश रचने वाले ही शिकायत दर्ज कराते हैं.

हत्या को अंजाम देने के बाद सुबूतों को पूरी तरह से मिटा कर ही वे पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराने पहुंचते हैं. इतना ही नहीं, वे समयसमय पर पुलिस जांच के बारे में जानकारी भी लेते रहते हैं और पुलिस को गुमराह कर जांच को दिशा से भटकाने में कामयाब हो जाते हैं. बिहार पुलिस मुख्यालय से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 से मई 2015 तक पटना जिले में 699 हत्याएं हुईं, जिन में से 77 फीसदी में किसी न किसी तरह से परिवार के किसी सदस्य या पहचान वालों का ही हाथ था.

गया जिले के एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि जब पुलिस में हत्या की शिकायत दर्ज कराने वाला ही कातिल हो तो पुलिस को जांचपड़ताल में काफी दिक्कतें आती हैं. कई मामलों में यह भी देखा गया है कि बुजुर्ग की हत्या के बाद उन के परिवार वाले हत्या को खुदकुशी का भी रूप देने की कोशिश करते हैं, जिस से कानून के चंगुल से आसानी से बचा जा सके. पंखे से लटकने, नींद की गोलियां खाने, फिनाइल और एसिड जैसी जहरीली व जानलेवा द्रव्यपदार्थ पीने, सीढि़यों से गिरने से मौत होने की साजिश परिवार वाले आसानी से रच लेते हैं. इस के साथ ही यह भी देखा गया है कि पेशेवर हत्यारा मर्डर करने से पहले सौ बार सोचता है और काफी सोचसमझ कर काम करता है. वह ज्यादातर मामलों में बूढ़ों व बच्चों की हत्या नहीं करता है. लेकिन परिचित या रिश्तेदार नौसिखिए होते हैं, अपनी पहचान छिपाने के लिए वे बेरहमी से बूढ़ों व बच्चों की हत्या कर डालते हैं.

पटना हाई कोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि घर के बुजुर्ग को परिवार पर बोझ मानने का चलन तेजी से बढ़ा है. बच्चे सोचने लगे हैं कि बूढ़े मांबाप उन के ऊपर बोझ की तरह हैं. उन की वजह से ही वे अपने बीवीबच्चों के साथ घर छोड़ कर घूमने नहीं जा सकते हैं. इस के अलावा, लड़के उस दौलत को जल्दी पाने के चक्कर में अपनों का खून कर डालते हैं जो दौलत कल आसानी से उन्हीं की होने वाली है. मांबाप की सेवा कर उन्हें जिंदगी के आखिरी पड़ाव में खुश रख कर उन की दौलत पाने के बजाय गैरकानूनी तरीके से उसे पाने की कोशिश करना अकसर उन्हें भारी पड़ जाता है. अपनों की जान लेने के बाद वे अपनों के साथ जायदाद व अपने परिवार को भी खो देते हैं और बाकी जिंदगी उन्हें जेल में काटनी पड़ती है. उन की बीवी और बच्चे की जिंदगियां भी बरबाद हो जाती हैं.

मनोविज्ञानी अनिल पांडे कहते हैं कि जमीनजायदाद को ले कर घरेलू विवादों के बढ़ते मामलों के बीच परिवार वालों को देखनासमझना होगा कि ऐसे विवादों को तूल न पकड़ने दें और न ही ऐसे मामलों को लटका कर रखें. ऐसे मामलों का जितना जल्दी निबटारा कर दिया जाए, परिवार और परिवार वालों के लिए उतना ही अच्छा है. आज की फास्ट लाइफ के बीच रिश्तों और जज्बातों की डोर कमजोर होती जा रही है. यही वजह है कि जराजरा सी घरेलू झड़प या संपत्ति के विवादों में अपनों का खून करने में जरा भी हिचक नहीं होती है. रिश्तों में कड़वाहट इस कदर बढ़ती जा रही है कि बाप बेटे का, बेटा मां का, भाई बहन का, मामा भांजे का, भतीजा चाचा का कत्ल करने में देर नहीं लगाते.

परिवार की संपत्ति को ले कर बढ़ते विवाद को कम करने के लिए बुजुर्ग मांबाप को यह ध्यान रखना होगा कि उन के बच्चों के बीच दौलत व रुपयों को ले कर तनाव की गुंजाइश ही नहीं हो. इस के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रख कर बुजुर्ग अपने बच्चों को खुश रख सकते हैं और अपनी जान पर आफत आने से भी रोक सकते हैं. आज रिश्तों के महत्त्व के कम होने के बीच भी कुछ सावधानी बरत कर रिश्ते और जान दोनों को बचा कर रखा जा सकता है :

– दौलत का बंटवारा बच्चों के बीच कर दें और यह ताकीद कर दें कि उन के मरने के बाद सभी बच्चों को उन की दौलत पर बराबरी का हक होगा.

– अपनी दौलत की वसीयत समय रहते कर दें और बच्चों व परिवार के सभी लोगों को इस की जानकारी दें, ताकि कोई अंधेरे में न रहे.

– घरेलू झगड़ों की अनदेखी न करें, न ही उसे दबाने की कोशिश करें. परिवार के साथ मिलबैठ कर निबटारा कर लें. ऐसा नहीं हो पाता है तो अदालत का दरवाजा खटखटाएं.

– कई ऐसे मामले देखने में आते हैं कि किसी बच्चे के प्रति मांबाप का ज्यादा झुकाव होता है, जिस से बाकी बच्चों में असुरक्षा की भावना बैठ जाती है कि कहीं पिता अपने लाड़ले बेटे को सारी दौलत या दौलत का ज्यादा हिस्सा न दे दें. मांबाप को चाहिए कि किसी बच्चे में ऐसी गलत भावना न आने दें और बच्चों को भी चाहिए कि सभी मांबाप के लिए जिम्मेदार हों, ताकि किसी एक बच्चे की ओर उन का ज्यादा झुकाव न हो.

– अगर किसी बेटे को किसी कारोबार को शुरू करने में रुपयों की मदद करते हैं तो बाकी बेटों और परिवार के सभी सदस्यों को भरोसे में ले कर करें. ऐसा नहीं करने से बेटों के बीच तनाव का माहौल पैदा होने लगता है जो बाद में बड़े झगड़े का रूप ले लेता है. उस के बाद मामला थानाअदालत तक जा पहुंचता है.

– किसी बेरोजगार बेटे को कोई धंधा चालू करने के लिए रुपए दें तो उसे यह हिदायत भी दें कि रुपए कर्ज के तौर पर दिए जा रहे हैं, जिसे धीरेधीरे वापस करना होगा. इस से बेटा धंधे में पूरा मन लगाएगा और बाकी बेटों में किसी तरह की ईर्ष्या की भावना नहीं पैदा होगी.

– घर के किसी भी सदस्य से किसी भी तरह का खतरा होने या किसी के धमकी देने के मामले में बुजुर्ग खामोश नहीं रहें. अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त, वकील और पुलिस को इस के बारे में जरूर बताएं.       

विदेशों में स्थिति बेहतर

जहां भारत में बुजुर्गों की सुरक्षा को ले कर सिर्फ कागजी कानून है वहीं विदेशों में, खासकर अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के देशों में, रिटायरमैंट के साथ ही बुजुर्गों के घरों पर वे तमाम तरह की सहूलियतें दी जाती हैं जो उन की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं. भले सीढि़यों से उतरने और बाथरूम्स में रैलिंग या हैंडिल का मामला हो या फिर उन के घरों को पुलिस केंद्रों से फोन के जरिए सीधे जोड़ना, बुजुर्गों को हर मदद तत्काल मिलती है.

धर्म का जाल: गो भक्ति के नाम पर दान का धंधा

हिंदू धर्म में गो की बड़ी महिमा बताई गई है. गाय की सेवा करना पुण्य कर्म माना गया है. धर्मग्रथों में कहा गया है कि मनुष्य को मोक्ष, स्वर्ग प्राप्ति के लिए गोदान करना चाहिए. गो में 33 करोड़ देवीदेवताओं का वास होता है और गोदान करने वाले मनुष्य के सामने समस्त देवीदेवता नतमस्तक रहते हैं. राजा और अन्य लोगों द्वारा ब्राह्मणों को गाय दान के अनेक किस्से हैं. धर्मराज युधिष्ठिर, महाराज वसुदेव समेत अनेक छोटेमोटे राजा और आम लोग ब्राह्मणों को गोदान किया करते थे.

पुराणों में गोदान का महात्म्य देखिए,

हिरण्यं गां महीं ग्रामान हस्त्यश्वांनृपतिर्वरान्,

प्रादात्स्वनं च विप्रेभ्य:

प्रजीतीर्थ स तीर्थवित्.

-भागवत महापुराण 1-12-14

अर्थात, महाराज युधिष्ठिर दान की महत्ता जानते थे. उन्होंने प्रजापति नामक काल में यानी नाल काटने से पहले ही ब्राह्मण को सुवर्ण, गाएं, पृथ्वी, गांव, उत्तम जाति के घोड़े और उत्तम अन्न दान किए.

देहि दानं द्विजातीनां कृष्णनिर्मुक्तिहेतवे,

नंद: प्रीतमना राजन् गा: सुवर्ण तदादिशत्.

-भागवत महापुराण-10-17-18

अर्थात, कृष्ण के मृत्यु के मुख से लौट आने के उपलक्ष्य में तुम ब्राह्मणों को दान करो. ब्राह्मणों की यह बात सुन कर नंद बाबा को बड़ी प्रसन्नता हुई. उन्होंने बहुत सा सोना और गाएं ब्राह्मणों को दान दीं. सूर्य ग्रहण के समय ब्राह्मणों को दान देने की सिफारिश की गई है,

हरण्यरूप्यवासांसि तिलांश्च गुडमिश्रितान्,

प्रादाद् धेनूश्च विप्रेभ्यों राजा विधिविदांवर:

-भागवत महापुराण-10-53-13

अर्थात, समग्र वेद विधि जानने वालों में श्रेष्ठ राजा भीष्मक ने ब्राह्मणों को सोना, चांदी, वस्त्र, गुड़ मिश्रित तिल तथा बहुत सी गाएं दान दीं.

ब्राह्मणेभ्यो ददुर्धेनूर्वास: स्त्रग्रुक्ममालिनी:

ददू: स्वन्नं द्विजाग्रयेभ्य:

कृष्णे नो भक्तिरस्थिति.

स्वयं च तदनुज्ञातावृष्णय: कृष्णदेवता.

-भागवत महापुराण-10-82-10,11

अर्थात, उन्होंने ब्राह्मणों को गोदान दिया. ऐसी गायों का दान दिया जिन्हें वस्त्रों के सुंदरसुंदर झूले, पुष्पमालाएं एवं सोने की जंजीरें पहना दी गई थीं. सत्पात्र ब्राह्मणों को सुंदरसुंदर पकवानों का भोजन करवाया गया. उन्होंने अपने मन में यह संकल्प लिया कि

कृष्ण के चरणों में हमारी भक्ति बनी रहे. कृष्ण को ही अपना आदर्श मानने वालों ने ब्राह्मणों से अनुमति ले कर तब स्वयं भोजन किया. महाराज वसुदेव ने यज्ञोत्सव का आयोजन भी किया था और गाएं दान कीं.

भागवत महापुराण में लिखा है, महाराज वसुदेव ने उचित समय पर वस्त्र, अलंकारों से सुसज्जित ब्राह्मणों को शास्त्र के अनुसार बहुमूल्य दक्षिणा गाएं, पृथ्वी और सुंदरी कन्याएं प्रदान की थीं.

इसी तरह राजा नृग कहता है,

यावत्थ: सिकता भूमेर्यावत्थो दिवि तारका:,

यावत्यो वर्ष धाराश्च तावतीरदंदा स्म गा:.

-10-64-12

अर्थात, पृथ्वी पर जितने धूलि कण हैं, आकाश में जितने तारे हैं और वर्षा में जितनी जल की धाराएं गिरती हैं, मैं ने उतनी ही गाएं दान की हैं.

वह आगे भी कहता है,

मैं ने दूध देने वाली, तरुणी, शील गुण और रूप से संपन्न बहुत सा घी देने वाली तथा सुवर्ण के सींग और चांदी के खुर मढ़ी न्यायपूर्वक प्राप्त तथा वस्त्र, माला आदि अलंकृत बछड़ों वाली गाएं दान की थीं. इस प्रकार मैं ने बहुत सी गाएं, पृथ्वी, सुवर्ण, घर, घोड़े, हाथी तथा दासियों सहित कन्याएं, तिल, पर्वत, चांदी, शैया, वस्त्र, रत्न, परिच्छद अर्थात गृह सामग्री और रथ आदि दान दिए. अनेक यज्ञ किए और बहुत से कुएं, बावड़ी आदि बनवाए.

(14,15)

इसी तरह गरुड़ पुराण में भी लिखा है,

मांसा स्थिरक्तवत्कायवैतरण्यां पतेन्न स:,

योअंते दद्याद् द्विजेभ्यश्य नंदनंदनगामिनि.

-गरुड़ पुराण-24

अर्थात, मांस और रुधिर से युक्त कायारूपी वैतरणी है क्योंकि वैतरणी भी मांस रुधिर के कीच से भरी है. ब्राह्मण को गोदान देने वाले और भगवान को भजने वाले कायारूपी वैतरणी में नहीं गिरते अर्थात मुक्त हो जाते हैं.

तत: संकल्पयेदन्नं सघृतं च सकांचनम्,

सवत्सा धेनवो दया: श्रोत्रियाय द्विजातये

(27)

अर्थात, पश्चात घी और सुवर्ण सहित अन्न को संकल्प कर के और दूध देने वाली गाय वेदपाठी ब्राह्मण को दान करें.

तस्याह्युद्धरणोपायं गोदानं कथचापिते. (69)

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि मनुष्य की जब मृत्यु होती है तब नीचे से ऊपर जाने के लिए मार्ग में वैतरणी नदी मिलती है जो बहुत भयानक होती है. अगर व्यक्ति ने अपने जीवन में गाय का दान किया है तो नदी को पार करने के लिए वही गाय मिलती है

जिस की पूंछ पकड़ कर वह आसानी से नदी पार कर जाता है. हे गरुड़, मैं अब वैतरणी के वृत्तांत के बाद उस को पार करने का गोदान के रूप में उपाय कहता हूं.

काली अथवा लाल रंग की गाय को सोने के सींग, चांदी के खुर और कांस्य के पात्र से अलंकृत करें. उस के काले रंग के जोड़े वस्त्र से गो को आच्छादित करें. उस के कंठ में सुंदर घंटा बांधें. कपास के ऊपर बैठा कर वस्त्रों सहित कांस्यपात्र को रखें और लोहदंड के लिए सोने की बनी यमराज की मूर्ति की स्थापना करें. कांस्य पात्र में घी को रख कर उस के ऊपर रखें. सूर्य की देह से उत्पन्न यम की मूर्ति उस गाय के ऊपर रख शास्त्रोक्त विधि से उस गाय का संकल्प करें. अलंकार सहित वस्त्र ब्राह्मण को दान करें और गंध, पुष्प, अक्षत आदि से विधिपूर्वक पूजा करें.

हे जगन्नाथ, हे शरणागत पर प्रेम करने वाले, संसाररूपी समुद्र में डूबते हुए को और शोकसंताप रूपी तरंगों से दुखी मनुष्यों को आप उबारने वाले हैं. हे विष्णु रूपी ब्राह्मण देवता, हे महीश्वर, मेरा उद्धार करो.                   (77-78)

इसी पुराण में आगे लिखा है,

जब शरीर स्वस्थ रहे तभी वैतरणी पार होने की इच्छा से ब्राह्मण को अलंकार सहित गोदान करना चाहिए. हे गरुड़, गोदान करने से वह महानदी मार्ग के मध्य में नहीं आती है. इसलिए पुण्यकाल में अवश्य गोदान करना चाहिए.   (85-86)

जाहिर है ब्राह्मणों ने राजाओं और आम लोगों को स्वर्ग, मोक्ष प्राप्ति के लिए गोदान के अंधविश्वास में बुरी तरह फंसा रखा था. ब्राह्मण राजाओं को पूरी तरह से वश में रखते थे. उन की अनुमति के बिना राजा कुछ भी नहीं करते थे. ब्राह्मण चाहते थे कि धर्म के जो भी ढोंगढकोसले वे चाहते हैं, राजा लोग समस्त प्रजा से भी वही सब कराएं, राजा जो दान, धर्म, पूजा, कर्मकांड करता था, वही प्रजा से कराता था. इस से ब्राह्मणों की पौबारह थी.

पंडों को गोदान के नाम पर दानदक्षिणा का धंधा मंदा पड़ रहा है, इसलिए भाजपा सरकारें हिंदू धर्म के नाम पर चल रहे पाखंडों को बरकरार रखना अपना जन्मजात कर्तव्य समझती आई हैं क्योंकि धर्म के धंधेबाजों की एक बहुत बड़ी फौज चुनावों में भाजपा के समर्थन में वोट जुटाने के हथकंडे अपनाकर पार्टी की जीत सुनिश्चित कराने में कोई कसर नहीं छोड़ती.

हाल ही में महाराष्ट्र और हरियाणा की भाजपा सरकारों ने गोमांस पर प्रतिबंध लगाया है. राजस्थान में भी गोतस्करी के लिए सजा का  प्रावधान किया जा रहा है. महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन विधेयक 2015) मार्च महीने में लागू कर दिया गया. राज्य में इस कानून के अमल में आने से गोवंश यानी गाय, बैल, बछड़े का मांस रखना, बेचना, लाना, ले जाना अपराध हो गया है. हरियाणा में भी ऐसा ही निषेध लगाया गया है.

राज्य सरकारों द्वारा कानूनों में किए गए संशोधन गोसंवर्द्धन के लिए नहीं हैं, गो भक्ति के नाम पर दान के धंधे को बढ़ावा देने के लिए हैं. भागवत पुराण में वशिष्ठ मुनि की कामधेनु गाय द्वारा अनेक लोगों की उदरपूर्ति करने का जिक्र है. पर धर्म की किताबों में गोसेवा और गोवध को ले कर विरोधाभास भी है. महाभारत के अरण्य पर्व में हिंदू राजा रंतिदेव की पाकशाला के लिए रोजाना सैकड़ों गायों का वध करने का दृष्टांत है.

हमारे देश में आजादी के बाद से गो वध कानून बनाने की मांग उठने लगी थी. हिंदू संगठन और उन के पैरोकार राजनीतिक दल खासतौर से पहले जनसंघ और अब भारतीय जनता पार्टी, गोवध पर प्रतिबंध की मांग का समर्थन करते रहे हैं.

धर्म और धर्मोपदेशकों से प्रेरणा ले कर देशभर में गोसेवा के नाम पर हजारों संगठन, संस्थाएं बनी हुई हैं. गोभक्ति के नाम पर करोड़ों का चंदा इकट्ठा किया जाता है. सरकारें इन संस्थाओं को आर्थिक मदद मुहैया कराती हैं. गोशालाएं खुद अपने स्तर पर पैसा एकत्रित करती हैं. इस के बावजूद गायों की हालत सही नहीं नजर आती. गोवध खत्म नहीं हो रहा. शहरों, कसबों में गाएं गलियों, सड़कों में आवारा घूमती दिखाई देती हैं. ट्रैफिक जाम के हालात देखे जा सकते हैं.

गाय पालक गायों के साथ कैसे पेश आते हैं, हैरानी की बात है. दूध निकालने के बाद गायों को घर से बाहर निकाल दिया जाता है. गाय बूढ़ी हो जाती है, दूध देने लायक नहीं रहती तो उस की कोई सुध नहीं ली जाती. ऐसी गायों को या तो गोशाला के हवाले कर दिया जाता है या थोड़े पैसों में कसाई के हाथों बेच दिया जाता है.

गायों को ले कर किसी भी शहर, कसबे में आम नजारा देखा जा सकता है कि कहीं गाय कचरा खा रही है, कहीं पौलिथीन की थौलियां, कहीं मैला. और ऐसी लावारिस गाएं लोगों से लाठियों की मार खा कर इधर से उधर भागती रहती हैं. ये आवारा गाएं कई दुर्घटनाओं का सबब बन रही हैं.

मुनाफे का बाजार

2012 में भारत में हुई पशुगणना के मुताबिक, देश में 4.8 करोड़ गाएं थीं. इन में से करीब आधी बच्चा देने लायक हैं. विलायती या वर्णशंकर गायों की संख्या करीब 2 करोड़ का आंकड़ा छूने लगी है. हमारे यहां देसी गायों की बढ़ोतरी उतनी नहीं हो रही जितनी जर्सी यानी विदेशी नस्ल की गायों की हो रही है. असल में इस का कारण दूध का बाजार है. देसी गायों की तुलना में जर्सी गाएं ज्यादा दूध देती हैं.

अब तो ज्यादा दूध पाने के लिए हमारे गोप्रेमी अपनी देसी गायों का विलायती सांडों के साथ क्रौस कराने से परहेज नहीं बरतते. यह मामला भारतीय संस्कृति के खिलाफ है या नहीं, अभी तक तो किसी गोभक्त ने आवाज नहीं उठाई. खाप पंचायतों की ओर से भी कभी कोई फतवा नहीं आया, उल्टे खाप पंचायत वाले प्रदेश में दूधदही की नदियां अब जर्सी गायों के जरिए बहाने के प्रयास हो रहे हैं. हां, मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने केवल उन्हीं गोशालाओं को अनुदान देने का आदेश जरूर दिया था जिन में केवल देसी गाएं होंगी.

देश की गोशालाओं में भी गायों की दुर्दशा का आलम यह है कि यहां भी दुधारू गायों की ही पूछ है, बूढ़ी और बीमार गाएं आजकल घरपरिवारों में वृद्धों की तरह उपेक्षित हैं. घरपरिवार में भले ही वृद्ध स्त्री को बाहर नहीं निकाला जाता हो पर वृद्ध गाय को दूध न देने की स्थिति में घर से बाहर निकाल दिया जाता है. गाय को मां मान कर पूजने वाली संस्कृति का यह कैसा रूप है? अब तो ज्यादा दूध देने वाली गायों की भरमार हो रही है. क्या हिंदू इन विलायती गायों को भी पूजते हैं?

जिम्मेदार कौन

ऐसे में सवाल यह है कि गायों को बूचड़खाने तक पहुंचाने का जिम्मेदार कौन है? क्या यही लोग नहीं हैं जो गाय को पूजते हैं और जब वही गाय दूध देना बंद कर देती है या बूढ़ी हो जाती है तो उसे लावारिस छोड़ देते हैं, घर से निकाल देते हैं या किसी खरीदार के हवाले कर देते हैं. गोरक्षा के नाम पर बने कुछ संगठन तो गाय व बछड़ों से भरे हुए ट्रकों से मोटी रकम वसूल कर बूचड़खाने जाने देते हैं. पैसा न देने पर पकड़वाने की धमकी देते हैं.

इस तरह गोरक्षा, गोसेवा के नाम पर गोरखधंधा खूब चल रहा है. गाय के संरक्षण की ही बात सर्वोपरि क्यों? भैंस, बकरी, भेड़ आदि पशुओं की रक्षा क्यों नहीं? इसलिए क्योंकि दूसरे पशुओं के संरक्षण में पैसा नहीं है.

दिल्ली में जितनी संख्या में गाएं नहीं, उस से गोशालाएं कहीं अधिक हैं. बवाना में कंझावला रोड पर स्थित श्रीकृष्ण गोशाला दिखने में काफी बड़ी है. यहां करीब 300 गाएं बताई जाती हैं. गायों के रखरखाव की व्यवस्था देखने में ठीकठाक है. गोशाला के पदाधिकारी पवन जैन कहते हैं कि हमारे यहां उन गायों को रखा जाता है जो दूध नहीं देतीं, बूढ़ी, बेकार हो चुकी होती हैं. ऐसी गायों की देखभाल के लिए और उन का शेष जीवन आरामपूर्वक गुजरने के लिए गोशालाओं का संचालन किया जाता है.

पवन जैन कहते हैं कि दूध देने वाली गाएं भी हैं जो बाजार से खरीदी जाती हैं. दान की हुई गाएं नहीं ली जातीं. गाय के वृद्ध होने पर लोग इन्हें आवारा छोड़ देते हैं, यह गलत है. ऐसी गायों के भरणपोषण एवं इलाज आदि के लिए गोशाला दानदाताओं से पैसा इकट्ठा करती है

कई शहरों में गोसेवा समितियां बनी हैं. दिल्ली में कई दुकानों पर दानपेटियां रखी देखी जा सकती हैं जो किसी न किसी गोशाला की हैं. उस पर गोशाला का नाम, पता और टैलीफोन नंबर भी लिखा होता है. यह व्यवस्था कमाल की होती है. हर दुकानदार अपनी श्रद्धा से पैसा देता है. दुकानदारों से 2,100, 1,100, 500, 100 रुपए का सहयोग लिया जाता है. गोशालाओं द्वारा अपने यहां गायों की संख्या को बढ़ाचढ़ा कर बताया जाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा माल, चंदा इकट्ठा किया जा सके पर हकीकत में उतनी गाएं होती नहीं हैं.

कुछ गोशालाओं की गाडि़यां कालोनियों में सुबहसुबह गोग्रास इकट्ठा करने के लिए घूमती हैं, जहां लोग घरों से निकल कर, खासतौर से औरतें इकट्ठी की  हुई सूखी, बासी रोटियां इन गाडि़यों में रख आती हैं. गाडि़यों के बाहर गाय की तसवीर के साथ गोशाला का नाम, पता और टैलीफोन नंबर लिखा रहता है. गोशालाओं द्वारा मार्केटिंग का यह अच्छा तरीका है.

इस तरह गाय को ले कर खूब ढोंग चल रहा है. राजनीति खूब की जाती है. गाय को पूजने वाले लोग एक खास वर्ग की तरफ नफरत की भावना से भी देखते हैं. पर हकीकत यह है कि इन लोगों के कारण ही गाय की हालत बदतर है और गोवध हो रहा है. भारत गोमांस का सब से बड़ा निर्यातक माना जाता है और यह कारोबार करने वाले हिंदू ही ज्यादा हैं.

गाय के नाम पर पंडों ने काल्पनिक सपने दिखाए हैं, सचाई से जिन का कोई वास्ता नहीं होता. तभी विरोधाभास सामने आते हैं. धर्म के ठेकेदारों को खुद नहीं पता कि गोदान से मोक्ष कैसे मिलता है. मरने के बाद आदमी का क्या होता है?

मोक्ष के नाम पर कारोबार

अगर हिंदू गाय को माता, उस में 33 करोड़ देवीदेवताओं का वास मानता है तो उसे मारने वालों, लावारिस छोड़ने वालों, बूचड़खाने वालों को ये देवता मिल कर सजा क्यों नहीं देते और फिर एक गाय में इतने देवता होते हुए उसे कोई परेशान, कत्ल क्यों कर सकता है? उस का पेट इंसानों को क्यों भरना पड़ता है? क्या गाय जो मल, कचरा, गंदगी खाती है-गाय में विराजमान इन देवताओं को भी यही सब भक्षण करना पड़ता है?

असल में धर्म के रचनाकारों ने मोक्ष के नाम पर गाय को अपनी आमदनी का जरिया बना लिया है. इस देश में गाय के नाम पर सिर्फ गोरखधंधा चलता आया है. अब धर्म के धंधे को बढ़ावा देने के लिए सरकारें गो के नाम पर कानूनों में बदलाव कर रही हैं पर वास्तव में ऐसे कानूनों से न तो गो का भला होगा न पालकों का. दानदक्षिणा का कारोबार खूब चलेगा. देश में बूढ़ी, बीमार, बेकार, दूध न देने वाली गाएं ज्यादा संख्या में दिखाई देने लगेंगी. गोशालाओं में चंदों की बारिशें होने लगेंगी और पंडेपुरोहितों की चांदी होने लगेगी. भाजपाई सरकारें यही तो चाहती है.

आदित्‍य-कैटरीना की फिल्म ‘फितूर’ का फर्स्ट लुक जारी

आदित्‍य रॉय-कैटरीना कैफ की अपकमिंग फिल्म फितूर का फर्स्‍टलुक जारी कर दिया गया है. इस फिल्म में आदित्‍य एक कश्‍मीरी लड़के का किरदार निभा रहे हैं. हालांकि अदित्य कपूर इससे पहले की फिल्मों में नार्मल बॉडी में ही दिखे, लेकिन इस बार फिल्म फितूर के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है.

उन्‍होंने अपनी फिजिक को दमदार दिखाने के लिए जिम में काफी पसीना बहाया है. दोनों कलाकार पहली बार एक साथ काम कर रहे हैं. फिल्‍म की शूटिंग कश्‍मीर की वादियों में हुई है और इस फिल्‍म में दर्शकों को शानदार लोकेशंस भी देखने को मिलेंगी. सुनने में आया था कि इस फिल्‍म में सदाबहार अभिनेत्री रेखा भी थी.

उन्‍होंने फिल्‍म की शूटिंग शुरु भी कर दी थी लेकिन फिर अचानक उन्‍होंने इस फिल्‍म से पल्‍ला झाड़ लिया. इसके बाद रेखा की जगह फिल्‍म में अभिनेत्री तब्‍बू नजर आएंगी. इस फिल्म को अभिषेक कपूर ने डायरेक्‍ट किया है. आदित्‍य ने फिल्‍म 'आशिकी 3' से बॉलीवुड में डेब्‍यू किया था.

फिक्सिंग की सजा झेल वापसी के लिए तैयार आमिर

पाकिस्तान की वनडे टीम में शामिल किए गए तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर ने कहा कि वह इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हैं.

आमिर को न्यूजीलैंड के खिलाफ होने वाली वनडे और टी-20 सीरीज के लिए पाकिस्तानी टीम में शामिल किया गया. आमिर ने कहा, 'अगर मुझे न्यूजीलैंड में खेलने का मौका मिलता है तो फिर बदले हुए रवैये के साथ गेंदबाजी करना आसान नहीं होगा लेकिन मैं मानसिक तौर पर मजबूत वापसी के लिए तैयार हूं.'

उन्होंने कहा, 'मेरे मन में एक बात साफ है कि मुझे अपने फैन्स का विश्वास जीतने के लिए अच्छा प्रदर्शन करना होगा. मुझे पूरा भरोसा है कि वे मेरा साथ देंगे और मैं उन्हें निराश नहीं करूंगा.'

15 करोड़ के विराट ने 12.5 करोड़ के धोनी को पीछे छोड़ा

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के कैप्टन विराट कोहली 15 करोड़ रुपये पाने के साथ आईपीएल-9 के सबसे महंगे खिलाड़ी बन गए हैं. इससे पहले महेंद्र सिंह धोनी को सबसे ज्यादा सैलरी मिलती थी. इस बार धोनी को पुणे ने 12.5 करोड़ में खरीदा है. धोनी दो साल पुणे की ओर से खेलेंगे.

कैसे मिली सबसे ज्यादा फीस…
– आईपीएल ने शुक्रवार को खिलाड़ियों के बेसिक सैलरी के आंकड़े जारी किए.

– विराट आइकॉन होने की वजह से बेंगलुरु टीम के सैलरी पर्स से 12.5 करोड़ रुपए पाते हैं, लेकिन हकीकत में उन्हें 15 करोड़ मिलते हैं.

– इस लिहाज से विराट इस लीग के सबसे महंगे खिलाड़ी बन गए हैं.

– इससे पहले चेन्नई सुपरकिंग्स के महेंद्र सिंह धोनी को सबसे ज्यादा 20 करोड़ रुपए मिलते थे. धोनी को अब 12.5 करोड़ रुपए मिलेंगे.

– चेन्नई और राजस्थान रॉयल्स टीमें दो साल के लिए सस्पेंड कर दी गई हैं. नई टीम होने के कारण धोनी को मिलने वाला टोटल अमाउंट कम कर दिया गया है.

किन प्लेयर्स को मिलता है कितना पैसा…
– बेंगलुरु की टीम अपने आक्रामक कैरेबियन बैट्समैन क्रिस गेल को पर्स कैपिसिटी से ज्यादा पेमेंट करती है. गेल के लिए 7.50 करोड़ रुपए कटते हैं, जबकि उन्हें 8.40 करोड़ रुपए पेमेंट किया जाता है.

– मुंबई इंडियन्स की टीम भी हरभजन सिंह, लसिथ मलिंगा और अंबाती रायडू को पर्स कटौती से ज्यादा पेमेंट करती है. हरभजन को 5.50 करोड़ के मुकाबले आठ करोड़, मलिंगा को 7.50 करोड़ के मुकाबले 8.10 करोड़ और रायडू को चार करोड़ के मुकाबले छह करोड़ रुपए दिए जाते हैं.

कुछ प्लेयर्स को होता है नुकसान…
– माना जाता है कि आईपीएल में खिलाड़ियों को ऑफिशियल पर्स कटौती से ज्यादा का पेमेंट होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. कई खिलाड़ियों को भारी कटौती भी झेलनी पड़ती है.

– किंग्स इलेवन पंजाब टीम के मनन बोरा के लिए पर्स कटौती चार करोड़ है, लेकिन उन्हें मिलते सिर्फ 35 लाख रुपए हैं.

– कोलकाता नाइट राइडर्स के कप्तान गौतम गंभीर को 12.50 करोड़ की पर्स कटौती के मुकाबले 10 करोड़, मुंबई के कप्तान रोहित शर्मा को 12.50 करोड़ रुपए की पर्स कटौती के मुकाबले 11.50 करोड़ और पंजाब के डेविड मिलर को 12.50 करोड़ की पर्स कटौती के मुकाबले सिर्फ पांच करोड़ रुपए मिलते हैं.

ओनिर ने खोला रवीना टंडन के नए अंदाज का राज

बॉलीवुड फिल्मकार ओनिर का कहना है कि उनके निर्देशन में बन रही फिल्म 'शब' में रवीना टंडन का परफॉर्मेंस देखने वालों को चौंका देगा. रवीना पिछले साल रिलीज हुई फिल्मक 'बॉम्बे वेलेवेट' में भी कुछ देर के लिए नजर आई थीं. उसके बाद अब वह फिल्मि 'शब' में काम करने जा रही हैं. फिल्म में उनका रोल खासा बड़ा है.

ओनिर से जब पूछा गया कि क्या 'शब' रवीना की कमबैक फिल्म साबित होगी, तो ओनिर ने जवाब दिया कि हां, बिल्कुल होगी. ऐसा इसलिए भी क्योंकि उनका 'बॉम्बे वेलवेट' में बेहद छोटा रोल था. वह वाकई इस बात को महसूस करते हैं कि वे जबरदस्त एक्टर हैं. बीते लंबे समय से वह उनके साथ इस फिल्म में काम करना चाह रहे थे. फिल्मह के बारे में उन्हों ने आगे बताया कि इसमें दिल्ली की कहानी है. प्रेम त्रिकोण है. फिल्म से प्रोसेनजीत चटर्जी की पत्नी अर्पिता और आशीष बिष्ट भी बॉलीवुड में कदम रखेंगे. ओनिर के पसंदीदा संजय सूरी भी इस फिल्म में नजर आएंगे.

ओनिर खुश हैं कि इस फिल्म को बनाने का उनका सपना अब पूरा हो रहा है. उन्होंने बताया कि यह वो पटकथा है, जो उन्होंहने सबसे पहले लिखी थी. लगभग 13 या 14 साल हो गए हैं, इसे लिखे. मजेदार बात यह है कि इसे रवीना टंडन और संजय को ध्यान में रखकर ही लिखा गया था. उस वक्त वह इनके साथ फिल्मल 'दमन' में काम कर रहे थे. यह पटकथा उस समय से ही उनके साथ है और वह इसको लेकर बेहद खुश भी हैं.

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