हिंदू धर्म में गो की बड़ी महिमा बताई गई है. गाय की सेवा करना पुण्य कर्म माना गया है. धर्मग्रथों में कहा गया है कि मनुष्य को मोक्ष, स्वर्ग प्राप्ति के लिए गोदान करना चाहिए. गो में 33 करोड़ देवीदेवताओं का वास होता है और गोदान करने वाले मनुष्य के सामने समस्त देवीदेवता नतमस्तक रहते हैं. राजा और अन्य लोगों द्वारा ब्राह्मणों को गाय दान के अनेक किस्से हैं. धर्मराज युधिष्ठिर, महाराज वसुदेव समेत अनेक छोटेमोटे राजा और आम लोग ब्राह्मणों को गोदान किया करते थे.

पुराणों में गोदान का महात्म्य देखिए,

हिरण्यं गां महीं ग्रामान हस्त्यश्वांनृपतिर्वरान्,

प्रादात्स्वनं च विप्रेभ्य:

प्रजीतीर्थ स तीर्थवित्.

-भागवत महापुराण 1-12-14

अर्थात, महाराज युधिष्ठिर दान की महत्ता जानते थे. उन्होंने प्रजापति नामक काल में यानी नाल काटने से पहले ही ब्राह्मण को सुवर्ण, गाएं, पृथ्वी, गांव, उत्तम जाति के घोड़े और उत्तम अन्न दान किए.

देहि दानं द्विजातीनां कृष्णनिर्मुक्तिहेतवे,

नंद: प्रीतमना राजन् गा: सुवर्ण तदादिशत्.

-भागवत महापुराण-10-17-18

अर्थात, कृष्ण के मृत्यु के मुख से लौट आने के उपलक्ष्य में तुम ब्राह्मणों को दान करो. ब्राह्मणों की यह बात सुन कर नंद बाबा को बड़ी प्रसन्नता हुई. उन्होंने बहुत सा सोना और गाएं ब्राह्मणों को दान दीं. सूर्य ग्रहण के समय ब्राह्मणों को दान देने की सिफारिश की गई है,

हरण्यरूप्यवासांसि तिलांश्च गुडमिश्रितान्,

प्रादाद् धेनूश्च विप्रेभ्यों राजा विधिविदांवर:

-भागवत महापुराण-10-53-13

अर्थात, समग्र वेद विधि जानने वालों में श्रेष्ठ राजा भीष्मक ने ब्राह्मणों को सोना, चांदी, वस्त्र, गुड़ मिश्रित तिल तथा बहुत सी गाएं दान दीं.

ब्राह्मणेभ्यो ददुर्धेनूर्वास: स्त्रग्रुक्ममालिनी:

ददू: स्वन्नं द्विजाग्रयेभ्य:

कृष्णे नो भक्तिरस्थिति.

स्वयं च तदनुज्ञातावृष्णय: कृष्णदेवता.

-भागवत महापुराण-10-82-10,11

अर्थात, उन्होंने ब्राह्मणों को गोदान दिया. ऐसी गायों का दान दिया जिन्हें वस्त्रों के सुंदरसुंदर झूले, पुष्पमालाएं एवं सोने की जंजीरें पहना दी गई थीं. सत्पात्र ब्राह्मणों को सुंदरसुंदर पकवानों का भोजन करवाया गया. उन्होंने अपने मन में यह संकल्प लिया कि

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