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यह भी खूब रही

दीवाली की छुट्टियों में बच्चे भी घर आए थे, तो सभी ने साथ में फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया. जब हम टाकीज में पहुंचे तो फिल्म शुरू हो गई थी और हाल में अंधेरा था. हम सभी अंधेरे में ही जा कर सीट पर बैठ गए.

लगभग 15 मिनट बाद मुझे लगा कि मेरे पैरों में दर्द हो रहा है. मैं ने सोचा, ऐसे ही हो रहा होगा क्योंकि कभीकभी कमर व पैरों में मुझे दर्द हो जाता है. सो, मैं ने फिल्म में ध्यान लगाने की कोशिश की. 15 मिनट और बीते, अब ऐसा लग रहा था जैसे दर्द पैरों से कमर की तरफ जा रहा है. कुछ देर बाद तेज जलन भी होने लगी. अब बैठना भी मुश्किल हो रहा था. बड़ी अजीब हालत थी. मैं दर्द व जलन से परेशान हो रही थी और सभी लोग फिल्म के मजे ले रहे थे. मैं उन का मजा खराब नहीं करना चाहती थी.

इस तरह आधा घंटा मैं और बैठी रही लेकिन जब स्थिति असहनीय हो गई तो मैं ने सोचा कि मुझे घर जाना चाहिए. बिटिया पास में बैठी थी, मैं ने उस से अपनी परेशानी बताई. उस ने कहा, ‘‘आई, जरा खड़ी होना,’’ और उस ने मोबाइल की टौर्च जला कर सीट का मुआयना किया व जोर से हंस पड़ी. मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ वह बोली, ‘‘आई, खुद ही देख लो.’’ और मैं ने देखा वहां सीट पर कागज में ढेर सारी तली मिर्चें पड़ी थीं, मैं अंधेरे में उन पर ही बैठ गई थी.

– वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)

*

मेरा भांजा कोलकाता से पुरी जा रहा था. उस के कंपार्टमैंट में उस के हमउम्र की एक लड़की भी चढ़ी थी. उस की खिड़की वाली बर्थ थी. लड़की को उस के पिता बैठाने आए थे, उसे भागलपुर उतरना था. वह वहां पढ़ रही थी. भांजा खिड़की वाली सीट पर बैठा था तो लड़की के पिता ने बर्थ नंबर दिखा कर कहा कि यह उस की बेटी की सीट है. भांजा बोला कि ठीक है, जब उसे (लड़की को) लेटना होगा तो मैं यहां से उठ जाऊंगा.

लड़की का पिता माना नहीं, तो मजबूरन वह वहां से उठ कर दूसरी सीट पर बैठ गया. जब ट्रेन चलने लगी तब भी लड़की का पिता बारबार इशारे से खिड़की की ओर अपनी बेटी का ध्यान केंद्रित करवा रहा था कि खिड़की की सीट पर तुम ही बैठना, नहीं तो यह लड़का बैठ जाएगा.

लड़की ने सिर हिला कर तसल्ली दी, तब जा कर उस के पिता ने बायबाय कह कर हाथ हिलाया. इधर, गाड़ी स्टेशन से चली, उधर उस लड़की का बौयफ्रैंड आया और उसे अपने साथ ले कर दूसरे कंपार्टमैंट में चला गया और मेरा भांजा पूरे रास्ते आराम से खिड़की वाली सीट पर बैठ कर बाहर के नजारे देखते हुए रात में भी मजे से सोते हुए गया.

– अंजु सिंगड़ोदिया, हावड़ा (प.बं.)

ऐसा भी होता है

पड़ोस में शादी थी. शादी के हर कार्यक्रम में दूल्हे की चाची, जो दूसरे शहर में रहती थीं, सजधज कर ढोलक बजाने बैठ जातीं या फिर एकदम चटक मेकअप और गहरे गले के ब्लाउज पहन अदाएं दिखलाती रहतीं. जब दुलहन विदा हो कर आ गई तो मंडप के नीचे गानेबजाने का कार्यक्रम चल पड़ा.

मेरे पति घर चलने का इशारा कर रहे थे. उन का इशारा देख कर दूल्हे की मां बोल पड़ीं कि विदा करा कर बहू को घर लाए हैं, आप लोगों को बिना डांस देखे हम जाने नहीं देंगे. इस पर चाचीजी भी हाथ हिला कर बोलीं, ‘चलिए, आइए मैदान में, प्रतियोगिता हो जाए.’

सभी आ कर बैठ गए. कोई गाने लगा तो कोई ठुमके लगाने लगा. एक ने तो जेब से नोट निकाल कर चाची को दिखाए. फिर होंठ में नोट रख गरदन हिलाहिला कर पकड़ने का इशारा करने लगे.

उस की इस हरकत पर मैं ने अपने पति से गुस्से में कहा, ‘यह क्या तमाशा है.’ वे बोले, ‘अरे, नाचनेगाने वाली जो बुलाई गई है उसी को तो वे नोट देंगे.’ मैं ने जब उन्हें बताया कि वे दूल्हे की चाची हैं. यह सुनते ही उन के होश उड़ गए और बोले, ‘अरे, हम लोग तो कुछ और ही समझे थे.’ अब तो वहां से खिसकने में ही सब ने भलाई समझी.

– दीपा पांडे, लखनऊ (उ.प्र.)

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हम एक विवाह समारोह में इंदौर गए. वहां वधू को गिफ्ट देने के लिए एक दुकान से रोटीमेकर खरीदा. उसी में उस का वारंटी कार्ड भी डलवा दिया, ताकि कभी कोई परेशानी हो तो वे स्वयं सर्विसिंग करवा सकें.

कुछ दिनों के बाद मैं अपने बौस के साथ एक रिसैप्शन में भोपाल गया. वहां उन्होंने मेरी राय से एक रोटीमेकर खरीद कर वधू को गिफ्ट किया.

मेरे भांजे की शादी शुजालपुर में तय हुई. जब हम सगाई कर के लौट रहे थे तो हमारे हाथ में उन के द्वारा दिए गए गिफ्ट थे. कोई गिफ्ट छोटा, कोई बड़ा था. मुझे जो गिफ्ट मिला था वह कौन सा था, मैं भूल गया. दीदी ने जो दिया, मैं ले आया. घर पहुंचा तब रात हो गई थी. गिफ्ट डिक्की में ही रह गया.

2-3 दिन बाद हमारी मैरिज एनिवर्सरी थी. बौस के साथ जहां रिसैप्शन में गया था, उन की कंपनी वहां नए प्रोडक्ट को लौंच कर रही थी. उन्होंने हमें विश किया और गिफ्ट भी दिया. दूसरे दिन बच्चों के साथ बातें करते हुए गिफ्ट खोले तो दंग रह गए. दोनों रोटीमेकर, जिन के वारंटी कार्ड हम ने ही डलवाए थे, हमारे सामने रखे थे. ये सब कैसे हुआ, पता नहीं, पर ऐसा भी होता है.

– मोनाली हरीश जैन, मुंबई (महा.)

ये पति

मेरे पति बहुत भुलक्कड़ हैं. कार की चाबी, मोबाइल, घड़ी, चश्मा इधरउधर रख कर भूल जाते हैं.

मेरे पति बहुत भुलक्कड़ हैं. कार की चाबी, मोबाइल, घड़ी, चश्मा इधरउधर रख कर भूल जाते हैं. कई बार तो कार की चाबी कार में लगी रहती है और कार का दरवाजा बंद कर देते हैं, जिस से कार लौक हो जाती है. बाजार शौपिंग करने चले जाते हैं. वापस आने पर जेब में चाबी ढूंढ़ते हैं. याद आने पर कि चाबी तो कार में ही लगी है. घर पर फोन कर दूसरी चाबी मंगवाते हैं.

उन के भुलक्कड़पन से मैं बहुत परेशान रहती हूं. जब भी उन के साथ बाजार जाती हूं, कार का दरवाजा बंद करने से पहले देख लेती हूं, कार की चाबी उन के हाथ में है या नहीं.

एक दिन मैं सपरिवार कार से अपने रिश्तेदार के घर गई. कार से वापस लौटते समय मैं ने पतिदेव से पूछा, ‘‘आप ने मोबाइल तो रख लिया था न?’’

पतिदेव ने घबराते हुए, गाड़ी चलाते हुए कहा, ‘‘अरे, मोबाइल तो रख लिया लेकिन गाड़ी की चाबी तो वहीं भूल गया.’’

फिर क्या था. मैं ने बिना सोचेसमझे अपना रटारटाया भाषण देना शुरू कर दिया. गुस्से के कारण ध्यान ही नहीं रहा कि ये मजाक कर रहे हैं, बिना चाबी के भला गाड़ी कैसे चल सकती है? करीब 5 मिनट चला यह लंबा भाषण तब समाप्त हुआ जब गाड़ी में बैठे बच्चे, सास, पति, जोरजोर से हंसने लगे. कुछ देर तक तो मैं समझ नहीं पाई हंसी का कारण, जब बात समझ में आई तो मैं भी खिलखिला कर हंस दी.

– भावना भट्ट, भोपाल (म.प्र.)

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मेरे पति की आदत रही है कि सारी नकारात्मक बातों को मेरे हिस्से में डाल कर स्वयं अच्छी बातों का श्रेय ले कर वाहवाही लूटते हैं. मेरे मौसेरे बहनोई के हाथ टूट जाने पर हम दोनों उन्हें देखने गए. वहां जाते ही मेरे पति शुरू हो गए, ‘‘अरे साहब, केवल एक बार गिरने से ही आप की हड्डी टूट गई.’’

फिर मेरी ओर इंगित करते हुए कहने लगे, ‘‘इन के कारण तो मैं न जाने कितनी बार जमीन पर गिरा. वह तो मेरे अच्छे खानपान के कारण मेरे शरीर की हड्डियां सहीसलामत रह गईं.’’

सभी को हंसते देख मारे शर्म के मेरी आंखें भर आईं, ‘‘क्या बेकार की बातें कर रहे हैं. मेरे कारण आप कब गिरे? बिना पीछे देखे बैठिएगा तो गिरना लाजिमी है.’’

पति हंसते हुए बोले, ‘‘घर में 2 बार पोंछा लगवाइएगा, मेरे बैड पर सिल्की बैडकवर डालिएगा तो गिरना ही है. जैसे भी मेरा गिरना हो, कारण तो आप ही हैं.’’

उन की बातों पर माथा पीटने के सिवा मेरे पास चारा न था.

– रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

कजरिया

कम से कम कलाकारों को ले कर बनाई गई यह फिल्म डौक्यूमैंट्री सरीखी लगती है. फिल्म के सभी कलाकार नए हैं. फिल्म में कोई तड़कभड़क नहीं है, न ही इस में गाने हैं. फिल्म का अधिकांश हिस्सा हरियाणा के एक गांव में शूट किया गया है. फिल्म कुछ हद तक दर्शकों को बांधे तो रखती है परंतु उन के दिमागों पर असर नहीं छोड़ पाती.

‘कजरिया’ जैसी फिल्में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में दिखाने के लिए ज्यादा बनती हैं. इस फिल्म को फोर्ब्स लाइफ मैगजीन ने साल की 5 बेहतरीन फिल्मों में शामिल किया है. भ्रूण हत्याओं पर केंद्रित यह फिल्म चौंकाती है. हमारे देश में बच्चियों की हत्याओं का आंकड़ा इतना ज्यादा है कि 1986 से अब तक 10 लाख से ज्यादा बच्चियों को या तो जन्म देने से पहले या जन्म लेने के तुरंत बाद मार दिया गया.

फिल्म बताती है कि कन्या हत्याओं का यह सिलसिला सिर्फ गांवों तक ही सीमित नहीं है, बड़े शहरों के पढ़ेलिखे लोग भी लड़की पैदा करना पसंद नहीं करते. फिल्म का विषय सचमुच बहुत अच्छा है, बहुतकुछ सोचने को मजबूर करता है. इस विषय पर महिलाओं की सोच क्या है, इस पर भी रोशनी डाली गई है. परंतु फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है, वह सब सतही सा लगता है. ऐसा लगता नहीं कि फिल्म देख कर लोगों पर इस का कुछ असर होगा.

फिल्म की कहानी भारत के गांवों में फैले अंधविश्वासों को बयां करती है. आज गांवों के लोग भले ही पढ़लिख गए हों, फिर भी उन में अंधविश्वास कूटकूट कर भरे हुए हैं. आज भी गांवों में पुजारी और तांत्रिक गांव वालों का शोषण करते हैं. वे काली माता का खौफ दिखा कर गांव वालों का मालमता हड़पते हैं. आज भी गांव की औरतें यह मानती हैं कि बेटा ही कुल का तारक होता है.

फिल्म की निर्देशिका मधुरीता आनंद ने देश के छोटेछोटे गांवों में हो रही भू्रण हत्याओं को अलगअलग महिलाओं की कहानियों के साथ जोड़ कर पेश किया है.

कहानी हरियाणा के एक गांव की है, जहां के लोग लड़की को पैदा होते ही गांव के एक मंदिर में रहने वाली काली मां की पुजारिन कजरिया (मीनू हुडा) के हाथों में दे देते हैं और वह उन्हें मार डालती है. गांव का पुलिस इंस्पैक्टर भी इस में दखल नहीं देता. गांव में रहने वाला एक तांत्रिक बनवारी (कुलदीप रुहिल) कजरिया को अफीम खिलाता रहता है और कजरिया अफीम के नशे में हत्याएं करती जाती है.

गांव में हर पूर्णमासी के दिन लगने वाले मेले की कवरेज करने के लिए एक पत्रकार मीरा शर्मा (रिद्धिमा सूद) वहां जाती है. वह तहकीकात करती है तो उसे कजरिया के बारे में सचाई पता चलती है. वह कजरिया का इंटरव्यू लेती है और अपने चैनल पर दिखाती है. पूरा देश इसे देख कर सन्न हो जाता है. सरकारी तंत्र हरकत में आता है. कजरिया समेत बनवारी, गांव का पुजारी, पुलिस इंस्पैक्टर, ग्राम प्रधान सब पकड़ लिए जाते हैं. कजरिया को फांसी दे दी जाती है.

यह फिल्म भ्रूणहत्या समस्या को बिना सुलझाए ही खत्म हो जाती है. गांव की औरतों को बेटियों को बचाने के लिए अपने पतियों के आगे सीना तान कर खड़े होते दिखाया गया है परंतु यह भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाता. निर्देशिका ने फिल्म में बेवजह रिद्धिमा सूद के बोल्ड सीन डाले हैं. उसे ड्रग्स लेते दिखाया गया है. उस के लिप टु लिप सीन भी जबरन डाले गए हैं. फिल्म में कजरिया के मुंह से गालियों की बौछार सी कराई गई है. फिल्म के बैकग्राउंड में 2 गाने बजते रहते हैं. छायांकन अच्छा है. संक्षेप में, यह अच्छे विषय की बेअसर फिल्म है.

एंग्री इंडियन गौडेसेस

पांच छह लड़कियां जब आपस में बतियाती हैं तो लड़कों या पुरुषों में यह उत्सुकता बनी रहती है कि वे क्या बातें करती हैं. यह फिल्म इसी विषय को दर्शाती है. यह शायद पहली फिल्म होगी जिस में कुछ लड़कियों को साथ रहते दिखाया गया है, वह भी कईकई दिनों तक. वे आपस में एकदूसरे से निजी बातें शेयर करती हैं, मौजमस्ती करती हैं, एकदूसरे को अपना दुखदर्द सुनाती हैं. निर्देशक पान नलिन ने हर लड़की (किरदार) को अपना दुखदर्द सुनाने का पूरा मौका दिया है. उस ने प्रत्येक किरदार की बातों को रोचकता से पेश किया है.

फिल्म की कहानी समाज में लड़कियों की हैसियत, उन के अधिकार, उन के संघर्ष को बयां करती है. फिल्म की कहानी शुरू तो होती है हंसतेखेलते वातावरण के साथ परंतु क्लाइमैक्स एक त्रासदी के साथ होता है.

फिल्म में कहा गया है कि घर की लड़कियों का सम्मान करना चाहिए. फिल्म में दिखाया गया है कि एक लड़की को जीवन में किस तरह उतारचढ़ावों से गुजरना पड़ता है.

कहानी 7 महिलाओं की है. सुरंजना (संध्या मृदुल) एक कंपनी की सीईओ है. जोआना (अमृत मघेरा) बौलीवुड में जाने का सपना पाले हुए है. मधुरीता (अनुष्का मनचंदा) अपने गानों का अलबम निकालना चाहती है. नरगिस (तनिष्ठा चटर्जी) सामाजिक कार्यकर्ता है. पामेला जसवाल (पवलीन गुजराल) शादी के बाद पारिवारिक कलह में उलझी है. फ्रीडा (सारा जेन डिआज) गोवा में रहती है. फ्रीडा की नौकरानी लक्ष्मी (राजश्री देशपांडे) है.

फिल्म की शुरुआत फ्रीडा द्वारा अपनी दोस्तों को अपने घर बुलाने से होती है. फ्रीडा अपनी दोस्त नरगिस से शादी करना चाहती है. एक दिन रात को सभी युवतियां पार्टी करने एक बीच पर जाती हैं. अचानक जोआना गायब हो जाती है. उस की लाश समुद्र किनारे मिलती है. उसे रेप कर मार कर फेंका गया था. सभी युवतियां रेपिस्ट व उन के साथियों को मार डालती हैं.

पुलिस तहकीकात करती है. अगले दिन चर्च में फ्रीडा और नरगिस की शादी के मौके पर पुलिस इन युवतियों को पकड़ने पहुंचती है. पुलिस पूछती है कि उन युवकों को किस ने मारा था. सब से पहले नरगिस खड़ी होती है, फिर उस की अन्य दोस्त. उस के बाद चर्च में बैठा हर शख्स खड़ा हो जाता है. पुलिस इंस्पैक्टर निरुत्तर लौट जाता है.

फिल्म वयस्कों के लिए है. फिल्म बलात्कार जैसे मुद्दे पर आंखें खोलने का प्रयास करती है, साथ ही लड़कियों को छेड़ने जैसी बातों पर भी प्रकाश डालती है. फिल्म मल्टीप्लैक्स कल्चर की है. कमर्शियल वैल्यू फिल्म में नहीं है. सभी कलाकारों ने अपनीअपनी भूमिकाएं ढंग से निभा ली हैं. पुलिस अफसर की भूमिका में आदिल हुसैन जंचा है. फिल्म का गीतसंगीत फिल्म के अनुरूप है. छायांकन साधारण है.

हेट स्टोरी-3

‘हेट स्टोरी-3’ सीरीज की यह तीसरी फिल्म है. आप को बता दें कि इस सीक्वल की चौथी फिल्म भी बनेगी. पिछली दोनों फिल्मों की अपेक्षा यह कुछ ज्यादा ही हौट है. अगर इसे ‘हेट स्टोरी’ न कह कर ‘हौट स्टोरी’ कहा जाए तो उपयुक्त होगा. फिल्म में जम कर कामुकता परोसी गई है. अब तक कई फिल्में कर चुकी जरीन खान फ्लौप ही रही है. इस फिल्म में उस ने जम कर कामुक सीन दिए हैं. फिल्म की दूसरी महिला किरदार डेजी शाह ने भी खूब अंग प्रदर्शन किया है.

फिल्म में 2 पुरुषों की जंग और अहं को दिखाया गया है. फिल्म में निर्देशक ने सभी मसालों को भर कर दर्शकों को खींचने का प्रयास किया है. फिल्म रिवैंज ड्रामा है. निर्देशक ने अंत तक यह सस्पैंस बनाए रखा है कि कौन किस से बदला ले रहा है. यह सस्पैंस फिल्म खत्म होने से सिर्फ 2 मिनट पहले ही जाहिर होता है.

फिल्म की कहानी विक्रम भट्ट ने लिखी है. उस ने रिश्तों के तानेबाने को इस प्रकार बुना है कि दर्शकों की रुचि यह जानने में लगी रहती है कि आगे क्या होने वाला है.

फिल्म की कहानी एक उद्योगपति आदित्य दीवान (शरमन जोशी) की है. सिया (जरीन खान) उस की बीवी है. दोनों की जिंदगी में एक दिन एक अन्य उद्योगपति सौरव सिंघानिया (करन सिंह ग्रोवर) आ जाता है. सौरव आदित्य और सिया को अपने घर बुला कर आदित्य से कहता है कि वह एक रात के लिए सिया को उस के पास भेज दे. यहीं से दोनों एकदूसरे के दुश्मन हो जाते हैं. सौरव सिंघानिया आदित्य को बरबाद करने की ठान लेता है. वह आदित्य की फैक्टरी को बंद करा देता है. आदित्य सौरव की चाल को काटने के लिए अपनी सैक्रेटरी काया (डेजी शाह) को सौरव के घर भेजता है ताकि उसे पलपल की खबर मिलती रहे. लेकिन सौरव काया को मरवा कर उलटे आदित्य को फंसा कर उसे जेल भिजवा देता है.

सिया अकेली पड़ जाती है. वह सौरव के पास जाने के बदले आदित्य की बेगुनाही के सारे सुबूत सौरव से देने की रिक्वैस्ट करती है. सारे सुबूत ले कर वह सौरव को जहर दे देती है. सौरव के आदमी उसे अस्पताल पहुंचा देते हैं. होश में आते ही सौरव आदित्य और सिया को मारने पहुंच जाता है. वह एकएक कर दोनों को मार डालता है.

अंत में भेद खुलता है कि सौरव कौन है. दरअसल, सौरव आदित्य के बड़े भाई विक्रम दीवान (प्रियांशु चटर्जी) का बचपन का दोस्त है. बचपन में विक्रम ने अपना आधा लिवर दे कर उस की जान बचाई थी और उस के भाई आदित्य ने उस की प्रेमिका को फंसा कर उस से शादी कर ली थी.

फिल्म की पटकथा भी विक्रम भट्ट ने लिखी है. पटकथा चुस्त है. फिल्म में तीखे टर्न्स और ट्विस्ट हैं. निर्देशक की मंशा दोनों अभिनेत्रियों के जिस्म को दिखाने की ही रही है. इस के बावजूद फिल्म अपने उद्देश्य से नहीं भटकती तो इसलिए क्योंकि फिल्म का संपादन कसा हुआ है. निर्देशन भी काफी हद तक ठीकठाक है.

शरमन जोशी को एक उद्योगपति की भूमिका नहीं जंचती. जब वह शर्ट के बटन खोलता है तो भद्दा लगता है और जब शर्ट के बटन बंद करता है तो जैंटलमैन लगता है. करन सिंह ग्रोवर ने खलनायकी अंदाज बखूबी दिखाए हैं. वह शरमन जोशी पर भारी पड़ा है. फिल्म में कई गाने हैं. गानों को अच्छी तरह फिल्माया गया है. ‘तुम्हें अपना बनाने की…’ गाना अच्छा बन पड़ा है. फिल्म का छायांकन बढि़या है.

‘की एंड का’ में दिखेगी अर्जुन-करीना की जबरदस्त केमिस्ट्री

बॉलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर और एक्टर अर्जुन कपूर की आने वाली फिल्म 'की एंड का' का पहला लुक जारी किया गया है. फर्स्ट लुक की यह तस्वीर अर्जुन कपूर ने इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए कैप्शन लिखा 'Good start to the year I say…Kia & Kabir s romance begins..ki and ka coming soon…'

निर्देशक आर.बाल्की की इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और उनकी पत्नी जया बच्चन अतिथि भूमिका में हैं. करीना अपने करियर में पहली बार मेट्रो सेंट्रिक कैरेक्टर में नजर आएंगी. वह कॉरपोरेट कंपनी में ऊंचे पद पर काम करने वाली औरत के किरदार में नजर आएंगी.

इस फिल्म में करीना घर की मुखिया हैं और कमाती हैं जबकि अर्जुन घर पर बैठे रहते हैं. आर.बाल्की इससे पहले 'चीनी कम' और 'पा' जैसी बेहतरीन फिल्म बनाने बना चुके हैं. फिल्म 'की एंड का' एक अप्रैल 2016 को रिलीज होगी.

‘सुल्तान’ के लिए सलमान की फीस सुन आप रह जाएंगे दंग

बॉलीवुड के दबंग सलमान खान अपनी आने वाली फिल्म 'सुल्तान' के लिए 100 करोड़ की फीस लेने जा रहे हैं. सलमान खान की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कीर्तिमान बना रही है.

चर्चा है कि यशराज फिल्मस के बैनर तले बन रही 'सुल्तान' के लिए उन्होंने मुनाफे में बराबर हिस्सा लेने का सौदा किया है.

ऐसे लेंगे सलमान 100 करोड़

फिल्म की निर्माण लागत निकालने के बाद कुल कमाई का बराबर बंटवारा निर्माता यशराज स्टूडियो और सलमान के बीच होगा.  'सुल्तान' की लागत 75 करोड़ और प्रिंट और प्रचार खर्च 25 करोड़ है. यानी कुल 100 करोड़. इसमें सलमान की फीस शामिल नहीं है. फिल्म का एक ही शूटिंग शेड्यूल हुआ है और इसे अभी से ‘बजरंगी भाईजान’ जितनी सफल फिल्म माना जा रहा है.

बताया जा रहा है कि फिल्म भारत में 330 करोड़ कमाएगी. इसमें से निर्माता यशराज का हिस्सा 165 करोड़ होगा. ओवरसीज में ग्रॉस 120 करोड़ के व्यवसाय की उम्मीद है जिसमें से यशराज को नेट 50 करोड़ मिल जाएंगे.

संगीत अधिकार के करीब 20 करोड़, सैटेलाइट अधिकार के करीब 65 करोड़ तय माने जा रहे हैं. फिल्म सुपरहिट होने पर यशराज का नेट रेवेन्यू 300 करोड़ होगा. जिसमें से 100 करोड़ की निर्माण लागत निकालने के बाद 200 करोड़ का विशुद्ध मुनाफा हो सकता है. ऐसा होने पर यह पहली भारतीय फिल्म होगी जिसमें हीरो की फीस 100 करोड़ होगी. 'सुल्तान' इस साल ईद के मौके पर रिलीज होगी.

संपत्ति रजिस्ट्रेशन और सर्कल रेट

तकरीबन पूरे देश में राज्य सरकारों ने संपत्तियों की खरीद पर सर्कल रेट सा प्रावधान बना रखा है. इस के तहत रजिस्ट्रार के कार्यालय में खरीदी गई संपत्ति के कागजात को पुख्ता कराने के लिए जो फीस दी जाती है, वह खरीद की कीमत या सर्कल रेट, जो भी अधिक हो, पर ही हो सकती है. अगर संपत्ति 50 लाख रुपये की खरीदी गई है और सर्कल रेट के हिसाब से उस की कीमत 80 लाख रुपये है, तो स्टैंप ड्यूटी 80 लाख रुपये पर ही देनी होगी. आयकर विभाग भी यही पूछेगा कि 80 लाख रुपये कहां से आए. बेचने वाले को 80 लाख रुपये की आय का हिसाब देना होगा.

रजिस्ट्रेशन कानून का मूल ध्येय सुप्रीम कोर्ट के सूरज लैंप इंडस्ट्रीज के मामले में इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है :

रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 इस आशय से बनाया गया था कि अचल संपत्तियों के लेनदेन में अनुशासन हो, वे सही हों, इस बारे में जानकारी सार्वजनिक रहे और लेनदेन के कागजों में बेईमानी व धोखेबाजी न होने पाए. इससे पंजीकरण अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किए गए समस्त दस्तावेजों के सत्य होने की गारंटी हो जाती है और खरीदारों को व्यर्थ के विवादों में नहीं पड़ना पड़ता.

सर्कल रेट के जरिये राज्य सरकारों ने संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन को पैसा उगाहने का रास्ता बना लिया. उन्होंने संपत्तियों के न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने शुरू कर दिए और उन के रजिस्ट्रेशन का मामला गौण हो गया और यह काम छिपे तौर पर टैक्स एकत्र करना हो गया है.

यह गलत है और जनता से धोखा है. कोई कानून जिस मकसद से बने, उसी के लिए उस का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. यह बात दूसरी है कि हमारे विधायक और सांसद इतना समय व शक्ति नहीं लगाते कि जनता पर लागू होने वाले कानूनों के सही-गलत होने की वे गहराई से जांच करें और आमतौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के इशारे पर इस तरह के कानून मिनटों में पारित कर दिए जाते हैं.

पंजीकरण केवल यह देखने के लिए है कि संपत्ति का हस्तांतरण सही ढंग से हो रहा है और उस की खरीदफरोख्त के दस्तावेज आम जनता को देखने के लिए उपलब्ध हैं. सर्कल रेटों का इस्तेमाल करके स्टैंप ड्यूटी को राजस्व का हिस्सा बनाने का हक नहीं दिया जा सकता.

कानूनों का गलत इस्तेमाल कर हेराफेरी करने की आदत ही देश में भ्रष्टाचार की जड़ है. हर अफसर जानता है कि किसी भी कानून को किसी भी तरह तोड़मरोड़ कर इस्तेमाल करने का हक उसके पास है, क्योंकि सरकार स्वयं यही कर रही है.

आखिर किसकी ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ बनने जा रही हैं श्रद्धा कपूर…?

बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर फिल्म 'हाफ गर्लफ्रेंड' में काम करती नजर आ सकती हैं. बॉलीवुड के जानेमाने डायरेक्टर मोहित सूरी चेतन भगत के नॉवेल 'हाफ गर्लफेंड' पर फिल्म बनाने जा रहे हैं.

खबरें थी कि फिल्म में कृति सैनन काम कर सकती हैं लेकिन बात नहीं बन सकी. अब रिपोर्ट्स आ रही हैं कि मोहित सूरी श्रद्धा को 'हाफ गर्लफ्रेंड' में कास्ट करने वाले हैं. इससे पहले श्रद्धा कपूर और मोहित सूरी की जोड़ी ने ‘आशिकी-2’ और 'एक विलेन' जैसी हिट फिल्में दी हैं.

बताया जाता है कि हाफ गर्लफ्रेंड की कहानी दिल्ली की एक मॉडर्न लड़की रिया और बिहार के भोले-भाले लड़के माधव की लव स्टोरी पर आधारित है. कहा जा रहा है कि फिल्म में हीरो के तौर पर सुशांत सिंह को लिया जाएगा. हालांकि इस बात की अभी आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई है.

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