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दो कलाकार ही बोल पाए सच एक महेश भट्ट दूसरे गुरुदत्त

दूसरों की जिंदगी पर फिल्म बनाना यानी बायोपिक बनाना हमेशा से ही आसान और नफे वाला रहा है क्योंकि इस में जिंदगी से ताल्लुक रखते वे सच बोलना जरूरी नहीं होता जो कोई भी उजागर नहीं करना चाहता. बौलीवुड में गांधी से ले कर गोडसे और मेरीकौम सहित एमएस धोनी तक की जिंदगी पर फिल्में बनी हैं. इन में से कुछ चलीं और कुछ को दर्शकों ने भाव नहीं दिया. जनवरी में राजकुमार संतोषी द्वारा निर्देशित गांधी गोडसे एक युद्ध ने तो बौक्स औफिस पर पानी भी नहीं मांगा. अब तक की बनी बायोपिक्स में यह सब से रद्दी और सरासर झूठी फिल्म थी जिस में वैचारिकता के नाम पर एक वैकल्पिक इतिहास परोसने की नाकाम कोशिश की गई थी.

प्रसंगवश दिलचस्प बात जान और समझ लेना जरूरी है कि दौर दक्षिणपंथियों का है. आधी के लगभग फिल्में भगवा गैंग के इशारे पर बन रही हैं. जिन में धर्म और इतिहास को या तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है या फिर वह आधाअधूरा सच दिखाया जा रहा है जिस से पूरा सच ढक जाए.

फिल्म ‘गांधी गोडसे एक युद्ध ‘इस का अपवाद नहीं है जो एक प्रसिद्ध इतिहासकार के इस कथन को भी झुठला देती है कि कोई भी प्रगतिशील समाज विद्रोहियों का स्वागत करता है. गोडसे विद्रोही नहीं था. इस से या तो यह बात साबित होती है या फिर यह कि हिंदू समाज प्रगतिशील नहीं है.

हिंदू समाज प्रगतिशील तो प्यार के मामले भी नहीं है. वह धर्म, रूढ़ियों और मान्यताओं से इतर स्त्रीपुरुष के संबंधों को बहुत बड़े फ्रेम में देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. उस की नजर में प्यार करने वाले खासतौर से औरतें व्यभिचारी होती हैं. हालांकि कोई भी धर्म इस पुरुषवादी मानसिकता का अपवाद नहीं है. लेकिन कई धर्म इस मुद्दे पर बदले हैं जिन्होंने धर्म ग्रंथों में लिखी बातों या निर्देशों को मिटाया नहीं है लेकिन सामाजिक तौर पर बदलाव स्वीकारे हैं. जैसे ईसाई धर्म, जिस की मिसालें हिंदूवादी देते रहते हैं कि यूरोप में तो व्यभिचार और सैक्स का खुलापन बहुत आम है भारतीयों को इस से बचना चाहिए.लेकिन भारतीय इस से बच नहीं पाए.

कागज के फूल क्यों नहीं स्वीकारी गई

पौराणिक साहित्य विवाहेत्तर संबंधों से भरा पड़ा है. फिल्मों के लिए यह विषय अब भले ही अछूता न रहा हो लेकिन आजादी मिलने के बाद तक था. उस दौर में एतिहासिक और धार्मिक फिल्में ही ज्यादा बनी. कभीकभार सामाजिक विषयों पर फिल्म बन जाती थी पर उस में भी निर्माता और निर्देशक इस बात का खयाल रखते थे कि किसी मान्य हिंदू परंपरा या दर्शन को बिना छुए अपनी बात कह दी जाए जो कि एक असंभव सी बात थी. इस सिलसिले को पूरे हो हल्ले के साथ गुरुदत्त ने तोड़ा.

गुरुदत्त ने साल 1959 में ‘कागज के फूल’ फिल्म बनाने की हिम्मत की. इस फिल्म के नायक और निर्देशक वही थे. फिल्म में उन्होंने एक फिल्म निर्देशक की भूमिका अदा की थी जो एक अनाथ युवती से प्यार करने लगता है जो जाहिर है उस की पत्नी को नागवार गुजरता है. बात समाज को भी रास नहीं आती. दोनों उन के लिए अड़ंगे खड़े करते रहते हैं. बेटी की कस्टडी सहित निर्देशक की पत्नी उस के लिए हर तरह की परेशानियां खड़ी करती है. जब निर्देशक इन्हें झेल नहीं पाता और प्रेमिका को भी खो बैठता है तो बेतहाशा शराब पीने लगता है. और आखिर में थकहार कर अपनी कुर्सी पर बैठाबैठा ही मर जाता है.

‘कागज के फूल’ दरअसल में गुरुदत्त और वहीदा रहमान के प्यार की कहानी थी. पत्नी गीताबाली से गुरुदत्त की पटरी कोई 4 साल ही बैठी. बाद में दोनों ने तलाक ले लिया था. वजह थी वहीदा रहमान जिन्हें गुरुदत्त ही फिल्मों में लाए थे. गुरुदत्त की निजी जिंदगी भी संघर्षों और तनावों से भरी रही थी. वे एक अदभुद कलाकार थे जो अभिनेता अच्छा था या निर्देशक अच्छा था यह तय कर पाना सभी के लिए मुश्किल काम आज भी है.

‘प्यासा’ और ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ से लोग उन की प्रतिभा का लोहा मान चुके थे. ‘कागज के फूल’ के बाबत उन के शुभचिंतकों ने उन्हें आगाह किया था कि यह फिल्म चलेगी नहीं क्योंकि दर्शक दुखांत फिल्में देखने का आदी नहीं हैं. इस के बाद भी गुरुदत्त ने रिस्क उठाया जिस के साथ ही वे पहले कलाकार बन गए जिस ने अपनी निजी जिंदगी को रुपहले परदे पर ढाला.

वहीदा रहमान रियल की तरह रील में भी उन की प्रेमिका थीं. इस के बाद भी यह फिल्म बुरी तरह फ्लौप हुई और गुरुदत्त कर्जे में डूब गए. हालांकि बाद की फिल्मों ‘चौदहवी का चांद’ और ‘साहब बीबी और गुलाम’ की कामयाबी से उन का घाटा पूरा हो गया था पर उन की खीझ और खिसियाहट शायद बरकरार रहे थे.

‘कागज के फूल’ के नायक सुरेश सिन्हा की तरह ही उन की मौत हुई थी. साल 1964 में वे मुंबई के अपने किराए के मकान में मृत पाए गए थे. उन की उम्र तब महज 41 साल थी. ज्यादा शराब के साथ ज्यादा नींद की गोलियां उन की रहस्मय मौत की वजह मानी गईं थीं. एक कामयाब फिल्मकार जो नाकाम, प्रेमी और पति साबित हुआ था उस ने अपने जायज या नाजायज कुछ भी कह लें प्यार को फैसले के लिए कहानी में पिरो कर दर्शकों के सामने परोस दिया था. लेकिन दर्शकों ने फैसला उन के हक में नहीं दिया था.

इसलिए ‘अर्थ ‘स्वीकारी गई थी

लेकिन दर्शकों ने साल 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘अर्थ’ को हाथोंहाथ लिया था. महेश भट गुरुदत्त के बाद दूसरे फिल्मकार थे जिन्होंने अपनी जिंदगी को परदे पर परोसा. फर्क इतना था कि महेश भट्ट फिल्म के हीरो नहीं बल्कि निर्माता निर्देशक सहित सब कुछ थे. जितना आम और खास लोग गुरुदत्त गीताबाली और वहीदा रहमान के बारे में जानते थे उस से कहीं ज्यादा महेश भट्ट सोनी राजदान और परवीन बौबी के बारे में जानने लगे थे.

महेश, परवीन बौबी को बेइंतिहा चाहते थे. बाबजूद यह जानने के कि वह दिमागी तौर पर सामान्य नहीं हैं. अर्थ में कुलभूषण खरबंदा ने उन का रोल किया था जबकि पत्नी की भूमिका शबाना आजमी और प्रेमिका की भूमिका स्मिता पाटिल के हिस्से में आई थी. कागज के फूल और अर्थ में कोई 33 साल का फासला था. जो विषय पहले खारिज किया गया था वह क्यों बाद में स्वीकारा और सराहा गया इस की तह में जाएं तो पता चलता है कि दर्शकों के लिए विवाहेत्तर संबंध पाप नहीं रह गए थे हालांकि उन्हें पुण्य का दर्जा न तब दिया गया था और न ही आज दिया गया है. भविष्य में इस की उम्मीद की जाए यह भी नहीं लगता. लेकिन अब यह अछूत या अजूबी बात नहीं है.

‘अर्थ’ में अपनी जिंदगी का सच उड़ेलने की महेश भट्ट की कामयाब रिस्क दरअसल में भारतीय समाज की कमजोर नब्ज थाम लेने जैसी बात थी. समाज उदार नहीं हो गया था पर वह पहले सरीखा इतना संकुचित भी नहीं रह गया था कि इस से मुंह फेर पाए.

80 के दशक की शुरुआत में हालांकि कागज के फूल की चर्चा भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों से हुई थी जिस का फायदा अर्थ को मिला था. ये दोनों ही फिल्में क्लासिक कल्ट मानी जाती हैं. ‘अर्थ’ में भावनात्मक संबंध से ज्यादा सैक्स संबंध पर फोकस किया गया था. शायद यही वजह थी कि कागज के फूल दर्शकों में उतनी बैचेनी पैदा नहीं कर पाई थी जितनी कि अर्थ ने की थी.

महेश भट्ट के बाद कोई फिल्मकार अपनी बायोपिक बनाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा तो इस की बड़ी वजह व्यावसायिकता है जिस से सच अकसर हार जाता है. यह दिलचस्प इत्तफाक है कि इन दोनों ही फिल्मों में प्रेम त्रिकोण था जिस से कोई भी कहानी एक बेहतर आकार ले पाती है. मसलन सिलसिला फिल्म जो अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और रेखा के लव ट्रायंगल को बयां करती हुई मानी जाती हैं. लेकिन इस में किसी का सीधे इन्वौल्व न होना इसे गुलशन नंदा छाप उपन्यासों जैसा काल्पनिक बना देता है.

अभी तक बौलीबुड में जितनी भी बायोपिक बनीं हैं उन में प्रमुख किरदार का वह सच सामने नहीं आ पाया है जो दर्शकों को इतना हिला कर कर रख दे कि वे अपनी मान्यताओं के उड़ते चिथड़े देखने से खुद को बचाने के लिए फिल्म देखने ही न जाएं या फिर सब कुछ भूलभाल कर उस सच को देखने जरुर जाएं जो उन की जिंदगी का आंशिक हिस्सा होता है. कागज के फूल और अर्थ के साथ क्रमश: हुआ तो यही है.

सत्ता समर्थक एजेंडे वाली फिल्म से हुआ सिनेमा का बहुत बड़ा नुकसान

फरवरी का चौथा सप्ताह भी सिनेमा के लिए खतरे की घंटी ही ले कर आया. 23 फरवरी को सिनेमा दिवस के अवसर पर हर सिनेमाघर में टिकट के दाम केवल 99 रुपए थे. इस के बावजूद सिनेमाघर खाली पड़े रहे जबकि पिछले वर्ष ‘सिनेमा दिवस’ के अवसर सिनेमाघर मालिकों ने कुछ पुरानी क्लासिक व अच्छी फिल्में प्रदर्शित कर जबरदस्त कमाई की थी.

इस बार सिनेमाघर मालिकों को नई फिल्मों पर भरोसा था. पर हर किसी को निराशा हुई. मुंबई के सर्वाधिक लोकप्रिय सिनेमाघर मराठा मंदिर और 7 स्क्रीन्स वाले मल्टीप्लैक्स ‘गेइटी ग्लैक्सी’ के मालिक व पुराने फिल्म वितरक मनोज देसाई ने कहा, ‘‘हमें विद्युत जामवाल की फिल्म ‘क्रैक’ और ‘आटिकल 370’ से काफी उम्मीदें थीं. मगर इन फिल्मों ने तो बौक्सऔफिस पर बहुत निराश किया. मेरी राय में ‘आर्टिकल 370’ को डुबोने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. उन्होंने कश्मीर में अपने भाषण में जिस तरह से फिल्म ‘आटिकल 370’ का जिक्र किया, उस से दर्शकों का इस फिल्म से मोह भंग हो गया. लोग फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही समझ गए थे कि यह सत्तापरस्त एजेंडे वाली फिल्म है.

23 फरवरी यानी कि फरवरी माह के चौथे सप्ताह में भी कहने को 4 फिल्में प्रदर्शित हईं. पहली फिल्म ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ फेम निर्देशक आदित्य धर निर्मित सत्ता समर्थक एजेंडे वाली फिल्म ‘आर्टिकल 370’ है, जिस का निर्देशन आदित्य सुभाष जांभले ने किया है. दूसरी हम डूबेंगे सनम तुम्हें भी डुबोएंगे की तर्ज पर नए प्रतिभाशाली कलाकारों के संग वरुण ग्रोवर निर्देशित फिल्म ‘आल इंडिया रैंक’ रही. तीसरी फिल्म अहं के शिकार ऐक्शन स्टार विद्युत जामवाल की फिल्म ‘क्रैक : जो जीतेगा जिएगा’ रही. चौथी फिल्म ‘प्रचंड’ रही.

23 फरवरी को सिनेमा दिवस के चलते टिकट के दाम केवल 99 रुपए थे. इस के बावजूद ये फिल्में पहले दिन भी अच्छा बिजनैस करने में बुरी तरह से असफल रही थीं.
आदित्य धर निर्मित, आदित्य सुभाष जांभले निर्देशित तथा यामी गौतम व प्रिया मणि के अभिनय से सजी फिल्म ‘आर्टिकल 370’ में 5 अगस्त, 2019 को कश्मीर से धारा 370 के खात्मे की कहानी है.

कहानी कें केंद्र में एनआईए की अफसर जूनी हक्सर (यामी गौतम धर) और पीएमओ की संयुक्त सचिव राजेश्वरी स्वामीनाथन (प्रियामणि) हैं. दोनों प्रधानमंत्री तक सूचना पहुंचे बिना सारा काम कर रहे हैं. एक दफ्तर में बैठ कर कागज संभाल रही है, तो दूसरी कश्मीर में जमीनी सतह पर काम करते हुए आतंकवादियों के साथ कश्मीरी नेताओं पर अंकुश लगा रही थी.

फिल्म मे कश्मीरी नेता, केंद्रीय गृहमंत्री और प्रधानमंत्री हैं. परदे पर यह किरदार हूबहू हैं पर नाम बदले हुए हैं. इस की वजह समझ से परे है. पूरी फिल्म सच बयां करने के बजाय केवल सत्ता को पंसद करने वाले घटनाक्रमों का उल्लेख करते हुए कई अहम दस्तावेज छिपा कर रखने के आरोप भी कुछ नेताओं पर लगाती है.
जम्मू व लद्दाख का जिक्र नहीं है. एकदम शुष्क फिल्म है. पहले कहा जा रहा था कि इस का बजट 100 करोड़ से अधिक है पर अब अचानक निर्माता इस का बजट 20 करोड़ बता रहे हैं. पहले दिन ‘सिनेमा दिवस’ के अवसर पर इस फिल्म ने 5 करोड़ रुपए कमा लिए थे. पर पूरे सप्ताह यह फिल्म बामुश्किल 40 करोड़ रुपए ही कमा सकी. इस में से निर्माता के हाथ में बामुश्किल 15 से 16 करोड़ रुपए ही आएंगे. फिल्म बुरी तरह से असफल मानी जाएगी. इसे प्रधानमंत्री भी सफलता दिलाने में नाकाम रहे.
दूसरी बड़ी फिल्म विद्युत जामवाल निर्मित व अभिनीत ‘क्रैक’ है, जिस के तमाम ऐक्शन दृश्यों को सैंसर बोर्ड द्वारा पारित किए जाने पर उंगली उठ रही है. ये वे दृश्य हैं जिन्हें ट्रेन में लटक कर करने से किशोरवय बच्चे अपनी जिंदगी गवां सकते हैं. यह ऐक्शन दृश्य करना कानूनन जुर्म भी है. पर फिल्म का नायक (विद्युत जामवाल) 10 मिनट से अधिक समय तक ऐसे जानलेवा ऐक्शन दृश्य करता है.

फिल्म शुरू होते ही 10 मिनट में कहानी का अंत समझ में आ जाता है. फिल्म की कहानी, पटकथा, एक्शन व कलाकारों का अभिनय सबकुछ खराब है. यह फिल्म सिनेमा दिवस के दिन 4 करोड़ 25 लाख रुपए ही एकत्र कर पाई. पर पूरे सप्ताह में यह फिल्म 12 करोड़ 35 लाख रुपए ही एकत्र कर सकी. यानी, निर्माता विद्युत जामवाल के हाथ में बामुश्किल 4 करोड़ रुपए ही आएंगे.

कुछ समय पहले विधु विनोद चोपड़ा एक बेहतरीन फिल्म ‘12वीं फेल’ ले कर आए थे. उसी तर्ज पर गीतकार व लेखक वरुण ग्रोवर की बतौर निर्देशक पहली फिल्म ‘आल इंडिया रैंक’ है जिस में आईआईटी पास करने व कोटा की कोचिंग की बात की गई है. मगर फिल्म अति लचर कहानी, पटकथा व निर्देशन के कारण धराशाई हो गई.
फिल्म के कई दृश्य कुछ सीरियल व फिल्मों से चुराए हुए नजर आते हैं. यह फिल्म पूरे सप्ताह में सिर्फ 37 लाख रुपए ही कमा सकी. फिल्म में हीरो की भूमिका में बोधिसत्व शर्मा एक नया कलाकार है. बेहतरीन अभिनय करने के बावजूद इस फिल्म की बौक्सऔफिस पर हुई बुरी दुर्गति के चलते उस का कैरियर बनने से पहले ही तबाह हो गया.
निर्देशक सुशांत पंडा की साइकोलौजिकल हौरर फिल्म ‘प्रचंड’ कब आई और कब गई, कुछ पता ही नहीं चला. फिल्म के निर्मातानिर्देशक ने फिल्म का प्रचार करने से दूरी बना कर रखी. फिल्म में पितोबश, अनंत महादेवन, अतुल श्रीवास्तव जैसे कुछ अच्छे कलाकार हैं. पर बात बनी नहीं. इस के बौक्सऔफिस कलैक्शन को ले कर भी निर्माताओं ने खामोशी बरत रखी है. इस फिल्म ने 10 लाख रुपए भी नहीं कमाए.

देश : एक चुनाव की चुनौती और रस्साकसी

One Nation One Election: नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद उनका एक बड़ा ख्वाब है- “एक देश एक चुनाव.” देश में एक साथ लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत लोकसभा और विधानसभा के चुनाव संपन्न हो. इसके लिए लंबे समय से प्रयास जारी है मगर हमारे देश के लोकतंत्र की जीवंतता यही है कि अविश्वास प्रस्ताव या किसी कारण से कोई भी विधानसभा या लोकसभा कभी भी भंग हो सकती है फिर क्या होगा.

ऐसे में “एक देश एक चुनाव” की थ्योरी सिर्फ कागजों में रह जाएगी. इस एक बड़े सच को बार-बार नकारते ते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अब आगामी सन 2029 के लोकसभा चुनाव के दरमियान देश भर में एक साथ चुनाव की योजना को साकार करने के लिए प्रयासशील है. यही कारण है कि विधि आयोग संविधान में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर एक नया अध्याय जोड़ने और 2029 के मध्य तक देशभर में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सिफारिश करने जा रहा है. अगर ऐसा हो जाता है तो भविष्य में एक दफा तो एक साथ चुनाव संपन्न हो जाएंगे मगर आने वाले समय में कई पेचीदगियां पैदा हो जाएगी. इन्हें अनदेखा करके अगर केंद्र सरकार यह कानून बना भी देती है तो आने वाली मुश्किलें लोकतंत्र को कमजोर करेंगी.

विपक्ष खत्म करने षड्यंत्र

दरअसल, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाला आयोग एक साथ चुनाव कराने पर ‘नया अध्याय या खंड’ जोड़ने के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश करेगा. आयोग पांच वर्षों में ‘तीन चरणों’ में विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ करने की भी सिफारिश करेगा, ताकि देशभर में पहली बार एक साथ चुनाव मई-जून 2029 में 19वीं लोकसभा के चुनाव के साथ हो सकें. संविधान के नए अध्याय में ‘एक साथ चुनाव’, ‘एक साथ चुनावों की स्थिरता’ और लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिए ‘सामान्य मतदाता सूची’ से संबंधित मुद्दे शामिल होंगे.इस तरह त्रि-स्तरीय चुनाव एक साथ, एक ही बार में हो सकेंगे .इस नए अध्याय की सिफारिश की जा रही है, उसमें विधानसभाओं की शर्तों से संबंधित संविधान के अन्य प्रावधानों को खत्म करने की अस्तित्वहीन शक्ति के प्रावधान किए जाएंगे.

विधि आयोग यह भी तय करने जा रहा है कि अगरचे कोई सरकार अविश्वास के कारण गिर जाती है या त्रिशंकु सदन होता है, तो आयोग विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ ‘एकता सरकार’ के गठन की सिफारिश करेगा. यदि ‘एकता सरकार’ का सिद्धांत काम नहीं करता है, तो विधि आयोग सदन के शेष कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराने की सिफारिश करेगा. अगर ऐसी स्थितियां निर्मित होती हैं कि नए चुनावों की आवश्यकता है और सरकार के पास अब भी तीन साल हैं, तो स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव शेष कार्यकाल के लिए होना चाहिए.

विधि आयोग के अलावा, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च- स्तरीय समिति भी एक रपट पर काम कर रही है कि कैसे संविधान और मौजूदा कानूनी ढांचे में बदलाव करके लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं. इस साल अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों के साथ कम से कम पांच विधानसभाओं के चुनाव होने की संभावना है, जबकि महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने की उम्मीद है. बिहार और दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी व केरल में 2026 में और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब व मणिपुर में 2027 में चुनाव होने हैं. 2028 में कम से कम नौ राज्यों- छत्तीसगढ़ , त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, कर्नाटक, मिजोरम, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. इस तरह आज की भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब हर एक कानून को बदलती चली जा रही है तो आनन-फानन में अपने इस एक बड़े ख्वाब को भी पूरा करने के लिए प्रयत्नशील है भले ही इसके बाद लोकतंत्र कमजोर हो.

झलक: मीना के नाजायज संबंधों का क्या था असली राज?

राइटर- विपिन चंद्रा

सुबह 10 बजे के करीब मीना बूआ अचानक घर आईं और मुझे देखते ही जोशीले लहजे में बोलीं, ‘‘शिखा, फटाफट तैयार हो जा. तू और मैं बाहर घूमने चल रहे हैं.’’

‘‘कहां?’’ मैं ने फौरन खुश हो कर पूछा.

‘‘घर से निकलने के बाद मालूम हो जाएगा. तू जल्दी से तैयार तो हो जा.’’

‘‘क्या मोहित को भी साथ ले चलूं?’’

मैं ने अपने 3 वर्षीय बेटे के बारे में पूछा.

‘‘अरी, उसे उस की नानी संभाल लेंगी.’’

मैं ने सवालिया नजरों से मां की तरफ देखा.

मोहित को रखने के लिए ‘हां’ कहते हुए मां कई दिनों के बाद मेरी तरफ देख कर मुसकराईं.

मीना बूआ के साथ मेरी हमेशा से बहुत अच्छी पटती रही है. स्मार्ट, सुंदर और समझदार होने के साथसाथ उन का स्वभाव भी मस्ती भरा है. फूफाजी को जब से दिल की बीमारी ने पकड़ा है, वे ही उन का बिजनैस सलीके से संभाल रही हैं.

‘‘बूआ, आज फैक्टरी जाना कैसे टाल दिया?’’ घर से बाहर निकलते ही मैं ने पूछा.

‘‘मैं ने सोचा 2-4 दिनों में तू ससुराल लौट जाएगी, तो तेरे साथ घूमने का मौका कहां मिलेगा. तेरे फूफाजी की बीमारी के कारण कभीकभी उदास हो जाती हूं. सोचा, आज तेरे साथ घूमफिर कर गपशप करूंगी, तो मन बहल जाएगा.’’

सचमुच बूआ ने 2 घंटे तक मुझे खूब ऐश कराई. हम ने एक अच्छे रेस्तरां में खायापिया और शौपिंग की.

मैं सोच रही थी कि अब हम घर लौटेंगे, पर बूआ ने एक बहुमंजिला इमारत के सामने गाड़ी रोकी. मेरे कुछ पूछने से पहले ही बूआ झेंपे से अंदाज में मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘हम दोनों एक पुराने जानकार से मिलने चल रहे हैं. इस व्यक्ति से आज मैं करीब 15 साल बाद मिलूंगी.’’

‘‘कौन हैं ये व्यक्ति?’’

‘‘राकेश नाम है उन का. वे मेरे साथ कालेज में पढ़े भी हैं और 15 साल पहले हम पड़ोसी भी थे.’’

‘‘फिर क्या ये कहीं बाहर चले गए थे, जो 15 साल तक आप की इन से मुलाकात नहीं हुई?’’ मैं ने कार से उतरते हुए पूछा.

‘‘ये बाहर तो नहीं गए थे, पर हमारे परिवारों के बीच संपर्क नहीं रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह तुम हमारी बातें सुन कर समझ जाओगी,’’ बूआ की आंखों में शरारत भरी चमक उभरी, ‘‘बस, तुम राकेश के सामने एक बात का ध्यान रखना.’’

‘‘किस बात का, बूआ?’’

‘‘इस का कि तुम मेरी भतीजी नहीं, बल्कि पड़ोसिन की बेटी हो. तभी वे और मैं खुल कर बातें कर पाएंगे. मैं उन की लच्छेदार बातें सुनने ही इतने सालों बाद आई हूं.’’

‘‘बूआ, चक्कर क्या है, जरा खुल कर बताओ न,’’ मेरी यह बात सुन कर बूआ जिस शोख अदा से हंसीं, वह मुझे उलझन का शिकार बना गई थी. बूआ के करीब हमउम्र 42 साल के राकेश से हम दोनों उन के औफिस में मिलीं.

‘‘माई डियर मीना, व्हाट ए ग्रेट सरप्राइज,’’ उन्होंने खड़े हो कर बूआ का स्वागत किया, ‘‘तुम्हें अचानक सामने देख कर बड़ी खुशी हो रही है. कैसे बना रखा है तुम ने अपने को 15 साल पहले जैसा खूबसूरत, फिट और स्मार्ट?’’

‘‘राकेश, तुम्हारे सिर के बाल कम जरूर हुए हैं, पर झूठी तारीफ कर के किसी भी स्त्री को खुश करने की आदत अभी भी कायम है. कैसी गुजर रही है, जनाब?’’ बूआ ने उन का हाथ हलके से पकड़ कर छोड़ दिया और खुल कर मुसकराती हुई कुरसी पर बैठ गईं.

मेरे झूठे परिचय पर जरा सा ध्यान देने के बाद राकेश मुझे जैसे भूल सा गए. उन की प्रशंसा भरी दृष्टि का केंद्र पूरी तरह से बूआ ही थीं.

उन के बीच पुरानी घटनाओं व पिछले 15 साल की जानकारियों का आदानप्रदान शुरू हो गया. मेरे लिए यह अंदाजा लगाना बिलकुल कठिन नहीं था कि राकेश आज भी बूआ के जबरदस्त प्रशंसक हैं.

‘क्या इन दोनों के बीच में पहले कभी कोई प्यार का चक्कर था?’ यह प्रश्न मेरे मन

में अचानक उभरा, तो मैं मुसकराए बिना नहीं रह सकी.

औफिस में लंचटाइम चल रहा था. राकेश ने हमारे लिए बढि़या कौफी व स्वादिष्ठ पेस्ट्री मंगवाई. उन का बस चलता तो वे मारे उत्साह के अपने हाथ से जबरदस्ती उन्हें पेस्ट्री खिलाने लगते.

‘‘अजय के क्या हाल हैं?’’ राकेश ने फूफाजी के बारे में सवाल पूछा, तो बूआ गंभीर नजर आने लगीं.

बूआ ने उदास स्वर में उन्हें फूफाजी की दिल की बीमारी के बारे में बताया. बिजनैस में इस कारण जो परेशानियां आई थीं, उन की भी चर्चा की.

‘‘अपनी हिम्मत और समझदारी के कारण तुम ने काफी बिजनैस संभाल लिया है, यह सचमुच खुशी की बात है. मैं आता हूं किसी दिन अजय से मिलने,’’ आखिरी वाक्य बोलते हुए राकेश ने बेचैनी भरे अंदाज में बूआ की तरफ देखा.

बूआ ने कोई जवाब नहीं दिया, तो राकेश ने भावुक लहजे में कहा, ‘‘मीना, आगे कोई भी कठिनाई आए, तो तुम मुझे जरूर याद करना. मुझे लगता है कि हमें अब आपस में संपर्क बनाए रखना चाहिए.’’

‘‘श्योर. अब चलने की इजाजत दो.’’

‘‘अपना मोबाइल नंबर तो दे दो और जल्द ही फिर मिलने का वादा कर के जाओ,’’ राकेश ने आगे झुक कर बूआ से हाथ मिलाया और जल्दी से छोड़ा नहीं.

‘‘कुदरत को मंजूर होगा तो जल्द मिलेंगे.’’

‘‘देखो, लंबे समय के लिए फिर से गायब मत हो जाना. पुरानी दोस्ती की जड़ें हमें फिर से मजबूत करनी हैं,’’ बड़े अपनेपन से अपनी इच्छा जाहिर करने के बाद राकेश ने बूआ का मोबाइल नंबर नोट कर लिया.

लिफ्ट से नीचे आते हुए मैं ने बूआ को छेड़ा, ‘‘बूआ, यह बंदा तो आज भी आप पर पूरी तरह से फिदा है. था न आप दोनों के बीच प्यार का चक्कर कभी?’’

‘‘ऐसी बातें किसी और के सामने कभी मत करना, शिखा.’’

‘‘मेरा अंदाजा सही है न?’’

‘‘चुप कर,’’ बूआ ने मुझे प्यार से डपटा.

बूआ की जिंदगी में अजय फूफाजी के अलावा एक अन्य पुरुष भी कभी प्रेमी के रूप में मौजूद रहा है, इस बात को सोच कर मन ही मन अचंभा महसूस करती मैं बूआ की बगल में बैठ गई.

कार को घर की दिशा में न जाते देख मैं ने बूआ से पूछा, ‘‘अब हम कहां जा रहे हैं?’’

‘‘अतीत के एक दोस्त से तुम मिल चुकी हो. अब एक पुरानी सहेली से मिलवाने ले जा रही हूं तुम्हें,’’ बूआ अजीब ढंग से मुसकराईं.

मैं ने उन से वार्त्तालाप करने की कोशिश की पर वे अचानक ‘हूं, हां’ में जवाब देने लगीं. उन के यों अचानक गंभीर हो जाने से मैं ने अंदाजा लगाया कि शायद वे राकेश या अपनी इस पुरानी सहेली के बारे में बातें करने में उत्सुक नहीं हैं.

बूआ ने एक बड़े बंगले के सामने कार रोकी. कुछ देर उन्होंने स्टेयरिंग व्हील पर उंगलियों से इस अंदाज में तबला बजाया मानो सोच रही हों कि उतरूं या नहीं.

फिर उन्होंने मेरे चेहरे को कुछ पलों तक ध्यान से देखने के बाद गंभीर लहजे में कहा, ‘‘चलो, मेरी पड़ोसिन की बिटिया रानी, मेरे अतीत के एक और पृष्ठ को पढ़ने के लिए मेरे साथ चलो.’’

घंटी बजाने पर जिस स्त्री ने दरवाजा खोला वे भी मुझे बूआ की उम्र की ही लगीं. उन के माथे पर पड़े बल और भिंचे होंठ शायद उन के स्वभाव की सख्ती की तरफ इशारा कर रहे थे.

पहली नजर में वे बूआ को पहचान नहीं पाईं. फिर आंखों में पहचान के भाव उठने के साथसाथ पहले हैरानी और फिर नफरत व गुस्से के भाव उभरे.

मैं ने बूआ की तरफ देखा तो पाया कि वे एक मशीनी मुसकराहट होंठों पर बनाए रखने का पूरा प्रयास कर रही हैं.

‘‘पहचाना मुझे, अनीता?’’ बूआ ने असहज लहजे में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘तुम मेरे घर किसलिए आई हो?’’

‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ बूआ ने सवाल पूछने से पहले एक गहरी सांस ली थी.

‘‘सौरी, अपने घर के दरवाजे मैं ने बहुत पहले तुम्हारे लिए बंद कर दिए थे.’’

‘‘आज 15 साल बाद भी मुझ से तुम्हारी नाराजगी खत्म नहीं हुई?’’

‘‘जो जख्म तुम ने मुझे दिया था, वह कभी नहीं भरेगा.’’

‘‘शायद मेरे माफी मांगने से भर जाए और यही काम करने मैं आज यहां आई हूं.’’

‘‘जीतेजी तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकती हूं, मीना.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘दोस्ती की आड़ में तुम ने मेरे वैवाहिक जीवन की खुशियों को नष्ट करने की कोशिश की थी. मेरे साथ विश्वासघात किया था तुम ने.’’

‘‘मैं अपना अपराध स्वीकार करती हूं. मेरी 15 साल पुरानी गलती को भुला कर मुझे माफ कर दो, अनीता. प्लीज, तुम्हारे माफ कर देने से मेरे दिलोदिमाग को बहुत शांति मिलेगी,’’ बूआ ने उन के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘मैं चाह कर भी तुम्हें माफ नहीं कर सकती हूं,’’ अनीता की आवाज गुस्से और नफरत की अधिकता के कारण कांप उठी, ‘‘मेरे पति के साथ अवैध संबंध बना कर तुम ने हम पतिपत्नी के प्रेम व विश्वास की नींव को सदा के लिए खोखला कर दिया था. तुम्हारी उस भूल के कारण हम आज तक फिर कभी एकदूसरे के दिल में प्यार की जगह नहीं बना पाए. तुम चली जाओ यहां से. आई हेट यू.’’

अनीता की ऊंची आवाज सुन कर एक किशोर लड़की घर के अंदर से हमारे पास आ पहुंची. उस का चेहरा अनीता की बातें सुन लेने के कारण गुस्से से तमतमा रहा था.

इस वक्त बूआ और अनीता की आंखों में आंसू थे. बूआ ने सहानुभूतिपूर्ण, कोमल अंदाज में अनीता के कंधे पर हाथ रखना चाहा, तो उस लड़की ने बूआ का हाथ झटके से दूर कर दिया.

‘‘मेरी मां को अपने नापाक हाथों से मत छुओ, गंदी औरत,’’ वह लड़की गुस्से से फट पड़ी, ‘‘मैं सब जानती हूं तुम्हारे बारे में. तुम्हारे चक्कर में फंसने के बाद पापा न कभी अच्छे पति बने, न अच्छे पिता. हम तुम्हारी शक्ल कभी नहीं देखना चाहते हैं. भाग जाओ यहां से.’’

‘‘नेहा बेटी, तुम शांत रहो. मैं निबट लूंगी तुम्हारी इस मीना आंटी से,’’ नेहा की पीठ सहलाने के बाद अनीता ने फिर से बूआ को नफरत भरे अंदाज में घूरना शुरू कर दिया.

‘‘नेहा बेटी, तुम्हें मैं ने बहुत लाड़प्यार से अपनी गोद में खिलाया है. हम बड़ों के बीच में बोल कर तुम तो मेरा अपमान करने की कोशिश मत करो,’’ बूआ रोआंसी हो उठीं.

‘‘अगर अपमानित नहीं होना चाहती हो, तो हमारी आंखों के सामने आने से बचना. अगर पापा के साथ मैं ने कभी तुम्हें देख लिया, तो तुम्हारी खैर नहीं.’’

‘‘राकेश के पास अब क्या लौटोगी तुम. अब तक तो दसियों प्रेमी पाल कर छोड़ चुकी होगी तुम,’’ अनीता का स्वर बेहद जहरीला हो गया, ‘‘तुम्हारी तो कोई बेटी नहीं है, तो यह लड़की कौन है? कहीं पुरुषों को फांसने की अपनी कुशलता के बल पर लड़कियों से धंधा तो नहीं…’’

‘‘शटअप,’’ मैं एकाएक चीख पड़ी, ‘‘मेरी बूआ माफी मांगने आई हैं और आप हैं कि बेकार की बकवास करती ही जा रही हैं. ऐसा घटिया व्यवहार आप को शोभा नहीं देता है.’’

‘‘मैं ने तुम्हारी बूआ को 15 साल पहले ही मेरे घर की दहलीज कभी न लांघने को आगाह कर दिया था. अब ले क्यों नहीं जाती हो तुम इन्हें यहां से?’’ मुझ से भी ज्यादा जोर से वह मुझ पर चिल्लाईं और फिर धड़ाम की आवाज के साथ उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

वापस कार में आ कर बैठने तक हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई. फिर मैं ने बूआ की आंखों में झांका तो वहां मुझे दुख से ज्यादा हैरानी के भाव नजर आए.

‘‘मुझे इन पतिपत्नी व बेटी का ध्यान कभीकभी आता है, पर इन के दिलों में कितना गुस्सा… कितनी नफरत भरी हुई है आज भी मेरे प्रति,’’ बूआ के होंठों पर थकी सी मुसकान उभरी.

‘‘आप को क्या जरूरत थी इन से मिलने आने की?’’ मैं अभी भी तेज गुस्से का शिकार बनी हुई थी.

‘‘तुम्हें साथ ले कर मेरा राकेश व अनीता से मिलने आना मुझे जरूरी लगा था,’’ बूआ ने अर्थपूर्ण अंदाज में मेरी तरफ देखा.

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो, बूआ?’’ अपराधबोध की एक तेज लहर अचानक मेरे मन में उठ कर मुझे सुस्त सा कर गई.

‘‘शिखा बेटी, 15 साल पहले मैं ने राकेश से अवैध संबंध बनाने की नासमझी की थी. इस कारण मैं ने अनीता की दोस्ती खो कर उसे सदा के लिए अपना दुश्मन बना लिया. आज उस की बेटी भी मुझ से नफरत करती है.

‘‘तू ने देखा न कि राकेश की दिलचस्पी आज भी मेरे साथ अवैध प्रेम का चक्कर फिर से शुरू करने में है. कुछ पुरुषों का स्वभाव ऐसा ही होता है… शायद तुम्हारा दोस्त नवीन भी इसी श्रेणी का एक दिलफेंक खिलाड़ी है.’’

बूआ की पैनी नजरों का सामना न कर पाने के कारण मैं ने नजरें झुका लीं.

मुझे चुप देख कर बूआ ने मुझे समझाया, ‘‘देख शिखा, तुम्हारी अच्छी सहेली वंदना का भाई तुम्हारी ही तरह शादीशुदा है. कभी तुम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे, पर अब उस प्यार को जिंदा करने की नासमझी मत करो, प्लीज.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, बूआ,’’ झूठ बोलने के कारण मेरी आवाज बेहद भारी सी हो गई थी.

‘‘मुझ से असलियत छिपाने का क्या फायदा है, शिखा? तुम मायके आती हो, तो उस से मिलने जाती हो. वंदना को तुम्हारी ससुराल में लाने व छोड़ने के बहाने नवीन तुम्हारे पति संजय का भी दोस्त बन गया है. बिलकुल ऐसी ही परिस्थितियां 15 साल पहले तब थीं जब मैं ने मर्यादाओं को तोड़ कर राकेश से अवैध संबंध कायम कर लिए थे.’’

मैं ने अपनी सफाई में कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि बूआ उत्तेजित लहजे में आगे बोलीं, ‘‘पहले मुझे अपनी बात पूरी कर लेने दो शिखा. राकेश और मैं भी यही सोचते थे कि हम अपने संबंधोंके बारे में अजय या अनीता को कभी कुछ पता नहीं लगने देंगे, पर ऐसे चक्कर कभी छिपाए नहीं छिपते.

‘‘हमारे उस एक गलत कदम के परिणाम की ही झलक तुम्हें अनीता व नेहा के व्यवहार में दिखी ही है. कहीं सारी बात तुम्हारे फूफाजी को मालूम हो जाती, तो मेरे वैवाहिक जीवन की खुशियों व सुरक्षा की नींव भी जरूर खोखली हो जाती. अपने जीवनसाथी के चरित्र पर लगे धब्बे को भुलाना आसान नहीं होता. नवीन से संबंध बनाए रखने की मूर्खता कर के अपने व उस के वैवाहिक जीवन की खुशियों को दांव पर लगाने का खतरा मत मोल ले, मेरी बच्ची.’’

बूआ ने झुक कर मुझे अपनी छाती से लगाया, तो मेरी आंखों से आंसू बह निकले. मेरा मन अजीब से डर का शिकार हो गया था. रहरह कर अनीता और नेहा की गुस्से व नफरत भरी आंखें याद आ रही थीं. संजय को नवीन और मेरे संबंध की जानकारी लग गई, तो क्या होगा, इस सवाल का जवाब सोचना शुरू करते ही बदन कांप उठा.

‘‘मां ने आप को सब बता कर अच्छा ही किया, बूआ. आप की हिम्मत व समझदारी के कारण, जो मुझे देखनेसुनने को मिला, उस ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मैं वादा करती हूं कि गलत राह पर अब मेरा एक कदम भी और नहीं उठेगा,’’ बूआ को यह वादा देते हुए मेरा आत्मविश्वास लौट आया था और निडर भाव से उन की आंखों में देख पाना मेरे दृढ़ निश्चय की घोषणा कर रहा था.

विपिन चाचरा

आखिर कहां तक ?

बुढ़ापे में बच्चों से मातापिता क्या चाहते हैं. अपनी थोड़ी देखभाल, प्यार के दो मीठे बोल, अपनापन ही न. बच्चों को पालपोस कर बड़ा करने, उन्हें किसी काबिल बनाने के एवज में उन से यह अपेक्षा करना कुछ ज्यादा तो नहीं. लेकिन बुढ़ापे में अकसर बहुतों के साथ ऐसा होता है जैसा मनमोहन के साथ हुआ.

रात के लगभग साढे़ 12 बजे का समय रहा होगा. मैं सोने की कोशिश कर रहा था. शायद कुछ देर में मैं सो भी जाता तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया.

इतनी रात को कौन आया है, यह सोच कर मैं ने दरवाजा खोला तो देखा हरीश खड़ा है.

हरीश ने अंदर आ कर लाइट आन की फिर कुछ घबराया हुआ सा पास बैठ गया.

‘‘क्यों हरीश, क्या बात है इतनी रात गए?’’

हरीश ने एक दीर्घ सांस ली, फिर बोला, ‘‘नीलेश का फोन आया था. मनमोहन चाचा…’’

‘‘क्या हुआ मनमोहन को?’’ बीच में उस की बात काटते हुए मैं उठ कर बैठ गया. किसी अज्ञात आशंका से मन घबरा उठा.

‘‘आप को नीलेश ने बुलाया है?’’

‘‘लेकिन हुआ क्या? शाम को तो वह हंसबोल कर गए हैं. बीमार हो गए क्या?’’

‘‘कुछ कहा नहीं नीलेश ने.’’

मैं बिस्तर से उठा. पाजामा, बनियान पहने था, ऊपर से कुरता और डाल लिया, दरवाजे से स्लीपर पहन कर बाहर निकल आया.

हरीश ने कहा, ‘‘मैं बाइक निकालता हूं, अभी पहुंचा दूंगा.’’

मैं ने मना कर दिया, ‘‘5 मिनट का रास्ता है, टहलते हुए पहुंच जाऊंगा.’’

हरीश ने ज्यादा आग्रह भी नहीं किया.

महल्ले के छोर पर मंदिर वाली गली में ही तो मनमोहन का मकान है. गली में घुसते ही लगा कि कुछ गड़बड़ जरूर है. घर की बत्तियां जल रही थीं. दरवाजा खुला हुआ था. मैं दरवाजे पर पहुंचा ही था कि नीलेश सामने आ गया. बाहर आ कर मेरा हाथ पकड़ा.

मैं ने  हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘पहले यह बता कि हुआ क्या है? इतनी रात  गए क्यों बुलाया भाई?’’ मैं अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था इसलिए वहीं दरवाजे की सीढ़ी पर बैठ गया. गरमी के दिन थे, पसीनापसीना हो उठा था.

‘‘मुन्नी, एक गिलास पानी तो ला चाचाजी को,’’ नीलेश ने आवाज दी और उस की छोटी बहन मुन्नी तुरंत स्टील के लोटे में पानी ले कर आ गई.

हरीश ने लोटा मेरे हाथों में थमा दिया. मैं ने लोटा वहीं सीढि़यों पर रख दिया. फिर नीलेश से बोला, ‘‘आखिर माजरा क्या है? मनमोहन कहां हैं? कुछ बताओगे भी कि बस, पहेलियां ही बुझाते रहोगे?’’

‘‘वह ऊपर हैं,’’ नीलेश ने बताया.

‘‘ठीकठाक तो हैं?’’

‘‘जी हां, अब तो ठीक ही हैं.’’

‘‘अब तो का क्या मतलब? कोई अटैक वगैरा पड़ गया था क्या? डाक्टर को बुलाया कि नहीं?’’ मैं बिना पानी पिए ही उठ खड़ा हुआ और अंदर आंगन में आ गया, जहां नीलेश की पत्नी सुषमा, बंटी, पप्पी, डौली सब बैठे थे. मैं ने पूछा, ‘‘रामेश्वर कहां है?’’

‘‘ऊपर हैं, दादाजी के पास,’’ बंटी ने बताया.

आंगन के कोने से लगी सीढि़यां चढ़ कर मैं ऊपर पहुंचा. सामने वाले कमरे के बीचों- बीच एक तखत पड़ा था. कमरे में मद्धम रोशनी का बल्ब जल रहा था. एक गंदे से बिस्तर पर धब्बेदार गिलाफ वाला तकिया और एक पुराना फटा कंबल पैताने पड़ा था. तखत पर मनमोहन पैर लटकाए गरदन झुकाए बैठे थे. फिर नीचे जमीन पर बड़ा लड़का रामेश्वर बैठा था.

‘‘क्या हुआ, मनमोहन? अब क्या नाटक रचा गया है? कोई बताता ही नहीं,’’ मैं धीरेधीरे चल कर मनमोहन के करीब गया और उन्हीं के पास बगल में तखत पर बैठ गया. तखत थोड़ा चरमराया फिर उस की हिलती चूलें शांत हो गईं.

‘‘तुम बताओ, रामेश्वर? आखिर बात क्या है?’’

रामेश्वर ने छत की ओर इशारा किया. वहां कमरे के बीचोंबीच लटक रहे पुराने बंद पंखे से एक रस्सी का टुकड़ा लटक रहा था. नीचे एक तिपाई रखी थी.

‘‘फांसी लगाने को चढ़े थे. वह तो मैं ने इन की गैंगैं की घुटीघुटी आवाज सुनी और तिपाई गिरने की धड़ाम से आवाज आई तो दौड़ कर आ गया. देखा कि रस्सी से लटक रहे हैं. तुरंत ही पैर पकड़ कर कंधे पर उठा लिया. फिर नीलेश को आवाज दी. हम दोनों ने मिल कर जैसेतैसे इन्हें फंदे से अलग किया. चाचाजी, यह मेरे पिता नहीं पिछले जन्म के दुश्मन हैं.

‘‘अपनी उम्र तो भोग चुके. आज नहीं तो कल इन्हें मरना ही है, लेकिन फांसी लगा कर मरने से तो हमें भी मरवा देते. हम भी फांसी पर चढ़ जाते. पुलिस की मार खाते, पैसों का पानी करते और घरद्वार फूंक कर इन के नाम पर फंदे पर लटक जाते.

‘‘अब चाचाजी, आप ही इन से पूछिए, इन्हें क्या तकलीफ है? गरम खाना नहीं खाते, चाय, पानी समय पर नहीं मिलता, दवा भी चल ही रही है. इन्हें कष्ट क्या है? हमारे पीछे हमें बरबाद करने पर क्यों तुले हैं?’’ रामेश्वर ने कुछ खुल कर बात करनी चाही.

‘‘लेकिन यह सब हुआ क्यों? दिन में कुछ झगड़ा हुआ था क्या?’’

‘‘कोई झगड़ाटंटा नहीं हुआ. दोपहर को सब्जी लेने निकले तो रास्ते में अपने यारदोस्तों से भी मिल आए हैं. बिजली का बिल भी भरने गए थे, फिर बंटी के स्कूल जा कर साइकिल पर उसे ले आए. हम ने कहीं भी रोकटोक नहीं लगाई. अपनी इच्छा से कहीं भी जा सकते हैं. घर में इन का मन ही नहीं लगता,’’ रामेश्वर बोला.

‘‘लेकिन तुम लोगों ने इन से कुछ कहासुना क्या? कुछ बोलचाल हो गई क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे, नहीं चाचाजी, इन से कोई क्या कह सकता है. बात करते ही काटने को दौड़ते हैं. आज कह रहे थे कि मुझे अपना चेकअप कराना है. फुल चेकअप. वह भी डा. आकाश की पैथोलौजी लैब में. हम ने पूछा भी कि आखिर आप को परेशानी क्या है? कहने लगे कि परेशानी ही परेशानी है. मन घबरा रहा है. अकेले में दम घुटता है.

‘‘पिछले महीने ही मैं ने इन्हें सरकारी अस्पताल में डा. दिनेश सिंह को दिखाया था. जांच से पता चला कि इन्हें ब्लडप्रेशर और शुगर है…’’

तभी नीलेश पानी का गिलास ले कर आ गया. मैं ने पानी पी लिया. तब मैं ने ही पूछा, ‘‘रामेश्वर, यह तो बताओ कि पिछले महीने तुम ने इन का दोबारा चेकअप कराया था क्या?’’

‘‘नहीं, 2 महीने पहले डा. बंसल से कराया था न?’’ रामेश्वर बोला.

‘‘2 महीने पहले नहीं, जनवरी में तुम ने इन का चेकअप कराया था रामेश्वर, आज इस बात को 11 महीने हो गए. और चेकअप भी क्या था, शुगर और ब्लडप्रेशर. इसे तुम फुल चेकअप कहते हो?’’

‘‘नहीं चाचाजी, डाक्टर ने ही कहा था कि ज्यादा चेकअप कराने की जरूरत नहीं है. सब ठीकठाक है.’’

‘‘लेकिन रामेश्वर, इन का जी तो घबराता है, चक्कर तो आते हैं, दम तो घुटता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘अब आप से क्या कहूं चाचाजी,’’ रामेश्वर कह कर हंसने लगा. फिर नीलेश को इशारा कर बोला कि तुम अपना काम करो न जा कर, यहां क्या कर रहे हो.

बेचारा नीलेश चुपचाप अंदर चला गया. फिर रामेश्वर बोला, ‘‘चाचाजी, आप मेरे कमरे में चलिए. इन की मुख्य तकलीफ आप को वहां बताऊंगा,’’ फिर धूर्ततापूर्ण मुसकान फेंक कर चुप हो गया.

मैं मनमोहन के जरा और पास आ गया. रामेश्वर से कहा, ‘‘तुम अपने कमरे में चलो. मैं वहीं आ रहा हूं.’’

रामेश्वर ने बांहें चढ़ाईं. कुछ आश्चर्य जाहिर किया, फिर ताली बजाता हुआ, गरदन हिला कर सीटी बजाता हुआ कमरे से बाहर हो गया.

मैं ने मनमोहन के कंधे पर हाथ रखा ही था कि वह फूटफूट कर रोने लगे. मैं ने उन्हें रोने दिया. उन्होंने पास रखे एक मटमैले गमछे से नाक साफ की, आंखें पोंछीं लेकिन सिर ऊपर नहीं किया. मैं ने फिर आत्मीयता से उन के सिर पर हाथ फेरा. अब की बार उन्होंने सिर उठा कर मु़झे देखा. उन की आंखें लाल हो रही थीं. बहुत भयातुर, घबराए से लग रहे थे. फिर बुदबुदाए, ‘‘भैया राजनाथ…’’ इतना कह कर किसी बच्चे की तरह मुझ से लिपट कर बेतहाशा रोने लगे, ‘‘तुम मुझे अपने साथ ले चलो. मैं यहां नहीं रह सकता. ये लोग मुझे जीने नहीं देंगे.’’

मैं ने कोई विवाद नहीं किया. कहा, ‘‘ठीक है, उठ कर हाथमुंह धो लो और अभी मेरे साथ चलो.’’

उन्होंने बड़ी कातर और याचना भरी नजरों से मेरी ओर देखा और तुरंत तैयार हो कर खड़े हो गए.

तभी रामेश्वर अंदर आ गया, ‘‘क्यों, कहां की तैयारी हो रही है?’’

‘‘इस समय इन की तबीयत खराब है. मैं इन्हें अपने साथ ले जा रहा हूं, सुबह आ जाएंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘सुबह क्यों? साथ ले जा रहे हैं तो हमेशा के लिए ले जाइए न. आधी रात में मेरी प्रतिष्ठा पर मिट्टी डालने के लिए जा रहे हैं ताकि सारा समाज मुझ पर थूके कि बुड्ढे को रात में ही निकाल दिया,’’ वह अपने मन का मैल निकाल रहा था.

मैं ने धैर्य से काम लिया. उस से इतना ही कहा, ‘‘देखो, रामेश्वर, इस समय इन की तबीयत ठीक नहीं है. मैं समझाबुझा कर शांत कर दूंगा. इस समय इन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं है.’’

‘‘आप इन्हें नहीं जानते. यह नाटक कर रहे हैं. घरभर का जीना हराम कर रखा है. कभी पेंशन का रोना रोते हैं तो कभी अकेलेपन का. दिन भर उस मास्टरनी के घर बैठे रहते हैं. अब इस उम्र में इन की गंदी हरकतों से हम तो परेशान हो उठे हैं. न दिन देखते हैं न रात, वहां मास्टरनी के साथ ही चाय पीएंगे, समोसे खाएंगे. और वह मास्टरनी, अब छोडि़ए चाचाजी, कहने में भी शर्म आती है. अपना सारा जेबखर्च उसी पर बिगाड़ देते हैं,’’ रामेश्वर अपनी दबी हुई आग उगल रहा था.

‘‘इन्हें जेबखर्च कौन देता है?’’ मैं ने सहज ही पूछ लिया.

‘‘मैं देता हूं, और क्या वह कमजात मास्टरनी देती है? आप भी कैसी बातें कर रहे हैं चाचाजी, उस कम्बख्त ने न जाने कौन सी घुट्टी इन्हें पिला दी है कि उसी के रंग में रंग गए हैं.’’

‘‘जरा जबान संभाल कर बात करो रामेश्वर, तुम क्या अनापशनाप बोल रहे हो? प्रेमलता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. उन का भरापूरा परिवार है. पति एडवोकेट हैं, बेटा खाद्य निगम में डायरेक्टर है, उन्हें इन से क्या स्वार्थ है. बस, हमदर्दी के चलते पूछताछ कर लेती है. इस में इतना बिगड़ने की क्या बात है. अच्छा, यह तो बताओ कि तुम इन्हें जेबखर्च क्या देते हो?’’ मैं ने शांत भाव से पूछा.

‘‘देखो चाचाजी, आप हमारे बडे़ हैं, दिनेश के फादर हैं, इसलिए हम आप की इज्जत करते हैं, लेकिन हमारे घर के मामले में इस तरह छीछालेदर करने की, हिसाबकिताब पूछने की आप को कोई जरूरत नहीं है. इन का खानापीना, कपडे़ लत्ते, चायनाश्ता, दवा का लंबाचौड़ा खर्चा कहां से हो रहा है? अब आप इन से ही पूछिए, आज 500 रुपए मांग रहे थे उस मास्टरनी को देने के लिए. हम ने साफ मना कर दिया तो कमरा बंद कर के फांसी लगाने का नाटक करने लगे. आप इन्हें नहीं जानते. इन्होंने हमारा जीना हराम कर रखा है. एक अकेले आदमी का खर्चा घर भर से भी ज्यादा कर रहे हैं तो भी चैन नहीं है…और आप से भी हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि हमें हमारे हाल पर छोड़ दें. कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर मैं आप से कुछ बदसलूकी कर बैठूं, अब आप बाइज्जत तशरीफ ले जा सकते हैं.’’

इस के बाद तो उस ने जबरदस्ती मुझे ठेलठाल कर घर से बाहर कर दिया. रामेश्वर ने बड़ा अपमान कर दिया मेरा.

मैं ने कुछ निश्चय किया. उस समय रात के 2 बज रहे थे. गली से निकल कर सीधा प्रो. प्रेमलता के घर के सामने पहुंच गया. दरवाजे की कालबेल दबा दी. कुछ देर बाद दोबारा बटन दबाया. अंदर कुछ खटरपटर हुई फिर थोड़ी देर बाद हरीमोहन ने दरवाजा खोला. मुझे सामने देख कर उन्हें कुछ आश्चर्य हुआ लेकिन औपचारिकतावश ही बोले, ‘‘आइए, आइए शर्माजी, बाहर क्यों खडे़ हैं, अंदर आइए,’’ लुंगी- बनियान पहने वह कुछ अस्तव्यस्त से लग रहे थे. एकाएक नींद खुल जाने से परेशान से थे.

मैं ने वहीं खडे़खडे़ उन्हें संक्षेप में सारी बातें बता दीं. तभी प्रो. प्रेमलता भी आ गईं. बहुत आग्रह करने पर मैं अंदर ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठ गया.

प्रो. प्रेमलता अंदर पानी लेने चली गईं.

लौट कर आईं तो पानी का गिलास मुझे थमा कर सामने सोफे पर बैठ गईं और कहने लगीं, ‘‘यह जो रामेश्वर है न, नंबर एक का बदमाश और बदतमीज आदमी है. मनमोहनजी का सारा पी.एफ., जो लगभग 8 लाख था, अपने हाथ कर लिया. साढे़ 5 हजार पेंशन भी अपने खाते में जमा करा लेता है. इधरउधर साइन कर के 3 लाख का कर्जा भी मनमोहनजी के नाम पर ले रखा है. इन्हें हाथखर्चे के मात्र 50 रुपए देता है और दिन भर इन से मजदूरी कराता है.’’

‘‘सागसब्जी, आटापिसाना, बच्चों को स्कूल ले जानालाना, धोबी के कपडे़, बिजली का बिल सबकुछ मनमोहनजी ही करते हैं. फरवरी या मार्च में इसे पता चला कि मनमोहन का 2 लाख रुपए का बीमा भी है, शायद पहली बार स्टालमेंट पेमेंट के कागज हाथ लगे होंगे या पेंशन पेमेंट से रुपए कट गए होंगे, तभी से इन की जान के पीछे पड़ गया है, बेचारे बहुत दुखी हैं.’’

मैं ने हरीमोहनजी से कुछ विचार- विमर्श किया और फिर रात में ही हम पुलिस थाने की ओर चल दिए. उधर हरीमोहनजी ने फोन पर संपर्क कर के मीडिया को बुलवा लिया था. हम ने सोच लिया था कि रामेश्वर का पानी उतार कर ही रहेंगे, अब यह बेइंसाफी सहन नहीं होगी.

आखिर बड़ी उम्र के पुरुषों की तरफ क्यों आकर्षित होती हैं लड़कियां

कार्यालय में चर्चा का बाजार कुछ ज्यादा ही गरम था. पता चला कि नेहा ने अपने से उम्र में 15 साल बड़े अधिकारी प्रतीक से विवाह रचा लिया है. एक हफ्ते बाद जब नेहा से मुलाकात हुई तो वह बेहद खुश नजर आ रही थी. अपने से ज्यादा उम्र के व्यक्ति से विवाह करने की कोई लाचारी या बेचारगी का भाव उस के चेहरे पर नहीं था. चूंकि उन के बीच चल रहे संबंधों की चर्चा पहले से होती थी, सो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ. ऐसे एक नहीं अनेक किस्सों को हम हकीकत में बदलते देखते हैं. विशेषकर कार्यक्षेत्र में तो यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है कि लड़कियां अपने से बड़ी उम्र के पुरुषों के प्रति अधिक आकर्षित हो रही हैं. आजकल यह आश्चर्यजनक नहीं, बल्कि सामान्य बात हो गई है. अकसर नौकरीपेशा लड़कियां या महिलाएं अपने दफ्तर के वरिष्ठ अधिकारी के प्रेमजाल में फंस जाती हैं और जरूरी नहीं कि वे उन के साथ कोई लंबा या स्थायी रिश्ता ही बनाना चाहें, लेकिन कई बार लड़कियां इस चक्कर में अपना जीवन बरबाद भी कर लेती हैं. ऐसे रिश्ते रेत के महल की तरह जल्द ही ढह जाते हैं.

बात जब विवाह की हो तो ऐसे रिश्तों की बुनियाद कमजोर होती है. पर मन की गति ही कुछ ऐसी है, जिस किसी पर यह मन आ गया, तो बस आ गया. फिर उम्र की सीमा और जन्म का बंधन कोई माने नहीं रखता. हालांकि यह स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं है, फिर भी कई बार कुछ परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि मन बस वहीं ठहर जाता है.

सुरक्षा का भाव

कई बार कम उम्र की लड़कियां अपने से काफी अधिक उम्र के व्यक्ति के साथ अपनेआप को सुरक्षित महसूस करती हैं. ऐसा अकसर तब होता है जब कोई लड़की बचपन से अकेली रही हो. परिवार में पिता या भाई जैसे किसी पुरुष का संरक्षण न मिलने के कारण उसे अपमान या छेड़खानी का सामना करना पड़ा हो तो ऐसी लड़कियां सहज ही अपने से अधिक उम्र के व्यक्ति के साथ अपनेआप को सुरक्षित महसूस करती हैं. कई बार लड़कियों के इस रुझान का फायदा पुरुष भी उठाते दिख जाते हैं.

परिस्थितियां

कार्यक्षेत्र की परिस्थितियां कई बार ऐसा संपर्क बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं. कई दफ्तरों में फील्डवर्क होता है. काम सीखनेसमझने के मद्देनजर लड़कियों को सीनियर्स के साथ दफ्तर से बाहर जाना पड़ता है. गैरअनुभवी लड़कियों को इस का फायदा मिलता है. धीरेधीरे लड़कियां पुरुष सहयोगियों के करीब आ जाती हैं. काम के सिलसिले में लगातार साथ रहतेरहते कई बार दिल भी मिल जाते हैं.

स्वार्थी वृत्ति

पुरुषों की स्वार्थी वृत्ति भी कई बार कम उम्र की लड़कियों को अपने मोहजाल में फंसा लेती है. लड़कियां यदि केवल सहकर्मी होने के नाते पुरुषों के साथ वार्त्तालाप कर लेती हैं, काम में कुछ मदद मांग लेती हैं तो स्वार्थी प्रवृत्ति के पुरुष इस का गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं और लड़कियां उन के झांसे में आ जाती हैं.

मजबूरियां

कई बार मजबूरियां साथ काम करने वाले अधिक उम्र के सहकर्मी के करीब ले आती हैं. तब मुख्य वजह मजबूरी होती है, संबंधित पुरुष की उम्र नहीं. आजकल कार्यस्थलों पर काम की अधिकता हो गई है, जबकि समय कम होता है. कम समय में अधिक कार्य का लक्ष्य पूरा करने के लिए लड़कियां अपने सहकर्मी पुरुषों का सहयोग लेने में नहीं हिचकतीं, यह जरूरी भी है. किंतु मन का क्या? सहयोग लेतेदेते मन भी जब एकदूसरे के करीब आ जाता है तब उम्र का बंधन कोई माने नहीं रखता.

प्रलोभन

प्रलोभन या लालचवश भी कमसिन लड़कियां उम्रदराज पुरुषों के चंगुल में फंस जाती हैं. कई लड़कियां बहुत शौकीन और फैशनेबल होती हैं. उन की जरूरतें बहुत ज्यादा होती हैं, पर जरूरतों को पूरा करने के साधन उन के पास सीमित होते हैं. ऐसी स्थिति में यदि कोई अधिक उम्र का व्यक्ति, जो साधनसंपन्न है, पैसों की कोई कमी नहीं है, समाज में रुतबा है तो लड़कियां उस की ओर आकर्षित हो जाती हैं. उस समय उन्हें दूरगामी परिणाम नहीं दिखते, तात्कालिक लाभ ही उन के लिए सर्पोपरि होता है. कई लड़कियां कैरियर के मामले में शौर्टकट अपनाना चाहती हैं और ऊंची छलांग लगा कर पदोन्नति प्राप्त कर लेना चाहती हैं. यह लालच अधिकारी की अधिक उम्र को नजरअंदाज कर देता है.

किसी भी अधिक उम्र के व्यक्ति का अपना प्रभाव, व्यक्तित्व, रुतबा या रहनसहन भी लड़कियों को प्रभावित करने का माद्दा रखता है. राजनीति और कारोबार जगत से जुड़ी कई हस्तियों के साथ कम उम्र की लड़कियों को उन के मोहपाश में बंधते देखा गया है. बहरहाल, जरूरी नहीं कि ऐसे संबंध हमेशा बरबाद ही करते हों. कई बार ऐसे संबंध सफल होते भी देखे गए हैं. बात आपसी संबंध और परिपक्वता की है जहां सूझबूझ, विवेक और धैर्य की आवश्यकता होती है. फिर असंभव तो कुछ भी नहीं होता.

यह भी एक तथ्य है कि आकर्षण तो महज आकर्षण ही होते हैं और ज्यादातर आकर्षण क्षणिक भी होते हैं. दूर से तो हर वस्तु आकर्षक दिख सकती है. उस की सचाई तो करीब आने पर ही पता चलती है, कई बार यही आर्कषण आसमान से सीधे धरातल पर ले आता है. आकर्षण, प्यार, चाहत और जीवनभर का साथ ये सब अलगअलग तथ्य होते हैं. इन्हें एक ही समझना गलत है. किसी अच्छी वस्तु को देख कर आकर्षित हो जाना एक सामान्य बात है. पर इस आकर्षण को जीवनभर का बोझ बनाना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो सकता है, क्योंकि हर चमकती चीज सोना नहीं होती. फिर भी बदलते वक्त की जरूरत कहें या बढ़ती हुई जरूरतों को जल्दी से जल्दी बिना मेहनत किए पूरा करने की होड़, अधिक उम्र के पुरुषों की तरफ लड़कियों का आकर्षित होना एक अच्छी शुरुआत तो नहीं कही जा सकती. इस नादानी में उन का भविष्य जरूर दावं पर लग सकता है.

मैं पति की छोटी छोटी गलतियों पर गुस्सा हो जाती हूं, मैं क्या करूं ?

सवाल
मेरी शादी को 8 महीने हुए हैं. मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं भी उन्हें बहुत प्यार करती हूं. मेरा स्वभाव कुछ अलग है. मैं उन की छोटीछोटी गलतियों पर गुस्सा हो जाती हूं. यों मेरा गुस्सा ज्यादा देर तक नहीं रहता, क्योंकि वे मेरे साथ कुछ ऐसा कर देते हैं कि मेरी नाराजगी दूर हो जाती है.

आजकल मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही, जिस कारण मैं बातबेबात उन पर भड़क जाती हूं बाद में मुझे इस के लिए अफसोस भी होता है. पति ने कभी कोई शिकायत नहीं की. पर डरती हूं कि मेरी इस आदत की वजह से हमारे रिश्ते में खटास न आ जाए और मैं उन्हें खो न दूं. मैं क्या करूं बताएं?

जवाब
अभी आप की शादी को साल भर भी नहीं हुआ और आप ने पति से लड़नाझगड़ना भी शुरू कर दिया. शादी के शुरुआती दिन तो प्यारमोहब्बत और रोमांस के लिए होते हैं, क्योंकि इस समय न तो संतान की कोई जिम्मेदारी होती है और न ही एकदूसरे को समझने के लिए पर्याप्त समय ही होता है. पर आप इस अनमोल समय को गंवा रही हैं.

पति की कोई बात या आदत बुरी भी लगती है तो उसे नजरअंदाज करना चाहिए. भले ही आप के पति अभी आप की बातों को अन्यथा नहीं ले रहे पर भविष्य में उन्हें आप का व्यवहार आहत कर सकता है. अत: अपने गुस्से पर नियंत्रण रखें. रही तबीयत खराब होने की बात तो अपनी बीमारी का इलाज कराएं ताकि रिश्ता दरकने न पाए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सावधान! आपके लिए खतरनाक हो सकता है कोलेस्ट्रॉल

आज के बदलते लाइफ स्टाइल में जहां लोग अपनी सेहत के प्रति जागरुक होते जा रहे हैं, वहीं कई बीमारियां भी बढ़ती जा रही हैं. इन्हीं बीमारियों में एक बीमारी है कोलेस्टराल का बढ़ना. यह एक ऐसी बीमारी है, जिसका सीधा संबंध हमारे हृदय से है. खून में कोलेस्टराल की मात्रा बढ़ जाने से ही हृदय से संबंधित कई बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं. हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं और रक्त में कोलेस्टराल मौजूद है.

सवाल उठता है कि कोलेस्टराल क्या है? शरीर में इस की क्या भूमिका है तथा इस की अधिकता को क्या सिर्फ भोजन द्वारा नियंत्रण में रखा जा सकता है अथवा हमेशा दवा का प्रयोग जरूरी है. भोजन द्वारा कोलेस्टराल की अधिकता से कैसे बचाव किया जा सकता है या उसको नियंत्रण में रखा जा सकता है, साथ ही कोलेस्टराल से जुड़े मिथ और फैक्ट्स क्या हैं, यह सब जानकारी दे रही हैं दिल्ली के पूसा रोड क्लीनिक की सलाहकार न्यूट्रीनिस्ट गीत अमरनानी.

कोलेस्टराल क्या है

यह एक मोम जैसा पीला चिपचिपा पदार्थ है जो वसा के समान है पर वसा नहीं होता. यह व्यक्ति के लिवर में तैयार होता है और प्रतिदिन लिवर 1,500 मिलीग्राम कोलेस्टराल का निर्माण करता है. कोलेस्टराल लगभग 85 प्रतिशत शरीर से बनता है और 15 प्रतिशत भोजन से.

कोलेस्टराल की भूमिका

1 शरीर की जैविक क्रियाओं के संचालन में कोलेस्टराल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है.

2 कोलेस्टराल से सेक्स हार्मोंस बनते हैं.

3 सूर्य की रोशनी के संपर्क में जब त्वचा आती है तो यह विटामिन ‘डी’ में परिवर्तित हो जाता है.

4 कोशिकाओं के कार्य संचालन में कोलेस्टराल की खास भूमिका होती है.

कोलेस्टराल नुकसानदेह कब

शरीर में कोलेस्टराल 2 तरह से बढ़ता है. एक तो ऐसा भोजन खाने से जिस में सैचुरेटेड चरबी ज्यादा होती है वह रक्त में ज्यादा कोलेस्टराल बनने का खास कारण होता है. यदि कोलेस्टराल वाला भोजन किया जाए तो उस का परिणाम दोगुना हो जाता है, क्योंकि कोलेस्टराल वाले भोजन में सैचुरेटेड चरबी ज्यादा होती है.

दूसरा कारण होता है कोलेस्टराल का शरीर में अधिक मात्रा में बनना. दोनों में से कोई भी कारण हो पर नुकसान शरीर को ही उठाना पड़ता है, क्योंकि कोलेस्टराल के बढ़ने से सिर्फ हृदय रोग ही नहीं होता बल्कि मोटापा, हाई बल्डप्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियां भी हो जाती हैं.

कोलेस्टराल का पता कैसे लगाएं

शरीर में कोलेस्टराल की कितनी मात्रा सही है और कितनी नहीं इस के लिए चिकित्सक लिपिड प्रोफाइल टेस्ट कराते हैं. इस से प्राप्त आंकड़े शरीर में कोलेस्टराल के स्तर को दर्शाते हैं. वैसे आमतौर पर कहा जाता है कि यदि रक्त में कोलेस्टराल की मात्रा 200 मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर से कम है तो इस का स्तर सामान्य माना जाता है और यदि इस से ज्यादा है तो सावधानी बरतने की जरूरत होती है. वैसे निम्न वजहें हों तो डाक्टर से राय ले कर टैस्ट करा लेना चाहिए :

1 हाईब्लडप्रेशर, मोटापा या थायराइड जैसी कोई समस्या हो.

2 हृदय रोग का पारिवारिक इतिहास हो.

3 रक्त में कोलेस्टराल के उच्च स्तर का पारिवारिक इतिहास हो.

4 पलकों पर हलके क्रीम कलर के धब्बों के रूप में लिपिड की परत हो.

5 ज्यादा शराब का सेवन या परिवार नियोजन के लिए गोलियां लेने की हिस्ट्री हो.

कोलेस्टराल के प्रकार

रक्त में 2 तरह का कोलेस्टराल पाया जाता है. एक एलडीएल (लो डेंसिटी लाइपोप्रोटिंस), जिसे खराब कोलेस्टराल कहा जाता है. रक्त में इस के बढ़ने के मुख्य कारण होते हैं संतृप्त वसा का अधिक सेवन. कोलेस्टरालयुक्त आहार, लिवर में कोलेस्टराल का अधिक बनना, चीनी, शराब का अधिक सेवन आदि. कोलेस्टराल का दूसरा प्रकार एचडीएल (हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटिंस), जिसे अच्छा कोलेस्टराल कहा जाता है. जब रक्त में बुरे कोलेस्टराल की अधिकता हो जाती है और अच्छा कोलेस्टराल कम हो जाता है तभी हृदय रोग या अन्य बीमारियों से शरीर घिर जाता है.

अत: बेकार कोलेस्टराल को कम कर के तथा अच्छे कोलेस्टराल को बढ़ा कर रक्त में इस के स्तर को सामान्य या कम किया जा सकता है वह भी सही भोजन का चुनाव कर के. भोजन के सही चुनाव के साथसाथ कैलोरी भी जरूरी है.

उपयुक्त तेल का चयन करें

कोलेस्टराल को भोजन द्वारा नियंत्रित करने के लिए जरूरी है कि आप जो तेल और चरबी खाते हैं उस के बारे में जान लें तभी अपने भोजन को ज्यादा वसा से दूर रख पाएंगे. मुख्यत: तेल व चरबी को 2 भागों में बांटा जा सकता है : एक, सैचुरेटेड फैट, दूसरा, अनसैचुरेटेड फैट.

सैचुरेटेड फैट यानी संतृप्त वसा की बात करें तो यह बल्ड कोलेस्टराल को बढ़ाने वाला होता है. यह पशुजन्य खाद्य पदार्थों से प्राप्त वसा जैसे मक्खन, घी, दूध, चीज, क्रीम आदि में पाया जाता है. कुछ तेल जैसे नारियल का तेल, पाम आयल में भी सैचुरेटेड फैट होता है. सामान्य तापक्रम पर यह फैट जमे हुए होते हैं. अत: इन का सेवन 5 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं करना चाहिए.

अब हम अनसैचुरेटेड फैट की बात करें तो यह कोलेस्टराल को कम करने में सहायक होते हैं पर यह भी 2 प्रकार के होते हैं. एक, मोनो अनसैचुरेटेड फैट और दूसरा, पौली अनसैचुरेटेड फैट.

मोनो अनसैचुरेटेड फैट स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम हैं क्योंकि ये खराब कोलेस्टराल को कम करते हैं. इस में जैतून का तेल बढि़या होता है क्योंकि यह ज्यादा गरम होने पर भी सैचुरेटेड नहीं होता है. रेपसीड आयल, तिल का तेल आदि भी मोनो अनसैचुरेटेड फैट की श्रेणी में आते हैं.

पौली अनसैचुरेटेड फैट कम लाभप्रद है पर इस में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 पाए जाते हैं जो हृदय के लिए लाभकारी हैं. ये मुख्यत: सूरजमुखी के तेल, मक्की के तेल, सोयाबीन के तेल आदि में पाए जाते हैं.

कहने का मतलब है कि कोलेस्टराल के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए वानस्पतिक तेलों का प्रयोग करना चाहिए. यह कोलेस्टराल रहित होते हैं और इस में मूफा और पूफा की मात्रा अधिक होती है. वजन घटाने व कोलेस्टराल को नियंत्रण करने के लिए तेल का प्रयोग 25 से 30 प्रतिशत कैलोरी से अधिक नहीं करना चाहिए.

मेवों का सेवन करें सीमित मात्रा में

मेवों में कोलेस्टराल नहीं होता है पर वसा की मात्रा अधिक होती है. अत: काजू, मूंगफली, अखरोट और बादाम का सेवन एक सीमित मात्रा में किया जा सकता है. ये दिल की बीमारियों के लिए बेहद मुफीद हैं क्योंकि इन में मिनरल सेलेनियम नामक तत्त्व पाया जाता है. शरीर में इस अत्यंत उपयोगी मिनरल की कमी नहीं होनी चाहिए अत: संभव हो तो रोज मुट्ठी भर मेवा का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.

फल, सब्जी अनाज और दालों का सेवन खूब करें

संतरे, लाल और पीले रंग के फल, सब्जियां और गहरे रंग की बेरीज का सेवन ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए. छिलकेदार दालें, चोकरयुक्त आटा, साबुत अनाज, दलिया, ईसबगोल आदि में घुलनशील फाइबर खूब पाए जाते हैं. इसी तरह सेब, नाशपाती में भी खूब घुलनशील फाइबर पाए जाते हैं. यह घुलनशील फाइबर कोलेस्टराल को बांध लेते हैं और शरीर में उस के जज्ब होने की क्रिया पर रोक लगा देते हैं.

मीठे और साफ्ट ड्रिंक्स से करें परहेज

मीठी चीजों जैसे केक, पेस्ट्री, मुरब्बा, चाकलेट, जैम, शहद और कोल्ड ड्रिंक्स आदि से दूर रहें क्योंकि इन सब में कैलोरीज बहुत होती है. कहने का मतलब है कि चीनी में सरल कार्बोज के अतिरिक्त अन्य कोई पोषक तत्त्व नहीं होता है. इस के अत्यधिक सेवन से ड्राइग्लिसरिन का स्तर बढ़ जाता है साथ ही वजन में भी अनचाही वृद्धि होती है. अत: वजन पर नियंत्रण रखने के लिए मीठी चीजों से दूर रहें. ध्यान रहे, कुछ कंदमूल वाली सब्जियां जैसे शकरकंदी, चुकंदर आदि भी कम इस्तेमाल करें.

कच्चा लहसुन जरूर खाएं

अपने खाने में लहसुन का इस्तेमाल जरूर करें. यह हृदय संबंधी रोगों में काफी लाभदायक रहता है. दिन में कम से कम एक जवा लहसुन सूप, कैसररोल्स और सलाद के साथ लें अथवा एक जवा लहसुन बिना चबाए पानी के साथ सुबहसवेरे निगल जाएं. इस के सेवन से कोलेस्टराल के स्तर में गिरावट आती है साथ ही खून के थक्के जमने की प्रक्रिया भी धीमी पड़ जाती है.

सलाद खूब खाएं

सिर्फ भोजन के साथ ही सलाद का प्रयोग न करें बल्कि जब भी भूख लगे तो गाजर, मूली, ककड़ी, खीरा, प्याज, टमाटर आदि खाएं. यह अल्पाहार के लिए अच्छा विकल्प है. इन का नियमित सेवन खराब कोलेस्टराल स्तर में गिरावट लाता है.

मांसाहार का सेवन न के बराबर करें

कोलेस्टराल पर नियंत्रण रखने के लिए जरूरी है कि मांस का सेवन न करें. मांस खासकर अंगों का मांस जैसे सुअर की चरबी, कलेजी, मुर्गा, अंडे का पीला भाग न खाएं. यह सभी कोलेस्टराल से भरपूर होते हैं. मांसाहारी मछली खा सकते हैं क्योंकि उस में ओमेगा फैटी एसिड पाए जाते हैं जो खून में विद्यमान हानिकारक ट्राइग्लिसराइड की मात्रा को घटाते हैं.

जंक फूड से करें तौबा

देशीविदेशी जंक और फास्ट फूड जैसे छोलेभठूरे, बर्गर, कचौड़ी, आलू की टिक्की, समोसे, पिज्जा से भी नाता तोड़ दें.

व्यायाम जरूर करें

प्रतिदिन 30 से 45 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें. इस से रक्त में से वसा शरीर से बाहर निकलने की क्षमता में वृद्धि होती है. वसा अधिक देर रक्त में टिक नहीं पाती.

उपरोक्त सावधानियां के अलावा सदैव खुश व प्रसन्न रहने की कोशिश करें. धूम्रपान न करें और न ही शराब का सेवन करें.

कभी-कभी जीवनशैली में बदलाव के बावजूद कोलेस्टराल का स्तर कम नहीं होता, तो डॉक्टर की सलाह से दवा ले कर उस को कम करना पड़ता है. जरूरी बात यह है कि सावधानी बरती जाएगी तो हमारा हृदय भी ज्यादा समय तक सुरक्षित रहते हुए सही काम करेगा.

कोलेस्टराल के बारे में अपने डाक्टर से पूछें ये प्रश्न

1      मेरा ड्राइग्लिसराइड लेवल क्या है?

2      क्या मुझे अपने कोलेस्टराल और ड्राइग्लिसराइड लेवल की जांच करानी चाहिए? खासतौर से जब घर में किसी को है?

3      क्या मेरा शरीर ‘एप्पल शेप’ है?

4      क्या भोजन पर नियंत्रण कर के बीमारियों से बचा जा सकता है?

5      क्या एक्सरसाइज करने से मेरा ड्राइग्लिसराइड का स्तर कम हो जाएगा?

6      कोलेस्टराल के कारण जो भोजन मैं करूं क्या वही भोजन मेरे परिवार के लिए भी ठीक रहेगा?

7      क्या कोलेस्टराल का बढ़ना आनुवंशिक है?

8      हमारे बच्चों को क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

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