दूसरों की जिंदगी पर फिल्म बनाना यानी बायोपिक बनाना हमेशा से ही आसान और नफे वाला रहा है क्योंकि इस में जिंदगी से ताल्लुक रखते वे सच बोलना जरूरी नहीं होता जो कोई भी उजागर नहीं करना चाहता. बौलीवुड में गांधी से ले कर गोडसे और मेरीकौम सहित एमएस धोनी तक की जिंदगी पर फिल्में बनी हैं. इन में से कुछ चलीं और कुछ को दर्शकों ने भाव नहीं दिया. जनवरी में राजकुमार संतोषी द्वारा निर्देशित गांधी गोडसे एक युद्ध ने तो बौक्स औफिस पर पानी भी नहीं मांगा. अब तक की बनी बायोपिक्स में यह सब से रद्दी और सरासर झूठी फिल्म थी जिस में वैचारिकता के नाम पर एक वैकल्पिक इतिहास परोसने की नाकाम कोशिश की गई थी.

प्रसंगवश दिलचस्प बात जान और समझ लेना जरूरी है कि दौर दक्षिणपंथियों का है. आधी के लगभग फिल्में भगवा गैंग के इशारे पर बन रही हैं. जिन में धर्म और इतिहास को या तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है या फिर वह आधाअधूरा सच दिखाया जा रहा है जिस से पूरा सच ढक जाए.

फिल्म 'गांधी गोडसे एक युद्ध 'इस का अपवाद नहीं है जो एक प्रसिद्ध इतिहासकार के इस कथन को भी झुठला देती है कि कोई भी प्रगतिशील समाज विद्रोहियों का स्वागत करता है. गोडसे विद्रोही नहीं था. इस से या तो यह बात साबित होती है या फिर यह कि हिंदू समाज प्रगतिशील नहीं है.

हिंदू समाज प्रगतिशील तो प्यार के मामले भी नहीं है. वह धर्म, रूढ़ियों और मान्यताओं से इतर स्त्रीपुरुष के संबंधों को बहुत बड़े फ्रेम में देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. उस की नजर में प्यार करने वाले खासतौर से औरतें व्यभिचारी होती हैं. हालांकि कोई भी धर्म इस पुरुषवादी मानसिकता का अपवाद नहीं है. लेकिन कई धर्म इस मुद्दे पर बदले हैं जिन्होंने धर्म ग्रंथों में लिखी बातों या निर्देशों को मिटाया नहीं है लेकिन सामाजिक तौर पर बदलाव स्वीकारे हैं. जैसे ईसाई धर्म, जिस की मिसालें हिंदूवादी देते रहते हैं कि यूरोप में तो व्यभिचार और सैक्स का खुलापन बहुत आम है भारतीयों को इस से बचना चाहिए.लेकिन भारतीय इस से बच नहीं पाए.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...