Download App

किसानों को याद है पीएम मोदी का वादा

पिछले दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ बजट से पहले हुई बैठक में किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से किसानों के लिए किए गए वादों को पूरा करने के लिए कहा. बैठक में किसानों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन के लिए ऊंची आय का वादा किया था. किसानों ने कहा कि बीते 2 सालों से सूखे की वजह से काटन, चावल और कई दूसरी फसलों पर बुरा असर पड़ा है.

किसानों ने याद दिलाया कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी ने इस बात का वादा किया था कि किसानों को उत्पादन की लागत से कम से कम 50 फीसदी तक का मुनाफा हो. किसानों की मांगों को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने अगले 5 सालों में सिंचाई परियोजनाओं पर 5 सौ अरब रुपए खर्च करने का वादा किया.

किसान नेता और कृषि विशेषज्ञों ने वित्त मंत्रालय से 4 फीसदी ब्याज दर पर 5 लाख रुपए तक का कृषि ऋण देने की भी मांग जोरशोर से की.

किसानों ने यूरिया की सब्सिडी को सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजने और पिछले 3 सालों की बकाया सब्सिडी के भुगतान के लिए बजट में 50 हजार करोड़ रुपए आवंटित करने की मांग की.

कृषि विशेषज्ञों ने कृषि उत्पादक संगठनों और कृषि सहकारी संगठनों की आय को आयकर के दायरे से बाहर रखने, मिल्क पाउडर के लिए बफर स्टाक बनाने और रबर आयात पर सुरक्षात्मक शुल्क लगाने की सिफारिश की. इस मौके पर अरुण जेटली ने कहा कि भारतीय कृषि के सामने मौजूद चुनौतियों में ज्यादा उपज देने वाली व प्रतिरोधी किस्म के बीजों से जुड़ी तकनीक से फायदा उठाते हुए उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत भी शामिल है.

जेटली ने आगे कहा कि इसी तरह पानी के सही इस्तेमाल की जरूरत पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है. बोआई और कटाई जैसे कामों को भी नई तकनीकों के मुताबिक ही करना मुनासिब होगा. जेटली ने कहा कि समय पर बाजार संबंधी सूचनाएं मुहैया करा कर किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ कराना भी कृषि की मौजूदा चुनौतियों में शामिल है.

वित्त मंत्री ने चर्चा आगे बढ़ाते हुए कहा कि खेती से जुड़े प्रोत्साहन ढांचे में तब्दीली कर के उत्पादकता बढ़ाने, बरबादी घटाने और आमदनी बढ़ाने पर जोर देना होगा. इस के साथ ही कृषि उत्पादों के व्यापार में बेहतरी के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल करना जरूरी है. जेटली ने कृषि के क्षेत्र में और ज्यादा पैसा लगाने की जरूरत पर जोर दिया. बहरहाल, बजट से पहले की बैठक में मोदी के वादे को याद दिला कर किसानों ने सही काम किया है. लगातार 2 सालों से सूखे व अन्य कुदरती आपदाओं से तबाह किसानों ने सरकार से आगामी बजट में सिंचाई सुविधा से जुड़ी आवंटन राशि बढ़ाने की गुजारिश की है. इस के अलावा किसानों ने अपनी फसलों के खरीद मूल्यों में भी इजाफा करने की मांग की है.

अब गेंद मोदी के पाले में है. अपनी कुरसी मजबूत करने के लिए उन्हें किसानों का भला तो करना ही होगा. आने वाले चुनावों में अपना सिक्का कायम रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों का खयाल रखना ही होगा. 

लल्ली अब जवान हो गई: भारती

लल्ली के नाम से मशहूर अमृतसर की इस पंजाबी कुड़ी भारती सिंह के पास आज पैसा, शोहरत नाम सभी कुछ है. पंजाब से मुंबई तक के संघर्ष के सफर और जिंदगी के कुछ पलों को उन्होंने एक इवेंट के दौरान बांटा. पेश हैं, उन में से कुछ चुनिंदा पल.

लल्ली बड़ी कब हो गई?

मैंजब 2008 में अपने पहले टीवी शो में आई, तो लल्ली नाम से फेमस हुई. अधिकतर लोग तो मेरा सही नाम जानते ही नहीं थे, क्योंकि उस वक्त शोज में लोग मुझे लल्ली ही कहते थे. कौमेडी करते समय मैं आज भी इस कैरेक्टर से बेहद गहराई सेजुड़ जाती हूं क्योंकि यह कैरेक्टर मेरे दिल के काफी करीब है. लेकिन लल्ली अब समय के साथ जवान हो कर भारती बन गई है. हमेशा बच्ची थोड़े ही रहेगी.

कौमेडी का कीड़ा कब लगा आप को?

बचपन से ही मुझे इस कीड़े ने डस लिया था. मैं जब छोटी थी- तो घर पर आई चाची, बूआ, ताई वगैरह का ऐक्शन के साथ नकल उतारा करती थी. पर वह भी चोरीछिपे क्योंकि पकड़े जाने पर पिटाई का डर रहता था. घर पर सभी मेरे मजाकिया स्वभाव से परिचित थे पर कभी अपनी इस प्रतिभा को बाहर दिखाने का मौका नहीं मिला. जब स्कूल गई तो वहां भी मेरी प्रतिभा का प्रदर्शन सिर्फ मेरी क्लास तक ही सीमित रहा क्योंकि उस समय स्टैंडअप कौमेडी करना टेलैंट में शामिल नहीं था. कालेज में कभी स्टेज पर मौका नहीं मिला. पर कुछ चाहने वालों की सलाह और मां के प्रोत्साहन से मैं मुंबई पहुंची और छोटेमोटे शोज करने लगी. 2008 में मुझे पहली बार ‘द ग्रेट लाफ्टर चैंलेंज’ शो में आने का मौका मिला. इस के बाद तो आप लोगों का प्यार मिलता गया और मैं बढ़ती चली गई.

शो के दौरान आप काफी फ्लर्ट करती रहती हैं. असल जिंदगी में किसी के साथ हैं या नहीं?

देखिए, शो में मैं खट्टीमीठी कौमेडी तो करती रहती हूं, लेकिन शो के दौरान मैं किसी से फ्लर्ट नहीं करती. जबकि शो में आने वाला हर शख्स मेरे साथ फ्लर्टिंग करता है. फिर चाहे वे सलमान खान हों या शाहिद कपूर क्योंकि मैं हूं ही इतनी चार्मिंग और ब्यूटीफुल. लेकिन सच बताऊं तो अभी तक ऐसा कोई नहीं मिला है जिसे मैं मन लगा कर फ्लर्ट कर सकूं.

सपनों का राजकुमार कैसा है?

वह राजकुमारों जैसे नखरे वाला तो बिलकुल नहीं है. मैं शादी करूंगी तो बिलकुल फ्री आदमी से जिस का इस फिल्म इंड्रस्ट्री से कुछ लेनादेना न हो. क्योंकि अगर वह इस इंड्रस्ट्री से जुड़ा हुआ होगा तो पतिपत्नी सारा टाईम सिर्फ शूटिंग में ही निकल जाएगा. मैं चाहती हूं कि मेरा पति मेरे लिए बिलकुल फ्री हो. साथसाथ खाना पकाए और मेरे हर काम में एकदम देशी पति की तरह मेरी मदद करे, लेकिन मैं पालतू पति बनाने की बात नहीं कर रही हूं. वह बहुत प्यार करने वाला इनसान होना चाहिए.

देश के संविधान की आत्मा से खिलवाड़

तेलंगना के मुख्यमंत्री ने गारंटी दी है कि तेलंगाना अब फूलेगाफलेगा. अब वहां सोने की वर्षा होगी. सूखा, बाढ़, भूख, किसानों की आत्महत्याएं सब खत्म हो जाएंगी. स्वयं इंद्र, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण राजपाट चलाएंगे और रामराज्य नहीं, स्वर्ग ही उतरआएगा. उन्होंने यह भी बता दिया है कि राज्य के हर घर में चमक के लिए काम करने की जरूरत नहीं है. किसान खेतों में न जाएं, मजदूर फावड़ा न उठाएं, कारीगर फैक्टरियों में न जाएं, औरतें रसोइयों में न जाएं. बस, यज्ञहवन कराएं.

उन्होंने चंडी देवी को खुश करने के लिए 22 दिसंबर को हैदराबाद में 1,500 श्रेष्ठ पुजारियों को बुला कर महायज्ञ कराया. के. चंद्रशेखर राव ने भगवा कपड़े पहने, अपनी पत्नी शोभा को भी भगवा साड़ी पहनवाई, राज्य के राज्यपाल भी भगवा कपड़ों में आए, तेलंगाना राज्य समिति पार्टी पूरे सबल सहित भगवाई या पीले कपड़ों में मौजूद थी. वीआईपीयों को खास जगह दी गई. बाकी लोग बस या कार पार्क करने के बाद मील 2 मील पैदल नंगे पांव चल कर यज्ञपंडाल तक पहुंचे.

जो सही जगह पहुंचीं उन भक्तिनों को कुमकुम की डब्बी, साड़ी, लड्डू मिले. जो पैसे चढ़ाए उस से प्रसादम की गिनती करना तो महापाप होगा. भक्तों और भक्तिनों ने खूब दिल खोल कर तेलंगाना की प्रगति के लिए दान दिया. आंध्र प्रदेश सूखे से पीडि़त है पर यह पक्का है कि इस यज्ञ के बाद जम कर बारिश होगी. चंडी देवी इंद्र से कहेंगी कि चंद्रशेखर राव पर प्रसन्न हों और उन्हें लंबी चीफमिनिस्ट्री दें, साथ ही राज्य की जनता का घर भर दें.

जो लाखों लोग वहां आए वे ही प्रसन्न नहीं हुए, सभी ऋषिमुनि, पंडे, पुजारी, स्वामी प्रसन्न थे. सब के लिए बढि़या व्यवस्था थी. आखिर वे तेलंगाना के लिए अपने भगवान की अर्चना कर धनधान्य की वर्षा कराने वाले थे. मुख्यमंत्री ने साफ संदेश दिया कि राज्य के हर घर को इस तरह के यज्ञ कराने चाहिए और नौकरी, मजदूरी, किसानी छोड़ देनी चाहिए. अगर चंडी देवी खुश तो सब कुछ बिना करेकराए मिल जाएगा. आखिर इन्हीं यज्ञों के कारण तो आंध्र प्रदेश का विभाजन हो सका और तेलंगाना राज्य बना जिस के चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री बने थे.

यह वही हैदराबाद है जिसे साईबराबाद कहा जा रहा था. पर बजाय कंप्यूटरों, विज्ञान, तकनीक के, यहां के मुख्यमंत्री तो मूर्खमंत्र पढ़वा रहे हैं जिस का उद्देश्य सदियों पुरानी पोंगापंथी को फिर से 21वीं सदी में थोपना है. सरकार की मशीनरी को इस प्रकार के नाटकों में लगाना गलत ही नहीं, अपराध है. जनता को यह संदेश देना कि प्रगति मेहनत और प्रतिभा से नहीं, मंत्र पढ़वाने और अधपढ़े रट्टूपीर पंडों के अनसुने से श्लोकों के माइकों पर चीखने से आती है, जनता के प्रति अपराध है. आंध्र प्रदेश वह राज्य है जो हैदराबाद की कंप्यूटर सिटी के लिए जितना जाना जाता है उतना ही किसानों की आत्महत्याओं के लिए भी. यही वह राज्य है जहां माओवादी पनपते हैं, जिन्होंने आंध्र प्रदेश से ले कर असम तक पैर फैला रखे हैं. यह वही राज्य है जहां 1947 तक मुसलमानों का राज चला जबकि बहुमत हमेशा हिंदुओं का रहा और ऊंची जातियों के विशाल मंदिर चारों ओर बिखरे हैं. इस राज्य का मुखिया यह गलत संदेश दे कि आज भी शासन विधानसभा से नहीं, यज्ञसभा से होगा, देश के संविधान की आत्मा से खिलवाड़ है.

शायद स्वयं चंडी देवी भी प्रसन्न नहीं हुईं क्योंकि उक्त यज्ञशाला में आग लग गई. पंडाल का बड़ा हिस्सा जल कर नष्ट हो गया. वाह, इसे कहते हैं तुरंत डिलीवरी, पिज्जा हट के गरमागरम पिज्जा की तरह. स्वयं अग्निदेवता पधार कर यज्ञपंडाल को अपने साथ ले गए. क्या संदेश दिया इस सब ने आम गृहिणी को?

चावल मिलों पर नकेल कसने की तैयारी

बिहार में किसानों और सरकार से धान ले कर चावल नहीं लौटाने वाले मिलमालिकों को जेल भेजने की कवायद शुरू की गई है. सरकार ने ऐसे चावलमिलों के मालिकों को गिरफ्तार करने और उन की कुर्कीजब्ती का आदेश जारी कर दिया है. इस सिलसिले में 12 सौ बड़े बकायादार मिलमालकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है.

गौरतलब है कि पिछले 3 सालों से चावलमिलों के मालिक 1310 करोड़ रुपए का बकाया देने में टालमटोल कर रहे थे. इन मिलमालिकों पर साल 2013-14 के 150 करोड़ रुपए साल 2012-13 के 732 करोड़ रुपए और साल 2011-12 के 427 करोड़ रुपए बकाया हैं. धान ले कर चावल वापस नहीं करने के मामले में एसएफसी समेत कई विभागों के अफसरों और मुलाजिमों पर भी कानूनी कार्यवाही की जा रही है. कुल 394 अफसरों और मुलाजिमों की जांच की जा रही है और 184 पर मुकदमा दर्ज किया गया है.

पटना की 64 चावलमिलों पर 55.61, भोजपुर की 90 मिलों पर 72.05, बक्सर की 152 मिलों पर 101, कैमूर की 357 मिलों पर 220, रोहतास की 191 मिलों पर 111, नालंदा की 84 मिलों पर 55.34, गया की 49 मिलों पर 40, औरंगाद की 207 मिलों पर 62.15, वैशाली की 25 मिलों पर 23.66, मुजफ्फरपुर की 33 मिलों पर 66.51, पूर्वी और पश्चिम चंपारण की 153 मिलों पर 63, सीतामढ़ी की 52 मिलों पर 55.83, दरभंगा की 34 मिलों पर 39.83, शिवहर की 8 मिलों पर 17.78 और नवादा की 23 मिलों पर 20.48 करोड़ रुपए बकाया हैं. इस के अलावा अरवल, शेखपुरा, लखीसराय, मधुबनी, समस्तीपुर, सिवान, सारण व गोपालगंज आदि जिलों की सैकड़ों चावलमिलों पर करीब 90 करोड़ रुपए बकाया हैं.

बिहार में चावलमिलों की धांधली पर रोक लगाने में सरकार बिलकुल नाकाम रही?है. बिहार महालेखाकार ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि धान को ले कर मिलमालिकों ने सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाया है. साल 2011-12 में मिलमालिक 434 करोड़ रुपए का धान दबा कर बैठ गए और उस के बाद के साल में 929 करोड़ रुपए के धान की हेराफेरी कर के सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया. इस के बाद भी सरकार ने मिलमालिकों के खिलाफ कार्यवाही करने में जरा सी भी दिलचस्पी नहीं ली.

बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाइज कारपोरेशन लिमिटेड से आरटीआई एक्टीविस्ट शिव प्रकाश राय ने इस बारे में पूरी सूचना मांगी थी. आरटीआई के तहत सूचना मिली कि साल 2011-12 में जिन मिलों पर धांधली का आरोप लगा था, उन्हीं मिलों को साल 2012-13 में भी करोड़ों रुपए के धान दे दिए गए. इतना ही नहीं केवल 50 हजार रुपए की गारंटी रकम पर ही 3 से 6 करोड़ रुपए के धान चावलमिलों को सौंप दिए गए. मिलों को धान देने के बारे में नियम यह है कि भारतीय खाद्य निगम मिलों से एग्रीमेंट करता है, जिस के तहत मिलमालिक पहले निगम को 67 फीसदी चावल देते हैं, जिस के बदले में उन्हें रसीद मिलती है. उस रसीद को दिखाने के बाद ही निगम द्वारा मिलों को 100 फीसदी धान दिया जाता है.

आरटीआई एक्टीविस्ट शिवप्रकाश कहते हैं कि उन्होंने साल 2012 में सरकार को धांधली के बारे में पूरे कागजात सौंप दिए थे. उस के बाद भी चावलमिलों के मालिकों के खिलाफ कानूनी कदम नहीं उठाए गए. अगर मिलमालिकों और धान का लेनदेन करने वाले अफसरों की पिछली 3-4 सालों के दौरान बनाई गई दौलत की बारीकी से जांच की जाए तो उन की संपत्ति आसमान पर पहुंची मिलेगी.

न हुए हम तेरे, ले कर भी फेरे

जैसेजैसे स्नेहा के विवाह के दिन नजदीक आते जा रहे थे, वैसेवैसे उस की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं. अतीत के भोगे सुनहरे पल उसे बारबार कचोट रहे थे. विवाह के दिन तक वह उन पलों से छुटकारा पा लेना चाहती थी, लेकिन सौरभ की यादें थीं कि विस्मृत होने के बजाय दिनबदिन और गहराती जा रही थीं. बीते सुनहरे पल अब नुकीले कांटों की तरह उस के दिलदिमाग में चुभ रहे थे.

मातापिता भी स्नेहा के मन के दर्द को समझ रहे थे, लेकिन उन के सामने स्नेहा के दूसरे विवाह के अलावा कोई और रास्ता भी तो नहीं था. स्नेहा की उम्र भी अभी महज 23 साल थी. उसे अभी जिंदगी का लंबा सफर तय करना था. ऐसे में उस के मातापिता अपने जीतेजी उसे तनहाई से उबार देना चाहते थे. यही सोच कर उन्होंने स्नेहा की ही तरह अपने पूर्व जीवनसाथी के बिछुड़ जाने की वेदना झेल रहे एक विधुर व्यक्ति से उस का विवाह तय कर दिया.

शादी जो असफल रही

कई मामलों में औरत दूसरा विवाह करने के बावजूद अपने पहले पति से पूरी तरह से नाता नहीं तोड़ पाती है. दूसरी बार तलाक की शिकार 32 साल की देवयानी बताती हैं, ‘‘दूसरा विवाह मेरे लिए यौनशोषण के अलावा कुछ नहीं रहा. मेरा पहला विवाह महज इसलिए असफल रहा था, क्योंकि मेरे पूर्व पति नपुंसक थे और संतान पैदा करने में नाकाबिल. विवाह के बाद मेरे दूसरे पति ने पता नहीं कैसे यह समझ लिया था कि सैक्स मेरी कमजोरी है. इसीलिए अपना पुरुषोचित अहं दिखाने के लिए वे मेरा यौनशोषण करने लगे. इस से उन के अहं की तो संतुष्टि होती थी, लेकिन वे मेरे लिए मानसिक रूप से बहुत ही पीड़ादायक सिद्ध होते थे.

‘‘मुझे लगा कि उन से तो मेरा पहला पति ही बेहतर था, जो संवेदनशील तो था. मेरे मन के दर्द और प्यार को समझता तो था. पहले पति से तलाक और दूसरे से विवाह का मुझे काफी पछतावा होता था, लेकिन अब मैं कुछ कर नहीं सकती थी. इसी बीच एक दिन शौपिंग के दौरान मेरी मुलाकात अपने पहले पति से हुई. तलाक की वजह से वे काफी टूटे से लग रहे थे. चूंकि उन की इस हालत के लिए मैं खुद को कुसूरवार समझती थी, इसलिए उन से मिलने लगी. मेरे दूसरे पति चूंकि शुरू से शक्की थे, इसलिए मेरा पीछा करते या निगरानी कराते. मेरे दूसरे पति का व्यवहार इस हद तक निर्मम हो गया कि मुझे एक बार फिर अदालत में तलाक के लिए हाजिर होना पड़ा. अब मैं ने दृढ़संकल्प कर लिया है कि तीसरा विवाह कभी नहीं करूंगी. सारी जिंदगी अकेले ही काट दूंगी.’’

नमिता बताती है, ‘‘जब मुझे शादी का जोड़ा पहनाया गया तथा विवाह मंडप में 7 फेरों के लिए खड़ा किया गया, तो मेरे मन में दूसरे विवाह का उत्साह कतई नहीं था. फूलों से सजे पलंग पर बैठी मैं जैसे एकदम बेजान थी. इन्होंने जब पहली बार मेरा स्पर्श किया तो शुभम की यादों से चाह कर भी मुक्त नहीं हो पाई. इसलिए दूसरे पति को अंगीकार करने में मुझे काफी समय लगा.’’

यह समस्या बहुत सी महिलाओं की

यह समस्या सिर्फ स्नेहा, देवयानी व नमिता की ही नहीं है, बल्कि उन सैकड़ोंहजारों महिलाओं की है, जो वैधव्य या तलाक अथवा पति द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद दोबारा विवाह करती हैं. पहला विवाह उन की जिंदगी में एक रोमांच पैदा करता है. किशोरावस्था से ही मन में पलने वाले विवाह की कल्पना के साकार होने की वे सालों प्रतीक्षा करती हैं. पति, ससुराल और नए घर के बारे में वे न जाने कितने सपने देखती हैं. लेकिन वैधव्य या तलाक से उन के कोमल मन को गहरा आघात पहुंचता है. दूसरा विवाह उन के लिए तो लंबी तनहा जिंदगी को एक नए हमसफर के साथ काटने की विवशता में किया गया समझौता होता है. इसलिए दूसरे पति, उस के घर और परिवार के साथ तालमेल बैठाने में विधवा या तलाकशुदा औरत को बड़ी कठिनाई होती है.

जयपुर के एक सरकारी विभाग में नौकरी करने वाली स्मृति को यह नौकरी उन के पति की मौत के बाद उन की जगह मिली थी. स्मृति ने बताया, ‘‘यह विवाह मेरी मजबूरी थी. चूंकि पति के दफ्तर वाले मुझे बहुत परेशान करते थे. वे कटाक्ष कर इसे सरकार द्वारा दान में दी गई बख्शीश कह कर मेरी और मेरे दिवंगत पति की खिल्ली उड़ाते थे. मेरे वैधव्य और अकेलेपन के कारण वे मुझे अवेलेबल मान कर लिफ्ट लेने की कोशिश करते, लेकिन जब मैं ने उन्हें किसी तरह की लिफ्ट नहीं दी, तो वे अपने या किसी और के साथ मेरे झूठे संबंधों की कहानियां गढ़ते. वे दफ्तर में अपने काम किसी न किसी बहाने मेरे सिर मढ़ देते और बौस से मेरी शिकायत करते कि मैं दफ्तर में अपना काम ठीक से नहीं करती हूं. बौस भी उन्हीं की बात पर ध्यान देते. ऐसे में मुझे लगा दूसरा विवाह कर के ही इन परेशानियों से बचा जा सकता है.

‘‘संयोगवश मुझे एक भला आदमी मिला, जो मेरा अतीत जानते हुए भी मुझे सहर्ष स्वीकारने को राजी हो गया. हम दोनों अदालत में गए, जरूरी खानापूर्ति की और जब विवाह का प्रमाणपत्र ले कर बाहर निकले, तो एहसास हुआ कि मैं अब विधवा नहीं, सुहागिन हूं. पर सुहागरात का कोई रोमांच नहीं हुआ. वह दिन आम रहा और रात भी वैसी ही रही जैसी आमतौर पर विवाहित दंपतियों की रहती है. बस, खुशी इस बात की थी कि अब मैं अकेली नहीं हूं. घर में ऐसा मर्द है जो पति है. इस के बाद दफ्तर वालों ने परेशान करने की कोशिश करना खुद छोड़ दिया.’’

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

मनोचिकित्सक डा. शिव गौतम कहते हैं, ‘‘दरअसल, दूसरे विवाह की मानसिक तौर पर न तो पुरुष तैयारी करते हैं और न ही महिलाएं. दोनों ही उसे सिर्फ नए सिरे से अपना टूटा परिवार बसाने की एक औपचारिकता भर मानते हैं, जिस का खमियाजा दोनों को ही ताजिंदगी भुगतना पड़ता है.

‘‘दूसरे पति को हमेशा यह बात कचोटती है कि उस की पत्नी के शरीर को एक व्यक्ति यानी उस का पहला पति भोग चुका है, उस के तन और मन पर राज कर चुका है. उस की पत्नी का शरीर बासी खाने की तरह उस के सामने परोस दिया गया है. इसलिए ऐसे बहुत से पति दूसरा विवाह करने वाली पत्नी के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं.’’

महिलाओं की मानसिक समस्याओं का निदान करने वाली मनोचिकित्सक डा. मधुलता शर्मा ने बताया, ‘‘मेरे पास इस तरह के काफी मामले आते हैं. पति दूसरा विवाह करने वाली पत्नी को मन से स्वीकार नहीं कर पाता. उसे हमेशा अपनी पत्नी के बारे में शक बना रहता है खासकर तब जब उस की पत्नी तलाकशुदा हो. उसे लगता है कि उस के साथ विवाह के बावजूद उस की पत्नी का गुप्त संबंध अपने पूर्व पति से बना हुआ है. उस की गैरमौजूदगी में पत्नी अपने पूर्व पति से मिलतीजुलती है. उस का शक इस हद तक पहुंच जाता है कि उस की निगरानी करना शुरू कर देता है.’’

खुद को विवाह के लिए तैयार करें

डा. मधुलता के यहां एक काफी मौडर्न महिला सुनैना से मुलाकात हुई. उस ने अब तक 4 शादियां कीं और अब 5वीं शादी की तैयारी में थी. सुनैना ने हंसते हुए बताया, ‘‘जब मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी, तब मातापिता ने शादी कर दी. लेकिन डेढ़ साल बाद हमारा तलाक हो गया. दूसरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. तीसरे व चौथे पति से भी तलाक हो गया. लेकिन चारों पतियों के साथ मैं ने यादगार समय बिताया. जिन तीनों पतियों ने मुझे तलाक दिए, आज भी मेरी उन से अच्छी दोस्ती है. अकसर हम लोग मिलते रहते हैं. अब मैं ने 5वां पति तलाश लिया है. मेरे मन में इस विवाह के प्रति वही उत्साह, रोमांच और उत्सुकता है, जो पहले विवाह के समय थी. इस बार हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड जाएंगे.’’

सुनैना ने पुनर्विवाह के बारे में अपना मत कुछ इस तरह व्यक्त किया, ‘‘शादी दूसरी हो या तीसरी या फिर चौथी या 5वीं, खास बात यह है कि आप खुद को विवाह के लिए इस तरह तैयार कीजिए जैसे आप पहली बार विवाह करने जा रही हैं. आप के नए पति को भी इस से मतलब नहीं होना चाहिए कि आप विवाह के अनुभवों से गुजर चुकी हैं. दरअसल, वह तो बस इतना चाहता है कि आप उस के साथ बिलकुल नईनवेली दुलहन की तरह पेश आएं.’’

गौरतलब है कि कम उम्र से ही लड़कियां अपने पति, ससुराल और सुहागरात की जो कल्पनाएं और सपने संजोए रहती हैं, वे बड़े ही रोमांचक होते हैं. लेकिन विवाह के बाद तलाक व वैधव्य के हादसे से गुजर कर उसे जब दोबारा विवाह करना पड़ता है, तो उस में पहले विवाह का सा न तो खास उत्साह रहता है, न रोमांच.

ऐसा क्यों होता है

एक ट्रैवेल ऐजैंसी में कार्यरत महिला प्रमिला ने बताया, ‘‘15-16 साल की उम्र से ही लड़कियां अपने पति और घर के बारे में सपने देखना शुरू कर देती हैं. वे सुहागरात के दौरान अपना अक्षत कौमार्य अपने पति को बतौर उपहार प्रदान करने की इच्छा रखती हैं. इसलिए अधिकतर लड़कियां अपने बौयफ्रैंड या प्रेमी को चुंबन की हद तक तो अपने शरीर के अंगों का स्पर्श करने की इजाजत देती हैं, लेकिन कौमार्य भंग करने की इजाजत नहीं देतीं. साफ शब्दों में कह देती हैं कि यह सब तुम्हारा ही है, लेकिन इसे तुम्हें विवाह के बाद सुहागरात को ही सौंपूंगी.

‘‘लेकिन दूसरी बार विवाह करने वाली औरत के पास अपने दूसरे पति को देने के लिए ऐसा उपहार नहीं होता. अगर दूसरा पति समझदार हुआ, तो उस के मन में यह आत्मविश्वास पैदा कर सकता है कि तुम्हारा पिछला जीवन जैसा भी रहा हो, लेकिन मेरे लिए तुम्हारा प्रेम ही कुंआरी लड़की है. मेरे दूसरे पति मनोज ने यही किया था. उस ने विवाह को जानबूझ कर 6 महीने के लिए टाला और इस दौरान मेरे प्रति अपना प्रेम प्रगाढ़ करता रहा. हम लोग अकसर डेटिंग पर जाते. वह मेरे साथ प्रेमी का सा व्यवहार तो करता, लेकिन शारीरिक संबंध की बात न करता. इसीलिए कभीकभी तो मुझे उस के पुरुषत्व पर शक होने लगता.

‘‘संभवतया उस ने मेरे शक को भांप लिया था, इसलिए एक दिन वह मुझे गोवा ले गया. समुद्र के किनारे हम प्रेमियों की तरह एकदूसरे के साथ प्रेम करते रहे. वह बोला कि प्रमिला, मैं इस समय चाहूं तो तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता हूं और तुम मना भी नहीं कर सकतीं, लेकिन मैं चाहता हूं कि विवाह के पहले तुम से उसी स्थिति में आ जाऊं, जिस में तुम अपने पहले विवाह के समय थीं.

‘‘मनोज की इस बात ने मेरे आत्मविश्वास को काफी बल दिया. उस का मानना था कि औरत हमेशा तनमन से अपने पति के प्रति समर्पित रहती है, क्योंकि विवाह के बाद उस का संबंध सिर्फ अपने पति से रहता है. और सचमुच मनोज ने 6 माह के दौरान मेरे मन को तलाकशुदा के बजाय कुंआरी लड़की बना दिया था. सुहागरात के समय मैं अपना कौमार्य किसी और को उपहारस्वरूप दे चुकी थी, लेकिन मनोज के साथ सब कुछ नयानया तथा रोमांचकारी लग रहा था.’’

फर्ज मातापिता का

मनोवैज्ञानिक डा. मधुलता बताती हैं, ‘‘औरत 2 बार विवाह करे या 3 बार, असली बात उस माहौल की है, जिस में उसे दूसरी या तीसरी बार विवाह के बाद जिंदगी गुजारनी होती है. यह बात सही है कि पहले पति की मीठीकड़वी यादों से वह दूसरे विवाह के समय खुद को आजाद नहीं कर पाती. ऐसे में उस के मातापिता का फर्ज बनता है कि दूसरे विवाह के पहले ही वे उसे मानसिक रूप से तैयार करें, विवाह के प्रति उस के मन में उत्साह पैदा करें. लेकिन ऐसे मामलों में अकसर मातापिता तथा परिवार के अन्य लोग पहले से ही ऐसा माहौल तैयार कर देते हैं गोया लड़की का विवाह वे महज इसलिए कर रहे हैं ताकि उस का घर बस जाए और उसे जिंदगी अकेले न काटनी पड़े. यह व्यवहार उस के मन में निराशा पैदा करता है.’’

दूसरेतीसरे विवाह की स्थिति वैधव्य की वजह से उपजी हो या तलाक के कारण, परिवार वालों को चाहिए कि बेटी के पुनर्विवाह से पूर्व, विवाह के बाद में भी उस के साथ ऐसा ही स्नेहपूर्ण व्यवहार करें, गोया वे अपना या बेटी का बोझ हलका नहीं कर रहे, बल्कि समाज की इकाई को एक परिवार को प्रतिष्ठित सदस्य दे रहे हैं.

ऐसे मामलों में सगेसंबंधियों और परिचितों का भी कर्तव्य बनता है कि वे पुनर्विवाह के जरीए जुड़ने वाले पतिपत्नी के प्रति उपेक्षा का भाव न रख कर जहां तक हो सके अपनी रचनात्मक भूमिका निभाएं. विधवा या तलाकशुदा महिला का पुनर्विवाह मौजूदा वक्त की जरूरत है. इस से औरत को सामाजिक व माली हिफाजत तो मिलती ही है, साथ ही वह चाहे तो अतीत को भुला कर खुद में वसंत के भाव पैदा कर के दूसरे विवाह को भी प्रथम विवाह जैसा ही उमंगों से भर सकती है.

न्यूमैटिक प्लांटर के बारे में जानते हैं आप

यह मशीन देखने में सीडड्रिल मशीन जैसी ही लगती है. इस यंत्र से सभी प्रकार के बीजों की बोआई सफलतापूर्वक कर सकते हैं. इसे मक्का, मटर, मूंगफली, बाजरा, सूरजमुखी, सोयाबीन, चना व कपास वगैरह के बीज बोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस मशीन से बीजों का अंतर रखने के लिए पौधे से पौधे की दूरी तय रहती है. इस मशीन से एक ही बार में एक से ज्यादा फसलों की बोआई की जा सकती है.

इस मशीन में सेंट्रीफ्यूगल ब्लोअर लगा होता है. यह ब्लोअर हवा के दबाव से बीज को उठा कर बीज बोने की प्रकिया पूरी करता है. बीज की दर आप अपनी मनचाही मात्रा के अनुसार तय कर सकते हैं. इस न्यूमैटिक प्लांटर को ट्रैक्टर के पीछे जोड़ कर चलाया जाता है. इस मशीन को कुछ खास निर्माता ही बनाते हैं. हम आप को नेशनल न्यूमैटिक प्लांटर के बारे में कुछ खास जानकारी दे रहे हैं.

न्यूमैटिक प्लांटर की विशेषताएं

* इस से एक ही समय में एक ही जगह एक ही बीज गिरता है. छूटने या डबल बीज गिरने की गुंजाइश न के बराबर होती है.

* बोआई के समय बीज को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.

* बोआई के दौरान बीजों के बीच सही दूरी होने से फसल अच्छे तरीके से होती है, नतीजतन अच्छी पैदावार मिलती है.

* बीज की सही गहराई पर बोआई करने से, फसल की बढ़वार एकसमान होती है.

* डेप्थ व्हील व प्रेस व्हील से बीज की गहराई को नियंत्रित किया जा सकता है.

* इस मशीन का इस्तेमाल करने से मजदूरी में कमी आती है और बोआई में होने वाला खर्च कम होता है. साथ ही समय की बचत भी होती है.

* इस मशीन से आप 2, 4 या 6 लाइनों में अपनी मरजी के मुताबिक बोआई कर सकते हैं.

* इस के इस्तेमाल से कीमती बीजों की बचत होती है.

अधिक जानकारी के लिए नेशनल एग्रो इंडस्ट्रीज के फोन नंबरों : 91-161-2222041, 5087853, 4641299 और मोबाइल नंबर 91-8146101101 पर संपर्क कर सकते हैं.

सनी लियोन और आलोकनाथ साथ करेंगे काम

लोकप्रिय आलोकनाथ सनी लियोन के साथ एक विज्ञापन में नजर आएंगे. इस विज्ञापन में इनके साथ कॉमेडियन दीपक डोबरियाल भी होंगे. यह डिजिटल पब्लिक सर्विस ऐड है. तीनों को हाल ही में शूटिंग के दौरान एक साथ देखा गया. यह एंटी स्मोकिंग ऐड है.हालांकि इस शूट के बारे में डिटेल्स को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है. लेकिन सूत्रों से पता चला है कि सनी लियोन पहली बार हरियाणवी किरदार निभाती नजर आएंगी.  दीपक डोबरियाल इसमें मृत्युशैया पर पड़े शख्स का किरदार निभा रहे हैं जबकि आलोकनाथ कहानी में ट्विस्ट लेकर आएंगे. इस विज्ञापन में हल्के-पुल्के अंदाज में गंभीर संदेश देने की कोशिश की गई है. यह विज्ञापन जल्द ही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नजर आएगा.

गीतकार समीर ने बनाया अनोखा वर्ल्ड रिकॉर्ड

बॉलीवुड इंडस्ट्री के पॉपुलर गीतकार समीर अनजान का नाम हाल ही में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है. समीर को यह खिताब सबसे ज्यादा बॉलीवुड गाने लिखने के लिए दिया गया है. इस खिताब के साथ समीर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाले दुनिया के पहले गीतकार बन गए हैं.

मुंबई में आयोजित किए गए एक कार्यक्रम के दौरान समीर का नाम गिनीज बुक में जोड़ा गया. समीर पिछले 30 सालों से फिल्मों के लिए गाने लिख रहे हैं और उनकी लिस्ट में तमाम सुपर हिट सॉन्ग्स भी हैं. अपने इस फिल्मी करियर के सफर में वो करीब 650 फिल्मों में कुल मिलाकर 4000 से ज्यादा गाने लिख चुके हैं.

आज तक किसी और गीतकार ने यह आंकड़ा नहीं छुआ है. हांलांकि गिनीज बुक में ऐसी कोई कैटेगरी नहीं है, लेकिन टीम जब मुंबई में रिसर्च कर रही थी तो यह बात सामने आई कि समीर ने सबसे ज्यादा गाने लिखे हैं. तब एक नई कैटेगरी बनाई गई और समीर को सम्मानित किया गया.

घर सजाएं, सिंबल औफ लव से

वैलेंटाइन डे प्यार करने वालों के लिए एक खास दिन होता है. इस खास दिन पर अगर आप भी अपने समवन स्पैशल यानी अपने पार्टनर को कुछ स्पैशल अंदाज में सरप्राइज करना चाहती हैं और अपने स्वीट होम की हवा में प्यार की महक को बरकरार रखना चाहती हैं, तो अपने घर को रोमांस व प्यार की डैकोरेशन से इस तरह सजाएं कि आप का वैलेंटाइन डे खास बन जाए.

सिंबल औफ लव

हार्ट शेप गुब्बारे, गुलाब की पत्तियां, हार्ट शेप कुशंस, हार्ट शेप पिलो, गुलाब के फूलों का गुलदस्ता, हार्ट शेप फोटो फ्रेम जिस में हो आप के रोमांटिक पलों की एक खूबसूरत तसवीर. इन सभी चीजों को घर के हर कोने में सजाएं. लाल रंग प्यार का प्रतीक होता है. बैडरूम में लाल रंग की बैडशीट बिछाएं. उस पर हार्ट शेप कुशंस और पिलो सजाएं. बैडरूम की दीवार पर रैड रिबन से अपने वैलेंटाइन के लिए खूबसूरत सा लव मैसेज लिखें.

घर पर करें कैंडल लाइट डिनर

घर से बाहर भीड़भाड़ में कैंडल लाइट डिनर करने के बजाय आप अपने डाइनिंग टेबल पर कैंडल लाइट डिनर करते हुए एकदूसरे के साथ अंतरंग पल बिता सकते हैं. कैंडल लाइट डिनर के लिए टेबल को खास अंदाज में सजाने के लिए टेबल पर रैड व व्हाइट कलर का टेबल क्लौथ बिछाएं. टेबल को रोमांटिक वातावरण देने के लिए उस पर रैड व व्हाइट कैंडल्स लगाएं. खूबसूरत से फ्लौवर वास में रैड रोजेज का बुके सजाएं. चाहें तो ट्रांसपैरेंट ग्लास के बाउल में रोज की पेटल्स डाल कर फ्लोटिंग कैंडल्स भी सजा सकती हैं.

डिनर की क्रौकरी भी रैड ऐंड व्हाइट कलर की लें. एक ग्लास में रैड ऐंड व्हाइट कलर के नैपकिन को खूबसूरत स्टाइल में फोल्ड कर के टेबल पर रखें. यकीन मानिए, इस स्पैशल अरैंजमैंट को देख कर आप का पार्टनर खुद को आप के नजदीक आने से रोक नहीं पाएगा.

आप बाजार से एक कौफी मग ले कर अपनी दोनों की फोटो उस पर प्रिंट करा कर डाइनिंग टेबल पर रख सकती हैं. टेबल डैकोरेशन का यह अंदाज उन्हें व्यक्तिगत छुअन का एहसास देगा.

ड्राइंगरूम की सजावट

एक फोटो फ्रेम बनवाएं, जिस में अलगअलग रैड हार्ट शेप पेपर पर आप अपने पार्टनर की खूबियों का बखान करें. इस फोटो फ्रेम को आप ड्राइंगरूम में सजा सकती हैं. फोटो फ्रेम के जरीए अब आप के दिल का मैसेज आप के समवन स्पैशल तक पहुंचेगा, तो आप का यह वैलेंटाइन खास बन जाएगा. ड्राइंगरूम में आप कलरफुल फ्लोटिंग हार्ट बैकड्रौप लटका सकती हैं. जब हवा के साथ ये बैकड्रौप लहराएंगे तो हवाओं में प्यार की खुशबू फैल जाएगी. आप चाहें तो रंगबिरंगे लिफाफे में लवनोट्स लिख कर भी टांग सकती हैं.

ड्राइंगरूम में आप हार्ट शेप्ड रैड कलर की पेपर लैंटर्न लगा सकती हैं, जिस में से छन कर आती रोशनी आप के प्यार भरे माहौल को और भी रोमांटिक बना देगी.

अरुणिमा सिन्हा: हौसले ने पहुंचाया शिखर पर

दुनिया की सब से ऊंची पर्वत चोटी तक पहुंचने का सपना देखने की हिम्मत तंदुरुस्त लोगों की भी नहीं होती, पर यह सपना देखा एक पैर से विकलांग मगर बुलंद हौसलों वाली अरुणिमा सिन्हा ने. उस ने अपने शरीर की इस कमजोरी को अपने मजबूत इरादों के मार्ग में आड़े नहीं आने दिया. उस ने अपने आंसुओं को अपनी ताकत बनाया और एक छोटे से शहर से उठ कर माउंट ऐवरैस्ट पर फतह हासिल की नकली पैर के साथ.

अरुणिमा सिन्हा माउंट ऐवरैस्ट पर पहुंचने वाली पहली विकलांग लड़की है. महज 26 साल की उम्र में वह पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित की जा चुकी है. यहां तक पहुंचने का सफर उस के लिए आसान नहीं रहा है.

सुलतानपुर के अंबेडकर नगर में रहने वाली अरुणिमा तब केवल 4 साल की थी, जब उस के पिता की मौत हो गई थी, जो आर्मी में थे. बड़ी मुश्किल से उस की मां को स्वास्थ्य विभाग में सुपरवाइजर की नौकरी मिली. अपनी बड़ी बहन के साथ अरुणिमा स्कूल जाने लगी. मगर उस का पढ़ाई से ज्यादा खेलकूद में मन लगता था. उसे फुटबौल और वौलीबौल खेलना पसंद था. वह खिलाड़ी बनना चाहती थी. इसलिए दुनिया की परवाह न कर अपने पैशन को कायम रखा और फिर एक दिन नैशनल प्लेयर बन गई.

अरुणिमा के टेलैंट को पूरा सम्मान नहीं मिला, तो उस ने नौकरी करने की सोची. मगर जनरल कैटेगरी में नौकरी पाना भी आसान नहीं होता. अब तक वह कानून की पढ़ाई कर चुकी थी. उस के जीजा आर्मी में थे. अत: उन की सलाह पर अरुणिमा ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की परीक्षा दी.

उस रात ने जिंदगी बदल दी

कैरियर बनाने के लिए अरुणिमा एक दिन लखनऊ से दिल्ली के लिए निकली. वह पद्मावत ऐक्सप्रैस के जनरल कंपार्टमैंट में थी. 11 अप्रैल, 2011 की काली रात आज भी अरुणिमा को पूरी तरह याद है. वह बताती है, ‘‘रात डेढ़ बजे के करीब डब्बे में कुछ लुटेरे घुस आए और फिर चाकू की नोक पर लोगों को लूटने लगे. एक लुटेरे ने मेरी चेन छीननी चाही. किसी ने उसे रोका नहीं. पर मेरे अंदर की प्लेयर स्पिरिट ने इस का प्रतिरोध किया. मैं ने उस का हाथ मरोड़ दिया. यह देख उस के साथी भी आ गए. एक ने मेरे गले पर हाथ डाला. मैं ने गरदन को झटका दिया तो उस के हाथ में चेन के बजाय शर्ट की कौलर आ गई. लुटेरा मुझे कौलर से पकड़ कर घसीटते हुए दरवाजे के पास ले गया. तभी उन में से एक ने मुझे लात मारी और ट्रेन से नीचे फेंक दिया. उसी समय दूसरे ट्रैक पर ट्रेन आ गई. मैं उस से टकरा कर नीचे गिट्टियों पर गिर गई. दोनों ट्रेनें गुजरती रहीं. न जाने कितने पहिए मेरे पैर के ऊपर से गुजर गए.

‘‘बाद में हाथ नीचे रख कर मैं ने उठने का प्रयास किया तो देखा कि मेरा पैर कट चुका था. थाई को उठाया तो पैर जींस में लटक गया. बस थोड़े से मांस ने उसे मेरे शरीर से जोड़े रखा था. खून की धारा बह रही थी. दूसरे पैर की हड्डियां भी टूट चुकी थीं. मैं पूरी रात ट्रैक पर पड़ी चिल्लाती रही, इतना कि आंखों से दिखना भी बंद हो गया. रात भर पटरियों से ट्रेनें गुजरती रहीं. पटरी और मेरे बीच कुछ ही इंच का फासला था. मैं स्वयं को पटरी से दूर करना चाहती थी पर इतनी ताकत मुझ में नहीं रही थी.

‘‘ब्रेन कौंशस था पर बौडी में कोई मूवमैंट नहीं था. मैं बस यही सोचती रही कि खुद को कैसे बचाऊं. ‘‘सुबह 7 बजे के करीब गांव वालों ने मुझे देखा तो उठा कर डिस्ट्रिक्ट हौस्पिटल, बरेली ले गए. वहां डाक्टर आपस में बातें कर रहे थे कि हमारे पास तो एनेस्थीसिया के इंजैक्शन नहीं हैं, फिर ब्लड भी नहीं है. इलाज कैसे शुरू करें? मैं देख नहीं सकती थी पर सुनाई सब कुछ दे रहा था. जाने कहां से मेरे अंदर हिम्मत आई और मैं ने कहा कि सर, पूरी रात मैं ऐसी हालत में ट्रैक पर पड़ी रही. उस दर्द को बरदाश्त किया. फिर अब तो आप मेरे भले के लिए इसे काटेंगे. अत: मैं दर्द सह लूंगी. मेरी बात का असर हुआ. तुरंत डाक्टरों ने मुझे खून चढ़ा कर बिना एनेस्थीसिया का इंजैक्शन लगाए मेरा पैर काट दिया. आज भी मैं उस दर्द को महसूस करती हूं.

‘‘फिर जब बात मीडिया में आई कि मैं नैशनल प्लेयर हूं, तो मुझे लखनऊ ट्रामा सैंटर में भरती कराया गया. वहां से तत्कालीन स्पोर्ट्स मिनिस्टर अजय माकन द्वारा मुझे दिल्ली के एम्स में भिजवाया गया. मैं वहां 4 महीने एडमिट रही. मेरी रीढ़ की हड्डी में 3 फ्रैक्चर थे. एक पैर काट दिया गया था और दूसरी टांग में भी रौड लगाई गई थी. ‘‘थोड़ी ठीक हुई तो हौस्पिटल में ही न्यूज पढ़ा कि अरुणिमा के पास टिकट नहीं था, इसलिए वह ट्रेन से कूद गई थी. घर वालों ने इस का खंडन किया तो खबर आई कि अरुणिमा तो आत्महत्या करने गई थी. सोचने वाली बात है कि जिस लड़की का पैर कट गया, जो लड़की व्हीलचेयर पर है और नहीं जानती कि वह इस से कभी छुटकारा पाएगी भी या नहीं, उस पर ऐसे इलजाम लगें तो उस की मानसिक स्थिति क्या होगी? ‘‘हम एक मध्यवर्गीय फैमिली से थे और सिस्टम में बहुत हाई लैवल पर बातें हो रही थीं. हम अपनी सचाई चिल्लाचिल्ला कर बता रहे थे, लेकिन कोई नहीं सुन रहा था. पर कहते हैं न, जहां चाह होती है वहां राह भी मिल ही जाती है.

‘‘मैं ने सोचा कि ठीक है, आज आप का दिन है. जितना चाहे बोलो. एक दिन मेरा भी समय आएगा. तब मैं साबित कर दूंगी कि मैं क्या हूं. एक दरवाजा बंद होता है तो 10 नए खुल जाते हैं. हौस्पिटल के बैड पर मैं ने सोचा कि अब मुझे वौलीबौल नहीं, लाइफ का सब से टफ गेम खेलना है और फिर मैं ने माउंटेनियरिंग को चुना. पर सोचने और करने में बहुत अंतर होता है. इस कार्य के लिए सही गाइडैंस और स्पौंसरशिप मिलनी जरूरी थी. जब मैं ने लोगों के सामने अपनी यह बात रखी कि मैं माउंटेनियरिंग करना चाहती हूं और माउंट ऐवरैस्ट पर चढ़ना चाहती हूं तो हर किसी ने यही कहा कि पागल हो गई है क्या? एक पैर नकली है, दूसरी टांग में भी रौड पड़ी है, रीढ़ की हड्डी में भी फ्रैक्चर्स हैं, ऐसे में माउंटेनियरिंग? चुपचाप नौकरी कर जीवनयापन करो.

‘‘लोगों की सब से बड़ी प्रौब्लम यह है कि वे फिजिकली देखते हैं, मगर किसी के मन में क्या चल रहा है, यह नहीं देखते. पर मैं हिम्मत नहीं हार सकती थी. कैंसर को मात दे कर फिर से क्रिकेट के मैदान में जौहर दिखाने वाले क्रिकेटर युवराज सिंह से प्रेरणा मिली. मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझ पर दयादृष्टि डाले. मैं अपनी पुरानी जिंदगी वापस चाहती थी. वैसे भी खुद के सब से बड़े प्रेरणास्रोत तो हम खुद ही होते हैं. जिस दिन किसी मकसद को पाने के लिए हमारा मन जाग जाए, तो फिर कोई नहीं रोक सकता. मेरा परिवार तो मेरी बैकबोन था ही.

‘‘आमतौर पर नकली पैर के साथ चलने का आदी होने में एक विकलांग व्यक्ति को महीनों या फिर कभीकभी साल भी लग जाते हैं, मगर करीब 4 माह हौस्पिटल में रहने के बाद मैं बाहर निकली तो सीधी माउंट ऐवरैस्ट पर चढ़ने वाली एशिया की पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से मिलने जमशेदपुर पहुंच गई. उस वक्त मेरे पैर के टांके भी नहीं कटे थे. मेरे बारे में सब कुछ जान और देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए. वे बोलीं कि अरुणिमा, तुम ने ऐसी हालत में माउंट ऐवरैस्ट जैसे दुरूह पहाड़ पर चढ़ने के बारे में सोचा यानी अपने अंदर तो ऐवरैस्ट पहले ही फतह कर लिया. अब तो सिर्फ लोगों को दिखाने भर के लिए ऐवरैस्ट पर चढ़ना बाकी है.

‘‘परिवार को छोड़ कर बछेंद्री बाहर की पहली ऐसी महिला थीं, जिन्होंने मुझ पर भरोसा जताया था. मुझे बहुत खुशी हुई. मैं जंग में उतरने को तैयार हो गई थी. मेरे हौसले को भाई ओमप्रकाश और बछेंद्री पाल के सहयोग से उड़ान मिलने वाली थी. सफलता के लिए मैं ने जख्मों को सूखने नहीं दिया, रिसने दिया ताकि मंजिल हमेशा याद आती रहे.’’

प्रशिक्षण का दौर

ऐवरैस्ट पर चढ़ने की अनुमति पाने के लिए किसी मान्यताप्राप्त प्रशिक्षण केंद्र से मैडिकली अप्रूव्ड सर्टिफिकेट का मिलना जरूरी होता है जिस में यह भरोसा दिलाया गया हो कि ऐवरैस्ट की चढ़ाई के लिए यह व्यक्ति योग्य है. इसलिए अरुणिमा ने माउंटेन क्लाइंबिंग के मशहूर और मान्यताप्राप्त प्रशिक्षण केंद्र ‘नेहरू इंस्टिट्यूट औफ माउंटेनियरिंग’ से 28 दिनों का बेसिक कोर्स किया, जिस में पहाड़ों की भौतिक दशाओं, सहज क्लाइंबिंग के तरीकों, औक्सीजन सिलैंडर के प्रयोग से जुड़ी सावधानियों सहित और बहुत सी जानकारी दी गई. करीब डेढ़ साल तक अरुणिमा ने बछेंद्री पाल के मार्गदर्शन में क्लाइंबिंग की बारीकियां जानीं. उस ने टाटा स्टील ऐडवैंचर फाउंडेशन द्वारा संचालित ‘ईको ऐवरैस्ट ऐक्सपैडिशन ग्रुप, उत्तरकाशी’ जौइन किया.

शुरूशुरू में अरुणिमा को काफी परेशानी होती थी. वह कहती है, ‘‘शुरुआत में कई दफा ऐसे लमहे भी आए जब मैं सामान्य लोगों के साथ कंपीट नहीं कर पाती थी. ऊपर चढ़ने के क्रम में मेरी टांग, जिस में रौड पड़ी थी, में स्वैलिंग आ जाती और दूसरे पैर पर दबाव पड़ने से ब्लड निकलने लगता. घाव नए थे. कई दफा छाले भी पड़ जाते. मैं ने प्रशिक्षण के दौरान अपनी टांग व पैर की तरफ देखना छोड़ दिया था. कैंप में पहुंच कर ही घावों को साफ करती.

‘‘एक समय वह भी था, जब सामान्य लोग जो दूरी 10-15 मिनट में पूरी कर लेते, मैं उसे पूरा करने के लिए 2-3 घंटों का वक्त लगाती. वजन ले कर चढ़ नहीं पाती. तब सोचती कि कहां तो मेरा सपना ऐवरैस्ट फतह करने का है और कहां मैं उन के साथ कदम मिला कर भी नहीं चल पा रही. फिर खुद से वादा किया कि एक दिन मैं इन सब से पहले पहुंच कर दिखाऊंगी.

‘‘मैं धीरेधीरे वजन उठा कर चलने लगी. पहले 1 किलोग्राम, फिर 2 किलोग्राम. धीरेधीरे मैं 14-15 किलोग्राम वजन उठा कर आसानी से आगे बढ़ने लगी. प्रशिक्षण के दौरान मुझे 35 किलोग्राम तक वजन उठाना था. 8 माह के बाद वाकई मैं पूरा वजन उठा कर बेस कैंप से दूसरों के साथ निकलती और सब से पहले टौप पर पहुंच जाती. लोग पूछते कि मैडम क्या खाती हो?

 ‘‘इसी दौरान मैं ने सितंबर, 2011 में लद्दाख के माउंट चमसेर कांगड़ी की चढ़ाई की. 21,798 फुट ऊंचे इस पहाड़ की 21,110 फुट की दूरी तो तय हो गई, मगर खराब मौसम के कारण शिखर तक नहीं पहुंच सकी. इस के बाद प्रशिक्षण के दौरान ही ईस्टर्न नेपाल की आईलैंड चोटी (6,150 फुट) की चढ़ाई भी की.

‘फिटनैस का सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए भी मुझे खासी मेहनत करनी पड़ी. 10 दिनों तक स्वयं को प्रूव करने के प्रयास में लगी रही. भारी वजन उठा कर चढ़ाई कर के दिखाया कि मैं यह काम कर सकती हूं. बड़ी मुश्किल से मुझे स्वीकृति मिली. बाद में इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आईएमएफ) ने भी हिमालय पर चढ़ने की इजाजत दे दी. ‘‘जब पहली दफा शेरपा (गाइड) ने मेरे पैर को देखा तो मेरा साथ देने के लिए साफ मना कर दिया. उसे लग रहा था कि मैं एक सुसाइड मिशन पर हूं. काफी समझाने पर बड़ी मुश्किल से वह मेरा गाइड बनने को तैयार हुआ. हमारे अभियान को टाटा स्टील द्वारा स्पौंसरशिप भी मिल गई थी.’’

ऐवरैस्ट फतह

अरुणिमा ने आसानी से माउंट ऐवरैस्ट पर फतह हासिल नहीं की. उस का सफर काफी जद्दोजहद भरा रहा. 31 मार्च, 2013 को वह ऐवरैस्ट के लिए निकली. 6 लोग और भी थे. टीएसएएफ इंस्ट्रक्टर सुसेन महतो भी इस अभियान में साथ थे, जो माउंट चमसेर की चढ़ाई के दौरान भी थे.

अरुणिमा के लिए प्रोस्थैटिक लैग (कृत्रिम पैर) का निर्माण राकेश कुमार श्रीवास्तव ने किया था. उन्होंने इसे डोनेट किया था. यह बहुत महंगे वाली प्रोस्थैटिक लैग नहीं थी, मगर अरुणिमा ने इसे पहन कर ही अपना अभियान पूरा किया. अच्छी क्वालिटी वाली महंगी प्रोस्थैटिक लैग्स क्व40-50 लाख से कम में नहीं मिलतीं. जबकि अरुणिमा के पास इतने पैसे नहीं थे. चढ़ने के क्रम में प्रोस्थैटिक लेग काफी समस्या पैदा कर रही थी. इस की पकड़ बारबार ढीली पड़ जाती. ग्लब्स निकाल कर उसे वापस फिट करना पड़ता. मगर -45 से -50 तापमान में यह काम आसान नहीं, क्योंकि बर्फ में हाथ जमने का डर रहता है. रौकी ऐरिया में तो वह सब से आगे होती, मगर आइस एरिया में आते ही हालत बिगड़ जाती. बर्फ में उस के पैर मुड़ जाते. इन परेशानियों की वजह से वह थोड़ा पिछड़ भी जाती. मगर उस ने अपने जज्बे को कभी गिरने नहीं दिया.

सफर के बारे में बताते हुए अरुणिमा कहती है, ‘‘माउंट ऐवरैस्ट चढ़ाई के दौरान 4 कैंप पार कर समिट तक पहुंचना होता है. शुरुआती दौर में तो खानेपीने की चीजें रास्ते में मिल जाती हैं. स्पौंसरशिप देने वाली कंपनी भी खानेपीने का प्रबंध करती है और फिर कुछ लोग 1 से ज्यादा शेरपा साथ रखते हैं ताकि अधिक सामान साथ जा सके. बेस कैंप (17 हजार 500 फुट) तक दिक्कत नहीं होती. मगर उस के बाद 11 से 15 दिनों का सफर अपने बल पर तय करना पड़ता है. आप कितना सामान उठा पा सकते हैं यह आप को ही सोचना होगा. साधारणतया हमारे लिए औक्सीजन सिलैंडर 5 या 8 किलोग्राम के होते हैं उठाने जरूरी होते हैं. इन के अलावा 2-3 लिटर पानी, चौकलेट्स, मेवा वगैरह रखना भी जरूरी होता है. एक बार के मिशन में क्व50 से क्व60 लाख तक का खर्च आ जाता है. ‘‘कैंप 3 तक ज्यादा खतरे की बात नहीं होती, मगर उस के बाद की स्थिति खतरनाक होती है. साउथ कोल और समिट के बीच के हिस्से को डैथ जौन कहते हैं. यह 26 हजार फुट से ऊपर का एरिया होता है. यहां औक्सीजन की कमी होती है, जिस से क्लाइंबर का दम घुटने लगता है. इस क्षेत्र में यहांवहां डैड बौडीज नजर आ जाती हैं. एक बंगलादेशी क्लाइंबर, जिस से मैं पहले मिली थी, ने मेरे सामने ही दम तोड़ दिया. यही नहीं, वहां अन्य डैड बौडीज भी नजर आ रही थीं. अपनी आंखों से यह सब देखना और डैड बौडीज को लांघ कर आगे बढ़ना आसान नहीं. मैं भी डरने लगी कि कहीं मेरी औक्सीजन भी खत्म न हो जाए और मेरी भी यही स्थिति न हो जाए. मगर मैं ने तुरंत फिर से अपना हौसला दृढ़ किया कि नहीं, समिट पर पहुंच कर मुझे जिंदा लौटना है. फिर जैसा आप सोचते हैं, शरीर भी वैसे ही काम करने लगता है.

‘‘मैं आगे बढ़ी. हिलरी स्टेप के पास जब चोटी बिलकुल करीब होती है, शेरपा मुझे रोकते हुए बोला कि औक्सीजन खत्म होने वाली है, वापस चलो, जिंदा रही तो फिर ट्राई कर लेना. पर मैं अड़ गई और बोली कि नहीं जीवन में गोल्डन चांस कभीकभी ही मिलता है और उसे पकड़ कर रखना पड़ता है. ‘‘मुझे याद आने लगा, जब मां ने और एक दफा बछेंद्री मैम ने भी समझाया था कि जिंदगी में कभीकभी ऐसे हालात भी आते हैं जब फैसला सिर्फ आप का होता है. जहां भी हो, खड़े हो कर, हलका सा पीछे देखना और सोचना कि तुम 1-1 कदम चल कर यहां तक पहुंची हो. सिर्फ अपना एक कदम आगे बढ़ाना और देखना कि कुछ देर बाद तुम टौप पर होगी.

‘‘यह बात वीडियो की तरह मेरे दिमाग में चल रही थी और आंखों के आगे सिर्फ ऐवरैस्ट का टौप था. मैं ने तय किया कि मुझे आगे जाना ही है. मैं आगे बढ़ गई और करीब डेढ़ घंटे बाद मैं टौप पर थी. इतना ही नहीं, आज भी मैं जितनी बार बोलती हूं, वह एहसास महसूस करती हूं. हर तरफ बर्फ की सफेद चादर नजर आ रही थी. दिन के 10 बज कर 55 मिनट हुए थे. 21 मई का दिन था. मैं ने तिरंगा फहराया और फिर अपने आदर्श, विवेकानंद की कुछ तसवीरें लगाईं. मेरा मन कर रहा था कि मैं जोरजोर से चिल्ला कर कहूं कि मैं आज ‘टौप औफ द वर्ल्ड’ पर हूं. उन लोगों को जो सोचते हैं कि लड़की, उस पर मिडल क्लास, उस पर भी विकलांग या वे लोग जो एक बार हार कर दोबारा लड़ना नहीं चाहते, उन से चिल्लाचिल्ला कर कहूं कि आप सब कुछ कर सकते हो. विकलांगता दिमाग से होती है, शरीर से नहीं. यदि दिमाग से विकलांग हैं, तो नौर्मल हो कर भी आप कुछ नहीं कर सकते.

‘‘मैं ने शेरपा से कहा कि फोटो खींच लो. उस ने कहा कि अरुणिमा जल्दी चलो. औक्सीजन खत्म हो जाएगी. किसी तरह उस ने एक फोटो खींचा. मैं ने उस से फिर से इसरार किया कि भाई अब एक वीडियो भी बना ले. ‘‘8,848 मीटर की ऊंचाई पर जब औक्सीजन खत्म हो रही हो, ऐसे में मेरा यह कथन सुन कर वह चिल्ला पड़ा कि पागल हो गई है क्या तू? तू मर यहां, मैं जा रहा हूं. पर मैं अपना जनून कैसे छोड़ती? मैं तो 4-5 जोड़ी बैटरी, 2 कैमरे वगैरह ले कर पूरी तैयारी से आई थी. मैं जानती थी कि यदि मैं जिंदा वापस नहीं गई तो भी मेरा यह वीडियो मेरे देश तक पहुंचे. 11 अप्रैल, 2011 को मेरा ऐक्सीडैंट हुआ था और 21 मई, 2013 को मैं टौप औफ द वर्ल्ड पर थी. कैसे? मजबूत इरादों से. दिलोदिमाग में यह लक्ष्य जनून बन कर छा गया था. सोतेजागते, उठतेबैठते सिर्फ माउंट ऐवरैस्ट चोटी दिखती थी. किसी लक्ष्य के प्रति पागलपन ही आप को सफलता दिलाता है.

खैर, उस ने नानुकर कर के मेरा वीडियो बनाया. अब शेरपा ने कहा कि जल्दी नीचे भागो अरुणिमा. 10 बज कर 55 मिनट हो रहे थे.11 बजे के बाद कोई अटैप्ट करता है, तो उसे सुसाइड अटैप्ट कहते हैं. मैं तेजी से नीचे चली. मुश्किल से 50 कदम ही चली थी कि मेरी औक्सीजन खत्म हो गई. वैसे भी ज्यादातर मौतें नीचे आते वक्त ही होती हैं. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि क्या हालात रहे होंगे. एक पल ऐसा भी आया जब मैं सांस न ले पाने की वजह से तड़प रही थी. मैं बर्फ में मुंह दबा कर सांस लेने का प्रयास करने लगी. तब शेरपा ने कहा कि मुझे यकीन नहीं था कि तू ऐवरैस्ट फतह कर पाएगी. मगर तू ने किया. तो अब मैं चाहता हूं कि तू जिंदा वापस भी पहुंचे. चल अरुणिमा, उठ खड़ी हो जा.

‘‘पर मैं नीचे गिर गई. चाह कर भी खड़ी नहीं हो पा रही थी. दम ही नहीं था. फिर मैं ने पौजिटिव सोचा कि जब मैं रेल के ट्रैक पर 7 घंटे पड़ी रही, 49 ट्रेनें आईंगईं, फिर भी मैं जिंदा बची तो जरूर कोई न कोई इतिहास रचना है मुझे. तभी जिंदा बची हूं, तो फिर हिम्मत कैसे हार सकती हूं. n‘‘संयोग देखिए, उसी वक्त एक ब्रिटिश क्लाइंबर नीचे से ऊपर आ रहा था. उस के पास 2 औक्सीजन सिलैंडर थे, पर मौसम खराब होने की वजह से उस ने एक औक्सीजन सिलैंडर जो आधा औक्सीजन से भरा था फेंक दिया और दूसरे के साथ नीचे लौटने लगा, क्योंकि भारी वजन के साथ नीचे उतरना भी कठिन होता है. शेरपा औक्सीजन सिलैंडर को उठा लाया और मुझे लगा दिया. वह मुझे लकी बोलने लगा. मगर मैं लक से ज्यादा कर्म पर विश्वास करती हूं. मैं मानती हूं कि लक उसी का साथ देता है जिस के अंदर जीतने का जज्बा हो वरना बहाने ही बहाने शायद मैं भी बिना माउंट ऐवरैस्ट फतह किए लौट आती और कह देती कि औक्सीजन खत्म हो गई थी, तो कोई मुझ से पूछने नहीं आता. लेकिन क्या मैं स्वयं को समझा पाती?

‘‘खैर, मैं बहुत खुश थी. हील मारमार कर नीचे आ रही थी कि तभी मेरा नकली पैर पूरा निकल गया. ऐवरैस्ट पर तापमान -60 डिग्री तक डाउन हो जाता है. इस ठंड में मेरा हाथ नहीं हिल रहा था. पैर पहले से कटा हुआ था. दिमाग में यह बात आई कि कहीं अब हाथ भी काटना पड़ा तो क्या होगा? 3 स्टेज होती हैं- रैड, ब्लू और ब्लैक. हाथ रैड हो चुका था. ब्लैक होने पर काटना पड़ता. ‘मैं ने यह बात शेरपा से कही तो वह बोला कि हम जितना नीचे जाएंगे, उतना अच्छा होगा. मगर मेरी तो आंखों में आंसू ही आ गए. फिर मैं ने सोचा कि रोनेधोने से कुछ नहीं होगा. अत: फिर तुरंत आंसू पोंछ लिए. इस के बाद मैं ने एक हाथ से रोप को पकड़ा और दूसरे हाथ से नकली पैर को. फिर घिसटघिसट कर चलना शुरू किया. कुछ दूर आने पर रौक मिला. उस में घुसे. पैर को खोल कर सही किया, फिर नीचे चले.

‘‘कैंप 4 से समिट की दूरी लगभग 3,500 फुट है और इसे पार करने में लोग 16-17 घंटे का वक्त लेते हैं. मुझे 28 घंटे लगे. हर किसी ने मान लिया था कि अरुणिमा जिंदा नहीं लौटेगी. पर मैं जब वापस साउथ कोल पहुंची तो सब के चेहरे खिल उठे.’’ यह कहानी है उस हौसले की, जिस ने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया. अरुणिमा ने यह साबित कर दिया कि एक लड़की/महिला कोई फैसला कर ले तो फिर उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. अरुणिमा के पास जिंदगी ने 2 विकल्प छोड़े थे- या तो एक कमरे के किसी कोने में पड़ी रह कर अपने जीवन को कोसती या फिर जीवन की कठिनाइयों का सामना कर शिखर को छूने के लिए जमीनआसमान एक करती. अरुणिमा ने दूसरा विकल्प चुना और नतीजा सामने था. वह ‘टौप औफ द वर्ल्ड’ पर थी.

‘मिशन 7 समिट्स’ अभियान के तहत अब तक अरुणिमा एशिया, अफ्रीका, यूरोप और आस्ट्रेलिया की सब से ऊंची चोटियों- क्रमश: माउंट ऐवरैस्ट, किलिमंजारो और कोसियूज्को तक पहुंच चुकी है. अभी 3 देशों की चोटियां फतह करनी बाकी हैं. इस अभियान के अगले चरण हेतु अरुणिमा स्विट्जरलैंड ट्रेनिंग के लिए जा चुकी है ताकि साउथ अमेरिका का माउंट एकोंकागुआ फतह करने निकल सके. उस के इस अभियान को ‘ओर्लिकोन टैक्सटाइल्स इंडिया प्रा.लि. द्वारा स्पौंसरशिप भी मिल चुकी है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें