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धर्म संकट में सनीः एक तरफ बेटा, दूसरी तरफ भाई

पिछले छह सात वर्षों से सनी देओल के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं. 2011 में नीरज पाठक के निर्देशन में बनने वाली उनकी फिल्म ‘‘भईयाजी सुपरहिट’’ की घोषणा हुई थी. मार्च 2012 में इस फिल्म का फस्टलुक भी आ गया था. मगर अब तक इस फिल्म की शूटिंग शुरू नहीं हो पायी है. जबकि हर साल सनी देओल की तरफ से कहा जाता है कि वह इस फिल्म की शूटिंग शुरू करने जा रहे हैं. अब एक बार फिर सनी देओल ने दावा किया है कि वह बहुत जल्द इस फिल्म की शूटिंग शूरू करेगे. इसके अलावा डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी निर्देशित सनी देओल की मुख्य भूमिका वाली  फिल्म ‘‘मोहल्ला  अस्सी’’ की क्या हालत हुई, सभी को पता है. यह फिल्म थिएटर में रिलीज नहीं हुई, मगर  इंटरनेट साइट टोरंट पर रिलीज हो गयी. विनय सप्रू व राधिका राव निर्देशित फिल्म ‘‘आई लव यू एन वाय’ का हश्र सभी को पता है. पिछले दो वर्षों से सनी देओल की आर्थिक हालात को लेकर कई तरह की खबरें आ रही है. इन खबरों का सनी देओल की तरफ से लगातार खंडन भी आ रहा है.   

बड़ी मुश्किलों व कई बार रिलीज की तारीखें बढ़ाने के बाद अंततः सनी देओल अपनी फिल्म ‘‘घायल वंस अगेन’’ को पांच फरवरी को थिएटरों तक पहुंचाने में कामयाब हो गए. मगर सनी देओल ने जिस तरह की सफलता की उम्मीद की थी, वैसी सफलता इस फिल्म को नहीं मिली. बड़ी मुश्किल से यह फिल्म लगभग 34 करोड़ ही काम सकी है. ज्ञातब्य है कि सनी देओल ने इस फिल्म का लेखन, निर्माण व निर्देशन करने के साथ साथ इसमें मुख्य भूमिका भी निभायी है. यह उनकी 1990 की सुपर डुपर हिट फिल्म ‘‘घायल’’ का सिक्वअल है. एक तरफ ‘‘घायल वंस अगेन’’ ने सनी देओल का नाम बचा दिया. कहने का अर्थ यह कि एक तरफ सनी देओल के अपने सितारे गर्दिश में हैं, तो दूसरी तरफ सनी देओल के सामने धर्म संकट खड़ा हो गया है और अब उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें

सूत्रों के अनुसार सनी देओल का बेटा करण देओल पिछले चार वर्षों से बालीवुड में लांच होने का इंतजार कर रहा है. वास्तव में सनी देओल अपने बेटे करण देओल को हीरो बनाने के लिए खुद ही रोमांटिक फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ शुरू करने वाले थे. इस फिल्म की कहानी सनी ने तय कर ली है. वह इसका निर्माण व निर्देशन करने वाले हैं. बालीवुड में बेहतरीन तरीके से अपने बेटे को लांच करने के लिए सनी देओल अपने बेटे करण को पिछले चार वर्षों से कलाकार के रूप में तैयार करते आ रहे हैं. अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए करण ने विदेश जाकर अभिनय की ट्रेनिंग हासिल की. उसके बाद उसने फिटनेस पर काम करते हुए वर्तमान समय के फिल्मी हीरों की तरफ अपनी मसल्स और एब्स भी बनाए. वह हर दिन जिम जाता है. फुटबाल खेलता है. एक्शन की भी खास ट्रेनिंग ले रहा है. पर करण को अफसोस है कि उसकी फिल्म शुरू नहीं हो पा रही है.

करण के साथ सनी देओल को भी उम्मीद थी कि ‘‘घायल वंस अगेन’’ के बाक्स आफिस पर ठीक ठाक बिजनेस करते ही वह ‘‘पल पल दिल के पास’’ के निर्माण की घोषणा कर देंगे. सूत्र बताते हैं कि जब ‘‘घायल वंस अगेन’’ ने लगभग पच्चीस करोड़ का बिजनेस कर लिया तो सनी देओल ने ‘पल पल दिल के पास’ की योजना पर काम करते हुए तय किया कि बीस फरवरी के बाद लेखकों की टीम इस फिल्म की पटकथा पर काम शुरू कर देगी. मई माह तक पटकथा तैयार हो जाएगी. उसके बाद पटकथा के आधार पर सनी देओल फिल्म के दूसरे अन्य पात्रों को निभाने के लिए कलाकारों व लोकेशन तय करने का काम करेंगे. दिवाली के आसपास वह इस फिल्म की शूटिंग शुरू कर देंगे. मगर सब कुछ तय करने के बाद सनी देओल इस फिल्म की कोई घोषणा करते उससे पहले ही एक बुरी खबर ने सभी को चुप करा दिया. वास्तव में सनी देओल के छोटे भाई बाबी देओल की बहुप्रतीक्षित  फिल्म ‘चंगेज’ के बंद होने की खबर आ गयी. इस खबर ने सनी देओल की सारी योजना पर पानी फेर दिया. उधर अब करण देओल भी एक बार फिर मायूस हो चुके हैं.   

वास्तव में फिल्म निर्देशक विवेक सिंह चैहान बाबी देओल को सोलो हीरो लेकर एक डार्क थ्रिलर फिल्म ‘‘चंगेज’’ बनाने की योजना बनायी थी. यह फिल्म पिछले चार वर्षों से अटकी हुई है. सूत्रों की माने तो इस फिल्म की शूटिंग 2013 में शुरू होनी थी. लेकिन 2013 में ही धर्मेंद्र, सनी देओल और बाबी देओल के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘यमला पगला दीवाना 2’’ ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा, तो इस फिल्म का निर्माण रूक गया था. उसके बाद फिल्म की हीरोईन बदल गयी और मोनिका डोगरा आ गयीं. तथा निर्देशक विवेक सिंह चैहान ने नए फायनेंसर की तलाश कर इस फिल्म की शूटिंग जनवरी 2016 के मध्य में शुरू करने की योजना बनायी थी. सूत्रों की माने तो अब फिल्म ‘चंगेज’ का निर्माण सनी देओल व बाबी देओल की होम प्रोडक्शन ‘‘विजेता फिल्मस’’ के बैनर तले होनी थी. नया फायनेंसर इस फिल्म के निर्माण में करीबन दस करोड़ रूपए लगा रहा था. बाबी देओल ने इस फिल्म के किरदार की मांग के अनुरूप ही पिछले तीन वर्षों से दाढ़ी व बाल भी बढ़ा रखे थे. इतना ही नहीं अब फिल्म शुरू होने वाली है, यह सोचकर बाबी देओल ने दिसंबर 2015 से मीडिया के सामने आना शुरू कर दिया था. वह अपने भाई सनी देओल के संग भी फिल्म के प्रमोशन के समय नजर आए थे. सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. पर जनवरी 2016 के आते ही एक बार फिर मामला अटक गया.

जनवरी 2016 में एक तरफ ‘‘घायल वंस अगेन’’ की रिलीज टलकर 5 फरवरी हो गयी, तो दूसरी तरफ बाबी देओल की पत्नी तान्या देओल का अपने स्व.पिता की तीन सौ करोड़ की संपत्ति के मुकदमे में तान्या के खिलाफ अदालत का फैसला आया. तीसरी तरफ फिल्म की शूटिंग शुरू नहीं हो पायी. काफी उठापटक के बाद सनी देओल अपनी फिल्म ‘‘घायल वंस अगेन’’ को 5 फरवरी को रिलीज करने में सफल हो गए और वह अपने बेटे करण की फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ को शुरू करने की योजना को अमली जामा पहनाते, उससे पहले ही फरवरी के प्रथम सप्ताह में ही यह साफ हो गया कि अब ‘‘चंगेज’’ नहीं बनेगी. इस खबर से निराश होकर बाबी देओल ने अपनी बढ़ाई हुई दाढ़ी भी कटवा डाली.

बाबी देओल की फिल्म ‘‘चंगेज’’ के बंद होने की खबर ने सनी देओल के सामने धर्म संकट खड़ा कर दिया. सनी देओल को नजदीक से जानने वाले अच्छी तरह से जानते हैं कि सनी देओल के लिए अपना परिवार बहुत अहमियत रखता है. धर्मेंद्र ने अपने पूरे परिवार को एक कड़ी में बांधकर रखा हुआ है. सनी देओल जितना अपने बेटे करण को चाहते हैं, उतना ही वह अपने छोटे भाई बाबी देओल को भी चाहते हैं. सनी के लिए बेटे करण व भाई बाबी दोनों का करियर अहमियत रखता है. वास्तव में बाबी देओल की ‘‘चंगेज’ की ही तरह करण देओल की फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ भी ‘‘विजेता फिल्मस’ के बैनर तले ही बननी हैं. ‘‘चंगेज’ की शूटिंग पहले शुरू होनी थी. पर वह रूक गयी. इससे सनी देओल सबसे ज्यादा परेशान है. उनकी समझ में नही आ रहा है कैसे वह अपने भाई बाबी देओल के करयिर को अधर में छोड़कर अपने बेटे करण की लांचिंग फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ पर काम शुरू करें.

उधर बालीवुड में देओल परिवार और ‘‘विजेता फिल्मस’’ के आर्थिक हालात को लेकर भी कई तरह की खबरें गर्म हैं. इन खबरों के जवाब में ‘‘विजेता फिल्मस’’ की तरफ से बार बार स्पष्टीकरण दिया जा  रहा है कि ‘विजेता फिल्मस’ की आर्थिक स्थिति अच्छी है और सनी देओल का स्टूडियो ‘‘सनी सुपर साउंड’’ भी अच्छा चल रहा है. इसके बावजूद बालीवुड के पंडितों को दाल में काला ही नजर आ रहा है  

माही गिल को मिली अमेरिकन फिल्म

अनुराग कश्यप की फिल्म ‘‘देव डी’’ में पारो तथा तिग्मांशु धुलिया की फिल्म ‘‘साहब बीबी और गैंगस्टर’’ में अभिनय कर शोहरत बटोर चुकी अदाकारा माही गिल इन दिनों एक अमेरिकन फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रही है. कई पुरस्कार हासिल कर चुकी फिल्मकार त्रिषा रे की हिंदी, अंग्रेजी और स्पेनिश भाषा की निर्माणाधीन रोमांचक फिल्म ‘‘आरफन ट्रेन’’ की शूटिंग कर माही गिल काफी उत्साहित हैं. लेखक ब्राइन स्टीवर्ट की फिल्म ‘‘आरफान ट्रेन’’ में माही गिल पर्यावरण संरक्षक एजेंट हेलन प्रास्ट की मुख्य भूमिका में नजर आएंगी. जो कि स्थानीय उत्पादक संघ द्वारा अपहृत बच्चों की मौत में रेडियोधर्मी पदार्थो के होने की जांच कर रही है.

इस फिल्म की चर्चा करते हुए माही गिल कहती हैं-‘‘मुझे फिल्म ‘आरफन ट्रेन’ का हेलन प्रास्ट का किरदार बहुत पसंद आया. फिल्म की निर्देषक त्रिषा रे के साथ मैं पुनः काम करना चाहूंगी.’’

सारा खान बना रही हैं डिजिटल फिल्में

इन दिनों ‘यशराज फिल्मस’, ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ सहित कई बड़ी फिल्म प्रोडक्शन कंपनियां इंटरनेट के डिजिटल फिल्मों व डिजिटल कंटेट को बनाने में लगी हुई है. अब इन बड़ी कंपनियों के ही पदचिन्हों पर चलते हुए टीवी की चर्चित अदाकारा सारा खान भी निर्माता बन गयी हैं और वह भी इंटरनेट के लिए डिजिटल कंटेंट बना रही हैं.

सारा खान ने ‘यूट्यूब’ पर अपना इंटरनेट चैनल शुरू किया है और इसके लिए वह खुद ही कंटेंट यानी कि लघु फिल्मों का निर्माण कर रही हैं. खुद सारा खान बताती हैं-‘‘किसी की नकल करने का सवाल कहां से आ गया. अब डिजिटल का युग है. इस युग में लोगों को हर दिन कुछ नया चाहिए. दर्शक टीवी पर भी सास बहू मार्का सीरियल देखते हुए बोर हो चुका है. तो दर्शकों की पसंद का ख्याल रखते हुए मैंने अपना ‘यूट्यूब चैनल’ शुरू किया है और इसके लिए लघु फिल्में बना रही हूं. धीरे धीरे डिजिटल माध्यम डोमीनेटिंग होता जा रहा है. यह ऐसा माध्यम है, जहां आप अपनी पसंद के कार्यक्रम बना सकते है.

इसके लिए आपको अपनी रचनात्मकता को लेकर किसी से इजाजत लेने की जरुरत नहीं है. आज की युवा पीढ़ी ताजगीपूर्ण, फन, रोचक, मनोरंजक और जानकारी वाले कार्यक्रम देखना चाहता है. ऐसे कार्यक्रमों के लिए ‘यूट्यूब’ सबसे अच्छा प्लेटफार्म है. इसलिए मैं इसके लिए कार्यक्रम बना रही हूं. इसके अलावा मैं विश्व भ्रमण भी कर रही हूं.’’

क्या ग्यारह साल बाद आए शाहरुख के बुरे दिन…

‘‘चेन्नई एक्सप्रेस’’ और ‘‘हैप्पी न्यू ईअर’’ की सफलता के मद में चूर शाहरुख खान ने जब रोहित शेट्टी के साथ मिलकर फिल्म ‘‘दिलवाले’’ की शुरूआत की थी, तो उन्होने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हे ग्यारह साल पहले जैसे बुरे दिन देखने पड़ेंगे. सूत्रों के अनुसार फिल्म ‘दिलवाले’ की रिलीज के समय शाहरुख खान हवा में उड़ रहे थे. वह दावा कर रहे थे कि उनकी यह फिल्म बाक्स आफिस पर सफलता के कई रिकार्ड तोड़ेगी. मगर जब फिल्म ‘दिलवाले’ रिलीज हुई, तो बाक्स आफिस पर बुरी तरह से लड़खड़ा गयी.

सूत्रों की माने तो कुछ दिन तक शाहरुख खान की प्रचार व मार्केटिंग टीम दावा करती रही कि फिल्म पूरे विश्व में बहुत अच्छी चल रही है. मगर अंततः सच सबके सामने था. शाहरुख खान भी ‘दिलवाले’ को मिली असफलता से भौचक्के रह गए. अब उनके सामने अपनी दो फिल्मों ‘‘फैन’’ और ‘‘रईस’’ के प्रदर्शन की समस्या खड़ी हो गयी. सूत्रों की माने तो ‘दिलवाले’ के वितरकों को जो भारी भरकम नुकसान हुआ, उसकी वजह से वह ‘फैन’ व ‘रईस’ में हाथ डालने के लिए तैयार नहीं थे. उधर नए वितरक भी चुप थे.

सूत्रों के अनुसार तब शाहरुख खान को अपने ग्यारह व पंद्रह साल पुराने दिन याद आए. उसके बाद शाहरुख खान ने ‘दिलवाले’ के वितरकों के नुकसान की भरपाई करते हुए उनके द्वारा दिए गए पचास प्रतिशत रकम वापस कर दी. सूत्रों की माने तो 2001 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘द अशोक’’ और 2005 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘पहेली’’ के असफल होने पर भी शाहरुख खान को अपने वितरकों को नुकसान की भरपाई करनी पड़ी थी.

इतना ही नही अब शाहरुख खान ने भी अपरोक्ष रूप से फिल्म ‘‘दिलवाले’’ की असफलता को स्वीकार कर किया है. कुछ दिन पहले पत्रकारों से बात करते हुए शाहरुख खान ने कहा-‘‘हमारी फिल्म ‘दिलवाले’ को भारत में हमारी आपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली. हमें इसके और बेहतर बिजनेस करने की उम्मीद थी. मैं खुद ‘दिलवाले’ के बिजनेस से निजी स्तर पर आहत हुआ हूं. ईमानदारी की बात यही है कि ‘दिलवाले’ ने भारत में अच्छा बिजनेस नहीं किया है, मगर विदेशों में यह फिल्म बहुत अच्छा बिजनेस कर रही है. जर्मनी और आस्ट्यिा में ‘दिलवाले’ ने कमाई के रिकार्ड बनाए हैं. यह हमारे लिए सुखद बात है कि अब भारतीय फिल्में विदेशों में बड़े स्तर पर अपनी पैठ बना रही है.’’

शाहरुख खान ने ‘दिलवाले’ की बाक्स आफिस पर जो दुर्गति हुई, उससे निराश होने की बात स्वीकार ली. मगर ‘वितरकों’ की पचास प्रतिशत फीस वापस देने के संबंध में शाहरुख खान ने चुप्पी साध रखी है. उधर बालीवुड में चर्चाएं गर्म है कि अब शाहरुख खान अपनी ‘रेड चिल्लीज इंटरटेनमेंट’ कंपनी की मार्केटिंग टीम और प्रचार टीम को भी कसने पर विचार कर रहे हैं. क्योंकि सूत्रों के अनुसार धीरे धीरे यह बात भी सामने आ रही है कि फिल्म ‘दिलवाले’ के प्रचार व मार्केटिंग में प्रचार टीम और मार्केटिंग टीम ने भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह सही ढंग से नहीं किया. सूत्रों की माने तो शाहरुख खान चाहते हैं कि हर इंसान की जवाबदेही तय होनी चाहिए.

विक्की कौशलः प्यार कभी खत्म नही होता

सपनों को पूरा करने तथा स्वतः की पहचान की तलाश को रेखांकित करने वाली फिल्म ‘‘जुबान’’ के हीरो विक्की कौशल किस्मत के धनी कलाकार हैं. विक्की कौशल के पिता और बौलीवुड के मशहूर एक्शन निर्देशक शाम कौशल ने भले ही उनकी परवरिश फिल्मी माहौल से दूर की हो, पर इंजीनियरिंग करने के  बाद वह फिल्मों से जुड़ गए. फिल्मों से जुड़ते ही उन्हे ‘जुबान’ और ‘मसान’ जैसी फिल्में मिली. इनमें से ‘मसान’ ने ‘‘कान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में पुरस्कार हासिल किया, तो वहीं ‘जुबान’ ने ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में पुरस्कार हासिल किया. यूं तो ‘मसान’ और ‘जुबान’ दोनो ही फिल्में लीक से हटकर हैं. मगर दोनों फिल्मों में प्यार का मुद्दा भी है.

पर 27 वर्षीय अभिनेता विक्की कौशल के लिए निजी जिंदगी में प्यार के क्या मायने हैं  यह जानना जरुरी ही है. इस सवाल पर विक्की कौशल कहते हैं-‘‘मेरे लिए प्यार एक ऐसा इमोशन/भावना है, एक ऐसी चीज है, जो जिंदगी में रंग भरता है. मेरे लिए प्यार बहुत पवित्र और खूबसूरत है. आप अगर इश्क में हो और जिंदगी में चाहे जितनी भी तकलीफें हों, आपको उनसे लड़ने का साहस प्यार ही देता है. और एक खूबसूरत अहसास होता है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. प्यार सिर्फ प्रेमी या प्रेमिका से ही नहीं मिलता, पिता, भाई, बहन, दोस्त से भी मिलता है.’’

कभी वेंलेनटाइन वाला प्यार आपको हुआ  इस सवाल पर थोड़ा सा हिचकते हुए विक्की कौशल ने कहा-‘‘27 साल का युवक हूं. ऐसे में मुझे वेलेनटाइन डे वाला प्यार न हुआ हो, यह तो नहीं हो सकता. आपसे झूठ भी नहीं बोल सकता. मुझे भी प्यार हुआ. मैं खुद को लक्की फील करता हूं कि कुछ लोग मेरी जिंदगी में ऐसे आए, जिनके साथ प्यार के अहसास ने मुझे एक बेहतरीन इंसान बनाया. जब मैं प्यार या ऐसे रिलेशन में था तो अच्छा लगता था कि आपके साथ कोई ऐसा है, जो कि आपको सच सच सब कुछ बता देता है. वास्तव में पहले दोस्ती होती है और वही धीरे धीरे प्यार में बदल जाती है. पर वह रिलेशनशिप खत्म हो चुका है. मगर मेरी राय में प्यार कभी खत्म नही होता है.’’

प्रदूषण से बचाव गंभीर चुनौती

आंधी, बाढ़, भूकंप, सूखा, सुनामी आदि प्रकृति के कहर जब आते हैं तो मानव अपने को असहाय पाता है, सिवा उन्हें सहने के उस के पास कुछ नहीं होता. प्रकृति पर विजय पाने के लिए उस ने बहुत कुछ किया. पक्के मकान बनाए, बाढ़ को रोकने के लिए बांध व नहरें बना डालीं, गरमीसर्दी को रोकने के लिए एयरकंडीशनिंग घरघर ले गया, सूखे का मुकाबला करने के लिए हजारों फुट गहरे कुएं खोद डाले लेकिन प्रकृति पर जीत पाने के चक्कर में भूल गया कि प्रकृति के कहर की तरह अपना खुद का कहर तैयार कर रहा है, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग.

दुनिया के कितने ही शहर अब भीषण प्रदूषण के शिकार हैं जो मानव ने खुद पैदा किया है. बीजिंग, सिओल, कराची, दोहा, ईरान के खोरामाबाद से ज्यादा भारत के दिल्ली, पटना, अहमदाबाद जैसे शहर शान से सब से प्रदूषित शहरों में नाम दर्ज कराए हुए हैं. इन शहरों में 24 घंटे धूल, धुएं और कार्बन पार्टीकल्स व घातक सल्फर कणों की परत छाई रहती है.

अब दुनिया चेत रही है कि आतंकवाद के साथसाथ ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल पौल्यूशन भी मानव की खुद की देन हैं और यदि लंबा जीना है, सुख से जीना है तो प्रदूषण से बचना आतंकवाद से जूझने के बराबर गंभीर चुनौती है वरना आने वाली पीढ़ी बीमार ही नहीं, समाप्त भी हो सकती है.

दुनिया के कितने ही शहरों में बच्चों को अब बाहर निकलने पर, बाग में घूमने पर रोक लगने लगी है, क्योंकि घर से ज्यादा घुटन बाहर होती है. मानव ने प्रकृति पर विजय पाने के लिए जो औद्योगिक साम्राज्य बनाया है, अब उस की कीमत देनी पड़ रही है.

प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की दोहरी मार शहरों को जेल बना रही है जहां जो रहता है वह कैदी है, जिसे अपने अपराधों का दंड भुगतना पड़ रहा है.

काम की और बेकार चीजों का जो अंबार मानव ने लगाया वह अब उस के पैरों की जंजीर बन गया है. घर में हजारों चीजें हैं. बाहर बीसियों मंजिले मकान हैं, विशाल स्टेडियम हैं, दफ्तर हैं, हवाई जहाज हैं, शहर जितने बड़े पानी के जहाज हैं, अंतरिक्ष में जाने लायक रौकेट हैं, पर घुटन है, धुआं है, बीमारी है.

अब पेरिस सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए कच्चापक्का समझौता हुआ है, जिस में अरसे बाद लगभग सारी दुनिया के देशों ने सहमति जताई है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार ने सड़कों पर गाडि़यां रोकने के लिए औडईवन प्लान बनाया है कि आधी गाडि़यां ही सड़कों पर उतरें और लोग पैदल चलें, साइकिल पर चलें, शेयर करें, बसमैट्रो में चलें पर गाडि़यों से खस्ता हो रहे शहर को बचाएं.

जो कुछ दुनिया के नेता कर रहे हैं, अभी बहुत कम है. आज की नई पीढ़ी के कल के लिए यह काफी नहीं है. आज की किशोर व युवा पीढ़ी को हजारों चीजें मिल रही हैं पर साथ ही प्रदूषण का जहर भी मिल रहा है. जो छोड़ा जा रहा है, वह काफी कम है.    

घर से भागना नहीं है समाधान

वे कौन से हालात हैं जो लड़की को घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं. आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं. जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं. मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है.

इस का एक कारण आज का बदलता परिवेश है. आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है.

कुछ ऊंचनीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरहतरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है.

यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.

आज लड़केलड़कियों को समान दर्जा दिया जा रहा है. उन में आपस में मित्रता आम बात है. मगर पाखंडों में डूबे मध्यवर्गीय परिवारों में लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करने को शक की निगाह से देखा जाता है. यदि कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है, तो उस पर संदेह किया जाता है. जब घर वालों के व्यंग्यबाण लड़की की भावनाओं को आहत करते हैं तो उस के अंदर विद्रोह की भावना जागती है, क्योंकि वह सोचती है कि जब वह गलत नहीं है तब भी उसे संदेह की नजरों से देखा जा रहा है, तो क्यों न अपने व्यक्तित्व को लोग और समाज जैसा सोचते हैं वैसा ही बना लिया जाए  जब बात सीमा से परे या सहनशक्ति से बाहर हो जाती है तो यह विद्रोह की भावना विस्फोट का रूप इख्तियार कर लेती है. लेकिन ऐसे हालात में भी घर वालों का सहयोगात्मक रवैया उस के बाहर बढ़ते कदमों को रोक सकता है, मगर अकसर मातापिता का उपेक्षापूर्ण रवैया ही इस के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार रहता है.

मातापिता की बड़ी भूल

ज्यादातर मातापिता सहयोग की भावना की जगह गुस्से से काम लेते हैं. दरअसल, युवावस्था एक ऐसी अवस्था होती है, जब बच्चों को सब कुछ नयानया लगता है. उन के मन में सब को जानने और समझने की जिज्ञासा रहती है. यदि उन्हें सही ढंग से समझाया जाए तो वे ऐसे कदम न उठाएं, क्योंकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जहां वह किसी के रोके नहीं रुकता. युवा बच्चे के मन की हर बात, हर इच्छा उस पर जनून बन कर सवार होती है, जिसे सिर्फ और सिर्फ मातापिता की सहानुभूति और प्रेमपूर्ण व्यवहार ही शिथिल कर सकता है. यदि मातापिता यह सोचते हैं कि बच्चे उन की डांट, मार या उपेक्षापूर्ण रवैए से सुधर जाएंगे तो यह उन की सब से बड़ी भूल होती है.

जरूरी है सहयोगात्मक रवैया

माना कि लड़कियों के घर से भागने की जिम्मेदार वे खुद हैं. पर इस में मातापिता और परिवेश का भी पूरापूरा योगदान रहता है. मातापिता लड़कियों की भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते. जबकि उन का सहयोगात्मक रवैया बेहद जरूरी होता है.

मगर लड़कियों को भी चाहिए कि वे भावावेश या जिद में आ कर कोई निर्णय न लें. बड़ों की बात को विवेकपूर्ण सुन कर ही कोई निर्णय करें, क्योंकि यथार्थ यह भी है कि एक पीढ़ी अंतराल के कारण विचारों में परिवर्तन होता है, जिस से मतभेद स्थापित होते हैं. बड़ों का विरोध करें, मगर उन की उचित बातों को जरूर मानें वरना यही पलायन प्रवृत्ति जारी रही तो आप ही जरा कल्पना कीजिए कि भविष्य में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा

 

बड़े शहरों में अपनापन नहीं: छवि पांडेय

बिहार के पटना शहर की छवि पांडेय मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी थीं. ऐसे परिवारों में लोग लड़कियों से केवल इतनी ही चाहत रखते हैं कि वे पढ़लिख कर नौकरी कर लें. इस के बाद उन की शादी हो जाए. कई बार तो 18-19 साल की उम्र में ही शादी कर दी जाती है. ऐसे में लड़कियां अपने सपने पूरे करने की तो सोच भी नहीं सकती हैं.

छवि पांडेय भी ऐसे ही परिवार की थीं. उन की बड़ी बहन की शादी 18-19 साल की उम्र में हो गई थी. छवि को गाने गाने का शौक था. उन के गानों से खुश हो कर उस समय के रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें रेलवे में नौकरी दे दी थी. उस समय उन की उम्र 18 साल के करीब थी. मगर छवि को तो अपने सपने पूरे करने थे, इसलिए नौकरी छोड़ कर उन्होंने रिऐलिटी शो ‘इंडियाज गौट टेलैंट’ में हिस्सा लिया. यहां उन के हुनर को देख कर अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे ने कहा कि उन्हें ऐक्टिंग में ध्यान देना चाहिए. तब छवि ने ऐक्टिंग की तरफ कदम बढ़ाए और कम समय में ही उन के हिस्से बड़ी सफलता आई.

छवि से बातचीत में पता चला कि कैसे छोटे शहरों की लड़कियां अपने हुनर के बल पर अपना मुकाम हासिल कर सकती हैं.

सीरियल ‘सिलसिला प्यार’ में आप इंदौर की रहने वाली गरीब परिवार की लड़की बनी हैं. कैसा अनुभव है यह
सीरियल ‘सिलसिला प्यार का’ की कहानी में मां अपने बेटे को बहुत प्यार करती है. बेटा गरीब परिवार की लड़की से प्यार करता है. उस से शादी करना चाहता है. मां उस लड़की की शादी किसी और लड़के से करा देती है. इस कहानी में मां बेटे के प्यार में ओवर पजैसिव है. मैं गरीब परिवार की लड़की काजल का किरदार निभा रही हूं, जो सीरियल का मुख्य किरदार है. इस के आसपास पूरी कहानी घूमती है. इस में प्यार और रिश्ते से जुड़े गहरे भावों को दिखाने का प्रयास किया गया है. इस शो में शिल्पा शिरोडकर जैसी सीनियर आर्टिस्ट भी हैं, जिन से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.

पटना से मुंबई तक का सफर कैसे तय किया
आज सोचती हूं तो सब कुछ सरल दिखता है. सही मानों में कठिन सफर था. मन पर बड़ा बोझ था कि सफल नहीं हुई तो क्या होगा  मुझे गाने गाने का शौक था. इलाहाबाद की प्रयाग संगीत समिति से गायन की शिक्षा ली थी. इसी बीच एक रिऐलिटी शो में गाने का मौका मिला. वहां जा कर लगा कि मैं गायन के साथसाथ ऐक्टिंग भी कर सकती हूं. गायन के जरीए ही मुझे रेलवे में नौकरी मिली, पर मुझे नौकरी रास नहीं आ रही थी. मैं ने घर पर जब यह बताया कि नौकरी छोड़ कर मुंबई में रह कर अपने फिल्मी कैरियर को आगे बढ़ाना चाहती हूं, तो पिताजी राजी नहीं हो रहे थे. मुझे अपनी मां के जरीए उन्हें राजी कराना पड़ा. मेरे बहुत गिड़गिड़ाने के बाद वे इस शर्त पर राजी हुए कि वे 1 साल का समय दे सकते हैं. अगर इस दौरान कुछ नहीं हुआ तो वापस पटना आना पड़ेगा.

2008 में आप ने सिंगिंग का रिऐलिटी शो किया. तब से आगे का सफर कैसा रहा
ऐक्टिंग में कैरियर बनाने के लिए मैं मुंबई पहुंची, तो रिऐलिटी शो में मिली पहचान काम आई और 1 साल के अंदर ही टैली फिल्म ‘तेरीमेरी लव स्टोरी’ में काम करने का मौका मिल गया. इस के बाद मैं ने ‘एक बूंद इश्क’, ‘ये है आशिकी’, ‘बंधन सारी उम्र हमें संग रहना है’ और भोजपुरी फिल्म ‘बिदेसिया’ में काम किया. इस से घर वालों को यकीन हो गया कि मैं कुछ कर सकती हूं. अब मुंबई रह कर ही अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ना था. 2008 से अब तक मैं अपने सफर को सही राह पर देख रही हूं.

मुंबई जैसे बड़े शहर में जा कर छोटे शहरों की लड़कियां क्या याद करती हैं
मैं अपनी बात करूं तो मुझे आज भी अपना शहर बहुत याद आता है. वहां जिस तरह से हम शौपिंग करते थे, सड़क पर खड़े हो कर पानीपूरी खाते थे, उस से हर किसी में अपनापन महसूस होता था. मगर ऐसा बड़े शहरों में नहीं. अपने शहर में शौपिंग करते समय हम हर सामान को खरीदने में बहुत तोलमोल करते थे. यह मुंबई में नहीं हो पाता. मुझे आज भी याद है कि 500 सौ की चीज को हम 2 सौ में खरीद कर ऐसे खुश होते थे जैसे बहुत बड़ा काम कर लिया. यह खुशी बड़े शहरों में नहीं मिलती.

सीरियलों में काम करने वाली लड़कियां ज्यादातर अपने कोआर्टिस्ट से शादी कर घर बसा लेती हैं
मैं इस पक्ष में नहीं हूं. मैं किसी कलाकार के साथ शादी नहीं करना चाहती. मेरे परिवार में अब मेरी शादी को ले कर बातचीत होती है. पर मुझे अभी शादी नहीं करनी. अभी मैं जिस मुकाम पर हूं वहां से बहुत आगे जा कर अपनी जगह बनानी है. शादी समय पर जरूर होगी. अभी कोई जल्दी नहीं है.  

अरेबियन मेकअप: चेहरे पर बिखेरें ब्रश का जादू

पार्टी रात की है और आप उस में छा जाना चाहती हैं, तो आप की ओवरऔल पर्सनैलिटी के अलावा कपड़े, फुटवियर, ऐक्सैसरीज और मेकअप का दमकना भी जरूरी है. ब्यूटी फील्ड में मेकअप की बात की जाए तो बीत गया वह दौर जब मेकअप सिर्फ बिंदी, लिपस्टिक तक ही सीमित होता था. आज चेहरे पर ब्रश का जादू बिखेरने के लिए कई तरह का मेकअप ब्यूटीपार्लर्स में उपलब्ध है. मसलन, डे मेकअप, नाइट मेकअप, ऐयर ब्रश मेकअप, ऐक्वा मेकअप, मिनरल मेकअप, इजिंप्टियन मेकअप, मैट मेकअप आदि. आप मौके की नजाकत देखें और उसी के अनुरूप चेहरे पर ब्रश का जादू बिखराएं.

मेकअप तकनीक में एकदम नया है अरेबियन मेकअप. अगर आप को बोल्ड लुक पसंद है, तो अरेबियन मेकअप जरूर लुभाएगा. इस में रंगों की भरमार है जैसे गोल्ड, सिल्वर, मेहंदी ग्रीन, क्रिमसन रैड, औरेंज, फ्यूशिया आदि. अरेबियन मेकअप आप स्वयं भी कर सकती हैं, बशर्ते आप का मेकअप में हाथ माहिर हो.

पेश है, अरेबियन मेकअप की जानकारी:

फेस मेकअप
किसी भी मेकअप की तरह इस की शुरुआत भी फाउंडेशन से ही होती है. लेकिन इस में फाउंडेशन के लिए सूफले या मूज का प्रयोग किया जाता है. सूफले या मूज का प्रयोग चेहरे को जहां तरोताजा दिखाता है, वहीं बेदाग भी. इस के अलावा यह चेहरे से अवांछित तेल को भी सोख लेता है नतीजतन चेहरे पर इस की महीन परत दिखती है. पीच रंग के ब्लशऔन से गालों को उभारा जाता है. यह रंग जहां गालों को हाईलाइट करता है, वहीं इस से चेहरा भी ग्लोइंग दिखता है. आप ब्लशऔन की जगह ब्रोंजर से ब्रोजिंग भी कर सकती हैं.

आई मेकअप
अरेबियन लुक में सब से अहम है आई मेकअप. इस में आंखों का मेकअप काफी वाइब्रैंट और कलरफुल किया जाता है. आंखों को आकर्षक बनाने के लिए उन के इनर कौर्नर्स पर सिल्वर, सैंटर में गोल्डन व आउटर कौर्नर्स पर डार्क मेहंदी कलर का आईशैडो लगाया जाता है. इस के बाद कट क्रीज लुक देते हुए ब्लैक कलर से आंखों के आसपास कंटूरिंग की जाती है. इस से आंखें स्मोकी, बड़ी और आकर्षक नजर आती हैं. आईब्रोज के नीचे पर्ल गोल्ड शेड से हाईलाइटिंग की जाती है. आंखों में चमक जगाने के लिए आईलिड पर ग्लिटर्स लगाए जाते हैं. आंखों की इनर्स पर सिल्वर, सैंटर पर गोल्ड और बाहर की तरफ ग्रीन शेड के ग्लिटर का प्रयोग किया जाता है. ऐसा करने से आई मेकअप आंखों को खूबसूरत दिखाएगा.

अंत में आंखों की शेप को डिफाइन करने के लिए अरेबियन स्टाइल को अपना सकती हैं. इस में लाइनर से ऊपर व नीचे दोनों तरफ बाहर विंग निकाल दें और इनर कौर्नर्स पर लाइनर को थोड़ा नुकीला कर दें. अब बाहर निकली दोनों विंग की स्पेस को सिल्वर ग्लिटर से फिल कर दें. आंखों को कंप्लीट सैंसुअल लुक देने के लिए पलकों पर आर्टिफिशियल लैशेज जरूर लगाएं. लैशेज को आईलैश कर्लर से कर्ल कर के मसकारे का कोट लगाएं ताकि वे नैचुरल लैशेज की तरह लगें. वाटर लाइन पर बोल्ड काजल लगा कर आई मेकअप को कंप्लीट करें.

लिप मेकअप
यों तो लिप मेकअप हमेशा आई मेकअप को ध्यान में रख कर ही किया जाता है, लेकिन अरेबियन मेकअप में ओवरऔल लुक बोल्ड रहता है. ऐसे में आंखों व होंठों पर बोल्ड शेड का प्रयोग अनिवार्य है. बोल्ड शेड में क्रिमसन रैड, औरेंज या फिर फ्यूशिया कलर की प्रमुखता रहती है.                      

IPL में नई जर्सी में दिखेंगे कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धौनी

कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धौनी इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में आठ साल तक पीली जर्सी में नजर आए और चेन्नई सुपरकिंग्स की कप्तानी करते रहे. लेकिन इस बार उनकी टीम भी नई है और जर्सी भी. धौनी राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स की ओर से खेलेंगे.

धौनी के जहन में चेन्नई सुपरकिंग्स की याद अभी भी ताजा है. उनका कहना है कि पुरानी टीम को भुला पाना बहुत मुश्किल है. धौनी ने राइजिंग पुणे सुपरजाएंट्स के मालिक संजीव गोयंका के साथ टीम की ऑफिशियल जर्सी लॉन्च की.

माही के नाम से मशहूर धौनी ने इस मौके पर बेहद भावुकता के साथ कहा, 'आईपीएल शुरू होने के बाद से मैंने आठ साल चेन्नई टीम के साथ गुजारे. अब नई टीम के साथ खेलना कुछ अजीब लग रहा है. चेन्नई के लोगों से मुझे और टीम को बहुत प्यार मिला था. लेकिन एक प्रोफेशनल होने के नाते हमें जीवन में आगे बढ़ना होता है.'

धौनी ने कहा, 'चेन्नई से हटकर एक नई टीम के साथ उतरने पर मैं कुछ अलग महसूस कर रहा हूं लेकिन मैं शुक्रगुजार हूं पुणे का, जिन्होंने मुझे अपनी टीम में चुना और टीम का कप्तान बनाया. एक प्रोफेशनल होने के नाते हमारा यह दायित्व होता है कि हम चाहे किसी फ्रेंचाइजी से खेलें या फिर अपने देश की टीम से खेलें हमें अपना शत प्रतिशत प्रदर्शन देना होता है.'

 

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