बिहार में किसानों और सरकार से धान ले कर चावल नहीं लौटाने वाले मिलमालिकों को जेल भेजने की कवायद शुरू की गई है. सरकार ने ऐसे चावलमिलों के मालिकों को गिरफ्तार करने और उन की कुर्कीजब्ती का आदेश जारी कर दिया है. इस सिलसिले में 12 सौ बड़े बकायादार मिलमालकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है.

गौरतलब है कि पिछले 3 सालों से चावलमिलों के मालिक 1310 करोड़ रुपए का बकाया देने में टालमटोल कर रहे थे. इन मिलमालिकों पर साल 2013-14 के 150 करोड़ रुपए साल 2012-13 के 732 करोड़ रुपए और साल 2011-12 के 427 करोड़ रुपए बकाया हैं. धान ले कर चावल वापस नहीं करने के मामले में एसएफसी समेत कई विभागों के अफसरों और मुलाजिमों पर भी कानूनी कार्यवाही की जा रही है. कुल 394 अफसरों और मुलाजिमों की जांच की जा रही है और 184 पर मुकदमा दर्ज किया गया है.

पटना की 64 चावलमिलों पर 55.61, भोजपुर की 90 मिलों पर 72.05, बक्सर की 152 मिलों पर 101, कैमूर की 357 मिलों पर 220, रोहतास की 191 मिलों पर 111, नालंदा की 84 मिलों पर 55.34, गया की 49 मिलों पर 40, औरंगाद की 207 मिलों पर 62.15, वैशाली की 25 मिलों पर 23.66, मुजफ्फरपुर की 33 मिलों पर 66.51, पूर्वी और पश्चिम चंपारण की 153 मिलों पर 63, सीतामढ़ी की 52 मिलों पर 55.83, दरभंगा की 34 मिलों पर 39.83, शिवहर की 8 मिलों पर 17.78 और नवादा की 23 मिलों पर 20.48 करोड़ रुपए बकाया हैं. इस के अलावा अरवल, शेखपुरा, लखीसराय, मधुबनी, समस्तीपुर, सिवान, सारण व गोपालगंज आदि जिलों की सैकड़ों चावलमिलों पर करीब 90 करोड़ रुपए बकाया हैं.

बिहार में चावलमिलों की धांधली पर रोक लगाने में सरकार बिलकुल नाकाम रही?है. बिहार महालेखाकार ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि धान को ले कर मिलमालिकों ने सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाया है. साल 2011-12 में मिलमालिक 434 करोड़ रुपए का धान दबा कर बैठ गए और उस के बाद के साल में 929 करोड़ रुपए के धान की हेराफेरी कर के सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया. इस के बाद भी सरकार ने मिलमालिकों के खिलाफ कार्यवाही करने में जरा सी भी दिलचस्पी नहीं ली.

बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाइज कारपोरेशन लिमिटेड से आरटीआई एक्टीविस्ट शिव प्रकाश राय ने इस बारे में पूरी सूचना मांगी थी. आरटीआई के तहत सूचना मिली कि साल 2011-12 में जिन मिलों पर धांधली का आरोप लगा था, उन्हीं मिलों को साल 2012-13 में भी करोड़ों रुपए के धान दे दिए गए. इतना ही नहीं केवल 50 हजार रुपए की गारंटी रकम पर ही 3 से 6 करोड़ रुपए के धान चावलमिलों को सौंप दिए गए. मिलों को धान देने के बारे में नियम यह है कि भारतीय खाद्य निगम मिलों से एग्रीमेंट करता है, जिस के तहत मिलमालिक पहले निगम को 67 फीसदी चावल देते हैं, जिस के बदले में उन्हें रसीद मिलती है. उस रसीद को दिखाने के बाद ही निगम द्वारा मिलों को 100 फीसदी धान दिया जाता है.

आरटीआई एक्टीविस्ट शिवप्रकाश कहते हैं कि उन्होंने साल 2012 में सरकार को धांधली के बारे में पूरे कागजात सौंप दिए थे. उस के बाद भी चावलमिलों के मालिकों के खिलाफ कानूनी कदम नहीं उठाए गए. अगर मिलमालिकों और धान का लेनदेन करने वाले अफसरों की पिछली 3-4 सालों के दौरान बनाई गई दौलत की बारीकी से जांच की जाए तो उन की संपत्ति आसमान पर पहुंची मिलेगी.

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