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सजना हो जब सजना के लिए

स्पैशल दिन पर आप अपने को खास तरह से सजाएं. यों तो पति या प्रेमी को रिझाने के लिए गुलदस्ता, खूबसूरत कार्ड और अन्य तमाम तरह के उपहार दिए जाते हैं. मगर इतना ही पर्याप्त नहीं. अपने प्रिय के दिल को चुराने के लिए अपनेआप को भी सजाना होगा ताकि आप की खूबसूरती को देख कर वह रोमांचित हो जाए, उस का मन आप को अपनी बांहों में ले कर डांस करने का हो जाए.

त्वचा की देखभाल

लैक्मे ब्यूटी सैलून की ब्यूटी ऐक्सपर्ट अनीता बी. मिश्रा कहती हैं, ‘‘फरवरी में जाड़ा जा रहा होता है और गरमी शुरू होने को होती है. मौसम क इस बदलते अंदाज का प्रभाव शरीर के हर हिस्से पर पड़ता है. सब से ज्यादा प्रभाव त्वचा पर पड़ता है. इसलिए त्वचा की देखभाल बहुत जरूरी होती है. बदलते मौसम में त्वचा में रूखापन आ जाता है. त्वचा खिंचीखिंची भी रहने लगती है. इस के लिए त्वचा के हिसाब से मौइश्चराइजर का प्रयोग करें.’’

फेस शरीर का सब से अहम हिस्सा होता है. इसलिए इस की देखभाल भी ज्यादा होनी चाहिए. आप का चेहरा सुंदर और दमकता दिखे, इस के लिए जरूरी है कि दिन में 3 बार क्लींजर से चेहरे को साफ करें. अगर आप की त्वचा औयली है तो कम मौइश्चराइजर का प्रयोग करें और रूखी है, तो ज्यादा मौइश्चराइजर का प्रयोग करें. आमतौर पर महिलाएं यही मानती हैं कि त्वचा का खतरनाक सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव केवल गरमी के मौसम में ही करना चाहिए. मगर सच यह है कि सूर्य की खतरनाक किरणों से त्वचा का बचाव फरवरी माह में भी करना चाहिए. इस के लिए जब भी धूप में निकलना हो उस से पहले किसी अच्छी सनस्क्रीन का प्रयोग जरूर करें.

स्पैशल डे का मेकअप हो खास

स्पैशल डे का मेकअप कुछ इस तरह का हो कि आप की सुंदरता खुल कर सामने आए. कभीकभी ज्यादा मेकअप होने से स्वाभाविक सुंदरता छिप जाती है. इसलिए मेकअप नैचुरल और बैलेंस लगने वाला करें. मेकअप में बनावटीपन अटपटा लगता है. दूसरों की देखादेखी ऐसा मेकअप कभी न करें, जो आप पर सूट न करे. अच्छा और नैचुरल मेकअप कर के आप उस दिन का आकर्षण बन सकती हैं. मेकअप की शुरुआत चेहरे को क्लीन कर के करें. क्लींजर से चेहरे को साफ करें. स्किन टोनर का प्रयोग कर के त्वचा को चमकदार बनाएं. स्पंज से मिक्स करते हुए फाउंडेशन चेहरे पर लगाएं. उस के ऊपर हलका टैलकम पाउडर लगाएं. उभरी चीकबोंस चेहरे को खूबसूरत दिखाती हैं. इस के लिए अपनी ड्रैस से मैच करते रंग का रूज लगाएं. पिंक और पीच कलर ज्यादा सूट करते हैं.

चेहरे के बाद आंखों का मेकअप भी बहुत खास होता है. आंखों पर आईशैडो हलका और ड्रैस से मैच करता लगाना चाहिए. आंखों को कजरारा बनाने के लिए आईलाइनर का प्रयोग करें. यह ब्लैक और ब्राउन के अलावा दूसरे कई रंगों में भी मिलता है. आंखों को और भी अधिक खूबसूरत दिखाने के लिए मसकारे का प्रयोग करें. चेहरे को खूबसूरत दिखाने के लिए होंठों का मेकअप भी बहुत सावधानी से करना चाहिए. होंठों पर लगाई जाने वाली लिपस्टिक का रंग भी चेहरे के मेकअप और ड्रैस के हिसाबसे होना चाहिए. ब्राउन और प्लम कलर हर ड्रैस पर जंचते हैं. होंठों में चमक लाने के लिए लिपस्टिक के ऊपर लिपग्लौस का प्रयोग करें.

उस दिन अपने बालों को नया लुक दें. अगर आप की हाइट कम है तो बालों को ऊंचा दिखाने वाला कोई स्टाइल प्रयोग करें. इस के लिए स्टाइलिश जूड़ा भी बना सकती हैं और क्लिप के सहारे बालों को नया स्टाइल भी दे सकती हैं. अगर बाल घुंघराले हैं तो उन्हें ड्रायर से सीधा कर सकती हैं. सीधे बालों को घुंघराला भी बनाया जा सकता है. बालों को कलर भी कर सकती हैं. बालों का कलर अपने चेहरे के रंग के हिसाब से करें.

मेरे कपड़े, उनके कपड़े

खैर, कैरैक्टर तो मैं अपना बहुत पहले नीलाम कर चुका हूं. यह जो मेरे पास दोमंजिला मकान, आलीशान गाड़ी है, सब मैं ने अपना कैरैक्टर नीलाम करने के बाद ही हासिल की है. इनसान जिंदगी में चाहे कितनी ही मेहनत क्यों न करे, पर जब तक वह अपने कैरैक्टर को बंदरिया के मरे बच्चे सा अपने से चिपकाए रखता है, तब तक भूखा ही मरता है.

इधर बंदे ने अपना कैरैक्टर नीलाम किया, दूसरी ओर हर सुखसुविधा ने उसे सलाम किया. कहने वाले जो कहें सो कहते रहें, पर अपना तजरबा है कि जब तक बंदे के पास कैरैक्टर है, उस के पास केवल और केवल गरीबी है.

पर कैरैक्टर नीलाम करने के बाद कमबख्त फिर गरीबी आन पड़ी. जमापूंजी कितने दिन चलती है? अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपना क्या नीलाम करूं? अनारकली होता, तो मीना बाजार जा पहुंचता.

जब मुझे पता चला कि उन के कपड़े डेढ़ करोड़ रुपए में बिके, तो अपना तो कलेजा ही मुंह को आ गया. लगा, मेरे लिए नीलामी का एक दरवाजा और खुल गया. जिस के कपड़े ही डेढ़ करोड़ के नीलाम हो रहे हों, वह बंदा आखिर कितना कीमती होगा?

बस, फिर क्या था. मुझे उन के कपड़ों की नीलामी की बोली के अंधेरे में उम्मीद की किरण नहीं, बल्कि दोपहर का चमकता सूरज दिखा और मैं ने आव देखा न ताव, अपने और बीवी के सारे कपड़ों के साथ पड़ोसी की बीवी के भी चार फटेपुराने कपड़ों की गठरी बांधी और लखपति होने के सपने लेता बाजार चलने को हुआ, तो बीवी ने टोका, ‘‘अब ये मेरे कपड़े कहां लिए जा रहे हो? पागलपन की भी हद होती है.’’

‘‘मैं बाजार जा रहा हूं… नीलाम करने,’’ मैं ने ऐसा कहा, तो बीवी चौंकी, ‘‘अपना सबकुछ नीलाम करने के बाद अब कपड़े भी नीलाम करने की नौबत आ गई क्या?’’

‘‘आई नहीं. नौबत क्रिएट कराई है उन्होंने. तेरेमेरे इन कपड़ों में मुझे लाखों रुपए की कमाई दिख रही है. चल फटाफट बंधी गांठ उठवा और शाम को मेरे आते ही लखटकिया की बीवी हो जा.’’

‘‘पर, इन कपड़ों को कौन गधा खरीदेगा?’’ कहते हुए वह परेशान हो गई.

‘‘अरी भागवान, ये कोई मामूली कपड़े नहीं हैं, बल्कि ये लैलामजनूं, हीररांझा, शीरींफरहाद के ऐतिहासिक कपड़े हैं.

‘‘तू भी न… सारा दिन टैलीविजन के पास बैठीबैठी बस सासबहू के सीरियल ही देखती रहती है. कभी समाचार सुनने नहीं, तो कम से कम देख ही लिया कर. उन के कपड़े की एक जोड़ी डेढ़ करोड़ रुपए में बिकी. हो सकता है कि लाखों रुपए में न सही, तो कम से कम हजारों रुपए में अपने ये कपड़े भी कोई खरीद ले.’’

‘‘घर में कोई जोड़ी बदलने के लिए भी छोड़ी है कि नहीं? कोई क्या पागल है, जो हमारे न पहनने लायक कपड़ों की बोली लगाएगा?’’

यह मेरी बीवी भी न, जब देखो शक में ही जीती रहती है.

‘‘क्यों न लगाएगा… मैं अपने कपड़ों को चमत्कारी रंग दे कर ऐसा प्रचार करूंगा कि… मसलन, ये कपड़े मेरी बीवी को हीर ने उसे तब दिए थे, जब वह पहली बार मुझ से मंदिर जाने के बहाने मिलने आई थी.

‘‘और ये कपड़े मेरी बीवी को लैला ने हमारी फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी पर दिए थे. यह वाला सूट हीर ने उसे उस की बर्थडे पर गिफ्ट किया था.

‘‘यह सूट तो तुम्हें महारानी विक्टोरिया ने खुद अपने हाथों से सिल कर दिया था. और मेरा कुरतापाजामा मजनूं ने मेरी शादी पर तब मुझे पहनाया था, जब मैं घोड़ी लायक पैसे न होने के चलते गधे पर शान से बैठ कर तुम्हें ब्याहने गया था.

‘‘यह तौलिया महात्मा गांधी का है, जिस से वे अपनी नाक पोंछा करते थे. यह उन्होंने मेरे दादाजी को भेंट में दिया था. यह रूमाल जवाहरलाल नेहरू का है. मेरे पिताजी जब 15 अगस्त को उन से मिलने गए थे, तो लालकिले पर झंडा फहराने के बाद इसे उन्होंने उन्हें उपहार के तौर पर दिया था.’’

‘‘और यह मफलर?’’

‘‘रहने दे. इसे बाद में देखेंगे. इसे कुछ काम तो करने दे,’’ जब मैं बोला, तो पहली बार उसे मुझ पर यकीन हुआ और उस ने कोई सवाल नहीं उठाया.

उलटे सुनहरे ख्वाब बुनते हुए मैं ने अपने सिर पर कपड़ों की बंधी गांठ रखी और मैं एक बार फिर अपने माल को नीलाम करने बाजार में जा खड़ा हुआ.

बाजार में पहुंचते ही खाली जगह देख कर दरी बिछाई और अपने और अपनी परीजादी को गिफ्ट में मिले सारे कपड़े उस पर बिखेर दिए.

पर यह क्या… एक घंटा बीता… 2 घंटे बीते… कोई कपड़ों के पास आ ही नहीं रहा था. उलटा, जो भी हमारे कपड़ों के पास से गुजर रहा था, नाक पर हाथ रख लेता. शाम तक मैं नीलामी करने वालों को टुकुरटुकुर ताकता रहा. अब समस्या यह कि गांठ जो बांध भी लूं, तो उठवाए कौन?

तभी एक पुलिस वाला आ धमका. वह डंडे से मेरी बीवी के कपड़ों को टटोलने लगा, तो मुझे उस की इस हरकत पर बेहद गुस्सा आया. पर बाजार की बात थी, सो चुप रहा.

‘‘अरे, यह सब क्या है? चोरी के कपड़े हैं क्या? यमुना के किस छोर से चिथड़े उठा लाया?’’

‘‘नहीं साहब, ये वाले हीर के हैं, ये वाले लैला के हैं. ये वाले मजनूं के हैं और ये वाले ओबामा की जवानी के दिनों के…

‘‘और ये…

‘‘फरहाद के…’’

‘‘छि:, इतने गंदे?’’

‘‘बरसों से धोए नहीं हैं न साहब. जस के तस संभाल कर रखे हैं.’’

‘‘मतलब, पुलिस वाले को उल्लू बना रहा है?’’

‘‘उल्लू… और आप को? मर जाए, जो आप को उल्लू बनाए,’’ कह कर मैं ने उस के दोनों पैरों को हाथ लगाया, तो वह आगे बोला, ‘‘म्यूजियम से चुरा कर लाया है क्या?’’ कह कर वह मुसकराता हुआ मेरी जेब में झांकने लगा, तो मैं ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘साहब, उन की देखादेखी मैं भी इन्हें नीलाम करने ले आया था.’’

‘‘पता है, वे किस के कपड़े थे? चल उठा जल्दी से इन गंदे कपड़ों को, वरना…’’

तभी सामने से पुराने कपड़े लेने वाली एक औरत आ धमकी और कमर नचाते हुए बोली, ‘‘ऐ, क्या लोगे इन सब पुराने कपड़ों का? 2 पतीले लेने हों, तो जल्दी बोलो…’’

परिवर्तन कहीं अनचाहा गुलाम न बना दे

नई अर्थव्यवस्था में एक भारी बदलाव दिख रहा है और वह है बिचौलिए व्यापारियों की भारी कमी. हाल ही में जो नई कंपनियां चमकी हैं और जिन्हें स्टार्टअप कहा जा रहा है, वे असल में केवल दूसरों के बने सामान को ग्राहकों तक पहुंचा रही हैं, अपना बहुत कम बना रही हैं. पहले यह काम अमेरिका में वालमार्ट, मेसीज, भारत में विजय सेल्स, इंगलैंड में हैरड्स जैसी कंपनियां स्टोर बना कर करती थीं. इस तरह की स्टार्ट्सअप ने कम्यूनिकेशन की नई इंटरनैट तकनीक का इस्तेमाल कर के कंप्यूटर अथवा मोबाइल पर फोटो दिखा कर घरों में भेज कर ई कौमर्स की एक नई विधा शुरू कर डाली, जिस में स्टोरों और दुकानदारों के भारी शोरूमों, होलसेल व्यापार, मंडियों की जरूरत कम से कम हो रही है और उत्पादक व ग्राहक के बीच केवल एक स्टार्टअप ई कौमर्स कंपनी दिख रही है.

अभी यह तकनीक और व्यापार बहुत ही छोटे आकार का है पर जिस तरह से बढ़ रहा है और जिस तरह सेवाएं बढ़ रही हैं जिन में टैक्सी, मरम्मत वाले व कूरियर वाले जोड़े जा रहे हैं, उस से लगता है कि व्यापार और दुकानदारी का तौरतरीका पूरी तरह बदल जाएगा. अब इस नए ई कौमर्स से संभव है कि ग्राहक कहीं भी हो, आसपास के ही किसी सप्लायर से उसे सामान पहुंचाया जा सकता है. न सिर्फ सामान, बल्कि सेवाएं भी. डाक्टर या नर्स की, खाना पकाने वाले की, ब्यूटी ऐक्सपर्ट की, टैक्स कंसलटैंट की. किसी के भी उपयोग की चीजें उसे आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं. दुकानें अब बाजारों से निकल कर मोबाइलों में घुस गई हैं और खरीदारी का भी तरीका बदलता जा रहा है.

यह आमूलचूल बदलाव एक बड़े परिवर्तन की शुरुआत है. इस से बाजार बंद हो जाएंगे. लोगों को घरों से ही कमाने के अवसर मिलने लगेंगे. उत्पादक वैसा सामान बनाएंगे जैसा ग्राहक चाहते हैं. ग्राहकों की राय अब दुकानदारों तक न रह कर उत्पादकों तक आसानी से पहुंच जाएगी. सूदखोरी, जमाखोरी न के बराबर हो जाएगी. लाखों छोटेबड़े व्यापारी बेकार हो जाएंगे और आय सौफ्टवेयर मैनेज करने वालों के हाथों तक सीमित रह जाएगी.

उत्पादक भी चंद ई कौमर्स वाली कंपनियों के बंधक बन जाएंगे जो अलीबाबा, अमेजन, फ्लिपकार्ट की शर्तों को मानने को मजबूर हो जाएंगे. दुकानदार तो मोबाइल स्क्रीन के पीछे छिपे रह जाएंगे और धीरेधीरे उत्पादक का नाम भी गायब हो जाएगा, क्योंकि ई कौमर्स कंपनियां अपनी साख पर ही सामान बेचेंगी और जिस में ज्यादा मुनाफा होगा वही बेचेंगी. यह सब अच्छा होगा या बुरा अभी कहना आसान नहीं है पर डर है कि कहीं विशाल दैत्याकारी कंपनियां न खड़ी हो जाएं, जो छोटे स्टार्टअपों को हड़प करती रहें और ग्राहकों को वही खरीदना पड़े जो वे बेचना चाहती हैं. कहीं ग्राहक, उत्पादक, फाइनैंसर, प्रचारक और यहां तक कि कर जमा करने वाले भी इन स्क्रीनों पर मौजूद कंपनियों के अनचाहे गुलाम न बन जाएं. यह जौर्ज औरवैल के बिग ब्रदर से भी ज्यादा भयावह हो सकता है.

युवाओं को गुमराह करता आईएसआईएस

विश्व आज आतंकवाद के मुहाने पर खड़ा है. कोई भी देश ऐसा नहीं है जो किसी न किसी रूप में आतंकवाद का शिकार नहीं है. खासतौर पर मुसलिम देशों में तो आतंकवाद बुरी तरह पांव पसारे हुए है. इन में से कई देश आतंकवाद को हवा दे रहे हैं जिस का नतीजा जैश ए मोहम्मद, अलकायदा, तालिबान और इसलामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठन हैं. ये संगठन धार्मिक कट्टरता की आड़ में विश्व की शांति में खलल डाल रहे हैं और आएदिन ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं जिन में हजारों बेगुनाहों को जान गवांनी पड़ती है.

13 नवंबर, 2015 तो विश्व के आतंकवादी इतिहास में एक रक्तरंजित दिवस के रूप में दर्ज हो चुका है. इस दिन फ्रांस की राजधानी पेरिस में आईएस के आतंकवादियों ने बम धमाके किए, जिस में 130 लोगों की जान चली गई. इस घटना ने न केवल फ्रांस को दहलाया बल्कि अमेरिका समेत तमाम यूरोपीय देशों की भी नींद उड़ा दी. इस से पूरे विश्व में बेचैनी भरा माहौल पैदा हो गया है. जो देश एकदूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे वे अब आईएस के विरुद्ध लामबंद हो रहे हैं और एक बार फिर गैरइसलामी देशों के बीच एकता नजर आने लगी है. रूस, ब्रिटेन और अमेरिका भी आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो गए हैं. इस की वजह तुर्की द्वारा रूस के एक यात्री विमान को गिराया जाना है. अमेरिकी ट्विन टावर और पेंटागन पर हुए हमले के जख्म अभी भरे नहीं हैं, इसलिए अब वह आतंकवाद का सफाया करने को बेताब है. अमेरिका रूस और ब्रिटेन के साथ आतंकवाद के सफाए के मुद्दे पर साथ हो गया है.

दूसरी ओर जापान, जरमनी और आस्ट्रेलिया भी सतर्क हो गए हैं और संकट की इस घड़ी में वे भी अमेरिका व यूरोपीय देशों के साथ आ खड़े हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आईएस के हौसलों को नेस्तानाबूद करने के लिए आईएस और अलकायदा की फंडिंग रोकने के लिए प्रस्ताव पारित किया है.

आईएस की शक्ति युवा

आईएसआईएस यानी इसलामिक स्टेट औफ ईरान ऐंड सीरिया का मुख्य मकसद काफिरों यानी गैरमुसलिम देशों को अपना निशाना बनाना और अपना दबदबा कायम करना है. आईएस का गठन अप्रैल, 2013 में हुआ था. इस से पहले यह अलकायदा में  ही शामिल था, लेकिन बाद में अलकायदा से अलग हो गया और सीरिया में सरकारी बलों से लड़ने के लिए मुख्य जिहादी समूहों में से एक बन गया और अब अबू बक्र अल बगदादी के नेतृत्व में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है.

इस आतंकवादी संगठन की मुख्य शक्ति युवा हैं. इस ने विश्व के मुसलिम युवाओं को धर्म का पाठ पढ़ा कर काफिरों के खिलाफ बंदूक उठाने के लिए तैयार किया. आज इस संगठन में युवाओं की काफी बड़ी फौज है जो आत्मघाती बमों और जैविक हथियारों से लैस  है. दुनियाभर में इन का भरती अभियान तेजी से चल रहा है. आईएस के आकाओं ने औनलाइन भरतियां भी शुरू की हैं. ये गैरमुसलिम देशों के मुसलमान युवकों को इंटरनैट के जरिए गुमराह कर अपने गिरोह में शामिल कर रहे हैं और उन के परिवारों को मोटी रकम दी जाती है. इसलिए मुसलिम युवा आसानी से इन के झांसे में आ जाते हैं.

भारत में भी आईएस अपना भरती अभियान औनलाइन चला रहा है. हालांकि उसे भारत में खास सफलता नहीं मिली, क्योंकि यहां का मुसलमान जानता है कि भारत एक अमन पसंद देश है. यहां किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है. हर जाति और धर्म के लोगों को अपने तरीके से रहने की छूट है. वे अपनी मरजी से नौकरी या व्यवसाय कर सकते हैं. ऐसे में आईएस का भारतीय मुसलिम नवयुवकों को गुमराह करना इतना आसान नहीं है.

पिछले दिनों हैदराबाद की एक महिला को गिरफ्तार किया गया जो आईएस के लिए औनलाइन भरती अभियान चला रही थी. दिलचस्प बात यह है कि ऐसे औनलाइन भरती मिशन भारत में कामयाब नहीं हो रहे हैं. अलबत्ता कुछ युवक जरूर आईएस की ओर खिंच रहे हैं, लेकिन फिर भी कुछ गुमराह युवक आईएस में शामिल हो रहे हैं. मुंबई के मालवाणी इलाके के 3 युवकों के आईएस में शामिल होने की खबर है. आतंकवाद विरोधी दस्ता (एसटीएस) के अनुसार औटो ड्राइवर मोहसिन शेख (26), वाजिद शेख (25) और कौल सैंटर में काम करने वाला अयाज सुलतान (23) 16 दिसंबर को आईएस में शामिल होने चले गए. अयाज सुलतान ने 30 अक्तूबर को घर छोड़ते समय कहा था कि वह पुणे जा रहा है, वहां से कुवैत चला जाएगा. मोहसिन यह कह कर घर से निकला था कि वह दोस्त की शादी में जा रहा है और वाजिद यह कह कर घर से निकला था कि वह आधार कार्ड में नाम सही कराने जा रहा है. लेकिन ये तीनों युवक आज तक वापस नहीं लौटे हैं. एसटीएस को शक है कि ये सीरिया और इराक भाग गए हैं.

आईएस ने किया रेडियो स्टेशन शुरू

अपना नैटवर्क बढ़ाने के लिए आईएस ने अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत नांगरहार में अपना रेडियो स्टेशन शुरू किया है. पश्तो भाषा में प्रसारण के माध्यम से वह अपने विचारों का प्रचार और आतंकियों की नई भरतियों के विज्ञापन जारी कर रहा है. बावजूद इस के भारत के मुसलिम युवक आईएस के झांसे में नहीं आ रहे हैं. यहां युवाओं को कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं :

धार्मिक संकीर्णता में न पड़ें

अकसर कठमुल्ले धर्म का वास्ता दे कर युवाओं को बरगलाने की कोशिश करते हैं, उन्हें दूसरी कौमों के प्रति नफरत फैलाने के लिए उकसाते हैं, युवाओं को चाहिए कि वे ऐसे लोगों के झांसे में न आएं.

बंधुत्व की भावना

हर युवा में बंधुत्व की भावना का होना नितांत जरूरी है, चाहे वह किसी जाति अथवा समुदाय का हो. आपस में मजबूत मित्रता को बढ़ावा दें, एकदूसरे को अपना समझें, सभी धर्मों के त्योहारों को मिलजुल कर सैलिब्रेट करें. एकदूसरे के घर जाएं, विचारों का आदानप्रदान करें. अगर ऐसा माहौल बन जाएगा तो कोई भी ताकत युवाओं को गुमराह करने में कामयाब नहीं होगी.

कैरियर पर दें ध्यान

युवा ध्यान रखें कि आतंकवाद आप को कुछ नहीं दे सकता. इसलिए पढ़लिख कर अपने कैरियर पर ध्यान दें. अच्छी नौकरी कर अपना भविष्य संवारें.               

धर्म आतंकवाद की जड़

आतंकवाद आज विश्व में अपने फन फैलाए हुए है. अगर सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो आतंकवाद का मुख्य कारण धार्मिक ग्रंथ हैं. इन ग्रंथों में इस बात की तालीम भरी हुई है कि अपने संप्रदाय को मजबूत करना है तो उस के लिए जो कुछ भी करना पड़े उस के लिए तैयार रहना चाहिए. जो इन धर्मग्रंथों के मुताबिक आचरण नहीं करता, वह अपने धर्म के प्रति गैरजिम्मेदार है और उसे जीने का कोई हक नहीं है. इतिहास गवाह है कि चाहे मुसलिम देश हों या फिर यूरोपियन सभी शुरू से धर्म युद्ध में मशगूल रहे हैं और धर्म को ले कर लड़ाइयां लड़ी जाती रही हैं.

क्रिश्चियन और यहूदियों में 13वीं शताब्दी से ही युद्ध होते रहे हैं. 11वीं शताब्दी के शुरू में कू्रसेडरों ने जब येरुशलम को घेरा तो मुसलमान धर्म के नाम पर जिहाद के लिए इकट्ठा हुए. सीरिया को एकजुट कर मुसलमानों ने इसलामिक गणराज्य बनाया और ईसाइयों को खदेड़ दिया. ईसाइयों ने अपनी भूमि येरुशलम पर कब्जा करने के लिए इसलामिक गणराज्य के साथ कई धर्मयुद्ध लड़े. युद्धों का यह सिलसिला कई शताब्दियों तक चलता रहा. मध्ययुगीन युद्धों के पीछे यूरोप की मनशा विश्व पर अपना दबदबा बनाए रखने की थी और उस ने यह साबित भी कर दिखाया. 1914 तक यूरोपीय देशों ने विश्व मानचित्र के 84% हिस्से पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया.

यूरोप के ताकतवर होने के पीछे वे नेता थे जो आईएसआईएस की तरह ही युद्ध करते थे. उन युद्ध नेताओं के पराक्रम की वजह से ही उन के अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई. आज आईएसआईएस के अनुयायी भी इस की ताकत की वजह से इस ओर खिंच रहे हैं और यह आतंकवादी संगठन मजबूत हो रहा है. लेकिन इन युद्धों और आतंकवाद की जड़ में धर्म और धार्मिक ग्रंथ ही हैं जो सोचनेसमझने की शक्ति मंद कर देते हैं और युवा कूपमंडूक से इन के झांसे में आ कर हथियार थाम लेते हैं.

बेहतर तो यही होगा कि युवाओं को ऐसे धर्मग्रंथों की असलियत से वाकिफ कराया जाए ताकि वे एक इंसान बनें न कि हिंदू, मुसलमान या ईसाई.

प्रधानमंत्रीजी महिला खिलाड़ियों की भी सुनें: प्राची तहलान

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ व ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के द्वारा देश की महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिनेतारिकाएं माधुरी दीक्षित व विद्या बालन को इन कार्यक्रमों का ब्रैंड ऐंबैसेडर बना कर ब्रैंडिंग के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं.

भारतीय खेल व खिलाडि़यों की दशा सुधारने के लिए केंद्रीय खेल मंत्रालय के द्वारा लगातार नएनए कार्यक्रमों की घोषणाएं की जा रही हैं. पर देश की एक ऐसी भी बेटी है, जिस ने कौमनवैल्थ गेम्स 2010 व श्रीलंका में हुई विश्व नैटबौल चैंपियनशिप 2011 में रजत पदक जीतने वाली भारतीय नैटबौल टीम का नेतृत्व किया और देश का मान बढ़ाया, आज बदहाली में जी रही है.

नैटबौल, बास्केटबौल से ही मिलताजुलता एक अलग प्रकार का खेल है, जिसे सिर्फ महिलाएं ही खेलती हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर करने के लिए इस खेल की शुरुआत की गई थी. करीब 70 देशों में यह खेल खेला जाता है. 2010 में भारत में आयोजित कौमनवैल्थ गेम्स में खेलने के लिए पहली बार अलगअलग खेलों की प्रतिभाशाली महिला खिलाडि़यों का चयन कर के नैटबौल टीम बनाई गई थी. तत्कालीन यूपीए सरकार व भारतीय नैटबौल फैडरेशन के द्वारा 22 प्रतिभाशाली महिला खिलाडि़यों को नैटबौल खेल का बेहतर प्रशिक्षण दिलावाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर आस्ट्रेलिया भेजा गया था.

3 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद तैयार हुईं भारतीय नैटबौल की महिला खिलाड़ी आज सरकार व फैडरेशन के अधिकारियों के बदल जाने के कारण अपने खेल से दूर हो कर निजी कंपनियों में नौकरियां कर रही हैं या शादी कर के अपना घर बसा चुकी हैं. नैटबौल टीम की खिलाडि़यों की समस्या व नैटबौल खेल क्या है और इसे कैसे खेला जाता है, विषय पर अधिक जानकारी के लिए पूर्व भारतीय नैटबौल टीम की कप्तान रहीं प्राची तहलान से बातचीत की, जिन की कप्तानी में भारतीय नैटबौल टीम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस खेल में सफलता के नए आयाम स्थापित किए. प्रस्तुत हैं, बातचीत के मुख्य अंश:

आप अपने नाम के आगे टीम प्राची तहलानक्यों लिखती हैं?

कोई खिलाड़ी अकेले अपने दम पर सफलता के शिखर तक नहीं पहुंचता है. परदे के पीछे से उस खिलाड़ी की कई लोग सपोर्ट करते हैं.

आप ने नैटबौल के खेल में ही अपना कैरियर बनाने की क्यों सोची जबकि आज महिला खिलाडि़यों का रुझान बैडमिंटन व टैनिस जैसे खेलों में है?

मैं लंबे कद की थी. जब मैं दिल्ली के सचदेवा पब्लिक स्कूल में 7वीं क्लास में पढ़ रही थी तब वहां के बास्केटबौल कोच ने मेरी अच्छी कदकाठी व छोटी उम्र को देखते हुए मुझे बास्केटबौल खेलने के लिए प्रेरित किया. बास्केटबौल खेल में लंबे कद के खिलाडि़यों को ज्यादा तरजीह मिलती है. 8वीं क्लास में जब मैं ने पहली बार ‘राष्ट्रीय खेलों’ में अपने स्कूल के लिए बास्केटबौल खेल में प्रतिनिधित्व किया तो मेरे अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए मुझे दिल्ली के प्रसिद्ध मोंटफोर्ट स्कूल से उन की बास्केटबौल टीम की ओर से खेलने का प्रस्ताव मिला, जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, क्योंकि मोंटफोर्ट स्कूल में बास्केटबौल खिलाडि़यों को अच्छी ट्रेनिंग दी जाती थी.

बास्केटबौल खेलतेखेलते आप भारतीय नैटबौल टीम की कप्तान कैसे बन गईं?

जब मैं ने दिल्ली के जीसस ऐंड मैरी कालेज में दाखिला लिया तब उस समय कालेज में कौमनवैल्थ गेम्स 2010 में हिस्सा लेने के लिए अलगअलग खेलों की प्रतिभाशाली लड़कियों का नैटबौल के लिए चयन किया जा रहा था. इस खेल के लिए 5 फुट 9 इंच से ले कर 6 फुट या इस से अधिक लंबी महिला खिलाडि़यों का ही चयन होना था. मेरी लंबाई की वजह से मेरा चयन इस खेल के लिए हो गया. प्रशिक्षण के दौरान मेरे अच्छे प्रदर्शन व बास्केटबौल खेल में मेरे 10 वर्ष के अनुभव को देखते हुए मुझे भारतीय नैटबौल टीम के कप्तान की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई.

आप की सरकार से क्या शिकायतें हैं?

भारतीय खेलों में फैडरेशन के द्वारा प्रतिभाशाली व अनुभवी खिलाडि़यों की अनदेखी कर के अपनी पहचान की खिलाडि़यों को खेलने का मौका दिया जा रहा है. 3 साल की मेहनत के बाद भारतीय नैटबौल टीम को अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले खेलने के लायक बनाया गया था. भारत सरकार के द्वारा पैसा खर्च कर के करीब 70 लड़कियों को नैटबौल खेलने के लिए प्रशिक्षित किया गया था. कौमनवैल्थ गेम्स खत्म होते ही फैडरेशन बदल गई और नए पदाधिकारी आ गए. नए पदाधिकारियों के द्वारा अपनी पहचान की खिलाडि़यों को मौका देने से पुरानी खिलाड़ी, जिन्होंने इस खेल में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सफलता दिलवाई थी, इस खेल से बाहर हो गईं. अब उन में आधी से ज्यादा लड़कियों की शादी हो चुकी है.

एक स्टेज पर आने के बाद लोगों को पैसे की भी आवश्यकता होती है. कौमनवैल्थ के समय हम से यह कहा गया था कि जीवनयापन के लिए हमें रेलवे या अन्य सरकारी विभागों में नौकरी दी जाएगी, पर फैडरेशन के बदलते ही हम खेल से बाहर हो गईं. मैं स्वयं एक निजी कंपनी में काम करने को मजबूर हूं. नौकरी करने के कारण हमारा ध्यान खेल से दूर हो गया. हम ने अभाव में रह कर इस खेल की तैयारी की थी. नैटबौल एक इनडोर गेम है, जबकि हम ने चिलचिलाती धूप में आउटडोर प्रैक्टिस कर के अंतर्राष्ट्रीय मैच भारत के लिए खेले हैं.

हौंगकौंग में हम 3 लड़कियां पैसे के अभाव के कारण 6×4 के छोटे से कमरे में रही हैं. आप सोच सकते हैं कि हम वहां कैसे रही होंगी. खाना खिलाने के लिए फैडरेशन के पास पैसे नहीं होते. दूसरी तरफ आज क्रिकेट, फुटबौल और कबड्डी लीग आ रही हैं, जिन से फिल्मी सितारों का नाम जुड़ा हुआ है. किसी फिल्मी सितारे के किसी खेल से जुड़ने के कारण उस खेल में पैसे की बहार आ जाती है. फैडरेशन के पास भी खिलाडि़यों की बेहतर देखभाल के लिए बजट का आवंटन होना चाहिए. बजट का आवंटन होता भी है तो वह खिलाडि़यों तक नहीं पहुंच पाता है.

अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए आप नौकरी कर रही हैं. नौकरी के अलावा क्या किसी अन्य क्षेत्र से भी जुड़ी हुई हैं?

नौकरी करने के कारण मैं अपना समय खेल में नहीं दे पा रह हूं. अगर सरकार मेरी मदद करे तो मैं फिर से खेलना चाहूंगी. अभी मैं नैटबौल डैवलपमैंट ट्रस्ट जोकि यूनाइटेड किंगडम की संस्था है, से जुड़ी हुई हूं. मैं इस ट्रस्ट की भारत की ब्रैंड ऐंबैसेडर हूं. यह ट्रस्ट भारत में नेटबौल खिलाडि़यों की बेहतरी के लिए काम करती है.

आप की लंबाई अच्छी है. आप ने मौडलिंग के लिए कभी प्रयास किया?

मैं ने मौडलिंग के लिए कभी प्रयास नहीं किया है. मैं अपने नैटबौल के कैरियर से ही खुश हूं.

नैटबौल में आने वाली नई लड़कियों को आप से क्या संदेश देना चाहेंगी?

मैं संदेश लड़कियों को नहीं, आप की पत्रिका के माध्यम से सरकार व फैडरेशन से यह अपील करना चाहती हूं कि जिन खिलाडि़यों ने देश के लिए खेला है उन के बेहतर जीवनयापन के लिए सरकारी नौकरियों में अलग से नियुक्तियां हों. अगर नौकरियों में महिला खिलाडि़यों को तवज्जो मिलेगी तो नई लड़कियां खेलों की तरफ स्वयं आकर्षित होंगी और भविष्य की चिंता से मुक्त हो कर वे अपने खेल में बेहतर प्रदर्शन कर दुनिया में भारत का नाम रोशन करेंगी.

भजभजियों का हल्ला मचाना निरर्थक

हमारीभजभजिया मंडली को आपत्ति हो सकती है पर संजय दत्त को सजा देने में छूट पर ज्यादा हल्ला मचाने की जरूरत नहीं है. 1993 के हिंदूमुसलिम दंगों के दौरान हिंदू गुंडों की दंगाई फौज से डर कर तब किशोर से संजय दत्त ने एक एके47 राइफल काले बाजार से खरीद ली थी पर पकड़ा गया था. उस पर गुनाह साबित करना कठिन हो जाता पर उस के पिता ने शराफत में उसे गुनाह कबूल करने की सलाह दी और अदालतों के पास उसे सजा देने के अलावा कोई चारा न बचा. हालांकि तब से वर्षों तक जमानत पर बाहर रहने के कारण उस ने कई यादगार फिल्में कीं पर यह राइफली भूत उस के सिर पर सवार रहा.

अब उसे रिहा किया जा रहा है तो भजभजिए हल्ला मचा रहे हैं जो निरर्थक और बेकार की बात है. संजय दत्त मूलत: अपराधी नहीं कलाकार है. उस से समाज को खतरा नहीं है. वह अगर गलती कर बैठा तो उस ने लंबी कैद पहले और बाद में अदालतों के गलियारों में काटी है. कानून इतना बेरहम नहीं होना चाहिए कि एक सुधरे व्यक्ति, जिस ने किसी का कोई नुकसान नहीं किया हो, को सिर्फ कागजी खानापूर्ति के लिए जेल में भरे.

संजय दत्त जैसे सैकड़ों मामलों में जघन्य अपराधियों को छोड़ा जाता है ताकि जेलों में अच्छे आचरण पर इनाम दिया जा सके. अगर कट्टरपंथियों की सुनें तो वे तो चाहेंगे कि जेबकतरों और लड़की पर सीटी बजाने वालों को भी चौराहे पर फांसी पर लटका दिया जाए. ये भजभजिए उसी जमात के हैं जो गौ सेवा के नाम पर आदम हत्या को उचित मानते हैं और देश भर में पशुओं का जायज व्यापार करने वालों को पीटपीट कर मार रहे हैं. विडंबना यह है कि भजभजिए सिर्फ अपनी दुकानदारी बचाए रखने हेतु कुछ भी ऊलजलूल गढ़ते रहते हैं जिस से समाज का ध्यान बंटे और उन की दुकानदारी को फायदा पहुंचे, उन का नाम जनहित की फेहरिस्त में ऊपर हो, जबकि असलियत बिलकुल उलट होती है. अब जबकि संजय दत्त की रिहाई से किसी का धर्म किसी तरह आहत नहीं होता, इस के बावजूद भजभजिए आपत्ति जता कर देश को बांट कर अपनी दुकानदारी बरकरार रखने को तत्पर हैं जबकि संजय दत्त ने कोई ऐसा जघन्य अपराध भी नहीं किया है. सोशल मीडिया का जो गलत इस्तेमाल हो रहा है जिस में भड़काऊ बेसिरपैर की कहानियां दोहराई जा रही हैं, जो हुआ नहीं उसे कल हुआ कह कर बांटा जा रहा है और अपनी भड़ास निकालने या दानदक्षिणा सुरक्षित करने के लिए मुसलिम मां नरगिस के बेटे को निशाना बना रहे हैं. उन्हें न देश से प्रेम है न मानवता या आदर्श व्यवहार से. उन्हें तो वह धर्म चाहिए जो शूद्रों व अछूतों के नाम पर गरीब सेवक दे और पूजापाठ के नाम पर दानदक्षिणा और उस के लिए संजय दत्त जैसे कितनों को ही कोसा जा सकता है.

जब पति तोड़े भरोसा

आयशा अपने पति से तलाक चाहती है. वजह है उस के पति के किसी और महिला से संबंध. आयशा ने 2 साल पहले ही आयुश से शादी की थी. शादी के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था, मगर एक दिन आयशा को पता चला कि उस के पति औफिस से निकल कर किसी और महिला के पास जाते हैं. आयशा अभी मां नहीं बनी है. आयुश से अलग होने में उसे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं जो सब कुछ जानते हुए भी अपने परिवार और बच्चों की खातिर तलाक नहीं ले पातीं.

यह सच है कि बेवफा साथी कभी सच्चा साथी नहीं हो सकता. एक बार भरोसा टूट जाने के बाद रिश्तों में हमेशा के लिए कड़वाहट आ जाती है. एक बात और ध्यान देने वाली है कि पति की बेवफाई झेलने वाली औरत सिर्फ पत्नी नहीं होती, मां भी होती है, इसलिए पति से संबंध बिगड़ने का बच्चों की देखरेख पर भी बुरा असर पड़ता है. बेवफाई हर औरत को अखरती है भले ही उस की उम्र कुछ भी हो. बेवफा साथी के साथ कैसे पेश आएं, इस का फैसला बहुत सोचविचार कर और समझदारी से करना चाहिए.

सही निर्णय लें

जब आप को एहसास होता है कि आप के साथ धोखा हो रहा है तो एक मां होने के नाते कभीकभी आप को कठिन फैसला लेना पड़ता है. आप अविश्वास भरे माहौल में रहने के बजाय अलग रहना पसंद करेंगी और रिश्ता तोड़ना चाहेंगी. मगर आप अपने बच्चों के सामने अपने असफल रिश्ते का उदाहरण भी नहीं रखना चाहतीं. परिवार के लोग भी नहीं चाहते कि आप अपना रिश्ता खत्म करें. आप घुटन व अवसाद में जी रही हैं और आप की जिंदगी बदतर हो गई है तो समझ लीजिए अब फैसले की घड़ी है. अब या तो आप पति से वादा लीजिए कि भविष्य में वे कभी आप के साथ धोखा नहीं करेंगे या फिर उन से अलग होने का फैसला. आप का सही फैसला आप की जिंदगी पुन: पटरी पर ला सकता है.

बच्चों को आश्वस्त करें

अगर आप अपने पति के बरताव और उन की बेवफाई से तंग आ कर उन से अलग होने का फैसला कर रही हैं तो आप का यह निर्णय आपसी सहमति पर होना चाहिए. अपने बच्चों को भरोसा दिलाएं कि आप के तलाक के फैसले का उन की जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. उन्हें पहले से बेहतर जिंदगी देने का आश्वासन दें. उन्हें बताएं कि अगलअलग घर में रह कर भी वे उन्हें पहले जैसे ही भरपूर प्यार करेंगे. याद रखिए, आप का रिश्ता टूटने पर जितनी तकलीफ आप को होगी उस से कहीं अधिक आप के बच्चों को होगी. एक तो अपनी मां का तलाक होने का दर्द और दूसरा अपने पिता से दूर होने का, यदि बच्चे मां के पास हैं तो.

बच्चों के सवालों के लिए रहें तैयार

याद रखें बच्चे इस बात को पहले सोचते हैं कि उन के मातापिता के अलग हो जाने पर उन की जिंदगी कैसी होने वाली है. इसलिए उन के सवालों के जवाब देने के लिए पहले से ही तैयार हो जाएं. जैसे घर छोड़ कर कौन जाएगा? हमारी छुट्टियां कैसे बीतेंगी? पापा के हिस्से का काम कौन करेगा? आदिआदि.

क्या आप माफ कर सकती हैं

अगर आप के पति को अपने किए पर पछतावा है और वे आप को बारबार लगातार सौरी बोल रहे हैं, तो एक बार ठंडे दिमाग से सोच कर देखें कि क्या आप उन्हें माफ कर सकती हैं? क्या आप भविष्य में उन पर भरोसा कर सकती हैं? क्या आप बीती बातों को भुला सकती हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन के उत्तर आप को देने हैं और अपनी भावनाओं के प्रति ईमानदार रह कर फैसला करना है. याद रखें सब कुछ भुला कर रिलेशनशिप में बने रहने का फैसला लेने के बाद आप अपने पति को उन के किए की सजा नहीं दे पाएंगी.

रिश्ता बचाने की कोशिश करें

अगर आप के पति ने सिर्फ एक बार गलती की है और वे इस के लिए खेद जता रहे हैं तो तलाक जैसा कठिन फैसला आप की जिंदगी के लिए बैस्ट नहीं हो सकता. यह भले ही आप को सुनने में अच्छा न लगे, लेकिन सच यही है. कुछ लोगों का कहना होता है कि जिस ने एक बार धोखा किया है वह हमेशा देगा. मगर ऐसा सोचना गलत है. आप अपना रिश्ता बचा कर अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी में बहुत कुछ बचा सकती हैं.

बच्चों को न बताएं

अपने बच्चों से यह कतई न कहें कि आप उन के पापा के किसी और से अफेयर के कारण अलग होना चाहती हैं. हो सकता है कि वे आप के लिए एक अच्छे पति न बन पाए हों, मगर अपने बच्चों के लिए वे एक अच्छे पापा हों. इसलिए अगर आप उन से उन के पापा के अफेयर के बारे में बताएंगी तो उन के बालमन को आघात लगेगा और इस से निकलने में उन्हें बहुत समय लग सकता है.

बच्चों को जरीया न बनाएं

ऐसी परिस्थितियों में आप अपने पति को हर्ट करने के लिए अपने बच्चों का इस्तेमाल कर सकती हैं, जो ठीक नहीं है. ऐसा कर के आप बच्चों का उन के पापा के साथ संबंध भी बिगाड़ रही हैं. बच्चों को खुद फैसला करने दें कि उन का अपने पापा के प्रति क्या विचार है. थोड़ा बड़ा होने पर वे ऐसा कर सकते हैं.

आज शहरों में तलाक के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. इस में 80 फीसदी कारण पार्टनर की बेवफाई होती है. आज महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं. रिश्तों में ऐसी कड़वाहट के साथ जीना उन्हें हरगिज गवारा नहीं है. यह सच है कि बेवफा साथी के साथ रहने का फैसला करना बहुत कठिन है, लेकिन एक रिश्ते की चिता पर कई रिश्तों की अर्थी न चढ़ जाए, यह सोच कर अगर संभव हो तो रिश्ता बचाने की एक कोशिश जरूर करनी चाहिए. पति से अलग होने के फैसले के साथ पति का पूरा परिवार भी अकसर अलग हो जाता है. बच्चों से उन का पिता छिनने के साथ ही उन के दादादादी, बूआ, चाचा यानी पूरा परिवार छिन जाता है. तलाक के कठिन फैसले से सिर्फ आप ही अकेली नहीं होतीं, कई जिंदगियां छिन्नभिन्न हो जाती हैं. इसलिए रिश्ते को बचाने की कोशिश किए बिना तलाक के लिए आवेदन करना ठीक नहीं है. यकीन मानिए, जो खुशी सब के साथ जीने में है, वह अकेले में कतई नहीं.

जबरन यौन संबंध पति का विशेषाधिकार नहीं

विवाह बाद पत्नी से जबरन सैक्स करने को बलात्कार कहा जाने वाला कानून बनाए जाने के खिलाफ जो बातें कही जा रही हैं वे सब धार्मिक नजरिए से कही जा रही हैं. इन का मकसद यह कहना है कि चूंकि हिंदू धर्म में विवाह एक पवित्र बंधन है, इसलिए वैवाहिक बलात्कार जैसी किसी बात के लिए यहां कोई जगह नहीं. जब से विवाहितों के बीच बलात्कार को ले कर चर्चा शुरू हुई तब से यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि रोजमर्रा की इस बहुत ही सहज, सरल व सामान्य बात को ले कर इतना शोर मचाने का कोई औचित्य नहीं है.

कभी न कभी हर महिला अपने सुख के लिए नहीं, मात्र पति की यौन संतुष्टि के लिए बिस्तर पर बिछती है. शादी को ले कर उस ने जो सपना बुना होता है वह चूरचूर हो जाता है. कई नवविवाहित युवतियों का पहली रात का अनुभव बड़ा दर्दनाक होता है. इतना कि सैक्स उन के लिए आनंद का नहीं, बल्कि डर का विषय बन कर रह जाता है. कुछ इस डर को रोज झेलती हैं और फिर यह उन की आदत में शुमार हो जाता है.

दरअसल, इस तरह का मामला तब तकलीफदेह हो जाता है जब किसी महिला के पति का संभोग हिंसक यौन हमले का रूप ले लेता है और वह महिला महज यौन सामग्री के रूप में तबदील हो जाती है. वह असहाय हो जाती है. तब जाहिर है, आपसी परिचय और भरोसे की नींव हिल जाती है. कुछ मामलों में वजूद का आपसी टकराव ही ऐसे संबंध की सचाई बन कर रह जाता है. कुछ ज्यादा ही सोचता है. एक लड़की का बदन किस हद तक खुला रहना शोभनीय या अशोभनीय है या फिर किसी बच्ची के लड़की से युवती बनने के रास्ते में कौन से शारीरिक संबंध सामाजिक रूप से स्वीकृत हैं, इस सब के बारे में सामाजिक व धार्मिक फतवे जारी किए जाते हैं. जबकि इसी समाज में चाचा, मामा और यहां तक कि पिता और भाइयों द्वारा भी लड़कियां बलात्कार की शिकार हो रही हैं. तो क्या यह भी धर्म और संस्कृति का हिस्सा है? बहरहाल, अब एक और सांस्कृतिकसामाजिक फतवे को सरकारी स्वीकृति दिलाने की कोशिश की जा रही है और यह स्वीकृति है वैवाहिक संबंध में बलात्कार को ले कर. कहा जा रहा है कि धर्म के अनुसार हुए विवाह में बलात्कार की गुंजाइश नहीं है.

गौरतलब है कि निर्भया कांड के बाद वर्मा कमीशन द्वारा वैवाहिक बलात्कार को बलात्काररोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश से हड़कंप मच गया. मोदी सरकार में मंत्री रहे हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने साफसाफ शब्दों में कहा है कि वैवाहिक रिश्ते में बलात्कार जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती. इस के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ किया कि विधि आयोग ने बलात्कार संबंधी कानून में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की सूची में शामिल नहीं किया है और न ही सरकार ऐसा करने की सोच रही है.

अंदेशा यह है कि इस से परिवारों के टूटने का खतरा बढ़ जाएगा. इस खतरे को टालने के लिए हमारा समाज पत्नियों की बलि लेने को तैयार है. तर्क यह भी कि भारतीय समाज में केवल विवाहित यौन संबंध को ही सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है और इस पर पत्नी और पति दोनों का ही समान अधिकार है. अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा भी तो भारत की धार्मिक संस्कृति का हिस्सा है. लेकिन ऐसा होता कहां है? ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यौन संबंध बनाने में पत्नी की इच्छा न होने की स्थिति में क्या ऐसा करने का अधिकार अकेले पति को मिल जाता है? जबरन संबंध बनाने का अधिकार अकेले पति  का कैसे हो सकता है? पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने को आखिर क्यों बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए?

आइए, जानें कि भारतीय कानून इस बारे में क्या कहता है. कोलकाता हाई कोर्ट के वकील भास्कर वैश्य का कहना है कि भारतीय कानून के तहत पति को केवल 2 तरह के मामलों में बलात्कारी कहा जा सकता है- पहला अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो और पति उस के साथ जबरन यौन संबंध बनाए तो कानून की नजर में यह बलात्कार है और दूसरा, पतिपत्नी के बीच तलाक का मामला चल रहा हो, कानूनी तौर पर पतिपत्नी के बीच विच्छेद यानी सैपरेशन चल रहा हो और पति पत्नी की रजामंदी के बगैर जबरन यौन संबंध बनाता है तो इसे भारतीय कानून में बलात्कार कहा गया है. इस के लिए सजा का प्रावधान भी है. हालांकि इन दोनों ही मामलों में पति को जो सजा सुनाई जा सकती है वह बलात्कार के लिए तय की गई सजा की तुलना में कम ही होती है.

विवाह की पवित्रता पर सवाल

सुनने में यह भी बड़ा अजीब लगता है कि विवाहित महिला कानून यौन संबंध के लिए पति को अपनी सहमति देने को बाध्य है यानी पत्नी यौन संबंध के लिए पति को मना नहीं कर सकती. कुल मिला कर यहां यही मानसिकता काम करती है कि चूंकि हमारे यहां विवाह को पवित्र रिश्ते की मान्यता प्राप्त है और इस का निहितार्थ संतान पैदा करना है, इसलिए पतिपत्नी के बीच यौन संबंध बलात्कार की सीमा से बाहर की चीज है. तब तो इस का अर्थ यही निकलता है कि यौन संबंध बनाने की पति की इच्छा के आगे पत्नी की अनिच्छा या उस की असहमति कानून की नजर में गौण है.

ऐसे में यह कहावत याद आती है कि मैरिज इज ए लीगल प्रौस्टिट्यूशन यानी पत्नी का शरीर रिस्पौंस करे या न करे पति के स्पर्श में प्रेम की छुअन का उसे एहसास मिले या न मिले पति की जैविक भूख ही सब से बड़ी चीज है. यह बात दीगर है कि जब प्रेमपूर्ण स्पर्श पर पति की जैविक भूख हावी हो जाती है तब यह स्थिति किसी भी पत्नी के लिए किसी अपमान से कम नहीं होती.

जाहिर है, सभी विवाह पवित्र नहीं होते. हमारे समाज में बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं, जिन के मन में कभी न कभी यह सवाल उठाता है कि क्या वाकई सैक्स पत्नियों के लिए भी सुख का सबब हो सकता है? जिन के भी मन में यह सवाल आया, उन के लिए शादी कतई पवित्र रिश्ता नहीं हो सकता. रवींद्रनाथ ठाकुर ने भी अपने एक अधूरे उपन्यास ‘योगायोग’ में वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा उठाया है. उन्होंने उपन्यास की नायिका कुमुदिनी के जरीए यही बताने की कोशिश की है कि सभी विवाह पवित्र नहीं होते. शादी के बाद पति मधुसूदन के साथ बिताई गई रात के बाद कुमुदिनी ने आखिर अपनी करीबी बुजुर्ग महिला से पूछ ही लिया कि क्या सभी पत्नियां अपने पति को प्यार करती हैं?

गौरतलब है कि यह उपन्यास 1927 में लिखा गया था. जाहिर है, वैवाहिक बलात्कार इस से पहले एक सामाजिक समस्या रही होगी और नारीवादी रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस समस्या को अपने इस उपन्यास में बड़ी शिद्दत से उठाया है.

वैवाहिक बलात्कार और राजनेता

वैवाहिक बलात्कार पर यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड का एक आंकड़ा कहता है कि भारत में विवाहित महिलाओं की कुल आबादी की तीनचौथाई यानी 75% महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में अकसर बलात्कार का शिकार होती हैं. मजेदार तथ्य यह है कि आज भी वैवाहिक बलात्कार के आंकड़े पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं. अगर इस से संबंधित आंकड़े उपलब्ध होते तो समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाना और भी सहज होता, कभीकभार ही कोई मामला दर्ज होता है.

विश्व के ज्यादातर देशों में वैवाहिक बलात्कार की गिनती दंडनीय अपराधों में होती है. यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड के इस आंकड़े के आधार पर ही डीएमके सांसद कनीमोझी ने भी बलात्कार विरोधी कानून में बदलाव की मांग की थी. इसी मांग के जवाब में मोदी सरकार में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथी ने बयान दिया कि वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था, मूल्यबोध और धार्मिक आस्था के अनुरूप नहीं है. जाहिर है, 16 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में निर्भया कांड की जांच के लिए गठित किए गए वर्मा कमीशन की रिपोर्ट की हरिभाई पारथी ने अनदेखी कर के बयान दिया था. गौरतलब है कि वर्मा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में वैवाहिक बलात्कार को भी बलात्कार विरोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश की थी. हालांकि हमारा बलात्कार संबंधी कानून तो यही कहता है कि यौन संबंध बनाने में महिला की सहमति न हो तो उस की गिनती बलात्कार में होगी. लेकिन पति द्वारा बलात्कार को इस से जोड़ कर देखने में सरकार को भी गुरेज है.

शादी एकतरफा यौन संबंध की छूट नहीं

इस विषय पर आम चर्चा के दौरान मध्य कोलकाता में एक डाकघर में कार्यरत संचिता चक्रवर्ती बड़ी ही बेबाकी के साथ कहती हैं कि कानून की बात दरकिनार कर दें. जहां तक यौन संबंध में महिला की सहमति का सवाल है तो उस का निश्चित तौर पर अपना महत्त्व है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता. विवाह का प्रमाणपत्र इस महत्त्व को कतई कम नहीं कर सकता. यौन संबंध में पतिपत्नी दोनों अगर बराबर के साझेदार हों तो वह सुख दोनों के लिए अवर्णनीय होगा. विवाह बंधन जबरन यौन संबंध का लाइसैंस किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता.

संचिता कहती हैं कि मोदी सरकार में मंत्री के बयान की बात करें तो उस से तो यही लगता है कि उन के हिसाब से भारतीय संस्कृति में पत्नी की सहमति के बगैर यौन संबंध बनाने की पति को छूट है. भारत में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का वास है. तथाकथित भारतीय संस्कृति में विवाहित महिला पुरुष की बांदी है, भोग की वस्तु है. इसीलिए वैवाहिक बलात्कार उन की तथाकथित भारतीय संस्कृति में लागू नहीं होता.

अमेरिका के शिकागो में एक अस्पताल में कार्यरत भारतीय मूल की सुष्मिता साहा का कहना है कि इस विषय को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और वैवाहिक बलात्कार पर सख्त कानून होना ही चाहिए. आज भारत में जिस संस्कृति की दुहाई दी जा रही है, वही स्थिति कभी ब्रिटेन या न्यूयौर्क में थी. पर अब वहां वैवाहिक बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए कड़े कानून बनाए गए हैं. फिर भारत में यह क्यों नहीं संभव हो सकता?

सुष्मिता कहती हैं, ‘‘जबरन यौन संबंध पति का विशेषाधिकार उसी तरह नहीं हो सकता, जिस तरह विवाह का प्रमाणपत्र यौन हिंसा की छूट नहीं देता. इसलिए वैवाहिक बलात्कार भी दरअसल दूसरे बलात्कार की ही तरह यौन हिंसा का ही एक मामला है, ऐसा न्यूयौर्क के अपील कोर्ट ने अपने बयान में कहा था. लेकिन अगर एक पत्नी के नजरिए से देखें तो वैवाहिक बलात्कार अन्य बलात्कार से इस माने में अलग है कि यहां यौन हिंसा को महिला का सब से करीबी व्यक्ति अंजाम देता है. यही बात किसी पत्नी को जीवन भर के लिए झकझोर देती है.

विवाह और यौन स्वायत्तता

भारतीय संस्कृति में पारंपरिक विवाह के तहत लड़कालड़की की पारिवारिकसामाजिक हैसियत को देखपरख कर वैवाहिक रिश्ते तय होते हैं. ऐसे रिश्ते में जाहिर है परस्पर प्रेम व मित्रता शुरुआत में नहीं होती है. हालांकि कुछ समय के बाद पतिपत्नी के बीच प्रेम का रिश्ता बन जाता है. पर ऐसे ज्यादातर विवाह एकतरफा यौन स्वायत्तता का मामला ही होते हैं. मोदी सरकार के मंत्री ने जिस भारतीय संस्कृति की बात की है उस में नारीजीवन की इसी सार्थकता का प्रचार सदियों से किया जाता रहा है और इस संस्कृति में औरत पुरुष के खानदान के लिए बच्चे पैदा करने का जरीया और पुरुष के लिए यौन उत्तेजना पैदा करने की खुराक मान ली गई है.

हमारी परंपरा में लड़कियां अपने मातापिता को खुल कर सब कुछ कहां बता पाती हैं? खासतौर पर नई शादी का ‘लव बाइट’ आगे चल कर पति का ‘वायलैंट बाइट’ बन जाए तो शादी के नाम पर लड़की अकसर अपने भीतर ही भीतर घुट कर रह जाती है. माना ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है. 2013 में दिल्ली में पारंपरिक विवाह के बाद नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए बैंकौक पहुंचा. हनीमून के दौरान लड़की के साथ उस के पति पुनीत ने क्रूरता की तमाम हदें पार कर के बलात्कार किया. लौट कर लड़की ने पुलिस में शिकायत दर्ज की. पुलिस ने दीनदयाल अस्पताल में लड़की की जांच करवाई तो बलात्कार की पुष्टि हुई. इस के बाद भारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दायर किया.

साफ है कि वैवाहिक बलात्कार पर हमारा कानून एकदम से खामोश भी नहीं है. इस के लिए भी हमारे यहां प्रावधान है. भारतीय दंड विधान की घरेलू हिंसा की धारा 498ए के तहत शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न और क्रूरता के लिए सजा का प्रावधान है. इसी धारा के तहत वैवाहिक बलात्कार का निदान महिलाएं ढूंढ़ सकती हैं.

अन्य देशों की स्थिति

चूंकि विकास और सभ्यता एक निरंतर प्रक्रिया है, इसीलिए दुनिया के बहुत सारे देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कोई कानून नहीं था. लेकिन विमन लिबरेशन ने महिलाओं को अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करना सिखाया. लंबी लड़ाई के बाद सफलता भी मिली. दोयमदर्जे की स्थिति में बदलाव आया. कहा जाता है कि आज दुनिया के 80 देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कानूनी प्रावधान हैं.

बहरहाल, दुनिया में वैवाहिक बलात्कार को ले कर चर्चा ने तब पूरा जोर पकड़ा जब 1990 में डायना रसेल की एक किताब ‘रेप इन मैरिज’ प्रकाशित हुई. इस किताब में डायना रसेल ने समाज को अगाह करने की कोशिश की है कि वैवाहिक जीवन में बलात्कार को पति के विशेषाधिकार के रूप में देखा जाना पत्नी के लिए न केवल अपमानजनक है, बल्कि महिलाओं के लिए एक बड़ा खतरा भी है. 2012 में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की आयुक्त भारतीय मूल की नवी पिल्लई ने कहा कि जब तक महिलाओं को उन के शरीर और मन पर पूरा अधिकार नहीं मिल जाता, जब तक पुरुष और महिला के बीच गैरबराबरी की खाई को पाटा नहीं जा सकता. महिला अधिकारों का उल्लंघन ज्यादातर उस के यौन संबंध और गर्भधारण से जुड़ा हुआ होता है. ये दोनों ही महिलाओं का निजी मामला है. कब, कैसे और किस के साथ वह यौन संबंध बनाए या कब, कैसे और किस से वह बच्चा पैदा करे, यह पूरी तरह से महिलाओं का अधिकार होना चाहिए. यह अधिकार हासिल कर के ही कोई महिला सम्मानित जीवन जी सकती है.

1991 में ब्रिटेन की संसद में वैवाहिक संबंध में बलात्कार का मामला उठाया गया था, जो आर बनाम आर के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है. ब्रिटेन संसद के हाउस औफ लौर्ड्स में कहा गया कि चूंकि शादी के बाद पति और पत्नी दोनों समानरूप से जिम्मेदारियों का वहन करते हैं, इसलिए पति अगर पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है तो अपराधी करार दिया जा सकता है. इस से पहले 1736 में ब्रिटेन की अदालत के न्यायाधीश हेल ने एक मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया था कि शादी के बाद सभी परिस्थितियों में पत्नी पति से यौन संबंध बनाने को बाध्य है. उस की शारीरिक स्थिति कैसी है या यौन संबंध बनाने के दौरान वह क्या और कैसा महसूस कर रही है, इन बातों के इसलिए कोई माने नहीं हैं, क्योंकि शादी का अर्थ ही यौन संबंध के लिए मौन सहमति है. हेल के इस फैसले को ब्रिटेन में 1949 से पहले कभी किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन 1949 में एक पति को पहली बार पत्नी के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया गया.

ब्रिटेन के अलावा यूरोप के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय अपराध है. अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों में भी इस के लिए कानून बना कर इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी पत्नी की रजामंदी के बगैर संभोग को बलात्कार करार दिया है. कोर्ट ने अपनी इस घोषणा का आधार हिंदू धर्म को ही बताते हुए कहा है कि हिंदू धर्म में पति और पत्नी की आपसी समझ को ही महत्त्व दिया गया है. इसलिए यौन संबंध बनाने में पति पत्नी की मरजी की अनदेखी नहीं कर सकता. अब जब नेपाल, वैवाहिक बलात्कार के लिए महिलाओं के पक्ष में कानून बना सकता है तो भारत में क्या दिक्कत है?

बॉलीवुड के सितारों को नहीं भूलता वह दिन

दीपिका पादुकोण जब पहली बार फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में मुख्य भूमिका के लिए चुनी गईं और उस भूमिका के लिए उन्हें पुरस्कार मिला, तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. पहली बार किसी पुरस्कार समारोह में भाग लेना और हाथ में ट्रौफी पकड़ना उन के लिए किसी सपने की तरह था. एक पल के लिए पूरी दुनिया उन के सामने से घूम गई. इस से पहले जब वे पढ़ती थीं, तो रात का खाना खाते समय अपने मम्मीपापा और बहन के साथ पुरस्कार वितरण समारोह टीवी पर देखा करती थीं. कभी उन्हें इस में शामिल होने का अवसर मिलेगा, उन्होंने सोचा भी नहीं था. उन्हें आज भी वह दिन याद आता है.

परिणीति चोपड़ा: परिणीति चोपड़ा एक बैंकर थीं और लंदन में काम करती थीं. आर्थिक मंदी के समय वे भारत आईं और मुंबई में प्रियंका चोपड़ा के यहां ठहर कर काम की तलाश करने लगीं. प्रियंका चोपड़ा उस समय ‘प्यार इंपौसिबल’ की शूटिंग यशराज स्टूडियो में कर रही थीं. उन्हें परिणीति का वहां परिचय करवाया तो उन्हें पब्लिक रिलेशन का काम मिला. अभिनय के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था, क्योंकि उन्हें भारीभरकम मेकअप पसंद नहीं था. उसी समय निर्देशक मनीष शर्मा जो फिल्म बना रहे थे, उस के लिए उन्हें नए चेहरे की तलाश थी. उन्होंने परिणीति को औफर दिया, तो परिणीति ने न चाहते हुए भी हां इसलिए कह दिया, क्योंकि उन्हें लगा था कि औडिशन में वे बाहर निकाल दी जाएंगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वे कहती हैं कि उस दिन औडिशन में सफल होना ही कामयाबी का राज रहा. उसे मैं हमेशा याद करती हूं.

विद्या बालन: विद्याबालन ने शुरू में कई संगीत वीडियोज में काम किया. उन्हें एक अच्छी हिंदी फिल्म में काम की तलाश थी, पर वह मिल नहीं रहा था. अचानक निर्देशक प्रदीप सरकार ने उन्हें म्यूजिक वीडियो में देख कर उन को फिल्म ‘परिणीता’ के लिए औफर दिया, जिस के लिए उन्हें करीब 6 महीने तक बारबार औडिशन का सामना करना पड़ा. उन्हें कई बार तो यह लगता था कि काम मिलेगा नहीं. पर वे चुन ली गईं और फिल्म बनी. वे कहती हैं कि आईफा अवार्ड में पूरी कास्ट मौजूद थी. जब मुझे स्टेज पर बुलाया गया और जब मैं स्टेज की सीढि़यां चढ़ रही थी, तो उस वक्त लगा कि एक पल में पूरी दुनिया मेरे लिए बदल गई है. जिंदगी भर जिस की चाहत थी वह एक क्षण में पूरी हो जाने वाली थी. कैरियर में हर किसी के लिए यह जरूरी नहीं कि उस ने जो काम शुरू किया है वही आगे तक जाए. कई बार, जो काम लोग शुरू करते हैं, अचानक वह बदल जाता है और वे नई दिशा की ओर चल देते हैं.

रणबीर कपूर: रणबीर कपूर का यादगार पहला दिन वह है जब आज से 8 साल पहले 9 नवंबर को उन की पहली फिल्म ‘सांवरिया’ रिलीज हुई थी. वे कहते हैं कि फिल्म चलेगी या नहीं इस पर मैं ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह मेरे हाथ में नहीं था. लेकिन जब फिल्म रिलीज होने के बाद मुझे उस में अपनी भूमिका के लिए अवार्ड मिलने की घोषणा हुई तो मैं बहुत उत्साहित था. अवार्ड वाला दिन तो मेरे लिए खास था ही, मैं कैसा दिखूंगा, कैसे अवार्ड हाथ में लूंगा, कैसे स्पीच दूंगा, यह सब भी मेरे लिए खास था.

रणवीर सिंह: रणवीर सिंह का अभिनय के क्षेत्र में वह दिन दिलचस्प रहा जब उन्हें फिल्म ‘बैंड बाजा बरात’ में अभिनय का मौका मिला. वे हंसते हुए कहते हैं कि अभिनय से पहले मैं कौपीराइटर और असिस्टैंट डाइरैक्टर था. इस काम को करते वक्त मैं हमेशा वैनिटी वैन के बाहर ही रहता था. लेकिन जब मैं अभिनेता बना तो मुझे वैनिटी वैन मिली. मुझ से कहा गया कि तुम तैयार रहना तो मैं उस दिन जल्दी करीब 1 घंटा पहले सैट पर पहुंच गया और तैयार हो कर वैनिटी वैन में बैठा रहा.

जब शौट के लिए मुझे बुलाया गया, तो कैमरे के आगे जाते ही मैं घबरा कर अपना डायलौग भूल गया. मेरा मुंह खुल रहा था, पर डायलौग बाहर नहीं आ रहा था. निर्देशक मुझ से पूछने लगे कि मुझे हुआ क्या है? मैं बोल क्यों नहीं रहा? तो भी मैं कुछ बोल न सका. लेकिन पीछे से जब मेरा संवाद बोला गया तब मैं ऐक्शन में आया. मुझे अपनेआप को अभिनेता समझने में समय लगा, लेकिन वह दिन मुझे अकसर याद आता है. कैरियर में ही नहीं, परिवारिक या निजी जीवन में भी कई बार पहले हुई कोई बात सालों याद रहती है.

चित्रांगदा सिंह: मौडलिंग की दुनिया से फिल्मों में कदम रखने वाली दिल्ली की चित्रांगदा सिंह को जब सुधीर मिश्रा की काल आई कि वे ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ में मुख्य भूमिका निभाने वाली हैं, तो वे खुशी से झूम उठीं, क्योंकि कई सालों की मेहनत के बाद उन्हें इतना बड़ा मौका मिल रहा था. वह दिन उन्हें आज भी याद है, जिस ने उन की जिंदगी बदल दी. वे कहती हैं कि बिना गौडफादर के इंडस्ट्री में काम मिलना बहुत कठिन है. उस दिन को मैं आज तक याद करती हूं.

संजय लीला भंसाली: फिल्म निर्माता और निर्देशक संजय लीला भंसाली को फिल्म ‘सांवरिया’ की असफलता से बहुत शक्ति मिली. संजय बताते हैं कि हालांकि यह मेरे लिए एक झटका था पर इस से मैं हताश नहीं हुआ. फिल्म लोगों को पसंद नहीं आई ठीक है, पर लोगों ने बहुत कुछ कहा. मैं जब भी कोई अखबार खोलता तो उस में लिखा होता कि भंसाली खत्म हो गया. लेकिन मैं संभलता गया. मेरे अंदर जनून आता गया. मैं ने उस नैगेटिविटी से पौजिटिविटी अपने लिए इकट्ठा की और आगे बढ़ा. उस के बाद फिल्में तो मैं ने कई सारी बनाईं पर ‘सांवरिया’ का फैल्योर मेरे लिए न भूलने वाला रहा.

करिश्मा कपूर: अभिनेत्री करिश्मा कपूर कहती हैं कि जिस दिन मेरी बेटी समायरा पैदा हुई और मैं ने अपनी बेटी को गोद में लिया, तो मुझे लगा कि मुझे सारी दुनिया की खुशी मिल गई. उस का वर्णन मैं आज भी नहीं कर सकती. मेरा कैरियर, मेरी प्रसिद्धि सब एक तरफ. मेरा मां बनना सब से अलग है. मुझे इस की सुखद अनुभूति हुई.

सोनाली बेंद्रे: बेंद्रे बताती हैं कि मेरा यादगार दिन मेरी शादी से जुड़ा है. जब मैं गोल्डी बहल से शादी के बाद ससुराल पहुंची, तो मुझे खाना बनाना नहीं आता था. घर में खाना तो मां बनाती थीं और मैं खाती थी. मेरी सासूमां ने खाना बनाने की सारी बेसिक बातें सिखाईं तो मैं ने सैंडविच बनाया था. आज मैं खुश हूं इसलिए कि अपने बच्चे को उस की पसंद का खाना बना कर खिला सकती हूं.

पीला रतुआ गेहूं का दुश्मन

सदाबहार अनाज गेहूं की फसल किसानों की आर्थिक रीढ़ है. देश में गेहूं का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता?है, लेकिन इस बार ठंड कम पड़ने से गेहूं की फसल पीले रतुआ के खतरों से घिरी हुई?है.

पीला रतुआ एक ऐसी बीमारी है, जो फसल को 50 से ले कर सौ फीसदी तक बरबाद कर सकती है. अगर समय रहते किसान जागरूक हो जाएं, तो इस रोग के खतरे से बचा भी जा सकता है.

किसान बड़े पैमाने पर गेहूं की अगेती व पछेती फसल की बोआई करते हैं. बरसात न होने और ठंड कम पड़ने के कारण फसल कमजोर हो जाती है. इस बार देश में किसान मौसम की इस बेरुखी के शिकार हो रहे?हैं. ऐसे में गेहूं की फसल की अच्छी पैदावार को ले कर चिंताएं बढ़ रही हैं. जनवरी से ले कर मार्च तक अगेतीपछेती खेती में पीला रतुआ रोग लगने की संभावना अधिक रहती है.

कृषि अधिकारी गेहूं को पीला रतुआ से बचाने के लिए किसानों को सतर्क रहने की हिदायत देते हैं. पीला रतुआ एक फफूंद है, जो हवा के जरीए फैसला है. पीला रतुआ का तापमान में गिरावट से सीधा संबंध है.

इस रोग में गेहूं के पौधों की पत्तियों पर पीले व नारंगी रंग के धब्बे पड़ जाते?हैं. रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के तनों व बालियों पर भी धब्बे पड़ जाते हैं. इस रोग का यदि समय रहते इलाज नहीं किया जाए, तो फसल बरबाद होने का डर रहता है. जब तापमान 25-30 डिगरी से ऊपर चला जाता है, तो पत्तियों की निचली सतह पर रोग के जीवाणु काले रंग की धारियां बना लेते हैं.

किसानों को माहिरों से पूछ कर पता कर लेना चाहिए कि वाकई यह रोग है या नहीं, क्योंकि कई बार पोषक तत्त्वों की कमी के कारण भी गेहूं के पत्ते पीले होने लगते हैं. जब तक रोग का पता न चले तब तब तक दवा का छिड़काव न करें.

इस की पहचान का तरीका आसान और साधारण होता?है. पीले पत्तों और पीला रतुआ में अंतर होता?है. पोषक तत्त्वों की कमी से पीली हुई गेहूं की पत्तियों को सफेद कपड़े पर रख कर रगड़ें तो कपड़ा पीला नहीं होगा, पर पीला रतुआ से प्रभावित गेहूं की पत्तियों को अगर सफेद कपड़े से रगड़ा जाए, तो कपड़ा पीला हो जाता है.

पीला रतुआ फैलने का पता चल जाए, तो जितनी जल्दी हो सके फफूंदनाशक दवा प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें. इस की मात्रा 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ के हिसाब से पानी में घोल बना कर इस्तेमाल करनी चाहिए. इस रोग के असर से गेहूं की बालियों में दाने कम बनते?हैं और उन का वजन भी कम हो जाता?है. इस से पैदावार में 50 फीसदी तक की कमी हो सकती है. पीला रतुआ का प्रकोप ज्यादा होने पर पैदावार का सौ फीसदी नुकसान भी हो सकता?है.

कई बार गेहूं के पौधों के पीला होने के दूसरे कारण भी होते?हैं. भूमिगत पानी में नमक की मात्रा ज्यादा होने, खेत के लंबे समय तक गीला रहने या 2 से ज्यादा खरपतवारनाशकों को मिला कर प्रयोग करने से पौधे पीले हो जाते?हैं. ऐसे में रतुआ रोकने वाली दवा का छिड़काव न करें. ऐसे में गेहूं की फसल पर 3 फीसदी यूरिया और 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए.

1 एकड़ के लिए 6 किलोग्राम यूरिया और 1.0 किलोग्राम जिंक सल्फेट (33 फीसदी) को 200 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करना चाहिए. इस से फसल का पीलापन ठीक हो जाएगा और पौधों में रुकी हुई उर्जा विकसित हो जाएगी.

पौधा संरक्षण अधिकारी डा. शशीपाल शर्मा कहते हैं कि किसानों को समयसमय पर फसल का मुआयना करते रहना चाहिए. फसल में बीमारी होने पर किसानों को उस का समय से इलाज कर देना चाहिए. यदि पीला रतुआ का प्रकोप होने का अंदाजा हो, तो ब्लाक या जिले के कृषिरक्षा अधिकारियों से संपर्क कर के बचाव के उपायों के बारे में जानकारी लेनी चाहिए.

हर प्रदेश और जिले में इस रोग को ले कर प्रशासन चौकन्ना रहता है. अपनी जागरूकता से किसान खुद की व दूसरों की फसलों को बरबाद होने से बचा सकते हैं.

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