सदाबहार अनाज गेहूं की फसल किसानों की आर्थिक रीढ़ है. देश में गेहूं का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता?है, लेकिन इस बार ठंड कम पड़ने से गेहूं की फसल पीले रतुआ के खतरों से घिरी हुई?है.

पीला रतुआ एक ऐसी बीमारी है, जो फसल को 50 से ले कर सौ फीसदी तक बरबाद कर सकती है. अगर समय रहते किसान जागरूक हो जाएं, तो इस रोग के खतरे से बचा भी जा सकता है.

किसान बड़े पैमाने पर गेहूं की अगेती व पछेती फसल की बोआई करते हैं. बरसात न होने और ठंड कम पड़ने के कारण फसल कमजोर हो जाती है. इस बार देश में किसान मौसम की इस बेरुखी के शिकार हो रहे?हैं. ऐसे में गेहूं की फसल की अच्छी पैदावार को ले कर चिंताएं बढ़ रही हैं. जनवरी से ले कर मार्च तक अगेतीपछेती खेती में पीला रतुआ रोग लगने की संभावना अधिक रहती है.

कृषि अधिकारी गेहूं को पीला रतुआ से बचाने के लिए किसानों को सतर्क रहने की हिदायत देते हैं. पीला रतुआ एक फफूंद है, जो हवा के जरीए फैसला है. पीला रतुआ का तापमान में गिरावट से सीधा संबंध है.

इस रोग में गेहूं के पौधों की पत्तियों पर पीले व नारंगी रंग के धब्बे पड़ जाते?हैं. रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के तनों व बालियों पर भी धब्बे पड़ जाते हैं. इस रोग का यदि समय रहते इलाज नहीं किया जाए, तो फसल बरबाद होने का डर रहता है. जब तापमान 25-30 डिगरी से ऊपर चला जाता है, तो पत्तियों की निचली सतह पर रोग के जीवाणु काले रंग की धारियां बना लेते हैं.

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