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VIDEO: दोनों हाथ नहीं, फिर भी ये लड़का लगाता है सिक्सर

अगर आपके मन में कुछ करने की चाहत हो तो उसे कोई नहीं रोक सकता. हौसला हो तो आपको अपने सपने पूरे करने से कोई नहीं रोक सकता. इस बात को सच कर दिखाया है जम्मू कश्मीर के आमिर हुसैन नाम के एक शख्स ने. उनके दोनों हाथ नहीं हैं लेकिन वो सिक्सर लगाने में माहिर हैं. 26 साल के हुसैन कश्मीर की पारा क्रिकेट टीम के कप्तान हुआ करते हैं.

8 साल की उम्र में हुसैन के एक हादसे के कारण दोनों हाथ काटने पड़े थे. उनके हाथ क्रिकेट बैट बनाने वाली मशीन की चपेट में आ गए थे. वे करीब तीन दिन तक अस्पताल में भर्ती रहे. हुसैन के पिता बशीर अहमद बैट बनाने का काम करते थे. बेटे को बचाने के लिए उन्होंने अपना सबकुछ बेच दिया. तीन साल हॉस्पिटल में रहने के बाद हुसैन ने नए सिरे से अपने जीवन की शुरुआत की.

हुसैन पैरों की मदद से लिखते हैं और पेंटिंग भी करते हैं. वे 12वीं तक की पढ़ाई भी कर चुके हैं. क्रिकेट से उनका लगाव बचपन से था. आमिर ने क्रिकेट की ललक नही छोड़ी और हाथ नही होने के बाद भी उन्होंने बैट को पकडऩे की अलग ही तरीका अपनाया. हुसैन बैट को अपने कंधे और गले की बीच में फंसाकर फिर शॉट लगाते हैं. वे पैर की उंगलियों के बीच बॉल फंसाकर स्पिन बॉलिंग भी कर लेते हैं.

अगर आपको यकीन नहीं आता, तो देखिए ये वीडियो… 

रेस्त्रां के बाहर दिखे गरीब बच्चे, सलमान ने लगाया गले

बॉलीवुड के दबंग सलमान खान कभी किसी की मदद करने से पीछे हटते नहीं. वह समाज सेवा और लोगों की मदद करने के लिए जाने जाते हैं. एक बार फिर से उन्होंने कुछ ऐसा कर दिया है जिसे जानकर न उनके फैंस को बल्कि सभी लोग सलमान की सरहाना करेंगे.

हाल ही में सलमान अपने परिवार और कुछ दोस्तों के साथ मुंबई के ओलिवा रेस्त्रां में पार्टी करते हुए देखे गए. पार्टी खत्म होने के बाद जब वह रेस्त्रां से बाहर आए तो उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को खड़े देखा जो किताबें और गुब्बारें बेच रहे थे. इन बच्चों को देखकर सलमान रुक गए और उन बच्चों से मिलने लगे. उन्होंने इन बच्चों को गले लगाया, इनसे हाथ मिलाया, इनकी किताबें देखीं और इनसे गुब्बारे भी खरीदें. सलमान कुछ देर रुक कर इन बच्चों से बातें भी करते हुए देखे गए.

सलमान को बॉलीवुड में कई सितारों का गॉडफादर माना जाता है. उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि वह सभी की मदद करने के लिए सबसे आगे रहते हैं. वह लाखों करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करते हैं. जहां एक तरफ लोग उनसे प्यार करते है उनकी इज्जत करते हैं.

सलमान खान इन दिनों अपनी आगामी फिल्म 'सुल्तान' के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं. इस फिल्म में वह पहलवान केसरी का किरदार निभाते हुए नजर आएंगे. फिल्म के लिए उन्होंने अपना वजन भी बढ़ाया है और कुश्ती के दांव-पेंच भी सीखे हैं. फिल्म में उनके साथ अनुष्का शर्मा भी मुख्य भूमिका में नजर आएंगी. वह भी इसके लिए पसीना खूब पसीना बहा रही हैं. अनुष्का फिल्म में सलमान के साथ कुश्ती करती हुई दिखेंगी. 'सुल्तान' इस साल ईद के मौके पर सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

कैंसर के खिलाफ जिंदगी की जंग हार गए मार्टिन क्रो

न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मार्टिन क्रो का निधन हो गया है. 53 साल के क्रो 2012 से ही कैंसर से पीड़ित थे. क्रो ने क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद लेखक, प्रसारणकर्ता और मेंटर के रूप भी अपनी छाप छोड़ी.

लिम्फोमा (खून का कैंसर) से पीड़ित क्रो ने अपने जीवन के अंतिम महीनों में खुद सार्वजनिक जीवन से अलग कर लिया था. ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर से सम्मानित क्रो के परिजनों ने एक बयान जारी कर इस दिग्गज खिलाड़ी के ऑकलैंड स्थित निवास पर निधन की पुष्टि की.

आस्ट्रेलिया के खिलाफ 1982 में 19 साल की उम्र में पदार्पण करने वाले क्रो को न्यूजीलैंड क्रिकेट इतिहास का सबसे अच्छा बल्लेबाज माना जाता है.

क्रो ने अपने देश के लिए 77 टेस्ट मैचों में 17 शतकों की मदद से 5444 रन बनाए. उनका सर्वोच्च योग 299 रन रहा है, जो कई सालों तक कीवियों की ओर से खेली गई सबसे बड़ी पारी रही. बाद में ब्रेंडन मैक्लम ने इसे तोड़ा.

इसके अलावा क्रो ने 143 एकदिवसीय मैचों में अपने देश के लिए 4704 रन बनाए. क्रो 1992 में आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में खेले गए आईसीसी विश्व कप में अपनी टीम के कप्तान थे. 2015 में क्रो को आईसीसी हाल ऑफ फेम में शामिल किया गया था.

बांग्लादेश से हारा पाकिस्तान, ट्विटर पर जमकर बना मजाक

एशिया कप में बांग्लादेश के हाथों मिली हार के बाद ट्विटर पर पाकिस्तान क्रिकेट टीम की जमकर खिल्ली उड़ाई जा रही है. कोई इसे भारत के साथ फाइनल खेलने के डर से मिली हार बता रहा है, कोई विराट कोहली के बहाने पाकिस्तान टीम का मजाक बना रहा है.

टी20 वर्ल्डकप से ठीक पहले हो रहे इस बड़े टूर्नामेंट के अब तक के सभी मैच जीतकर टीम इंडिया फाइनल में जगह बना चुकी है. साथ ही बांग्लादेश ने भी बुधवार को रोमांचक मुकाबले में पाकिस्तान को हराकर फाइनल का टिकट कटा लिया. अब फाइनल 6 मार्च को मेजबान बांग्लादेश और टीम इंडिया के बीच होगा.

ट्विटर पर यूं बना पाकिस्तान का मजाक

– पाकिस्तान फिर से विराट कोहली का सामना नहीं करना चाहता था, इसलिये उन्होंने बांग्लादेश से भी हारकर बाहर होना ही बेहतर समझा. ईश्वर पाकिस्तान की रक्षा करे.

– फिर भारत से हारने से अच्छा है पाकिस्तान बांग्लादेश से हारकर ही बाहर हो गया.

– अनवर अली ने नौ बॉल में 13 रन बनाए. दूसरी ओर शाहिद आफरीदी और खुर्रम मंजूर ने मिलकर पांच इनिंग में 13 रन बनाए.

– शाहिद आफरीदी का व्हाट्स एप स्टेट- स्कोरिंग जीरो इज़ माय गेम'. साथ ही ट्विटर पर उनका नाम आफरीदी के बजाय 'डकरिदी' कर दिया

कमाई के मामले में धोनी-विराट से आगे हैं योगेश्वर दत्त

यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है कि पहलवान योगेश्वर दत्त हर मिनट कमाई के मामले में महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली से आगे हैं. योगेश्वर प्रो-कुश्ती लीग में हर मिनट 1.65 लाख रुपए कमाते हैं, जबकि विराट और धोनी आईपीएल में 75-75 हजार रुपए/मिनट के आसपास कमाते हैं. युवराज सिंह 1.01 लाख प्रति मिनट कमाते हैं.

सुपर इनसाइट ने इंडियन स्पोर्ट्स में खिलाड़ियों को मिलने वाली सैलरी से जुड़ी रिपोर्ट में आंकड़ों को लेकर ये दावे किए हैं. सुपर इनसाइट के डायरेक्टर रमन रहेजा ने रिपोर्ट में भारत के 7 स्पोर्ट्स की 8 लीग्स का ब्योरा दिया है.

क्रिकेटरों में युवराज सिंह 1.01 लाख प्रति मिनट के हिसाब से 17वें नंबर पर आते हैं. विराट कोहली 29वें, महेंद्र सिंह धोनी 34वें और सुरेश रैना 48वें नंबर पर हैं. इनका प्रति मिनट सैलरी का आंकड़ा 75 हजार रुपए के आसपास है. इन सभी से आगे योगेश्वर हैं जो लंदन ओलिंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके हैं.

इन लीग्स को किया शामिल

इंडियन प्रीमियर लीग (क्रिकेट), हॉकी इंडिया लीग, प्रीमियर बैडमिंटन लीग, प्रो-कबड्डी, प्रो-कुश्ती लीग, फुटबॉल की इंडियन सुपर लीग, टेनिस की इंटरनेशनल प्रीमियर टेनिस लीग और चैम्पियंस टेनिस लीग.

टेनिस खिलाड़ी सबसे आगे

ब्रिटेन के टेनिस खिलाड़ी एंडी मरे आईपीटीएल में खेलकर 14.34 लाख रुपए प्रति मिनट के हिसाब से सबसे आगे हैं. टॉप छह खिलाड़ी टेनिस के हैं और 7वें नंबर पर योगेश्वर आते हैं.

लीग्स में 1100 करोड़ रुपए खर्च

आठ लीग्स में अलग-अलग लोगों की सैलरी पर 1100 करोड़ रुपये खर्च होते हैं, जो 2015 के भारतीय खेल बजट का 75 फीसदी है. इनमें 823 करोड़ रुपए प्लेयर्स की सैलरी पर खर्च होते हैं. भारतीय खिलाड़ियों की सैलरी पर 296 करोड़ रुपए और विदेशी खिलाड़ियों पर 517 करोड़ रुपए खर्च होते हैं.

फेडरर और नडाल की कमाई 26-26 करोड़ रुपए

आमतौर पर यह माना जाता है कि भारतीय क्रिकेटर सैलरी के मामले में सबसे आगे हैं. लेकिन वे सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले खिलाड़ी नहीं हैं. स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर और स्पेन के राफेल नडाल आईपीटीएल में खेलकर 26-26 करोड़ रु. की सैलरी पाते हैं.

दिलचस्प आंकड़े

1. फेडरर: इन्हें मिलने वाली सैलरी हॉकी लीग के खिलाड़ियों की कुल सैलरी के बराबर है.

2. नडाल/फेडरर: इन दोनों को मिलने वाला वेतन बैडमिंटन, कुश्ती और कबड्डी के खिलाड़ियों की कुल सैलरी से कहीं ज्यादा है.

3. टेनिस से पिछड़ा आईपीएल: आईपीएल में औसतन हर खिलाड़ी 2.48 करोड़ रुपये कमाता है. जबकि आईपीटीएल में टेनिस खिलाड़ियों की औसत सैलरी 5.5 करोड़ रुपये है.

4. 13 खिलाड़ियों की कमाई पांच करोड़ से ज्यादा: पांच करोड़ रुपये से ज्यादा सैलरी पाने के मामले में भारत के 13 खिलाड़ी आते हैं. जबकि ऑस्ट्रेलिया के छह और दक्षिण अफ्रीका के चार खिलाड़ी हैं.

सोशल मीडिया में विराट सबसे आगे

सोशल मीडिया में विराट 3.3 करोड़ फॉलोअर्स के साथ सबसे आगे हैं, जबकि रूसी टेनिस खिलाड़ी मारिया शारापोवा को इंडियन लीग्स में खेलने वाली महिला खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा फॉलो किया जाता है.

क्या आपने देखा ‘फैन’ का ट्रेलर, नहीं तो यहां देखें

किंग खान ने हाल ही में अपनी फिल्म फैन का ट्रेलर लॉन्च किया है जिसके लिए शाहरुख के फैंस को आमंत्रित किया गया था. उनकी इस फिल्म की तुलना बाजीगर और डर जैसी फिल्मों से की जा रही हैं, लेकिन शाहरुख ने फिल्म के ट्रेलर लॉन्च के मौके पर इस बात को सिरे से खारिज किया है.

उन्होंने कहा उनकी यह फिल्म उन दोनों फिल्मों से बिल्कुल अलग है. फैन में शाहरुख दोहरी भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे. इस फिल्म में वह एक सुपरस्टार और उसके फैन के किरदार में भी नजर आएंगे.

'फैन' का निर्देशन मनीष शर्मा ने किया है और निर्माण यश राज फिल्म्स ने किया है. फिल्म 15 अप्रैल को रिलीज हो रही है.

तो इस एक्टर के ‘फैन’ हैं बॉलीवुड के दबंग सलमान खान

बॉलीवुड के दबंग सलमान खान के अभिनय का जादू पूरी दुनिया पर ही छाया हुआ है. बच्चे से बूढ़े तक कई लोग उनके फैन हैं. लेकिन सलमान खुद किसके फैन हैं इस बात का खुलासा उन्होंने हाल ही में अपने ट्विटर हैंडल पर किया है. दबंग खान का कहना है कि वह अपने दोस्त और समकालीन अभिनेता शाहरुख खान के फैन हैं.

शाहरुख की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'फैन' का ट्रेलर शेयर करते हुए सलमान ने यह बात ट्विटर पर बताई. उन्होंने लिखा, 'सलमान खान शाहरूख का फैन है.' ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब सलमान ने शाहरूख की किसी फिल्म के लिए प्रचार किया हो. इससे पहले उन्होंने 'दिलवाले' के प्रचार के लिए भी कई सारे ट्वीट किए थे और वीडियो भी बनाए थे.

शाहरुख ने भी सलमान की फिल्म 'प्रेम रतन धन पायो' के लिए वीडियो बनाया था. किंग खान ने हाल ही में अपनी फिल्म फैन का ट्रेलर लॉन्च किया है जिसके लिए शाहरुख के फैंस को आमंत्रित किया गया था. उनकी इस फिल्म की तुलना बाजीगर और डर जैसी फिल्मों से की जा रही हैं, लेकिन शाहरुख ने फिल्म के ट्रेलर लॉन्च के मौके पर इस बात को सिरे से खारिज किया है. उन्होंने कहा उनकी यह फिल्म उन दोनों फिल्मों से बिल्कुल अलग है. फैन में शाहरुख दोहरी भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे. इस फिल्म में वह एक सुपरस्टार और उसके फैन के किरदार में भी नजर आएंगे.

'फैन' का निर्देशन मनीष शर्मा ने किया है और निर्माण यश राज फिल्म्स ने किया है. फिल्म 15 अप्रैल को रिलीज हो रही है.

VIDEO: ‘क्वांटिको’ में फिर दिखा प्रियंका का बोल्ड अवतार

बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा इन दिनों अपने बोल्ड अंदाज के कारण काफी सुर्खियां बटोर रही हैं. हाल ही में उनके अमेरिकी टीवी शो 'क्वांटिको' के दूसरे सीजन का प्रोमो शेयर किया गया है जिसमें वह काफी हॉट दिख रही हैं. इस वीडियो को यूट्यूब पर 'क्वांटिको रिफ्लेक्शंस' के नाम से शेयर किया गया है. ये प्रियंका का पहला इंटनेशनल शो है जिसमें उन्होंने कई हॉट सीन दिए हैं.

क्वांटिको में प्रियंका एक एफबीआई एजेंट का किरदार निभा रही हैं. अपने किरदार से उन्होंने न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर से खूब वाहवाही लूटी है. बॉलीवुड की देसी गर्ल कही जाने वाली प्रियंका अपने इस सीरियल से पहले ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खास पहचान हासिल कर चुकी हैं. उन्हें इस सीरीज के लिए किछ वक्त पहले ही नई टीवी सीरीज में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के वर्ग में पीपल च्वॉइस अवार्ड से भी नवाजा गया था.

प्रियंका इन दिनों काफी चर्चा में बनी हुई हैं. क्वांटिको के अलावा उन्हें हाल ही में हुए '88वे ऑस्कर अवॉर्ड' में जलवे बिखेरते हुए देखा गया. इतना ही नहीं वह सर्च इंजन गूगल पर लियोनार्डो डिकेप्रियो के बाद सबसे ज्यादा सर्च की गईं हैं.

क्वांटिको के अलावा प्रियंका जल्द ही 1990 के मशहूर टेलीविजन धारावाहिक 'बेवॉच' पर बनने वाली फिल्म 'बेवॉच' में भी नजर आएंगी. उन्होंने फिल्म की शूटिंग शुरु कर दी हैं. इस फिल्म में वह खलनायिका की भूमिका निभाती हुई नजर आएंगी. खबरों के अनुसार 'बेवॉच' में वह विक्टोरिया लीड्स के किरदार में दिखेंगी. प्रियंका इस फिल्म के जरिए हॉलीवुड फिल्मों में अपनी पारी की शुरुआत करने जा रही हैं.

जिम सर्भः मुंबई से मुंबई वाया अटलांटा

फिल्म ‘‘नीरजा’’ में प्लेन हाईजैकर खलिल की क्रूरता, चेहरे पर गुस्सा और पागलपन का अंदाज ऐसा रहा कि हर कोई खलिल से नफरत करने लगा है. तभी तो नीरजा भानोट के भाई अखिल भानोट ने फिल्म ‘‘नीरजा’’ देखकर कहा कि फिल्म देखते समय उन्हे लग रहा था कि वह खलिल को पकड़कर गोली मार दें. ऐसे खूंखार व सायको आतंकवादी खलिल का किरदार निभाकर रातों रात स्टार बन जाने वाले अभिनेता जिम सर्भ की यह पहली प्रदर्शित फिल्म है. मूलतः पारसी जिम सर्भ लंबे समय से थिएटर से जुड़े हुए हैं. जिम सर्भ ने ‘‘नीरजा’’ से पहले ‘‘अजीब आशिक’’ और ‘‘यशोधरा’’ फिल्मों में अभिनय किया थ. मगर आम्र्सटर्डम इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में धूम मचाने के बावजूद ‘‘अजीब आशिक’’ रिलीज नहीं हो पायी. जबकि ‘‘यशोधरा’’ अधूरी पड़ी हुई है.

मगर ‘‘नीरजा’’ ने उन्हे रातों रात स्टार बना दिया है. अब विपुल शाह, अक्षय कुमार सहित कई दिग्गज फिल्मकार अपनी फिल्मों से जिम सर्भ को जोड़ना चाहते हैं. तो वहीं जिम सर्भ ने कोंकणा सेन शर्मा निर्देशित फिल्म ‘‘डेथ इन द गंज’’ की भी शूटिंग पूरी कर ली है. अब नौ मार्च से जिम सर्भ एक बहुत बड़े बैनर की फिल्म की शूटिंग शुरू करने वाले हैं, जिसको लेकर फिलहाल वह चुप रहना चाहते हैं.

आज जिम सर्भ को एक कलाकार के तौर पर पहचान मिल गयी है, तो उन्हें लग रहा है कि उन्होने भारत वापसी कर अच्छा कदम उठाया है. जी हां! मूलतः मुंबई निवासी जिम सर्भ स्कूली पढ़ाई ‘‘अमरीकन स्कूल आफ बाम्बे’’ से करने के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अटलांटा चले गए थे. वहां पर उन्होने पढ़ाई करने के साथ साथ काफी थिएटर किया. यहां तक कि उन्हें अवार्ड भी मिला. पर एक दिन उन्हे अहसास हुआ कि वह अपनी पहचान खोते जा रहे हैं और वह वापस मुंबई लौट आए.

इस बारे में खुद जिम सर्भ कहते हैं-‘‘अटलांटा में कालेज से बाहर निकलने के बाद मैंने पहला नाटक ‘आइस ब्लेंड’ किया था. इस पहले नाटक के लिए ही मुझे सपोर्टिंग एक्टर का अटलांटा अवार्ड भी मिल गया था. पर कुछ समय बाद मुझे महसूस होने लगा कि वहां पर लोग अभिनय कर रहे थे पर अपनी मानवता को एक्स्प्लोर करने का अवसर नहीं मिल रहा था. कुछ नाटकों में अभिनय करने के बाद मैने महसूस किया कि वहां पर किसी को भी कला की परवाह नहीं है. उनकी इच्छा हमेशा दर्षकों के सामने रहने की ही होती थी. कुछ भी नानसेंस करते रहो. हर दिन वही एकरसता जैसा काम करना. बार बार खुद को दोहराना. यही सब हो रहा था. सभी एक दूसरे की तारीफ करने में मशगूल रहते थे. कहीं कुछ नयापन नहीं होता था.

मुझे लगा कि यह सब क्या हो रहा है. हम स्टेज पर जाकर अभिनय करते थे. लोग ताली बजा देते थे. फिर हम घर चले जाते थे. यह हर दिन का एक रूटीन सा बना हुआ था. हर दिन वही रूटीन काम करना मुझे पसंद नहीं था. जबकि मैं खुद को एक्स्प्लोर करना चाहता था. खुद की प्रतिभा का विकास करना चाहता था. तो एक दिन मुझे लगा कि मेरे लिए अटलांटा में कोई जगह नहीं है. मेरी सही जगह तो भारत में है. मैं यहां क्या कर रहा हूं. मैने सोचा कि यदि दूसरे कुछ नया करना नहीं चाहते, तो क्या हुआ. मैं कुछ नया और खास करता हूं. फिर मैं मुंबई वापस आया. मुंबई वापस आने के बाद थिएटर से जुड़ गया. फिल्में की. अब फिल्म ‘‘नीरजा’’ ने मुझे कलाकार के तौर पर पहचान बना दिला दी है.’’

लोग कह रहे हैं कि सिनेमा बदल गया. मगर जिम सर्भ को ऐसा नहीं लगता. जिम सर्भ अभिनीत पहली फिल्म ‘‘अजीब आशिक’’ आज तक रिलीज नहीं हो पायी. इस बारे में जिम सर्भ कहते हैं-‘‘फिल्म ‘नीरजा’ की सफलता ने मुझे शोहरत दिला दी है. इसके बावजूद मेरी पहली फिल्म ‘अजीब आशिसक’ रिलीज नहीं हो सकती. यह इतनी अधिक प्रयोगात्मक फिल्म है कि इसका रिलीज होना मुश्किल है. हर कोई चिल्ला रहा है कि सिनेमा बदल गया. मगर मेरे दोस्त ने फिल्म ‘कोर्ट’ बनायी. फिल्म आलोचकों ने इस फिल्म की काफी तारीफ की. इसे कई अवार्ड मिल गए. बड़ी मुश्किल से रिलीज हुई, तो थिएटर में दर्शक नहीं पहुंचा. ‘अजीब आशिक’ तो ‘कोर्ट’ से भी कई गुना ज्यादा प्रयोगात्मक फिल्म है. मुझे नहीं लगता कि ‘अजीब आशिक’ कभी भी रिलीज हो पाएगी. यह बहुत ही रोचक फिल्म है. यह नान कमर्शियल फिल्म है. इसमें नान जेंडर लोगों की बात करने के साथ ही मुंबई की राजनीति की बात की गयी है. इस फिल्म में ‘राजनीति की पहचान’ के प्रतीक के तौर पर मुंबई को लिया गया है. ये आम्स्टर्डम के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखायी जा चुकी है. मैंने खुद इस फिल्म का रश प्रिंट ही देखा था. उसके बाद जब यह फिल्म पूरी तरह से बन गयी, तब देख नहीं पाया.’’

जिम सर्भ अब फिल्म ‘‘नीरजा’’ से एकदम विपरीत प्यारा और मीठा सा किरदार फिल्म ‘‘डेथ इन द गंज’’ में निभा रहे हैं. उनकी तमन्ना कुछ अलग तरह के किरदार निभाने की है. वह कहते हैं-‘‘कॉम्पलीकेटेड किरदार निभाना मुझे पसंद है. मेरी नजर में कलाकार के लिए वह किरदार ज्यादा उत्तम होते हैं, जिनके दिमाग में क्या चल रहा है. यह भांपना लोगों के लिए मुश्किल हो. सिर्फ हीरो या विलेन के किरदार नही निभाना है. किरदार रोचक होना चाहिए.’’

रोहित वेमुला: जाति ने मारा होनहार नौजवान

मंगलवार, 29 दिसंबर, 2015 को दलित इंडियन चैंबर औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री के राष्ट्रीय सम्मेलन में जमा हुए दलित कारोबारियों के सामने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बात कही थी, ‘दलितों का अच्छे कपड़े पहनना सामंती सोच वालों को रास नहीं आया. आप की तरह मैं ने भी खूब अपमान सहा है.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह छिपा वार उन की विरोधी पार्टी कांग्रेस के लिए था, जो उन की ‘सूटबूट की सरकार’ को कोसने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती है. अब इसे सियासी लड़ाई कहें या कड़वी सचाई, पर हकीकत तो यही है कि आज भी अगर कोई दलित अपनी आवाज बुलंद कर कुछ कहना चाहता है, तो उसे दबाने की भरसक कोशिश की जाती है.

ऐसा ही कुछ आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में भी हुआ. नए साल का जश्न अभी फीका भी नहीं पड़ा था कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी में कुछ ऐसा घट गया, जिस ने पूरे देश में हलचल मचा दी.

रविवार, 17 जनवरी, 2016 को हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे एक छात्र रोहित वेमुला ने होस्टल के कमरे में फांसी लगा कर अपनी जान दे दी थी. इस से 2 हफ्ते पहले गुंटूर जिले के पीएचडी स्कौलर रोहित वेमुला समेत 5 छात्रों को होस्टल से निकाला गया था. वे पांचों छात्र 15 दिनों से कैंपस में धरना दे रहे थे.

निकालने की वजह

यह पूरा मामला मुंबई हमले के गुनाहगार याकूब मेमन की फांसी को ले कर शुरू हुआ था. दरअसल, रोहित वेमुला जिस अंबेडकर स्टूडैंट्स एसोसिएशन में शामिल था, वह दलित छात्रों?द्वारा बनाया गया एक संगठन है. इस संगठन के कुछ छात्रों ने याकूब मेमन की फांसी का न केवल खुल कर विरोध किया था, बल्कि उस के पक्ष में नारेबाजी भी की थी. यही बात उन के विरोधी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद गुट से टकराव की वजह बनी.

इतना ही नहीं, रोहित वेमुला ने मुजफ्फरनगर हिंसा पर बनी एक डौक्यूमैंटरी फिल्म का प्रदर्शन किया था, जिस के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में नाराजगी थी. इसी सिलसिले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेताओं से मारपीट होने के बाद रोहित वेमुला समेत 5 छात्रों को सस्पैंड कर दिया था और होस्टल से भी निकाल दिया था.

इस बात से नाराज दलित छात्र 15 दिनों से कैंपस में धरना दे रहे थे. इसी बीच रोहित वेमुला रविवार, 17 जनवरी, 2016 की रात किसी तरह होस्टल में घुसने में कामयाब हो गया और उस ने खुद को कमरे में बंद कर लिया. बाद में उस की लाश को कमरे से बरामद किया गया.

चिट्ठी से मचा बवाल

तकरीबन 26 साल का रिसर्च स्कौलर रोहित वेमुला गुंटूर जिले का रहने वाला था. वह हैदराबाद यूनिवर्सिटी में साइंस टैक्नोलौजी और सोशियोलौजी पर 2 साल से पीएचडी कर रहा था. वह विज्ञान का लेखक बनना चाहता था, पर मरने से पहले उस ने एक ऐसी चिट्ठी लिख दी, जिस ने देश के सियासी माहौल को गरमा दिया.

रोहित वेमुला की लाश जिस कमरे में बरामद की गई थी, वहां से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ था. उस चिट्ठी में लिखा था कि इनसान की अहमियत आज उस की मौजूदा पहचान और संभावना तक सिमट कर रह गई है. एक नोट, एक संख्या या एक वस्तु तक. कभी भी इनसान को उस के दिमाग के तौर पर नहीं पहचाना गया.

ऐसा भी माना जा रहा है कि रोहित वेमुला ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति को एक चिट्ठी लिख कर अपना विरोध दर्ज कराया था. उस ने चिट्ठी में लिखा था कि यूनिवर्सिटी प्रशासन को सभी दलितों को जहर उपलब्ध करा देना चाहिए, क्योंकि उन के साथ बहुत भेदभाव हो रहा है. साथ ही, वार्डन को सभी दलित छात्रों के कमरे में एक रस्सी भी उपलब्ध करानी चाहिए.

केंद्रीय मंत्री भी घिरे

रोहित वेमुला की मौत से हैदराबाद यूनिवर्सिटी में तो रोष का माहौल बना ही, साथ ही केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय पर भी आरोप लगे कि उन के कहने पर ही दलित छात्रों के प्रति कार्यवाही की गई.

यह भी कहा गया कि बंडारू दत्तात्रेय ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से मारपीट के मामले में साल 2015 के अगस्त महीने में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को चिट्ठी लिख कर कार्यवाही करने को कहा था.

जबकि बंडारू दत्तात्रेय ने इस मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी और उन का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने उन्हें एक ज्ञापन दिया था, जिसे उन्होंने मानव संसाधन मंत्रालय को भेज दिया था. उस मंत्रालय ने ज्ञापन पर क्या कार्यवाही की, इस की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.

लेकिन तभी यह जानकारी सामने आई कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी को चिट्ठी लिखी थी. इस के बाद 4 रिमाइंडर चिट्ठियां भी भेजी थीं. हालांकि बाद में इस मंत्रालय के प्रवक्ता घनश्याम गोयल ने कहा कि मंत्रालय ने केवल प्रक्रिया का पालन किया था.

चढ़ा राजनीतिक रंग

जैसेजैसे रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले में विरोधप्रदर्शन तेज हुए, वैसेवैसे नेताओं ने भी अपनी राजनीति को चमकाना शुरू कर दिया. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार, 19 जनवरी, 2016 को हैदराबाद जा कर रोहित वेमुला के परिवार वालों से मुलाकात की. उन्होंने बंडारू दत्तात्रेय पर कड़ी कार्यवाही की मांग की.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि रोहित वेमुला की खुदकुशी लोकतंत्र की हत्या है. उन्होंने मांग की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में आरोपी केंद्रीय मंत्री को बरखास्त करना चाहिए और देश से माफी मांगनी चाहिए.

समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां ने रोहित वेमुला की मौत के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उस के सहयोगी संगठनों को जिम्मेदार ठहराते हुए राष्ट्रपति को इस मामले में दखलअंदाजी करने की मांग की. उन्होंने कहा कि ये लोग दलित और अल्पसंख्यक विरोधी हैं और वे नहीं चाहते कि इन समुदायों से लोग पढ़ेलिखे बनें.

इसी बीच बढ़ते विरोध और भारी राजनीतिक दबाव के बीच हैदराबाद यूनिवर्सिटी ने 4 दलित छात्रों का निलंबन वापस ले लिया, लेकिन अभी भी अपनी पार्टी पर हो रहे चौतरफा हमले के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाब देना था. आखिरकार उन्होंने चुप्पी तोड़ी.

शुक्रवार, 22 जनवरी, 2016 को लखनऊ में बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में उन्होंने कहा, ‘…जब यह खबर मिलती है कि मेरे ही देश के जवान बेटे रोहित को खुदकुशी के लिए मजबूर होना पड़ा… उस के परिवार पर क्या गुजरी होगी. मां भारती ने अपना लाल खो दिया. इस की वजह होगी… इस पर राजनीति भी होगी, लेकिन सचाई यह है कि एक मां ने अपना बेटा खो दिया है. मैं इस दर्द को अच्छी तरह महसूस करता हूं…’

असली मुद्दा दबा

रोहित वेमुला जैसे होशियार छात्र की खुदकुशी ने हमारे समाज और राजनीतिक तबके के सामने एक अहम सवाल खड़ा किया है कि शिक्षा के ऊंचे संस्थानों में जाति के नाम पर भेदभाव कैसे हो रहा है? इन केंद्रों को राजनीतिक अखाड़ा बनने से क्यों नहीं रोका जा रहा है?

रोहित वेमुला अकेला ही ऐसा छात्र नहीं है, जिस ने जाति के भेदभाव से तंग आ कर अपनी जान दी है. इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि वह एक खास विचारधारा को मानता था और विचारधाराओं पर जाति का असर भी साफ दिखता है. यही वजह है कि छात्र जाति के नाम पर एकदूसरे से टकराने से भी नहीं चूकते हैं. लेकिन किसी की जान पर बन आना गंभीर बात है.

भारतीय संविधान के निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने आज से तकरीबन 67 साल पहले एक बात कही थी कि सामाजिक और माली गैरबराबरी को खत्म नहीं किया जाएगा, तो असंतुष्ट लोग संविधान के उस ढांचे को तबाह कर देंगे, जिसे संविधान सभा ने बनाया है. पढ़ाईलिखाई के क्षेत्र में यही गैरबराबरी हावी होती रही है.

ऊंची जाति के लोगों ने हमेशा से शिक्षा पर अपना कब्जा जमाए रखना चाहा है, तभी तो औरतों और दलितों को इस से दूर रखने की साजिश रची गई. लेकिन जब से दलितों ने शिक्षा की अहमियत को समझ कर पढ़ाईलिखाई शुरू की, तब से ऊंची जाति वालों ने अपने और उन के बीच एक ऐसी खाई को बना डाला, जो दिनप्रतिदिन बड़ी और गहरी होती जा रही है.

आज चाहे दलित और आदिवासी पढ़लिख रहे हैं, लेकिन ऊंची जाति वालों की सोच वैसी की वैसी ही बनी हुई है. दबीकुचली जातियों के छात्रों को दाखिला न देने, उन की स्कौलरशिप को रोक देने, इंटरव्यू और क्लास में उन के साथ भेदभाव करना जैसी घटनाएं आज भी कम नहीं हो पाई?हैं. यही वजह है कि इस भेदभाव के शिकार बहुत से छात्र रोहित वेमुला की तरह टूट कर मौत को गले लगा लेते हैं.

कोढ़ पर खाज यह है कि अब राजनीति भी जातिवाद का जामा पहन कर शिक्षा संस्थानों में जा छिपी है. कहने को तो शिक्षा संस्थानों में छात्र नेता हैं, लेकिन होता गुंडा राज है. जो छात्र जिस विचारधारा की पार्टी से जुड़ता है, वह उस की हर अच्छीबुरी बात पर आंख मूंद कर विश्वास करता है. पार्टी भी अपने छात्र संगठन की हर हरकत का समर्थन करती रहती है, चाहे बाद में उस का कुछ भी बुरे से बुरा नतीजा क्यों न निकले.

यही वजह है कि रोहित वेमुला की मौत राजनीतिक ड्रामा बन कर रह गई है. अपनी लिखी चिट्ठी में वह अपने संगठन के कामकाज से भी खुश नहीं था. चिट्ठी के एक अंश में रोहित का मानना था कि सभी संगठन अपने भले के लिए काम कर रहे हैं.

देखा जाए तो यह उस दलित तबके लिए भी सबक है, जो ऐसी घटनाओं के होने पर विरोधप्रदर्शन तो करता है, लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही सारी बातें ऐसे भूल जाता है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. देशभर में जिस तरह से वंचितों के खिलाफ माहौल बन रहा है, उस के प्रति उन्हें गंभीर होना होगा. उन्हें ऐसी कोई ठोस व्यवस्था करनी होगी, ताकि जाति के नाम पर होने वाले भेदभाव को खत्म किया जा सके. उन्हें एकजुट होना होगा, क्योंकि यही एकजुटता उन की ताकत बनेगी.

याद रहे, जब तक हम जातियों में बंटे रहेंगे, तब तक देश के बारे में नहीं सोचेंगे, क्योंकि जातियां देश विरोधी होती हैं. देश की असली तरक्की के लिए हमें जाति को ही जड़ से उखाड़ना होगा.

और हां, अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जाति के नाम पर कभी अपमान सहा है, तो उन्हें जल्द से जल्द इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए कड़े से कड़े कदम उठाने होंगे, वरना रोहित वेमुला जैसे नौजवान आगे भी जाति की भेंट चढ़ते रहेंगे.

चुनाव और दलित राजनीति

रोहित वेमुला जैसे मामले दलित उत्पीड़न मुद्दों को उछालते हैं, जिन्हें हर राजनीतिक दल लपकने की कोशिश करता है. कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह मामला दलित वोटों को एक पक्ष से दूसरे पक्ष की ओर खिसकाने में मददगार साबित हो सकता है.

याद रहे कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह सपना रहा है कि दलित तबके के वोट उन की ओर आ जाएं, तभी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं के जरीए हर साल दलित बस्तियों में भोज का इंतजाम किया जाता है.

लेकिन रोहित वेमुला की मौत से भारतीय जनता पार्टी शक के दायरे में आ गई है. दलित समाज का उस पर से भरोसा टूटा है. दूसरे दल इस बात को भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे और यह साबित करना चाहेंगे कि भाजपा तो दलित विरोधी है और ऐसी मौतों पर उस के नेताओं के आंसू घडि़याली होते हैं.

इस बात में कितनी सचाई है, यह तो आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे बता ही देंगे.

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