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सहयात्री: क्या शालिनी और राधेश्याम के बीच कोई रिश्ता था?

रेलवे स्टेशन पर एसी कोच में बैठी ट्रेन चलने का इंतजार कर रही शालिनी का बेटा रमेश अभी सारा सामान ठीक से लगा कर बाहर निकला ही था कि ट्रेन चलने की सीटी बज गई.मां को चलने से पहले खिड़की से झांकते हुए विदाई के अंदाज में मुसकराते हुए अपने मन को समझाने का प्रयास कर ही रहा था कि रमेश ने पास से निकले 70 वर्षीय राधेश्याम को देखा, जो ट्रेन के उसी डिब्बे के दरवाजे पर चढ़ने की जल्दी में थे.उन का एक बैग जल्दी के चलते रमेश के कुछ ही आगे गिर गया.

राधेश्याम की उम्र शरीर की शिथिलता के सामने हार मान गई थी.तभी उस की मदद करने के लिए रमेश दौड़ा.इधर शालिनी अचानक अपने बेटे को दौड़ते देखा तो चिंतित सी दरवाजे की तरफ लपकी.जब तक शालिनी पंहुचती तब तक रमेश तक राधेश्याम को ट्रेन के डिब्बे में सामान सहित सुरक्षित पहुंचा चुका था.रमेश का तो मन था कि वह अंदर सीट तक छोड़ कर आए मगर समय की कमी थी.ट्रेन कभी भी चल सकती थी.ट्रेन के दरवाजे पर खड़े राधेश्याम कृतज्ञता से रमेश के हाथ को पकड़े धन्यवाद कर रहे थे और रमेश इसे अपना फर्ज बता रहा था कि तभी ट्रेन ने दूसरी सिटी भी बजा दी और शालिनी ने मुसकराते हुए दरवाजे से ही रमेश को विदा किया.

चेहरे की भावभंगिमा से ही राधेश्याम समझ तो रहे थे कि शालिनी और उस लड़के के बीच कोई आत्मीय संबंध है.फिर भी जिज्ञासा के चलते मदद से खुश राधेश्याम ने वहीं खड़ेखड़े शालिनी से पूछ लिया,”मैडम, यह आप का बेटा है?”

मुसकराती शालिनी ने कहा,”जी हां.”

ट्रेन पकड़ने की खुशी से गदगद राधेश्याम ने कहा, “बड़ा ही सुशील बच्चा है.आप खुशकिस्मत हैं.” सहमति में गरदन हिलाते हुए शालिनी ने मुसकराते हुए राधेश्याम की तरफ देखते हुए पूछा,”यह सारा सामान आप ही का है?”

“जी हां, मैं अपनी बेटी के पास लंबी अवधि के लिए जा रहा हूं इसलिए सामान थोड़ा ज्यादा हो गया.”

“लाइए, मैं लिए चलती हूं,” कहते हुए शालिनी एक हाथ से एक थैला पकड़ दूसरे हाथ से कोच का दरवाजा खोलते हुए आगे बढ़ी.

अपने दोनों हाथों में बाकी सामान लिए राधेश्याम भी पीछेपीछे चल दिए.दोनों हाथों में सामान लिए लाचार राधेश्याम की सुविधा को देखते हुए शालिनी ने दरवाजे को देर तक पकड़े रखा.शालीनि ने पूछा,”आप का बर्थ नंबर कौन सा है?”

“जी सीट नंबर 7 है।”

“अरे वाह, मेरा सीट नंबर 9 है.मतलब आमनेसामने की ही सीट है,” दोनों पलभर के लिए मुसकरा दिए।
सामान अपनी जगह रख चैन की सांस लेते हुए राधेश्याम ने फिर कहा,”अगर आज आप के बेटे ने मदद न की होती तो शायद मेरी ट्रेन ही छूट जाती.”

सामने की सीट पर शालीनता से बैठी शालिनी ने मुसकराते हुए एक बार फिर कहा,”यह तो उस का फर्ज था.अगर आप की जगह मैं होती तो क्या आप का बेटा मेरी मदद न करता?”

“आप सही कह रही हैं,” राधेश्याम ने सहमती जताते हुए कहा.

शालिनी ने अपने पर्स से तब तक एक किताब निकाल ली.ऊपर लिखी भाषा को पढ़ने में असमर्थ राधेश्याम ने पूछा,”यह किस भाषा की किताब है?”

“तेलुगु है,” शालिनी ने छोटा सा उत्तर दिया.

“अच्छा तो आप आंध्र प्रदेश से हैं?” राधेश्याम मुसकराते हुए अंदाज में बोले.”

“जी, वर्तमान में मैं समाजसेविका हूं और अभी मैं अपने बेटे के पास दिल्ली आई हुई थी.मैं राज्य प्रशासन में सीनियर औडिटर के पद से 5 साल पहले ही सेवानिवृत्त हुई हूं.कोई खास काम नहीं रहता इसलिए थोड़ी समाजसेवा हो जाती है और मन भी लगा रहता है.कभीकभी बेटे के पास दिल्ली चली आती हूं…और आप?” प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ शालिनी ने राधेश्याम की तरफ देखते हुए पूछा.

“जी, मेरा नाम राधेश्याम भटनागर है और मैं दिल्ली में ही अध्यापक था.लगभग 10 साल हो चुके हैं सेवानिवृत्ति के.मैं अपनी बेटी के पास भोपाल जा रहा हूं.वह वहां प्रोग्राम ऐनालिस्ट के पद पर है.उस के 2 जुड़वां बच्चे हैं, बेटी को बच्चे संभालने में दिक्कत न हो इसलिए आजकल ज्यादातर मैं बेटी के पास ही रहता हूं.बस, अपनी सालाना जीवित प्रमाणपत्र देने के लिए आया था.सुनते ही दोनों एकसाथ हंस पड़े.

राधेश्याम ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “कभी ये दिन भी देखने पड़ेंगे सोचा न था,” शालिनी ने किताब से नजरें उठाते हुए राधेश्याम की तरफ प्रश्नवाचक चिन्ह के साथ देखा और पूछा, “ऐसे दिन का क्या मतलब?”

राधेश्याम तपाक से बोले,”मतलब यही कि हमें खुद ही सिद्ध करना पड़ेगा कि हम जिंदा हैं.”

“यह बात तो आप ने सही कहा,” शालिनी ने राधेश्याम की बात में सहमति जताते हुए कहा.

“लेकिन सरकार भी क्या करे और कोई चारा भी तो नहीं और फिर हमें पेंशन तो मिल रही है न.यह एक बड़ा सुख है.साल में एक बार की परेशानी जरूर है, लेकिन कम से कम बाकी सब परेशानियां तो नहीं हैं,” शालिनी ने राधेश्याम की बात से सहमति के साथ अपना पक्ष रखते हुए कहा.

मगर राधेश्याम ने फिर भी अपना पक्ष रखते हुए कहा,”मैं सब समझता हूं मैडम, मगर जब जिंदा होने का प्रमाण देता हूं तब थोड़ा बुरा सा महसूस तो होता ही है.आप की बात भी सही है,” शालिनी ने मुसकराते हुए कहा.

मगर साथ ही प्रश्न किया,”आप की बेटी के जुड़वां बच्चों को देखभाल के लिए आप अकेले क्यों? आप की पत्नी…” कह कर शालिनी रुक गई।

राधेश्याम ने हलकी सी गरदन नीचे की ओर खुद को संभालते हुए कहा,”जी वे 4 साल पहले ही हमारा साथ छोड़ कर भाग गईं,” एकदम आश्चर्य से भरी शालिनी ने एक बार फिर किताब से नजरें राधेश्याम की तरफ करते हुऐ चश्मे के अंदर से झांकते हुए देखा.

“वह अपने पिता के पास है,” राधेश्याम ने मानों शालिनी के मन में उठ रहे प्रश्न का मुसकराते हुए जबाब दिया.शालिनी के मन में अभी संवेदना के भाव आए ही थे कि राधेश्याम ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा,”हमारी मैडम तो दूसरी दुनिया में सुकून से हैं।” शालिनी को राधेश्याम की मजाक करने के अंदाज में अपनी दिवंगत पत्नी के चले जाने का इस तरह से बताना कुछ अच्छा नहीं लगा.शालिनी ने शिकायत भरे अंदाज में उन्हें मुंह बनाते हुए कहा,”यह भी कोई बात हुई? कोई इस तरह परिचय देता है क्या अपनी दिवंगत पत्नी का?”

राधेश्याम, जो अब तक अपनी बात पर खुद ही हंस रहे थे, मुसकराते हुए कटाक्ष भरे अंदाज में बोले,”अरे मैडम, दूसरी दुनिया में तो वे अचानक ही चली गईं मुझे अकेला छोड़ कर.अब तो वे वहां सुखी हैं और मैं यहां अकेला बुढ़ापे के दिन काट रहा हूं.जब तक वे साथ रहीं, मेरे पास समय नहीं था.अब मेरे पास समय है तो वे मेरे साथ नहीं हैं.अब इस बेवफा पत्नी को आप ही कहो कि छोड़ कर भागना न कहूं तो और क्या कहूं?” शालिनी सैद्धांतिक रूप से राधेश्याम से सहमत तो न थी मगर इतने कष्टभरी घटना को भी मजाक में कह देने के राधेश्याम की इस बेबाक अंदाज की कायल हो गई.अब उस का मन किताब से ज्यादा सामने बैठे राधेश्याम की बातों में आ रहा था।

शालिनी ने गौर से देखा, पूरी तरह से सफेद हो चुके रेशमी बालों के साथ ही सफेद भोंहों के नीचे दिख रही दोनों आंखों में अभी भी चमक साफ दिख रही थी.आंखों में उम्र के निशान दूरदूर तक न थे.शालिनी को राधेश्याम की बेबाकभरी बातें अच्छी लग रही थीं जबकि शालिनी के सामने बैठे राधेश्याम शालिनी से एकदम उलट थे.

इधर राधेश्याम बोलते ही जा रहे थे,”हम तो टीचर हैं मैडम, जिंदगीभर बोलने का ही खाया है.आप ठहरीं सीनियर औडिटर.जीवनभर सब के काम में कमियां ही निकाली होंगी,”और यह कह कर राधेश्याम हंस पङे.

शालिनी को राधेश्याम की बात एक बार फिर अच्छी नहीं लगी मगर अचानक ही शालिनी ने शांत मन से राधेश्याम की बात को मनन किया तो पाया कि मजाक में ही सही मगर जीवनभर उस के कार्य करने और विभागीय जिम्मेदारियों के चलते वे घर पर भी हमेशा सब में कमियां निकालने और सुधारने में ही तो लगी रहीं.

उसे याद आया कि एक बार उस के दिवंगत पति प्रभाकरण जोकि उसी के विभाग में प्रशासनिक पद पर थे, एकबार उन्होंने भी यही कहा था मगर तब शालिनी अपने पति पर बहुत गुस्सा हुई थीं और पूरे 1 हफ्ते तक घर का माहौल भी खराब रहा था.मगर अब इन सब बातों से क्या फायदा? शालिनी अपनी स्मृतियों से बाहर आते हुए राधेश्याम से पूछ बैठीं, “अच्छा तो आप को कैसे पता, मैं घर पर औडिटर ही बन कर रही?” एक बार फिर मुसकराते हुए राधेश्याम ने कहा,”मैडम, मैं भी तो जिंदगीभर अपने घर में टीचर बन कर ही बोलता रहा और अब भी देखो बोलता ही रहता हूं,” और फिर दोनों एकसाथ हंस पड़े

शालिनी बहुत दिनों बाद इतना खुल कर हंस रही थी.उसे यह खुलेमन और बक्कड़ सहयात्री राधेश्याम, किताब से ज्यादा रुचिकर लगा.शालिनी ने किताब को एक तरफ रख दिया और मुसकराते हुए उस की बातों में खो गई.देर रात आखिर दोनों ने अपनाअपना खाना निकाला और आत्मीयता भरे माहौल में एकदूसरे के खाने का हिस्सा भी बने.दोनों की आदतें एकदम विपरीत होने के बावजूद एकदूसरे को समझने की कोशिशें भी जारी थीं.राधेश्याम ने सोने से पहले अपनी दवाइयां लीं और लेटते हुए शालिनी की तरफ मुड़ कर बोले,”मैडम, आप मेरी बेटी का नंबर नोट कर लीजिएगा,” राधेश्याम की इस अजीब की हरकत पर शालिनी को एक बार फिर से आश्चर्य हुआ.

राधेश्याम ने मुसकराते हुए कहा,”अगर मैं सुबह नहीं उठा तो कम से कम आप मेरे घर पर फोन कर सूचना तो दे देंगी न,”और कह कर हंस दिए.

शालिनी को राधेश्याम की यह मजाक बिलकुल पसंद नहीं आई.भला कोई अपने मरने की बात किसी अजनबी से इस तरह कहता है क्या? राधेश्याम समझ गए और अपनी बात पलटते हुए बोले,”मैडम, मैं तो सुबह 5 बजे अपने स्टेशन पर उतर जाऊंगा तब तक आप तो सोती रहेंगी.हम दोनों के पास बातें करने का मन हो तो नंबर तो होना चाहिए कि नहीं?”

शालिनी ने राधेश्याम का नंबर पूछ कर अपने मोबाइल में ‘राधेश्याम सहयात्री’ के नाम से सेव भी कर लिया और ‘गुड नाइट’ कह कर कंपार्टमेंट की लाइट बंद कर दी।

इन बातों को बीते अब लगभग 2 साल हो चले हैं.शालिनी के एकाकी जीवन में किताबें थीं या रोज सुबह ‘राधेश्याम सहयात्री’ की तरफ से आने वाला ‘सुप्रभात’ का एक संदेश, जिस की अब शालिनी को आदत पड़ चुकी थी.शालिनी को रोज की दिनचर्या से जब भी समय मिलता वह राधेश्याम के सुप्रभात के संदेश पढ़ लिया करती और उत्तर भी जरूर देती.

यों तो राधेश्याम के सुप्रभात के संदेशों में लिखी ज्यादातर बातें या तो सैद्धांतिक होतीं या उम्र की इस दहलीज पर व्यर्थ ही लगती.मगर सीखने की कोई उम्र नहीं होती.फिर भी इतने संदेशों में से 1-2 बार काम की बात मिल ही जाती थी, जिस से शालिनी को अच्छा लगता था.सब से ज्यादा मुसकराहट शालिनी के चेहरे पर अभी भी उस छोटी सी मुलाकात के दौरान राधेश्याम द्वारा की गई छोटीछोटी नादानियां थीं जिन्हें याद कर शालिनी अभी भी यदाकदा मुसकरा लेती थी.

आज अचानक शालिनी की तबीयत बहुत तेजी से खराब हुई.शालिनी के बेटे रमेश को जैसे ही पता चला वह औफिस छोड़ भागता हुआ आया और शालिनी को सीधे हौस्पिटल में भरती कराया.तबीयत खराब होने के चलते अगले 3 दिनों से शालिनी आईसीयू में भरती रही.डाक्टर शालिनी की स्थिति के बारे में कुछ नहीं बता रहे थे.रमेश को डाक्टर ने कह दिया है कि अगले 24 घंटे बहुत संवेदनशील हैं.कुदरत ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा.शालिनी के कमरे में बैठा रमेश आशाभरी नजरों से अपनी मां की तरफ देख ही रहा था कि अचानक शालिनी का फोन बज उठा.उस ने देखा स्क्रीन पर ‘राधेश्याम सहयात्री’ लिखा था.जिज्ञासा के साथ रमेश ने फोन उठाया मगर इस से पहले कि वह “हैलो” कह पाता उधर से एक महिला की आवाज आई,”शालिनीजी हैं?”

“जी नहीं, मैं उन का बेटा रमेश बोल रहा हूं.रमेश ने प्रश्नवाचक अंदाज के साथ पूछा,”आप कौन?”

उधर से महिला की आवाज आई,”जी, मैं राधेश्यामजी की बेटी अनिता बोल रही हूं.”

अनिता बोल रही थी,”मेरे पिताजी को दिवंगत हुए 6 महीने हो चुके हैं.उन्होंने मरने से पहले मुझे एक जिम्मेदारी दी थी कि मैं रोज शालिनीजी के इस नंबर पर एक सुंदर सा सुप्रभात का संदेश भेजा करूं और अगर लगातार 3 दिनों तक उधर से कोई उत्तर न आए तो मैं फोन लगा कर शालिनीजी की तबीयत के बारे में पूछ लूं.पिछले 4 दिनों से सुप्रभात संदेश का शालिनीजी की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिलने के कारण मैं ने उन की तबीयत के बारे में जानने के लिए यह फोन लगाया है।” रमेश कुछ जवाब देता तब तक शालिनी के कमरे से मौनिटर पर लगी हृदयगति दिखाने वाली रेखा एक शांत आवाज के साथ सीधी दिशा में चलने लग गई थी।

इस ‘सहयात्री’ वाले रिश्ते को महसूस कर रमेश स्तब्ध था.उधर से रमेश का उत्तर सुनने के लिए लगातार “हैलो… हैलो…” की आवाज आ रही थी.

रमेश ने रुंधे गले से कहा,”आप के पिताजी की सहयात्री आज वापस उसी डिब्बे में जा कर बैठ गई हैं, जहां आप के पिता पिछले 6 महीने से उन का शायद इंतजार कर रहे हैं.”

Ectopic Pregnancy: जब बच्चा बच्चेदानी में नहीं फेलोपियन ट्यूब में ठहर जाए

कुछ सालों पहले 20-22 साल की लड़की के गालब्लैडर का औपरेशन हुआ था. उस के कुछ ही दिनों बाद उस के पेट में दर्द हुआ तो वह एक अस्पताल में सर्जरी विभाग में पहुंची. उस के गालब्लैडर का औपरेशन करने वाले डाक्टरों ने जांच की पर उन को दर्द की कोई वजह समझ नहीं आई. लड़की को महिला रोग विभाग भेजा गया. लड़की कुंआरी थी. डाक्टरों को जांच में पेट में सूजन का एहसास हो रहा था. लड़की से जब सैक्स करने के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ इनकार कर दिया. डाक्टर ने जब एकदो टैस्ट किए तो मामला साफ हो गया कि उस लड़की ने असुरक्षित सैक्स किया था और परिणामस्वरूप गर्भ बच्चेदानी में ठहरने के बजाय अंडवाहिनी यानी फेलोपियन ट्यूब में ठहर गया था. गर्भ के बढ़ने से फेलोपियन ट्यूब फूल रही थी जिस की वजह से लड़की के पेट में दर्द हो रहा था. उस दौरान फेलोपियन ट्यूब को फटने से बचाने के लिए डाक्टरों को उस का औपरेशन करना पड़ा.

इस मामले में लखनऊ स्थित किंग जौर्ज मैडिकल कालेज के, महिला रोग विभाग की प्रोफैसर अमिता पांडेय से विस्तार से बातचीत हुई. पेश हैं उस के खास अंश: 

 

जब गर्भ बच्चेदानी में ठहरने के बजाय अंडवाहिनी यानी फेलोपियन में ठहर जाए तो क्या होता है?

सामान्य रूप में गर्भ हमेशा बच्चेदानी में ठहरता है. यहीं भ्रूण का विकास होता है. भ्रूण का विकास जब गर्भाशय के बजाय बाहर की अंडवाहिनी यानी फेलोपियन ट्यूब में होने लगता है तो इस को एक्टोपिक प्रैग्नैंसी कहा जाता है.  जैसेजैसे भ्रूण का आकार बढ़ता जाता है, फेलोपियन ट्यूब की हालत खराब होने लगती है. एक समय वह फटने की हालत तक पहुंच जाती है जो महिला के लिए जानलेवा हो सकती है. 2 प्रतिशत मामलों में एक्टोपिक प्रैग्नैंसी का खतरा बना रहता है.

एक्टोपिक प्रैग्नैंसी का पता कैसे चलेगा?

देखिए हर लड़की को या महिला को यह पता होता है कि उस की माहवारी की डेट क्या है. अगर उस ने किसी पुरुष के साथ संबंध बनाए हैं, चाहे वह कुंआरी हो या शादीशुदा, तो उसे पता रहता है कि अगर समय पर माहवारी न आई हो तो तुरंत प्रैग्नैंसी टैस्ट करा लेना चाहिए और किसी महिला रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.

अगर बच्चेदानी यानी गर्भाशय में गर्भ ठहरता है और समय से पता चल जाए तो दवाओं और सर्जरी के द्वारा सुरक्षित गर्भपात कराया जा सकता है. अगर गर्भ  फेलोपियन ट्यूब में ठहरा है तो गर्भपात कराने से कोई लाभ नहीं होता. गर्भनिरोधक और गर्भपात के लिए खाई जाने वाली गोलियां इस पर असर नहीं करतीं. अगर शुरुआत में इस बात का पता चल जाए कि गर्भ फेलोपियन ट्यूब में ठहरा है तो इंजैक्शन द्वारा गर्भ को बढ़ने से रोका जा सकता है. गर्भ बढ़ जाता है तो सर्जरी के अलावा दूसरा रास्ता नहीं रहता. कई बार डाक्टरों की जानकारी में मामला तब आता है जब हालात काबू से बाहर हो जाते हैं. ऐसे में सर्जरी कर फेलोपियन ट्यूब तक  निकालनी पड़ती है.

इस से कैसे बचा जा सकता है?

सैक्स करने वालों को केवल गर्भ ठहरने का खतरा ही समझ आता है. उन को लगता है कि आईपिल के सेवन से गर्भ ठहरने से बचा जा सकता है या फिर गर्भ ठहर गया तो जो वे एमटीपी यानी गर्भपात कराने वाली गोलियों का सेवन कर के गर्भ को रोक सकते हैं. वे इस बात से अनजान रहते हैं कि अगर एक्टोपिक प्रैग्नैंसी जैसे हालात आ गए तो सर्जरी से बचना संभव नहीं होता है. अगर कुंआरी है तो इस से समाज में उन की मान और प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंच सकती है. 

गर्भ न ठहरे, इस के क्या उपाय हैं?

गर्भ ठहरने से रोकने के बहुत सारे सरल तरीके होते हैं. इन में गोलियां, इंजैक्शन, कंडोम और कौपर टी जैसे उपाय हैं. एक शरीर में घुलने वाली गोली भी होती है जिसे सैक्स के पहले अंदर के अंग में डालने के बाद सैक्स करने से गर्भ ठहरने का खतरा कम हो जाता है. परेशानी की बात यह है कि इतने उपाय होने के बाद भी लोग जब गलती कर बैठते हैं और जब गर्भ ठहर जाता है तो दूसरे तमाम उपाय करते हैं. गर्भपात कानून आने के बाद जब जानकार डाक्टर गर्भपात से इनकार कर देते हैं तो लोग झोलाछाप डाक्टर और दाई के पास जाते हैं जहां असुरक्षित गर्भपात कराया जाता है. कई बार यह जानलेवा साबित हो जाता है.

ऐसी तमाम परेशानियां औरतों को ही भुगतनी पड़ती हैं, इस मानसिकता को आप कैसे देखती हैं?

हमारे देश में पुरुषवादी मानसिकता हर जगह हावी होती है. गर्भ का सब से अधिक जिम्मेदार पुरुष होता है. हमारे पास कई महिलाएं आती हैं, उन का कहना होता है कि उन का पुरुष साथी ऐसे उपाय नहीं करना चाहता. पुरुष और महिला दोनों को ही यह बात समझाने की जरूरत है कि गर्भ को रोकने के लिए गर्भ निरोधक साधनों का प्रयोग करें. सोचने वाली बात है कि समाज में गर्भपात तो बहुत हो रहे हैं पर नसबंदी नहीं हो रही है. यह औरतों पर अत्याचार और भेदभाव का एक तरीका माना जा सकता है.

क्या सैक्स एजुकेशन से कोई सुधार संभव है?

सैक्स एजुकेशन से सुधार किया जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि सही सैक्स शिक्षा दी जाए. एक बार हम एक स्कूल में गए. लड़कियों से कहा गया कि वे सैक्स से जुडे़ सवाल लिख कर दें. हैरानी की बात थी कि कई लड़कियों ने सवाल पूछा कि आईपिल का प्रयोग कितनी बार कर सकते हैं? आईपिल खा कर गर्भ रोकने की बढ़ती प्रवृत्ति बताती है कि आईपिल का प्रयोग इमरजैंसी में नहीं होता, यह रैगुलर गर्भ निरोधक के रूप में इस्तेमाल हो रही है. अगर सैक्स एजुके शन होगी तो ऐसी परेशानियों से बचा जा सकता है. एक लड़की का सवाल था कि एड्स रोगी को किस करने से भी एड्स होने का खतरा होता है क्या? इन सवालों से पता चलता है कि स्कूली लड़केलड़कियों को जागरूक करने की जरूरत है. सैक्स एजुकेशन से सैक्स के बाद होने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है जो आज के समाज की बड़ी जरूरत है.

2014 के पहले विपक्ष जैसा ही बिखराव था भाजपा में

तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा के लिए अपने सभी उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है. टीएमसी ने सभी 42 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं. इस को विपक्ष के बिखराव के रूप में देखा जा रहा है. इस के बाद भी कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन में बिखराव से इंकार करते कहा है कि ममता बनर्जी के साथ बातचीत चल रही है. जब तक नाम वापसी नहीं हो जाती गठबंधन की संभावनाओं को खारिज नहीं किया जा सकता.

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मुख्य काम विपक्ष को एकजुट रखने का था. इंडिया गठबंधन बना कर कांग्रेस ने इस काम को काफी हद तक पूरा भी किया है. कांग्रेस ने कमोवेश इंडिया गठबंधन के हर सहयोगी का ध्यान रखते हुए सीटों का बंटवारा किया. राहुल और सोनिया गांधी की रणनीति यह थी कि विपक्ष को बंटने न दें. इस का पूरी तरह से कांग्रेस ने पालन किया है. इस के बाद भी जो बिखराव दिख रहा है वह चुनाव आतेआते खत्म हो जाएगा.

कुछ भी मुमकिन है

जैसा बिखराव आज कांग्रेस के साथ दिख रहा है 10 साल पहले 2014 के लोकसभा चुनावों के समय यही बिखराव भाजपा के सामने था. भाजपा में इस बात को ले कर विरोध था कि किस का चेहरा पीएम फेस बने. सब से अधिक चर्चा 2004 और 2009 के पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी को ले कर हो रही थी. उन की उम्र को ले कर सवाल थे. दूसरे नम्बर पर राजनाथ सिंह थे जो उस समय के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. इस के बाद के कई और नाम जैसे नितीन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र मोदी के थे.

जब नरेंद्र मोदी को पीएम फेस बनाया गया तो जदयू जैसे उस के सहयोगी नाराज हो गए. जदयू नेता नीतीश कुमार का मानना था कि नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात दंगो का दाग लगा है ऐसे में मुसलिम वर्ग और जो कट्टर हिंदू नहीं है वह वोट नहीं करेगा. भाजपा के नेता भी यही मान कर चल रहे थे कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को बहुमत नहीं मिलेगा. पीएम फेस बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने चुनावी मैनेजमेंट इस तरह का रखा कि भाजपा बहुमत से सरकार बनाने में सफल हुई.

2014 में भाजपा को 31 प्रतिशत 2019 में 36 प्रतिशत वोट मिला था. इस का अर्थ है कि 60 प्रतिशत देश की जनता ने भाजपा को वोट नहीं दिया. यह वोट बिखराव का शिकार होता रहा है. 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की पहली जिम्मेदारी थी कि वोट के इस बिखराव को रोका जाए. इस के लिए कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन बनाया. पूरे देश में बिखरे पड़े दलों को एक मंच पर लाने का काम किया.

भाजपा ने इस बात से डर कर इस गठबंधन को तोड़ने का हर संभव प्रयास किया. भाजपा को सफलता तब मिली जब जदयू नेता नीतीश कुमार इडिया गठबंधन छोड़ कर वापस भाजपा के एनडीए में शामिल हो गए. उत्तर प्रदेश में बसपा को भी डराया गया. जिस से वह इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं बनी. मीडिया मैनजमेंट के जरिए इंडिया गठबंधन के विरोध को बढ़ाचढ़ा कर दिखाया गया. सीट बंटवारे की खबरों को हाईलाइट किया गया.

लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष भी जरूरी

कांग्रेस को ले कर यह बारबार कहा गया कि वह सहयोगी दलों के दबाव में काम कर रही है. इस के बाद भी कांग्रेस ने पूरे संयम से काम लिया. गठबंधन को बनाए रखने के लिए सहयोगी दलों को पूरा मौका दिया. कांग्रेस की कोशिश है कि वोट के बंटवारे को रोका जा सके. इसलिए वह बहुत संभल संभल के कदम रख रही है.

हो सकता है कि कांग्रेस भाजपा को सत्ता से हटाने में सफल न हो सके. उस का दूसरा प्रयास यह है कि मजबूत विपक्ष का किरदार निभाए. 2019 में भी लोकसभा में कई बार ऐसे अवसर आए जहां विपक्ष मजबूत दिखा. 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष मजबूत और एकजुट रहे यह भी भाजपा के खिलाफ प्रमुख रणनीति है.

जब तक चुनाव खत्म नहीं होते तब तक कुछ भी बदलाव हो सकता है. राजनीति में चुनावी परिणाम हवा के रूख में बदल जाते हैं. इंडिया गठबंधन ने भाजपा के सामने वोट के बिखराव को रोक दिया है, जिस से चुनौती कठिन हो गई है. जनता यह नहीं कह सकती की विपक्ष ने कुछ किया ही नहीं है.

कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों की मेहनत दिख रही है. विपक्ष को एकजुट करने और लड़ाई को कठिन बनाने तक कांग्रेस सफल हो गई है. अभी भाजपा और उस के गठबंधन के तमाम टिकट बंटने हैं. टिकट बांटना एक बड़ा काम है. यहां का विरोध भी भाजपा को कमजोर कर सकता है. यहां से भी चुनाव का रूख बदल सकता है. जब तक नाम वापसी नहीं हो जाती चुनाव के रूख को ले कर साफतौर पर कुछ भी कहना बेमानी होगा.

इलैक्टोरल बौन्ड पर एसबीआई को झटका, कल तक चाहिए सुप्रीम कोर्ट को जानकारी

सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद भी इलैक्टोरल बौंड की जानकारी न देने पर 11 मार्च को स्टेट बैंक औफ इंडिया (एसबीआई) को कोर्ट के भीतर जिस तरह फटकार पड़ी है, वह बेहद शर्मनाक है. कोर्ट ने एसबीआई द्वारा और समय मांगे जाने वाली याचिका को खारिज कर 12 मार्च को सारी जानकारी देने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि कल तक अगर जानकारी नहीं दी गई तो कोर्ट एसबीआई पर अवमानना का केस चलाएगी.

गौरतलब है कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने इलैक्टोरल बौन्ड को असंवैधानिक बताते हुए उसे रद्द कर दिया था और स्टेट बैंक औफ इंडिया जो इलैक्टोरल बौन्ड बेचने वाला अकेला अधिकृत बैंक है, को निर्देश दिया था कि वह 6 मार्च 2024 तक 12 अप्रैल, 2019 से ले कर अब तक खरीदे गए समस्त इलैक्टोरल बौन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए ताकि चुनाव आयोग उसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड के सके. चुनाव आयोग को इलैक्टोरल बौंड से संबंधित तमाम जानकारी 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर जारी करनी थी. मगर एसबीआई ने और समय की मांग करते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को खूब खरीखरी सुनाई. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “आप को कुछ बातों पर स्पष्टीकरण देना चाहिए. कृपया आप मुझे बताएं कि आप 26 दिनों से क्या कर रहे थे? आप के हलफनामे में इस पर एक शब्द नहीं लिखा गया है. बौन्ड खरीदने वाले के लिए एक केवाईसी होती थी तो आप के पास खरीदने वाले की जानकारी तो है ही. फिर दिक्कत कहां है?

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी मांगी थी कि कितने इलैक्टोरल बौंड्स किनकिन पार्टियों के लिए खरीदे गए और किस ने खरीदे, मगर एसबीआई ने जानकारी नहीं दी. एसबीआई की तरफ से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने जानकारी उपलब्ध कराने के लिए समय 30 जून तक का समय मांगा तो सुप्रीम कोर्ट भड़क उठा. कोर्ट ने कहा कि जो काम 24 घंटे में हो सकता है उस के लिए महीनों का समय क्यों?

इस पर हरीश साल्वे ने कहा इस बात में कोई दोराय नहीं है कि हमारे पास जानकारी है. डोनर्स से मिलान करने में वक्त लगेगा. साल्वे की बात पर जस्टिस संजीव खन्ना ने नाराज होते हुए कहा कि जानकारी अगर सील कवर में है तो उस सील कवर को खोलिए और जानकारी दीजिए.

बता दें कि इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीरआर गावई, जस्टिस जबी पार्दीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच कर रही है. एसबीआई जिस तरह चुनावी बौंड से संबंधित जानकारी देने में ही लापरवाही कर रही है उस से कोर्ट भड़का हुआ है.

एसबीआई चाहता है कि लोकसभा चुनाव हो जाएं, उस के बाद यह खुलासा हो, मगर कोर्ट का आदेश उस की गर्दन पर खंजर की तरह आ टिका है. अब बैंक भारतीय जनता पार्टी की चाकरी बजाए या कोर्ट का आदेश माने, इस ऊहापोह में घिर गया है. उस के पास 24 घंटे से भी कम समय है.

दरअसल इलैक्टोरल बौंड के मामले में एसबीआई नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की गर्दन फंसी हुई है. लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और ऐसे में अगर ये पोल पट्टी खुल गई कि कौन कौन उद्योगपति, पूंजीपति, व्यापारी, धंधेबाज, रसूखदार, एनआरआई, भारतीय जनता पार्टी की तिजोरियां भरते रहे हैं और बदले में उस से क्याक्या फायदे उठाते रहे हैं, तो भारतीय राजनीति में भूचाल आ जाएगा. विपक्ष को बहुत बड़ा मुद्दा मिल जाएगा और देश की जनता के सामने भारतीय जनता पार्टी की “ईमानदारी” का भंडाफोड़ हो जाएगा. यह खुलासा लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत गिरा सकता है. ऐसे में एसबीआई पर मोदी सरकार द्वारा जानकारी न देने जबरदस्त दबाव है.

कांग्रेस का आरोप है कि एसबीआई ऐसा इलैक्टोरल बौंड स्कीम की सब से बड़ी लाभार्थी भाजपा की छवि बचाने के लिए कर रही है. राहुल गांधी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, बल्कि पूरी दाल ही काली है.”

पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग भी कहते हैं कि एसबीआई सिर्फ बहाना बना रही है. बैंक को सिर्फ 3 आधारभूत जानकारी कोर्ट को देनी है कि किस ने बौंड खरीदा, कितने का बौंड खरीदा और कब खरीदा. ऐसे ही बौंड किस को मिला, कितने का मिला और कब मिला, यह जानकारी देनी है. यह सब जानकारी एसबीआई के कम्प्यूटर्स पर हर वक्त उपलब्ध होती है. इस जानकारी को इकट्ठा कर कोर्ट के सामने पेश करने के लिए महीनों का समय नहीं, बल्कि सिर्फ 10 मिनट का वक़्त चाहिए.

बता दें कि जब मोदी सरकार इलैक्टोरल बौंड स्कीम तैयार कर रही थी, उस वक्त सुभाष गर्ग इकोनौमिक अफैयर्स सेक्रेटरी थे. एसबीआई सरकार को इलैक्टोरल बौंड्स से जुड़ा डाटा देती रही है. वह बिक्री की प्रत्येक विंडो अवधि के बाद केंद्रीय वित्त मंत्रालय को रेगुलर ऐसी जानकारी भेजती थी.

चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का इस्तीफा, चुनाव आयोग के भीतरखाने क्या पक रहा है?

2024 के लोकसभा चुनाव का ऐलान अब कभी भी हो सकता है और सभी राजनीतिक दल भी अपनेअपने प्रचार में जोरशोर से जुटे हुए हैं. इसी बीच एक ऐसी खबर सामने आई जिस ने सभी को चौंका कर रख दिया है. दरअसल, चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वीकार भी कर लिया.

बता दें कि गोयल का कार्यकाल दिसंबर 2027 तक था और उन का अचानक इस्तीफा देना सभी के लिए चौंकाने वाला है. गोयल के इस्तीफे की वजह अभी तक साफ नहीं है. हालांकि कहा जा रहा है कि गोयल ने इस्तीफे का कारण निजी बताया है.

गोयल के इस्तीफे के बाद 3 सदस्यों वाले निर्वाचन आयोग में अब केवल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं. गोयल के इस्तीफे के बाद दो निर्वाचन आयुक्त के पद खाली हो गए हैं. इस से पहले पिछले महीने में अनूप चंद्र पांडेय के सेवानिवृत्त होने की वजह से एक पद पहले से ही खाली था. अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद आम लोगों के मन में कई सवाल पैदा हो गए हैं. आइए इस से से जुड़ी जानकारियां आप को बताते हैं.

क्या चुनाव आयुक्त के इस्तीफे के बाद चुनावों में देरी होगी?

चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे से चुनाव प्रक्रिया में देरी की संभावना कम है. विशेषज्ञों की मानें, तो चुनाव आयोग में अन्य सदस्य और अध्यक्ष होते हैं जो चुनाव संचालन की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं. ऐसे में चुनाव में देरी नहीं होगी.

अब कौन करेगा चुनावों की तारीखों का ऐलान?

अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद अब 3 चुनाव आयुक्तों में से सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार बचे हैं. ऐसे में राजीव कुमार ही चुनावों की तारीखों का ऐलान करेंगे. हालांकि, आयोग में एक से अधिक सदस्य होते हैं जो सामूहिक तौर पर चर्चा कर के फैसला करते हैं.

लोकसभा चुनाव से पहले क्या कोई और बनेगा चुनाव आयुक्त?

विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार अन्य चुनाव आयुक्त के पदों पर भरती के लिए नियुक्ति की प्रकिया शुरू कर सकती है.

कौन हैं अरुण गोयल?

7 दिसंबर, 1962 को पटियाला में जन्मे अरुण गोयल 1985 बैच के पंजाब कैडर के IAS औफिसर थे. वे नवंबर 2022 में भारत निर्वाचन आयोग में शामिल हुए थे. गोयल ने अपनी पढ़ाई गणित में MSC से पूरी की. पंजाब यूनिवर्सिटी की सभी परीक्षाओं में टौप करने का रिकौर्ड कायम करने के लिए गोयल को चांसलर मैडल औफ ऐक्सीलैंस से भी सम्मानित किया जा चुका है.

अरुण गोयल ने इंगलैंड की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी स्थित चर्चिल कालेज से विकास अर्थशास्त्र में विशिष्टता के साथ पोस्टग्रेजुएशन किया है और अमेरिका की प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के जौन एफ कैनेडी स्कूल औफ गवर्नमैंट से प्रशिक्षण प्राप्त किया है. अरुण गोयल ने 18 नवंबर, 2022 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी.

कंट्रोवर्सी से जुड़ी थी अरुण गोयल की नियुक्ति

निर्वाचन आयुक्त के पद पर अरुण गोयल की नियुक्ति के समय से ही विवाद शुरू हो गया था, जिस का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था. दरअसल, गोयल के सेवानिवृत्ति लेने के अगले दिन ही उन्हें निर्वाचन आयुक्त नियुक्त कर दिया गया. इस कारण जल्दबाजी को ले कर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने नियुक्ति में हुई जल्दबाजी को ले कर सवाल उठाए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की कतार में थे गोयल

इस साल फरवरी में अनूप पांडे की सेवानिवृत्त और अब गोयल के इस्तीफे के बाद 3 सदस्यीय निर्वाचन आयोग में अब केवल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार रह गए हैं. अरुण गोयल मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की कतार में थे, उन का कार्यकाल 5 दिसंबर, 2027 तक था. मौजूदा CEC राजीव कुमार अगले साल फरवरी में सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उन के बाद गोयल ही अगले मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने वाले थे.

अरुण गोयल के इस्तीफे को ले कर विपक्ष का सरकार पर आरोप

अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष केंद्र सरकार को घेरते हुए हमला बोल रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “जैसा कि मैं ने पहले ही कहा था कि यदि हम स्वतंत्र संस्थाओं की सुनियोजित बरबादी को नहीं रोकते हैं तो तानाशाही द्वारा हमारे लोकतंत्र पर कब्जा कर लिया जाएगा.”

कैसे बनते हैं चुनाव आयुक्त?

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के पैनल की सिफारिश पर की जाती है. इस नियुक्ति को ले कर पिछले साल केंद्र सरकार ने एक कानून बनाया था जिस में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था.

लोकसभा चुनाव के लिए मोदी की अवार्ड राजनीति

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भारत रत्न दे कर राजनीतिक समीकरण साधने का काम मोदी सरकार ने किया. इस के बाद मुफ्त प्रचार के लिए नैशनल क्रिएटर्स अवार्ड दे कर सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर को साधने का काम किया गया.

इस बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर कंटैंट बनाने वालों को अपनी नीतियों पर कंटैंट बनाने का औफर भी दिया. इस चुनाव के प्रचारक इन्फ्लुएंसर को बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए तैयार किया गया है, जिस से सोशल मीडिया को अपने पक्ष में किया जा सके. आजकल जिस तरह से रील्स का प्रयोग बढ़ रहा है उस की ताकत चुनौती बनती जा रही है.

राम मंदिर को ले कर प्रचार में सरकार ने प्रिंट और मीडिया चैनलों को करोड़ों के विज्ञापन दिए. इस के बाद भी प्रिंट और मीडिया चैनलों के मुकाबले सोशल मीडिया पर सब से अधिक प्रचार दिखा. यह प्रचार पूरी तरह से मुफ्त था. ऐसे में अब प्रिंट और मीडिया चैनलों के मुकाबले सोशल मीडिया की पहुंच का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. वहां से सरकार ने यह योजना बनाई कि सोशल मीडिया का प्रयोग चुनाव प्रचार में और माहौल को अपने पक्ष में बदलने के लिए किया जाए. रील्स पर राम मंदिर के गाने काफी लोकप्रिय हुए हैं.

क्या था नैशनल क्रिएटर्स अवार्ड

नई दिल्ली के भारत मंडपम में नैशनल क्रिएटर्स अवार्ड समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर अपने कंटैंट के लिए पहचाने वाले इन्फ्लुएंसर्स को सम्मानित किया. इन में इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर पौपुलर इन्फ्लुएंसर गौरव चौधरी और रणवीर अलाहाबादिया के नाम शामिल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टैक्नोलौजी के अलगअलग माध्यमों से विभिन्न प्रकार के कंटैंट क्रिएटर्स से ‘क्रिएट औन इंडिया मूवमैंट’ शुरू करने और भारत की संस्कृति, विरासत व परंपराओं के साथ दुनिया की कहानियों को साझा करने का आग्रह किया.

इस का अर्थ है कि जो बातें प्रधानमंत्री अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ के दौरान करते हैं, उन को अलगअलग जगहों से प्रचारित किया जाए. अपनी बात समझाते हुए पीएम मोदी ने नैशनल क्रिएटर्स पुरस्कार प्रदान करने के बाद कहा कि ‘आइए हम भारत के बारे में सृजन करें, दुनिया के लिए सृजन करें.’ प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उन के किए कामों को सोशल मीडिया पर दिखाया जाए.

अवार्ड पाने वालों में ग्रीन चैंपियन श्रेणी में प्रवेश पांडे को पुरस्कृत किया गया. कीर्तिका गोविंदसामी को सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का पुरस्कार दिया गया. गायिका मैथिली ठाकुर को कल्चरल एंबेसडर औफ द ईयर का पुरस्कार मिला. टैक श्रेणी में गौरव चौधरी और सर्वश्रेष्ठ यात्रा निर्माता पुरस्कार कामिया जानी को दिया गया. इन अवार्ड के बहाने सोशल मीडिया के कंटैंट क्रिएटर्स को मीडिया के मुकाबले खड़ा करने की कोशिश की गई है.

सोशल मीडिया को अब तक दोयम दर्जे का समझा जाता था. इस प्रयोग के बाद अब राज्यों में भी सरकारें इस तरह के काम करेंगी. अब तक सरकार इन को कंट्रोल करने के लिए योजना बना रही थी. उसे लगता है कि सोशल मीडिया को कंट्रोल करने से अच्छा है कि उस को अपने साथ मिला कर काम किया जाए. इस योजना के तहत यह काम किया गया है.

प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं को शुभकामनाएं दीं और कंटैंट क्रिएटर्स से आग्रह किया कि वे ‘नारी शक्ति’ को अपनी विषयवस्तु का हिस्सा बनाएं. मोदी ने कहा कि रचनात्मकता गलत धारणाओं को भी ठीक कर सकती है.

कंटैंट क्रिएटर्स का चुनावी प्रयोग

चुनाव नजदीक होने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “मैं आप को गारंटी देता हूं कि यदि संभव हो तो अगली शिवरात्रि पर मैं ऐसा ही एक कार्यक्रम करूंगा.” दर्शकों द्वारा अब की बार, 400 पार के नारे लगाए जाने के बीच प्रधानमंत्री ने कहा कि यह मोदी की गारंटी नहीं है, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की गारंटी है. उन्होंने कंटैंट क्रिएटर्स से पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं को वोट डालने की अपनी जिम्मेदारी से अवगत कराने का भी आग्रह किया.

मल्हार कलाम्बे को स्वच्छता राजदूत पुरस्कार से सम्मानित करते हुए मोदी ने विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘हर प्रकार की सफाई काम आ सकती है, इस चुनाव में भी सफाई होने वाली है.”

मोदी ने कंटैंट क्रिएटर्स से युवाओं के बीच मादक द्रव्यों के इस्तेमाल के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने का भी आग्रह किया. उन्होंने कहा, “आप का कंटैंट क्रिएशन देश में बहुत बड़ा प्रभाव डाल रहा है.” मोदी ने कहा कि जब समय बदलता है, जब एक नए युग की शुरुआत होती है तो यह देश की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह बदलते समय के साथ कदम से कदम मिला कर चले.”

धर्म को बढ़ावा

कंटैंट क्रिएटर्स में उन को खास महत्त्व दिया गया जो कथावाचन, भजन और धर्म से जुड़े कंटैंट बनाते हैं. नैशनल क्रिएटर्स अवार्ड कथावाचन, सामाजिक बदलाव, पर्यावरणीय संवहनीयता और शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने का प्रयास है. इस का उद्देश्य सकारात्मक बदलाव के लिए रचनात्मकता को प्रोत्साहन देना है.
नैशनल क्रिएटर्स अवार्ड के लिए अनुकरणीय सार्वजनिक सहभागिता सामने आई है. पहले दौर में 20 विभिन्न श्रेणियों में 1.5 लाख से अधिक नामांकन प्राप्त हुए थे. इस के बाद वोटिंग राउंड में विभिन्न पुरस्कार श्रेणियों में डिजिटल सर्जकों के लिए लगभग 10 लाख वोट डाले गए. इस के बाद 3 अंतर्राष्ट्रीय सर्जक सहित 23 विजेताओं का निर्णय किया गया.

अब तक महत्त्वहीन और हाशिए पर खड़े सोशल मीडिया कंटैंट क्रिएटर्स को महत्त्व मिलने से वे उसी धारा में बहने लगेंगे जिस धारा में उन को बहने के लिए अवार्ड मिल रहा है. सोशल मीडिया पर धर्म का प्रचार पहले से खतरनाक गति से बढ़ रहा था, अब इस में और तेजी दिखेगी. इस से सोशल मीडिया भी प्रिंट और चैनलों की तरह से सरकार का गुणगान करती नजर आएगी

अधपकी रोटियां: शकुन ने उन रोटियों को खाने से क्यों इनकार कर दिया?

सुंदर ने अपने हाथों से पहली बार गैस स्टोव पर बनी गोलगोल फूलीफूली रोटियां केसरौल में रख दीं. लेकिन सुंदर की उम्मीदों पर तब घड़ों पानी पड़ गया, जब उन रोटियों को शकुन ने खाने से इनकार कर दिया. क्या थी इस की वजह…?

बहकते कदम: क्या अनीश के चगुंल से निकल सकी प्रिया

लेखिका- मीनू त्रिपाठी

‘देख प्रिया, तू ऐसावैसा कुछ करने की सोचना भी मत, अनीश अच्छा लड़का नहीं है, अभी भी समय है संभल जा.’ प्रज्ञा दीदी के शब्द मानो पटरी पर दौड़ती रेलगाड़ी का पीछा कर रहे थे. भय, आशंका, उत्तेजना के बीच हिचकोले लेता मन अतीत को कभी आगे तो कभी पीछे धकेल देता था. कुछ देर पहले रोमांचकारी सपनीले भविष्य में खोया मन जाने क्यों अज्ञात भय से घिर गया था. मम्मीपापा की लाडली बेटी और प्रज्ञा दीदी की चहेती बहन घर से भाग गई है, यह सब को धीरेधीरे पता चल ही जाएगा.

अलसुबह आंख खुलते ही मम्मी चाय का प्याला ले कर जगाने आ जाएगी, क्या पता रात को ही सब जान गए हों? कितना समझाया था प्रज्ञा दीदी ने कि इस उम्र में लिया गया एक भी गलत फैसला हमारे जीवन को बिखेर सकता है. जितना दीदी समझाने का प्रयास करतीं उतनी ही दृढ़ता से बिंदास प्रिया दो कदम अनीश की ओर बढ़ा देती.

‘‘प्रिया, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, ये प्यारव्यार के चक्कर में पड़ कर अपने भविष्य से मत खेल.’’

‘‘दीदी, अब तो अनीश ही मेरी जिंदगी है. मैं ने उसे दिल से चाहा है, वह जीवनभर मेरा साथ निभाएगा,’’ प्रिया के ये फिल्मी संवाद सुन प्रज्ञा अपना सिर पकड़ लेती.

‘‘क्या हम तुझे नहीं चाहते और अगर तुझे अपने प्यार पर इतना ही भरोसा है तो एक बार पापा से बात कर उसे सब से मिलवा तो सही.’’

एक अनजाने अविश्वास के तहत जाने क्यों प्रिया पापा से बात करने की हिम्मत न जुटा पाई. उस वक्त अनीश द्वारा घर से भाग कर शादी करने का रास्ता उसे रोमांच भरा दिखाई दिया.

अनीश के केयरिंग स्वभाव पर वह उस दिन फिदा हो गई, जब प्रज्ञा दीदी के जोर डालने पर उस ने अनीश को मम्मीपापा से मिलने को कहा, तो उस ने भावावेश में प्रिया को गले लगा लिया और कहा वह अपने प्यार को खोने का रिस्क नहीं उठा सकता है, बस, उसी रात गली के उस पार इंतजार करते अनीश के साथ वह आ गई, घर छोड़ कर आते समय प्रिया का मनोबल चरम पर था. रास्ते में अनीश ने बताया कि वे लोग बेंगलुरु जा रहे हैं, जहां वे कुछ दिन उस के एक दोस्त के घर पर ठहरेंगे और 7 महीने बाद प्रिया के बालिग होने पर शादी करेंगे.

रास्ते भर वह प्रिया को समझाता रहा कि इस दौरान उसे किसी से संपर्क नहीं रखना है, इस मामले में यहां का कानून बेहद सख्त है. विचारों में डूबतीउतराती प्रिया कब नींद के आगोश में चली गई उसे पता ही नहीं चला. अचानक एक स्टेशन पर गहमागहमी के बीच उस की नींद खुली, उस ने देखा तो अनीश अपनी सीट पर नहीं था. बिंदास और मजबूत इरादों वाली प्रिया का हलक सूख गया था. आवेग से उस की आंखें भर आईं, माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं, अकेलेपन के एहसास ने उसे घेर लिया, तभी वह अपना मोबाइल खोजने लगी, पूरा पर्स खंगाल डाला पर कहीं मोबाइल नहीं दिखा.

‘‘आप मोबाइल तो नहीं ढूंढ़ रही हैं?’’ एक आवाज ने उसे चौंका दिया. सामने देखा तो एक युवती बैठी किताब पढ़ रही थी, ‘‘आप ने मुझ से कुछ कहा क्या?’’

‘‘मुझे लगा आप अपना मोबाइल ढूंढ़ रही हैं.’’

‘‘हां, आप ने देखा क्या?’’

प्रिया ने पूछा तो वह बोली, ‘‘तुम्हारे साथ जो लड़का है वह तुम्हारा भाई है क्या ?’’

उस का प्रश्न प्रिया को रुचिकर नहीं लगा. तभी उस युवती ने आगे खुलासा किया, ‘‘तुम्हारा मोबाइल तुम्हारे साथ जो लड़का था वह ले गया है.’’

कातर दृष्टि से इधरउधर देखती प्रिया को उस ने बताया कि वह दूसरे कंपार्टमेंट में बैठा ताश खेल रहा है. प्रिया यह सुन शर्म से गड़ गई. उसे अनीश पर बहुत गुस्सा आया.

‘‘कृपया आप मेरा सामान देखिएगा, मैं वाशरूम जा रही हूं,’’ प्रिया तेजी से निकली. तभी अंधेरे में किसी की आवाज पर उस के पांव वहीं ठिठक गए, दरवाजे के पास खड़ा अनीश मोबाइल पर किसी से कह रहा था, ‘‘बस, ऐसी ही बेवकूफ लड़कियों से तो रोजीरोटी चल रही है हमारी, उस का मोबाइल ले लिया है, 15-20 हजार का तो होगा ही. डर भी था कहीं घर वालों से संपर्क न कर बैठे, मैं बिना बात की मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता. अभी पूछा तो नहीं है, पर घर से कुछ न कुछ तो ले कर जरूर आई होगी, घर जो बसाना है मेरे साथ,’’ उस के ये शब्द ठहाकों के साथ हवा में तैर गए.

‘‘और हां सुन, तू सारा इंतजाम रखना, मेरी जिम्मेदारी केवल वहां तक छोड़ने की है आगे तू संभालना, बस, फिल्म मस्त बननी चाहिए.’’

इस वार्त्ता को सुन कर प्रिया का खून बर्फ की तरह जम चुका था, उस के पांव स्थिर न रह पाए. वह गिरने वाली थी कि किसी ने उसे संभाला, वह कैसे अपनी सीट तक आई उसे पता ही नहीं चला, दो घूंट पानी पीने के कुछ क्षण बाद उस ने आंखें खोलीं तो अपने कंपार्टमैंट में बैठी युवती का चिरपरिचित चेहरा दिखा.

‘‘तुम ठीक तो हो न?’’ उस ने जैसे ही पूछा प्रिया की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी, उस युवती ने अपने साथ आए शख्स को बाहर भेज दिया और कूपे को अंदर से बंद कर दिया.

‘‘क्या हुआ? साथ आया लड़का बौयफ्रैंड है न तुम्हारा?’’ उस युवती की बात सुन प्रिया फफक पड़ी.

‘‘देखो, वह लड़का ठीक नहीं है. यह शायद तुम्हें भी पता चल गया होगा. मैं जानती हूं कि तुम दोनों घर से भाग कर आए हो.’’

प्रिया ने आश्चर्य और शंकित नजरों से उसे देखा तो वह बोली, ‘‘मेरा नाम सरन्या है. तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो. वैसे तुम्हारे पास और कोई चारा भी नहीं है.’’ युवती की बातों में सचाई थी. वैसे भी अनीश का जो बीभत्स चेहरा वह अभीअभी देख कर आई थी, उसे देख कर तो उस की रूह कांप उठी थी.

‘‘देखो, जो गलत कदम तुम ने उठाया है, जिन कांटों में तुम उलझी हो उस से निकलने के लिए तुम्हें साहस जुटाना पड़ेगा.’’ सरन्या की बातों का प्रभाव प्रिया पर पड़ा. कुछ देर में ही वह संभल गई.

‘‘प्रिया नाम है न तुम्हारा? अपने पापा का नंबर दो मुझे.’’ उस ने अधिकार से कहा तो प्रिया ने पापा का नंबर बता दिया. वह युवती बात करने के लिए बाहर चली गई.

अब तक प्रिया स्थिति का सामना करने को तैयार हो गई थी. कुछ देर में वह वापस आई और बोली, ‘‘मैं ने तुम्हारे पापा से बात कर ली है, वह अगली फ्लाइट से बेंगलुरु पहुंच रहे हैं. अब तुम्हें क्या करना है यह ध्यान से सुनो.’’ वह प्रिया को कुछ बताते हुए अपने साथ आए युवक से बोली, ‘‘मैडम के साथ जो व्यक्ति आया है उसे बताओ कि ये उसे बुला रही हैं और हां, अर्जुन कुछ देर तुम बाहर ही रहना.’’

कुछ देर बाद ही अनीश आ गया तो प्रिया उस से शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तुम कहां चले गए थे, अनीश? मैं कितना डर गई थी मालूम है तुम्हें.’’

अनीश उस की बात सुन कर तुरंत बोला, ‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर भले कहां जाऊंगा.’’ प्रिया ने कूपे की लाइट जला दी. उसे कुछ देर पहले जिस अनीश की आंखों में प्यार का समुद्र नजर आ रहा था अब उन में मक्कारी दिखाई दे रही थी. अब वह अपनी खुली आंखों से देख रही थी कि किस तरह सतर्कतापूर्वक अनीश इधरउधर देख रहा था. तभी प्यार से प्रिया ने उस से कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक खुशखबरी देना चाहती हूं.’’

‘‘क्या?’’ भौचक्का सा वह बोला तो प्रिया ने कहा, ‘‘जानते हो पापा हमारी शादी के लिए राजी हो गए हैं और वे भी बेंगलुरु पहुंच रहे हैं.’’ प्रिया के इस खुलासे से अनीश का तो रंग ही उड़ गया, वह अचानक बिफर गया, ‘‘बेवकूफ लड़की, मैं ने मना किया था कि कहीं फोन मत करना.’’

तभी मानो उसे कुछ याद आया हो, न चाहते हुए भी उस के मुंह से निकला, ‘‘तुम्हारा मोबाइल तो…’’ ‘‘मैं जानती हूं वह तो तुम्हारे पास है.’’ इस से पहले कि अनीश कुछ और पूछता प्रिया अपना आपा खो चुकी थी. उस का हाथ पूरे वेग से लहराया और अनीश के गाल पर तेज आवाज के साथ झन्नाटेदार चांटा पड़ा. क्रोध और अपमान से उस का बदन कांप रहा था. अनीश का सारा खून निचुड़ गया था. शोरशराबे की आवाज बाहर तक चली गई थी. लोगों ने अंदर झांकना शुरू कर दिया था. उतनी देर में टीटीई भी आ गया. उस ने पूछा कि क्या माजरा है? तो बड़े इत्मीनान से वह युवती उठ कर आई और बोली, ‘‘ये मेरी रिश्तेदार हैं, दरअसल यह हमारे साथ बैठा एक यात्री है. हमें लगता है कि इस ने हमारा मोबाइल चुराया है. आप पुलिस बुलाइए.’’ अनीश के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी थीं.

’’देखिए मैडम, यह फर्स्ट क्लास का डब्बा है, आप इस में बैठे यात्री पर इस तरह का इलजाम नहीं लगा सकतीं.’’ टीटीई के बोलने पर अर्जुन बोला, ‘‘मैं भी इन को यही समझा रहा हूं कि पुलिस के झंझट में पड़ने से पहले खुद तसल्ली कर लो,’’ इतना कहते ही उस ने अनीश की जेबें खंगालते हुए प्रिया का मोबाइल निकाल लिया. अनीश सकते में था, पासा यों पलट जाएगा, उस ने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था. तुरतफुरत रेलवे के 2 पुलिस कांस्टेबल आए तो उस युवती ने अपना पहचानपत्र दिखाया. ‘एसीपी सरन्या’ पढ़ कर दोनों ने उसे एक करारा सेल्यूट बजाया तो टीटीई सहित प्रिया भी अचंभे में पड़ गई. टीटीई हंस कर बोला, ‘‘क्या बेटा, चोरी भी की तो पुलिस वालों की?’’

एसीपी सरन्या ने अर्जुन से कहा, ‘‘इंस्पेक्टर अर्जुन, आप इस के साथ अगले स्टेशन पर उतर जाइए, मैं बताती हूं आप को आगे क्या करना है और हां, जरा इसे समझाना और खुद भी ध्यान रखना कि इस लड़की का नाम बीच में न आए, ’’ हंगामे के बीच अनीश को अगले स्टेशन पर उतार लिया गया.

ट्रेन में सवार यात्री इस पर अपनीअपनी टिप्पणी देने में मशगूल थे. प्रिया अपमान और शर्मिंदगी से भरी देर तक रोती रही. तभी सरन्या ने सांत्वनाभरा हाथ उस की पीठ पर फेरा, तो वह सरन्या के गले लग गई और बोली, ‘‘आप ने मुझे बचा लिया, आप का यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी.’’

उस की बात पर सरन्या हंस पड़ी और बोली, ‘‘कैसे नहीं बचाती तुम्हें, यह तो वही बात हुई कि एक डाक्टर के सामने किसी ने खुदकुशी करने की कोशिश की. जान तो उस की बचनी ही थी, यह मेरी पहली नियुक्ति है आईपीएस औफिसर के रूप में, तुम ने तो मुझे शुरू में ही इतना बड़ा केस दिला दिया है. मैं तो तुम्हें देख कर ही समझ गई थी कि तुम घर से भाग कर आई हो. ट्रेन में चढ़ते वक्त तो तुम किसी दूसरी ही दुनिया में थीं. किसी और का तुम्हें होश ही कहां था, अलबत्ता वह लड़का जरूरत से ज्यादा सतर्क था.’’

‘‘दूसरों को औब्जर्व करना मेरी हौबी है, उसे देख कर ही मैं समझ गई थी कि वह लड़का ठीक नहीं है. जब मैं ने चुपके से उसे तुम्हारे पर्स से मोबाइल निकालते और पैसे चेक करते देखा तो मुझे बड़ा अजीब लगा. जब वह बाहर गया तो मैं ने अर्जुन से बात कर के उस  पर नजर रखने को कहा, इसीलिए जब तुम वाशरूम गईर् तो तुम्हारे पीछेपीछे मैं भी आई थी. मुझे पता था कि कहीं कुछ गड़बड़ है, पर मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि तुम्हारे जैसी पढ़ीलिखी लड़की आज के जमाने में ऐसी मूर्खता कैसे कर सकती है.

‘‘जरा सोचो, अगर वह अपनी योजना में कामयाब हो जाता तो क्या होता. तुम ठीक समय पर संभल गई अन्यथा उस दलदल में फंसने के बाद जिंदगी दूभर हो जाती.

प्रिया सब सोच कर एकबारगी फिर से सिहर उठी. ‘‘मैं अब घर जा कर सब से नजरें कैसे मिलाऊंगी,’’ कुछ खोई हुई सी वह बोली.

‘‘देखो प्रिया, सवाल यह नहीं है कि तुम सब से कैसे नजरें मिलाओगी, यह सोचो कि तुम अपने वजूद से कैसे नजरें मिलाओगी जिसे तुम ने इतने बड़े जोखिम में यों ही डाल दिया, खुद से नजरें मिलाने के लिए तो तुम्हें अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा, तुम्हारा कर्म ही तुम्हारी अग्नि परीक्षा होगी. अब यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम किस तरह से खुद को और अपने भविष्य को संवार कर अपने परिवार के सदस्यों को यह खुशी दो जिस से तुम्हारा यह सफर न तुम्हें और न कभी तुम्हारे परिवार को याद आए.’’

सरन्या की बातों का असर प्रिया की चुप्पी में दिखा, मन ही मन वह आत्ममंथन करती रही. मानसिक रूप से थकी प्रिया कब सो गई पता ही नहीं चला, किसी के स्नेह भरे स्पर्श से आंखें खुलीं, सामने पापा को देख वह छोटी बच्ची की तरह उन से लिपटी, साथ आई प्रज्ञा भी रो पड़ी.

‘‘आप का यह एहसान हम कैसे चुका पाएंगे,’’ पापा सरन्या से बोल रहे थे.

‘‘पापा, आप मुझे कभी माफ कर पाएंगे क्या?’’

उन दोनों की बात सुन कर सरन्या ने प्रिया के पापा से कहा, ‘‘अगर आप वाकई एहसान उतारना चाहते हैं तो मुझ से वादा कीजिए कि आप अपनी बेटी पर भरोसा कायम रखते हुए इस की उड़ान को पंख देंगे, इस सफर को भूलते हुए, आगे की जिंदगी में इस का साथ देंगे, न कि इस सफर का बारबार उल्लेख कर इस की आगे की जिंदगी को दूभर बनाएंगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं कि प्रिया की आज की भूल का जिक्र कर के हम इस के मनोबल को नहीं गिरने देंगे, आज के बाद हम में से कोई भी प्रिया से इस बारे में कोई बात नहीं करेगा.’’

‘‘पापा, आप की बेटी आप का सिर कभी झुकने नहीं देगी, मैं भी सरन्या दीदी जैसा बन कर दिखाऊंगी.’’ सरन्या के व्यक्त्तित्व के प्रभाव से प्रभावित प्रिया पापा का साथ पा कर पूरे आत्मविश्वास से बोली, तो पापा और प्रज्ञा ने उसे प्यार से थाम लिया. सरन्या समझ गई कि अब सही माने में प्रिया भंवर से बाहर निकल चुकी है. उस के होंठों पर तसल्ली भरी स्मितरेखा थी.

 

वक्ता ही नहीं अच्छे श्रोता के भी हैं कई लाभ

बोलना हर किसी को बहुत पसन्द होता है यही नहीं कुछ लोग तो इतना बोलते हैं कि वे अपने आगे किसी दूसरे को बोलने का मौका तक नहीं देते. इसका साक्षात उदाहरण है महिलाओं की किटी पार्टी जिसमें मानो एक दूसरे से बढ़चढ़ कर बोलने की प्रतिद्वंदिता ही लगी रहती है. परंतु वास्तव में अक्सर अधिक बोलने की आदत होने के कारण हम अपना ही नुकसान कर बैठते हैं तो देखते हैं कि अधिक बोलने के क्या नुकसान हैं

-अक्सर अधिक बोलने की आदत के कारण हम सामने वाले से जरूरी बात करना या कहना ही भूल जाते हैं.
-अक्सर सामने वाले को अपने बारे में अनावश्यक व्यक्तिगत बातें भी बता जाते हैं.
-अधिक बोलने से वार्तालाप बहुत अधिक लम्बा हो जाता है जिससे कई बार श्रोता बोर होने लगता है और वह चाहकर भी आपकी बातचीत में शामिल नहीं हो पाता.

-बातों के प्रवाह में लोग अक्सर ऐसे पात्रों और लोगों की चर्चा करते हैं जो समयोचित ही नहीं होते और जिनका सुनने वालों से कोई लेना देना ही नहीं होता.
-अपनी ही बात कहने के कारण आप सम्बंधित विषय पर किसी दूसरे के विचारों को सुनने से वंचित रह जाते हैं.

-आपकी अधिक और अनावश्यक बोलने की आदत के कारण लोग आपसे कटने लगते हैं.
सच पूछा जाए तो बोलने से अधिक सुनने की कला आना बेहद आवश्यक है. अक्सर देखा जाता है कि कुछ लोग अपने परिचितों से मिलने जाते हैं और बजाय उनकी सुनने के अपना या अपने बच्चों का ही गुणगान करने लगते हैं सामने वाले के पास ऐसे लोंगो को सुनने के अलावा कोई चारा नहीं होता. आप अपने आसपास ही खोजेंगे तो 10 में से केवल 1 इंसान ही आपको श्रोता मिलेगा. जब कि एक अच्छे श्रोता बनकर आप अपने व्यक्तित्व में अनेकों सुधार कर सकते हैं. मनोवैज्ञानिक काउंसलर कीर्ति वर्मा के अनुसार
-लोगों की बातों को शांति से सुनने का तात्पर्य है कि आप धैर्यशाली हैं.
-सुनने से आप विषय की गम्भीरता को समझ पाते हैं और फिर संबंधित विषय के बारे में अपनी राय बना पाते हैं.

-सुनने से आप लोंगों के व्यक्तित्व को समझ पाते हैं.
-किसी के भी वार्तालाप को धैर्य से सुनना आपके गंभीर व्यक्तित्व का परिचायक है.
-गंभीरता पूर्वक बात को सुनने के कारण आपके समक्ष लोग अपनी बात निस्संकोच रख पाते हैं.

आइए जानते हैं ऐसे कुछ टिप्स जिनको अपनाकर आप भी अच्छे श्रोता बन सकते हैं-
-वक्ता से जुड़ें

मनु के सामने जब भी कोई किसी भी मुद्दे पर बात करता है तो वह बड़े ही तटस्थ भाव से सुनता है जिससे सामने वाला कुछ देर में ही बोलना बंद कर देता है. इसलिए जब भी आप किसी की बात सुनें तो उससे जुड़ें अवश्य, मसलन यदि आप किसी से उसके घर होने वाली शादी के बारे में बात कर रहे हैं तो उनसे शादी की तैयारियों आदि के बारे में बातचीत करें ताकि उन्हें लगे कि आप उनके प्रोग्राम में रुचि ले रहे हैं. किसी का नवनिर्मित घर देखने गए हैं तो रुचि लेकर उसके घर से सम्बंधित सवाल पूछें. आपके चेहरे के दुःख और खुशी जैसे भाव सामने वाले को जीवंतता का अहसास कराते हैं अन्यथा उसे लगेगा कि वह किसी मुर्दे से बात कर रहा है.
-सोशल मीडिया से बचें
कई बार देखने में आता है कि कुछ लोग दूसरों से बातचीत करते समय भी बीच बीच में फोन उठाकर कभी मैसेज देखने लगते हैं, या फॉरवर्ड करना शुरू कर देते हैं, इससे सामने वाले का ध्यान तो भंग होता ही है, साथ ही उसे यह भी अहसास हो जाता है कि आप उसकी बातों में रुचि नहीं ले रहे हैं.

-टी वी से बचें
सीमा और उसके पति अपने पारिवारिक मित्र से मिलने उनके घर गए. कुछ देर की औपचारिक बातचीत के बाद उनके मित्र टी.वी. पर आ रहे एक धार्मिक धारावाहिक देखने में व्यस्त होकर बीच बीच में हां हूँ करते जा रहे थे इससे सीमा और उसके पति को बहुत ही उपेक्षित महसूस हुआ और वे कुछ देर बाद ही उठकर वापस अपने घर आ गए. अपना कीमती समय निकालकर जब भी कोई मिलने आता है तो उससे रुचिपूर्वक बातचीत करना सम्बन्धों की गम्भीरता को बनाये रखने के लिए अत्यंत आवश्यक होता है.
-व्यस्तता का नाटक न करें
कुछ लोंगो की आदत होती है कि जब भी आप उनसे बात करो वे लैपटॉप में आंखे गड़ाए गड़ाए ही बातचीत करते हैं मानो सारा जरूरी काम उन्हें उसी समय करना है. जब भी आपसे कोई बात करे तो कुछ देर अपना काम रोककर आप सामनेवाले की अच्छी तरह बात सुनें और यदि बहुत जरूरी काम कर रहे हैं तो वक्ता को कुछ देर रुकने के लिए कहें.
-अपनी उपस्थिति दर्ज करें
भले ही विषय आपकी रुचि का न हो परन्तु फिर भी आप बीच बीच में सामने वाले के विषय से संबंधित प्रश्न अवश्य पूछें इससे आपको विषय की जानकारी तो होगी ही साथ ही सामने वाले को भी लगेगा कि आप उससे जुड़ें हैं.

-बीच में न टोकें
रेशु की आदत है कि किसी की भी बात पूरी सुने बिना बीच में ही अपनी प्रतिक्रिया दे देती है जिससे बोलने वाले की बात तो अधूरी रह ही जाती है साथ ही रेशु भी संबंधित विषय पर अपनी सही विचार रखने से वंचित रह जाती है.
-मददगार बनें
कोरोना के आने के बाद से हर इंसान अपने जीवन में अनेकों परेशानियां झेल रहा है, कई बार इन परेशानियों का सामना न कर पाने के कारण वे अपने बेशक़ीमती जीवन तक को दांव पर लगा देते हैं. यदि आपके आसपास का भी कोई आपसे बात करना चाहता है तो उसे समय देकर शांति से उसकी बात सुनें और हर सम्भव उसकी मदद करने का प्रयास करें.

बाजारीकरण: जब बेटी के लिए नीला ने किराए पर रखी कोख

आजनीला का सिर बहुत तेज भन्ना रहा था, काम में भी मन नहीं लग रहा था, रात भर सो न सकी थी. इसी उधेड़बुन में लगी रही कि क्या करे और क्या न करे? एक तरफ बेटी की पढ़ाई तो दूसरी तरफ फीस की फिक्र. अपनी इकलौती बच्ची का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी. पर एक बच्चे को पढ़ाना इतना महंगा हो जाएगा, उस ने सोचा न था. पति की साधारण सी नौकरी उस पर शिक्षा का इतना खर्च. आजकल एक आदमी की कमाई से तो घर खर्च ही चल पाता है. तभी बेचारी छोटी सी नौकरी कर रही थी. इतनी पढ़ीलिखी भी तो नहीं थी कि कोई बड़ा काम कर पाती. बड़ी दुविधा में थी.

‘यदि वह सैरोगेट मदर बने तो क्या उस के पति उस के इस निर्णय से सहमत होंगे? लोग क्या कहेंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि सारे रिश्तेनातेदार उसे कलंकिनी कहने लगें?’ नीला सोच रही थी.

तभी अचानक अनिता की आवाज से उस की तंद्रा टूटी, ‘‘माथे पर सिलवटें लिए क्या सोच रही हो नीला?’’

‘‘वही निशा की आगे की पढ़ाई के बारे में. अनिता फीस भरने का समय नजदीक आ रहा है और पैसों का इंतजाम है नहीं. इतना पैसा तो कोई सगा भी नहीं देगा और दे भी दे तो लौटाऊंगी कैसे? घर जाती हूं तो निशा की उदास सूरत देखी नहीं जाती और यहां काम में मन नहीं लग रहा,’’ नीला बोली.

‘‘मैं समझ सकती हूं तुम्हारी परेशानी. इसीलिए मैं ने तुम्हें सैरोगेट मदर के बारे में बताया था. फिर उस में कोई बुराई भी नहीं है नीला. जिन दंपतियों के किसी कारण बच्चा नहीं होता या फिर महिला में कोई बीमारी हो जिस से वह बच्चा पैदा करने में असक्षम हो तो ऐसे दंपती स्वस्थ महिला की कोख किराए पर लेते हैं. जब बच्चा पैदा हो जाता है, तो उसे उस दंपती को सुपुर्द करना होता है. कोख किराए पर देने वाली महिला की उस बच्चे के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होती और न ही उस बच्चे पर कोई हक. इस में उस दंपती महिला के अंडाणुओं को पुरुष के शुक्राणुओं से निषेचित कर कोख किराए पर देने वाली महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. यह कानूनन कोई गलत काम नहीं है. इस से तुम्हें पैसे मिल जाएंगे जो तुम्हारी बेटी की पढ़ाई के काम आएंगे.’’

‘‘अनिता तुम तो मेरे भले की बात कह रही हो, किंतु पता नहीं मेरे पति इस के लिए मानेंगे या नहीं?’’ नीला ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘और फिर पड़ोसी? रिश्तेदार क्या कहेंगे?’’

नीला को अनिता की बात जंच गई

अनिता ने कहा, ‘‘बस तुम्हारे पति मान जाएं. रिश्तेदारों की फिक्र न करो. वैसे भी तुम्हारी बेटी का दाखिला कोटा में आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने वाले इंस्टिट्यूट में हुआ है. वह तो वहां जाएगी ही और यदि तुम कोख किराए पर दोगी तो तुम्हें भी तो ‘लिटल ऐंजल्स’ सैंटर में रहना पड़ेगा जहां अन्य सैरोगेट मदर्स भी रहती हैं. तब तुम कह सकती हो कि अपनी बेटी के पास जा रही हो.’’

नीला को अनिता की बात जंच गई. रात को खाना खा सोने से पहले जब नीला ने अपने पति को यह सैरोगेट मदर्स वाली बात बताई तो एक बार तो उन्होंने साफ मना कर दिया, लेकिन नीला तो जैसे ठान चुकी थी. सो अपनी बेटी का वास्ता देते हुए बोली, ‘‘देखोजी, आजकल पढ़ाई कितनी महंगी हो गई है. हमारा जमाना अलग था. जब सरकारी स्कूलों में पढ़ कर बच्चे अच्छे अंक ले आते थे और आगे फिर सरकारी कालेज में दाखिला ले कर डाक्टर, इंजीनियर आदि बन जाते थे, पर आजकल बहुत प्रतिद्वंद्विता है. बच्चे अच्छे कोचिंग सैंटरों में दाखिला ले कर डाक्टरी या फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं. हमारी तो एक ही बेटी है. वह कुछ बन जाए तो हमारी भी चिंता खत्म हो जाए. उसे कोटा में दाखिला मिल भी गया है. अब बस बात फीस पर ही तो अटकी है. यदि हम उस की फीस न भर पाए तो बेचारी आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी न कर पाएगी. दूसरे बच्चे उस से आगे निकल जाएंगे. आजकल बहुत प्रतियोगिता है. यदि उस ने वह परीक्षा पास कर भी ली, तो हम आगे की फीस न भर पाएंगे. फिर खाली इंस्टिट्यूट की ही नहीं वहां कमरा किराए पर ले कर रहने व खानेपीने का खर्चा भी तो बढ़ जाएगा. हम इतना पैसा कहां से लाएंगे?’’

नीला के  बारबार कहने पर उस के पति मान गए

‘‘अनिता बता रही थी कि कोख किराए पर देने से क्व7-8 लाख तक मिल जाएंगे. फिर सिर्फ 9 माह की ही तो बात है. उस के बाद तो कोई चिंता नहीं. हमें अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. पढ़ जाएगी तो कोई अच्छा लड़का भी मिल जाएगा. जमाना बदल रहा है हमें भी अपनी सोच बदलनी चाहिए.’’

नीला के  बारबार कहने पर उस के पति मान गए. अगले दिन नीला ने यह बात खुश हो कर अनिता को बताई. अब नीला बेटी को कोटा भेजने की व स्वयं के लिटल ऐंजल्स जाने की तैयारी में जुट गई. उसे कुछ पैसे कोख किराए पर देने के लिए ऐडवांस में मिल गए. उस ने निशा को फीस के पैसे दे कर कोटा रवाना किया और स्वयं भी लिट्ल ऐंजल्स रवाना हो गई.

वहां जा कर नीला 1-1 दिन गिन रही थी कि कब 9 माह पूरे हों और वह उस दंपती को बच्चा सौंप अपने घर लौटे. 5वां महीना पूरा हुआ. बच्चा उस के पेट में हलचल करने लगा था. वह मन ही मन सोचने लगी थी कि लड़का होगा या लड़की. क्या थोड़ी शक्ल उस से भी मिलती होगी? आखिर खून तो बच्चे की रगों में नीला का ही दौड़ रहा है. क्या उस की शक्ल उस की बेटी निशा से भी कुछ मिलतीजुलती होगी? वह बारबार अपने बढ़ते पेट पर हाथ फिरा कर बच्चे को महसूस करने की कोशिश करती और सोचती की काश उस के पति भी यहां होते. उस के शरीर में हारमोन भी बदलने लगे थे. नौ माह पूरे होते ही नीला ने एक स्वस्थ लड़की को जन्म दिया. वे दंपती अपने बच्चे को लेने के इंतजार में थे. नीला उसे जी भर कर देखना चाहती थी, उसे चूमना चाहती थी, उसे अपना दूध पिलाना चाहती थी, किंतु अस्पताल वालों ने झट से बच्चा उस दंपती को दे दिया. नीला कहती रह गई कि उसे कुछ समय तो बिताने दो बच्चे के साथ. आखिर उस ने 9 माह उसे पेट में पाला है. लेकिन अस्पताल वाले नहीं चाहते थे कि नीला का उस बच्चे से कोई भावनात्मक लगाव हो. इसलिए उन्होंने उसे कागजी कार्यवाही की शर्तें याद दिला दीं. उन के मुताबिक नीला का उस बच्चे पर कोई हक नहीं होगा.

नीला की ममता चीत्कार कर रही थी कि अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए उस ने अपनी कोख 9 माह किराए पर क्यों दी. ऐसा महसूस कर रही थी जैसे ममता बिक गई हो. वह मन ही मन सोच रही थी कि वाह रे शिक्षा के बाजारीकरण, तूने तो एक मां से उस की ममता भी खरीद ली.

 

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