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Valentine’s Day 2024 : वैलेंटाइन डे पर गर्लफ्रेंड को करना हैं इंप्रेस, तो दें ये गिफ्ट

फरवरी का रोमांटिक महीना है. लव बर्ड्स के लिए यह किसी फैस्टिव अवसर से कम नहीं जिस में अपनी बात अपने क्रश से पहली बार, झिझकते ही सही, कहने का अच्छा मौका मिलता है और अपने लविंग पार्टनर पर दिल खोल कर प्यार बरसाने व अपने रिश्ते को और अधिक गहराइयों में ले जाने का मौका होता है.

बहुत प्रेमी ऐसे होते हैं जो अपने लववन से प्यार तो करते हैं लेकिन उन्हें जताना नहीं जानते या जताने में विश्वास नहीं रखते. उन का मानना होता है कि प्यार जताने की चीज नहीं होती, प्यार वह एहसास होता है जो सामने वाले को अपनेआप महसूस हो जाता है.

अब सोचो, आप की प्रेमिका आप को प्यार से ‘आई लव यू’ कहे और आप पलट कर एक बार भी ‘आई लव यू टू’ इसलिए न कहें, ‘भई, हम तो सख्तई में रहते हैं, प्यार बहुत है पर ये 3 शब्द बोल के प्यार कम थोड़े हो जाएगा.’ तो बात मानिए ऐसा सोचना आप की गलतफहमी है. कहीं ऐसा न हो, प्यार ही हाथ से चला जाए. क्योंकि अगर आप अपनी प्रेमिका से अपना प्यार ऐक्सप्रैस ही नहीं कर पाए तो यकीनन आगे गलतफहमी ही पैदा होनी है.

सुननेकहने के लिए यह बढि़या है कि प्यार किया तो जताना क्या, पर भई, प्यार जता दोगे तो क्या कुछ बिगड़ जाएगा? हमारी मानो तो प्यार बढ़ेगा ही. इंसानों ने लाखों सालों के ह्यूमन डैवलपमैंट में कुछ फीलिंग्स और एक्सप्रैशन डैवलप किए हैं तो जाहिर है इन का यूज अपनी फीलिंग्स जताने के लिए ही किया जाता है.

अब सुनिए पौइंट की बात, प्यार दबा के नहीं, जता के ही बढ़ता है. रोमांटिक फरवरी में वैलेंटाइन का मौका है. आप का क्रश, आप का प्यार जो भी हो, आप उसे जब तक ठीक से अपने दिल की बात एक्सप्रैस नहीं करेंगे तब तक उस के दिल तक आप की फीलिंग्स सीधी नहीं पहुंच पाएंगी.

नया जमाना है तो नए जमाने के कुछ सलीके हैं. इसलिए हम आप को बताने जा रहे हैं अपने प्यार को सादगीभरे तरीके से एक्सप्रैस करने वाले ऐसे गिफ्ट्स जिस से आप अपनी प्यारभरी फीलिंग्स को आसानी से अपनी गर्लफ्रैंड को कन्वे कर दें.

हैंड रिटन लैटर विद चौकलेट : ओल्ड इस गोल्ड. यकीन मानिए तरीका पुराना है पर आज भी अपनी बातों को सब से सलीके से कहने और सरप्राइज देने के लिए एकदम कारगर. आप ने पूरे साल अपनी प्रेमिका को व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम या फेसबुक में बहुत मैसेज भेजे होंगे, लेकिन उन प्लेटफौर्म्स में न वह दम है न खास वजन. हैंड रिटन लैटर जो कमाल पहले करते थे, जैसा रोमांसिज्म पहले जगाते थे आज भी वे उतने ही कारगर हैं. यह नया एक्सपीरियंस देगा और एक्साइटेड भी होगा.

फोटो कोलाज : यह एक आइडल वैलेंटाइन डे गिफ्ट है. अपनी प्रेमिका के साथ बिताए गए यादगार पलों की तसवीरों का कोलाज चेहरे पर खुशी ला देता है. परिपक्व हो चुके प्रेमियों के लिए यह एक बेहतरीन विकल्प है.

स्पैशल प्लांट के सीड्स : अब यह हैरान कर सकता है कि सीड्स (बीज) गिफ्ट देने की भी कोई चीज है. देखिए, किसी रैस्टोरैंट में डिनर या लंच के लिए जाना बड़ी बात नहीं, या गर्लफ्रैंड को शौपिंग कर गिफ्ट देना भी बड़ी बात नहीं. लेकिन लव बौंडिंग समय के साथ बढ़े, इस के लिए ऐसी चीज अगर आप अपनी गर्लफ्रैंड को देते हैं जिस का वह खयाल रखे तो इस से रिश्ता मजबूत होगा.

पेट् (लिटल डौगी) : रिलेशनशिप केयरिंग करना सिखाता है. अगर आप की प्रेमिका या गर्लफ्रैंड पेट् पालना पसंद करती है तो उसे एक सुंदर सा पेट् गिफ्ट में दे सकते हैं. डौमी उस की पसंद का हो, यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है.

अपने हाथ से बनाई स्पैशल फूड डिश : कोविडकाल में बाहर निकलना सेफ नहीं. कहीं घूमना एक बेहतर औप्शन हो सकता था लेकिन ऐसी सिचुएशन में बाहर निकलना ठीक नहीं तो आज सब से अच्छा औप्शन यह है कि घर में इस दिन को पूरी तरह से एंजौय किया जाए. गर्लफ्रैंड के लिए स्पैशल डिश बनाई जा सकती है. प्यारभरी कोई रोमांटिक फिल्म देख कर एक अच्छे दिन का गिफ्ट दिया जा सकता है.

भरोसा : किसी भी रिश्ते में भरोसा सब से अहम होता है. आप तमाम गिफ्ट खरीद के दे सकते हैं, पर भरोसा पाना और भरोसा देना बहुत जिम्मेदारी का काम होता है. भरोसा देना भी हर किसी के बस का नहीं. डरिए नहीं, मेरे भरोसे का मतलब यह भी नहीं कि जनमजनम तक साथ रहूंगा टाइप, ऐसा भरोसा भी बचकाना ही है.

ऐसा भरोसा हो जिस में आप की पार्टनर को आप के साथ कम्फर्ट महसूस हो, जब तक वह आप के साथ है तब तक आप उसे कमिटैड लगें, आप से कोई बात कहने में वह  ि झ  झके नहीं, चाहे आप की कमजोरियां ही क्यों न हों और किन्हीं अगरमगर से आशंकित न हो.

कौंजेनाइटल हार्ट डिसीज के इलाज में न करें देरी, नहीं तो बढ़ सकती है परेशानी

16 साल का दिनेश दिखने में एकदम नौर्मल बच्चा है. उस को बचपन से हार्ट की समस्या थी. वह ठीक से सांस नहीं ले पाता था. बारबार चैस्ट इन्फैक्शन होता था. काफी जांचों के बाद पता चला कि उसे कौंजेनाइटल हार्ट डिसीज है.

2 सर्जरी के बाद वह नौर्मल हो पाया. आज वह स्कूल में टौपर है और अच्छी जीवनशैली जी रहा है. वैसी ही बीमारी की शिकार थी नासिक की 8 साल की ऊषा, जो अचानक काली पड़ जाती थी. उस का विकास ठीक से नहीं हुआ था, जिस से वह सही तरह से चल नहीं पाती थी. सर्जरी के बाद अब वह भी नौर्मल हो चुकी है.

फोर्टिस अस्पताल, मुंबई की पेडियाट्रिक कार्डियोलौजिस्ट डा. स्वाति गरेकर इस बारे में कहती हैं कि यह समस्या बच्चों में आम है. दुनिया में एक हजार बच्चों में से करीब 8 बच्चों में यह बीमारी पाई जाती है. असल में गर्भ में हृदय और बड़ी रक्त वाहिनियों में विकास के दौरान हुए दोषों के चलते इन विकारों का जन्म होता है. समय रहते इस का इलाज करने पर बच्चा एक लंबा जीवन अच्छी तरह बिता सकता है.

हार्ट की यह समस्या गर्भ से शुरू होती है और 18 हफ्तों बाद जब अच्छी तरह से सोनोग्राफी की जाती है, तो उसे देखने पर इस का पता लगा लिया जाता है. फिर इसे मातापिता की सहमति से गर्भ में रहने दिया जाता है. जन्म के बाद फिर इस का इलाज किया जाता है. हालांकि, कई बार इसे पता लगाना मुश्किल भी होता है. सो, बच्चे में अगर जन्म के बाद कुछ बदलाव आए, तो तुरंत डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए. इस के कुछ लक्षण ये हैं :

  • बच्चे का ठीक से न बढ़ना.
  • मां का दूध पीने में मुश्किल होना.
  • वजन कम होना.
  • बारबार निमोनिया का शिकार होना.
  • बीचबीच में बच्चे का नीला पड़ जाना.

ऐसा होते ही तुरंत इकोकार्डियोग्राफी करवा लेनी चाहिए, ताकि बच्चे के हृदय की जांच हो सके. इस के आगे डा. स्वाति कहती हैं कि इस बीमारी के कुछ रिस्क फैक्टर हैं, जिन्हें भी जान लेना जरूरी है-

  • अगर आप पौल्यूशन युक्त जगह पर रहते हों.
  • आसपास ‘लेड’ का पाइप हो.
  • वंश में किसी को यह बीमारी हुई हो.
  • गर्भधारण के बाद पोषक खाने में कमी हो.
  • गर्भधारण के बाद बिना जाने कोई दवा ले ली हो.

एक दिन के बच्चे का भी कार्डियोवैस्कुलर सर्जन इलाज कर सकते हैं. इस का इलाज थोड़ा महंगा है, क्योंकि इसे करने वाले खास डाक्टर होते हैं. इस के इलाज में 2 से 3 लाख रुपए का खर्च आता है, किसी बच्चे को एक सर्जरी, तो किसी को 2 बार सर्जरी कर ठीक किया जाता है. इलाज के बाद मातापिता की काउंसलिंग की जाती है, ताकि वे बच्चे की सही देखभाल कर सकें.

Valentine’s Day 2024 : साथ साथ – उस दिन कौन सी अनहोनी हुई थी रुखसाना और रज्जाक के साथ ?

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Valentine’s Day 2024 : ऐ दिल संभल जा : रीमा को किस बात की चिंता हो रही थी ?

रीमा की आंखों के सामने बारबार डाक्टर गोविंद का चेहरा घूम रहा था. हंसमुख लेकिन सौम्य मुखमंडल, 6 फुट लंबा इकहरा बदन और इन सब से बढ़ कर उन का बात करने का अंदाज. उन की गंभीर मगर चुटीली बातों में बहुत वजन होता था, गहरी दृष्टि और गजब की याददाश्त. एक बार किसी को देख लें तो फिर उसे भूलते नहीं. उन  की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के गुण सभी गाते थे. उम्र 50 वर्ष के करीब तो होगी ही लेकिन मुश्किल से 35-36 के दिखते थे. रीमा बारबार अपना ध्यान मैगजीन पढ़ने में लगा रही थी लेकिन उस के खयालों में डाक्टर गोविंद आजा रहे थे.

रीमा ने जैसे ही पन्ना पलटा, फिर डाक्टर गोविंद का चेहरा सामने आ गया जैसे हर पन्ने पर उन का चेहरा हो वह हर पन्ने के बाद यही सोचती कि अब नहीं सोचूंगी उन के बारे में.

‘‘रीमा, जरा इधर आना,’’ रमा की मम्मी किचन से चिल्लाई.

‘‘अभी आई,’’ कहती हुई रीमा मैगजीन रख कर किचन में आ गई.

‘इस लड़की ने जब से कालेज में दाखिला लिया है, इस का दिमाग न जाने कहां रहता है’ मम्मी बड़बड़ा रही थी.

रीमा मैनेजमैंट का कोर्स कर रही है. मम्मी उसे कालेज भेजना ही नहीं चाहती थी. वह हमेशा चिल्लाती रहती कि 20वां चल रहा है, इस के हाथ पीले कर दो, लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने से क्या लाभ.

रीमा की जिद और पापा के सपोर्ट की वजह से उस का दाखिला कालेज में हुआ. मम्मी कम पढ़ीलिखी थी. उन का पढ़ाई पर जोर कम ही था. मम्मी की बातों से रीमा कुढ़ती रहती. और जब से उस ने डाक्टर गोविंद को देखा है, उसे और कुछ दिखता ही नहीं.

डाक्टर गोविंद जब क्लास ले रहे होते, रीमा सिर्फ उन्हें ही देखती रह जाती. वे किस टौपिक पर चर्चा कर रहे हैं, इस की भी सुध उसे कई बार नहीं होती. यह तो शुक्र था उस के सहपाठी अमित का, जो बाद में उस की मदद करता, अपने नोट्स उसे दे देता और यदि कोई टौपिक उस की समझ में नहीं आता तो वह उसे समझा भी देता.

वैसे रीमा खुद भी तेज थी. कोई चीज उस की नजरों से एक बार गुजर जाती, उसे वह कभी नहीं भूलती. डाक्टर गोविंद भी उस की तारीफ करते. उन के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर रीमा को बहुत अच्छा लगता. शर्म से उस की नजरें झुक जातीं. उसे ऐसा लगता कि डाक्टर गोविंद सिर्फ उसे ही देख रहे हैं. उस के चेहरे को पढ़ रहे हैं.

डाक्टर गोविंद रीमा के रोल मौडल बन गए. वह हर समय उन की तारीफ करती रहती. कोई स्टूडैंट उन के खिलाफ कुछ कहना चाहता तो वह एक शब्द न सुनती. एक दिन उस की सहेली सुजाता ने यों ही कह दिया, ‘गोविंद सर कुछ स्टूडैंट्स पर ज्यादा ही ध्यान देते हैं.’ बस, इतनी सी बात पर रीमा उस से झगड़ पड़ी. उस से बात करनी बंद कर दी.

रीमा भावनाओं में बह रही थी. उस ने डाक्टर गोविंद को समझने की कोशिश भी नहीं की. उन के दिल में अपने सभी छात्रों के लिए समान स्नेह था. वे सभी को प्रोत्साहित करते और जहां जरूरत होती, प्रशंसा करते. यह सब रीमा को नजर नहीं आता. वह कल्पनालोक की सैर करती रहती. उसे हर पल, चारों ओर डाक्टर गोविंद ही नजर आते.

उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह अपने दिल की बात डाक्टर गोविंद को जरूर बताएगी. कल वे मेरी ओर देख कर कैसे मुसकरा रहे थे. वे भी उस में दिलचस्पी लेते हैं. उस से अधिक बातें करते हैं. अगर वे मुझे पसंद नहीं करते तो क्यों सिर्फ मुझे नोट्स देने के बहाने बुलाते. देर तक मुझ से बातें करते रहते. शायद वे मुझ से अपनी चाहत का इजहार करना चाहते हैं लेकिन संकोचवश कर नहीं पाते.

रीमा को रातभर नींद नहीं आई, उनींदी में रात काटी और सुबह समय से पहले कालेज पहुंच गई. क्लास शुरू होने में अभी देर थी. मैरून कलर की कमीज, चूड़ीदार पजामा और गले में मैचिंग दुपट्टा डाले रीमा गजब की खूबसूरत लग रही थी. वह चहकती हुई सीढि़यां चढ़ रही थी. डाक्टर गोविंद अपनी क्लास ले कर उतर रहे थे. ‘‘अरे रीमा, तुम आ गई.’’

‘‘नमस्ते सर,’’ कहते हुए रीमा झेंप गई.

‘‘यह लो,’’ उन्होंने अपने हाथ में लिया गुलाब का फूल रीमा की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्यू सर,’’ कह कर रीमा जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ गई. वह क्लास में जा कर ही रुकी. उस की सांसें तेजतेज चल रही थी. वह बैंच पर बैठ गई. गुलाब का फूल देखदेख बारबार उस के होंठों पर मुसकराहट आ रही थी. उसे लगा उस का सपना साकार हो गया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. तभी अमित आ गया.

‘‘अकेली बैठी यहां क्या कर रही हो? अरे, गुलाब का फूल. बहुत खूबसूरत है. मेरे लिए लाई हो तो दो न. शरमा क्यों रही हो?’’ अमित ने गुलाब छूने के लिए हाथ बढ़ाया.

रीमा बिफर पड़ी. ‘‘यह क्या तरीका है? ऐसे क्यों बिहेव कर रहे हो, जंगली की तरह.’’

‘‘अरे, तुम्हें क्या हो गया? मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं किया. वैसे, बिहेवियर तो तुम्हारा बदला हुआ है. कहां खोई रहती हैं मैडम आजकल?’’

‘‘सौरी अमित, पता नहीं मुझे क्या हुआ अचानक…’’

‘‘अच्छा, छोड़ो इन बातों को. सैमिनार हौल में चलो.’’

‘‘क्यों? अभी तो गोविंद सर की क्लास है.’’

‘‘अरे पागल, गोविंद सर अब क्लास नहीं लेंगे. वे आज ही यहां से जा रहे हैं. उन का दिल्ली यूनिवर्सिटी में वीसी के पद पर चयन हुआ है. सभी लोग हौल में जमा हो रहे हैं. उन का विदाई समारोह है. उठो, चलो.’’

रीमा की समझ में कुछ नहीं आया. वह सम्मोहित सी अमित के पीछेपीछे चल प. सैमिनार हौल में छात्र जमा थे. रीमा को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ हो गया, उसे पता ही नहीं चला. वह कल्पनालोक में विचरती रही और हकीकत में उस का सारा नाता टूटता गया.

वह इन्हीं विचारों में मग्न थी कि गोविंद सर की बातों ने उस का ध्यान भंग किया.

‘‘मैं भले ही यहां से जा रहा हूं लेकिन चाहता हूं कि जीवन में किसी मोड़ पर कोई स्टूटैंट मुझे मिले तो वह तरक्की की नई ऊंचाई पर मिले. एक छात्र का एकमात्र उद्देश्य अपनी मंजिल पाना होना चाहिए. अन्य बातों को उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि एक बार मन भटका, तो फिर अपना लक्ष्य पाना अत्यंत मुश्किल हो जाता है. मेरे लिए सभी छात्र मेरी संतान के समान हैं. मैं चाहता हूं कि सभी खूब पढ़ें और अपना व अपने मातापिता का नाम रोशन करें.’’

तालियों की गड़गड़ाहट में उन की आवाज दब गई. सभी उन्हें विदा करने को खड़े थे. कई  छात्रों की आंखें नम थीं लेकिन होंठों पर मुसकराहट तैर रही थी. डाक्टर गोविंद के शब्दों में जाने क्या जादू था कि रीमा भी नम आंखों और होंठों पर मुसकराहट लिए अपना हाथ हिला रही थी. गुलाब का फूल अपनी खुशबू बिखेर रहा था.

तुम टूट न जाना : प्रेम को किस बात का डर था ?

‘हैलो… हैलो… प्रेम, मुझे तुम्हें कुछ बताना है.’

‘‘क्या हुआ वाणी? इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’ फोन में वाणी की घबराई हुई आवाज सुन कर प्रेम भी परेशान हो गया.

‘प्रेम, तुम फौरन ही मेरे पास चले आओ,’ वाणी एक सांस में बोल गई.

‘‘तुम अपनेआप को संभालो. मैं तुरंत तुम्हारे पास आ रहा हूं,’’ कह कर प्रेम ने फोन काट दिया. वह मोबाइल फोन जींस की जेब में डाल कर मोटरसाइकिल बाहर निकालने लगा.

वाणी और प्रेम के कमरे की दूरी मोटरसाइकिल से पार करने में महज

15 मिनट का समय लगता था. लेकिन जब कोई बहुत अपना परेशानी में अपने पास बुलाए तो यह दूरी मीलों लंबी लगने लगती है. मन में अच्छेबुरे विचार बिन बुलाए आने लगते हैं.

यही हाल प्रेम का था. वाणी केवल उस की क्लासमेट नहीं थी, बल्कि सबकुछ थी. बचपन की दोस्त से ले कर दिल की रानी तक.

दोनों एक ही शहर के रहने वाले थे और लखनऊ में एक ही कालेज से बीटैक कर रहे थे. होस्टल में न रह कर दोनों ने कमरे किराए पर लिए थे. लेकिन एक ही कालोनी में उन्हें कमरे किराए पर नहीं मिल पाए थे. उन की कोशिश जारी थी कि उन्हें एक ही घर में या एक ही कालोनी में किराए पर कमरे मिल जाएं, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा समय एकदूसरे के साथ गुजार सकें.

बहुत सी खूबियों के साथ वाणी में एक कमी थी. छोटीछोटी बातों को ले कर वह बहुत जल्दी परेशान हो जाती थी. उसे सामान्य हालत में आने में बहुत समय लग जाता था. आज भी उसने कुछ देखा या सुना होगा. अब वह परेशान हो रही होगी. प्रेम जानता था. वह यह भी जानता था कि ऐसे समय में वाणी को उस की बहुत जरूरत रहती है.

जैसे ही प्रेम वाणी के कमरे में घुसा, वाणी उस से लिपट कर सिसकियां भरने लगी. प्रेम बिना कुछ पूछे उस के सिर पर हाथ फेरने लगा. जब तक वह सामान्य नहीं हो जाती कुछ कह नहीं पाएगी.

वाणी की इस आदत को प्रेम बचपन से देखता आ रहा था. परेशान होने पर वह मां के आंचल से तब तक चिपकी रहती थी, जब तक उस के मन का डर न निकल जाता था. उस की यह आदत बदली नहीं थी. बस, मां का आंचल छूटा तो अब प्रेम की चौड़ी छाती में सहारा पाने लगी थी.

काफी देर बाद जब वाणी सामान्य हुई तो प्रेम उसे कुरसी पर बिठाते हुए बोला, ‘‘अब बताओ… क्या हुआ?’’

‘‘प्रेम, सामने वाले अपार्टमैंट्स में सुबह एक लव कपल ने कलाई की नस काट कर खुदकुशी कर ली. दोनों अलगअलग जाति के थे. अभी उन्होंने दुनिया देखनी ही शुरू की थी. लड़की

17 साल की थी और लड़का 18 साल का…’’ एक ही सांस में कहती चली गई वाणी. यह उस की आदत थी. जब वह अपनी बात कहने पर आती तो उस के वाक्यों में विराम नहीं होता था.

‘‘ओह,’’ प्रेम धीरे से बोला.

‘‘प्रेम, क्या हमें भी मरना होगा? तुम ब्राह्मण हो और मैं यादव. तुम्हारे यहां प्याजलहसुन भी नहीं खाया जाता. मेरे घर अंडामुरगा सब चलता है. क्या तुम्हारी मां मुझे कबूल करेंगी?’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो वाणी? मेरी मां तुम्हें कितना प्यार करती हैं. तुम जानती हो,’’ प्रेम ने उसे समझाने की भरपूर कोशिश की.

‘‘पड़ोसी के बच्चे को प्यार करना अलग बात होती?है, लेकिन दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाने में सोच बदल जाती?है,’’ वाणी ने कहा.

वाणी की बात अपनी जगह सही थी. जो रूढि़वादिता, जातिधर्म के प्रति आग्रह इनसानों के मन में समाया हुआ है, वह निकाल फेंकना इतना आसान नहीं है. वह भी मिडिल क्लास सोच वाले लोगों के लिए.

प्रेम की मां भी अपने पंडित होने का दंभ पाले हुए थीं. पिता जनेऊधारी थे. कथा भी बांचते थे. कुलमिला कर घर का माहौल धार्मिक था. लेकिन वाणी के घर से उन के संबंध काफी घरेलू थे. एकदूसरे के घर खानापीना भी रहता था. यही वजह थी कि वाणी और प्रेम करीब आते गए थे. इतने करीब कि वे अब एकदूसरे से अलग होने की भी नहीं सोच सकते थे.

प्रेम को खामोश देख कर वाणी ने दोबारा कहा, ‘‘क्या हमारे प्यार का अंत भी ऐसे ही होगा?’’

‘‘नहीं, हमारा प्यार इतना भी कमजोर नहीं है. हम नहीं मरेंगे,’’ प्रेम वाणी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला.

‘‘बताओ, तुम्हारी मां इस रिश्ते को कबूल करेंगी?’’ वाणी ने फिर से पूछा.

‘‘यह मैं नहीं कह सकता लेकिन

हम अपने प्यार को खोने नहीं देंगे,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘आजकल लव कपल बहुत ज्यादा खुदकुशी कर रहे हैं. आएदिन ऐसी खबरें छपती रहती हैं. मुझे भी डर लगता है,’’ वाणी अपना हाथ प्रेम के हाथ पर रखते हुए बोली. वह शांत नहीं थी.

‘‘तुम ने यह भी पढ़ा होगा कि उन की उम्र क्या थी. वे नाबालिग थे. वे प्यार के प्रति नासमझ होते हैं, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए. हर चीज का एक समय होता है. समय से पहले किया गया काम कामयाब कहां होता है. पौधा भी लगाओ तो बड़ा होने में समय लगता है. तब फल आता है. अगर फल भी कच्चा तोड़ लो तो बेकार हो जाता है. उस पर भी आजकल के बच्चे प्यार की गंभीरता को समझ नहीं पाते हैं. एकदूसरे के साथ डेटिंग, फिर शादी. पर वे शादी के बाद की जिम्मेदारियां नकार जाते हैं.’’

‘‘यानी हम लोग पहले पढ़ाई पूरी करें, फिर नौकरी, उस के बाद शादी.’’

‘‘हां.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिन, क्या?’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

अब प्रेम को पूरी बात समझ में आई कि वाणी का डर उस की मां, समाज और जातपांत को ले कर था. थोड़ी देर चुप रह कर वह बोला, ‘‘कोई भी बदलाव विरोध के बिना वजूद में आया है भला? मां के मन में भी यह बदलाव आसानी से नहीं आएगा. मैं जानता हूं. लेकिन मां में एक अच्छी बात है. वे कोई भी सपना पहले से नहीं संजोतीं.

‘‘उन का मानना है कि समय बदलता रहता है. समय के मुताबिक हालात भी बदलते रहते हैं. पहले से देखे हुए सपने बिखर सकते हैं. नए सपने बन सकते हैं, इसलिए वे मेरे बारे में कोई सपना नहीं बुनतीं. बस वे यही चाहती हैं कि मैं पढ़लिख कर अच्छी नौकरी पाऊं और खुश रहूं.

‘‘वे मुझे पंडिताई से दूर रखना चाहती हैं. उन का मानना है कि क्यों हम धर्म के नाम पर पैसा कमाएं जबकि इनसानों को जोकुछ मिलता है, वह उन के कर्मों के मुताबिक ही मिलता है. क्या वे गलत हैं?’’

‘‘नहीं. विचार अच्छे हैं तुम्हारी मां के. लेकिन विचार अकसर हकीकत की खुरदरी जमीन पर ढह जाते हैं,’’ वाणी बोली.

‘‘शायद, तुम मेरे और अपने रिश्ते की बात को ले कर परेशान हो,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘हां, जब भी कोई लव कपल खुदकुशी करता है तो मैं डर जाती हूं. अंदर तक टूट जाती हूं.’’

‘‘लेकिन, तुम तो यह मानती हो कि असली प्यार कभी नहीं मरता है और हमारा प्यार तो विश्वास पर टिका है. इसे शादी के बंधन या जिस्मानी संबंधों तक नहीं रखा जा सकता है.’’

तब तक प्रेम चाय बनाने लगा था. वह चाय की चुसकियों में वाणी की उलझनों को पी जाना चाहता था. हमेशा ऐसा ही होता था. जब भी वाणी परेशान होती, वह चाय खुद बनाता था. चाय को वह धीरेधीरे तब तक पीता रहता था, जब तक वाणी मुसकरा कर यह न कह दे, ‘‘चाय को शरबत बनाओगे क्या?’’

जब पे्रम को यकीन हो जाता कि वाणी नौर्मल?है, तब चाय को एक घूंट में खत्म कर जाता.

‘‘मैं अपनी थ्योरी पर आज भी कायम हूं. मैं ने तुम्हें प्यार किया है. करती रहूंगी. चाहे हमारी शादी हो पाए या नहीं. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या…?’’ चाय का कप वाणी को थमाते हुए प्रेम ने पूछा.

‘‘लड़की हूं न, इसलिए अकसर शादी, घरपरिवार के सपने देख जाती हूं.’’

‘‘मैं भी देखता हूं… सब को हक है सपने देखने का. पर मुझे पक्का यकीन है कि ईमानदारी से देखे गए सपने भी सच हो जाते हैं.’’

‘‘क्या हमारे भी सपने सच होंगे…?’’ वाणी चाय का घूंट भरते हुए बोली.

‘‘हो भी सकते हैं. मैं मां को समझाने को कोशिश करूंगा. हो सकता है, मां हम लोगों का प्यार देख कर मान जाएं.’’

‘‘न मानीं तो…?’’ यह पूछते हुए वाणी ने अपनी नजरें प्रेम के चेहरे पर गढ़ा दीं.

‘‘अगर वे न मानीं तो हम अच्छे दोस्त बन कर रहेंगे. हमारे प्यार को रिश्ते का नाम नहीं दिया जा सकता तो मिटाया भी नहीं जा सकता. हम टूटेंगे नहीं.

‘‘तुम वादा करो कि अपनी जान खोने जैसा कोई वाहियात कदम नहीं उठाओगी,’’ कहते हुए प्रेम ने अपना दाहिना हाथ वाणी की ओर बढ़ा दिया.

‘‘हम टूटेंगे नहीं, जान भी नहीं देंगे. इंतजार करेंगे समय का, एकदूसरे का,’’ वाणी प्रेम का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर भींचती चली गई, कभी साथ न छोड़ने के लिए.

वह दहशत : मंजू की जिंदगी में क्यों और किसने लाया तूफान ?

पेड़, खंबे, कच्चे मकान धराशायी करता चिंघाड़ता तूफान कहीं बाहर नहीं, उस के भीतर चल रहा था. वही तूफान उस की नींद उड़ा कर ले गया था. तूफान लाने वाले को वह पहचानती है. हां, हां, उसी की वजह से है.

विधवा मिसेज मंजू मेहता बिस्तर से उठ बैठी, नए खरीदे हुए मोबाइल पर टाइम देखा. रात के बारह बज कर दस मिनट थे. कितनी करवटें बदलती रहेगी वह? इसलिए नाइटलैंप जला कर सुराही से बड़ा वाला गिलास पानी से भर लिया. पर उसे प्यास नहीं थी. पलपल मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था.

आज शाम को आए जलबोर्ड के इंस्पैक्टर का धमकीभरा चेहरा, चिनगारी फेंकती लाललाल आंखें, सिर पर सफेद छोटेछोटे बाल जो कभी कंघी के संपर्क में न आए हों. अभी भी भूतप्रेत बन कर वह चेहरा उसे डरा रहा था. ‘पचास हजार…समझ लो पचास हजार रुपए जुर्माना और तुम्हारे प्लंबर का लाइसैंस हमेशा के लिए रद्द…बहुत बड़ा और बेहद न्यारा घपला किया है आप लोगों ने. जेल भी हो सकती है.’

उसे अपने दोनों बाजू और बांहें ज्यादा ही कसते और खिंचते हुए महसूस हुए. बीपी मापने का यंत्र बेटे और बहू के बैडरूम में था. 3 महीने पहले ही बेटे के 4 स्टेंट डाले गए थे, उसे नींद से जगाना स्थिति और बिगाड़ सकता था. निराशाभरी नजर से उस ने हार चढ़ी, फ्रेम में लगी पति की फोटो को देखा, जो हृदय गति रुक जाने से महीनाभर पहले ही सहारे वाला हाथ छोड़ कर जा चुके थे.

उस ने कुरसी को सीलिंग फैन से नीचे से दूर कर लिया. एक बार सीलिंग फैन, उस की मामीजी के ऊपर गिर पड़ा था. इन बातों से उसे बहुत डर लगता है.

कुछ दिनों पहले, शाम की बात है. पति नरेश मेहता की अंतिम अरदास के बाद घर लौट कर रिश्तेदारों ने ही उस का ध्यान घर की दीवारों के साथसाथ रिसते हुए पानी की ओर खींचा था. चंडीगढ़ में रहने वाले बड़े भाईसाहब ने इसे छोटी सी समस्या समझ कर अगले दिन प्लंबर को दिखाने की सलाह दी थी. फिर वे चंडीगढ़ लौट गए थे.

पानी, बिजली, बैंक, इनकम टैक्स, मकान, जायदाद और कालोनी की सोसायटी के कुछ काम भी नरेश मेहता ही देखते आए थे. पत्नी मंजू मेहता का दायरा घर के चूल्हेचौके, साफसफाई तक ही सिमट कर रह गया था. इसीलिए जलबोर्ड के इंस्पैक्टर की धमकी उसे पहाड़ सी भारीभरकम लग रही थी.

मायके में 4 भाईबहनों में सब से छोटी, सब की लाड़ली होने से मंजू को जिम्मेदारी निभाने के अवसर नहीं मिले थे. एक दिन वहीं सामने के घर में किसी महिला ने आग लगा कर आत्महत्या कर ली थी. ऊंची उठती आग की लपटों में उस का गली में छटपटाते हुए दम तोडऩा कोई नहीं भूल पाया था. भयभीत मंजू अंधेरा होने पर भाई का हाथ पकड़ कर ही बाहर कदम रखती थी. उस में आत्मविश्वास आता अगर वह कालेज जाती. पर स्कूली शिक्षा ही उस के लिए पर्याप्त समझी गई.

5 वर्षों पहले अपनी ही बेटी की शादी के गहने, कपड़े और फर्नीचर वगैरह अपनी बड़ी भाभी के बिना साथ जाए वह खरीद नहीं पाई थी.

प्राइवेट नौकरी में अतिव्यस्त होने के कारण बेटे पर भी घर का उत्तरदायित्व न के बराबर रहा था. अब स्टेंट पड़े होने के कारण उस पर मानसिक दवाब डालना खतरे को आमंत्रित करना था.

संदेश मिला तो सुबहसुबह ही प्लंबर आ पहुंचा. वह अनुभवी कारीगर था. बड़े शहर की इस कालोनी में अधिकतर काम उस ने ही किए थे. उस ने परामर्श दिया, ‘‘कालोनी बने 45 साल हो चुके हैं. बहुत से पानी के पाइप जंग की वजह से लीक करने लगे हैं. मेरी तो यह सलाह है कि आसपास के पड़ोसी भी पाइप चेंज करवा लें. बारबार खुदाई से बच जाएंगे. अलगअलग काम होने से खर्च भी कई गुना बढ़ जाता है.’’

बात सही लगी. पड़ोसी भी अपनेअपने पाइप बदलवाने को तैयार हो गए. 30,000 रुपए के खर्चे पर सब के नए पाइप डाले गए. पर परिणाम आशा के विपरीत रहने से सब के चेहरे लटक गए. पानी के रिसाव में कोई कमी नहीं नजर आई. ‘‘ठीक है, लीकेज की दिशा में खुदाई कर के  देखते हैं,’’ प्लंबर का सुझाव था. पड़ोसी अनिर्णय की स्थिति में थे, फिर भी प्लंबर के अनुभव पर उन्हें भरोसा था.

लीकेज की तलाश में सीमेंट, रोड़ी, पत्थर, टाइल्स तोड़े जाने जरूरी थे. पड़ोसी परिवार 10-15 की संख्या में दायरे में खड़े, नजरें गड़ाए रिसाव तक पहुंचने को आतुर थे. खुदाई के बाद पानी का रिसाव अब और तेजी से बढ़ गया. जलबोर्ड की पाइपलाइन में ही कुछ हिस्सा टूटा हुआ दिखाई पड़ा. पानी फौआरे की तेजी से सब ओर फैलने लगा, दूर सडक़ तक जलभराव हो गया.

‘‘पाइप कहां से फटा पड़ा है, आप सारे लोग खुद देख रहे हो. इस की तो जलबोर्ड वाले ही मरम्मत कर पाएंगे, यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है,’’ प्लंबर ने हाथ खड़े कर दिए.

कालोनी की एसोसिएशन के प्रधान को बुलाया गया. पानी के भारी रिसाव को देख कर उस के माथे पर भी बल पड़ गए. कीचड़ अलग से परेशानी का कारण बना हुआ था. प्रभावित मकानमालिकों की ओर से प्रार्थनापत्र खिलवाया गया. पाइप का टूटा हिस्सा मंजू मेहता के घर के ठीक सामने होने से उन पर जिम्मेदारी ज्यादा मानी गई.

शिकायत के 2 दिनों बाद तक जलबोर्ड से किसी ने खबर नहीं ली. इलाके का इंस्पैक्टर छुट्टी पर था. 2 दिन फटे पाइप से तेजी से बहता पानी पड़ोस की दूर गलियों में पहुंच गया. ऐसे दृश्य सीधेसाधे, भोलेभाले नागरिकों के मन पर कुछ ज्यादा ही बोझ डालते हैं. सभी प्रभावित लोग गरदन निकाल अपनीअपनी खिड़कियों से बारबार झांक कर मरम्मत का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे.

इंस्पैक्टर को कुछकुछ पूर्व सूचना मिल चुकी थी. सुबह 11 बजे वह तमतमाए चेहरे और क्रोध में घटनास्थल पर पहुंचा. वहां खड़े पड़ोसियों को उस ने ऐसे देखा जैसे शेर बकरी का शिकार करने जा रहा हो.

अब वह मंजू मेहता के तिमंजिले मकान के सामने आ कर खड़ा हो गया. ‘‘किस का मकान है? बुलाओ बाहर उसे,’’ इंस्पैक्टर धमकीभरे स्वर में और लगभग चीखते हुए बोला.

मंजू मेहता सहमीसहमी, डरीडरी सी सामने खड़ी थी. वह स्पष्टीकरण देना चाहती थी कि कैसे घर के साथसाथ रिसते जल को बंद करवाने के लिए उन्होंने पाइप चेंज करवाए. पर लीकेज तो मुख्य पाइपलाइन में ही थी.

इंस्पैक्टर को कुछ नहीं सुनना था. ‘‘मालूम है कितना बड़ा जुर्म कर दिया है आप ने. कुदाल मार कर आप ने तो जल सप्लाई की मुख्य पाइपलाइन ही काट डाली. मुझे नहीं मालूम महकमा क्याक्या कार्रवाई करने वाला है आप के विरुद्ध.’’

‘‘यह पाइप हम ने नहीं तोड़ा है, इंस्पैक्टर साहब. यह तो पहले ही टूटा हुआ था. इसी वजह से ही हमारे मकानों की दीवारें गीली हो रही थीं. देखो, हम ने इसी कारण नए पाइप भी डलवाए हैं.’’

एकसाथ कई आवाजों का शोर सुनाई पड़ा.

‘‘मुख्य पाइपलाइन तक खुदाई करने का आज्ञापत्र दिखाओ. बोलो, किस अफसर की आज्ञा लाए थे,’’ इंस्पैक्टर ने कानून बताया, ‘‘मालूम है इसी शहर में कितने मकान गिर चुके हैं जिन की नींवों में पानी भर गया था. कहां है तुम्हारा प्लंबर? पहले तो उसी का लाइसैंस रद्द करवाना पड़ेगा.’’ इंस्पैक्टर आसपास खड़े सभी चेहरों को बारीबारी से घूरते हुए उन की प्रतिक्रिया पढ़ रहा था.

प्लंबर के माथे पर पसीना आ गया. हाथ जोड क़र, घबराया हुआ बोला, ‘‘मैं ने तो इन सब लोगों से पहले ही सलाह की थी. बताते क्यों नहीं इन्हें?’’

इंस्पैक्टर के साथ आए एक मजदूर ने मुख्य पाइप से कुछ मिट्टी हटाई. इंस्पैक्टर ने हैरानी से आगे बढ़ कर ऐसे देखा जैसे उस ने बहुत बड़ी धोखेबाजी पकड़ ली हो. ‘‘गैरकानूनी कनैक्शन भी डाला हुआ है आप ने तो. अब तो बात बहुत ऊपर तक जाने वाली है.’’ ऐसा कहते ही उस ने निगम पार्षद से मोबाइल पर ही शिकायत कर दी.

पड़ोसी हक्केबक्के हो मंजू मेहता की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे. इस स्थिति में अपनों पर भी भरोसा नहीं हो सकता, मेहता परिवार तो सिर्फ पड़ोसी था. मंजू ने टांगों में कंपन महसूस किया. वह दीवार के सहारे खड़ी हो गई. उस की आंखों में आंसू थे. मंजू को अकेला छोड़ धीरेधीरे सारे पड़ोसी खिसकने शुरू हो गए.

फिर इंस्पैक्टर मंजू मेहता के मकान की तीसरी मंजिल पर पहुंचा जहां एक किराएदार रहता था. ‘‘आप ने इस फ्लोर पर पानी की मोटर कहां लगाई हुई है, चैक करवाइए.’’

‘‘यहां कोई मोटर नहीं है. तसल्ली कर लो, भाई,’’ किराएदार की पत्नी ने पूरे विश्वास से कहा.

नीचे आ कर इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘कालोनी की नागरिक संस्था के चुने हुए सचिव को बुला कर लाओ. आगे का काम उन की उपस्थिति में ही होगा.’’

ऐसा बोल कर इंस्पैक्टर लौट गया.

पड़ोसी झांकतेझांकते घरों से बाहर निकले, फिर इकट्ठे हो बातें करने लगे. एक विधवा जो अपने छोटे बच्चों के साथ रहती थी, बताने लगी किस तरह एक मीटर रीडर ने खराब मीटर बदलने के लिए उस से 3,000 रुपए ऐंठ लिए और मीटर भी नहीं बदला, ट्रांसफर हो कर वह कहीं और चला गया. पानी के दफ्तर जा कर मुझे समझ आया कि मीटर बदलने का सही तरीका क्या है.

भाटिया जी रिटायर हो चुके हैं. उन का मीटर रीडर हर बार झूठी रिपोर्ट लिखता था कि घर बंद मिला. असली रीडिंग का बिल नहीं आ रहा था. पत्र लिख कर पानी के दफ्तर में शिकायत भेजी गई. हैरानी की बात कि अफसर ने शिकायत का पत्र उसी मीटर रीडर को दे दिया जिस के विरुद्ध शिकायत थी. पत्र ले कर मीटर रीडर धमकी देने घर आ गया कि तुम्हारा वाटर कनैक्शन कमर्शियल करवा रहा हूं, क्योंकि तुम ने ट्यूशन पढ़ाने का बोर्ड लगा रखा है.

पड़ोसियों की बातें सुन कर मंजू का मनोबल और टूट गया. पता नहीं कैसे उस का दाहिना पैर कीचड़भरे मिट्टी के ढेर में फंस गया. छूटने के लिए जोर लगाया तो कीचड़ से सना पैर जरूर बाहर आ गया लेकिन चप्पल टूट कर गंद में ही फंसी रह गई. सफेद सलवार गीली मिट्टी से बुरी तरह सन गई. नजर का चश्मा उतार वह मलमल की सफेद चुन्नी से बहते हुए आंसू पोंछने लगी. आज वह दुनिया में सब से अकेली थी. कोई सहारा नहीं.

उसे यह भी याद नहीं कि आज उस ने बीपी की दवाई खाई भी है या नहीं. रात का खाना यों लगा मानो जेल में बैठी खा रही हो. एकएक कौर गले में अटक रहा था. ‘पचास हजार, जेल… पचास हजार….जेल’ हथौड़े की तरह ये शब्द बारबार उस के माथे के भीतर चोट कर रहे थे.

अगले दिन निगम पार्षद और कालोनी सचिव को आना था. दोपहर एक बजे इंस्पैक्टर समेत सभी लोग इकठ्ठा हो गए. जनता जानती है किस तरह नेताओं और ब्यूरोक्रेसी में मिलीभगत चलती है. सब आंखों में धूल झोंकेंगे. करेंगे वही जो उन के हित में हो. चतुरचालाक अफसर जैसे चाहें नेताओं की सोच बदल देते हैं. शायद जरूरत पड़े, इसलिए सब लोग थोड़ा सा अतिरिक्त धन भी साथ लाए थे.

निगम पार्षद ने इंस्पैक्टर से कहा, ‘‘तुम हमें गैरकानूनी कनैक्शन दिखाने वाले थे, दिखाओ जरा.’’

‘‘सर, यह देखो यह सप्लाई का होल है और इस के पहले एक छेद और है. इन लोगों के कारनामे देख कर हैरान हो जाएंगे आप,’’ इंस्पैक्टर ने हाथ के इशारे से होल की ओर संकेत किया.

‘‘जरा बताओ, दूसरे होल से कनैक्शन कहां जा रहा है? उसे तो टोंटी लगा कर बंद किया हुआ है न? जब पानी कहीं जा ही नहीं रहा तो गैरकानूनी क्या हुआ?’’ निगम पार्षद सिविल इंजीनियरिंग पास थे.

‘‘लेकिन सर, इन लोगों ने मुख्य पाइपलाइन को कुदालें मारमार कर तोड़ दिया है. अपनेआप पाइप कैसे टूट सकता है,’’ इंस्पैक्टर अब भी अपनी बात पर कायम था.

निगम पार्षद नौजवान था और उस ने बहुत किताबें पढ़ रखी थीं. हर समस्या पर वह अपनी अलग सोच रखता था. उस ने इंस्पैक्टर को सुनाते हुए अपनी बात रखी.

‘‘कालोनी को बने 45 साल हो चुके हैं. जिस पाइप की तुम बात कर रहे हो उस के ऊपर से रोज कितनी कारें और दूसरे भारी वाहन गुजरते हैं. क्या यह हो सकता है कि यह पाइप भी दबाव के कारण कमजोर हो कर टूट गया हो या जोड़ खुल गया हो? रिसाव तो 15 दिनों से हो रहा है, तुम्हारा मीटर रीडर एक सप्ताह पहले यहां रीडिंग लेने आया था. तब उस ने दीवारों के साथ होते रिसाव की कोई रिपोर्ट दी थी? जलबोर्ड के लिए तो जल की एकएक बूंद कीमती है. सही कि गलत? इन लोगों की अज्ञानवश हुई गलती को धोखाधड़ी क्यों कहते हो?’’

‘‘लेकिन सर,’’ इंस्पैक्टर समझ गया कि वह इन निगम पार्षद को बुद्धू नहीं बना सकता.

‘‘देखो इंस्पैक्टर, यह पाइप का टुकड़ा मेरे खड़ेखड़े तुरंत बदलो.’’

इंस्पैक्टर अब मजदूरों के साथ मिल फुरती दिखाने लगा. वह अब निगम पार्षद से अपनी कार्यकुशलता के लिए शाबाशी की उम्मीद कर रहा था.

सब पड़ोसियों को अपने बहुत करीब बुला कर निगम पार्षद ने समझाया, ‘‘आप लोग अपनी समस्या के बारे में चर्चा अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से नहीं करेंगे तो किस से करेंगे? ऐसे समय हमें याद कर लिया करो, भाई.’’

“हां, सीमेंट, रोड़ी वगैरह का कुछ खर्चा तो आप से ले सकते हैं न?” पड़ोसी यह सुन कर राहत की सांस लेने लगे, सब के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट नजर आई. धन्यवाद में सब के हाथ अपनेआप ही जुड़ गए.

कालोनी सचिव ने निगम पार्षद को मंजू मेहता से भी मिलवाया और कहा, ‘‘ये हमारे नरेश मेहता जी की पत्नी हैं. वही मेहता जी जो कालोनी हित में दिनरात मेहनत करते थे.’’

मंजू भी अब दुनियादारी समझने का प्रयास करेगी. इंसान इतना अकेला कभी होता नहीं, जितना संकट में महसूस करता है.

कालोनी के लोग भी आज पूरी तरह समझ गए कि सही प्रतिनिधि चुनना हमारे जीवन के लिए कितना आवश्यक है.

अधपकी रोटियां: भाग 1- शकुन ने उन रोटियों को खाने से क्यों इनकार कर दिया?

अभी शाम के 7 भी न बजे थे. सुंदर ने अंदाजा लगाया कि शकुन को आने में एक घंटा तो लगेगा ही.उस की खुशी का कोई ठिकाना न था. जिस काम को वह अपनी पहुंच से बाहर समझता था, उस ने 75 साल की उम्र में कर दिखाया था. अपने अंगूठे और उंगली को झुलसने से बचाते हुए सुंदर ने अपनी सफलता की प्रतीक रोटी को गैस स्टोव की आग से उठाया और बड़े चाव से केसरौल में डाल दिया. रोटी चैदहवीं के चांद जैसी चमचमा रही थी. उस ने स्टोव की नीली लपटों में रोटी को क्षणभर के लिए गुब्बारे की तरह फूलते देखा था. फिर फूली हुई रोटी ऐसे बैठ गई थी जैसे मन की कोई मुराद पूरी होने पर दिल को तसल्ली मिलती है.

पास पड़े हुए डब्बे में से सुंदर ने चम्मच से गाय के दूध से बना मदर डेयरी ब्रांड का देशी घी निकाला और रोटी पर अच्छी तरह चुपड़ दिया. फिर उस ने दूसरी रोटी बनाई, फिर तीसरी और चैथी. सारी की सारी गोल, फूली हुई और घी की सही मात्रा से चुपड़ी हुई. 2 रोटी शकुन के लिए और 2 रोटी अपने लिए. इतनी काफी थीं. उस ने स्टोव बुझा दिया. रोटियों को पोने में लपेट कर उस ने केसरौल में डाला और ढक्कन से बंद कर दिया.  फिर तवा, चकलाबेलन और दूसरे छोटेमोटे बरतनों को धोधा कर सूखने के लिए प्लास्टिक की बास्केट में रखा.

रसोई साफ करने में उसे तकरीबन 5-7 मिनट लगे होंगे. आश्वस्त हो कर वह बेडरूम में चला आया और आरामकुरसी पर शान से बैठ कर टीवी में ‘आजतक’ चैनल देखने लगा. किंतु उस का मन पराए देशों और उन में रहने वाले अनजान लोगों की खबरों में नहीं लग सका. उस ने तो स्वयं खबर रच डाली थी. कितनी ही नाकाम कोशिशों के बाद, और अपने अडिग मनोबल के रहते उस ने सीख लिया था कि आटा कैसे गूंधा जाए, चकलाबेलन की मदद से रोटी को गोल शक्ल कैसे दी जाए, ऐसा क्या करें कि गूंधा हुआ आटा न तो उंगलियों से चिपके और न ही चकले और न तवे से. सब से महत्वपूर्ण उस ने यह सीखी कि अधपकी रोटी को कब आग की लपटों में सेंका जाए कि वह गुब्बारे जैसी फूल सके.

“75 साल के ऐसे कितने आदमी होंगे, जिन्हें इतनी कामयाबी मिली हो?” सुंदर ने अपनेआप से पूछा. “शायद ही कोई हो,” उस ने स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर दिया. यह ऐसी सफलता थी, जिसे वह हर किसी को बताना चाहता था.

पर बताता किसे? उस के करीबी दोस्त एकएक कर के चल बसे थे. हाउसिंग सोसाइटी के लोगों से उस की बस दुआसलाम ही थी. पड़ोस के पार्क में वह सुबहशाम सैर के लिए जाता था जरूर, पर बात किसी से न होती थी.

“या सैर करो या बातें,” यही उस का फंडा था.

नातेरिश्तेदारी में उस का मिलनाजुलना या तो शादीब्याह में होता था या कहीं मातमदारी में. उस की बेटी आरणा पुणे में रहती थी. आरणा को अपने काम से फुरसत न थी. बेटा अरुणजय भी अपनेआप में मस्त था.

बेटी आरणा स्टार्टअप में उलझी थी, तो बेटा जेएनयू में फिलोसौफी पढ़ा रहा था. सुंदर को अंदेशा था कि अगर वह अपने बच्चों से, जो दोनों 40 की उम्र पार कर चुके थे, अपनी सफलता की बात भी करता तो वे उस की हंसी उड़ाते.

“खाना बाहर से मंगवा लेते पापा? ये सब करने की क्या आप की उम्र है?” आरणा कहती. “आप कुछ ढंग का काम नहीं कर सकते, पापा?” अरुणजय अपनी फिलोसौफी झाड़ता.

इन जेलों में महिला कैदी हो रही हैं गर्भवती, अदालत ने कहा गंभीर मामला

कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस शिवगनामन और न्यायमूर्ति सुप्रतिम भट्टाचार्य के सामने एक हैरान करने वाला मामला सामने आया. अदालत के सामने एक जनहित याचिका दायर (पीआईएल) की गई, जिस में कहा गया कि राज्य की जेलों में महिला कैदी गर्भवती हो रही हैं. यह महिलाएं जेलों में अपनी सजा काटने के दौरान गर्भवती हो रहीं हैं. याचिका में अदालत से सुधार गृहों के पुरुष कर्मचारियों के उन बाड़ों में काम करने पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया, जहां महिला कैदियों को रखा जाता है. याचिका में इस को बहुत ही गंभीर मामला कहा गया है.

याचिका में कहा गया कि जेलों में अब तक कम से कम 196 शिशुओं ने जन्म लिया है. यह मामला जेल के अंदर बंद महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा है. अदालत ने कहा यह बहुत गंभीर मुद्दा है. अदालत ने इन सभी मामलों को आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ को स्थानांतरित (ट्रांसफर) कर दिया है.

एनसीआरबी ने 2023 की अपनी रिपोर्ट में बताया कि पश्चिम बंगाल की जेलों में क्षमता से 1.3 अधिक महिला कैदी बंद हैं. पश्चिम बंगाल की जेलों में 19,556 पुरूष और 1 हजार 920 महिलाएं कैद हैं.

आमतौर पर जब महिलाएं जेल भेजी जाती हैं तो उन का मैडिकल टेस्ट होता है. खासतौर पर यह देखा जाता है कि महिला गर्भवती है या नहीं? पश्चिम बंगाल की जेलों में जिन महिलाओं का मुद्दा उठ रहा है वह इस से अलग है. यहां जिन महिलाओं की बात हो रही है वह जेल में रहते हुए गर्भवती हुईं. जेलों में महिला के साथ बलात्कार होना सरल काम नहीं है. वहां सुरक्षाकर्मी और जेल सहकर्मी दोनों ही होते हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कैसा शोषण है ?

क्या कहता है आर्टिकल 21 :

यह मसला शोषण से अधिक सैक्सुअलिटी का लगता है. सैक्स के बारे में समाज की सोच बेहद रुढ़िवादी है. सैक्स जिंदगी से वैसा ही गुंथा है जैसा इसे होना चाहिए. सैक्सुअलिटी जिंदगी है. इसी के जरिए जिंदगी आगे बढ़ती है, यही प्रकृति है. संविधान ने भी आर्टिकल 21 के तहत इस को मौलिक अधिकार माना है.

आर्टिकल 21 यह अधिकार देता है कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं हो सकता है. इस का अर्थ है कि राज्य कानून के अधार पर किसी भी व्यक्ति की जिंदगी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को वंचित नहीं कर सकता है.

आर्टिकल 21 में प्रयुक्त दैहिक स्वतंत्रता शब्द पर्याप्त विस्तृत अर्थ वाला शब्द है और इस रूप में इस के अंतर्गत दैहिक स्वतंत्रता के सभी आवश्यक तत्व शामिल है जो व्यक्ति को पूर्ण बनाने में सहायक है. इस में ही अपनी इच्छा अनुसार विवाह करने का अधिकार और सैक्स करने का अधिकार भी दिया गया है. जिस का अर्थ यह है कि कोई औरत अगर अपनी इच्छा से सैक्स करती है तो वह अपराध नहीं है. सैक्स उस का मौलिक अधिकार है. अब इस से वह गर्भवती होती है या उस के बच्चे होते हैं तो वह भी उसी का हिस्सा है.

महिलाओं ने उठाई आवाज

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक महिला ने गर्भवती होने के लिए अर्जी लगाई कि वह मां बनना चाहती है इसलिए जेल में बंद उस के पति को कोर्ट रिहा कर दे. महिला ने कहा है कि 15 से 20 दिनों के लिए ही सही, उस के पति को रिहा कर दिया जाए, जिस से वह मां बन सके.

महिला की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने मैडिकल जांच के आदेश दिए हैं, जिस से यह पता चल सके कि वह मां बन सकती है या नहीं. महिला का पति एक आपराधिक मामले में इंदौर सेंट्रल जेल में बंद था.

महिला ने हाई कोर्ट से कहा है कि संतान पैदा करना मौलिक अधिकार है, इसलिए अदालत उस के पति को रिहा कर दे. महिला ने अपनी याचिका में रेखा बनाम राजस्थान सरकार का जिक्र करते हुए कहा है कि पहले भी ऐसे मामले में जमानत दी जा चुकी है. एक बेंच ने संतान प्राप्ति के लिए एक कैदी को 15 दिनों की पैरोल दी थी. इस से यह साफ होता है कि मौलिक अधिकारों के प्रति अदालतें कितना सचेत रहती हैं.

जेलों में बच्चों की हालत

कुछ समय पहले इस संवाददाता को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जेल में कैद कुछ महिलाओं से मिलने का मौका मिला था. इन में से कुछ जेल में जाने से पहले गर्भवती थी वहां उन के बच्चे का जन्म हुआ और कुछ महिलाएं ऐसी थी जिन को उस समय अपराधिक मसले में जेल भेजा गया. जब उन का बच्चा छोटा था तो उसे भी मां के साथ जेल भेज दिया गया था. जेल में यह देखने को मिला कि बच्चे कैसे पलते हैं ?

जेल नियमों के मुताबिक जेल में अगर किसी महिला कैदी का बच्चा 5 साल से कम उम्र का है तो वो जेल में ही बने क्रच में रह सकता है. ऐसे बच्चों के लिए जेल में बकायदा क्रच का इंतजाम होता है, जिस का संचालन किसी न किसी एनजीओ को दिया जाता है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक देश भर की जेलों में 4,19,623 कैदी हैं, जिन में से 17,834 महिलाएं हैं, यानी कुल कैदियों में 4.3 फीसदी महिलाएं हैं. साल 2000 में ये आंकड़ा 3.3 फीसदी था. यानी 15 साल में महिला कैदियों में एक फीसदी का इजाफा हुआ है. 17,834 में से 11,916 यानी तकरीबन 66 फीसदी महिलाएं विचाराधीन कैदी हैं.

महिला कैदियों की स्थिति में सुधार नहीं होने की एक वजह इन के बढ़ते आंकड़े हैं. देश के अधिकांश जेलों में कैदियों की संख्या ज्यादा और स्टाफ कम हैं. एक तरफ जहां सुरक्षाकर्मियों की कमी है दूसरी तरफ विचाराधीन कैदियों की वजह से जेलों में भीड़ भी लगातार बढ़ती जा रही है.

देशभर के जेल में तकरीबन 34 फीसदी स्टाफ की कमी है. तकरीबन 80 हजार स्टाफ की जरूरत है और केवल 53000 स्टाफ ही हैं. महिला कैदियों में से ज्यादातर के बच्चे छोटे थे. 5 साल के उपर के बच्चे उन के नाते रिश्तेदारों के साथ बाहर रहते हैं. वह उन से मिल नहीं पातीं. हत्या जैसे मामलों में ज्यादातर महिला कैदी बंद होती हैं. ऐसी महिलाओें को घर परिवार और समाज के लोग बुरा समझ कर छोड़ देते हैं. वह इन को जेल से बाहर नहीं लाना चाहते हैं. अपराधी महिला के शरीर की भी जरूरत होती है. इस बात को समझने की जरूरत नहीं महसूस की जाती. सालोंसाल यह अपने पति या परिवार से मिल नहीं पाती है.

देश में कुल 1401 जेल हैं जिन में से केवल 18 में महिला कैदियों के लिए अलग जेल की व्यवस्था है. यानी बाकी जेलों में महिला कैदी पुरूषों और महिला कैदियों के लिए बने साझा जेल में रहने को मजबूर है. इन जेलों में एक दीवार बना कर महिला कैदियों और पुरुष कैदियों के लिए अलगअलग व्यवस्था की जाती है.

महिला कैदियों की उम्र कि बात करें तो 30-50 साल की उम्र की महिला कैदी 50.5 फीसदी हैं. 18-30 साल की उम्र के महिला कैदी 31 फीसदी हैं. जरूरत इस बात की है कि महिला कैदियों के जेल में रहने के दौरान परिवार से संबंध बना रहे इस के लिए उन्हें समयसमय पर परिवार से मिलने जाने दिया जाए. जिन महिला विचाराधीन कैदियों ने अपने जुर्म की अधिकतम सजा का एकतिहाई समय जेल में बिता दिया हो, उन की बेल पर रिहाई का प्रवाधान किया जाए.

पारिवारिक रिश्तों को जेल के दौरान भी बनाए रखने के लिए सजायाफ्ता कैदियों को 7 हफ्ते की छुट्टी और 4 हफ्ते के पैरोल यानि किसी विशेष काम के लिए मिलने वाली छुट्टी का प्रावधान है. इस के लिए कोर्ट से इजाजत मिलती है. बहुत सारे मामलों में परिवार रूचि नहीं दिखाते तो इस का लाभ महिला कैदी को नहीं मिल पाता है.

महिलाओं के साथ भेदभाव

सैक्स इंसान की जरूरत है. इस बात को हमेशा स्वीकार भी किया जाता है. युद्ध में जब सैनिक घरों से दूर रहते हैं तो उन के लिए ऐसे प्रबंध किए जाते हैं. जिन का जिक्र कम होता है पर कई बार इस तरह की बातें सामने आती भी हैं. यहां भी महिलाओं के साथ भेदभाव होता है.

इसराइल में सैनिकों को सरोगेट सैक्स थेरैपी मुहैया कराने का खर्चा खुद सरकार उठाती है. बुरी तरह घायल और यौन पुनर्वास की जरूरत वाले सैनिकों को यह सुविधा मुहैया कराई जाती है. सरोगेट सैक्स थेरैपी के तहत मरीज के लिए किसी ऐसे शख्स को हायर किया जाता है, जो उस के सैक्स पार्टनर जैसा व्यवहार करे.

इस के लिए कन्सलटेशन रूम होता है. जिस में छोटा आरामदेह काउच, दीवारों पर महिला और पुरुष जननांगों के फोटो लगे होते हैं. यह कमरा होटल के कमरे की तरह नहीं होता है. यह घर जैसा दिखता है. किसी अपार्टमेंट की तरह. यहां बिस्तर, सीडी प्लेयर, कमरे से सटे बाथरूम में शावर भी होता है. इस को वेश्यावृति नहीं माना जाता है. सैक्स थेरैपी कई मायनों में एक कपल थेरैपी मानी जाती है. सरोगेट महिला या पुरुष यहां पार्टनर की भूमिका निभाने के लिए रखे जाते हैं. इसराइल में इसे इस हद तक मंजूरी मिली हुई है कि सरकार उन घायल सैनिकों के लिए सरोगेट सैक्स थेरेपी का पूरा खर्चा उठाती है.

सैक्स थेरैपी सेशन का 85 फीसदी हिस्सा अंतरंगता सिखाता है. इस में अंतरंगता कायम करने के तरीके बताए जाते हैं. उन्हें एकदूसरे के करीब आने, स्पर्श, छूने के तरीके, शारीरिक आदानप्रदान और अंतरंग संवाद कायम करने के तरीके बताए जाते हैं.

इसराइल में 18 साल की उम्र तक आते ही ज्यादातर इसराइलियों को आवश्यक मिलिट्री सर्विस के लिए बुला लिया जाता है और वे अधेड़ होने तक रिजर्व सैनिक बने रह सकते हैं. ऐसे में उन की हर तरह की जरूरतों का ध्यान रखा जाता है.

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिकों द्वारा मौज-मस्ती और शारीरिक भूख मिटाने के लिए 2 लाख से अधिक विदेशी युवतियों को सैक्स गुलाम यानि यौन गुलाम बनाया गया था. इन्हें कंफर्ट वीमन नाम दिया गया था. इस में से ज्यादातर लड़कियां दक्षिण कोरिया की थीं. करीब 80 साल के बाद कोर्ट ने इस पर बड़ा फैसला देते हुए जापान सरकार को पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कहा. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सैनिकों ने विदेशी लड़कियों को अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए सैक्स गुलाम बना रखा था. प्रत्येक सैनिक के लिए सैक्स गुलाम उपलब्ध थी. सैक्स गुलाम बनाई गई युवतियों की संख्या 2 लाख से अधिक थी.

जापानी सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध में जम कर इन का यौन शोषण किया था. जबरन कई वर्षों तक अपने साथ रखा था. सैक्स गुलाम बनाई गई इन युवतियों को एक ही काम दिया गया था, वह था सैनिकों की शारीरिक भूख मिटाना.

कोर्ट ने युद्धकालीन यौन दासता के सभी पीड़ितों को 1,54,000 डौलर यानि प्रत्येक को 1 करोड़ 28 लाख रुपए से अधिक का बतौर मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया. अदालत ने कहा कि पीड़ितों का जबरन अपहरण किया गया, फिर उन्हें यौन दासता में फंसाया गया. जबकि निचली अदालत ने इस मांग को खारिज कर दिया था. जीवित बची 16 महिलाओं ने कोर्ट में अपील दायर की थी. मगर 2021 में निचली अदालत ने कहा था कि महिलाएं मुआवजे की हकदार नहीं हैं. कोर्ट ने कहा था कि यदि पीड़ितों के पक्ष में फैसला सुनाया तो एक राजनयिक घटना हो सकती है.

जिन महिलाओं और लड़कियों को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यौन गुलाम बनाया गया था, वह सभी युद्ध के बाद सामान्य जिंदगी नहीं जी सकीं थी. सैक्स को ले कर इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि यह इंसानी जरूरत है. किसी महिला को यदि कैदी के रूप में जेल भेज दिया जाता है तो उस की शारीरिक जरूरतें खत्म नहीं हो जाती. इसराइल में सैनिकों की जरूरत को समझ कर सैक्स थेरैपी दी जाती है. तो दूसरे विश्वयुद्ध में जबरन सैक्स गुलाम बनाने के खिलाफ 80 साल बाद मुआवजा देने का आदेश हो सकता है.

हमारे देश में जो महिला कैदी हैं उन में 2 तरह की हैं. एक में घर परिवार उन की कानूनी मदद करता है तो उन को भी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए जेल से कुछ दिनों की छुट्टी मिल जाती है. वहां कुछ महिला कैदी वैसी हैं जिन के जेल जाने के बाद उन के घरपरिवार के लोग भूल चुके होते हैं. अगर देश की जेलों में कैद 18 से 50 साल उम्र की महिला कैदियों की बात करें तो इन की संख्या 80 फीसदी है. ऐस में ‘राइट टू हैव सैक्स’ इन का मौलिक अधिकार है जिसे संविधान ने आर्टिकल 21 में दिया है. इस पर भी विचार करना जरूरी है.

हल्द्वानी हिंसा : कहीं धर्मयुद्ध का आगाज तो नहीं

देश के हर शहर में एक इलाका ऐसा होता है जिसे कराची, इसलामाबाद या लाहौर कहा जा सकता है. इन इलाकों के बारे में प्रचार यह किया जाता है कि यहां दुनियाभर के जुर्म पनपते हैं, देशदुनिया के तस्कर यहां पनाह लेते हैं. चोरी, तस्करी, देह व्यापार यहा आम होते हैं. और सब से बड़ी बात, हिंदू इन इलाकों में पांव रखने से भी खौफ खाते हैं क्योंकि यहां राज मुसलमानों का चलता है. पुलिस प्रशासन, कानून व्यवस्था इन इलाकों में आ कर बेबस हो जाते हैं. यही अब बनभूलपुरा के बारे में कहा जा रहा है.

उत्तराखंड के हल्द्वानी में जो हुआ उस की वजह कहने को भले ही एक नाजायज मजार या मसजिद, कुछ भी कह लें, को हटाना हो पर हकीकत कुछ और भी है. एक दुष्प्रचार के तहत यह कहा जा रहा है कि बीती रात यानी 8 फरवरी को कट्टरपंथी दंगाइयों ने जो उपद्रव किया वह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी. दंगाइयों ने इस की तैयारी बहुत पहले से ही कर रखी थी. जब से यहां की ढोलक बस्ती, गफूर बस्ती और नई बस्ती में रेलवे वन विभाग व राजस्व की जमीनों पर अतिक्रमण किए जाने का मामला सुर्खियों में आया तब से यह आशंका जताई जा रही थी कि एक न एक दिन ऐसा होगा.

हल्द्वानी बना कुरुक्षेत्र

बनभूलपुरा हल्द्वानी का मुसलिमबाहुल्य इलाका है जिस में मुसलमानों की आबादी 90 फीसदी है. एकाएक ही सुर्खियों में आए इस इलाके में 8 फरवरी की हिंसा में 4 लोग मारे गए थे और 100 के लगभग घायल हुए थे. इस दिन नगर निगम की जेसीबी मशीनों की मौजूदगी ही बयां कर रही थी कि कुछ अनहोनी होने जा रही है. ये मशीनें जैसे ही मसजिद तोड़ने लगीं तो हिंसा भडक उठी. इस के पहले 29 जनवरी को पुलिस की मौजूदगी में बनभूलपुरा के मालिक के बगीचे की कोई 2 एकड़ जमीन अतिक्रमण से मुक्त कराई गई थी. लेकिन उस दिन मसजिद और मदरसे को नहीं तोड़ा गया था. प्रशासन ने वहां फेंसिंग कर दी थी.

प्रशासन ने नोटिस जारी करते 1 फरवरी तक बकाया अतिक्रमण हटाने का हुक्म दिया था. लेकिन इस दिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. 3 फरवरी को बनभूलपुरा के वाशिंदों ने नगर निगम पर विरोध प्रदर्शन किया था. जो आया गया, हो गया था. 4 फरवरी को सुबह 6 बजे अधिकारियों ने अतिक्रमण हटाने का फैसला किया जिस की भनक मिलते ही सैकड़ों औरतें मालिक के बगीचे के पास दुआ करने बैठ गईं. इस पर अधिकारियों ने फैसला लिया कि मसजिद व मदरसा नहीं तोड़े जाएंगे.

लेकिन प्रशासन ने देररात मसजिद और मदरसे को सील कर दिया. फिर 8 फरवरी को फिर तोड़फोड़ शुरू की गई जिस से गुस्साए लोग सड़कों पर आ गए और तोड़फोड़ का विरोध किया जिस का कोई असर न होते देख दंगा किया जाने लगा, आगजनी की, गाड़ियां फूंकीं और पुलिसकर्मियों व कर्मचारियों पर हमला बोल दिया. जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने गोलियां चलाईं, कर्फ्यू लगाया और थोड़ी देर बाद देखते ही गोली मारने का आदेश जारी कर दिया. देखते ही देखते हल्द्वानी कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया. देररात इंटरनैट सेवाएं भी बंद कर दी गईं.

यह तो आगाज है

हल्द्वानी में नया कुछ नहीं हुआ है. वहां दूसरे तरीके से वही हुआ है जो दिल्ली के शाहीन बाग में हुआ था जो हरियाणा के नूंह में हुआ था. जो आएदिन छिटपुट तौर पर खासतौर से भाजपाशासित राज्यों में होता रहा है. उत्तराखंड में एक मुहिम के तहत अवैध धर्मस्थल हटाए जा रहे हैं जिस के तहत कोई 450 मजारें और 50 के लगभग मंदिर हटाए जा चुके हैं. यह स्वागतयोग्य बात है क्योंकि धर्मस्थल हिंदुओं के हों या मुसलमानों के या किसी और धर्म के, लोगों का वक्त और पैसा ही जाया करते हैं और आपसी बैर ही फैलाते हैं. ये धर्मस्थल कहने को ही आस्था के प्रतीक होते हैं.

नैनीताल से 43 किलोमीटर दूर हल्द्वानी में जो हुआ वह स्वागतयोग्य नहीं है. यह ठीक है कि मसजिद हाईकोर्ट के आदेश पर हटाई जा रही थी पर इस के लिए हुई हिंसा का जिम्मेदार किसी एक को ठहराया जाना न्यायसंगत नहीं लगता और न ही यह दुष्प्रचार स्वागतयोग्य है कि बनभूलपुरा जैसे इलाकों में समानांतर इसलामी हुकूमत चलती है और वहां हिंदू चैन से नहीं रह पाते. यह दुष्प्रचार जानबूझ कर किया जा रहा लगता है जिस का एक खास मकसद भी है.

मकसद यह जताना है कि यह प्रशासन और मुसलमानों की नहीं बल्कि हिंदुओं और मुसलमानों की लड़ाई है. जब जरूरत इस बात की थी और हमेशा रहेगी कि कोई भी ऐसा काम न करें जिस से देश का सांप्रदायिक माहौल बिगड़े तब सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार यह किया जा रहा है कि यह मुसलमानों की बौखलाहट है जो अयोध्या में राम मंदिर बन जाने के बाद देश में हर कहीं देखने में आ रही है.

खासतौर से हिंदीभाषी राज्यों में हालात बहुत खराब हैं जहां आम मुसलमान दहशत में जी रहा है. 22 जनवरी को तो मुसलमान घरों से ही नहीं निकला था. इस डर की व्याख्या शायद ही कोई समाजशास्त्री कर पाए. असल में यह धर्म का डर था. धार्मिक उन्माद की दहशत थी जिस पर सवर्ण हिंदुओं की छाती फूलकर 56 इंच की हो जाती है. आम नागरिक, चाहे वह किसी धर्म को मानने वाला हो, का यह डर लोकतंत्र के मुलभूत सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

इत्तफाक पर इत्तफाक

हल्द्वानी में जो हुआ वह तो होना तय ही था लेकिन क्यों था, इस पर गौर किया जाना जरूरी है. यह राममंदिर निर्माण और उद्घाटन वगैरह की प्रतिक्रिया तो कहीं से नहीं कही जा सकती. यह मसजिद के वैधअवैध होने को ले कर हुआ फसाद था जिस में मुसलिम पक्ष अदालती लड़ाई हारा था. लेकिन क्या यह पूरे मुसलिम समुदाय की लड़ाई थी, यह सवाल तो मुंहबाए हमेशा ही खड़ा रहेगा. जब कहीं नाजायज मसजिद या मदरसा हटाया जाएगा तो उस से हुई हिंसा को मुसलमानी खीझ बता कर क्या साबित करने की कोशिश होगी. यही कि मुसलमान देश को हिंदू राष्ट्र बनते देख जलताकुढ़ता है. वह बनभूलपुरा जैसी बस्तियां बना कर अपनी बादशाहत चलाता है.

असल बात तो यह है कि भगवा गैंग यह जताने की कोशिश कर रहा है कि हम तो मुसलमानों को खदेड़ रहे हैं लेकिन चंद वामपंथी हिंदू उन के साथ हैं, इसलिए देश के हिंदू राष्ट्र बनने में देर हो रही है. अब यह हिंदू राष्ट्र है क्या बला और इस में क्या क्या होगा, यह उन हिंदुओं को भी नहीं मालूम जो इसी शर्त पर भाजपा को वोट दिए जा रहे हैं.

हल्द्वानी की हिंसा के ठीक पहले ही उत्तरखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता कानून पारित किया था. अब यह कहना कि हल्द्वानी की हिंसा मुसलमानों ने उस के एवज में की, निहायत ही साजिशभरी बात है. इस के ठीक पहले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुसलमानों से अपील कर रहे थे कि ये 3 मंदिर हमें दे दो, हम किसी और मसजिद की बात नहीं करेंगे.

यह सब क्या है और देश में यह हो क्या रहा है, इस पर अब उस हिंदू को विचार करना होगा जो महाभारत के युद्ध को धर्म और अधर्म की लड़ाई समझता है. पांडवों ने भी 5 गांव मांगे थे, हम भी सिर्फ 3 मंदिर मांग रहे हैं जैसी अपील, अपील कम धौंस ज्यादा लगती है कि सीधे से नहीं दोगे तो हम छीन लेंगे. सरकार हमारी है, कानून और अदालतें भी हमारी हैं, ईडी जैसी अधिकारसंपन्न एजेंसियां हमारी हैं जिन के जरिए हम चुनी हुई सरकारों को गिरा देते हैं, मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देने को मजबूर कर देते हैं, जगहजगह छापे पड़वा देते हैं तो तुम किस खेत की मूली हो.

यह सब कानून और लोकतंत्र का मखौल है. पांडवों और कौरवों की लड़ाई भी जर, जोरू और जमीन वाली थी. आज उस की दुहाई देना यह एहसास कराना है कि युद्ध हो तो हम तैयार हैं. यह कैसा लोकतंत्र है जहां खुलेआम धर्मयुद्ध के शंख बजाए जा रहे हैं. दुनियाभर में यही होता रहा है. आज से कोई 930 साल पहले पोप ने ईसाईयों का आव्हान किया था कि यरुशलम को मुसलमानों के कब्जे से आजाद कराना है.

यह धर्मयुद्ध यानी क्रुसेड भी एक तरह का महाभारत ही था. इन युद्धों में सैकड़ों बेगुनाह मारे जाते हैं, लाखों औरतें विधवा होती हैं, बच्चों के सिर पर कोई साया नहीं रहता और जो तबाही होती है उस की भरपाई होने में सदियां लग जाती हैं.

हल्द्वानी को इस का आगाज समझना चाहिए जिस का अंजाम कभी किसी के लिए अच्छा नहीं होता. हां, धर्मगुरुओं की जरूर चांदी हर दौर में रहती है. इस दौर में इंसानी समझ बहुत विकसित है, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं दिख रही जिसे युद्ध रास आ रहे हैं. धर्म और उस के स्थलों के विवाद जगहजगह हो रहे हैं. हल्द्वानी के झरोखे में झांक कर बहुसंख्यक सवर्ण हिंदुओं को सबक लेना चाहिए कि यह उन के लिए भी शुभ नहीं है. उन्हें तो दक्षिणापंथी बहका रहे हैं कि यह जमीन तुम्हारी है, प्राकृतिक संसाधन तुम्हारे हैं जिन पर मुसलमान कब्जा कर रहे हैं, वे तुम्हारे टैक्स के पैसे पर मुफ्त की खा रहे हैं वगैरहवगैरह. हम तो इसे तुम्हें देने की लड़ाई लड़ रहे हैं, इसलिए हमें वोट और दक्षिणापंथियों को दान देते रहो.

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