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नायाब नहीं रहे खट्टर, नायब सिंह सैनी को मिली कमान

बात 1982 की है. केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. इंदिरा ने 1980 का लोकसभा चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री के रूप में वापसी की थी. उत्तर प्रदेश कांग्रेस में उठापटख और गुटबाजी चल रही थी. इंदिरा गांधी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में ऐसे चेहरे की तलाश थी जिस को ले कर कोई विवाद और गुटबाजी न हो. तलाशने के बाद इन में से एक नाम श्रीपति मिश्र का सामने आया.

19 जुलाई 1982 को इंदिरा गांधी ने श्रीपति मिश्र को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. 2 साल यानि 1984 तक वह मुख्यमंत्री रहे. सुल्तानपुर जिले के सुरापुर कस्बे के रहने वाले श्रीपति मिश्र बेहद सरल, सज्जन और मृदुभाषी थे. ऐसे ही नारायण दत्त तिवारी का मसला भी था.

कुछ इसी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने मुख्यमंत्रियों को बदलने का काम करते हैं. जिस गुजरात के वह करीब 13 साल लगातार मुख्यमंत्री रहे उस गुजरात में अब मुख्यमंत्री ताश के पत्ते की तरह से फेंट कर बदल जाते हैं. 2001 से ले कर 2014 तक 13 साल नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. इस के बाद 2014 से 2022 के 8 सालों में आनंदी पटेल, विजय रूपाणी और भूपेन्द्र पटेल 3 मुख्यमंत्री बदले. 13 साल एक मुख्यमंत्री और 8 साल में 3 मुख्यमंत्री बनाए गए.

उत्तराखंड का उदाहरण भी काफी मजेदार है. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तराखंड में भाजपा ने अपने बड़े नेताओं को दरकिनार कर त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया. 2021 में त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हटा कर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया और 2022 में पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया. नए नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया जिन को कोई अनुभव नहीं था. यही बात मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद देखने को मिली जब विधानसभा चुनाव जितवाने वाले षिवराज सिंह चौहान की जगह पर मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया.

अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर के छत्तीसगढ़ विष्णुदेव साय और राजस्थान भजन लाल शर्मा को इसी तरह से मुख्यमंत्री बनाया गया. असल में मुख्यमंत्री बनाने में योग्यता नहीं देखी जाती. पहले कांग्रेस इसी तरह से मुख्यमंत्री बदलती थी अब भाजपा उसी राह पर है. विधायक अब पार्टी के गुलाम बन गए हैं. उन से जिन के नाम का प्रस्ताव कराना हो कर देते हैं. पार्टी अध्यक्ष से ले कर जिला अध्यक्षों तक सारे फैसले हाई कमान करता है. हर दल में आंतरिक लोकतंत्र खत्म हो गया है. संगठन में चुनाव नहीं नियुक्तियां होने लगी है.

जनता के नहीं पार्टी के प्रतिनिधि हो गए एमपी एमएलए

चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट प्रताप चंद्रा कहते हैं, “असल में जब संविधान ने चुनाव की व्यवस्था बनाई तो लोकसभा सदस्य और विधानसभा सदस्य चुने जाने का विधान था. यह सदन में अपना नेता चुनते थे. 1967 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ. तो इंदिरा गांधी ने काग्रेस आई बनाई. जिस का निशान हाथ का पंजा था.
“इंदिरा गांधी ने चुनाव आयोग से इसी निशान को अपने लिए रिजर्व करने के लिए चुनाव आयोग से कहा. इस के बाद पार्टी तंत्र विकसित होने लगा. 1985 में राजीव गांधी ने जब बदलबदल कानून बनाया तब से विधायक सांसद पार्टी व्हिप के दबाव में आने लगे. 1989 के बाद राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ. धारा 29 ए मे पार्टी रजिस्टर्ड होने लगी. 29 बी चुनाव चिन्ह और 29 सी दलों की आय के बारे में नियम बन गया.

“इस के बाद विधायक और सांसद जनता के नहीं राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि बन गए. वह जनता के हित के बजाए पार्टी हित में काम करने लगे. पार्टी व्हिप को न मानने से सदस्यता जाने का खतरा बढ़ गया था.”

पौराणिक कथाओं का प्रभाव

हमारे समाज की मूल भावना योग्यता की जगह परिपाटी को महत्व दिया जाता है. इस के तमाम उदाहरण हैं. संयुक्त हिंदू परिवारों में यह चलन था कि घर का बड़ा बेटा ही राज्य चलाएगा. वह योग्य न हो तो भी घर चलाने का अधिकार उस का होता था. छोटा भाई असहमति भी जाहिर नहीं कर सकता था. हमारे समाज में असहमति को विरोध समझ लिया जाता है.

महाभारत को भी जानते थे. धतराष्ट्र बड़े थे लेकिन अंधे होने के कारण उन को राजा नहीं बनाया गया इस के बाद भी वह खुद को राजा मानते रहे. उन के छोटे भाई पांडु की मृत्यू के बाद जब धतराष्ट्र ने राजपाट संभाला तब उन्होने तय कर लिया कि भले ही बड़े पुत्र युधिष्ठर हो राजा उन का बेटा दुर्योधन ही बनेगा.

पांडवों में भी यही भावना थी. पांचों भाइयों में युधिष्ठर सब से बड़े थे. इस कारण उन के ही आदेशों को माना जाता था. दुर्योधन के साथ जुआ खेलने के लिए युधिष्ठर ही आगे आए. जब महाभारत युद्ध हुआ तो योग्यता के हिसाब से सब से बड़ी जिम्मेदारी अर्जुन के कंधों पर आई. क्योकि वह सब से योग्य थे. उन को ही कृष्ण ने गीता सुनाई. अगर परिवार में बड़े होने के कारण युधिष्ठर ही युद्ध का संचालन करते तो महाभारत के युद्ध का नतीजा अलग हो जाता. योग्यता के अनुसार अगर जिम्मेदारी न दी जाए तो हार तय होती है. इतिहास में बहुत ऐसे उदाहरण हैं जहां बड़े बेटे को अयोग्य होने के बाद भी राजा बना दिया गया वह राज्य बरबाद हो गया.

इस को आज के दौर में घर परिवार के उदाहरण को समझें तो कई कारोबारी घराने, सामान्य परिवार इस कारण खत्म हो गए क्योंकि उन्होंने बड़े बेटे को जिम्मेदारी सौंप दी. धारणा, परिपाटी और रूढ़ीवादी सोच के कारण अगर अयोग्य होने के बाद भी बडे बेटे को ही अधिकार सौंप दिए जाएंगे तो परिवार का विनाश तय है.
राजनीति से ले कर घरपरिवार तक में यही कहा जाता है कि जो बड़ा है उसे ही असल अधिकार है. राजनीति दलों में इसी बड़े को हाई कमान कहा जाता है. जब हाई कमान योग्यता के आधार पर फैसले नहीं करता है तो वह पार्टी डूब जाती है. कांग्रेस इस का उदाहरण है.

एक ही रंग में रंग गए कांग्रेस-भाजपा

कांग्रेस की तरह से भाजपा में भी हाई कमान कल्चर बढ़ गया है. हिंदुत्व के पुट को अगर किनारे क दिया जाए तो इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी की कार्यशैली एक जैसी है. प्रधानमंत्री रहते दोनों ही पार्टी और देश दोनों चला रहे हैं. चुनाव लड़ने के टिकट बंटवारे का मसला हो, मुख्यमंत्री बदलने का मसला हो प्रधानमंत्री का ही आदेश चलता है. दूसरे प्रधानमंत्रियों के जमाने में मंत्रिमंडल का फैसला होता था. अब मसला वित्त का हो तो फैसला प्रधानमंत्री लेते हैं. विदेश का हो तो प्रधानमंत्री लेते हैं. रक्षा का हो तो प्रधानमंत्री लेते हैं. ऐसे में वित्त, विदेश और रक्षा मंत्री को रखा ही क्यों गया है ?

सारे देश के फैसले पीएमओ लेने लगे हैं. ऐसे में जनता के प्रतिनिधि होने को मतलब क्या रह गया? जब वित्त, विदेश और रक्षा मंत्री जैसे दूसरे विभागों के फैसले पीएमओ को ही करने हैं तो इतने मंत्री रखने का जरूरत क्या है ? प्रदेश को चलाने के लिए मुख्यमंत्री की योग्यता को देखने का जरूरत नहीं है तो मुख्यमंत्री के तामझाम पर पैसा खर्च करने की जरूरत क्या है ? पीएमओ और अफसर प्रदेश भी चला सकते हैं. राम के खड़ाऊ रख कर राज चलाया जा सकता है तो पीएमओ देश को क्यों नहीं चला सकता ?

राजा और मुखिया में दिखते है भगवान

संविधान ने एमपी, एमएलए को जनता का प्रतिनिधि माना है. वह जनता के वोट से चुन कर जाते हैं. सदन में वह वहीं बात करेंगे जो उन की पार्टी यानि मुखिया का आदेश होगा. उस की असहमति को विरोध समझा जाएगा. जिस के फलस्वरूप उन की सदस्यता जा सकती है. एमपी, एमएलए जनता का प्रतिनिधि नहीं पार्टी का प्रतिनिधि हो गया है. पार्टी के मुखिया यानि हाईकमान का आदेश ही राजा का आदेश हो गया है.

जैसे घरपरिवार में पिता का राज होता है. बेटे का अधिकार नहीं होता कि वह अपनी मर्जी से शादी कर सके. अपनी बात न मानने पर पिता अपनी जायदाद से उस को बेदखल कर सकता है. परिवार और राजनीति दोनो ही एकदूसरे के उदाहरण दे कर अपनी बात को सही साबित करते रहते हैं. पिता भी राजा की तरह होता है राजा को भी पिता कहा जाता है. दोनों ही भगवान जैसे होते हैं भगवान का आदेश कौन टाल सकता है ?

मनोहर लाल खट्टर कितने भी योग्य हों राजा के आदेश की अवहेलना नहीं कर सकते. हाईकमान के रूप में नरेंद्र मोदी को लोग भगवान का अवतार बताते हैं. चुनावी टिकट से ले कर मुख्यमंत्री बदलने तक के सारे फैसले कबूल कर लिए जाते हैं.

जस्टिस अभय ओका की बेबाकी, न्यायपालिका से जुड़े कार्यक्रम में धार्मिक अनुष्ठान हों बंद

मौका था महाराष्ट्र के पिंपरी-चिंचवाड़ में नई कोर्ट बिल्डिंग के भूमिपूजन समारोह का जिस में जस्टिस अभय ओका और जस्टिस भूषण आर गवई भी आमंत्रित थे. आयोजन में इलाके के गणमान्य नागरिक और वकील भी मौजूद थे. जैसे ही जस्टिस अभय ओका के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा, “संविधान को अपनाए हुए 75 साल पूरे हो चुके हैं, इसलिए हमें सम्मान दिखाने और इस के मूल्यों को अपनाने के लिए इस प्रथा की शुरुआत करनी चाहिए. इस साल 26 नवंबर को हम बाबा साहब आम्बेडकर के जरिए दिए गए संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरे करेंगे.

“मुझे हमेशा से लगता है कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में 2 बेहद जरूरी शब्द हैं. एक धर्मनिरपेक्ष और और दूसरा लोकतंत्र. कुछ लोग कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्व धर्म समभाव है, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि यह न्यायिक प्रणाली का मूल संविधान है. इसलिए कई बार जजों को भी अप्रिय बातें कहनी पड़ती हैं. मैं कहना चाहता हूं कि अब हमें न्यायपालिका से जुड़े हुए किसी भी कार्यक्रम के दौरान पूजापाठ या दीप जलाने जैसे अनुष्ठानों को बंद करना होगा. इस के बजाय हमें संविधान की प्रस्तावना रखनी चाहिए और किसी भी कार्यक्रम को शुरू करने के लिए उस के सामने झुकना चाहिए.”

अपनी मंशा स्पष्ट करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि, “कर्नाटक में अपने कार्यकाल के दौरान मैं ने ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों को रोकने की कोशिश की थी लेकिन मैं इसे पूरी तरह से रोक नहीं पाया था लेकिन कम करने में जरूर कामयाब रहा था.”

कर्नाटक में जन्मे 64 वर्षीय जस्टिस अभय ओका के पास अदालतों का लंबा तजुरबा है. अदालती कामकाज को ले कर उन्होंने कई अहम बयान भी वक्तवक्त पर दिए हैं. अपनी बेबाकबयानी के लिए पहचाने जाने वाले न्यायमूर्ति ने कुछ दिनों पहले यह भी कहा था कि न्यायपालिका में आम आदमी का भरोसा काफी कम हो गया है.
अदालत के बाहर किसी प्रोग्राम में ही नहीं बल्कि अदालत में भी सटीक फैसले देने के लिए भी विख्यात जस्टिस अभय ओका ने एक अहम फैसले में बीती 4 मार्च को यह कहा था कि जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की आलोचना और पाकिस्तान को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देना अपराध नहीं माना जा सकता. इस फैसले में उन की बैंच में जस्टिस उज्जवल भुइया भी थे.

इस फैसले ने हर किसी को चौंकाया था जिस में सब से बड़ी अदालत ने यह भी कहा था कि यदि राज्य या सरकार के कार्यों की हर आलोचना या विरोध को धारा 153-ए के तहत अपराध माना जाता है तो लोकतंत्र, जोकि लोकतंत्र की एक अनिवार्य विशेषता है, भारत का संविधान नहीं बचेगा.

गौरतलब है कि कश्मीरी मूल के कोल्हापुर कालेज में कार्यरत एक मुसलिम प्रोफैसर जावेद अहमद हाजम ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप में अपने स्टेटस पर 5 अगस्त को जम्मूकश्मीर के लिए एक काला दिन बताते हुए 14 अगस्त को पाकिस्तान की आजादी के दिन की शुभकामनाएं दी थीं. प्रोफैसर के इस गुनाह` को सुप्रीमकोर्ट ने गुनाह न मानते हुए उन के खिलाफ दर्ज मामला खारिज कर दिया था.

इंसाफ और जोखिम

वैसे तो हमेशा से ही रहा है लेकिन इन दिनों देश का जो माहौल है उस पर दक्षिणपंथ और दक्षिणापंथियों की गिरफ्त कुछ इस तरह है कि आम और खास लोग कुछ बोलने से भी डरने लगे हैं खासतौर से धार्मिक अंधविश्वासों और पाखंडों के मामलों में जो इफरात से फलफूल रहे हैं. जिस भूमिपूजन पर उन्होंने पिंपरी-चिंचवाड़ में एतराज जताया वह सरकारी स्तर पर भी रोजरोज कहीं न कहीं हो रहा होता है.

हाल तो यह है कि सरकारी नीतियों के लिए भी धार्मिक कर्मकांडों का सहारा लिया जा रहा है और पूजापाठ को प्रोत्साहित किया जा रहा है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 11 मार्च को जिस जल कलश यात्रा का शुभारंभ किया वह तो नाम से भी धार्मिक है. राज्य की सरकार तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जमाने से ही धार्मिक पाखंडों का शिकार रही है.

भूमिपूजन बहुत बड़ा सरकारी पाखंड है जिस में जनप्रतिनिधि, अधिकारी, ठेकेदार सब मिल कर यह करते हैं और पंडे को दक्षिणा देते हैं. जहां भी नजर जाती है वहां हरकहीं मंदिर हैं. स्कूलकालेजों में, थानों में, अस्पतालों में, रेलवे स्टेशनों पर, और तो और अदालतों के बाहर भी मंदिर बने हैं जो यह साबित करते हैं कि असल राज तो आज भी धर्म का ही चलता है.

यह बात कहीं से संविधान के बुनियादी उसूलों से मेल नहीं खाती बल्कि सरेआम उन का मखौल उड़ाती है. और ऐसा दिनरात होता है. एक भूमिपूजन ही क्यों, सारा देश इन दिनों पूजापाठ में लगा है, खासतौर से सत्ता पक्ष को तो इस के अलावा कुछ और सूझता ही नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों ताबड़तोड़ तरीके से देशविदेश में मंदिरों का उद्घाटन किया तो सहज लगा कि अब इस देश का भगवान ही मालिक है बशर्ते वह कहीं हो तो.

संविधान और लोकतंत्र की बात अगर अब जजों को सार्वजनिक रूप से करना पड़ रही है तो सहज यह भी समझ आता है कि देश के अंदरूनी हालात बेहद विस्फोटक हो चले हैं. जिस की एक ताजी और चर्चित मिसाल दिल्ली का मामला है जिस में एक पुलिस सब इंस्पैक्टर ने सड़क पर नमाज पढ़ रहे मुसलिम को लात मार दी. लोगों के दिलोदिमाग में धर्म और जाति को ले कर किस कदर नफरत घर करती जा रही है, इस का अंदाजा लगाना अब मुश्किल नहीं रहा है.

उस से भी खतरनाक वैचारिक कट्टरता

संविधान जब लागू हुआ था तब उसे बिना पढ़े ही आम लोगों तक उस का यह मसौदा पहुंच गया था कि अब धार्मिक शोषण व भेदभाव, जातिगत अत्याचार, छुआछूत वगैरह से नजात मिल जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बहुत ज्यादा अंकुश भी संविधान और कानून धर्म के दुकानदारों पर नहीं लगा पाए.

ब्राह्मणों और दूसरी जतिवालों का देश के सिस्टम पर कब्जा बरकरार है. जिस संविधान से लोगों के दैनिक जीवन की 90 फीसदी गतिविधियां संचालित होती हैं उस का हाल तो यह है कि संविधान बदलने की मानसिकता तेजी से छूत की बीमारी की तरह फैल रही है.

जो बात ढकेमुंदे दबंगों के बीच होती थी उसे खुल कर भाजपा सांसद अनंत हेगड़े ने यह कहते उधेड़ कर रख दिया है कि हिंदुओं को फायदा पहुंचाने के लिए संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाया जा सकता है और यह सब बदलना है तो सिर्फ लोकसभा में बहुमत के वोटों से नहीं होगा, हमे लोकसभा के साथसाथ राज्यसभा में भी दोतिहाई बहुमत की जरूरत होगी.

इस बयान पर कांग्रेसियों और दूसरे विपक्षी दलों का यह एतराज जायज है कि भगवा गैंग संविधान हटा कर और मिटा कर मनुस्मृति थोपना चाह रहा है.
पूजापाठी होने की लत के अपने अलग नुकसान हैं लेकिन वैचारिक कट्टरवाद तो देश को अफगानिस्तान और पाकिस्तान बनाने की तरफ ले जा रहा है जिस की चिंता अब हर किसी को करना जरूरी हो चला है. इस का खमियाजा उन 15 फीसदी सवर्ण हिंदुओं को ज्यादा भुगतना पड़ेगा जो इन दिनों हिंदू राष्ट्र के सपने देखते सो और जाग रहे हैं.
दलित, अल्पसंख्यक और आदिवासी जब पूरी तरह तंग आ जाएंगे तब इन के निशाने पर यही हिंदू होंगे. यह सोचना बेमानी है कि गैरसवर्ण हिंदुओं ने यह शर्त स्वीकार ली है कि वे अपने पूर्वजों की तरह ऊंची जाति वालों की गुलामी और जीहुजूरी करते रहेंगे.

यह कोई काल्पनिक खतरा नहीं है बल्कि सदियों का ऐतिहासिक अनुभव है जिसे लोग भूल जाते हैं और बाद में पछताते रहते हैं और जब तक हालात थोड़े सुधरते हैं तब तक दक्षिणपंथी फिर धर्म की आड़ ले कर सत्ता हथिया लेते हैं और जोड़तोड़ कर फिर विध्वंस की वजह बनते हैं. लोकतंत्र कहनेभर की बात रह जाती है, धर्मतंत्र का तांडव फिर से पीढ़ियों को कमजोर कर देता है. खुद भारत इस का गवाह है जिस के सदियों पुराने नक़्शे को ले कर भगवा गैंग यह रोना रोता रहता है कि देखो, कभी अफगानिस्तान भी हमारा हिस्सा था, लंका भी, पाकिस्तान भी और बंगलादेश भी और फलांफलां भी.

अव्वल तो यह हर्ज की बात नहीं और जिन्हें लगती है उन्हें यह समझ नहीं आता कि इस सब का जिम्मेदार भी धर्म ही होता है जिस ने रोजमर्राई जिंदगी को अपने शिकंजे में ले रखा है. सुबह से ले कर अगली सुबह तक की जिंदगी धार्मिक पाखंडों की गुलाम हो कर रह गई है.

लोग विज्ञान और तकनीक का तो इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन उस का श्रेय भगवान और धर्म को देते हैं तो यह संभलने का वक्त है और यह नसीहत कोई जज अगर दे रहा है तो जिद और जनून में डूबे लोगों को यह समझना होगा कि धर्म बहुत बड़ा और क्रूर धंधा है जिस का मकसद कोई राष्ट्र विचार या फलसफा, जीवनशैली और संस्कृति भी नहीं, बल्कि पैसे कमाना है और जिन मुट्ठीभर लोगों के हाथों में यह स्थाई गारंटेड रोजगार वाला हथियार है वे ही इस का प्रचारप्रसार करते हैं. अनजाम चाहे कुछ भी हो, उस से इन परजीवियों को कोई सरोकार नहीं होता. इन की और खूबी यह है कि तमाम दोष अपनी पोल खोलने वालों के सिर मढ़ देते हैं.

जीने की आजादी है महिलाओं का बाइक चलाना

आज भी लोगों को एक बाइक चलाती महिला अगर सड़क पर दिखाई पड़ती है तो उन की निगाहें कुछ वक्त के लिए ठहर जाती हैं. बाइक चलाती महिला को देख कर हर किसी की नजर में आश्चर्य और सवाल उठते हैं पर स्कूटी चलाती हुई महिला पर किसी का ध्यान नहीं जाता.
असल में स्कूटी चलाना बाइक चलाने से आसान होता है, क्योंकि यह वजन में हलकी होती है. लेकिन गियर वाली बाइक भले ही हैवी होती हो लेकिन लौंग डिस्टेंस के लिए वही बेहतर होती है, महिला इसे चलाते हुए खुद की मजबूती को जाहिर करती है.

बाइक चलाना है फन

महाराष्ट्र में नए साल के उपलक्ष्य में मुंबई और अन्य जगहों पर महिलाएं पारंपरिक नववारी या नौ गज की साड़ी पहन कर बाइक की सवारी करती हैं, जो उन के मजबूत और दृढ़प्रतिज्ञ होने का प्रतीक है. इस के अलावा कर्नाटक, मध्य प्रदेश में भी महिलाएं बाइक की सवारी करती हैं और उसे वे फन मानती हैं. उन के हिसाब से अगर पुरुष बाइक चला कर अपनी मर्दानगी दिखाते हैं तो वे भी किसी से कम नहीं हैं. वे भी अपने मजबूत इरादों को दिखाने के लिए बाइक की सवारी कर सकती हैं.

दिखाती हैं स्ट्रैंग्थ

महिलाओं के बाइक चलाने के उदहारण कई हैं, मसलन गुजराती परिवार की डाक्टर सारिका मेहता बाइकिंग क्वीन मानी जाती हैं. बाइक राइड करने का जनून उन्हें तब सवार हुआ जब उन्हें उन के पति ने पहले बाइक चलाने से मना किया और हंसी उड़ाई थी. बाद में पति ने ही उन्हें बाइक राइड करना सिखाया था. इस के बाद वे 25 देशों में बाइक राइड कर कीर्तिमान स्थापित कर चुकी हैं.

एक बार वे बिहार के नक्सली एरिया में फंस गई थीं. वहां उन्हें एक जगह पर रोक दिया गया. पर जैसे ही उन्होंने हैलमेट खोला, सभी चौंक गए थे कि वह एक लड़की है. फिर वहां काफी भीड़ उन्हें देखने पहुंच गई थी.

महाराष्ट्र की पहली फायर वुमन हर्शिनी कान्हेकर जब फायर फाइटिंग की पढ़ाई करने गई तो सभी लड़कों में वह एक लड़की थी. सभी सोचते थे कि इतनी कठिन पढ़ाई, वह भी लड़कों के बीच में पूरा नहीं कर पाएगी और कालेज छोड़ देगी. अपनी शक्ति और दृढ़ निश्चय को दिखाने के लिए हर्शिनी ने बाइक चलाना शुरू किया और बाइक से कालेज आनेजाने लगी. इस से उन की लगन को लड़कों ने समझ लिया था और उन्हें कभी किसी लड़के ने ताना नहीं मारा था. आज हर्शिनी बाइक कंपीटिशन में भाग लेती हैं.
भारत की सब से तेज बाइकर हरियाणा की समीरा दहिया हैं. उन्होंने शुरू में पल्सर 180 सीसी खरीद कर बाइक चलाना सीखा था. बाद में उन्होंने पहला लद्दाख ट्रिप रौयल इनफील्ड 350 क्लासिक से पूरा किया था. इस के अलावा साल 2020 में केपीएम 390 पर फास्टेस्ट रिकौर्ड राइड की. राइड बेंगलुरु से शुरू हई थी, 16,325 किलोमीटर की इस रेस को उन्होंने 24 दिन 9 घंटे में पूरा किया. इस में 28 राज्य, 6 केंद्र शासित प्रदेश को उन्होंने कवर किया था. इस के बाद इंडिया बुक औफ रिकौर्ड में यह रिकौर्ड दर्ज किया गया और उन्हें फास्टेस्ट फीमेल राइडर का ख़िताब मिला.

स्वतंत्रता का परिचायक

असल में बाइक चलाना एक कौशल है. जो कोई व्यक्ति बाइक के वजन को संभालने और गियर को समझ कर सीखता है, उसे बाइक चलानी आती है. लेकिन जब बात महिलाओं की आती है तो यह एक कौशल मात्र नहीं रहता, कौशल से आगे उन के लिए यह स्वतंत्रता है जिस के लिए वे लड़ती हैं और उन्हें साबित करना पड़ता है कि वे यह कर सकती हैं. महिलाएं बाइक चला कर अपने सपनों को उड़ान देती हैं. इस के अलावा बाइक चलाने के अनुभव अलगअलग जगहों पर जाने का होता है. सो, यह एक थेरैपी से कम नहीं होता.

पहनावा मुश्किल नहीं

इतना ही नहीं, महिलाओं को बाइक चलाते समय साड़ी पहनने में दिक्कत हो सकती है, लेकिन कुछ महिलाएं धोती पैटर्न की साड़ी पहन कर बाइक चलाती हैं. देखने वालों को अजीब लगने पर भी महिलाएं इस की परवा नहीं करतीं. महाराष्ट्र की हर्शिनी ने हमेशा पैंट पहन कर ही बाइक चलाई है और इसे वे किसी प्रकार की शर्म नहीं मानतीं, बल्कि आजादी मानती हैं. जब तक आप दृढ़ निश्चय न करें कि आप जो कर रहे है वह गलत नहीं है, तब तक आप अपनी खुशी के नए तरीके नहीं खोज सकते.

वोटबैंक में इजाफा करने की नीयत से लागू हुआ सीएए

केंद्रीय गृहमंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 यानी सीएए के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इस के साथ ही सीएए कानून देशभर में लागू हो गया है. केंद्र सरकार की मानें तो इस से पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान देशों से आए गैरमुसलिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है. तो क्या बाहरी लोगों को नागरिकता दे कर बीजेपी के वोटबैंक में कुछ इजाफा होगा? नि:संदेह.

माना जा रहा है कि इस कानून के लागू होने से बंगलादेश से आए मतुआ, राजवंशी और नामशूद्र समुदाय के हिंदू शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी और बीजेपी इस को अपने वोटबैंक में बदल सकेगी. बंगलादेश से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के जिलों में इन समूहों का जबरदस्त बसाव है और वे लंबे समय से भारतीय नागरिकता की मांग करते रहे हैं.

देश का बंटवारा होने और बाद के वर्षों में बंगलादेश से आ कर बंगाल के सीमाई इलाकों में बसे मतुआ समुदाय की आबादी राज्य की आबादी की 10 से 20 फीसदी है. राज्य के दक्षिणी हिस्से की 5 लोकसभा सीटों में उन की खासी आबादी है, जहां से 2 सीटों- गोगांव और रानाघाट- पर 2019 में भाजपा को जीत हासिल हुई थी. 2019 के चुनाव से ऐन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मतुआ समुदाय के लोगों के बीच पहुंच कर उन्हें संबोधित किया था.

इसी तरह उत्तरी बंगाल के जिस इलाके में राजवंशी और नामशूद्र की आबादी का बसाव है, वहां भी भाजपा ने 2019 में 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जलपाईगुड़ी, कूचविहार और बालुरघाट संसदीय सीटों के इलाकों में इन हिंदू शरणार्थियों की आबादी 40 लाख से ऊपर है. इस बड़े वोटबैंक का बड़ा फायदा उठाने की नीयत से ही मोदी सरकार ने सीएए का दांव खेला है.

राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में करीब 30-35 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ समुदाय की आबादी 40 फीसदी के करीब है. ये विधानसभा इलाके 5 से 6 लोकसभा क्षेत्रों के तहत आते हैं. यानी, इतनी सीटों पर मतुआ समुदाय हारजीत का आंकड़ा तय कर सकता है. इन को भारतीय नागरिकता मिलने पर नि:संदेह इन का वोट बीजेपी की झोली में जाएगा.

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले 11 मार्च, 2024 को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 की अधिसूचना जारी की गई. केंद्र सरकार का कहना है कि दिसंबर 2014 से पहले 3 पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले 6 धार्मिक अल्पसंख्यकों- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई व्यक्तियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी.

गौरतलब है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, दिसंबर 2019 में संसद में पारित किया गया था. गृहमंत्री अमित शाह ने 9 दिसंबर को इसे लोकसभा में पेश किया था. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया था.

सीएए के पक्ष में 125 वोट पड़े थे और 105 वोट इस के खिलाफ गए थे. 12 दिसंबर, 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. मगर राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद देश के विभिन्न राज्यों में सीएए को ले कर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुआ, खासतौर पर पश्चिम बंगाल में, जिस के चलते इसे लागू नहीं किया जा सका.

सीएए के साथ ही केंद्र सरकार ने देशभर में एनआरसी लागू करने की बात भी कही थी. एनआरसी के तहत भारत के नागरिकों का वैध दस्तावेज के आधार पर रजिस्ट्रेशन होना था. सीएए के साथ एनआरसी को मुसलमानों की नागरिकता खत्म करने के रूप में देखा गया था. लेकिन फिलहाल केवल सीएए को ही लागू किया गया है. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राम मंदिर का मुद्दा ठंडा पड़ने के बाद चूंकि बीजेपी के हाथ अब खाली हो गए थे, लिहाजा काफी सोचसमझ कर सीएए पर दांव खेला गया है.

दरअसल, बीजेपी को सब से बड़ा खतरा बंगाल में ममता बनर्जी से है, जिन्हें किसी भी कीमत पर वह सत्ता से हटाना चाहती है. ममता से मोदी को बड़ी असुरक्षा रहती है. मोदी के बाद यदि कोई प्रधानमंत्री पद पर बैठने के काबिल नजर आता है तो वह ममता बनर्जी हैं. ममता बनर्जी भी बीजेपी की इस साजिश के चलते ही सीएए के खिलाफ भड़क रही हैं.

बता दें कि सीएए के लिए आवेदन की प्रक्रिया औनलाइन रखी गई है. आवेदकों को बस इतना बताना होगा कि वे भारत कब आए. उन्हें भारतीय नागरिकता बिना वैध पासपोर्ट और बिना भारतीय वीजा के मिल सकती है. नागरिकता दिए जाने के लिए पाकिस्तान, बंगलादेश या अफगानिस्तान के पासपोर्ट और भारत की ओर से जारी रिहायशी परमिट की आवश्यकता को बदला गया है. इस के बजाय जन्म या शैक्षणिक संस्थानों के सर्टिफिकेट, लाइसैंस, सर्टिफिकेट, मकान होने या किराएदार होने के दस्तावेज पर्याप्त होंगे. ऐसे किसी भी दस्तावेज़ को सबूत माना जाएगा.

उन दस्तावेजों को भी मान्यता दी जाएगी जिन में मातापिता या दादादादी के 3 में से एक के देश के नागरिक होने की बात होगी. इन दस्तावेजों को स्वीकार किया जाएगा, फिर चाहे ये वैधता की अवधि को पार ही क्यों न कर गए हों.

इस से पहले नागरिकता हासिल करने के लिए जिन चीजों की जरूरत होती थी, वो थे- वैध विदेशी पासपोर्ट, रिहायशी परमिट की वैध कौपी, 1,500 रुपए का बैंक चालान, सैल्फ एफिडेविट, 2 भारतीयों की ओर से आवेदक के लिए लिखा एफिडेविट, 2 अलग तारीखों या अलग अखबारों में आवेदक की नागरिकता हासिल करने की मंशा. लेकिन सीएए में नियम बहुत साधारण कर दिए गए हैं. सरकार ने उस नियम को भी हटा दिया है जिस के तहत किसी शैक्षणिक संस्थान से संविधान की 8वीं सूची की भाषाओं में से एक का ज्ञान होने का दस्तावेज जमा करना होता था.

पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के हजारों गैरमुसलिमों, जो भारत की नागरिकता चाहते हैं, को सीएए का फायदा मिलेगा क्योंकि अब तक ये प्रवासी भारत में अवैध रूप से या लंबी अवधि के वीजा पर रह रहे थे. अधिनियम में पिछले 2 वर्षों के दौरान 9 राज्यों के 30 से अधिक जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत अफगानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने की क्षमता प्रदान की गई है.

सरकार का कहना है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 से भारतीय नागरिकों का कोई सरोकार नहीं है. संविधान के तहत भारतीयों को नागरिकता का अधिकार है. सीएए कानून भारतीय नागरिकता को नहीं छीन सकता. फिलहाल सरकार दावा कर रही है कि इस कानून से देश के करोड़ों भारतीय मुसलिम बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होंगे. यह कानून किसी भी मुसलिम की नागरिकता नहीं छीनने वाला है. सिर्फ गलतफहमियों के कारण पहले विरोध प्रदर्शन हुए थे. मगर मुसलिम तबकों में एक डर जरूर कायम है और इस डर का फायदा भी बीजेपी लोकसभा चुनाव में उठाना चाहती है.

विपक्ष शासित कई राज्यों ने घोषणा की है कि वे अपने प्रदेश में सीएए लागू नहीं होने देंगे लेकिन नागरिकता के मामले में राज्यों के पास अधिकार बहुत कम होता है. कानून में ऐसे बदलाव किए गए हैं कि नागरिकता दिए जाने की प्रक्रिया में राज्य सरकारों की भूमिका कम होगी. इस बदलाव से राज्य सरकारों के इस कानून के विरोध करने से निबटा जा सकेगा.

पहले नागरिकता हासिल करने का आवेदन जिलाधिकारी के पास देना होता था. जिलाधिकारी राज्य सरकार के अंतर्गत आते हैं. नए नियमों में एम्पावर्ड कमेटी और जिला स्तर पर केंद्र की ओर से ऐसी कमेटी बनाई जाएगी जो आवेदनों को लेगी और प्रक्रिया शुरू करेगी. एम्पावर्ड कमेटी का एक निदेशक होगा, डिप्टी सैक्रेटरी होंगे, नैशनल इंफौर्मेटिक्स सैंटर के स्टेट इंफौर्मेटिक्स औफिसर, राज्य के पोस्टमास्टर जनरल बतौर सदस्य होंगे. इस कमेटी में प्रधान सचिव, एडिशनल चीफ सैक्रेटरी और रेलवे से भी अधिकारी होंगे.

जिला स्तर की कमेटी के प्रमुख ज्यूरिस डिक्शनल सीनियर सुपरिटेंडैंट या सुपरिटेंडैंट होंगे. इस कमेटी में ज़िले के इंफौर्मेटिक्स औफिसर और केंद्र सरकार की ओर से एक नामित अधिकारी होगा. इस में 2 और लोगों को जगह दी जाएगी, जो तहसीलदार या जिलाधिकारी के स्तर के होंगे. नए नियमों के तहत, नए कानून के तहत रजिस्टर्ड हर भारतीय को एक डिजिटल सर्टिफिकेट दिया जाएगा. इस सर्टिफिकेट पर एम्पावर्ड कमेटी के अध्यक्ष के हस्ताक्षर होंगे.

नागरिकता संशोधन नियम में यह मान कर चला जा रहा है कि पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के जो अल्पसंख्यक भारत में आए वे धार्मिक रूप से सताए जाने के कारण आए थे. 31 दिसंबर, 2014 से पहले जो भी गैरमुसलिम इन तीनों देशों से भारत आए थे, वे मानवीय दृष्टिकोण से सीएए के तहत नागरिकता हासिल करने के योग्य हैं.

लोकसभा चुनाव आते ही नरेंद्र मोदी बांटने लगे मुफ्त रेवड़ियां

लोकसभा चुनाव का समर सजने वाला है, इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संरक्षण में देशभर में रेवड़ियां बांटने का काम शुरू हो गया है. एक समय में नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लक्ष्य कर के कहा था कि जिस तरह आम आदमी पार्टी मतदाताओं को रेवड़ियां बांट रही है वह देश के लिए नुकसानदायक है.
यहां याद करने वाली बात यह है कि उस दरमियां सारे देश में एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा था कि मतदाताओं को किसी भी तरीके का लाभ चुनावपूर्व देना हरेक दृष्टि से उचित नहीं है और मामला देश की सब से बड़ी अदालत में भी पहुंच गया था. मगर आश्चर्य की बात यह है कि मोदी की गारंटी का एक नया नारा दे कर के देशभर में वही सब नाटक शुरू कर दिया गया है जिसे रोकने की बात नरेंद्र मोदी ने की थी.

सचाई यह है कि देश की आर्थिक स्थिति इस वक्त डांवाडोल है. औसतन देश के एक नागरिक पर लगभग डेढ़ लाख रुपए का कर्ज चढ़ चुका है. ऐसे में अब महतारी वंदन के नाम पर हर महिला को प्रतिमाह 1,000 रुपए देने की शुरुआत कर के नरेंद्र मोदी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं.

महतारी बंधन के नाम पर प्रतिमाह 1,000 रुपए की यह शुरुआत आगे चल कर सुरसा के मुंह की तरह देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को चौपट कर देगी क्योंकि भाजपा 1,000 रुपए दे रही है तो हो सकता है कांग्रेस 2,000 रुपए, ममता बनर्जी 3,000 रुपए व आगे चल कर अरविंद केजरीवाल 5,000 रुपए देने की बात करें. ऐसे में देश की क्या स्थिति होगी, इस का आसानी से अंदाज लगाया जा सकता है.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले छत्तीसगढ़ सरकार की महतारी वंदन योजना की शुरुआत करते हुए 70 लाख से अधिक महिलाओं के खाते में 655 करोड़ 57 लाख रुपए की राशि अंतरित कर अपने ही पूर्ववर्ती रेवड़ी संस्कृति के सवाल को धता बता दिया.

नरेंद्र मोदी ने बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से रायपुर के साइंस कालेज मैदान में आयोजित कार्यक्रम से वर्चुअल रूप से जुड़ते हुए अपने संबोधन में कहा, “यह मोदी की गारंटी है. हमारी माताओंबहनों को छत्तीसगढ़ सरकार नियमित रूप से प्रतिमाह 1,000 रुपए की राशि प्रदान करेगी.”

नरेंद्र मोदी ने आगे कहा, “महतारी वंदन योजना के तहत छत्तीसगढ़ की 70 लाख से अधिक माताओंबहनों को हर महीने एक हजार रुपए देने का वादा किया गया था. सरकार ने अपना वादा पूरा किया. आज महतारी वंदन योजना के तहत 655 करोड़ रुपए की पहली क़िस्त सरकार ने जारी कर दी है. हमारी डबल इंजन सरकार की प्राथमिकता हमारी माताओंबहनों का कल्याण है.

“आज परिवार को पक्का घर मिल रहा है वह भी महिलाओं के नाम पर, उज्ज्वला का सस्ता सिलेंडर मिल रहा है वह भी महिलाओं के नाम पर. 50 प्रतिशत से अधिक जनधन खाते वह भी महिलाओं के नाम पर. 65 प्रतिशत से ज्यादा मुद्रा लोन भी महिलाओं ने लिया है, खासकर नौजवान बेटियों ने.”

लालच का अंधेरा कुआं

लोकतंत्र का मतलब यह नहीं है कि चुनी हुई सरकारें मतदाताओं को लौलीपौप दे कर वोट हासिल कर लें. लोगों को शिक्षित करना, स्वावलंबी बनाना, अपने पैरों पर खड़ा करना सरकार का अहम कर्तव्य है. मगर आजकल सरकारें सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में लोगों को भेड़बकरियां बनाने में लगी हुई हैं.

इस तारतम्य में नरेंद मोदी ने छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन कार्यक्रम में महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा, “चुनावों में हम ने छत्तीसगढ़ की खुशहाली की जो गारंटी दी थी उसे पूरा करने के लिए हमारी सरकार लगातार काम कर रही है. हम ने गारंटी दी थी कि 18 लाख पक्के घर का निर्माण करेंगे. सरकार बनने के दूसरे ही दिन श्री साय ने यह काम शुरू कर दिया.

“छत्तीसगढ़ के धान किसानों को 2 साल के बकाया बोनस की गारंटी दी थी. छत्तीसगढ़ सरकार ने अटलजी के जन्मदिवस के अवसर पर 3,716 करोड़ रुपए किसानों के खाते में बोनस की राशि पहुंचा दी. हम ने गारंटी दी थी कि किसानों से 3,100 रुपए प्रति क्विंटल धान की खरीदी करेंगे, यह वादा पूरा हुआ और 145 लाख मीट्रिक टन धान खरीद कर रिकौर्ड बना दिया.”

वादों, गारंटियों, रेवड़ियों आदि से यह साफ हो गया है कि देश एक अंधेरे युग की तरफ आगे बढ़ रहा है जहां कोई उजाला फैलता दिखाई नहीं दे रहा. आने वाले समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों से ऐसे ही और भी रेवड़ियां बंटेंगी जिन के परिणामस्वरूप देश का आम आदमी अपने पैरों पर कभी खड़ा ही नहीं हो पाएगा. कुछ लोग तो यही चाहते हैं कि आमलोग हाथ फैलाए खड़े रहें और वे राज करते रहें.

मुझे नहीं जाना: क्या अलका अपने ससुरालवालों से दूर हुई?

शाम 7 बजे जब फोन की घंटी बजी तब ड्राइंगरूम में अलका, उस की मां गायत्री और पिता ज्ञानप्रकाश उपस्थित थे. फोन पर वार्तालाप अलका ने किया.

अलका की ‘हैलो’ के जवाब में दूसरी तरफ से भारी एवं कठोर स्वर में किसी पुरुष ने कहा, ‘‘मुझे अलका से बात करनी है.’’

‘‘मैं अलका ही बोल रही हूं. आप कौन?’’

‘‘मैं कौन हूं इस झंझट में न पड़ कर तुम उसे ध्यान से सुनो जो मैं तुम से कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हैं आप?’’

‘‘यही कि अपने पतिदेव को तुम फौरन नेक राह पर चलने की सलाह दो, नहीं तो खून कर दूंगा मैं उस का.’’

‘‘ये क्या बकवास कर रहे हो.’’

‘‘मैं बकवास न कर के तुम्हें चेतावनी दे रहा हूं. अलका मैडम,’’ बोलने वाले की आवाज क्रूर हो उठी, ‘‘अगर तुम्हारे पति राजीव ने फौरन मेरे दिल की रानी कविता पर डोरे डालने बंद नहीं किए तो जल्दी ही उस की लाश को चीलकौवे खा रहे होंगे.’’

‘‘ये कविता कौन है मैं नहीं जानती… और न ही मेरे पति का किसी से इश्क का चक्कर चल रहा है. आप को जरूर कोई गलतफहमी…’’

‘‘शंकर उस्ताद को कोई गलतफहमी कभी नहीं होती. मैं ने पूरी छानबीन कर के ही तुम्हें फोन किया है. अगर तुम अपने आप को विधवा की पोशाक में नहीं देखना चाहती हो तो उस मजनू की औलाद राजीव से कहो कि वह मेरी जान कविता के साए से भी दूर रहे.’’

अलका कुछ और बोल पाती इस से पहले ही फोन कट गया.

अपने मातापिता के पूछने पर अलका ने घबराई आवाज में वार्तालाप का ब्योरा उन्हें सुनाया.

गायत्री रोने ही लगीं. ज्ञानप्रकाश ने गुस्से से भर कर कहा, ‘‘तो राजीव इस कविता के चक्कर में उलझा हुआ है. मैं भी तो कहूं कि साल भर अभी शादी को हुआ नहीं और 2 महीने से पत्नी को मायके में छोड़ रखा है. जरूर उस ने इस कविता से गलत संबंध बना लिए हैं.’’

‘‘उस अकेले को दोष मत दो, जी,’’ गायत्री ने सुबकते हुए कहा, ‘‘दामादजी ने तो दसियों बार इस मूर्ख के सामने वापस लौट आने की विनती की होगी, लेकिन इस की जिद के आगे उन की एक न चली.’’

‘‘अलका को कुसूरवार मत कहो. हमारी बेटी ने राजीव से प्रेमविवाह किया है. उसे सुखी रखना उस का कर्तव्य है. अगर अलका अलग घर में जाने की जिद पर अड़ी हुई है तो वह मेरी समझ से कुछ गलत नहीं कर रही,’’ कह कर ज्ञानप्रकाश अलका की तरफ देखने लगे.

‘‘पापा, आप ठीक कह रहे हैं. मैं ने नौकरानी बनने के लिए शादी नहीं की थी राजीव से,’’ अलका ने अपने मन की बात फिर दोहराई.

‘‘अलका, तुम राजीव को फोन कर के इसी वक्त यहां आने के लिए कहो. ऐसी डांट पिलाऊंगा मैं उसे कि इश्क का भूत फौरन उस के सिर से उतर कर गायब हो जाएगा,’’ ज्ञानप्रकाश की आंखों में चिंता व क्रोध के मिलेजुले भाव नजर आ रहे थे.

अलका राजीव को फोन करने के लिए उठ खड़ी हुई.

करीब घंटे भर बाद राजीव अपनी ससुराल पहुंचा. उस के पिता ओंकारनाथ और मां कमलेश भी उस के साथ आए थे. उन तीनों के चेहरों पर चिंता और तनाव के भाव साफ झलक रहे थे.

कुछ औपचारिक वार्तालाप के बाद ओंकारनाथ ने परेशान लहजे में ज्ञानप्रकाश से कहा, ‘‘बहू से फोन पर मेरी भी बात हुई थी. मुझे लगा कि वह किसी बात को ले कर बहुत परेशान है. इसलिए राजीव के साथ उस की मां और मैं ने भी आना उचित समझा.’’

‘‘ये अच्छा ही हुआ कि आप दोनों साथ आए हैं राजीव के. सारी बात आप दोनों को भी मालूम होनी चाहिए. शाम को 7 बजे हमारे यहां एक फोन आया था. फोन करने वाले ने हमें राजीव के बारे में बड़ी गलत व गंदी तरह की सूचना दी है,’’ ज्ञानप्रकाश ने नाराज अंदाज में राजीव को घूरना शुरू कर दिया था.

‘‘फोन किसी शंकर नाम के आदमी का था?’’ कमलेश के इस सवाल को सुन कर अलका और उस के मातापिता बुरी तरह से चौंक उठे.

‘‘आप को कैसे मालूम पड़ा उस का नाम, बहनजी?’’ गायत्री अचंभित हो उठीं.

‘‘क्योंकि उस ने शाम 6 बजे के आसपास हमारे यहां भी फोन किया था. राजीव और उस के पिता घर पर नहीं थे, इसलिए मेरी ही उस से बातें हो पाईं.’’

‘‘क्या कहा उस ने आप से?’’

‘‘उस ने आप से क्या कहा?’’ कमलेश ने उलट कर पूछा.

गायत्री के बजाय ज्ञानप्रकाश ने गंभीर हो कर उन के प्रश्न का जवाब दिया, ‘‘बहनजी, शंकर ऐसी बात कह रहा था जिस पर विश्वास करने को हमारा दिल तैयार नहीं है, लेकिन वह बहुत क्रोध में था और राजीव को गंभीर नुकसान पहुंचाने की धमकी भी दे रहा था. इसलिए राजीव से हमें पूछताछ करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘क्या वह किसी कविता नाम की लड़की से मेरे अवैध प्रेम संबंध होने की बात आप को बता रहा था?’’ राजीव गहरी उलझन और परेशानी का शिकार नजर आ रहा था.

अलका ने उस के चेहरे पर

पैनी नजरें गड़ा कर कहा, ‘‘हां,

कविता की ही बात कर रहा था वह. कौन है ये कविता?’’

‘‘मैं तो सिर्फ एक कविता को ही जानता हूं, जो मेरे विभाग में मेरे साथ काम करती है. तुम्हें याद है शादी के बाद हम एक रात नीलम होटल में डिनर करने गए थे. तब एक लंबी सी लड़की अपने बौयफैं्रड के साथ वहां आई थी. मैं ने तुम्हें उस से मिलाया था, अलका.’’

अलका ने अपनी सास की तरफ मुड़ कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं ने आप से उस लड़की का जिक्र घर आ कर किया था. वह राजीव से बहुत खुली हुई थी. उसे ‘यार, यार’ कह कर बुला रही थी. वह अपने बौयफ्रैंड के साथ न होती तो राजीव से उस के गलत तरह के संबंध होने का शक मुझे उसी रात हो जाता. मेरा दिल कहता है कि राजीव जरूर उस के रूपजाल में फंस गया है और उस के पुराने प्रेमी शंकर ने क्रोधित हो कर उसे जान से मारने की धमकी दी है,’’ बोलते- बोलते अलका की आंखें डबडबा आईं, चेहरा लाल हो चला.

‘‘बेकार की बात मुंह से मत निकालो, अलका,’’ राजीव को गुस्सा आ गया, ‘‘घंटे भर से अपने मातापिता को यह बात समझाते हुए मेरा मुंह थक गया है कि कविता से मेरा कोई चक्कर नहीं चल रहा है. अब तुम भी मुझ पर शक कर रही हो. क्या तुम मुझे चरित्रहीन इनसान समझती हो?’’

‘‘अगर दाल में कुछ काला नहीं है तो ये शंकर क्यों जान से मार देने की धमकी तुम्हें दे रहा है?’’ अलका ने चुभते स्वर में पूछा.

‘‘उस का दिमाग खराब होगा. वह पागल होगा. अब मैं कैसे जानूंगा कि वह क्यों ऐसी गलतफहमी का शिकार हो गया है?’’ राजीव चिढ़ उठा.

‘‘अगर वह सही कह रहा हो तो तुम कौन सा अपने व कविता के प्रेम की बात सीधेसीधे आसानी से कुबूल कर लोगे?’’ अलका ने जवाब दिया.

‘‘तब मेरे पीछे जासूस लगवा कर मेरी इनक्वायरी करा लो, मैडम,’’ राजीव गुस्से से फट पड़ा, ‘‘मैं दोषी नहीं हूं, लेकिन मैं एक सवाल तुम से पूछना चाहता हूं. तुम 2 महीने से मुझ से दूर यहां मायके में जमी बैठी हो. ऐसी स्थिति में अगर मैं किसी दूसरी लड़की के चक्कर में पड़ भी जाता हूं तो तुम्हें परेशानी क्यों होनी चाहिए? जब तुम्हें मेरी फिक्र ही नहीं है तो मैं कुछ भी करूं, तुम्हें क्या लेनादेना उस से?’’

‘‘मेरा दिल कह रहा है कि तुम ने मुझ पर लौटने का दबाव बनाने के लिए ही शंकर वाला नाटक किया है. लेकिन तुम मेरी एक बात ध्यान से सुन लो. जब तक तुम मेरे मनोभावों को समझ कर उचित कदम नहीं उठाओगे तब तक मैं तुम्हारे पास नहीं लौटूंगी,’’ अलका झटके से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

चायनाश्ता ले कर मेहमान अपने घर लौटने लगे. चलतेचलते ओंकारनाथ ने स्नेह भरा हाथ अलका के सिर पर रख कर कहा, ‘‘बहू, मैं ने कुछ प्रापर्टी डीलरों से कह दिया है तुम दोनों के लिए किराए का मकान ढूंढ़ने के लिए. तुम दोनों का साथसाथ सुखी रहना सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. किराए का मकान मिलने तक अगर तुम घर लौट आओगी तो हम सब को बहुत खुशी होगी.’’

जवाब में अलका तो खामोश रही लेकिन गायत्री ने कहा, ‘‘ये आगामी इतवार को पहुंच जाएगी आप के यहां.’’

मेहमानों के चले जाने के बाद अलका ने कहा, ‘‘मां, एक तो मुझे इस कविता के चक्कर की तह तक पहुंचना है. दूसरे, अगर मैं राजीव के साथ रहूंगी तो उस पर मकान जल्दी ढूंढ़ने के लिए दबाव बनाए रख सकूंगी. इन बातों को ध्यान में रख कर ही मैं ससुराल लौट रही हूं.’’

शुक्रवार की दोपहर में एक अजीब सा हादसा घटा. अलका अपने कमरे में आराम कर रही थी कि खिड़की का कांच टूट कर फर्श पर गिर पड़ा. वह भाग कर ड्राइंगरूम में पहुंची. तभी उस के पिता ने घबराई हालत में बाहर से बैठक में प्रवेश किया और अलका को देख कर कांपती आवाज में उस से बोले, ‘‘शंकर दादा के 2 गुंडों ने पत्थर मार कर शीशा तोड़ा है. पत्थर पर कागज लिपटा है…उसे ढूंढ़. उस में हमारे लिए संदेश लिख कर भेजा है शंकर दादा ने.’’

पत्थर पर लिपटे कागज में टाइप किए गए अक्षरों में लिखा था :

‘अलका मैडम,

अपने पति राजीव की करतूतों का फल भुगतने को तैयार हो जाओ. आज शीशा तोड़ा गया है, कल उस का सिर फूटेगा. कविता सिर्फ मेरी है. उस पर गंदी नजर डालने वाले के पूरे खानदान को तबाह कर दूंगा मैं, शंकर दादा.’

पत्र पढ़ने के बाद गायत्री, ज्ञानप्रकाश व अलका के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

पूरी घटना की खबर दोपहर में ही ओंकारनाथ के परिवार तक भी पहुंच गई. खबर सुन कर सभी मानसिक तनाव व चिंता का शिकार हो गए. सब से ज्यादा मुसीबत का सामना राजीव को करना पड़ा. हर आदमी उसे कविता से अवैध प्रेम संबंध रखने का दोषी मान रहा था. वह सब से बारबार कहता कि कविता से उस का कोई गलत संबंध नहीं है, पर कोई उस की बात पर विश्वास करने को राजी न था.

रविवार की सुबह अलका अपने पिता के साथ ससुराल पहुंच गई.

रात को शयनकक्ष में पहुंच कर उन दोनों के बीच बड़ी गरमागरमी हुई. राजीव अपने को दोषी नहीं मान रहा था और अलका का कहना था कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है जो शंकर उस्ताद यों गुस्से से फटा जा रहा है.

आखिरकार राजीव ने अलका को मना ही लिया. तभी उस ने अपनेआप को राजीव की बांहों के घेरे में कैद होने

दिया था.

पूरा एक सप्ताह शांति से गुजरा और फिर शंकर दादा की एक और हरकत ने उन की शांति भंग कर डाली. किसी ने रात में उस की मोटरसाइकिल की सीट को फाड़ डाला था. हैंडिल पर लगे शीशे फोड़ दिए थे. ऊपर से उस पर कूड़ा बिखेरा गया था.

उस के हैंडिल पर एक चिट लगी हुई थी जिस पर छपा था, ‘अब भी अपनी जलील हरकतों से बाज आ जा, नहीं तो इसी तरह तेरा पेट फाड़ डालूंगा.’

राजीव चिट उखाड़ कर उसे गायब कर पाता उस से पहले ही ओंकारनाथ वहां पहुंच गए. उन के शोर मचाने पर पूरा घर फिर वहां इकट्ठा हो गया. जो भी राजीव की तरफ देखता, उस की ही नजरों में शिकायत व गुस्से के भाव होते.

शंकर दादा का खौफ सभी के दिल पर छा गया. दिनरात इसी विषय पर बातें होतीं. राजीव को उस के घर व ससुराल का हर छोटाबड़ा सदस्य चौकन्ना रहने की सलाह देता.

शंकर दादा का अगला कदम न जाने क्या होगा, इस विषय पर सोचविचार करते हुए सभी के दिलों की धड़कनें बढ़ जातीं.

लगभग 10 दिन बिना किसी हादसे के गुजर गए. लेकिन ये खामोशी तूफान के आने से पहले की खामोशी सिद्ध हुई.

एक रात राजीव और अलका 10 बजे के आसपास घर लौटे. एक मारुति वैन उन के घर के गेट के पास खड़ी थी, इस पर उन दोनों ने ध्यान नहीं दिया.

राजीव की मोटरसाइकिल के रुकते ही उस वैन में से 3 युवक निकल कर बड़ी तेज गति से उन के पास आए और दोनों को लगभग घेर कर खड़े हो गए.

‘‘क…कौन हैं आप लोग? क्या चाहते हैं?’’ राजीव की आवाज डर के मारे कांप उठी.

‘‘अपना परिचय ही देने आए हैं हम तुझे, मच्छर,’’ बड़ीबड़ी मूंछों वाले ने दांत पीसते हुए कहा, ‘‘और साथ ही साथ सबक भी सिखा कर जाएंगे.’’

फिर बड़ी तेजी व अप्रत्याशित ढंग से एक अन्य युवक ने अलका के पीछे जा कर एक हाथ से उस का मुंह यों दबोच लिया कि एक शब्द भी उस के मुंह से निकलना संभव न था. बड़ीबड़ी मूंछों वाले ने राजीव का कालर पकड़ कर एक झटके में कमीज को सामने से फाड़ डाला. दूसरे युवक ने उस के बाल अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ लिए.

‘‘हमारे शंकर दादा की चेतावनी को नजरअंदाज करने की जुर्रत कैसे हुई तेरी, खटमल,’’ मूंछों वाले ने आननफानन में 5-7 थप्पड़ राजीव के चेहरे पर जड़ दिए, ‘‘बेवकूफ इनसान, ऐसा लगता है कि न तुझे अपनी जान प्यारी है, न अपने घर वालों की. कविता भाभी पर डोरे डालने की सजा के तौर पर क्या हम तेरी पत्नी का अपहरण कर के ले जाएं?’’

‘‘मैं सौगंध खा कर कहता हूं कि कविता से मेरा कोई प्रेम का चक्कर नहीं चल रहा है. आप मेरी बात का विश्वास कीजिए, प्लीज,’’ राजीव उस के सामने गिड़गिड़ा उठा.

2 थप्पड़ और मार कर मूंछों वाले ने क्रूर लहजे में कहा, ‘‘बच्चे, आज हम आखिरी चेतावनी तुझे दे रहे हैं. कविता भाभी से अपने सारे संबंध खत्म कर ले. अगर तू ने ऐसा नहीं किया तो तेरी इस खूबसूरत बीवी को उठा ले जाएंगे हम शंकर दादा के पास. बाद में जो इस के साथ होगा, उस की जिम्मेदारी सिर्फ तेरी होगी, मजनू की औलाद.’’ फिर उस ने अपने साथियों को आदेश दिया, ‘‘चलो.’’

एक मिनट के अंदरअंदर वैन राजीव व अलका की नजरों से ओझल हो गई. वैन का नंबर नोट करने का सवाल ही नहीं उठा क्योंकि नंबर प्लेट पर मिट्टी की परत चिपकी हुई थी.

पूरे घटनाक्रम की जानकारी पा कर ज्ञानप्रकाश व ओंकारनाथ के परिवारों में चिंता और तनाव का माहौल बन गया. 3 दिन बाद अलका के मातापिता ने सब को रविवार के दिन अपने घर लंच पर आमंत्रित किया.

कुछ मीठा ले आने के लिए ज्ञानप्रकाश और ओंकारनाथ बाजार की तरफ चल दिए. रास्ते में ज्ञानप्रकाश ने तनाव भरे लहजे में अपने समधी से पूछा, ‘‘अलका कैसी चल रही है?’’

ओंकारनाथ ने मुसकरा कर जवाब दिया, ‘‘बिलकुल ठीक है वह. कल मैं ने राजीव से कहा कि जा कर वह मकान देख आओ जिस का पता प्रापर्टी डीलर ने बताया है. अलका ने मेरी बात सुन कर फौरन कहा कि वह किसी किराए के मकान में जाने की इच्छुक नहीं है. उस का ऐसा ‘मुझे नहीं जाना’ वाला कथन सुन कर मुझे अपनी मुसकान को छिपाना बहुत मुश्किल हो गया था दोस्त. हमारी योजना सफल रही है.’’

‘‘यानी कि अलका की अकेले रहने की जिद समाप्त हुई?’’ ज्ञानप्रकाश एकाएक प्रसन्न नजर आने लगे थे.

‘‘बिलकुल खत्म हुई. सुनो, हमारा कितना नुकसान हुआ है कुल मिला कर?’’ ओंकारनाथ ने जानना चाहा.

‘‘छोड़ो यार,’’ ज्ञानप्रकाश ने कहा, ‘‘मेरी बेटी अलका का जो खून सूख रहा होगा आजकल उस की कीमत क्या रुपयों में आंकी जा सकती है समधी साहब.’’

‘‘ज्ञानप्रकाश, हमतुम अच्छे दोस्त न होते तो अलका की अलग रहने की जिद से पैदा हुई समस्या का समाधान इतनी आसानी से नहीं हो पाता. अब बहू सब के बीच रह कर घरगृहस्थी चलाने के तरीके बेहतर ढंग से सीख जाएगी और चार पैसे भी जुड़ जाएंगे उन के पास,’’ ओंकारनाथ ने अपने समधी के कंधे पर हाथ रख कर अपना मत व्यक्त किया.

‘‘आप का लाखलाख धन्यवाद कि उस के सिर से अलग होने का भूत उतर गया,’’ ज्ञानप्रकाश ने राहत की गहरी सांस ली.

‘‘मुझे धन्यवाद देने के साथसाथ अपने दोस्त के बेटे को भी धन्यवाद दो,  जिस ने शंकर उस्ताद की भूमिका में ऐसी जान डाल दी कि उस की आवाज व हावभाव को याद कर के अलका के अब भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं.’’

‘‘नाटकों में भाग लेने का उस का अनुभव हमारे खूब काम आया.’’

‘‘उस को हिदायत दे देना कि जो उस ने किया है हमारे कहने पर, उस की चर्चा किसी से न करे.’’

‘‘मेरे बेटे व बहू को अगर कभी पता लग गया कि उन की रातों की नींद उड़ाने वाला नाटक हमारे इशारे पर खेला गया था तो मेरा तो बुढ़ापा बिगड़ जाएगा. मैं कभी एक शब्द नहीं मुंह से निकालूंगा,’’ ओंकारनाथ ने संकल्प किया.

‘‘हम ने जो किया है, सब के भले को ध्यान में रख कर किया है, समधीजी. कांटे से कांटा निकल गया है. अब शंकर दादा गायब हो जाएंगे तो धीरेधीरे राजीव व अलका सामान्य होते चले जाएंगे. नतीजा अगर अच्छा निकले तो कुछ गलत कार्यशैली को उचित मानना समझदारी है,’’ ज्ञानप्रकाश की बात का सिर हिला कर ओंकारनाथ ने अनुमोदन किया और दोनों अपने को एकदूसरे के बेहद करीब महसूस करते हुए बाजार पहुंच गए.

उस की डायरी: आखिर नेत्रा की पर्सनल डायरी में क्या लिखा था

वही नेत्रा, जिसे उस ने गंवारू और चरित्रहीन कह कर तलाक दिया था.

यह घर मेरा भी है: शादी के बाद समीर क्यों बदल गया?

मैं और मेरे पति समीर अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ एक रैस्टोरैंट में डिनर कर रहे थे, अचानक बेटी चीनू के हाथ के दबाव से चम्मच उस की प्लेट से छिटक कर उस के कपड़ों पर गिर गया और सब्जी छलक कर फैल गई.

यह देखते ही समीर ने आंखें तरेरते हुए उसे डांटते हुए कहा, ‘‘चीनू, तुम्हें कब अक्ल आएगी? कितनी बार समझाया है कि प्लेट को संभाल कर पकड़ा करो, लेकिन तुम्हें समझ ही नहीं आता… आखिर अपनी मां के गंवारपन के गुण तो तुम में आएंगे ही न.’’

यह सुनते ही मैं तमतमा कर बोली, ‘‘अभी बच्ची है… यदि प्लेट से सब्जी गिर भी गई तो कौन सी आफत आ गई है… तुम से क्या कभी कोई गलती नहीं होती और इस में गंवारपन वाली कौन सी बात है? बस तुम्हें मुझे नीचा दिखाने का कोई न कोई बहाना चाहिए.’’

‘‘सुमन, तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है… इसे टेबल मैनर्स आने चाहिए. मैं नहीं चाहता इस में तुम्हारे गुण आएं… मैं जो चाहूंगा, इसे सीखना पड़ेगा…’’

मैं ने रोष में आ कर उस की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ की कठपुतली नहीं है कि उसे जिस तरह चाहो नचा लो और फिर कभी तुम ने सोचा है कि इतनी सख्ती करने का इस नन्ही सी जान पर क्या असर होगा? वह तुम से दूर भागने लगेगी.’’

‘‘मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी,’’ कहते हुए समीर चम्मच प्लेट में पटक कर बड़बड़ाता हुआ रैस्टोरैंट के बाहर निकल गया और गाड़ी स्टार्ट कर घर लौट गया.

मेरी नजर चीनू पर पड़ी. वह चम्मच को हाथ में

पकड़े हमारी बातें मूक दर्शक बनी सुन रही थी. उस का चेहरा बुझ गया था, उस के हावभाव से लग रहा था, जैसे वह बहुत आहत है कि उस से ऐसी गलती हुई, जिस की वजह से हमारा झगड़ा हुआ. मैं ने उस का फ्रौक नैपकिन से साफ किया और फिर पुचकारते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, गलती तो किसी से भी हो सकती है. तुम अपना खाना खाओ.’’

‘‘नहीं ममा मुझे भूख नहीं है… मैं ने खा लिया,’’ कहते हुए वह उठ गई.

मुझे पता था कि अब वह नहीं खाएगी. सुबह वह कितनी खुश थी, जब उसे पता चला था कि आज हम बाहर डिनर पर जाएंगे. यह सोच कर मेरा मन रोंआसा हो गया कि मैं समीर की बात पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो बात इतनी नहीं बढ़ती. मगर मैं भी क्या करती. आखिर कब तक बरदाश्त करती? मुझे नीचा दिखाने के लिए बातबात में चीनू को मेरा उदाहरण दे कर कि आपनी मां जैसी मत बन जाना, उसे डांटता रहता है. मेरी चिढ़ को उस पर निकालने की उस की आदत बनती जा रही थी.

हम दोनों कैब ले कर घर आए तो देखा समीर दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में था. हम भी आ कर सो गए, लेकिन मेरा मन इतना अशांत था कि उस के कारण मेरी आंखों में नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं ने बगल में लेटी चीनू को भरपूर दृष्टि से देखा, कितनी मासूम लग रही थी वह. आखिर उस की क्या गलती थी कि वह हम दोनों के झगड़े में पिसे?

विवाह होते ही समीर का पैशाचिक व्यवहार मुझे खलने लगा था. मुझे हैरानी होती थी यह देख कर कि विवाह के पहले प्रेमी समीर के व्यवहार में पति बनते ही कितना अंतर आ गया. वह मेरे हर काम में मीनमेख निकाल कर यह जताना कभी नहीं चूकता कि मैं छोटे शहर में पली हूं. यहां तक कि वह किसी और की उपस्थिति का भी ध्यान नहीं रखता था.

इस से पहले कि मैं समीर को अच्छी तरह समझूं, चीनू मेरे गर्भ में आ गई. उस के बाद तो मेरा पूरा ध्यान ही आने वाले बच्चे की अगवानी की तैयारी में लग गया था. मैं ने सोचा कि बच्चा होने के बाद शायद उस का व्यवहार बदल जाएगा. मैं उस के पालनपोषण में इतनी व्यस्त हो गई कि अपने मानअपमान पर ध्यान देने का मुझे वक्त ही नहीं मिला. वैसे चीनू की भौतिक सुखसुविधा में वह कभी कोई कमी नहीं छोड़ता था.

वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता गया और चीनू 3 साल की हो गई. इन सालों में मेरे प्रति समीर के व्यवहार में रत्तीभर परिवर्तन नहीं आया. खुद तो चीनू के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करा कर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझता था, लेकिन उस के पालनपोषण में मेरी कमी निकाल कर वह मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

धीरेधीरे वह इस के लिए चीनू को अपना हथियार बनाने लगा कि वह भी

मेरी आदतें सीख रही है, जोकि मेरे लिए असहनीय होने लगा था. इस प्रकार का वादविवाद रोज का ही हिस्सा बन गया था और बढ़ता ही जा रहा था. मैं नहीं चाहती थी कि वह हमारे झगड़े के दलदल में चीनू को भी घसीटे. चीनू तो सहमी हुई मूकदर्शक बनी रहती थी और आज तो हद हो गई थी. वास्तविकता तो यह है कि समीर को इस बात का बड़ा घमंड है कि वह इतना कमाता है और उस ने सारी सुखसुविधाएं हमें दे रखी हैं और वह पैसे से सारे रिश्ते खरीद सकता है.

मैं सोच में पड़ गई कि स्त्री को हर अवस्था में पुरुष का सुरक्षा कवच चाहिए होता है. फिर चाहे वह सुरक्षाकवच स्त्री के लिए सोने के पिंजरे में कैद होने के समान ही क्यों न हो? इस कैद में रह कर स्त्री बाहरी दुनिया से तो सुरक्षित हो जाती है, लेकिन इस के अंदर की यातनाएं भी कम नहीं होतीं. पिछली पीढ़ी में स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती थीं, इसलिए असहाय होने के कारण पति द्वारा दी गई यातनाओं को मनमार कर स्वीकार लेती थीं. उन्हें बचपन से ही घुट्टी पिला दी जाती थी कि उन के लिए विवाह करना आवश्यक है और पति के साथ रह कर ही वे सामाजिक मान्यता प्राप्त कर सकती हैं, इस के इतर उन का कोई वजूद ही नहीं है.

मगर अब स्त्रियां आत्मनिर्भर होने के साथसाथ अपने अधिकारों के लिए भी जागरूक हो गई हैं. फिर भी कितनी स्त्रियां हैं जो पुरुष के बिना रहने का निर्णय ले पा रही हैं? लेकिन मैं यह निर्णय ले कर समाज की सोच को झुठला कर रहूंगी. तलाक ले कर नहीं, बल्कि साथ रह कर. तलाक ही हर दुखद वैवाहिक रिश्ते का अंत नहीं होता. आखिर यह मेरा भी घर है, जिसे मैं ने तनमनधन से संवारा है. इसे छोड़ कर मैं क्यों जाऊं?

लड़कियों का विवाह हो जाता है तो उन का अपने मायके पर अधिकार नहीं रहता, विवाह के बाद पति से अलग रहने की सोचें तो वही उस घर को छोड़ कर जाती हैं, फिर उन का अपना घर कौन सा है, जिस पर वे अपना पूरा अधिकार जता सकें? अधिकार मांगने से नहीं मिलता, उसे छीनना पड़ता है. मैं ने मन ही मन एक निर्णय लिया और बेफिक्र हो कर सो गई.

सुबह उठी तो मन बड़ा भारी हो रहा था. समीर अभी भी सामान्य नहीं था. वह

औफिस के लिए तैयार हो रहा था तो मैं ने टेबल पर नाश्ता लगाया, लेकिन वह ‘मैं औफिस में नाश्ता कर लूंगा’ बड़बड़ाते हुए निकल गया. मैं ने भी उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

चीनू आ कर मुझ से लिपट गई. बोली, ‘‘ममा, पापा को इतना गुस्सा क्यों आता है? मुझ से थोड़ी सब्जी ही तो गिरी थी…आप को याद है उन से भी चाय का कप लुढ़क गया था और आप ने उन से कहा था कि कोई बात नहीं, ऐसा हो जाता है. फिर तुरंत कपड़ा ला कर आप ने सफाई की थी. मेरी गलती पर पापा ऐसा क्यों नहीं कहते? मुझे पापा बिलकुल अच्छे नहीं लगते. जब वे औफिस चले जाते हैं, तब घर में कितना अच्छा लगता है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा बेटा, तू परेशान मत हो… मैं हूं न,’’ कह कर मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और सोचने लगी कि इतनी प्यारी बच्ची पर कोई कैसे गुस्सा कर सकता है? यह समीर के व्यवहार का कितना अवलोकन करती है और इस के बालसुलभ मन पर उस का कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

समीर और मुझ में बोलचाल बंद रही. कभीकभी वह औपचारिकतावश चीनू से पूछता कहीं जाने के लिए तो वह यह देख कर कि वह मुझ से बात नहीं करता है, उसे साफ मना कर देती थी. वह सोचता था कि कोई प्रलोभन दे कर वह चीनू को अपने पक्ष में कर लेगा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. समीर की बेरुखी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मनमानी भी धीरेधीरे बढ़ रही थी. जबतब घर का खाना छोड़ कर बाहर खाने चला जाता, मैं भी उस के व्यवहार को अनदेखा कर के चीनू के साथ खुश रहती. यह स्थिति 15 दिन रही.

एक दिन मैं चीनू के साथ कहीं से लौटी तो देखा समीर औफिस से अप्रत्याशित जल्दी लौट कर घर में बैठा था. मुझे देखते ही गुस्से में बोला, ‘‘क्या बात है, आजकल कहां जाती हो बताने की भीजरूरत नहीं समझी जाती…’’ उस की बात बीच में काट कर मैं बोली, ‘‘तुम बताते हो कि तुम कहां जाते हो?’’

‘‘मेरी बात और है.’’

‘‘क्यों? तुम्हें गुलछर्रे उड़ाने की इजाजत है, क्योंकि तुम पुरुष हो, मुझे नहीं. क्योंकि…’’

‘‘लेकिन तुम्हें तकलीफ क्या है? तुम्हें किस चीज की कमी है? हर सुख घर में मौजूद है. पैसे की कोई कमी नहीं. जो चाहे कर सकती हो,’’ गुलछर्रे उड़ाने वाली बात सुन कर वह थोड़ा संयत हो कर मेरी बात को बीच में ही रोक कर बोला, क्योंकि उस के और उस की कुलीग सुमन के विवाहेतर संबंध से मैं अनभिज्ञ नहीं थी.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन भौतिक सुखों के लिए ही स्त्री अपने पूर्व रिश्तों को विवाह की सप्तपदी लेते समय ही हवनकुंड में झोंक देती है और बदले में पुरुष उस के शरीर पर अपना प्रभुत्व समझ कर जब चाहे नोचखसोट कर अपनी मर्दानगी दिखाता है… स्त्री भी हाड़मांस की बनी होती है, उस के पास भी दिल होता है, उस का भी स्वाभिमान होता है, वह अपने पति से आर्थिक सुरक्षा के साथसाथ मानसिक और सामाजिक सुरक्षा की भी अपेक्षा करती है. तुम्हारे घर वाले तुम्हारे सामने मुझे कितना भी नीचा दिखा लें, लेकिन तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. तुम मूकदर्शक बने खड़े देखते रहते हो… स्वयं हर समय मुझे नीचा दिखा कर मेरे मन को कितना आहत करते हो, यह कभी सोचा है?’’

‘‘ठीक है यदि तुम यहां खुश नहीं हो तो अपने मायके जा कर रहो, लेकिन चीनू तुम्हारे साथ नहीं जाएगी, वह मेरी बेटी है, उस की परवरिश में मैं कोई कमी नहीं रहने देना चाहता. मैं उस का पालनपोषण अपने तरीके से करूंगा… मैं नहीं चाहता कि वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारे स्तर की बने,’’ समीर के पास जवाब देने को कुछ नहीं बचा था, इसलिए अधिकतर पुरुषों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अंतिम वार करते हुए चिल्ला कर बोला.

‘‘चिल्लाओ मत. सिर्फ पैदा करने से ही तुम चीनू के बाप बनने के अधिकारी नहीं हो सकते. वह तुम्हारे व्यवहार से आहत होती है. आजकल के बच्चे हमारे जमाने के बच्चे नहीं हैं कि उन पर अपने विचारों को थोपा जाए, हम उन को उस तरह नहीं पाल सकते जैसे हमें पाला गया है. इन के पैदा होने तक समय बहुत बदल गया है.

‘‘मैं उसे तुम्हारे शाश्नात्मक तरीके की परवरिश के दलदल में नहीं धंसने दूंगी…

मैं उस के लिए वह सब करूंगी जिस से कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके और मैं तुम्हारी पत्नी हूं, तुम्हारी संपत्ति नहीं. यह घर मेरा भी है. जाना है तो तुम जाओ. मैं क्यों जाऊं?

‘‘इस घर पर जितना तुम्हारा अधिकार है, उतना ही मेरा भी है. समाज के सामने मुझ से विवाह किया है. तुम्हारी रखैल नहीं हूं… जमाना बदल गया, लेकिन तुम पुरुषों की स्त्रियों के प्रति सोच नहीं बदली. सारी वर्जनाएं, सारे कर्तव्य स्त्रियों के लिए ही क्यों? उन की इच्छाओं, आकांक्षाओं का तुम पुरुषों की नजरों में कोई मूल्य नहीं है.

‘‘उन के वजूद का किसी को एहसास तक भी नहीं. लेकिन स्त्रियां भी क्यों उर्मिला की तरह अपने पति के निर्णय को ही अपनी नियत समझ कर स्वीकार लेती हैं? क्यों अपने सपनों का गला घोंट कर पुरुषों के दिखाए मार्ग पर आंख मूंद कर चल देती हैं? क्यों अपने जीवन के निर्णय स्वयं नहीं ले पातीं? क्यों औरों के सुख के लिए अपना बलिदान करती हैं? अभी तक मैं ने भी यही किया, लेकिन अब नहीं करूंगी. मैं इसी घर में स्वतंत्र हो कर अपनी इच्छानुसार रहूंगी,’’ समीर पहली बार मुझे भाषणात्मक तरीके से बोलते हुए देख कर अवाक रह गया.

‘‘पापा, मैं आप के पास नहीं रहूंगी, आप मुझे प्यार नहीं करते. हमेशा डांटते रहते हैं… मैं ममा के साथ रहूंगी और मैं उन की तरह ही बनना चाहती हूं… आई हेट यू पापा…’’ परदे के पीछे खड़ी चीनू, जोकि हमारी सारी बातें सुन रही थी, बाहर निकल कर रोष और खुशी के मिश्रित आंसू बहने लगी. मैं ने देखा कि समीर पहली बार चेहरे पर हारे हुए खिलाड़ी के से भाव लिए मूकदर्शक बना रह गया.

मैं देर रात औफिस से लौटता हूं, जिसकी वजह से मुझे नींद नहीं आती हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 26 वर्षीय नवयुवक हूं. नैशनल लौ यूनिवर्सिटी से लौ की डिग्री पूरी करने के बाद अब एक बड़ी लौ कंपनी में ऐसोसिएट के रूप में काम कर रहा हूं. अकसर देर रात तक काम करना होता है, जिस से मेरी स्लीप क्लौक बिगड़ गई है. बिस्तर में लेटने पर भी देर तक नींद नहीं आती. दिनभर की घटनाएं दिमाग में छाई रहती हैं. कृपया कुछ ऐसे व्यावहारिक उपाय बताएं जिन से कि मुझे फिर से पहले जैसी बढ़िया नींद आने लगे.

जवाब
सच दुनिया में नींद जैसी प्यारी दूसरी कोई चीज नहीं. उस के आगोश में सिर रखने से मनमस्तिष्क ताजगी से भर उठता है, शरीर स्फूर्त हो जाता है और जब सुबह आंख खुलती है तो रंगों में नई उमंग अंगड़ाई ले रही होती है. वयस्क जीवन में 6 से 8 घंटे की नींद अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए जरूरी है.

आप की यह विवशता है कि आप को देर रात तक काम करना पड़ता है. अच्छी नींद के लिए ये उपाय आजमाना लाभकारी हो सकता है:

तनाव की दुनिया पीछे छोड़ आएं: नींद आने के लिए जरूरी है कि मन शांत हो. उस पर किसी चीज का बोझ न हो. दफ्तर से लौटने के बाद मौजमस्ती करें, मन को खुला छोड़ दें, ताकि दिन भर का तनाव दूर हो जाए.

मन में शांति के स्वर जगाएं:  सोने से पहले कुछ ऐसा करें कि भीतर सुखशांति के स्वर गूंजने लगें. चाहें तो कोई रिलैक्सिंग म्यूजिक सुनें, कोई पुस्तक या पत्रिका पढ़ें और फिर जब पलकें भारी होने लगें तब सो जाएं.

टीवी और कंप्यूटर नींद के साथी नहीं: सोने से पहले देर रात तक टीवी देखना या कंप्यूटर पर काम करना नींद में बाधक बन सकता है. इन के तेज प्रकाश से मस्तिष्क का सर्किट जाग्रत अवस्था में चला जाता है. मीठी नींद पाने के लिए सोने से घंटा डेढ़ घंटा पहले इन्हें बंद कर दें.

हलका भोजन ही ठीक: सोने से पहले हलका भोजन लेने में ही अच्छाई है. पेट ऊपर तक भरा हो और शरीर उसे पचाने में लगा हो तो भला नींद कैसे आ सकती है.

चाय और कौफी से बचें: देर शाम में चाय और कौफी पीने से भी नींद भाग सकती है. इन में मिली कैफीन मस्तिष्क को आराम नहीं लेने देती.

स्नान करें: बिस्तर में जाने से 1 घंटा पहले स्नान करने से शरीर की सिंकाई हो जाती है और पेशियां रिलैक्स हो जाती हैं. यह थकान दूर करने का आसान उपाय है.

योगनिद्रा है तनावमुक्ति की उमदा दवा: सोने से पहले कुछ मिनट योगनिद्रा में बिताने से विशेष रूप से लाभकारी साबित हो सकते हैं. ऐसा करने से शरीर और मनमस्तिष्क शांत अवस्था में पहुंच जाते हैं और आसानी से नींद आ जाती है.

सोच रचनात्मक रखें. दिन में कुछ समय व्यायाम के लिए भी जरूर निकालें. वजन पर कंट्रोल रखें. जहां तक हो सके सोने का समय तय कर लें. यह सब करने पर यकीनन आप फिर से पहले जैसी मीठी नींद का सुख पाने लगेंगे.

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