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अब गुड़गांव और नोएडा में भी ओला आटो

परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराने वाली मोबाइल एग्रिगेटर ओला ने गुड़गांव एवं नोएडा में अपने एप पर आटो रिक्शा उपलब्ध कराने की घोषणा की है. दिल्ली के बाद अब इन दो शहरों में भी उपभोक्ता ओला एप से आटो रिक्शा की बुकिंग कर सकेंगे. ओला ने यह सुविधा जुगनू एप के बाद शुरू की है. 5 रुपये प्रति किलोमीटर की दर पर यह सेवा गुड़गांव और नोएडा में चौबीस घंटे उपलब्ध है.

उपभोक्ताओं को कहीं जाने के लिए रिक्शा चालकों से किराए को ले कर काफी चिकचिक करनी पड़ती है, कई बार तो वे जबरन ज्यादा किराया मांगते हैं, कभीकभी तो जाने से भी मना कर देते हैं, लेकिन ओला से निर्धारित किरायों के साथ उपभोक्ता एप पर अपनी राइड को ट्रैक भी कर सकते हैं और रियल टाइम में अपनी राइड का विवरण अपने दोस्तों और परिजनों के साथ लाइव मैप पर शेयर भी कर सकते हैं. ओला प्लेटफौर्म पर मौजूद हर आटो जीपीएस इनेबल्ड स्मार्टफोन द्वारा पावर्ड है.

ओला एप का इस्तेमाल करने के लिए आप अपने स्मार्टफोन के प्ले स्टोर से ओला एप डाउनलोड करें और इस पर अपना मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी रजिस्टर कर के इस सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं.

पैसों के लिए अपनों का खून

आपराधिक घटनाएं कई बार जीवन की उलझनों का आईना बन जाती हैं. दिल्ली में 2 बेटों और 1 पोते द्वारा अपने 88 साल के पिता और 50 साल की अनब्याही बहन की गला घोट कर हत्या कर देने वाली घटना जीवन की समस्याओं को भी उजागर करती है. पिता के पास एक मकान था जो शायद क्व1-1.5 करोड़ का होता, वे उसे अपनी अनब्याही 50 साला बेटी को दे कर मरना चाहते थे ताकि मरने तक बेटी सुरक्षित रहे. यह समस्या का एक पहलू है कि यदि समय पर लड़कियां विवाह न करें और पति व बच्चों वाली न हों तो मातापिता के लिए बोझ बनी रहती हैं. जाहिर है कि मृतक के दोनों बेटे जो खुद 60 व 57 साल के होने लगे थे, अपने हाथों से संपत्ति निकलते नहीं देख सकते थे.

बेटियों के लिए समस्या एक और पहलू है. जब आयु हो तब विवाह न करना घर वालों पर एक गहरा मानसिक बोझ बना रहता है. उन के लिए 50 साला औरत एक सहारा नहीं बन पाती. उस से छुटकारा पाने के लिए हत्या तक की साजिश रची जा सकती है. हत्या करने वाले बेटों में से एक पर कर्ज का बोझ था जिसे वह पिता के मकान को बेच कर चुकाना चाहता था. यह कर्ज उस ने अपनी बेटी के विवाह के लिए लिया था, जिस ने भाग कर विवाह किया था पर बाद में शायद पिता को बाजेगाजे के साथ विदा करना पड़ा था. इस मामले ने हो सकता है उसे सभी संबंधों के प्रति उदासीन बना दिया हो तभी अपना बोझ हलका करने के लिए पिता व बहन की हत्या करने में उसे कुछ भी गलत नजर नहीं आया.

बेटियों का हक बेटों को कितना खलता है, यह भी इस अपराध से झलकता है. संपत्ति पिता की थी और तर्क की दृष्टि से यह उन की मरजी थी कि वे संपत्ति 2 बेटियों में बांटते या सब में या फिर उन बेटों को देते जो तंगी में थे. आज भी बेटे यही सोचते हैं कि सारी संपत्ति पर उन का ही हक है. बहन को हिस्सा देने की सुनते ही उन के दिल पर सांप लोटने लगते हैं और आंखों में खून उतर आता है. यह मामला चाहे अपराध का ही हो पर साफ है कि सामाजिक व पारिवारिक आर्थिक बोझ कई बार इतना ज्यादा हो जाता है कि लोग परिणाम की चिंता करना ही छोड़ देते हैं. अपराध करने वालों को यह तो मालूम होता ही है कि पकड़े गए तो जो पाना चाहा वह तो हाथ में आने से रहा, जो है वह भी फिसल जाएगा. अब पिता की आयु के 2 प्रौढ़ व उन का एक युवा बेटा जेल की सीखचों में बंद हैं. घर अब अपराध की जगह होने के कारण 8-10 साल बंद रहेगा. 2 घरों के लोग पैसेपैसे को मुहताज हो जाएंगे. पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने की जगह पारिवारिक दुख इतना बढ़ेगा कि न जाने कितने और अवसाद, गरीबी व उलझनों के शिकार बन कर रह जाएं.परिवार छत और सुरक्षा प्रदान करता है. उसे तोड़ कर हाथ में केवल गुस्सा व दुख ही मिलेंगे. अगर हत्या तक भी न पहुंचें तो भी परिवार की कीमत पर सुखों को ढूंढ़ने वाले अंतत: दुखी ही रहते हैं, यह अपराध की इस घटना से साफ है. 

फिर मुश्किल में मैगी, टेस्टमेकर में मिली राख

अब मैगी के टेस्टमेकर भी फेल हो गए हैं. पहले मैगी और अब इस के टेस्टमेकर में राख की मात्रा तय सीमा से ज्यादा मिली है. हाल ही में बाराबंकी की एफडीए टीम ने सफेदाबाद कसबे में सुधांशु जनरल स्टोर पर छापा मार कर मैगी नूडल्स के टेस्टमेकर के सैंपल लिए. जिन की लैब में जांच कराने पर पाया गया कि इस में तय सीमा से ज्यादा राख की मात्रा है, जो सेहत के लिए हानिकारक है. अब इस के आधार पर कंपनी और दुकानदार को नोटिस भेजा जाना है.

इस से पूर्व भी मैगी नूडल्स की गुणवत्ता को ले कर कई सवाल उठें जिस के कारण दिल्ली, हरियाणा, केरल आदि जगहों पर मैगी पर बैन लग गया था. जांच में पाया गया था कि मैगी में तय मात्रा से ज्यादा सीसा है जिस के कारण कंपनी को करोड़ों का नुकसान हुआ.

कैसे बनता है ब्रह्मांड का डार्क मैटर

हमारा ब्रह्मांड रहस्यों से पूर्ण एवं विचित्रताओं से भरा हुआ है. इस का जितना अधिक अध्ययन किया जाए इस में उतनी ही अधिक विचित्रताएं एवं रहस्य मिलते जाएंगे. ब्रह्मांड का एक ऐसा ही महत्त्वपूर्ण रहस्य है, ‘डार्क मैटर’, जिसे पूरी तरह समझने में वैज्ञानिक अभी तक कामयाब नहीं हो पाए हैं. अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर है क्या  सामान्य तौर पर ब्रह्मांड में जितनी चीजें हमें दिखाई देती हैं वे या तो स्वयं प्रकाश का उत्सर्जन करती हैं अथवा किसी अन्य स्रोत से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश को परावर्तित करती हैं. परंतु ब्रह्मांड में पाया जाने वाला डार्क मैटर एक ऐसा पदार्थ है जो न तो प्रकाश का उत्सर्जन करता है और न किसी अन्य स्रोत से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश को परावर्तित कर पाता है. इसी कारणवश इस पदार्थ को डार्क मैटर की संज्ञा दी गई है.

यदि डार्क मैटर न तो प्रकाश का उत्सर्जन करता है और न  ही परावर्तन अर्थात यह दिखाई नहीं पड़ता है तो फिर इस की उपस्थिति का अनुमान किस प्रकार लगाया जाता है  वस्तुत: खगोल वैज्ञानिकों द्वारा डार्क मैटर की उपस्थिति का अनुमान उस गुरुत्वाकर्षण बल के आधार पर लगाया गया जो उस के आसपास की वस्तुओं पर प्रभाव डालता है.

अब एक अन्य प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर की खोज कब तथा किस के द्वारा की गई  डार्क मैटर के संबंध में अनुमान सब से पहले आज से लगभग 8 दशक पूर्व 1933 में लगाया गया था. इस अदृश्य पदार्थ की उपस्थिति का अनुमान लगाने वाला संसार का सब से पहला व्यक्ति था स्विस मूल का अमेरिकी नागरिक फ्रिट्ज ज्विकी, जो कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी में एक खगोलविद के रूप में कार्यरत था. वह शोध के सिलसिले में एक बार ‘कौमा’ नामक एक काफी दूरस्थ मंदाकिनी समूह (गैलेक्सी ग्रुप) का पर्यवेक्षण कर रहा था. उस ने खुद की गई गणनाओं के आधार पर अनुमान लगाया कि इस मंदाकिनी समूह के भीतर कुछ इस प्रकार का पदार्थ भी उपस्थित है जिस का पिंडमान (मास) तो है, परंतु वह विद्युत चुंबकीय तरंगों (अर्थात प्रकाश इत्यादि) का न तो उत्सर्जन करता है और न उन का परावर्तन. ज्विकी ने जब मंदाकिनी समूह (गैलेक्सी ग्रुप) के किनारे पर स्थित विभिन्न मंदाकिनियों की घूर्णन गति के आधार पर उपर्युक्त मंदाकिनी समूह के संपूर्ण पिंडमान की गणना की तो पता चला कि यह पिंडमान प्रयोगों द्वारा निकाले गए पिंडमान का लगभग 400 गुना है. इस आधार पर ज्विकी ने इसे ‘लुप्त पिंडमान समस्या (मिसिंग मास प्रौब्लम)’ नाम दिया, क्योंकि उस समय तक ‘डार्क मैटर’ जैसे शब्द का नाम प्रचलन में नहीं आया था.

शुरूशुरू में खगोलविदों ने ज्विकी द्वारा लगाए गए अनुमान की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया. परंतु उस के बाद अनेक खगोल वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों एवं शोध के आधार पर इस बात की पुष्टि हो गई कि फ्रिट्ज ज्विकी द्वारा अनुमानित अदृश्य पदार्थ वास्तव में ब्रह्मांड में अस्तित्व में है. इन वैज्ञानिकों ने इस अदृश्य पदार्थ अथवा लुप्त पिंडमान समस्या के लिए एक नया नाम गढ़ा ‘डार्क मैटर.’ जिन खगोल वैज्ञानिकों ने डार्क मैटर की उपस्थिति की बात साबित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, उन में एक प्रमुख नाम है वेरा रूबिन का, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में वाशिंगटन स्थित कार्निज इंस्टिट्यूट के स्पेस मैगनेटिज्म विभाग में खगोल वैज्ञानिक के रूप में कार्य करता था. उस ने अपने सहयोगी कैंट फोर्ड के साथ मिल कर 1960 से 1975 के बीच कई मंदाकिनी समूहों के पर्यवेक्षणों से निष्कर्ष निकाला कि डार्क मैटर का अस्तित्व एक वास्तविकता है.

वेरा रूबिन तथा कैंट फोर्ड द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के बाद तो डार्क मैटर के अध्ययन की दिशा में खगोल वैज्ञानिकों के बीच होड़ लग गई तथा इस संबंध में अनेक नएनए तथ्य सामने आने लगे. इन अध्ययनों से पता चला कि ब्रह्मांड में कुछ मंदाकिनियां ऐसी हैं जिन में डार्क मैटर पूरी तरह अनुपस्थित पाया जाता है. उदाहरण के तौर पर ऐसी ही एक मंदाकिनी का नाम है ‘ग्लोबुलर’. इस के विपरीत कुछ मंदाकिनियां ऐसी भी हैं जिन में दृश्य पदार्थ नगण्य परिमाण में पाया जाता है तथा वे लगभग पूरी तरह डार्क मैटर से निर्मित हैं. उदाहरण के तौर पर ‘वर्गो’ नामक मंदाकिनी समूह में एक ऐसी मंदाकिनी मौजूद है.

अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर का रासायनिक संघटन किस प्रकार का है अर्थात यह किस प्रकार के पदार्थ से बना हुआ है  शुरूशुरू में अधिकांश वैज्ञानिकों की धारणा थी कि डार्क मैटर कृष्ण विवर (ब्लैक होल) का परिवर्तित रूप है परंतु इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई. फिर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि डार्क मैटर शायद ‘न्यूट्रीनो’ नामक कणों से बना हुआ है. न्यूट्रीनो शब्द ई फर्मी नामक वैज्ञानिक द्वारा गढ़ा गया था. न्यूट्रीनो एक आवेशरहित कण है जिस का पिंडमान लगभग शून्य होता है. ये कण प्रकाश के वेग से गतिमान रहते हैं. परंतु शोधकर्ताओं द्वारा गहन अध्ययनों के आधार पर इस बात की पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं हो पाई कि डार्क मैटर न्यूट्रीनो नामक कणों से बना हुआ है. बृहत पैमाने पर तो न्यूट्रीनो द्वारा डार्क मैटर के निर्माण संबंधी विषय की व्याख्या की जा सकती है परंतु लघु स्तर पर ऐसी व्याख्या करना संभव नहीं हो पाता है.

लघु स्तर पर डार्क मैटर के निर्माण की व्याख्या करने के लिए खगोल वैज्ञानिकों ने कुछ नए मूल कणों की परिकल्पना प्रस्तुत की है. ऐसे नए कणों में प्रमुख है ‘विम्प्स.’ विम्प्स शब्द अंगरेजी भाषा के 4 शब्दों ‘वीकली इंटरऐक्टिंग मासिव पार्टिकल्स’ का संक्षिप्त रूप है. अधिकांश वैज्ञानिकों की धारणा है कि डार्क मैटर का निर्माण विम्प्स नामक कणों से ही हुआ है. कुछ खगोलविदों के मतानुसार डार्क मैटर का निर्माण करने में प्रमुख भूमिका ‘पौजिट्रान’ नामक कणों की रही है. ऐसा विचार उन्होंने जून, 2006 में प्रमोचित ‘पामेला’ नामक उपग्रह से प्राप्त संकेतों के आधार पर व्यक्त किया है. पौजिट्रान एक प्रकार के अत्यंत सूक्ष्म कण होते हैं जिन का पिंडमान इलैक्ट्रौन नामक कण के पिंडमान के बराबर होता है. परंतु इन दोनों में अंतर यह है कि इलैक्ट्रौन पर जहां ऋणात्मक आवेश होता है, वहीं पौजिट्रान पर धनात्मक आवेश मौजूद होता है. इसी कारणवश पौजिट्रान को इलैक्ट्रौन का प्रति कण भी कहा जाता है.

खगोलविदों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार पूरे ब्रह्मांड में दृश्य पिंडों का परिणाम सिर्फ 4% है. दृश्य पिंडों में तारे, ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह तथा धूमकेतु इत्यादि सभी पिंड शामिल हैं. पूरे ब्रह्मांड में डार्क मैटर सिर्फ 23% है जबकि शेष 73% ब्रह्मांड डार्क ऊर्जा से निर्मित है.

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग: काम भारी, महकमा है खाली

उत्तर प्रदेश देश का सब से बड़ा सूबा है. यहां के ज्यादातर लोगों का रोजगार केवल खेती किसानी ही है. दूसरे प्रदेशों की तरह यहां भी खेती किसानी की ढेर सारी योजनाएं केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लागू हैं. योजनाओं का लाभ निचले स्तर तक पहुंचे इस के लिए करोड़ों रुपए का बजट भी है, मगर जिन के जरीए यह सारा काम होना है वही नहीं हैं यानी यहां का कृषि महकमा अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी से बुरी तरह जूझ रहा है. इस वजह से सब से ज्यादा नुकसान किसानों को ही हो रहा है.

वहीं दूसरी तरफ प्रदेश सरकार अपने को किसानों का सब से बड़ा हितैषी बताने से नहीं थक रही है. साल 2015 को यहां की सरकार ने प्रदेश में किसान वर्ष घोषित कर रखा था, मगर तब से अब तक किसानों और किसानी की स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही है. इस बार भी अखिलेश सरकार ने ‘कृषक दुर्घटना बीमा योजना’ को समाप्त कर के उस के स्थान पर किसानों के लिए एक बेहतर योजना ‘मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना’ शुरू की है. बेशक यह योजना बेहतर है, मगर असल सवाल यह है कि बिना अधिकारियों और कर्मचारियों के इन जैसी तमाम योजनाओं का लाभ किसानों को कैसे मिल सकेगा. नए पेश होने वाले बजट को भी सरकार किसानों के लिए अभी से ही वरदान साबित होगा, बता रही है मगर यह सब बिना स्टाफ के कैसे पूरा होगा आइए, जानते हैं कि कौनकौन से पद खाली हैं

निदेशकों के पद खाली : कृषि विभाग में निदेशकों के अनेक पद बनाए गए हैं, जिन में राज्य स्तर पर प्रबंधन हेतु कृषि निदेशक, निदेशक बीज विकास निगम, निदेशक कृषि अनुसंधान परिषद और अपर निदेशकों, संयुक्त कृषि निदेशकों और मंडल व जिला स्तर पर उप कृषि निदेशकों की तैनाती होती है. बीते साल 2015 के अंतिम महीने से राज्य स्तर के प्रबंधन हेतु कई महत्त्वपूर्ण निदेशकों के पद खाली पड़े थे. इन में खासतौर पर बीज प्रमाणीकरण निगम, उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम, उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि प्रबंधन संस्थान, रहमान खेड़ा लखनऊ के पद शामिल हैं. एक अंगरेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार बीज विकास निगम में निदेशक व सही प्रबंधन न होने के कारण करोड़ों रुपए की लागत के बीज सड़ गए.

भला हो कृषि प्राविधिक सहायकों के 8 जनवरी से शुरू हुए बेमियादी धरनेप्रदर्शन का, जिन की स्टाफ की तैनाती संबंधी मांग के कारण कृषि मंत्री के हथपांव फूल गए थे और मामले को तूल पकड़ते देख उन्होंने झट से वरिष्ठ अधिकारी मुकेश श्रीवास्तव को अगले दिन ही प्रदेश का कृषि निदेशक नियुक्त कर दिया था. अगर प्राविधिक सहायकों का बेमियादी धरनाप्रदर्शन न होता तो कृषि निदेशक का पद भी लंबे समय तक खाली रह सकता था. इन पदों के लंबे समय तक खाली रहने के पीछे जानकार बताते हैं कि सरकार अपनी पसंद का नौकरशाह बैठाना चाहती है. विभाग में पहले से कार्य कर रहे अन्य निदेशकों में इन पदों को हथियाने की होड़ भी खूब है, मगर सरकार है कि अपने लिए सब से अच्छा दावेदार न मिल पाने के कारण देर कर रही है. इस से अन्य कामों के साथ ही साथ नई भर्तियों में भी देरी हो रही है, जिस से खेतीबारी भी अछूती नहीं है.

अधिकारी स्तर के पद खाली : विभाग में राजपत्रित अधिकारियों के कुल 966 पद हैं, जिन में से 474 पद खाली हैं. इसी तरह से अराजपत्रित कर्मचारियों के 172 पद खाली हैं. जिला एवं ब्लाक स्तर पर काम करने वाले विभिन्न कर्मचारियों के लिए कुल 28090 पद हैं, जिन में से 13362 पद खाली हैं.

हाईकोर्ट के आदेश का भी असर नहीं : 2 साल पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने कृषि सेवाओं के तहत प्राविधिक सहायकों की भर्ती का विज्ञापन जारी किया था. अंतिम परिणाम आ जाने के बाद भी विवादों में होने के कारण प्राविधिक सहायकों की तैनाती नहीं हो पा रही थी. जिस पर बीते दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार से कहा कि चयनितों को 1 महीने के अंदर तैनाती दी जाए. 1 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद राज्य सरकार चयनितों को तैनाती नहीं दे सकी है, जबकि चयनितों की तैनाती से विभागीय काम में तेजी आ सकती है.

नहीं रखे गए कृषिमित्र : सरकार की अनेक कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी गांवगांव तक पहुंचे, इस के लिए केंद्र सरकार ने हर ग्राम पंचायत स्तर पर 1 कृषिमित्र की नियुक्ति करने को कहा है, मगर राज्य सरकार ने इस में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई है. कुछ साल पहले किसानमित्र मामूली मानदेय पर काम कर रहे थे, बाद में मानदेय न मिलने के कारण किसानमित्रों ने भी काम बंद कर के दूसरे काम पकड़ लिए. इस से जमीनी स्तर पर खेतीकिसानी की तकनीकों का प्रचारप्रसार बंद हो गया है.

वेतन को तरस रहे संविदाकर्मी : प्रदेश में केंद्र द्वारा संचालित नेशनल मिशन औन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन एंड टेक्नोलाजी (आत्मा) योजना साल 2012 से चलाई जा रही है. योजना का मुख्य मकसद किसानों को खेती के नवीनतम  तकनीकी ज्ञान से परिचित कराना है. योजना में काम करने वाले कर्मियों की संविदा (ठेका) पर तैनाती राज्य सरकार ने गैर सरकारी संगठन के जरीए की है. योजना में मुख्य रूप से 2 तरह के पद हैं, जिन में गांव स्तर पर सहायक तकनीकी प्रबंधक और ब्लाक स्तर पर ब्लाक तकनीकी प्रबंधक हैं. गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) इन संविदाकर्मियों को हर महीने तनख्वाह नहीं दे पाता है. कभी 6 महीने तो कभी 4 महीने बाद तनख्वाह देता है. तनख्वाह हर महीने न मिल पाने के कारण संविदाकर्मी कई बार अपना काम पैसे उधार ले कर करते हैं या घरपरिवार की कई प्रकार की जरूरतें नहीं पूरी कर पाते हैं. इस से तकनीकी कर्मी मन से काम नहीं कर पाते हैं या कुछ लोग नियमित आमदनी बनाए रखने के लिए दूसरे कामों में भी लगे रहते हैं. इस से सरकार की योजना पर पानी फिर जाता है.

इच्छाशक्ति की कमी : इतनी बातें जाननेसमझने पर तो यही लगता है कि सरकार जब बड़ेबड़े दावे किसानों के हित में कर रही है तो बिना अधिकारियों, कर्मचारियों के उन्हें कैसे पूरा करेगी  प्रदेश सरकार की कथनी और करनी में अंतर न होता तो वह बड़े पैमाने पर खाली पदों को जल्दी से भरने में दिलचस्पी दिखाती. शायद यही कारण है सरकार उच्च न्यायालय के आदेश का भी समय से पालन नहीं करा पा रही है, मगर ऊपर से किसानों का मसीहा होने का ढोल पीट रही है.

घरवाली रसोई वाली

पढ़ाईपूरी हुई. कैंपस सलैक्शन से कोलकाता में अच्छी जौब लग गई. मैं ने एक अच्छे कौंप्लैक्स में डबलबैड अपार्टमैंट किराए पर ले लिया. नौकरी जौइन करने भर की देर थी कि माताश्रीपिताश्री ने मेरे लिए अपनी ओर से कन्या फाइनल कर दी. मेरी सहमति के लिए मुझे रांची बुलावा भेजा. मैं चर्च कौंप्लैक्स स्थित विशेष रैस्टोरैंट में सुहाना से मिला. हम ने साथसाथ पनीर कटलेट, पनीर चिली का आनंद लिया. सुहाना बोकारो की थी. उसे रैस्टोरैंट का माहौल बेहद पसंद आया. हम ने नक्षत्र वन में लंबी बातचीत की.

‘‘मैं खाने का बेहद शौकीन हूं. चटपटा, मसालेदार खाना पसंद है,’’ मैं ने सुहाना को बताया.

‘‘मैं भी कुछ बताना चाहती हूं,’’ मितभाषी सुहाना ने हिम्मत की. अब तक केवल हूंहां ही कर रही थी.

‘‘बेहिचक बताओ. किसी को चाहती हो  कोई अफेयर रहा है  कोई समस्या है ’’ मैं ने कई प्रश्न एकसाथ कर दिए. मुझे चिंता हो आई थी. मैं अब तक गोरीचिट्टी, लंबीछरहरी और शर्मीली सुहाना को अपना चुका था.

‘‘कुकिंग नहीं आती. कभी की नहीं. अपने बड़े परिवार में रसोइए महाराज लगे हैं. बस खाना जानती हूं,’’ सुहाना ने सिर झुकाए बताया. वह मुसकरा भी रही थी. शायद उस ने मेरी परेशानी भांप ली थी.

‘‘नो प्रौब्लम. हम रसोई वाली रख लेंगे. वैसे भी कोलकाता की चिपकूचिपकू गरमी में कुकिंग सचमुच एक बड़ी प्रौब्लम है… सुहाना सांवली हो जाएगी,’’ मेरी अफेयर वाली चिंता दूर हो चुकी थी.  मैं सुहाना को किसी भी हालत में खोना नहीं चाहता था.

मेरी ‘ओके’ रिपोर्ट के साथ ही शादी की तैयारी शुरू हो गई. 30 दिनों में ही सुहाना मेरी सुप्रिया, जानेमन, हंप्टी शर्मा की दुलहनिया यानी मेरी प्यारीदुलारी घरवाली बन गई. हम ने मुंबई, गोवा, महाबलेश्वर में हनीमून मनाया. मुंबई के सिनेमाघर में लंबे समय से चल रही ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ देखी. गोवा में सुहाना को बिकनी में कैमरे में उतारा. महाबेलश्वर में स्पैशल स्ट्राबैरी आइसक्रीम का आनंद उठाया. साथसाथ घुड़सवारी की, डूबते सूरज को निहारा.

‘‘रसोई वाली लगेगी तो फिर कोलकाता आ जाऊंगी,’’ सुहाना ने शर्त रखी.

मैं ने कोलकाता में औफिस के दोस्तों को पूरा किस्सा सुनाया. मेरे 2 दोस्त साथ ही कौंप्लैक्स में अलगअलग अपार्टमैंट में रहते थे. मैं ने सिक्युरिटी औफिस में रसोई वाली की अपनी जरूरत बता दी. अगले दिन सुबहसुबह रसोई वाली हाजिर हो गई. छुट्टी का दिन था. मैं न्यूज पेपर में उलझा था.

मैं ने रसोई वाली को गौर से देखा. दुबलीपतली, सांवली, बड़ीबड़ी आंखें, कुल मिला कर सुंदर थी. सिकुड़ीमुड़ी लेकिन साफसुथरी सलवारकमीज में थी.

‘‘कुकिंग कर लेती हो ’’ मैं ने अटपटा प्रश्न पूछ लिया. मैं रसोई वाली के इंटरव्यू के लिए तैयार नहीं था.

‘‘मुझे कुकिंग नहीं आती तो ऐसे ही 2 फ्लैटों में रसोई करती ’’ सांवली सपाट स्वर में बोली.

‘‘आलू के परांठे बना लेती हो ’’ नाश्ते में आलू के परांठे, मक्खन, दही और कसे कच्चे आम की मसालेदार चटनी मैं चटखारे ले कर खाता था.

‘‘नाश्ते में 6 भरवां परांठे या 12 पूरीभाजी, लंच के लिए 10 रोटियां, पसंद की 1 भाजी. रात के खाने में 6 रोटियां, थोड़े चावल, सूखी भाजी और रसदार सब्जी. इतवार को राइस चिकन, सलाद, चिकन करेगी तो बच्चों के लिए थोड़ा ले जाएगी. नाश्ते का 500, लंच का 1000, डिनर का

1000 लेगी. महीने में 2 दिन छुट्टी करेगी. मंजूर हो तो बोलने का नहीं तो जाएगी,’’ सांवली ने एक ही सांस में अपनी बात पूरी की और फिर लिफ्ट के पास खड़ी हो गई. ‘‘सारी शर्तें मंजूर हैं…पहली तारीख से आ सकती हो ’’ मुझे तुनकमिजाज सांवली पसंद  आई. तपे सोने की तरह खरी लगी.

मैं ने सुहाना को पूरी रिपोर्ट दी. बयान करने में मजा आया.

‘‘सुंदर है  क्या नाम बताया ’’ सुहाना ने पूछा.

‘‘फोटोजेनिक है…तुम्हारी तरह गोरी और चिकनी नहीं है. नाम तो पूछा ही नहीं,’’ मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ.

‘‘सांवली पर जनाब फिदा हो गए… घरवाली से जी भर गया… रसोई वाली अब सुप्रिया बनेगी,’’ सुहाना ने मुझे छेड़ा.

‘‘कुकिंग नहीं सीखने का खमियाजा तो भुगतना पड़गा,’’ मैं ने माकूल जवाब दिया.

‘‘पूरी निगरानी रहेगी…रिटायर्ड कर्नल की बेटी हूं…फटाफट कुकिंग सीख कर सांवली का कोर्टमार्शल कर दूंगी,’’ सुहाना अब छुईमुई, गूंगी गुडि़या से बातूनी घरवाली बन चुकी थी.

अब और इंतजार संभव नहीं था. महीने के आखिरी दिन सुहाना कोलकाता पहुंच रही थी. मैं ने पूरे हफ्ते की छुट्टी ले रखी थी. एअरपोर्ट से वापसी में हम ने मिल कर खरीदारी की. किचन के लिए पूरी व्यवस्था की. सुहाना ने अपने लिए भी शौपिंग की. डिनर रैस्टोरैंट में लिया. दोनों ने मिल कर किचन के सामान को यथास्थान रखा.

सुबह 6.30 बजे सांवली आ गई. सुहाना से मिली. थोड़ी देर की बातचीत के बाद वह नाश्ता तैयार करने में जुट गई. घंटे भर में नाश्ता डाइनिंगटेबल पर सजा कर निकल गई.

नाश्ते के लिए हम साथसाथ बैठे. सांवली ने आलू के 6 करारे परांठे बनाए थे. लौकी की सादी भाजी थी. मक्खन, मिक्स्ड अचार का जार, गरम चाय सब कुछ करीने से रख गई थी.

‘‘परांठे अच्छे हैं, लेकिन 3 परांठों से जीभ को बहलाने में मुश्किल होगी.’’

‘‘लौकी की सादी भाजी भी अच्छी बनी है,’’ सुहाना ने भी सांवली की तारीफ की.

‘‘मेरे लिए बस 2 परांठे,’’ सुहाना ने अपने हिस्से का 1 परांठा मेरी प्लेट में डाल दिया. गरमगरम आलू के परांठे और उन पर मक्खन का लेप. नाश्ते में मजा आ रहा था. हम उस के काम से संतुष्ट थे. हम दोनों ने सांवली को अच्छी कुक मान लिया.

सांवली किचन की ड्यूटी बखूबी निभा रही थी. नौनवैज में चिकन राइस, चिकन बिरयानी अच्छी बना लेती थी. बेहद फुरतीली थी. समय का पूरा उपयोग करती थी. सलीके से रहती भी थी. नैननक्श तीखे थे. चेहरे में चमक और खिंचाव था. सचमुच अच्छी दिखती थी.

सुहाना खूब सजसंवर रही थी. उस का रंग निखर रहा था. देह मक्खन सी चिकनी थी. अकसर पार्लर जाती थी. महंगी ड्रैस पहनती थी. विदेशी परफ्यूम इस्तेमाल करती थी. मैं मंत्रमुग्ध हो उसे निहारता था. देह की सुंगध में भावविभोर हो जाता था. औफिस जाने से कतराता था. सुहाना जबरदस्ती भेजती थी. बहाना बना कर समय से पहले छुट्टी करने पर नाराज होती थी. पास नहीं आने देती थी.

सुहाना सांवली को भी समय देती थी. रसोई के गुर सीखती थी. सांवली छुट्टी करती तो नाश्ता बना लेती थी. करारे आलू के परांठों के साथ कच्चे आम की मसालेदार चटनी भी बना लेती थी. सुहाना ने सचमुच भरपूर निगरानी रखी थी. तरीका अलग था. उस ने दूल्हे मियां का ध्यान पूरी तरह से अपनी ओर खींच रखा था. मुझे बांध रखा था. वह घरवाली थी, सुंदरी थी, सुप्रिया थी, सपनों की रानी थी, आकाश से उतरी परी थी, स्वर्गलोक की अप्सरा थी. रसोई वाली सांवली अच्छी थी. उस में आकर्षण था, लेकिन सुहाना ने एमएनसी में कार्यरत सीनियर ऐग्जिक्यूटिव को पागल, दीवाना, मजनू, रांझा, रोमियो सब कुछ बना रखा था. रिटायर्ड कर्नल की बेटी यानी मेरी धर्मपत्नी यानी घरवाली ने रसोई वाली का कोर्टमार्शल कर दिया था.

‘‘ठीकठीक कुक बन गई हो, लेकिन रसोई वाली की छुट्टी नहीं होगी.’’

‘‘रसोई वाली अच्छी लगती है ’’

‘‘नहीं, रसोई में सांवली हो जाओगी. गरमी में पसीने से चिपकूचिपकू हो जाओगी.’’

‘‘रसोई में एसी लगा देना.’’

‘‘देह में मसाले की गंध समा जाएगी.’’

‘‘इत्र लगा देना.’’

यह कानाफूसी हमारी प्राइवेट बातें हैं. औफ द रिकौर्ड… नो नारेबाजी नो डिमौंस्ट्रेशन ऐंड नो रिमूवल डिमांड प्लीज.

समुद्र की अनोखी मछलियां

समुद्र करोड़ों विचित्र जीवजंतुओं का घर है. इन में मछली की कई प्रजातियों में से आधी से ज्यादा के बारे में तो मनुष्य को पता ही नहीं है. आज भी विज्ञान इतना सक्षम नहीं कि वह समुद्र तल पर रहने वाले प्राणियों का अध्ययन कर के उन के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी जुटा सके. यही वजह है कि बहुत धीमी गति से मछली अथवा अन्य समुद्री प्राणियों की नई प्रजातियों के बारे में मनुष्य जान पा रहा है. जानिए, अब तक ज्ञात कुछ ऐसी मछलियों के बारे में जो अपनी विशेष आकृतियों अथवा आदतों के कारण समुद्र की अनोखी मछलियां बन बैठी हैं.

सीलोकेंथ

इस मछली को विज्ञान जगत में जीवित जीवाश्म (फासिल) के नाम से पहचाना जाता है. इस की वजह यह है कि इस मछली का आकारप्रकार आज से 7 करोड़ वर्ष पहले समुद्रतल पर पाई जाने वाली एक मछली से काफी मिलताजुलता है. 1938 से पूर्व इस मछली को लुप्त समुद्री जीव घोषित किया जा चुका था, लेकिन 1938 में दक्षिण अफ्रीका के कुछ मछुआरों ने अन्य मछलियों के साथ इन्हें भी पकड़ा. अपनी विशेष आकृति के कारण यह मछुआरों के लिए हैरान करने वाली बात थी. जब इन मछलियों को प्राणी विशेषज्ञों को दिखाया गया, तो इन की पहचान सीलोकेंथ मछली के रूप में की गई. नीले रंग की सीलोकेंथ के शरीर पर कहींकहीं सफेद रंग भी पाया जाता है. इस के फिंज मांसल, पूंछ अजीब सी तथा शरीर भारी शल्कों से ढका होता है. इसे विकास के आरंभिक दौर में पाई जाने वाली मछलियों का प्रतीक माना जाता है.

वैल्श

वैल्श बड़ी नदियों के ठहरे पानी में पाई जाने वाली मछली है. यह अधिकतर पूर्वी तथा पश्चिमी यूरोप में पाई जाती है. वैल्श 5 मीटर लंबी, 300 किलोग्राम वजनी, शल्करहित, लंबी मूंछों वाली तथा दिखने में भद्दी मछली है. वैसे तो यह समुद्र में पाए जाने वाले अपने से छोटे प्राणियों का शिकार करती है लेकिन मौका मिलने पर यह मनुष्य के बच्चों को भी खा जाती है.

स्टोनफिश

हिंद महासागर तथा पश्चिमी प्रशांत महासागर के उथले पानी में पाई जाने वाली जहरीली मछली है और ‘स्पाइडर फिश’ के परिवार की सदस्य है. खतरा महसूस होने पर यह अपने शरीर को कठोर कर शरीर के कांटों को खड़ा कर लेती है. इस के कांटे विषग्रंथियों से जुड़े होते हैं. जैसे ही कोई प्राणी इन कांटों के संपर्क में आता है, स्टोनफिश इन कांटों के जरिए उस प्राणी के शरीर में जहर छोड़ देती है जो तुरंत फैल जाता है. इस का शिकार असहनीय दर्द महसूस करता है तथा हार्ट अटैक के साथ उस की मृत्यु हो जाती है. मनुष्य अगर इस के जहर से बच भी जाए तब भी प्रभावित अंग स्थायी रूप से बेकार हो जाता है.

कटल फिश

कटल फिश दुनिया की एक ऐसी अनोखी मछली है, जिस के एकदो नहीं, पूरे 3 दिल होते हैं. इस के 2 दिल गिलों के पास होते हैं, जो अशुद्ध खून को गिलों तक पहुंचाते हैं. यह खून शुद्ध हो कर तीसरे दिल के जरिए सारे शरीर में पहुंचता है.

कटल फिश के खून में हीमोसाइनिस नामक पदार्थ पाया जाता है. कटल फिश अपने शत्रु से बचने के लिए उस पर अपने शरीर के पिछले भाग में स्थित ग्रंथि से एक काला पदार्थ छिड़कती है. यह काला पदार्थ पानी में फैल जाता है जिस की आड़ में यह तुरंत वहां से भाग जाती है. कटल फिश प्राणी जगत के सिफेलोपोड़ा वर्ग की उथले पानी की मछली है. कत्थई रंग की इस मछली का शरीर थैलेनुमा संरचना से घिरा होता है, जिसे ‘मेंटल’ कहते हैं. इस के सिर के एक सिरे से पतलेपतले टैंटेकल्स निकले होते हैं, जो 8 भुजाओं का काम करते हैं. कटल फिश इन्हीं टैंटेकल्स की सहायता से अपने शिकार को पकड़ती है. मेंटल के दूसरी ओर पाए जाने वाले फिन तैरने में सहायता करते हैं.

चिचलिड्स

मूल रूप से अफ्रीकन प्रजाति की यह मछली एक्वेरियम में पाली जाने वाली मछलियों में सब से बुद्धिमान मछली मानी जाती है. चिचलिड्स की लगभग 1 हजार प्रजातियां पाई जाती हैं. यह आकार में 7.5 सेंटीमीटर से कुछ अधिक लंबी होती है. यह अन्य मछलियों द्वारा किए गए अतिक्रमण को सहन नहीं करती तथा उत्तेजित होने पर एक्वेरियम के निचले हिस्से को तोड़ देती है अथवा आसपास उगे पौधों को जड़सहित उखाड़ डालती है. बनेबनाए भोजन के बजाय इसे ताजे मांस के छोटेछोटे टुकड़े खाना ज्यादा पसंद है. चिचलिड्स अपने अंडों को अपने मुंह में रखती है. अंडों से बाहर आने पर बच्चे मां के आसपास ही रहते हैं तथा खतरा महसूस होने पर मां के मुंह में जा कर छिप जाते हैं.

पर्च

इसे आरोही मछली के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसे पहली बार एक खजूर के पेड़ पर पाया गया था. पर्च समूचे भारतीय प्रायद्वीप में पाई जाने वाली ताजे पानी की मछली है. पर्च की सब से बड़ी विशेषता यह है कि यह हमेशा एक बेहतर घर की खोज में लगी रहती है.

अन्य मछलियों की तुलना में पर्च के शरीर में एक विशेष अंत: अंग होता है जिस की सहायता से यह पानी के बाहर भी सांस ले सकती है, हालांकि इस के गलफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते, जिस कारण इसे सांस लेने के लिए बारबार पानी की सतह पर आना ही पड़ता है. पानी के दूषित अथवा स्थिर हो जाने पर यह नए घर की तलाश में पानी से बाहर आ जाती है. पानी के बाहर यह लगभग 12 घंटे या जब तक कि इस के गलफड़े सूख न जाएं, जीवित रह सकती है. पर्च में कांटों की अधिकता होने के कारण पक्षी इसे खाना पसंद नहीं करते, अत: पानी से बाहर यह बिना डरे अपने जीने के लिए संघर्ष कर सकती है.

आर्चर फिश

यह मछली दक्षिणपूर्व एशिया में पाई जाती है. जलधाराओं के पास स्थित किसी पेड़पौधे पर आर्चरफिश जब किसी कीटपतंगे अथवा उन के लार्वा को देखती है तो यह उस पर निशाना साध बड़े वेग के साथ जल की धारा फेंकती है, जिस से शिकार पानी में गिर कर अचेत हो जाता है. मौके का फायदा उठा कर आर्चर फिश उसे निगल जाती है. आर्चर फिश के ऊपरी जबड़े में एक संकरी गुफा होती है, जिसे यह जीभ की सहायता से एक पतली ट्यूब जैसा बना लेती है. फिर ‘गिल फ्लैप्स’ की सहायता से इस नली द्वारा जल की धारा तीव्र वेग से शिकार पर फेंकी जाती है. किसी कुशल निशानेबाज की तरह आर्चर फिश का निशाना कभी नहीं चूकता.

एनाब्लेपीड

4 आंखों वाली एनाब्लेपीड नामक इस मछली की प्रत्येक आंख 2 भागों में विभाजित होती है. इसीलिए इसे 4 आंखों वाली मछली कहा जाता है यह मछली पानी की सतह के पास रहती है और इस की आंखों का विभाजक भाग जल के स्तर के समरूप होता है. इस से आंख का ऊपर वाला हिस्सा बाहर तथा नीचे वाला हिस्सा पानी के भीतर आसानी से देख सकता है. मध्य अमेरिका में पाई जाने वाली यह अद्भुत मछली आकार में लगभग 20 सेंटीमीटर लंबी होती है. खतरा महसूस होने पर पानी में बच कर भागने का कोई रास्ता न पा कर एनाब्लेपीड पानी के बाहर छलांग लगा देती है. इस के बच्चे पैदा होते ही स्वतंत्र रूप से तैरना शुरू कर देते हैं.

पोरक्यूपाइन (साही मछली)

पोरक्यूपाइन फिश प्रशांत, हिंद तथा अटलांटिक महासागरों के ऊष्णकटिबंधीय इलाकों में पाई जाती है. यह मछली रेतीले इलाकों के छिछले पानी को अपना घर बनाती है. खतरा महसूस होने पर यह अपने शरीर को फुला लेती है, जिस से इस के शरीर के कांटे भी उभर आते हैं. साही मछली का मुंह चोंच की तरह होता है जिस कारण यह मछली समुद्री घोंघों, केकड़ों आदि को आसानी से खा सकती है. समुद्री मछुआरे इसे सुखा कर मुंहमांगे दामों पर बेचते हैं.

लेंसलेट

दक्षिणी चीन में पाई जाने वाली यह मछली आकार में महज 5 से 8 सेंटीमीटर लंबी होती है. यह चीन में अमोच के बालू तटों के किनारे पाई जाती है. रेतीले किनारों पर यह ज्यादा समय व्यतीत करती है, इस का भोजन औरगैनिक के हिस्से तथा छोटे प्लवक हैं जो सांस के साथ इस के मुंह में जाते हैं. लेंसलेट का शरीर दबा हुआ सा होता है तथा इस के प्रत्येक किनारे पर निशान बने होते हैं. लेंसलेट की विशेषता यह है कि न तो इस के खोपड़ी होती है और न ही दिल. यह प्राचीन मेरुदंडीय मछलियों का प्रतीक है.

महिला सशक्तीकरण कानून

महिलाओं को सुरक्षा देने वाले दहेज, विरासत और प्रताड़ना के कानून अब महिलाओं के लिए ही घातक होने लगे हैं. फर्क यह है कि पहले बहुएं सताई जाती थीं, अब बहुओं के हाथों सासें, भाभियां, ननदें, पति की दादियां सताई जाने लगी हैं. दहेज हत्या के आरोपों में सैकड़ों वृद्ध, अशक्त बीमार महिलाएं देश की जेलों में आंसू बहा कर अंतिम दिन काट रहे हैं और हमारा निर्मम कानून अपनी पीठ थपथपा रहा है कि महिलाओं को न्याय मिल रहा है.

यह ठीक है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी रही है जिस में सासबहू की तनातनी पहले दिन से चालू हो जाती है और घर की रसोई व ड्राइंगरूम एक अनवरत रणक्षेत्र बन जाता है. पति को आखिरकार पत्नी का साथ देना पड़ता है पर फिर भी, लाखों मामलों में पति व उस के संबंधी कानून की काली मशीन में पिसने को मजबूर हो जाते हैं. दिल्ली के एक मामले में, विवाह 1983 में हुआ. 2 बच्चों के बाद 1984 में तलाक हो गया. 2001 तक पति अपनी मां के साथ रहा और तलाकशुदा पत्नी अलग रही. 2003 में जब पति की मृत्यु हो गई तो उस की तलाकशुदा पत्नी ने सासू मां के घर पर कब्जा कर लिया. वह बच्चों के साथ आ धमकी कि उन का कभी तलाक हुआ ही नहीं, पति की वारिस होने के कारण वह ही मकान की मालकिन है. उस ने बूढ़ी, 70 वर्षीया सासू मां को घर से निकालने की कोशिश की तो बुढ़ापे में उस औरत ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. मामला खत्म तो नहीं हुआ पर अदालत ने संयम से कानून की व्याख्या करते हुए वृद्धा को न निकालने का आदेश ही नहीं दिया, बल्कि बेटे की तलाकशुदा पत्नी को घर खाली करने को भी कहा.

कानून ने न्याय तो किया पर यह न्याय पाना आसान नहीं है. उस का व्यावहारिक पक्ष यह है कि अपने लिए सुखद निर्णय लेने के लिए भी उस वृद्धा को वकीलों और अदालतों के बीसियों चक्कर लगाने पड़े होंगे. वकीलों पर लाखों रुपए खर्च हुए होंगे. जो राहत मिली है उस में पूर्व बहू को 6 माह की मोहलत मिली है. इस दौरान न जाने कितनी अपीलें हो जाएंगी और न जाने कितने ताने सुनने पड़ेंगे. वृद्धों की सुरक्षा का उन कानूनों में कोई खयाल नहीं रखा गया जिन में बहुओं को बचाने की कोशिश की गई थी. उन कानूनों ने असल में देश की सारी सासों को स्वत: अपराधी घोषित कर दिया है और बहू की हर शिकायत पर सास को सफाई देनी पड़ती है. सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि 25-30 साल से अपनी मरजी से घर चला रही औरत को पहले ही दिन से एक दुश्मन को बाजेगाजे के साथ घर में लाने पर मजबूर होना पड़ रहा है. उस की हर बात गलत है, बहू ही सदा सही है. अदालतों ने हाल में सासों के पक्ष में फैसले देने शुरू किए हैं पर कानूनों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. इस का मतलब है कि सास के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू करना आज भी आसान है.

संसद को इन महिला सशक्तीकरण कानूनों में संशोधन करना चाहिए और सास, ससुर, भाभी, ननद को पतिपत्नी विवाद में पार्टी न बना सकने का आदेश पारित करना चाहिए. विवाह और विवाह बाद विवाद पतिपत्नी का मामला है. वे खुश हैं तो अच्छा है पर खुश न हों तो सास आदि किसी भी तरह न घसीटी जाएं, यह संशोधन किया जाना आज बहुत ही आवश्यक हो गया है.

ये है दुनिया का पहला साइकोलौजिकल थीम पार्क

लंदन में इसी साल दुनिया का पहला साइकोलौजिकल थीम पार्क खुलने जा रहा है, जिसे देख कर दुनिया चकित रह जाएगी, क्योंकि इसे पुराने बने थीम पार्क से अलग डिजाइन किया गया है. दुनिया का पहला ऐसा थीम पार्क थोर्प पार्क रिजौर्ट में खुलेगा, जिसे 1 हजार से भी अधिक विशेषज्ञों की मदद ले कर डैरन ब्राउन ने तैयार करवाया है. यह पार्क 2,306 वर्ग मीटर में फैला है. इस पार्क में दुनिया के बेहतरीन झूले लगाए गए हैं, जिन्हें देख कर न केवल लोग हैरान रह जाएंगे बल्कि ऐडवैंचर का भरपूर मजा भी ले पाएंगे. इस पूरे पार्क को घूमने में सिर्फ 13 मिनट का ही समय लगेगा. तो आप भी तैयार रहिए अनोखे थीम पार्क का मजा लेने के लिए.

अज़हर ने इमरान से शेयर की अपनी बेहद निजी तस्वीरें

इमरान हाशमी इन दिनों पूर्व क्रिकेटर अज़हरुद्दीन के नक्शे कदम पर चल रहे हैं. इमरान, अज़हरुद्दीन  के  जीवन  पर  आधारित  फिल्म  अज़हर में अज़हरुद्दीन की भूमिका में नज़र आएंगे और फिल्म की शूटिंग के दौरान इन लोगो के  बीच बहुत ही घनिष्ट मित्रता हो गयी है.

इन दोनों हस्तियों का मुंबई और हैदराबाद में एक दूसरे के घर पर लगातार आना जाना तो  होता ही रहता है, इसके अलावा लंदन में फिल्म  की शूटिंग के दौरान  भी  अज़हरुद्दीन  वहा पहुंचे और फिल्म के महवपूर्ण दृश्यों पर निगरानी रखी और इतना ही नहीं उन्होंने इमरान की बहुत मदद भी की.

अज़हरुद्दीन की जीवनी के बारे में तो सब जानते ही हैं, पर बहुत काम ही लोग जानते हैं, की इमरान ने अज़हरुद्दीन से उन तस्वीरों को देखने का अनुरोध किया जिसके बारे में कोई वाकिफ नहीं है, और जो उनके जीवन के यादगार पलो में से हो,  जो फिल्म में भी दिखाया जायेगा.

सूत्रों का मानना है की अज़हर ने अपनी किशोरावस्था की इमेजे शेयर की, उन्होंने लॉकर रूम में उनकी  टीम और उनके परिवार  और उनके दादा जी साथ बिताये हुए खूबसूरत लम्हों की फोटो भी शेयर की. "

 

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