Download App

चुनौती के लिए तैयार है बंगाल क्रिकेट संघ: गांगुली

बंगाल क्रिकेट संघ (CAB) के अध्यक्ष सौरभ गांगुली ने टी-20 विश्व कप के भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले मैच को धर्मशाला से कोलकाता स्थानांतरित किए जाने पर खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि वह चुनौती के लिए तैयार हैं. उन्होंने हालांकि कहा है कि टिकटों को लेकर थोड़ी समस्या रहेगी. अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेव रिचर्डसन ने मैच को सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए धर्मशाला से कोलकाता स्थानांनतरित करने की घोषणा की थी.

गांगुली ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, "हम हर चुनौती के लिए तैयार हैं. इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है. हमने हाल ही में मैच का आयोजन किया है. मैदान तैयार है, स्टेडियम भी तैयार है. यह उसी तरह है कि एक और टीम आएगी और मैच खेलेगी. सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे."

उन्होंने कहा, "हम फैसले से खुश हैं. टिकटों का मुद्दा समस्या है. मैच की तैयारी समस्या नहीं है. हम हर मैच के लिए तैयार हैं. टिकटों की कीमत फाइनल मैच के टिकटों के समान ही रहेगी. 12 मार्च को हमारे पास टिकट आ जाएंगे. 2 दिन का समय टिकटों पर स्टांप लगाने में लगेगा. हमारे पास उसके बाद तीन दिन होंगे टिकट बेचने के लिए."

गांगुली ने हिमाचल प्रदेश के लोगों के साथ संवेदना जताई है. उन्होंने कहा, "मुझे हिमाचल प्रदेश के लिए बुरा लग रहा है. अनुराग ठाकुर और हिमाचल प्रदेश के लोगों के साथ मेरी संवेदनाएं हैं. जो कुछ भी हुआ उसमें राज्य के लोगों का कोई दोष नहीं था. धर्मशाला का स्टेडियम काफी शानदार है और वह मैच का आयोजन कर सकते थे."

गांगुली ने कहा, "साथ ही हम खुश हैं कि हम इस मैच की मेजबानी करेंगे. यह काफी पहले से चल रहा था. हमने BCCI से कहा था कि हमारे पास शानदार स्टेडियम है. हम भारत का मैच कराना चाहते हैं. हर मैदान पर भारत का मैच था लेकिन हमारे पास नहीं."

भारत के पूर्व कप्तान ने कहा, "हमने BCCI से कहा था, और हम इसके लिए उसका शुक्रिया अदा करते हैं कि मैच ऐतिहासिक ईडन गरडस स्टेडियम पर खेला जाएगा." हालांकि सबसे बड़ी समस्या टिकटों की है.

गांगुली ने कहा कि यह मैच सीएबी के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को समर्पित होगा. वह जब बीसीसीआई के अध्यक्ष थे तभी उन्होंने हमें फाइनल मैच की मेजबानी सौंपी थी. गांगुली ने कहा कि संघ हर तरह की चुनौती के लिए तैयार है. गांगुली ने भारत-पाक के बीच होने वाले मैच को विश्व कप का सबसे बड़ा मैच बताने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, "विश्व कप फाइनल सबसे बड़ा मैच होगा."

धोनी भारत के अब तक के सर्वश्रेष्ठ कप्तान: रवि शास्त्री

भारतीय क्रिकेट टीम के निदेशक रवि शास्त्री ने महेन्द्र सिंह धोनी को भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ कप्तान बताया है. धोनी की कप्तानी में ही भारत ने हाल ही में एशिया कप पर कब्जा जमाया है और पिछले कई सालों से विश्व क्रिकेट में नया मुकाम हासिल किया है. उन्हीं की कप्तानी में भारत ने 2007 में पहला टी-20 विश्व कप और 2011 में 50 ओवरों का विश्व कप खिताब जीता था.

शास्त्री ने कहा, "मैंने यह बात काफी पहले कह दी थी कि धोनी भारत के अब तक के सर्वश्रेष्ठ कप्तान हैं. मेरी बात मानिए, ऐसे सिर्फ दो-तीन लोग ही होंगे जो चाहते हैं कि वह संन्यास लें." भारत को हाल ही में जो सफलता मिली है, उसका एक प्रमुख कारण रोहित शर्मा और विराट कोहली का लगातार अच्छा प्रदर्शन है. कोहली ने बांग्लादेश में हुए एशिया कप की जीत में अहम भूमिका निभाई थी.

रवि शास्त्री ने कहा, "हर तरह से उनका (कोहली का) जुनून दिखता है. आप उनकी शारीरिक भंगिमा देख सकते हैं. वह बड़े मौकों पर खेलना पसंद करते हैं. वह विश्व में सर्वश्रेष्ठ के खिलाफ खेलना चाहते हैं. पाकिस्तान के खिलाफ मैच में मोहम्मद आमिर के खिलाफ उन्होंने जिस अंदाज में बल्लेबाजी की थी, वह विश्व स्तर की पारी थी. जब विराट मैदान पर जाते हैं तो वह बड़ा स्कोर करना चाहते हैं."

शास्त्री ने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि टीम सिर्फ एक खिलाड़ी से नहीं बनती. टी-20 विश्व कप में टीम के सात-आठ खिलाड़ियों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा. उन्होंने कहा, "हमारी टीम किसी एक पर निर्भर नहीं है. हम भारत की क्रिकेट टीम हैं. विराट काफी शानदार फॉर्म में हैं. धोनी ने निचले क्रम में अच्छी भूमिका निभाई है. युवराज ने फॉर्म में वापसी की है. शिखर धवन ने भी अच्छी बल्लेबाजी की है. बड़े टूर्नामेंट में एक खिलाड़ी नहीं जिताता बल्कि सात-आठ खिलाड़ियों को लगातार अच्छा प्रदर्शन करना होता है."

भारतीय टीम की गेंदबाजी में पहले से काफी सुधार हुआ है. शास्त्री ने इसका श्रेय टीम के गेंदबाजी कोच भरत अरुण को दिया है. उन्होंने कहा, "भरत ने गेंदबाजी में सुधार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पहले हमारी गेंदबाजी में समस्या का कारण गेंदबाजों का चोटिल होना था. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ श्रृंखला में अश्विन चोटिल हो गए थे. शमी! वह तो विश्व कप के बाद से ही हमारे साथ नहीं हैं."

उन्होंने कहा, "हमारे खिलाड़ियों को चोटें थीं. इसी कारण से हमें अपनी बेंच स्ट्रेंथ मजूबत करने के लिए नए खिलाड़ियों को लाना पड़ा. मुझे खुशी है कि आशीष नेहरा और जसप्रीत बुमराह ने मौके का फायदा उठाया. हार्दिक पांड्या ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है. इसके लिए हमें भरत को श्रेय देना होगा. उन्होंने जो खिलाड़ियों को बताया, उसका परिणाम हमारे सामने है. यह अच्छा है कि गेंदबाज इस समय अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं."

 

 

अपनी समस्याओं के साथ खुश है भारत का किसान

आजादी के बाद से देश में केंद्र की जितनी भी सरकारें बनीं किसानों की खबर किसी ने नहीं ली. किसान परिवार चलाने वाला मुखिया होता है. वह देश की अर्थव्यवस्था में मददगार होता है. किसान ही जमीन को सुंदर बनाता है. पर क्यों यह किसान सब से परेशान होता है. देश में किसानों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगातार कई मुहिमें चलाई जाती हैं, लेकिन कुछ राजनीति की भेंट चढ़ जाती हैं और कुछ नौकरशाह चट कर जाते हैं.

हर साल देश के अलगअलग हिस्सों में सूखे की नौबत आती है, वहीं बाढ़ की तबाही भी जगहजगह पर देखी जा सकती है. किसानों के इस दर्द को बांटने वाला कौन है?

ऐसा नहीं है कि सरकारी योजनाएं नहीं बनतीं, बाकायदा सर्वे किए जाते हैं और पीडि़त किसानों के लिए मुआवजे के ऐलान भी किए जाते हैं. लेकिन क्या यह मुआवजा सही हाथों को मिलता है? यदि कोई किसान सर्वे के वक्त मौजूद नहीं होता तो उसे मुआवजा नहीं मिल पाता है. बाद में भले ही वह कितनी कोशिश करे पर कोई फायदा नहीं होता.

सरकारी कार्यक्रम वैसे भी आम जनता की पहुंच से दूर रहते हैं. आज किसानों के लिए बनाए जाने वाले कार्यक्रमों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी सरकार के द्वारा की जा रही है. महत्त्वपूर्ण किसान फसल बीमा योजना अभी खास चर्चा का विषय बनी हुई है.

यदि निजी क्षेत्रों के द्वारा इन योजनाओं में किसानहित की अनदेखी की गई तो कौन देखेगा इस विषय को?

वैसे भी आजादी के बाद से आज तक ऐसा कोई भी संगठन नहीं आया, जो किसानों की सुध ले. और न ही आज तक किसान अपना कोई मजबूत संगठन बना पाए हैं. यदि किसानों की कोई संस्था होती भी है, तो वह राजनीतिक ही होती है.

देश में सरकारी व गैरसरकारी कर्मचारियों व कामगारों की कई रजिस्टर्ड संस्थाएं और संगठन क्रियाशील हैं, जो अपनी मांगें पूरी मजबूती से रखते हैं और मनवाते भी हैं. लेकिन किसान 80 फीसदी गांवों के देश में असंगठित, बेबस व मजबूर हैं, मगर फिर भी अपनी दिक्कतों के साथ खुश हैं. यदि कुंठा से ग्रस्त कोई किसान कोई अनहोनी कर ले, तो देश की राजनीति में उबाल आ जाता है, पर दिक्कतें वैसी ही रहती हैं.

VIDEO: क्या आपने देखा भज्जी-विराट का ‘पंजाबी’ इंटरव्यू

टी20 वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले टीम इंडिया प्रमोशनल इवेंट में जुटी हुई है. इस दौरान हरभजन सिंह ने स्टार बल्लेबाज विराट कोहली का पंजाबी में इंटरव्यू लिया और इस इंटरव्यू को देखकर आप भी लोटपोट हो जाएंगे.

भज्जी ने पंजाबी में विराट से पूछा कि वर्ल्ड कप में टीम इंडिया का प्रदर्शन कैसा होगा और इसका जवाब विराट ने ठेठ पंजाबी में दिया. दोनों के बीच सवाल जवाब का राउंड काफी मजेदार रहा.

विराट ने बताया कि उनकी सिग्नेचर करने की ड्यूटी लगी है और 2000 से 3000 हजार पेपर पर उन्हें साइन करना है. आप भी देखिए यह मजेदार वीडियो क्लिप…

 

Just for laughs – The Punjabis are in the house Virat Kohli Harbhajan Singh #TeamIndia #WT20

Posted by Indian Cricket Team on Tuesday, 8 March 2016

गन्ना किसानों की बल्ले बल्ले

बिहार के गन्ना उत्पादकों की बल्ले बल्ले होने वाली है. राज्य सरकार ने गन्ने की कीमत में 5 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा किया है. अब उच्च क्वालिटी के गन्ने के लिए 270 रुपए प्रति क्विंटल और निम्न क्वालिटी के गन्ने के लिए 250 रुपए प्रति क्विंटल की दर से किसानों को भुगतान मिल सकेगा. गन्ना उद्योग मंत्री फिरोज अहमद ने बताया कि चीनीमिलों के प्रतिनिधियों से बात कर के गन्ने की नई कीमतें तय की गई हैं. इन्हें मंजूरी के लिए कैबिनेट के पास भेजा गया है. मंत्री ने बताया कि साल 2014-15 के लिए रीगा चीनीमिल 29 करोड़ रुपए और सासामूसास चीनीमिल 8 करोड़ रुपए का बकाया भुगतान फरवरी महीने में किसानों को करेंगी. बंद हो चुकी चीनीमिलों के कर्मचारियों को बकाया 2 करोड़, 24 लाख रुपए का भुगतान भी करा दिया जाएगा.

गौरतलब है कि सूबे में 6 लाख टन चीनी का उत्पादन होता है, जबकि खपत 9 से 10 लाख टन है. इस के अलावा उन्नत किस्म के गन्नाबीज को प्रोत्साहित करने के लिए 30 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई है. मुख्यमंत्री तीव्र बीज विकास योजना के तहत इस के लिए किसानों को अनुदान का लाभ भी मिलेगा. इस से जहां गन्ने की पैदावार बढ़ेगी, वहीं किसानों को भी ज्यादा मुनाफा हो सकेगा.

फिर स्वस्थ हुआ दुनिया का सब से बुजुर्ग कछुआ

185 साल की उम्र में दुनिया के सब से बुजुर्ग कछुआ, जिस का नाम जोनाथन है, को पौष्टिक आहार देने से नया जीवन मिला है. यह कछुआ अटलांटिक के सेंट हेलेना द्वीप पर रह रहा है. 1882 में जोनाथन नाम के इस कछुए को सेंट हेलेना के गवर्नर को किसी ने उन के जन्मदिन पर उपहारस्वरूप भेंट किया था, लेकिन किसी कारणवश वह इतने गंभीर रूप से बीमार हो गया कि उसे दिखना बंद हो गया और उस की सूंघने की शक्ति भी खो गई. यहां तक कि वह खाना खाने में भी असमर्थ था लेकिन डाक्टर जोए हौलिंस ने उसे ठीक करने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने उसे हाई कैलोरीज और पौष्टिकता से भरपूर आहार, जिस में सेब, गाजर, सलाद, अमरूद और केले शामिल थे दिया. इस से अब उस का वजन भी बढ़ा है और वह पहले से ज्यादा ऐक्टिव भी लग रहा है.

CISF ने बताए दिल्ली मेट्रो के 160 वीक प्वाइंट

दिल्ली मेट्रो में हर दिन औसतन २८ लाख से अधिक लोग सफ़र करते हैं. दिल्ली की व्यस्त सड़कों पर दिल्ली मेट्रो के कारण लोगों को सफ़र तय करने में काफी आसानी हो गयी है. हम यूं भी कह सकते हैं कि दिल्ली मेट्रो दिल्ली वालों की लाइफलाइन बन गयी है. लेकिन पिछले साल 2 अक्टूबर को 22 साल के शिवेश अधिकारी नाम के शख्स द्वारा राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर पिस्टल से खुद को गोली मारने की घटना के बाद दिल्ली मेट्रो की सिक्युरिटी पर सवाल उठने लगे.

इसी सवाल के मद्देनज़र सीआईएसएफ, जिसके पास दिल्ली मेट्रो और स्टेशनों की सिक्यूरिटी का पूरा जिम्मा है, ने मेट्रो स्टेशनों के 160 वीक प्वाइंट के बारे में बताया है, जहां से हथियार लेकर घुसने की संभावना हो सकती है. यात्रियों की सुरक्षा के लिए स्टील के क्यू बैरीकेड स्टैंड लगाये गये हैं, ताकि लोग लाइन में लगकर ही मेट्रो में दाखिल हों, यहां वहां से दाखिल न हों.

दिल्ली मेट्रो में सफ़र करने वाले यात्रियों की जानकारी के लिए बता दें कि 213 किलोमीटर के रूट पर, सुबह 6 बजे से रात 11.30 बजे तक चलने वाली  मेट्रो की सिक्युरिटी में सीआईएसएफ के 3500 जवान तैनात रहते हैं और 5200 से ज्यादा कैमरों से नजर रखी जाती है. सीआईएसएफ के जवान लगातार इन कैमरों के फुटेज पर नजर रखते हैं और किसी भी तरह की संदिग्ध स्थिति में तुरंत हरकत में आते हैं.

यात्रियों की सुरक्षा के लिए ट्रेनों और स्टेशनों – अंडरग्राउंड स्टेशन पर 45 से 50 कैमरा, जबकि एलिवेटेड मेट्रो स्टेशन पर 16 से 20 कैमरे लगाए गए हैं. इसके अलावा ट्रेनों में भी कैमरे लगाए गए हैं.

 

संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाता माध्यमिक शिक्षा मंडल

10वीं और 12वीं बोर्ड जैसी अहम परीक्षाएं आयोजित कराने वाले मध्य प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मण्डल ने 5 मार्च को बारहवीं के हिन्दी के पर्चे मे छात्रों से एक विषय पर निबंध लिखने को कहा, विषय बड़ा ही दिलचस्प और सामयिक था, जातिगत आरक्षण देश के लिए घातक. 8 मार्च आते आते इस नाजुक मसले पर राजनीति इतनी गरमा गई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को इस मामले पर जांच के आदेश देने पड़े.

विधानसभा मे विपक्ष ने जमकर हंगामा मचाते हुये आरोप यह लगाया कि सरकार आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है. कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन इस मुद्दे पर बेहद आक्रामक मूड मे दिखे जो इस विषय पर बहस की इजाजत चाहते थे, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर सीताशरण शर्मा ने अनुमति नहीं दी. राजनीतिक स्तर पर अब कुछ भी हो, लेकिन यह साफ तौर पर उजागर हो गया है कि शिक्षण संस्थाओं मे सवर्ण मानसिकता बाले कर्मचारियों का दबदबा है जो आरक्षण विरोधी हैं और भगवा खेमे के पक्ष में माहौल बनाने का कोई मौका नहीं चूकते, इन्हे बेहतर एहसास इस बात का है कि दरअसल में सरकार शिवराज सिंह नहीं संघ चला रहा है.

आरक्षित वर्ग के छात्रों की राय और मानसिकता टटोलने के लिए बोर्ड का इम्तहान एक बेहतर जरिया था, जिसके जरिये इस वर्ग के छात्रों को जलील भी किया गया. 12वीं के छात्रों का बौद्धिक स्तर इतना इतना विश्लेषक नहीं होता कि वे यह बता सकें कि जातिगत आरक्षण घातक नहीं, बल्कि 2 हजार सालों से ऊंची जाति बाले रसूखदारों की गालियां और जूतियां खा रहे नीची जाति वालों का संवैधानिक अधिकार और शोषण का मुआवजा है, जिसके चलते ही जेएनयू में कन्हैया जैसे छात्र पैदा होते हैं, क्योंकि वे बचपन से ही देख और भुगत रहे हैं कि कैसे उनके पूर्वजों को सवर्णों के घर के सामने से गुजरते वक्त पैरों से जूते निकालकर सर पर रखना पड़ते थे. यह अमानवीय और घृणित प्रथा आज भी गांव देहातों मे बरकरार है.

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में तो हालत यह है कि दलित वोट डालने भी नंगे पांव जाते हैं क्योंकि लाइन मे उनके आगे पीछे सवर्ण भी खड़े होते हैं. ऐसे में पूछा यह जाना बेहतर होता कि कैसे जातिगत आरक्षण ऊंची जाति वालों के लिए घातक है, जो आरक्षण के चलते आई जागरूकता से हैरान परेशान हैं. बहरहाल मुख्यमंत्री की घोषणा का एक मतलब यह भी है कि कम से कम परीक्षा में तो यह नहीं पूछा जाना चाहिए था. मूल्यांकन मे इस सवाल के नंबर न जोड़ने की बात भी शिवराज सिंह ने कही, जबकि होना यह चाहिए कि जिन छात्रों ने इस विषय पर निवन्ध लिखा, उन्हे सार्वजनिक किया जाए, जिससे पता चले कि नाजुक किशोर मन आरक्षण के बारे मे क्या सोचता है.

सरकार छात्रों की राय का बेजा इस्तेमाल नहीं करेगी इस बात की कोई गारंटी नहीं, क्यों न यह माना जाए कि यह एक तरह का सर्वेक्षण था, जिसका फायदा हिन्दुत्व के पेरोकर अपनी नीतियां बनाने में कर सकते हैं. इस विषय पर निबंध लिखने को कहा जाना इत्तफाक कम, साजिश की बात ज्यादा लगती है, क्योंकि मध्य प्रदेश के बाद ठीक यही विषय उत्तरी गुजरात के वी एस लॉ कालेज में भी निबंध लिखने दिया गया, जिस पर सांसद प्रवीण राष्ट्रपाल ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री को पत्र लिखते हुए कार्रवाई की मांग की.

बकौल प्रवीण यह विषय या सवाल ही असंवैधानिक है, इसलिए केंद्र सरकार इस कालेज के खिलाफ कानूनी कदम उठाए. पर शायद ही स्मृति ईरानी या शिवराज सिंह कुछ ठोस करें या इन हकीकतों से इत्तफाक रखें कि सरकारी स्कूलों में जातिवाद की हालत यह है कि ऊंची जाति बालों के बच्चे दलित शिक्षकों के हाथ का छुआ खाना लेने से पंडे पुजारियों की तरह मना कर देते हैं.  तमिलनाडु के कुछ स्कूलों मे तो दलित बच्चों के लिए ड्रेस कोड चलता है, जिससे उन्हे कपड़ो से ही पहचान कर उनसे दूर रहा जाता है. 

बेटी के इस पिता को सलाम

कोख में बेटी को मारने के लिए बदनाम हो रहे हरियाणा राज्य के जींद ज़िले में कुछ ऐसा हुआ कि हर बेटी के साथ साथ उस शख्स को भी फख्र महसूस होगा, जो बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं करता है. जींद के जैजैवंती गांव में एक आदमी संदीप ने अपने घर में बेटी पैदा होने पर 5 गांवों के लोगों को भोज कराया. इतना ही नहीं, संदीप ने इस समारोह को शानदार बनाने के लिए ढोल नगाड़ों के साथ जो धूमधड़ाके वाली रस्म की, वो अमूमन बेटे के पैदा होने पर पर ही निभाई जाती है.

हरियाणा में आज भी ऐसे गांव मिल जाएंगे जहां पूरा एक साल निकल जाने पर भी किसी भी घर में कोई बेटी नहीं पैदा होती है. इस सिलसिले में इस गांव की सरपंच सविता ने बताया कि उन्हें बहुत ख़ुशी है कि हमारा पूरा गांव बेटी पैदा होने की ख़ुशी मनाता हैं.

यह गांव लिंगानुपात में ज़िले में पहले नंबर पर रह कर एक लाख रुपए का इनाम भी जीत चुका हैं.

 

बौलीवुड से क्यों डरता है पाकिस्तान

2015 में रिलीज हुई कई भारतीय फिल्मों पर पाकिस्तान में प्रतिबंध लगाया गया. फिल्म ‘कलेंडर गर्ल’ पर रोक लगाई गई और फिल्म ‘फैंटम’ को सिनेमा हौल्स में दिखाने से इनकार किया गया. पाकिस्तान की इस पाबंदी की काफी चर्चा रही. चूंकि यह रोक पाकिस्तान सरकार की तरफ से लगाई गई, इसलिए सवाल पैदा हुआ कि क्या वहां के लोग भारतीय फिल्में और टीवी सीरियल्स पसंद करते हैं?

भारतीय फिल्मों के शौकीन हैं पाकिस्तानी

यह हैरानी की बात है कि पाकिस्तानी अपने देश में बनी फिल्मों और टीवी सीरियल्स से ज्यादा भारत में निर्मित हिंदी फिल्मों और टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों के शौकीन हैं. यह भी एक सच है कि आपसी रिश्ते सुधारने के लिए सरकारी स्तर पर भारतपाकिस्तान के बीच जिन चीजों का सहज आदानप्रदान पिछले अरसे में होना शुरू हुआ था, उन में एक हिस्सा बौलीवुड की फिल्मों का भी था, जिन के दर्शकों की एक बड़ी तादाद पाकिस्तान में मौजूद है. 1965 के भारतपाक युद्ध के बाद के 4 दशकों के दौरान जब तक इस पर पाकिस्तान की तरफ से पाबंदी थी, हिंदुस्तानी फिल्मों की पाइरेटेड सीडीडीवीडी वहां चोरीछिपे पहुंचती रही हैं. यही नहीं, जब भी मौका मिला, लाहौरइस्लामाबाद के सिनेमाघर मालिकों ने भी भारतीय फिल्मों की बदौलत खूब कमाई की. इस बीच परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में यह रोक हटा दी गई थी और वहां बौलीवुड की फिल्में पहुंचने लगी थीं, लेकिन अब यह सिलसिला एक बार फिर रुकता प्रतीत हो रहा है.

दरअसल, 2013 में पाकिस्तान के सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन को इस दलील के साथ अनापत्ति प्रमाणपत्र देना बंद कर दिया था कि इस संबंध में नए कानून व दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं, इसलिए फिलहाल भारतीय फिल्में पाकिस्तान में प्रदर्शित करना गैरकानूनी होगा. इस बीच ‘बजरंगी भाईजान’ जैसी कुछ फिल्मों को वहां के सिनेमाघरों में दिखाने की इजाजत भी दी गई, पर अन्य फिल्मों से प्रतिबंध नहीं हटा. जैसे 2015 में रिलीज फिल्म ‘कलेंडर गर्ल’ को वहां दिखाने से इसलिए रोक दिया गया कि पाकिस्तानी सैंसर बोर्ड को इस फिल्म के एक संवाद पर एतराज था, जिस में पाकिस्तानी लड़की नाजरीन मलिक का किरदार निभाने वाली अदाकारा अवनी मोदी कहती हैं कि पाकिस्तानी लड़कियां भी उतना ही बोल्ड काम करती हैं जितना बाकी लड़कियां करती हैं, बल्कि कभीकभी उस से ज्यादा भी. इसी तरह फिल्म ‘फैंटम’ में आतंकी हाफिज सईद जैसी भूमिका निभाने वाले पात्र के संवादों को आपत्तिजनक बता कर इस के प्रदर्शन पर रोक लगाई गई.

नुकसान पाक सिनेमा मालिकों का

पाकिस्तान के इस कदम से बौलीवुड को चाहे नुकसान हो या न हो लेकिन पाकिस्तान के सिनेमाघर मालिकों को करोड़ों की चपत लग रही है. इस की वजह है कि उन का असली कारोबार हिंदुस्तानी फिल्मों की बदौलत ही चलता है. वे भी नहीं चाहते कि इस रोक की वजह से मुंबइया फिल्मों के पाकिस्तान आने के चोर रास्ते खुलें यानी चोरीछिपे सीडीडीवीडी आने लगें और उन के सिनेमाघर कंगाली की हालत में पहुंच जाएं.

इधर, पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान में भी सिनेमा उद्योग द्वारा सिनेप्लैक्स आदि के निर्माण में भारी निवेश किया गया है और उन की ज्यादातर कमाई भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर टिकी है. ऐसी स्थिति में यदि भारतीय फिल्में वहां वैध तरीके से नहीं पहुंचतीं और दिखाई जाती हैं तो इस से पाकिस्तान के सिनेमा उद्योग को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि यह एक सचाई है कि पाकिस्तानी सिनेमाघरों का कारोबार लाख कोसने के बावजूद भारतीय हिंदी फिल्मों के भरोसे ही चलता रहा है. वहां के सिनेमाघर मालिक खुलेतौर पर स्वीकार करते रहे हैं कि अगर मुंबइया फिल्में न हों तो उन के सिनेमाघरों पर ताले पड़ जाएं.

पाकिस्तानी सिनेमाघरों में अकसर तभी रौनक रहती है, जब वहां कोई भारतीय फिल्म चल रही हो. ईद जैसे मौके पर भी पाकिस्तानी सिनेमाघरों को आमतौर पर कोई देसी फिल्म नहीं मिल पाती है और मजबूरी में वहां भारतीय फिल्में चलाई जाती हैं. जैसे कुछ साल पहले ईद के मौके पर ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’ की धूम थी, तो 2015 में ‘बजरंगी भाईजान’ छाई हुई थी. ईद पर जब कोई भारतीय फिल्म उन्हें नहीं मिल पाती है, तो उन्हें औसत दर्जे की फिल्मों से काम चलाना पड़ता है. जैसे 2012 में वहां के सिनेमाघरों को देसी फिल्म के नाम पर ‘शेर दिल’ से काम चलाना पड़ा था और 2011 में ईद के मौके पर पंजाबी फिल्में ‘शरीका’ और ‘गुज्जर दा खड़ाक’ दिखाई गई थीं.

अच्छी फिल्में न मिल पाने की हालत में चूंकि सिनेमाघर मालिकों को नुकसान होता है, इसलिए वे किसी तरह से नई भारतीय फिल्मों का जुगाड़ कर लेते हैं और उन्हें चलाते हैं. नई फिल्मों को तरसते पाकिस्तान के सिनेमाघर मालिकों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे हिंदुस्तानी फिल्म दिखा रहे हैं या पाकिस्तानी, क्योंकि वहां के दर्शक आसानी से हिंदी समझ लेते हैं. भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन के मामले में वहां के सिनेमाघर मालिक कहते हैं कि जिस तरह देश में अनाज की कमी होने पर उसे विदेशों से मंगाया जाता है, उसी तरह अच्छी पाकिस्तानी फिल्मों की भारी किल्लत उन्हें मुंबइया फिल्मों की तरफ मोड़ती है.

परवेज मुशर्रफ बनाम मुबशिर लुकमान

उल्लेखनीय है कि पिछली बार 2006 में परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर लगी रोक हटाई गई थी. हिंदी फिल्म ‘ताजमहल : द इंटरनल लव स्टोरी’ का वहां के सिनेमाघरों में प्रदर्शन शुरू किया गया था और कुछ पुरानी फिल्मों, ‘सोहनी महिवाल’ और ‘मुगले आजम’ के व्यावसायिक प्रदर्शन की इजाजत पाकिस्तान के सैंसर बोर्ड ने दी थी. यह सिलसिला बौलीवुड हिट ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’ तक बदस्तूर कायम रहा है. इस के फौरन बाद पाकिस्तान की अदालत और पाक सैंसर बोर्ड की ओर से दोबारा पाबंदियां लगा दी गईं. इस के पीछे भारतीय फिल्मों के विरोधी पाक फिल्म निर्माता मुबशिर लुकमान का हाथ बताया जाता है. मुबशिर लुकमान का तर्क है कि मुंबइया फिल्मों के प्रसारण की वजह से पाकिस्तान के फिल्म उद्योग को घाटा होता है. इस से वहां की फिल्म इंडस्ट्री आगे नहीं बढ़ पा रही है.

मुबशिर की याचिका पर नवंबर, 2013 में लाहौर हाईकोर्ट ने कार्यवाही करते हुए पूरे देश में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी थी. इस बारे में कहा गया था कि पाकिस्तान के सिनेमाघर मालिक अवैध दस्तावेजों के आधार पर देश में भारतीय फिल्में चला रहे हैं, लिहाजा, इस की इजाजत नहीं दी जा सकती. कुछ राजनीतिक हस्तियां भी पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन का विरोध यह कह कर करती रही हैं कि ये फिल्में वहां के सांस्कृतिक माहौल को बिगाड़ रही हैं. कुछ साल पहले पाकिस्तान के इलैक्ट्रौनिक मीडिया रैगुलेटर ने भी एक टीवी चैनल पर यह कहते हुए 1 करोड़ रुपए का जुर्माना ठोंका था कि वह चैनल भारतीय फिल्मों और सीरियल्स का हद से ज्यादा प्रसारण कर रहा था.

अदनान सामी और गुलाम अली

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारतीय फिल्में ही पाकिस्तान पहुंचती हैं, बल्कि पाकिस्तान के ऐक्टर भी बौलीवुड में आ कर अपना हुनर आजमाते और सफल होते रहे हैं. पाकिस्तानी गायक अदनान सामी से ले कर अभिनेता अली जफर तक ऐसे कई नाम हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं. पाकिस्तान के मशहूर गायक गुलाम अली को चाहने वाले भारत में भी हैं. गुलाम अली अकसर भारत आते रहते हैं पर पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों और कलाकारों के विरोध के कारण अब भारत में भी कुछ लोग उन का विरोध करने लगे हैं, जो ठीक नहीं है.

हालांकि पाकिस्तान की सरकार यह बात अच्छी तरह जानती है कि अगर बौलीवुड फिल्मों के वैध रास्ते बंद कर दिए जाते हैं, तो भी उन का वहां पहुंचना नहीं रुकेगा. तब इन फिल्मों की पाइरेटेड सीडीडीवीडी वहां चोरीछिपे पहुंचने लगती हैं और घरों, सिनेमाहौलों तक में दिखाई जाने लगती हैं. भारतपाकिस्तान की जनता के लिए एकदूसरे के टीवी प्रोग्रामों और फिल्मों को समझना मुश्किल नहीं है. नए मनोरंजन की तलाश में दोनों ओर का आम नागरिक एकदूसरे के टीवी कार्यक्रमों और फिल्मों का शौकीन रहा है. जिस दौर में भारत में ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ जैसे टीवी सीरियल चर्चित थे, उसी दौर में ये प्रोग्राम पाकिस्तान की महिलाओं के भी पसंदीदा थे. इसी तरह कुछ पाकिस्तानी हास्य टीवी सीरियल्स भी भारत में काफी चर्चित रहे हैं.

व्यावसायिक फायदे

अरबों रुपए का कारोबार करने वाली भारतीय फिल्मों को अपने पड़ोसी मुल्क में जब एक और दर्शक वर्ग मिल जाता है, तो इस का व्यावसायिक फायदा तो होता ही है. यही नहीं, तकनीक और शिल्प के मामले में हौलीवुड को टक्कर देती भारतीय फिल्मों से पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री भी काफी कुछ सीख और समझ रही है, लेकिन इस का सब से ज्यादा असर पाकिस्तान के सिनेमाघरों की कमाई पर पड़ता है. वहां के ज्यादातर सिनेमाघर मालिक मानते हैं कि उन की कमाई का अहम जरिया उन में दिखाई जाने वाली भारतीय फिल्में हैं जो भारी भीड़ खींचती हैं. यदि ये फिल्में न हों, तो उन के सामने फाका करने की नौबत आ जाए. अब तो पाकिस्तान में भी सिनेप्लैक्स बनने लगे हैं. उन में टिकट दरें भी ज्यादा होती हैं. ऐसे में यह और भी जरूरी हो गया है कि वहां हाउसफुल चलने वाली फिल्में दिखाई जाएं.

वार छोड़ न यार

जहां तक भारतीय फिल्मों पर अपसंस्कृति फैलाने और पाक विरोधी होने का सवाल है, तो इस बारे में कहा जा सकता है कि भारतीय फिल्मकार अब काफी परिपक्वता से पेश आते हैं. अपनी फिल्मों के ग्लोबल प्रसार के मद्देनजर वे यह सावधानी बरतने लगे हैं कि उन की फिल्मों की कहानी सीधे तौर पर किसी एक देश या धर्म के खिलाफ न हो. एक दौर था, जब पाकिस्तानी शासकों ने कुछ भारतीय फिल्मों, जैसे ‘गदर : एक प्रेमकथा’ और ‘सरफरोश’ आदि पर पाकिस्तान विरोधी होने का आरोप लगाया था, पर अब तो खुद भारतीय फिल्मकार, ‘वार छोड़ न यार’ जैसी कौमेडी फिल्में बना कर भारतपाक दोस्ती का ही पैगाम देने लगे हैं. इस के उलट पाकिस्तान में 2 साल पहले (2013 में) रिलीज फिल्म, ‘वार’ में भारत विरोधी माहौल दिखाया गया था. इस फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह एक भारतीय महिला जासूस पाकिस्तान में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करती है.

अब एकदूसरे को कठघरे में खड़े करने की दलीलें घिसीपिटी मानी जाने लगी हैं. एकदूसरे से नफरत की जमीन पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाली बिरादरी को छोड़ कर दोनों ओर ऐसे लोग अब कम ही बचे हैं, जो सिनेमा, कला, साहित्य में भारत या पाकिस्तान को नीचा दिखाने के बजाय अपनी अंदरूनी समस्याओं को नोटिस करने की बात कहते हैं.                    

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें