हमारा ब्रह्मांड रहस्यों से पूर्ण एवं विचित्रताओं से भरा हुआ है. इस का जितना अधिक अध्ययन किया जाए इस में उतनी ही अधिक विचित्रताएं एवं रहस्य मिलते जाएंगे. ब्रह्मांड का एक ऐसा ही महत्त्वपूर्ण रहस्य है, ‘डार्क मैटर’, जिसे पूरी तरह समझने में वैज्ञानिक अभी तक कामयाब नहीं हो पाए हैं. अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर है क्या सामान्य तौर पर ब्रह्मांड में जितनी चीजें हमें दिखाई देती हैं वे या तो स्वयं प्रकाश का उत्सर्जन करती हैं अथवा किसी अन्य स्रोत से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश को परावर्तित करती हैं. परंतु ब्रह्मांड में पाया जाने वाला डार्क मैटर एक ऐसा पदार्थ है जो न तो प्रकाश का उत्सर्जन करता है और न किसी अन्य स्रोत से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश को परावर्तित कर पाता है. इसी कारणवश इस पदार्थ को डार्क मैटर की संज्ञा दी गई है.
यदि डार्क मैटर न तो प्रकाश का उत्सर्जन करता है और न ही परावर्तन अर्थात यह दिखाई नहीं पड़ता है तो फिर इस की उपस्थिति का अनुमान किस प्रकार लगाया जाता है वस्तुत: खगोल वैज्ञानिकों द्वारा डार्क मैटर की उपस्थिति का अनुमान उस गुरुत्वाकर्षण बल के आधार पर लगाया गया जो उस के आसपास की वस्तुओं पर प्रभाव डालता है.
अब एक अन्य प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर की खोज कब तथा किस के द्वारा की गई डार्क मैटर के संबंध में अनुमान सब से पहले आज से लगभग 8 दशक पूर्व 1933 में लगाया गया था. इस अदृश्य पदार्थ की उपस्थिति का अनुमान लगाने वाला संसार का सब से पहला व्यक्ति था स्विस मूल का अमेरिकी नागरिक फ्रिट्ज ज्विकी, जो कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी में एक खगोलविद के रूप में कार्यरत था. वह शोध के सिलसिले में एक बार ‘कौमा’ नामक एक काफी दूरस्थ मंदाकिनी समूह (गैलेक्सी ग्रुप) का पर्यवेक्षण कर रहा था. उस ने खुद की गई गणनाओं के आधार पर अनुमान लगाया कि इस मंदाकिनी समूह के भीतर कुछ इस प्रकार का पदार्थ भी उपस्थित है जिस का पिंडमान (मास) तो है, परंतु वह विद्युत चुंबकीय तरंगों (अर्थात प्रकाश इत्यादि) का न तो उत्सर्जन करता है और न उन का परावर्तन. ज्विकी ने जब मंदाकिनी समूह (गैलेक्सी ग्रुप) के किनारे पर स्थित विभिन्न मंदाकिनियों की घूर्णन गति के आधार पर उपर्युक्त मंदाकिनी समूह के संपूर्ण पिंडमान की गणना की तो पता चला कि यह पिंडमान प्रयोगों द्वारा निकाले गए पिंडमान का लगभग 400 गुना है. इस आधार पर ज्विकी ने इसे ‘लुप्त पिंडमान समस्या (मिसिंग मास प्रौब्लम)’ नाम दिया, क्योंकि उस समय तक ‘डार्क मैटर’ जैसे शब्द का नाम प्रचलन में नहीं आया था.
शुरूशुरू में खगोलविदों ने ज्विकी द्वारा लगाए गए अनुमान की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया. परंतु उस के बाद अनेक खगोल वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों एवं शोध के आधार पर इस बात की पुष्टि हो गई कि फ्रिट्ज ज्विकी द्वारा अनुमानित अदृश्य पदार्थ वास्तव में ब्रह्मांड में अस्तित्व में है. इन वैज्ञानिकों ने इस अदृश्य पदार्थ अथवा लुप्त पिंडमान समस्या के लिए एक नया नाम गढ़ा ‘डार्क मैटर.’ जिन खगोल वैज्ञानिकों ने डार्क मैटर की उपस्थिति की बात साबित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, उन में एक प्रमुख नाम है वेरा रूबिन का, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में वाशिंगटन स्थित कार्निज इंस्टिट्यूट के स्पेस मैगनेटिज्म विभाग में खगोल वैज्ञानिक के रूप में कार्य करता था. उस ने अपने सहयोगी कैंट फोर्ड के साथ मिल कर 1960 से 1975 के बीच कई मंदाकिनी समूहों के पर्यवेक्षणों से निष्कर्ष निकाला कि डार्क मैटर का अस्तित्व एक वास्तविकता है.
वेरा रूबिन तथा कैंट फोर्ड द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के बाद तो डार्क मैटर के अध्ययन की दिशा में खगोल वैज्ञानिकों के बीच होड़ लग गई तथा इस संबंध में अनेक नएनए तथ्य सामने आने लगे. इन अध्ययनों से पता चला कि ब्रह्मांड में कुछ मंदाकिनियां ऐसी हैं जिन में डार्क मैटर पूरी तरह अनुपस्थित पाया जाता है. उदाहरण के तौर पर ऐसी ही एक मंदाकिनी का नाम है ‘ग्लोबुलर’. इस के विपरीत कुछ मंदाकिनियां ऐसी भी हैं जिन में दृश्य पदार्थ नगण्य परिमाण में पाया जाता है तथा वे लगभग पूरी तरह डार्क मैटर से निर्मित हैं. उदाहरण के तौर पर ‘वर्गो’ नामक मंदाकिनी समूह में एक ऐसी मंदाकिनी मौजूद है.
अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर का रासायनिक संघटन किस प्रकार का है अर्थात यह किस प्रकार के पदार्थ से बना हुआ है शुरूशुरू में अधिकांश वैज्ञानिकों की धारणा थी कि डार्क मैटर कृष्ण विवर (ब्लैक होल) का परिवर्तित रूप है परंतु इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई. फिर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि डार्क मैटर शायद ‘न्यूट्रीनो’ नामक कणों से बना हुआ है. न्यूट्रीनो शब्द ई फर्मी नामक वैज्ञानिक द्वारा गढ़ा गया था. न्यूट्रीनो एक आवेशरहित कण है जिस का पिंडमान लगभग शून्य होता है. ये कण प्रकाश के वेग से गतिमान रहते हैं. परंतु शोधकर्ताओं द्वारा गहन अध्ययनों के आधार पर इस बात की पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं हो पाई कि डार्क मैटर न्यूट्रीनो नामक कणों से बना हुआ है. बृहत पैमाने पर तो न्यूट्रीनो द्वारा डार्क मैटर के निर्माण संबंधी विषय की व्याख्या की जा सकती है परंतु लघु स्तर पर ऐसी व्याख्या करना संभव नहीं हो पाता है.
लघु स्तर पर डार्क मैटर के निर्माण की व्याख्या करने के लिए खगोल वैज्ञानिकों ने कुछ नए मूल कणों की परिकल्पना प्रस्तुत की है. ऐसे नए कणों में प्रमुख है ‘विम्प्स.’ विम्प्स शब्द अंगरेजी भाषा के 4 शब्दों ‘वीकली इंटरऐक्टिंग मासिव पार्टिकल्स’ का संक्षिप्त रूप है. अधिकांश वैज्ञानिकों की धारणा है कि डार्क मैटर का निर्माण विम्प्स नामक कणों से ही हुआ है. कुछ खगोलविदों के मतानुसार डार्क मैटर का निर्माण करने में प्रमुख भूमिका ‘पौजिट्रान’ नामक कणों की रही है. ऐसा विचार उन्होंने जून, 2006 में प्रमोचित ‘पामेला’ नामक उपग्रह से प्राप्त संकेतों के आधार पर व्यक्त किया है. पौजिट्रान एक प्रकार के अत्यंत सूक्ष्म कण होते हैं जिन का पिंडमान इलैक्ट्रौन नामक कण के पिंडमान के बराबर होता है. परंतु इन दोनों में अंतर यह है कि इलैक्ट्रौन पर जहां ऋणात्मक आवेश होता है, वहीं पौजिट्रान पर धनात्मक आवेश मौजूद होता है. इसी कारणवश पौजिट्रान को इलैक्ट्रौन का प्रति कण भी कहा जाता है.
खगोलविदों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार पूरे ब्रह्मांड में दृश्य पिंडों का परिणाम सिर्फ 4% है. दृश्य पिंडों में तारे, ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह तथा धूमकेतु इत्यादि सभी पिंड शामिल हैं. पूरे ब्रह्मांड में डार्क मैटर सिर्फ 23% है जबकि शेष 73% ब्रह्मांड डार्क ऊर्जा से निर्मित है.