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सब तुम्हारे लिए हैं सजन

यह हुस्न, यह मदभरी जवानी.

यह गुलाबी खिलाखिला बदन.

जुल्फों में महकती गजरे की खुशबू

आंखों से छलकती मस्तियां

सब तुम्हारे लिए हैं सजन.

बांहों में उठा कर, गले से लगा कर

लूट प्यार का मजा.

दिल में?प्यार के अरमां लिए

आंखों में हजारों सपने लिए

सोलह सिंगार किए

सजन मैं ने तेरे लिए.

बांहों में उठा कर, गले से लगा कर

लूट प्यार का मजा.

 

– बाबूराम बोध

बुजदिल

पिछले अंक में आप ने पढ़ा :

सुंदर एक फैक्टरी में क्लर्क था. उस के पास पैसे की कमी थी, इसलिए उस के दोस्त उस से कन्नी काटते थे. वे उसे अपनी पार्टियों में भी शामिल नहीं करते थे. लेकिन खूबसूरत कलावती से शादी के बाद वे उसे भी बीवी के साथ पार्टियों का न्योता भेजने लगे. दिलफेंक हरीश तो कलावती पर लट्टू हो गया था. वह उसे महंगेमहंगे गिफ्ट देने लगा था. पहले तो सुंदर को बहुत बुरा लगा, लेकिन बाद में उस ने इस बात का फायदा उठाना चाहा और अपनी बात कलावती के सामने रखी.

अब पढि़ए आगे…

जिस दिन सुंदर ने कलावती से आमदनी का अच्छा जरीया वाली बात की, उसी दिन कलावती काफी रात हुए घर आई. हरीश उस को अपनी गाड़ी से घर के बाहर तक छोड़ने आया था. यह शायद पहला मौका था, जब हरीश घर के अंदर नहीं आया था. कलावती अकेले ही अंदर आई थी. उस के होंठों की फीकी पड़ी लिपस्टिक और बिखरेबिखरे बाल जैसे खुद ही कोई कहानी बयान कर रहे थे. सबकुछ समझते हुए भी सुंदर आज उसे अनदेखा करने के मूड में था. कलावती ने सुंदर को कुछ कहने या सवाल करने का मौका ही नहीं दिया.

होंठों के एक कोर पर फैली लिपस्टिक को हाथ के अंगूठे से साफ करते हुए कलावती ने कहा, ‘‘मैं ने हरीश से बात की है. वह बिना किसी इंवैस्टमैंट के ही हमें अपने काम में 10 फीसदी की पार्टनरशिप देने को तैयार है. इस के लिए मुझे उस के दफ्तर में बैठ कर ही कामकाज में उस का हाथ बंटाना होगा. ‘‘हरीश जो भी सामान बेचता है, वह सब औरतों के इस्तेमाल में आने वाला है, इसलिए उस को लगता है कि एक औरत होने के नाते मैं उस के कारोबार को बेहतर तरीके से देख सकती हूं. जब ऐक्स्ट्रा आमदनी रैगुलर आमदनी की शक्ल ले लेगी, तो मैं बेशक नौकरी छोड़ दूंगी. तुम को मेरे इस फैसले पर कोई एतराज तो नहीं…?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ सुंदर ने उतावलेपन से कहा.

इस के बाद कलावती हरीश के दफ्तर में जाने लगी. कई बार कलावती खुद चली जाती और कभी उस को लेने के लिए हरीश की गाड़ी आ जाती. रात को कलावती अकसर 9-10 बजे से पहले घर नहीं आती थी. कभी रात को हरीश का ड्राइवर घर पर उसे छोड़ने आता था और कभी हरीश खुद.

कलावती अकसर खाना भी खा कर ही आती थी. अगर वह खाना खा कर नहीं आती, तो घर पर नहीं बनाती थी. सुंदर किसी ढाबे या होटल से खाना ले आता और दोनों मिल कर खा लेते थे. कलावती के रंगढंग और तेवर लगातार बदल रहे थे. कई बार तो वह रात को घर आती, तो उस के मुंह से तीखी गंध आ रही होती थी. यह तीखी गंध शराब की होती थी. कलावती के बेतरतीब कपड़ों और बिगड़ा हुआ मेकअप भी खामोश जबान में बहुतकुछ कहता था. मगर सुंदर ने इन सब चीजों की तरफ से जैसे आंखें मूंद ली थीं. उस का खून अब जोश नहीं मारता था. जो दोस्त कभी सुंदर को घास नहीं डालते थे, वे अपनी की गई मेहरबानियों की कीमत वसूले बिना कैसे रह सकते थे? अब तो सारा खेल जैसे खुला ही था. एक मर्द अपनी बीवी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहा था और बीवी सबकुछ समझते हुए भी अपनी खुशी से इस्तेमाल हो रही थी.

इस सारे खेल में हरीश भी खुद को एक बड़े और चतुर खिलाड़ी के रूप में ही देखता था. कारोबार में 10 फीसदी की साझेदारी का दांव खेल कर उस ने अपने दोस्त की खूबसूरत बीवी पर एक तरह से कब्जा ही कर लिया था. अब उस को कई बहाने से दोस्त के घर जाने की जरूरत नहीं रह गई थी. वह पति की रजामंदी से खुद ही उस के पास जो आ गई थी. जल्दी ही कलावती अपने बैग में नोटों की गड्डियां भर कर लाने लगी थी. कहने को तो नोटों की ये गड्डियां साझेदारी में 10 फीसदी हिस्सा थीं, मगर असलियत में वह कलावती के जिस्म की कीमत थी.

दिन बदलने लगे. केवल एक साल में ही किराए के घर को छोड़ कर सुंदर और कलावती अपने खरीदे हुए नए मकान में आ गए. नया खरीदा मकान जल्दी ही टैलीविजन, वाशिंग मशीन, फ्रिज और एयरकंडीशन से सज भी गया. दूसरे साल में उन के घर के बाहर एक कार भी सवारी के लिए नजर आने लगी. लेकिन, इस के साथ ही साथ कलावती जैसे नाम की ही सुंदर की पत्नी रह गई थी. कलावती में घरेलू औरतों वाली कोई भी बात नहीं रह गई थी. अपने पति के कहने पर ही वह पैसा बनाने वाली एक मांसल मशीन बन गई थी. लोग सुंदर के बारे में तरहतरह की बातें करने लगे थे. कुछ लोग तो पीठ पीछे यह भी कहने लगे थे कि कलावती बीवी तो थी सुंदर की, मगर सोती थी उस के दोस्त हरीश के साथ. 10 फीसदी की मुंहजबानी साझेदारी के नाम पर अगर हरीश उन को कुछ दे रहा था, तो बदले में पूरी शिद्दत से वसूल भी कर रहा था. कलावती के मांसल जिस्म को उस ने ताश के पत्तों के तरह फेंट डाला था. सुंदर जब लोगों का सामना करता था, तो उन की शरारत से चमकती हुई आंखों में बहुतकुछ होता था. कुछ लोग तो इशारों ही इशारों में कलावती को ले कर सुंदर से बहुतकुछ कह भी देते थे, मगर इस से न ही तो अब सुंदर की मर्दानगी को चोट लगती थी और न ही उस का खून खौलता था. उस की सोच मानो बेशर्म हो गई थी.

हरीश जैसे रंगीनमिजाज रईस मर्दों और कलावती जैसी शादीशुदा औरतों के संबंध ज्यादा दिनों तक टिकते नहीं हैं और न ही इस की उम्र ज्यादा लंबी होती है. हरीश का मन भी कलावती से भरने लगा था. उस ने कलावती से छुटकारा पाने के लिए उस के प्रति बेरुखी दिखानी शुरू कर दी थी. कलावती ने उस की बदली हुई नजरों को पहचान लिया, मगर उस को इस की कोई परवाह नहीं थी. हरीश से साफतौर पर कलावती के लेनदेन वाले संबंध थे और वह काफी हद तक इन संबंधों को कैश कर भी चुकी थी. मकान, घर का सारा कीमती सामान और गाड़ी हरीश की बदौलत ही तो थी. वैसे, कलावती की नजरों में भी हरीश बेकार होने लगा था. उस को और निचोड़ना मुश्किल था. हरीश ने साफ शब्दों में कलावती से छुटकारा मांगा. इस के बदले में कलावती ने भी एक बड़ी रकम मांगी. हरीश ने वह मांगी रकम दे दी.

हरीश से संबंध खत्म करने पर सुंदर ने कलावती से कहा, ‘‘हमारे पास अब सबकुछ है, इसलिए हमें पतिपत्नी के रूप में अपनी पुरानी जिंदगी में लौट आना चाहिए.’’ सुंदर की बात पर कलावती खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘मुझ को नहीं लगता कि अब ऐसा हो सकता है. पतिपत्नी का रिश्ता तो इस मकान की बुनियाद में कहीं दफन हो चुका है. क्या तुम को नहीं लगता कि पति बनने के बजाय तुम केवल अपनी बीवी के दलाल बन कर ही रह गए? ऐसे में मुझ से दोबारा कोई सती सावित्री बनने की उम्मीद तुम कैसे कर सकते हो?’’ कलावती के जवाब से सुंदर का चेहरा जैसे सफेद पड़ गया. कलावती ने जैसे उस को आईना दिखा दिया था. कलावती वह औरत नहीं रह गई थी, जो अब घर की चारदीवारी में बंद हो कर रह पाती. सुंदर भी जान गया था कि उस ने अपनी बीवी को दोस्तों के सामने चारे के रूप में इस्तेमाल कर के हासिल तो बहुतकुछ कर लिया था, मगर अपने जमीर और मर्दानगी दोनों को ही गंवा दिया था.

हरीश को छोड़ने के बाद कलावती ने सुंदर के एक और अमीर दोस्त दिनेश से संबंध बना लिए. उधर कलावती बाहर मौजमस्ती कर रही थी, इधर सुंदर ने खूब शराब पीनी शुरू कर दी. कभीकभी शराब पी कर सुंदर इतना बहक जाता कि गलीमहल्ले के बच्चे उस का मजाक उड़ाते और उस पर कई तरह की फब्तियां भी कसते. कुछ फब्तियां तो ऐसी कड़वी और धारदार होतीं कि नशे में होने के बावजूद सुंदर खड़ेखड़े ही जैसे सौ बार मर जाता. जैसे शराब के नशे में एक बार जब सुंदर लड़खड़ा कर गली में गंदी नाली के पास गिर पड़ा, तो वहां खेल रहे कुछ लड़के खेलना छोड़ उसे उठाने के लिए लपकने को हुए, तो उन में से एक लड़के ने उन को रोक लिया और बोला, ‘‘रहने दो, मेरा बापू कहता है कि यह अपनी औरत की घटिया कमाई खाने वाला एक गंदा इनसान है. इज्जतदार और शरीफ लोगों को इस से दूर रहना चाहिए.’’ एक लड़के का इतना ही कहना था कि बाकी लड़कों के कदम वहीं रुक गए. शराब के नशे में लड़खड़ा कर सुंदर गिर जरूर गया था, मगर बेहोश नहीं था. लड़के के कहे हुए शब्द गरम लावे की तरह उस के कानों में उतर गए. अपनी बुजदिली और लालच के चलते आज सुंदर कितना नीचे गिर चुका था, इस का सही एहसास गली में खेलने वाले लड़के के मुंह से निकले शब्दों से उसे हो रहा था. 

रंगों से रंगीन घर साफ करें ऐसे

होली पर्व का नाम सुनते ही मन रंगरंगीली उमंगों से भर उठता है. होली रंगों का त्योहार है. इसे एकदूसरे पर गुलाल लगा कर मनाया जाता है परंतु आजकल गुलाल के साथसाथ लोग रंगों का भी प्रयोग करते हैं. अकसर घरों में एकदूसरे को रंग लगाते समय या रंग से बचने के प्रयास में रंग यहांवहां गिर जाता है. प्राकृतिक रंगों के दागधब्बे जहां आसानी से निकल जाते हैं, वहीं आजकल बाजार में उपलब्ध रासायनिक रंगों के दागधब्बों को साफ करना बड़ी चुनौती होती है.

यहां प्रस्तुत हैं, कुछ ऐसे उपाय जिन से घर की दीवारों, फर्श आदि पर लगे रंगों के दागधब्बों को आसानी से साफ किया जा सकता है :

दीवारें

– ध्यान रखें कि केवल उन्हीं दीवारों को साफ किया जा सकता है जिन पर वाशेबल डिस्टैंपर किया गया हो.

औयल बाउंड डिस्टैंपर वाली दीवारों की सफाई खुद करने का प्रयास न करें.

– वाशेबल पेंट की दीवारों को साफ करने के लिए पानी और साबुन का घोल बना कर गीले कपड़े और स्पंज से साफ करें.

– ब्रैंडेड पेंट को दीवारों से कैसे साफ किया जाए, इस की जानकारी कंपनी की वैबसाइट पर दी होती है. उसे पढ़ कर भी दीवारों को साफ किया जा सकता है.

– पानी प्रतिरोधी रंगों से रंगी दीवारों को साफ करने के लिए स्टेन ब्लागर की भी मदद ले सकती हैं. इस से दीवारों पर दागधब्बे नहीं लगते.

– यदि सादे पानी के प्रयोग से दीवारें साफ न हों तो टचअप का प्रयोग करें.

 हलका सा टचअप कर के आप अपनी दीवारों को नया लुक दे सकती हैं. इस से आप की दीवारें बिलकुल नई सी लगने लगेंगी.

– टचअप करने का प्रयास आप स्वयं न करें. इस के लिए प्रोफैशनल की मदद लें अन्यथा शेड का हलका सा डिफरैंस भी दीवारों का लुक खराब कर देगा.

– दीवारों पर पड़े धब्बों को कभी बेकिंग पाउडर या ब्लीच से साफ करने का प्रयास न करें अन्यथा उन का रंग हलका पड़ जाएगा.

फर्श

– जहां तक संभव हो फर्श पर गिरे रंग को तुरंत साफ करने का प्रयास करें और यदि ऐसा करना संभव न हो तो उस पर थोड़ा सा पानी डाल दें ताकि रंग का धब्बा न पड़ने पाए.

– हलकेफुलके धब्बों को साबुन के पानी से एक नायलौन ब्रश से हलके हाथ से रगड़ कर साफ करें ताकि फर्श पर स्क्रैच न हो.

– अधिक पक्के धब्बों को साफ करने के लिए 2 बड़े चम्मच बेकिंग पाउडर में 1 छोटा चम्मच पानी मिला कर पेस्ट बनाएं और उसे धब्बों पर लगा कर आधे घंटे के लिए छोड़ दें. फिर साफ कपड़े से पोंछ दें. यदि धब्बे फिर भी न छूटें तो इस प्रक्रिया को 2-3 बार दोहराएं.

– पक्के धब्बों को साफ करने के लिए हाइड्रोजन पैराक्साइड को स्पंज पर लगा कर फर्श पर रगड़ें.

– यदि आप का फर्श सफेद संगमरमर का है, तो उस पर तरल ब्लीच का प्रयोग करें.

परंतु रंगीन और लैमिनेटेड फर्श पर ब्लीच का प्रयोग न करें अन्यथा यह उस का रंग फीका कर देगा.

– लकड़ी के फर्श पर गिरे सूखे रंग को तुरंत पोंछ कर साफ करें. यदि गीला रंग गिरा है तो साफ सूती कपड़े को ऐसिटोन में भिगो कर हलके हाथ से रगड़ते हुए साफ करें. ध्यान रखें कि कई बार इस से नाजुक फर्नीचर की पौलिश भी निकल जाती है. ऐसे में धब्बे हटाने के बाद पुन: पौलिश करवा लें.

जहां तक संभव हो रंग और पानी की व्यवस्था घर से बाहर ही करें और एक बार रंग या गुलाल लग जाने पर आप स्वयं भी बारबार अंदरबाहर न आएंजाएं.

इस से आप व्यर्थ की परेशानियों से बच जाएंगी. 

मीडिया मेकअप से पाएं बेदाग खूबसूरती

फिल्म, टीवी सीरियल ऐक्ट्रैस को देख कर हर लड़की सोचती है कि काश, वह भी इस की तरह खूबसूरत दिखे. लेकिन क्या आप को पता है कि इन तारिकाओं के नैननक्श को उभारने और बेदाग दिखाने में मेकअप का कितना बड़ा योगदान होता है. यह मेकअप कैसा होता है. इस बारे में बता रही हैं मीडिया मेकअप आर्टिस्ट पूजा पालीवाल.

‘‘मीडिया मेकअप द्वारा जहां चेहरे के हर हिस्से की कमी को दूर किया जाता है, वहीं दबे हुए हिस्से को उभारा जाता है, क्योंकि कैमरा छोटी से छोटी कमी को भी बड़ी जल्दी कैच कर लेता है. इस के साथ ही तेज लाइट में स्किन को भी बचाना होता है. इसलिए बेस हमेशा अच्छी क्वालिटी का ही लगाएं ताकि स्किन आसानी से कवर हो सके.’’

आईज मेकअप

सब से पहले आंखों का मेकअप करें. आईज पर मैट गोल्डन, ब्लैक कलर का आईशैडो ब्रश की सहायता से लगाएं. आंख के इनर पार्ट में गोल्डन और आउटर पार्ट में ब्लैक आईशैडो लगाएं. इसे ब्रश की सहायता से ऐसे मर्ज करें जिस से कि यह अलगअलग न दिखे. बाहरी कौर्नर्स डार्क रहें. फिर जैल आईलाइनर या वीओवी का काजल इनर पार्ट से लेते हुए बाहरी पार्ट तक एक स्ट्रोक में लगाएं. यदि आईज छोटी हैं, तो आईलाइनर मोटा लगाएं और बड़ी हैं तो पतला. आईशैडो लगाने से पहले आईज पर एक बेसकोट जरूर लगाएं ताकि आईशैडो अधिक समय तक टिका रहे. इस के बाद आईज के वाटरलाइन एरिया में काजल ब्रश से लगाएं. अगर आईज को बड़ा दिखाना चाहती हैं तो नीचे आईज पर बाहर की तरफ लाइनर लगा कर वाटरलाइन एरिया में ब्रश से व्हाइटर लगाएं. इस से आंखें बड़ी दिखेंगी. इस के बाद मसकारा ऊपर और नीचे की आईलैशेज पर अच्छी तरह घुमाते हुए लगाएं.

आईब्रोज को क्लीन लुक देने के लिए ब्राउन पैंसिल या शैडो का प्रयोग करें.

फेस बेस मेकअप

आईज मेकअप के बाद आई एरिया को छोड़ कर फेस को अच्छी तरह क्लीन कर लें ताकि अगर आईशैडो गिरा हो तो वह साफ हो जाए. इस के बाद पूरे फेस पर जैल वाला प्राइमर लगाएं. अगर फेस पर दागधब्बे हैं, तो प्राइमर के बाद कंसीलर का प्रयोग करें. कंसीलर को थपथपाते हुए लगाएं ताकि दागधब्बे अच्छी तरह से कवर हो सकें. फिर पूरे फेस पर डर्मा का एक टोन डार्क बेस लगाएं. बेस को अच्छी तरह मर्ज जरूर करें.

फेस करैक्शन

मीडिया मेकअप में फेस करैक्शन करना बहुत जरूरी है ताकि कैमरे में फेस का लुक शार्प लगे. इस के लिए फेस के दबे हुए हिस्से को उभारें. अगर नाक छोटी व चपटी है तो दोनों तरफ के बाहरी हिस्सों पर डार्क ब्राउन बेस स्पौंज ब्रश की सहायता से लगाएं और उसे उंगलियों की सहायता से मर्ज करें. ऐसे ही फोरहैड और चीक्सबोंस पर भी करें. इस से बड़ा फेस छोटा दिखेगा.

चीक्स मेकअप

गालों को उभारने के लिए पीच या पिंक कलर का ब्लशर ब्रश की सहायता से चीक्सबोंस पर ही वन स्ट्रोक में लगाएं ताकि यह पैची न दिखे. फिर इसे ब्रश से अच्छी तरह मर्ज करें.

लिप मेकअप

होंठों को कौटन से अच्छी तरह क्लीन कर के एक बेस कोट लगाएं. फिर इस पर ब्रश से डार्क कलर की आउटलाइन बनाएं. अगर लिप छोटे व पतले हैं तो आउटर एरिया से आउटलाइन बनाएं और अगर मोटे हैं, तो इनर एरिया से लेते हुए आउटलाइन बनाएं. फिर लिप पर ब्रश की सहायता से लिपस्टिक लगाएं. शाइनिंग के लिए लिप्स पर ग्लौस का एक कोट लगाएं.

आखिर में आईब्रोज और मसकारे पर एक बार फिर से टच दें

बिहार में पैर पसारते आतंकवादी

5 फरवरी, 2016 को बिहार में पटना जिले के करबिगहिया इलाके में 3 प्रैशर बम, 2 किट, डैटोनेटर और बम बनाने के काम में आने वाले कई सामान को देख कर पुलिस चौंक गई. कारोबारी नंदकिशोर के मकान की पहली मंजिल पर पुलिस ने यह जखीरा बरामद किया था. कारोबारी नंदकिशोर ने पुलिस को बताया कि उस ने राहुल नाम के लड़के को वह फ्लैट किराए पर दे रखा था. पुलिस ने राहुल को गिरफ्तार कर लिया और उस के पास से 4 मोबाइल फोन और 12 सिम कार्ड बरामद किए.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि पुलिस इस बात की छानबीन कर रही है कि राहुल किस के लिए बम बनाता था? क्या वह किसी आतंकी या नक्सली संगठन के लिए तो बम नहीं बना रहा था? बिहार की राजधानी पटना समेत कई जिलों में आतंकवादियों के पैर पसारने के सुबूत पिछले कुछ सालों में कई बार मिल चुके हैं. इस के पहले खेमनीचक, बहादुरपुर और मीठापुर में हथियारों और बमों का जखीरा बरामद किया था.

राज्य के कई बेरोजगार नौजवानों को पैसों के लालच में फंसा कर आतंकवादी और नक्सली संगठन अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं. पिछले साल के आखिर में ही बिहार के एक नौजवान एजाज उर्फ कलाम की मेरठ में हुई गिरफ्तारी के बाद उस की आतंकवादियों से सांठगांठ होने का खुलासा हुआ था. 27 नवंबर, 2015 को उत्तर प्रदेश के मेरठ कैंट से गिरफ्तार जासूस एजाज उर्फ कलाम के पाकिस्तानी जासूस होने और बिहार में आतंकवाद का नैटवर्क तैयार करने के खुलासे के बाद एक बार फिर बिहार में आतंकी जड़ों के पनपने का भी भंडाफोड़ हो गया है. एजाज की ट्रेनिंग के दौरान के फोटो के सामने आने पर पुलिस को पता चला कि वह पाकिस्तानी जासूसी संगठन आईएसआई का बड़ा अफसर भी हो सकता है. फोटो में वह किसी बड़े अफसर की तरह ट्रेनिंग लेता दिख रहा है. पुलिस की जांच टीम के अफसरों को पूरा यकीन है कि एजाज को ट्रेनिंग देने का तरीका आईएसआई के अफसरों की ट्रेनिंग जैसा ही है

पुलिस 6 दिसंबर, 2015 को बिहार के भोजपुर जिले के अजीमाबाद गांव में पाक जासूस एजाज की ससुराल में उस के ससुर शमशेर के घर जा पहुंची.

थानाध्यक्ष श्यामदेव सिंह ने बताया कि एजाज की बीवी आसमां खातून, उस की मां और शमशेर से अलगअलग बातचीत की गईं. उन के सभी बैंक खातों की पड़ताल की गई. कहांकहां से और कबकब उन के सभी 7 बैंक खातों में रकम जमा हुई, यह भी पता लगाया. पुलिस ने छानबीन में पाया कि सहार थाने के नाढ़ी गांव के रहने वाले आईएसआई एजेंट एजाज की नजर अजीमाबाद के कई नौजवानों पर टिकी हुई थी और वह उन्हें कई तरह के लालच दिया करता था. वह अकसर गांव आता था और दर्जनभर लड़कों से मिलता था और जम कर पार्टी करता था. वह कई नौजवानों को 50 हजार रुपए महीना तनख्वाह दिलाने का लालच भी दे चुका था. रुपयों का लालच दे कर वह सैकड़ों नौजवानों को आतंकवाद की खाई में धकेलने की  कोशिश में लगा हुआ था. आईबी के एक आला अफसर का मानना है कि आतंकवाद की मुख्य वजह गरीबी है. गरीबों खासकर बेरोजगार नौजवानों को पैसों का लालच दे कर आतंकी संगठन आसानी से अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं.

भारत और नेपाल के बीच खुला बौर्डर होने से आतंकवादी आसानी से बिहार में आ जाते हैं और अपने मनसूबों को कामयाब बनाने की साजिश बनाते हैं. बेरोजगार नौजवानों को यह समझना होगा कि थोड़े से पैसे का लालच दे कर आतंकवादी उन की जिंदगी को तो बरबाद कर ही रहे हैं, साथ ही देश को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. आसमां खातून ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि एजाज ने उसे पूरी तरह से गुमराह किया है. शादी से पहले एजाज ने खुद को कोलकाता का बताया था. शादी के बाद जब उस से ससुराल चलने की बात कही, तो वह कहने लगा कि वह यतीम है और उस के घर में कोई नहीं रहता है. उस के बाद वह कहने लगा कि जहां काम मिलेगा, वहीं रहने चलेंगे.

कुछ दिनों बाद एजाज ने आसमां को बरेली चलने को कहा. वे दोनों बरेली आ गए और वहीं दोनों के नाम से वहां का बाशिंदा होने का सर्टिफिकेट बनवाया गया. दोनों के नाम से बरेली में आधारकार्ड और मतदाता पहचानपत्र भी बनवाए गए. शादी के 5-7 दिनों के बाद एजाज ने कहा कि वह बिहार में ही कपड़ा बेचने का कारोबार शुरू करेगा. वह कई दिनों तक हाथपैर मारता रहा, पर काम शुरू नहीं कर सका. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, एजाज ने पाकिस्तान से गे्रजुएशन की डिगरी ली है. इस के बाद भी साल 2013 में भारत आने से पहले उस के लिए कोलकाता से 8वीं जमात पास करने का सर्टिफिकेट तैयार कराया गया था. उसी के आधार पर उस ने भारत में अपना पहचानपत्र बनवाया था. वह कंप्यूटर के मामले का भी बड़ा जानकार था.

आसमां खातून ने पुलिस को यह भी बताया है कि वह एजाज से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती है. शादी के एक महीने बाद ही उसे एजाज की गतिविधियों पर शक होने लगा था, पर वह उसे समझ नहीं सकी. आसमां आगे कहती है कि एजाज के हावभाव कुछ अजीब थे, लेकिन उसे इतना नहीं पता था कि वह किसी देश के लिए जासूसी का काम कर रहा है. रात को कोई फोन आता था, तो वह फोन काट कर लैपटौप और इंटरनैट के जरीए बात करता था. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, जांच में पता चला है कि एजाज ने 2 सिम कार्ड ले रखे थे. एक सिम से वह अपनी ससुराल अजीमाबाद बात करता था और दूसरी सिम से पाकिस्तान में बैठे अपने आका से बात करता था. वह ज्यादातर बात कोडवर्ड में ही करता था.

पुलिस को जानकारी मिली है कि एजाज के निकाह के समय उस का जीजा रईस और एजाज का छोटा भाई फहाद भी अजीमाबाद आए थे. फहाद की पहुंच पाकिस्तान के बड़े हुक्मरानों के साथ भी है. एजाज के ससुर शमशेर ने पुलिस को बताया है कि उस की बेटी आसमां खातून और एजाज का निकाह उस के दूर के रिश्तेदार बाबर की मदद से हुआ था. एजाज के पकड़ में आने से पहले भी कई बड़े आतंकवादियों के तार बिहार से जुड़े होने का खुलासा होता रहा है. 13 जुलाई, 2011 को मुंबई में हुए तिहरे बम धमाके के मास्टरमाइंड के 2 मददगार नकी अहमद वसी अहमद शेख और नदीम अख्तर अशफाक शेख को महाराष्ट्र एटीएस ने 23 जनवरी, 2012 को बिहार के दरभंगा में दबोचा था.

एटीएस का दावा है कि झावेरी बाजार, ओपेरा हाउस और दादर के कबूतरखाने के बम धमाके की साजिश बिहार में रची गई थी. पिछले 10 सालों में कई बौर्डर वाले जिलों में 30 से ज्यादा आतंकवादियों की गिरफ्तारी से यह साफ हो गया है कि माओवादियों के चंगुल में फंसे बिहार को अब आतंकवादियों ने अपना सेफ जोन बना लिया है. इस के पहले मुंबई लोकल ट्रेन में बम ब्लास्ट का मामला हो या गुजरात बम ब्लास्ट का या फिर दिल्ली के हाईकोर्ट में बम ब्लास्ट का मामला हो, हर आतंकी वारदात के तार बिहार से जुड़े मिलते रहे हैं. इसलिए बिहार की इमेज आतंकवादियों के गढ़ के रूप में बनती जा रही है. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में देश की खुफिया एजेंसियों समेत राज्यों की पुलिस और एटीएस की नजर बिहार पर टिकी हुई है. 7 जनवरी, 2012 को सिमी के मैंबर कमरूद्दीन उर्फ आजाद उर्फ बिलाई मियां की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने भाकपा माओवादी और इंडियन मुजाहिद्दीन के रिश्तों को उजागर किया था.

गौरतलब है कि इंडियन मुजाहिद्दीन सिमी का ही बदला हुआ रूप है. मसौढ़ी के रहने वाले कमरूद्दीन ने पिछले 3 सालों से गया जिले को अपना अड्डा बना रखा था व वह आतंकवादियों, नक्सलियों और अपराधियों को गोलाबारूद की सप्लाई करता था. आईबी के सूत्रों के मुताबिक, उत्तर बिहार के बौर्डर वाले जिलों को आतंकी संगठन अपने सेफ जोन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. वहां के बेरोजगार नौजवानों को पैसों का लालच दे कर अपने संगठन में बहाल करते हैं. गरीबी और बेरोजगारी की वजह से लड़के आसानी से आतंकवादियों के झांसे में आ जाते हैं. नेपाल के बौर्डर से लगे पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, सीतामढ़ी, अररिया और बंगलादेश के बौर्डर से सटे किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जिले आतंकवादियों का महफूज ठिकाना बने हुए हैं.

नेपाल और बंगलादेश के रास्ते आतंकवादी आसानी से भारत के बौर्डर में घुस कर खतरनाक साजिशें बनाते हैं और उन में लोकल लड़कों को शामिल करते हैं. लश्कर ए तैयबा का नेपाल प्रमुख और मुख्य खजांची मोहम्मद उमर मदनी बिहार के मधुबनी जिले का रहने वाला था. उस ने जिले के कई नौजवानों को अपने आतंकी संगठन से जोड़ रखा था. मुंबई की लोकल ट्रेनों में सीरियल ब्लास्ट कराने के मामले में आरोपी मोहम्मद कमाल भी मधुबनी जिले के बासोपट्टी गांव का रहने वाला था. पाकिस्तान की मुखबिरी करने के मामले में चंडीगढ़ पुलिस ने उसे दबोचा था. उस ने अपने मोबाइल फोन से सैकड़ों बार पाकिस्तान और नेपाल बात की थी. उसी तरह से तालिबान से रिश्ता रखने के आरोपी मिर्जा खान को साल 2010 में पूर्णिया में दबोचा गया था.

बिहार से आतंकवादियों के जुड़े होने का लंबा इतिहास रहा है, इस के बाद भी राज्य और केंद्र सरकार का इस मामले में ढीला रवैया ही रहा है. साल 2006 में दिल्ली में हुए बम धमाकों का मुख्य आरोपी मोहम्मद सोहेल भागलपुर के शाहकुंड का रहने वाला था. धमाके को अंजाम देने के बाद दुबई भागने के लिए उस ने पटना में पासपोर्ट बनाने की अर्जी दे रखी थी. वहीं देश को सब से बड़े टैक्स चोर हसन अली ने पटना के पासपोर्ट दफ्तर से फर्जी तरीके से पासपोर्ट बनवाया था. इतना ही नहीं, पैरवी, पहुंच और पैसे के बूते पटना से ही मोहम्मद सोहेल ने मैट्रिक का इम्तिहान पास करने का सर्टिफिकेट और राशनकार्ड भी बनवा रखा था. 10 अप्रैल, 1997 में ही एक साल के लिए मोहम्मद सोहेल का पासपोर्ट (ए/ 1519660) बना था. कोलकाता के अमेरिकी सैंटर पर हमले के आरोपी फरहान मलिक का पासपोर्ट भी नालंदा जिले में बना था

पुलिस ने किया सिलसिलेवार परदाफाश

27 नवंबर, 2015 को भोजपुर जिले के अजीमाबाद गांव के शमशेर के दामाद एजाज उर्फ कलाम का पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े होने का परदाफाश. 2 फरवरी, 2012 को नालंदा जिले के बिहारशरीफ के कागजी महल्ला से हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादी तारिक अंजुम अहसान को दिल्ली पुलिस और इंटरपोल की टीम ने गिरफ्तार किया. 23 जनवरी, 2012 को मुंबई में हुए तिहरे बम धमाके के मास्टरमाइंड के 2 मददगार नकी अहमद वसी अहमद शेख और नदीम अख्तर अशफाक शेख को महाराष्ट्र एटीएस ने बिहार के दरभंगा में दबोचा.

12 जनवरी, 2012 को इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादी नकी अहमद और नदीम दरभंगा में पकड़े गए. 2 जनवरी, 2012, 2012 को दिल्ली पुलिस की स्पैशल सैल ने मधुबनी के मोहम्मद अजमल के यहां छापा मारा और अमेरिका में बनी पिस्तौल बरामद की. 31 दिसंबर, 2011 को दिल्ली पुलिस ने समस्तीपुर के धर्मपुर महल्ले में छापेमारी की. 24 नवंबर, 2011 को मधुबनी के सकरी थाने के दरबारी टोले से इंडियन मुजाहिद्दीन के गयूर अहमद जमाली और पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद अजमल उर्फ शोएब को गिरफ्तार किया. 17 अगस्त, 2011 को हूजी आतंकवादी रियाजुल खान किशनगंज में पकड़ा गया. 14 जनवरी, 2010 को अलकायदा आतंकवादी मिर्जा खान पूर्णिया स्टेशन पर दबोचा गया. साल 2010 में दिल्ली ब्लास्ट के मामले में मधुबनी के बलकटवा इलाके से उमर मदनी को गिरफ्तार किया गया.

साल 2006 में मुंबई के लोकल ट्रेन धमाकों के आरोपी कमाल अंसारी को मधुबनी के बासोपट्टी इलाके से पकड़ा गया. साल 2005 में लश्कर आतंकवादी हारुन रसीद सिवान में पकड़ा गया. साल 2000 में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादी मकबूल और जहीर को सीतामढ़ी में गिरफ्तार किया गया.

आखिर इतना गुस्सा क्यों

दिल्ली के विकासपुरी में डा. पंकज नारंग की भीड़ द्वारा पीटपीट कर हत्या कर देने से कई अनसुलझे सवाल खड़े हो गए हैं. दरअसल, हुआ कुछ यों था कि उधर भारत बांग्लादेश से क्रिकेट मैच क्या जीता डा. नारंग के 8 वर्षीय बेटे ने दूसरे दिन जिद पकड़ ली कि वह भी मैच जीतेगा. डा. नारंग यों तो हर मैच में भारत को जीतना देखना पसंद करते थे पर उन्हें अपने बेटे के साथ खेलते हुए हारना पसंद था. पर बेटे के साथ खेलते हुए वे जिंदगी से ही हार जाएंगे, ऐसा उन्होंने सोचा भी नहीं होगा. घर की बालकनी में खेलते हुए बेटे ने बल्ले से गेंद को मारा तो गेंद घर से बाहर गली में तेज गति से बाइक चला रहे एक नाबालिग लड़के (15-16 वर्ष) को जा लगी. इस पर डा. पंकज ने पहले तो सौरी बोला फिर समझाया कि गली में इतनी तेज बाइक चलाना ठीक नहीं. मामूली कहासुनी बाद में खूनी संघर्ष में बदल गया. बाइक सवार गुंडे थोड़ी ही देर में 15-20 लड़कों को ले कर आया और डाक्टर की डंडे सरिया से पीटपीट कर हत्या कर दी.

तमाशबीन बने रहे पड़ोसी

गुंडे डा. नारंग को पीटते रहे, पर कोई भी पड़ोसी बीच बचाव के लिए नहीं आया. इस दौरान डा. नारंग ने कई बार माफी मांगी पर गुंडों को तरस नहीं आया.

देर से आई पुलिस

वारदात के बाद देर से आने का रिकौर्ड पुलिस भी तोड़ न सकी और 100 नंबर पर काल के बाद देर से पुलिस आई. तब तक अपराधी अपनी करतूत कर चुके थे.

बेखौफ अपराधी

लचर कानून, भ्रष्टाचार की वजह से अपराधियों में कानून का जरा भी खौफ नहीं है. वे जानते हैं कि अदालती लचर व्यवस्था में जल्द ही छूट जाएंगे. 9 मुख्य अपराधियों में से 4 नाबालिग अपराधी भी जुवेनाइल ऐक्ट के तहत बाल सुधारगृह में रह कर चंद महीनों में छूट जाएंगे और फिर गली मोहल्लों के लोगों को दबंगई से मुंह चिढ़ाएंगे.

किस काम का इतना गुस्सा

रोडरेज, हत्या, मारपीट की घटनाओं में इजाफा महानगरीय जिंदगी के लिए गंभीर चिंता का विषय है. लोग मामूली सी बात पर एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं.

क्या है वजह

विशेषज्ञों का मानना है कि गुस्से की वजह आर्थिक तंगी, तनाव, अकेलापन, शिक्षा, सामाजिक सामंजस्यता को खोना है. परिवार भी इस का एक कारण है जहां बच्चे की परवरिश ठीक ढंग से नहीं हो पाती और बाद में वह गुस्सैल बन जाता है. फिलहाल पुलिस ने 9 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिस में 4 नाबालिग हैं. अब इन पर मुकदमा दर्ज होगा. लंबी कानूनी लङाई लड़ी जाएगी. जब तक अदालती निर्णय सुनाया जाएगा तब तक मृत डाक्टर नारंग का बेटा भी इन कानूनी पेचिदगियों  को देखते सुनते बड़ा हो जाएगा. भारतीय लचर कानून के प्रति भी उस के मन में वही रहेगा जो एक बेखौफ अपराधी के दिमाग में होता है. सवाल वही होंगे. जवाब देने वाला शायद ही दे पाए कि दोष कानून में है या समाज में, जिसे मरना था, वह तो लौट कर आने से रहा.

देश पर पकड़ खोती भाजपा

हरियाणा में अचानक भड़के जाट आरक्षण आंदोलन ने प्रदेश सरकार के साथसाथ केंद्र सरकार के सुशासन के दावे की पोल भी खोल दी है. देखते ही देखते ‘हरित प्रदेश’ एक ‘उजाड़ प्रदेश’ में तबदील हो गया है. रही सही कसर सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं के गैरजरूरी बयानों ने पूरी कर दी, जिस से यह आंदोलन तबाही का सबब बन गया. लगता है कि शासन और प्रशासन यह नहीं समझ पाया कि यह जाट  आंदोलन किस दिशा की ओर जा रहा है, तभी तो हरियाणा के कृषि मंत्री ओपी धनखड़ और दूसरे भाजपाई नेताओं के घरों पर तोड़फोड़ की गई. इस का नतीजा यह हुआ कि हरियाणा के कई शहरों में सेना उतारने और कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई. सरकार का यह कैसा सुशासन है कि शांति बनाए रखने के लिए सेना बुलानी पड़ी?

इस आंदोलन से विपक्षी दलों को मुंह खोलने का मौका मिल गया. कांग्रेस में तो जैसे नई जान आ गई. उस के नेता हर जगह सक्रिय दिखाई दिए और हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर जम कर निशाना साधा.

कहने को तो जाट आरक्षण का मुद्दा सिर्फ हरियाणा से जुड़ा है, लेकिन इस का असर केंद्र सरकार पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है. इस से पहले भी हैदराबाद यूनिवर्सिटी में एक दलित छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी और दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुए बवाल के बाद केंद्र सरकार को जिस तरह से मसले को सुलझाना चाहिए था, उस में वह नाकाम रही. कोलकाता के जादवपुर कालेज समेत पूरे देश में जिस तरह से केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर विरोध सुलग रहा है, वह खतरनाक है. इस से कांग्रेस को अपनी हैसियत दिखाने का मौका मिल गया है. नरेंद्र मोदी के विकास रथ से कुचली गई कांग्रेस की उम्मीदें 2 साल में ही फिर से कुलांचें मारने लगी हैं. मजेदार बात यह है कि कांग्रेस को यह मौका अपनी मेहनत या संगठन की ताकत से नहीं, बल्कि केंद्र में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी की नाकामियों से मिल रहा है. नरेंद्र मोदी के आर्थिक विकास रथ के लिए जिस सीधेसपाट रास्ते की जरूरत थी, उस पर भाजपा के कट्टरवादी गड्ढे खोद रहे हैं. भाजपा लोकसभा में जो भी सुधार बिल ला रही है, कांग्रेस ने उस का विरोध करने का काम शुरू किया है.

दूसरी ओर पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में मिली हार और नरेंद्र मोदी की चमक खोने के डर से भाजपा अपने पुराने मुद्दों पर लौटने की फिराक में है. वह धर्म और जातिवाद से बाहर निकल ही नहीं पा रही है, जिस के चलते उस का विकास रथ विनाश का बुल्डोजर बनने लगा है. जम्मूकश्मीर में भाजपा और पीपुल्स डैमोक्रैटिक पार्टी का गठबंधन सत्ता से बाहर हो चुका है. देश के 4 राज्यों केरल, असम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस भाजपा का खेल बिगाड़ कर साल 2019 के लोकसभा चुनावों में अपनी जीत का रास्ता आसान बनाना चाहती है. जम्मूकश्मीर में भारतीय जनता पार्टी और पीपुल्स डैमोक्रैटिक पार्टी के बीच हुए गठबंधन को मुफ्ती मोहम्मद सईद कई तरह के दबावों के बाद भी चला रहे थे. उन की मौत के बाद यह गठबंधन संकट में फंस गया है. पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती भाजपा के साथ गठबंधन को सहज रूप में नहीं ले पा रही हैं. उन को डर है कि भाजपा के साथ रहने से पीडीपी का जनाधार टूट जाएगा. इसी के मद्देनजर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और महबूबा मुफ्ती की मुलाकात को नए समीकरण से जोड़ कर देखा जा रहा है.

कांग्रेस की कामयाबी

बात केवल जम्मूकश्मीर की नहीं है. पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों में भी यह मांग उठ रही है कि ममता बनर्जी को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस और वामपंथी दलों को एकसाथ आना चाहिए. लोकसभा चुनावों के समय जिस कांग्रेस क ो हर पार्टी छूने से परहेज कर रही थी, वही दल अब कांग्रेस के साथ खड़े होने की कोशिश में लगे हैं. दरअसल, बिहार चुनाव में भाजपा के खिलाफ बने महागठबंधन को जो कामयाबी हासिल हुई, उस ने सहयोग की नई राजनीति को जन्म दे दिया है.

बिहार में महागठबंधन की रणनीति बनाने में कांग्रेस की अहम भूमिका थी. बिहार में जब कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए 40 सीटें दी गई थीं, तो सभी को हैरानी हो रही थी कि ऐसा कैसे हो गया? साल 2009 में जब कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी, उस समय बिहार में लालू प्रसाद यादव कांग्रेस को बिहार में 3 सीटों से ज्यादा देने को तैयार नहीं थे. ऐसे में महागठबंधन में कांग्रेस को 40 सीटें मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं था. तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम सरकार में है. वहां मुख्य मुकाबला द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम और अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम के बीच है. लोकसभा चुनाव के पहले द्रमुक कांग्रेस की अगुआई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन से अलग हो गई थी. तमिलनाडु में 234 विधानसभा सीटें हैं. इन में से 150 सीटें अन्ना द्रमुक मुन्नेत्र कषगम के पास हैं, जिस की नेता जयललिता मुख्यमंत्री हैं. द्रमुक की अगुआई करुणानिधि के बेटे स्टालिन कर रहे हैं. द्रमुक के पास 23 सीटें हैं और कांग्रेस के पास 5 सीटें हैं. जयललिता को सत्ता से बाहर करने के लिए द्रमुक और कांग्रेस हाथ मिला सकते हैं. इस से कांग्रेस को नई ताकत मिलने की उम्मीद की जा रही है.

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार तक कांग्रेस के पक्ष में खडे़ होने की वकालत कर रहे हैं. इस से साफ जाहिर हो रहा है कि कांग्रेस बहुत कम समय में साल 2014 की लोकसभा चुनावों की हार के सदमे से बाहर आ चुकी है.

केरल में कांग्रेस एक कामयाब गठबंधन की अगुआई कर रही है. तमिलनाडु में भी वह नए समीकरण तलाश रही है. कांग्रेस गठबंधन की अहमियत को समझ चुकी है. असम और पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस ऐसे ही समीकरण बना सकती है.

मजबूती की वजह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने विकास रथ का कामयाबी से संचालन नहीं कर पा रहे हैं. 2 साल के कार्यकाल में भाजपा सरकार के पास उपलब्धियों के नाम पर गिनाने के लिए कुछ खास नहीं है. नरेंद्र मोदी ने अपनी योजनाओं में भगवाकरण के तत्त्वों को रखने की कोशिश की, जिस की वजह से उस का सही नतीजा जमीन पर नहीं दिखा. विकास के कामों से ज्यादा शोर गाय, संस्कृत, वंदेमातरम और योग को ले कर मचता रहा है. इन का विकास से कोई लेनादेना नहीं है.

बिहार चुनावों में हार के बाद खुद भाजपा संगठन को भी नरेंद्र मोदी की कूवत पर से भरोसा उठने लगा है. भाजपा और उस से जुड़े संगठनों को लगता है कि आने वाले विधानसभा के चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं जीते जा सकते, जिस के चलते वे अब धर्म और जाति के मुद्दों को उठाने में जुट रहे हैं. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार की अहम वजह महंगाई और भ्रष्टाचार थी. विकास का सपना दिखा कर नरेंद्र मोदी ने इन मुद्दों को हल करने की कोई पहल नहीं की, जिस से जनता में नाराजगी है. भाजपा विकास के मुद्दे की चमक खो चुकी है, जिस को पूरा करने के लिए वह अपने पुराने धर्म और जाति के मुद्दे पर वापस लौट रही है. भाजपा का यह कदम ही कांग्रेस को मजबूत कर रहा है. लोकसभा चुनावों में सब से खराब प्रदर्शन के बाद भी कांग्रेस 19 फीसदी वोट पाने में कामयाब रही है. जिस तरह का संगठन, ताकत और समर्थन कांग्रेस को हासिल है, ऐसा नैशनल लैवल पर किसी और दल के पास नहीं है.भाजपा काफी कोशिश करने के बाद भी अल्पसंख्यकों में अपना जनाधार नहीं बना पा रही है. ऐसे में अल्पसंख्यक स्वाभाविक रूप से भाजपा के साथ नहीं जुड़ पा रहे हैं, कांग्रेस में वापस लौट रहे हैं.

कांग्रेस के पास भाजपा को रोकने और अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए एक ही रास्ता है कि वह इलाकाई दलों के साथ तालमेल बनाए. कांग्रेस राज्यों में भले ही अपना जनाधार नहीं बना पा रही हो, पर नैशनल लैवल पर भाजपा का मुकाबला करने में वह ही सब से मजबूत पार्टी है.

भाजपा में रार

साल 2002 में हुए गुजरात के दंगे साल 2004 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सब से बड़ी वजह बने थे. साल 2014 के लोकसभा चुनावों में देश ने नरेंद्र मोदी की जिस विकास नीति पर भरोसा किया था, उन के 2 साल के कामकाज को देख कर विकास का कोई स्थायी हल सामने दिख नहीं रहा है. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास ऐसी मशीनरी और साधन नहीं हैं, जो देश को तरक्की की राह पर आगे ले जाए. देश के विकास के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी, संसाधन जुटाने होंगे, सरकारी मुलाजिमों के काम करने के नजरिए को बदलना होगा. 2-4 कानून बना देने से देश का विकास नहीं होने वाला. खुद नरेंद्र मोदी भले ही 18 घंटे काम कर लें, इस का कोई ठोस नतीजा निकलने वाला नहीं है. 

भाजपा में दूसरे नेताओं की भी दबीकुचली भावनाएं उफनने लगी हैं. नरेंद्र मोदी का दबे रूप में विरोध करने वाले नेता भी अब उन के मुखर विरोध पर भी उतर आए हैं.  असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भाजपा की साख दांव पर लगी है. केरल में के. राजशेखरन और पश्चिम बंगाल में दिलीप घोष को आगे कर के भाजपा चुनावी दांव लड़ रही है. तमिलनाडु में पिछड़ी जातियों और दलितों की तादाद ज्यादा है. ऐसे में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है. भाजपा केरल, असम और पश्चिम बंगाल में अपने लिए ज्यादा संभावनाएं देख रही है. असम में कांग्रेस के तरुण गोगोई के मुकाबले भाजपा अपने युवा नेता हिमंत बिश्व सरमा को लाई है. केरल में कांग्रेस के ओमान चांडी के मुकाबले के. राजशेखरन को मौका दिया गया है. अगर इन चुनावों में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा कामयाबी हासिल होती है, तो साल 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मजबूत आधार मिल जाएगा.                            

इन बड़े दलों की खामियां और खूबियां

भाजपा : सरकार बनने के बाद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कई मुद्दों पर आपसी खींचतान बढ़ी है. भाजपा का चुनावी अभियान पहले जैसा तीखा नहीं हो पा रहा है. असम को छोड़ कर भाजपा के पास पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में कोई बड़ा नेता नहीं है. बिहार चुनावों में हार के बाद गुजरात और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में पार्टी को मनचाही कामयाबी नहीं मिली, जिस से पार्टी के लोगों का मनोबल टूटा हुआ है. पार्टी में अंदरूनी हालात अच्छे नहीं हैं. नेताओं में आपसी तालमेल बिगड़ रहा है. नरेंद्र मोदी की विकासवादी नेता की इमेज खराब हो रही है. भाजपा के लिए वे चुनावजिताऊ नेता नहीं रह गए हैं, जिस की वजह से पार्टी में समीकरण बिगड़ रहे हैं.

कांग्रेस : बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन की कामयाबी का क्रेडिट कांग्रेस को मिल रहा है. कई राज्यों के स्थानीय चुनावों में कांग्रेस को उम्मीद से बढ़ कर कामयाबी हासिल हुई है. लोकसभा चुनावों में जो दल कांग्रेस का विरोध कर रहे थे, वे अब कांग्रेस के साथ आने को तैयार हैं. असम और केरल में कांगे्रस को नुकसान होता दिख रहा है, पर तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के पक्ष में नए समीकरण बन रहे हैं. कांग्रेस लोकसभा चुनावों की हार से उभर कर सामने आई है.  अल्पसंख्यकों में कांग्रेस के पक्ष में नया माहौल बनने से इलाकाई दल भाजपा विरोध में कांग्रेस का साथ देने को तैयार हो रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर में ‘केर’ ‘बेर’ के संग

‘कह कबीर कैसे निभे केर बेर के संग, वे डोलत रस आपने ताको पफाटत अंग’ रहीम दास ने बहुत समय पहले लिखा था कि केर यानि केला और बेर का पेड एक जगह रहेगे तो एक दूसरे को ही नुकसान करेगे. केले के पत्ते बेर के कांटों से फट जायेंगे. राजनीति में भी ऐसे रिश्ते लंबे समय तक नहीं निभते.

जम्मू कश्मीर में पीडीपी यानि पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के रिश्तों को भी केर बेर के संग की नजर से देखा जा सकता है. जम्मू कश्मीर में पहली बार भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनी और पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने. सरकार बनने के बाद से ही दोनो दलों में खींचतान चलने लगी थी. कई बार ऐसे मौके आये जब लगा कि यह गठबंधन टूट जायेगा. मुफ्ती मोहम्मद सईद के देहांत के बाद से जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा है. जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगने की वजह यह थी कि भाजपा और पीडीपी दोनो ही दल एक दूसरे के साथ सहज भाव से चल नहीं पा रहे है.

जम्मू कश्मीर को लेकर कई ऐसे मुद्दे है जिनमें भाजपा और पीडीपी अलग अलग राय रखते हैं. दोनो ही दलों में खींचतान बना था. राष्ट्रपति शासन का समय पूरा होने को है जिससे राज्य में नया संकट खडा हो सकता है. जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने इस गतिरोध खत्म करने के लिये 29 मार्च को भाजपा और पीडीपी के नेताओं अलग अलग समय में बुलाया है. पीडीपी ने महबूबा मुफ्ती को अपने दल का नेता चुन लिया है. महबूबा मुफ्ती दक्षिण अनंतनाग से सांसद हैं. अगर वह मुख्यमंत्रीं बनती है तो उनको लोकसभा से इस्तीफा देकर विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना पडेगा. जम्मू कश्मीर में अब तक कोई भी महिला नेता मुख्यमंत्री नहीं रही है, ऐसे में महबूबा पहली महिला मुख्यमंत्री बन सकती हैं.

पीडीपी-भाजपा की राहे अलग अलग हैं. ऐसे में महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्री बनने के बाद राजकाज कैसे चलेगा यह समझा जा सकता है. अलग अलग विचारों के बाद भी सरकार चलाने का फार्मूला भाजपा उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के साथ बना चुकी है. इससे दोनो ही दलो को कोई लाभ नहीं हुआ था. सरकार पूरे समय तक चली नहीं. हर बार गठबंधन टूटा और दोनो ही दलों ने एक दूसरे को बुरा-भला कहा था. महबूबा का प्रयास यह होगा कि वह अपने वोट बैंक को खुश कर सके. भाजपा अपने वोट बैंक को खुश करने का प्रयास करेगी. ऐसे में जम्मू कश्मीर में नया अलगाववाद पनप सकता है. भाजपा का प्रभाव जम्मू इलाके में है और पीडीपी का घाटी इलाके में प्रभाव है. कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेस गठबंधन के मुकाबले भाजपा-पीडीपी गठबंधन कैसे चलेगा देखने वाली बात होगी. कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेस बहुत सारे मुद्दों पर एकमत थे पर भाजपा-पीडीपी गठबंधन बहुत सारे मुद्दों पर अलग अलग राय रखते है. ऐसे में यह गठबंधन केर बेर के संग जैसा ही दिख रहा है.

घुटने की चोट में मददगार एंटीबेबी पिल

ये तो सभी जानते हैं कि एंटीबेबी पिल यानी गर्भनिरोधक गोली गर्भ को रोकने के काम आती हैं.लेकिन हाल में ही हुए शोध के अनुसार गर्भनिरोधक का एक अन्य लाभ सामने आया है. अमेरिका के गेलवेस्टन में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की मेडिकल शाखा द्वारा हुए शोध के अनुसार जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं, उनके एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर कम होता है और बरकरार रहता है. इससे उनके गंभीर किस्म के घुटने की चोट से पीड़ित होने की संभावना कम हो जाती है. 15 से 19 साल की 23,428 युवतियों पर किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि जिन महिलाओं को एंटीरियर क्रूसिएट लिंगामेंट (एसीएल यानी घुटने के जोड़) में चोट की समस्या थी अगर वे गर्भनिरोधक गोलियां ले रही थीं, तो उन्हें नैदानिक सर्जरी करवाने की जरूरत कम पड़ी.  एसीएल एक जोड़ है जो घुटने के ऊपरी और निचले हिस्से को जोड़ता है. इस जोड़ में चोट लगने से किसी एथलीट का कैरियर तबाह हो सकता है. साथ ही इससे जीवनभर के लिए घुटने में परेशानी आ सकती है और इलाज के लिए जटिल सर्जरी करानी पड़ सकती है.

विश्वविद्यालयों में राजनीति

देश के विश्वविद्यालयों में राजनीति हो या न हो, रोहित वेमूला की आत्महत्या ने विवाद का मुद्दा खड़ा कर दिया है. रोहित वेमूला को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की शिकायत पर केंद्रीय मंत्रियों की दखलंदाजी पर हैदराबाद विश्वविद्यालय के होस्टल से निकाल दिया गया था और उस की छात्रवृत्ति भी रोक दी गई थी. हर विश्वविद्यालय में राजनीतिक दलों की शाखाएं हैं और छात्रों को प्रवेश के साथ ही पौलिटिक्स का पाठ भी पढ़ाया जाना शुरू कर दिया जाता है.

1950-60-70 के दशकों में राजनीति अमीरीगरीबी के नारों के चारों ओर घूमती थी पर जब से आरक्षण का मामला गरमाया है, छात्र राजनीति पर जाति का रंग बुरी तरह चढ़ गया है. जैसे देश में कोनेकोने में जाति की खाइयां बनी हैं, वैसी ही विश्वविद्यालयों में बन जाती हैं और हरेक अपनेअपने द्वीप में ही रहने लगता है, वह दूसरे द्वीप वालों को दुश्मन मान कर रातदिन हमलों की तैयारी करता रहता है.

विश्वविद्यालयों में राजनीति का रंग इसलिए भी गहरा रहा है, क्योंकि इस उम्र में आते ही दिखने लगता है कि मौजमस्ती के दिन थोड़े से बचे हैं और अगर अपनी सही जड़ें नहीं जमाईं तो भविष्य क्या होगा मालूम नहीं. राजनीति में घुसने पर यह भरोसा हो जाता है कि और कुछ नहीं तो राजनीति से तो कुछ कमाया ही जा सकता है.

विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले तो थोड़े ही होते हैं. ज्यादातर को यही मालूम नहीं होता कि जो पढ़ रहे हैं उस से भविष्य बनेगा या नहीं. मैडिकल और इंजीनियरिंग में तो थोड़ा भरोसा होता है पर बाकी कोर्सों का क्या महत्त्व होता है, किसी को मालूम नहीं. राजनीति विश्वविद्यालय में बने रहने का एक पक्का उद्देश्य देती है.

राजनीति को वैसे भी अछूत नहीं समझा जाना चाहिए. राजनीति ही देश की धुरी है. राजनीति से ही शासन चलता है. टैक्स इसी से लगते हैं. पुलिस को राजनीति चलानी है. व्यापार और राजनीति का नाता अटूट है. राजनीति को चाहे जितना कोसो इस के बिना तो देश व समाज 4 दिन नहीं चल सकते. इस की पढ़ाई जितनी जल्दी हो सके उतना अच्छा.

अब जो लोग शोर मचा रहे हैं कि विश्वविद्यालयों को राजनीति से दूर रखा जाए, ये वे हैं जो डर रहे हैं कि विश्वविद्यालयों में तो भरमार पिछड़ों और दलितों की होने वाली है जो जनसंख्या का 90-92त्न हैं और अब तक राज कर रहे 8-10त्न का भविष्य खतरे में है. वे सरकारी खर्च पर चल रहे विश्वविद्यालयों को छोड़ने को मजबूर न हो जाएं इसलिए राजनीति को इस्तेमाल करते हुए उस का विरोध कर रहे हैं.

जरूरत इस बात की है कि विश्वविद्यालीय राजनीति में एकता, समरसता, भाईचारे, विचारविमर्श, विश्लेषण व नई चेतना का वातावरण बनाएं और विश्वविद्यालयों को पोंगापंथी वह चाहे भगवाई हो, इसलामी या अंबेडकरवादी, से बचाएं.

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