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गाड़ी का रजिस्ट्रेशन

मैं ने एक बार एक कामर्शियल गाड़ी खरीदी. मेरे दोस्त रमाकांत ने भी कुछ दिन बाद एक कामर्शियल गाड़ी खरीद ली. उस का ट्रांसपोर्ट का लंबाचौड़ा कारोबार था और इस क्षेत्र में उसे काफी महारत हासिल थी. अपनी गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कराने में मेरी हालत खराब हो गई, क्योंकि कभी पैन कार्ड, तो कभी आधार कार्ड और न जाने कितने कागजात देखे, तब जा कर मैं रजिस्ट्रेशन करा पाया. नए आरटीओ अफसर से मेरा पहली बार वास्ता पड़ा था और मैं भुक्तभोगी था, यही जान कर मेरे दोस्त रमाकांत ने मुझ से सलाह लेने की सोची और एक दिन घर आ कर वह मुझ से रजिस्ट्रेशन के बारे में जानकारी लेने लगा.

मैं ने उसे बताया, ‘‘इस बार जो आरटीओ अफसर आया है, वह बहुत नियमकानून मानने वाला कड़क अफसर है. सारे कागजात खुद देखता है और गाड़ी के मालिक से भी मिल कर बात करता है.’’

‘‘क्याक्या कागजात देखता है यार?’’ रमाकांत ने पूछा.

मैं ने बताया, ‘‘आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड, बिजली का बिल, टैलीफोन का बिल, 4 पासपोर्ट साइज फोटो… तब कहीं जा कर रजिस्ट्रेशन करता है. इन 5 कागजात में से 3 को दिखाना जरूरी कर रखा है.’’ रमाकांत ने मजाक में कहा, ‘‘देखो यार, मैं तो केवल वोटर कार्ड और फोटो ले जा कर अपनी गाड़ी का रजिस्ट्रेशन करा लूंगा और रजिस्ट्रेशन भी उसी दिन ही होगा. इस के बाद पार्टी.’’ मैं ने सहमति में सिर हिला दिया. बात आईगई हो गई. नियम के मुताबिक कुछ दिन बाद मेरे दोस्त रमाकांत को भी आरटीओ दफ्तर से बुलावा आया. उस दिन वह अपने ट्रक ड्राइवर की गंदी सी लुंगी और करता पहन कर अफसर के कमरे में रसीद समेत दाखिल हुआ.

जब उस आरटीओ अफसर ने अंगरेजी में पूछा कि वाट डू यू ब्रिंग? तो जवाब में रमाकांत ने कहा, ‘‘साहब, मैं तो केवल हिंदी और उर्दू जानता हूं.’’वह आरटीओ अफसर बंगाली था. उस ने अपनी टूटीफूटी हिंदी में पूछा, ‘‘क्याक्या कागज लाया है?’’रमाकांत ने तुरंत अपना वोटर कार्ड और लुंगी में खींचे गए 2 फोटो आरटीओ अफसर के आगे कर दिए. आरटीओ अफसर ने जैसे ही पैन कार्ड कहने की कोशिश की, तो रमाकांत ने उसे बीच में ही टोक दिया और बोला, ‘‘साहब, मेरे पास पैंट नहीं है. 2 लुंगी और 2 कुरते हैं. मैं एक धोता हूं, एक पहनता हूं.’’

तब आरटीओ अफसर ने समझाया, ‘‘पैंट नहीं…’’ तो रमाकांत ने बीच में बात काटते हुए कहा, ‘‘हांहां, मुझे मालूम है कि पैंट पहनी जाती है, पर मेरे पास पैंट नहीं है. जब मैं ने डीलर से गाड़ी खरीदी थी, तब भी मैं ने लुंगी ही पहनी थी. देखिए, मेरे ये लुंगी वाले 2 फोटो,’’ कह कर वह आरटीओ अफसर के सामने फोटो वाला हाथ नचाने लगा.

इस से घबरा कर आरटीओ अफसर ने कहा, ‘‘और क्या कागज हैं?’’

‘‘और कुछ नहीं हैं. मैं ट्रक चलाता हूं, उसी में सोता हूं. कभीकभार मैं इधरउधर सो जाता हूं. मेरे पास केवल वोटर कार्ड है. जब पैसा लिया, तब तो डीलर बोला नहीं था कि रजिस्टे्रशन कराने के लिए पैंट पहननी होगी. मैं 53 साल का हूं, अभी तक पैंट नहीं पहनी. मैं लुंगी पहन कर ही गाड़ी चलाता हूं.’’

आरटीओ अफसर ने माथे पर आए पसीने को अपने सफेद रूमाल से पोंछा. वह उस घड़ी को कोस रहा था, जब उस ने इस देहाती ट्रक ड्राइवर को दफ्तर में बुलाया था.

इधर मेरा दोस्त यही सुर अलाप रहा था, ‘‘आप के दफ्तर में जब टैंपरेरी रजिस्ट्रेशन हुआ था और पैसा ले कर रसीद दी थी, तब भी नहीं बोला गया था कि पैंट पहनने वाला आदमी ही गाड़ी खरीद सकता है और उस का रजिस्ट्रेशन करा सकता है.

‘‘मैं किसी को नहीं छोड़ूंगा, टैंपरेरी रजिस्ट्रेशन के नाम से जो पैसा लिया है, वह भी वापस दो. अपनी रसीद रखो. मैं थाने में जाऊंगा और शिकायत करूंगा. मुझे अनपढ़ जान कर आरटीओ अफसर और डीलर ने मिल कर मेरी 35 साल की कमाई हजम कर ली.’’ आरटीओ अफसर हैरानपरेशान था. यह उस की जिंदगी का पहला और कड़वा अनुभव था. वह निढाल हो कर कुरसी पर बैठ गया. मेज पर रखे गिलास का पूरा पानी एक ही सांस में गटक गया, फिर रमाकांत को बैठाया, अपने हाथों से पीने के लिए पानी दिया और बोला, ‘‘ठीक है, तुम दस्तखत कर दो.’’

दस्तखत करते ही आरटीओ अफसर ने तुरंत रमाकांत को गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कर के सर्टिफिकेट थमा दिया और हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘आप बेफिक्र हो कर लुंगी में ही गाड़ी चलाइए, कोई आप को पैंट पहनने को नहीं कहेगा.’’ रमाकांत हंसतेहंसते बाहर आ गया. दूसरे दिन मुझे रमाकांत ने चटकारे ले कर सारा मामला बताया कि कैसे उस ने गंवार बन कर एक पढ़ेलिखे अफसर को दिन में तारे दिखा दिए.

पाक टीम का कोच बनना चाहता है यह भारतीय खिलाड़ी

टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर विनोद कांबली ने पाकिस्तान क्रिकेट टीम के मुख्य कोच बनने की इच्छा जाहिर की है. कांबली ने ट्विटर के जरिए पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को अपनी इच्‍छा से अवगत कराया है.

गौर हो कि पीसीबी ने अपने ऑफिशियल पेज पर कोच के लिए विज्ञापन डाला था. कांबली ने विज्ञापन को देखते ही अर्जी डाल दी. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि पीसीबी को कोच की जरूरत है मैं उपस्थिति हूं.

इसके बाद उन्होंने अपने एक पाकिस्तानी क्रिकेट फैन ने ट्वीट को रिट्वीट किया. उसने लिखा, कैसे वो एक खतरनाक देश में आकर रहेंगे. कांबली ने इसका जवाब दिया, मैं बेराजगार नहीं हूं, जब वसीम अकरम भारत आकर आईपीएल टीम के कोच बन सकते हैं तो फिर वो क्‍यों नहीं.

राधा, रवि और हसीन सपने

‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद को खत्म कर लूंगी. फिर तुम मुझे कभी नहीं पा सकोगे. अगर तुम वाकई मुझ से प्यार करते हो, तो जैसा मैं कहती हूं, वही तुम्हें करना होगा.’’

रवि ने जब राधा की धमकी सुनी, तो उस के होश उड़ गए. उस ने कभी नहीं सोचा था कि राधा अपने ही भाई को मौत के घाट उतारने के लिए इस कदर बेकरार होगी.

रवि एक बार फिर उसे समझाते हुए बोला, ‘‘राधा, अगर हम ने तुम्हारे भाई उमेश की जान ली, तो हमें भी अपनी जवानी जेल की दीवारों के बीच गुजारनी पड़ सकती है.’’

रवि की बात सुनते ही राधा गुस्से में बोली, ‘‘तो ठीक है, तुम जाओ यहां से. मैं सबकुछ समझ गई. तुम्हें मेरी बात पर जरा भी भरोसा नहीं है…’’

इतना कह कर राधा ने रवि की तरफ से मुंह फेर लिया और करवट बदल कर दूसरी तरफ देखने लगी. रवि और राधा इस वक्त रवि के घर की दूसरी मंजिल पर पलंग पर बिना कपड़ों के लेटे थे. रवि का सारा मजा किरकिरा हो गया था, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था. रवि ने राधा को अपनी तरफ घुमा कर पहले जी भर कर चूमा और फिर जब दोनों प्यार की आग में दहकने लगे, तो एकदूसरे में समा गए.  राधा रवि को तब से चाहती थी, जब वह 12वीं जमात के इम्तिहान देने शहर के स्कूल गई थी. चूंकि राधा और रवि एक ही जगह के रहने वाले थे, इसलिए वहां उन की जानपहचान हो गई थी. राधा अगड़ी जाति की थी और रवि निचली जाति का, इसलिए दोनों के लिए परेशानी थी. लेकिन तकरीबन 3 साल तक लुकछिप कर मुहब्बत करने के बाद जब एक दिन राधा ने परिवार वालों को अपने और रवि के बीच प्यार और शादी की तमन्ना वाली बात बताई, तो उस के घर का माहौल अचानक खराब हो गया.

राधा की 5 बहनों की शादी हो चुकी थी. वह सब से छोटी थी. उमेश इन बहनों के बीच अकेला भाई था. उसी ने राधा के इस प्यार का विरोध किया था. राधा की मां काफी बूढ़ी हो चुकी थीं. पिताजी की मौत एक हादसे में पहले ही हो चुकी थी. उमेश को पिताजी की जगह क्लर्क की नौकरी मिल चुकी थी. उमेश शादीशुदा था, लेकिन राधा का बेहद विरोधी था, इसीलिए राधा भाई उमेश और भाभी साक्षी को अपना दुश्मन मानती थी. जब एक दिन रात को राधा रवि से फोन पर बातें कर रही थी, तभी उमेश ने उसे बातें करते देख कई तमाचे जड़ दिए थे. इतना ही नहीं, राधा के हाथ से मोबाइल फोन छीन कर उसे बड़ी बहन के घर छोड़ आया था. राधा रवि को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी, वहीं उमेश की जिद थी कि वह राधा की शादी रवि से कभी नहीं होने देगा.

राधा चाहती थी कि रवि उमेश को जान से मार दे, ताकि उस के प्यार पर कोई पाबंदी लगाने वाला न बचे, लेकिन रवि राधा की बात मानने को तैयार नहीं था. वह जानता था कि राधा जो चाहती है, वह जुर्म है. लकिन रवि भी इश्क की चाशनी का स्वाद चख चुका था. लाख मना करने के बाद भी आखिर में वह वही करने को तैयार हो गया, जो राधा चाहती थी. तय समय और तारीख पर रवि को राधा के फोन का इंतजार था.

जब राधा का फोन आया, तब रवि तुरंत अपने मनसूबों को अंजाम देने चल दिया. राधा और रवि एकएक कदम सावधानी से आगे बढ़ा रहे थे. शायद इसीलिए जब वे दोनों एकसाथ उमेश के कमरे के पास पहुंचे, तो अचानक राधा ने रवि को हाथ से इशारा कर के रोक दिया और अकेले ही उस के कमरे में घुस गई. राधा ने सब से पहले कमरे की लाइट जलाई और देखा कि उमेश गहरी नींद में सो गया है या नहीं. जब राधा को इतमीनान हो गया कि उमेश गहरी नींद में है, तो उस ने रवि को अंदर बुलाया.

रवि ने उमेश को चादर में लपेट दिया और जोर से उस का गला दबाने लगा. उमेश छटपटा कर पलंग के नीचे गिर गया, लेकिन जल्दी ही राधा और रवि ने उस पर काबू पा लिया था. जब उन दोनों को भरोसा हो गया कि उमेश अब जिंदा नहीं है, तभी उन्होंने उसे छोड़ा था. फिर उन दोनों ने उमेश का बिस्तर ठीक किया और दोबारा चादर इस तरह ढक दी, जैसे वह गहरी नींद में सो रहा हो. फिर वे दोनों एकदूसरे को बांहों में भर कर चूमने लगे. उस समय राधा काफी सैक्सी लग रही थी. एक बार जब राधा की प्यास जाग जाती थी, तो आसानी से उसे संतुष्ट कर पाना सब के बस की बात न थी. रवि कसरती बदन का मालिक था. वह राधा को बेहद और भरपूर मजा देता था, इसीलिए राधा उसे जीजान से चाहती थी. राधा और रवि इस कदर इश्क में अंधे हो गए कि बगल में पड़ी लाश भी न दिखाई दी. दोनों वहीं पर प्यार के समुद्र में गोते लगाने लगे.

सुबह हुई, तो राधा बिलखबिलख कर पूरे महल्ले के सामने कह रही थी, ‘‘हाय, मेरा एकलौता भाई… कहां चला गया तू…’’ उस ने उमेश की मौत को स्वाभाविक मौत मानने पर सब को मजबूर कर दिया था.

पुलिस भी यही मान कर चल रही थी कि उमेश की मौत स्वाभाविक है कि तभी थाना इंचार्ज ने कहा, ‘‘उमेश की तो शादी हो चुकी है. इस की बीवी को आ जाने दीजिए.’’ तब राधा ने बड़ी चालाकी से कहा, ‘‘अरे साहब, वह तो इस से झगड़ा कर के मायके गई है. वह आ भी जाएगी, तो क्या करेगी. कम से कम मेरे भाई का अंतिम संस्कार तो समय पर हो जाने दीजिए.’’ राधा की बारबार अंतिम संस्कार की बात पर पहले तो सभी को अटपटा लगा, लेकिन जब वह लाश के सड़नेगलने की बात करने लगी, तो पुलिस भी इस के लिए राजी हो गई. पुलिस अपना काम पूरा समझ कर वहां से जाने ही वाली थी, तभी बाजी पलट गई. उसी वक्त उमेश की पत्नी साक्षी अपने मायके वालों के साथ वहां आ गई. साक्षी ने आते ही पुलिस से लाश का पोस्टमार्टम कराने की बात कही, तो राधा के होश उड़ गए. जैसे ही पुलिस को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली, तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

शक होते ही राधा को तुरंत गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. इस के बाद पुलिस रवि की खोज में दौड़ गई और उसे भी धर दबोचा. राधा और रवि के हसीन सपने बहुत देर तक पुलिस केसामने टिक न सके.

राधा खुद अपनी जबान से काली करतूत बयान करने लगी, ‘‘साहब, हम 6 बहनें हैं. उमेश मेरा एकलौता भाई था. लेकिन केवल कहने का भाई था. उसे अपनी बीवी के अलावा किसी और की चिंता न थी. वह अपनी बीवी के कहने पर मुझ पर जुल्म ढाता था, इसलिए मैं ने उसे खत्म करने का फैसला कर लिया था.

‘‘मैं मौके की तलाश में थी, तभी इस का अपनी बीवी से झगड़ा हो गया. वह अपने मायके चली गई. मैं ने मौका पा कर रवि को फोन कर के बुलाया था. हम दोनों ने उमेश का गला दबा कर उसे मार डाला था.

‘‘साहब, मैं रवि से प्यार करती हूं और उसे मैं किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी…’’ राधा बिना किसी झिझक के अपना बयान दे रही थी. रवि पुलिस के सामने जहां फूटफूट कर रो रहा था, वहीं राधा की आंखों में आंसू का एक भी कतरा नहीं था. उसे अपने हसीन सपनों के लिए भाई की जान लेने का जरा भी दुख नहीं था.

सामने आया जडेजा की शादी का कार्ड, 17 को चढ़ेंगे घोड़ी

टीम इंडिया के आलराउंडर रविंद्र जडेजा की शादी का कार्ड सामने आ चुका है. जडेजा 17 अप्रैल को अपनी मंगेतर रीवाबा संग सात फेरे लेंगे. शादी राजकोट में होगी.

शादी में क्रिकेट जगत और राज्य की कई राजनैतिक हस्तियां शामिल होंगी. वेडिंग कार्ड बहुत ज्यादा आकर्षक है. कार्ड पर सबसे ऊपर RR लिखा है जिसका मतलब है रविंद्र और रीवाबा. शादी राजकोट के कालावड रोड पर स्थित सीजंस होटल में होगी जिसमें दोनों परिवार के करीबी ही शामिल होंगे.

जबकि 18 तारीख को जडेजा के मूल गांव हाडाटोडा में ग्रैंड रिसेप्शन होगा. 16 तारीख को जडेजा की शादी का संगीत रखा गया है. मालूम हो कि आईपीएल के बीच में जडेजा की शादी होने के कारण टीम इंडिया के सर जी 14 अप्रैल को पुणे के खिलाफ और 16 अप्रैल को मुंबई इंडियन्स के खिलाफ होने वाले मैच में शामिल नहीं हो पायेंगे.

देश की पत्नियों एक हो जाओ

अगर सर्वोच्च न्यायालय ने सरदारों पर चुटकुलों पर कोई प्रतिबंध लगा दिया तो पक्की बात है कि आलिया भट्ट, रजनीकांत, जाटों और उन सब से पहले पत्नियों की सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए लाइन लग जाएगी. सरदारों पर जोक्स इतने लोकप्रिय हैं कि स्वयं एक सिख लेखक खुशवंत सिंह ने सरदार जोक्स के कई कलैक्शन प्रकाशित किए थे और आज भी वे खूब बिकते हैं. सोशल मीडिया पर सरदार और संताबंता के चुटकुले भरे पड़े हैं पर उन्हें सिख जोक्स कहा जा सकता है या नहीं, अभी मालूम नहीं. पत्नियां अपने ऊपर बनने वाले चुटकुलों से उतनी ही परेशान हैं जितने सरदार, जाट, चौधरी और हरियाणवी. यह तो माना जा सकता है कि ये चुटकुले पूरी जमात को मजाक का निशाना बनाने के लिए गढ़े जाते हैं पर ये असल में खटाखट दोहराए तभी जाते हैं, जब इन में कुछ सत्यता हो.

समाज असल में उन समूहों को नीचा दिखाने के लिए चुटकुले गढ़ता है, जिन्हें अपमानित कर के उन का आत्मविश्वास कमजोर करा जा सके और वे सिर न उठा सकें. सिखों के प्रति चुटकुलों का राज भी शायद यही है कि जब साधारण वर्गों के लोग सिख धर्म अपना कर सामाजिक सीढ़ी चढ़ने लगे तो उन का मजाक उड़ाया जाने लगा. यही औरतों के साथ हो रहा है. जब से औरतों ने अपने अधिकारों की मांग करनी शुरू की और पतियों से बराबरी, तब से उन का मजाक बनाया जा रहा है ताकि सामूहिक रूप से उन्हें अपमानित करा जा सके. ऐसा दुनिया के सारे देशों में होता है. इंगलैंड और अमेरिका में पोलिश व ज्यू जोक्स प्रचलित हैं, क्योंकि सीधेसादे बेचारे गरीब पोलिश मजदूर व ज्यू शरणार्थी जब यूरोपीय शहरों में पहुंचते थे तो दूसरों की तरह बराबर का सम्मान पाने की कोशिश करते थे. वह न दिया जाए इसलिए उन पर चुटकुले गढ़े जाते और जम कर दोहराए जाते और ज्यादातर में उन्हें मूर्ख दिखाया जाता.

औरतों को भी सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए, क्योंकि पत्नियों पर चुटकुले पूरे समूह का अपमान है. पत्नीभक्ति तो देशभक्ति की तरह है और जैसे देशभक्ति को चुनौती मिलते ही भगवा खून खौलने लगता है, पत्नीभक्ति पर आपेक्ष पर चुप नहीं रहना चाहिए. देश की पत्नियो एक हो जाओ, अपमान न सहो

मिड डे मील : रसोइयों को नहीं मिला पैसा

बच्चे पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी दिखाएं, अपने साथ दोपहर का खाना भी न लाएं, पर स्कूल समय पर आएं, इस के लिए सरकार ने मिड डे मील योजना चलाई थी. बच्चों को पढ़ाई के प्रति जागरूक करने के लिए सरकार की ओर से मुफ्त कापी किताब और ड्रेस देने का भी ऐलान कर दिया गया. बच्चों को दोपहर का खाना देने के लिए रसोइयों को रखा गया. इस के एवज में उन्हें मेहनताना दिया जाता था.

परंतु अफसोस की बात यह है कि इन रसोइयों को पिछले 7 महीनों से पैसा नहीं मिला है, लिहाजा घर पर उन्हें पैसों की किल्लत से जूझना पड़ रहा है. इस के अलावा इन रसोइयों को काम करने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

बता दें कि शहर के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील का खाना बनाने वाले रसोइयों को पिछले 7 महीने से पैसा नहीं मिला है. इन में काकोरी, सरोजनीनगर, चिनहट समेत कई ब्लाकों के तकरीबन 2 हजार रसोइए शामिल हैं.

रसोइयों के मुताबिक, उन के खाते में अब तक वेतन का पैसा नहीं अया है. वहीं विभागीय अफसरों का कहना है कि अक्षय पात्र फाउंडेशन को अक्तूबर महीने तक का भुगतान कर दिया गया है.

प्राथमिक विद्यालय लालताखेड़ा काकोरी की खाना बनाने वाली ने बताया कि उन्हें जुलाई, 2015 से पैसा नहीं मिला है, वहीं प्राथमिक विद्यालय चौकड़ीखेड़ा की खाना पकाने वालियों ने बताया कि पैसा न मिलने की वजह से उन्हें घर चलाना मुश्किल हो गया है.

अक्षय पात्र फाउंडेशन की ओर से जितने भी ब्लाकों में मानदेय यानी वेतन दिया जाता है, उन सभी में रसोइयों का यही हाल है. कुछ ब्लाकों में सितंबर महीने से पैसा नहीं दिया गया है, तो कुछ में जुलाई महीने से पैसा बाकी है.

शहर के सभी ब्लाकों में तकरीबन 4 हजार रसोइए काम कर रहे हैं. 5 ब्लाक चिनहट, काकोरी, सरोजनी नगर, मोहनलालगंज और नगर क्षेत्र में अक्षयपात्र फाउंडेशन ही मिड डे मील देने का काम करता है, इसलिए इन ब्लाकों के तकरीबन 2 हजार रसोइयों को पैसे देने का जिम्मा अक्षयपात्र फाउंडेशन का है. यह मानदेय विभाग की ओर से अक्षयपात्र फाउंडेशन को दे दिया जाता है. इस फाउंडेशन को पैसा सिर्फ ट्रांसफर करना होता है. पैसा देने के बावजूद इन रसोइयों के खातों में अब तक पैसा ट्रांसफर नहीं किया गया है.  

 

अफसरों ने बरबाद कीं 5 करोड़ की कृषि मशीनें

झारखंड सरकार ने छोटे और मंझोले किसानों को खेती की मशीनों के प्रति जागरूक बनाने के लिए बड़े तामझाम के साथ 5 करोड़ रुपए की मशीनें खरीदी थीं. इन मशीनों का कोई इस्तेमाल नहीं होने से वे कबाड़ में बदल गई हैं. इन महंगी मशीनों को किसानों के बीच प्रदर्शित करने और उन्हें किराए पर देने की योजना थी. पिछले 12 सालों के दौरान न कभी इन मशीनों को प्रदर्शन में रखा गया और न ही किसानों को किराए पर दिया गया. मशीनों पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी सरकार को राजस्व के रूप में एक फूटी कौड़ी भी नहीं हासिल हुई.

राज्य के कृषि विभाग ने साल 2004 में 5 करोड़ रुपए खर्च कर के बड़ी और छोटी 70 कृषि मशीनों को खरीदा था. 3 करोड़ 95 लाख रुपए में 22 कंबाइंड हार्वेस्टर खरीद गए. उस समय 1 कंबाइंउ हार्वेस्टर की कीमत 17 लाख, 99 हजार रुपए थी. इसी तरह से 74 लाख 58 हजार रुपए खर्च कर के 44 पैंडी ट्रांसप्लांटर खरीदे गए. 1 पैंडी ट्रांसप्लांटर की कीमत उस वक्त 1 लाख 70 हजार रुपए थी. 2 लाख 74 हजार रुपए में 4 सीड प्रोसेसरों की खरीद की गई थी.

कृषि विभाग के सूत्रों ने बताया कि झारखंड में बड़े जोत वाले खेतों की संख्या काफी कम है और करीब 63 फीसदी सीमांत किसान हैं. ऐसे में बड़ी और महंगी कृषि मशीनों की जरूरत ही नहीं थी. छोटी जोत वाले खेतों में ये मशीनें इस्तेमाल नहीं की जा सकती हैं. रांची समेत धनबाद, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़ आदि जिलों के जिला कृषि पदाधिकारियों ने साल 2008 में ही विभाग को बता दिया था कि उन के जिलों में उन मशीनों की कोई जरूरत नहीं है. दिलचस्प बात यह?है कि विभाग ने कंबाइंड हार्वेस्टर और पैडी ट्रांसप्लांटर तो खरीद लिए, पर आज तक उन्हें चलाने के लिए ड्राइवरों की बहाली नहीं की गई.

बिना ड्राइवर के पटरियों पर दौड़ेगी दिल्ली मेट्रो

क्या आप जानते हैं की दिल्ली की जान दिल्ली मेट्रो इस साल के अंत तक अपने थर्ड फेज में बिना ड्राइवर के ही पटरियों पर दौड़ती दिखेगी. बिना ड्राईवर के चलने वाली यह मेट्रो कम्यूनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (सीबीटीसी) तकनीक पर आधारित  होगी. दुनिया के कई शहरों में बिना ड्राइवर वाली ट्रेन चल रही हैं लेकिन दिल्ली वालों के लिए यह पहला मौका होगा, जब दिल्ली वाले बिना ड्राइवर की ट्रेन में सफ़र करने का आनंद उठा सकेंगे. साल के अंत तक ये ट्रेन पश्चिमी जनकपुरी से बॉटेनिकल गार्डेन तक करीब 37 किलोमीटर और शिव विहार से मजलिस पार्क करीब 57 किलोमीटर तक चलेगी.

बुधवार को पहली बार इस मेट्रो को मुकुंदपुर डिपो में बिना ड्राइवर के चलाया गया. दक्षिण कोरिया से आई छह डिब्बों की इस मेट्रो ट्रेन की औसत रफ्तार और इसके डिब्बों की चौड़ाई भी आम मेट्रो ट्रेन से ज्यादा है. जहाँ आम मेट्रो के डिब्बों की चौड़ाई 2.9 मीटर है, वहीं हाईटेक ट्रेन के डिब्बों की चौड़ाई 3.2 मीटर है. इसकी फ्रिक्वेंसी भी दूसरी लाइन की मेट्रो से ज्यादा होगी, क्योंकि इसकी औसत रफ्तार 5 किमी/घंटा ज्यादा है. चौड़ाई ज्यादा और ड्राइवर केबिन हटने से इसमें 280 लोग ज्यादा बैठ भी सकते है. यही नहीं इसमें सीटें भी ज्यादा देने की कोशिश की गई है और यह वाईफाई कनेक्शन से भी लैस होगी इन खास ट्रेनों से 33 फीसदी बिजली की कम खपत होगी.

स्पीड के अलावा इनके अंदर का लुक भी बदला हुआ नजर आएगा. हर कोच में अलग-अलग रंग की सीट होंगी. लेडीज कोच की सीट्स पिंक कलर में रखी गई हैं. जबकि नॉर्मल कोच में ब्लू, रेड और ऑरेंज कलर की सीट होंगी. इनके अंदर जगह ज्यादा होगी. यही नहीं अंदर एलसीडी स्क्रीन भी लगे होंगे. जो आपको आने वाले स्टेशन और ट्रेन रूट की जानकारी देंगे. थर्ड फेज में इन ट्रेनों को मजलिस पार्क-शिव विहार और जनकपुरी पश्चिम-बॉटनिकल गार्डन के रूट पर चलाया जाएगा.

ओरिजनल पैकिंग में नकली माल

अनु ने अपने बर्थडे पर ब्रांडेड एंड्रायड फोन खरीदा पर ये क्या कुछ दिन बाद ही उस मोबाइल फोन पर प्रौब्लम होने लगी. जब वह मोबाइल ले कर पास के सर्विस सैंटर गई तो वहां पर उसे पता चला मोबाइल फोन तो नकली है. यह सुन कर वह सोच में पड़ गई ऐसा कैसे हो सकता है उस ने तो ब्रांडेड मोबाइल फोन लिया है?

नकली माल की है धूम?

आजकल सस्ते स्मार्ट फोन की धूम है हर ब्रांड का अपना मौडल मौजूद है और जो ब्रांड मार्केट में पसंद किया जाता है. उस के नकली फोन भी मार्केट में मिलते हैं. कभीकभी तो ओरिजनल पैकिंग में भी नकली स्मार्ट फोन मिलते हैं जैसे अनु के साथ हुआ. इसलिए जब भी नया मोबाइल खरीदे उस से पहले सावधानी बहुत जरूरी है.

सावधानियां

  • जब भी नया स्मार्ट फोन खरीदे उसे चैक जरूर करें सब से पहले जीएसएम एरीना www.gsmarena.com पर जा कर मौडल का सही नंबर लिख लें जिस भी स्मार्ट फोन के मौडल पर आप की नजर है उस के फीचर के बारे में सब कुछ जानने की कोशिश करें.
  • जब आप स्मार्टफोन खरीद रहे हैं तो उस के मौडल नंबर औपरेटिंग सिस्टम का वर्जन और ब्रौडबैंड वर्जन पर नजर रखें.
  • एंड्रायड स्मार्टफोन की सैटिंग में जाने के बाद ‘अबाउट फोन’ में जा कर आप यह पता कर सकते हैं कि औपरेटिंग सिस्टम कौन सा इस्तेमाल हो रहा है.
  • आईफोन पर आप सैटिंग में जा कर जनरल में जाए और ‘अबाउट’ चुन कर यह पता कर सकते हैं. जब आप उस मेन्यू पर होते हैं तो आप का डिवाइस नंबर और ब्रौडबैंड नंबर भी दिखेगा और जो मौडल नंबर औपरेटिंग सिस्टम और ब्रौडबैंड नंबर आप ने शुरू में नोट किया था, अब उसे एक बार देख लें, स्मार्टफोन का IMEI नंबर भी आप को अबाउट या अबाउट फोन में मिल जाएगा. हर मोबाइल फोन का एक यूनिक IMEI नंबर होता. एक बार आप को IMEI नंबर मिल गया, उसे आप वेबसाइट पर डाल कर चैक कर सकते हैं कि स्मार्टफोन ओरिजनल है या नहीं. अगर IMEI नंबर सही नहीं है तो वह नकली है.

जब भी आप फोन खरीदें औथोराइडज्ड शौप्स से ही खरीदें और उस का पक्का बिल जरूर लें.

‘सिटी लाइट्स’ के बाद मेरे पास नहीं था काम: पत्रलेखा

फिल्म 'लव गेम्स' में जल्द ही नजर आने वाली अभिनेत्री पत्रलेखा ने हाल ही में अपना एक दर्द बयां किया है. पत्रलेखा पिछले काफी वक्त से अपने फिल्मी करियर को लेकर परेशान हैं. उन्होंने वर्ष 2014 में आई हंसल मेहता के निर्देशन में बनी फिल्म 'सिटी लाइट्स' में एक ग्रामीण महिला का किरदार निभाया था. फिल्म में निभाई गई उनकी भूमिका के लिए उन्होंने फिल्म समीक्षकों से काफी सराहना हासिल की थी लेकिन उनका कहना है कि फिल्म के बाद उन्हें काम की कोई और पेशकश नहीं मिली और वह काम की तलाश में फिल्मकार महेश भट्ट के पास गई थीं.

पत्रलेखा ने कहा, "फिल्म 'सिटी लाइट्स' के बाद मुझे कोई काम नहीं मिला. मैं महेश सर के पास गई और उनसे कहा कृपया मुझे काम दें, इसके बाद उन्होंने मुझे विक्रम भट्ट सर से मिलने के लिए कहा." पत्रलेखा ने अपनी नई फिल्म 'लव गेम्स' के प्रचार के दौरान संवाददाताओं से कहा, "मैं 'लव गेम्स' देने के लिए दोनों की शुक्रगुजार हूं. लोग मुझे मेरे अभिनय में बदलाव के लिए बधाई दे रहे हैं लेकिन इसका श्रेय विक्रम सर को जाता है. 26 साल की अभिनेत्री फिल्म में रमोना रायचंद नाम की एक अमीर आकर्षक महिला के किरदार में नजर आएंगी.

फिल्म के निर्देशक विक्रम भट्ट ने पत्रलेखा की तारीफ करते हुए कहा, "पत्रलेखा इस भूमिका में शानदार रही हैं और उनमें काफी धैर्य एवं साहस है. मैंने उनसे कहा था कि उन्हें आरामतलब स्थिति से बाहर निकलना होगा और उन्होंने किसी चीज के लिए मना नहीं किया."

एरोटिक-ड्रामा फिल्म में पत्रलेखा के साथ नवोदित अभिनेता गौरव अरोड़ा और अभिनेत्री तारा अलीशा बेरी मुख्य भूमिकाओं में हैं.

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