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VIDEO: इम्तियाज की इस फिल्म के वो आखिरी पांच मिनट

इम्तियाज अली बॉलीवुड के एक ऐसे फिल्मकार हैं, जो अपने अलग अंदाज व अलग विचारों के कारण जाने जाते हैं. उनकी फिल्में संदेश छोड़ती हैं. समाज को सोचने पर विवश करती हैं. इन दिनों वो एक लघु फिल्म से चर्चा में हैं. फिल्म का नाम है इंडिया टुमारो. उन्होंने इस फिल्म को अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया है.

इस लघु फिल्म को देखने के बाद कहा जा सकता है कि उन्होंने कमर्शियल सिनेमा से हटकर ऑफबीट फिल्म की रचना की है. इसमें उन्होंने महिला सशक्तिकरण की बात की है. उनके सपनों के साथ उनके जीने के अंदाज को बखूबी दर्शाया है. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इसके प्रचार-प्रसार को लेकर किए गए सवाल पर इम्तियाज ने कहा कि शॉर्ट फिल्म के साथ मैं डिजिटल दुनिया का दरवाजा खोल रहा हूं. इसमें दिलचस्पी रखने वाले लोगों और संगठनों से बातचीत की जाएगी. इस तथ्य पर जोर देते हुए कि यह शॉर्ट फिल्म इंटरनेट पर उपलब्ध है, जो इसके उपयोग को आसान बनाता है.

उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि वेब सीरीज, शॉर्ट फिल्म्स रोमांचक है, जिसकी कहानी संभवत: पूरी तरह अलग है. मैं इसे आपके जीवन की फीचर फिल्म कह सकता हूं और यह वन-नाइट स्टैंड जैसा है. इंडिया टूमॉरो के आखिरी पांच मिनट के दृश्यों में सेक्स वर्कर्स को शेयर मार्केट में पैसा लगाने वालों के साथ बातचीत करते दिखाया गया है. यह देखने के बाद यह सवाल उठता है कि शेयर मार्केट का इतना तजुर्बा होते हुए इस औरत ने वेश्या के धंधे को क्यों चुना.

जवाब जानने के लिए देखें वीडियो…

हॉलीवुड अभिनेत्री केटी लोव्स के लिए प्रियंका बनीं मिसाल

बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की हॉलीवुड में धूम है. हर कोई उनका दीवना है. चाहे अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा हों या फिर हॉलीवुड की सेलिब्रिटीज. पिछले दिनों जहां एक हॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका के क्वांटिको प्रोमो में उनके बालों का मजाक बनाया था, वहीं हॉलीवुड की एक जानी मानी अभिनेत्री ऐसी है, जो प्रियंका को मेकअप के लिए प्रेरणामान बैठी हैं. जी हां, हम बातकर रहे हैं केटी लोव्स की. इस अमरीकी अभिनेत्री केटी के लिए मेकअप प्रेरणा बन गई हैं प्रियंका चोपड़ा. केटी को टेलीविजन प्रोग्राम 'स्कैंडल' में क्वीन पर्किन्स किरदार के लिए पहचाना जाता है. केटी लोव्स ने बुधवार रात ट्विटर पर लिखा, प्रियंका चोपड़ा को मेकअप प्रेरणा देने के लिए धन्यवाद.

उन्होंने प्रियंका की मैग्जीन क्लिपिंग के साथ अपनी एक तस्वीर साझा की. प्रियंका वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय फिल्म बेवॉच की शूटिंग में व्यस्त हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि उन्हें 'स्कैंडल' और इसमें लोव्स का अभिनय पसंद है. भारतीय अभिनेत्री और पूर्व मिस वल्र्ड ने अमेरिकी टेलीविजन धारावाहिक 'क्वांटिको' के साथ अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की. इसमें उन्हें एफबीआई एजेंट की भूमिका निभाई थी. 'बेवॉच' के साथ उन्होंने हॉलीवुड में अपने कॅरियर की शुरुआत की थी. फिल्म 'बेवॉच' 1990 के दशक के बेहद लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिक पर आधारित है. इसमें ड्वेन जॉनसन और जैक एफ्रोन भी प्रमुख भूमिका में हैं.

यूं ही नहीं कहते आमिर खान को मिस्टर परफेक्शनिस्ट

वो यूं ही नहीं हैं मिस्टर परफेक्शनिस्ट. चाहे रील लाइफ हो रीयल लाइफ…हर जगह वो कुछ ऐसा कर गुजरते हैं कि चर्चा का विषय बन जाता है. जी हां, आपने बिल्कुल सही समझा, हम आमिर खान की ही बात कर रहे हैं.

इन दिनों वो दंगल फिल्म में अपने कैरेक्टर को लेकर सुर्खियों में तो हैं ही, साथ ही जिस तरह से उन्होंने अचानक अपना वजन कम किया है, वह हर जगह कौतूहल का विषय बना हुआ है. वजन बढ़ाने के बाद पिछले माह अचानक उन्हें घटे वजन में देख लोग दंग रहे गए. उनका घटा वजन देख कई सिने हस्तियां हैरान हैं उन्हें इसलिए ज्यादा ताज्जुब हुआ, क्योंकि आमिर ने अपना वजन प्राकृतिक तरीकों से घटाया है.

बता दें कि आमिर (50) ने व्यायाम में साइकिलिंग, ट्रेकिंग, स्वीमिंग व टेनिस खेलना शामिल किया. हिंदी फिल्म जगत से कई हस्तियां आमिर से पूछ रही हैं कि उन्होंने अपना बढ़ा वजन किस तरह कम किया. आमिर के प्रवक्ता ने कहा, फिल्म उद्योग से आमिर के कई दोस्तों ने उनसे संपर्क किया है और वजन घटाने के उनके राज के बारे में पूछ रहे हैं. आमिर ने अपना मौजूदा लुक पाने के लिए जो समर्पण दिखाया, उसे देखकर हर कोई दंग है.

एक्सीडैंट

सड़क पर ज्यादा भीड़ को देख कर हरनाम सिंह ने ट्रक की रफ्तार कम कर दी. सारी रात ट्रक चलाते रहने के चलते वह बुरी तरह थक गया था. उस की इच्छा थी कि वह किसी ढाबे में चायनाश्ता कर के कुछ देर वहीं आराम करे. शहर खत्म होते ही सड़क खाली पा कर हरनाम सिंह ने ट्रक की रफ्तार फिर बढ़ा दी. उसे सड़क के बीचोंबीच एक मोपैड सवार जाता दिखाई दिया. उस ने साइड मांगने के लिए हौर्न बजाया. हौर्न की आवाज सुन कर मोपैड सवार ने पलट कर देखा और किनारे होने के बजाय मोपैड की रफ्तार बढ़ा दी.

हरनाम सिंह ने देखा कि वह एक 15-16 साल का लड़का था, जो साइड देने के बजाय ट्रक से मुकाबला करने के मूड में दिख रहा था. हरनाम सिंह का वास्ता ऐसे शरारती लड़कों से पड़ता रहता था. उस पर गुस्सा आने के बजाय हरनाम सिंह के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. उसे देख कर हरनाम सिंह को अपने बेटे की याद आ गई. वह भी बहुत शरारती था. हरनाम सिंह धीमी रफ्तार से ट्रक चलाता रहा. मोपैड सवार को ट्रक से आगे निकलने में काफी मजा आ रहा था. ट्रक को काफी फासले पर देख कर उस ने खुशी में अपना दाहिना हाथ उठा कर हिलाया. तेज रफ्तार और दाहिना हाथ हैंडल से हट जाने के चलते वह लड़का बैलैंस नहीं रख सका और सिर के बल पथरीली सड़क पर जा गिरा.

हरनाम सिंह मोपैड सवार का ऐसा भयंकर अंजाम देख सकते में आ गया. उस का ट्रक तेज रफ्तार से दौड़ रहा था. एक सैकंड की भी चूक उस लड़के की जान ले सकती थी. तेज रफ्तार के बावजूद ट्रक घिसटते हुए घायल मोपैड सवार से कुछ पहले ही रुक गया. अचानक ब्रेक लगने के चलते पिछली सीट पर सोया क्लीनर भानु गिरतेगिरते बचा.

‘‘क्या हुआ उस्ताद?’’ भानु ने घबरा कर पूछा, ‘‘गाड़ी क्यों रोक दी?’’

‘‘उस्ताद के बच्चे, जल्दी से नीचे उतर,‘‘ कह कर हरनाम सिंह नीचे उतरा. वह लड़का बुरी तरह घायल था. उस का सिर किसी नुकीले पत्थर से टकरा कर फट गया था. उस ने कराह कर एक बार आंखें खोलीं और हरनाम सिंह की ओर देखने लगा, जैसे जान बचाने के लिए कह रहा हो.

हरनाम सिंह दुविधा में पड़ गया. आसपास कोई घर भी नहीं था, जहां से मदद की उम्मीद की जा सके. उस ने 1-2 कारों को रोक कर मदद मांगने की कोशिश की, लेकिन मदद करना तो दूर, किसी ने रुकने की भी जरूरत नहीं समझी.

‘‘घबरा मत बेटा…’’ हरनाम सिंह ने उस लड़के को दिलासा दी, ‘‘मैं तुझे अस्पताल ले कर चलता हूं.’’

‘‘मरने दो उस्ताद. क्यों फालतू के झंझट में पड़ते हो?’’ भानु ने समझाने की कोशिश की, ‘‘यह कोई अपनी गाड़ी से तो नहीं टकराया है.’’

यह सुन कर हरनाम सिंह का खून खौल उठा. उसे ऐसा लगा कि यह बात उस के अपने बेटे के लिए कही गई हो. उस की इच्छा भानु को एक जोरदार थप्पड़ मारने की हुई, लेकिन समय की नजाकत को देख कर उस ने खुद पर काबू पा लिया.

‘‘बकवास मत कर…’’ हरनाम सिंह दहाड़ा, ‘‘इसे ट्रक पर चढ़ाने में मेरी मदद कर.’’

उन दोनों ने मिल कर उस घायल लड़के को ट्रक की पिछली सीट पर लिटा दिया. सीट खून से रंगती जा रही थी. हरनाम सिंह ने खून का बहाव रोकने के लिए अपनी पगड़ी उतार कर लड़के के सिर पर बांध दी.

‘‘तू लड़के की मोपैड ले कर पीछेपीछे आ,’’ हरनाम सिंह ने भानु से कहा और ट्रक ले कर शहर की ओर चल पड़ा.

ज्यादा खून बह जाने के चलते वह लड़का बेहोश हो चुका था हरनाम सिंह की जगह कोई दूसरा ड्राइवर होता, तो शायद उस घायल लड़के को वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गया होता, लेकिन हरनाम सिंह अपने दयालु स्वभाव के चलते उसे अस्पताल तक तो ले कर आया ही, भूखाप्यासा रह कर लड़के की हालत जानने के लिए बेचैन रहा. भानु भी उस के करीब ही बैठा रहा.

‘‘कैसी हालत है डाक्टर साहब?’’ हरनाम सिंह ने आपरेशन थिएटर से डाक्टर को बाहर निकलते देख कर पूछा.

‘‘कुछ कहा नहीं जा सकता…’’ डाक्टर ने बताया, ‘‘खून बहुत ज्यादा बह गया है और उस के ग्रुप का खून नहीं मिला तो…’’

हरनाम सिंह को एक झटका सा लगा, ‘तो क्या मेरी मेहनत बेकार हो जाएगी…’ यह सोच कर वह बोला, ‘‘डाक्टर साहब, आप मेरा खून ले लीजिए.’’

डाक्टर ने अचरज से उसे देखा और कहा, ‘‘आइए सरदारजी, आप का खून टैस्ट किए लेते हैं.’’

हरनाम सिंह का खून लड़के के ग्रुप का ही निकला. उस का खून उस लड़के को दे दिया गया. कुछ ही समय बाद वह लड़का खतरे से बाहर हो गया, लेकिन उसे होश नहीं आया था. हरनाम सिंह ने अपने दिल में एक अजीब सी खुशी महसूस की.

एक्सीडैंट का मामला होने के चलते अस्पताल वालों ने पुलिस में खबर कर दी थी. सूचना पा कर जांच के लिए काशीनाथ नामक एक रिश्वतखोर इंस्पैक्टर अस्पताल पहुंच गया. वह रिश्वत लेने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देता था.

वह बयान लेने के लिए हरनाम सिंह के पास पहुंचा, ‘‘क्या नाम है तेरा?’’ उस इंस्पैक्टर ने हरनाम सिंह को घूरते हुए पूछा, ‘‘कहां जा रहा था? लड़के को टक्कर कैसे मार दी?’’

ड्राइवर होने के चलते हरनाम सिंह ऐसे पुलिस वालों के घटिया बरताव से परिचित था. उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर खुद पर काबू रखा. उस ने पूरी घटना सचसच बता दी. इंस्पैक्टर काशीनाथ पर हरनाम सिंह की शराफत का कोई असर नहीं पड़ा. वह तो कुछ रकम झटकने की तरकीब सोच रहा था.

‘‘जानता है, अस्पताल के सामने ट्रक खड़ा करना मना है…’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ धमकी भरी आवाज में बोला, ‘‘तेरा चालान काटना पड़ेगा.’’

‘‘गलती हो गई साहबजी…’’ हरनाम सिंह गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘उस समय लड़के की जान बचाना जरूरी था.’’

‘‘एक तो तू ने नियम तोड़ा है, ऊपर से मुझ से बहस कर रहा है,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ घुड़क कर बोला. हरनाम सिंह ने पुलिस वाले से उलझना ठीक नहीं समझा. उस ने धीरे से कहा, ‘‘ठीक है, काटिए मेरा चालान.’’

काशीनाथ का धूर्त दिमाग फौरन सक्रिय हो उठा, ‘यह ड्राइवर जरूरत से ज्यादा सीधासादा है…’ उस ने सोचा और कड़क आवाज में कहा, ‘‘ट्रक ले कर कहां जा रहा था? क्या है ट्रक में?’’

‘‘सीमेंट है साहब. आगे नदी पर बांध बन रहा है, वहीं पर जा रहा था…’’ हरनाम सिंह ने जानकारी देते हुए कहा, ‘‘मेहरबानी कर के मेरी जल्दी छुट्टी कीजिए. मैं बहुत लेट हो गया हूं. अगर समय पर नहीं पहुंचा तो…’’

‘‘ट्रक ले कर थाने चल,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ उस की बात काट कर बोला.

‘‘क्या…’’ यह सुन कर हरनाम सिंह जैसे आसमान से गिरा, ‘‘थाने क्यों साहब? मैं ने क्या किया है?’’

‘‘क्या सुना नहीं तू ने…’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ डपट कर बोला, ‘‘ट्रक ले कर थाने चल.’’

कुछ ही समय बाद हरनाम सिंह व भानु थाने में थे. इंस्पैक्टर काशीनाथ जानता था कि ट्रक वाले कानूनी पचड़ों में फंस कर समय बरबाद करने के बजाय कुछ लेदे कर मामला निबटाना बेहतर समझते हैं. ऐसी ही योजना बना कर वह हरनाम सिंह को थाने में लाया था. ‘‘अब बोल, क्या इरादे हैं तेरे?’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ ने उसे इस अंदाज से घूरा, जैसे कसाई बकरे को देखता है.

‘‘कैसे इरादे साहब?’’ हरनाम सिंह की समझ में कुछ नहीं आया, ‘‘आप चालान कीजिए. जो जुर्माना होगा, मैं भरने को तैयार हूं. मेहरबानी कर के जल्दी कीजिए. अगर मैं समय पर वहां नहीं पहुंचा, तो मेरा भारी नुकसान हो जाएगा,’’ हरनाम सिंह बोला.

‘‘अबे, कुछ खर्चापानी दे, तभी जा सकता है तू यहां से,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ बेशर्मी से बोला.

हरनाम सिंह के सब्र का बांध टूट गया, ‘‘क्यों खर्चापानी दूं? एक इनसान की जान बचा कर मैं ने क्या जुर्म किया है? तुम पुलिस वाले हो या लुटेरे.’’ एक ट्रक ड्राइवर को इस तरह से ऊंची आवाज में बात करते देख इंस्पैक्टर काशीनाथ का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने डंडा उठा कर हरनाम सिंह की बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. अपने साहब की मदद करने के लिए दूसरे सिपाही भी आ गए. हरनाम सिंह पर चारों तरफ से लातघूंसों और डंडों की बौछार होने लगी. उस की दिल दहला देने वाली चीखों से पूरा थाना गूंज उठा. क्लीनर भानु एक ओर खड़ा थरथर कांप रहा था.

24 घंटे से भी ज्यादा समय से भूखाप्यासा हरनाम सिंह खून देने के चलते पहले ही कमजोर हो चुका था. वह पुलिस वालों की मार ज्यादा देर तक सहन न कर सका और पिटतेपिटते बेहोश हो गया. इस के बाद इंस्पैक्टर काशीनाथ भानु की ओर पलटा और उस से पूछा, ‘‘लिखना जानता है?’’

सूखे पत्ते की तरह कांपते भानु ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘मैं जैसा कहता हूं, वैसा ही लिख दे,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ धमकी भरी आवाज में भानु से बोला, ‘‘नहीं तो तेरी हालत तेरे उस्ताद से भी बुरी बनाऊंगा.’’

भानु ने अपने उस्ताद के अंजाम से डर कर वही लिखा, जो इंस्पैक्टर काशीनाथ चाहता था. उस ने लिखा कि एक्सीडैंट हरनाम सिंह की गलती से हुआ था. उस ने लापरवाही से ट्रक चलाते हुए मोपैड सवार लड़के को टक्कर मार दी थी. कुछ लोगों की फितरत सांप जैसी होती है. उन्हें कितना भी दूध पिलाओ, लेकिन वे जहर ही उगलते हैं. घायल लड़के का बाप उन्हीं में से एक था. उस ने सारी हकीकत जानने के बावजूद अपने बेटे को जीवनदान देने वाले की मदद करने की बात तो दूर, रिश्वत की रकम में हिस्सा पाने के लिए हरनाम सिंह के खिलाफ झूठी रिपोर्ट कर दी. हरनाम सिंह के मुंह पर पानी डाल कर उसे होश में लाया गया.

‘‘अब कैसी तबीयत है सरदारजी?’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ ने पूछा.

हरनाम सिंह चुप रहा. इंस्पैक्टर काशीनाथ बेचैन हो उठा. वह जल्दी से जल्दी मामला निबटा देना चाहता था. देर होने से बात बिगड़ सकती थी. उस ने हरनाम सिंह से 10 हजार रुपए की रिश्वत मांगी. पुलिस की मार से हरनाम सिंह पहले ही टूट चुका था. उसे यह जान कर सदमा लगा कि जिस लड़के की उस ने जान बचाई थी, उस का बाप भी इस धूर्त पुलिस वाले का साथ दे रहा है. उस ने कानूनी चक्कर में फंस कर समय बरबाद करने के बजाय रिश्वत दे कर जान छुड़ाना बेहतर समझा. ड्राइवर हरनाम सिंह ने अपने ट्रक के थोड़े पुराने 2 टायर बेच कर और अपने पास से कुछ पैसा मिला कर 10 हजार रुपए जुटाए और इंस्पैक्टर काशीनाथ के हवाले कर दिए.

थाने से हाईवे तक पहुंचने के लिए अस्पताल के सामने से हो कर गुजरना पड़ता था. अस्पताल के फाटक पर वही डाक्टर खड़ा था, जिस ने उस घायल लड़के का इलाज किया था. हरनाम सिंह ने ट्रक वहीं रोक दिया.

‘‘अब वह लड़का कैसा है डाक्टर साहब?’’ हरनाम सिंह ने ट्रक पर बैठेबैठे पूछा.

डाक्टर ने हरनाम सिंह को पहचान लिया, ‘‘वह एकदम ठीक है. अब उसे होश भी आ गया है, लेकिन आप को क्या हो गया है? आप की यह हालत…’’

हरनाम सिंह ने डाक्टर की बात का कोई जवाब नहीं दिया और ट्रक आगे बढ़ा दिया.

इन्हे देख कर ही शर्म क्यों

डाक्टर राम प्रकाश दोगने मध्य प्रदेश की हरदा सीट से कांग्रेस के विधायक हैं और उन्हे अपने विधान सभा क्षेत्र के किसानो की चिंता है, इसलिए वे लंबे समय से यह मांग करते रहे हैं कि तवा बांध का पानी हरदा के किसानो को भी दिये जाने की व्यवस्था सरकार करे. सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने उनकी इस मांग पर ध्यान नहीं दिया तो उन्होने अपनी बात कहने का अनूठा रास्ता चुना और गांधी शैली मे सिर्फ अधोवस्त्र पहने विधान सभा पहुँच गए. बात कतई नई नहीं है देश के नेता ऐसे दिलचस्प उपाय करते रहते हैं, अधिकांश का मकसद मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींच पब्लिसिटी हासिल करना है, मुमकिन है डाक्टर दोगने का भी रहा हो, पर उन्हें इस हालत मे देख भाजपा की महिला विधायकों ने पल्लू से इस तरह अपने चेहरे ढक लिए मानो एक अर्धनग्न पुरुष को देख उनका कोई बहुत बड़ा नैतिक नुकसान या हनन हो रहा हो. जाहिर है  इन महिला विधायकों की मंशा यूं मुंह छिपाकर यह जताने की थी कि राम प्रकाश दोगने एक भद्र पुरुष नहीं हैं.

यह मंशा और प्रतिक्रिया जाने क्यों उस वक्त प्रदर्शित नहीं होती जब नंग धढ़ंग साधु संत सरे आम सड़कों पर स्व्छन्द विचरण करते नजर आते हैं और कोई महिला उनका तिरिस्कार इस तरह नहीं करती जैसे उक्त विधायक का किया यानि धर्म के नाम पर हर कुछ जायज है और इतना है कि नंगे, अधनंगे साधु संतों और मुनियों सम्मान के हकदार हो जाते हैं उनके अंग प्रदर्शन से किसी का कुछ नहीं बिगड़ता. यह पूर्वाग्रह और  दोहरापन दिखलाकर भाजपा की विधायकों ने साबित यही किया है कि खोट उनकी मानसिकता और नजरों मे है नहीं तो विधायक महोदय की मंशा तो कहीं से अश्लील या महिलाओं को लज्जित करने की नहीं दिख रही .

थाइलैंड में डौल मेनिया

औनलाइन मेनिया के बारे में तो आप ने सुना ही होगा लेकिन क्या कभी आप ने डौल मेनिया के बारे में सुना है. तो अब सुन लें. थाइलैंड में इन दिनों डौल मेनिया छाया हुआ है. डौल रखने की सनक लोगों पर इस कदर हावी है कि वे इस के लिए हजारों रुपए तक खर्च करने को तैयार हो गए हैं. सिर्फ घर ला कर उसे शोकेस में ही नहीं रखते बल्कि उसे अपने साथ हर जगह घुमाने भी ले जाते हैं. जो खुद खाते हैं वो उसे भी औफर करते हैं. अपने बच्चे की तरह उस की हर छोटीबड़ी चीजों का खयाल रखते हैं यानी बिलकुल चाइल्ड जैसी केयर.

यहां तक कि कुछ लोग जब रात को डौल को अपने साथ सुलाते हैं तो बीचबीच में उठ कर देखते रहते हैं ताकि डौल को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो. इस के लिए वे अपनी नींद तक को ताक पर लगा देते हैं.

आखिर हो भी क्यों न इतना प्यार. एक तो लुक वाइज बिलकुल चाइल्ड जैसी लगती है और दूसरा जब इसे रखने के पीछे कहा जा रहा हो कि जो इसे रखेगा वो जल्द ही अमीर बन जाएगा. अमीर बनने की चाह हर किसी में होती है और जब एक डौल रखने भर से काम बन सकता है तो भला कौन इसे रखना पसंद नहीं करेगा. तभी तो थाइलैंड में डौलों की बाढ़ आ गई है.

यहां के लोग डौल को चाइल्ड ऐंजल नाम दे रहे हैं और उन के साथ सैल्फी खींच कर उसे सोशल साइट्स पर भी अपडेट कर दुनिया को हैरान कर रहे हैं.

लोगों में देखादेखी की आदत बहुत होती है उसी देखादेखी ने थाइलैंड में डौलों के प्रति लोगों की दीवानगी को बढ़ावा दिया है. सेलेब्स ने इस डौल को सब से पहले अपने पास रखा फिर तो हर किसी ने इसे रखना शुरू कर दिया. यहां तक कि अब कई होटलों में भी डौल को साथ लाने पर विशेष छूट दे कर लोगों को डौल रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

लेकिन जहां तक बात समझ आ रही है तो वो यही है कि चीन से बड़े पैमाने पर ऐसी डौलें लाने का उद्देश्य भ्रामक प्रचार के जरिए अपने कारोबार में बढ़ोत्तरी करना है.

कैसी शिक्षा, जिसमें देशद्रोह के आरोप लगें

किशोरावस्था में किशोरों के मन में रोमांस, रोमांच, मौजमस्ती और कैरियर से भी पहले देशभक्ति का जज्बा होता है. यह बात अलग है कि अन्य इच्छाओं की तरह वे इसे खुल कर व्यक्त नहीं करते. इसी उम्र में वे सिस्टम यानी व्यवस्था के बारे में सोचते हैं, उस का विश्लेषण करते हैं और इस के प्रति अपनी राय कायम करते हैं.

यह राय आमतौर पर अच्छी नहीं होती. देश के प्रति तो कतई नहीं, क्योंकि जब उन्हें अपने चारों ओर भाईभतीजावाद, भ्रष्टाचार, पाखंड, घूसखोरी, जातिगत व धार्मिक भेदभाव, शोषण, अपराध और घोटाले इफरात में होते दिखते हैं तो वे देश चलाने वालों के प्रति आक्रोशित हो उठते हैं. किसी भी स्कूल या कालेज में देखें छात्रों के बीच बहस का एक बड़ा मुद्दा मौजूदा सिस्टम ही होता है. ‘मैं अगर प्रधानमंत्री होता तो यह कर डालता, वह कर डालता,’ जैसे जुमले बोलने से शायद ही कोई छात्र अपनेआप को रोक पाता हो. ये बातें और जोश नादानी नहीं, बल्कि आने वाले कल के देश के आधार लेते विचार हैं.

इन टीनएजर्स को नजरंदाज करने की स्थिति में कोई नहीं है खासतौर से वैचारिक संगठन, राजनीतिक दल तो कतई नहीं, इसलिए तरहतरह के टोटकों से छात्रों को अपने पाले में खींचने की कोशिशें लोकतंत्र की स्थापना के बाद से ही होती रही हैं. ये कोशिशें अब शबाब पर हैं, क्योंकि छात्र लोकतंत्र के सही माने समझने लगे हैं कि इस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है और इसे जो भी हम से छीनेगा वह हमारा और देश का दुश्मन ही होगा.दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में बीते दिनों जो हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ वह छात्रों के लिहाज से बहुत बुरा था. शिक्षण संस्थानों में क्या हो रहा है यह इस मामले से पता चला कि कैसे प्रतिभाशाली नेताओं की कमी से जूझ रहे राजनीतिक दल  और वैचारिक संगठन छात्रों की ऊर्जा पर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं और इन सरकारी एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल भी कर रहे हैं.

कन्हैया कुमार नामक एक साधारण छात्र रातोंरात महानायक बन गया, लेकिन पूरे मामले में छात्रों की निगाह में दोषी सरकार ही रही, जो निहायत ही स्वाभाविक बात है, क्योंकि इस हाहाकारी मामले में सब से ज्यादा दुर्गति अगर किसी की हुई तो वे छात्र ही हैं, जो कैरियर बनाने के लिए दिनरात हाड़तोड़ मेहनत कर पढ़ रहे थे. इन छात्रों को पुलिस, कानून और अदालत का कतई तजरबा नहीं, न ही छात्र चाहते हैं कि पढ़ाई के दौरान उन्हें इन की जरूरत पड़े. लग ऐसा रहा है मानो देशभर के छात्रों को एक धमकी दे दी गई है कि अगर बोले तो अंजाम यही होगा, लेकिन जरूरी नहीं कि हर दफा कन्हैया जैसा हीरो पैदा हो.

क्या है घटना

जेएनयू का नाम देश के नामी और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार है. किसी भी होनहार छात्र का सपना यहां पढ़ने का होता है. ऐसा ही एक मामूली खातेपीते घर का छात्र बिहार के बेगुसराय जिले का कन्हैया कुमार जेएनयू से पीएचडी कर रहा है. कन्हैया के पिता अपाहिज हैं और मां की कमाई से घर खर्च चलता है जो आंगनबाड़ी सेविका हैं. उन की आमदनी महज 3,500 रुपए महीना है. सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अन्य छात्रों की तरह कन्हैया किन अभावों में पलाबढ़ा है. घटना के दिन यानी 9 फरवरी को जेएनयू के छात्रों के एक समूह ने कश्मीर पर आधारित एक कार्यक्रम ‘द कंट्री विदाउट पोस्टऔफिस’ का आयोजन किया था. इस दिन फांसी पर चढ़ाए जा चुके आतंकी अफजल गुरु की बरसी भी थी.

आरोप है कि छात्रों ने कार्यक्रम में भारत विरोधी और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए. ‘हमें चाहिए कश्मीर की आजादी’, ‘अफजल गुरु जिंदाबाद’, ‘कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा’ जैसे नारे लगे. एक शिक्षण संस्थान में छात्रों द्वारा इस तरह के नारे लगाना चिंता का विषय था, लिहाजा जैसे ही इस कार्यक्रम का वीडियो वायरल हुआ और न्यूज चैनल्स पर दिखाया गया तो देखते ही देखते जेएनयू पर देशभर में हल्ला मच गया. 2 दिन बाद कन्हैया कुमारको दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. आरोप राष्ट्रद्रोह का लगाया और धारा 124ए के तहत मामला दर्ज किया गया. इस बीच मचे दंगल और बवंडर के दौरान सभी लोगों को यह पता चला कि कन्हैया औल इंडिया स्टूडैंट फैडरेशन का अध्यक्ष भी है और खुले तौर पर वामपंथी विचारधारा का हो कर उस का कट्टर समर्थक ही नहीं बल्कि हिस्सा भी है. एक साल पहले जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में उस ने आइसा के उम्मीदवार को हराया था, लेकिन अपने भाषणों में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और एबीवीपी जो आरएसएस का आनुषंगिक संगठन है को हमेशा निशाने पर लेता रहा था.

दोटूक कहा जाए तो वह भगवा खेमे का घोर विरोधी है. 11 फरवरी तक देश के लोग यही सोचते और कहते रहे कि जेएनयू में पढ़ाई के नाम पर देशद्रोह का पाठ्यक्रम चलता है और इस यूनिवर्सिटी पर वामपंथियों का कब्जा है. यह प्रचार करने में एबीवीपी का रोल अहम रहा, जिस ने छात्रसंघ चुनाव की खुन्नस निकालने का हाथ आया मौका गंवाया नहीं. इधर वामपंथी भी चुप नहीं बैठे और खुल कर कन्हैया के समर्थन में आ गए कि वह निर्दोष है. वामपंथियों ने सीधेसीधे सरकार पर हमला बोला कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला दबा रही है यानी इस मामले पर जैसी कि उम्मीद थी राजनीति शुरू हो गई. माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी  और डी राजा ने सरकार विरोधी मोरचा संभाला हुआ था. उन का साथ कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी दिया और सीधे कन्हैया समर्थक छात्रों का हौसला बढ़ाने जेएनयू कैंपस पहुंच गए और जम कर नरेंद्र मोदी सरकार की खिंचाई की. फिर तो जिस के मन में जो आया उस ने जम कर जहर उगला. भाजपा राहुल और येचुरी को भी देशद्रोही करार देती रही तो पलटवार में ये लोग सरकार पर मुंह बंद करने का आरोप मढ़ते रहे.

कन्हैया की गिरफ्तारी के बाद एक मुसलिम छात्र उमर खालिद का नाम सुर्खियों में आया तो मामला और गरमा गया. आग में घी डालने का काम प्रोफैसर एस आर गिलानी ने भी दिल्ली के प्रैस क्लब में एक पत्रकार वार्त्ता आयोजित कर किया, उन्हें भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उमर फरार हो गया जिस के बारे में कहा गया कि वह एक आतंकवादी का बेटा है और वह और गिलानी दोनों ही कश्मीर समर्थक हैं. इधर कन्हैया खुद को बेगुनाह बताता रहा लेकिन उस की बात किसी ने नहीं सुनी. उलटे जब उसे पेशी के लिए दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत ले जाया गया तो वकीलों के एक गुट ने उस पर हमला कर दिया.

अभी तक यह साबित नहीं हुआ था कि वीडियो में दिख रहे और नारे लगा रहे छात्र कन्हैया और उमर ही हैं. इस के बाद संसद में भी इस मसले पर दंगल हुआ, जिस में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का भाषण इतनी सुर्खियों में रहा कि सोशल मीडिया पर उन्हें देवी और दुर्गा कहा गया.

घटना से ज्यादा शर्मनाक

इस लंबेचौड़े ड्रामे में शिक्षा और शैक्षणिक परिसरों की गतिविधियों की चर्चा हाशिए पर चली गई. जेएनयू पुलिस छावनी बना, जिस के चलते छात्र दहशत में रहे. किसी ने यह नहीं पूछा कि विश्वविद्यालय परिसर में क्यों छात्रों ने नारे लगाए थे. यह सच है पर वे कौन थे, इस की जांचपड़ताल और पहचान करने की कोशिश क्यों नहीं की गई? इन छात्रों ने कोई हत्या नहीं की थी, हिंसा, तोड़फोड़ या आगजनी भी नहीं की थी, इस के बावजूद इन्हें गुनाहगार मानते हुए इन के साथ आम मुजरिमों जैसा बरताव क्यों किया गया?

जो एबीवीपी खुल कर कन्हैया और उमर के विरोध में आई थी वह धीरेधीरे अपने कदम वापस खींचने लगी, तो बहस और चर्चा का रुख पलट गया. कहा यह भी गया कि प्रदर्शनकारी छात्रों को एबीवीपी की शह थी और जानबूझ कर यह नाटक किया गया था. अब तक लोग यह भी मानने लगे थे कि छात्र कोई भी हो एक दफा मकसद से भटक सकता है पर देश विरोधी नारे नहीं लगा सकता, तो भगवा खेमा खिसियाता नजर आया. असल बहस भी इसी वक्त पटरी पर आई कि क्या देशभक्त वही है जो खुद को फख्र से हिंदू कहे और वंदे मातरम के नारे लगाए? क्या यही लोकतंत्र है, जिस में इन्हें ही अपनी बात कहने का अधिकार है किसी वामपंथी को नहीं? क्या गैर भगवा या गैर हिंदू विचारधारा का आदमी स्वत: ही राष्ट्रद्रोही हो जाता है?

बहस राष्ट्रद्रोह की परिभाषा और उदाहरणों पर भी हुई. ये बातें एकदम बेमानी नहीं थीं जो दरअसल एबीवीपी की पोल खोलती थीं कि इस छात्र संगठन पर उम्रदराज लोगों का कब्जा है और ये लोग भगवा नीति और सोच थोपने पर आमादा हैं. जेएनयू तो इस के लिए एक सुनहरा मौका था. मार्च के पहले हफ्ते तक इस मसले पर छाया कुहरा छंटा तो पता चला कि वायरल हुए वीडियो से छेड़छाड़ की गई थी और कन्हैया पर राष्ट्रद्रोह का मामला प्रथम दृष्टया साबित नहीं हुआ, इसलिए उसे अंतरिम ही सही, जमानत भी मिल गई. अदालत ने कमोवेश वही चिंता जाहिर की जो विवाद की शुरुआत में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जाहिर कर चुकी थीं कि देखा यह जाना चाहिए कि क्यों हमारे छात्र राह भटक रहे हैं.

जमानत पर छूटते ही कन्हैया ने सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिंचाई की तो लोग उस के मुरीद हो उठे, खासतौर से इस वाक्य पर कि हम भारत से नहीं भारत में आजादी चाहते हैं. 5 मार्च को अपनी पत्रकार वार्त्ता में कन्हैया ने खुल कर अपने मन की बात भी कह डाली कि उस का आदर्श अफजल नहीं बल्कि रोहित वेमुला है. गौरतलब है कि दलित छात्र रोहित वेमुला ने कालेज प्रबंधन प्रताड़ना से तंग आ कर हैदराबाद में खुदकुशी कर ली थी. जाहिर है कन्हैया जिस आजादी की बात कर रहा है वह सवर्ण और सामंतवाद से छुटकारा पाने की है जिस का रास्ता राजनीति तो कतई नहीं. शिक्षण संस्थाओं में पनपता जातिवाद और वर्गभेद है जिस के खिलाफ अब उस तबके के छात्र बिगुल बजाने लगे हैं जो सदियों से शोषित रहे हैं.

दरअसल, रोहित और कन्हैया जैसे छात्रों का आक्रोश और भड़ास गुरुकुल व्यवस्था से चली आ रही है जिस में अर्जुन को हीरो बनाए रखने को एकलव्य का अंगूठा काट लिया जाता था, जिस में पढ़ने का अधिकार राजकुमारों और ऊंची जाति वालों को ही होता था. अब लोकतंत्र के चलते हर कोई पढ़ रहा है तो समाज पर से ऊंची जाति वालों का दबदबा खत्म हो रहा है और वे यह साबित करना चाहते हैं कि कोई अल्पसंख्यक या छोटी जाति वाला छात्र देशभक्त नहीं हो सकता. वह तो स्वाभाविक रूप से देशद्रोही है, क्योंकि वह सिस्टम को धार्मिक नजरिए से भी बदलने की बात कर रहा है. भले ही कन्हैया अब सधे और मंजे नेताओं की तरह भाषण देने लगा हो पर इतना तय है कि उस के बहाने एक सच फिर उजागर हुआ है कि भाजपा समर्थित भगवा खेमा देश में अपने सिवा किसी और को नहीं देखना चाहता. एबीवीपी के बुढ़ाते छात्र नेता लोकतंत्र की नहीं रामराज्य की बात कर रहे हैं. इसलिए हर बार चुनावों और बहसों में भी मुंह की खा रहे हैं.

जेएनयू के मामले में भी ऐसा ही हुआ पर वह छात्रों के हितों की नहीं बल्कि चिंता की बात है. जब तक कोई हिंसक वारदात न हो तब तक शिक्षण संस्थानों में पुलिस का प्रवेश वर्जित होना जरूरी है. छात्रों को गिरफ्तार किया जाना उन का मनोबल तोड़ने वाली बात है और उन्हें बगैर जुर्म साबित हुए जेल भेजा जाना तो उन के अधिकारों का हनन है. छात्रों को देशद्रोही कहना एक विचारधारा की अगुआई करने वालों का पूर्वाग्रह है. छात्रों को भी पूरा अधिकार है कि वे देश के मौजूदा हालात का आकलन, मूल्यांकन और विश्लेषण करें और उसे व्यक्त भी करें, जिस से नई पीढ़ी क्या सोच रही है यह पूरा देश जाने. इन्हीं टीनएजर्स के पास अब खुले विचार और नएनए आइडियाज होते हैं, इन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए न कि जेएनयू जैसे ड्रामे के चलते हतोत्साहित करना चाहिए.

अगर कन्हैया व उमर जैसे जागरूक और बुद्धिजीवी छात्र यह सोचते और कहते हैं कि देश अतिवादियों यानी भगवाधारियों के हाथ में जा रहा है तो वे गलत नहीं हैं. उन को इसीलिए वामपंथी और कांगे्रस समर्थित कह कर राजनीतिक विवादों और थानों में घसीटा जाता है कि वे उस राजनीति का हिस्सा बन गए जिस पर आम लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते, क्योंकि राजनीति में आने के बाद छात्रों का जोश ठंडा पड़ जाता है और वे मकसद से भटक जाते हैं. कन्हैया जैसे छात्रों की तादाद करोड़ों में है जो सरकार और प्रधानमंत्री की वादाखिलाफी और हिंदुत्व प्रभावित नीतियों से खफा हैं. इस का यह मतलब नहीं कि वे देशद्रोही हैं बल्कि उन की आवाज कुचलने व उन्हें देशद्रोही साबित करने की साजिश रची जाती है तो यह निश्चित रूप से उन की शिक्षा में व्यवधान डालने जैसी बात है.

देश के माहौल पर जो पैनी नजर टीनएजर्स रख सकते हैं उतनी तो व्यावसायिक होता वह मीडिया भी नहीं रख सकता जो खुद 2 विचारधाराओं के बीच फंसा पिस रहा है. अगर कुछ छात्रों को देश का माहौल दलित और अल्पसंख्यक विरोधी लग रहा है तो इस की वजहें भी हैं जिन पर से बवाल मचा कर ध्यान हटाने की कोशिश शिक्षण संस्थाओं में दहशत फैला कर की जा रही है.

समय बड़ा अनमोल

आज के किशोर हर परीक्षा में सफलता तो पाना चाहते हैं, लेकिन उस के लिए समयानुकूल प्रयत्न नहीं करते जबकि उन्हें एकएक मिनट का फायदा उठाना चाहिए. ऐसा कोई नहीं जिसे सफलता पाने की चाहत न हो. सभी सफल होने के लिए अपनेअपने स्तर पर प्रयास करते हैं. भांतिभांति के लक्ष्य निर्धारित किया करते हैं. कोई साहित्यकार बनना चाहता है तो कोई अभिनेता. किसी का लक्ष्य डाक्टर बनना है तो किसी को इंजीनियर बनने की चाहत है. लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिए जो एक प्रमुख बात है, उस पर गौर करने से अकसर वे चूक जाते हैं और वह है, समय का सही उपयोग.

दुनिया के उन तमाम लोगों, जो अपनेअपने क्षेत्र में सफलता की चोटी पर पहुंचने में कामयाब हुए, के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि उन लोगों ने समय के महत्त्व को बखूबी समझा एवं उस का पूरापूरा सदुपयोग किया. किसी भी लक्ष्य को हासिल करने की पहली शर्त यही है कि आप अपना प्रत्येक कार्य समय पर करें और व्यर्थ में समय न गंवाएं. एक कहावत भी है, ‘यदि कोई एक कौड़ी को तुच्छ समझता है तो वह कभी सहस्र प्राप्त नहीं कर सकता.’ ठीक इसी तरह जीवन का एक भी क्षण व्यर्थ में नष्ट करने वाले व्यक्ति सफलता हासिल नहीं कर सकते.

जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान है इसलिए सफलता हासिल करने की चाहत रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह समय के महत्त्व को समझे. प्रत्येक पल बहुमूल्य होता है, इसलिए हर पल का सदुपयोग करें. काम के मामले में समय की पाबंदी का विशेष ध्यान रखें. एक बार अमेरिका के राष्ट्रपति जौर्ज वाशिंगटन के सचिव देर से दफ्तर पहुंचे. कारण पूछे जाने पर वे बोले, ‘‘श्रीमान, घड़ी की सुस्त रफ्तार के कारण मुझे देर हो गई.’’ वाशिंगटन ने तुरंत कहा, ‘‘महोदय या तो आप अपनी घड़ी बदलिए या फिर मुझे अपना सचिव बदलना पड़ेगा.’’

इंगलैंड के प्रख्यात उपन्यासकार वाल्टर स्काट की सफलता का राज समय का पूरापूरा सदुपयोग ही था. व्यर्थ में वक्त बरबाद करना उन्हें कतई पसंद नहीं था. उन की दिनचर्या प्रात: 5 बजे से आरंभ हो जाती थी. नाश्ता करने से पहले ही उन के दिन के काम का अधिकांश हिस्सा समाप्त हो जाता था. उन्होंने एक नौजवान को एक बार सलाह देते हुए कहा था, ‘समय पर ठीक ढंग से काम करने की आदत डालो. कुछ करना हो, जल्दी कर डालो. काम करने के बाद ही आराम करो. काम खत्म करने से पहले आराम करने का खयाल तो दिमाग में आने भी मत दो.’ आइंस्टाइन ने भी कहा है कि समय ही मनुष्य का निर्माता है. अगर हम समय के महत्त्व को समझें तथा अपना समय सही ढंग से गुजारें तो दुनिया की कोई भी ताकत हमें सफलता हासिल करने से नहीं रोक सकती.

गंभीरता से पड़ताल करें तो ज्ञात होगा कि हम अपनी जिंदगी का 15वां हिस्सा भी सही ढंग से व्यतीत नहीं करते. उदाहरण के लिए एक ही दिन व रात को लें. 6 घंटे की स्वस्थ नींद एवं 6 घंटे बीचबीच में आराम या दूसरे कामों में लगाने के बाद पूरे 12 घंटे आप के पास होते हैं. 12 में से और 2 घंटे भी छोड़ दें, तब भी कुल 10 घंटे एकदम खरे आप के पास बचते हैं. क्या आप वास्तव में इन 10 घंटों को भी सही ढंग से व्यतीत करते हैं? इन 10 घंटों में भी तल्लीन हो कर काम करते हैं? अगर 10 घंटे भी आप अपने लक्ष्य के प्रति गंभीर हो कर काम नहीं कर पाते, तो आप सफलता पाने के हकदार कैसे हो सकते हैं?

सफल होने के लिए तो समय के महत्त्व को समझना ही होगा. समय की बरबादी सफलता की परम शत्रु है और सफलता का मित्र है, समय का सदुपयोग. इसलिए अभी वक्त है अगर आप अब तक भी वक्त के महत्त्व को नकारते आए हैं तो इसी क्षण से अपना रवैया बदल दीजिए. कहा भी गया है कि वक्त बड़ा बलवान है. इसलिए समय की ताकत को समझिए. जो वक्त आप ने व्यर्थ में व्यतीत कर दिया, उसे भूल जाइए. गुजरा हुआ वक्त लौट कर नहीं आता. इसलिए उस का मातम मनाने से कुछ हासिल भी नहीं होने वाला. आप इसी क्षण से अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जीजान से जुट जाइए. समय के महत्त्व का पूरा ध्यान रखिए. एक पल भी जाया न होने दीजिए. वह दिन दूर नहीं, जब सफलता आप के कदम चूमेगी.

नई टीमें, नया अंदाज, अब चढ़ेगा आईपीएल का बुखार

आईसीसी ट्वंटी 20 विश्वकप की खुमारी खत्म हो चुकी है और अब नए तेवर, नई  टीमों और बदले हुए अंदाज के साथ इस फॉर्मेट के सबसे लोकप्रिय टूर्नामेंट इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का बुखार चढ़ने जा रहा है.

आईपीएल का नौ अप्रैल से शुरू होने वाला नौंवां संस्करण इस बार कई मायनों में पिछले आठ संस्करणों से अलग होगा. पिछले आठ संस्करणों की दो टीमें चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रायल्स भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते दो सत्रों के लिए बाहर हो चुकी हैं और उनकी जगह गुजरात लायंस और राइजिंग पुणे सुपरजाएंट्स को लाया गया है.

टूर्नामेंट में कुल आठ टीमें हैं लेकिन माहौल बिल्कुल बदल चुका है. पुरानी दो टीमों के कई खिलाड़ी दो नई टीमों में पहुंच चुके हैं. चेन्नई के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी इस बार पुणे टीम की कप्तानी संभाल रहे हैं जबकि आठ साल तक उनके टीम साथी रहे सुरेश रैना गुजरात का नेतृत्व कर रहे हैं. धोनी ने आईपीएल में सबसे ज्यादा 96 मैचों में कप्तानी की है और उनका सफलता प्रतिशत 61.05 है. ऑलराउंडर सुरेश रैना आईपीएल के शीर्ष स्कोरर हैं और उन्होंने लगातार 132 मैच खेलकर 3699 रन बनाए हैं.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले चुके तेज गेंदबाज जहीर खान दिल्ली डेयरडेविल्स की बागडोर संभाल रहे हैं. जहीर के साथ ही संन्यास लेने वाले विस्फोटक बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग अब किंग्स इलेवन पंजाब के साथ खिलाड़ी के रूप में नहीं बल्कि मेंटर के रूप में उतरेंगे. राजस्थान रायल्स के साथ खिलाड़ी, कप्तान और मेंटर के रूप में लंबी पारी खेलने वाले राहुल द्रविड़ नौंवें सत्र में दिल्ली डेयरडेविल्स के मेंटर बने हैं और उन पर इस फिसड्डी टीम को सुधारने की भारी जिम्मेदारी होगी.

आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के संकट से गुजरने के बाद आईपीएल के नौंवें संस्करण पर सभी लोगों की निगाहें रहेंगी. स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी का मामला हालांकि आईपीएल के छठे संस्करण का था लेकिन उसके बाद दो संस्करण पुरानी आठ टीमों के साथ निकल गए लेकिन नौंवें संस्करण में दो नई टीमें आने से काफी कुछ बदल चुका है.

यह भी देखना दिलचस्प होगा कि एक सप्ताह पहले समाप्त हुए ट्वंटी 20 विश्वकप का आईपीएल पर कैसा असर रहता है. विश्वकप समाप्त होने के एक सप्ताह बाद ही आईपीएल शुरू हो रहा है और ट्वंटी 20 के ओवरडोज को क्रिकेटप्रेमी कितना पचा पाते हैं, इस पर आईपीएल की सफलता निर्भर करेगी. पिछले दो महीनों में एशिया कप और विश्वकप ट्वंटी 20 फॉर्मेट के थे और आईपीएल इसी प्रारूप में खेला जाना है. इसमें फर्क सिर्फ इतना ही होगा कि आईपीएल टीमों में विदेशी और भारतीयों का रोमांचक तालमेल रहेगा.

आईपीएल शुरू होने से पहले बांबे हाईकोर्ट में यह मामला भी उठाया गया था कि महाराष्ट्र में सूखे के कारण इस राज्य में होने वाले आईपीएल मैचों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए. हालांकि आईपीएल अध्यक्ष राजीव शुक्ला ने साफ किया था कि मुंबई, पुणे और नागपुर में होने वाले आईपीएल मैचों को दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जाएगा.

आईपीएल नौ इस बार कई मायनों में अलग होगा. आईपीएल में पहली बार एलईडी स्टम्प्स का प्रयोग किया जाएगा. विश्वकप में भी एलईडी लाइट स्टम्प्स काफी सफल रहे थे और आईपीएल में इनके इस्तेमाल से इस टूर्नामेंट का आकर्षण काफी बढ़ जाएगा.

टूर्नामेंट का पहला मुकाबला गत चैंपियन मुंबई और नई टीम पुणे के बीच खेला जाएगा. नौंवें सत्र के लीग दौर में कुल 56 मुकाबले खेले जाएंगे. प्लेऑफ 24, 25 और 27 मई को होंगे जबकि इस टूर्नामेंट का फाइनल 29 मई को मुंबई में खेला जाएगा.

अंडमान निकोबार: कल का काला पानी, आज धरती का स्वर्ग

भारतीय इतिहास में कभी ‘काला पानी’ के नाम से कुख्यात अंडमान निकोबार के द्वीप आज अपने प्राकृतिक सौंदर्य, विशाल व मनमोहक समुद्रतटों और एकांत की सुहानी छटा के जरिए सैलानियों को बारबार आने का आमंत्रण देते प्रतीत होते हैं. मनोहारी बीच, ऐडवैंचर आइलैंड व वाटर स्पोर्ट्स की अनूठी दुनिया में आप का स्वागत है. अंडमान की सौम्यता और उस के प्राकृतिक सौंदर्य को आधुनिक युग जरा भी कम नहीं कर पाया है. यहां आ कर आप को एक असीम शांति की अनुभूति होगी. साफस्वच्छ सागर तट, अतीत की स्मृतियों को अपने में समेटे खंडहर और अनेक प्रकार की दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियों को अंडमान आज भी अपने आगोश में संजोए हुए है.

भारतीय इतिहास में ‘काला पानी’ के नाम से प्रसिद्ध अंडमान द्वीप, अब एक बेहतरीन पर्यटक स्थल के रूप में विख्यात हो चुका है. यहां मौजूद सैलुलर जेल में स्वाधीनता संघर्ष के लिए अपने प्राण गंवाने वाले देशप्रेमियों की दास्तां दर्ज है. इस के साथ ही, यहां का लुभावना प्राकृतिक सौंदर्य और तटों से टकराती सागर की लहरों की मोहक सुंदरता अपनेआप में बेमिसाल है.

अंडमान निकोबार की भाषा हिंदी क्यों : 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश तथा भारतीय लोग अंडमान निकोबार में बस गए थे. उन के सांस्कृतिक विकास के तहत हिंदी व अंगरेजी भाषा का विकास हुआ. अभी वहां पर हिंदू, सिख, ईसाई तथा मुसलमानों की मिलीजुली आबादी है. लगभग 15 प्रतिशत हिंदी लिखते व बोलते हैं बाकी लोग बंगाली, तमिल, मलयालम, पंजाबी, तेलुगू व निकोबारी बोली का इस्तेमाल करते हैं.

सामाजिक स्थिति : अंडमान निकोबार द्वीप समूह जिसे हम मिनी इंडिया भी कह सकते हैं क्योंकि यहां की 50 प्रतिशत आबादी 1947 व उस के बाद यहां आ कर बस गई थी. खास बात यह रही कि यहां पर लंबे समय तक जेल में रह रहे कैदी भी जेल से छूटने के बाद यहीं बसते चले गए. बंगाली शरणार्थी, जो पूर्व पाकिस्तान से आए थे, ने भी यहीं शरण ले ली थी. सो, मुसलमानों की जनसंख्या दूसरी जातियों से अधिक है. यहां सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं. ये समाज की हर गतिविधि से जुड़े रहते हैं.

खेती के लिए जमीन : यहां प्रत्येक परिवार के पास 5 एकड़ जमीन है. प्रत्येक परिवार को सरकार द्वारा 1,050 रुपए घर बनाने व जानवरों के रखरखाव तथा फसलों के बीज के लिए दिए जाते हैं.

क्या खरीदें : अंडमान निकोबार द्वीप समूह में खरीदारी के लिए सागरिका एंपोरियम प्रसिद्ध है. यहां से वस्त्र, गहने, आदिवासियों द्वारा बनाई गई डौल्स, पुस्तकें तथा सजे हुए समुद्री शंख आदि वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं.

कुछ अनजानी बातें : शब्द अंडमान और निकोबार मलय भाषा से लिए गए हैं. निकोबारी यहां की मुख्य भाषा नहीं हैं. यहां के आदिवासी पर्यटकों से ज्यादा बातचीत करना पसंद नहीं करते. सब से बड़े समुद्री कछुए का घोंसला यहीं पर है. व्यावसायिकमछलीपालन पर यहां प्रतिबंध है. सब से बड़ा और्थ्रोपौड नामक समुद्री जीव यहां पर पाया जाता है. भारतीय करैंसी के 20 रुपए के नोट पर अंडमान निकोबार के आइलैंड का चित्र अंकित है. यह द्वीप तितलियों की पसंदीदा जगह है.

जीवनशैली : अंडमान निकोबार में सड़कें साफसुथरी हैं. यहां के लोगों में सरलता बहुत है. बेईमानी देखने तक को नहीं मिलती. टैक्सियां दाम तय कर के चलती हैं. अंडमान निकोबार में सभी धर्मों व प्रांतों के लोग रहते हैं. इन में आपस में इतना भाईचारा है कि यहां कभी जातीय दंगे नहीं हुए.

दर्शनीय स्थल

प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर अंडमान निकोबार में कई स्थल देखने लायक हैं :

सैलुलर जेल : यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थानों में से एक है सैलुलर जेल. यह कारागार 7 शाखाओं में बंटा हुआ है. इस कारागार के पास ही स्थित है एक पुराना पीपल का पेड़ जो सैकड़ों भारतीय स्वाधीनता सेनानियों पर किए गए अंगरेजी सरकार के अत्याचार का मूक गवाह है. ब्रिटिश शासकों ने सैलुलर जेल की नींव 1897 में रखी थी. इस के अंदर 694 कोठरियां हैं जिन्हें इस तरह बनाया गया था कि कैदियों का आपस में मेलमिलाप न हो पाए. औक्टोपस की तरह कई शाखाओं का फैलाव लिए इस विशालकाय कारागार के अब केवल 3 अंश बचे हैं. इस कारागार की दीवारों पर उन शहीदों के नाम खुदे हैं जिन्होंने देश पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए. जेल के पास एक संग्रहालय स्थित है. इस में उन अस्त्रशस्त्रों को सुरक्षित रखा गया है जिन से स्वाधीनता सेनानियों पर अत्याचार किए जाते थे. इस के साथ ही कुछ दुर्लभ दस्तावेज भी मौजूद हैं.

कार्बिन कोव्स बीच : हरेभरे वृक्षों से घिरा कार्बिन कोव्स बीच एक मनोरम स्थल है जहां आप समुद्र में डुबकी लगा कर तैरते हुए पानी के नीचे की दुनिया का अवलोकन कर सकते हैं. लेकिन इस से पहले ज्वार का समय और पानी के बहाव के संबंध में पूरी जानकारी प्राप्त करना जरूरी है. सैलानी यहां सूर्यास्त का अद्भुत नजारा भी देखते हैं. यह ‘बीच’ प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है.

रौस आइसलैंड : पोर्टब्लेयर के नजदीक स्थित है ‘रौस द्वीप’. छोटीछोटी खाडि़यों से घिरा यह छोटा सा द्वीप अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है. 50 वर्षों से भी ज्यादा समय तक यह अंगरेजों के अधीन था. यहां स्थित ब्रिटिशकालीन खंडहरों में वास्तुशिल्प के बेजोड़ नमूने देखे जा सकते हैं. यह द्वीप 200 एकड़ में फैला हुआ है. फीनिक्स उपसागर से नाव द्वारा कुछ ही मिनटों में यहां पहुंचा जा सकता है.

पिपोघाट फार्म : 80 एकड़ में फैले पिपोघाट फार्म में दुर्लभ प्रजातियों के पेड़पौधों और अनेक जीवजंतुओं का अवलोकन किया जा सकता है. एशिया की सब से प्राचीन लकड़ी कटाई की मशीन ‘छाथम सौ मिल’ यहीं पर है. इस के अलावा, यहां 2 संग्रहालय और चिडि़याघर भी देखने योग्य हैं. पैलियोलिथिक युग में रहने वाले मनुष्यों की जीवनशैली का संपूर्ण चित्रण यहां स्थित समुद्री म्यूजियम में मौजूद है.

पोर्टब्लेयर : आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित अंडमान की राजधानी पोर्टब्लेयर में पर्यटकों की सुविधाओं और उन के मनोरंजन के कई इंतजाम किए गए हैं. यहां जलक्रीड़ा की भी व्यवस्था है जो एक अतिरिक्त आकर्षण का केंद्र है. यहां स्थित ‘माउंट हैरी’ पिकनिक स्पौट के रूप में मशहूर है.

किसी जमाने में पराधीन भारत से लाए गए बंदियों को पोर्ट ब्लेयर के पास वाइपर द्वीप पर उतारा जाता था. अब इसे भी एक पिकनिक स्पौट के रूप में विकसित कर दिया गया है. इसी तरह सिंक और रैडस्किन द्वीपों से भी सागर के सौंदर्य को निहारा जा सकता है. यहां पर सी बोटिंग, वाटर स्कीइंग, वाटर सर्फिंग, वाटर स्कूटर की सुविधाएं उपलब्ध हैं. यानी, यहां वाटर ऐडवैंचर गेम्स का भी लुत्फ उठाया जा सकता है.

कैसे जाएं

वायु मार्ग : इंडियन एअरलाइंस के विमान सप्ताह में 3 बार पोर्टब्लेयर से चेन्नई, दिल्ली और भुवनेश्वर आतेजाते हैं. सप्ताह में 3 बार ये कोलकाता के लिए भी उड़ान भरते हैं.

समुद्र मार्ग : कोलकाता, चेन्नई और विशाखापट्टनम से पानी के जहाज द्वारा पोर्टब्लेयर जा सकते हैं. जाने में 2-3 दिन का समय लगता है.

कहां ठहरें : द अंडमान बीच रिजौर्ट कराविन्स कोव, द अंडमान वे आईलैंड मैरीन हिल, पोर्टब्लेयर, निकोबारीब काटेजेज, मेगापोड नैस्ट जैसे कई होटलों में ठहरने की उचित व्यवस्था है.

कब जाएं

वैसे वर्षभर यहां खूब रौनक रहती है, फिर भी घूमने के लिए अक्तूबर से जून तक का समय यहां के लिए सब से उत्तम होता है.

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