अगर सर्वोच्च न्यायालय ने सरदारों पर चुटकुलों पर कोई प्रतिबंध लगा दिया तो पक्की बात है कि आलिया भट्ट, रजनीकांत, जाटों और उन सब से पहले पत्नियों की सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए लाइन लग जाएगी. सरदारों पर जोक्स इतने लोकप्रिय हैं कि स्वयं एक सिख लेखक खुशवंत सिंह ने सरदार जोक्स के कई कलैक्शन प्रकाशित किए थे और आज भी वे खूब बिकते हैं. सोशल मीडिया पर सरदार और संताबंता के चुटकुले भरे पड़े हैं पर उन्हें सिख जोक्स कहा जा सकता है या नहीं, अभी मालूम नहीं. पत्नियां अपने ऊपर बनने वाले चुटकुलों से उतनी ही परेशान हैं जितने सरदार, जाट, चौधरी और हरियाणवी. यह तो माना जा सकता है कि ये चुटकुले पूरी जमात को मजाक का निशाना बनाने के लिए गढ़े जाते हैं पर ये असल में खटाखट दोहराए तभी जाते हैं, जब इन में कुछ सत्यता हो.
समाज असल में उन समूहों को नीचा दिखाने के लिए चुटकुले गढ़ता है, जिन्हें अपमानित कर के उन का आत्मविश्वास कमजोर करा जा सके और वे सिर न उठा सकें. सिखों के प्रति चुटकुलों का राज भी शायद यही है कि जब साधारण वर्गों के लोग सिख धर्म अपना कर सामाजिक सीढ़ी चढ़ने लगे तो उन का मजाक उड़ाया जाने लगा. यही औरतों के साथ हो रहा है. जब से औरतों ने अपने अधिकारों की मांग करनी शुरू की और पतियों से बराबरी, तब से उन का मजाक बनाया जा रहा है ताकि सामूहिक रूप से उन्हें अपमानित करा जा सके. ऐसा दुनिया के सारे देशों में होता है. इंगलैंड और अमेरिका में पोलिश व ज्यू जोक्स प्रचलित हैं, क्योंकि सीधेसादे बेचारे गरीब पोलिश मजदूर व ज्यू शरणार्थी जब यूरोपीय शहरों में पहुंचते थे तो दूसरों की तरह बराबर का सम्मान पाने की कोशिश करते थे. वह न दिया जाए इसलिए उन पर चुटकुले गढ़े जाते और जम कर दोहराए जाते और ज्यादातर में उन्हें मूर्ख दिखाया जाता.
औरतों को भी सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए, क्योंकि पत्नियों पर चुटकुले पूरे समूह का अपमान है. पत्नीभक्ति तो देशभक्ति की तरह है और जैसे देशभक्ति को चुनौती मिलते ही भगवा खून खौलने लगता है, पत्नीभक्ति पर आपेक्ष पर चुप नहीं रहना चाहिए. देश की पत्नियो एक हो जाओ, अपमान न सहो