झारखंड सरकार ने छोटे और मंझोले किसानों को खेती की मशीनों के प्रति जागरूक बनाने के लिए बड़े तामझाम के साथ 5 करोड़ रुपए की मशीनें खरीदी थीं. इन मशीनों का कोई इस्तेमाल नहीं होने से वे कबाड़ में बदल गई हैं. इन महंगी मशीनों को किसानों के बीच प्रदर्शित करने और उन्हें किराए पर देने की योजना थी. पिछले 12 सालों के दौरान न कभी इन मशीनों को प्रदर्शन में रखा गया और न ही किसानों को किराए पर दिया गया. मशीनों पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी सरकार को राजस्व के रूप में एक फूटी कौड़ी भी नहीं हासिल हुई.

राज्य के कृषि विभाग ने साल 2004 में 5 करोड़ रुपए खर्च कर के बड़ी और छोटी 70 कृषि मशीनों को खरीदा था. 3 करोड़ 95 लाख रुपए में 22 कंबाइंड हार्वेस्टर खरीद गए. उस समय 1 कंबाइंउ हार्वेस्टर की कीमत 17 लाख, 99 हजार रुपए थी. इसी तरह से 74 लाख 58 हजार रुपए खर्च कर के 44 पैंडी ट्रांसप्लांटर खरीदे गए. 1 पैंडी ट्रांसप्लांटर की कीमत उस वक्त 1 लाख 70 हजार रुपए थी. 2 लाख 74 हजार रुपए में 4 सीड प्रोसेसरों की खरीद की गई थी.

कृषि विभाग के सूत्रों ने बताया कि झारखंड में बड़े जोत वाले खेतों की संख्या काफी कम है और करीब 63 फीसदी सीमांत किसान हैं. ऐसे में बड़ी और महंगी कृषि मशीनों की जरूरत ही नहीं थी. छोटी जोत वाले खेतों में ये मशीनें इस्तेमाल नहीं की जा सकती हैं. रांची समेत धनबाद, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़ आदि जिलों के जिला कृषि पदाधिकारियों ने साल 2008 में ही विभाग को बता दिया था कि उन के जिलों में उन मशीनों की कोई जरूरत नहीं है. दिलचस्प बात यह?है कि विभाग ने कंबाइंड हार्वेस्टर और पैडी ट्रांसप्लांटर तो खरीद लिए, पर आज तक उन्हें चलाने के लिए ड्राइवरों की बहाली नहीं की गई.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...