बच्चे पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी दिखाएं, अपने साथ दोपहर का खाना भी न लाएं, पर स्कूल समय पर आएं, इस के लिए सरकार ने मिड डे मील योजना चलाई थी. बच्चों को पढ़ाई के प्रति जागरूक करने के लिए सरकार की ओर से मुफ्त कापी किताब और ड्रेस देने का भी ऐलान कर दिया गया. बच्चों को दोपहर का खाना देने के लिए रसोइयों को रखा गया. इस के एवज में उन्हें मेहनताना दिया जाता था.

परंतु अफसोस की बात यह है कि इन रसोइयों को पिछले 7 महीनों से पैसा नहीं मिला है, लिहाजा घर पर उन्हें पैसों की किल्लत से जूझना पड़ रहा है. इस के अलावा इन रसोइयों को काम करने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

बता दें कि शहर के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील का खाना बनाने वाले रसोइयों को पिछले 7 महीने से पैसा नहीं मिला है. इन में काकोरी, सरोजनीनगर, चिनहट समेत कई ब्लाकों के तकरीबन 2 हजार रसोइए शामिल हैं.

रसोइयों के मुताबिक, उन के खाते में अब तक वेतन का पैसा नहीं अया है. वहीं विभागीय अफसरों का कहना है कि अक्षय पात्र फाउंडेशन को अक्तूबर महीने तक का भुगतान कर दिया गया है.

प्राथमिक विद्यालय लालताखेड़ा काकोरी की खाना बनाने वाली ने बताया कि उन्हें जुलाई, 2015 से पैसा नहीं मिला है, वहीं प्राथमिक विद्यालय चौकड़ीखेड़ा की खाना पकाने वालियों ने बताया कि पैसा न मिलने की वजह से उन्हें घर चलाना मुश्किल हो गया है.

अक्षय पात्र फाउंडेशन की ओर से जितने भी ब्लाकों में मानदेय यानी वेतन दिया जाता है, उन सभी में रसोइयों का यही हाल है. कुछ ब्लाकों में सितंबर महीने से पैसा नहीं दिया गया है, तो कुछ में जुलाई महीने से पैसा बाकी है.

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