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हाईटैक गैजेट्स और बदलती लाइफस्टाइल

समय के साथ बहुत कुछ बदलता जाता है. लैंडलाइन टैलिफोन, ब्लैक ऐंड व्हाइट टीवी जैसे बीते जमाने की बात हो गई और इस का स्थान ले लिया है हाईटैक गैजेट्स ने. मोबाइल फोन, आईफोन, आईपैड, 3डी टैलिविजन, 3डी कंप्यूटर आदि ने लोगों की लाइफस्टाइल ही बदल दी है.

एप्पल के आईपैड के मुकाबले ताइवान की कंपनी आसुस जल्द ही ई पैड पेश करेगी. पूरी तरह से विंडोज-7 प्लैटफार्म पर चलने वाले ई पैड को 10 और 12 इंच की टचस्क्रीन के साथ पेश किया जाएगा. इस में मल्टीमीडिया प्लेयर, ई रीडर, वैब ब्राउजर, कीबोर्ड, डौकिंग स्टेशन और 3जी के साथ वाईफाई सुविधा भी होगी. इस की बैटरी एक बार चार्ज करने के बाद 10 घंटे चलेगी. इस से पहले आसुस ने बाजार में ई टैबलेट पेश किया था, जो किंडल के ई रीडर जैसा काम करता है. खास बात यह है कि बाजार में ई पैड के बेसिक मौडल की कीमत भी आईपैड के समान ही 500 डौलर के आसपास होगी.

आईपैड अब और पतला हो सकता है. विश्लेषकों का कहना है कि एप्पल कंपनी पतले आईपैड को जल्दी लौंच कर सकती है. इस में वीडियो कौलिंग के लिए एक कैमरा भी लगा होगा. टोरंटो स्थित आरबीसी कैपिटल मार्केट्स के विश्लेषक माइक अब्राम्स्की के अनुसार पतले आईपैड का निर्माण शुरू होने की संभावना है, इस में क्वलकौम चिप्स भी लगी होगी. इतना ही नहीं, इस की मदद से जीएसएम और सीडीएमए दोनों नैटवर्क से वैब कनैक्शन किया जा सकेगा.

इंटरनैट पर चल रही अटकलबाजियों पर यकीन किया जाए तो आईपैड के नए संस्करण आकार में छोटे होंगे, लेकिन उन की स्क्रीन का आकार अभी वाले आईपैड जितना ही होगा. इस के अलावा यह फ्लैट बैक होगा और इस में वाइड रेंज इन बिल्ट स्पीकर लगे होंगे. नए आईपैड के फ्रेम का आकार 3 मिलीमीटर तक कम हो जाएगा जबकि इस के स्क्रीन का आकार 9.7 इंच ही रहेगा.

एप्पल के आईपैड का मुकाबला करने के लिए माइक्रोसौफ्ट नए स्लेट कंप्यूटर लौंच करने जा रहा है. ये स्लेट कंप्यूटर विंडोज पर काम करेंगे. सैमसंग की डिवाइस का आकार-प्रकार भी एप्पल के आईपैड जैसा है. इस में एक कीबोर्ड भी होगा. यह नीचे से स्लाइड हो कर बारह आ जाएगा ताकि आसानी से टाइपिंग की जा सके.

एप्पल ने हाल ही में पेश आईपैड को हाईडैफिनेशन कैमरे से लैस करने का फैसला किया है. आईपैड के मैटल फ्रेम में कैमरे के लिए जगह पहले से थी. यह कैमरा एप्पल के मैकबुक जैसा ही होगा. इसे आप चाहें तो वैबकैम की तरह भी इस्तेमाल कर सकते हैं. साथ ही यह वीडियो कौन्फ्रैंसिंग का भी काम करेगा. शीघ्र ही बाजार में आने वाले आईपैड के 500 डौलर (23 हजार रुपए से ज्यादा) के मौडल को छोड़ कर बाकी सभी मौडलों को कैमरे से लैस किए जाने की तैयारी की जा रही है.

आईपैड वाईफाई के बाद अब एप्पल ने इस का 3जी वर्जन पेश किया है. नया 3जी मौडल वाईफाई सुविधा से भी लैस है और इस की कीमत भी 27 हजार से 36 हजार रुपए के बीच है. इस में एक मीडिया कौंसंट्रेशन उपकरण भी लगाया गया है, जो वीडियो गेम्स, ई बुक्स और मैगजीन के साथ ही वैब ब्राउजिंग के काम भी आता है.

आईपैड भी अब खुफिया कैमरे से लैस हो चुका है. नए आईपैड शफल में एक छोटा सा छेद है, जिस के पीछे कैमरा लगा हुआ है. इस कैमरे की मदद से 640×480 रैजौल्यूशन का वीडियो शूट किया जा सकता है. कैमरे को इस तरह से लगाया गया है कि किसी को इस की भनक तक नहीं लगेगी. इस में एसडी कार्ड स्लौट भी है, जिस में आप एमपी3 गाने लोड कर सकते हैं, इस की कीमत 100 डौलर यानी 4,623 रुपए है.

अगर आप को अपने आईपैड के गानों को ऊंची आवाज में सुनना हो तो जेवीसी का स्पीकर ‘डौक’ सब से बेहतर विकल्प है. आप आईपैड को इस से जोड़ कर सारे गाने हाईफाई डिजिटल आउटपुट के साथ सुन सकते हैं. इस में एमपी3 डब्लूएमए फौर्मेट के गानों के साथ यूएसबी भी दिया गया है. वूफर और सराउंड साउंड के साथ गाने छांटने के लिए एक अलग रिमोट भी है. इस की कीमत महज 240 डौलर (11,202 रुपए) है.

आईफोन, आईपैड के लिए एप्पल ने अपने औपरेटिंग सिस्टम का नया संस्करण आईओएस 4.2 इंच तैयार किया है. आईपैड के उपयोगकर्ता औपरेटिंग सिस्टम के इस संस्करण से बड़ा बदलाव महसूस करेंगे. आईपैड लौंच होने के बाद पहली बार इस के औपरेटिंग सिस्टम को अपडेट किया जा रहा है. इस सिस्टम के जरिए आईपैड पर बहुउपयोगी सुविधा उपलब्ध होगी.        

कर्ज लिया है, तो चुकाना होगा

सूखे का दंश झेल रहे किसानों को बैंकों का कर्ज अब हर हाल में चुकाना ही पड़ेगा. केंद्र सरकार ने इसे माफ करने की मांग को तमाम अड़चनें बता कर ठुकरा दिया है. वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि कर्ज माफी से वसूली का वातावरण खराब होता है.

गौरतलब है कि बुंदेलखंड के किसान 3 अरब रुपए से भी ज्यादा के कर्जदार हैं. इस साल पड़े सूखे और पिछली फसलों में ओलों और बेमौसम की बारिश जैसी कुदरत की मार से बुंदेलखंड में फसलों को भारी नुकसान हुआ था. इस से किसानों की रीढ़ टूटगई. कर्ज अदायगी के रास्ते नहीं बचे. इसी के मद्देनजर बांदा से समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद विशंभर प्रसाद निषाद ने राज्यसभा में बुंदेलखंड के किसानों का मामला उठा कर किसानों के कर्ज को माफ  करने की मांग की थी.

इस मामले पर वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि किसानों की कर्ज माफी के बारे में भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है कि इस तरह की माफी कर्ज के वातावरण को खराब करती है. अब तो किसानों को सरकारी कर्ज लौटाना ही पड़ेगा. किसी तरह की कोई सुनवाई नहीं होगी और न ही उन पर किसी तरह का रहम खाया जाएगा.

एक सामान्य नजरिए से देखा जाए तो सरकारी फरमान कतई गलत नहीं है. सरकार आड़े वक्त में किसानों को कर्ज देती है, तो उस की वापसी की उम्मीद भी करती है. दरअसल तमाम किसानों को हर कर्ज माफ कराने की आदत पड़ गई है.

रेल पटरियों पर भटकता बचपन

रेलवे स्टेशनों व ट्रेनों के बीच मासूम बच्चों की जिंदगी कहीं खो सी गई है. खेतखलिहानों व शहरों से गुजरती हुई ट्रेन जब किसी रेलवे स्टेशन पर रुकती है, तो निगाहें उन बच्चों पर जरूर ठहरेंगी, जो रेलवे ट्रैक पर पानी की बोतलें जमा करते हैं या उन बच्चों की टोलियों पर नजरें जमेंगी, जिन के गंदेमैले कपड़े उन की बदहाली को बयां करते हैं. ये बच्चे हाथ में गुटकाखैनी का पाउच लिए ट्रेन की बोगियों में बेचते हैं. जहां इन्हें स्कूलों में होना चाहिए, लेकिन पेट की भूख के चलते यहां इन की जिंदगी के हिस्से में केवल ट्रेन की सीटी ही सुनाई देती है.

इन बच्चों की जिंदगी सुबह 5 बजे से शुरू होती है, स्कूल की घंटी नहीं, ट्रेन की सीटी सुन कर ये झुंड में निकल पड़ते हैं. ये ट्रेन की बोगियों में गुटकाखैनी बेच कर अपना और अपने घर वालों का जैसेतैसे पेट पालते हैं. रेलवे स्टेशन में मुश्किल हालात में रह रहे बच्चों के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं ‘साथी’ और ‘चाइल्ड लाइन’ ऐसे बच्चों को बसाने के लिए काम कर रही हैं, लेकिन सरकारी अनदेखी के चलते इन बच्चों के लिए कोई ठोस काम नहीं हो पा रहा है. इलाहाबाद रेलवे स्टेशन में आप दर्जनों ऐसे बच्चों को देख सकते हैं, जो प्लेटफार्म पर भीख मांगते हैं और यहीं पर रहते हैं. इन बच्चों के मातापिता व घर का पता नहीं है. ये बच्चे ट्रेन व प्लेटफार्म पर ही अपनी जिंदगी बिताते हैं. गुजरबसर के लिए ऐसे बच्चे ट्रेनों में घूमघूम कर गुटका बेचते हैं. इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के बाहर ये दुकानदारों से गुटका खरीदते हैं. बताया जाता है कि ये बच्चे 125 रुपए का गुटका 4 सौ रुपए तक में आासानी से बेच लेते हैं.

रेलवे स्टेशन व टे्रनों में गुटका, बीड़ी, सिगरेट जैसी चीजों को बेचने पर रोक है. वहां लाइसैंस वाला वैंडर ही रेलवे के नियमकानून के मुताबिक उचित दामों पर ही कोई चीज बेच सकता है. लेकिन असल खेल तो यहां से शुरू होता है. गैरकानूनी वैंडर धड़ल्ले से इलाहाबाद व उस के आसपास के रेलवे स्टेशनों पर सामान बेचते हुए नजर आते हैं. रेलवे प्रोटैक्शन फोर्स यानी आरपीएफ व राजकीय रेलवे पुलिस यानी जीआरपी की चैकिंग में गैरकानूनी वैंडर और गरीब बच्चों से गैरकानूनी काम कराने वाले माफिया बच निकलते हैं. 12 साल का राकेश इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के पास एक झुग्गीझोंपड़ी बस्ती में रहता है. उस ने बताया कि उस के मांबाप नहीं हैं. वह 70 साल की अपनी बूढ़ी नानी के साथ रहता था, क्योंकि पुलिस वालों ने कई बार उसे पकड़ा था. लेकिन सौ रुपए के नोट को उस ने बड़ी बखूबी से इस्तेमाल किया कि आप उस की समझदारी को सुन कर हैरान रह जाएंगे. जब वे पकड़े जाते हैं, तो सौपचास रुपए थमा देते हैं. मामला वहीं रफादफा हो जाता है. इलाहाबाद रेलवे स्टेशन व उस के आसपास रहने वाले बच्चों से बात करने पर पता चला है कि उन के पढ़ने का मन करता है, लेकिन परिवार की गरीबी के चलते उन्हें ट्रेनों में गुटका, पानी की बोतलें वगैरह बेचनी पड़ती हैं.

बसाने की हो ठोस नीति

ऐसे बच्चों को बसाने के मसले पर समाजसेविका नीलम श्रीवास्तव ने बताया कि जो बच्चे कई साल से रेलवे स्टेशन पर ही अपनी जिंदगी बिता रहे हैं, ऐसे बच्चों को सुधार पाना एक बड़ी चुनौती है. इन में से कई ऐसे बच्चे हैं, जो एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन घूमते रहते हैं. ये नशा करने की लत का शिकार हो जाते हैं. बड़े होने पर ये अपराध की राह पकड़ लेते हैं, तब इन्हें सुधार पाना बहुत मुश्किल होता है. वैसे, घर से भाग कर आए बच्चों को सही रास्ते पर सलाह के जरीए ही लाया जा सकता है. नीलम श्रीवास्तव इन बच्चों की काउंसलिंग करती हैं. उन्होंने कई बच्चों को उन के घर भी पहुंचाया है. नीलम श्रीवास्तव आगे बताती हैं कि स्टेशन पर लंबे समय से रह रहे बच्चों को बसाने के लिए कई एनजीओ काम करने से कतराते हैं. उन का काम भी केवल कागजी होता है.

स्टेशन पर नहीं है भविष्य

12 साल का दीपक यादव इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर गुटका बेचता हुआ मिला. वह बांदा का रहने वाला है और घर से भाग कर ग्वालियर गया, जहां उस ने कुछ दिन होटल में काम किया, लेकिन होटल का मालिक उस से दिन में 16 घंटे काम कराता था. दीपक को अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था. उस ने ठान लिया कि वह होटल की कैद से खुद को आजादी दिलाएगा. कई रात के बाद उसे एक मौका मिला. एक रात होटल का मेन गेट खुला पाया, बस इस गलती का फायदा उठाया व रात को वहां से निकल गया. आंखों में आंसू पोंछते हुए दीपक ने बताया कि वह इलाहाबाद आ गया और यहीं पास के दुकानदार से गुटका खरीद कर रेलवे स्टेशन पर बेचने लगा. दीपक की काउंसलिंग समाजसेविका नीलम श्रीवास्तव ने की और वह अपने घर जाने के लिए तैयार हो गया. एक संस्था की मदद से उस के घर का पता लगाया जा रहा है.

इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर मातापिता की नाराजगी के चलते रोजाना दर्जनों बच्चे घर से भाग कर आते हैं और कुछ दिन तक यहीं रहते हैं, तो कुछ किसी दूसरे स्टेशन का रुख कर लेते हैं. वहीं वाराणसी, कानपुर, इलाहाबाद, रायपुर वगैरह रेलवे स्टेशनों पर बच्चों के लिए काम करने वाली साथी संस्था मुश्किल हालत में रह रहे इन बच्चों की मदद करती है. ऐसे बच्चों को उन के घर तक पहुंचाने का काम करती है. 14 साल तक की उम्र के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा कानून के लागू होने के बाद भी बदहाली के आंसू में जी रहे स्टेशन पर ये बच्चे पढ़ने के अधिकार के लिए किस के सामने हाथ फैलाएं? गरीबी, बीमारी, नशाखोरी में जी रहे इन के मांबाप बच्चे पैदा तो कर देते हैं, लेकिन उन्हें तालीम क्या दो वक्त की रोटी भी नहीं दे पा रहे हैं. लाचार मांबाप पेट पालने के लिए इन बच्चों को रेलवे स्टेशन के हवाले कर देते हैं.

इलाहाबाद स्टेशन पर इन दिनों दर्जनों बच्चे रोज सुबह यहां से गुजरने वाली दर्जनों ट्रेनों से पानी की खाली बोतलें इकट्ठी करते हैं. इन बोतलों में दोबारा पानी भर कर इन बच्चों से ये बोतलें बिकवाई जाती हैं, जिस में अच्छीखासी आमदनी होती है. उन की गरीबी और पैसों के लालच के चलते रेलवे स्टेशन पर पानी की बोतलें गैरकानूनी तरीके से बेचने का धंधा जोरों पर है.

पटना: प्राचीन गौरवशाली इतिहास

बिहार की राजधानी पटना का इतिहास देश के सब से प्राचीन गौरवशाली इतिहासों में एक है. यहां एक के बाद एक प्रतापी राजाओं का शासन रहा जिन्होंने अपने राजवंश की ख्याति को बढ़ाते हुए अपनी राजधानी को हर बार एक नया नाम दे कर संबोधित किया. कुसुमपुर, पुष्पापुर, पाटलिपुत्र, अजीमाबाद और अब इस का नाम पटना पड़ा है. मगध नरेश अजातशत्रु ने 600 ईसापूर्व पाटलिग्राम में गंगा नदी के किनारे एक छोटा सा किला बनाया था, जोकि बीते समय तक इस की शानोशौकत का परिचय देता रहा. आज भी वही शानशौकत इस के आसपास के क्षेत्रों जैसे कुमराहर, अगम कुआं, बुलंदी बाग, कंकड़ बाग क्षेत्रों में देखी जा सकती है. गंगा किनारे तक फैला होने के कारण यह शहर उपज की दृष्टि से भी बहुत समृद्ध रहा है. इसीलिए लंबे समय से कृषि क्षेत्र का बड़ा व्यापारिक केंद्र भी रहा है.

दर्शनीय स्थल

स्मृति स्मारक : भारत छोड़ो आंदोलन में मारे गए 7 शहीदों की याद में यह स्मारक बनाया गया है. आजादी के ये दिवाने सचिवालय भवन पर तिरंगा फहराने की जिद के साथ आगे बढ़े थे और तिरंगे की शान में अपनी कुर्बानी दे दी.

पटना संग्रहालय : इस संग्रहालय में प्रथम विश्व युद्ध के हथियारों, मौर्य और गुप्तकाल की धातु और पत्थर की बनी प्रतिमाओं तथा प्राचीन मिट्टी के बने शिल्प आदि को संजो कर रखा गया है. संग्रहालय में एक 16 मीटर लंबे पेड़ का अवशेष भी इस की विशेषताओं में से एक है.

पत्थर की मसजिद : यह खूबसूरत मसजिद गंगा के किनारे स्थित है. इस को जहांगीर के बेटे परवेज शाह ने उस वक्त बनवाया था जब वह बिहार का शासक था. शेरशाह सूरी की मसजिद : 1545 में इस मसजिद को शेरशाह सूरी ने बनवाया था. यह मसजिद पुराने अफगान स्टाइल में बनाई गई थी, जो बिहार की सब से खूबसूरत मसजिदों में से एक है.

खुदाबक्श ओरिएंटल लाइब्रेरी : यह भारत के राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पुस्तकालयों में से एक है. अशोक राजपथ पर स्थित इस लाइब्रेरी में अरबी और फारसी भाषा की हस्तलिखित पुस्तकें, राजपूत और मुगलों की पेंटिंग्स, एक 25 मि.मी. चौड़ी किताब में लिखी गई कुरान, कोरडोबा विश्वविद्यालय की नई और पुरानी किताबों आदि का संग्रह है.

सदाकत आश्रम : भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने रिटायरमेंट के बाद इसी जगह पर अपने रहने का ठिकाना बनाया था. तभी से यह आश्रम राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बिहार विद्यापीठ के मुख्यालय के रूप में स्थापित है. 

अगम कुआं : यह बिहार के सब से ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक अवशेषों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने अपने भाइयों का यहीं वध किया था. यह कुआं गुलजारा बाग रेलवे स्टेशन के नजदीक होने की वजह से लोगों की भीड़ जुटाने में सक्षम है. इस कुएं की गहराई का आज तक किसी को पता नहीं है. आधुनिक तारामंडल केंद्र : पटना की वेली रोड पर स्थित यह तारामंडल एशिया का सब से बड़ा तारामंडल है. सब से ज्यादा पर्यटक यहीं जाना पसंद करते हैं.

अन्य आकर्षण

इस के अलावा यहां एशिया का सब से लंबा रोडवे ब्रिज, गांधी सेतु है. पादरी की हवेली, वह स्थान है जहां मदर टेरेसा ने अपनी शिक्षा   ली थी. संजय गांधी बायोलोजिकल पार्क, बिरला मंदिर, हरमिंदर तख्त, नवाब शाहिद का मकबरा, बिहार इंस्टीट्यूट आफ हैंडीक्राफ्ट एंड डिजाइन आदि भी पर्यटकों के देखने के लिए उत्तम स्थान हैं.

खरीदारी : यहां खरीदारी के लिए मौर्या लोक कांप्लेक्स, सब से बेहतर स्थान है. यह कांप्लेक्स वेली रोड पर डाक बंगले के नजदीक स्थित है. यहां से आप बिहार की सभी प्रसिद्ध वस्तुओं की खरीदारी कर सकते हैं.   

पिलो फाइट मतलब अनलिमिटिड ऐंजौयमैंट

जिंदगी न मिलेगी दोबारा की तरह ये दिन भी फिर वापस न आएंगे. इसलिए जो पल खुशी व फन के मिलें उन्हें हाथ से न जाने दें. आप ने टमाटो थ्रोइंग डे, बुल फाइट डे, तो कभी फूल डे के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन क्या कभी आप ने पिलो फाइट डे के बारे में सुना है, जिस में एकदूसरे की पिलो से जम कर धुनाई की जाती है, लेकिन मजे लेले कर, क्योंकि इसे फन डे की तरह मनाया जाता है. जरूरी नहीं कि विदेशों में ही इस दिन को सैलिबे्रट किया जाए, आप अपने शहर में भी इसे आयोजित कर रोमांचित हो सकते हैं. बस, जरूरत है दिल से चाहत की व उस के लिए एक बड़ा प्लेटफौर्म तैयार करने की, जो आज के सोशल नैटवर्किंग युग में बिलकुल भी मुश्किल नहीं है. तो फिर तैयार रहिए पिलो फाइट से खुद को रीफ्रैश करने के लिए.

क्या है पिलो फाइट

इस में सोशल नैटवर्किंग साइट्स द्वारा लोगों तक सूचना पहुंचाई जाती है कि अमुक देश में इस जगह व इस तारीख को पिलो फाइट डे का आयोजन किया जा रहा है, जिस में आप सभी आमंत्रित हैं. इच्छुक लोग यहां आ कर इस खेल का आनंद उठा सकते हैं. फन क्रेजी इस के लिए बताए वैन्यू पर बड़ी संख्या में व बड़ेबड़े ग्रुपों में एकत्रित होते हैं और फिर एकदूसरे की तकिए से पिटाई करते हुए तकियों को हवा में उछालते हुए मजा लेते हैं. इस दौरान वे किसी अपने के साथ ही फाइट करें यह जरूरी नहीं, कोई अजनबी भी हो सकता है. लेकिन इस से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इस गेम का मकसद सिर्फ ऐंजौयमैंट है. इस दौरान तकिए से निकली रुई व फैदर एक अलग ही नजारा प्रस्तुत करती है, जिस से लोग उत्साह से भर जाते हैं.

कब होता है आयोजन

पिलो फाइट डे हर वर्ष अप्रैल में आयोजित किया जाता है. इस बार 7वां एनुअल इंटरनैशनल पिलो फाइट डे 2 अप्रैल, 2016 को मनाया गया. शुरुआत में गिनेचुने देशों में ही इस का आयोजन किया जाता था, लेकिन बाद में इस की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए दुनियाभर में यह दिवस पूरे जोश के साथ मनाया जाने लगा. इस में हर साल हजारों लोग भाग लेते हैं.

क्यों मनाया जाता है

लोगों को तनाव भरे जीवन से बाहर निकालने के साथसाथ डिफरैंट स्टाइल से फन कर खुद हंसना व औरों को भी हंसाना इस का मकसद है, लेकिन इस डे को शुरू करने की प्रेरणा फिल्म ‘फाइट क्लब’ से मिली. भले ही अब इस का आयोजन अधिकांश देशों में होने लगा है, लेकिन इस के लिए ओपन एरिया जैसे पार्क आदि की जरूरत होती है ताकि खेल में किसी भी प्रकार का व्यवधान न पड़े.

पिलो फाइट के फायदे

–       बोरिंग रूटीन से बाहर निकलने का मौका मिलता है.

–       ज्यादा लोगों के साथ ज्यादा मस्ती कर पाते हैं.

–       नए फ्रैंड्स बनाने का भी चांस मिलता है.

–       नए दिन का नए अंदाज में मजा ले सकते हैं.

–       स्पैशल दिन के स्पैशल मूवमैंट्स को याद कर खुश हो सकते हैं.

देखादेखी बढ़ता है प्रचलन

सिर्फ पिलो फाइट डे ही नहीं बल्कि हर फनी डे देखादेखी शुरू हुआ, जिस का उदाहरण है टमाटो थ्रोइंग डे. लंबे समय से स्पेन में अगस्त के आखिरी बुधवार को टमाटो थ्रोइंग डे मनाया जाता है. उसी को देख कर बौलीवुड की फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ में टमाटर फैस्टिवल मनाया गया, जिस में एकदूसरे पर टमाटर फेंक कर उन्हें लाल कर दिया गया. उन टमाटरों से न सिर्फ चेहरे व कपड़े लाल हुए बल्कि जमीन पर पड़े टमाटरों पर फिसलने का भी अलग ही मजा लिया गया. कहने का मतलब यह है कि देखादेखी ही इन का क्रेज ज्यादा बढ़ रहा है.

दिल तो बच्चा है

बचपन में सोते या खाना खाते हुए जब भाईबहनों से हमारी लड़ाई होती थी, तब हम गुस्से में अपने पास पड़े तकिए से उस की पिटाई कर देते थे, जिस में हमें बड़ा मजा आता था. हम मन ही मन सोचते थे कि इस से उसे चोट तो लगेगी नहीं, लेकिन हमारी भड़ास जरूर निकल जाएगी. इसलिए इसे ही हम हथियार के रूप में इस्तेमाल कर लेते थे. आज बेशक हम बड़े हो गए हैं, लेकिन मन तो वही चीजें करने को करता है जो बचपन में किया करते थे, तो फिर जब दिल बच्चा ही है तो क्यों न बचपन वाली पिलो फाइट को एक प्रतियोगिता के रूप में आयोजित किया जाए, जिस से आप का बचपन का यह पिलो फाइट वाला शौक भी पूरा होगा और इसे खेल प्रतियोगिता के रूप में मनाया भी जाने लगेगा.

उम्र की कोई सीमा नहीं

अरे भई, मस्ती तो किसी भी उम्र में की जा सकती है, इस के लिए यूथ का टैग लगना जरूरी नहीं. बस, आप का दिल जवां होना चाहिए ताकि आप थकें नहीं और न ही कोई आप को देख कर थके बल्कि आप अपने हौसलों से अच्छेअच्छों के छक्के छुड़ा दें यानी पिलो फाइट के लिए न तो कोई उम्र है न लिंग भेद. हर उम्र के स्त्रीपुरुष इस में हिस्सा ले सकते हैं, क्योंकि इस में चोट लगने का खतरा भी नहीं होता और मौजमस्ती के अवसर भी ज्यादा मिलते हैं.

कंफर्टेबल ड्रैस इज बैस्ट

अभी तक हमारे मन में जब भी किसी फैस्टिवल में जाने की बात आती है तो हम अच्छेअच्छे आउटफिट्स खरीदने के बारे में सोचने लगते हैं, जिस से हर हाल में हमारी जेब पर ही असर पड़ता है.लेकिन आप को बता दें कि पिलो फाइट के लिए आप को महंगे आउटफिट्स खरीदने की जरूरत नहीं है बल्कि आप इस प्रतियोगिता में घर में पहनने वाला पाजामा, टीशर्ट वगैरा पहन कर जाएं जो न सिर्फ आप को कूल लुक देंगे बल्कि गेम खेलने में मजा  भी ज्यादा आएगा. इसलिए इस गेम के लिए फैशन पर नहीं बल्कि कंफर्ट ड्रैस पर जोर दें.

कैसे हों पिलो

जब कभी फाइट पर जाने की बात जेहन में आती है तो हमारे मन में सिर्फ यही खयाल आता है कि हमें जीतना है. लेकिन यह कोई बुलफाइट नहीं जिस में हमें अपनी ताकत का प्रदर्शन करना है बल्कि यह तो पिलो फाइट है, जो सिर्फ फन व मजे के लिए है. इसीलिए पिलो फाइट के लिए ऐसे तकियों का चयन करें जो सौफ्ट हों. कोशिश करें फैदर, फौम व रुई से भरे पिलो को ही चूज करें, जिस से किसी को हर्ट होने का डर भी नहीं रहेगा. सिंथैटिक रुई वाले पिलो लेने की भूल कभी न करें, क्योंकि फाइट के दौरान उस में से जो धागे निकलते हैं उन के नाक, मुंह व आंखों में जाने का डर रहता है इसलिए पिलो फाइट के लिए सौफ्ट पिलो बैस्ट हैं

अन्य फनी डे

किस डे : यह हर वर्ष फरवरी में मनाया जाता है. इस में अपने खास को किस करते हैं.

फूल डे : चाहे दोस्त हो या फिर दुश्मन, उसे इस दिन चालाकी से उल्लू बना कर पूरे साल उस का मजाक बनाया जाता है. यह हर वर्ष पहली अप्रैल को मनाया जाता है.

कौंप्लिमैंट डे : हर वर्ष 24 जनवरी को मनाए जाने वाले इस डे पर एकदूसरे को कौंप्लिमैंट देने का चलन है.

काइट फ्लाइंग डे : इस दिन काइट उड़ा कर ऐंजौय किया जाता है. यह प्रतिवर्ष 8 फरवरी को मनाया जाता है.

मेक अ फ्रैंड डे : 11 फरवरी को मनाए जाने वाले इस डे पर अगर आप किसी से दोस्ती करना चाहते हैं, लेकिन मन में डर है तो उस से दोस्ती का हाथ बढ़ा सकते हैं.

व्हाइट टीशर्ट डे : इस दिन व्हाइट टीशर्ट पहन कर एक जैसा माहौल क्रिएट करने की कोशिश की जाती है. इसे 11 फरवरी को मनाया जाता है

नो सौक्स डे : इस दिन कोशिश यही की जाती है कि कोई सौक्स न पहने. यह डे 8 मई को होता है.

सैंडविच डे : 3 नवंबर के दिन एकदूसरे के लिए सैंडविच बना कर उन्हें खुश किया जाता है. 

सेफ्टी भी जरूरी

–       अपने पिलो में कोई हार्ड चीज जैसे सैलफोन वगैरा न रखें.

–       जिप वाले तकिए ले कर इवैंट में बिलकुल न जाएं.

–       गेम पीरियड में नैकलेस, चैन, इयररिंग्स वगैरा न पहनें.

–       कीमती चीजें अपने साथ ले कर न जाएं.

रस्मी बनते चुनाव

असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में असम को छोड़ कर दिल्ली पर शान से राज कर रही भारतीय जनता पार्टी औंधे मुंह गिरी है. मजेदार बात यह है कि हिंदू सोच के अनुसार यहां भी हार के बावजूद जीत मनाने का फैशन वैसे अपनाया गया, जैसे महाभारत में सबकुछ खोने के बाद पांडवों ने अपनी जीत समझी और रामायण में राम जीते. पर न लंका मिली, न सीता. पर जीत पर आज भी दीवाली मनाई जाती है. मोदी और शाह छोटे राज्य असम की जीत को ओलिंपिक में हाकी की जीत के बराबर मान रहे हैं, जबकि कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, डीएमके, एडीएमके, तृणमूल कांग्रेस ने ज्यादा सीटें जीती हैं. इसे कहते हैं बिना जमीन के छा जाना.

नरेंद्र मोदी की सरकार ने मई, 2014 के बाद न जनता के लिए कुछ ज्यादा किया है, न उस एजेंडे के लिए जो भगवाई हथेली पर लिए घूमते हैं. गरीब तो गरीब रहे ही हैं, अमीर भी खुश नहीं हैं. पर यह कमाल है कि भाजपा भक्तों का सैलाब वैसा ही है, जैसे गंदी गंगा में बाढ़ के बाद भी उस पर लोगों की श्रद्धा बनी रहती है.

देश का गरीब और किसान मजदूर आज ज्यादा परेशान है. कोई भी पार्टी उसे गहरे गड्ढे से निकालने के लिए कुछ कर नहीं रही, बस किनारे खड़े हो कर चिल्ला रही है कि हम तुम्हारे लिए परेशान हैं. ममता बनर्जी का राज्य गरीबी के दलदल में है और गरीबों की बचत चिटफंड कंपनियां खा रही हैं. तमिलनाडु में मुफ्त की चीजें बांटी जा रही हैं. केरल में किसी को अरब देशों से लौट कर आए बेकार बैठों की चिंता नहीं है. असम में यह हौआ खड़ा किया जा रहा है कि मुसलमान, चाहे बंगाल से आए हों या बंगलादेश से, असम को हड़प लेंगे, जबकि वे थकेहारे गरीब बीमार हैं. पुडुचेरी कुछ अच्छा है, क्योंकि वहां पूर्व फ्रांसीसी शासक सलीके से रहने का पाठ पढ़ा गए थे.

इन चुनावों की हारजीत का आम आदमी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. भाजपा के राज्य ज्यादा सुखी नहीं हैं कि असम सुधर जाएगा. केरल में वामपंथी मोरचा पहले भी सत्ता में रह चुका है. तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में तो जनता ने सवाल ही नहीं पूछे. चुनाव महज रस्मी बन गए हैं. शासकों के लिए चाहे इन का कोई मतलब हो, पर जनता के लिए ये बेमतलब के हो गए हैं. न नरेंद्र मोदी ने सोना बरसाया, न अरविंद केजरीवाल ने. अब जहां चुनाव हुए हैं, वहां कुछ नहीं होगा, यह गारंटी है. लोकतंत्र महज वोटतंत्र का तमाशा बन कर रह गया है.

यह बेहद खतरनाक है, क्योंकि इसी से क्रांति फूटती है. गुजरात के पाटीदारों, राजस्थान के गुर्जरों, हरियाणा के जाटों, मध्य भारत के माओवादियों का गुस्सा बेखबर सरकारों से है आरक्षण आदि के लिए नहीं है.

तांत्रिक को न्योते का खतरनाक नतीजा

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के नौशाद नामक शख्स के गेहूं के खेत में 11 अप्रैल, 2016 की सुबह लोगों ने एक नौजवान की लाश देख कर पुलिस को सूचना दी. तकरीबन 30 साला नौजवान खून से लथपथ था. उस की हत्या किसी धारदार हथियार से गरदन काट कर की गई थी. उस की पैंट भी नदारद थी. पुलिस नौजवान की शिनाख्त कराने में नाकाम रही. मामला दर्ज कर के पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी. कई दिनों तक कोई नतीजा नहीं निकला. इधर 16 अप्रैल, 2016 को दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके के कुछ लोग थाना कोतवाली पहुंचे. उन लोगों के मुताबिक, उन के परिवार का एक नौजवान ब्रजेश यादव लापता था. उन्हें पता चला कि उन के यहां कोई लाश मिली है.

पुलिस ने फोटो और बरामद सामान दिखाया, तो मृतक की पहचान ब्रजेश के रूप में हो गई. पुलिस को ताज्जुब यह था कि वे लोग दिल्ली से बागपत किस सूचना पर पहुंचे थे. ब्रजेश के परिवार वालों ने अपने साथ आए नौजवान की ओर इशारा कर के बताया कि वह तांत्रिक है और उस के सिर पर आए जिन्न ने ही बताया था कि लापता ब्रजेश बागपत में यमुना किनारे मरा मिला है. पुलिस को उस तथाकथित तांत्रिक की हरकतें कुछ ठीक नहीं लगीं, तो उसे हिरासत में ले लिया गया. उस तांत्रिक से सख्ती से पूछताछ हुई, तो मामला खुला.

यों उलझे जाल में

दरअसल, गिरफ्तार तांत्रिक इलियास बागपत इलाके का ही रहने वाला था. आवारागर्दी और ठगबाज लोगों की संगत ने उसे पाखंडी बना दिया. उस ने दाढ़ी बढ़ाई और सफेद कपड़े पहन कर तंत्रमंत्र के ढोंग कर लोगों को ठगना शुरू कर दिया. उस ने अपने कई आवारा दोस्त भी अपने साथ मिला लिए, जो उस के चमत्कार के किस्से लोगों को मिर्चमसाला लगा कर सुनाते थे. समाज में पाखंडियों पर भरोसा करने वाले लोगों की कमी नहीं होती. आज भी लोग तांत्रिकों की तमाम बुरी करतूतों के बाद अपनी तकलीफों का इलाज झाड़फूंक, तंत्रमंत्र में खोजते हैं. ऐसे ही लोगों के पैसे पर वह भी मौज करने लगा. जहांगीरपुरी के रहने वाले राजू यादव की पत्नी लीला देवी की तबीयत खराब रहती थी. पहले उस का डाक्टर से इलाज कराया. जब उसे कोई फायदा नहीं हुआ, तो उन्होंने मुल्लामौलवियों में झाड़फूक के सहारे इलाज की खोज शुरू कीं. वे इलियास से मिले, तो उस ने खुद को पहुंचा हुआ तांत्रिक बताया और तंत्र विद्या के बल पर इलाज करने को तैयार हो गया.

यादव परिवार उसे आसान शिकार लगा. अपने सिर पर वह जिन्न आने की बात करता और इलाज करने का ढोंग करता. चमत्कार की आस में पूरा परिवार उस के झांसे में आ गया. इलियास अकसर उस के घर पहुंच जाता. इस दौरान उस की खूब इज्जत होती और मुंहमांगी रकम भी मिलती. जिन्न को खुश करने के नाम पर वह शराब और कबाब की दावत भी उड़ाता. यादव परिवार उसे न्योता दे कर सोच रहा था कि वह उन्हें सारे दुखों से नजात दिला देगा. पाखंड के दम पर तांत्रिक मौज करता रहा. महीनों इलाज का फायदा नहीं दिखा, तो उस ने बहका दिया कि बुरी आत्माओं का साया पूरे परिवार पर है. उन्होंने लीला देवी को जकड़ लिया है. वे आत्माएं धीरेधीरे ही उस की तंत्र क्रियाओं से जाएंगी. एक दिन लीला देवी का बेटा ब्रजेश अचानक गायब हुआ, तो परिवार के लोगों ने उस की खोजबीन शुरू की. दिल्ली में कई जगह वह उसे ढूंढ़ते रहे. कोई समझ नहीं पा रहा था कि वह कहां चला गया था.

इस खोजबीन में इलियास भी उन के साथ रहता. जब सभी थक गए, तो इलियास ने तंत्र विद्या के बल पर ब्रजेश का पता लगाने की बात की और तंत्र क्रिया के नाम पर रुपए ऐंठ लिए. इस के बाद उस ने बताया कि उस के सिर पर आए जिन्न ने बताया है कि बागपत में यमुना किनारे ब्रजेश को मार दिया गया है. सब लोगों के साथ वह भी थाने पहुंचा, तो उस की बात एकदम सच निकली, लेकिन वह पुलिस के जाल में खुद ही उलझ गया.

इसलिए की हत्या

दरअसल, यादव परिवार तांत्रिक  इलियास का पूरी तरह मुरीद हो गया था. उन के पैसे पर वह मौज कर रहा था. तंत्र क्रियाओं के नाम पर शराब के साथ दावतें लेता था. परिवार की एक लड़की को भी उस ने अपने प्रेमजाल में फांस लिया और डोरे डालने शुरू कर दिए. ब्रजेश को उस की हरकतें पसंद नहीं आईं. उसे यह भी लगने लगा कि तंत्र क्रिया की आड़ में इलियास उन लोगों को लूट रहा है. इलियास को यह बात अखर गई. यादव परिवार उस के लिए सोने के अंडे देने वाली मुरगी बन गया था. उन की जायदाद पर उस की नजर थी. सभी का विश्वास उस ने अपने पाखंड से जीत लिया था. अपने पाखंड के पैर जमाए रखने के लिए उस ने ब्रजेश को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. एक दिन उस ने ब्रजेश को बताया कि उसे अपनी तंत्र क्रियाओं से पता चला है कि बागपत में गंगा किनारे खजाना दबा हुआ है, लेकिन उसे वह खुद नहीं निकाल सकता. उस ने ब्रजेश को समझाया कि उसे वह निकाल ले, बाद में दोनों आधा आधा बांट लेंगे. ऐसे में उस से जिन्न भी नाराज नहीं होंगे.

ब्रजेश को उस ने यह भी समझाया कि वह यह बात किसी को न बताए, वरना खजाना गायब हो जाएगा और उस के हाथ कुछ भी नहीं आएगा. ब्रजेश उस के झांसे में आ गया. 10 अप्रैल की शाम को वह इलियास के साथ बागपत पहुंच गया. अंधेरा होने पर इलियास उसे खेत में ले गया. ब्रजेश को जान का खतरा महसूस हुआ, तो वहां दोनों के बीच लड़ाई हो गई, लेकिन इलियास ने गंड़ासे से उस की गरदन काट कर हत्या कर दी. ब्रजेश की पहचान जल्द न हो, इसलिए उस ने उस की पैंट उतार कर छिपा दी. इस दौरान इलियास के माथे पर भी चोट आई. बाद में वह ब्रजेश के परिवार में पहुंचा. वह भी ब्रजेश की खोजबीन कराता रहा. उस पर शक न हो, इसलिए उस ने जिन्न वाली मनगढ़ंत कहानी बताई. पाखंडी की पोल खुलने से यादव परिवार के पास पछताने के सिवा कुछ नहीं बचा था. तांत्रिक को न्योता दे कर उस ने धनदौलत और बेटा गंवा दिया था. पाखंडी तांत्रिक अब सलाखों के पीछे है, लेकिन अपनी करतूत का उसे कोई अफसोस नहीं है.               

तांत्रिक के कहने पर बनाया चोर

एक नौजवान को तांत्रिक के कहने पर पूरे गांव ने चोर मान लिया. मामला बदायूं के लभारी गांव में सामने आया. दरअसल, हरीकश्यप नामक शख्स के घर से 15 अप्रैल, 2016 को कुछ गहने चोरी हो गए थे. हरी अपने एक तांत्रिक गुरु की शरण में पहुंच गया. तांत्रिक ने पहले पूरी बात सुनी और उस का शक जान कर एक परची पर ‘द’ शब्द से शुरू होने वाला नाम लिख कर उसे थमा दिया. हरी का शक एक झोंपड़ी में रहने वाले दिनेश पर चला गया. अगले दिन गांव में तांत्रिक की मौजूदगी में पंचायत हो गई. तांत्रिक का कहा लोगों के लिए पत्थर की लकीर हो गया. तांत्रिक ने उस पर जुर्माना थोपने के साथ ही अपनी 5 हजार फीस और आनेजाने का खर्चा भी मांग लिया. दिनेश ने जुर्माना भरने से मना किया, तो उसे गांव से निकल जाने का फरमान सुनाया गया. दिनेश पुलिस की शरण में पहुंच गया. 

एक और चौहान, एक और विवाद

अब क्या बाबा रामदेव को इसरो का चेयर मेन बनाया जाएगा, अगर वो निफ़्ट के चेयरमेन बन सकते हैं तो सनी लियोनी को क्रिकेट कोच बना देना चाहिए, सोशल मीडिया पर चल रहे ऐसे दर्जनो तीखे कमेंट्स कोई पेशेवर व्यंगकारों या राजनैतिक विश्लेषकों के नहीं, बल्कि उन आम यूजर्स के हैं जो चेतन चौहान की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फेशन टेक्नालाजी (निफ़्ट) के चेयरमेन पद पर की गई नियुक्ति से आहत और हैरान हैं.

अपने जमाने के मशहूर उद्घाटक बल्लेबाज चेतन चौहान फैशन की ए बी सी डी भी नहीं जानते होंगे, लेकिन निफ़्ट के मुखिया बना दिये गए, तो बात कुछ कुछ गले न उतरने वाली तो है, लेकिन इतना जरूर लोगों को समझ आ गया है कि इन दिनो राज भगवा कांग्रेस का है, जिसमे चुन चुन कर रेवड़ियाँ बांटी जा रही हैं. हमेशा कांग्रेस और सोनिया राहुल को कोसते रहने बाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार चापलूसों और भगवा मानसिकता वाली विभूतियों को पिछले 2 सालों से उपकृत कर रही है.

सबसे बड़ा विवाद पिछले साल उठ खड़ा हुआ था, जब टीवी कलाकार गजेन्द्र चौहान को एफटीआईआई का मुखिया बनाया गया था. छात्रों ने गजेन्द्र को इस पद के नाकाबिल मानते जो लम्बी हड़ताल की थी, उससे सरकार के पसीने छूट गए थे. गजेंद्र की ही तरह चेतन की भी अपनी योग्यताएं हैं, वे दो बार भाजपा से सांसद रहे हैं, जब कुछ महीनो पहले डीडीसीए और दिल्ली सरकार के बीच विवाद छिड़ा था, तब वे वित्त मंत्री अरुण जेटली के बचाव में खुल कर बोले थे. निफ़्ट की ताजपोशी उसी वफादारी का इनाम है.  इत्तफाक से जब चेतन चौहान नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का शुक्रिया अदा कर रहे थे, ठीक उसी वक्त आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन मोदी सरकार से जयराम जी की करते दूसरा कार्यकाल लेने से मना कर रहे थे, क्योंकि उनका बेहद घटिया स्तर पर जाकर विरोध अरुण जेटली और भाजपा सांसद सुब्रमन्यम स्वामी कर चुके थे. ऐसे में जाहिर है कोई काबिल आदमी तो इस सरकार के साथ काम करने से रहा, जिसके फैसले जेटली और स्वामी जैसे `पापुलर ` नेता लेते हैं, जिन्हें वोटर लोकसभा भेजने के काबिल भी नहीं समझता.

उल्लेखनीय है कि राजन के बयान के बाद जेटली ने तो खुशी जताई ही थी, पर राजन से राख बनने तक की हद तक जलने भुनने वाले स्वामी अपने आप को यह कहने से रोक नहीं पाये थे कि राजन एक सरकारी कर्मचारी हैं और सरकारी कर्मचारी लोकप्रियता के आधार पर नहीं चुने जाते. चेतन चौहान किस आधार पर चुने गए हैं, इस सवाल का कोई जवाब किसी जेटली या स्वामी के पास नहीं होगा. शायद ही इन्होने निफ़्ट अधिनियम 2006 पढ़ा होगा, जिसमे साफ साफ लिखा है कि इसका अध्यक्ष कोई प्रख्यात शिक्षाविद, वैज्ञानिक , तकनीकविद या फिर कोई पेशेवर होगा, जिसे राष्ट्रपति निफ़्ट का विजिटर होने के नाते मनोनीत करेंगे.

चौहान इनमे से किसी पैमाने पर फिट नहीं बैठते, फिर भी ठाट से इस अहम कुर्सी पर विराजने वाले हैं, तो दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीबाल की इस प्रतिक्रिया को महज राजनैतिक कहते खारिज नहीं किया जा सकता कि मोदी जी ने चुन चुन कर चापलूसों की फौज जुटा ली है …गजेंद्र चौहान , चेतन चौहान , पहलाज निहलानी और स्मृति ईरानी. यह लिस्ट तय है केजरीवाल को भी नहीं मालूम कि और लम्बी है जिसमे आईसीएचआर के पूर्व चेयरमेन वाय सुदर्शन राव का भी नाम शामिल है, जिन्हें इतिहास का इतना ज्यादा ज्ञान था कि वे यह तक कहने लगे थे कि प्राचीन समय में जाति व्यवस्था बिलकुल सही थी. इस बेतुके पूर्वाग्रही और ब्राह्मणवादी बयान पर वामपंथी इतिहासकारों ने हल्ला मचाया, तो राव ने नवंबर 2015 मे अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

एक इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी को गांधी से भी महान और भगवान बताने बाले प्रोफेसर लोकेश चन्द्र भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद जैसी महत्वपूर्ण और संवेदनशील संस्था के मुखिया बना दिये गए, तो गिरीश चन्द्र त्रिपाठी को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का कुलपति महज शाकाहार की वकालत करने के एवज मे बनाया गया था. तब भी आरोप लगे थे कि उनसे भी काबिल और तजुर्बेकार उम्मीदवार लाइन में थे, पर सरकार संस्थाओं का भगवाकरण करने पर उतारू हो ही आई है, तो कोई क्या कर लेगा. बात सच है चेतन चौहान का भी कोई कुछ नहीं कर सकता, निफ़्ट के  देश भर में केंद्र हैं और फैशन पढ़ रहे छात्र सरकार की इस तकनीक से सहमत नहीं हैं.

भोपाल स्थित निफ़्ट की एक छात्रा का नाम न उजागर करने की गुजारिश पर कहना है , हम समझ नहीं पा रहे कि चेतन चौहान ही क्यों, ऋतु बेरी क्यों नहीं जिनके डिजायन किए कपड़े ( ड्रेस ) रेल कर्मी पहनेंगे. छात्रों का यह आक्रोश और बढ़ा तो मुमकिन है हाल एफटीआईआई जैसा हो, क्योंकि सरकार ने योग्यता के बजाय चापलूसी को प्राथमिकता देते मनमानी तो की है.

बेरोजगारी की तरफ बढ़ते बॉलीवुड के चार दंपत्ति

बौलीवुड में एक मिथ रहा है कि शादी के बाद हीरोईन/अभिनेत्री का करियर खत्म हो जाता है. लेकिन इन दिनों बौलीवुड में एक नए मिथ की चर्चाएं भी हो रही हैं. सूत्रों की माने तो बौलीवुड में दबे स्वर लोग चर्चा करने लगे हैं कि शादीशुदा अभिनेत्रियां अपना करियर खत्म करने के साथ साथ अपने अभिनेता पति के करियर को भी ले डूबती हैं. अब यह मिथ किस हद तक सच है, इसका दावा तो हम नहीं कर सकते. क्योंकि हमारा अपना मानना है कि अभिनय एक ऐसी कलात्मक प्रतिभा है, जो हर कलाकार में एक समान नहीं हो सकती. मगर बौलीवुड पंडितो व बिचौलियों के बीच हो रही इन चर्चाओं को सुनने के बाद जब हमने इस पर गौर किया, तो पाया कि हकीकत में इन दिनों बालीवुड के कई दंपति कलाकार ऐसे हैं, जिनके पास एक भी फिल्म नहीं है. यानी कि इनका करियर खात्मे की ओर बढ़ रहा है.

बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर

हमने शादीशुदा दंपतियों के करियर की जांच पड़ताल की शुरूआत नए नए दंपत्ति बने बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर से की. करण सिंह ग्रोवर व बिपाशा बसु ने एक साथ 2015 की शुरूआत में प्रदर्शित असफल फिल्म ‘‘अलोन’’ में एक साथ अभिनय किया था. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों नजदीक आए तथा कुछ माह पहले ही शादी के बंधन में बंधे हैं. पर इन दोनों के पास एक भी फिल्म नहीं है. वैसे बिपाशा बसु को तो ‘‘अलोन’’ की असफलता के बाद से कोई फिल्म नहीं मिली. ‘‘अलोन’’ से पहले 2014 में बिपाषा बसु ‘‘क्रीचर 3 डी’’ तथा ‘‘हमशकल्स’’ में नजर आयीं थी. इन दोनो ही फिल्मों ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था. उधर टीवी सीरियलों में अभिनय कर शोहरत बटोर चुके करण सिंह ग्रोवर तो बिपाशा बसु के साथ फिल्म ‘‘अलोन’’ करके काफी उत्साहित थे. लेकिन जब इस फिल्म को बाक्स आफिस पर सफलता नही मिली, तो करण सिंह ग्रोवर ने इरोटिक फिल्म ‘‘हेट स्टोरी 3’’ की, पर इस फिल्म ने भी बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा. सूत्र बताते है कि ‘‘हेट स्टोरी 3’’ के असफल होते ही करण सिंह ग्रोवर ने अपनी तरफ से शादी के लिए जल्दबाजी की, उन्हे लगने लगा था कि कहीं ऐसा न हो कि उन्हे कोई दूसरी फिल्म न मिलने पर बिपाशा बसु उनसे दूर न चली जाए. उधर कुछ सूत्र दावा करते हैं कि अपने खत्म होते करियर की आहट को समझकर बिपाशा बसु ने पिछली बार की गलती को दोहराने की बजाय करण सिंह ग्रोवर के साथ शादी कर ली.

ज्ञातब्य है कि जान अब्राहम के साथ बिपाशा बसु के दस साल तक रिलेशन रहे, पर बाद में दोनों के बीच अलगाव हो गया था. पर सबसे बड़ी हकीकत यही है कि इस शादीशुदा कलाकार दंपति के पास फिलहाल एक भी फिल्म नहीं है. इसी के चलते यह दंपति खुद को खबरों में बनाए रखने के लिए सलमान खान द्वारा दस करोड़ का फ्लैट उपहार में दिए जाने की खबर को हवा देने के बाद इसे अफवाह बता रहा है.

सोहा अली खान और कुणाल खेमू

लगभग पांच साल तक ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने के बाद 2015 में शुदीशुदा दंपति बने अभिनेता कुणाल खेमू और अभिनेत्री सोहा अली खान के करियर की कहानी  भी लगभग बिपाशा बसु और करण सिंह ग्रोवर के करियर की कहानी जैसी ही है. सोहा अली खान की 2013 और 2014 मे रिलीज हुई सभी फिल्में बॉक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा चुकी थी. जबकि सनी देओल के साथ उनकी एक फिल्म ‘‘घायल वंस अगेन’’ पूरी होने का नाम नहीं ले रही थी. तो दूसरी तरफ कमोबेश यही गति कुणाल खेमू के करियर की रही. कुणाल केमू की 2012 में ‘ब्लड मनी’, 2013 में ‘गो गोवा गान’ और 2014 में ‘मि.जो बी करवा लो’ तथा 2015 में ‘भाग जानी’ और ‘गुड्डू की गन’’ रिलीज हुई.

कुणाल खेमू की यह सभी फिल्में बाक्स आफिस पर धराशाही रही. 2014 में ही सोहा अली खान और कुणाल खेमू के करियर का लगभग खात्मा हो चुका था. फिर इन दोनों ने फरवरी 2015 में ब्याह कर लिया था. सोहा अली खान के साथ शादी करने के  बाद 2015 में कुणाल खेमू की एक माह के अंतराल से दो फिल्में ‘‘भाग जानी’’ और ‘‘गुड्डू की गन’’ रिलीज हुई, जिन्होंने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा. इसके बाद फिल्मकारों ने इन दोनो से मुंह मोड़ लिया, जिसके चलते आज की तारीख में इस दंपति के पास एक भी फिल्म नहीं है. बौलीवुड में इस तरह की भी चर्चाएं सुनने में आती रहती है कि ‘‘लिव इन रिलेशनशिप’’ में रहते हुए ही सोहा अली खान व कुणाल खेमू के करियर का पतन शुरू हो गया था, फिर भी दोनों में से किसी ने भी सबक नहीं सीखा था.

करीना कपूर और सैफ अली खान

सोहा अली खान ने के भाई व अभिनेता सैफ अली खान ने जब से अभिनेत्री करीना कपूर के साथ शादी की है, तब से सैफ अली खान व करीना कपूर का करियर निरंतर पतन की ओर ही अग्रसर होता नजर आता है. 2012 में करीना कपूर की फिल्म ‘‘दबंग 2’’ को जबरदस्त सफलता मिली, तो दूसरी तरफ सैफ अली खान की फिल्म ‘‘काकटेल’’ को  बहुत बड़ी सफलता मिली. उसके बाद 2012 में ही सैफ अली खान व करीना कपूर ने शादी रचायी और 2013 में करीना कपूर व सैफ अली खान दोनो की फिल्म ‘बांबे  टाकीज’ ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा. इतना ही नहीं 2013 में रिलीज हुई करीना कपूर खान की फिल्म ‘‘गोरी तेरे प्यार में’’ बाक्स आफिस पर आपेक्षित दर्शक जुटाने में असफल रहीं. फिर 2014 में ‘द शौकीन्स’’ तथा 2015 में ‘की एंड का’ असफल रही. हाल ही में करीना कपूर खान की फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ रिलीज हुई है, अब तो जब खबर मिल रही है, उसके अनुसार ‘उड़ता पंजाब’ से निर्माताओं को नुकसान होने की ही सभावनाएं ज्यादा नजर आ रही हैं..

उधर 2013 में सैफ अली की फिल्म ‘‘गो गोवा गान’’ भी असफल रही. 2014 में सैफ अली की ‘हमशकल्स’, ‘हैप्पी एंडिंग’’, ‘डाली की डोली’ और ‘फैटम’ को सफलता नसीब नहीं हो पायी. इतना ही नहीं सैफ अली खान निर्मित फिल्म ‘‘गो गोवा गान’’ और ‘‘लेकर हम दीवाना दिल’’ भी बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा गयी. अब 2016 में सैफ अली खान की फिल्म ‘‘रंगून’’ रिलीज होने वाली है, जिसमें सैफ अली खान के साथ शाहिद कपूर और कंगना रानौट भी हैं. कहने के लिए सैफ अली खान दीवाली के समय मल्टीस्टारर फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में कैमियो करते नजर आएंगे, जिसकी शूटिंग वह 2015 में ही पूरी कर चुके हैं. पर सबसे कड़वा सच यह है कि करीना कपूर और सैफ अली खान के पास घर पर खाली बैठ गप्प लड़ाते रहने या लंदन में छुट्यिां मनाने के अलावा कोई काम नहीं है. इन दोनों के पास आज की तारीख में कोई काम नहीं है.

ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन

ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन ने 2007 में सफलतम फिल्म ‘‘गुरू’’ में एक साथ अभिनय करने के बाद शादी की थी. जब यह शादी हुई थी, तब कई तरह के दावे किए गए थे. मगर आज जब हम इनके करियर का विश्लेषण करने बैठते हैं, तो बहुत ही अजीबोगरीब स्थिति सामने आती है. 2007 ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए हमेशा यादगार साल रहेगा. इसी साल उन्होने पूरे विश्वभर में चर्चित रही जग मूंदड़ा की अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘‘प्रोवोक्ड’’ करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत हासिल की थी. इसी साल मीरा नायर के निर्देशन में उनके अभिनय से सजी फिल्म ‘‘द लास्ट लेगियन’’ रिलीज हुई थी. मगर उसके बाद ऐश्वर्या राय की बंद मुट्ठी धीरे धीरे असफल होती फिल्मों के चलते खाली होती चली गयी. 2008 में ‘सरकार राज’ ठीक ठाक चली थी, पर ‘जोधा अकबर’ को सफलता नसीब नहीं हुई थी.

2009 में ‘द पिंक पैंथर’ से उन्हें नुकसान हुआ. 2010 में ‘गुजारिश’ की चर्चा हुई थी, मगर बाक्स आफिस पर कमजोर साबित हुई थी. लेकिन 2010 में ही ऐश्वर्या राय बच्चन की ‘रावण’’, ‘एथीरान’, ‘एक्शन रिप्ले’ जैसी असफल फिल्में आयी. उसके बाद ऐश्वर्या राय बच्चन पूरे पांच साल तक अभिनय से दूर रहीं. ऐश्वर्या राय बच्चन ने ‘जज्बा’’ से अभिनय में पुनः वापसी की. लेकिन ‘जज्बा’ के अलावा गत माह प्रदर्शित फिल्म ‘‘सरबजीत’’ ने बाक्स आफिस पर मुंह की खायी. यहां तक इन फिल्मों के लिए ऐश्वर्या राय बच्चन को ही कमजोर कड़ी माना जा रहा है. अब दीवाली के समय ऐश्वर्या राय बच्चन की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ रिलीज होने वाली है. करण जोहर की इस मल्टीस्टारर फिल्म की शूटिंग ऐश्वर्या राय बच्चन ने  2015 में ही पूरी कर दी थी. आज की तारीख में उनके पास भी एक भी फिल्म नहीं है. कहने को तो ऐश्वर्या राय बच्चन का दावा है कि वह मणि रत्नम, सुज्वाय घोष और राजीव मेनन के साथ फिल्में कर रही हैं.

2007 में ऐश्वर्या राय बच्चन के साथ विवाह रचान के बाद से अभिषेक बच्चन का करियर भी हिचकोले लेते हुए अब तक चलता आया है. 2007 में अभिषेक बच्चन की ‘‘झूम बराबर झूम’’, ‘‘आग’’, ‘‘लागा चुनरी में दाग’’ जैसी असफल फिल्में आयी थी. पर इसी साल शाहरुख खान के साथ वाली मल्टी स्टारर फिल्म ‘‘ओम शांति ओम’’ की सफलता ने अभिषेक बच्चन के करियर को गति दे दी. 2008 में ‘द्रोण’, ‘दोस्ताना’ की असफलता ने फिर बट्टा लगाया. 2009 अभिषेक के लिए मिला जुला रहा. एक तरफ ‘दिल्ली 6’ ठीक ठाक चली, तो दूसरी तरफ ‘लक बाय चांस’ असफल रही. जबकि 2009 में ही उनके द्वारा निर्मित फिल्म ‘‘पा’’ सफल रही, जिसमें अभिषेक बच्चन के साथ ही उनके पिता अमिताभ बच्चन व विद्या बालन ने अभिनय किया था. 2010 में ‘रावण’, ‘झूठा ही सही’, ‘खेले हम जी जान से’ सहित सभी फिल्में असफल रही. 2011 में ‘गेम’ व ‘दम मारो दम’ असफल रही. 2012 में ‘प्लेयर्स’और ‘बोल बच्चन’’ ने अभिषेक के करियर को गति नही दी. यह फिल्में बाक्स आफिस पर अपना कमाल दिखाने में असफल रहीं. 2013 में ‘‘नौटंकी साला’’ असफल रही. मगर ‘धूम’ सीरीज की ‘धूम 3’ ने जरुर अभिषेक बच्चन को थोड़ी सी राहत दे दी. 2014 में एक बार फिर शाहरुख खान के साथ की मल्टीस्टारर फिल्म ‘‘हैप्पी न्यू ईअर’’ ने अभिषेक बच्चन के करियर में नई संजीवनी डालने का काम किया, पर इसका असर ज्यादा समय तक नहीं रहा. 2014 में ‘‘शौकीन्स’’ ने उन्हे पीछे ढकेला. 2015 में वह फिल्म ‘‘आल इज वेल’’ में सोलो हीरो बनकर आए, मगर इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा.

अब तो अभिषेक बच्चन स्वयं फिल्म‘ ‘आल इज वेल’’ की असफलता के लिए खुद को दोषी ठहराते हुए कहते हैं-‘‘ईमानदारी से कहूं तो इस फिल्म के लिए मेरा चयन शायद गलत हुआ था. मुझे प्रतिक्रिया मिली कि ,‘आपके सामने जो विलेन थे, जिनकी वजह से आप भाग रहे थे, वह ऐसे थे, जिन्हे देखकर लगता नहीं था कि आप इनसे डरते हो.’ मुझे भी यह समस्या समझ में आयी. मैं शारीरिक रूप से इतना बड़ा हूं कि जो मेरे सामने कलाकार थे, हालांकि वह बहुत अच्छे कलाकार है, मो. जिशान अयूब, वह पहली बार मुझे धमकी देते हैं तो लगता है कि एक थपड़ मारो, ठीक हो जाएगा. ऐसे इंसान से डर कर रोड ट्रिप पर जाना व भागना गलत लगता है. यदि मैं इस फिल्म में न होता, तो शायद यह फिल्म चल जाती.’’ अब 2016 में अभिषेक बच्चन ‘‘हाउसफल’ सीरीज की फिल्म ‘‘हाउसफुल 3’’ में नजर आए हैं, मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. अभिषेक बच्चन के पास भी कोई फिल्म नहीं है. पर वह अपनी कबड्डी टीम के साथ ‘‘प्रो कबड्डी’’ के मैचों में व्यस्त हैं. मगर अभिनय करियर तो समाप्ति की ओर जा रहा है.

इस तरह देखा जाए तो जहां तक अभिनय का सवाल है, बौलीवुड के यह चारों कलाकार दंपति फिलहाल बेरोजगारी की ओर जाते नजर आ रहे हैं. यूं तो इन सभी कलाकारों का दावा है कि इनके पास फिल्में हैं और जब वह फिल्मों की शूटिंग कर लेगे, तब घोषित करेंगे  या वह इन दिनों पटकथाएं पढ़ने में व्यस्त हैं. बहरहाल,एक बहुत पुरानी कहावत है कि ‘‘हर सफल पुरूष के पीछे कोई न कोई औरत होती है. मगर इन चार कलाकार दंपतियों की आज जो स्थिति नजर आ रही है, उसको लेकर क्या कहा जाए…

रिचा चड्ढा ने कुणाल कपूर से मिलाया हाथ

कुछ समय पूर्व हमने ‘‘सरिता’’ पत्रिका में ही बताया था कि अभिनेत्री रिचा चड्ढा इन दिनों एक एनजीओ के साथ मिलकर ह्यूमन ट्रैफींकिंग में फंसी व सैक्स गुलाम  नाबालिग लड़कियों के पुनरुद्धार का काम कर रही हैं. रिचा चड्ढा ने फिलहाल पंद्रह लड़कियों को मुंबई में एक मकान रहने के लिए किराए पर लिया है. इन्हे मुफ्त में खाने पीने की सुविधा देने के साथ साथ इनके बेहतर भविष्य के लिए वह इन्हे तकनीकी शिक्षा भी दिला रही हैं. इन 15 लड़कियों पर दो साल में करीबन 12 लाख रूपए का खर्च आने का अनुमान है. इस धनराशि को इकट्ठा करने के लिए रिचा चड्ढा ने एक माह से एक मुहीम चलायी हुई है. पर उन्हे अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है. इसलिए अब रिचा चड्ढा ने कुणाल कपूर की संस्था ‘‘केट्टो’’ से हाथ मिलाया है.

कुणाल कपूर की संस्था केट्टो आनलाइन डोनेशन एकत्रित कर लोगों की मदद करती रहती है. सूत्रों के अनुसार कुणाल की संस्था केट्टो अब तक उड़ीसा के लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने में योगदान देने के अलावा कौशिक नामक महिला के इलाज के लिए लगभग सात लाख रूपए, एक गरीब परिवार के बच्चों की शिक्षा के लिए लगभग तीन लाख रूपयों सहित कई अन्य जरुरतमंद लोगो की मदद के डोनेशन एकत्रित करने के अलावा क्राउड फंडिंग कर चुकी है.

रिचा चड्ढा कहती हैं-‘‘मैं हमेशा सेाचती रहती थी कि जब मै थोड़ी बहुत शोहरत बटोर लूंगी, तो मैं उन मुद्दो को लेकर काम करुंगी, जिन पर मुझे यकीन है. मेरे लिए एक कलाकार के रूप में यह विस्तारित काम ही है. इसे आप मेरी फिलासफी कह सकते हैं. जब मुझे पता चला कि एक एनजीओ ने मुंबई में सैक्स गुलाम रही लड़कियों को उनके बंधकों से छुड़वाया है, तो मैं इन लड़कियों से मिलने गयी और इनकी दर्दभरी दास्तान सुनकर मुझे दुःख हुआ. तब मैने उस एनजीओ के साथ मिलकर इन लड़कियों के पुनरुद्धार का काम अपने हाथ में लिया. हमने 15 लड़कियों के रहने के लिए मुंबई के अंधेरी इलाके में एक बंगलानुमा मकान किराए पर लिया है. अब मैं इनके मुफ्त में रहन सहन, कपड़े, खाने पीने के अलावा इन्हे शिक्षा दिलाकर इन्हे दो साल के अंदर आत्मनिर्भर बनाना चाहती हूं. इसी के लिए धन जमा करने में लगी हुई हूं. मैने अपने इस मकसद में कुणाल कपूर से भी मदद मांगी है.’’

केट्टो संस्था के संचालक और अभिनेता कुणाल कपूर कहते हैं-‘‘यह सुखद है कि अब फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ लोग इस तरह के मुद्दों पर आगे आ रहे हैं. फिल्म इंडस्ट्री के प्रभावशाली लोग जब इस तरह के मुद्दों के साथ जुड़ रहे हैं, तो इसके सकारात्मक परिणाम ही आने हैं. उम्मीद करता हूं कि रिचा चड्ढा का यह कदम बौलीवुड के दूसरी हस्तियों को भी इस तरह के काम को करने के लिए प्रेरित करेंगी. रिचा चड्ढा इस तरह के मिशन पर चलने पर सही मायनों मे एक साहसी महिला हैं.’’

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