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सलमान का बेतुका बयान

सुपरस्टार सलमान खान के दिए गए बयान को लेकर विवाद हो रहा है. सलमान खान ने अपनी आने वाली फिल्म ‘सुल्तान’ को लेकर ऐसा बयान दे दिया है जिस पर काफी बवाल मचा हुआ है और इस दबंग स्टार की जमकर आलोचना हो रही है.

सलमान खान ने कहा है कि सुल्तान की शूटिंग के बाद वो बलात्कार की शिकार महिला की तरह महसूस करते थे. सलमान ने कहा, “जब मैं शूटिंग के बाद रिंग से बाहर आया करता था,  मुझे रेप की शिकार महिला जैसा महसूस होता था… मैं सीधा चल भी नहीं पाता था.”

जब सलमान खान से पूछा गया कि ‘सुल्तान’ में पहलवान के किरदार को करना कितना मुश्किल था? इस पर उनका जवाब था, “शूटिंग के दौरान उन 6 घंटो में मुझे उठाने का काम काफी करना होता था, जो मेरे लिए काफी मुश्किल था क्योंकि किसी को उठा रहा हूं तो 120 किलो के शख्स को 10 बार 10 एंगल से उठाना होता था, फिर जमीन पर फेंकना होता था. हकीकत में जब होता है तो रिंग में ऐसा नहीं होता है. जब शूट के बाद रिंग से बाहर जाता था तो रेप्ड महिला की तरह महसूस करता था. मैं सीधा नहीं चल पाता था. मैं खाना खाता और फिर ट्रेनिंग के लिए चला जाता. सिलसिला चलता रहा.”

सोशल मीडिया पर सलमान के इस बयान को लेकर उनकी काफी आलोचना हो रही है. समाजसेवी कविता कृष्णन ने कहा है कि ये सिर्फ सलमान की असंवेदनाशीलता पर बहस नहीं होनी चाहिए. इस तरह के विचार पर बहस होनी चाहिए. अक्सर बलात्कार की तुलना लोग कई चीजों पर कर देते हैं.

कृष्णन ने कहा, ‘जब सलमान कहते हैं तो बहस होती है. इस पर करिए लेकिन सिर्फ सलमान पर नहीं, इस दायरे को बढा़ना चाहिए. फिल्म थ्री इडियट्स में भी बलात्कार को लेकर मजाक उड़ाया गया था. फैमिली फिल्म के रूप में सबने इन्जॉय किया, उसकी खूब प्रशंसा हो रही थी. तो किसी एक पर बहस करने की बजाय हमारे बीच जो ये संस्कृति है उस पर बहस होनी चाहिए. हो सकता है कि हम भी इसके हिस्सेदार हों. अगर हमने इस पर विचार नहीं किया तो दो दिन तक सलमान के बयान पर हंगामा होगा और फिर इसी तरह सब लौट जाएँगे और इसी तरह के मजाक करना जारी रखेंगे.’

इसके बाद अब सवाल ये है कि क्या सलमान महिलाओं के अपमान के लिए माफी मांगेगे? दूसरा सवाल ये है कि रेप जैसे मामले पर संवेदनहीन बयान क्यों? तीसरा सवाल ये है कि क्या बॉलीवुड इंडस्ट्री इस बयान पर स्टैंड लेगा?

आपके फोन को मुश्किल में डाल सकते हैं ये 6 एप्स

आज के समय में हर काम के लिए एप है. चाहे आप फोन पर गेम खेल कर घंटों बिताना चाहते हों या दुनिया के किसी कोने में बैठे इंसान से वीडियो कॉलिंग करना चाहते हों. लेकिन कुछ एप  ऐसे भी हैं जो आपको परेशानी में डाल सकते हैं. हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे एप्स के बारे में जो दावा तो करते हैं आपकी हेल्प करने का लेकिन असल में आपकी परेशानी बढ़ा रहे हैं. इन एप्स को इन्स्टॉल किया तो हो सकती है मुश्किल…

1. Dolphin Web Browser

डेवलपर्स द्वारा क्लेम किया जाता है कि ये एप ऐड-फ्री और फ्लैश सपोर्टिंग एप है. जबकि अगर आप ये एप  डाउनलोड कर रहे हैं तो ऐसा अपने रिस्क पर ही करें. दरअसल, होता ये है कि इस ब्राउजर पर अगर आप incognito मोड में भी कुछ देखते हैं तो ये उस फाइल को आपके फोन में सेव कर देता है.

2. QuickPic

QuickPic फोटो गैलरी एप है. ये यूज करने में आसान और यूजर फ्रेंडली एप  है. Androidpit वेबसाइट ने इसे 2015 के बेस्ट एप्स में से एक बताया है. ये एप  फोटो लॉन्चिंग में हेल्प करने के साथ ही इसमें प्राइवेट फोटोज भी हाइड किए जा सकते हैं.

पिछले साल इसे Cheetah Mobile ने लॉन्च किया था. कंपनी ने यूजर्स का डाटा अपने सर्वर पर अपलोड करना शुरू कर दिया है. ऐसे में यूजर के प्राइवेट फोटोज और पर्सनल डाटा लीक होने का खतरा बढ़ गया है. अगर आप भी इस एप  का इस्तेमाल करते हैं तो तुरंत इसे अनइन्स्टॉल कर दें.

3. ES File Explorer

इस एप  के दो वर्जन प्ले स्टोर पर अवेलेबल हैं. एक फ्री और एक पेड. फ्री वर्जन के साथ आपके फोन में में कई बोल्टवेयर और एडवेयर डाउनलोड हो जाते हैं. ये फोन के डाटा के साथ ही साथ फोन की मेमोरी भी ऑक्यूपाई करते हैं. इसका दूसरा सबसे बड़ा ड्रॉबैक ये है कि इस एप  को डाउनलोड करने पर कई एडिशनल एप्स भी डाउनलोड करने पड़ते हैं. इसमें जो पॉप अप बार है उसे डिसेबल भी नहीं किया जा सकता.

4. Music Player

अपने नाम के मुताबिक ये एप  यूजर्स को अपने फोन की प्ले लिस्ट में स्टोर ऑडियो प्ले करने की सुविधा देता है. एप  यूज करते समय इसमें कई पॉपअप ऐड आते हैं. ज्यादा चिंता की बात ये है कि ये ऐड यूजर का डाटा इस्तेमाल करते हैं और बैटरी भी ज्यादा खाते हैं. जो यूजर्स इस एप  को यूज कर रहे हैं उनकी काफी कम्प्लेंट है कि इसे यूज करने से तेजी से डाटा खत्म हो रहा है. साथ ही, बैटरी भी जल्दी खत्म हो जाती है.

5. DU Battery saver & Fast Charge

अच्छा होगा अगर आप ये पॉपुलर बैटरी सेविंग एप न इन्स्टॉल करें. एप के नाम में फास्ट चार्ज तो है लेकिन ये फास्ट चार्ज सपोर्ट नहीं करता. इसमें काफी ज्यादा ऐड भी आते हैं. आपके फोन में यूज होने वाले ऑलमोस्ट हर एप  में ये अपने ऐड स्पॉन्सर करता है. इससे न सिर्फ फोन की बैटरी खत्म होती है बल्कि डाटा भी जल्दी खत्म हो जाता है. ऐसे एप्स को तुरंत अनइन्स्टॉल करने की सलाह दी जाती है.

6. Clean it

आप ये सोच रहे होंगे कि इस एप  को क्यों अनइन्स्टॉल करने की सलाह दी जा रही है, जबकि ये तो फोन का कैशे क्लियर कर उसकी स्पीड बढ़ाने का दावा करता है.

दरअसल, बार-बार फोन का कैशे क्लियर करने से फोन स्लो हो जाता है. एप  को काम करने के लिए इसे रिबिल्ड होना पड़ता है. इस प्रोसेस में बैटरी ज्यादा खर्च होती है. ये मिथ है कि रनिंग एप्स को किल करने से बैटरी बचती है. अगर आप भी ऐसा करते हैं तो तुरंत ये करना बंद कर दें और क्लीन एप को अनइंस्टॉल करें.

T20 क्रिकेट: भारत के नाम सबसे बड़ा रिकॉर्ड

जिम्बाब्वे के खिलाफ पहले टी-20 मैच में हार के बाद टीम इंडिया ने वापसी करते हुए दूसरे मैच में शानदार जीत हासिल कर सीरीज में 1-1 की बराबरी कर ली है.

जिम्बाब्वे के खिलाफ दूसरे टी-20 मैच में 10 विकेट से बड़ी जीत हासिल कर टीम इंडिया ने टी20 क्रिकेट में सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है.

जिम्बाब्वे से पहले टीम इंडिया ने श्रीलंका के खिलाफ 9 विकेट से जीत दर्ज कर सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड अपने नाम किया था जो कि अब टूट गया है.

इसके अलावा बंग्लादेश के ढाका में संयुक्त अरब अमिरात (UAE) के खिलाफ खेले गए टी-20 मैच में भारत ने 9 विकेट से जीत दर्ज की थी.

आपको जानकार ये हैरानी होगी टी20 क्रिकेट की शुरूआत के बाद से ही भारतीय टीम की ये तीनों बड़ी जीत इसी साल ही आई है.

मेन्यू में दाल, रोटी और सब्जी चाहिए

भारतीयों के लिए दाल, रोटी और सब्जी की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता. किसी भी काम को अंजाम देने के दौरान खाने-पीने की अपनी अहमियत है. मनपसंद व माकूल खाना मिलने से इनसान की कूवत में काफी इजाफा हो जाता है. जब अपना देश छोड़ कर किसी वजह से दूसरे देश जाना पड़ता है, तो खाने का मुद्दा काफी अहम हो जाता है.

अगर विदेश में भी अपनी पसंद का खाना नसीब हो जाए तो व्यक्ति निहाल हो जाता है, वरना मजबूरन जैसे तैसे काम चलाना पड़ता है. अब बारी है भारतीय खिलाड़ियों के दल की रियो जाने की. रियो ओलंपिक में भारत को भी अपने खिलाड़ियों से तमाम तमगों की आस है. ऐसे में वहां खिलाड़ियों के खाने का बंदोबस्त बहुत ज्यादा अहम हो जाता है.

रियो ओलंपिक आयोजन समिति ने इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन से जब पूछा कि उन के खिलाड़ियों को ओलंपिक खेलों के डाइनिंग के मेन्यू में कौन से भारतीय पकवान चाहिए, तो जवाब दिया गया कि खाने में दाल, रोटी और कोई शाकाहारी सब्जी पक्के तौर पर होनी चाहिए. इन के अलावा वे लोग अन्य भारतीय व्यंजन अपनी मर्जी से मेन्यू में शामिल कर सकते हैं. यह हकीकत भी है कि हिंदुस्तानियों को अगर खाने में ये तीनों चीजें मिल जाएं, तो फिर उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती.

भारतीय खिलाड़ियों के लिए इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (आईओए) की ओर से दाल, रोटी और सब्जी की मांग ठीक उसी तरह की गई है, जिस तरह किसी भी ओलंपिक या दूसरे खेल आयोजन में मुसलमान देशों के खिलाड़ियों के लिए हलाल मीट की मांग की जाती है. आमतौर पर ऐसे आयोजनों में मुस्लिम खिलाड़ियों के लिए हलाल मीट का बंदोबस्त अलग से किया जाता है. गेम्स की डाइनिंग में खास जगह पर बाकायदा हलाल मीट लिखा होता है.

रियो में जाने वाले भारतीय दल के शेफ डि मिशन राकेश गुप्ता के मुताबिक वे खाने के मामले में आयोजनकर्ताओं पर जोर डाले हुए हैं. दरअसल आईओए ने बहुत पहले ही रियो ओलंपिक आयोजन समित से भारतीय खिलाड़ियों के लिए भारतीय भोजन का इंतजाम करने की गुजारिश की थी.

इसी कड़ी में रियो ओलंपिक आयोजन समित ने आईओए की गुजारिश कबूल कर ली थी और भारतीय पकवानों का मेन्यू मांगा था. इसी के तहत भारत की ओर से दाल, रोटी और तरकारी मुहैया कराने को कहा गया है.

इस दफे भारत के खिलाड़ियों का काफी बड़ा दल ओलंपिक में हिस्सा लेगा. ज्यादातर खिलाड़ी तो गेम्स विलेज यानी यानी खेल गांव में रहेंगे, मगर तीरंदाजों का अलग बंदोबस्त किया गया है.

तीरंदाजों को ठहराने का इंतजाम स्टेडियम के करीब मौजूद एक होटल में किया गया है. वहीं आर्चरी एसोसिएशन आफ इंडिया ने तीरंदाजों के लिए भारतीय भोजन का बंदोबस्त किया है. एसोसिएशन ने वहां एक हिंदुस्तानी बावर्ची की तलाश कर ली है. बावर्ची ने खिलाड़ियों की मरजी के मुताबिक खाना बनाने की बात मान ली है.

मनचाहा खाना पकवाने के लिए भारतीय तीरंदाज तमाम जरूरी मसाले अपने साथ भारत से ले कर जाएंगे. आर्चरी एसोसिएशन आफ इंडिया (एएआई) के ट्रेजरार वीरेंद्र सचदेवा के मुताबिक तमाम तीरंदाज मसालों के साथसाथ पापड़ भी ले कर जाएंगे ताकि रियो में खाने के जायके में कोई कसर न रहे.

अब देखने वाली बात यह होगी कि तीरंदाजों सहित तमाम भारतीय खिलाड़ी रियो से कितने तमगे (पदक) जुटा पाते हैं.

क्या ‘ब्रेक्ज़िट’ की चपेट में आ जाएगी पूरी दुनिया

23 जून का दिन ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन के इतिहास में बड़ा दिन होगा. 2008 की मंदी के बाद वित्तीय जगत में ये दूसरी बड़ी घटना है, जिसकी सभी और चर्चा हो रही है. इस दिन ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन से अलग होने या उसमें रहने पर जनमत होगा. इसे ही ‘ब्रेक्ज़िट’ कहा जा रहा है. अंग्रेजी में इसका मतलब है ब्रिटेन एक्जिट (बाहर होना).

ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने का असर इन दोनों पर तो पड़ेगा ही, बल्कि पूरे विश्व पर भी इसका असर होगा. भारत के वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने हाल ही में कहा था कि अगर ब्रिटेन में यूरोपियन यूनियन से बाहर होने के पक्ष में जनमत होता है, तो इसके होने वाले असर की समीक्षा भारत कर रहा है.

ब्रिटेन के जीडीपी पर 7 फीसदी तक असर!

यूरोपियन यूनियन से बाहर होने पर ब्रिटेन के यूनियन के दूसरे देशों से रिश्ते भी बिखरेंगे. ज्यादा प्रतिबंध से ब्रिटेन को दिक्कत हो सकती है. इससे ब्रिटेन के जीडीपी पर 2 से 7 फीसदी तक का असर आ सकता है.

अगर ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन के साथ रहता है और सदस्यों के साथ लचीले करार कर लेता है, तो उसकी जीडीपी में 2030 तक 1.6 फीसदी की बढ़ोतरी आ सकती है. यूरोपियन यूनियन ब्रिटेन का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट का बाजार है. ब्रिटेन का 40 से 45 फीसदी एक्सपोर्ट यूरोपियन यूनियन को होता है. ब्रिटेन का लक्ष्य है कि उसकी यूनियन के आंतरिक बाजार तक पहुंच हो. अगर ब्रिटेन बाहर होता है तो ये उसके लिए मुश्किल होगा. दूसरी तरफ ब्रिटेन के जाने से यूरोपियन यूनियन को भी झटका लगेगा. ब्रिटेन यूनियन के सबसे मजबूत सदस्यों में है. उसके जाने से यूरोपियन यूनियन की स्थिति राजनैतिक और आर्थिक तौर पर कमजोर होगी.

ब्रिटेन के बाहर होने से वहां के रियल एस्टेट बाजार पर भी असर होगा. साथ ही महंगाई बढ़ेगी, जिससे पाउंड की स्थिति चिंताजनक हो सकती है. यूरोपियन यूनियन से बाहर होने पर अप्रवास संबधी नियम कड़े होंगे. जिससे कुशल लोग कम आएंगे. यूरोपियन यूनियन के 21 लाख लोग ब्रिटेन में काम करते हैं. ब्रिटेन के बाहर होने से डॉलर पर अच्छा असर होगा. इससे डॉलर मजबूत होगा.

क्यों बाहर होना चाहता है ब्रिटेन

– भारत, चीन और अमेरिका के साथ बेहतर ट्रेड सौदे करने के लिए

– इससे पैसा बचेगा जिसे साइंटिफिक रिसर्च और नई इंडस्ट्रीज बनाने में खर्च किया जा सकता है.

– छोड़ने से रोजगार, कानून, सुरक्षा और हेल्थ पर सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा.

पूरी दुनिया पर पड़ सकता है असर

एंबिट कैपिटल के एंड्रयू हॉलेंड के मुताबिक ब्रिटेन के बाहर होने से दूसरे देश भी यूरोपियन यूनियन से बाहर होने का मन बना सकते हैं. इससे यूरोप में मंदी भी आ सकती है. अगर यूरोप में मंदी आती है तो इसका असर जापान पर भी पड़ेगा, जिससे अमेरिका का विकास भी धीमा हो जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो इससे पूरे विश्व में विदेशी निवेशकों की बिकवाली शुरू हो जाएगी. जिसका असर लगभग सभी देशों पर पड़ेगा.

ब्रिटेन में जमी भारतीय कंपनियों पर होगा असर

ब्रिटेन में भारतीय कंपनियां विदेशी निवेश का तीसरा बड़ा स्रोत हैं. फिक्की के मुताबिक अगर ब्रिटेन बाहर होता है, तो इससे भरतीय कार्पोरेट्स में अनिश्चितता बढ़ेगी.

लंदन की एक लॉ फर्म के पार्टनर पीटर किंग के मुताबिक इससे यूरोप में आर्थिक मंदी आ सकती है. जिस तरह ब्रिटेन का बाजार भारत के लिए खुला है उससे भारत पर भी असर होगा. ब्रिटेन बाहर होता है तो कई भारतीय कंपनियों के लिए जोखिम बढ़ेगा, जिनके वहां कारोबार हैं. इससे भारत में भी नौकरियां जा सकती हैं.

ग्रांट थॉरटन की रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में करीब 800 भारतीय कंपनियां हैं. जिसमें 1 लाख 10 हजार लोग काम करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सबसे तेज विकास करने वाली भारतीय कंपनियों का वहां टर्नओवर 26 अरब पाउंड है. इन कंपनियों को नई योजना बनानी पड़ सकती है. यूरोप में घुसने के लिए इन्हें लंदन के मुकाबले दूसरा यूरोपियन शहर ढूंढना पड़ सकता है.

टाटा मोटर्स की सब्सिडियरी कंपनी जगुआर और लैंड रोवर ब्रिटेन में ही है. कंपनी के मुनाफे में 90 फीसदी का योगदान इसी कंपनी से आता है. इसके लिए कंपनी को नई रणनीति पर काम करना होगा.

यूके में भारती एयरटेल, एचसीएल टेक, एमक्युर फार्मा, अपोलो टायर, वोकहार्ट जैसी बड़ी भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं. इन सभी पर असर संभव है. भारत का एक्सपोर्ट पहले ही गिर रहा है. ऐसे में ब्रिटेन से व्यापार में थोड़ा भी उतार-चढ़ाव आता है तो एक्सपोर्ट में और गिरावट आ सकती है.

शेयर बाजार और रुपए में उतार-चढ़ाव संभव

शेयर बाजार की नजर भी लगातार इसी घटना पर टिकी है. इसके चलते पिछले कुछ दिनों से बाजार में कमजोरी भी देखी जा रही है. बाजार के जानकारों के मुताबिक शेयर बाजार पर छोटी अवधि में असर होगा. लंबी अवधि में उन कंपनियों पर ज्यादा असर होगा, जिनका ब्रिटेन में कारोबार है. इसके चलते रुपए में भी उतार-चढ़ाव आ सकता है. गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक इससे पाउंड में 11 फीसदी की कमजोरी आ सकती हैं. जिससे पूरे विश्व की मुद्राओं में उतार-चढ़ाव होगा. इसका असर रुपए पर भी पड़ेगा. पिछले साल जब चीन ने मुद्रा का अवमूल्यन किया था, तब रुपए पर काफी दबाव पड़ा था.

बाजार के जानकार एंड्रयू हॉलेंड के मुताबिक ग्लोबल मार्केट में बिकवाली से भारत में भी विदेशी निवेशकों की बिकवाली हो सकती है. उनके मुताबिक इसका भारत की आर्थिक स्थिति पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. हम विश्व को ज्यादा एक्सपोर्ट नहीं करते हैं और ये अच्छी खबर है. लेकिन आप विश्व के जोखिम को नकार नहीं सकते.

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन भी कह चुके हैं कि ब्रेक्ज़िट से उतार-चढ़ाव के जोखिम से नहीं बचा जा सकता, हालांकि भारत के पास अच्छी नीतियों और विदेशी मुद्रा भंडार का कवच है.

‘ब्रेक्ज़िट’ की 10 खास बातें

 1. 23 जून को ब्रिटेन की जनता को जनमत संग्रह के ज़रिये यह फैसला करना है कि वे 28 देशों के समूह यूरोपियन यूनियन (ईयू) में बने रहना चाहते हैं या नहीं.

2. 'ब्रेक्ज़िट' शब्द भी दो शब्दों 'ब्रिटेन' और 'एक्ज़िट' से मिलकर बनाया गया है, और इसे लेकर ब्रिटेन में भी दो गुट बन गए हैं, जिनमें से एक का मत 'रीमेन' (Remain या ईयू में बने रहें) है, और दूसरे का मत है 'लीव' (Leave या ईयू को छोड़ दें).

3. यूरोपियन यूनियन से नाता तोड़ लेने के पक्षधर लोगों की दलील है कि ब्रिटेन की पहचान, आज़ादी और संस्कृति को बनाए और बचाए रखने के लिए ऐसा करना ज़रूरी हो गया है. ये लोग ब्रिटेन में भारी संख्या में आने वाले प्रवासियों पर भी सवाल उठा रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि यूरोपियन यूनियन ब्रिटेन के करदाताओं के अरबों पाउंड सोख लेता है, और ब्रिटेन पर अपने 'अलोकतांत्रिक' कानून थोपता है.

4. 'रीमेन' खेमे के लोगों की दलील है कि यूरोपियन यूनियन में बने रहना ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के लिए ज़्यादा अच्छा रहेगा, और इस फायदे के सामने प्रवासियों का मुद्दा बेहद छोटा है. अधिकतर अर्थशास्त्री इस दलील से सहमत हैं.

5. दरअसल, यूरोप ही ब्रिटेन का सबसे अहम बाज़ार है, और विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत भी. इन्हीं बातों ने लंदन को दुनिया का एक बड़ा वित्तीय केंद्र भी बनाया है. ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलना उसके इस स्टेटस को खतरे में डाल सकता है.

6. वैसे भी, सिर्फ जनमत संग्रह की बात से ही ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर काफी उल्टा असर पड़ चुका है, और ब्रिटेन की मुद्रा पाउंड स्टर्लिंग इस समय बीते सात साल के अपने सबसे निचले स्तर पर है.

7. जनमत संग्रह को लेकर ब्रिटेन की प्रमुख पार्टियों में भी दरारें पड़ गई हैं. सत्तासीन कंज़रवेटिव पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ईयू में बने रहने के पक्ष में हैं, जबकि उन्हीं की पार्टी से जुड़े लंदन के मेयर बोरिस जॉनसन ईयू से बाहर निकल जाने के पक्षधर हैं. देश में जारी इसी बहस के दौरान 16 जून को विपक्षी लेबर पार्टी की 41-वर्षीय महिला सांसद जो कॉक्स की उत्तरी इंग्लैंड स्थित उन्हीं के संसदीय क्षेत्र में गोली मारकर और चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई थी. कॉक्स ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने का समर्थन कर रही थीं.

8. यूरोपियन यूनियन 28 देशों का महासंघ है, जिसकी संसद में यूरोप के सभी देश अपने चुने हुए सदस्यों को भेजते हैं. इसकी कार्यपालिका यूरोपियन कमीशन का एक प्रेज़िडेंट होता है, और एक कैबिनेट भी, जिसमें सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं.

9. ब्रिटेन वर्ष 1973 से यूरोपियन यूनियन का हिस्सा है, लेकिन इसके बावजूद वह शेष यूरोप से हमेशा आशंकित ही रहा है. जहां बाकी यूरोपीय देशों ने शेनजेन एग्रीमेंट के बाद अपनी सीमाओं से आना-जाना काफी आसान कर दिया, वहीं ब्रिटेन इसके लिए तैयार नहीं हुआ.

10. इसके अलावा बाकी यूरोपीय देशों ने एक ही मुद्रा 'यूरो' को अपना लिया, जबकि ब्रिटेन इससे भी बाहर रहा. वह यूरो के लिए अपनी मुद्रा पाउंड स्टर्लिंग को छोड़ने के लिए कभी राज़ी नहीं हुआ.

कहीं आप भी ‘ब्राउजर हैकिंग’ के शिकार तो नहीं

कभी कभी ब्राउजर पर गूगल सर्च करते समय आप किसी अनचाही वेबसाइट पर पहुंच जाते हैं. कई बार आपके स्मार्टफोन या टैबलेट में छुपे वायरस ऐसा करते हैं और आप 'ब्राउजर हैकिंग' का शिकार हो जाते हैं.

'ब्राउजर हैकिंग' कोई नई बात नहीं है. जो लोग इंटरनेट का इस्तेमाल स्मार्टफोन या टैबलेट के जरिए करते हैं, उनके लिए ये काफी खतरनाक हो सकता है.

इसको पता लगाना बहुत मुश्किल नहीं है. अगर वेब पेज लोड होने में दिक्कत है, ब्राउजर  फ्रीज हो रहा है, कुछ ऐप या प्रोग्राम लोड करने में दिक्कत है या इंटरनेट कनेक्शन की रफ्तार काफी कम है तो ये सभी निशानी हैं कि आपके साथ 'ब्राउजर  हैकिंग' हुई है.

अगर एक वेबसाइट टाइप करने पर दूसरे पर जा रहे हैं, तो ये पहली निशानी हो सकती है.

स्मार्टफोन या टैबलेट पर इससे निपटने के लिए आपको ब्राउजर  में जाकर सभी एक्सटेंशन पर एक बार ध्यान देना होगा. कई बार जाने अनजाने में हम ऐसे एक्सटेंशन इनस्टॉल कर देते हैं जो ये दिक्कत पैदा करते हैं.

अगर कंप्यूटर पर ऐसा करना है तो 'कंट्रोल पैनल' में जाकर 'ऐड/रिमूव प्रोग्राम' या 'अनइंस्टॉल अ प्रोग्राम' में जाकर ऐसे सभी प्रोग्राम फाइल डिलीट कर दीजिए जिन्हें आपने इनस्टॉल नहीं किया है.

भारत में 80 फीसदी से ज्यादा स्मार्टफोन एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम वाले हैं. कई एक्सपर्ट्स का दावा है कि एंड्राइड स्मार्टफोन पर वायरस का खतरा ज्यादा होता है. इसलिए स्मार्टफोन या टैबलेट की सिक्योरिटी के बारे में जरा सा भी शक हो तो सुरक्षा के कदम जल्दी से जल्दी उठाएं.

सरकारी योजनाओं से दूर छोटे किसान बन रहे मजदूर

सरकारी योजनाओं का फायदा बिहार में छोटे किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है. खेती की जमीन के मालिकाना हक को ले कर मची अराजकता और छोटे किसानों तक खेती की तरक्की की योजनाएं नहीं पहुंच पाने की वजह से खेती और छोटे किसानों की हालत लगातार खराब होती जा रही है. इस से छोटे किसानों का खेती से मन उचटता जा रहा है. यही वजह है कि खेती का रकबा और उत्पादन बढ़ाने की तमाम सरकारी योजनाएं फेल हो रही हैं. खेती छोड़ कर किसान पेट पालने के लिए मजदूरी करने लगे हैं, जिस वजह से खेतिहर मजदूरों की संख्या आज 270 लाख हो गई है.

बिहार में 80.26 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती की जाती है. यहां की खेती छोटे जोत वाले किसानों पर आधारित है, क्योंकि 96 फीसदी किसान ऐसे हैं जिन के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है. कुल खेती लायक जमीन का 67 फीसदी हिस्सा ऐसे ही किसानों के पास है. साधनों की काफी कमी होने की वजह से ये किसान खेती की नई तनकीकों और सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं उठा पाते हैं.

जहानाबाद के चेनारी गांव के किसान अरुण प्रसाद ने बताया, ‘सभी सरकारी योजनाओं का फायदा बड़े और पहुंच वाले किसान ही उठाते हैं. छोटे किसानों को तो पता ही नहीं चल पाता है कि उन के लिए क्या क्या स्कीमें हैं. सीओ, बीडीओ और मुखिया में से कोई भी छोटे किसानों की बात सुनने वाला नहीं है. 2 साल पहले सरकारी अनुदान पर मिलने वाले पावर टिलर को लेने के लिए कई बाबुओं के पास दौड़ लगाई, पर कुछ नहीं हो सका.’

सूबे में 90 फीसदी जोत 1 हेक्टेयर से छोटे हैं. बीज, सिंचाई व मशीन आदि के लिए मिलने वाले लोन और फसल बीमा की भी जानकारी छोटे किसानों को नहीं होती है. कृषि विभाग के सूत्र बताते हैं कि फसल बीमा का फायदा सूबे के कुल 4.5 फीसदी किसानों को ही मिल सका है. विभाग के आंकड़े ही बताते हैं कि करीब 57 फीसदी किसानों को फसल बीमा के बारे में पता ही नहीं है.

नवादा के किसान रामेश्वर पासवान कहते हैं कि उन्हें पता ही नहीं है कि फसल बरबाद हो जाने पर बीमा कंपनी हरजाना देती है. उन्हें यह मालूम है कि खेती की मशीन खरीदने के लिए सरकार की ओर से लोन और अनुदान मिलता है. वे सपाट लहजे में पूछते हैं कि ये सब कहां मिलेगा? कौन देगा? किस बाबू से मिलना होगा? कितने दिन में मिल जाएगा?

कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक सूबे में फिलहाल 3.57 लाख हेक्टेयर में धान, 2.16 लाख हेक्टेयर में गेहूं और 6.39 लाख हेक्टेयर में मक्के की खेती होती है. वहीं 1.40 लाख हेक्टेयर में आम और 28 हजार हेक्टेयर में लीची की बागबानी होती है.

कृषि मंत्री रामविचार राय कहते हैं कि खेती की तरक्की के लिए योजना बनाने से पहले प्रमाणिक आंकड़ों का होना काफी जरूरी है. वैज्ञानिकों द्वारा रिमोट सेंसिंग के जरीए खेती के कुल रकबे को पता करने का काम किया जा रहा है. वहीं सीमांत यानी छोटे किसानों की खेती में दिलचस्पी पैदा करने के लिए कई योजनाएं चालू की गई हैं और कई पर काम चल रहा है. इन सब के नतीजे जल्दी ही सामने आएंगे. 

किसान क्रेडिट कार्ड के लिए भटकते किसान

सरकार के कई दावों के बाद भी किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना सही तरीके से जमीन पर नहीं उतर पा रही है, जिस से किसानों को इस का फायदा नहीं मिल पा रहा है. इस में सब से बड़ी बाधा बैंकों की उदासीनता और टालमटोल वाला रवैया है. इसी वजह से किसानों के  क्रेडिट कार्ड नहीं बन पा रहे हैं.

गौरतलब है कि किसानों को गांवों के साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की गई थी. पर इस योजना के फेल होने से किसान साहूकारों के चंगुल में फंसने के लिए मजबूर हैं.

बख्तियारपुर के किसान संजय यादव कहते हैं कि पिछले 2 सालों से वे किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने की कोशिश कर रहे हैं, पर बैंक उन की मांग पर जरा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं. जिन किसानों के केसीसी बने हुए हैं, उन को 5 लाख रुपए तक लोन देने का प्रावधान है, पर बैंक उन्हें 50 हजार रुपए देने में भी आनाकानी करते हैं.

पटना से सटे मसौढ़ी प्रखंड के कटका गांव के किसान असलम परवेज कहते हैं कि पिछले साल बारिश की वजह से उन की प्याज की फसल बरबाद हो गई और उस के बाद आलू की फसल को झुलसा रोग ने चौपट कर दिया. अब उन के पास खेती करने के लिए पैसे नहीं हैं. उन्होंने केसीसी के जरीए लोन लेने के लिए पिछले 4 महीने में कई बार बैंकों का चक्कर लगाया, पर आज तक उन का केसीसी नहीं बन सका है.

जुनून के आगे बौनी साबित हुई चुनौतियां

खेल की दुनिया में अपना परचम लहराने वाली कुछ जानीमानी महिला खिलाडि़यों ने माली हालत खराब होने के बावजूद चुनौतियों का डट कर मुकाबला किया. उन्होंने कई प्रतिबंधों और महिलाओं से जुड़े मिथकों को तोड़ कर खेल की दुनिया में नया कीर्तिमान रच कर देश को सोने के तमगों से नवाजा.

तुम में यदि हिम्मत है तो बगावत कर दो वरना जहां मां-बाप कहें, वहां शादी कर लो.’ शायर कैफी आजमी की इन पंक्तियों को सुन कुछ युवतियों ने बगावत की, तो कुछ ने मां-बाप की मरजी से शादी कर ली.

खेल की बात करें, तो कुछ गिनीचुनी युवतियों के नाम ही जुबां पर आते हैं. इन में मैरी कौम, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा, कर्णम मल्लेश्वरी, पीटी उषा, अंजू बौबी जौर्ज आदि ने महिलाओं से जुड़े मिथकों को तोड़ कर खेल की दुनिया में नए कीर्तिमान रचे हैं, लेकिन इन के अलावा और भी कई नाम हैं, जिनका खेल की दुनिया का सफर काफी चुनौतियों भरा रहा है.

किसी के परिवार ने उन्हें खेलों में आने से रोका, तो किसी को समाज ने और किसी की खराब माली हालत ने, लेकिन सभी ने चुनौतियों का डट कर मुकाबला किया यानी ऐसी बेमिसाल युवतियों व महिलाओं के लिए कहना गलत नहीं होगा कि खेल नहीं है आसान, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है.  

वाकई यहां जिन महिला खिलाडि़यों का जिक्र किया जा रहा है, उन्हें मिले तमगों की चमक आग के दरिया को पार करने के बाद ही बनी है. हर चुनौती को इन्होंने बौना ही साबित किया है.

हैमर थ्रो प्लेयर : मंजूबाला

पिताजी ने कर्ज ले कर कराई खेल की तैयारी

हैमर थ्रो प्लेयर मंजूबाला आज एक जानापहचाना नाम है. मंजू ने 2014 में हुए एशियन गेम्स में भारत को सिल्वर मैडल दिलवाया था. मंजू राजस्थान के चुरु जिले के एक छोटे से गांव चांदगोटी की रहने वाली हैं. मंजू के पिता विजय सिंह चाय का ठेला लगा कर परिवार का पोषण करते हैं.

मंजू कहती है कि जब मेरे पिता को मेरे सपने के बारे में पता चला तो वे भी मेरे साथ जुट गए.  हालांकि आसपड़ोस के लोगों को यह पसंद नहीं था, क्योंकि गांव की ज्यादातर युवतियां घरों में ही रहती थीं और मैं अकसर खेतों में अपनी प्रैक्टिस किया करती थी. गांव के लोगों और रिश्तेदारों से मुझे खरीखोटी व कड़वी बातें सुननी पड़ती थीं. साथ ही वे मेरे माता-पिता को भी बातें सुनाते थे. कई बार प्रैक्टिस करने के बाद जब मैं देर से घर आती थी तो लोग घर में पूछने तक आ जाते थे कि आप की बेटी अब तक क्यों नहीं आई. आप लोगों ने उसे इतनी छूट क्यों दे रखी है?

पिताजी चाय बेच कर इतना नहीं कमा पाते थे कि वे मेरे खेल की जरूरतें पूरी कर सकें. उन्होंने 2 बीघा खेत गिरवी रख कर कर्ज लिया. मुझे कभी सरकार से भी मदद नहीं मिली, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी और लगातार प्रयास करती रही. आज जिस खेल को खेलने से युवक भी कतराते हैं, मैंने उसी खेल में भारत को पदक दिलाया है.

मेरा अनुभव है कि देश में खेलों व खिलाडि़यों की हालत ठीक नहीं है. खासतौर से देश के देहाती इलाकों की. खेल के लिए पहले भी मुझे बाहर जाना होता था, तो लोग मुझ पर व मेरे परिवार पर जम कर फबतियां कसते थे. अब मेरी शादी हो चुकी है और मेरे पति मुझे आगे बढ़ने में बहुत मदद करते हैं.

आज भी जब मैं गांव जाती हूं, तो लोग मेरे पहनावे व रहनसहन को ले कर काफी ताने मारते हैं, कई बार जब बाहर खेलने जाती थी, तो युवक भी मुझ पर कई तरह के कमैंट्स करते थे, लेकिन मैं ने खेलना नहीं छोड़ा और न ही छोड़ सकती हूं.

तीरंदाज : संतरा व निकिता

तीरंदाज लिंबाराम से मिली प्रेरणा

जयपुर की रहने वाली सगी बहनें संतरा और निकिता दोनों तीरंदाज हैं. संतरा बताती है कि उसने स्कूली दिनों में 10वीं जमात से ही तीरंदाजी शुरू कर दी थी. परिवार की माली हालत ठीक न होने की वजह से मैं अपनी प्रैक्टिस जारी नहीं रख पा रही थी, क्योंकि स्कूल में एक ही धनुष था, जिस से बाकी लोग भी प्रैक्टिस करते थे.

प्रैक्टिस के लिए मैं और मेरी बहन निकिता दोनों सवाई मानसिंह स्टेडियम जाते थे. यहां हमारी मुलाकात प्रदेश के सब से टौपर तीरंदाज खिलाड़ी लिंबाराम से हुई. उन्होंने हमें लगातार अभ्यास के लिए कहा. जब मैं तीरंदाजी का हुनर सीख गई, तो उन्होंने अपना खुद का धनुष दे कर हमें अधिक अभ्यास करने के लिए कहा.

एक दुर्घटना में पिताजी का एक हाथ टूट जाने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी. शुरुआत में मैंने लकड़ी का धनुष खरीदा, जिसके लिए गुल्लक तोड़ कर कुछ पैसे जुटाए. कुछ पैसे पापा ने दिए और कुछ लिंबाराम सर ने. इस धनुष से मैंने स्टेट व नैशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीते. मां चाहती थीं कि मैं और मेरी बहन आगे तक जाएं.

मुझे देख कर छोटी बहन निकिता ने भी तीरंदाज बनने की ठान ली. रोज की प्रैक्टिस से उसका प्रदर्शन ठीक हो गया. उसने स्कूल से ले कर स्टेट व नैशनल लेवल तक पदक जीते हैं. कॉलेज में आने के बाद निकिता को भी नैशनल लेवल की प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था, जिसके लिए हमें एक और धनुष की जरूरत थी, जिस की कीमत 3 लाख रुपए के करीब थी. कीमत ज्यादा होने की वजह से हम उसे खरीद नहीं पा रहे थे. ऐसे में पिताजी ने अपना एक भूखंड बेच दिया और हमारे लिए धनुष खरीदा.

निकिता के अभ्यास में कोई रुकावट न आए इसलिए मैं योगा क्लास चलाती हूं. इस सब के चलते निकिता ने पिछले साल साउथ कोरिया के ग्वांगझू में आयोजित प्रतियोगिता में तीरंदाजी में देश का प्रतिनिधित्व भी किया था. सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनने के लिए उस ने सीआरपीएफ की नौकरी भी छोड़ दी.

कबड्डी प्लेयर : सुमित्रा शर्मा

परिवार ने मना किया, तो छिप कर की प्रैक्टिस

जयपुर की रहने वाली कबड्डी खिलाड़ी सुमित्रा शर्मा ने 2014 में हुए एशियन गेम्स में भारत को कबड्डी में स्वर्ण पदक दिलाया. इस से पहले सुमित्रा ने 62वीं सीनियर नैशनल कबड्डी चैंपियनशिप में सिल्वर पदक जीता था. साथ ही मलयेशिया में आयोजित हुई जूनियर एशियन कबड्डी चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल जीता, लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था.

सुमित्रा एक मामूली परिवार से है. उस के परिवार वाले नहीं चाहते थे कि वह कबड्डी खेले. बकौल सुमित्रा, घर में जींस टीशर्ट पहनना तक मना था, ऐसे में कबड्डी खेलना तो बहुत दूर की बात थी. घर वाले मेरी शादी भी जल्दी कर देना चाहते थे, लेकिन मैं खेलना चाहती थी. कबड्डी के लिए मेरे भीतर हमेशा से एक जुनून था. मैं इसी में अपना कॅरियर बनाना चाहती थी.

इसलिए कालेज के दिनों में ही घर वालों को बिना बताए छिप कर प्रैक्टिस जारी रखी.

जब मैं प्रैक्टिस के लिए स्टेडियम जाती, तो अपने दोस्तों को बता कर जाती थी, ताकि कोई परेशानी आए तो उन से मदद ले सकूं. रिश्तेदार अकसर मेरी बुराई करते थे. वे कहते कि कबड्डी युवतियों का खेल नहीं है, इसे सिर्फ युवक ही खेल सकते हैं. तुम एक लड़की हो, लोग क्या कहेंगे? इस वजह से ही परिवार वालों ने भी मुझे खेलने से मना कर दिया था. वे भी यही कहते थे कि तुम अगर कबड्डी खेलोगी, तो तुम्हारी शादी में परेशानी आएगी.

प्रैक्टिस के साथ मैं घर वालों को भी मनाने की कोशिश करती रही, लेकिन 2 साल तक वे नहीं माने. जब मुझे इस में कामयाबी मिलने लगी तो मैंने और मेरे साथियों व कोच ने मिल कर मेरे माता-पिता से बातचीत की. काफी समझाने के बाद आखिरकार वे मान गए.

युवतियों के लिए आज भी कई चुनौतियां खेलों की दुनिया में हैं. खराब माली हालात और परिवार का साथ न मिलना सब से बड़ी समस्या है. परिजनों द्वारा शादी का दबाव बनाना भी एक चुनौती व समस्या है. दुनिया में कई तरह के बदलाव लगातार हो रहे हैं, लेकिन लोगों की सोच में अब भी बदलाव नहीं आया है.

सुमित्रा बताती हैं, ‘‘मैं ने सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि घर की बाकी लड़कियों के लिए भी राह खोली है. मेरे घर में लड़कियों को ज्यादा बोलने की इजाजत तक नहीं थी और न ही बाहर आनेजाने की आजादी. मैं ने इन सब की खिलाफत की. इसी का नतीजा है कि अब घर वाले घर की लड़कियों से ज्यादा रोकटोक नहीं करते.’’

एसीएबीसी बनाए बिजनेस का बादशाह

हमारे देश में पढ़ेलिखे बेरोजगारों की एक बड़ी फौज है. बहुत सारे पढ़ेलिखे युवा ऐसे हैं जो अपना खुद का कारोबार खड़ा कर के दूसरों को भी रोजगार देने का जोश और जज्बा रखते हैं, मगर पैसे और जानकारी न होने के कारण वे अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं. नतीजतन बड़ी से बड़ी डिग्री लेने वाले नौजवान भी कई बार बेरोजगार रह जाते हैं या कम पगार पर दूसरों के यहां नौकरी कर लेते हैं.

हालांकि खेती किसानी के क्षेत्र में बेहद खुशी की बात है कि कृषि और उस से जुड़े दूसरे क्षेत्रों के पढ़े लिखे नौजवानों के लिए केंद्र सरकार ने एक खास योजना चलाई है, जिस का नाम है ‘एग्री क्लीनिक एंड एग्री बिजनेस सेंटर’ यानी एसीएबीसी यह ट्रेनिंग नाम के अनुसार ही काम धंधों की जानकारी देती है. यह कृषि व उस से जुड़े क्षेत्रों की शिक्षा पाए छात्रों के लिए पूरी तरह से मुफ्त है.

योजना की खास बात यह है कि सेंटर खोलने के लिए दोहरी सब्सिडी है. पहली सब्सिडी आने वाली लागत पर यानी कि पूंजी सब्सिडी है, तो दूसरी दी गई पूंजी पर ब्याज सब्सिडी यानी ब्याज में छूट है. सोने पे सुहागा यह है कि सरकार इस समय स्टार्टअप ट्रेनिंग प्रोग्राम भी मुहैया करा रही है. जो नौजवान ट्रेनिंग ले चुके हैं, वे खासतौर से स्टार्टअप ट्रेनिंग प्रोग्राम लोन भी संबंधित इकाई को लगाने के लिए ले सकते हैं.

क्या है एसीएबीसी?

एग्री क्लीनिक एंड एग्री बिजनेस सेंटर द्वारा 2 महीने का मुफ्त प्रशिक्षण कोर्स होता है. यह राष्ट्रीय कृषि विस्तार संस्थान(मैनेज), हैदराबाद और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के वित्तीय सहयोग से चल रहा है.

इस के तहत कृषि व इस से जुड़े क्षेत्रों के छात्रों को व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित कर के वित्तीय सहयोग के साथ कृषि उद्यमी बनाने की योजना है. योजना का खास मकसद प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं के जरीए न्याय पंचायत स्तर पर पेशेवर कृषि प्रसार संबंधी जानकारी ज्यादा किसानों तक पहुंचाना है.

प्रशिक्षण लेने वाले कृषि छात्र, कृषि क्लीनिकों में कृषि विशेषज्ञ के रूप में कृषि प्रौद्योगिकी, फसलों की कीटों और रोगों से सुरक्षा, बाजार का रुझान देने, विभिन्न फसलों के मूल्य बताने, कृत्रिम गर्भाधान करने और पशु स्वास्थ्य के लिए क्लीनिक सेवाएं चलाने के साथ अन्य चीजों पर किसानों को जानकारी देंगे.

सरकार का मानना है कि इस से फसलों, पशुओं की उत्पादकता व किसानों की आमदनी में इजाफा होगा. इस के जरीए उन्नत कृषि उपकरणों को किराए पर दिया जाएगा और कृषि उत्पादों की बिक्री भी की जाएगी.

शैक्षणिक योग्यता

सभी कृषि शिक्षा प्राप्त छात्र जिन में 10+2 से लेकर कृषि में पीएचडी तक इस के प्रशिक्षण हेतु योग्य हैं. मतलब यह है कि कोई युवा कृषि से संबंधित क्षेत्रों जैसे बागबानी, कृषि अभियांत्रिकी, वानिकी, डेरी, मछलीपालन, पशुचिकित्सा संबंधी अन्य किसी भी विषय में स्नातक है, तो भी प्रशिक्षण लेने के योग्य होगा, भले ही उस के पास तजरबा न हो.

कोर्स से जुड़ी जानकारी  

मैनेज द्वारा निर्धारित कोर्स में कृषि उद्यमिता और कृषि व्यापार प्रबंधन की जानकारी दी जाती है, साथ में उद्यम हेतु चुने गए क्षेत्र में कौशल विकास की सैद्धांतिक और व्यावहारिक जानकारी उस क्षेत्र के माहिरों द्वारा दी जाती है.

लागत

एसीएबीसी शुरू करने में आने वाली लागत की बात की जाए तो यह आप के द्वारा चुने हुए प्रोजेक्ट पर निर्भर है. अगर प्रोजेक्ट बड़ा होगा तो लागत भी ज्यादा होगी, प्रोजेक्ट छोटा होगा तो लागत कम होगी.

सरकारी मदद

कृषि उद्यमियों की लागत को कम करने और लाभ को बढ़ाने के लिए योजना के तहत केंद्र सरकार मदद देती है, वह बैंक द्वारा एक निश्चित सीमा तक कर्ज मुहैया कराती है और मुहैया कराए गए कर्ज पर लगने वाले ब्याज में खासी छूट देती है.

मौजूदा समय में व्यक्तिगत प्रोजेक्ट के लागत की उच्चतम सीमा सीलिंग 20 लाख रुपए है, जबकि 5 लोगों के ग्रुप प्रोजेक्ट के लिए लागत की उच्चतम सीमा 1 करोड़ रुपए है. कर्ज में मिलने वाली छूट की बात की जाए तो सामान्य वर्ग के लोगों को 36 फीसदी तक और पहाड़ी या कठिन भौगोलिक क्षेत्रों, एससी, एसटी वर्ग के लोगों को 42 फीसदी तक की छूट मिलती है.

असीमित संभावनाएं

एसीएबीसी ट्रेनिंग ले चुके लोगों के पास असीमित व्यापार बढ़ाने, असीमित कृषि प्रसार का कार्य कर के किसानों की सेवा करने, पैसा और नाम कमाने की अपार संभावनाएं हैं. इस की वजह सरकार द्वारा सधी हुई ट्रेनिंग मुहैया कराया जाना और हर तरह से भरपूर वित्तीय सहायता पहुंचाना है.

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर उद्यमी के अंदर अपना काम शुरू करने का जुझारू जज्बा और जोश कायम हो तो उसे शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता है. यही नहीं एसीएबीसी का उद्यमी दूसरे लोगों को भारी मात्रा में आसानी से रोजगार भी दे सकता है.

माहिरों का मशविरा

इस संबंध में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित श्री मां गुरु ग्रामोद्याग सेवा संस्थान जो कि एसीएबीसी की ट्रेनिंग का एक बड़ा और पुराना संस्थान है के नोडल आफिसर डा. शैलेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, ‘आज जब खेती की लागत तेजी से बढ़ रही है तब कृषि क्षेत्र के डाक्टरों की दरकार भी बढ़ रही है, क्योंकि इनसानों और जानवरों के डाक्टरों के साथ ही साथ खेतीकिसानी के डाक्टरों की भी बहुत जरूरत है.

एसीएबीसी मालिकों को सरकारी सुविधाएं मुहैया होती हैं जिस से एसीएबीसी चलाने वाले कृषि प्रसार के सारे काम कर सकते हैं, उन्हें हर मोर्चे पर सहयोग दिया जाएगा. इस योजना से कृषि उद्यमी को असीमित पैसा कमाने और व्यापार बढ़ाने की सुविधा मिलेगी.’  

इसी तरह नाबार्ड लखनऊ के उपमुख्य प्रबंधक और जनसंपर्क अधिकारी नवीन राय कहते हैं कि नाबार्ड द्वारा देश में अपनी तरह की यह अनोखी योजना चलाई गई है. कृषि छात्र ज्यादा से ज्यादा इस का लाभ लें. इस से देश के कृषि क्षेत्र में तेज विकास होगा.

कथा सफल कारोबारी की

संकर्शण शाही

संकर्शण पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के गरेर गांव के रहने वाले हैं. साल 1995 में कृषि स्नातक होने और दिल्ली से एमबीए करने के बाद उन्होंने दिल्ली, देवरिया और गोरखपुर में 3 अलगअलग नौकरियां कीं. तीनों से असंतुष्ट होने पर साल 2009 में वाराणसी स्थित श्री मां गुरु ग्रामोद्योग सेवा संस्थान से एसीएबीसी का प्रशिक्षण लिया. प्रशिक्षण लेने के बाद संकर्शण ने अपना एसीएबीसी सेंटर खोला. वर्तमान में वे तकरीबन 15 से ज्यादा ग्राम पंचायतों के 6 हजार से अधिक किसानों को अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

उन की सेवाओं से क्षेत्र में कृषि विविधीकरण 30 से 35 फीसदी बढ़ गया है, जब कि क्षेत्र का उत्पादन 40 फीसदी तक बढ़ चुका है. इस समय उन के व्यवसाय का सालाना टर्नओवर 60 लाख रुपए के लगभग पहुंच चुका है. संकर्शण के कामों से प्रभावित हो कर उन्हें राज्य सरकार ने आत्मा योजना का रिसोर्स पर्सन बनाया है. वर्तमान में संकर्शण एसीएबीसी से पूरी तरह खुश हैं और क्षेत्र के लोग उन्हें सम्मान से खेती के ‘डाक्टर’ पुकारते हैं.

अमरजीत यादव

अमरजीत यादव पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांव पतेपुर जिला गाजीपुर के रहने वाले हैं. साल 1989 में पीजी कालेज से कृषि स्नातक करने के बाद, साल 1991 से 1996 तक छत्तीसगढ़ स्थित भिलाई इंजीनियरिंग कार्पोरेशन लिमिटेड में फार्म मैनेजर की नौकरी की. 1996 में पिता की असामयिक मौत के बाद उन्हें वापस घर लौटना पड़ा. अपने एक मित्र के कहने पर साल 2009 में वाराणसी स्थित श्री मां गुरु ग्रामोद्योग सेवा संस्थान से एसीएबीसी का प्रशिक्षण लिया.

प्रशिक्षण लेने के बाद स्थानीय करीमुद्दीनपुर गांव के यूनियन बैंक आफ इंडिया से योजना के तहत 5 लाख रुपए का शुरुआती लोन ले कर हरित क्रांति एसीएबीसी नाम से सेंटर खोला. इस समय अमरजीत के बिजनेस का सालाना टर्नओवर तकरीबन 70-80 लाख रुपए तक पहुंच चुका है और वे 25 से ज्यादा ग्राम पंचायतों के तकरीबन 7 हजार किसानों को कृषि प्रसार सेवाएं दे रहे हैं. अपने बड़े कारोबार के कारण वे इस समय कुल 6 लोगों को स्थाई नौकरी पर रखे हुए हैं, जबकि सीजन पर इस से ज्यादा लोगों को रोजगार देना होता है. मौजूदा समय में अमरजीत की मासिक आमदनी तकरीबन 30 से 50 हजार रुपए आसानी से हो जाती है. एसीएबीसी से मिले हौसले को देखते हुए अमरजीत ने अब डेरी क्षेत्र में भी बेहतर काम करने की ठान ली है. 

अब बाला साहेब ठाकरे पर बनेगी फिल्म

राजनीतिक दल शिवसेना ने 19 जून 2016 को अपनी स्थापना के पचास साल पूरे होने का जश्न मनाया. ‘शिवसेना’ के संस्थापक स्व.बाला साहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे ने राजनीतिक समारोह का आयोजन कर राजनीतिक भाषणबाजी की. ऐेसे में स्व. बाला साहेब ठाकरे की एक बहू स्मिता ठाकरे, जो कि फिल्म निर्माता हैं, ने इसी दिन अपने ससुर की जिंदगी पर बायोपिक फिल्म बनाने की घोषणा की.

बाला साहेब ठाकरे पर बनने वाली इस फिल्म का निर्माण स्मिता ठाकरे कर रही हैं, जबकि निर्देशन की जिम्मेदारी स्मिता ठाकरे के बडे़ बेटे व बाला साहेब ठाकरे के नाती राहुल ठाकरे उठाएंगे.

खुद स्मिता ठाकरे कहती हैं-‘‘बाला साहेब करिश्माई व्यक्तित्व के स्वामी थे. आज समय की जरुरत है कि उनकी कथा को बयां कर नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाए. मेरे बडे़ बेटे राहुल ठाकरे ने अपने दादा जी पर बायोपिक फिल्म निर्देशित करने की चुनौती स्वीकार की है.’’

सूत्रों के अनुसार स्व. बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक फिल्म की शुरूआत अक्टूबर माह में होगी और इसे 2017 में रिलीज किया जाएगा. फिल्म की पटकथा पर काम जारी है. पटकथा पूरी होने के बाद कलाकारों का चयन किया जाएगा.

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