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मोदी मंत्रिमंडल: किफायत गई, शाहखर्ची आई

‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस‘ का नारा देते समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोचा भी नहीं था कभी उनकी सरकार भी मंत्रियों की संख्या के आधार पर डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार के बराबर पहुंच जायेगी. ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस‘ का मतलब यह होता है कि सरकार कम खर्च में ज्यादा काम करेगी. अपनी बात को सही साबित करने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केवल 45 मंत्रियों के साथ शपथ ग्रहण की थी. 2 साल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस‘ वाले किफायती सिद्वांत को दरकिनार करते हुये 78 मंत्रियों को सरकार में शामिल करके शाहखर्ची का काम शुरू कर दिया गया है.

वैसे सबसे अधिक मंत्रियो का रिकार्ड वाजपेयी सरकार के नाम है. 1999 की वाजपेयी सरकार में मंत्रियों की संख्या 56 से शुरू होकर 88 तक पहुंच गई थी. उसके बाद सबसे अधिक मंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार में थे. उस समय 78 मंत्री बनाये गये थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में भी 78 मंत्री हो गये हैं. जिससे साफ हो गया है कि सरकार अब किफायत को भूल कर शाहखर्ची की तरफ बढ़ चुकी है. वैसे कानूनी हक की बात की जाये तो संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार केन्द्र सरकार में 82 मंत्री हो सकते है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘गवर्नेंस‘ पर ‘पॉलिटिकल बैलेंस’ साधने की मजबूरी समझ नहीं आ रही है.

वाजपेयी सरकार और डाक्टर मनमोहन सरकार की मजबूरियां थी जिसके कारण उनको अपने मंत्रिमंडल का आकार बढाना पडा था. यह दोनो ही सरकारें सहयोगी दलो के सहारे पर टिकी थी. सहयोगी दलों का लगातार दबाव पड़ता था. सहयोगी दलों का दबाव कई बार सरकार बचाने और गिराने की हद तक चला जाता था. डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार पर यह दबाव कुछ अधिक ही था, जिसके कारण उनको सहयोगी दलों को प्रमुख विभाग भी देने पड़े थे. भ्रष्टाचार के मामलों में देखे तो सबसे अधिक आरोप सहयोगी दलों के मंत्रियों पर था. इसी तरह के दबाव में वाजपेयी सरकार भी थी. दबाव का ही कारण था कि पहली बार वाजपेयी सरकार केवल 13 दिन ही चल पाई थी. 1 वोट से वह ससंद में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाई थी.

2014 में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बनी सरकार में देश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को पूरा बहुमत दिया था. भाजपा को सरकार बनाने के लिये सहयोगी दलों के जरूरत नहीं थी. इसके बाद भी भाजपा ने अकाली दल, लोकजनशक्ति पार्टी और शिवसेना जैसे सहयोगी दलों के नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 45 मंत्रियों के साथ अपना काम शुरू किया तो लगा कि बहुमत की सरकार कम खर्च में काम कर देश के सामने एक मिसाल कायम करेगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में सरकार की चमक लगातार फीकी पड़ती जा रही है. इस चमक का असर था कि भाजपा दिल्ली, बिहार जैसे प्रमुख प्रदेशों में चुनाव हार गई.

2017 में उत्तर प्रदेश और गुजरात में विधानसभा के चुनाव हैं. भाजपा किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश और गुजरात जीतना चाहती है. ऐसे में केन्द्र सरकार में उत्तर प्रदेश से 13 मंत्री बनाये गये हैं. सबसे अलग दिखने वाली बात यह है कि जिन मंत्रियों की संख्या बढ़ाई गई, उनमें ज्यादातर भाजपा के लोग है. सहयोगी दलों के सांसदो को मंत्रिमंडल विस्तार में कम मौके ही मिल सके है. इस बात को लेकर शिवसेना अपना मत साफ कर चुकी है. मंत्रिमंडल के सहारे केन्द्र सरकार ने अपनी खोई चमक को वापस पाने और नये जातीय समीकरण को साधने का प्रयास कर रही है. मंत्रिमंडल के विस्तार से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस‘ सिद्वांत को चोट पहुंची है. उनकी छवि प्रभावित हुई है.

VIDEO: जब 12 साल के बच्चे ने सुनाई अपनी मां को लड़कियों के पीरियड्स की कहानी

'बच्चे मन के सच्चे…' ये गाना तो आपने सुना ही होगा. कहते हैं बच्चे बहुत मासूम होते हैं और अपने आस-पास की चीज़ों और बातों को सुनकर बहुत कुछ सीखते हैं. बच्चे जो देखते हैं भले ही वो गलत हो या सही बहुत जल्दी उसे अपना लेते हैं. इसलिए पेरेंट्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो क्या सीख रहे हैं.

आइये आज हम आपको एक ऐसा वीडियो दिखाते हैं, जिसमें एक 12 साल का बच्चा जब स्कूल से लौटता है, तो वो अपनी मां को स्कूल की क्या कहानी सुनाता है. बच्चे की कहानी सुनकर उसकी मां सोचने पर मज़बूर हो गई और फिर प्रिंसिपल को एक लेटर लिखा. आप भी सुनिए उस 12 साल के बच्चे की कहानी.

वेस्टइंडीज रवाना हुई टीम इंडिया

विराट कोहली के नेतृत्व वाली भारतीय टेस्ट टीम मंगलवार को वेस्टइंडीज के चार टेस्ट मैचों के दौरे के लिए रवाना हो गई. मुंबई के छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम से टीम ने उड़ान भरी. कोहली और भारतीय टीम के साथ नव-नियुक्त कोच अनिल कुंबले भी शामिल थे.

भारत के वेस्टइंडीज दौरे की शुरुआत दो दिवसीय अभ्यास मैच से होगी. भारतीय टीम वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड प्रेजिडेंट इलेवन के साथ वॉर्नर पार्क में 9-10 जुलाई को यह मुकाबला खेलेंगे. इसके बाद सेंट कीट्स के इसी मैदान पर टीम 14-16 जुलाई के बीच तीन दिवसीय अभ्यास मैच खेलेगी.

दौरे का पहला टेस्ट मैच ऐंटिगुआ के विवियन रिचर्ड्स ग्राउंड पर 21 जुलाई से 25 जुलाई के बीच खेला जाएगा.

बाकी तीन टेस्ट मैचों का कार्यक्रम इस प्रकार है- पहला टेस्ट मैच सबीना पार्क किंग्सटन, जमैका (30 जुलाई -3 अगस्त), डैरेन समी नैशनल क्रिकेट स्टेडियम ग्रॉस आइसलेट, सेंट लूसिया (9-13 अगस्त) और क्वींस पार्क ओवल, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद (18-22 अगस्त).

भारतीय टीम ने पिछली बार वर्ष 2011 में वेस्टइंडीज का दौरा किया था. भारत ने सीरीज 1-0 से अपने नाम की थी. टीम ने किंग्सटन में टेस्ट मैच जीता था और ब्रिजटाउन और रोसेऊ में मुकाबले ड्रॉ करवाने में कामयाबी हासिल की थी.

विराट कोहली ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत वेस्टइंडीज में की थी. पांच साल बाद कोहली टीम के कप्तान और स्टार बल्लेबाज के रूप में एक बार फिर कैरीबियाई धरती पर हैं.

टेस्ट टीम

विराट कोहली (कप्तान), अंजिक्य रहाणे (उप कप्तान), मुरली विजय, शिखर धवन, के एल राहुल, चेतेश्वर पुजारा, रोहित शर्मा, रिद्धिमान साहा, आर. अश्विन, रविंद्र जाडेजा, इशांत शर्मा, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार, शार्दुल ठाकुर, स्टुअर्ट बिनी

पोंगापंथ के चपेट में आसमानी बिजली

बिहार के गया जिला के चाकंद गांव में बिजली गिरने से 8 लोगों की मौत हो गई और 7 लोग बुरी तरह जख्मी हो गए. बीते 5 जुलाई की शाम को तेज बारिश से बचने के लिए कई लोग एक बड़े पेड़ के नीचे खड़े थे. उसी समय बिजली गिरने से मौके पर ही 5 लोगों की मौत हो गई और 3 लोगों की मौत अस्पताल ले जाने के दौरान हो गई. पिंकी कुमारी, देवनंदन यादव, अमरजीत, कांग्रेस, गणेश शर्मा, किरण देवी, राकेश और पूनम कुमारी बिजली गिरने से मारे गए. पिछले महीने मानसून की शुरूआत के साथ राज्य की अलग-अलग इलाकों में बिजली गिरने की वजह से 52 लोगों को जान गंवानी पड़ी.

बारिश के मौसम में वज्रपात होना, बिजली गिरना या ठनका गिरना आम बात है. लोग इसे दैविक प्रकोप मानते है. गांवों में यह माना जाता है कि भगवान के गुस्सा होने से बिजली गिरती है. लोगों में यह धरणा भी है कि मानसून की पहली बारिश के पानी में भींगने से चर्म रोग, खुजली आदि ठीक हो जाती है. अगर साइंस की मानें तो बिलजी गिरने की घटना को रोका तो नहीं जा सकता है, पर कुछ सावधनियां बरत कर उससे बचा जा सकता है या उससे होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

आसमान से बिजली गिरने को लेकर कई तरह के अंधविश्वास भी फैलाए गए हैं. गांवों में आज भी लोग मानते हैं कि ईश्वर के गुस्से की वजह से बिजली गिरती है. कोई यह भी मानता है कि अगर किसी आदमी पर बिजली गिरती है तो उसे पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाती है. बारिश के मौसम में लोग अपने घरों के आंगन या खेत में काफी गोबर जमा करके रखते हैं, क्योंकि गांवों में यह पोंगापंथ फैला हुआ है कि गोबर पर बिजली गिरने से गोबर सोना हो जाता है. इतना ही नहीं लोगों ने यह अफवाह भी फैला रखी है कि मकान पर बिजली गिरने से छत के ऊपर रखा लोहे का सरिया अष्टधातु में बदल जाता है.

साइंस कहता है कि आसमान में अपोजिट एनर्जी के बादल हवा में घूमते रहते हैं. इन बादलों के आपस में टकराने से की वजह से जो बिजली पैदा होती है, वही धरती पर गिरती है. आकाश में किसी तरह का कंडक्टर नहीं होने की वजह से आसमान में पैदा हुई बिजली कंडटर की खोज में जमीन की ओर भागती है. आकाश से गिरने वाली बिजली जब किसी लोहे के पोल के आसपास से गुजरती है तो वह कंडक्टर का काम कर जाता है. इससे किसी को नुकसान पहुंचाए बगैर बिजली की तरंगे जमीन में समा जाती है. आसमान से बिजली गिरते समय अगर कोई इंसान या जानवर उसके संपर्क में आता है तो बिजली के तेज झटके उसकी मौत हो जाती है. बिजली कड़कने पर 10 लाख वाट प्रति घंटे की गति से बिजली पैदा होती है और इसका टेंपरेचर सूर्य की उफपरी सतह से भी ज्यादा आंका गया है.

डाक्टर दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि आसमान से गिरने वाली बिजली का असर जब इंसानी शरीर पर पड़ता है तो कई टिश्यू जल कर काम करना बंद कर देते हैं. पूरा जिस्म जल जाता है. बिजली के करीब रहने वालों की मौत तय है और उसे कुछ दूरी पर रहने वाले जख्मी हो जाते हैं. बिजली के असर से नर्वस सिस्टम डैमेज हो जाता है और हार्ट अटैक होने की भी पूरी संभवना रहती है. इससे जख्मी होने वालों को भी पूरी तरह से ठीक होने में लंबा समय लग जाता है.

ऐसे बचें आसमानी बिजली से

– घर की छत पर तड़ित चालक लगाएं, जो बिजली के गिरने पर अर्थिंग का काम करता है और घर और उसमें रहने वालों को कोई नुकसान नहीं होने देता है.

– तेज आंधी और बारिश होने पर कंप्युटर, टेलीविजन, मौडम बंद कर दें और फ्रिज, वाशिंग मशीन, ओवेन आदि बिजली से चलने वाले सभी चीजों की प्लग भी निकाल दें.

– तेज बारिश के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करें.

– नंगे पांव जमीन पर नहीं रहें.

– पेड़ या खुले मैदान में नहीं रहें.

– तेज बारिश से बचने के लिए किसी पेड़ के नीचे नहीं खड़े हों.

रॉयल एनफील्ड को वापस मंगानी पड़ी बाइक

रॉयल एनफील्ड इतना मशहूर ब्रांड है कि इसने बाइकिंग को बाइकर्स के लिए धर्म बना दिया. इसके दुनियाभर में प्रशंसक हैं. इस ब्रांड को विशेषतौर पर लोग लंबी ट्रिप्स के लिए इस्तेमाल करते हैं. फिर चाहे वह 300 किलोमीटर लंबी वीकएंड ट्रिप हो या फिर हिमालय पर जाने के लिए लाइफटाइम ट्रिप.

गुजरते वक्त के साथ बाजार बदला. बाजार बदला तो डिमांड बदली और डिमांड बदली तो आ गईं मॉडर्न लुक वाली मोटरसाइकिलें. इनमें लिक्विड कूलिंग, बेहतरीन इंजन, हल्की वजन और अधिक विश्वसनीयता जैसी खूबियां थीं. लोगों ने इन्हें खरीदना शुरू कर दिया.

बाजार के इस ट्रेंड को देखते हुए रॉयल एनफील्ड ने एक ऐसी एडवेंचर टुअर राइडर बाइक के साथ आने की सोची जिसमें ताकत रॉयल एनफील्ड की हो और खूबियां मॉडर्न बाइक की. आखिरकार, कंपनी ने अपनी नई मोटरसाइकिल हिमालयन उतारी. इस बाइक के आने के साथ ही बाइक कैटेगरीज़ में खुद ही एक नया सेगमेंट बन गया. इस लिहाज से हिमालयन को कोई कॉम्पटीटर नही है.

रॉयल एनफील्ड ने दावा किया कि हिमालयन को हिमालय में बखूबी टेस्ट किया जा चुका है और यह सभी पैमानों पर खरी उतरी है. लोगों ने कंपनी ने दावों पर यकीन किया और महज कुछ ही दिनों में इस बाइक की बुकिंग सातवें आसमान पर थी. लेकिन अब इस मोटरसाइकिल के ग्राहकों ने इससे जुड़ी शिकायतें की हैं. उनका कहना है कि इस बाइक में कुछ खामियां हैं.

हिमालयन संबंधी जो सबसे पहली शिकायत है, वह है कि इसका क्लच काफी हार्ड और और गियरबॉक्स का रेस्पॉन्स भी अच्छा नहीं है. 90 के दशक से रॉयल एनफील्ड की सवारी करने वाला इसे अहमियत नहीं देगा क्योंकि हिमालयन में तुलनात्मक रूप से बेहतर क्लच और गियरबॉक्स दिए जाने का प्रॉमिस किया गया था. इसमें पुराने 3 प्लेट क्चल के मुकाबले बेहतर सिस्टम दिया गया था जो कि ट्रैफिक में क्लच गर्म हो जाने के बावजूद आसानी से गियर शिफ्ट करने में मददगार ​था.

दरअसल, बात इतनी सी नहीं है. ग्राहक एक ऐसी मोटरसाइकिल देखते हैं जो हर पहलू पर बेहतर परफॉर्म करे. क्या रॉयल एनफील्ड हिमालयन की असफलता के पीछे यह एकमात्र कारण था? या फिर कंपनी ने इस मोटरसाइकिल को बनाने में कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखाई?

इसका सीधा सा जवाब है कि रॉयल एनफील्ड ने फैन फॉलोइंग के बजाय इस बार बाजार का तवज्जो दी. कंपनी ने किसी अन्य मोटरसाइकिल ब्रांड की तरह सेल्स नंबर बढ़ाने पर फोकस रखा. ये अब बीते जमाने की बात सी लगती है जबकि लोग सूर्यास्त होने पर अपनी एनफील्ड मोटरसाइकिल पर बाइकिंग का मजा लेते थे. यह इस ब्रांड का ही चार्म था कि धीरे-धीरे अच्छी खासी संख्या में लोग इसके साथ जुड़ते गए!

लेकिन अब वक्त बदल चुका है. ग्राहक अब अपने पैसे की वैल्यू चाहता है और इसलिए वह मोटरसाइकिल खरीदते वक्त छोटे से छोट डिटेल के बारे में भी जानना चाहता है. रॉयल एनफील्ड ने हिमालयन में यही गलती की. उसने इस मोटरसाइकिल की क्वॉलिटी और इसके छोटे से छोटे डिटेल को अच्छे से नहीं टेस्ट किया. रॉयल एनफील्ड के इतिहास में यह पहला मौका है जबकि उसे अपनी मोटरसाइकलों को वापस मंगाना पड़ा है. हालांकि, कंपनी अपनी क​मी पर पर्दा डालने की भी कोशिश कर रही है.

सवाल सिर्फ इतना सा है कि कस्टमर्स को इस बाइक की डिलीवरी करने से पहले रॉयल एनफील्ड ने हिमालयन को अच्छे से टेस्ट क्यों नहीं किया? खैर, सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि ग्राहक रॉयल एनफील्ड से क्वॉन्टिटी के मुकाबले क्वॉलिटी की अपेक्षा रखते हैं. कंपनी को याद रखना चाहिए कि बेहतरीन बाइक क्वॉलिटी का सीधा मतलब होता है बेहतरीन सेल्स, जो कि आखिर में फैन फॉलोइंग बढ़ाने में भी मददगार है.

समान मातृत्वकालीन अवकाश की मांग ने पकड़ा जोर

इन दिनों छह महीने की मातृत्व कालीन छुट्टी की बड़ी चर्चा है. लेकिन कुछ ऐसी मांएं भी हैं जिनका खुद अपना बच्चा नहीं है, लेकिन किसी नवजात बच्चे को गोद लिया है. ऐसी मांएं भी मातृत्वकालीन छुट्टी की मांग लंबे समय से कर रही हैं. हाल ही में सरकार और निजी कंपनियों में मातृत्वकालीन अवकाश की अवधि को 12 हफ्ते से बढ़ा कर 26 हफ्ते कर दिया गया है. 28 हफ्ते किए जाने पर भी विचार हो रहा है. इससे पहले कामकाजी सरोगेट मांओं को भी मातृत्वकालीन अवकाश दिए जाने का प्रावधान किया गया. लेकिन कुछ राज्यों को छोड़ कर गोद लेनेवाली मांओं को मातृत्वकालीन अवकाश दिए जाने का चलन नहीं है. इसीलिए समान मातृत्व कालीन अवकाश की मांग जोर पकड़ रही है.

मातृत्व लाभ कानून 1961 में संशोधन के बाद सरकार ने इस मामले में एक निर्देशिका भी जारी की है कि जिसमें दत्तक अवकाश दिए जाने की बात कही गयी है. संशोधन के बाद सरोगेट मां यानि किराये पर कोख देनेवाली मांओं के लिए भी मातृत्वकालीन अवकाश का प्रावधान किया गया था. इसी साल जनवरी में केंद्र सरकार की ओर से किसी बच्चे को गोद लेनेवाली महिलाओं को भी मातृत्व कालीन अवकाश दिए जाने पर विचार की बात कही गयी थी. गौरतलब है कि गोद लेनेवाली मांओं के लिए मातृत्वकालीन अवकाश का प्रावधान कुछ राज्यों को छोड़ कर व्यापक तौर पर पूरे देश में लागू नहीं है. जहां लागू है वहां यह सिर्फ सरकारी महिला कर्मचारियों को ही यह सुविधा मिलती है. अगर निजी कंपनियों की बात करें तो यहां गोद लेनेवाली महिलाओं के लिए ऐसा कोई प्रावधान है ही नहीं.

इला भसीन (बदला हुआ नाम) एक स्कूल में टीचर हैं. कोलकाता के दक्षिणी उपनगर संतोषपुर में रहती हैं. पिछले साल सितंबर में उन्होंने एक नवजात बच्चे को गोद लिया. दरअसल, उनके मोहल्ले में कूड़ेदान के पास चिथड़े में लिपटा यह बच्चा उनकी आया को मिला. रोज की तरह एक दिन सुबह जब काम कर निकली, तो उसने मुहल्ले के कूड़ेदान से बच्चे के रोने की आवाज सुनायी दी. बच्चे को घेरे हुए कौवे कांव-कांव कर रहे थे. बच्चे की उठा कर वह इला के यहां ले आयी. इला ने बच्चे को स्थानीय अस्पताल में भरती कराया. फिर पुलिस को सूचित किया.

पुलिस ने छानबीन शुरू की, लेकिन बच्चे को कूड़ेदान के पास छोड़ जानेवाले का पता नहीं चला. अब पुलिस बच्चे को किसी होम के हवाले करने का विचार कर रही थी. इस बीच इला ने उस बच्चे को गोद ले लेना तय कर लिया. तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद बच्चे को वह घर ले आयी. अब इस नवजात बच्चे की देखभाल जरूरी थी, सो इला ने अपने स्कूल में छुट्टी की अर्जी दे दी. 135 दिन की छुट्टी मंजूर भी हो गयी. छुट्टियां खत्म हो जाने के बाद इला ने जब स्कूल ज्वाइन किया तो पता चला कि वे छुट्टियां उनकी अर्जित और मेडिकल छुट्टी से दी गयी थी. साथ में यह भी कि गोद लिये गए बच्चे की देखभाल के लिए अलग से छुट्टी लेने व दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है. जबकि इसी साल राज्य में सरकारी व सरकारी सहायताप्राप्त स्कूलों में मातृत्वकालीन 135 दिनों की छुट्टियों के बढ़ा कर 180 दिन का कर दिया गया. लेकिन गोद लेने के मामले में अवकाश का कोई प्रावधान नहीं है.

बताया जाता है कि भारत में हर साल लगभग साढ़े छह हजार बच्चे पूरे देश में गोद लिये जाते हैं. जबकि अनाथ बच्चों की संख्या लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक बतायी जाती है. गोद लेने का चलन सबसे ज्यादा बंगाल और महाराष्ट्र में है. लेकिन बंगाल में ज्यादातर लड़कियों को ही गोद लिया जाता है, जबकि महाराष्ट्र में लड़कों को गोद लेने का चलन अधिक है.

बच्चों को गोद लेने का चलन इन दिनों बढ़ गया है. महानगर-उपनगरों में जहां आए दिन बच्चे को कूड़ेदान, रेलवे लाइन या किसी सूनसान जगह पर छोड़ लावारिश की तरह छोड़ जाने की घटना सामने आ रही है तो वहीं इन बच्चों को गोद लेने की भी घटना सामने आ रही है.

पिछले दस सालों में दत्तक कानून में कई सुधार आए हैं. लेकिन जहां तक दत्तक अवकाश का सवाल है, तो इस मामले में व्यापक स्तर पर कुछ भी नहीं किया गया है. दरअसल, इस बारे में सोचने की जहमत तक नहीं उठायी गयी है. व्यापक स्तर पर यह सुविधा प्राप्त के लिए अभी लड़ाई बाकी है. यहां उल्लेखनीय है कि इसके लिए कोलकाता की एक स्वयंसेवी संस्था ‘आत्मजा’ लंबे समय से काम काम कर रही है.

इस सिलसिले में भारत सरकार की निर्देशिका का श्रेय दस साल की ‘आत्मजा’ को ही जाता है. संस्था की सदस्य नीलांजना गुप्ता, जिन्होंने खुद भी एक बच्चा दत्तक लिया है, ने सिलसिलेवार कई मुद्दों को उठाया. उनका कहना है कि दत्तक कानून में अभी बहुत सारे सुधार की जरूरत है. पर विडंबना यह है कि काम बहुत धीमी गति से हो रहा है. नीलांजना गुप्ता जादवपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्राध्यापिका भी है, इसीलिए जब उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया तो उन्होंने खुद भी अवकाश की जरूरत को शिद्दत से महसूस की.

उनका कहना है कि गोद लेने के मामले में आम लोगों में भले ही जागरूकता आयी है, लेकिन सरकार अभी भी सो रही है. अगर अवकाश की बात की जाए तो इसके लिए हर राज्य में कानून बनना चाहिए, क्योंकि जन्म देनेवाली मां की तुलना में गोद लेनेवाली मां को अवकाश की ज्यादा जरूरत है. जन्म देनेवाली मां का अपने बच्चे के साथ गर्भ के नौ महीने के दौरान एक आत्मीय संबंध बन जाता है. लेकिन गोद लेनेवाली मां और बच्चे के बीच ऐसा संबंध बनने में देर भी लग सकता है. साथ ही परिवार को भी बच्चे के साथ और बच्चे को परिवार के साथ एडजस्ट करने में भी समय लगता है.

वे कहती हैं कि अभी केंद्र और कुछ राज्यों में दत्तक अवकाश का प्रावधान है, लेकिन ज्यादातर राज्यों में ऐसा कोई नियम नहीं है. खुद बंगाल में भी नहीं है. पिछली सरकार के साथ कई बैठकें हुई. लेकिन बात नहीं बनी. हालांकि ममता बनर्जी की सरकार से आत्मजा को बहुत उम्मीद है, लेकिन विडंबना यह है कि सरकार ने अभी सभी क्षेत्र में ठीक से काम करना शुरू नहीं किया है.

नीलांजना यह भी कहती हैं कि मां को अपने बच्चे को पालने के शुरूआती दिनों के लिए दी जानेवाली छुट्टियों के लिए कोई भेदभाव नहीं किया होना चाहिए. जबकि भेदभाव हैं. सबसे पहले तो जहां कहीं भी इस तरह की छुट्टियां दी जा रही है वह सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को ही. निजी कंपनियों में ऐसी छुट्टी का कोई नियम नहीं है. जबकि वहां भी इसकी जरूरत है. इसीलिए मातृत्व अवकाश की तरह दत्तक अवकाश को भी हर कंपनी में लागू होना चाहिए. दूसरा, दत्तक अवकाश के लिए एक बंदिश यह भी है कि यह अवकाश केवल एक साल तक के बच्चे के लिए दिया जाता है. जबकि दत्तक लेनेवाले किसी भी बच्चे और परिवार को आपस में घुलने-मिलने में थोड़ा वक्त तो लगता है. लेकिन यह अवकाश केवल एक साल तक के बच्चे के लिए दिए जाने की बंदिश अनुचित है.

अवकाश के प्रति जागरूकता में अभी के कारण भी अड़चन आ रही है. समाज में गोद लेने का चलन तो बढ़ा है, लेकिन गोद लेनेवालों को इस सिलसिले में सरकार द्वारा दी जानेवाली सुविधा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. ऐसा नहीं होने की वजह से ही इला को परेशानी का सामना करना पड़ा. अब अगर भविष्य में कभी बच्चे के लिए उसे छुट्टी की जरूरत पड़े तो उस छुट्टी के बदले उसे अपना वेतन कटवाना पड़ेगा., क्योंकि अब तक उसकी छुट्टियां खत्म हो गयी है. जानकारी के अभाव में अक्सर हम अपने अधिकारों का लाभ नहीं उठा पाते हैं.

आइए, इस संबंध में कोलकाता हाईकोर्ट की वरिष्ठ एडवोकेट अरुणा मुखर्जी बताती हैं कि 2009 में केंद्र सरकार ने एक निर्देश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि अधिकतम एक साल के बच्चे को गोद लेने पर मां को 180 दिनों का एडप्टिव लीव दिया जाएगा. यहां तक कि पिता को भी 15 दिनों की छुट्टी मिलेगी. अरुणा मुखर्जी कहती हैं कि यूजीसी के नियम के तहत कॉलेज और युनिवर्सिटी के प्राध्यापिकाएं भी केंद्र सरकार के उपरोक्त निर्देश के तहत एडप्टिव लीव की हकदार हैं.

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों को बच्चा गोद लेने पर दत्तक गृह अवकाश के नाम पर 67 दिनों का अवकाश दिये जाने का नियम पहले से ही था. लेकिन कुछ साल पहले इस नियमावली में संशोधन करते हुए अधिकतम दो बच्चे के लिए दत्तक गृह अवकाश की मंजूरी दी गयी है. वहीं राजस्थान ने भी केंद्र के निर्देश का पालन करते हुए गोद लेनेवाली सरकारी महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी है. इस प्रस्ताव को मंजूरी देने का आधार यह है कि एक साल से कम उम्र के बच्चे की देखभाल गोद लेनेवाली महिला को उसी तरह करनी पड़ती है, जिस तरह बच्चे को जन्म देनेवाली मां को करनी पड़ती है. कर्नाटक और असम में भी दत्तक अवकाश का नियम है. बेहतर हो कि इस मामले में संबंधित राज्य के नियमों की जानकारी ले ली जाए.

पुलिस बिगाड़ रही उत्तर प्रदेश सरकार की छवि

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील दलित और पिछडा बाहुल्य इलाका है. मोहनलालगंज विधानसभा और लोकसभा सीट दलितों की लिये सुरक्षित सीट है. समाजवादी पार्टी से चंदा रावत विधायक और भारतीय जनता पार्टी से कौशल किशोर सांसद है. विधायक चंदा रावत तो मोहनलालगंज कस्बे की ही रहने वाली हैं. इन तमाम बातों के बीच का सच यह है कि यहां पुलिस अभी भी गांव के गरीब और कमजोर लोगों को परेशान करने में किसी दूरदराज के इलाके से पीछे नहीं है.

प्रदेश सरकार गांव के लोगों की परेशानियों को खत्म करने के लिये तहसील दिवस के आयोजन करती है. तहसील दिवस में पुलिस और तहसील के कर्मचारी और अफसर जनता की शिकायते सुनते हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तहसील दिवस का आयोजन इसलिये शुरू किया था, जिससे गांव के लोगों को अपनी शिकायतों के लिये जिला लेवल पर न आना पड़े. सरकार ने जिले के डीएम और एसपी को भी तहसील दिवस में जाने का आदेश दे रखा है. इसके बाद भी तहसील दिवस अपने मकसद में सफल नहीं हो पा रहा है.

लखनऊ के जिलाधिकारी राजशेखर और एसएसपी मंजिल सैनी मोहनलालगंज तहसील में आयोजित तहसील दिवस में जनता की शिकायतें सुनने के लिये गये थे. इस बीच नगराम थाने के भजाखेडा गांव की रहने वाली बुजुर्ग महिला शिवपति अपनी बहू रानी और बच्चों के साथ उनके पैरों पर गिर पड़ी. बड़ी मुश्किल से अधिकारियों ने दोनो को उठाया और उनसे उनकी परेशानी पूछी. शिवपति ने बताया कि नगराम पुलिस ने उसके इकलौते बेटे को लूट के एक मामलें में फर्जी तरह से फंसा दिया है. उसके बेटे ने कोई लूट नहीं की है. इसके पहले भी चुनावी रंजिश में पुलिस ने उसके बेटे का प्रताडित किया था. जिलाधिकारी राजशेखर और एसएसपी मंजिल सैनी से जांच और न्याय का भरोसा पाने के बाद ही शिवपति और उसकी बहू रानी उठे.

दरअसल गांवों में पंचायत चुनावों में रंजिश को बढावा देने का काम किया है. चुनाव लड़ने और लड़ाने वाले लोग वोट पाने के लिये आपसी खेमेबंदी करते हैं. तहसील और थाने के लोग गांव के प्रधान की कही बात को मानकर लोगों के खिलाफ कारवाई करती है, जिसमें कई बार निर्दोष लोग फंस जाते हैं. पुलिस को ऐसे मामलों में सही और गलत का फैसला बहुत सोच समझ कर करना चाहिये. इस तरह की छोटी छोटी घटनायें से केवल पुलिस ही नहीं सरकार की छवि भी खराब होती है.

यह घटना केवल लखनऊ की ही नहीं है. पूरे प्रदेश में यही हाल है. पुलिस अपनी कार्यशैली बदलने को तैयार नहीं है. अगर जनता के बीच सरकार की छवि को सही रखना है तो थाना और तहसील के सरकारी नौकरों को जनता की मदद करनी होगी. ग्रामीण इलाके की जनता की सबसे अधिक परेशानी तहसील और थानों से ही होती है. समाजवादी सरकार पर थानो की राजनीति का ज्यादा ही आरोप लगता है, ऐसे में इस सरकार को कुछ ज्यादा ही सचेत रहने की जरूरत है.

बंद होगा ‘क्लासिक’ ब्लैकबेरी!

ब्लैकबेरी ने अपने पॉप्युलर स्मार्टफोन 'क्लासिक' का उत्पादन बंद करने का ऐलान किया है. इस फोन को कंपनी ने करीब 2 साल पहले लॉन्च किया गया था. उस वक्त इस फोन को ब्लैकबेरी के QWERTY कीबोर्ड वाले स्मार्टफोन्स का दौर वापस लाने वाले डिवाइस के तौर पर देखा जा रहा था.

कंपनी के सीओओ और जीएम फॉर डिवाइसेज राल्फ पीनी ने कहा कि आज के मार्केट के हिसाब से एक स्मार्टफोन जितने वक्त तक चलता है, क्लासिक उससे भी ज्यादा वक्त तक बिका. उन्होंने ब्लॉग पोस्ट में कहा, 'हम परिवर्तन के लिए तैयार हैं ताकि अपने ग्राहकों को कुछ बेहतर दें.' पीनी ने कहा कि अब कंपनी का फोकस अपने स्मार्टफोन लाइनअप को अपडेट करने पर होगा.

ब्लैकबेरी क्लासिक दिसंबर 2014 में लॉन्च हुआ था. इसमें 3.5 इंच का डिस्प्ले था जो इससे पहले के ब्लैकबेरी बोल्ड 9900 से 60 फीसदी बड़ा था. इसकी बैटरी लाइफ भी ज्यादा थी. यह फोन स्टैंडर्ड कीबोर्ड और टचस्क्रीन दोनों से लैस था.

ब्लैकबेरी का सॉफ्टवेयर बिजनस अच्छा काम कर रहा है, एक्सपर्ट्स का कहना था कि कंपनी को सेलफोन बनाना बंद कर देना चाहिए. मगर सीईओ जॉन चेन ने कहा था कि कंपनी हार्डवेयर मार्केट में बनी रहेगी. 2017 फाइनैंशल इयर की हालिया तिमाही में कंपनी ने 5 लाख स्मार्टफोन बेचे, जो इससे पहले की तिमाही से करीब एक लाख कम हैं.

उम्मीद जताई जा रही है कि ब्लैकबेरी फरवरी के आखिर से पहले दो नए मिड-रेंड ऐंड्रॉयड स्मार्टफोन लॉन्च कर सकती है. इन स्मार्टफोन्स के बारे में अधिक जानकारी इसी महीने मिल सकती है. कंपनी अपने ब्लैकबेरी 10 ऑपरेटिंग सिस्टम को सॉफ्टवेयर अपडेट्स देती रहेगी. इस साल अगस्त में इसका नया वर्जन भी जारी किया जाएगा.

क्या आपने देखा राखी सावंत का नया हॉट फोटोशूट

राखी सावंत इज़ बैक. सुनकर खुशी तो हुई होगी. अगर आप इंटरटेनमेंट पसंद करने वाले इंसान हैं तो खुशी ज़रूर हुई होगी. क्योंकि राखी सावंत का मतलब ही है इंटरटेनमेंट.

खाली बैठी राखी सावंत ने लंबे समय बाद आपने फैंस को नया तोहफा दिया है. राखी ने अपना हॉट फोटोशूट करवाया, पर शायद फोटोग्राफर को पैसे नहीं दिए. तभी को फोटो के साथ फोटोग्राफर ने राखी के एक्सप्रेशन और हॉटनेस की ऐसी की तैसी कर दी.

ऊपर स्लाइड में आप भी देखिए राखी सावंत के इस फोटोशूट की तस्वीरें और यहां देखिए वीडियो…

(वीडियो साभार: बॉलीवुड मसाला)

सलमान क्यों गए कपिल शर्मा के कॉमेडी शो पर

‘‘कलर्स’’ चैनल और ‘‘सोनी टीवी’’ की आपसी प्रतिस्पर्धा जग जाहिर है. इनके बीच की कटुता भी सब जानते हैं. इतना ही नहीं कपिल शर्मा और ‘कलर्स’ के बीच कितनी कटुता है, वह भी किसी से छिपा नहीं है. इसी के चलते यह तय हुआ था कि सलमान खान अपनी फिल्म ‘‘सुल्तान’’ के प्रमोशन के लिए सोनी टीवी पर प्रसारित हो रहे कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में नहीं जाएंगे.

सूत्रों के अनुसार पहले जब सूची बनी थी, तब सलमान खान ने भी कह दिया था कि वह सोनी टीवी पर नहीं जाएंगे. क्योकि सलमान खान ‘कलर्स’ के रियलिटी शो ‘‘बिग बॉस’’ के पिछले सात सीजन होस्ट करते आए हैं और अब वह ‘बिग बॉस-10’ को भी होस्ट करने वाले हैं. सूत्रों की माने तो ‘कलर्स’ चैनल ने अपने चैनल पर प्रसारित हो रहे सीरियलों में अभिनय कर रहे सभी कलाकारों पर प्रतिबंध लगा रखा है कि वह सोनी टीवी के कार्यक्रमों से नहीं जुड़ेंगे. इसके बावजूद रविवार, 3 जुलाई को अचानक सलमान खान सोनी टीवी के कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में पहुंच गए. इससे हड़कंप मचा हुआ है. सभी सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर सलमान खान क्यों गए कपिल शर्मा के शो में? और यही कि अब इसका खामियाजा सलमान खान को क्या भुगतना होगा?

सलमान खान को अपने फिल्मी करियर की खातिर ‘‘कलर्स’’ चैनल को धता बताते हुए सोनी टीवी के कपिल शर्मा के कॉमेडी शो पर जाने का निर्णय लिया. वास्तव में फिल्म ‘‘सुल्तान’’ के प्रमोशन के लिए ही उन्हे यह कदम उठाना पड़ा. जब ‘सुल्तान’ की निर्माण कंपनी ‘यशराज फिल्मस’ की मार्केटिंग टीम ने फिल्म ‘‘सुल्तान’’ के प्रचार की योजना बनायी थी, तब सलमान खान ने सभी को इस बात पर सहमत कर लिया था कि वह सोनी टीवी के कार्यक्रम में नहीं जाएंगे. मगर अचानक फिल्म ‘सुल्तान’के पहले ग्रुप इंटरव्यू में पत्रकारों से बात करते हुए ‘रेप पीड़ित महिला’ वाले बयान की वजह से सलमान खान इतनी बुरी तरह से घिर गए कि फिल्म ‘सुल्तान’ का सारा प्रचार कार्यक्रम गडमड हो गया. इसके बाद सलमान खान मुंबई के पत्रकारों के सामने नहीं आए. देश के कई शहरों में जाने व वहां पत्रकारों से मिलने का कार्यक्रम रद्द हो गया. ऐसे में ‘सुल्तान’ का प्रमोषशन न होने पर बाक्स आफिस पर ‘सुल्तान’ की दुर्गति हो जाने के डर से सलमान खान ‘कलर्स’ को धता बताते हुए सोनी टीवी के कपिल शर्मा के शो में अपनी फिल्म का प्रचार करने पहुंच गए. सलमान खान के नजदीकी सूत्रों के अनुसार सलमान खान के लिए फिल्मी करियर ज्यादा महत्वपूर्ण है. ‘सुल्तान’ के बाद सलमान खान, कबीर खान की फिल्म ‘‘ट्यूब लाइट’’ के अलावा राज कुमार संतोषी की फिल्म की शूटिंग करने वाले हैं. इन फिल्मों पर बाक्स आफिस पर ‘सुल्तान’ के बिजनेस का असर पड़ना है. इसलिए सलमान खान की पहली प्राथमिकता ‘‘सुल्तान’’ की सफलता को सुनिश्चित करना ही रहा.

सूत्रों की माने तो सलमान खान के इस कदम से ‘कलर्स’ काफी नाराज है. ‘कलर्स’ चैनल के आफिसर खुद को अपमानित सा महसूस कर रहे हैं. मगर व्यापार में तो मान अपमान सब कुछ सहना पड़ता है. सूत्रों के अनुसार अब ‘कलर्स’ चैनल अपनी तरफ से सलमान की जगह किसी दूसरे बड़े स्टार को ‘बिग बॉस’ से जोड़ने का प्रयास करेगा, यदि इसमें उसे सफलता नहीं मिली, तो ही वह सलमान के साथ टिकेगा. वैसे सलमान खान अब तक ‘बिग बॉस’ के हर सीजन में अपनी पारिश्रमिक राशि बढ़ाते रहे हैं. सूत्रों का दावा है कि ‘बिग बॉस’ सीजन नौ में सलमान खान ने प्रति एपीसोड आठ करोड़ रूपए लिए थे. पर अब सलमान खान से जुड़े सूत्र बताते हैं कि बदली हुई परिस्थिति में सलमान खान ‘बिग बॉस’ के सीजन दस में अपनी पारिश्रमिक राशि बढ़ाने की बजाय कम कर सकते हैं. बहरहाल, सारा मसला टीआरपी और व्यापार का है, देखना पड़ेगा कि अब ऊंट किस करवट बैठता है.

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