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क्यों उड़ी ‘राजश्री’ परिवार में बिखराव की खबरें..?

ताराचंद बड़जात्या ने 15 अगस्त 1947 के दिन बडे़ जतन के साथ ‘‘राजश्री प्रोडक्शन’ की शुरुआत की थी. उन्होंने अपने इस बैनर के तहत फिल्मों का निर्माण व वितरण किया. उनकी मौजूदगी में ही उनके बेटे राजकुमार बड़जात्या, कमल कुमार बड़जात्या, अजीत कुमार बड़जात्या भी इस कंपनी के साथ फिल्म बिजनेस में लग गए. फिर ताराचंद बड़जात्या के पोते व पोतियां भी इसी कंपनी के साथ जुड़ गए. ताराचंद बड़जात्या का यह पूरा परिवार अभी तक संयुक्त रूप से ही ‘‘राजश्री प्रोडक्शन’’ के ही तहत फिल्म व सीरियलों के निर्माण, फिल्म वितरण व अन्य फिल्म संबंधित व्यापार करता आ रहा है.

ताराचंद बड़जात्या के पोते और राज कुमार बड़जात्या के बेटे सूरज बड़जात्या ने ‘‘मैने प्यार किया’’ से ‘‘प्रेम रतन धन पायो’’ तक कुछ फिल्मों का निर्माण व निर्देशन किया. तो वहीं ताराचंद बड़जात्या की पोती और कमल कुमार बड़जात्या की बेटी कविता बड़जात्या ने भी एक फिल्म ‘‘सम्राट एंड कंपनी’’ के अलावा कुछ सीरियलों का निर्माण ‘राजश्री प्रोडक्शन’ के ही बैनर तले किया. अब तक फिल्म हो या सीरियल का निर्माण हो, पूरा परिवार एक साथ नजर आता था. लेकिन इन दिनों बौलीवुड में इस परिवार के अंदर विघटन की शुरूआत की खबरें काफी गर्म हैं.

सूत्रों के अनुसार सूरज बड़जात्या और कविता बड़जात्या के बीच रचनात्मक मतभेद इस कदर बढ़ चुके हैं कि दोनों ने अलग अलग राह पकड़ ली है. सूत्रों की माने तो कविता बड़जात्या को अपने चचेरे भाई सूरज बड़जात्या की दखलंदाजी बिलकुल रास नहीं आ रही है. इसी के चलते उन्होंने अपनी एक अलग प्रोडक्शन कंपनी ‘‘कविता बड़जात्या प्रोडक्शंस’’ की शुरुआत करते हुए  नए सीरियल ‘‘एक रिश्ता साझेदारी का’’ का निर्माण अपनी इस नई कंपनी के तहत कर रही हैं, जिसका प्रसारण बहुत जल्द शुरू होने वाला है.

इतना ही नहीं अब तक कविता बड़जात्या प्रोडक्शन का सारा काम ‘‘राजश्री प्रोडक्शन’’ के मुंबई में प्रभादेवी इलाके में स्थित आफिस से ही किया करती थी. लेकिन अब उन्होंने अपनी कंपनी के लिए मुंबई के उपनगर कांदीवली में आफिस खोलकर वहीं से सारा काम शुरू कर दिया है. अब वह प्रभादेवी स्थित ‘राजश्री प्रोडक्शन’ के आफिस भी नहीं जाती हैं. इसी के चलते बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हैं कि ‘राजश्री’ परिवार में विघटन शुरू हो गया है.

मगर खुद कविता बड़जात्या इन खबरों का खंडन करते हुए एक वेबसाइट से बातचीत करते हुए कहा है-‘‘मुझे नई चीजें करने की चुनौती स्वीकार करने में आनंद आता है. इसलिए मैने अपनी नई कंपनी शुरू की है. उसी नई कपंनी के तहत मैं अपना नया सीरियल बना रही हूं. मगर यह कहना गलत है कि मेरे व सूरज जी के बीच मतभेद हैं. हम भाई बहनों के बीच कोई मतभेद, गलतफहमी नहीं है. हम सब एक हैं. हमारा पूरा परिवार एक साथ है. मैं अभी भी ‘राजश्री प्रोडक्शन’’ के निदेशकों में से एक निदेशक हूं.’’

…तो अब बंद होगा ‘बालिका वधू’

टीवी चैनलों की सबसे बड़ी कमजोरी है कि जब तक उनके किसी सीरियल को अच्छी टीआरपी यानी कि दर्शक मिलते रहते हैं, तब तक वह रबर की तरह उस सीरियल की कहानी को खींचते रहते हैं. यदि रबर बीच में टूट जाए, तो उसमे गांठ लगाकर खींचना जारी रखते हैं. यह एक कटु सत्य है.

‘‘कलर्स’’ चैनल ने 21 जुलाई 2008 को अपने चैनल की शुरुआत के साथ चैनल ड्रायवर की हैसियत से संजय वाधवा के सीरियल ‘‘बालिका वधू’’ की शुरुआत की थी. इसमें कोई शक नहीं कि ‘‘बालिका वधू’’ सही मायनो में कई वर्षो तक ‘कलर्स’ का चैनल ड्रायवर बना रहा. पर एक वक्त वह आ गया था, जब चैनल को ‘‘बालिका वधू’’ से छुटकारा पाकर किसी अन्य कार्यक्रम को लेकर आना चाहिए था. लेकिन लालच के कारण चैनल के अधिकारियों ने यह कदम नहीं उठाया. और जब ‘‘बालिका वधू’’ को दर्शक मिलने बंद हो गए, तो अब मजबूरन ‘‘कलर्स’’ ने पूरे आठ साल और 2225 एपीसोड प्रसारित होने के बाद 31 जुलाई से ‘बालिका वधू’ का प्रसारण बंद करने का निर्णय लिया है, जिससे इस सीरियल के निर्माता व कलाकार नाराज बताए जा रहे हैं.

सीरियल ‘‘बालिका वधू’’ की कहानी राजस्थान में लड़कियों के बाल विवाह के मुद्दे पर शुरू हुई थी. बाल विवाहिता आनंदी के तौर पर अविका गौर ने अपने अभिनय से इस सीरियल को इतनी टीआरपी दी कि उसे बड़ा करने के लिए ही चैनल ने लंबा समय ले लिया. जैसे ही आनंदी बड़ी हुई और अविका गौर की जगह प्रत्यूषा बनर्जी आयी थी, वैसे ही टीआरपी में हल्की सी गिरावट आयी थी. पर धीरे धीरे सीरियल ‘बालिका वधू’ के प्रति दर्शकों का मोह भंग होने लगा था. उसके बाद चैनल व निर्माता की तरफ से शुरू हुआ था टीआरपी को बटोरने का खेल. जिसकी वजह से कहानी में अजीबोगरीब मोड़ आते रहे. कई कलाकार आते जाते रहे. यहां तक कि 2015 की शुरुआत में सोशल मीडिया के अलावा कई तबकों से यह आवाज उठने लगी थी कि  अब ‘बालिका वधू’ का प्रसारण बंद कर दिया जाना चाहिए.

सूत्रों की माने तो एक बार ‘कलर्स’ चैनल ने सोचा कि ‘बालिका वधू’ को बंद कर दिया जाए, मगर अफसोस की बात यह रही कि चैनल के अधिकारियों को कोई ऐसा सीरियल ही नहीं मिला, जिसे वह ‘बालिका वधू’ की जगह पर चैनल ड्रायवर के रूप में ला सकते.

जब रश्मि शर्मा ने सीरियल ‘शक्तिः अस्तित्व के अहसास की’’ का लेखन व निर्माण किया, तो ‘कलर्स’ के अधिकारियों को इस सीरियल से कुछ उम्मीदें जगी. उन्होंने हिम्मत जुटाते हुए ‘बालिका वधू’ के टाइम स्लाट पर रश्मि शर्मा के सीरियल ‘‘शक्तिःअस्तित्व के एहसास की’’ का प्रसारण 30 मई 2016 से शुरू किया तथा ‘बालिका वधू’’ को शाम साढ़े छह बजे के टाइम स्लाट पर डाल दिया. शाम साढ़े छह बजे इस सीरियल को दर्शक नहीं मिले और तब मजबूरन अब पूरे आठ साल और 2225 एपीसोड प्रसारित होने के बाद ‘कलर्स’’ चैनल ने इसका प्रसारण बंद करने का निर्णय लिया है.

सूत्रो की माने तो ‘‘कलर्स’’ चैनल के इस निर्णय से दर्शक काफी खुश हैं. मगर जब इतना लंबा सीरियल बंद हो, तो इससे जुड़े रहे कलाकारों, खासकर उन्हे जिन कलाकारों को इस सीरियल की वजह से कलाकार के तौर पर पहचान मिली हो, उनका दुःखी होना स्वाभाविक है. मगर इस सीरियल के प्रसारण को बंद करने के निर्णय से वह कलाकार नाराज हैं, जो कि कुछ समय पहले ही इस सीरियल के साथ जुड़े थे.

फिलहाल ‘‘बालिका वधू’’ की कहानी आनंदी की बेटी नंदिनी (माही विज) और उनके प्रेमी कृष (रूसलान मुमताज) की तरफ मुड़ गयी है. माही विज ने इस सीरियल से तीन साल बाद अभिनय में वापसी की है, इसलिए वह बहुत ज्यादा नाराज है. माही विज ने सीरियल ‘बालिका वधू’ को टीआरपी न मिलने का ठीकरा पूरी तरह से पीआर टीम पर थोपा है.

माही विज कहती हैं-‘‘हमें एक दिन पहले मंगलवार को सूचित किया गया कि ‘बालिका वधू’ का अंतिम एपीसोड 31 जुलाई को प्रसारित होगा. हमें 20 जुलाई तक ही इस सीरियल के लिए शूटिंग करनी है. मगर जब आईपीएल मैच हो रहे थे, तब हमारे सीरियल की टीआरपी अच्छी थी. जब हमारे इस सीरियल को शाम साढ़े छह बजे के टाइम स्लाट पर भेजा गया, तब इसकी टीआरपी घटी. क्योंकि टाइम स्लाट बदलने के बाद इसे ठीक से प्रमोट नहीं किया गया. दर्शकों को ठीक से बताया ही नहीं गया कि अब ‘बालिका वधू’ शाम साढ़े छह बजे आएगा. इससे हमें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. इस सीरियल के लिए मैने कई दूसरे अच्छे प्रोजेक्ट छोड़ दिए.’’

यानी कि माही विज सारी गलती पीआर टीम की मानती हैं. यूं तो माही विज के आरोप गलत नहीं ठहराए जा सकते. क्योंकि पिछले एक वर्ष से सिर्फ ‘‘कलर्स’’ ही नहीं किसी भी चैनल की पीआर टीम अपने काम को ईमानदारी व गंभीरता से अंजाम नहीं दे रही है. पीआर टीम की कार्यरशैली पर हर चैनल को नए सिरे से विचार करने और पीआर टीम के हर सदस्य की जवाबदेही तय करने की बहुत जरुरत है. मगर जहां तक ‘‘बालिका वधू’’ का सवाल है, तो यदि पीआर टीम ने अच्छा काम किया होता, तो भी इसकी टीआरपी अच्छी हो जाती, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता.

‘कलर्स’ चैनल व ‘बालिका वधू’ से जुड़े हर शख्स को यह याद रखना चाहिए कि एक ही कहानी को किस हद तक खींचा जा सकता है? इस सीरियल से जुड़े कई कलाकार स्वयं हमसे कह चुके हैं कि वह बोर हो गए हैं. कहानी व घटनाक्रम में दोहराव हो गया है. कहानी भटक गयी है. फिर प्रकृति का नियम है कि नए का स्वागत किया जाना चाहिए. दर्शक भी कुछ नया देखना चाहता है. वह नई कहानी सुनना चाहता है.

एप की मदद से दाखिल करें आयकर रिटर्न

अगर आप इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने के लिए परेशान हो जाते हैं तो चिंता छोड़िए क्योंकि अब आप एप की मदद से आसानी से आयकर रिटर्न दाखिल कर सकते हैं और वह भी बहुत आसानी से. स्टार्टअप कंपनी एंजल पैसा ने आयकर दाखिल करने की परेशानी को दूर करने के लिए हैलो टैक्स एप पेश की है. यह एप एंड्रॉयड, विंडोज और एपल प्लेटफॉर्म पर आसानी से उपलब्ध है.

4 मिनट में पूरा काम

इस एप की मदद से तीन-चार मिनटों में बिना किसी को अपनी जानकारी दिए आयकर रिटर्न दाखिल किया जा सकता है.

आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए कोई भी स्मार्टफोन धारक अपने फोन पर हैलो टैक्स ऐप को डाउनलोड कर सकता है. डाउनलोड करने के बाद ऐप में जाकर उसे अपना फ्रेश रजिस्ट्रेशन करना होता है, जिसमें एक मिनट से भी कम का समय लगता है. फिर आईटीआर में जाकर आवेदक को अपनी जानकारी देनी होती है और इस काम में तीन-चार मिनट का समय लगता है. इसके बाद आवेदक को इंटरनेट बैंकिंग के जरिए 125 रुपये देने होते हैं और आईटीआर का काम पूरा हो जाता है.

15 हजार लोग कर चुके इस्तेमाल

हैलो टैक्स एप को विकसित करने का काम तीन युवा उद्यमियों ने किया है और अब तक लगभग 15 हजार लोग इस ऐप के जरिए इस साल अपना आईटी रिटर्न भर चुके हैं. हैलो टैक्स के सह-संस्थापक व पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, हिमांशु कुमार के मुताबिक उन्होंने नॉन प्रोफेशनल्स को ध्यान में रखते हुए इस ऐप को बनाया है.

इस एप के माध्यम से आईटीआर के दौरान आपकी निजी जानकारी किसी को नहीं मिलती है कि आपकी सैलरी कितनी है और आप कहां काम करते हैं. इस डिजिटल युग में आपकी निजी जानकारी को कहीं भी शेयर किया जा सकता है और उसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है.

इससे आईटीआर भरने से यह समस्या समाप्त हो जाती है. दूसरा फायदा यह है कि आपको आईटीआर दाखिल करने वाले किसी विशेषज्ञ के पीछे नहीं भागना पड़ता है और उसे दी जाने वाली फीस भी बच जाती है.

जाति जैसे भेदभाव से जूझ रहे एचआईवी और एड्स मरीज

देश में बढ़ रहे एचआईवी और एड्स मरीजों की तादाद को देखते हुए इस बीमारी से बचाव के लिए सरकार द्वारा बड़े लैवल पर न केवल प्रचारप्रसार किया जा रहा है, बल्कि सरकारी व गैरसरकारी लैवल पर ऐसे काम भी किए जा रहे हैं, ताकि एचआईवी और एड्स को फैलने से रोका जा सके. बहुत से लोगों का मानना है कि एचआईवी और एड्स बीमारी साथ बैठने, साथ खाना खाने, हाथ मिलाने जैसी वजहों से भी फैलती है, जिस के चलते लोग एचआईवी व एड्स मरीजों से दूरी बनाने की कोशिश करते हैं. असल में यह दूरी बनाने की आदत वैसे ही हमारे समाज में पहले से है. हमारे यहां ब्राह्मण गैरब्राह्मणों के नहीं आतेजाते. पिछड़ों में सैकड़ों जातियां अपने को दूसरों से ऊंचा समझती हैं. हजारों जातियों को तो जन्म से ही अछूत माना जाता है. एचआईवी पीडि़तों से हर जाति में एक और नई उपजाति पैदा हो गई है.

वैसे, आज तक एड्स फैलने की सिर्फ 4 वजहें ही सामने आ पाई हैं, जिस में पहली असुरक्षित सैक्स संबंध बनाना, दूसरी एचआईवी पीडि़त मां से उस के होने वाले बच्चे में यह बीमारी होना, तीसरी एचआईवी व एड्स मरीज के खून को किसी सेहतमंद शख्स को चढ़ाना और चौथी एचआईवी संक्रमित सूई से नशा करना व औजारों का शरीर के अंगों व घावों में प्रवेश करना. इन के अलावा कोई भी वजह एड्स फैलने का खतरा नहीं बनती है. लखनऊ, उत्तर प्रदेश की रहने वाली टीना (बदला नाम) को जन्म के समय ही अपनी मां से एचआईवी की बीमारी मिली थी. जब इस बात की जानकारी टीना के पिता को हुई, तो उन्होंने टीना की मां के ऊपर गलत संबंधों का लांछन लगा कर घर से निकाल दिया.

टीना की मां लाख दुहाई देती रही, रोईगिड़गिड़ाई कि उस का किसी से गलत संबंध नहीं रहा है और वह ऐसी हालत में अपनी नवजात बेटी को ले कर कहां जाएगी, लेकिन उस के पति का दिल नहीं पसीजा. बाद में पता चला कि टीना की मां को यह बीमारी उस के पिता से मिली थी, क्योंकि उस का कई औरतों से नाजायज संबंध था. उस से यह बीमारी टीना की मां को और फिर टीना को भी हो गई. पति का साथ छूटने के बाद टीना की मां का अपना और बेटी का पेट पालना मुश्किल हो गया था. तभी उस की मुलाकात एचआईवी व एड्स पीडि़तों के एक नैटवर्क से हुई. टीना की मां ने उस नैटवर्क से जुड़ने के बाद लखनऊ के एक बड़े सरकारी अस्पताल में काउंसलर की नौकरी कर ली, लेकिन किराए के जिस मकान में वह रह रही थी, उस के मालिक को जब यह पता चला कि मांबेटी दोनों एचआईवी से पीडि़त हैं, तो उस ने उन्हें घर खाली करने को कह दिया.

इसी बीच टीना की मां की एचआईवी की बीमारी एड्स में बदल गई और उसे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी ने भी जकड़ लिया. ज्यादा तबीयत बिगड़ने के बाद टीना ने अपनी मां को उसी अस्पताल में भरती कराया, जहां वह काउंसलर थी. लेकिन उस को तब यह एहसास हुआ कि वहां इलाज करने वाले डाक्टर भी एचआईवी व एड्स मरीजों के साथ भेदभाव करते हैं. टीना ने देखा कि जिस वार्ड में उस की मां भरती थी, उस में उस की मां के साथ जितने भी एचआईवी व एड्स से पीडि़त मरीज थे, उन के बिस्तर पर एक खास टैग लगा हुआ था, जिस में इस लाइलाज बीमारी होने का संकेत था. ऐसे मरीजों से डाक्टर खास दूरी बना कर बात करते थे. साथ ही, इन मरीजों से डाक्टरों का बरताव भी अजीब तरह का होता था.

टीना का कहना है कि एचआईवी व एड्स के चलते उस की मां की जान चली गई, लेकिन उस की मां तो मरने से पहले भी तिलतिल कर इसलिए मरती रही, क्योंकि उस को एचआईवी व एड्स पीड़ा से ज्यादा लोगों की अनदेखी की पीड़ा भी झेलनी पड़ी थी. मां की मौत के बाद टीना को तमाम तरह की परेशानियों से जूझना पड़ा. फिलहाल वह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे लखनऊ के एक बड़े अस्पताल में एचआईवी व एड्स मरीजों की काउंसलर है. टीना कहती है कि उसे एचआईवी है, लेकिन वह एक सेहतमंद जिंदगी जी रही है. फिर भी वह अपनी इस बीमारी के बारे में किसी को इसलिए नहीं बता सकती, क्योंकि उस की इस बीमारी को जानने के बाद लोगों का उस के प्रति नजरिया बदल जाएगा.

नजरिए में लाएं बदलाव

एचआईवी व एड्स पीडि़तों के लिए सरकार द्वारा यह पौलिसी तय की गई है कि इस बीमारी से पीडि़त किसी मरीज का जहां पर जांच इलाज या काउंसलिंग चल रही है, वहां का संबंधित डाक्टर या जिम्मेदार शख्स उस मरीज से जुड़े सभी रिकौर्डों व नाम को राज रखेगा और किसी भी हालत में उस का नाम सार्वजनिक नहीं करेगा. इस मसले पर ‘स्वास्थ्य का वोट अभियान’ के कैंपेन डायरैक्टर राहुल द्विवेदी का कहना है कि एचआईवी व एड्स पीडि़तों के प्रति लोगों का रवैया बहुत अच्छा नहीं रहता है, जबकि एचआईवी पीडि़त लोग भी सामान्य लोगों की तरह जिंदगी जीने की कूवत रखते हैं.

एचआईवी व एड्स का इंफैक्शन जानकारी की कमी से होता है, ऐसे में बड़े लैवल पर जागरूकता लाने से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है. सरकार द्वारा एचआईवी व एड्स पीडि़तों के प्रति भेदभाव पर रोक लगाने के लिए नैशनल एड्स कंट्रोल और्गनाइजेशन के जरीए पौलिसी तय की गई है, जिस का पालन न करने पर संबंधित शख्स पर कार्यवाही की जा सकती है.

भारी पड़ता भेदभाव

भेदभाव का एक मामला राजस्थान के बाड़मेर शहर में देखने को मिला, जब एक एड्स पीडि़त ने सरकारी बस में सफर करते समय कंडक्टर से किराए में छूट लेने के लिए अपनी बीमारी का प्रमाणपत्र दिखाया, लेकिन कंडक्टर ने उस की बीमारी के बारे में जानने के बाद उस शख्स को डांटडपट कर उस की बीमारी सार्वजनिक करते हुए बस से उतार दिया.

प्यार दें दुत्कार नहीं

आम लोगों की तरह एचआईवी व एड्स पीडि़त भी सामान्य जिंदगी बिता सकते हैं. आम लोगों की तरह उठबैठ सकते हैं, त्योहार और खुशियां मना सकते हैं व नौकरी और कारोबार भी कर सकते हैं. ऐसे में इन के साथ किसी तरह का भेदभाव करना इन को तोड़ सकता है. ‘गौतम बुद्ध जागृति समिति’ के सचिव श्रीधर पांडेय का कहना है कि उन की संस्था नोएडा व गाजियाबाद में एड्स पीडि़तों के साथ काम कर रही है. उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में 3 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने एंटीरैट्रो वायरल ट्रीटमैंट ले कर खुद की बीमारी को एक हद तक कंट्रोल में किया है, जिस की वजह से उन्हें एचआईवी से किसी तरह की परेशानी नहीं हो रही है. नई दिल्ली के रहने वाले हरि सिंह को पता चला कि वे एचआईवी पीडि़त हैं, तो उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने खुद के जीने का रास्ता तो तलाशा ही, साथ ही भारत समेत दुनियाभर के एचआईवी व एड्स पीडि़तों को ले कर फैली भ्रांतियों व इस बीमारी को रोकने की मुहिम को रफ्तार दी. वे दिल्ली सरकार में एचआईवी व एड्स मरीजों के लिए काउंसलिंग का काम कर रहे हैं.

एचआईवी व एड्स में फर्क

एड्स संक्रमित लोगों के साथ भेदभाव में रोकथाम के लिए एचआईवी और एड्स के अंतर को जानना बहुत जरूरी है. एचआईवी एक वायरस है, जिस का पूरा नाम ह्यूमन इम्यूनोडैफिसिएंसी वायरस है. तकरीबन 12 हफ्ते के बाद ही खून की जांच से पता चलता है कि यह वायरस शरीर में दाखिल हो चुका है. से शख्स को एचआईवी पौजिटिव कहते हैं. एचआईवी पौजिटिव कई सालों यानी 6 से 10 साल तक सामान्य दिखता है और आम लोगों की तरह जिंदगी बिता सकता है. यह वायरस खासतौर पर शरीर को बाहरी बीमारियों से हिफाजत करने वाली खून में मौजूद टी कोशिकाओं व मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करता है और धीरेधीरे उन्हें नष्ट करता रहता है.

कुछ सालों बाद यानी 6 से 10 साल में यह हालत हो जाती है कि शरीर आम बीमारी के कीटाणुओं से अपना बचाव नहीं कर पाता और तरहतरह के इंफैक्शन से घिरने लगता है. इस को एड्स कहते हैं. लेकिन एचआईवी पीडि़त शख्स को एड्स की अवस्था में जाने से रोका जा सकता है, अगर वह संयमित दिनचर्या, खानपान व अपनी सेहत के प्रति जागरूक रहे. एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हम सब की यह जिम्मेदारी बनती है कि किसी एचआईवी संक्रमित मरीज के बारे में जानने के बाद उस से भेदभाव न करें, बल्कि उस के साथ प्यार से पेश आएं. किसी को भी यह हक नहीं है कि वह एचआईवी संक्रमित मरीज को नौकरी से निकाले या उस के साथ गलत बरताव करे, बल्कि उन्हें भी औरों की तरह समाज में इज्जत से रहने और जीने का हक दिया जाए. पर जो समाज जाति के नाम पर अच्छे सेहतमंद लोगों को न छूने के लिए तैयार बैठा है, उसे कोई कैसे समझा सकता है.

विद्या बालन को मिल रहे हैं मराठी फिल्मों के ऑफर्स

हाल ही में अभिनेत्री विद्या बालन अपनी पहली मराठी फिल्म ‘एक अलबेला’ के प्रमोशन के सिलसिले में मराठी टीवी शो ‘चला हवा येऊ द्या’ के सेट पर पहुंची, और वहां पर उनकी मुलाकात मराठी फिल्म के मशहूर डायरेक्टर से हुई, जिन्होंने उनके काम की खूब सराहना भी की.

विद्या की मराठी भाषा पर अच्छी पकड़ होने के कारण मराठी फिल्म के डायरेक्टर ने उन्हें अपनी आगामी फिल्म में काम करने का प्रस्ताव रख दिया, विद्या अपनी आगामी फिल्म ‘बेगम जान’ की शूटिंग खत्म करने के बाद फिल्म के नरेशन पर काम शुरू करेंगी.

अभिनेत्री  विद्या बालन ने अपनी पहली मराठी फिल्म ‘एक अलबेला’ में गीता बाली किरदार निभाया था और अपने इस परफॉरमेंस से उन्होंने सभी को आश्चर्य चकित कर दिया था और अब कई फिल्म मेकर्स ने उन्हें अपनी मराठी फिल्म के लिए अप्रोच करना चाहते हैं.

 

जेल मे रेडियो

भोपाल की सेंट्रल जेल में जल्द ही जेल विभाग का अपना खुद का रेडियो स्टेशन होगा, जिसका नाम होगा जेल वाणी. जेल वाणी के जॉकी भी कैदी ही होंगे, जो प्रोफेशनल जॉकी की तरह प्रोग्राम देंगे. भोपाल की जेल में अभी 2,942 कैदी हैं, जिनके पास मनोरंजन के नाम पर मार पीट और गाली गलौच के अलावा जेल की अपनी पहले की ज़िंदगी के संस्मरण भर हैं, लेकिन अब माहौल कुछ और होगा.

कैदी सुबह 8 से 9 और शाम 3 से 5 रेडियो का लुत्फ उठाएंगे, जिससे जेल की उबाऊ और नीरस ज़िंदगी से एक हद तक छुटकारा उन्हे मिलेगा. जेल का सांस्कृतिक भवन जेल वाणी का कंट्रोल रूम होगा और हर एक बेरक में स्पीकर लगाए जा चुके हैं, रात को एक घंटा कैदी अपनी पसंद के गाने भी सुन सकेंगे, यानि जेल की ज़िंदगी अब पहले सी दुष्कर नहीं रहेगी.

यह अनूठा आइडिया दरअसल में पुणे की यरवदा जेल से आयातित है, जहां कैदियों के लिए उनका खुद का कम्यूनिटी रेडियो चलता है. यहां सजा काट चुके अभिनेता संजय दत्त जॉकी की भूमिका में रहते थे. कैदियो को समय समय पर कानून की धाराओं, जेल नियमों की और जेल में मिलने वाली सुविधाओं की भी जानकारी दी जाएगी.

अभी जेल में कैदियों के मनोरंजन के लिए टीवी और समाचार पत्र हैं, पर वे रेडियो की तरह हर बैरक में नहीं हैं. अगर रेडियो जेल वाणी चल निकला, तो मुमकिन है जेल विभाग को विज्ञापन भी मिलने लगें.

आदर्श सहेली की परिभाषा

किशोरियों की सब से बड़ी कमजोरी है कि वे बातें गुप्त नहीं रख पातीं. वे अपनी किसी खास सहेली की निजी बातों का भी प्रचार कर देती हैं, जिसे न कहने की वे कसम खा चुकी होती हैं. बातें गुप्त रखने के लिए संयम की आवश्यकता होती है. अपनी सहेली की किसी भी खास बात को अपने तक ही सीमित रखें, फिर आप देखिए कि आप का विश्वास पा कर कैसे वह आप को अपना हमदर्द बना लेती है. 2 सहेलियों की अंतरंगता के लिए यह आवश्यक पहलू है. अपनी सहेली की प्रशंसा करना सीखिए. उस के गुणों से जलभुन कर खाक हो जाना और उन में गलतियां निकालने का प्रयास सहेली की परिभाषा के विरुद्ध है. सहेली के गुणों की तारीफ करें, साथ ही उसे कुछ ऐसे सुझाव भी दें जिस से वह अपनेआप को और काबिल बना सके. आप का यह व्यवहार निसंदेह सहेली को आप के और करीब लाएगा.

जिस तरह सहेली के गुणों की व्याख्या करना जरूरी है, वैसे ही उस की बुराइयों पर भी प्रकाश डाला जाए. माना कि आप की सहेली बातबात पर रोष प्रकट करती है, ढंग से नहीं चलती, बातबात पर चिल्लाती है, बड़ों का सम्मान नहीं करती तो उसे उस की गलतियों का एहसास अवश्य कराएं. इस डर से कि कहीं वह बुरा न मान जाए, चुप रहना गलत होगा. एक आदर्श सहेली की हैसियत से आप का कर्तव्य होगा कि आप बड़े प्यार से स्पष्ट शब्दों में बिना किसी कुटिल भावना के उस की कमजोरियां उसे बताएं. संभव है आप के स्पष्ट शब्दों से प्रभावित हो कर वह अपनी कमियों को सुधारने का प्रयास करेगी. अगर आप की कई सहेलियां हैं तो सभी के साथ एकजैसा व्यवहार करें. सब एकसाथ हों तो ध्यान रखें कि बातचीत का विषय और भाषा ऐसी हो कि सभी उस में समान रूप से सहभागी बन सकें. ऐसे विषय का चुनाव न करें, जिस से किसी को बोरियत हो.

आदर्श सहेली बनने के लिए यह भी जरूरी शर्त है कि आप एक अच्छी श्रोता हों. सिर्फ अपनी ही बात सुनाते रहने और किसी को बोलने का मौका न देने वाले के पास 10 मिनट से ज्यादा बैठना मुश्किल हो जाता है. अपनी सहेली को जी खोल कर बोलने का मौका दें. उस की बातों को ध्यान से सुन कर उस पर अपने विचार भी प्रकट करें, ताकि आप की सहेली को यह आभास हो जाए कि आप उस की बातों में भी दिलचस्पी लेती हैं. अपनी सहेली का जन्मदिन, शादी की तिथि और उस के बच्चों का जन्मदिन डायरी में नोट कर के रखें. जन्मदिन पर उन को कुछ न कुछ तोहफा जरूर दें. अचानक आप से कुछ पा कर वह आप के प्रेम से प्रभावित तो होगी ही, साथ ही आप के जीवन में अपनी अहमियत जान कर उसे प्रसन्नता भी होगी.

हर इंसान को अपने मित्र की सब से अधिक जरूरत उस समय महसूस होती है, जब वह किसी मुसीबत से गुजर रहा होता है. घर में किसी के असमय निधन, बीमारी या किसी अनय पारिवारिक परेशानी में आप की सहेली को सब से अधिक आप की आवश्यकता होगी. ऐसे समय में उसे असहाय छोड़ कर भागना कायरता होगी. उस के दुखद क्षणों में आप का स्नेहिल स्पर्श उस की पीड़ा को कम करेगा. यदि आप और कुछ नहीं कर सकतीं तो कम से कम उस के संग लगी रहें ताकि उस का हौसला टूटे न.

चश्मा व्यक्तित्व की कमजोरी नहीं

इस में दो राय नहीं कि कजरारी आंखें किसी भी लड़की के सौंदर्य में चारचांद लगा देती हैं, लेकिन यदि नजर कमजोर हो तो चश्मा लगाना एक मजबूरी बन जाता है. ऐसे में कई पेरैंट्स सोचते हैं कि चश्मा लगाने से उन की बेटी को अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा या फिर कोई लड़का उस की तरफ आकृष्ट नहीं होगा, क्योंकि इसे एक कमी समझा जाता है, इसलिए ऐसे में वे हर संभव प्रयास करते हैं कि उन की लड़की  को चश्मा न लगाना पड़े. लेकिन क्या उन की यह सोच सही है? क्या वाकई लड़के चश्मे वाली लड़की की ओर आकर्षित नहीं होते या उन्हें अच्छे रिश्ते नहीं मिलते?

किसी लड़की की नजर कमजोर है तो इस में उस का कोई दोष नहीं है. इसलिए उसे कमी मानना या लड़की के व्यक्तित्व की खामी मानना उचित नहीं है. जब किसी लड़के को चश्मा लगाने से कोई फर्क नहीं पड़ता, तो लड़कियों के चश्मा लगाने पर आपत्ति क्यों? इसलिए जिन किशोरियों की नजर कमजोर है या अन्य किसी कारण से डाक्टर ने उन्हें चश्मा लगाने को कहा है, उन्हें बेहिचक चश्मा लगाना चाहिए. इस से व्यक्तित्व बिगड़ता नहीं संवरता है. जो लड़कियां जानबूझ कर चश्मा नहीं लगातीं वे अपना ही अहित करती हैं. इस से उन की नजर और कमजोर होती चली जाती है और चश्मे का नंबर भी बढ़ जाता है. फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि बिना चश्मे के घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता है. इसलिए जब लगे कि आंख से ठीक से दिखाई नहीं दे रहा है या अन्य कोई समस्या है, तो तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ से जांच करवाएं तथा उस की सलाह को नजरअंदाज न करें.

कुछ लड़कियां इस भय से कि कहीं उन्हें चश्मा न लग जाए, अपनी आंखों की समस्या को ले कर डाक्टर के पास जाती ही नहीं हैं और चुपचाप कष्ट सहती रहती हैं. जब स्थिति काफी बिगड़ जाती है, तब डाक्टर के पास जाती हैं. काश, समय पर अगर वे डाक्टर के पास जातीं तो उन की समस्या इतनी न बढ़ती. चश्मा किसी के व्यक्तित्व की कमजोरी नहीं है, क्योंकि व्यक्तित्व का निर्धारण किसी के चश्मा लगाने या न लगाने से नहीं होता, अपितु यह अनेक बातों पर निर्भर करता है. लड़की की शिक्षा, गुण, संस्कार, व्यवहारकुशलता, कदकाठी, रंगरूप या नैननक्श आदि से उस का व्यक्तित्व उभरता है. इस में चश्मा लगाना कोई अर्थ नहीं रखता.

चश्मा बनवाते समय उस के फ्रेम का चयन अपने चेहरे के मुताबिक करें, इस से आकर्षण बढ़ता है. फ्रेम ऐसा हो जो चेहरे पर जंचे. बेहतर होगा कि मोटे फे्रम वाले चश्मे से बचें, क्योंकि इस में उम्र ज्यादा दिखती है. आमतौर पर काले, मोटे फ्रेम वाले चश्मे बुजुर्ग पहनते हैं. पतला पारदर्शी फ्रेम ज्यादा उपयुक्त रहता है. रंगहीन या हलके रंग का होने के कारण दूर से देखने पर पता ही नहीं चलेगा कि आप ने चश्मा पहन रखा है. इसी प्रकार अत्यधिक बड़े फ्रेम का चुनाव भी न करें, अन्यथा आप के चश्मे के कारण आप का आधा चेहरा छिप जाएगा.

चश्मे की फिटिंग भी सही होनी चाहिए अन्यथा वह बारबार नीचे खिसकेगा और आप को उसे ऊपर चढ़ाना पड़ेगा. इस से आप हंसी और उपहास की पात्र बन सकती हैं. जब चश्मा नीचे आ जाता है तो इस से आप के विजन में भी फर्क पड़ता है और देखने में परेशानी होती है. यदि आप की पास और दूर दोनों ही दृष्टि कमजोर हैं तो आप के समक्ष 2 विकल्प हैं, पहला यह कि बायफोकल चश्मा बनवाएं, इस में दूर और पास दोनों का ठीक से दिखता है. यदि केवल पढ़ने के लिए चश्मा चाहिए तो उसे अलग से बनवाएं. यदि केवल दूर का देखने हेतु नंबर दिया हो तो वैसा बनवाएं. आप को दोनों तरह का दृष्टिदोष है तो आप इस के अलगअलग चश्मे भी बनवा सकती हैं.

यदि आप चश्मा नहीं लगाना चाहतीं तो इस के लिए कौंटैक्ट लैंस का विकल्प खुला है, लेकिन हर लड़की को ये सूट नहीं करते और फिर इन्हें अधिक समय तक पहनने से कुछ परेशानी भी हो सकती है. इन्हें लगाना, उतारना और तरल द्रव में रखना किसी मशक्कत से कम नहीं. कुछ लड़कियां इस बात को छिपाने के लिए कि उन्हें चश्मा लगा हुआ है, जब कोई लड़का या उस के परिजन उन्हें देखने आते हैं तो उस समय कुछ देर के लिए कौंटैक्ट लैंस लगा लेती हैं तथा उन के जाने के बाद उतार देती हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं. यदि चश्मा लगा है तो इसे छिपाना नहीं चाहिए. इस में शर्म कैसी? सोचिए, आप चश्मा लगाने की बात छिपाती हैं और जब शादी के बाद उसे पहनेंगी तो क्या होगा? आप यह बात अपने मन से निकाल दें कि चश्मा लगाने की वजह से आप रिजैक्ट कर दी जाएंगी.

यदि आप को चश्मा लगा है तो अपने चेहरे का मेकअप करते समय कुछ बातों का खास ध्यान अवश्य रखना चाहिए. पलकों पर नैचुरल कलर का शैडो लगाएं जिस से चश्मे के भीतर से भी आप की आंखें बोलती नजर आएंगी और उन का आकर्षण बरकरार रहेगा. चाहें तो सौफ्ट शिमरयुक्त क्रीम लगा कर भी अपनी आंखों को आकर्षक बना सकती हैं. इसी प्रकार चश्मे के फ्रेम के मुताबिक लिप कलर लगाने से होंठों की सुंदरता बढ़ती है.

जन्मदिन पर धोनी को मिला अनोखा तोहफा

धोनी के बर्थडे पर सुशांत ने उन पर बन रही बायोपिक का पोस्टर रिलीज किया है. साथ ही उन्होंने लिखा,'कप्तान, लीडर, विनर. बहुत से नाम, एक सफर जो आप जानते हैं. हेप्पी बर्थडे माही.'

इस पोस्टर में धोनी के जिंदगी से जुड़े हर पड़ाव की तस्वीरें देखने को मिल रही हैं. पोस्टर पर कैप्शन है,'वो आदमी जिसे आप जानते हैं, लेकिन उसका सफर आपको नहीं पता.' यह फिल्म 30 सितंबर को सिनेमाघरों में दस्तक देगी.

सुशांत सिंह राजपूत इन दिनों अपनी आने वाली फिल्म 'राबता' की शूटिंग में व्यस्त हैं. इसके अलावा वो जल्द ही महेंद्र सिंह धोनी की जिंदगी पर आधारित फिल्म 'एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी' में भी नजर आएंगे. फिल्म का ऑफिशियल पोस्टर सुशांत ने ट्विटर पर रिलीज किया है.

एमएस धोनी को अपने 35वें जन्मदिन पर दुनियाभर से चाहने वालों ने बधाइयां दी. कई दिग्गजों ने धोनी को कई प्रकार से प्रभावित करके बर्थ-डे गिफ्ट दिया, लेकिन कमेंटेटर हर्षा भोगले ने विश्व विजेता भारतीय कप्तान के शानदार करियर के बारे में लिखकर समां बांध दिया.

हर्षा ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से लंबे समय तक दूर रहना शायद धोनी के प्रदर्शन पर असर कर सकता है. हालांकि, उन्होंने अपना लेख सकारात्मक पक्ष पर खत्म करते हुए कहा कि उनका करियर यहां से जहां कही भी जाएगा, कमेंटेटर ने माना कि भारतीय सीमित ओवरों के कप्तान ने खुद को साबित किया है और वह हमेशा 'भारत के सर्वकालिक महान' के रूप में याद किए जाएंगे.

VIDEO: नरेंद्र मोदी के लिए ये क्या बोल रही है पाकिस्तानी मॉडल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोग एक ग्लोबल लीडर के रूप में देखते हैं. मोदी के सत्ता संभालने के बाद दोनों देशों के लोगों के मन में एक उम्मीद जगी थी, कि इन करीबी पड़ोसियों के बीच रिश्तों की कड़वाहट कम होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

इसका एक नजारा तब देखने को मिला जब पाकिस्तान की मॉडल कंदील बलोच ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कई आपत्तिजनक कहीं.

क्या कहा कंदील ने

कंदील बलोच की हिम्मत इतनी थी कि वो भारतीय प्रधानमंत्री को चायवाला, ‘डार्लिंग’ बोलते हुए धमकी दे रही हैं. उन्होंने वीडियो में कहा है कि मोदी जी आपका चाय का बिजनेस कैसा चल रहा है? आपका जो चाय का ढाबा है रेलवे स्टेशन के साथ मुझे उम्मीद है कि वो बहुत अच्छा चल रहा होगा. माफ कीजिए मैं नरेंद्र मोदी की बात कर रही हूं, भारत के प्रधानमंत्री. मोदी जी चायवाला…

मोदी जी मेरे पास आपके लिए एक संदेश है. देखो हम पाकिस्तानी बहुत प्यार करने वाले हैं, बहुत मोहब्बत वाले लोग हैं. हम लोग नफरतों पर विश्वास नहीं करते. तो डार्लिंग मैं यह कहना चाहती हूं कि तुम इंसान के बच्चे बनकर रहो और हमें गुस्सा मत दिलाओ. मैं तुम्हें बता रही हूं जिस दिन हमें गुस्सा आ गया उस दिन कोई नहीं बचेगा. उस दिन ना आप बचोगे ना कोई और बचेगा. ये मेरी बात लिख लो और डरो हमसे. चलो… अब तुम चाय पियो और लोगों को चाय पिलाओ.’

20 फरवरी को पोस्ट किया गया यह वीडियो इन दिनों फिर से वायरल हो गया है. इसकी जमकर आलोचना हो रही है और लोगों ने इस मॉडल और टीवी एक्ट्रेस का जमकर मजाक भी उड़ाया है.

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