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रियो के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई कृष्णा पूनिया

शीर्ष भारतीय चक्का फेंक एथलीट कृष्णा पूनिया रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में असफल रही. वह अमेरिका में प्रतियोगिता में क्वालीफाइंग मानक तक नहीं पहुंच सकी. राष्ट्रमंडल खेलों में ट्रैक एवं फील्ड में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय 34 वर्षीय पूनिया रविवार (10 जुलाई) को अमेरिका में अपने अंतिम टूर्नामेंट में 57.10 मीटर चक्का फेंककर पहले स्थान पर रहीं लेकिन वह रियो क्वालीफिकेशन मार्क से काफी नीचे रहा. ओलंपिक क्वालीफिकेशन मार्क 61 मीटर है और रियो ओलंपिक के लिए जगह बनाने की अंतिम तारीख सोमवार (11 जुलाई) तक ही है.

पिछले दो महीनों से पूनिया खेल मंत्रालय की ‘टारगेट ओलंपिक पोडियम’ योजना (टीओपीएस) अमेरिका में ट्रेनिंग कर रही हैं और वहीं प्रतियोगिताओं में भाग ले रही हैं. उनका सर्वश्रेष्ठ प्रयास 59.49 मीटर का रहा है. पूनिया का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ और राष्ट्रीय रिकॉर्ड 64.76 मीटर का है जो उन्होंने 2012 में बनाया था.

उन्होंने 61.51 मीटर के थ्रो से 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक जीता था. पूनिया तीन ओलंपिक 2004, 2008 और 2012 में भाग ले चुकी हैं. वह भारत के उन ट्रैक एवं फील्ड एथलीटों में शामिल हैं जिन्होंने ओलंपिक में किसी स्पर्धा के फाइनल राउंड में क्वालीफाई किया है. वह 2012 लंदन ओलंपिक में छठे स्थान पर रही थीं.

पूनिया ने कहा, ‘मैंने रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया लेकिन अंत में मैं ऐसा नहीं कर सकी. मुझे लगता है कि पिछले साल घुटने की सर्जरी के बाद अपना सर्वश्रेष्ठ करने के लिये मुझे वापसी करने का काफी समय नहीं मिला.’ उन्होंने कहा, ‘मैं अब 2018 राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों पर ही ध्यान लगाऊंगी.’

पूनिया ने कहा, ‘मैं खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण को मेरा सहयोग करने के लिए शुक्रिया अदा करूंगी जिन्होंने अमेरिका में मुझे ट्रेनिंग करने और प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति दी. मैं रियो ओलंपिक में भाग लेने वाले देश के सभी खिलाड़ियों के लिए सफलता की कामना करती हूं.’

देखिए, ‘हैप्‍पी भाग जाएगी’ का नया पोस्‍टर

फिल्म 'हैप्पी भाग जाएगी' का नया पोस्टर मेकर्स ने रिलीज किया है. यह पहला पोस्टर है, जिसमें अभय देओल नजर आए हैं. इस पोस्टर में अभय देओल बड़े स्टाइल से खड़े और एक लड़की भागती हुई नजर आ रही है.

मेकर्स ने यह पोस्टर अभय देओल के कैरेक्टर को इंट्रोड्यूस कराने के लिए रिलीज किया है. पोस्टर के साथ उन्होंने लिखा है, 'ये हैं हमारे बिलाल! इनसे मिलिए वरना हैप्पी भाग जाएगी.'

बता दें कि 'हैप्पी भाग जाएगी' अभय देओल की कमबैक फिल्म है. अभय साल 2014 की फिल्म 'वन बाय टू' के बाद अब परदे पर नजर नहीं आए हैं. वहीं होमी अदजानिया की 'कॉकटेल' के साथ सबका दिल जीतने वालीं डायना पेंटी भी लगभग चार साल बाद बॉलीवुड की किसी फिल्म में नजर आएंगी.

फिल्म को मुदस्सर अजीज डायरेक्ट कर रहे हैं, आनंद एल राय ने इसे प्रोड्यूस किया है. फिल्म में अली फजल और पाकिस्तानी एक्ट्रेस मोमल शेख भी हैं.

मुश्किल में ‘सुल्तान’

पिछले 6 जुलाई को रिलीज फिल्म सुल्तान की सक्सेस का जश्न मना रहे सलमान खान के लिए बुरी खबर है. सलमान, अनुष्का शर्मा और फिल्म के डायरेक्टर ए. अब्बास के खिलाफ एक मामला दर्ज हुआ है.

मुजफ्फरपुर के सीजेएम कोर्ट में दर्ज की गई शिकायत में मोहम्मद साबिर अंसारी उर्फ साबिर बाबा ने आरोप लगाया है कि फिल्म में उनकी जिंदगी की कहानी है. उसने फिल्म बनाकर 20 करोड़ रुपए की रॉयल्टी हड़पने का भी आरोप लगाया है.

मोहम्मद साबिर अंसारी उर्फ साबिर बाबा ने सलमान और दूसरे लोगों के खिलाफ यह शिकायत की गई है.

शिकायत में उन्होंने कहा है कि फिल्म 'सुल्तान' का निर्माण 2010 में शुरू हुआ था. डायरेक्टर ए. अब्बास ने 2010 में इस फिल्म की कहानी उनकी जिंदगी पर आधारित होने की वजह से 20 करोड़ रुपए रॉयल्टी देने की बात कही थी और उसपर सहमति बनी थी.

अमिताभ बने भोजपुरी बोलने वाले ‘दानव’

अंग्रेजी फिल्म ‘द बिग फ्रेंडली जायंट’ के हिन्दी डबिंग में जायंट की आवाज महानायक अमिताभ बच्चन की होगी. इसी फिल्म में एक 12 साल की बच्ची भी है, जिसकी आवाज की डबिंग परिणीति चोपड़ा ने की है. इन दोनों के साथ ही फिल्म में बैड मैन गुलशन ग्रोवर की आवाज भी सुनने को मिलेगी

परिणीति का यह पहला हॉलीवुड प्रोजेक्ट है. हिन्दी में इस फिल्म को ‘बड़े फरीशते जी’ के नाम से रिलीज किया जाएगा. फिल्म की कहानी एक अनाथ लड़की के इर्द गिर्द घूमती है, जिसे एक दानव किडनैप कर लेता है. दोनों में दोस्ती हो जाती है और वे कई एडवेंचर के लिए साथ में निकल पड़ते हैं.

यह फिल्म रोआल्ड डाल के उपन्यास पर आधारित है. फिल्म का हिन्दी ट्रेलर जारी किया गया है. और बिग बी ने यहां भी उम्मीद से दोगुना ही दिया है. इस फिल्म का निर्देशन स्टिवन स्पीलबर्ग ने किया है.

VIDEO: जब लिफ्ट में लड़की को छेड़ना पड़ा महंगा

लड़कियों के साथ छेड़खानी, बदसलूकी की कई घटनाएं आपने सुनी और पढ़ी होंगी. लिफ्ट में कई बार इस तरह की बदसलूकी से लड़कियों को गुजरना पड़ता है. लिफ्ट में अकेले पाकर मनचले लड़कियों के साथ छेड़खानी करने लगते हैं, लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो वायरल हो रहा है, जिसे देखने के बाद कोई भी लड़का लिफ्ट में लड़कियों को छोड़ने से पहले सौ बार सोचेगा.

इस लड़की की हिम्‍मत और बहादुरी देखकर आप हैरान रह जाएंगे. लड़की ने चलती लिफ्ट में छेड़छाड़ कर रहे एक लडके को ऐसा धमाकेदार सबक सिखाया कि वो किसी भी लड़की को छेड़ने की कोशिश नहीं करेगा.

आप भी देखिए ये वायरल वीडियो…

स्मार्टफोन के लिए एन्क्रिप्शन है जरूरी

स्मार्टफोन पर रहने वाला डेटा किसी के लिए भी बेशकीमती होता है. फेसबुक पर सभी की पर्सनल जानकारी, बैंक और खरीदारी के बारे में एसएमएस और न जाने कितनी तरह की और जानकारी मैसेज में छुपी होते हैं. इसीलिए सभी स्मार्टफोन पर डेटा को एन्क्रिप्ट किया जा सकता है.

किसी भी हैकर के लिए आपके बारे में जानकारी इकठ्ठा करना पहला कदम होता है. इसमें आपका नाम, जन्म की तारीख, ईमेल, दोस्त और सहकर्मियों के बारे में जानकारी होती है. ये कभी कभी बड़े आसानी से मिल जाती है.

इतनी जानकारी के बाद किसी का एक फेक प्रोफाइल बनाना बहुत आसान है. इसीलिए स्मार्टफोन पर डेटा को एन्क्रिप्ट करना किसी से जानकारी छुपाने की बात नहीं है. लेकिन ये सुरक्षा और उससे जुड़ी आदत की बात है.

अब ये बात कई बार साबित हो चुकी है कि फैक्ट्री रिसेट करने के बाद भी डेटा को किसी भी स्टोरेज डिवाइस से निकाला जा सकता है. अगर किसी को आपके बारे में जानकारी इकठ्ठा करनी है तो ऐसे डिवाइस से भी उसे ये जानकारी मिल सकती है. लेकिन एन्क्रिप्ट किए हुए स्मार्टफोन से ये जानकारी निकालने के लिए उसे पासवर्ड चाहिए और ये करना बहुत मुश्किल है.

अपने फोटो को सुरक्षित रख कर अपने आप को ही नहीं पर आपके दोस्तों को भी ऐसे हैकर की नजरों से आप सुरक्षित रख सकते हैं. फोटो अगर एन्क्रिप्ट नहीं किए हुए हों तो हैकरों के हाथ लग कर ये बेशकीमती होते हैं. तरह-तरह के ऐप इस्तेमाल करके आप फोटो तो शेयर कर सकते हैं. लेकिन उन्हें स्मार्टफोन, टैबलेट जैसे डिवाइस पर सुरक्षित रखने के लिए एन्क्रिप्शन सबसे आसान तरीका है.

कुछ ऐसे ऐप भी डाउनलोड किए जा सकते हैं, जो फोटो एक्सेस करने के पहले एक पिन मांगे हैं. किसी भी गलत हाथ में अगर आपका स्मार्टफोन पड़ जाए तो सुरक्षा के लिहाज से ये आपके और आपके परिवार के लिए बहुत बढ़िया हो सकता है.

VIDEO: ‘तहारुश’ यानि ‘रेप गेम’ खेल नहीं, औरत की आत्मा के साथ खिलवाड़ है

'तहारुश जमाई', इजिप्ट और बाक़ी अरब देशों का ये 'रेप गेम' उस वक़्त 'चर्चा' में आया था, जब अमेरिका की एक रिपोर्टर ने पूरी दुनिया के सामने इसका खुलासा किया. मिस्र और बाक़ी अरब देशों में एक बेहद घिनौना और आत्मा को चीर कर रख देने वाला खेल खेला जाता है, जिसमें आदमियों का पूरा झुंड एक औरत को घेरता है और उसके साथ बलात्कार करता है. ऐसे तीन घेरे होते हैं, अंदर से बाहर की तरफ़ का पहला घेरा औरत का रेप करता है. दूसरे घेरे के लोग दर्शक की तरह उस औरत की इज़्ज़त को तार-तार होते हुए देखते हैं. तीसरे घेरे का काम इस कुकर्म को बाक़ी लोगों से बचाने का होता है. और ये काम, भरे बाज़ार में होता है.

अगर ये पढ़ने के बाद भी आपकी रूह न कांपी, तो ये बता दें कि इस जघन्य अपराध को यहां 'खेल' का नाम दिया जाता है और कोई भी आदमी इसे ग़लत नहीं मानता. कहने को इन लोगों का निशाना 'वेस्टर्न ड्रेस' पहने बाहरी मूल की कोई महिला होती है, लेकिन इन दरिंदों को अपनी 'औरतों' के साथ ऐसे करने से भी कोई गुरेज़ नहीं. इजिप्ट और बाक़ी अरब देशों में औरतों पर हो रहे इस ज़ुल्म को विदेशी मीडिया कभी नहीं उठाती, अगर उनकी ख़ुद की रिपोर्टर दुनिया को अपनी आपबीती न सुनाती.

लॉरेन लोगन की वजह से सामने आया ये मामला

CBS की रिपोर्टर 'लॉरेन लोगन', होस्नी मुबारक़ की ख़िलाफ़ उठे अरब आंदोलन को कवर करने जब इजिप्ट पहुंची, तो 'तहरीर स्क्वायर’ पर लोगों की बेतहाशा भीड़ जमा थी. बदक़िस्मती से उस भीड़ में उनका साथ अपनी टीम के साथ छूट गया. बस उनका कैमरा मित्र था, जो उनका हाथ पकड़ कर उन्हें भीड़ से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था. लेकिन उसके अगले 25 मिनट जो लॉरेन के साथ हुआ, वो दिल दहला देने वाला था.

उन्होंने देखा कि पूरा हुज़ूम उनकी तरफ आ रहा है. किसी ने उनका स्वेटर फाड़ा, तो कोई उनके बाल नोच रहा था. एक एक करके उन सबने 25 मिनट तक उनका रेप किया, उन्हें जानवरों की तरह नोचा. लॉरेन को लग रहा था कि सब ख़त्म होने वाला है, लेकिन किसी तरह सिक्योरिटी फोर्सेस ने उन्हें बलात्कारी चक्रव्यूह से निकाला. अभी तक लॉरेन इस सदमे से उबरने की क़ोशिश कर रही हैं.

यूरोप में पैर पसार चुका है तहारुश

न जाने कितनी औरतों को इस तरह की ज़िल्लत झेलनी पड़ती होगी. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि 'तहारुश' का ये 'खेल' बंद न हो कर अब यूरोप पहुंच गया है. नए साल की शुरुआत में जर्मनी में कई महिलाओं ने झुंड में हुए इस तरह के बलात्कार की रिपोर्ट्स दर्ज की थी. कहा जा रहा है कि जर्मनी में भी ये मिडिल ईस्टर्न रेफ्यूजीस कर रहे हैं. जर्मनी के अलावा फ़िनलैंड, ऑस्ट्रिया, स्वीडन और स्विट्ज़रलैंड में भी 'तहारुश' की वारदातें सामने आई हैं.

हमारी सारी 'मॉडर्न' सोच धरी की धरी रह जाती है जब इस तरह की बातें सामने आती हैं. ये जहां भी हो रहा है, इसी वक़्त बंद हो जाना चाहिए क्योंकि ये मानवता के ख़िलाफ़ है. हम दो क़दम आगे चलते हैं और ऐसी घटनाओं से 100 क़दम पीछे हो जाते हैं.

चेतावनी: ये वीडियो आपको विचलित कर सकता है

फेसबुक पर खुद ही सिंक नहीं होंगे PHOTOS

स्मार्टफोन पर अगर आप फेसबुक ऐप इस्तेमाल करते हैं तो फोटो का बैकअप खुद ही हो जाता है. लेकिन फेसबुक ने अब अपनी पॉलिसी में बदलाव किया है और अगर आपने उसके मोमेंट्स ऐप को डाउनलोड नहीं किया तो ऐसे फोटो डिलीट हो जाएंगे.

अगर फेसबुक की बात मानें तो लगेगा जैसे आपके पास कोई विकल्प नहीं है.

एंड्राइड स्मार्टफोन के लिए मोमेंट्स को डाउनलोड कर सकते हैं. लेकिन दूसरे ऐप से भी आप काम चला सकते हैं. आइये आपको इसका तरीका बताते हैं.

एवरएल्बम

अगर स्मार्टफोन में जगह नहीं है तो एवरएल्बम उसको पहचान जाएगा और डिवाइस से उसे डिलीट करके उसके क्लाउड बैकअप का विकल्प देता है. लेकिन जो फोटो ऑनलाइन स्टोर किये जाएंगे उनके रेसोलुशन को कम कर दिया जाएगा.

अगर फोटो को उसके अपने रेसोलुशन में चाहिए तो उसके लिए हर महीने करीब 650 रुपये लगेंगे जो काफी महंगा है.

शूबॉक्स

एवरएल्बम की तरह ही शूबॉक्स पर आप जितने भी फोटो चाहें रेसोलुशन कम कर के स्टोर कर सकते हैं. लेकिन अगर फोटो को उनके अपने रेसोलुशन में स्टोर करना है तो एवरएल्बम के मुकाबले आधी कीमत पर काम हो जाएगा.

यहां पर अपने वीडियो भी आप स्टोर कर सकते हैं. कंपनी का दावा है कि फोटो को एन्क्रिप्ट करके रखा जाता है और जो एन्क्रिप्शन बैंक इस्तेमाल करते हैं वही शूबॉक्स भी इस्तेमाल करता है.

गूगल फोटोज, ड्रॉपबॉक्स, माइक्रोसॉफ्ट वन ड्राइव जैसे विकल्प भी हैं आपके पास.

कुछ लोग फ्री लिमिट का इस्तेमाल करने के लिए इन सभी पर एक अकाउंट बना लेते हैं. लेकिन ध्यान रखिये कि एक ही फोटो एक से ज्यादा ऐप पर स्टोर करने से आप जगह बर्बाद कर रहे हैं.

पुराने फोटो को किसी एक या दो ऐप पर स्टोर कर दीजिये और उसके बाद उसके ऑटो सिंक फीचर को बंद कर दीजिये. उसके बाद एक नए ऐप पर अपने अभी के फोटो स्टोर कर सकते हैं.

कोई भी फोटो ऐप चुनने के पहले एक बात का ध्यान रखिये कि एक बार आपने उसे चुन लिए उसके बाद उसे बदलना बहुत मुश्किल होता है. इसलिए अपनी जरूरत के हिसाब से ऐसे ऐप को चुन कर ही इस्तेमाल करना शुरू कीजिये. शुरुआत में फ्री ऐप इस्तेमाल करके देख लीजिए और अगर जरूरत हो तो फिर पैसे देकर ये सर्विस ले सकते हैं.

गूगल और एप्पल की राह पर अलीबाबा

गूगल और एप्पल को टक्कर देने के लिए चीन के अरबपति उद्योगपति जैक मा की कंपनी अलीबाबा ने भी स्मार्ट कार की शुरुआत की है. चीन की ई-कामर्स कंपनी अलीबाबा ग्रुप होल्डिंग लिमिटेड अब कार उद्योग में भी उतर चुकी है.

अलीबाबा कंपनी का ऑपरेटिंग सिस्टम 'युन' अब फोन और स्मार्टवॉच के अलावा कार के डैशबोर्ड से भी जुड़ेगा, जिससे कार में टच स्क्रीन और एडवांस रियर व्यू मिरर की सुविधा मिलेगी. अलीबाबा ने युन का इस्तेमाल चीन की कार निर्माता कंपनी एसएआईसी मोटर कार्प के साथ मिलकर रोएवे आरएक्स5एसयूवी कार के डैशबोर्ड में किया है.

इस कार को बुधवार को चीन के बाजार में बिक्री के लिए उतारा गया. अवसर पर जैक मा ने कहा, हमारा मानना है कि भविष्य में 80 फीसदी कारें सिर्फ परिवहन के लिए ही इस्तेमाल नहीं होंगी. बल्कि कार का इस्तेमाल एक रोबोट की तरह रोजमर्रा के कामों के लिए किया जाएगा.

यह है खूबी

रोएवे आरएक्स5एसयूवी कार का डैशबोर्ड युन ऑपरेटिंग सिस्टम की मदद से चलेगा. इस स्मार्ट कार के डैशबोर्ड से कार चालक पार्किंग के लिए जगह बुक करा सकता है, कॉफी के लिए आर्डर दे सकता है. उसे इसके लिए अलीपे सिस्टम का इस्तेमाल करना होगा.

कार की कीमत

इस कार की शुरुआती कीमत 148,800 युआन यानि लगभग 14,82,237 रुपये है. सस्ती कार के लिए जैक मा ने एसएआईसी के अध्यक्ष चेन हांग का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा कि कार की कीमत अंचभित करती है.

गूगल, एप्पल को टक्कर देने की तैयारी

गूगल का एंड्राइड ऑटो और एप्पल के कारप्ले सिस्टम का कारों को स्मार्ट बनाने के लिए तेजी से इस्तेमाल हो रहा है. लेकिन चीन में इन पर बैन है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा कार बाजार है. अलीबाबा की नजर इस बाजार पर है. आईएचएस ऑटोमोटिव के आंकड़ों के मुताबिक स्मार्ट कारों का बाजार हर साल 19 फीसदी की दर से बढ़ रहा है और साल 2021 तक यह 4.5बिलियन डॉलर का हो जाएगा.

2015 से हो रहा था काम

अलीबाबा ने जुलाई 2014 में चीन के जाने-माने मोबाइल मैंपिग सर्विस ऑटो नेवी होल्डिंग्स लिमिटेड को 1.5 बिलियन डॉलर में खरीदा था. अलीबाबा और एसएआईसी पिछले कुछ सालों से मिलकर स्मार्ट कार पर काम कर रही हैं. एसएआईसी ने मार्च 2015 में अलीबाबा के साथ एक बिलियन युआन फंड लगभग 10069180141 की लागत से स्मार्ट कार पर काम करना शुरू किया था.

बड़े पैमाने पर एप्पल और गूगल सिस्टम का इस्तेमाल

आईएचएस ऑटोमोटिव के मुताबिक एप्पल का कार प्ले और गूगल का एंड्राइड ऑटो सिस्टम कार कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है. एप्पल का कार प्ले ऑपरेटिंग सिस्टम इस समय 40 से अधिक ऑटो कंपनियां कर रही हैं. जिससे आईफोन को कार के डैशबोर्ड से जोड़ा जा सकता है. इसमें मैप, संगीत सुनने की सुविधा होती है. जबकि गूगल एंड्राइड ऑटो सिस्टम को लगभग 17 कार कंपनियां जैसे शेरवले, होंडा, हुंडई और मर्सिडीज बेंज जैसी कंपनियां कर रही हैं. इसमें वैज ट्रैफिक और नेविगेशन प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है.

अमेरिकी बाजार में उतरने की कवायद

चीन में एप्पल और गूगल पर बैन की वजह से अलीबाबा के यून सिस्टम को फायदा हो सकता है. अलीबाबा टेक्नोलॉजी कमिटी के प्रमुख वांग जिआन के मुताबिक, युन ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए कुछ और कार निर्माता कंपनियों से बात चल रही है. कंपनी इस सिस्टम को अमेरिका में भी प्रमाण दिलाने के लिए काम कर रही है.

विदेशी कार कंपनियां नहीं करेंगी इस्तेमाल

शंघाई में आईएचएस ऑटोमोटिव के विश्लेषक माइकल लियु ने कहा, युन ऑपरेटिंग सिस्टम का चीन में स्मार्ट कारों में इस्तेमाल होगा. लेकिन विदेशी कार कंपनियां अगले कुछ सालों तक अलीबाबा के ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल अपनी कारों में नहीं करेंगी.

बेटियां होती हैं दिल के करीब

रांची के हेसाग स्थित ओल्ड एज होम, ‘अपना घर’ में रहने वाली सुदामा देवी की अंतिम यात्रा ने लोगों की आंखें नम कर दीं, जब उन्हें मुखाग्नि उन के बेटे ने नहीं वरन मुंहबोली बेटी, सुनीता देवी ने शमशान घाट पहुंच कर दी.

आज से करीब 20 साल पहले सुनीता देवी को ‘अपना घर’ की सिस्टर ने गेट के बाहर दर्द से कराहते हुए पाया था. सिस्टर ने उन्हें अपने यहां पनाह दे दी. बाद में 58 वर्षीया सुदामा देवी ने बताया कि उन के अपने बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. तब कोई और शख्स उन्हें इस ओल्ड एज होम की देहरी तक छोड़ कर गया और फिर सुदामा देवी इसी ओल्ड एज होम में रहने लगीं, जहां पहले से 20 बुजुर्ग महिलाएं रहती थीं. सुदामा देवी पहले तो उदास और गुमसुम रहतीं पर धीरेधीरे दूसरी महिलाओं से बातें करने लगीं और ओल्ड एज को ही अपना परिवार मानने लगीं. यहीं पर सुनीता देवी नाम की लड़की अक्सर उन से मिलने आती थी. उस ने सुदामा देवी को अपनी मां माना था. दोनों एकदूसरे से इतनी जुड़ गई थीं कि इस पराई बिटिया ने स्वयं बढ़ कर मृत मां को मुखाग्नि दी और एक बेटे द्वारा किए जाने वाले सारे रीतिरिवाज भी निभाए.

जिस वृद्ध लाचार महिला को सगे बेटों ने घर से निकाल दिया, उसे ही एक पराई बिटिया ने अपनों से बढ़ कर मान दिया और अंतिम समय तक साथ निभाया. वास्तव में यह घटना पुत्र की कृतघ्नता और पराई बेटी की मानवीयता का सुंदर उदाहरण है.

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक इस समय देश में कुल आबादी का करीब 8 से 9 फीसदी हिस्सा बुजुर्गों का है. पिछले एक दशक में भारत में वृद्धों की आबादी 39.3% की दर से बढ़ी है. पर अफसोस की बात यह है कि इन बुजुर्गों के जीवन में अकेलापन और अपनों के अत्याचार की समस्या भी लगातार बढ़ रही है.

गैर सरकारी संगठन, ‘हेल्पएज इंडिया’ द्वारा 8 राज्यों के 12 शहरों में किए गए सर्वेक्षण बताते हैं कि भारत में करीब 50% बुजुर्ग अत्याचार के शिकार हो रहे हैं. जिन में पुरुष बुर्जुर्गों के देखे महिलाओं पर ज्यादा अत्याचार होते हैं. जहां 48% बुजुर्ग पुरुष अपनों के अत्याचार के शिकार होते हैं वहीं बुजुर्ग महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 52% है.

सर्वेक्षण के मुताबिक सब से कड़वी सच्चाई यह है कि इन बुजुर्गों पर अत्याचार करने वाले कोई और नहीं वरन परिवार के लोग और सगेसंबंधी ही होते हैं. खासतौर पर बेटेबहू ज्यादा जुल्म ढाते हैं. 60% से ज्यादा मामलों में बेटे किसी न किसी रूप में बुजुर्गों पर अत्याचार के मामलों में 41% गालीगलौच, 33% बेइज्जती करने की घटनाएं शामिल थीं.

सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह चौंकाने वाली बात सामने आई कि 64% पीडि़त बुजुर्गों को पुलिस हेल्पलाइन और इस से निपटने वाली प्रणाली के बारे में जानकारी थी पर लोकलाज के भय से केवल 12% ने ही इस का सहारा लिया. 53% लोगों ने अपने सगेसंबंधियों को जुल्म के बारे में बताया. वृद्धा सास के प्रति एक बहू के निष्ठुर और बर्बरतापूर्ण व्यवहार की झलक लोगों ने देखी. जब हाल ही में यू.पी. के बिजनौर से एक दिल दहलाने वाला वीडियो वायरल हुआ. 1 मिनट के इस वीडियो में 70 साल की एक वृद्ध बीमार और अशक्त महिला को उस की बहू द्वारा बड़ी बेरहमी के साथ मारने का प्रयास करते देखा जा सकता था.

वीडियो में पहले बहू अपनी सास को हाथों से पीटती दिखती है. फिर पत्थर से वह वृद्धा के सिर पर चोट मारती है. इस के बाद कपड़े से गला घोंट कर मारने का प्रयास भी करती है. एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा इस वीडियो को फेसबुक पर अपलोड किया गया और तब पुलिस ने इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 307 के अंतर्गत उस बहू के खिलाफ केस दर्ज कर लिया.

इसी तरह का एक और ताजा मामला साउथ ईस्ट दिल्ली का है. कालकाजी इलाके के एक बेटे ने बुजुर्ग मांबाप के घर की बिजली और पानी का कनैक्शन काट दिया. पिता जब बेटे के पास शिकायत करने पहुंचा तो बेटेबहू ने मिल कर उन्हें पीट दिया. वहीं संगम विहार क्षेत्र में भी इसी तरह की घटना हुई. एक बेटे ने बुजुर्ग बाप को इतना पीटा कि उन के बाएं पैर की हड्डी टूट गई.

जिसे बांहों में भर कर मांबाप प्यारदुलार से चूमते हैं, जिस के बढ़ते कदमों को देख बलिहारी जाते हैं, जिस की हर ख्वाहिश पूरी करने को जीजान से जुट जाते हैं, उसी बेटे के हाथों बुढ़ापे में जब मांबाप को मार खानी पड़े तो जरा सोचिए क्या गुजरेगी उन के दिल पर.

बेटी होती है दिल के ज्यादा करीब

यह हमारी सामाजिक व्यवस्था की विसंगति है कि ज्यादातर घरों में लोग बेटे के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं. उन के पैदा होने से ले कर उन के लालन, पालन, करियर व हर चीज में बेटे को बेटियों के देखे ज्यादा अटैंशन व केयर दी जाती है. मगर जब बाद में वही बेटा अपने दायित्त्वों से हाथ झाड़ लेता है तो आंसू बहाते हैं. हाल ही में जब 12वीं के नतीजे घोषित हुए तो हर साल की तरह फिर से लड़कियों ने अपना परचम लहराया. सिर्फ सीबीएससी ही नहीं विभिन्न राज्यों की बोर्ड परीक्षाओं में भी लड़कियां लड़कों से आगे थीं.

पर अफसोस, हम अकसर अपने घरों में बेटी की पढ़ाई में कोताही कर बेटों को ही पढ़ाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक 52.2% लड़कियां बीच में ही अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ देती हैं. जबकि बेटों को आगे बढ़ाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है. नतीजा यह होता है कि कई दफा बेटे सिर्फ पढ़ाई और करियर में ही नहीं, जिंदगी की दौड़ में भी आगे निकलने के प्रयास में अपने मांबाप को बोझ समझने लगते हैं और इस बोझ को किसी ओल्ड एज होम या कहीं और उतार कर आगे बढ़ जाते हैं.

पर क्या आप जानते हैं, अकसर उपेक्षित छोड़ दी गई लड़कियां मांबाप के ज्यादा करीब और उन के प्रति ज्यादा जिम्मेदार होती हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह बात स्वीकारी थी कि एक बेटी मांबाप के लिए 5 बेटों से बढ़ कर होती है.

अमेरिकन सोशियोलौजिकल एसोसिएशन फाउंडेशन द्वारा हाल ही में जारी एक अध्ययन के मुताबिक, जब बात केयर करने की आती है तो बेटियां बेटों के देखे दोगुनी मात्रा में मांबाप का खयाल रखती हैं. इस अध्ययन में 50 साल से अधिक उम्र के 26,000 से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया. पाया गया कि बेटियां औसतन प्रतिमाह 12.3 घंटे का वक्त अपने बुजुर्ग अभिभावकों की देखभाल में लगाती हैं, जबकि पुत्र महज 5.6 घंटे ही इस काम में व्यतीत करते हैं. बेटियों को इस काम में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. जैसे जौब, बच्चे वगैरह, मगर बेटों के मामले में केवल यही बात मायने रखती है कि कोई और सहयोगी है या नहीं.

अध्ययनकर्ता एंजेलिना कैरिर्गोयावा के मुताबिक बेटे मांबाप की देखभाल की जिम्मेदारी उठाना कम कर देते हैं, तब जब कि उन की बहन मौजूद हो. इस के विपरीत बेटियां अपने अभिभावक की और भी ज्यादा देखभाल करने लगती हैं जब उन का भाई होता है. यानि ज्यादातर बेटे मांबाप के प्रति अपनी जिम्मेदारियां बहनों को पास करने में माहिर होते हैं.

यही नहीं, एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, 18 साल की उम्र के बाद बेटियां अपने मांबाप से बहुत कम रुपयों की मांग करती हैं, जबकि बेटों के साथ ऐसा नहीं. सर्वे में पाया गया है कि 41% युवा पुरुष अपने मांबाप से खर्च करने के लिए पैसे लेते हैं, जबकि अभिभावक के साथ रहने वाली सिर्फ 31% युवा लड़कियां ही ऐसा करती हैं.

करीब 60% बेटियां मांबाप को भावनात्मक संबल देती हैं. छोटीछोटी बातों से उन का खयाल रखती हैं, जैसे फोन करना, उन के पास जाना, बैठ कर बातें करना जबकि 50% से भी कम लड़के ऐसा करते हैं.

शायद यही वजह है कि लोग भी अब बेटों के देखे बेटियां प्रेफर करने लगे हैं. हाल ही में कार्लसन स्कूल औफ मैनेजमैंट व रुटजर्स बिजनेस स्कूल में किए गए रिसर्च के मुताबिक अभिभावकों की पहली पसंद बेटे नहीं वरन बेटियां बनती जा रही हैं. इस रिसर्च में 60% लोगों ने अपनी भावी संतान के रूप में एक बेटी की ही कल्पना की.

कानूनी सहायता

हाल ही का एक मामला है, जिस में दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके के एक बुजुर्ग महेश कुमार द्वारा अपने बड़े बेटे और बहू के खिलाफ केस दर्ज कराया गया कि उन के बेटेबहू उन्हें और उन की बीमार पत्नी को मानसिक रूप से प्रताडि़त करते है. महेश कुमार ने आरोप लगाया कि बेटा उस दुकान पर कब्जा जमाना चाहता है जो कानूनी रूप से उन के अधिकार में है. बाद में मेंटीनेंस और वेलफेयर औफ पेरैंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत इस केस का फैसला महेश कुमार के हक में हुआ.

कुनाल मदान, एडवोकेट, के एम ए लॉ फर्म ,कहते हैं कि वर्ष 2007 में मिनिस्ट्री औफ सोशल जस्टिस एंड एंप्लौयमेंट, गर्वनमेंट औफ इंडिया द्वारा शुरू किए गए इस एक्ट के तहत बुजुर्ग अपने बच्चों से मेंटीनेंस की मांग कर सकते हैं. मेंटीनेंस की रकम उन के लिविंग स्टैंडर्ड के आधार पर तय होती है. इस की सहायता से बुजुर्ग आसा से, जल्दी और कम खर्च में अपना हक पा सकते हैं. जबकि काफी लोगों को इस की जानकारी नहीं. इस के अलावा सीआरपीसी के सेक्शन 125 के अंतर्गत भी मेंटीनेंस की मांग की जा सकती है.

देश में बुजुर्गों और असहायों की हिफाजत के लिए नए सख्त कानून बनाने की मांग की जाती रही है. सेक्शन 498ए में भी संशोधन की मांग उठी है. जिस में सिर्फ बहुओं की प्रताड़ना के खिलाफ सजा का प्रावधान है. बुजुर्गों के साथ घरेलू हिंसा को ले कर कोई सख्त, स्पष्ट या विशेष कानून देश में नहीं है.

यही नहीं, कानून पर अमल के मामले में भी हमारी व्यवस्था सुस्त है. कानूनी कार्यवाहियां एक अंतहीन बोझ और कई बार यातना की तरह पीडि़तों को ही परेशान करने लगती है. ऐसे में लोग केस करने से भी डरते हैं तो कुछ लोगों को जमाना क्या कहेगा की परवाह. ऐसा करने से रोकती है.

जरूरी है कि कानून पर अमल के तरीकों में बदलाव आए ताकि जल्दी से जल्दी बुजुर्गों को राहत मिले और दोषी सजा पाए. यही नहीं कानूनी चुस्ती के साथ सामाजिक व्यवस्था में भी सुधार आवश्यक है. यह बात भी काफी मायने रखती है कि बच्चों का पालनपोषण कैसे हुआ है. उन्हें सामाजिक मूल्यों व संस्कारों से कितना नवाजा गया है.

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