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दादा ने किया चौंकाने वाला खुलासा

भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने एक बात का खुलासा करके सबकों चौंका दिया है. क्रिकेट सलाहकार समिति के प्रमुख सदस्य और टीम इंडिया के प्रमुख कोच चुनने में अहम भूमिका अदा करने वाले सौरव गांगुली ने इस बात की पुष्टि की है कि रवि शास्त्री को भारतीय टीम के बल्लेबाजी कोच की भूमिका अदा करने की पेशकश की गई थी.

गौरतलब है कि अनिल कुंबले को भारतीय टीम का मुख्य कोच चुने जाने के बाद रवि शास्त्री और सलाहकार समिति के प्रमुख सदस्य गांगुली के बीच विवाद उत्पन्न हो गया है. शास्त्री ने आरोप लगाया था कि जिस वक्त उनका साक्षात्कार लिया गया उस वक्त वहां गांगुली मौजूद नहीं थे. जिसके बाद गांगुली ने पलटवार करते हुए शास्त्री को कहा था कि उन्हें वहां खुद मौजूद होना चाहिए था ना कि उस वक्त बैंकॉक में छुट्टियां मनाने जाना चाहिए था.

इस तरह ग्राहकों को लूट रहा है बीएसएनएल

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानि ट्राई की लाख कोशिशों के बाद मोबाइल कंपनियां उपभोक्ताओं को इंटरनेट की सही स्पीड नहीं दे पा रही है. केन्द्र सरकार के प्रयासों के बाद भी काल ड्राप का मसला हल नहीं हुआ है. इंटरनेट डेटा और फोन बैलेंस की आड में प्रीपेड मोबाइल धारक करोड़ों उपभोक्ताओं को मोबाइल कंपनियों की ठगी का शिकार होना पड़ रहा है. मोबाइल इटरनेट प्लान के नाम पर केवल प्राइवेट कंपनियां ही नहीं, भारतीय दूरसंचार निगम यानि बीएसएनएल भी सबसे आगे है. जो प्रीपेड मोबाइल उपभोक्ता बीएसएनएल के नेटवर्क का प्रयोग कर रहे हैं, उनको सचेत रहने की जरुरत है. बीएसएनएल नेटवर्क का प्रयोग करने वाले उपभोक्ता का इंटरनेट प्लान जब खत्म हो जाता है तो उसका इंटरनेट फोन के बैलेंस से चलने लगता है. कई बार यह बैलेंस खत्म होने के बाद भी चलता है. जब उपभोक्ता रिचार्ज कराता है तो बैलेंस कट जाता है.

उपभोक्ता का फोन बैलेंस जब खत्म हो जाता है तो वह अपना इंटरनेट रिचार्ज कराता है. तब इस इंटरनेट रिचार्ज के बाद उसका इंटरनेट नहीं चलता और वह कस्टमर केयर पर बात करता है तो उसे बताया जाता है कि फोन बैलेंस खत्म हो गया है. ऐसे में पहले उसे फोन का बैलेंस डलवाना पड़ेगा. ऐसे में उपभोक्ता को इंटरनेट रिचार्ज और बैलेंस रिचार्ज के लिये एक साथ मजबूर होना पड़ता है.

बीएसएनएल की ठगी का यह हाल है कि जब तक इंटरनेट डेटा रिचार्ज पर चलता है उसकी स्पीड काफी धीमी रहती है. जैसे ही इंटरनेट रिचार्ज खत्म होता है और इंटरनेट फोन बैलेंस पर चलने लगता है उसकी गति तेज हो जाती है. यही नहीं इंटरनेट रिचार्ज के मुकाबले बैलेंस रिजार्च पर इंटरनेट मंहगा चलता है. ऐसे में उपभोक्ता को अनजाने में मंहगी दर में इंटरनेट का भुगतान करना पडता है. बीएसएनएल इस पूरे मसले पर खुद को गलत साबित करने की जगह पर उपभोक्ता को ही सलाह देता है कि वह जागरुक उपभोक्ता नहीं है.

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानि ट्राई अब मोबाइल इंटरनेट की गति और सेवाओं को लेकर सेवा गुणवत्ता के नियम बनाने की तैयारी में है. इसके लिये ट्राई जल्द ही वायरलेस डेटा की सेवा गुणवता के मानक तय करते हुये परामर्श पत्र जारी करेगी. ट्राई ने माईस्पीड एप तैयार किया है. इससे इंटरनेट की स्पीड को देखा जा सकेगा. मोबाइल कंपनियां 3 जी में अधिकतम 7.1 एमबीपीएस स्पीड देने का दावा करती है. वास्तव में वह उपभोताओं को 100 केबीपीएस से भी कम गति देती है. यह एक एमबीपीएस से भी 12 गुना कम होती है. कंपनियो के द्वारा कम स्पीड देने से इंटरनेट से होने वाले काम प्रभवित करते है. इससे डेटा ज्यादा खर्च होता है. एक काम के लिये उपभोक्ता को बारबार कोशिश करनी पडती है. यही नहीं मोबाइल कंपनियों के कस्टमर केयर सही तरह से उपभोक्ता की शिकायत नहीं सुनते और लंबे समय तक उपभोक्ता को इंतजार करना पडता है.

केन्द्र सरकार के तमाम प्रयासों के बाद मोबाइल कंपनियों ने काल ड्राप से लेकर इंटरनेट सुविधाओं को देने तक में कोई सुधार नहीं किया है. जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया प्रोग्राम को सफलता नहीं मिल रही है. मोबाइल कंपनियां इन सुविधाओं के न देने के लिये अलग अलग तरह के बहाने बनाती हैं. मोबाइल कंपनियों ने काल ड्राप के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील कर रखी है. जिससे वह फैसला आने तक बचे हुये हैं. देश में कामकाज के लिये इंटरनेट को बढ़ावा दिया जा रहा है. केन्द्र सरकार तमाम सार्वजिनक जगहों पर इंटरनेट की फ्री वाईफाई सुविधा दे रही है. दूसरी तरफ मोबाइल कंपनियां छोटे प्रीपेड उपभोक्ता के साथ छोटी छोटी ठगी करके उनका शोषण कर रही हैं, जो केन्द्र सरकार की छवि को भी प्रभावित कर रहा है.                  

लालू ने कहा, आ लौट के आजा मेरे मीत

‘अइबे त आव. आदत सुधर के रहे पड़ी. हमार नीति ह, जीओ औ जीने दो. रिलायंस वाला जीओ नहीं. रिलायंस वाला जीओ का मतलब होता है, एक आदमी जीओ और बाकी सब मरो.’ अपनी पार्टी राजद के 20वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित जलसे में लालू यादव ने पार्टी छोड़ कर भागने वालों को दुबारा पार्टी में शामिल होने का खुला न्यौता दिया. खास बात यह रही कि न्यौता के साथ-साथ उन्होंने धमकी भी दे डाली. उन्होंने साफ कहा कि जिसे राजद में वापस आना है वह आ सकते हैं, पर आने के पहले अपनी आदतों को        सुधार लें. पुरानी आदतों को सुधरने के बाद ही राजद में जगह मिलेगी.

5 जुलाई 1997 को जनता दल से अलग होकर लालू ने नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाई थी. उसके बाद साल 2005 तक बिहार पर राजद ने राज किया था. सरकार गंवाने के बाद लालू की पार्टी में उठापटक शुरू हो गई थी. जिस दल ने 16 सालों तक सरकार की मलाईयां काटी, उसका सत्ता से दूर होना उसके लिए परेशानी का सबब बन गया था. 5 सालों तक तो राजद के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने दुबारा सत्ता पाने का इंतजार किया, पर जब साल 2010 में एक बार फिर नीतीश की सरकार बन गई, तो राजद के नेताओं का सब्र का बांध टूट गया.

सबसे पहले साल 2009 में आम चुनाव से पहले लालू के ‘दुलारे’ साले साधु यादव ने अपने जीजा और राजद दोनों से कन्नी कटा लिया था. राजद छोड़ उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और कांग्रेस के टिकट पर गोपालगंज से लोकसभा का चुनाव लड़ा, पर कामयाबी नहीं मिल सकी. छोटे साले सुभाष यादव ने भी बुरे दिनों में लालू से किनारा कर लिया. उसके बाद उन्होंने कई दलों में जाने की बातचीत की, पर कोई बातचीत परवान नहीं चढ़ सकी. फिलहाल वह सियासत से दूर पटना के विधायक कौलोनी के अपने मकान में आराम की जिंदगी गुजार रहे हैं. उसके पहले लालू के करीबी श्याम रजक ने लालू पर यह आरोप लगा कर उनका साथ छोड़ दिया था कि लालू यादव उन्हें जातिसूचक बातों से बेइज्जत करते रहते हैं.

लालू और उनकी पार्टी राजद को सबसे बड़ा झटका फरवरी 2014 में लगा था, जब उनकी पार्टी के 13 विधायकों ने उन्हें टाटा-बाय-बाय कर दिया और तब उनके प्रतिद्वंद्वी रहे नीतीश कुमार के खेमे में जा बैठे थे. सम्राट चौधरी, राघवेंद्र प्रताप सिंह, ललित यादव, रामलपण राम, अनिरूद्ध कुमार, जावेद अंसारी जैसे कद्दावर नेताओं ने लालू का साथ छोड़ दिया था. इन नेताओं का आरोप था कि लालू ने राजद को कांग्रेस की बी-टीम बना कर रख दिया है. इस झटके से लालू उबर भी नहीं पाए थे कि उनके सबसे भरोसेमंद सिपहसालार और लालू के आंख-कान माने जाने वाले रामकृपाल यादव ने उनके ‘लालटेन’ छोड़ कर भाजपा  का ‘कमल’ थाम लिया था.

 साल 2015 में राजद के सीनियर लीडर और लालू के संघर्ष के साथी रघुनाथ झा ने भी राजद को छोड़ कर समाजवादी पार्टी का झंडा उठा लिया था. इस तरह लालू के कई करीबी और भरोसेमंद नेता बारी-बारी राजद के डगमग जहाज को छोड़ कर सियासत की नई नैया पर सवार होते गए. अब जब 10 सालों के बाद नीतीश के साथ मिल कर लालू दुबारा सत्ता में लौटे हैं तो उन्हें अपने पुराने दोस्तों और नेताओं की याद आने लगी है. तभी तो राजद के 20वें स्थापना दिवस के मौके पर उन्होंने आपने पुराने साथियों को घर वापसी को खुला न्यौता दे डाला है. अब देखना यह है कि लालू के न्यौते का उनके पुराने करीबियों पर कब तक, कैसा और कितना असर हो पाता है?

बदले-बदले से दिखने वाले लालू को अब अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का भी खासा ख्याल आने लगा है. तभी तो उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकत्ताओं की दुखती रग पर हाथ रखते हुए उन्होंने कहा कि जो अफसर राजद कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनेंगे, उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने साफ किया कि मुख्यमंत्री नीतीश के साथ बात करके अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रभुनाथ सिंह ने ठीक ही कहा था कि कार्यकर्ताओं को सम्मान नहीं मिल रहा है. आगे उन्होंने कहा कि बोर्ड और निगम का अध्यक्ष बनने की लालच में पार्टी कार्यालय में बायोडाटा जमा करने वाले कार्यकर्ताओं को फटकार लगाते हुए लालू ने कहा कि हर किसी को खुश नहीं किया जा सकता है. गौरतलब है कि राजद के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह ने अपने तकरीर में अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि राजद कार्यकर्ताओं को कई अफसर बेइज्जत करते रहते हैं. सरकार में शामिल सभी दलों में सबसे बड़ा दल होने के बाद भी राजद को दरकिनार कर रखा गया है. इससे कार्यकर्ताओं को मनोबल टूट रहा है.

इस मौके पर उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर भी जम कर तीर चलाए. उन्होंने कहा कि अडानी का 2000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया गया. रिलायंस को फायदा पहुंचाया जा रहा है. मोदी सरकार को अमीरों की सरकार करार देते हुए लालू ने कहा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत है. लालू ने अपने कार्यकर्ताओं को सचेत करते हुए कहा कि भाजपा सकरकार आरक्षण को खत्म करने की साजिश में लगी हुई है. देश को तोड़ने में लगी हुई है. उन्होंने कड़े लहजे में कहा- ऐ भाजपा वालों, लालू के शरीर के खून का हर कतरा आरक्षण को खत्म करने की साजिश रचने वालों को कामयाब नहीं होने देगा.

रामविलास का चिप उड़ा

रामविलास पासवान ने पिछले दिनों ये यह कह कर लालू को बौखला दिया है कि स्कूली पढ़ाई के दौरान लालू यादव 5 बार मैट्रिक की परीक्षा में फेल हुए थे. इसके जबाब में उन्होंने रामविलास की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि रामविलास पासवान  के दिमाग का चिप उड़ गया है. हमेशा अंट-शंट बोलते रहते हैं. रामविलास के बजाए जीतनराम मांझी को केंद्र में मंत्री बनाना चाहिए था, क्योंकि मांझी पासवान से ज्यादा प्रतिभा वाले नेता हैं. प्रधानमंत्री को उनकी बातों पर विचार करना चाहिए.

जब कोच कुंबले पड़े मुश्किल में

भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच अनिल कुंबले के कैरेबियाई दौरे की शुरूआत अच्छी नहीं रही क्योंकि एयरलाइन्स की गलती से उनका बैग लंदन में ही छूट गया था लेकिन ब्रिटिश एयरवेज ने तत्परता दिखाकर आज उनका सामान सुरक्षित सेंट कीट्स पहुंचा दिया.

टीम इंडिया जब सेंट कीट्स पहुंची, कुंबले ने हवाई अड्डे से ट्विटर पर फोटो साझा किया लेकिन उन्हें बाद में पता चला कि उनका बैग ही नहीं पहुंचा है. ब्रिटिश एयरवेज ने भी इसकी पुष्टि की थी और भारतीय कोच से बाकायदा माफी भी मांगी थी.

इस एयरलाइन्स ने हालांकि ट्वीट करके बताया कि सामान सेंट कीट्स पहुंचा दिया गया है जहां बासेटेरे में भारतीय टीम को वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड अध्यक्ष एकादश के खिलाफ दो दिवसीय अभ्यास मैच खेलना है.

ब्रिटिश एयरवेज ने फिर से रोचक अंदाज में ट्वीट किया, ‘‘अनिल कुंबले हमें यह ‘घोषित’ करते हुए खुशी हो रही है कि आपके बैग की सफल ‘डिलीवरी’ कर दी गयी है. श्रृंखला के लिये शुभकामनाएं. ’’ यह पहला अवसर नहीं है जबकि ब्रिटिश एयरवेज ने किसी भारतीय क्रिकेटर से माफी मांगी हो. पिछले साल नवंबर में दिग्गज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने अपने परिवार के एक सदस्य की टिकट कन्फर्म नहीं होने और सामान गलत स्थान पर पहुंचा देने के लिये एयरलाइन्स की खिंचाई की थी.

यही नहीं इस घटना के बाद ब्रिटिश एयरवेज ने ट्विटर पर तेंदुलकर का पूरा नाम पूछ दिया था जिस पर भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने कड़ी प्रतिक्रिया की थी.

कॉल ड्रॉप की समस्या से जल्द मिलेगा छुटकारा

कॉल ड्रॉप की समस्या जारी रहने के बीच नए दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा ने शुक्रवार को कहा कि इस मुद्दे को सुलझाना उनकी शीर्ष प्राथमिकता है. सितंबर तक मेगा स्पेक्ट्रम नीलामी पूरी होने पर अगले 4-5 महीनों में इसमें गुणवत्तापरक सुधार की उम्मीद है.

सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा, 'हमारी शीर्ष प्राथमिकता कॉल ड्रॉप का समाधान है. हमें 4-5 महीने में गुणवत्तापरक सुधार की अपेक्षा है. हम जल्द ही स्पेक्ट्रम की नीलामी करने जा रहे हैं. उम्मीद है कि सितंबर के आखिर तक यह होगी, जिससे कॉल ड्रॉप की समस्या के समाधान में मदद मिलेगी.'

दूरसंचार नियामक ट्राई के आंकड़ों के अनुसार कॉल ड्रॉप की समस्या वित्त वर्ष 2015 के आखिर में दोगुनी हो गई जबकि जनवरी मार्च तिमाही में उद्योग औसत बदतर होकर 12.5 प्रतिशत हो गया जो मार्च 2014 में 2जी नेटवर्क पर 6.01 प्रतिशत था. सिन्हा ने कहा, 'स्पेक्ट्रम नीलामी का कुल आरक्षित मूल्य लगभग 5.66 लाख करोड़ रुपये रहना अनुमानित है. हम इसे पारदर्शी तरीके से करेंगे.' सरकार को 1.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बोली मिली है. बोली पूरी होने के बाद ही में पता चलेगा कि सरकार को कितनी राशि मिलने जा रही है.'

विंबलडन में बड़ा उलटफेर, फेडरर बाहर

कनाडा के पुरुष टेनिस खिलाड़ी मिलोस राओनिक ने कड़े मुकाबले में पूर्व विश्व नंबर-1 खिलाड़ी स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर को हरा कर साल के तीसरे ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट विंबलडन के पुरुष एकल के फाइनल में प्रवेश कर लिया.

राओनिक पहली बार विंबलडन के फाइनल में पहुंचे हैं. सेन्टर कोर्ट पर खेले गए मुकाबले में सातवीं वरीय राओनिक ने तीसरी वरीय फेडरर को 6-3, 6-7(3-7), 4-6, 7-5, 6-3 से शिकस्त दी. यह मुकाबला तीन घंटे 24 मिनट तक चला.

राओनिक ने पहला सेट अपने नाम किया, लेकिन फेडरर ने जबरदस्त जोर लागते हुए अगले दो सेट में जीत कर वापसी की.

इसके बाद अगले दो सेटों में दोनों खिलाड़ियों ने शानदार टेनिस से दर्शकों का मनोरंजन किया. फेडरर हार नहीं मानने वाले थे और पूरा जोर लगा रहे थे, वाबजूद इसके राओनिक ने फेडरर से चौथा सेट जीत 2-2 से बराबरी कर ली.

पांचवें और निर्णायक सेट में फेडरर कुछ खास नहीं कर पाए और राओनिक ने 6-3 से यह सेट जीत पहली बार विंबलडन के फाइनल में प्रवेश किया.

17 ग्रैंड स्लैम हासिल करने वाले फेडरर को इस साल अपने पहले ग्रैंड स्लैम का इंतजार है. उन्होंने इस साल इससे पहले आस्ट्रेलियन ओपन में हिस्सा लिया था जिसमें वह सेमीफाइनल से बाहर हो गए थे. फ्रेंच ओपन में चोटिल होने के कारण उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था. विंबलडन में उनका यह सपना अधूरा रह गया.

2012 के बाद से यह दिग्गज खिलाड़ी एक भी ग्रैंड स्लैम हासिल नहीं कर पाया है. 2012 में उन्होंने विंबलडन पर ही कब्जा जमाया था.

फेडरर को मात देने वाले राओनिक फाइनल में चेक गणराज्य के थॉमस बर्डिच और ब्रिटेन के एंडी मरे के बीच होने वाले मैच के विजेता से भिड़ेंगे.

तो क्या भारत पर लग जाएगा व्यापारिक बैन…?

अमेरिका ने पॉल्ट्री मीट, अंडों और पिग्स के आयात पर लगाई गई पाबंदियों के विवाद में जीत हासिल करने के बाद विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से भारत पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की है. डब्ल्यूटीओ ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. डब्ल्यूटीओ की ओर से जारी किए गए अजेंडा के मुताबिक अमेरिका ने 19 जुलाई को भारत से मुआवजा हासिल करने के दावे के लिए 19 जुलाई को मीटिंग किए जाने का अनुरोध किया है.

अजेंडा में विस्तार से जानकारी नहीं दी गई है. लेकिन अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यायल ने इससे पहले कहा था कि यदि भारत पाबंदियों को हटा लेता है तो यूएस की ओर से पॉल्ट्री मीट का निर्यात 300 मिलियन डॉलर के स्तर को पार कर जाएगा. यही नहीं भारत के खानपान में सुधार और क्रय शक्ति में इजाफे के चलते यह लगातार बढ़ता जाएगा.

अमेरिका ने इस मामले में पिछले साल जून में जीत हासिल की थी, जब डब्ल्यूटीओ के अपीलीय प्राधिकरण ने भारतीय पाबंदियों को भेदभावपूर्ण करार दिया था. डब्ल्यूटीओ ने कहा था कि भारत की ओर से बर्ड फ्लू को खतरा बताते हुए आयात पर प्रतिबंध लगाए जाने की बात अप्रमाणित तथ्यों पर आधारित है.

डब्ल्यूटीओ ने इस फैसले को मानने के लिए भारत को 12 महीने का वक्त दिया था.

इस पुलिसवाली की इन HOT तस्वीरों ने इंस्टाग्राम पर मचा दिया धमाल

कहते हैं कि शरीर की सुंदरता से क्या होता है, मन सुंदर होना चाहिए. लेकिन मन की सुंदरता की पहली सीढ़ी ही है शरीर की सुंदरता. सुंदर दिखने की चाह सबको होती है. ज्यादातर लोग चेहरे को सुंदर बनाने की जुगत में लगे रहते हैं और उनके उपाय लीपा-पोती के अलावा कुछ भी नहीं है और इन उपायों से कभी भी स्थायी सुंदरता नहीं मिलती.

लेकिन यहां हम आपको सुंदरता या आकर्षक दिखने पर कोई लेक्चर नहीं देने वाले हैं, बल्कि हम आपको एक ऐसी पुलिस ऑफिसर की तस्वीरें दिखाने जा रहें हैं, जिसने अपनी सुन्दर काया से Instagram पर खूब वाहवाही बटोरी है.

जर्मनी की Adrienne Kolesza 31 साल की हैं और पुलिस ऑफिसर हैं. Adrienne बेहद खूबसूरत हैं. आजकल वो अपनी सेक्सी बॉडी के कारण Instagram पर बहुत फेमस हो गईं हैं. उनके इस टाइम 1,00,000 फॉलोवर्स हैं. इतना ही नहीं उनके कुछ फॉलोवर्स ने तो उनको कमेंट भी किया है कि वो उनके हाथों गिरफ़्तार होना चाहते हैं.

तो आइये अब आपको दिखाते हैं उनकी बेहतरीन तस्वीरें.

नाकाम साबित हुआ रोजगार का वादा

‘मित्रो, अगर हम सत्ता में आते हैं, तो हर साल 2 करोड़ रोजगार पैदा करेंगे. 4 करोड़ हाथों को हर साल काम मिलेगा. देश में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन कहीं कुशलता नहीं है, कहीं कनैक्शन नहीं है. हम 10 करोड़ नौजवानों को स्किल ट्रेनिंग दिला कर उन्हें महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन में बदल देंगे.’ साल 2014 में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी एक जगह नहीं, बल्कि सैकड़ों जनसभाओं में इसी तरह के भाषण दिए थे. उन के तकरीबन सभी भाषणों में नौजवान और उन के लिए रोजगार के सतरंगी सपने शामिल होते थे. ऐसा नहीं है कि इस सरकार ने चुनावों के दौरान किए गए किसी भी वादे को पूरा नहीं किया है, लेकिन जहां तक रोजगार के वादे का सवाल है, तो अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी यह सरकार इस मोरचे पर जबरदस्त तरीके से नाकाम हुई है. यह पहला ऐसा मौका है, जब देश में बढ़ती बेरोजगारी ने नौजवानों या उन के मांबाप को ही नहीं, बल्कि अर्थशास्त्रियों और भविष्य की आर्थिक योजनाएं बनाने वाले नौकरशाहों तक को डरा दिया है.

बेरोजगारी अपनी हद पर है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि यह महज इस सरकार की नाकामी का नतीजा है. इस की बुनियाद में भले ही तमाम वजहें हों, पर इस में कोई दोराय नहीं है कि फिलहाल रोजगार पैदा करने में बुरी तरह से नाकाम रहे हालात और योजनाओं का ठीकरा इस सरकार के सिर पर ही फूटेगा.

दरअसल, यह बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी का ही कौकटेली असर था कि पिछले लोकसभा चुनावों में आम मतदाताओं ने भाजपा को जबरदस्त बहुमत से संसद में पहुंचाया था. शायद इस के पीछे मंशा यह रही होगी कि अगर दूसरी पार्टियां समझौते की हालत में भाजपा को खुल कर काम न करने दें, तो भाजपा को इतनी सीटें मुहैया करा दी जाएं कि वह बिना किसी रुकावट के अपने किए गए वादों को पूरा कर सके. लेकिन कम से कम रोजगार के मोरचे पर तो ऐसा बिलकुल मुमकिन नहीं हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों के काफी पहले से ही देश के तमाम कालेजों, पढ़ाईलिखाई के दूसरे संस्थानों में जाजा कर छात्रों को जोरदार तरीके से रोजगार दिलाने वाले भविष्य के सपने दिखाए थे. नौजवानों को ही नहीं, बल्कि तमाम कारपोरेट माहिरों को भी अंदाजा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार भले किसी और मोरचे पर आमूलचूल ढंग से बदलाव न कर पाए, लेकिन रोजगार के मोरचे पर वह जरूर अच्छे नतीजे देगी, ताकि नौजवानों के बीच अपनी शानदार इमेज बना सके.

लेकिन यह भी एक सच है कि भले ही तमाम ढांचागत सुधारों की दिशा में इस सरकार ने पहले की सरकारों के मुकाबले ज्यादा साहसी कदम उठाए हों, भले ही इस समय हमारा विदेशी मुद्रा भंडार इतिहास के किसी भी समय के मुकाबले कहीं ज्यादा लबालब हो और भले ही पिछले गुजरे 2 साल विदेशी निवेश के मामले में भी अच्छे रहे हों, इन तमाम बातों के बावजूद सचाई यही है कि रोजगार के मोरचे पर यह सरकार बुरी तरह से नाकाम साबित हुई है. हालांकि इस के लिए इस सरकार की कोई सैद्धांतिक गलती नहीं है, वक्त ही कुछ ऐसा है कि रहरह कर दुनिया को बारबार मंदी का साया अपनी गिरफ्त में ले रहा है. इस समय देश में जितनी बेरोजगारी है, हाल के 20 सालों में उतनी कभी नहीं रही. मोदी सरकार भी इस से चिंतित है, क्योंकि सरकार द्वारा ही जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में इस समय कुल आबादी के 11 फीसदी से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं, जिस का मतलब यह है कि भारत में आस्ट्रेलिया की कुल आबादी के 4 गुना ज्यादा लोग बेरोजगार हैं. इसे दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि भारत में 4 बेरोजगार आस्ट्रेलिया मौजूद हैं.

अलगअलग किए गए सर्वे की बात करें, तो देश में 43 फीसदी लोग यह मानते हैं कि मोदी सरकार के 2 सालों के कार्यकाल में बेरोजगारी के दर में जरा भी कमी नहीं आई, बल्कि यह बढ़ी ही है. तकरीबन 48 फीसदी लोग तो यह भी मानते हैं कि यह सरकार रोजगारों को पैदा करने और जिंदगी को बेहतर बनाने वाली परियोजनाओं में पिछली सरकारों के मुकाबले कम रकम खर्च कर रही है. लोगों में गुस्सा और चिंता इस बात की भी है कि मोदी सरकार देश के लिए बेहद गैरजरूरी मुद्दों पर फोकस कर रही है, जिस में न केवल बड़े लैवल पर उस का कीमती समय बरबाद हो रहा है, बल्कि अच्छाखासा खर्च भी आ रहा है.

विपक्षी दल कांगे्रस भी आंकड़ों के जरीए बताने की कोशिश कर रही है कि मौजूदा राजग सरकार पिछली संप्रग सरकार के मुकाबले रोजगार पैदा करने वाली परियोजनाओं में कम रकम खर्च कर रही है. मसलन, कांगे्रस के आंकड़ों के मुताबिक, संप्रग सरकार ने साल 2013-14 में रोजगार पैदा करने वाली अलगअलग परियोजनाओं में 1,76,377 करोड़ रुपए खर्च किए थे, जबकि मौजूदा राजग सरकार ने साल 2014-15 में महज 1,51,688 करोड़ रुपए ही खर्च किए. हो सकता है इन आंकड़ों में अपने किस्म की बाजीगारी हो, लेकिन इस बात से कोई नजरें नहीं चुरा सकता है कि आज की तारीख में 20 से 25 साल का हर चौथा भारतीय नौजवान बेरोजगार है.

बेरोजगारी का यह आंकड़ा सचमुच खौफनाक है, क्योंकि कोई देश अपने 25 फीसदी बेरोजगार नौजवानों के रहते हुए शांति और तरक्की की कामना नहीं कर सकता.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 24 करोड़ हाथों के पास करने के लिए कोई काम नहीं है. यह डरावना सच है, जो भविष्य के किसी भी इंद्रधनुषी सपने को पलभर में चकनाचूर कर सकता है, इसलिए अपनी तमाम बुराइयों और उपलब्धियों के बयानों के बीच सरकार को इस खतरनाक सच को बेमतलब का बनाना ही होगा, नहीं तो अपनी इमेज गढ़ने में यह सरकार कितनी ही कुशल क्यों न हो, मतदाताओं को खुद के मोह भंग से किसी भी तरह से नहीं रोक पाएगी.       

                     

घर छोड़ने को भी हवा दे रही है बेरोजगारी

किसी भी देश में लोगों के अपने घर छोड़ने यानी पलायन करने की यों तो कई वजहें होती हैं, लेकिन एक सब से बड़ी वजह बेरोजगारी है. भारत की बात करें तो आज की तारीख में बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा बेरोजगारी है. इस के चलते यहीं से सब से ज्यादा लोग घर छोड़ रहे हैं. बिहार की हालत सब से बुरी है. 54 फीसदी से ज्यादा बिहारी नौजवान किसी न किसी वजह से अपने घर और गांव से जा चुके हैं. देश के सभी बड़े शहरों में जहां रोजगार मिल जाता है, वहां सब से ज्यादा इन्हीं 5 प्रदेशों के लोग पहुंच रहे हैं. दरअसल, घर छोड़ने के पीछे और भी कई वजहें होती हैं, जैसे अशिक्षा, गुलामी या निजी सपने. साल 1991 से साल 2001 के बीच देश में 30 करोड़, 90 हजार से ज्यादा लोगों ने घर छोड़ा था, जिस का मतलब यह था कि वे किसी न किसी वजह से अपने प्रदेश को छोड़ कर दूसरे प्रदेशों या देशों तक रोजगार हासिल करने के लिए गए थे. हाल के सालों में घर छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले लोगों की तादाद में लगातार इजाफा हुआ है. साल 2001 में महाराष्ट्र आने वाले लोगों की तादाद 20 लाख सालाना से ऊपर थी, जबकि हैरानी की बात यह है कि हरियाणा में इन दिनों में 67 लाख से ज्यादा लोग पहुंचे.

पिछले कुछ सालों में अब तक के ट्रैंड से अलग बडे़ पैमाने पर किशोरों और किशोरियों का भी अपने प्रदेश से भागना हुआ है. झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ वे राज्य हैं, जहां से पिछले 5 सालों के भीतर 30 लाख से ज्यादा किशोरों और किशोरियों ने मजबूरी में अपना घर छोड़ा है. वैसे, जब महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना बनी थी, उस का एक मकसद यह भी था कि इस की मौजूदगी से बेरोजगारों को अपने घर छोड़ कर छोटेमोटे कामों के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन इस योजना में तमाम किस्म की धांधलेबाजी के चलते यह घर छोड़ने को पूरी तरह से रोकने में नाकाम रही. हालांकि फिर भी इस की मौजूदगी से पिछले 5 सालों में 3 करोड़ से ज्यादा मजदूरों का घर छोड़ना रुका है. अकेले झारखंड में ही साल 2006 से साल 2012 के बीच 42 लाख से ज्यादा काम के दिनों का रोजगार मुहैया कराया गया, जिस से 17 लाख से ज्यादा मजदूरों को मजदूरी के लिए अपना घरपरिवार नहीं छोड़ना पड़ा.

इस के बावजूद बेरोजगारी के दबाव में हर साल लाखों मजदूरों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक का सफर करना पड़ता है, जहां ये लोग बेहद मुश्किल हालात में काम करने के लिए मजबूर होते हैं. मौजूदा केंद्र सरकार इस को रोक पाने में नाकाम है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान बारबार याद दिलाया था कि तकरीबन 60 सालों तक सत्ता में रही कांगे्रस ने रोजगार के लिए घर छोड़ने को रोकने का कोई कार्यक्रम नहीं बनाया था. उन की सरकार ऐसे गैरजरूरी घर छोड़ने को जल्द से जल्द रोकेगी, मगर इन 2 सालों में तो वह जल्द से जल्द आती कभी नहीं दिखी.

सपने भी हैं बेरोजगारी की वजह

भारत में बेरोजगारी इसीलिए नहीं है कि रोजगार का कोई जरीया ही नहीं है, बल्कि बेरोजगारी की एक बड़ी वजह यह भी है कि तमाम लोगों को उन की काबिलीयत और शख्सीयत के हिसाब से रोजगार नहीं हासिल हो रहा है, इसलिए वे माकूल रोजगार का इंतजार कर रहे हैं. इसे आप बेहतर मौके की तलाश में गैरजरूरी बेरोजगारी भी कह सकते हैं. देश में तकरीबन एक करोड़, 19 लाख लोग इसलिए भी बेरोजगार हैं.

दरअसल, देश में हर साल रोजगार पाने वालों की फौज में एक करोड़, 91 लाख लोगों का इजाफा हो जाता है, जबकि पिछले 3 सालों से 50 लाख रोजगार भी पैदा नहीं हो रहे हैं. यही वजह है कि देश में लगातार बेरोजगारी का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. विपक्ष के नेताओं का ही नहीं, बल्कि अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि बेरोजगार नौजवान देश के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकते हैं. अगर इन बे जगार नौजवानों के लिए तुरंत कोई हल नहीं निकलता है, तो यह समस्या सरकार के कामकाज के दूसरे पहलुओं पर भी जबरदस्त ढंग से असर डालेगी.

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सैंटर फौर द स्टडी औफ रीजनल डैवलपमैंट के अमिताभ कुंडू के मुताबिक यह हालत खतरे की घंटी है, क्योंकि भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने वाले बड़े पैमाने पर वे नौजवान थे, जो बेहतर रोजगार की उम्मीद लगाए बैठे थे. मगर मौजूदा सरकार रोजगार बढ़ाने वाले उद्योग लगाने में नाकाम रही है. सरकार की कौशल विकास योजना भी अच्छे नतीजे नहीं दे पा रही है, क्योंकि बाजार में रोजगार ही नहीं हैं, इसीलिए अगर नौजवानों का कौशल विकास भी हो गया, तो वह धरा का धरा रह जाएगा.

पढ़ाई-लिखाई में पिछड़ते बच्चे, कुसूरवार कौन

तमाम तरह की सहूलियतें मिलने के बावजूद सरकारी प्राइमरी स्कूलों से ले कर बड़े स्कूलों के छात्र पढ़ाईलिखाई में पिछड़ रहे हैं और राज्य सरकारें यह ढिंढोरा पीट रही हैं कि उन के यहां साक्षरता दर बढ़ी है. सही माने में आज 7वीं 8वीं जमात के छात्रों को ठीक ढंग से जमा, घटा, गुणा, भाग के आसान सवाल भी हल करने नहीं आते हैं. अंगरेजी भाषा के बारे में तो उन का ग्राफ बहुत नीचे है. वे हिंदी भी नहीं लिख सकते हैं, न ही आसानी से पढ़ सकते हैं. क्या है इस की वजह? स्कूलों में तख्ती लिखने को खत्म कर देने के चलते आज ज्यादातर छात्रों की लिखाई पढ़ने में ही नहीं आ पाती है. ऐसे छात्रों की नोटबुक जांच करने में टीचरों को खूब पसीना बहाना पड़ता है.

सालों पहले तख्ती लिखने पर बहुत जोर दिया जाता था, ताकि बचपन से छात्रों की लिखाई सुंदर हो और उन को वर्णमाला की पहचान हो सके. तब होमवर्क के तौर पर उन को तख्ती लिखने के लिए बढ़ावा दिया जाता था. अगले दिन टीचर उन छात्रों की तख्तियों की जांच करते थे. कच्ची छुट्टी यानी स्कूल इंटरवल में छात्र उन तख्तियों को धोते थे और दोबारा तख्ती लिखते थे. अब यह बीते जमाने की बात हो गई है. अब तो पहली जमात का छात्र भी जैलपैन या बालपैन का इस्तेमाल करना अपनी शान समझता है. यही वजह है कि छात्रों की लिखाई अच्छी नहीं बन पाती है और इम्तिहान में उन के नंबर कम हो जाते हैं. कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन होता है. यह कहावत तब कसौटी पर खरी उतरेगी, जब प्राइमरी स्कूलों के छात्रों को पढ़ाईलिखाई के साथसाथ खेलों के लिए भी वक्त दिया जाएगा.

प्राइमरी स्कूलों में पीरियड सिस्टम ही नहीं है, इसलिए यह टीचर की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह पूरे दिन किसकिस सबजैक्ट को कितनी देर पढ़ा कर बच्चों को बीच में रिलैक्स करने के लिए कह दे. सरकारी स्कूलों में खेल पीरियडों के लिए कोई खास तवज्जुह नहीं दी गई है. अगर खेल पीरियड का इंतजाम हो तो बच्चों में पढ़ाईलिखाई के साथसाथ खेलकूद में भी अच्छा तालमेल हो जाएगा. जहांजहां प्राइमरी स्कूलों के साथ मिडिल, हाई या सीनियर सैकेंडरी स्कूल हैं, वहां बच्चों के लिए स्पोर्ट्स पीरियड भी होता है. बड़े स्कूल के छात्र जब मैदान में खेलते हैं, तब प्राइमरी स्कूल के छात्रों का मन भी खेलने को करता है, पर वे अपने मन की बात किसी से नहीं कह पाते हैं.

ऐसे छात्रों को सिर्फ इतना पता होता है कि उन का स्कूल सुबह 9 बजे लगता है और उन की 3 बजे छुट्टी होती है. इस बीच उन्हें दोपहर 12 बज कर 20 मिनट से 1 बजे तक का वक्त दोपहर के भोजन के लिए मिलता है यानी स्कूल के 6 घंटों के बीच उन्हें खेलने के लिए समय कोई पीरियड नहीं मिलता है. हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो एक जिले में डिप्टी डायरैक्टर, ऐजूकेशन ने फरमान जारी किया है कि पहली से  5वीं जमात तक के छात्रों की इकट्ठे ही 3 बजे छुट्टी की जाए. ऐसे डिप्टी डायरैक्टर को कैसे समझाया जाए कि पहलीदूसरी जमात के छात्र इतनी लंबी सिटिंग नहीं कर सकते हैं. उन के लिए तो यह बोरियत भरा काम हो जाएगा.

इन स्कूलों में डिक्टेशन का चलन भी खत्म हो गया है. डिक्टेशन से एक ओर जहां बच्चों को सही रूप से लिखने का अभ्यास होता है, वहीं दूसरी ओर उन के लिखने की रफ्तार बढ़ती है और शब्दों का उच्चारण भी सही ढंग से होता है. उन की गलतियों को सुधारने की गुंजाइश बनी रहती है और वे इम्तिहान में अच्छे ढंग से लिख कर तय समय में पूरे सवाल हल कर पाते हैं. पहले प्राइमरी स्कूलों में हर शनिवार को आधी छुट्टी के बाद बाल सभा कराई जाती थी, जिस में छात्र बड़े जोश के साथ कविता, एकलगान व एकांकी जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे. उन को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता था.

पर अब ये बातें यादों का हिस्सा बन गई हैं. अब तो टीचरों को ऐसा लगता है कि इस तरह के आयोजनों का मतलब है समय को बरबाद करना, जबकि इस तरह के आयोजनों से छात्रों का खुद पर यकीन बढ़ता है और उन में कुछ नया कर दिखाने की ललक बढ़ती है. हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की बात की जाए, तो यहां 5 शिक्षा खंड, सदर, घुमारवीं एक, घुमारवीं द्वितीय, स्वारघाट व झंडूता शिक्षा खंड हैं. पूरे जिले में कुल 593 प्राइमरी स्कूल हैं.

सदर शिक्षा खंड के तहत 153 स्कूल हैं और छात्रों की तादात 4101, घुमारवीं एक शिक्षा खंड में 106 स्कूल, घुमारवीं द्वितीय शिक्षा खंड में 92 स्कूल और छात्रों की तादाद 2561 है. स्वारघाट शिक्षा खंड में 120 स्कूल व छात्रों की तादाद 3523 है, जबकि झंडूता शिक्षा खंड में स्कूलों की तादाद 122 है और इन में 3521 छात्र पढ़ रहे हैं. पर पिछले साल ही जिस डिप्टी डायरैक्टर, प्राइमरी स्कूल ने इस जिले में काम संभाला है, उस शख्स का नाम है पीसी वर्मा. उन्होंने स्कूलों का धड़ाधड़ निरीक्षण कर के प्राइमरी स्कूलों के उन टीचरों के छक्के छुड़ा दिए हैं, जो स्कूलों के लिए बोझ बने हुए हैं. पीसी वर्मा ने दूरदराज के इलाकों में बने स्कूलों में दस्तक दे कर उन टीचरों को यह कड़ा संदेश दिया है कि वे छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ न कर के अपने फर्ज का पालन करें. पीसी वर्मा ने 29 दिसंबर, 2015 को सदर शिक्षा खंड के तहत आने वाले ‘सिहड़ा’ व ‘सिहड़ा खास’ स्कूलों में निरीक्षण के दौरान छात्रों की पढ़ाईलिखाई का लैवल जांचा, जो कसौटी पर खरा उतरा, जबकि 12 फरवरी, 2016 को बागी प्राइमरी स्कूल व 25 फरवरी, 2016 को पंजगाई स्कूल में खामियां पाई गईं. उन्होंने टीचरों को इस के लिए कुसूरवार ठहराया.

सदर खंड के खंड प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी बनारसी दास का कहना है कि वे नियमित तौर पर स्कूलों का निरीक्षण करते हैं और जो टीचर ड्यूटी के प्रति कोताही बरतता है, उस पर कार्यवाही की जाती है. सदर खंड के खंड स्रोत केंद्र समवन्यक राजेश गर्ग का कहना है कि पढ़ाईलिखाई में क्वालिटी लाने के लिए सभी एकजुट हो कर कोशिश करें, तो उस के नतीजे अच्छे रहते हैं. जिन टीचरों का काम अच्छा होता है, उन को तरक्की मिलनी चाहिए और जो अपने फर्ज के प्रति लापरवाह रहते हैं उन की डिमोशन होनी चाहिए. समाजसेवी दया प्रकाश कहते हैं कि अफसर चाहे जितने भी निरीक्षण कर लें, सूचना पहले ही लीक हो जाती है और मोबाइल क्रांति द्वारा सबकुछ दुरुस्त हो जाता है. ऐसे में छात्र पढ़ाईलिखाई में पिछड़ते रहेंगे. ढुलमुल सरकारी नीतियां भी इस के लिए जिम्मेदार हैं. 

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