मृणाल  अपने भाई की शादी में शामिल होने जब स्वीडन से इंडिया आई तो उसके क्लासफेलो तुषार  ने बताया कि  पापा तुम्हारे  घर, मेरा जरूरी  सामान रख जायेगे, तुम जरुर से ले आना . तुषार के पापा, एक छोटे ट्राली बैग में सामान दे गये और उसे खोल कर दिखाया भी .सामान देखकर सभी का मुहँ खुला रह गया .मास्टर्स करने वाले स्टूडेंट के लिये, मैगी भरा ट्राली बैग लेकर आये थे .तुषार के पिताजी ने बताया कि अचानक ही उसने विदेश से मास्टर्स करने का प्रोग्राम बना लिया .जब वहां पहुँचा तो पता चला भारतीय भोजनालय बहुत महँगे हैं .उसे ब्रेड और अंडे उबाल कर खाने पड़े .अपना स्वाद बदलने को मैगी बनाकर खा  लेता हैं.

तुषार के पापा के जाते ही ,मृणाल ने बताया कि “तुषार को यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि मैं रोज दाल , चावल, सब्जी ,रोटी बनाती हूँ . मुझसे बार बार यही पूछ रहा था क्या तुम रोज खाना बना कर कॉलेज आती हो .?बेचारा माँ का लाडला .अब मैं भी वहां पढ़ाई करने गयी हूँ ,कोई रेस्ट्रा खोलने तो गयी नहीं हूँ कि रोज उसे दावत दूँगी .कभी आलू का पराठा बनाती हूँ तो उसके लिए भी ले जाती हूँ ” .

मृणाल की बात से सभी सहमत थे कि पढ़ाई के अतिरिक्त घरेलू कार्यो की ट्रेनिग भी बहुत जरूरी हैं .आजकल सभी बच्चे दसवीं ,बारहवी के बाद दूसरे शहरों या फिर विदेशों का रुख करने लगे हैं .ऐसे में उन्हें घर की साफ़ सफाई ,खाना बनाना ,राशन व् सब्जी की खरीददारी ,बेंकिंग इसके अतिरिक्त स्कूटी ,मोटर सायकिल ,कार आदि चलाने की ट्रेनिग नहीं मिली होती हैं तो उन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता हैं .

ऋषभ रोज मोहित के घर,  स्कूटी से आता और उसे लेकर, साथ ही  कॉलेज को निकल जाता .एक दिन वापसी के समय स्कूटी , सड़क किनारे  बजरी के ढेर  से, फिसल कर गिर गयी .ऋषभ की कोहनी छिल गयी. उसने मोहित से कहा   ” चल आज तू मुझे घर छोड़ देना “

.मोहित ने ऋषभ को उसके  घर छोड़ दिया और खुद स्कूटी लेकर, अपने  घर आ गया .जब यह घटना मोहित के पापा को पता चली जो जिला अस्पताल में डॉक्टर हैं ,उन्होंने मोहित को रोड एक्सीडेंट के ऊपर एक घंटे का लेक्चर दिया. सड़क दुर्घटना के सैकड़ो उदाहरण देकर, उसका ऋषभ के साथ कॉलेज जाना बंद करा दिया .उसे खुद कार से  छोड़कर आते या फिर ऑटो से जाने को कहते .जब   मोहित ने कार चलाने की जिद करी तो उसे कार का मैन्युअल पकड़ा दिया कि पहले इसे समझों फिर कार की स्टीयरिंग को हाथ लगाना .आज इस बात को चार साल बीत गए हैं मोहित न तो स्कूटी ही चलाना शुरू कर पाया न ही कार .ऐसी “एक्स्ट्रा केयर पेरेंटिंग” भी किस काम की जो बच्चों को पंगु बना दे .

ऋद्धि , मीनल ,संयुक्ता और धारावी अलग अलग स्टेट से ,ऍम एल सी को ज्वाइन करने चेन्नई पहुँची .उनका पी .जी कॉमन  था .मीनल और संयुक्ता ने पन्द्रह दिन बाद ही, टिफिन सेवा बंदकर ,खुद से खाना बनाना शुरू कर दिया. उन्हें टिफिन की  सब्जी में करी पत्ता ,सरसों का तड़का और नारियल का तेल का प्रयोग पसंद नहीं आया. जबकि ऋद्धि और धारावी  मन मारकर वही  खाना खाने को मजबूर थी. किचन में गैस चूल्हा और बर्तनों की सुविधा होते हुए भी ,वे खुद खाना बनाकर नहीं खा  सकती थी. उन्हें तो दालों और हरी सब्जियों में अंतर करना भी नहीं आता था  .

एक दिन मीनल को मटर पनीर बनाते देखकर उनसे रहा न गया. ऋद्धि  पूछ बैठी

“यार हमारे घर में तो कहते थे पढ़ाई करो पढ़ाई करो ,यहाँ किचन में तुम्हारा क्या काम ? तूने ये सब कब सीख लिया ?”

“ मेरी मम्मी के पास ,तुम किचन में खड़ी होकर देखना जरा ,कुछ न  कुछ काम तुम्हें भी बता देंगी .मैं तो जब भी पढ़ाई से ब्रेक लेकर ,मम्मी के पास बैठती या टी .वी देखती तो वो तुरंत मटर छीलना ,आटा गूंथना  या फल ,सलाद काटने का काम दे जाती .बातों बातों में, ये सब कब सीख लिया, पता ही नहीं चला .बी टेक में तो समर वेकेशन ,विंटर ब्रेक भी लम्बे होते थे ,ऐसे में हॉस्टल से, जब भी घर जाती ,मम्मी नई नई डिश सिखाती .डिश खऱाब बनाने पर भी ,ऐप्रिश्येत ही करती . फिर तो खाना बनाने का ऐसा चस्का लगा कि  खुद के लिए पकाना मुझे कभी काम लगता ही नहीं, बल्कि अपने हाथ का पका ,खाकर ही संतुष्टि मिलती हैं ”

धारावी भी बोल पड़ी “मेरी मम्मी तो हमेशा मुझे डरा कर रखती ,चाक़ू ठीक से पकड़ो ,गैस से दूर रहो ,इतना तेल क्यों डाला ,आटा गीला कर दिया ,यही सब सुन सुनकर मैं तो रसोई से दूर भागने लगी .अब तो मुझे खाना बनाना पहाड़ तोड़ने के बराबर लगता हैं ”

उसकी बातें सुनकर चारों खिलखिला उठी .तभी मीनल ने कहा

“यार शादी के बाद या जब भी पी जी से अलग, अपना फ्लेट लोगी तो फिर बाई रख लेना ”

“वो तो ठीक हैं मगर बाई को बतायेगी क्या कि कैसे पकाना हैं? फिर तो उसी के हिसाब से खाना पड़ेगा ” संयुक्ता धारावी का मजाक बनाते हुए बोल पड़ी .

अक्षरा की रुममेट उससे बहुत परेशान रहती हैं हर दिन उसका कोई न कोई सामान खोया रहता जिसे ढूंढने के लिए वो पूरा कमरा अस्त व्यस्त, कर देती .एक दिन उसका सब्र खत्म हो ही गया .वो अक्षरा पे बरस पड़ी .

“ क्या यार तू अपने घर में भी ऐसे ही सामान फैलाती थी  या यही फैलाती हो   ”

“वहां तो मेरी मम्मी ही मेरा कमरा सजा कर रखती थी .मैं सुबह स्कूल जाते समय कितना भी सामान बिखेर दूँ घर वापस आने पर मुझे फिर सब सेट  मिलता था  ” अक्षरा मासूमियत से बोली

“ तभी तो तुम्हारी आदते इतनी खराब हो गयी हैं .अपना समय तो बर्बाद करती ही  हो ,कमरे की सूरत भी बिगाड़ कर रख देती हो, हमें तो अपनी अल्मिरा और रूम साफ रखने पर मम्मी से स्पेशल गिफ्ट मिलता था इसी से हम दोनों भाई बहिन को अपनी चीज़े सम्भाल कर व्यवस्थित ढंग से रखना सीख लिया   ”

आत्मनिर्भर बनने के लिए  ,अलग से कोई कोचिंग लेनी नहीं पड़ती बल्कि घर के कामों से  ही ट्रेनिग ली जा सकती हैं .

अपने कमरे के सामानों को व्यवस्थित कर रखे . वस्त्रों मे डेली वियर ,इनर वियर व् पार्टी वियर की जगह निर्धारित करें . कमरों के साथ वाशरूम की भी सफाई करना सीखे .

बाजार से राशन ,सब्जी की खरीददारी में ताजे बासी में अंतर ,दालों की पहचान ,पालक ,मेथी ,सरसों जैसे हरे शाक की पहचान करना सीख ले  .

बेंकिंग के कार्य ऑनलाइन  हो या ऑफलाइन, उन्हें संचालित करने में अपने अभिभावकों की मदद करें और निपुण बने ..

दो पहिया और चार पहिया वाहन  यदि घर में उपलब्ध हो तो अपने अभिभावकों की मदद से सीखे नहीं तो ट्रेनर की मदद भी ली जा सकती हैं  .

अपने लिए चाय काफ़ी ,खिचड़ी ,दाल चावल ,सब्जी, रोटी आदि बनाना घर से ही सीखें और नई डिश बना कर सबको चौका दें .

मिक्सी ,वाशिंग मशीन ,माइक्रोवेव आदि उपकरणों का प्रयोग करना सीख कर समय का सदुपयोग करें व् आधुनिक समय के साथ चलें .

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