गृहस्वामी और उन की पत्नी ने गृहप्रवेश की सारी तैयारियां पूरी कर लीं. जानने वालों को मिठाईयां और रिश्तेदारों को मिठाईयों के साथ कपड़े देना भी निर्धारित हो गया था. वहां पहुंच कर देखा तो हैरत हुई. अकेले ही बुदबुदाई,'इतने बड़े घर के लिए तो भवन प्रवेश नाम देना चाहिए था.' गृहस्वामिनी को अपनी तरफ आते देखा तो मैं ने आगे बढ़ कर मुबारकबाद देते हुए कहा, “आप को गृहप्रवेश की हार्दिक शुभकामनाएं.” “थैंक यू सो मच,”आत्मीयता से गले मिल कर आगे बढ़ गईं गृहस्वामिनी. एक तरफ और्केस्ट्रा, तो दूसरी तरफ लजीज व्यंजनों के कांउटर। खा कर आनंदित हुई. मैं ने शगुन के लिफाफे में ₹500 का नोट डाला. गृहस्वामिनी को जैसे ही शगुन का लिफाफा देने लगी उन्होंने मुझे एक पैकेट थमाते हुए कहा ,”मेरी तरफ से एक प्यार भरी भेंट है आप के लिए.“
स्वीकार कर के गाड़ी में बैठी. पैकेट खोला। मिठाई के साथ ₹2000 का नोट था. एक पल को उन की उदारता और अपनी कृपणता से मेरी आंखें झुक गई थीं फिर अगले ही पल याद आया कि पिछले दिनों ₹2000 के नोट बंद हो गए हैं... ओह, फिर से डिमोनिटाइजेशन... मेरे कानों में 7 साल पुराना 8 नवंबर की शाम का वह भाषण वैसे ही गूंज गया जैसे ढोल की थाप कान की दीवारों में कांपने लगती है. प्रधानमंत्रीजी ने तब ₹500 और ₹1000 के नोट रात 12 बजे से बंद करने का ऐलान किया था. उस के ठीक 2 दिन बाद मेरा विवाह था. पापा ने विवाह में खर्च करने के लिए उसी दिन ₹3 लाख बैंक से निकाले थे.
उस में से कैटरिंग वाले को ₹70 हजार ऐडवांस देना था. बारबार बैंक जाना और पैसों को सुरक्षित घर पहुंचने की चिंता से मुक्त होने के लिए उन्होंने बाकी खर्चों के लिए भी पैसे एक दिन पहले ही निकलवा लिए थे, जिन में अधिकांश ₹500 और ₹1000 के ही नोट थे. पिताजी रात को तब तक उस भाषण को सुनते रहे जब तक अगला बुलेटिन न चला. कहीं न कहीं उन्हें इस से संबंधित ऐसी सूचना मिलने की आशा थी जिस में जरूरी कार्यों जैसे विवाह समारोह, अस्पताल और किसी आपदा आदि के लिए छूट का प्रावधान हो.
दोपहर तक कोई सूचना नहीं आई फिर पिताजी ने कैटरिंग वाले से भुगतान लेने का अनुरोध किया लेकिन उस ने साफ इनकार कर दिया था. वह भी अपनी जगह ठीक था क्योंकि मसला पैसों का था. पिताजी बाकी कार्यों को पीछे छोड़ कर बैंक में पैसे बदलवाने के लिए चिंतित हो गए थे.
घर में छोटी बहन अभी इतनी बड़ी नहीं थी कि पैसों को ऐक्सचैंज करवा सके और मेरा घर से निकलना  प्रतिबंधित हो गया था क्योंकि हलदी की रस्म हो चुकी थी. पिताजी भूखेप्यासे नोट बदलवाने के लिए दिनभर बैंक की कतार में लगे रहे. जानपहचान वाले से ₹100-100 के नोट देने की सिफारिश लगवाने के बावजूद भी ₹1 लाख कैश और ₹1 लाख के और  ₹10 के नोट और सिक्कों से संतोष करना पड़ा. बाकी का ₹1 लाख बैंक में जमा करवाना पड़ा था. पिताजी ने घर आ कर बैंक में परेशान लोगों के कई किस्से सुनाए, जिन में से एक दिल दहला देने वाली घटना थी. पिताजी सरकार की इस घोषणा को लगभग कोसते हुए कहने लगे, "किसी बैंक ग्राहक को अपने करीबी की ओपन हार्ट सर्जरी के लिए ₹2 लाख निकलवाने थे लेकिन बैंक में अपर्याप्त धन के कारण उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.  बेचारे को अपना पैसा होते हुए भी न जाने किसकिस का मुंह और किसकिस के पैर देखने पडेंगे. काश, मैं कुछ कर सकता.” लगभग रुआंसे हो गए थे पिताजी.
मैं प्रधानमंत्रीजी को पत्र लिख कर बोलना चाहती थी कि आम आदमी को राजनीति की टेढ़ीमेढ़ी पगडंडियों पर चलना नहीं आता. आप आम लोगों को इस से दूर ही रहने दें. हमारे देश में काले धन के बल पर केवल मुट्ठीभर लोग ही राज करते हैं. उन लोगों को सजा दिलाने का यह तरीका गलत है. आम जनता का जो मानसिक, सामाजिक और आर्थिक शोषण हो रहा है उस की जिम्मेदारी कौन लेगा? विवाह की सारी खुशी काफूर हो गई थी. पार्लर वाली को मैं ने चैक लेने के लिए मना लिया था. अब तो छोटेछोटे भुगतान भी चैक से किए जाने लगे। घर में रिश्तेदारों का तांता लगा था. वे भी शगुन के बदले चैक दे रहे थे.
शादी में बारात को शगुन के लिफाफों में किसी को ₹500, किसी को ₹200 और किसी को ₹100 के लिफाफे देना निर्धारित था. उन में ₹10-10 के  नोट डालने में बड़ी हुज्जत महसूस हो रही थी. छोटी बहन ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा,”जीजू को तो अब ₹10-10 के सिक्के एक थैली में भर कर अशर्फियों की तरह देंगे. वे भी याद रखेंगे कि किस रईस से पाला पड़ा है... इस तनावभरे समय में उस की हरकतों ने मेरे होंठों पर मुसकराहट खींच दी थी लेकिन पलपल पिताजी को अपनी वजह से परेशान देख कर कलेजा मुंह को आ रहा था. ब्लड प्रैशर बढ़ने के कारण उन का चिड़चिड़ापन बढ़ गया था.
बारात आने वाली थी। मेरी धड़कनें होने वाले दुल्हे के लिए नहीं, एक अज्ञात भय के कारण बढ़ी हुई थीं. मां मेरा चेहरा देख कर बोलीं,”जीवन में ऐसी छोटीछोटी कई बातें हो जाती हैं. सब ठीक हो जाएगा. "खुशी के पलों को भरपूर जीना चाहिए. तुम्हारे चेहरे की रौनक से ही मुझे और तुम्हारे पिताजी को सुकून मिलता है. अब खुशीखुशी स्टेज पर जाओ.” "मां, मेरे चेहरे पर फैली उदासी सिर्फ मेरी नहीं है. हमारे घर में तो विवाह समारोह है, जहां अस्पताल या कोई विपदा आई होगी वहां तो संकट का समय आ गया होगा. यह उदासी इतनी आसानी से नहीं जाने वाली," कहते हुए बड़ी देर से थमे आंसू बाहर निकले और मैं फफकफफक कर रोने लगी. 2 दिनों से थमा गुबार निकलना चाहता था. मां ने कहा,”इस वक्त रोते नहीं हैं. सारा मेकअप खराब हो जाएगा, बस..” कहते हुए मुझे बांहों में भर लिया.
खैर, शादी हो गई. विदाई के समय पिताजी की आंखें वर पक्ष से विवाह में आई दिक्कतों के लिए क्षमा प्रार्थना कर रही थीं. उन दिनों के बारे में सोचते हुए मैं घर पहुंच गई थी. मुझे देख कर बेटी दौड़ कर आई और मुझ से लिपट गई.
पति ने कहा,” कैसा रहा फंक्शन? मैं फोन कर रहा था, उठाया नहीं आप ने.”
मैं ने ₹2 हजार का नोट दिखाया तो पति ने चुटकी लेते हुए कहा,”हूं...तो मैडम नाराज हैं. आप के दिमाग में उस दिन की रील चल पड़ी होगी.” मुझे नौरमल करने के लिए मेरा हाथ अपनी हथेलियों में भर लिया उन्होंने. अगले दिन मेरी छोटी बहन का फोन आया. उस ने सीधेसीधे कहा,”कल आप को ₹2000 का नोट मिला होगा शगुन में?”
“हां, पर तुझे कैसे पता चला?” मैं ने पूछा.
“अरे, मुझे भी दिए हैं उन्होंने. जब उन्हें रिजर्व बैंक औफ इंडिया की ₹200 के नोट बंद होने की खबर मिली वैसे ही उन्होंने सारे नोट घर आए मेहमानों में बांट दिए. पिछली बार नोटबंदी के समय उन्हें ब्लैकमनी को व्हाइट करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. न जाने कितने रिश्तेदारों के सामने अपमानित होना पड़ा था.” मेरे मुंह से निकला, “ओह, मैं खुद को खास समझ रही थी. ऐसे ही कुछ लोगों की वजह से आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

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