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FDI के लिए विदेश में रोड शो

देश के फूड रिटेल सेक्टर में निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार विदेश में रोड शो की तैयारी में है. तकरीबन दो महीने पहले इस पॉलिसी को हरी झंडी दी गई थी. हालांकि, अब तक इस सेक्टर में फॉरन डायरेक्ट पॉलिसी को लेकर कोई चर्चा नहीं है.

नियमों के काफी सख्त होने संबंधी आलोचना के मद्देनजर अधिकारियों ने वॉलमार्ट, नेस्ले, हाइंज, थाईलैंड के पीसी फूड्स और अन्य कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ उनकी राय मांगी थी और उनके इन्वेस्टमेंट प्लान के बारे में पूछा था. कंपनियों के एग्जिक्युटिव्स ने सलाह दी कि ऐसे स्टोर्स में रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े नॉन-फूड्स की अनुमति बेहतर आइडिया हो सकता है.

सरकार ने जून में लोकल सोर्सिंग वाले और पैकेज्ड फूड प्रॉडक्ट्स की रिटेलिंग में 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत दी, ताकि इसका फायदा किसानों को मिले और पारंपरिक और ईकॉमर्स दोनों प्लेटफॉर्म पर निवेश को भी बढ़ावा मिल सके. माना जा रहा है कि सरकार ने पॉलिसी में साबुन और शैंपू जैसे कुछ प्रॉडक्ट्स को शामिल करने का प्लान टाल दिया है, जो शिकायत का मुख्य आधार था. दरअसल, सिर्फ फूड रिटेलर्स के लिए बेहतर ऑफर नहीं लग रहा था.

टूट गई बसपा की ‘सोशल इंजीनियरिंग’

ब्रजेश पाठक बसपा में उस समय जुडे थे जब बसपा का ब्राह्मणों से दूध और नींबू जैसा रिश्ता था. ब्रजेश लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से आगे बढ़े थे. बसपा में लंबे समय तक रहे. बसपा में ब्रजेश को ब्राह्मण समाज का बड़ा चेहरा माना जाता था. ब्रजेश पाठक के समय केवल रामवीर उपाघ्याय ही ब्राह्मण नेता थे जो बसपा में थे. सतीश मिश्रा ने बसपा बाद में ज्वाइन की थी. 2007 के विधानसभा चुनावों में बसपा सुप्रीमो मायावती ने ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का नारा दिया था. उस समय तमाम ऊंची जातियां बसपा के पक्ष में खड़ी थी, यह वह लोग थे जो समाजवादी पार्टी में जा नहीं सकते थे और भाजपा-कांग्रेस में जाने से कोई लाभ नहीं दिख रहा था.

2007 का विधानसभा चुनाव जीत कर मायावती ने बहुमत की सरकार बनाई तो इस जीत का श्रेय ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के बजाय कुछ ब्राह्मण नेताओं को दिया जाने लगा. उस समय इस जीत के लिये प्रयास करने वाले ब्रजेश पाठक जैसे लोगों को दरकिनार किया जाने लगा. बसपा के ब्राह्मण नेताओं में उस समय की खींचतान शुरू हो गई थी.

उत्तर प्रदेश में दलित जातियों का बड़ा समूह है. जिसका वोटबैंक बड़ा है. यह वोट बैंक बहुत समय पहले तक केवल बसपा के साथ खड़ा होता था. अब इस वोट बैंक में भी अलग अलग जातियों के समूह बन गये हैं. हर समूह के तमाम छोटे बड़े नेता हो गये हैं. यह नेता अब बसपा में अपना अलग स्थान और महत्व चाहते हैं. मायावती ने इन सबको दबा कर रखा था. चुनाव के समय जब इनको दूसरी पार्टियों ने महत्व देना शुरू किया तो बसपा में भगदड़ मच गई. परेशानी की बात यह है कि बसपा को अब यह पता नहीं चलता कि उनका कौन सा नेता कब कहां जा रहा है. बसपा को हमेशा दूसरे नेता के दूसरी पार्टी में शामिल हो जाने के बाद पता चलता है कि वह चला गया है. ब्रजेश पाठक से लेकर आरके चौधरी और स्वामी प्रसाद मौर्य तक यही देखने को मिला है.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में देखा जा रहा था. एक के बाद एक बसपा के कई नेताओं के पार्टी से बाहर जाने के कारण बसपा का ग्राफ नीचे आ गया है. अब इसे संभालना मुश्किल हो गया है. 1990 के दौर में बसपा जब मनुवाद का विरोध करते समय सवर्ण समाज का विरोध करती थी, तब दलित वर्ग एकजुट होता था. बसपा ने सरकार बनाने के बाद दलित वर्ग की भलाई और नीतियों पर कोई काम नहीं किया. जिसके चलते दलित वोट बैंक बसपा से टूटने लगा. इसकी भरपाई करने के लिये बसपा ने ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का नारा देकर सवर्ण जातियों को बसपा से जोड़ा. अब बसपा के पास न संगठित दलित वोटर है और न ही ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के नाम पर वोट देने वाला सवर्ण. ऐसे में मायावती के लिये अपनी बढ़त को बनाये रखना सबसे बडी मुसीबत हो गया है.          

भागवत पुराण और माया जाल

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और बसपा प्रमुख मायावती दोनों एक दूसरे को उकसा रहे हैं , हालांकि मायावती के मुंह लगना, भागवत की शान और उसूल दोनों के खिलाफ है, लेकिन उनकी मजबूरी यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा कतई अच्छी स्थिति में नहीं है, ऐसे में यह जरूरी हो चला है कि बात मुद्दों और नरेंद्र मोदी के कार्यकाल की उपलब्धियों की न होकर हिन्दुत्व के इर्द गिर्द इस तरह रहे कि दलितों के दामन पर किसी तरह के छींटे न पड़ें.

आगरा में मोहन भागवत ने हिंदुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करने का मशवरा दिया, तो आगरा में ही मौजूद मायावती ने बात दिल्ली तो दूर की बात है प्रतिक्रिया के लिए लखनऊ भी नहीं जाने दी और मंच से तुरंत वह सवाल पूछ डाला जो अक्सर ज्यादा बच्चे पैदा करने के हिंदुवादी संगठनों की सलाह पर आम लोगों की जुबां और जेहन मे आता है कि बच्चे तो हम पैदा कर लें पर उन्हें पालने पोसने की ज़िम्मेदारी क्या मोदी सरकार लेगी. मायावती ने फ़ौरीतौर पर हाट लूट ली पर शायद यह नहीं समझ पाईं कि भागवत का मशवरा हिंदुओं के लिए था, दलितों के लिए नहीं, इसलिए पहले उन्हे भागवत से यह स्पष्ट करवा लेना चाहिए कि दलितों को  किस तरह का हिन्दू वे मानते हैं शूद्र, बौद्ध या फिर हरिजन.

मनुवाद और मनुवादियों से मायावती का बैर क्यों खत्म हो चला है और दलितों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, बिलाशक इस मसले पर एक तात्कालिक शोध की जरूरत है, क्योंकि भाजपाइयों और संघियों द्वारा गले लगाए जाने के बाद भी दलितों की हालत यानि बदहाली ज्यों की त्यों है. क्या गुजरात के ऊना से मायावती ने हमदर्दी दिखाने भर का सबक वोटों के लिए सीखा है, इस सवाल का जबाब भी कम से कम जागरूक और शिक्षित हो चले दलित चाहते हैं, जिससे दलित अत्याचारों पर मायावती का रुख साफ हो. भाजपा और भज भज मंडली की दलितों से हमदर्दी अगर दिखावा और छलावा है तो बसपा की ईमानदारी भी शक के दायरे में है जो जाने क्यों उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के वक्त में ही फट पड़ रही है.

बसपा को सत्ता इसलिए नहीं मिली थी कि वह दलित हिमायती दल है बल्कि इसलिए मिली थी कि भाजपा और कांग्रेस सहित तमाम दूसरे दल मनुवादी थे लेकिन भाजपा ने ठीक वक्त पर चोला उतार फेका है जिसकी हकीकत मायावती दलितों को नहीं बता पा रहीं कि दरअसल में भाजपा अब आर्थिक मनुवाद फैलाने पर उतारू हो आई है. स्मार्ट सिटी की अवधारणा इसकी बेहतर मिसाल है जिससे फ़ायदा शहरी सवर्णों को होगा, गांव देहातों मे अगड़ों का कहर झेल रहे दलितों को इससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला. रही बात ज्यादा बच्चे पैदा करने की तो यह अपील उन दलितों से नहीं की गई थी जो अभी भी बच्चे पैदा करने के मामले में उदार हैं, बल्कि उन ऊंची जाति बालों से की गई थी जो एक से ज्यादा बच्चा पैदा करने में कतराने लगे हैं.

भागवत की नजर में ये ही असल हिन्दू हैं, दलित तो कहने भर को उनके भाई हैं, जैसे राम के साथ हनुमान और जामवंत थे. चुनावी समर के लिए मायावती ने भागवत के रूप मे योद्धा तो ठीक चुना है, पर लड़ाई गलत ढंग से लड़ रही हैं, जो उन्हे महंगी भी पड़ सकती है. इससे पहले उन्होंने मोहन भागवत के इस बयान पर बबाल मचाने की कोशिश की थी की औरतें रसोई में ही अच्छी लगती हैं, किसी और फील्ड में नहीं, तब मायावती ने ओलंपिक की पदक विजेताओं साक्षी मालिक और पी वी सिंधु की मिसाल दी थी, लेकिन कमजोर प्रचार तंत्र के चलते वे इसे बड़े पैमाने पर असरदार तरीके से नहीं बता पाईं थी कि इन हिंदुवादियों की नजर में औरतों और शूद्रों में कोई खास फर्क नहीं है ये दोनों ही प्रताड़ना के अधिकारी हैं.

जाहिर है जब तक मायावती अपने पुराने अवतार तिलक, तराजू और तलवार ….पर वापस नहीं आतीं तब तक तमाम विश्लेषकों और सर्वेक्षणों में उत्तर प्रदेश मे बसपा की सीटों का आंकड़ा सौ के आस पास ही घूमता रहेगा और यही भागवत चाहते हैं.        

दूर रहकर भी फील कर पाएंगे पार्टनर की Kiss

क्या कभी आप किसी लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशन में रहे हैं ? या कभी आपका पार्टनर आपसे दूर गया है, ऐसे कि आप उनसे लम्बे समय से मिल न पाएं. ऐसे में आप अपने इमोशन और फीलिंग्स को फोन और एमोजी के जरिए जताने की कोशिश करते हैं.

लेकिन पार्टनर के पास होने का एहसास शायद आपको न हो. यदि ऐसा है तो आप के लिए खुशखबरी है. क्योंकि अब आ गई है एक टेक्नोलॉजी. इस टेक्नोलॉजी के जरिए आप इन दूरियों को मिटा सकते हैं. इतना ही नहीं आप अपने पार्टनर को महसूस कर पाएंगे. पार्टनर के टच को भी फील कर पाएंगे. चलिए जानते हैं कि टेक्नोलॉजी कैसे इसे संभव बना सकती है.

रिसर्चर फेबियन हेम्मेर्ट

डिजाइन रिसर्चर फेबियन हेम्मेर्ट ने एक इवेंट के दौरान इस टेक्नोलॉजी के बारे में बताया है. उन्होंने तीन ऐसे प्रोटोटाइप फोन पेश किए हैं. जिनके जरिए आपको अपने पार्टनर के होने का एहसास होगा.

पार्टनर का टच करेंगे फील

इन तीन फोन के जरिए आप अपने पार्टनर की सांस को, टच को और उनकी किस को भी महसूस कर सकते हैं.

इसमें है गीला स्पंज

इस फोन में एक गीला स्पंज इस्तेमाल किया गया है. जिसके जरिए जब आप फोन पर किस करते हैं तो आपका पार्टनर उस किस को अपने गाल पर महसूस कर सकेगा.

मोटर के कारण फील होगा दबाव

फोन में इस्तेमाल एक छोटी सी मोटर के कारण फोन की दूसरी तरफ मौजूद व्यक्ति हवा के प्रेशर को फेल कर पाएगा.

इंटिमेट मोबाइल

इसे इंटिमेट मोबाइल कहा जाता है. अब आपका पार्टनर कितनी भी दूर हो आप उसे फील कर पाएंगे.

सिंधु को मिला सचिन की तरफ से अनोखा तोहफा

भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पी वी सिंधु ने रियो ओंलपिक्स में रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया था. सिंधु पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने भारत के लिए ओलंपिक में रजत पदक जीता है. सिंधु की इस उपलब्धि के बाद हर तरफ से उनपर उपहारों की बारिश हो रही है.

क्रिकेट के भगवान का दर्जा हासिल करने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर ने भी इस स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी की तारीफ की है, और अब उनकी तरफ से सिंधु को तोहफे में BMW कार भी मिलने जा रही है.

पी वी सिंधु सोमवार को हैदराबाद पहुंची जहां उनका जोरदार स्वागत किया गया, सिंधु को राजीव गांधी खेल रत्न से भी नवाजा जाएगा. भारतीय बैडमिंटन संघ (BAI) के अध्यक्ष अखिलेश दासगुप्ता ने भी सिंधु की उपलब्धि को ऐतिहासिक बताया और उन्हें प्रेरणास्रोत करार दिया.

भारतीय बैडमिंटन संघ के सचिव पुनैया चौधरी ने बताया कि सचिन तेंदुलकर की तरफ से सिंधु को BMW कार तोहफे के तौर पर दी जा रही है. इससे पहले भी शहंशाह-ए-क्रिकेट ने पी वी सिंधु को एक कार तोहफे में दी थी जब 21 वर्षीय इस भारतीय शटलर ने अंडर-19 स्तर पर भारत के लिए एशियन चैंपियनशीप जीती थी. सचिन ने 2012 में लंदन ओलंपिक्स में सायना नेहवाल को भी कांस्य पदक जीतने के बाद BMW कार तोहफे के तौर पर थी.

पूरा लुत्फ उठाते हैं किन्नर

कहते हैं अब से कोई डेढ़ सौ साल पहले जब भोपाल में नबाबों का शासन था तब भोपाल रियासत में भयंकर सूखा पड़ा था, अच्छी बारिश के लिए तत्कालीन नवाब ने अच्छी वारिश के लिए किन्नरों से भुजरियों (कजलियाँ) का जुलूस निकालने की गुजारिश की थी, किन्नरों ने नबाब की गुजारिश पूरी करते यह जुलूस निकाला तो जोरदार वर्षा हुई. तब से रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरियों पर किन्नरों का जुलूस हर साल बदस्तूर निकलने की जो परम्परा पड़ी, वह आज तक कायम है. लेकिन वक्त के साथ साथ इस जुलूस का स्वरूप बदलता गया और आज हालत यह है कि इस जुलूस का पूरी तरह आधुनिकीकरण हो गया, जिसमें कुछ लोगों को फूहड़ता और अश्लीलता भी नजर आती है.

इस साल भी यह अनूठा जुलूस पूरी शिद्दत और धूमधाम से निकला. पुराने भोपाल की सड़कों का नजारा देखने काबिल था, जहां मनचले और शरीफ दोनों किस्म के लोग इस जुलूस का लुत्फ उठाते देखे गए. इस जुलूस की तैयारियों मे किन्नर भी कोई कसर नहीं छोड़ते और खूब सजते संवरते हैं. फिल्मी गानों की धुन पर नाचते गाते वे निकलते हैं, तो चारों तरफ से सीटियों और पैसों की बरसात होने लगती है. इस साल भी इस जुलूस को देखने इतनी भीड़ जमा थी कि पुलिस को अलग से इंतजाम करना पड़े थे.

एक युवा किन्नर ने बताया कि वह हर साल एक ब्यूटी पार्लर में जाकर मेकअप करवाता है और जानबूझ कर बदन उघाड़ू ड्रेस पहनता है, हालांकि कुछ किन्नर साड़ी और सलवार सूट में भी दिखे. युवा किन्नर फिल्मी नायिकाओं जैसी ड्रेस पहने दिखे, इनके ऊपर से ज्यादा न्योछावरें हुईं, इनकी अदाएं देखने राह चलते लोग भी रुकने मजबूर हो गए. अब तो आस पास से भी लोग खासतौर से इस जुलूस को देखने आने लगे हैं, जिसमे कोई वर्जना नहीं होती, होती है तो बस मस्ती डांस और ठुमके और किन्नरों के जलवे.

जीत कर भी हारी टीम इंडिया

भारत-वेस्ट इंडीज के बीच चार मैचों की टेस्ट सीरीज भारत ने 2-0 से जीत ली. सीरीज का पहला और तीसरा मैच भारत ने जीता, जबकि दूसरा और चौथा मैच ड्रॉ रहा. इस सीरीज में विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने कई बड़े मुकाम हासिल किए. कई ऐसी बातें हुईं, जो पहले कभी नहीं हुई थीं. हालांकि, आखिरी मैच ड्रॉ हो जाने की वजह से भारत के हाथ से नंबर वन टेस्ट रैंकिंग छिन गई और पाकिस्तान नंबर एक टेस्ट टीम बन गई.

 कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने रचा इतिहास…

– विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने इस सीरीज में दो टेस्ट जीतकर नया इतिहास लिखा. भारतीय टीम ने पहला टेस्ट इनिंग और 92 रन से जीता था, जबकि दूसरा मैच ड्रॉ रहा था.

– तीसरा टेस्ट भारत ने 237 रन से जीतकर सीरीज में 2-0 की बढ़त हासिल कर ली. वहीं, चौथा मैच ड्रॉ रहा.

– ये पहला मौका था जब भारत ने वेस्ट इंडीज की धरती पर किसी सीरीज में दो टेस्ट मैच जीते. इससे पहले तक भारतीय टीम कभी भी वहां किसी सीरीज में एक से ज्यादा टेस्ट मैच नहीं जीत सकी थी.

– 1953 में इंडियन टीम पहली बार इंडीज के दौरे पर गई थी और बीते 63 सालों भारत को कभी वहां दो टेस्ट में जीत नहीं मिली. भारत ने इसके साथ ही वेस्ट इंडीज में सीरीज जीत की हैट्रिक भी लगा दी.

– भारत ने वेस्ट इंडीज में पिछली दो सीरीज 1-0 के अंतर से जीती थी.

विराट ने अपने नाम किए कई रिकॉर्ड

– विराट कोहली वेस्ट इंडीज में करियर की पहली इनिंग में ही 50 या उससे ज्यादा रन बनाने वाले पहले इंडियन कैप्टन बने.

– कोहली ने पहले टेस्ट मैच की पहली इनिंग में टेस्ट क्रिकेट में 3000 रन पूरे किए.

– इंडियन कैप्टन ने पहले टेस्ट में डबल सेन्चुरी लगाई, जो किसी भी फॉर्मेट में उनके करियर की पहली डबल सेन्चुरी रही.

– विदेशी धरती पर डबल सेन्चुरी लगाने वाले पहले इंडियन कैप्टन बने विराट. इससे पहले अजहर ने बतौर कप्तान विदेश में बनाए थे 192 रन.

– 200 रन बनाने वाले भारत के 5th टेस्ट कैप्टन बने.

– उनसे पहले नवाब पटौदी, गावसकर, सचिन और धोनी ऐसा कर चुके हैं. लेकिन इन सबने ये डबल इंडिया में बनाया था.

बेखौफ बड़ी अदालत

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के बाद अरुणाचल प्रदेश में भी गवर्नर के थोपे हुए भारतीय जनता पार्टी के राज को संविधान के खिलाफ बता दिया है. भारतीय जनता पार्टी के मनसूबे हैं कि वह छोटेछोटे राज्यों में, जहां कांग्रेस की सरकारें?हैं, किसी तरह चुनाव करा कर अपनी सरकार बनवा सके. यह सच भी हो सकता है कि गलती कांग्रेसियों की हो कि वे अपनी भेड़ों को संभाल कर नहीं रख सकते. पर फिर भी वह पार्टी जो स्वच्छ सरकार, अच्छे दिनों और महान संस्कृति की बात करती हो, खेमे से निकली भेड़ों को चारा डालने लगे, गलत ही कही जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में फिर पुरानी सरकार कायम कर के साबित कर दिया है कि चाहे बाकी संस्थाएं डर रही हों, अदालतें आज भी बेडर के फैसले दे रही हैं. देश के दलितों, पिछड़ों, मुसलिमों, बौद्धों, गरीबों, किसानों को भरोसा रखना चाहिए कि अब ज्यादा उन का कोई नहीं बिगाड़ सकेगा.

धर्मयुद्ध दुनिया के लिए खतरा

इसलामी जिहाद का नया निशाना गैरमुसलिम ही नहीं, बल्कि मुसलिम भी बनने लगे हैं. पाकिस्तान तो पहले से ही इस की चपेट में था और इराक, सीरिया के लिए तो ये रोजमर्रा की घटनाएं थीं. पर बंगलादेश में त्योहार के दिनों में भी जिहादी आत्मघाती हमले यह साबित कर रहे हैं कि धर्मयुद्ध अब दुनिया के लिए खतरा बन गया है. और अगर यह दूसरे धर्मों को दूषित कर दे, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.

पहले ऐसे हमलों के लिए लंबीचौड़ी योजनाएं बनानी होती थीं, पर अब लगता है कि 8-10 लोग मिल कर धर्म के नाम पर अपनी जान दे कर बीसियों के सपनों को खत्म करने के लिए खुशीखुशी तैयार हो रहे हैं. यह ऐसी समस्या है, जिस का हल आसान नहीं है.

धर्म की शिक्षा असल में पैदा होते ही दे दी जाती है. पहले तो सिर्फ पंडित, मौलवी, पादरी, भिक्षु तब धर्म का प्रचार करते थे, जब वे खुद मौजूद होते थे. पर अब आधुनिक तकनीक ने एक प्रचारक को लाखोंकरोड़ों के लिए सुलभ बना दिया है. टैलीविजन चैनल धर्मप्रचारकों से भरे हैं, जहां प्रचारक पैसा दे कर समय खरीदते हैं और 24 घंटे धर्म का प्रचार कर सकते हैं. इंटरनैट घरघर में पहुंच गया है. मोबाइल फोन के जरीए भड़काऊ या धर्म को बेचने वाले करोड़ों संदेश घूम रहे हैं.

ऐसे माहौल में जिहादियों की फौज तैयार करना मुश्किल नहीं है. लोगों को अपनी जान प्यारी है, पर सैकड़ों की नहीं है. लाखों लोग जान पर खेलने वाले कारोबार अपनाते हैं. लोग केवल शौक में या जुनून में ऐवटैस्ट पर चढ़ते हैं, रेगिस्तानों को पैदल पार करते हैं, अकेले लंबी पुरानी नौकाओं से समुद्र में जाने को तैयार रहते हैं. जान जाने का डर सब को लगता है, पर जरा सी हिम्मत हो तो हर इनसान जान की बाजी लगा कर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है.

पहले और दूसरे विश्व युद्ध में कईकई करोड़ की सेनाएं दोनों पक्षों ने खड़ी कर ली थीं, जिन में हर नौजवान देश के नाम पर जान देने को तैयार था. आज मुसलिमों में यही बात दोहराई जा रही है, जबकि और देशों की सरकारें बेचारी लगती हैं.

दूसरे देशों में नई पढ़ाई, तकनीक ने समझा दिया?है कि खुशी दूसरे को हरा कर नहीं मिलती, बल्कि नई खोज, ज्यादा कारखाने खोलने, सड़कें, मकान बनाने, साफ शहर बसाने, गरीबी दूर करने से मिलती?है. इन युवाओं में कुछ खब्तियों को छोड़ दें, तो बाकी को हथियारों से दुनिया के अमन की हत्या करना गलत लगता?है. मुसलिम देशों में तो उत्पादन हो ही नहीं रहा, वहां निठल्ले बैठे लोग धर्म के नाम पर कुछ भी कर रहे हैं.

आधुनिक हथियारों की खेप आज इस तेजी से बढ़ रही है कि एक शख्स के लिए 30-40 को मिनटों में मारना बाएं हाथ का खेल हो गया है. जिन्हें बचपन से धर्म की घुट्टी पिला दी गई हो, वे मर कर धर्म का काम करने को आसानी से तैयार हो जाते हैं, इसलिए एक की जगह हजार मिल जाएंगे.

जो लोग सोच रहे थे कि वैज्ञानिक जमाने में हर कोई खुश होगा, न खाने की कमी होगी और न छत की हिफाजत की कमी, वे हैरान हैं कि गुफाओं में रह कर, टूटेफूटे मकानों में बसेरा डाल कर, केवल 2 कपड़ों में काम चला कर जिहादियों की इतनी बड़ी तादाद कैसे पैदा हो गई है कि दुनिया का हर नागरिक डरा हुआ है कि न जाने कब, कहां, क्या हो जाए. दुनिया को आणविक युद्ध तो झेलना नहीं पड़ा, पर धर्मयुद्ध ने उस से ज्यादा बड़ी दहशत पैदा कर दी है.

इस दहशत की जड़ में धर्म की आजादी है, जो दुनिया के सारे संविधानों में है. चूंकि हर धर्म दूसरे धर्म वाले को दुश्मन मानता है, लिहाजा समय आ गया है कि इस आजादी को वापस ले लिया जाए. जिहादी हत्याओं से बचना है, तो धर्म के अंधविश्वासों पर जोरदार चोट पहुंचाने की छूट देनी होगी. धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिद, चर्च बनवाने पर पाबंदी लगानी होगी. ज्यादा से ज्यादा लोग घर में किसी न किसी अनजान ताकत पर विश्वास करना चाहें तो कर लें, पर धर्म को पब्लिक प्लेस में लाने की इजाजत वापस लेनी होगी.

जब ऐसा होगा तो पता चलेगा कोई भी धर्म के पागलपन में फंसेगा ही नहीं. धर्म ने सदियों से आम गरीब को बेवकूफ बनाया है, ताकि राजा आराम से राज कर सकें व अमीर गरीब को लूट सकें और जरूरत पड़ने पर धर्म के यही गरीब मुरीद तलवारभाले उठा कर मरनेमारने को निकल पड़ें.

आज के तकनीकी जमाने को हजारों साल पुराने विचारों पर नहीं चलने दिया जा सकता है. धर्म आज इनसानियत के लिए सब से बड़ा खूंख्वारी खतरा है.

इस झंझट से निकलना वैसे आसान नहीं, क्योंकि धर्मों के खूनी पंजे घरघर में पहुंचे हैं, सदियों से हैं. तर्क तो केवल मन की बात है.

फर्ज से मुंह न मोड़ें

कुछ रिश्ते हमें जन्म से मिलते हैं तो कुछ हम अपनी खुशी से बनाते हैं. ऐसा ही एक रिश्ता है मुंहबोले भाईबहन का, जिसे किशोर स्कूलकालेज के दौरान बनाते हैं. यह रिश्ता बनाना जितना आसान है इसे निभाना उतना ही मुश्किल. इस रिश्ते में कई बार छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती हैं.  हर रिश्ते की तरह इस रिश्ते में भी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं, कुछ फर्ज होते हैं, जिन्हें भाईबहन को पूरी निष्ठा से निभाना है. किशोर रिश्ता बनाने में जितनी जल्दबाजी दिखाते हैं, निभाने में उतनी ही देर करते हैं. वे सोचते हैं कि यही काम बचा है कि सबकुछ छोड़ कर सेवा में लग जाएं.

लेकिन यह सोच गलत है. जब आप ने किसी रिश्ते की शुरुआत की है तो उस की जिम्मेदारियों को पूरा करना भी आप का फर्ज बनता है. आप दोनों के बीच सिर्फ कहने भर का रिश्ता नहीं होना चाहिए बल्कि रिश्ते में ऐसी मिठास होनी चाहिए कि देखने वाले कहें कि तुम दोनों को देख कर ऐसा लगता है जैसे सगे भाईबहन हों. इसलिए अगर आप ने कोई मुंहबोला भाई या बहन बना रखी है तो एकदूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियां भी पूरी करें ताकि आप कह सकें कि ‘फूलों का तारों का सब का कहना है, एक हजारों में मेरी बहना है…’

आइडियाज देने में न रहें पीछे

आइडिया देते समय यह न सोचें कि अगर मैं ने इसे आइडिया दे दिया तो यह मुझ से आगे निकल जाएगी. इस से तो इस की ही तारीफ होगी. मुझे क्या मिलेगा. ऐसी भावना कभी भी अपने मन में न लाएं बल्कि बहन को बैस्ट से बैस्ट आइडिया देने की कोशिश करें ताकि जब सब उस आइडिया की तारीफ करें तब आप को उस पर गर्व हो.

सिर्फ कहने का रिश्ता न हो

आप दोनों के बीच रिश्ता सिर्फ कहने को न हो, बल्कि आप सगे भाई की तरह हर कदम पर अपनी मुंहबोली बहन का साथ दें. अगर उसे कहीं जाना हो तो वहां छोड़ कर आएं. यदि कभी आने में देर हो जाए तो फोन कर के खुद पूछें कि क्या हुआ, घर पहुंची की नहीं, मैं लेने आऊं क्या? ऐग्जाम की तैयारी हो गई कि नहीं. उसे अपनी पसंदीदा चीज को देने में हिचकिचाएं नहीं. बहन को जिस वक्त भी आप की जरूरत हो खुशीखुशी उस की मदद करें. लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि जब भी आप बहन के लिए कुछ करें तो उसे बारबार यह एहसास न कराएं कि मैं अपना काम छोड़ कर तुम्हारी मदद कर रहा हूं.

सौरी बोलने में न हिचकें

जब बात सौरी बोलने की आती है तो हम सोचते हैं कि मैं क्यों सौरी कहूं, मेरी तो कोई गलती नहीं है. हमेशा बिना गलती के मैं ही सौरी बोलता हूं, पर अब नहीं. आप को एक बात समझनी होगी कि सौरी बोलने से कोई छोटा नहीं होता बल्कि इस से रिश्ते बिगड़ने के बजाय सुधरते हैं, इसलिए जब छोटीछोटी बातों पर आप दोनों के बीच मनमुटाव हो तो सौरी बोलने में हिचकें नहीं.

गर्लफ्रैंड के आगे बहन को इग्नोर न करें

जब बहन और गर्लफ्रैंड एकसाथ होती हैं तो मुंहबोला भाई बहन को इग्नोर कर गर्लफ्रैंड पर ध्यान देता है, सोचता है कि यदि बहन रूठ गई तो उसे मना लेंगे, पर गर्लफ्रैंड नहीं रूठनी चाहिए. अगर गर्लफ्रैंड के साथ घूमते हुए बहन का फोन आ जाए तो फोन रिसीव ही नहीं करता. यदि रिसीव कर भी लिया तो बहाना बना देता है कि अभी बिजी हूं, कुछ देर बाद फोन करता हूं. गर्लफ्रैंड अपनी जगह है लेकिन बहन के प्रति भी भाई का फर्ज बनता है कि जरूरत के समय उस की मदद करे. ऐसा भी हो सकता है कि जिस समय बहन को इग्नोर कर रहे हों, उस वक्त उसे आप की सख्त जरूरत हो.

फाइनैंशियल हैल्प में न करें कंजूसी

यदि मुंहबोली बहन को पैसों की जरूरत हो तो यह न सोचें कि यार अगर इसे पैसे दे दिए तो मैं क्या करूंगा. पता नहीं वापस देगी भी या नहीं. पहल कर के उस की मदद करें, लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि उस के द्वारा आप के दिए पैसों का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा.

मुसीबत में भागें नहीं, साथ दें

हम सोचते हैं कि कौन दूसरे के झमेले में पड़े, बिना बात की टैंशन ले, लेकिन ऐसा सोचना गलत है आप को तो उस के साथ खड़े रह कर उसे मुसीबत से बाहर निकालना चाहिए. अगर कभी बहन की तबीयत खराब हो जाए तो इस इंतजार में न रहें कि वह आप से कहेगी फिर आप दवा ले कर आएंगे, बल्कि आप को जैसे ही पता चले कि वह मुसीबत में है या उसे किसी चीज की जरूरत है तो मदद के लिए आगे आएं.

सिर्फ काम के लिए न करें यूज

कुछ स्वार्थी लोगों को अपने मुंहबोले भाईबहन की याद तभी आती है जब उन्हें कोई काम पड़ता है, तब वे बोलते फिरते हैं कि तुम तो मेरी बहन हो, मेरी इतनी भी हैल्प नहीं करोगी. ऐसा करने से इस रिश्ते में प्यार और अपनेपन की भावना खत्म हो जाती है, सिर्फ स्वार्थ की भावना रह जाती है, जो सही नहीं है.

मिलवाने में हिचकिचाएं नहीं

अगर भाई दिखने में सुंदर न हो तो बहन सब से मिलवाने में थोड़ा हिचकिचाती है, रास्ते में कोई दिख जाए तो तुरंत बायबाय कह चली जाती है पर ऐसा न करें, क्योंकि रिश्ते में लुक मैटर नहीं करता, बल्कि सम्मान केयर व प्यार जरूरी होता है, इसलिए हिचकिचाएं नहीं बल्कि बेझिझक मिलवाएं.

बातें शेयर करें

मुंहबोला भाई है तो क्या हुआ, आप दोनों के बीच भाईबहन का रिश्ता है, आप अपनी बातें भाई से जरूर शेयर करें. ऐसा न हो कि आप की कोई बात भाई को किसी फ्रैंड से पता चले. यह उसे अच्छा नहीं लगेगा कि आप उसे अपना नहीं मानतीं. इसलिए यह सब भाई को जरूर बताएं.

भाई के लिए भी शौपिंग करें

अगर आप शौपिंग पर भाई को साथ ले कर जा रही हैं तो केवल अपने लिए ही शौपिंग न करें बल्कि आप अपने साथसाथ भाई के लिए भी शौपिंग करें. भले ही वह खरीदने के लिए मना करे, लेकिन आप जिद कर के उस के लिए भी खरीदें. अगर वह शौपिंग पर साथ नहीं भी गया हो तो भी उस के लिए कुछ खरीदें और मिलने पर गिफ्ट करें. यकीन मानिए जब आप उसे गिफ्ट करेंगी तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा.

बढ़चढ़ कर करें सरप्राइज प्लान

मुंहबोला भाई है तो ऐसा न सोचें कि घर वाले उस के लिए सरप्राइज प्लान तो करेंगे ही, फिर आप क्यों अपना टाइम बरबाद करें, बल्कि भाई के बर्थडे पर कुछ खास प्लान करें, ताकि वह सब के सामने कह सके, ‘एक हजारों में मेरी बहना है, जो हमेशा मेरे लिए कुछ अलग और स्पैशल प्लान करती है.’

फैमिली फंक्शन में करें इन्वाइट

हम मुंहबोले भाईबहन तो बना लेते हैं, लेकिन जब बात इस रिश्ते को निभाने की आती है तो छोटीछोटी गलतियां कर बैठते हैं. जैसे यदि हमारे घर पर कोई फंक्शन होता है तो उस में अपने फ्रैंड्स को तो बुला लेते हैं, लेकिन मुंहबोले भाई/बहन को बुलाना भूल जाते हैं और जब यह बात फ्रैंड्स को पता चलती है तो वे बारबार उसे कहते हैं कि तेरी बहन ने तुझे नहीं बुलाया, अजीब है भाई. यह बात भाई को भी बुरी लग सकती है कि वैसे तो कहती फिरती है कि तुम मेरे सब से अच्छे भाई हो, लेकिन जब बात निभाने की आती है तो भूल जाती है. आप इस तरह की गलती न करें. फंक्शन छोटा हो या बड़ा अपने मुंहबोले भाई/बहन को जरूर बुलाएं.

झगड़ा होने पर रिश्ता न तोडें.

रिश्ता बनाना हो या तोड़ना हो, हमें हर बात की जल्दी रहती है. अगर छोटी सी बात पर मनमुटाव हो जाए तो तुरंत रिश्ता तोड़ देते हैं, लेकिन ऐसा करने से पहले आप को समझना चाहिए कि यह कोई व्हाट्सऐप या फेसबुक तो है नहीं, जहां जिस से भी झगड़ा हुआ उसे ब्लौक कर दिया और पुन: बातचीत होने पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. यह तो वास्तविक जिंदगी है, यहां अगर एक बार रिश्तों में कड़वाहट आ जाए तो उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है. इसलिए बातबात पर रिश्ता खत्म करने की धमकी न दें, बल्कि रिश्ते को मजबूत बनाने का प्रयास करें.

रिश्ते की गरिमा को बनाए रखें

इस उम्र में कई बार किशोर एकदूसरे की तरफ अट्रैक्ट होने लगते हैं, लेकिन ध्यान रहे आप इस रिश्ते की गरिमा को बना कर रखें. ऐसी कोई हरकत न करें जो इस रिश्ते के दायरे में न हो. कई बार ऐसा भी होता है कि आप का कोई फ्रैंड आप की मुंहबोली बहन को लाइक करने लगता है और आप उस की बातों में आ कर उसे अपनी बहन की पर्सनल बातें बता देते हैं जो गलत है. भले ही वह आप का बैस्ट फ्रैंड हो, लेकिन आप का फर्ज है कि आप बहन की रक्षा करें. कोई भी ऐसा काम न करें जिस से आप की बहन की भावनाओं को ठेस पहुंचे.   

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