इसलामी जिहाद का नया निशाना गैरमुसलिम ही नहीं, बल्कि मुसलिम भी बनने लगे हैं. पाकिस्तान तो पहले से ही इस की चपेट में था और इराक, सीरिया के लिए तो ये रोजमर्रा की घटनाएं थीं. पर बंगलादेश में त्योहार के दिनों में भी जिहादी आत्मघाती हमले यह साबित कर रहे हैं कि धर्मयुद्ध अब दुनिया के लिए खतरा बन गया है. और अगर यह दूसरे धर्मों को दूषित कर दे, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.

पहले ऐसे हमलों के लिए लंबीचौड़ी योजनाएं बनानी होती थीं, पर अब लगता है कि 8-10 लोग मिल कर धर्म के नाम पर अपनी जान दे कर बीसियों के सपनों को खत्म करने के लिए खुशीखुशी तैयार हो रहे हैं. यह ऐसी समस्या है, जिस का हल आसान नहीं है.

धर्म की शिक्षा असल में पैदा होते ही दे दी जाती है. पहले तो सिर्फ पंडित, मौलवी, पादरी, भिक्षु तब धर्म का प्रचार करते थे, जब वे खुद मौजूद होते थे. पर अब आधुनिक तकनीक ने एक प्रचारक को लाखोंकरोड़ों के लिए सुलभ बना दिया है. टैलीविजन चैनल धर्मप्रचारकों से भरे हैं, जहां प्रचारक पैसा दे कर समय खरीदते हैं और 24 घंटे धर्म का प्रचार कर सकते हैं. इंटरनैट घरघर में पहुंच गया है. मोबाइल फोन के जरीए भड़काऊ या धर्म को बेचने वाले करोड़ों संदेश घूम रहे हैं.

ऐसे माहौल में जिहादियों की फौज तैयार करना मुश्किल नहीं है. लोगों को अपनी जान प्यारी है, पर सैकड़ों की नहीं है. लाखों लोग जान पर खेलने वाले कारोबार अपनाते हैं. लोग केवल शौक में या जुनून में ऐवटैस्ट पर चढ़ते हैं, रेगिस्तानों को पैदल पार करते हैं, अकेले लंबी पुरानी नौकाओं से समुद्र में जाने को तैयार रहते हैं. जान जाने का डर सब को लगता है, पर जरा सी हिम्मत हो तो हर इनसान जान की बाजी लगा कर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है.

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