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सिक्स पैक बनाती युवतियां

जो आंखें कभी सैक्सुअल डिजायर का सब से मजबूत माध्यम हुआ करती थीं अब उस की जगह फिट और टोंड बौडी ने ले ली है. चुस्त बौडी और वैल टोंड फिगर से युवतियों में सैक्स अपील बढ़ती है. युवतियों में बौडीबिल्डिंग व फिजिकल फिटनैस का क्रेज इन दिनों काफी बढ़ा है. युवतियां फिटनैस के लिए अब सिर्फ जिम ही नहीं जातीं या हलकीफुलकी स्ट्रैचिंग तक ही सीमित नहीं रहतीं, बल्कि उन्होंने बौडी बिल्डिंग के एक नए ट्रैंड की शुरुआत भी की है ताकि वे सैक्सी दिखें.

बौलीवुड और हौलीवुड की अभिनेत्रियों के बीच बढ़ते बौडीबिल्डिंग के क्रेज ने इसे आम युवतियों में खासा लोकप्रिय बना दिया है. हैरानी की बात यह है कि वे सैक्सी फिगर के लिए बेफिक्री से पैसे उड़ा रही हैं और जिम में जम कर घंटों पसीने बहाने से गुरेज नहीं कर रही हैं. टोंड और वैलशेप बौडी पाने के लिए वे तमाम ऐसे नुसखे आजमा रही हैं जो कभी उन की पहुंच से बाहर थे और जिन पर युवकों का एकछत्र राज था. ‘‘आज की युवतियां काफी सक्षम हैं, जुझारू हैं और आर्थिक रूप से सशक्त भी, तो क्यों न वे मनचाही फिगर पाने के लिए पैसे खर्चें,’’ यह कहना है विभा का जो एक वर्किंगवूमन होने के बाद भी रैगुलर जिम जाती  हैं. उन से यह पूछने पर कि आखिर ऐसा क्या है जिस के लिए उन्होंने जिम जाने की चाहत को आज भी बनाए रखा है, तो वे कहती हैं कि अकसर जब वे युवकों को अपने मसल्स शो करते देखती हैं तो उन के मन में युवकों के इस एकछत्र राज को तोड़ने की इच्छा जगती है. इसी तरह फीमेल बौडीबिल्डिंग प्रतियोगिता जीतने वाली 45 वर्षीय वीणा को देख कर बिलकुल नहीं लगता कि वे उम्र के इस पड़ाव को भी पछाड़ सकती हैं. उन की बौडीबिल्डिंग की चाहत ने उन्हें अपने सर्किल में खासा लोकप्रिय बना दिया है. वे कहती हैं, ‘‘शुरू में जब मैं ने जिम जाने का निर्णय लिया तो घर वालों ने ज्यादा आपत्ति नहीं जताई पर जब मेरा यह शौक धीरेधीरे बौडीबिल्डिंग पैशन में बदलने लगा तो इस पर घर वालों ने एतराज जताया, लेकिन तमाम विरोधों के बाद भी मैं ने अपना यह पैशन जारी रखा और आज युवापीढ़ी मुझ से बौडीबिल्डिंग से जुड़े टिप्स लेने आती है. सोच कर अच्छा लगता है कि वक्त अब बदल चुका है.’’

फीमेल बौडीबिल्डिंग इतनी पौपुलर हो चुकी है कि अब ब्लौक, जिला और स्टेट से ले कर नैशनल लैवल तक बौडीबिल्डिंग चैंपियनशिप आयोजित होती हैं. वैलनोन बौडीबिल्डिंग संस्थान के संस्थापक का कहना है, ‘‘मुझे यह देख कर हैरानी होती है कि पहले जहां इक्कादुक्का युवतियां ही अपने इस शौक को पूरा करने आती थीं और वे भी बीच में ही कोर्स छोड़ कर चली जाती थीं, पर अब ऐसा नहीं है. युवतियों की भीड़ में अच्छाखासा इजाफा हुआ है. हम अपने स्तर पर इन्हें इंटर इंस्टिट्यूशनल संस्थानों में बौडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए भी भेजते रहते हैं जिस से युवतियों का उत्साह बढ़ता है.’’

देश की पहली फीमेल बौडी बिल्डर जो दूसरों के लिए उदाहरण बनीं

देश की पहली फीमेल बौडीबिल्डर मुंबई की अश्विनी वास्कर की बौडीबिल्डिंग जर्नी भी इतनी आसान नहीं रही. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे इस निर्णय पर पहले सब हंसे फिर हमें डिस्करेज करने की पूरी कोशिश की गई. हमें परिवार और समाज की दुहाई दी गई, जहां युवतियों के लिए ऐसे क्षेत्र प्रतिबंधित होते हैं. हमारे घर वालों का कहना था कि लोगों को जब इस बारे में पता चलेगा कि उन की बेटी पुरुषों जैसी बौडी बनाना चाहती है तो लोग क्या कहेंगे?

‘‘तमाम ऐसी निराश और हतोत्साहित करने वाली बातें एकएक कर हमारे सामने रखी गईं. पर मैं अपने इरादे की पक्की थी. मैं ने ठान लिया था कि चाहे जो भी हो, इस क्षेत्र में दूसरों के लिए उदाहरण बनूंगी. फिर क्या था तमाम मुश्किलों ने मुझे रोकने की कोशिश की, पर मैं कहां रुकने वाली थी. यह बात और है कि शुरुआत में मुझे मानसिक और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा पर अंतत: मैं ने अपना रास्ता बना ही लिया.’’

कहना होगा कि दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते युवतियां अब उन क्षेत्रों को भी ऐक्सप्लोर कर रही हैं, जो उन के लिए अनऐक्सेबल था, पर अपने ड्रीम को पूरा करने के लिए वे अब किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.

क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट

कई बार सैक्सी सिक्स पैक्स की चाहत में लड़कियां उलटीसीधी ऐक्सरसाइज कर बौडीपेन को आमंत्रित कर देती हैं. इसलिए ऐक्सपर्ट के अनुसार इस तरह के वर्कआउट हमेशा प्रोफैशनल्स की देखरेख में ही शुरू करने चाहिए. उन का मानना है कि युवतियां 6% तक अपने एैब्स ऐक्सपैंड कर सकती हैं और इस के लिए उन्हें वर्कआउट ट्रैनिंग की बेहद जरूरत होती है जो एक रिगोरस प्रोसैस है जिस में उन के मसल्स को ऐक्सपैंड कर उन के वेट को पहले कम किया जाता है और फिर उन्हें पावर ट्रेनिंग से गुजरना होता है. यह सब इतना आसान नहीं होता. इस के लिए स्ट्रौंग विलपावर के साथसाथ ऐसिस्टैंस पावर का होना भी बेहद जरूरी है. इसे बनाए रखने के लिए स्ट्रैंथ, ऐजुकेशन और मोरल ऐंड फिजिकल ऐजुकेशन दी जाती है जिस से वे इस कठिन और मुश्किल सैशन को आसानी से पूरा कर सकें.

शुरुआती दौर में उन्हें बाइसिकिल वर्कआउट की भी सलाह दी जाती है जिस से उन की बौडी लचीली बनी रहे और लैग लिफ्टअप में सहायता मिले.

बौडी बिल्डिंग के क्रेजी टिप्स

जो युवतियां बौडीबिल्डिंग की शुरुआत करने जा रही हैं उन के लिए कुछ क्रेजी टिप्स हैं, जिन्हें आसानी से फौलो किया जा सकता है और जो इंस्टैंट बिल्डअप के लिहाज से महत्त्वपूर्ण भी हैं.

यह सच है कि मजबूत, टोंड और काउंटेबल पैक्स तुरंत नहीं पाए जा सकते. उन्हें पाने के लिए लंबे और कड़े अभ्यास की जरूरत होती है पर इन पौइंट्स को ध्यान में रख कर इसे आसान बनाया जा सकता है :

–       जहां तक संभव हो सके कार्डियो करें. इस के लिए हफ्ते में कम से कम एक दिन में एक मील दौड़ें. चाहें तो अपने पालतू कुत्ते को सुविधानुसार साथ ले जा सकती हैं. इस से आप को उस के साथ दौड़ने में न केवल आसानी होगी बल्कि दौड़ कर कैलोरी भी बर्न कर सकती हैं.

–       खाने में साबुत अनाज जैसे ओटमील या साबुत पास्ता की मात्रा बढ़ाएं. सोयाबीन और बीफ, टर्की आदि मीट की मात्रा भी बढ़ाई जा सकती है.

–       वेट ऐक्सरसाइज से पहले और बाद में स्ट्रैचिंग जरूर करें, इस से मसल्स क्रैंपिंग से बचा जा सकता है.

–       बाइसिकिल वर्कआउट से स्टैमिना बढ़ाया जा सकता है. इस से ऐब्स तेजी से ग्रोथ करती हैं.

सिक्स पैक बौडी और ऐब्स पाने की चाहत युवतियों में एक जनून की हद तक पहुंच चुकी है. जगहजगह खुलते बौडीबिल्डिंग केंद्र व प्रतियोगिताएं इस की पुष्टि करती हैं.

गठीला शरीर, भरा बदन, परफैक्ट ऐब्स और सिक्स पैक्स की चैंपियनशिप पर अब युवतियां भी कब्जा जमा रही हैं. ऐसा हो भी क्यों न, इस से उन्हें एक आकर्षक फिगर के साथसाथ एक सैक्सी बौडी भी तो मिल रही है. टशन का जमाना है तो कदमताल तो करनी ही पड़ेगी.         

देश की टौप 7 फीमेल बौडीबिल्डर

याशमिन भानक : आईबीबीएफएफ रैंकिंग में 16वें स्थान पर.

करुणा वागमारे : अमैच्योर ओलिंपिक 2015 में 5वें स्थान पर रहीं.

दीपिका चौधरी : 4 अप्रैल, 2015, यूएस में एनपीएस फिगर टाइटल जीता.

ममोता देवी : वर्ल्ड बौडीबिल्डिंग और फिजिक स्पोर्ट चैंपियनशिप जीती.

रीबिता देवी : इंडिया की टौप बौडी बिल्डर.

सोनाली स्वामी : 39 वर्षीय सोनी इंडियन एथलीट की सहभागी हैं.

किरण डेंबला : प्रसिद्ध फीमेल बौडीबिल

दो जासूस और अनोखा रहस्य (भाग-5)

अभी तक आप ने पढ़ा…

अनवर मामू के घर आए फैजल और साहिल ने अजयजी के कत्ल की गुत्थी सुलझाने हेतु मिले हर कोड को हल किया. इस बार की पहेली हल करने पर उन्हें जो कटारें मिलीं उन में टेप से लिपटी एक चाबी व परची थी. उन्हें लगा यह चाबी किसी लौकर की होगी. उन्होंने यास्मिन से पूछा पर उन्हें कुछ पता न था सो वे स्टैप बाई स्टैप लौक ढूंढ़ने लगे. अब उन्हें लगा कि परची पर लिखे अक्षर भी कोड हैं. उन्होंने उसे हल किया तो पता चला कि एक बैंक अकाउंट नंबर है. दूसरा लौकर का नंबर. टिक मार्क (क्क) से उन्हें पता चला कि यह यस बैंक का लोगो है. अत: वे यस बैंक पहुंचे. वहां उन्हें पता चला कि यह अकाउंट 8 दिन पहले ही खोला गया है. लौकर खोलने पर उन्हें वहां मोबाइल मिला. जिसे खोलने पर एक स्लिप मिली, जिस पर कविता रूपी कुछ पंक्तियां लिखी थीं. अब वे इन पंक्तियों का मतलब समझ महादेव गली ढूंढ़ने लगे. लेकिन सिपाही रामदीन ने बताया कि यहां पास में शंकर गली है शायद उसे ही महादेव गली लिखा हो. अब उन्होंने डिसाइड किया कि वे शंकर गली जाएंगे, शायद वहीं उन्हें आगे का सुराग मिले. दो आंखें यहां भी उन का पीछा कर रही थीं.               

अब आगे…

जीप में कुल 7 लोग थे. साहिल, फैजल, अनवर, इंस्पैक्टर रमेश, रामदीन और 2 अन्य सिपाही.

‘‘क्या किसी को कविता की दूसरी लाइन का कुछ मतलब समझ आ रहा है?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने सवाल किया, ‘‘तीसरी और चौथी लाइन तो साफ है कि वहां कोई लड़की है, जिस ने किसी को अपना धर्मपिता बनाया हुआ है. उसे हमें कोई पासवर्ड देना है.’’

‘‘धर्मपिता क्या मतलब?’’ साहिल ने पूछा.

‘‘अगर किसी लड़की का अपना पिता न हो और कोई आदमी उसे अपनी बेटी मान ले तथा पिता के सारे फर्ज निभाए तो वह उस का धर्मपिता कहलाएगा और वह लड़की उस की धर्मपुत्री,’’ अनवर मामा ने समझाया.

‘‘ओह समझा, लेकिन इस धर्मपुत्री के लिए पासवर्ड कहां से लाएंगे और पासवर्ड तो छोड़ो, यह धर्मपुत्री कहां मिलेगी? मान लो गली के हर घर में जाजा कर हम ने उसे ढूंढ़ भी लिया तो सावन की रिमझिम और खिलती कलियां कहां से लाएंगे,’’ फैजल ने आंखें मटकाईं, ‘‘मुझे तो यह नहीं समझ आ रहा कि अगर सावन के आने से कलियां खिलेंगी तो पूरे गांव की खिलेंगी. सिर्फ इस गली की ही थोड़ी न खिलेंगी. इस गली में कोई स्पैशल सावन आता है क्या?’’

यही सारे सवाल बाकी लोगों के दिमाग में भी घूम रहे थे, लेकिन जवाब किसी के पास न था. सब को यही उम्मीद थी कि वहां जा कर ही कुछ पता लग सकता है.

‘‘अच्छा अंकल, जैसा कि हम ने आप को बताया था कि कोई 2 लोग हमारा पीछा कर रहे हैं, तो अब जब हम केस खत्म करने के इतने करीब हैं, तो वे लोग जरूर कोई न कोई ऐक्शन लेंगे. अभी भी वे हमारे पीछे ही लगे होंगे. इसलिए हमें आगे का काम बड़ी सावधानी से करना होगा,’’ फैजल बोला.

‘‘तुम चिंता न करो. मैं पहले ही सब इंतजाम कर के आया हूं. ‘6 सिपाही दूसरी जीप में हमारे साथसाथ वहां पहुंच रहे हैं. वे सारे इलाके को घेर लेंगे, तब हम अंदर गली में जा कर तहकीकात करेंगे और हां, हम में से कोई भी इस कविता के एक भी शब्द को वहां मुंह से नहीं निकालेगा. हम सारा काम गुपचुप तरीके से इशारोंइशारों में करेंगे ताकि कोई आसपास छिप कर सुन भी रहा हो तो उसे कुछ पता न चल सके.’’

‘‘ग्रेट प्लानिंग सर,’’ कह कर साहिल ने अंगूठा दिखा कर अप्रूवल का इशारा किया.

शंकर गली के मुहाने पर पहुंच कर थोड़ी देर वे लोग जीप में ही बैठे रहे. जब दूसरी जीप के सिपाहियों ने अपना मोरचा संभाल लिया तो वे जीप से उतर कर गली में दाखिल हुए और इधरउधर देखते हुए आगे बढ़ने लगे.

मंजिल नामक बिल्डिंग के ठीक सामने वाली यह गली ज्यादा बड़ी नहीं थी. गली में घर भी बहुत कम थे. ज्यादातर छोटेमोटे सामान की दुकानें ही थीं. सरसरी तौर पर पूरी गली का 2 बार चक्कर लगा कर भी कहीं कोई छोटामोटा बाग या फूलोंकलियों जैसी कोई चीज उन्हें नजर नहीं आई.

अब उन्होंने हर घर, हर दुकान को ध्यान से देखते हुए फिर से गली का चक्कर लगाना शुरू किया. करीब आधी गली पार करने के बाद एक बड़ी सी दुकान के साइनबोर्ड पर जैसे ही अनवर मामा की नजर पड़ी, वे ठिठक कर वहीं रुक गए. बोर्ड पर बड़ेबड़े शब्दों में लिखा था, ‘रिमझिम ब्यूटी पार्लर.’ और जैसा कि गांव में रिवाज होता है नीचे एक कोने में लिखा था, ‘प्रौपराइटर सावन कुमार.’

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने मुंह से निकलने वाली आवाज को रोका और धीरे से पीछे खड़े साहिल को पास आने का इशारा किया.

‘‘ओह,’’ बोर्ड को पढ़ने के बाद उस के मुंह से निकला, ‘‘सावन की रिमझिम में खिलती हर कली. पहले ‘सामने है मंजिल’ और अब ‘सावन की रिमझिम…’ अजय ने हर शब्द बहुत ही सोचसमझ कर बड़े ही नायाब तरीके से प्रयोग किया है. कोई भी शब्द बेमतलब नहीं है. कितना फिट है सबकुछ…

कमाल है.’’

तब तक फैजल और इंस्पैक्टर रमेश भी वहां आ गए थे और उन के चेहरे भी खुशी से चमकने लगे थे.

‘‘और इस का मतलब है कि हमारी उस धर्मपुत्री को ढूंढ़ने के लिए अब हमें दरदर नहीं भटकना पड़ेगा. वह पक्का इस पार्लर में ही काम करती होगी,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने कहा, ‘‘तुम लोग यहीं रुको, मैं अंदर जा कर यहां के सारे फीमेल स्टाफ के नामपते ले कर आता हूं. उन में से इस लड़की को ढूंढ़ना बहुत ही आसान होगा.’’

15-20 मिनट बाद वे बाहर आए और सब को चल कर जीप में बैठने का इशारा किया. दोनों जीपें जब वहां से रवाना हो गईं तो उन्होंने बताया, ‘‘यहां कुल 8 लड़कियां काम करती हैं. उन सब के घर भी आसपास ही हैं. पुलिस स्टेशन पहुंच कर 2-3 सिपाहियों को मैं इन का पता लगाने भेज देता हूं. तब तक वहीं बैठ कर हम पासवर्ड सोचने की कोशिश करते हैं.’’

लगभग 2 ढाई घंटे बाद लड़की का पता लगाने गए सिपाही लौट कर आए और बताया कि उन सब लड़कियों के अपने परिवार और अपने मातापिता हैं. कोई किसी की धर्मपुत्री नहीं है. यह सुन कर सब सन्न रह गए.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. अब तक अजय की लिखी हर पहेली, हर कोड बिलकुल एक्यूरेट और टू द पौइंट है. उस के हर छोटे से छोटे शब्द का बिलकुल सटीक मतलब निकला है और खासकर इस कविता में तो हर सिंगल शब्द पूरे सीन में बिलकुल परफैक्ट तरीके से फिट हो रहा है. फिर इतना बड़ा झोल कैसे हो सकता है,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले.

‘‘नहीं, झोल उन के लिखने में नहीं, बल्कि हमारे सोचने में है. हम कहीं कुछ गलती कर रहे हैं. धर्मपुत्री का कोई और भी मतलब होता है क्या मामू?’’ कुछ सोचता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, और कोई मतलब तो नहीं होता.’’

साहिल ने पहेली वाला कागज हाथ में उठाया और बीसियों बार पढ़ी जा चुकी उन लाइनों को फिर ध्यान से पढ़ते हुए कुछ समझने की कोशिश करने लगा. एकएक अक्षर को बारीकी से घूरतेघूरते एक अजीब बात पर सब का ध्यान आकर्षित करता हुआ बोला, ‘‘जरा देखिए, इस में धर्मपुत्री की स्पैलिंग गलत लिखी हैं. अजय ने इसे धरम पुत्री लिखा है जबकि असली शब्द धर्म होता है. क्या इस का कोई खास मतलब हो सकता है या यह सिर्फ एक गलती है?’’

‘‘इस का भला क्या खास मतलब होगा? गलती ही होगी…’’ बोलतेबोलते अचानक फैजल की टोन बदल गई.

‘‘गलती ही तो नहीं होगी…बिलकुल नहीं हो सकती…यह तो बिलकुल सही है. अंकल, जरा वह सारी लड़कियों के नाम वाली लिस्ट तो निकालिए.’’

पास खड़े सिपाही ने जेब से लिस्ट निकाल कर साहिल को थमा दी. उस ने जल्दीजल्दी सारे नाम पढ़े और जोर से टेबल पर मुक्का मारते हुए बोला, ‘‘यस. मिल गई. यह छठे नंबर वाली ईशा वह लड़की है जिसे हम ढूंढ़ रहे हैं.’’

‘‘क्या मतलब? कैसे? हमें भी बताओ.’’

‘‘धरम कौन है बताइए तो जरा?’’ सभी एकसाथ बोले.

‘‘देखिए, अजय ने धर्म की जगह धरम का प्रयोग किया है. ‘धरम’ यानी फिल्मों के मशहूर कलाकर धर्मेंद्रजी का प्यार का नाम है. तो धरम पुत्री हुई धर्मेंद्रजी की बेटी यानी ईशा. मतलब हमें जिस लड़की की तलाश है, उस का नाम ईशा है और इसी तर्ज पर चलते हुए जब हम अगली लाइन पर पहुंचते हैं तो उस का भी डबल मतलब है. पासवर्ड के बिना बनेगा काम न यानी पासवर्ड ही वह पासवर्ड है जिसे हम ढूंढ़ रहे हैं. उसी से हमारा काम बनेगा.’’

‘‘तुम्हें पूरा यकीन है?’’

‘‘जी हां. जिस तरह अजय अब तक अपनी बात कहते आ रहे हैं, उस के हिसाब से मैं दावे से कह सकता हूं कि यही हमारा कोडवर्ड है. अब हमें और देर किए बिना तुंरत ईशा से मिलने जाना चाहिए.’’

दो मिनट बाद ही वे जीपों पर सवार हो पार्लर पहुंचे और ईशा को बाहर बुलवाया. फिर धीरे से उसे पासवर्ड बताया.

‘‘आप लोग कौन हैं? पासवर्ड बता कर सामान तो एक आदमी पहले ही ले जा चुका है,’’ ईशा ने कहा तो सब हैरान हुए.

‘‘पासवर्ड बता कर सामान ले गया? क्या सामान था? किस ने दिया था?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने पूछा. डरीसहमी ईशा ने पहले तो बताने से इनकार किया, फिर इंस्पैक्टर के डर से सब उगल दिया, ‘‘अजय अंकल ने मुझे कुछ दिन पहले एक टैनिस की बौल दी थी और कहा था कि कुछ दिन बाद वे उसे लेने आएंगे. अगर वे न आएं या उन्हें कुछ हो जाए, तो जो आदमी आ कर मुझे पासवर्ड बताए, मैं उसे वह बौल दे दूं.’’

‘‘क्या था उस बौल में?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं पता.’’

‘‘उन्होंने इस काम के लिए तुम्हें ही क्यों चुना?’’

‘‘मेरा घर उन के घर से कुछ ही दूर है. हमारी गरीबी से वे अच्छी तरह वाकिफ थे और अकसर मेरी मदद करते रहते थे. मुझे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानते थे. जब उन्होंने वह बौल मुझे दी तब वे चोरों की तरह छिपतेछिपाते मेरे पास आए थे और उन्होंने बड़ा अजीब सा हुलिया बना रखा था. अगर उन की आवाज न सुनती, तो मैं तो उन्हें पहचान ही नहीं पाती. किसी को कुछ भी न बताने की उन्होंने सख्त हिदायत दी थी और यह भी कहा था कि अगर 6 महीने तक कोई इसे लेने न आए तो मैं इसे नष्ट कर दूं.’’

‘‘जो आदमी बौल ले कर गया वह देखने में कैसा था?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने पूछा.

‘‘लंबा, मूंछों वाला, काले रंग की बाइक पर…’’

‘‘काली बाइक पर…हो न हो यह वही आदमी है जो हमारा पीछा कर रहा था,’’ फैजल की बेचैनी अपने चरम पर थी.

‘‘कितनी देर हुई उसे यहां से गए? किस ओर गया है?’’

‘‘अभी मुश्किल से 5 मिनट हुए होंगे. गली से निकल कर वह दाएं मुड़ा था. उस के बाद मुझे पता नहीं.’’ इतना सुनते ही वे लोग तेजी से जीपों की ओर दौड़े और स्पीड से जीपें दौड़ा दीं.

थोड़ा आगे जा कर सड़क 2 भागों में बंट रही थी. दूसरी जीप को उस सड़क पर भेज इंस्पैक्टर रमेश ने अपनी जीप पहले वाले रास्ते पर दौड़ा दी. काफी दूर पहुंचने के बाद एक मोड़ पर घूमते ही उन्हें काली बाइक नजर आई. जब तक बाइक वाले को पता चला कि जीप उस का पीछा कर रही है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इंस्पैक्टर ने बड़ी ही कुशलता से बाइक को साइड से हलकी सी टक्कर मार कर उसे नीचे गिरा दिया और फुरती से नीचे कूद कर धरदबोचा और पूछा, ‘‘कौन है तू? अजय का खून तूने ही किया है न और अब सुबूत मिटाना चाहता है, बोल, वरना बहुत मारूंगा.’’

‘‘पागल हो क्या तुम? कातिल मैं नहीं, वह आल्टो वाला है. मैं तो अजय का दोस्त हूं.’’

‘‘कौन दोस्त?’’

इस से पहले कि वह कुछ बोलता, उस आदमी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘यहां खतरा है. जल्दी यहां से निकलो और पुलिस स्टेशन चलो. मैं वहीं सारी बात बताऊंगा.’’

 ‘‘हूं…मुझे बेवकूफ बनाने चले हो? भागने का मौका ढूंढ़ रहे हो?’’

‘‘तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है तो मुझे हथकड़ी लगा कर जीप में बैठा लो और मेरी बाइक पर किसी और को भेज दो, लेकिन जल्दी निकलो यहां से.’’

ऐसा करने में इंस्पैक्टर को कोई बुराई नजर नहीं आई वे उसे ले कर पुलिस स्टेशन आ गए.                

(क्रमश:)  

पांडा: एक खूबसूरत जीव

पृथ्वी पर मौजूद प्राणियों में सब से खूबसूरत जीव पांडा है. यह एक दुर्लभ प्राणी है. शांत स्वभाव वाला पांडा एकांतप्रिय जीव है जो अधिकांश समय छिपा रहता है और ज्यादातर रात के समय ही बाहर निकलता है. इस का अपना एक क्षेत्र होता है. यह दूसरे क्षेत्र में अतिक्रमण कर लड़ाई मोल नहीं लेता. कुछ पांडा आकार में भारीभरकम होते हैं. ये 6 फुट लंबे तथा 250 किलोग्राम तक भारी होते हैं. पांडा को मीठा खाना बेहद पसंद है. चीन के वैज्ञानिकों ने पांडा के डीएनए की रिसर्च के बाद पता लगाया कि उस में आज भी मीठे स्वाद के रिसैप्टर जीन हैं. पांडा का मुख्य भोजन घास है.

विशेषज्ञों के अनुसार, पहाड़ों पर पाए जाने वाले पांडा भले ही शाकाहारी हों, लेकिन उन के पूर्वज मांसाहारी थे. वे खरगोश, चूहे, मछली जैसे जीवों को भी खाते थे. हां, जब से पांडा पहाड़ी इलाकों में रहने लगे तो वहां उन्हें केवल घास और जंगली पौधे खाने को मिलने लगे. पांडा का शरीर पहाडि़यों में रहने के अनुकूल होता है. मोटी ऊन की फर उन्हें न केवल बर्फीली ठंड से बचाती है बल्कि गरमी भी प्रदान करती है. यही नहीं सफेद और काली फर की वजह से उन्हें शत्रुओं से छिपने में आसानी रहती है. पांडा के पंजे में नोकदार उंगलियों के अलावा, एक हड्डी भी होती है जो अंगूठे का काम करती है. इस से उन की पकड़ मजबूत हो जाती है. उन के पैर सपाट होते हैं और वे आसानी से पेड़ या पहाड़ों पर चढ़ जाते हैं. यद्यपि इन का शरीर भारी होता है, लेकिन हड्डियां लचीली होती हैं.

दुनियाका सब से उम्रदराज पांडा है, ‘जियाजिया’. जहां पांडा की औसत आयु 20 साल है, वहीं जिया 37 साल की आयु में भी जीवित है. उस का नाम गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रेकौर्ड्स में सब से उम्रदराज पांडा के रूप में दर्ज है. इस समय वह हौंगकौंग के ओशियन पार्क में है जहां पांडा कीपर्स उस की देखभाल करते हैं.

यह मादा पांडा भले ही बीमार या तकलीफ में हो, पर है बड़ी हंसमुख. यदि आप इस से मिलना चाहते हैं तो पहले इस के बारे में जानना जरूरी है. यहां के कर्मचारी 15 मिनट तक आप को उस के बारे में बताएंगे, फिर किचन में घुसने से पहले आप को स्टर्लाइज्ड कपड़े, दस्ताने और जूते पहनाएंगे. फिर आप पांडा ‘जियाजिया’ के किचन को देख सकेंगे, जहां उस के लिए विशेषतौर पर भोजन तैयार किया जाता है. उसे ताजी घास की पत्तियां पसंद हैं. इस के लिए काफी बड़ा फ्रीजर भी बनाया गया है. एनिमल ट्रेनर मैत्री के अनुसार, हम उसे नाश्ते में ताजे फल, सब्जियां और हाईफाइबर बिस्कुट भी देते हैं. वैसे उसे नाशपाती भी बहुत पसंद है. 78 किलोग्राम भारी जियाजिया प्रतिदिन लगभग 7 किलोग्राम भोजन करती है और 12 से 16 घंटे सोती है. जियाजिया को आर्थाराइटिक और हाई ब्लडप्रैशर की शिकायत है, इसलिए उस का मैडिकल चैकअप रोजाना होता है. एक समय ऐसा था जब वह बीपी मौनीटर लगाने में वेल्क्रो चिपकाने की आवाज से भी डर जाती थी, लेकिन धीरेधीरे उसे भरोसे में लिया गया, यही कारण है कि अब वह बीपी, ब्लड सैंपलिंग, ऐक्सरे और अल्ट्रासाउंड स्कैनिंग जैसी जांच भी आसानी से करवा लेती है.

जियाजिया अब तक 6 बच्चों को जन्म दे चुकी है. गौरतलब है कि चीनी सरकार ने अब से कोई 17 वर्ष पहले 1999 में इसे हौंगकौंग को भेंट किया था. थाईलैंड की राजधानी बैंकाक के एक शौपिंग मौल में कागज से बने 1,600 जौयंट पांडा काफी समय तक आकर्षण का केंद्र बने रहे. यहां बड़ी संख्या में लोग पांडा की तसवीर लेने मौल पहुंचे. गौरतलब है कि वर्ल्ड वाइल्डलाइफ केंद्र के पर्यावरण को बचाने के अभियान के तहत, कागज से बने पांडा मार्च से अप्रैल, 2016 में कुछ दिन के लिए प्रदर्शित किए गए थे. पांडा एक दुर्लभ प्राणी है और आज इस का अस्तित्व संकट में है. इस की प्रजनन क्षमता काफी कम होती है. मादा पांडा 2 साल में सिर्फ एक बार ही बच्चे को जन्म देती है. जंगलों में महज 1,864 पांडा ही बचे हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की कोशिशों के बावजूद पिछले 10 साल में इन की संख्या में मात्र 17 फीसदी बढ़ोतरी हुई है.

कई देशों में पांडा की घटती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है. वहां इन के संरक्षण के प्रयास जारी हैं. चीन में तो बाकायदा चेंगडु रिसर्च बेस में एक झूलाघर खोला गया है जहां पांडा का बच्चों की तरह खयाल रखा जाता है. घोड़ागाड़ी पर बच्चों की तरह खेलते ये पांडा के छोटेछोटे बच्चे पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं.

नौटंकी में माहिर

मादा पांडा गर्भवती होने की नौटंकी करने में माहिर है. ताइवान में एक मादा पांडा ने सब को हैरान कर दिया. मनपसंद खाने और एसी कमरे में अकेले आराम करने के लिए उस ने प्रैग्नैंसी का नाटक किया. 90 महीने पहले युआन नाम की इस 11 वर्षीय पांडा को कृत्रिम रूप से मां बनाने की कोशिश की गई थी. उस के बाद पांडा ने गर्भवती होने के लक्षण दिखाने शुरू कर दिए. उस की भूख घट गई, उस ने चलनाफिरना कम कर दिया और उस का यूट्रस भी फूल गया. यह देखते हुए पांडा को सारी सुविधाओं से युक्त एसी कमरे में शिफ्ट कर दिया गया. यहां उस का दिनरात पूरा खयाल रखा गया. इस के एक महीने बाद जब चीन के विशेषज्ञ उस की जांच करने पहुंचे, तो सब के होश उड़ गए, क्योंकि वह गर्भवती थी ही नहीं, केवल गर्भवती होने का नाटक

आप भी बन सकते हैं वौइस आर्टिस्ट

अगर आप की आवाज में कुछ खास है और आप में अलग कैरियर बनाने का जज्बा है तो आप की आवाज आप को नौकरी, पैसा और शोहरत दिला सकती है. इस के लिए आप को बनना होगा डबिंग आर्टिस्ट. इसे वौइस आर्टिस्ट या वौइस ओवर आर्टिस्ट भी कहते हैं. इस कैरियर के जरिए आप अच्छी कमाई के साथसाथ मनोरंजन की दुनिया में अपना नाम और खासा मुकाम भी हासिल कर सकते हैं. वैसे तो फिल्मों में हीरोहीरोइन अपने डायलौग अपनी ही आवाज में डब करते हैं, लेकिन कई बार भाषाई समस्या के कारण वे अपनी आवाज में डब नहीं कर पाते. लिहाजा, ऐसे में डबिंग आर्टिस्ट की सेवाएं ली जाती हैं.

श्रीदेवी से ले कर कैटरीना कैफ तक अपने कैरियर की शुरुआत में हिंदी न बोल पाने के कारण अपने डायलौग डबिंग आर्टिस्ट से ही डब कराते थे. ऐसे में इस कैरियर के जरिए आप भी किसी दिन इन की या इन जैसी बड़ी हस्तियों की आवाज बन सकते हैं.

अभिनेता विवेक ओबेराय ऐक्टर बनने से पहले यही काम किया करते थे. वे रेडियो नाटकों और रेडियो स्पौट के लिए अपनी आवाज देते थे. करीब 6 साल तक उन्होंने बतौर वौइस आर्टिस्ट काम किया. कम लोगों को पता होगा कि राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ के इंगलिश वर्जन के लिए फिल्म के हीरो जे डी चक्रवर्ती के लिए विवेक ने ही डब किया था. शायद इसी रास्ते उन्हें राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘कंपनी’ में चंदू का कालजयी किरदार मिला हो. इस लिहाज से कह सकते हैं कि डबिंग आर्टिस्ट के इस काम ने तो विवेक ओबेराय के लिए सुपर स्टार बनने का रास्ता खोल दिया. विवेक की तरह कई किशोर इस राह में कैरियर बना रहे हैं.

फिल्म, नाटक, रेडियो और टीवी में अवसर

डबिंग आर्टिस्ट के लिए अवसर ही अवसर हैं. आकाशवाणी, दूरदर्शन, टीवी चैनल्स, प्रोडक्शन हाउस, एफएम रेडियो, विज्ञापन, डौक्यूमैंट्री फिल्म, एनिमेशन वर्ल्ड, औडियो बुक की डबिंग के अलावा मोबाइल में कौलरट्यून की डबिंग में बतौर वौइस ओवर आर्टिस्ट डिमांड है. आज के दौर में डबिंग काफी प्रचलित और कमाऊ कैरियर का नया विकल्प बन कर उभरा है. सालों से डबिंग क्षेत्र में काम कर रहे शक्ति सिंह के मुताबिक फिल्म में डबिंग आर्टिस्ट की आवाज की भूमिका एक कलाकार की ही तरह होती है. इसलिए इस काम को कमतर नहीं आंकना चाहिए. कई बार तो इस काम के जरिए उतनी कमाई हो जाती है जितनी अभिनय करने वाले कई चरित्र कलाकारों की भी नहीं होती.

टीवी और फिल्मों का बाजार लगातार बढ़ता जा रहा है. भोजपुरी और साउथ इंडियन फिल्में जम कर डब की जा रही हैं. पहले यह काम टीवी के लिए होता था पर अब कई बड़ी तमिल और तेलुगू फिल्में रिलीज के समय ही मूल भाषा के साथ, इंगलिश, हिंदी समेत कई भाषाओं में रिलीज होती हैं. इतना ही नहीं भोजपुरी, पूर्वांचली और अवधी में भी डबिंग हो रही है. जाहिर है इस से वौइस आर्टिस्ट पर निर्भरता बढ़ती है और मिलने वाला पैसा भी.

डबिंग आर्टिस्ट की विभिन्न टीवी चैनल्स, प्रोडक्शन हाउस, रेडियो, डौक्यूमैंट्री फिल्म्स और नाटकों में जोरदार मांग रहती है. रेडियो के लगभग सभी कार्यक्रम आवाज की दुनिया के लोगों पर ही टिके हैं, रेडियो और एफएम में डबिंग कलाकार का विशिष्ट महत्त्व है. कई प्रोग्राम ऐसे आते हैं जहां हवामहल कार्यक्रम की तर्ज पर कहानियां सुनाने के लिए किसी अच्छे डबिंग आर्टिस्ट की जरूरत पड़ती है. इसी आवाज के कारण श्रोताओं को रेडियो सुनने का मजा आता है. ऐसे ही टीवी पर कई कार्यक्रमों में वौइस ओवर यानी परदे के पीछे से आने वाली आवाज के लिए उन की जरूरत पड़ती है.

इस के अलावा प्राइवेट स्टूडियो व कई डबिंग कंपनियां हैं, जो आप को इस क्षेत्र में आने का मौका देती हैं. आप एक फ्रीलांसर के रूप में डबिंग आर्टिस्ट के तौर पर अपना कैरियर आगे बढ़ा सकते हैं. डिस्कवरी, हिस्ट्री, एनिमल प्लेनेट व नैशनल जियोग्राफिक जैसे बहुभाषीय चैनल डबिंग आर्टिस्टों की बदौलत ही तो चल रहे हैं.

सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रीय भाषा के जानकारों के लिए भी इस क्षेत्र में अवसरों की कमी नहीं है. शक्ति सिंह के मुताबिक पहले भारत में डबिंग आर्टिस्ट को उतना महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जाता था और प्रोड्यूसर डबिंग आर्टिस्ट पर पैसे खर्च करने को भी तैयार नहीं होते थे लेकिन अब हालात कुछ बदले हैं. अब बतौर कैरियर इस में भविष्य सुनहरा दिखता है.

कार्टून, गाने और जिंगल्स

भारत में कार्टून चैनल्स में वौइस आर्टिस्ट का सब से ज्यादा काम पड़ता है. बच्चों का सब से पसंदीदा चैनल है कार्टून चैनल. आजकल कई भारतीय कंपनियां कार्टून बनाती हैं. इन कार्टून कलाकारों में जान फूंकती है डबिंग कलाकारों की आवाज.

एनीमेशन में बने सारे सीरीज डब होते हैं, जहां 2 साल के बच्चे से ले कर किशोर, युवा तक सब छोटा भीम और डोरेमौन जैसे लोकप्रिय किरदारों को अपनी आवाज देते हैं. इन में बच्चों और किशोरों की आवाज में वैराइटी होती है. वे कई बार एक ही सीरियल में कई कार्टून किरदारों को डब कर लेते हैं.

इसी तरह विज्ञापन में भी वौइस आर्टिस्ट की जबरदस्त डिमांड है. एक कंपनी जब विज्ञापन बनाती है तो वह उसे केवल एक भाषा में बनाती है, लेकिन डबिंग आर्टिस्ट द्वारा डबिंग करवा कर उसे अनेक भाषाओं में रिलीज किया जाता है.

विज्ञापन में इस्तेमाल किए जाने वाले गीतसंगीत को जिंगल्स कहते हैं. इस में 30-40 सैकंड्स का एक गीत कई बार विज्ञापनों को आकर्षक बना देता है. कैलाश खेर ने भी अपने कैरियर में जिंगल्स गाए थे. सुरीली आवाज वाले वौइस आर्टिस्ट इस में भी

हाथ आजमा सकते हैं. इसी तर्ज पर जब फिल्म को दूसरी भाषा में डब किया जाता है तो उस के गाने भी डब करने पड़ते हैं और इस के लिए हर सिंगर की नहीं बल्कि अच्छी आवाज वाले डबिंग आर्टिस्ट की भी सेवाएं ली जाती हैं.

कमाई भी है जोरदार

डबिंग आर्टिस्ट डेली बेस, फ्रीलांसर और कौंटै्रक्ट के तौर पर काम कर सकते हैं इसलिए कार्य के समय और आय की कोई सीमा नहीं है. फिर भी सामान्य तौर पर एक डबिंग आर्टिस्ट प्रतिदिन 10 से 25 हजार तक कमा सकता है. जैसेजैसे उस का तजरबा बढे़गा आय भी उसी अनुपात में बढ़ती चली जाती है. यदि आप कौंट्रैक्ट पर काम करते हैं, तो लगभग 40 से 50 हजार रुपए प्रतिमाह तक कमा सकते हैं. फिल्मों के छोटे किरदार मसलन जज, वकील, पुलिस आदि के लिए 1,500 से 5 हजार रुपए तक आसानी से मिल जाते हैं. वहीं अगर हीरो या हीरोइन की डबिंग कर रहे हैं तो 1 लाख से 5 लाख रुपए तक का अमाउंट मिल जाता है. विदेशी डौक्यूमैंट्री के लिए भी अच्छी रकम मिलती है.

तकनीकी पहलू भी जानें

डबिंग आर्टिस्ट को कुछ तकनीकी जानकारियों का ज्ञान होना भी जरूरी है. जैसे माइक संबंधी जानकारी. अच्छी आवाज के साथ कलाकार को माइक की तकनीक का भी ज्ञान होना चाहिए. माइक को हैंडिल करने के अलावा उस में कितनी दूर या नजदीक से बोल कर डबिंग की जाए, यह जानना भी बहुत जरूरी है. यह सब प्रशिक्षण संस्थानों में सिखाया जाता है. इस के अलावा डबिंग के 2 तरीके हैं, पहला, पैरा डबिंग और दूसरा लिपसिंग.

पैरा डबिंग में आर्टिस्ट को औडियो या वीडियो पर बिना ज्यादा ध्यान दिए अनुमान के मुताबिक डबिंग करनी होती है, जबकि लिपसिंग में कैरेक्टर के होंठों को पढ़ कर, उच्चारण को मैच करते हुए डबिंग करनी होती है. उदाहरण के तौर पर कई हिंदी न्यूज चैनल किसी विदेशी या फिल्मी हस्तियों की बाइट को हिंदी में दिखाने के लिए उसे पैराडब करते हैं. वहीं जब किसी मूल लैंग्वेज में डब करना होता है तो लिपसिंग की जरूरत पड़ती है. लिपसिंक तकनीक ज्यादातर कलाकार अपने डायलौग डब करने में प्रयोग करते हैं. साथ ही डबिंग कलाकार के लिए यह भी आवश्यक है कि वह अपने चरित्र को समझे. उस के हावभाव, सिचुएशन और संवाद के अनुसार डबिंग करे.

क्या हो योग्यता

यों तो डबिंग आर्टिस्ट के लिए अच्छी और वैराइटी वाली आवाज के अलावा किसी खास योग्यता की जरूरत नहीं होती, फिर भी भाषाई ज्ञान के साथसाथ देशदुनिया की जानकारी होना जरूरी है. इस के अलावा बोलने की तकनीक, चरित्र के भाव को, उस के मूड को पकड़ कर बोलना, आवाज में स्पष्टता के अलावा शुद्ध उच्चारण करने की क्षमता होनी चाहिए. बीते कुछ समय से बतौर डबिंग आर्टिस्ट कैरियर बनाने के लिए कई तरह के संस्थानों ने कोर्स भी शुरू किए हैं. इन संस्थानों में डबिंग आर्टिस्ट का प्रशिक्षण पाने के लिए कम से कम 10वीं पास अभ्यर्थियों की मांग होने लगी है.

जब भी किसी प्रोडक्शन हाउस अथवा स्टूडियो में काम मांगने जा रहे हों तो अपने द्वारा डब किए गए जौब का इंटरव्यू, अपनी आवाज का सैंपल ले जाएं. आप प्रोग्राम की सीडी बना सकते हैं. साथ ही इस फील्ड के लोगों से भी मिल सकते हैं और उन का मार्गदर्शन ले सकते हैं. यदि कहीं रिज्यूमे भेज रहे हैं तो उस में अपने अनुभव और कार्य का उल्लेख अवश्य करें. संभव हो तो साथ में अपने डबिंग किए गए प्रोग्राम की सीडी भी अटैच कर दें.                                              

कहां से लें प्रशिक्षण

इस में डिग्रीडिप्लोमा तो नहीं, लेकिन सर्टिफिकेट इन वौइस ओवर ऐंड डबिंग जैसे कोर्स बाकायदा कराए जा रहे हैं. यह कोर्स मात्र एक महीने से 6 महीने के बीच के होते हैं. इस के लिए कई ऐसे संस्थान हैं जो 10 से ले कर 25 हजार रुपए की फीस ले कर डबिंग के शौर्टटर्म कोर्स करवाते हैं. इन की वैबसाइट पर विस्तृत जानकारी मिल जाएगी.

कोर्स करवाने वाले संस्थान

–       भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली.

–       डिजायर्स ऐंड डैस्टिनेशन, मुंबई.

–       मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय.

–       ईएमडीआई इंस्टिट्यूट, मुंबई.

–       एआरएम रेडियो अकादमी.

–       द वायस स्कूल, मुंबई.

–       लाइववार्स (कैरियर इंस्टिट्यूट इन ब्रौडकास्टिंग     फिल्म), मुंबई.

–       मूविंग मीडिया वर्कशौप.

–       जेवियर इंस्टिट्यूट औफ कम्युनिकेशन, मुंबई.

–       एकैडमी औफ रेडियो मैनेजमैंट, हौजखास, नई दिल्ली.

–       एशियन एकैडमी औफ फिल्म ऐंड टैलीविजन, नोएडा.

–       आईसोम्स बैग फिल्म्स, नोएडा.

–       एशियन एकैडमी औफ फिल्म ऐंड टैलीविजन, नोएडा

गांवों की बदलती तसवीर

गांवों में बदलाव आ रहा है. वे तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहे हैं. लग्जरी और महंगी गाड़ियां, आलीशान मकान गांवों की शोभा बढ़ा रहे हैं. हर घर में टैलीविजन पहुंच रहा है. महंगे मोबाइल फोन गांवों के लोगों के हाथों में देखे जा सकते हैं. चूल्हे की जगह गैस और गोबर गैस ले रही हैं. कुछ साल पहले तक शहरों के बड़े घरों में लगने वाली फाल सिलिंग अब गांव के लोग भी लगवाने लगे हैं. किसी ने सच ही तो कहा है कि गांवों की तरक्की से ही देश की तरक्की मुमकिन है और शहरी चमकदमक वक्त के साथ अब गांवों में भी देखने को मिल रही है. बैलगाड़ी व ऊंटगाड़ी को अब ट्रैक्टरट्रौलियों ने पीछे छोड़ दिया है. पिछले 20 सालों से देश में आई संचार क्रांति के साथ ही मौडर्न खेतीबारी ने गंवई जिंदगी की तसवीर ही बदल कर रख दी है.

भासू गांव बना मिसाल

राजस्थान के सब से पिछड़े जिलों में शुमार माने जाने वाले टोंक जिले का एक गांव है भासू. यह गांव दुनियाभर में मशहूर रही टोडा रायसिंह की बावडि़यों वाले कसबे टोडा रायसिंह से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर है. 10 साल पहले तक सब से पिछड़े माने जाने वाले इस गांव में आज भी शहरी इलाके जैसी तमाम सहूलियतें मौजूद हैं. लग्जरी गाडि़यां और आलीशान घर गांव की शोभा बढ़ा रहे हैं. हर घर की छत पर अलगअलग कंपनियों की डिश, हर हाथ में महंगे मोबाइल और खानपान के बदलते अंदाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह गांव तरक्कीशुदा है. तकरीबन 5 हजार लोगों की आबादी वाले इस गांव में 30 साल पहले सरकारी लैवल पर बिजली सप्लाई के साथ घरघर में पानी की सप्लाई शुरू की गई थी. आज ऊंची तालीम से ले कर अस्पताल, बैंक, इंटरनैट समेत सभी सहूलियतें इस गांव में मुहैया हैं.

बांध से बदली जिंदगी

प्रदेश के दूसरे बड़े बीसलपुर बांध का बनना भासू गांव के लिए वरदान साबित हुआ. बांध बनने के बाद गांव की 60 फीसदी खेती लायक जमीन बांध के डूब क्षेत्र में आ गई. इस के बावजूद इलाके के आसपास पानी की प्रचुर मात्रा में मौजूदगी के बीच बाकी बची जमीन पर खेतीबारी की उन्नत तकनीक व आधुनिक खेती यंत्रों के सहारे किसान मालीतौर पर तरक्की हासिल करते गए. इसी का नतीजा है कि गांव के लोगों के रहनसहन व खानपान के तौरतरीकों में बदलाव आया है.

गांव के लोग सरकारी नौकरी में न होने के बावजूद आधुनिकता की होड़ में किसी से पीछे नहीं हैं. नई पीढ़ी का ऊंचे शिक्षण संस्थानों से जुड़ाव गांव की बदलती तसवीर का आईना है.

10 साल पहले तक जहां गांव में 10 फीसदी ही पक्के मकान थे, अब गांव में एक भी मकान कच्चा नहीं है. कामधंधे के साधनों की तरक्की के साथसाथ खेतीबारी के यंत्रों का गांव में अलग ही बाजार बन चुका है.

इस गांव के सरपंच शिवराज खटीक का कहना है, ‘‘खेतीबारी की नई तकनीक अपनाने से ही गांव के लोगों ने तरक्की हासिल की है. पंचायत की ओर से भी गांव में तरक्की की कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है. सब तरह की सहूलियतें गांव के लोगों को मिले, इस के लिए पंचायत हर वक्त कोशिश करती रहती है.’’

पानी से आई बहार

बीसलपुर बांध से छोड़ी जाने वाली नहरें भी सैकड़ों गांवों के लिए भगीरथ बन कर आई हैं. नहरी पानी के चलते कई गांवों की कायापलट हो गई है. टोंक जिले के ही जयपुरकोटा नैशनल हाईवे की सड़क के किनारे बसे मेहंदवास गांव में घुसते ही आलीशान मकान व घरों के आगे खड़ी महंगी गाडि़यां बदलते गांव के हालात की दास्तां बयां कर देती हैं.

गांव के ही रहने वाले व खेतीबारी महकमे से रिटायर अफसर राधेश्याम प्रजापति बताते हैं कि सुबह छाछरबड़ी की जगह अब पोहा, सैंडविच व ब्रैड पकोड़े ने ले ली है. यातायात के लिए गाडि़यों की भी कमी नहीं है. एकदो घरों को छोड़ कर सभी घरों में स्कूटर, मोटरसाइकिल और कारें हैं.

गांव में सरकारी व प्राइवेट अस्पताल से ले कर बैंक व इंटरनैट वगैरह की सहूलियतें हैं. ईमित्र के जरीए भी लोग सभी तरह की सरकारी व गैरसरकारी सहूलियतों का फायदा ले रहे हैं.

वहीं पानी में मौजूद फ्लोराइड से बचने के लिए तकरीबन सभी गांव वालों ने आरओ सिस्टम भी लगवा रखे हैं. बीसलपुर नहर के पानी और आधुनिक व तकनीकी खेतीबारी के तौरतरीकों से किसानों की दशा व दिशा दोनों बदल गई हैं.

खेतीबारी के बूते खुशहाल हुए किसान महंगे मोबाइल फोन से एकदूसरे का हालचाल जानने के साथसाथ कृषि मंडियों से जिंसों के भाव की जानकारी भी ले रहे हैं.

पंचायत समिति के प्रधान मोहनलाल पालीवाल कहते हैं कि मेहंदवास गांव की बदलती तसवीर के पीछे बीसलपुर बांध से निकली नहर है. नहर के जरीए ही गांव में खेती की जमीन की सिंचाई होती है.

नहर के पानी से पैदावार भी पहले के मुकाबले 2 से 3 गुना ज्यादा हुई है, जबकि इस के चलते खर्च में कमी आई है. पहले जहां कुओं में लगी मोटरों को चलाने के लिए बिजली का बिल व पंपसैट को चलाने के लिए डीजल पर हजारों रुपए खर्च करने के बावजूद भी पैदावार कम ही मिल पाती थी, उपज से मिली रकम से घर का खर्च चलाना भी मुश्किल था, लेकिन अब पानी की मौजूदगी से गांव के लोगों की

जिंदगी में खुशहाली आ गई है.

तालीम से बदली तसवीर

महात्मा गांधी ने सच ही कहा है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है. गांव की तरक्की से ही देश की तरक्की जुड़ी हुई है. आधुनिकता की ओर बढ़ रहे शहरों की होड़ न सही, लेकिन उन के नक्शेकदम पर गांव भी आगे बढ़ रहे हैं.

बढ़ते शहरीकरण के चलते पैदा हो रहे विकट हालात भी गांवों की जिंदगी में बदलाव की वजह बने हैं. कच्चे रास्तों की जगह अब सीमेंट के रास्तों पर गाडि़यां दौड़ने लगी हैं. पक्के घर, मनोरंजन, संचार और यातायात के साधनों का बढ़ता इस्तेमाल गांवों में बदलाव की ओर इशारा करता है. वहीं तालीम के प्रति गांव वालों की सोच में आए बदलाव का ही नतीजा है कि चंबल के बीहड़ों में बसे मोगेपुरा जैसे दर्जनों गांवों की तसवीर बदल गई है. तालीम के चलते ही डांग इलाके के इस छोटे से गांव मोगेपुरा में एक दर्जन से भी ज्यादा लोग सरकारी अफसर बन चुके हैं. वहीं 4 लड़के तो अमेरिका व लंदन जैसे बड़े देशों में ऊंची तालीम हासिल कर रहे हैं.

कुछ साल पहले तक मोगेपुरा गांव की प्रदेश में पहचान डकैतों के इलाके के रूप में थी. लेकिन तालीम के प्रति सोच में आए बदलाव व गांव के नौजवानों के सरकारी नौकरी में लगने से गांव वालों की माली हालत में बदलाव आया है, जिस से गांव में तरक्की हुई है. 15 साल पहले नाबार्ड योजना में बनी गांव को शहर से जोड़ने वाली सड़क ने लोगों की तरक्की की राह खोली. ऊंची तालीम के लिए गांव के नौजवान करौली शहर जाने लगे. बताया जाता है कि 15 साल पहले गांव को करौली शहर से जोड़ने वाली सड़क व आनेजाने की सहूलियत नहीं होने से गर्भवती औरतों को प्रसव के लिए चारपाई पर बैठा कर शहर के अस्पताल ले जाना पड़ता था. लेकिन अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है. अब गांव में ही सरकारी अस्पताल खुल गया है. 12वीं जमात तक का स्कूल भी खुला हुआ है. सरपंच रमेशी मीणा बताती हैं कि पहले गांव के किसानों की खेती चंबल के पानी पर ही निर्भर थी. चंबल नदी में पानी का बहाव तेज होने से खेतों में खड़ी फसल सड़गल जाती थी, वहीं कम पानी रहने से फसल सूख जाती थी. पिछले सालों में गांव के तमाम किसानों ने अपने खेतों में नलकूप लगवाए हैं. इस से बंपर पैदावार होने लगी. समूचे गांव में तकरीबन 2 हजार बीघा क्षेत्रफल में किसान खेती कर रहे हैं.

गांव के पास ही सीमेंट का कारखाना लगने से कई नौजवानों को इस में कामधंधा मिला है. इस से लोगों के घरों में पैसा आने लगा, जिस से गांव वाले अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर खर्च करते हैं. इस से देखते ही देखते गांव की सूरत बदल गई है.                            

मैंने अपने प्रेमी के साथ 3 महीने पहले सैक्स किया था. कहीं मैं पेट से तो नहीं हो गई हूं.

सवाल

मैं 20 साल की लड़की हूं. मैंने अपने प्रेमी के साथ 3 महीने पहले सैक्स किया था. उस के ठीक 2 दिन बाद मुझे माहवारी हुई थी और उस के बाद भी 2 महीने तक माहवारी हुई, लेकिन चौथे महीने माहवारी नहीं हुई. कहीं मैं पेट से तो नहीं हो गई हूं?

जवाब

हमबिस्तरी के बाद आप को 3 बार माहवारी आ चुकी है. इस का मतलब है कि आप पेट से नहीं हैं. इस बार माहवारी में देरी होने की वजह कुछ और हो सकती है. परेशान न हों, कुछ दिनों में आप को माहवारी हो जाएगी. इस उम्र में ऐसा होता रहता है. ज्यादा दिक्कत हो तो किसी माहिर डाक्टर से सलाह लें.

 

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अश्विन ने बनाया अनोखा रिकार्ड, पीछे रह गये सचिन-सहवाग

इंडिया-वेस्टइंडीज टेस्ट सीरीज के दौरान फिरकी गेंदबाज आर अश्विन का जो रूप हमें देखने को मिला वो काफी अनोखा था. केवल गेंदों से ही नहीं बल्कि इस जांबाज ने बल्ले से भी मेहमानों की धरती पर करिश्मा किया और रिकार्डों और अवार्डों की झड़ी लगाकर भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और विस्फोटक बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग को भी पीछे कर दिया.

इस सीरीज में अश्विन ने 234 रन बनाए (जिसमें दो शतक शामिल हैं) और 17 विकेट लिए जिसके कारण उन्हें मैन ऑफ द सीरीज से नवाजा गया. जो उनके 36 टेस्ट के करियर में छठी बार था. जिसके बाद वो अब सबसे ज्यादा मैन ऑफ द सीरीज अवार्ड हासिल करने वाले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं. इससे पहले ये कीर्तिमान सचिन और सहवाग के नाम पर था जिन्हें 5 बार मैन ऑफ द सीरीज बनने का मौका मिला था.

ऐसे दूर करें ब्राउजर हैंग होने की समस्या

कंप्यूटर या टैब पर एक साथ कई टैब खोलने से वह धीमा हो जाता है या फिर हैंग होता है तो गूगल क्रोम या फायरफॉक्स ब्राउजर का इस्तेमाल करने वाले यूजर वन टैब एक्सटेंशन की मदद ले सकते हैं.

इस एक्सटेंशन को ब्राउजर में शामिल करने के लिए यूआरएल में one tab टाइप करें, वहां नीचे की तरफ आपको क्लिक का विकल्प मिलेगा उसे दबा दें.

इसके बाद यह एक्सटेंशन आपके ब्राउजर में दिखाई देना लगेगा. इसका प्रयोग करने के लिए इसके आइकन पर क्लिक करना होगा.

यह आइकन यूआरएल बॉक्स में दाईं ओर मिलेगा. जब भी आप एक साथ कई टैब खोलें तो इस आइकन पर क्लिक करें. क्लिक करते ही सारे टैब वन टैब वाले आइकन में आ जाएंगे.

यानि ब्राउजर में सिर्फ एक टैब खुला रहेगा और बाकी सभी ओपन टैब की लिस्ट होगी. इसके जरिए सिर्फ एक क्लिक में सारे टैब्स रिस्टोर, डिलीट या ‘शेयर एज वेब पेज’ कर सकते हैं.

नूडल्स बाजार में मैगी फिर टॉप पर

नेस्ले इंडिया का इंस्टेंट नूडल ब्रांड मैगी जून महीने में एक बार फिर टॉप पर पहुंच गया है. जून में उसकी बाजार हिस्सेदारी 57% रही. पिछले साल खाद्य नियामक एफएसएसएआई के प्रतिबंध से मैगी की बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई थी. दोबारा पेश किए जाने के नौ माह के भीतर ही अपनी विपणन-ब्रांडिंग पहल से मैगी 57.1% की बाजार हिस्सेदारी के साथ टॉप पर पहुंच गई है. पिछले साल नवंबर में कंपनी ने जब मैगी को दोबारा पेश किया था, उस समय उसकी बाजार हिस्सेदारी 10.9% थी. दिसंबर में यह 35.2% हो गई. नेस्ले इंडिया द्वारा वित्तीय विश्लेषकों और संस्थागत निवेशकों के समक्ष प्रस्तुतीकरण में यह खुलासा किया गया है. मार्च, 2016 में मैगी की बाजार हिस्सेदारी 51% पर थी.

प्रस्तुतीकरण में कहा गया है कि नेस्ले ने मैगी कप्पा नूडल्स और मैगी हॉटहेड्स के प्रत्येक के चार संस्करण पेश किए हैं. इसके अलावा उसने नो ओनियन नो गार्लिक (प्याज-लहसुन रहित) नूडल्स भी पेश किया है. इनके अलावा भी नेस्ले ने कई उत्पादन बाजार में उतारे हैं. नेस्ले ने एक बयान में कहा है, मैगी नूडल के दुबारा बाजार में आने से भारत में वृद्धि जून में सकारात्मक हो गई. हमने अग्रणी बाजार भागीदारी हासिल कर ली है. मैगी नूडल को बाजार से हटाए जाने के एक साल बाद हमारा भारतीय बाजार लगातार बल पकड़ रहा है. कंपनी ने जून 2016 में समाप्त पहली छमाही में 4.1 अरब स्विस फ्रेंक शुद्ध लाभ कमाया है.

राजन की वजह से गवर्नर बने ‘उर्जित पटेल’

रघुराम राजन ने अगले कार्यकाल के लिए आरबीआई गवर्नर का पद संभालने से इनकार किया तो मोदी सरकार ने नए आरबीआई गवर्नर के रूप में उर्जित पटेल का नाम घोषित कर सबको हैरत में डाल दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोगियों ने यह जताने की कोशिश की कि नए आरबीआई गवर्नर की खोज और नियुक्ति की प्रक्रिया अच्छी तरह जानी-समझी और नियंत्रित थी. साथ ही पीएम मोदी सहित वित्त मंत्री अरुण जेटली इस प्रक्रिया से नजदीकी से जुड़े थे. इस तरह सरकार इन्फ्लेशन पर काबू पाने के संघर्ष में आरबीआई के पीछे मजबूती से खड़ी है.

सरकार ने यह संदेश इसलिए दिया या देने का प्रयास किया क्योंकि सरकार नहीं चाहती थी कि अब किसी गवर्नर की छवि रॉकस्टार की बने, जैसे रघुराम राजन की बनी. अधिकारियों ने इस पर पूरा जोर दिया कि रिजर्व बैंक पर अकेले किसी भी शख्स का दबदबा स्थापित नहीं हो, जैसा कि राजन ने अपने तीन साल के कार्यकाल में किया था.

माना जाता है कि पटेल चमक-दमक की दुनिया से दूर रहना पसंद करते हैं और उनमें खुद को सरकार से ऊपर रखने की भी महत्वाकांक्षा नहीं है. वहीं, राजन ने अपने भाषणों में राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों को छूकर आरएसएस को अपना विरोधी बना लिया. राजन का यह कहना कि किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए सामाजिक सहिष्णुता जरूरी है, आरएसएस को बहुत खल गया. संघ और मोदी के समर्थकों को लगा कि राजन ने सरकार और हिंदू संगठनों की छवि खराब करने के लिए जानबूझ कर यह बयान दिया. हालांकि, राजन ने बाद में इस बात को खारिज कर दिया कि उनकी मंशा सरकार की आलोचना करने की थी.

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