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नशामुक्त श्रीलंका है सिरीसेना का लक्ष्य

श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने चिंता जताई है कि महिलाओं में बीयर पीने की लत बढ़ रही है. उनकी तकलीफ समझी जा सकती है. नशामुक्त श्रीलंका के निर्माण में उन्होंने गहरी रुचि दिखाई है, लिहाजा उनकी प्रतिबद्धता का सम्मान सभी को करना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि राजपक्षे हुकूमत में बतौर स्वास्थ्य मंत्री सिरीसेना ने कई मुश्किलों के बावजूद तंबाकू और अल्कोहल कंपनियों को निशाने पर लिया था. मगर आज श्रीलंका के मर्द यूं अल्कोहल गटक रहे हैं, मानो कल आने वाला ही नहीं. व्यस्तता का हवाला देकर वे अपनी पत्नी को खरीदारी नहीं करा सकते, बच्चे को स्कूल से नहीं ला सकते, यहां तक कि छोटा-मोटा घरेलू काम भी नहीं कर सकते. मगर शराब की दुकानों पर लंबी-लंबी लाइनों में देर तक उन्हें खड़े रहना गंवारा है. इन पुरुषों के पास किसी दूसरे काम के लिए ऊर्जा, पैसा या समय बचता भी होगा क्या? मगर जहां तक महिलाओं में कथित तौर पर नशे का सेवन बढ़ने की चिंता है, यह माना जाना चाहिए कि राष्ट्रपति ने उपलब्ध आंकड़ों पर ही यह दावा किया होगा.

मगर क्या वाकई ये आंकड़े विश्वसनीय हैं? ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार की नजर में महज शराब सेवन से ही व्यक्ति नशे में धुत्त नहीं रह सकता! कुछ महीने पहले की राजगिरिया की वह दुर्घटना याद कीजिए, जिसमें विपक्षी दल के एक सांसद ने सड़क किनारे बिजली के खंभे को अपनी एसयूवी गाड़ी से टक्कर मार दी. पुलिस और मेडिकल ऑफिसर ने बताया था कि वह नशे में थे. उन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला चल सकता था. मगर बाद में यह बात सामने आई कि शराब की बू इसलिए आ रही थी, क्योंकि दुर्घटना के बाद कुछ पियक्कड़ों ने उन्हें गले लगाया था. ऐसे में, महिलाओं की उन्मुक्तता की वजह उनका बीयर पीना नहीं, बल्कि उनके पति या दोस्त द्वारा शराब पीकर उन्हें बाजबरन गले लगाना क्यों नहीं हो सकता? लिहाजा, अगर राष्ट्रपति और दूसरे तमाम नेता संजीदगी से शराबबंदी के गुणों पर चर्चा करें, तो निश्चय ही देश में अल्कोहल का 90 फीसदी सेवन एक रात में ही कम हो सकता है. नशे के खिलाफ सामूहिक लड़ाई लड़नी होगी.

जॉन केरी: मैन ऑन मिशन

अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी को ‘मैन ऑन मिशन’ क्यों न कहा जाए? केरी ने जिस तरह विश्व के अत्यंत मुश्किल समझे जाने वाले मामलों को बार-बार अपना एजेंडा बनाया, वह दुर्लभ है. केरी कई बार विलक्षण, तो कई बार दुस्साहसिक होने की हद तक ऐसे मामलों की जड़ में जाते दिखाई दिए.

इजराइल-फलस्तीन शांति समझौते में वह अपने पूर्ववर्ती जैसे कारगर भले ही न दिखे हों, लेकिन केरी ही थे, जिनके कारण 2015 में ईरान के साथ परमाणु समझौता और पिछले दिसंबर में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक समझौता जमीन पर उतर पाया. रूस के साथ बातचीत कर पिछले हफ्ते सीरिया में युद्धविराम को अंजाम देकर तो जैसे केरी ने बड़ी जीत हासिल कर ली. सीरिया के संकट ने कितने बेकसूरों की जानें लीं, कितनों को बेघर किया या भुखमरी का शिकार बनाया, यह बताने की जरूरत नहीं. लेकिन क्या इसे वाकई केरी की जीत मान लिया जाए?

असल जीत तो तब होगी, जब युद्धविराम टिकेगा और यह रूस के सकारात्मक रुख पर निर्भर करेगा. रूस के अब तक के रुख को देखते हुए तो इस पर संदेह होता है. ओबामा प्रशासन भी इस पर एक राय नहीं है. केरी से असहमत धड़ा मानता है कि वह बार-बार ऐसे काम किसी जिद की तरह हाथ में लेते हैं, जिनके नतीजे अंतत: मुकम्मल नहीं कहे जा सकते, लेकिन यह भी सच है कि कूटनीतिक क्षेत्र में केरी के प्रयासों की सराहना हुई है. खासकर मुश्किल की जड़ को समझकर उसका समाधान देने के इरादे की.

केरी सीरिया के मामले में राष्ट्रपति ओबामा को कुछ मामलों में भले ही राजी न कर पाए हों, लेकिन यह तो सब मानते हैं कि सीरिया में जो कुछ हुआ, उसमें असल भूमिका केरी की ही थी. शायद यही कारण है कि तमाम आलोचनाओं के बीच केरी मजबूत तो दिखते हैं, हालांकि पिछले अनुभवों के कारण रूस के प्रति पूरी तरह आश्वस्त भी नहीं हो पाते. लेकिन केरी की टिप्पणी कि ‘शायद यह सीरिया को बचा पाने की अंतिम कोशिश हो’ उनके अंदर की पीड़ा का बयान करती है. अब ऐसे में तो केरी की तारीफ होनी ही चाहिए.

कभी बंद किताब पढ़ी है?

भारतवंशी समेत अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने एक ऐसी नई तकनीक विकसित करने में बड़ी कामयाबी पाई है, जिसकी मदद से बंद किताब को पढ़ा जा सकेगा. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक के जरिए पुरातात्विक महत्व की प्राचीन किताबों को बिना छुए पढ़ा जा सकेगा. अमेरिका स्थित एमआईटी के वैज्ञानिक रमेश रस्कर ने बताया कि यह तकनीक तेराहर्ट्स रेडिएशन की मदद से बंद किताब के पेज में लिखे शब्दों और वाक्यों को बेहद सटीकता पहचानने में सक्षम है.

एमआईटी के बरमाक हशमत ने बताया कि न्यूयॉर्क स्थित मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ने इस तकनीक पर खासी रुचि दिखाई है. दरअसल, म्यूजियम बिना छुए प्राचीन पुस्तकों को इस नई तकनीक के जरिए पढ़ने की सेवा उपलब्ध कराना चाहता है. इतना ही नहीं, इस तकनीक का इस्तेमाल करके पतली धातुओं की बनी किताब को भी आसानी से पढ़ा जा सकता है.

बंद किताब के किसी निश्चित पेज को पढ़ा जा सके, इसके लिए अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एल्गोरिदम विकसित किया है. ऐसे में निश्चित पेज को पढ़ने के लिए कैप्चा की तरह की इमेज की जरूरत होगी. इसके बाद बंद किताब के निश्चित पेज को पढ़ा जा सकता है. यह शोध नेचर कम्यूनिकेशन्स जर्नल में प्रकाशित हुआ.

फोन की बैटरी के लिए खतरनाक हैं ये ऐप्स

ज्यादातर स्मार्टफोन यूजर्स बैटरी जल्दी खत्म होने की समस्या से परेशान रहते हैं. बैटरी कितनी देर तक टिकती है, यह बात फोन के स्पेसिफिकेशंस और इस्तेमाल पर निर्भर करती है. स्मार्टफोन्स के जरिए हम कई सारे काम करते हैं. जाहिर है कि सब तरह के ऐप्स इस्तेमाल करने से बैटरी खर्च होती है, मगर इस मामले में कुछ ऐप्स का प्रदर्शन ज्यादा ही खराब है.

1. बैटरी सेवर ऐप्स

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रैम क्लीन करने वाले या बैटरी सेव करने वाले ऐप्स भी ज्यादा बैटरी खर्च करते हैं. दरअसल ये ऐप्स बैकग्राउंड पर रन करते रहते हैं. तब भी, जब आप फोन को इस्तेमाल न कर रहे हों. ये ऐप्स हेंडसैट को लगातार स्कैन करते रहते हैं और जंक फाइल्स वगैरह को क्लीन करते रहते हैं.

2. सोशल मीडिया ऐप्स

फेसबुक सबसे पॉप्युलर स्मार्टफोन ऐप है, मगर यह बैटरी भी ज्यादा खर्च करता है. यह ऐप बैकग्राउंड में रन करता रहता है, ताकि आपको नोटिफिकेशंस वगैरह भेज सके. फेसबुक ही नहीं, मेसेंजर ऐप भी फोन की बैटरी को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाता है. स्नैपचैट, स्काइप और इंस्टाग्राम जैसे हेवी सोशल मीडिया ऐप्स भी यही करते हैं.

3. ऐंटी वाइरस ऐप्स

बैटरी सेवर और रैम मैनेजमेंट ऐप्स की तरह ऐंटी-वाइरस ऐप्स भी बैकग्राउंड में रन करते रहते हैं, ताकि मोबाइल को खतरों से बचा सकें. स्कैन करने में ये जितना ज्यादा वक्त लेंगे, बैटरी उतनी ही तेजी से खर्च होगी. कुछ ऐंटी वाइरस ऐप्स तो कैमरा का भी ऐक्सस हासिल कर लेते हैं, ताकि आपका हैंडसेट अनलॉक करने की कोशिश करने वाली की तस्वीर ले सके. यह अच्छा फीचर तो है, मगर बैटरी को जल्दी खत्म करता है.

4. फोटो-एडिटिंग ऐप्स

अगर आपको तस्वीरें लेकर एडिट करने का शौक है तो आपके स्मार्टफोन में जरूर फोटोएडिटिंग ऐप्स होंगे. ये ऐप्स हेवी होते हैं और इमेज वगैरह प्रोसेस करने में बहुत पावर इस्तेमाल करते हैं. इसलिए या तो इन ऐप्स को कम इस्तेमाल करें या फिर पावरबैंक लेकर चलें.

5. इंटरनेट ब्राउजर ऐप्स

अगर आपके स्मार्टफोन में एक्स्ट्रा ब्राउजर ऐप्स हैं तो उन्हें हटा दीजिए. एक ही ब्राउजर ऐप रखिए. कुछ ब्राउजर न्यूज या अन्य तरह की नोटिफिकेशन के लिए नेट से जुड़े रहते हैं, जिस वजह से बैटरी खर्च हो जाती है.

6. गेमिंग ऐप्स

अगर आप गेम्स खेलना पसंद करते हैं तो इन ऐप्स को हटाना शायद आप न पसंद करें. जितने हेवी ऐप्स होंगे, उतनी ही ज्यादा बैटरी खर्च होगी. 3डी ऐनिमेशन वाले ऐप्स बैटरी को जल्दी खत्म करते हैं. अगर आप इंस्टॉल नहीं करना चाहते तो उन्हें फोर्स स्टॉप कर सकते हैं. ये तब तक इनऐक्टिव रहेंगे, जब तक आप इनपर टैप नहीं करेंगे.

राज रीबूटः नई बोतल, पुरानी शराब

राज फ्रेंचाइजी की नई हारर फिल्म ‘‘राज रीबूट’’ में कुछ नयापन नही है. फिल्म डराने की बजाय हंसाती है. विक्रम भट्ट की हारर फिल्मों की ही तरह इस फिल्म में भी दरवाजों की आवाज, अपने आप दरवाजा खुलने, नारी का भूत के अधीन होना, खून का टपकना, किसी काले अतीत का उजागर होना वगैरह मौजूद है.

फिल्म की कहानी के अनुसार रेहान (गौरव अरोड़ा) और शायना (कृति खरबंदा) शादीशुदा हैं. शायना व रेहान कभी रोमानिया में रह चुके हैं. शानिया के ही कहने पर रेहान फिर से रोमानिया में बेहतर काम ढूढ़ता है और यह दंपति रोमानिया पहुंचता है. वहां पर नए मकान में रहना शुरू करते ही रेहान का शायना के प्रति व्यवहार बदल जाता है. अब रेहान उसके साथ हम बिस्तर भी नहीं होना चाहता. जबकि शायना चाहती है कि वह रोमानिया में रहते हुए मां बन जाए. शायना को रेहान के इस बदले हुए व्यवहार की वजह नहीं पता चलती. इस बीच उसे अहसास होता है कि उस मकान में उन दोनों के अलावा भी कोई और है. वह अपने पति को यह बात समझाने का असफल प्रयास करती है. धीरे धीरे वह खुद भूत के अधीन हो जाती है.

शायना अपने साथ हो रही घटनाओं का जिक्र अपनी सहेलियों से करती है, तो उसकी सहेलियां कहती हैं कि भूत होते हैं. तब अपने पति के सामने सबूत रखने के लिए शायना वीडियो कैमरा खरीदने जाती है. उसी दुकान पर उसकी मुलाकात आदित्य श्रीवास्तव (इमरान हाशमी) से होती है, जो कि शायना का पुराना प्रेमी है. शायना उसे गंदा इंसान समझती है. आदित्य उससे कहता है कि उसे पता है कि उसके साथ क्या क्या हो रहा है. वह बताता है कि शायना को अपने वाश बेसिन के शीशे में आंख दिखती है. बाथरूम में खून टपकता है…वगैरह वगैरह. आदित्य का दावा है कि इन सब से सिर्फ वही उसे बचा सकता है. पर शायना उसकी बात सुने बगैर घर चली जाती है. रात में वह कैमरा लगाकर सोती है. सुबह लैपटाप पर उसे नजर आता है कि एक भूत चल रहा है. वह अपने पति रेहान को बुलाकर देखने के लिए कहती है, पर रेहान को कुछ दिखायी नहीं देता.

तभी लैपटाप के सामने भूत आकर बैठ जाता है. वह कहता है कि तुम्हारा पति तुम्हारी बात पर यकीन नहीं करेगा. क्योंकि रेहान ने पिछली बार यहां से जाते समय एक इंसान की हत्या की थी. जिसकी हत्या हुई थी, उसकी आत्मा अब शायना के माध्यम से रेहान से बदला लेना चाहती है. आदित्य कहता है कि उसे यह सब बातें सपने में नजर आयी हैं. आदित्य श्रीवास्तव कहता है कि पहले तुम लोग जिस पुराने मकान में रहते थे, उस मकान में जो पुरानी दीवार है, उसके नीचे खोदकर देखो तो रेहान के खून से सने कपड़े मिल जाएंगे. शायना वहां जाकर खुदवाती है, तो दीवार के नीचे से एक प्लास्टिक बैग में टीशर्ट मिलती है, जिस पर ‘आर के’ लिखा होता है. रेहान आदतन अपने कपड़ों में कहीं न कहीं आर के जरूर लिखवाता है.

इधर रेहान अपने दोस्त की मदद से एक तांत्रिक के पास जाता है. तांत्रिक के कहने पर रेहान अपनी पत्नी शायना का हेअर ब्रश जाकर देता है. इससे वह बता देता है कि रेहान के घर में भूत का वास है. विस्तार से जानने के लिए तांत्रिक उसके घर आता है. रेहान बहाने से शायना को दो घंटे के लिए घर से बाहर भेज देता है. इधर तांत्रिक कागज पर लिखना शुरू करता है कि उसकी पत्नी अब कहां है? क्या कर रही है? उधर अचानक शायना को कुछ अजीब सा लगता है और वह वहां से भागती है. छिपकली की तरह उछलते कूदते वह घर के अंदर पहुंचकर तांत्रिक पर झपट्टा मारती है. तांत्रिक का ध्यान भंग होता है. बात वहीं खत्म.

परेशान शायना, आदित्य से मिलकर भूत से छुटकारा दिलाने की बात कहती है. आदित्य उसे एक टैरोकार्ड रीडर के पास ले जाता है. वह बताना शुरू करती है, पर जैसे ही शायना दो पत्ते खींचती है, टैरोकार्ड रीडर डरकर उनसे जाने के लिए कहती है. इस बीच रात हो जाती है. वापसी में एक होटल के सामने इनकी कार खराब हो जाती है. मजबूरन रात में होटल में अलग अलग कमरा लेकर रूक जाते हैं. आदित्य, शायना के कमरे में आता है. दोनों का पुराना प्यार जाग जाता है. पर जैसे ही आदित्य, शायना को किस करने जाता है, शायना के गले में पड़े मंगलसूत्र की वजह से पीछे हटता है. वह यह कहकर अपने कमरे में चला जाता है कि वह मंगलसूत्र पहनी औरत को किस नहीं करता. तब शायना मंगलसूत्र उतार कर आदित्य के कमरे में जाती हैं फिर दोनों रात भर मौज मस्ती करते हैं.

इधर रेहान कई तांत्रिको से मिलता है. एक तांत्रिक कहता है कि जब वह हत्या की बात स्वीकार करेगा तभी उसे रास्ता मिलेगा. तब रेहान अपना अतीत याद करता है. जब वह और शायना लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे थे. रेहान की मां ने उसके पास मंगलसूत्र भेजा था कि यह बहू को पहना दे. मां कहती है कि मंगलसूत्र में बहुत बड़ी ताकत होती है. इस मंगलसूत्र में दोहरी ताकत है. क्योंकि इसे उन्होंने वैष्णोदेवी मंदिर में चढ़ाकर प्रसाद के रूप में लिया है. शादी से एक दिन पहले रेहान को संदेश मिलता है कि वह शायना से शादी ना करे. शायना पर किसी और का हक है. रेहान उस आदमी की तलाश करते हुए एक माडलिंग स्टूडियो में पहुंचता है. जहां आदित्य (इमरान हाशमी) मौजूद होता है. रेहान और आदित्य में बहस हो जाती है. रेहान को आदित्य अपने लैपटाप पर शायना के साथ अपनी गंदी तस्वीरें दिखाता है. जिसे देखकर रेहान गुस्से में लैपटाप उठाकर आदित्य को मारता है, आदित्य गिरता है, उसका माथा फट जाता है और उसकी मौत हो जाती है. अब रेहान यह सारी घटना तांत्रिक को बताता है. तब तांत्रिक कहता है कि घर के कमरे में शायना को रस्सी से बांधकर गजस्तोत्र का पाठ करना पड़ेगा.

गज स्तोत्र की हिंदू धर्म के अनुसार कहानी यह है कि जब समुद्र में एक मगरमच्छ ने हाथी का पैर पकड़ लिया था, तब हाथी ने विष्णु भगवान को याद करते हुए स्तोत्र पढा था, जिससे उस मगरमच्छ ने हाथी का पैर छोड़ दिया था. तांत्रिक के कहे अनुसार कमरे में शायना को बांध दिया जाता है. तांत्रिक गज स्तोत्र पढ़ना शुरू करता है. कई मुसीबतें आती हैं. भूत नहीं भागता. तभी अलमारी खुलती है. कपड़ों से मंगलसूत्र गिरता है. रेहान मंगलसूत्र को हाथ में लेकर शायना से चिपक जाता है. मंगलसूत्र कि ताकत रंग लाती है और भूत भाग जाता है.

विक्रम भट्ट अपनी हर हारर फिल्म में हिंदू धर्म के किसी न किसी कथा टोटके को अपनी फिल्म का हिस्सा जरूर बनाते रहे हैं. यदि हम रोमानिया के खूबसूरत लोकेशन को भूल जाएं, तो फिल्म में ऐसा कुछ नही है, जो देखने लायक हो. इसके लिए कैमरामैन मनोज सोनी बधाई के पात्र हैं. जिन्होंने रोमानिया की खूबसूरत लोकेशन को कैमरे में कैद किया है. फिल्म का संगीत ठीक ठाक है. घटिया पटकथा और बेमन निर्देशित यह फिल्म पूरी तरह से बोर करती है. फिल्म डराने में असफल रहती है. कथानक के स्तर पर भी विक्रम भट्ट मात खा गए. विक्रम भट्ट ने अपनी कुछ पुरानी फिल्म के अलावा कुछ अंग्रेजी फिल्मों के सीन चुराकर चूंचूं का मुरब्बा बना डाला. इंटरवल से पहले फिल्म की गति धीमी है, इंटरवल के बाद लंबे और हिले डुले सीन बेड़ा गर्क कर देते हैं. फिल्म में गालियों की भरमार है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो गौरव कहीं से भी अभिनेता नहीं लगते. उन्होंने बहुत घटिया काम किया है. कृति खरबंदा भी अपनी छाप छोड़ने में असफल हैं. कमोबेश यही हाल इमरान हाशमी का भी है. उन्हे देखकर लगता है कि वह अभिनय भूल चुके हैं. शायद महेश भट्ट ने फिल्म ‘‘राज रीबूट’’ को पहले ही देख लिया था और समझ गए थे कि अब इसमें वह किसी भी तरह से दर्शकों को बांध नहीं पाएंगे. इसीलिए उन्होंने कहा हैं कि वह इसके बाद राज का अगला सिक्वअल नहीं बनाएंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति और सेहत का मुद्दा

राष्ट्रपति ओबामा के सफेद होते बाल यह बताने को काफी हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालना कितना दुरूह और तनावपूर्ण काम है. इस वर्ष इस पद को संभालने के लिए मैदान में उतरे दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार सेवानिवृत्ति की तय आयु को पार कर चुके हैं और भले ही अपने स्वास्थ्य की जानकारी देना राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की शर्तों में शामिल नहीं है, मगर हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप अपनी सेहत की पूरी तस्वीर आम जनता के सामने साफ रख रहे हैं. आखिर क्यों?

असल में, 9/11 की याद में आयोजित एक समारोह के दौरान हिलेरी बेहोश हो गई थीं. करीब दो घंटे के बाद वह सामने आईं और बताया कि अब वह दुरुस्त हैं. फिर उनके डॉक्टर ने बयान जारी किया कि हिलेरी क्लिंटन निमोनिया से पीड़ित हैं, और दो दिन पहले भी उनकी जांच की गई थी. वैसे, इसके बाद हिलेरी ने अपनी सेहत से जुड़ी कई जानकारियां साझा कीं, तो ट्रंप ने अपनी. ट्रंप फास्ट-फूड के प्रेमी हैं. उनके गैस्ट्रो-इंट्रोलॉजिस्ट का कहना है कि अगर ट्रंप चुनाव जीतते हैं, तो वह अब तक के सबसे सेहतमंद राष्ट्रपति होंगे.

बहरहाल, हाल के वर्षों में राष्ट्रपति और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा स्पष्ट दिखे हैं. फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट पोलियो के शिकार रहे, पर शायद ही कभी व्हिलचेयर के साथ तस्वीर खिंचवाई. उन्होंने चुनावी अभियान में खुद के हृदय रोगी होने की बात भी छिपा ली थी और इसी रोग से महज एक साल के अंदर उनकी मौत हो गई. जॉन एफ केनेडी भी गुर्दे संबंधी अपने जटिल रोग को छिपाते रहे.

इसके उलट, 1985 में रोनाल्ड रीगन ने खुलेआम खुद के पेट के कैंसर के मरीज होने की बात कही. साल 2014 में ओबामा ने भी गले में खराश होने की बात किसी के भी सवाल उठाने से पहले ही बता दी. अब अमेरिकियों को हिलेरी और ट्रंप में से एक को अपना नेता चुनना है, और चूंकि जो भी नेता बनेगा, उसे चौबीसों घंटे सक्रिय रहना होगा. ऐसे में, यह पूरी तरह प्रासंगिक लगता है कि सेहत से जुड़े उनके इतिहास और मौजूदा स्वास्थ्य की पड़ताल की जाए.

लो चल गई जुबान पर केंची

बिलाशक अगले कुछ दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए बहुत तकलीफदेह और बैचेनी भरे होंगे. उनकी जीभ और गले की सर्जरी हुई है और डाक्टर्स ने उन्हें चुप रहने की हिदायत दी है. यह चुप रहने का परहेज उनके लिए किसी सजा से कम नहीं. बोलने के बाबत केजरीवाल इतने कुख्यात हो चुके हैं कि सोशल मीडिया पर उनकी इस प्रवृत्ति को लेकर दर्जनो लतीफे रोज यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ परिक्रमा करते रहते हैं.

बेंगलुरु की नारायण हैल्थ सिटी के मशहूर सर्जन पॉल सी सलिन्स ने उनके गले और जुबान का आपरेशन करने के बाद बताया कि उनके मुंह के मुकाबले जीभ बड़ी थी और तालु व गले के एक हिस्से में भी बनावट की समस्या थी. गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल को स्थायी खांसी और कफ की समस्या पिछले 40 सालों से है, जिसके चलते जुकाम हर कभी हो जाता था और खांसी भी चलने लगती थी.

बहरहाल आराम फरमा रहे केजरीवाल के बोले बिना राजनीति में कुछ दिन उदासी सी तो रहेगी, जो एक खास अदा से जी और सर जी बोलते गर्मियों में रुमाल और सर्दियों मे मफ़लर का इस्तेमाल नाक छुपाने के लिए करते थे. देखने की एकलौती दिलचस्प बात यह रहेगी कि वे चुप रहने का परहेज कितने दिन कर पाते हैं और आपरेशन के बाद जब पहली दफा बोलेंगे तो क्या बोलेंगे.

प्रियेश सिन्हा चले छोटे परदे से बड़े परदे की तरफ

‘‘मोस्ट पापुलर फेस आफ पूर्वांचल’’ से सम्मानित प्रियेश सिन्हा ने पूर्वांचल में कार्यक्रम संचालक के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनायी है. उन्हे कुछ लोग स्टाइलिश कलाकार की भी संज्ञा देते हैं. स्टेज पर मंच संचालन के साथ ही वह  कई रियालिटी शो और टीवी सीरियलों में अभिनय कर चुके हैं. यदि प्रियेश सिन्हा के दावे को सच माना जाए, तो अब तक वह टीवी सीरियलों के चार हजार से अधिक एपीसोडों में अभिनय चुके हैं. 25 से अधिक रियलिटी शो में संचालक रहे हैं. वह हजार से अधिक  मंच संचालन कर चुके हैं. और अब वह टीवी को कुछ समय के लिए अलविदा कह कर फिल्मों की तरफ रूख कर रहे हैं.

प्रियेश सिन्हा का दावा है कि वह इन दिनों बतौर हीरो ‘‘ब्लू फाक्स मोशन पिक्चर्स’’ की दो भोजपुरी भाषा की फिल्मों ‘‘वीर अर्जुन’’ तथा ‘हर हर महादेव’ में अभिनय कर रहे हैं. प्रियेष ने कहा-‘‘कार्यक्रम संचालक के रूप में मेरी एक पहचान है. पर अब मैं बड़े परदे पर एक कलाकार के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहता हूं. मेरे अंदर गजब की अभिनय क्षमता है. मेरा दावा है कि जब मेरी यह दोनों फिल्में प्रदर्षित होंगी, तो हर कोई मेरी अभिनय क्षमता की ही चर्चा होगी. इन दोनों फिल्मों के माध्यम से मैं अपने आपको कलाकार के तौर पर विस्तार देना चाहता हूं. मुझे लगता है कि मैने अब तक ईमानदारी व मेहनत के साथ जो काम किया है, उसी के प्रतिफल के तौर पर मुझे यह फिल्में मिली हैं. पर इससे मेरी जिम्मेदारी बढ़ गयी है. अब मुझे ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. मुझे बहुत कुछ सीखना है.’’ 

शौकत कैफी आजमी ने रोमांटिक सैयामी खेर से क्या कहा

राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ से हिंदी फिल्म जगत में कदम रख रही सैयामी खेर का संबंध भी फिल्मी खानदान से ही है. वह पचास के दशक की चर्चित अदाकारा उषा किरण की पोती और अभिनेत्री तन्वी आजमी की भतीजी है. जबकि शबाना आजमी उनकी मौसी हैं.

मशहूर प्रेम कथा ‘‘मिर्जा साहिबान’’ पर आधारित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में सैयामी खेर ने साहिबान के अलावा वर्तमान समय की लड़की शुचि का भी किरदार निभाया है. शुचि, साहिबान की प्रेरम कहानी सुनकर प्रभावित होती है. यानी कि साहिबान व शुचि दोनों अपने अपने प्रेमी से प्यार करती हैं. कहने का अर्थ यह है कि सैयामी खेर ने फिल्म ‘मिर्जिया’ में रोमांटिक किरदार निभाया है.

साहिबान और शुचि की तरह सैयामी खेर निजी जिंदगी में भी काफी रोमांटिक हैं. इस बात को उन्होने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से खास बातचीत के दौरान स्वीकार करते हुए कहा- ‘‘देखिए, प्यार न हो तो जिंदगी ही नहीं चलती. मैं बहुत रोमांटिक हूं. प्यार कई तरह का होता है. लड़के व लड़की बीच जो प्यार होता है, वह एक टाइप का प्यार होता है. पर प्यार दादी या कुत्ते से भी हो सकता है. आजकल की युवा पीढ़ी को प्यार की परिभाषा समझ में नहीं आ रही है, इसलिए रिश्ते टूट रहे हैं. इनके बीच झगड़े बढ़ गए हैं. अब दया व प्यार का इक्वेशन कम हो रहा है.’’

जब हमने सैयामी खेर से कहा-‘‘यानीकि वर्तमान पीढ़ी प्यार को नहीं समझ पा रही है?’’इस पर सैयामी खेर ने विस्तार से बात करते हुए यह भी बताया कि एक बार शबाना आजमी की मम्मी शौकत आजमी ने उनसे क्या कहा था. सैयामी खेर ने कहा-

‘‘मैं भी आज की पीढ़ी से ही हूं. पर आप सही कहते हैं. अब प्यार की परिभाषा बदल रही है. दस साल पहले जो प्यार होता था, वह अब नहीं रहा. मैं जब शौकत आपा, जो कि शबाना मौसी की मम्मी हैं, उनके साथ में बहुत बात करती थी. मैने उनके जैसा रोमांटिक कवि भी नहीं देखा. मैं उनसे उर्दू भाषा की ट्रेनिंग लेती थी. मैं खुशनसीब हूं कि मुझे उनके साथ वक्त गुजरने का वक्त मिला. उन्होंने अपनी बायोग्राफी ‘शौकत एंड आई’ लिखी है. जो कि कैफी साहब और उनकी बहुत प्यारी प्रेम कहानी है. उन्होने मुझसे कहा, ‘बेटे आपकी उम्र के बच्चे मोहब्बत करते ही नहीं हैं. वह सिर्फ टिक मार्क देखते हैं कि इसके पास यह है या नहीं. जबकि लोगों को चाहिए कि वह देखें कि मोहब्बत क्या चीज है. इसका हमारी पीढ़ी में अभाव है.’’

तो अनिवार्य हो गया आधार

केंद्र सरकार यूनिक आइडेंटिटी रेग्युलेशंस (यूआईडी) अधिसूचित करने की तैयारी में है. इस रेग्युलेशन के लागू होने के बाद सभी सरकारी स्कीमों के लिए आधार का इस्तेमाल अनिवार्य हो जाएगा. लेकिन, इस कानून की सबसे अच्छी बात यह है कि विभिन्न स्कीमों को ऑपरेट करने वाली एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी लोगों के पास आधार नंबर हो. यानी अब उन सभी सब्सिडी और स्कीमों का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य हो जाएगा, जिसकी फंडिंग केंद्र सरकार करती है.

शुरू में विभिन्न सिविल सोसायटी ग्रुप ने यह आशंका जताई थी कि वैसे असल लाभार्थी सरकारी स्कीमों से वंचित रह सकते हैं, जिनके पास यूआईडी नहीं है. इस आशंका को दूर करने के लिए नए नियम में एक क्लॉज जोड़ा गया है. अब एजेंसियों जैसे ऑइल कंपनी या बैंकों की यह जिम्मेदारी होगी कि वे सुनिश्चित करें कि लोगों के पास आधार नंबर हों. लोगों के पास आधार नंबर हो, यह सुनिश्चित करने के लिए इन एजेंसियों को रजिस्ट्रार से समझौता करने के लिए कहा गया है. ये एजेंसियां खुद से भी आधार के लिए पंजीकरण कर सकती हैं. नया कानून और इसके रेग्युलेशंस से सरकार को अन्य सभी सरकारी स्कीमों जैसे मनरेगा, पेंशन, कूकिंग गैस, पीडीएस, ईपीएफ और जन धन खाते को यूआईडी के दायरे में लाने में मदद मिलेगी.

यूआईडीएआई के सीईओ अजय भूषण पांडे ने बताया, ‘मंत्रालयों को उन स्कीमों को अधिसूचित करना होगा, जिनके लिए आधार जरूरी है. अगर किसी के पास आधार नहीं होता है, तो उनको इसके लिए पंजीकरण कराने को कहा जाएगा. अगर पंजीकरण सुविधा आसानी से उपलब्ध नहीं है तो एजेंसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को अधर में न छोड़ा जाए.’

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