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खाने की चीजों की खरीदारी और हिफाजत

बाजार में कई तरह की खाने की चीजें मिलती हैं. इसलिए यह जानकारी होना बहुत जरूरी है कि उन में से अपनी जरूरत की कौन सी वस्तु खरीदी जा सकती है. खाने की चीज खरीदने के बाद हमारी अगली समस्या होती है, उसे संभाल कर रखने की. कई बार देखने में आता है कि कुछ चीजें जल्दी खराब हो जाती हैं, जैसे फल व सब्जियां. ये सड़गल जाती हैं. दालों को कीड़े खा जाते हैं. इस की 2 वजहें हो सकती हैं कि या तो हम ने खाने की चीजों का ठीक से चयन नहीं किया या उन्हें सही प्रकार से संभाल कर नहीं रखा. लिहाजा पैसे का सही इस्तेमाल हो सके इस के लिए हमें खाने की चीजें खरीदते वक्त और उन का भंडरण करते वक्त सावधानी रखना बहुत जरूरी है.

खाने की चीजें खरीदते वक्त ध्यान रखने योग्य बातें

* खाने की चीजें जितनी जरूरी हों, उतनी ही खरीदें.

* भंडारण के लिए मौजूद जगह के मुताबिक ही सामान खरीदें.

* खाने का सामान इस्तेमाल के हिसाब खरीदें.

* खाने का सामान मौसम के मुताबिक खरीदें.

* सुरक्षित व मानकीकरण चिन्ह देख कर ही खाने की चीजें खरीदें.

* अच्छी दुकान से ही खरीदारी करें.

* खाने के सामान की कीमत  और किस्म देख कर ही उसे खरीदें. कुछ खाने के सामानों को आप थोक में खरीदकर महीनों इस्तेमाल करते हैं, तो कुछ समान आप को रोजाना खरीदने पड़ते हैं.

खरीदारी से पहले जांचपरख

*       ये साफ होने चाहिए. इन में कंकड़पत्थर या अन्य बीजों की मिलावट न हो.

*       दाने सड़े हुए, घुन लगे या जाले वाले न हों.

*       दानों का रंग और आकार सही हो.

*       दाने, सूखे, मोटे व सही हों.

*       घी और तेल ताजे होने चाहिए व उन में बदबू नहीं आनी चाहिए.

*       खुले घी और तेल नहीं खरीदने चाहिए, क्योंकि उन में मिलावट हो सकती है.

*       मानकीकरण चिन्ह वाले बंद डब्बे ही खरीदने चाहिए.

*       नमक में नमी नहीं होनी चाहिए.

*       मसाले उम्दा किस्म के और साफ व सूखे होने चाहिए.

*       पिसे मसाले केवल मानकीकृत चिन्ह वाले ही खरीदें वरना उन में मिलावट की संभावना रहती है.

*       इन का रंग, स्वाद व सुगंध कुदरती होनी चाहिए.

*       इन में कीड़ा नहीं लगे होने चाहिए.

*       मक्खन में रंग और नमक अधिक नहीं होना चाहिए.

*       मक्खन में से पानी न निकला हो.

*       इन्हें अच्छी डेरी या सहकारी दुकानों से खरीदना चाहिए.

*       दूध ताजा व बगैर किस महक का होना चाहिए.

*       साफ डेरी से दूध लें या पौलीथीन की थैलियों का दूध लें.

*       पनीर सफेद, ताजा और बगैर किसी महक वाला होना चाहिए. उस पर फफूंदी न लगी हो.

* दही अच्छी तरह जमी हो, उस का स्वाद मीठा या हलका सा खट्टा होना चाहिए.

*       मांस लाल रंग का बगैर महक का चिकना व छूने में कड़ा होना चाहिए.

* मछली के स्केल चमकीले व त्वचा से जुड़े होने चाहिए, आंखें स्पष्ट और जबड़ा लाल व चमकदार होना चाहिए.

*       मांस और मछली चिपचिपे नहीं होने चाहिए.

* फल और सब्जियां खरीदते समय इस्तेमाल का ध्यान रखना जरूरी है.

*       पत्तेदार सब्जियों के पत्ते चमकीले, हरे रंग के व कड़े होने चाहिए. पीले धब्बेवाले व मुरझाए हुए पत्तों में पौष्टिक तत्त्व कम होते हैं.

भंडारण

*       इन्हें साफ, सूखे व हवाबंद डब्बों में रखें.

*       चावल को खराब होने से बचाने के लिए उस में नमक, हल्दी या नीम की पत्तियां मिलाएं.

*       इन में कोई कीटनाशक दवा डाल कर बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए.

*       इन्हें साफ, सूखे हवाबंद डब्बों में रखना चाहिए.

( डा. नलिनी चंद्रा व डा. रजिया परवेज )

मखाना मिथिलांचल की पहचान

हजारों साल पहले मखाना चीन से चला और जापान को लांघते हुए पूर्वोत्तर भारत होते हुए बिहार के मिथिलांचल में आ कर रुक गया. मिथिलांचल में जहां पानी का भरपूर भंडार है, वहां की आबोहवा और मिट्टी भी मखाने की उम्दा खेती के लायक है. मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, पूर्णियां, कटिहार, सुपौल और सीतामढ़ी जिलों में मखाने की भरपूर खेती होती है. मिथिलांचल के जिलों में करीब 16 हजार तालाब हैं, जिन में मखाने का भरपूर उत्पादन होता था, पर पिछले कुछ सालों से ज्यादातर तालाबों का इस्तेमाल ही नहीं हो रहा?है. मखाने की खेती ठहरे हुए पानी के तालाब में ही होती है. डेढ़ से 2 मीटर गहराई वाले तालाब मखाने की खेती के लिए काफी मुफीद होते हैं. कृषि वैज्ञानिक ब्रजेंद्र मणि कहते?हैं कि मिथिलांचल में मखाने की अच्छी व कुदरती खेती होती है. समूचे भारत में मखाने का कारोबार 800 करोड़ रुपए का है और देश भर में करीब 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती होती है, जिस में से 80 फीसदी पैदावार बिहार में होती है. बिहार में भी 70 फीसदी पैदावार मिथिलांचल में होती है. तकरीबन 12.50 लाख टन मखाने की गुर्री पैदा होती है, जिस में से 45 हजार टन मखाने का लावा निकाला जाता है.

मखाने का उत्पादन करने वाले मधुबनी के किसान अजय मिश्रा बताते हैं कि मिथिलांचल में भरपूर पानी होने की वजह से यहां मखाने की उम्दा और काफी पैदावार होती है. मखाने की बोआई दिसंबर से जनवरी के बीच पूरी कर ली जाती है और अप्रैल महीने तक तालाब का ऊपरी हिस्सा पूरी तरह से मखाने के बड़े और कंटीले पत्तों से भर जाता है. मई महीने में पानी में ऊपर बैगनी रंग के फूल आने शुरू हो जाते हैं, जो 2-3 दिनों में खुद ही पानी के भीतर चले जाते हैं. जुलाई महीने के आखिर तक मखाने की फसल तैयार हो जाती है और हर पौधे में 12 से 20 फल लगते हैं. फटने के बाद मखाने तालाब की निचली सतह पर जमा हो जाते हैं.

पानी के अंदर से मखाने को निकालने का काम काफी मुश्किल और जोखिम भरा होता है. प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 15 माहिर मजदूर पानी के भीतर गोता लगा कर मखाने को निकालते हैं, जिस में कम से कम 15 दिनों का समय लगता है. पानी के नीचे सतह पर जमे मखाने के बीजों को बुहार कर जमा किया जाता है और बांस से बने गांज के जरीए उसे बाहर निकाला जाता है. बीजों को हाथों और पैरों से मसलमसल कर उस के?ऊपरी छिलके को हटाया जाता है. गुर्री को भून कर एकएक दाने को हथौड़ी जैसी लकड़ी से फोड़ा जाता है. कृषि वैज्ञानिक सुरेंद्र नाथ बताते हैं कि दाने को फोड़ना बड़ी कारीगरी और सावधानी का काम है. दाने पर अच्छी चोट पड़ती है तो उस से बड़े साइज का मखाना निकलता है.मखाने को पानी के अंदर से निकालना काफी मुश्किल भरा काम होता है. मखाने के बीज को पानी के भीतर सतह से बुहार कर निकालना हर किसी के बस की बात नहीं है. इसे माहिर मल्लाह ही कर सकते हैं, पर इस काम में ज्यादा जोखिम औ र कम मुनाफा होने की वजह से मल्लाह इस काम को छोड़ रहे हैं. पिछले 27 सालों से मखाने निकालने का काम कर रहे देवेश साहनी बताते हैं कि गंदे पानी में घुस कर मखाने निकालने से मजदूर कई तरह के चर्म रोगों व निमोनिया जैसी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. बीमार पड़ने पर किसानों या सरकार द्वारा कोई मदद नहीं दी जाती है, जिस से सैकड़ों मजदूर घुटघुट कर मर जाते हैं. मल्लाह अपने बच्चों को यह काम नहीं करने देते हैं. इस वजह से अब माहिर मल्लाह इक्केदुक्के ही बचे हैं.

पिछले 20 सालों से मखाने की खेती कर रहे असलम आलम बताते हैं कि तालाबों को भर कर मकान बनाने से मखाना उत्पादन पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है. मखाने की खेती को बचाने और बढ़ाने के लिए सरकार ने दरभंगा में मखाना शोध संस्थान तो खोला पर वह सफेद हाथी बन कर रह गया?है. हर फसल का अच्छे किस्म का बीज तैयार किया जाता है, पर मखाने का अच्छा बीज अभी तक तैयार नहीं किया जा सका है और न ही सरकारी और गैरसरकारी लेवल पर इस की खेती को प्रोत्साहन देने के कदम उठाए जा रहे हैं. इस के भंडारण और बाजार का कोई ठोस नेटवर्क नहीं होना भी किसानों के लिए परेशानी का सबब है. इस से होता यह?है कि किसान थोक व्यापारियों या बिचौलियों को औनेपौने भाव में मखाना बेच देते हैं. कई किसानों की तो पूंजी भी नहीं निकल पाती है. ऐसे में मखाने की खेती करने वाले कई किसान इस से मुंह मोड़ने लगे हैं.

सरकार और प्राइवेट सेक्टर से भी मखाना उद्योग को किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही है. इस से पिछले कुछ सालों में खेती का आकार घट गया है और लगातार इस में कमी आती जा रही है. अब मखाने की खेती और पैदावार दम तोड़ रही है. ज्यादातर किसान कहते हैं कि अगर मिथिलांचल की पहचान मखाने को बचाने के लिए सरकार ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो मखाने की खेती दम तोड़ सकती है.

नूरजहां की मिस्टेक

किस्सा कुछ इस तरह से है कि जब मुख्यमंत्री कल्लू सिंह अपनी बीवी जलेबी देवी को अपना ताज दे कर तिहाड़ को गए, तो बहुत लोगों के मन में यह शक पैदा हो गया कि उन की पत्नी इतने बड़े पद को संभाल पाएंगी या नहीं. कल्लू सिंह 8वीं जमात से ज्यादा नहीं पढ़ सके थे, पर बोलचाल व वादविवाद में वे सब के गुरु थे. जलेबी देवी अपने मिडिल पास शिक्षा मंत्री दुखहरन से भी कम पढ़ीलिखी थीं यानी प्राइमरी फेल थीं. पर वे बातव्यवहार, स्टाइल और अंगरेजी में दोनों से सुपीरियर पड़ रही थीं. जनताजनार्दन या बड़े अफसरों का उन को ‘मैडम’ कहतेकहते मुंह नहीं थकता था. वैसे, जलेबी देवी के इस बदलाव में आईएएस पीए संत तुषार देव यानी एसटीडी उर्फ संतू का बहुत बड़ा हाथ था.

पीए संतू जलेबी देवी को चक्करदार राजनीतिक भंवरों, नुकीली संवैधानिक चट्टानों और तूफानी विरोधी थपेड़ों से बचा कर निकाल लेता था. कम ही लोगों को पता था कि मैडम के पास ईयरफोन भी है, जिस से वे अपनी हिदायतें गाहेबगाहे डायल किया करती थीं. फर्ज कीजिए, किसी सभा में मैडम का भाषण उबाल बिंदु पर उछाल लगाने वाला हो, तभी ईयरफोन में इंस्ट्रक्शन आ जाता ‘डाउनडाउन’ और वे तत्काल नोज डाइव मार कर नीचे आ जातीं. पर काफीकुछ रटाएसिखाए जाने के बावजूद ऐसा होता कि एसटीडी को ‘कटकट’ कह कर पैकअप कराना पड़ता. जैसे उस दिन जब सरकारी अस्पताल के जच्चाबच्चा विंग के उद्घाटन के मौके पर जलेबी देवी ने यों कहना शुरू किया, ‘‘देवियो और सज्जनो, यहां मैटरनिटी अस्पताल खोल दिया गया है. जितने बच्चे चाहे पैदा कीजिए, कोई डर नहीं.

‘‘दाई से नाल कटवाने की जरूरत नहीं है. इन दाइयों ने हमारे 3 बच्चे मरवा दिए, नहीं तो इस समय हमारे 17 बच्चे होते. है कोई, जो आज के जमाने में इतने…’’ तभी एसटीडी को बड़े जोर से ‘कटकट’ कह कर उन के भाषण को खत्म कराना पड़ा. शुरूशुरू में तो जलेबी देवी अपने चतुर पीए संतू की बातें मान लिया करती थीं, पर जैसेजैसे दिन बीतते गए और उन्हें अपनी पोजीशन और पावर का एहसास हुआ, तो वे उस की हिदायतें दरकिनार करने लगीं. भला हो राज्य की भोलीभाली जनता का, जिस ने जलेबी देवी के कहे को कभी कान नहीं दिया. कान दिया तो उन के अच्छे कामों को, जिन में लगान माफी से ले कर तार काटे जाने की माफी भी शामिल थी.

तकरीबन 2 सौ लोगों को उन्होंने गबन, डकैती, बलात्कार, हत्या जैसे मामलों में जेल जाने से बचाया होगा. कितने अपढ़ बेरोजगारों को निगमों का चेयरमैन, कितने ही जाली डिगरी वालों को वाइसचांसलर बना दिया. क्या इन सब का कोई हिसाब है? पर बुरा हो उन के विरोधियों का, जिन्हें उन के हर अच्छे काम में ऐब नजर आता. और तो और उन की अपनी पार्टी में भी पंचानन राय और तिलकुट यादव जैसे कई जयचंद थे, जिन्हें जलेबी देवी का दबदबा खाए जा रहा था. पर धन्य हो भेड़ का दूध पीए जलेबी देवी के कलेजे का, जो सभी दांवपेंचों से बेखबर राज्य की खड़बडि़या मोटरगाड़ी को मर्सिडीज बैंज की शान से लहराए चली जा रही थीं. जैसे आज ही अविश्वास प्रस्ताव के गहराए बादल को दरकिनार कर उन्होंने 3-4 उद्घाटन के फीते काट डाले और लच्छेदार भाषण दे डाले. हर जगह नियमपूर्वक ‘जब तक सूरज चांद रहेगा…’ वाले नारे के साथ तालियां पिटवा दीं.

भाई के दसलखी ‘ब्यूटी पार्लर’ के उद्घाटन के बाद तो उन्होंने बाकायदा अपना कायाकल्प ही करा डाला. पर ‘ब्यूटी पार्लर’ से निकलते ही एक दिक्कत आ गई. नदी पार गंजी गांव में 5 दलितों की हत्या की खबर आई. यह सुन कर जलेबी देवी का मूड बिगड़ गया. शाम को बांगड़ू गवर्नर की इफ्तार पार्टी में बिरियानी उड़ानी थी. अब पहले गंजी गांव जाना पड़ेगा. वहां से लौटने पर पता नहीं कितना मेकअप बचा रह पाएगा. वैसे, पुलिस महानिरीक्षक उन के वहां जाने के पक्ष में नहीं थे. पर पार्टी उपाध्यक्ष राम नगीना ने चेतावनी दी, ‘‘आप को हारना हो, तो मत जाइए.’’ जब जलेबी देवी ने अपने पीए संतू की राय ली, तो उस ने कहा, ‘‘वहां जाने में कोई हर्ज नहीं, पर मेकअप डाउन करना पड़ेगा.’’

जलेबी देवी बोलीं, ‘‘इतनी मेहनत से तो मेकअप कराया था, अब सब गंवा दें?’’ सो लेदे कर काफिला गंजी गांव की ओर बढ़ा. रास्ते में पीए संतू ने लाचारी के भाव के बावजूद जलेबी से ‘खून की आखिरी बूंद’ वाला डायलौग बारबार बुलवा कर चैक किया और कई दूसरी हिदायतें भी दीं, जैसे गले से भर्राई आवाज कैसे निकालनी चाहिए. दोपहर बाद मुख्यमंत्री का दल घटना वाली जगह पर पहुंच गया. वहां हायतोबा मची हुई थी. प्रशासन के खिलाफ भीड़ नारे लगा रही थी. एक जगह माले नेता राम कटार माइक से आग उगल रहे थे. भीड़ इतनी थी कि पुलिस कोई भी कार्यवाही करने से हिचक रही थी. राम कटार ने अपना भाषण बीच में रोक कर गरजती आवाज में भीड़ से पूछा, ‘‘पहचानो… ये कौन हैं?

अरे, ये तो नूरजहां हैं.’’

भीड़ के बीच हंसी की एक लहर दौड़ गई.

‘‘बेगम नूरजहां यहां आई हैं, इंसाफ बांटने. समझे? जहांगीरी इंसाफ तो जानते ही हो, कितना मशहूर है. पहले भी नमूना देख चुके हो,’’ राम कटार चुनचुन कर जहर बुझे बाण जनता के दिल में उतार रहे थे.

‘जलेबी देवी हायहाय’ भीड़ ने नारा बुलंद किया.

अफसर चौकन्ने हुए और पुलिस की एक टुकड़ी राम कटार को शांत कराने के लिए लपकाई गई, पर राम कटार लातघूंसों की मार के बावजूद माइक छीने जाने तक जलेबी देवी की अच्छी गत बना चुके थे. ‘‘बड़ी पीर है इन के जिगर में. देखते नहीं हो,’’ वे चिल्लाते रहे, ‘‘लिपस्टिकपाउडर सब गवाह हैं… मारे दुख के अपने आधे बाल कटा दिए हैं. जहांगीर होते, तो पूरा सिर मुंड़वा के आते. नूरजहां बीवी होने के नाते आधे पर काम चला रही हैं.’’ थोड़ी देर बाद राम कटार और उन के साथियों का बंदोबस्त हो जाने के बावजूद भीड़ में जोश बढ़ता जा रहा था.

पीए संतू ने राय दी कि मैडम का अब यहां रुकना ठीक नहीं. जल्द से जल्द इन्हें इस झंझट से निकाल बाहर करना चाहिए. पर राम नगीना ने जोर दिया कि यहां आ कर बिना बोले चले जाना ठीक नहीं है. जनता में गलत संदेश जाएगा.

मैडम के बोलते ही भीड़ शांत हो जाएगी, ऐसा उन्हें यकीन था. शोरगुल के बीच उन्होंने जलेबी देवी को माइक पकड़ा दिया और चिल्लाचिल्ला कर भीड़ को बता दिया कि मुख्यमंत्री आप लोगों से कुछ कहना चाहती हैं. आखिरकार जलेबी देवी ने अभ्यास की गई भर्राई आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘प्यारे भाइयो और बहनो…’’

कड़ी धूप में उन के ऊपर की गई कलाकारी का रंग दूरदूर तक चमक रहा था. एक किनारे पोस्टमार्टम के लिए तैयार की गई पांचों लाशें जमीन पर पड़ी थीं और दूसरी ओर…

अचानक एक जूता जलेबी देवी के सिर पर आ गिरा, जिस से उन का चश्मा दूर जा गिरा और बाल बिखर गए. जब तक वे संभलतीं, तब तक और कई जूतेचप्पलों ने उन का बाकी का हुलिया बदल दिया. पुलिस डंडा फटकारते हुए दंगाइयों की ओर बढ़ी. गंदे नारों से आसमान गूंजने लगा. ‘हत्यारिन, चोर, पापिन…’ चोट और बेइज्जती से तिलमिलाई जलेबी देवी का सारा सब्र जाता रहा. वे गला फाड़ कर चीखीं, ‘‘मार के बिछा दो सबों को… फिर हम देख लेंगे… किसी को पहनेओढ़े नहीं देख सकते हैं… अच्छा हुआ मर गए. और भी मरे होते तो अच्छा था…’’

पीए संतू ने उन के हाथों से माइक छीन कर दूर फेंका और सिक्योरिटी वालों की मदद से उन्हें तत्काल बाहर निकाल कर रवाना किया. पर कई मीडिया वाले जलेबी देवी की चुनिंदा गालियों और उन के दलित प्रेम की बानगी अंत तक रेकौर्ड करते रहे. शाम की खबरों में इस महाभारत की खबरें प्रसारित हो गईं और 2 सहयोगी पार्टियों की समर्थन वापसी से सरकार गिर गई. यह अलग बात है कि 6 महीने बाद ही कल्लू सिंह की अद्भुत कुशलता के चलते जलेबी देवी फिर से पद पर आसीन हो कर जनकल्याण में जुट गईं. लेकिन उन्होंने अपना मिस्टेक को नहीं दोहराया. अब वे खूनी घटना वाली जगहों पर बिना मेकअप वाले रूप में ही जाती हैं. गंजी गांव में तो 5 खून पर ही महाभारत मच गया था, पर अब 12-13 लाशों पर भी उतना कुहराम नहीं मचता. पीए संतू के डायरैक्शन में वे राज्य को और ज्यादा मजबूती और शांति की ओर बढ़ा रही थीं.

राजनीति में परिवारवाद सही या गलत

राजनीति भी धंधा ही है और जो लोग गांधी परिवार की आज भी सत्ता पर पकड़ से चिढ़ कर परिवारवाद को राजनीति का काला धब्बा मानते हैं, गलत ही हैं. जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद लगा था कि नेहरू परिवार नाम की चीज न रहेगी पर फिर इंदिरा गांधी आ गईं. 1977 में हारने के बाद लगा कि अब परिवार समाप्त हो गया पर 1981 में फिर आ गईं. पहले संजय गांधी और फिर इंदिरा गांधी की असामयिक मौत के बाद लगा कि परिवार का राज गया पर फिर राजीव गांधी आ गए. 1989 में हारने के बाद लगा कि लो अब तो अंत हो गया पर 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंह राव की जो सरकार बनी वह गांधी परिवार की ही थी. 1998 में सोनिया गांधी राजनीति में आ गईं पर लगा कि वे केवल मुखौटा रहेंगी पर 2004 में जीत गईं और अब 2014 में हारने के बाद भी वे जमी हुई हैं और शायद प्रियंका गांधी भी राहुल गांधी के साथ मिल कर परिवारवाद का कलश चमकाए रखें.

यह यहीं नहीं हो रहा. अमेरिका में बिल क्लिंटन की 8 साल की प्रैजीडैंसी का लाभ उठा कर हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं. दूसरी ओर सिरफिरे दिखने वाले डोनाल्ड ट्रंप के चारों ओर 2 बेटे, 1 बेटी और पत्नी चुनाव का भार संभाले हुए हैं. 8-10 साल बाद मिशेल ओबामा राजनीति में कूद पड़ें तो आश्चर्य न होगा. वहां कैनेडी परिवार तो जानामाना परिवारवादी था पर अब चूंकि एकएक कर के बहुत से मौत के शिकार हो गए, अब यह नाम भुला दिया गया है. राजनीति में परिवारवाद नहीं चलेगा, ऐसा नहीं हो सकता. रामायण की कहानी परिवारवाद से भरी पड़ी है. महाभारत का युद्ध विदेशियों में नहीं परिवार में हुआ. मुगलों का इतिहास परिवार में सत्ता की लड़ाई से भरा है. सभी देशों में राजा के पुत्र का राजा बनना स्वाभाविक लगता है. लोकतंत्र और वोटतंत्र उसे समाप्त नहीं कर पाया है. इसे सहज स्वीकारने में हिचक नहीं होनी चाहिए. लोगों को अनुभवी शासक चाहिए जिस के बारे में वे जानते हों. जैसे विवाह से पहले वरवधू के गुण कम उन के मातापिताओं के गुण ज्यादा देखे जाते हैं, वैसे ही राजनीति में नए नेता को परखने के लिए उस के मातापिता का इतिहास काम में आता है. डोनाल्ड ट्रंप या हिलेरी क्लिंटन में कौन राष्ट्रपति बनता है यह दूसरी बात है पर राज परिवार का चलेगा, यह पक्की बात है.

मैं सांवले रंग की वजह से बहुत परेशान हूं. कोई ऐसा घरेलू उपाय बताएं, जिस से रंगत में सुधार हो सके.

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. अपने सांवले रंग की वजह से बहुत परेशान हूं. सांवला रंग मुझे अपने व्यक्तित्व की सब से बड़ी कमी लगता है. कोई ऐसा घरेलू उपाय बताएं, जिस से त्वचा की रंगत में सुधार हो सके?

जवाब

किसी भी व्यक्ति का सांवला या गोरा होना प्राकृतिक होने के साथसाथ जैनेटिक भी होता है, जिसे पूरी तरह बदलना मुश्किल होता है. सांवलापन कोई कमी नहीं है. वैसे भी आजकल डस्की ब्यूटी का जमाना है. फिर भी आप चाहें तो कुछ घरेलू उपाय अपना कर अपनी रंगत में सुधार ला सकती हैं.

आप कच्चे दूध का प्रयोग टोनर की तरह करें. कौटन की सहायता से दूध को चेहरे पर लगाएं व हलके हाथ से मसाज करें. जब दूध त्वचा में पूरी तरह समा कर सूख जाए तब चेहरे को धो लें.

इस से त्वचा की रंगत में सुधार आएगा. इस के अलावा पपीते का पल्प चेहरे पर लगाने से भी त्वचा में निखार आता है. इस के अतिरिक्त त्वचा को धूप से बचाएं. घर से बाहर निकलते समय एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन लगाएं.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

मैं कालेजगोइंग गर्ल हूं. मेरे बाल हलके हैं. मुझे उन्हें हैल्दी व लंबे करने का कोई घरेलू उपाय बताएं.

सवाल

मैं कालेजगोइंग गर्ल हूं. मेरे बाल हलके हैं. मुझे उन्हें हैल्दी व लंबे करने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

जवाब

बालों को स्वस्थ एवं लंबा करने के लिए नियमित उन की औयलिंग करें. औयलिंग के लिए आप नारियल या जैतून के तेल का प्रयोग कर सकती हैं. बालों पर कैमिकल ट्रीटमैंट कम से कम कराएं. ये ट्रीटमैंट्स बालों को कमजोर बनाते हैं. बालों को स्वस्थ रखने के लिए आंवला पाउडर व नीबू के रस को बराबर मात्रा में मिला कर पेस्ट बना कर उन पर लगाएं. पेस्ट सूखने पर उन्हें कुनकुने पानी से धो लें. इस के अतिरिक्त आप चाहें तो आलू के रस को भी बालों पर लगा सकती हैं. यह भी बालों को स्वस्थ व मुलायम बनाने में मदद करेगा. आलू के रस में विटामिन एबीसी होते हैं, जो बालों को नरिशमैंट देते हैं.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

विद्या बालन को डेंगू का डंक

वैसे तो देश भर में हजारों लोग डेंगू के डंक का खामियाजा भुगत रहे हैं, पर जब स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड एम्बेसडर विद्या बालन खुद डेंगू का शिकार हो जाती हैं, तो बात सुर्खियों में आ जाती है. इंटरनेशनल लेवल पर इस बात की चर्चा हो रही है जब श्रीलंका जैसे देश मच्छर मुक्त हो सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं?

डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी तमाम कई बीमारियां गंदगी से होती हैं, क्योंकि इस गंदगी और जलभराव वाली जगहों पर ही मच्छर पैदा होते हैं. मच्छरों से होने वाली बीमारियां देश में सबसे अधिक रोग का कारण बन रही हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके में दिमागी बुखार से सैकड़ों लोग मरते हैं. केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और कोर्ट तक मामले को संज्ञान में लिये हैं, इसके बाद भी इस दिशा में कोई सुधार नहीं हो रहा. केवल अस्पताल बना देने से बीमारी की समस्या का समाधान नहीं होने वाला.

अस्पतालों में आने वाले मरीजों की बीमारियों को देखें तो पता चलता है कि 80 फीसदी बीमारियों की वजह गंदगी और पीने के लिये साफ पानी का न होने है. विश्व भर में सेहत के लिये काम कर रहे लोग भारत को श्रीलंका जैसे छोटे से देश से सबक सीखने की सीख दे रहे हैं. श्रीलंका जैसे देश मच्छरों को दूर कर मलेरिया मुक्त हो गये है.

दूसरी तरफ भारत जैसे देश में मच्छर खत्म होने के बजाये बढ़ते जा रहे हैं. कुछ साल पहले तक डेंगू से मरने वालों की संख्या काफी कम थी. इस साल यह संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है. डेंगू एक जानलेवा बीमारी हो गई है. हालात इतने खराब हैं कि सरकारी अस्पतालों में मरीजो को भर्ती करने के लिये बेड खाली नहीं हैं. प्राइवेट अस्पतालों में डेंगू का इलाज इतना मंहगा हो गया है कि आम जनता इसे सहन नहीं कर पाती.

भारत में साफसफाई, सेहत रोजगार की बातें कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनती. इस वजह से सरकारें इस ओर ध्यान नहीं देती. अस्पताल खोलने से काम नहीं चलने वाला. बीमारी फैलाने की वजहे खत्म हो तभी सेहत के मसले सुधरेंगे.   

सपा में ‘दूसरी पीढ़ी’ के भविष्य की कशमकश

पांच दिन तक समाजवादी पार्टी में चली कलह की कहानी का सुखद अंत हो गया. इस बात का अंदाजा पहले से भी था. देखने वाली बात यह थी कि बीच का रास्ता किन बिन्दुओं से होकर गुजरेगा. सपा में केवल परिवार का विवाद है. परिवार के लोगों के अहम की वजह से है. ‘बाहरी ताकतें‘ केवल आग में घी डालने का काम कर सकती हैं. आग तो परिवार के लोग ही लगाने में सक्षम हैं.

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की यह बात सही है कि ‘जब तक मैं हूं, पार्टी नहीं बंटेगी’. यही वह बात है जो मुलायम सिंह की पीढ़ी तो समझ रही है पर यादव परिवार की दूसरी पीढ़ी यह समझने को तैयार नहीं है. यादव परिवार के इस सियासी जंग में दूसरी पीढ़ी को अपने भविष्य की चिंता है. 5 दिन चली जुबानी जंग में ही दूसरी पीढ़ी के लोग केवल अपने पिताओं के पीछे ही खड़ें नजर आये. स्वाभविक तौर पर अगर मसला मुलायम की पीढ़ी का होता, तो दूसरी पीढ़ी के चेहरे  जुबानी जंग के इस फ्रेम से बाहर रहते. चूंकी चिंता दूसरी पीढ़ी के अपने हितों की थी इसलिये वह अपने पिताओं के साथ खड़े दिखे.

प्रदेश की जनता एक बार सुलह के फार्मूले में शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच मतभेद को भूल भी सकती है पर उसे इस बात का मलाल है कि गायत्री प्रजापति की वापसी क्यों? गायत्री प्रजापति की वापसी की क्या मजबूरियां हैं, यह सरकार या पार्टी न भी बताये तो लोग कयास लगाने में सक्षम है. अखिलेश सरकार के लिये जनता को यह समझाना सरल नहीं है कि राजकिशोर सिंह और दीपक सिंघल से अधिक गायत्री प्रजापति प्रभावी कैसे हो गये. अखिलेश और शिवपाल के मतभेद को वह चाचा भतीजे की नोकझोंक मान सकती है. उसे यह नहीं समझ आ रहा कि गायत्री सपा के लिये बाहरी व्यक्ति क्यो नहीं है ?

यादव परिवार में मुखिया मुलायम सिंह ने अपनी दूसरी पीढ़ी को राजनीति में न केवल उतार दिया, बल्कि उनको संसद और विधानसभा तक पहुंचा दिया. यादव परिवार के लिये संसद और विधानसभा में पहुंचना कोई बहुत बडा मुद्दा नहीं रह गया है. यह बहुत आसान सा विषय है. आज भी वह चाहे तो परिवार के किसी भी सदस्य को इन सदनों का सदस्य बना सकते हैं. राज्यसभा और विधानपरिषद के रास्ते बिना चुनाव लड़े यह काम हो सकता है. दूसरी पीढ़ी अब उम्मीद से दोगुना चाहती है.

अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाकर मुलायम ने 2012 में सबको राजी कर लिया था. 5 सालों में विवाद उसी जगह वापस पहुंच गया है. परिवार के लोग खासकर दूसरी पीढ़ी अपने लिये सुरक्षित और सक्षम हिस्सेदारी की उम्मीद करती है. अब इसके लिये वह तैयार खड़ी है. यही वजह है कि मुलायम अपने परिवार की इस चुनौती में पहली बार सबसे अधिक कमजोर दिखे. अपनी पीढ़ी के तेवर वह दबा देते थे पर दूसरी पीढ़ी के तेवर दबाने पर उनके और उभरने का खतरा पार्टी और परिवार दोनो को प्रभावित कर सकता है.

चीन बढ़ाएगा भारत में निवेश

भारत के साथ निवेश और कारोबार को बढ़ावा देने और बेहतर समन्वय बिठाने के लिए चीन ने एक नई व्यापार संस्था स्थापित करने को मंजूरी दी है. साम्यवादी देश ने आधिकारिक स्तर पर इस तरह का यह पहला कदम उठाया है.

परिषद की स्थापना ‘चाइना काउंसिल फार दि प्रमोशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड (सीसीपीआईटी) के तहत की जायेगी और यह चीन के हुनान प्रांत में स्थापित होगी. सीसीपीआईटी ने इस तरह की परिषद की स्थापना के लिये हुनान प्रांतीय इकाई के तहत दो साल के लिए मंजूरी दी है.

परिषद की स्थापना की घोषणा करते हुए सीसीपीआईटी की हुनान उप-परिषद के चेयरमैन ही जियान ने एक संदेश में कहा, ‘नया पद संभालने के बाद मेरा पहला महत्वपूर्ण कार्य चीन-भारत व्यासायिक परिषद की स्थापना करना है.’ परिषद का कार्यालय सीसीपीआईटी के चांगशा में होगा जो कि हुनान प्रांत की राजधानी है.

हाथियों को बचाने के लिए अनुज ने जुटाए एक लाख रुपये

अमोल गुप्ते निर्देशित फिल्म ‘‘हवा हवाई’’ के अलावा ‘स्वरागिनी’, ‘सबकी लाड़ली बेबो’, ‘छनछनान’ और ‘इत्ती सी खुशी’ जैसे सीरियलों में अभिनय कर चुके फिल्म और टीवी कलाकार अनुज सचदेव इन दिनों हाथियों को बचाने की मुहीम में लग गए हैं. उन्हे हाथियों को बचाने का ख्याल गणोत्सव से ही आया. इसी के चलते अनुज सचदेव ने मथुरा जाकर एक एनजीओ ‘एस ओ एस’ को हाथियों को बचाने के लिए एक लाख रूपए इकट्ठे करके दिए.

इस संबंध में जब अनुज सचदेव से हमारी बात हुई, तो अनुज सचदेव ने कहा- ‘‘मैं पिछले कई साल से देखता आ रहा हूं कि दस दिन के गणेशोत्सव के दौरान किस तरह का तमाशा होता है. प्लास्टर आफ पेरिस की गणेषश जी की मूर्तियां बनाकर पर्यावरण को दूषित किया जाता है. फिर इनका समुद्र में विसर्जन कर समुद्री जीव जंतुओं की जिंदगी को नुकसान पहुंचाया जाता है. इसी पर विचार करते हुए मैंने सोचा कि हम यह वर्ष हाथियों को समर्पित करते हैं. फिर मैने इसके लिए कुछ लोगों से बात की और पैसे इकट्ठे किए. मैंने इंटरनेट पर शोध करके एनजीओ के बारे में जानकारी हासिल की. एक लाख रूपए जमा हो जाने पर मैने यह राशि मथुरा जाकर एनजीओ को दे दी. मैंने कुछ हाथियों को अपने हाथों से चारा भी खिलाया.’’

मथुरा में यह एनजी ओ ‘‘एलीफेंट कंजर्वेशन एंड केअर सेंटर’’ चलाता है. इस सेंटर में अलग अलग शहरों की सड़क पर घायल अवस्था में मिले 22 हाथी पल रहे हैं. अनुज सचदेव ने अपनी इस मुहीम को ‘हेल्पिंग द लिविंग गणेशा’ नाम दिया है. और दस दिन के गणेशोत्सव के दौरान इसके लिए एक लाख रूपए इकट्ठे किए. अनुज सचदेव को इस मुहीम में रमेश तौरानी, जूही चावला, लवी ससान, निशा रावल के अलावा कई पशु प्रेमियों का साथ मिल रहा है.

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