श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने चिंता जताई है कि महिलाओं में बीयर पीने की लत बढ़ रही है. उनकी तकलीफ समझी जा सकती है. नशामुक्त श्रीलंका के निर्माण में उन्होंने गहरी रुचि दिखाई है, लिहाजा उनकी प्रतिबद्धता का सम्मान सभी को करना चाहिए.
उल्लेखनीय है कि राजपक्षे हुकूमत में बतौर स्वास्थ्य मंत्री सिरीसेना ने कई मुश्किलों के बावजूद तंबाकू और अल्कोहल कंपनियों को निशाने पर लिया था. मगर आज श्रीलंका के मर्द यूं अल्कोहल गटक रहे हैं, मानो कल आने वाला ही नहीं. व्यस्तता का हवाला देकर वे अपनी पत्नी को खरीदारी नहीं करा सकते, बच्चे को स्कूल से नहीं ला सकते, यहां तक कि छोटा-मोटा घरेलू काम भी नहीं कर सकते. मगर शराब की दुकानों पर लंबी-लंबी लाइनों में देर तक उन्हें खड़े रहना गंवारा है. इन पुरुषों के पास किसी दूसरे काम के लिए ऊर्जा, पैसा या समय बचता भी होगा क्या? मगर जहां तक महिलाओं में कथित तौर पर नशे का सेवन बढ़ने की चिंता है, यह माना जाना चाहिए कि राष्ट्रपति ने उपलब्ध आंकड़ों पर ही यह दावा किया होगा.
मगर क्या वाकई ये आंकड़े विश्वसनीय हैं? ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार की नजर में महज शराब सेवन से ही व्यक्ति नशे में धुत्त नहीं रह सकता! कुछ महीने पहले की राजगिरिया की वह दुर्घटना याद कीजिए, जिसमें विपक्षी दल के एक सांसद ने सड़क किनारे बिजली के खंभे को अपनी एसयूवी गाड़ी से टक्कर मार दी. पुलिस और मेडिकल ऑफिसर ने बताया था कि वह नशे में थे. उन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला चल सकता था. मगर बाद में यह बात सामने आई कि शराब की बू इसलिए आ रही थी, क्योंकि दुर्घटना के बाद कुछ पियक्कड़ों ने उन्हें गले लगाया था. ऐसे में, महिलाओं की उन्मुक्तता की वजह उनका बीयर पीना नहीं, बल्कि उनके पति या दोस्त द्वारा शराब पीकर उन्हें बाजबरन गले लगाना क्यों नहीं हो सकता? लिहाजा, अगर राष्ट्रपति और दूसरे तमाम नेता संजीदगी से शराबबंदी के गुणों पर चर्चा करें, तो निश्चय ही देश में अल्कोहल का 90 फीसदी सेवन एक रात में ही कम हो सकता है. नशे के खिलाफ सामूहिक लड़ाई लड़नी होगी.
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