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SMS का प्रिंट आउट लेना हो गया बहुत आसान

कुछ साल पहले तक एसएमएस पर न जाने कितने लोगों के तरह तरह के अहम मैसेज होते थे. कई लोग उन्हें फोल्डर बनाकर सहेज कर ये एसएमएस सालों तक रखते थे. अगर बीच में फोन खो गया या खराब हो गया तो न जाने कितने आंसू उसके साथ बहते थे.

व्हाट्सएप के जमाने में अब एसएमएस की अहमियत बहुत कम हो गई है. व्हाट्सएप के मैसेज को तो बहुत आसानी से ईमेल और फिर प्रिंट किया जा सकता है. लेकिन अगर अपने एसएमएस को कागज पर देखना है तो उसके लिए प्रिंट लेने के लिए थोड़ी तैयारी करनी पड़ती है और उसके लिए सभी फोन पर ये काम करना संभव नहीं है.

कई कारणों से ऐसे एसएमएस की कॉपी रखना बहुत जरूरी हो सकता है. कभी अपनी यादों को सहेज कर रखने के लिए तो कभी किसी कानूनी वजहों से ऐसा करना पड़ सकता है. बैंक और दूसरी फिनैंशियन जानकारी वाले मैसेज, इ कॉमर्स की खरीदारी के एसएमएस और कभी कभी ऑनलाइन उचक्कों के अनचाहे मैसेज – इन सब को सहेज कर रखना जरूरी है. इसलिए उन्हें सेव करके रखिए और अगर जरूरत हो तो प्रिंट आउट भी रख लीजिए. न जाने ये कब काम जाए. आइए इसका तरीका बताते हैं. अगर घर में ऐसा प्रिंटर है जो एंड्राइड डिवाइस के गूगल प्रिंट या ऐपल के एयर प्रिंट को सपोर्ट करता है, तो अपने डिवाइस से ही प्रिंट आउट लिया जा सकता है. एंड्राइड डिवाइस के लिए कौन से प्रिंटर काम कर सकते हैं उनकी लिस्ट यहां मिल जाएगी. एप्पल के एयर प्रिंट के लिए काम करने वाले डिवाइस यहां देख सकते हैं.

प्रिंटर के लिए ये जानकारी बहुत अहम है क्योंकि एसएमएस को प्रिंट करने के और कोई रास्ता नहीं है. हैरानी की बात है कि एसएमएस के प्रिंट आउट लेने के बारे में कभी भी किसी ने नहीं सोचा.

एंड्राइड डिवाइस पर गूगल प्ले स्टोर से क्लाउड प्रिंट इस्टॉल करने के बाद प्रिंट आउट लेना संभव है. एंड्राइड डिवाइस से प्रिंट आउट अगर लेने की कोशिश कर रहे हैं तो ये जानकारी बहुत काम आएगी. उसके बाद अपने मैसेज को एक पीडीएफ फाइल बना कर प्रिंट कर सकते हैं.

प्रिंट करने के दूसरे विकल्प भी हैं और कुछ लोग स्क्रीनशॉट लेकर प्रिंट लेना पसंद करते हैं. ये स्क्रीनशॉट लेकर उन्हें अपने कंप्यूटर पर सेव करना होगा. उसके बाद आम तरीके से प्रिंट ले सकते हैं.

एप्पल के Siri को चुनौती देगा गूगल असिस्टेंट!

गूगल के सीईओ भारतीय मूल के सुंदर पिचई का कहना है कि मोबाइल से आ रहे बदलाव में गूगल सबसे आगे रहेगा. गूगल स्मार्टफोन में काफी बड़ा हिस्सा इनवेस्ट कर रहा है.

गूगल पिक्सल सीरीज में एप्पल  के Siri को चुनौती देने के लिए गूगल असिस्टेंट (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस) दिया  है. गूगल असिस्टेंट के इस्तेमाल के लिए यूजर को होम बजट पर क्लिक करके होल्ड करना होगा या फिर “hot word,” ‘jumps into action’ बोलते ही असिस्टेंट ऑन हो जाएगा. कंपनी ने इसका डेमो करके दिखाया.

असिस्टेंट किसी खास समय , जगह पर ली गई तस्वीर आपको महज कमांड देने पर उपलब्ध करा देगा. इसके अलावा आपके पसंदीदा गानों को आपके पसंदीदा म्यूजिक एप के जरिए प्ले कर देगा. इतना ही नहीं आपके कमांड पर ये आपको रेस्टोरेंट का नाम, उसके रिव्यू, पता सब कुछ की जानकारी देगा. आपकी वॉयस कमांड से ये असिस्टेंट आपकी रेस्टोरेंट बुकिंग भी करा देगा.

जाहिर है इससे पहले एप्पल   अपने स्मार्टफोन में (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस)  Siri  माइक्रोसॉफ्ट कोर्टाना (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस)   देता था ये पहली बार है कि गूगल ने अपने डिवाइस में गूगल असिस्टेंट (आर्टिफिशियल  इटेलिजेंस) दिया है. गूगल असिस्टेंट बेहद स्मूथ है जो सिरी को कड़ी टक्कर दे सकता है.

गूगल का दावा है कि उसके पिक्सल स्मार्टफोन्स का कैमरा सबसे बेस्ट है. अपने 5 और 5.5 इंच के स्मार्टफोन में फास्ट चार्जिंग की सुविधा दी है. गूगल का कहना है कि उसके पिक्सल स्मार्टफोन 15 मिनट चार्ज करने पर 7 घंटे की बैटरी लाइफ दे सकते हैं.गूगल के पिक्सल स्मार्टफोन को ताइवानी मोबाइल कम्पनी HTC ने बनाया है. लेकिन गूगल ने अपनी नई पिक्सल सीरीज में बडा बदलाव करते हु्ए मोबाइल बनाने वाली कम्पनी की ब्रैंडिंग बंद कर दी है.

BCCI के राज्यों को फंड देने पर रोक

सुप्रीम कोर्ट में लोढ़ा कमिटी बनाम बीसीसीआई के बीच जारी टकराव में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. अब इस मामले में सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी और इसी दिन कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है. सुप्रीम कोर्ट अगले दस दिनों तक छुट्टियों की वजह से बंद रहेगा.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई द्वारा राज्य एसोसिएशनों को फंड जारी करने पर रोक लगा दी है. यह रोक एसोसिएशनों द्वारा लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को मानने का प्रस्ताव पास करने तक लगी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग ठाकुर से कहा है कि वह आइसीसी चीफ से लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को लेकर हुई अपनी बातचीत को लेकर हलफनामा दाखिल करें.

इससे पहले कोर्ट ने बीसीसीआई से लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को बिना शर्त मानने के लिए कहा था और इस बारे में अंडरटेकिंग देने को कहा था. बीसीसीआई के वकील कपिल सिब्बल के इसमें असमर्थता जताने पर कोर्ट ने बीसीसीआई को एक दिन का वक्त दिया था. हालांकि शुक्रवार को आने वाला फैसला आगे टल गया है और इससे बीसीसीआई को थोड़ी राहत मिल गई है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बीसीसीआई के कामकाज को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट और कोर्ट के सलाहकार गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू को भी काफी खरी-खोटी सुनाई बीसीसीआई ने काटजू को इस केस में नियुक्त किया था. सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के क्रिकेटर होने के दावे पर भी मजाक किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई से सीधे सवाल पूछा था कि आप लोढ़ा कमिटी की सिफारिशें लागू करेंगे या नहीं? सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर इस बात से भी नाराज दिखे कि राज्य असोसिएशनों ने लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को वोटिंग के जरिए मानने से इनकार कर दिया.

बिहार सरकार बोलेगी, मछली ले लो

अब बिहार सरकार खुद भी मछली बेचने के लिए कमर कस चुकी है. राज्य में सरकारी थोक मछली बाजार बनाए जा रहे हैं, जहां सरकार अपने लेवल पर ताजा मछलियां बेचेगी.बिहार में मछली की सालाना खपत 5 लाख, 80 हजार टन है, जबकि उत्पादन 4 लाख, 30 हजार टन ही हो पाता है. 1 लाख, 50 हजार टन की कमी को पूरा करने के चक्कर में बिहार के तकरीबन 350 करोड़ रुपए आंध्र प्रदेश की झोली मेचल ते जाते हैं. राज्य में मछली की पैदावार बढ़ाने और खुद बाजार में उतरने के लिए राज्य सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है. मछली के बड़े बाजार का पूरापूरा फायदा उठाने के मामले में सरकार कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहती है.

पहले फेज में राज्य के मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, मधुबनी, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण में थोक मछली बाजार की शुरुआत की जानी है. इन बाजारों में नदियों, तालाबों और सरकारी जलकरों की ताजा मछलियां बिकेंगी. इन जिलों में थोक मछली बाजार को कामयाबी मिलने के बाद बाकी जिलों में भी इसे शुरू किया जाएगा. पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री अवधेश कुमार सिंह बताते हैं कि थोक मछली बाजारों में मछलियों को वैज्ञानिक तरीके से रखा जाएगा, ताकि वे ज्यादा समय तक जीवित रहें. मछली बाजार में शीत भंडार, मछली बेचने के लिए यार्ड और वैज्ञानिक रखरखाव वगैरह पर ढाई करोड़ रुपए खर्च होंगे. मछली बाजार को बनाने का काम बिहार सरकार और नेशनल फिश डेवलपमेंट बोर्ड मिल कर करेंगे. इस में 40 फीसदी रकम राज्य सरकार द्वारा और 60 फीसदी रकम बोर्ड द्वारा दी जाएगी. राज्य में फिलहाल सरकारी लेवल पर मछली बेचने का कोई इंतजाम नहीं है.

इस के साथ ही बिहार के मछली उत्पादकों को ज्यादा फायदा दिलाने के लिए हर जिले में मछली के होलसेल बाजार बनाने की कवायद शुरू की गई है. नेशनल फिश डेवलपमेंट बोर्ड ने पहले चरण में मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, मधुबनी, समस्तीपुर, खगडि़या, भोजपुर, नालंदा, गया, सारण और दरभंगा जिलों में थोक बाजार बनाने की मंजूरी दे दी है. कृषि विभाग की बाजार समिति की जमीनों पर इन बाजारों को बनाया जाएगा. 1 बाजार 3 एकड़ जमीन पर बनेगा और उसे बनाने में 2 करोड़, 50 लाख रुपए खर्च होंगे. इस में से 60 फीसदी रकम केंद्र सरकार और 40 फीसदी रकम राज्य सरकार खर्च करेगी. बाजार के अंदर सेंट्रलाइज नीलामी हाल भी बनाया जाएगा.

बिहार समेत दूसरे राज्यों के मछली व्यापारी बाजार में पहुंचेंगे. थोक बाजार के कैंपस में लोकल मछली व्यापारियों को भी कारोबार की सुविधा दी जाएगी. गौरतलब है कि फिलहाल बिहार में एक भी व्यवस्थित मछली का थोक बाजार नहीं है, जिस से मछली उत्पादकों को ताजा मछलियां औनेपौने दामों पर बेचनी पड़ती हैं. बिहार सरकार मछलियों को विदेशों में भी बेचेगी. राज्य में मछली का उत्पादन भले ही कम हो और उस कमी को पूरा करने के लिए बिहार दूसरे राज्यों से मछली खरीदने को मजबूर हो, पर बिहार की मछलियों की मांग विदेशों में काफी बढ़ रही है. पूर्वी और पश्चिमी चंपारण से कतला और रोहू मछलियां नेपाल भेजी जा रही हैं, जबकि दरभंगा में पैदा होने वाली बुआरी और टेंगरा मछलियां भूटान में खूब पसंद की जा रही हैं. वहीं भागलपुर और खगडि़या जिलों में पैदा की जाने वाली मोए और कतला मछलियां अपने ही देश में सिलीगुड़ी भेजी जा रही हैं. मुजफ्फरपुर और बख्तियारपुर से बड़ी तादाद में मछलियां चंडीगढ़ और पंजाब के व्यापारियों द्वारा मंगवाई जा रही हैं. बिहार की मछलियों के लाजवाब स्वाद की वजह से दूसरे राज्यों और देशों के लोग इन के दीवाने बन रहे हैं. इस से जहां बिहार की मछलियों की दुनिया भर में डिमांड बढ़ रही है, वहीं उत्पादकों को दोगुना मुनाफा मिल रहा है. इसी वजह से मछली उत्पादक मछलियों को दूसरे देशों और राज्यों में भेजने में दिलचस्पी ले रहे हैं. 

जियो अब लेकर आया है नया धमाका

रिलायंस जियो का ऑफर धमाका अभी तक खत्म नहीं हुआ है. टेलीकॉम इंडस्ट्री में सबसे सस्ती सर्विस देकर हलचल मचाने वाला रिलायंस जियो एक बार फिर से एक खुशखबरी लेकर आया है. लेकिन ये ऑफर सिर्फ लिमिडेट लोगों के लिए है. जी हां, अगर आप आई फोन यूजर हैं या फिर नया आई फोन खरीदने की सोच रहे हैं तो यह खबर आपके लिए है.

टेलिकॉम कंपनी रिलायंस जियो ने एक नई योजना के तहत घोषणा की है कि नए आईफोन के जियो की सारी सेवाएं लगभग 15 महीने तक मुफ्त मिलेंगी. कंपनी ने कहा कि उसकी यह योजना एक जनवरी 2017 से शुरू हो जाएगी. इसके तहत वह जियो इस्तेमाल करने वाले आईफोन धारकों को 1499 रुपये मंथली प्लान पर एक साल के लिए पूरी तरह फ्री सुविधाएं देगी.

कंपनी के बयान के अनुसार इस प्लान में सभी तरह की लोकल एसटीडी कॉल, 20जीबी 4जी डेटा, रात में अनलिमिटेड 4जी डेटा, 40 जीबी वाईफाई डेटा और जियो एप पर खरीदारी भी मुफ्त मिलेगी.

फिलहाल कंपनी की सारी सेवाएं दिसंबर 2016 तक सभी ग्राहकों के लिए फ्री हैं. कंपनी का कहना है कि उसकी यह पेशकश नए आईफोन6, आईफोन 6 एस , आईफोन एस प्लस, आईफोन एसई, आईफोन7 व आईफोन 7प्लस सभी के लिए होगी.

चुप्पी के बाद फवाद बोले भी तो क्या..?

कश्मीर के उरी क्षेत्र पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों की चुप्पी को देखते हुए ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ ने बौलीवुड में पाकिस्तानी कलाकारों के काम करने पर बैन लगाने के अलावा पाकिस्तानी कलाकारों ने जिन भारतीय फिल्मों मे अभिनय किया है, उन्हें प्रदर्शित न होने देने की धमकी दी.

इसके बाद बौलीवुड दो खेमों में बंट गया. पर पाकिस्तानी कलाकारों के कानों पर जूं नहीं रेंगी. ‘इम्पा’ द्वारा पाकिस्तानी कलाकारों पर बैन लगाने के आदेश के बाद भी पाकिस्तानी कलाकारों के कानों पर जूं नहीं रेंगी. जबकि पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान के अभिनय से सजी शाहरुख खान की फिल्म ‘रईस’ के प्रदर्शन की तारीख बदल दी गयी.

फवाद खान के अभिनय से सजी करण जोहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के प्रदर्शनन को लेकर रहस्य गहराता जा रहा है. करण जोहर ने बहुत हाथ पैर मार लिए. पर सूत्रों के अनुसार अब करण जोहर की भी हालत खराब हो गयी है. क्योंकि कई फिल्म एक्जबीटरों ने करण जोहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ को प्रदर्षित करने से मना कर दिया.

इतना ही नहीं अब तो सिनेमाघर मालिकों ने भी ‘ऐ दिल है मुश्किल’ को प्रदर्शित करने से साफ मना कर दिया. सूत्रों के अनुसार इस तरह के हालात बनने के बाद करण जोहर ने अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ को अब 28 अक्टूबर की बजाय 2017 में करने का निर्णय ले लिया है.

इतना ही नहीं पाकिस्तानी गायकों शफाकत अमानत अली व आतिफ असलम का भारत में होने वाले म्यूजिक कंसर्ट के स्थगित हो जाने के बाद सात अक्टूबर की दोपहर तक पाकिस्तानी गायक शफाकत अमानत अली ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए उरी पर हुए आतंकवादी हमले की निंदा की.

शफाकत अमानत अली ने कहा है, ‘‘यह आतंकवादी हमला था. मैं इसकी निंदा करता हूं. जहां तक मैं समझता हूं, हर पाकिस्तानी कलाकार आतंकवादी हमले की निंदा करता रहा है. फिर वह विश्व के किसी भी कोने में हो. हम भी कई वर्षो से आतंकवादी हमलों का दर्द झेलते आ रहे है. हमें इस बात का अहसास है कि जब आपके सैनिक या आपके नागरिक मारे जाते हैं तो कैसा लगता है. मुझे नहीं लगता कि कोई भी पाकिस्तानी कलाकार उरी हमले को सही कहेगा. वास्तव में उरी पर हमले के बाद जिस तरह से लोगों का गुस्सा पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर फूटा, उसकी वजह से सब चुप हैं.’’

उसके बाद यानी कि उरी पर हुए आतंकवादी हमले के पूरे बीस दिन के बाद चुप्पी तोड़ी. मगर फवाद खान अपने आपको बहुत ही ज्यादा चालाक समझते हैं. उन्होंने फेसबुक के माध्यम से सफाई दी है. मगर फवाद खान के बयान में कहीं भी उरी क्षेत्र का जिक्र नही है.

फवाद खान ने कहा है, ‘‘मैं जुलाई माह से ही लाहौर में हूं क्योकि मेरी पत्नी दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी. मुझसे मीडिया व दुनियाभर के कई शुभचिंतकों की तरफ से पिछले कुछ सप्ताह के दौरान घटित दुःखद घटनाओं पर मेरे विचार पूछ रहे थे. दो छोटे बच्चों का पिता होने के नाते, तमाम लोगो की तरह चाहता हूं कि हम सभी मिलकर एक शांतिपूर्ण दुनिया का निर्माण करें व एकता व स्नेह के साथ रहें. हम अपने बच्चों के अहसानमंद हैं जो हमारा कल बनेंगे.’’

फवाद खान ने आगे लिखा है, ‘‘मैंने इस मुद्दे पर पहली बार बोला है. कृपया मेरे नाम पर कहे गए किसी भी शब्द पर ध्यान न दें. क्योंकि मैंने ऐसा कुछ कहा नहीं है. इस बंटी हुई दुनिया को एकता व स्नेह के सूत्र में बांधने के लिए मैं अपने सभी भारतीय, पाकिस्तानी व पूरी दुनिया में मौजूद प्रशंसकों का शुक्रिया अदा करता हूं.’’

बहरहाल, अब फवाद खान के फेसबुक के इस बयान को क्या माना जाए?

बेईमानी हक है इन के लिए

मध्य प्रदेश में बंदर गिनने जैसा एक काम यह हो रहा है कि राज्य में करीब 10 हजार गोदामों में रखी 10करोड़ गेहूं की बोरियों की जांच की जा रही है. उम्मीद किसी को नहीं कि यह मुश्किल जांच थोड़े से अधिकारियों की टीम ईमानदारी से साल के आखिर तक भी कर पाएगी.

राज्य में इस बार बाढ़ से हजारों लोग बेघर हो गए, सैकड़ों मर गए और लाखों पर इस का असर पड़ा. हालत यह थी कि दूरदराज के गांव तो दूर, राजधानी भोपाल तक में खाने के लाले पड़ गए. बाढ़ के इन मारों को सरकार ने कहने को राहत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर यह मदद भी सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों की बेईमानी की बलि चढ़ गई तो खिसियाई सरकार कह रही है कि एकएक बोरी की जांच करा कर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया जाएगा.

बेईमानी और भ्रष्टाचार का यह मामला अनूठा और दिलचस्प भी है जिस से साबित यह होता है कि सरकारी अधिकारियों को बेईमानी करने के मौके ढूढ़ने नहीं पड़ते, बल्कि मौके खुद चल कर उन के पास आते हैं. अब यह इन की कूवत और हैसियत के ऊपर है कि ये कितनी और कैसी बेईमानी कर पाते हैं.

राहत में घपला

बाढ़ पीडि़तों को सरकार ने मुफ्त गेहूं बांटने का ऐलान किया, तो देखते ही देखते जरूरतमंदों की भीड़ राशन की दुकानों और राहत केंद्रों पर उमड़ने लगी. सरकार ने दरियादिली दिखाते हुए गोदामों में रखा करोड़ों क्विंटल गेहूं प्रसाद की तरह बांटा.

पर प्रसाद बंटे और पंडा अपनी दक्षिणा न ले, ठीक इसी तरह यह भी नामुमकिन था कि राहत सामग्री खासतौर से गेहूं बांट रहे अफसर अपनाअपना हिस्सा न लें. स्टाक में रखे गेहूं को उड़ाना थोड़ा क्या बहुत मुश्किल भरा काम था, क्योंकि सरकार जो गेहूं खरीदती है उस का रिकार्ड भी रखती है और जो बांटती है उस का भी हिसाबकिताब रखती है.

गेहूं बांटने की जिम्मेदारी 2 सरकारी एजेंसियों मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन और मध्य प्रदेश स्टेट सिविल सप्लाई कार्पोरेशन को दी गई थी, जिन्हें गोदामों में रखा गेहूं राहत दुकानों तक पहुंचाना था. इन दुकानों से बाढ़ पीडि़तों को गेहूं लेना था. इन दोनों ही सरकारी एजेंसियों का एक खास काम सरकारी गेहूं की खरीदारी और उसे गोदामों में संभाल कर रखने का भी है.

बाढ़ पीडि़त जब यह मुफ्त का गेहूं ले कर घर आए और उसे इस्तेमाल करना शुरू किया तो यह देख कर दंग रह गए कि गेहूं में गेहूं के दाने कम और मिट्टी ज्यादा है. ऐसा एक जगह नहीं कई जगह हुआ, तो बाढ़ पीडि़तों ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया कि हमें गेहूं के नाम पर मिट्टी क्यों बांटी जा रही है.

बात आम हुई तो पता चला कि ऐसा हर जगह हो रहा है कि गेहूं की बोरियों में मिट्टी है और यह गेहूं इस्तेमाल करने यानी खाने लायक नहीं है. शिवराज सिंह चौहान के मुख्य मंत्रित्वकाल में भ्रष्टाचार को ले कर मिला एक और सुनहरी मौका कांग्रेस ने गंवाया नहीं और जगहजगह प्रदर्शन किए. कांग्रेसी विधायक विधानसभा में भी मिट्टी मिला गेहूं या गेहूं मिली मिट्टी कुछ भी कह लें ले कर गए.

मामला ऐसा था कि इसे दबाया नहीं जा सकता था, लिहाजा और ज्यादा बदनामी से बचने के लिए सरकार ने जांच के आदेश दे दिए. पर अब तक इन दोनों निगमों के मुलाजिमों की कारगुजारी सामने आ चुकी थी,जिन्होंने देखते ही देखते अरबों की बेईमानी इस तरह कर डाली थी मानो यह उन का हक हो.

तू तू मैं मैं

आखिरकार किस ने और कैसे अरबों रुपए का गोलमाल कर डाला, इस के जवाब में शक की सूई सीधे वेयरहाउस कार्पोरेशन और स्टेट सिविल सप्लाई कार्पोरेशन के कर्मचारियों पर आ कर ठहर गई जिन की देखरेख में जनता के पैसे से खरीदा गेहूं रखा जाता है.

हल्ला चूंकि भोपाल से मचना शुरू हुआ था, इसलिए सरकार ने तुरंत  भोपाल के कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही की, जिस से मामला ज्यादा तूल न पकड़े. बजाय मगरमच्छ पकड़ने के मामूली मछलियों को निशाने पर लेने की रस्म इस घपले में भी बदस्तूर निभाई गई. एमपी स्टेट सिविल कार्पोरेशन के जूनियर असिस्टेंट दिनेश चौरसिया को निलंबित कर के यह जताने की कोशिश की गई कि कार्यवाही हो रही है.

इस छोटे से कर्मचारी दिनेश चौरसिया का कहना था कि वह तो गेहूं उठाने व रखवाने का काम करता है और मिलावट के लिए जिम्मेदार नहीं है. इस के जिम्मेदार तो वेयरहाउस कार्पोरेशन के कर्मचारी और वेयरहाउस मैनेजर जीके सक्सेना हैं. इस आरोप जिस से साबित हो रहा था कि गड़बड़झाला तो हुआ है, के जवाब में तिलमिलाए जीके सक्सेना ने जिम्मेदारी सिविल सप्लाई कार्पोरेशन पर उड़ेलते हुए कहा कि उसी के कर्मचारी और अधिकारी मिलावट कर सकते हैं.

हो यह रहा था कि गोदामों में रखी गेहूं की 50-50 किलोग्राम की बोरियों में 15-20 किलोग्राम तक मिट्टी मिलाई जा रही थी यानी प्रति बोरी 20 किलोग्राम गेहूं उड़ाया जा रहा था जिस की बाजार में कीमत 200रुपए होती है. ऐसा भोपाल में हजारों लाखों बोरियों में किया गया और प्रदेश भर की कितनी बोरियों में कहांकहां हुआ इस का खुलासा शायद ही हो पाए, क्योंकि चोरों को ही रखवाली का जिम्मा सौंपा गया है यानी जांच इन्हीं दोनों निगमों के अधिकारी करेंगे. कहने को कुछ अधिकारी दूसरे विभाग से लिए जाएंगे,जो इन का साथ ही देंगे. मुमकिन यह है कि घपले की यह जांच भी एक और घपले का शिकार हो जाए.

घपला उजागर नहीं होता अगर बाढ़ न आई होती और अगर एकदम से गेहूं बांटने के लिए गोदामों से बाहर न निकालना पड़ता. वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन के एक मुलाजिम की मानें तो ऐसा जल्दबाजी में हुआ, नहीं तो मिट्टी इत्मीनान से मिलाई जाती है और इस की तादाद प्रति बोरी 10 किलोग्राम तक रखी जाती है, जिस से कोई इसे घटिया न कह पाए.

बाढ़ पीडि़तों ने गेहूं वापस करना शुरू कर दिया और सरकार ने भी बेईमानी हुई यह बात मानते हुए मिट्टी वाला गेहूं वापस लेना शुरू कर दिया. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि हर साल कितने लाख किलोग्राम मिट्टी इसी तर्ज पर गेहूं में, मिला कर गेहूं के ये रखवाले अरबों का गोलमाल करते हैं और कोई इन पर उंगली भी नहीं उठा पाता.

कैसी कैसी बेईमानियां

अकेले इन निगमों में ही नहीं बल्कि बेईमानी का यह रिवाज हर निगम और महकमे में है, जिस के बारे में कहा जा सकता है कि हलदी लगे न फिटकरी रंग भी आए चोखा. अस्पतालों में दवाएं मरीजों को नहीं मिलतीं, क्योंकि वे पहले ही बाहर बेच दी जाती हैं. स्कूलकालेजों की खरीदारी में भी इसी तरह के घपले होते हैं. लोक निर्माण विभाग में फावड़े और कुदाली जैसे उपकरण लाखों की तादाद में खरीदे जाते हैं, पर विभाग में ये हजारों में आते हैं. बाकी का हिसाबकिताब विके्रता से बाहर ही हो जाता है.

कृषि विभाग घटिया बीज, कीटनाशक और खाद बांटता है. इस पर किसान चिल्लाते रह जाते हैं, पर उन की बात कोई नहीं सुनता. न ही किसी पर कार्यवाही होती है. बीती जुलाई में विदिशा जिले में किसानों को तकरीबन 65 लाख रुपए की वर्मी कंपोस्ट खाद बांटी गई थी, पर किसानों को बांटी गई खाद की थैलियों में पत्थर और प्लास्टिक भरा था, जिसे ले कर किसान यहां से वहां भटकते रहे फिर थकहार कर पत्थर प्लास्टिक फेंक खाली बोरी घर ले गए. 65 लाख की खाद कौन डकार गया इस पर अब कोई कुछ न पूछ रहा है और न ही कह रहा है.

भोपाल में उद्यानिकी विभाग ने तो किसानों को पुराने ट्रैक्टरों के नाम पर नए ट्रैक्टरों की सब्सिडी दे कर 48लाख की बेईमानी कर डाली और ढाई करोड़ के स्प्रिंकलर कागजों में बंटे बता दिए. ये बेईमानियां वाकई मानव कल्पना से परे हैं, जो हर रोज हर जगह हो रही हैं. कुछ मामले हल्ला मचने पर उजागर होते हैं, पर दोषी अधिकारियों का कुछ खास नहीं बिगड़ता, क्योंकि लाखोंकरोड़ों के घपले सोचसमझ कर तरीके से गिरोह बना कर किए जाते हैं, जिन में चपरासी से ले कर मंत्री तक का हिस्सा होता है.

अब तो हालत यह है कि आम लोगों ने इन बेईमानियों को अपनी किस्मत मानते हुए शिकायतें करना और चिल्लाना ही बंद कर दिया है. जो मिल गया उसी को लोग मुकद्दर मानने लगे हैं, पर जब चर्चा होती है, तो लोग कहने से चूकते नहीं कि लगता ऐसा है कि कांगेसी राज आ गया. गौरतलब है कि सिंहस्थ कुंभ में भी करोड़ों की खरीद शक के दायरे में है, यानी बेईमानी होना तय है. महकमा कोई भी हो, मुलाजिम इसे अपना हक समझते हैं.

लाखोंकरोड़ों की बात छोड़ दें तो बेईमानी बहुत छोटे स्तर पर भी होती है, जिसे देख कर लगता है कि यही हमारी संस्कृति और धर्म है और सरकारी मुलाजिमों के खून में बेईमानी इस तरह घुलमिल गई है कि उसे अब अलग नहीं किया जा सकता. बीती 15 अगस्त को नए भोपाल के एक सरकारी स्कूल में स्टाफ व बच्चों के लिए नाश्ता मंगाया गया था, जिस में से आधा प्रधानाध्यापक और शिक्षक अपने घर ले गए. इन्हें 40 से 50हजार रुपए मासिक वेतन मिलता है, पर ये लोग 5 रुपए के समोसे और नमकीनमिठाई के लिए मरे जा रहे थे. इन का कोई इलाज शायद ही अब कोई बता पाए.                   

सड़ांध का सच

सरकारी गोदामों में रखा गेहूं राशन की दुकानों के जरीए गरीबी रेखा के नीचे रह रहे लोगों को बेचा जाता है. इस के बाद भी अगर यह बच जाता है, तो सरकार इसे बेच देती है. हालांकि ऐसी नौबत कम ही आती है,क्योंकि विभिन्न योजनाओं के तहत भी गेहूं बांटा जाता है और बाढ़ जैसी आपदाओं के वक्त मुफ्त में भी बांटा जाता है जैसे कि इस साल जरूरत आ पड़ी.

जान कर हैरानी होती है कि भ्रष्ट, बेईमान और घूसखोर अफसरों का पसंदीदा शौक और कोशिश यह रहती है कि गेहूं गोदाम में रखा हुआ ही सड़ जाए या जानबूझ कर सड़ा दिया जाता है, तो इस की खबर सरकार को दे कर अधिकारी इसे बेचने की इजाजत ले लेते हैं और नीलामी कर देते हैं या उसे नष्ट कर देते हैं.

इस बेकार गेहूं को जाहिर है व्यापारी तो खरीदने से रहे, लेकिन शराब के कारोबारी इसे खरीद कर बीयर बनाने में इस का इस्तेमाल करते हैं, जिन की सांठगांठ वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन और सिविल सप्लाई स्टेट कार्पोरेशन के अधिकारियों से रहती है. इस तरीके से लाखों टन गेहूं हेराफेरी कर के बीयर बनाने के काम आता है. वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन के एक कर्मचारी का कहना है कि ज्यादा नहीं अगर पिछले 2-3 सालों में सड़े गेहूं की स्थिति की जांच की जाए तो यह व्यापम से भी बड़ा घोटाला साबित हो सकता है. हालांकि ऐसा होना मुश्किल इसलिए है कि ज्यादातर जिलों में सड़ा गेहूं नष्ट करना बताया गया है.

इस कर्मचारी के मुताबिक भंडारण में सुरक्षा के वैज्ञानिक तरीके कागजों पर इस्तेमाल किए जाते हैं, पर बेईमानों की कोशिश यह रहती है कि गोदामों में नमी पहुंचे और गेहूं सड़े जिस से वे घपला कर सकें. इधर सरकार भी किसानों को खुश करने की गरज से सीजन में बेहिसाब गेहूं खरीद लेती है, जो कई बार तो खरीद केंद्र पर ही बारिश में बरबाद हो जाता है. इस तरह का गेहूं शराब निर्माताओं के ही काम का रहता है,लिहाजा वे अधिकारियों को घूस दे कर इसे खरीदते हैं.

खेती-किसानी की शिक्षा बनी मिसाल

भारत की तरक्की में सब से खास भूमिका कृषि क्षेत्र की है. इस के बावजूद कृषि को प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में वह जगह नहीं मिल पाई है, जो दूसरे विषयों को मिली है. कृषि शिक्षा की शुरुआत अकसर10वीं के बाद की कक्षाओं से होती है, जिस की वजह से छात्र शुरू की पढ़ाई के समय में कृषि जैसे खास विषय की जानकारी नहीं हासिल कर पाते हैं, जबकि खेतिकिसानी की शिक्षा शुरू से ही देना जरूरी है. बच्चों को अपने देश की कृषि समस्याओं, फसलों व कृषि से जुड़े रोजगार की जानकारी शुरू से होनी चाहिए, ताकि वे आगे की शिक्षा में अपनी जानकारी का बेहतर इस्तेमाल कर के भारतीय कृषि को ज्यादा फायदेमंद व बेहतर बना सकें.

शुरुआती शिक्षा के दौरान कृषि पर ध्यान न देने की वजह से बस्ती जिले के विकास खंड बस्ती सदर के पूर्व माध्यमिक विद्यालय परसा जागीर के एक अध्यापक ने विद्यालय के साथी शिक्षकों के साथ मिल कर प्राथमिक स्तर से ही बच्चों को कृषि शिक्षा देने की शुरुआत की है. अध्यापक डा. सर्वेष्ठ मिश्र के विद्यालय की खाली जगह में बच्चों द्वारा तैयार की गई हरीभरी फसल आने वाले लोगों का मन मोह लेती है. वे एक ऐसे शिक्षक हैं जो सरकार द्वारा तय पाठ्यक्रम के अलावा खेती की शिक्षा को प्राथमिक स्तर पर लागू कर के बच्चों के मन में खेतीकिसानी के प्रति जागरूकता पैदा करने का काम कर रहे हैं. एमए, एमएड व पीएचडी डिगरी धारक डा. सर्वेष्ठ मिश्र की पहली नौकरी बस्ती जिले के विकास खंड गौर के प्राथमिक विद्यालय मुसहा प्रथम में लगी. वहां उन्होंने छात्रों की संख्या 816 तक पहुंचाई.

इस के बाद वे तबादला होने की वजह से पूर्व माध्यमिक विद्यालय परसा जागीर आए. वहां पर विद्यालय के पास काफी मात्रा में खाली जमीन पड़ी थी. इस खाली जमीन का इस्तेमाल कर के उन के अंदर छिपे हुए किसान ने एक ऐसे नवाचार को जन्म दिया जिस से न केवल स्कूल में बच्चों के दाखिलों में बढ़ोतरी हुई,बल्कि आज वहां के बच्चे जिले व प्रदेश में स्कूल का नाम रोशन कर रहे हैं.

डा. सर्वेष्ठ मिश्र ने स्कूल की जिम्मेदारी संभालने के बाद आसपास के गांवों में घरघर जा कर लोगों से अपने विद्यालय में बच्चों के दाखिले की अपील की और लोगों को यकीन दिलाया कि वे किसी भी महंगे स्कूल से ज्यादा अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करेंगे. उन्होंने बच्चों को धीरेधीरे खेतीकिसानी की शिक्षा देनी शुरू की. वे रोजाना स्कूल के समय से 1 घंटा पहले स्कूल पहुंच जाते हैं और स्कूल की खाली पड़ी बंजर जमीन को जैविक खादों से उपजाऊ बनाने का काम करते हैं. इस से बच्चे भी खेतीकिसानी में दिलचस्पी लेने लगे हैं.

खाली जमीन पर लहलहाती है फसल : डा. सर्वेष्ठ मिश्र की खेतीकिसानी की शिक्षा की पहल उस समय रंग लाने लगी जब बच्चे उन के साथ स्कूल की खाली पड़ी जमीन पर रोज 1 घंटे तक कई तरह की फसलों को उपजाने की कोशिश करने लगे. छात्रछात्राओं ने डा. सर्वेष्ठ मिश्र के निर्देशन में जैविक खादें तैयार करना सीखा.

जैविक खाद बच्चों द्वारा घरों पर तैयार की जाती है और स्कूल आते वक्त बच्चे खाद को खेत में डालने के लिए साथ ले आते हैं. यहां के बच्चे कई तरह की फसलों के नाम जानने के साथसाथ उन में खाद की कितनी मात्रा का इस्तेमाल करना है और किसी कीट व बीमारी लगने पर किस तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाए, सारी जानकारी रखते हैं. बच्चों द्वारा तैयार की गई फसल उन के दोपहर के भोजन के काम में लाई जाती है, जिस से बच्चों को पौष्टिक भोजन मिलता है.

यह डा. सर्वेष्ठ मिश्र की खेती के प्रति लगन का ही नतीजा है कि यहां पढ़ने वाले बच्चे अपने मातापिता को खेतीकिसानी के बारे में सलाह तक देते हैं.

नवाचार बनी पहचान : परसा जागीर पूर्व माध्यमिक विद्यालय के नवाचार जिले व प्रदेश में अपनी पहचान रखते हैं. यहां के बच्चे न केवल खेतीकिसानी बल्कि खेलकूद, पढ़ाई, योगा, कंप्यूटर वगैरह में भी होशियार हैं. इस विद्यालय में डा. सर्वेष्ठ मिश्र ने अंगरेजी स्कूलों की तर्ज पर अपने वेतन के पैसे से बच्चों के लिए आईडी कार्ड, टाई, बेल्ट वगैरह का बंदोबस्त किया है. प्यूरीफाइड पानी के लिए आरो मशीन भी लगवाई है. इस के अलावा बिना किसी सरकारी सहयोग के ही वे हफ्ते में 1 दिन बच्चों को अपने लैपटाप से कंप्यूटर की शिक्षा देने का भी काम करते हैं.

यहां के बच्चे जिला, मंडल व राज्य स्तर पर खेलकूद में हिस्सा ले कर स्कूल का नाम रोशन कर चुके हैं. सुहैल अहमद नाम के एक छात्र को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी सांसद डिंपल यादव द्वारा लखनऊ में मीना रत्न अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

डा. सर्वेष्ठ मिश्र बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं. वे समयसमय पर बच्चों को कई तरह के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थानों पर घुमाने ले जाते हैं. डा. सर्वेष्ठ मिश्र विद्यालय में किए जाने वाले सभी नवाचारों को सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाने का काम भी कर रहे हैं. उन के द्वारा बनाया गया शैक्षिक नवाचार फेसबुक पेज लगभग डेढ़ लाख की लाइक की सीमा को पार कर चुका है.

उन का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित इस विद्यालय से सीख ले कर दूसरे विद्यालयों को भी बुनियादी स्तर पर देश की रीढ़ मानी जाने वाली कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने का काम करना चाहिए. और इस के लिए सरकार को भी चाहिए कि वह बुनियादी स्तर पर कृषि शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करे,ताकि नए कृषि वैज्ञानिक तैयार हो सकें.

व्यापारियों के खातों में किसानों की रकम

अकसर देशभर में किसानों को मिलने वाली तमाम तरह की राहत की रकम में होने वाली हेराफेरी की शिकायतें सुनाई पड़ती रहती हैं. मगर इस बार उत्तर प्रदेश में प्रशासन के निकम्मेपन की वजह से हेराफेरी का नया रिकार्ड बना है. नए मामले में साल 2014-2015 की ओलावृष्टि से बरबाद हुई फसलों के करोड़ों रुपए की राहतराशि चुपके से सरकारी अफसरों, शातिरों और बैंक वालों की तिकड़ी द्वारा किसानों के बजाय व्यापारियों के पास पहुंचा दी गई है. मजे की बात तो यह है कि बड़े अधिकारियों को इस फर्जीवाड़े की भनक तक नहीं लग सकी. कलई तो तब खुली जब किसानों ने राहत रकम के चैक न मिलने पर आंदोलन छेड़ दिया.

यह पूरा फर्जीवाड़ा करीब 2 करोड़ रुपए का है, जिसे 273 एकाउंट पेई चैकों द्वारा कई खातों में भेजा गया है. लेख लिखे जाने तक पूरे मामले को 1 महीने से भी ज्यादा समय बीत चुका है, मगर जांच पूरी न होने की वजह से दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है.

क्या है मामला : साल 2014-2015 में ओलावृष्टि से बरबाद हुई फसलों की भरपाई के लिए केंद्र सरकार की ओर से राहत की रकम आई थी. यह काम प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के सहयोग से होना था. संभल जिले के उघैती थाना क्षेत्र के गगरौली गांव निवासी किशन यादव और उस के सहयोगी उरमान और अजय ने संभल समेत दूसरे जिलों के राजस्व कर्मचारियों और बैंक मैनेजरों से सांठगांठ कर 273 एकाउंट पेई चैकों का भुगतान कई व्यापारियों के खातों में करा दिया.

दरअसल, इस धांधली का मास्टरमाइंड किशन यादव बदायूं के बिल्सी कसबे में सुगंध वाटिका के नाम से एक ढाबा चलाता है.  किशन यादव स्थानीय व्यापारियों से उधार सामान लेने की वजह से भयंकर तरीके से कर्जे में फंस चुका था.

बस फिर क्या था, उस ने अपने ऊंचे राजनीतिक रसूख के चलते अपने कारोबार का कर्ज सरकारी खजाने से चुकाने की ठान ली. वह राजस्व विभाग, बैंक कर्मियों और अपने साथियों के सहयोग से किसानों की राहत की रकम के चैक व्यापारियों  के खातों में पहुंचने लगा तो उन्हें भी कोई आपत्ति नहीं हुई. इस तरह 273एकाउंट पेई चैकों द्वारा करीब 2 करोड़ रुपए की राहत की रकम किसानों के बजाय व्यापारियों के हवाले हो गई.

मजे की बात तो यह है कि जिले के बड़े अफसरों को इस की भनक तक न लगी. मामले का खुलासा तब हुआ जब किसानों ने आला अफसरों से राहत की रकम देने की मांग की, आला अधिकारियों ने जब मामले की पड़ताल की तो इस फर्जीवाड़े का खुलासा हो गया. खुलासा होते ही एसडीएम बिल्सी ने व्यापारियों समेत14 लोगों पर नामजद एफआईआर दर्ज करा दी, इस से जिले सहित पूरे सूबे में हड़कंप मच गया.

एक एक व्यक्ति के नाम पर 5-5 चैक : आमतौर पर सरकारी रकम लेने में किसानों की एडि़यां घिस जाती हैं, फिर भी उन का वाजिब हक उन्हें नहीं मिल पाता है. मगर इस पूरे फर्जीवाड़े में तिकड़ी ने जो चाहा वही किया. यही कारण था कि एकएक व्यक्ति के नाम पर 5-5 चैक जारी कर दिए गए. विनोद कुमार और सुनीता देवी के संयुक्त खाते में 26 से 28 हजार रुपए तक के 5-5 चैक जारी किए गए. फरीदपुर गांव के संजीव कुमार के नाम पर 23 से 25 हजार तक के 5-5 चैक जारी किए गए. अशोक कुमार के नाम पर 4चैक जारी किए गए. किशन यादव, उस की पत्नी भूरी देवी व बहू के नाम पर 27-27 हजार के 3 चैक जारी किए गए. यहीं के कृष्ण मुरारी के नाम पर 22-22 हजार के 2 चैक, प्रताप मीणा के नाम पर 27-27 हजार के 2 चैक जारी किए गए. भानु प्रकाश पुत्र शिवदयाल, भानु प्रकाश पुत्र बासदेव के नाम पर 2-2 चैक जारी किए गए. सौरभ वार्ष्णेय, सौरभ गुप्ता व सोनम के नाम 2-2 चैक जारी कर खाते में पैसे भी पहुंचा दिए गए.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ये तो चंद उदाहरण भर हैं, जबकि फेहरिस्त तो और भी लंबी है. ऐसे कई नाम हैं जिन के नाम पर अनेक चैक जारी कर के रकम ट्रांसफर कर ली गई है. जांच अधिकारी के मुताबिक सर्वाधिक हेराफेरी पंजाब नैशनल बैक की बहजोई शाखा से हुई है, जिस से करीब 90 चैकों का भुगतान हुआ, जिस में सभी खाताधारक बहजोई क्षेत्र के रहने वाले हैं.

इस मामले के बारे में जब पता चला तो चैक लेने वालों में से करीब 55 व्यापारियों ने अपने को फंसते देख एक शपथपत्र दाखिल करते हुए करीब 30 लाख रुपए आपदा राहत कोष में जमा कर दिए हैं. हालांकि बाद में व्यापारियों ने फर्जीवाड़े के सरगना किशन यादव और फर्जीवाड़े में शामिल अधिकारियों, कर्मचारियों के खिलाफ आवाज उठाई, मगर राजनीतिक रसूख की वजह से खुलासा होने के 1 महीने से भी अधिक का समय बीत जाने के बाद भी दोषियों की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है.

राजस्व विभाग और बैंक की लीपापोती : ऐसे समय में जब सरकार की राहत की रकम पाने में किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और खाली हाथ लौटना पड़ रहा है, तब एक ही व्यक्ति के नाम पर5-5 चैक जारी होने और उस का पैसा खाते में पहुंच जाना चौंका देता है. इस मामले में साफतौर पर घोटाले का सरगना किशन यादव, राजस्वकर्मियों और बैंक अधिकारियों, कर्मचारियों की मिलीभगत दिख रही है.

फर्जीवाड़े पर बिल्सी के तहसीलदार बालकराम का कहना है कि घोटाला चैकों से नाम काट कर दोबारा लिखने के कारण हुआ है. जबकि पंजाब नैशनल बैंक की बल्सी शाखा के मैनेजर एसए खान का कहना है कि लिखापढ़ी में सबकुछ सही होने की वजह से सभी चैक पास किए गए हैं. बैंक मैनेजर का कहना है कि तहसीलदार के हस्ताक्षर असली हैं या नकली इस की किसी माहिर से जांच कराई जाए, तो मामले की पोल खुल जाएगी.

जांच की कुछआ चाल : फर्जीवाड़े की खबर जब पूरे प्रदेश में फैली तो शामली के डीएम सीपी तिवारी ने प्रकरण की जांचपड़ताल के लिए जिले के 3 वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम बना कर 1 हफ्ते का समय दिया, जिस में साथ में बिल्सी थाने के दारोगा स्वर्ण सिंह को विवेचनाधिकारी भी नियुक्त किया गया.1 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद केवल 3 लेखपालों भगवान सिंह, महावीर प्रसाद व सतीश को निलंबित कर के कार्यवाही की खानापूरी कर ली गई है. वहीं दूसरी ओर विवेचनाधिकारी ने जांच करने से साफ इनकार कर के इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) से कराने की मांग की है.

इस मुद्दे पर जांच टीम के सदस्य जिले के एडीएम वित्त एवं राजस्व राजेंद्र प्रसाद यादव का कहना है कि जांच की समयसीमा निकल गई है, लेकिन जांच तीनों सदस्य जल्दी ही निबटाएंगे. सरकारी कामकाज और दूसरे कारणों से जांच में देरी हुई है. तीनों अधिकारी इस जांच को अपनेअपने स्तर से निबटा रहे हैं. नतीजा जल्द ही आ जाएगा.

मामले और भी हैं : ऐसा नहीं है कि यह कोई इकलौता मामला हो, इस के अलावा बदायूं में भी तकरीबन63 लाख तक का घपला मीडिया के माध्यम से उजागर हुआ है. प्रदेश सरकार के निकम्मेपन को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये तो कुछ बड़े मामले थे, जो उजागर हो गए. इस के अलावा यदि पूरे सूबे में सही ढंग से जांच कराई जाए, तो दूसरे जिलों में भी इस तरह के भंडाभोड़ हो सकते हैं.

अकेले हैं तो शहंशाह नहीं

आजकल फैमिली में सिंगल चाइल्ड का ट्रैंड चल पड़ा है जिस से धीरेधीरे उस घर के बच्चे के मन में यह भावना घर करने लगती है कि वह घर पर अकेला है और सबकुछ उसी का है. हर चीज पर उसी का अधिकार है और यह एकछत्र साम्राज्य की भावना धीरेधीरे उस के जीवन पर भी हावी होने लगती है. फिर चाहे घर हो या फ्रैंड सर्किल उसे लगता है कि सिर्फ वही सबकुछ है. वह खुद को सुपर दिखाने की कोशिश करता है, इस से उसे अपनी हर गलती भी सही लगती है, क्योंकि वह इतने लाड़प्यार वाले माहौल में पलाबढ़ा होता है कि समझ ही नहीं पाता कि औरों के भी हक हैं, भावनाएं हैं, उस का यही स्वभाव उस की पर्सनैलिटी पर गलत प्रभाव डालता है, जिस से लोग उस से दोस्ती करने के बजाय उस से दूर भागने लगते हैं. अत: घर में अकेले हैं तो खुद को शहंशाह न समझें बल्कि अकेले होने के बावजूद बढ़ी अपनी जिम्मेदारियों पर ध्यान दें, क्योंकि आप को अकेले ही घर की सभी जिम्मेदारियां निभानी हैं फिर चाहे वह कमाई की हो, रिश्तेदारी की या मातापिता को संभालने की.

फैमिली में अकेली हैं तो क्या न करें

मनमानी न करें

अकसर देखने में आता है कि जिस घर में पेरैंट्स की अकेली लड़की होती है उस घर में उस की खूब केयर होती है और लाड़प्यार में पली ऐसी लड़की को लगता है कि वह अब अपनी कैसी भी इच्छा पूरी करवा सकती है, जिस से मनमानी करना उस के स्वभाव में शामिल होने लगता है.

अगर पेरैंट्स उसे डिनर पर साथ चलने को कहते हैं तो वह घर पर ही डिनर मंगवाने की जिद करने लगती है और अपनी इस जिद में यह भी भूल जाती है कि उस के अलावा औरों की भी इच्छा है.

अंत में पेरैंट्स उस की खुशी के लिए झुक जाते हैं और घर पर ही डिनर करने को राजी हो जाते हैं, जबकि ऐसे में उस को चाहिए कि वह अपने पेरैंट्स की हर बात की रिस्पैक्ट करे और उन की खुशी के लिए हरदम झुकने को तैयार रहे न कि हरदम मनमानी करती रहे.

स्पैशल ट्रीट करवाने की कोशिश न करें

भले ही आप को आप के मम्मीपापा स्पैशल ट्रीटमैंट देते हों लेकिन यह जरूरी नहीं कि यही ट्रीटमैंट फैमिली के और मैंबर्स यानी आप के कजिंस भी दें. इसलिए जब भी आप कजिंस से मिलें तो ऐसे शो न करें जैसे आप बहुत खास हैं, इसलिए सब का फोकस आप पर ही रहे, सब बाकी लोगों को छोड़ कर आप को ही ऐंटरटैन करें. कोई चीज सर्व हो तो शुरुआत आप से ही हो बल्कि आप नौर्मल रहें और सब से शिष्टाचार से बोलें, जिस से वे यह कहने पर मजबूर हो जाएं कि देखा, पूरी फैमिली में अकेली लड़की है फिर भी कितनी समझदार है.

ड्रामा न करें

अगर आप को मामूली सी चोट लगी है या फिर बुखार है तो पूरा घर सिर पर न उठा लें कि मेरे यहां दर्द हो रहा है, हाय मुझ से तो उठा ही नहीं जा रहा जबकि दर्द आप को सिर्फ थोड़ा ही हो रहा है.

लेकिन यह सारा ड्रामा ऐक्स्ट्रा केयर व सब आगेपीछे घूमें इस के लिए ही किया जा रहा है. यहां तक कि जिस किसी का फोन भी आए तो आप उस के सामने अपनी बीमारी का रोना रोने लग जाएं ताकि हर कोई आप को देखने आए. इसलिए मामूली बातों पर ज्यादा रिऐक्ट न करें और जब तक जरूरी न हो अपनी समस्या अपने तक ही रखें. ध्यान रहे आप की ऐसी हरकतें दूसरों की परेशानी बढ़ा सकती हैं.

‘मैं’ वाला कौन्सैप्ट छोडे़ं

पापा देखो न मेरे सिवा घर में बच्चा है ही कौन, जो है सब मेरा ही तो है. मैं ही आप की दुनिया हूं, तो पापा आप के इस ‘मैं’ इमोशन के सामने पिघल कर आप को आप की पसंद का वीडियोगेम दिला देंगे और आप वीडियोगेम हाथ लगते ही खुद को शहंशाह समझने लगेंगी और फिर सब को वीडियो गेम दिखा कर चिढ़ाने लगेंगी कि देखा मेरा वीडियो गेम, मैं कहती हूं न कि मैं शहंशाह हूं.

इस में एक तो आप अपने पेरैंट्स को ‘मैं ही हूं’ शब्द से बारबार पिघलाने की कोशिश कर रही हैं वहीं दूसरी ओर अपनी ‘मैं’ के कारण औरों की नजरों में भी गिर रही हैं इसलिए अपने ‘मैं’ वाले कौन्सैप्ट को छोड़ें.

सब चीजों पर अपना हक न जमाएं

अकेली हैं तो इस का मतलब यह नहीं कि सिर्फ घर में आप की खुशी ही माने रखती है. मसलन, घर में एक टीवी है तो उस का यह मतलब नहीं कि हर वक्त आप की ही पसंद का सीरियल चलेगा. आप के पेरैंट्स भी खुद को रीफ्रैश करने के लिए टीवी देखना चाहते हैं अत: उन की इच्छाओं की भी कद्र करें. साथ ही जब मम्मीपापा लैपटौप या फोन में गेम खेलने लगें तो उन के हाथ से फोन छीन लेना या अपने काम का बहाना बना कर लैपटौप पर कब्जा जमाना ठीक नहीं. याद रखें, दूसरों की भी इच्छाएं हैं, अकेले होने का फायदा न उठाएं बल्कि उन की फीलिंग्स की कद्र करें.

फ्रैंड सर्किल में किन बातों का ध्यान रखें

सैंटर औफ अट्रैक्शन बनने की कोशिश न करें

भले ही आप अपने मम्मीपापा की प्रिंसैस हों लेकिन अगर आप अपने किसी फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में गई हैं और वहां भी आप यह सोचें कि बर्थडे बौय को भूल कर सब आप पर फोकस करें तो भूल जाएं कि ऐसा होगा.

अगर आप बारबार उलटीसीधी हरकतें कर के सब का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश भी करेंगी तब भी सैंटर औफ अट्रैक्शन नहीं बन पाएंगी. इसलिए अपने को ही सबकुछ समझने की सोच को बाय कहें और अपने कारण किसी के इतने खास दिन को खराब न होने दें.

सिर्फ खर्च ही न करवाती रहें

चाहे 10 भाइयों की एक बहन हों या फिर पूरे ग्रुप में अकेली लड़की, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि हरदम अपने अकेले होने का फायदा उठाते हुए उन्हें लूटती रहें और जब कोई खर्च करने को कहे तो ‘यार अकेली हूं फिर भी मुझ से पैसे लोगे’ कहें. ऐसे में फ्रैंड्स भले ही यह बात सुन कर आप से पैसे न लें लेकिन पीठ पीछे आप की बुराई अवश्य करेंगे. इसलिए हर जगह अपने अकेले होने का फायदा न उठाएं वरना किसी दिन कोई यह कहने में भी देर नहीं लगाएगा कि अकेली है तो कोई शहंशाह थोड़ी न बन गई. अपनी अच्छी आदतों से सब का दिल जीतने की कोशिश करें. 

अपनी पसंद दूसरों पर न थोपें

जब आप फ्रैंड्स के साथ आउटिंग पर जाएं तो वहां अपनी घर वाली दादागीरी न दिखाएं कि मैं तो शाही पनीर ही खाऊंगी या फिर मैगी और जब सब कहें कि यार यह डिश तो हमें पसंद नहीं इसलिए कोई दूसरी डिश मंगवा लेते हैं तो मुंह फुला कर न बैठ जाएं. ऐसे में उन्हें जबरदस्ती आप की खुशी के लिए हामी भरनी पड़ेगी लेकिन अंदर से उन्हें आप पर गुस्सा भी बहुत आएगा. इसलिए जब कभी बाहर जाएं तो ऐडजस्ट करना सीखें वरना अगली बार कोई फ्रैंड आप को इनवाइट करने की भूल नहीं करेगा.

हर बात पर जिद न करें

कहीं बाहर घूमने गई हैं तो वहां बातबात पर जिद कर के फ्रैंड्स का मूड औफ न करें, जैसे कि मुझे रूम में अकेले सोना है, सभी का सुबह घूमने जाने का प्रोग्राम 10 बजे का है लेकिन आप सिर्फ नींद के कारण 12 बजे चलने को बोलें. सब लोकल बस से घूमने की बात कहें लेकिन आप प्राइवेट कार करने की बात पर अड़ी रहें. ये सारी जिद घर में चल जाएगी क्योंकि अकेले होने के कारण पेरैंट्स आप को रोकेंगेटोकेंगे नहीं लेकिन फ्रैंड्स संग नहीं. इसलिए हर बात की जिद न करें.                  

जब अकेले रहते हैं तो इन बातों पर ध्यान दें

कभी भी निकल जाएं घूमने के लिए

आज पढ़ाई व जौब के सिलसिले में किशोरों को घर से दूर जा कर होस्टल या पीजी में रहना पड़ता है. ऐसे में घर से दूर जाते ही उन्हें लगने लगता है कि अब वे आजाद हो गए हैं. ऐसे में पीजी में रहते हुए जब भी मन करता है या फिर बोर हो रहे होते हैं तो घूमने निकल जाते हैं, बेशक तब रात ही क्यों न हो रही हो. भले ही आप अकेले रहें लेकिन कुछ नियमों का पालन घर की तरह ही करें. इस से आप सेफ भी रहेंगे.

जब मरजी सो कर उठें

पीजी रूम में देखने वाला तो कोई है नहीं इसलिए जब मरजी सो कर उठो, मन करे तो कालेज जाओ वरना पूरे दिन सोते रहो. भले ही आप पर नजर रखने वाला अब कोई, नहीं लेकिन ऐसा कर के आप अपने साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, इसलिए रूटीन को फौलो जरूर करें.

कुछ भी देख लेने की आदत

जब घर पर थे तब तो मम्मी की नजर हरदम आप पर ही टिकी रहती थी कि फोन में क्या देख रहे हो, टीवी पर कौन सा चैनल चलाया हुआ है. पर अब कोई टोकने व देखने वाला नहीं है तो फ्रैंड्स के कहने पर पोर्न साइट्स भी देखने से गुरेज नहीं करते. ऐसे में ऐसी चीजें देख कर आप का पढ़ाई से ध्यान तो हटेगा ही साथ ही आप की नैगेटिव इमेज भी बनेगी.

अभद्र भाषा का प्रयोग

अकेले रहना क्या शुरू किया कि दोस्तों के साथ अबे, तू, साला या फिर गंदीगंदी गालियों से बातें करें और छोटी सी बात पर मारपीट करने को तैयार हो जाएं. ध्यान रहे अकेले रहने का मतलब यह नहीं कि आप सारी मर्यादाएं ही भूल जाएं.

इस तरह यदि आप अकेले हैं चाहे सिचुऐशन कैसी भी हो तब भी अपनी जिम्मेदारियों को न भूलें और खुद को अकेला हूं कह कर शहंशाह न समझ बैठ

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