मध्य प्रदेश में बंदर गिनने जैसा एक काम यह हो रहा है कि राज्य में करीब 10 हजार गोदामों में रखी 10करोड़ गेहूं की बोरियों की जांच की जा रही है. उम्मीद किसी को नहीं कि यह मुश्किल जांच थोड़े से अधिकारियों की टीम ईमानदारी से साल के आखिर तक भी कर पाएगी.
राज्य में इस बार बाढ़ से हजारों लोग बेघर हो गए, सैकड़ों मर गए और लाखों पर इस का असर पड़ा. हालत यह थी कि दूरदराज के गांव तो दूर, राजधानी भोपाल तक में खाने के लाले पड़ गए. बाढ़ के इन मारों को सरकार ने कहने को राहत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर यह मदद भी सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों की बेईमानी की बलि चढ़ गई तो खिसियाई सरकार कह रही है कि एकएक बोरी की जांच करा कर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया जाएगा.
बेईमानी और भ्रष्टाचार का यह मामला अनूठा और दिलचस्प भी है जिस से साबित यह होता है कि सरकारी अधिकारियों को बेईमानी करने के मौके ढूढ़ने नहीं पड़ते, बल्कि मौके खुद चल कर उन के पास आते हैं. अब यह इन की कूवत और हैसियत के ऊपर है कि ये कितनी और कैसी बेईमानी कर पाते हैं.
राहत में घपला
बाढ़ पीडि़तों को सरकार ने मुफ्त गेहूं बांटने का ऐलान किया, तो देखते ही देखते जरूरतमंदों की भीड़ राशन की दुकानों और राहत केंद्रों पर उमड़ने लगी. सरकार ने दरियादिली दिखाते हुए गोदामों में रखा करोड़ों क्विंटल गेहूं प्रसाद की तरह बांटा.
पर प्रसाद बंटे और पंडा अपनी दक्षिणा न ले, ठीक इसी तरह यह भी नामुमकिन था कि राहत सामग्री खासतौर से गेहूं बांट रहे अफसर अपनाअपना हिस्सा न लें. स्टाक में रखे गेहूं को उड़ाना थोड़ा क्या बहुत मुश्किल भरा काम था, क्योंकि सरकार जो गेहूं खरीदती है उस का रिकार्ड भी रखती है और जो बांटती है उस का भी हिसाबकिताब रखती है.