भारत की तरक्की में सब से खास भूमिका कृषि क्षेत्र की है. इस के बावजूद कृषि को प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में वह जगह नहीं मिल पाई है, जो दूसरे विषयों को मिली है. कृषि शिक्षा की शुरुआत अकसर10वीं के बाद की कक्षाओं से होती है, जिस की वजह से छात्र शुरू की पढ़ाई के समय में कृषि जैसे खास विषय की जानकारी नहीं हासिल कर पाते हैं, जबकि खेतिकिसानी की शिक्षा शुरू से ही देना जरूरी है. बच्चों को अपने देश की कृषि समस्याओं, फसलों व कृषि से जुड़े रोजगार की जानकारी शुरू से होनी चाहिए, ताकि वे आगे की शिक्षा में अपनी जानकारी का बेहतर इस्तेमाल कर के भारतीय कृषि को ज्यादा फायदेमंद व बेहतर बना सकें.

शुरुआती शिक्षा के दौरान कृषि पर ध्यान न देने की वजह से बस्ती जिले के विकास खंड बस्ती सदर के पूर्व माध्यमिक विद्यालय परसा जागीर के एक अध्यापक ने विद्यालय के साथी शिक्षकों के साथ मिल कर प्राथमिक स्तर से ही बच्चों को कृषि शिक्षा देने की शुरुआत की है. अध्यापक डा. सर्वेष्ठ मिश्र के विद्यालय की खाली जगह में बच्चों द्वारा तैयार की गई हरीभरी फसल आने वाले लोगों का मन मोह लेती है. वे एक ऐसे शिक्षक हैं जो सरकार द्वारा तय पाठ्यक्रम के अलावा खेती की शिक्षा को प्राथमिक स्तर पर लागू कर के बच्चों के मन में खेतीकिसानी के प्रति जागरूकता पैदा करने का काम कर रहे हैं. एमए, एमएड व पीएचडी डिगरी धारक डा. सर्वेष्ठ मिश्र की पहली नौकरी बस्ती जिले के विकास खंड गौर के प्राथमिक विद्यालय मुसहा प्रथम में लगी. वहां उन्होंने छात्रों की संख्या 816 तक पहुंचाई.

इस के बाद वे तबादला होने की वजह से पूर्व माध्यमिक विद्यालय परसा जागीर आए. वहां पर विद्यालय के पास काफी मात्रा में खाली जमीन पड़ी थी. इस खाली जमीन का इस्तेमाल कर के उन के अंदर छिपे हुए किसान ने एक ऐसे नवाचार को जन्म दिया जिस से न केवल स्कूल में बच्चों के दाखिलों में बढ़ोतरी हुई,बल्कि आज वहां के बच्चे जिले व प्रदेश में स्कूल का नाम रोशन कर रहे हैं.

डा. सर्वेष्ठ मिश्र ने स्कूल की जिम्मेदारी संभालने के बाद आसपास के गांवों में घरघर जा कर लोगों से अपने विद्यालय में बच्चों के दाखिले की अपील की और लोगों को यकीन दिलाया कि वे किसी भी महंगे स्कूल से ज्यादा अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करेंगे. उन्होंने बच्चों को धीरेधीरे खेतीकिसानी की शिक्षा देनी शुरू की. वे रोजाना स्कूल के समय से 1 घंटा पहले स्कूल पहुंच जाते हैं और स्कूल की खाली पड़ी बंजर जमीन को जैविक खादों से उपजाऊ बनाने का काम करते हैं. इस से बच्चे भी खेतीकिसानी में दिलचस्पी लेने लगे हैं.

खाली जमीन पर लहलहाती है फसल : डा. सर्वेष्ठ मिश्र की खेतीकिसानी की शिक्षा की पहल उस समय रंग लाने लगी जब बच्चे उन के साथ स्कूल की खाली पड़ी जमीन पर रोज 1 घंटे तक कई तरह की फसलों को उपजाने की कोशिश करने लगे. छात्रछात्राओं ने डा. सर्वेष्ठ मिश्र के निर्देशन में जैविक खादें तैयार करना सीखा.

जैविक खाद बच्चों द्वारा घरों पर तैयार की जाती है और स्कूल आते वक्त बच्चे खाद को खेत में डालने के लिए साथ ले आते हैं. यहां के बच्चे कई तरह की फसलों के नाम जानने के साथसाथ उन में खाद की कितनी मात्रा का इस्तेमाल करना है और किसी कीट व बीमारी लगने पर किस तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाए, सारी जानकारी रखते हैं. बच्चों द्वारा तैयार की गई फसल उन के दोपहर के भोजन के काम में लाई जाती है, जिस से बच्चों को पौष्टिक भोजन मिलता है.

यह डा. सर्वेष्ठ मिश्र की खेती के प्रति लगन का ही नतीजा है कि यहां पढ़ने वाले बच्चे अपने मातापिता को खेतीकिसानी के बारे में सलाह तक देते हैं.

नवाचार बनी पहचान : परसा जागीर पूर्व माध्यमिक विद्यालय के नवाचार जिले व प्रदेश में अपनी पहचान रखते हैं. यहां के बच्चे न केवल खेतीकिसानी बल्कि खेलकूद, पढ़ाई, योगा, कंप्यूटर वगैरह में भी होशियार हैं. इस विद्यालय में डा. सर्वेष्ठ मिश्र ने अंगरेजी स्कूलों की तर्ज पर अपने वेतन के पैसे से बच्चों के लिए आईडी कार्ड, टाई, बेल्ट वगैरह का बंदोबस्त किया है. प्यूरीफाइड पानी के लिए आरो मशीन भी लगवाई है. इस के अलावा बिना किसी सरकारी सहयोग के ही वे हफ्ते में 1 दिन बच्चों को अपने लैपटाप से कंप्यूटर की शिक्षा देने का भी काम करते हैं.

यहां के बच्चे जिला, मंडल व राज्य स्तर पर खेलकूद में हिस्सा ले कर स्कूल का नाम रोशन कर चुके हैं. सुहैल अहमद नाम के एक छात्र को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी सांसद डिंपल यादव द्वारा लखनऊ में मीना रत्न अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

डा. सर्वेष्ठ मिश्र बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं. वे समयसमय पर बच्चों को कई तरह के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थानों पर घुमाने ले जाते हैं. डा. सर्वेष्ठ मिश्र विद्यालय में किए जाने वाले सभी नवाचारों को सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाने का काम भी कर रहे हैं. उन के द्वारा बनाया गया शैक्षिक नवाचार फेसबुक पेज लगभग डेढ़ लाख की लाइक की सीमा को पार कर चुका है.

उन का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित इस विद्यालय से सीख ले कर दूसरे विद्यालयों को भी बुनियादी स्तर पर देश की रीढ़ मानी जाने वाली कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने का काम करना चाहिए. और इस के लिए सरकार को भी चाहिए कि वह बुनियादी स्तर पर कृषि शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करे,ताकि नए कृषि वैज्ञानिक तैयार हो सकें.

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