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आखिरकार बोले करण जोहर

अपरोक्ष रूप से सारे कदम उठाने, सारे हथकंडे अपनाने, अपने पक्ष में बॉलीवुड से जुड़े कुछ लोंगो की एक फौज खड़ी कर लेने, मुंबई के पुलिस कमिश्नर से मुलाकात कर अपनी फिल्म के प्रदर्शन के वक्त सुरक्षा की मांग कर लेने के बाद अंततः अब करण जोहर को बोलना ही पड़ा.

उड़ी पर आतंकवादी हमले के एक माह बाद, भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बीस दिन बाद और फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के प्रदर्शन के महज दस दिन पहले करण जोहर ने वीडियो संदेश के साथ साथ लिखा हुआ संदेश मीडिया में पहुंचाकर ऐलान किया है कि अब वह पाकिस्तानी कलाकारों के संग फिल्म नहीं बनाएंगे.

काश! आतंकवादी हमले के बाद पाक कलाकारों पर बैन की आवाज उठते ही आज की ही तरह करण जोहर ने अपनी बात कह दी होती, तो शायद पिछले एक माह से जो शोर मचा हुआ था, वह न मचता.

शायद बौलीवुड दो खेमों में बंटने से बच जाता. पर करण जोहर ने बोलने में इतनी देर कर दी कि आज करण जोहर के बयान पर हर इंसान अपने अपने नजरिए से सोच रहा है. पिछले एक माह से जिस तरह से पाक कलाकार फवाद खान के कारण करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’विवादों में रही है, उसका उन्हे बॉक्स आफिस पर कितना फायदा मिलेगा, यह तो वक्त ही बताएगा. पर अब तक अपनी चुप्पी को वह अपनी देशभक्ति का नाम दे रहे हैं.

बहरहाल,मंगलवार,18 अक्टूबर को लगभग पौने दो मिनट के वीडियो संदेश में करण जोहर ने कहा है- ‘‘पिछले दो सप्ताह से मेरी चुप्पी पर जो लोग सवाल उठाते रहे हैं, उन्हें बताना चाहूंगा कि मैं इसलिए चुप रहा, क्योंकि मै दिल से देशभक्त हूं. मेरे लिए देश पहले है. कुछ लोग मुझे देशद्रोही कह रहे थे, इससे मुझे काफी दुःख हो रहा था. मैं आहत हो रहा था. मैं पूरी ताकत के साथ कहना चाहता हूं कि मेरे लिए मेरा देश पहले है, बाकी सब कुछ बाद में. मेरे लिए मेरे देश के अलावा कुछ भी मायने नहीं रखता. मैं अपने काम, अपनी फिल्मों के माध्यम से देशभक्ति फैलाना चाहता हूं. मैंने यही काम अपने सिनेमा के माध्यम से किया है. मैं अपनी फिल्मों के माध्यम से मोहब्बत का पैगाम देकर देशभक्ति करना चाहता हूं. जब पिछले वर्ष सितंबर से दिसंबर के मध्य मैं अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की शूटिंग कर रहा था, तब भारत व पाक के बीच संबंधं बिलकुल ही अलग थे. हमारी सरकार ने पड़ोसी देश के साथ शांतिपूर्ण संबंध स्थापित करने की दिशा में कई सकरात्मक कदम उठाए थे, मैंने उस वक्त उसका समर्थन किया था. आज जो भावनाएं हैं, मैं उनका भी सम्मान करता हूं. मैं इन भावनाओं को समझता हूं. क्योंकि मुझे भी उसका अहसास है.’’

करण जोहर ने आगे कहा-‘‘मै देश के लोगों की भावनाओं की कद्र करता हूं. और कहना चाहूंगा कि मैं भविष्य में पड़ोसी देश के कलाकारों के संग काम नहीं करूंगा. लेकिन मैं उसी ताकत के साथ यह बताना चाहूंगा कि फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में पाक कलाकार के अलावा मेरी युनिट के 300 सौ भारतीयों ने भी अपना खून पसीना बहाया है. मुझे नहीं लगता कि फिल्म के प्रदर्शन को रोकना इनके साथ न्याय होगा.’’

करण जोहर ये भी कहा- ‘‘मैं भारतीय सेना की इज्जत करता हूं और भारतीय सेना को सलाम करता हूं, वह जो कुछ भी हम भारतीयों की रक्षा के लिए करते हैं. मैं किसी भी तरह के आतंकवाद की निंदा करता हूं. खासकर आतंकवाद के उस रूप की जो मुझे व मेरे देशवासियों को प्रभावित करेगा. मैं उम्मीद करता हूं कि आप सभी लोग इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि हम लोग किन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं. हकीकत यही है कि मुझे किसी भी चीज से ज्यादा अपने देश से प्यार है.’’

‘टायलेट’ मुहीम के लिए ‘मिर्जिया’ ने जुटाए डेढ़ करोड़ रुपये

भारत में बाक्स आफिस पर राकेश ओम प्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की बहुत बुरी हालत हुई है. जबकि छह अक्टूबर को लंदन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ, जहां इसका 15 मिनट तक खड़े होकर लोगों ने तालियां बजाकर स्वागत किया. इसी फेस्टिवल में राकेश ओम प्रकाश ने अपनी ‘टायलेट’ मुहीम के लिए फिल्म ‘मिर्जिया’ के एक शो का आयोजन किया. फिल्म का शो खत्म होने पर उन्होंने दर्शकों से ‘टायलेट’ मुहीम पर बात की और उनसे अनुदान देने के लिए कहा. इस पर वहां बीस मिनट में ही एक लाख पचहत्तर हजार पौंड यानी कि करीबन डेढ़ करोड़ रूपए इकट्ठे हुए.

खुद राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका को बताया-‘‘लंदन में फिल्म ‘मिर्जिया’ के खास शो के खत्म होने के बाद हमने दर्शकों को टायलेट मुहीम के बारे में बताया. फिर महज 20 मिनट में एक लाख़ पचहत्तर हजार पौंड जमा हुए. इसी के साथ हमने वहां पर ‘मिर्जिया’ दिखाकर एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है. सिर्फ आज के लिए नहीं हमेशा के लिए. अब हम आजीवन वहां से ‘टायलेट’ मुहीम के लिए पैसा इकट्ठा कर भारत के सरकारी स्कूलों में टायलेट का निर्माण व उनका रखरखाव करते रहेंगे. हमें  अपने एनजीओ के काम के लिए एक जरिया चाहिए था, वह मिल गया. वहां पर लोगों को हमारा काम करने का साफ सुथरा तरीका पसंद आया.

देखिए, हम यह काम ‘युवा अनस्टापल’ के साथ मिलकर कर रहे हैं. हमने ‘केपीएमजी’ को इस मुहीम का पूरा एकाउंट संभालने के लिए कहा है. आई आई एम अहमदाबाद से कहा है कि इसका जो असर है, उसे स्टडी करें. इस तरह अच्छा काम लोग कर रहे हैं. जो पैसा आ रहा है, जो खर्च हो रहा है, उसका हिसाब एक अलग स्वतंत्र संस्था रख रही है. जो टायलेट/ शौचालय बनाए जा रहे हैं, वह किस तरह का काम है, वह सब लोगों के सामने हैं, जिसे लोग कभी भी देख सकते हैं. हमारी मुहीम पूरी पारदर्शिता के साथ चल रही है. यह सारी जानकारी वेबसाइट पर हर माह डालते हैं.’’

देश जितना हिंदुओं का है, उतना मुसलमानों का भी: राकेश ओमप्रकाश मेहरा

सामाजिक सरोकारों से जुड़े फिल्मकार राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘‘रंग दे बसंती’’ में देश के रक्षामंत्री को इसलिए गोली मरवायी थी कि उन दिनों उन्होंने निजी जिंदगी में देखा था कि हमारे देश के बच्चे मिग विमान उड़ा उड़ाकर मर रहे थे और हमारे रक्षामंत्री सुबह उठकर पार्क में मार्निंग वाक पर जा रहे हैं, वहां से वापस लौटकर बयान बाजी करते हैं कि ‘यह बच्चे होश नहीं जोश में ज्यादा है.’. यह वहीं राकेश ओम प्रकाश मेहरा हैं, जिनकी नई फिल्म ‘मिर्जिया’ को उड़ी आतंकवादी हमले के बाद पैदा हुई स्थिति के चलते पाकिस्तान में बैन कर दिया गया.

कल जब राकेश ओम प्रकाश मेहरा से हमारी मुलाकात उनके आफिस में हुई, तो हमने भारत में पाकिस्तानी कलाकारों के बैन पर मचे कोहराम पर सवाल किया, तो राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से एक्सक्लूसिव बात करते हुए कहा-‘‘मैं जो शोर मच रहा है, उसका हिस्सा नहीं बनना चाहता. मगर इस मुद्दे पर चुप भी नहीं रह सकता. देखिए, उड़ी सहित कुछ दूसरी जगहों पर भी आतंकवादी हमले हुए. कई मांओ ने अपने बेटे खोए. कई छोटे छोटे बच्चे अनाथ हो गए. कई परिवार अनाथ हो गए. बहनों ने भाई खो दिए. पत्नियों ने पति खो दिए. इन आतंकवादी हमलों में हमारे जो जवान शहीद हुए हैं, वह सभी काफी कम उम्र के हैं. युवा परिवार टूटे हैं. युवा विधवाएं हुई हैं. इनके बच्चे बहुत छोटे व कुछ तो एकदम नासमझ हैं.’’

राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने आगे कहा-‘‘यह समय दो काम करने के लिए है. एक काम तो इन परिवार वालों के दुःख दर्द को बांटने का है. दूसरा ऐसा काम किया जाए, जिससे कोई भी दूसरा देश हमारे देश की तरफ आंख उठाकर न देख सके. हमें यह दोनों काम प्राथमिकता के आधार पर करने पड़ेंगे. तीसरा काम यह कि हमने एक सरकार को चुना है, जिसकी जिम्मेदारी इस देश की कानून व्यवस्था व सुरक्षा को बनाए रखना है. अब हमें सरकार पर छोड़ना पड़ेगा कि वह इस दिशा में किस तरह से काम करती है, पर हमें उस पर दबाव भी बनाकर रखना पड़ेगा कि सरकार कुछ कड़े कदम उठाए. फिलहाल, सरकार इस दिशा में अच्छे कदम उठा रही है. तो अब सरकार जो कुछ कर रही है, उसके लिए हमें सरकार के साथ खड़े रहना होगा. उसे पूरा सपोर्ट करना चाहिए. युद्ध तो अंतिम विकल्प है. जिससे बचना चाहिए, समझदारी यही कहती है. सबसे पहले बातचीत व हर तरह के दबाव का उपयोग किया जाना चाहिए. पर यदि हमें युद्ध करना पड़े, तो हम वह भी करेंगे.

देखिए हमारी सरकार पिछले दो वर्ष से पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने व दोस्ती को बढ़ाने के लिए कदम उठाती आ रही है. पर इतना बड़ा पोलीटिकल फाल आउट हुआ है, इकानामिक फाल आउट भी हो रहा है, तो इस मुकाम पर यदि थोड़ा सा कल्चरल फाल आउट हो गया, तो क्या तकलीफ है. मैं यह सवाल हर उस इंसान से पूछ रहा हूं जो कि पाक कलाकारों की बंदिश के खिलाफ है? हमें इस मसले पर इतना शोर नहीं मचाना चाहिए.

हम तो एक साल पहले यही प्रयास कर रहे थे कि दोस्ती का हाथ बढ़े. हमारी तरफ से अच्छी डिप्लोमैसी हो रही थी. उसी समय शायद यह फिल्में बन रहीं थी. अब जो फिल्में बन गयी हैं, तो उन्हे निकलने दो. हमें यह नियम बना देना चाहिए कि इस तारीख के बाद जिस फिल्म की शूटिंग होगी, उस पर नियम लागू है. हमारी व पाकिस्तान की सोच में फर्क है. हम बंदर वाला काम नहीं करेंगे, हमें अपना बड़प्पन भी दिखाना है. लेकिन हम कोई भी काम अपने सैनिकों या सैनिकों के परिवार के आंसुओं की कीमत पर नहीं करेंगे.

उन्होंने आगे कहा-‘‘अब सवाल आता है कि पूरे विश्व में कला व कलाकार की कोई सीमा नहीं होती. यानी कि कलाकार हमेशा देश की सीमाओं से परे रहता है. पर अब जो हालात बने हैं, उसमें यह परिभाषा हमें निगलनी पड़ेगी. अब तक जो कलाकार आए, वह देश द्वारा दिए गए वीजा पर ही आए. कानून वर्क परमिट पर उन्होंने भारत में काम किया. जिन्हे जिन्हे यह वीजा और वर्क परमिट मिला, उन्होंने यहां काम कर लिया. किसी स्थानीय पार्टी की गुंडागर्दी से हमें डरना नहीं चाहिए. क्योंकि यह हमारा चरित्र ही नहीं है. ऐसे लोगों को चुप कराने का काम कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे लोगों की है.’’

वह आगे कहते हैं-‘‘जो होना था, वह हो गया. देखिए, यह पिछले साठ वर्ष से हो रहा है. हम इसी में गोल गोल घूम रहे हैं. हर तीन वर्ष बाद स्थिति आती है कि इन्हे बैन कर दिया जाए. फिर स्थिति आती है कि इन्हे इजाजत दे दी जाए. पर मेरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस दिशा में हमारा अगला कदम क्या होगा? हम आगे कैसे बढ़ें? जो समस्या है, उसका हल क्या निकाला जाए? हमें इन कलाकारों से कहना चाहिए कि आप कलाकार हैं. आपको हमारे देश में काम करना है. आप अपना देश छोड़कर हमारे देश की कानूनन विधिवत तरीके से नागरिकता ले लो और यहीं रहो. यह कलाकार कहें कि हम पाकिस्तानी नहीं है. आप भारत सरकार के सामने अपना निवेदन पेश करें कि आप भारत की नागरिकता चाहते हैं. आप अकेले मुसलमान नहीं हैं. हमने शुरू से यह रखा है कि भारत देश जितना हिंदुओं का है, उतना मुसलमानों का भी है. हमारा यही चरित्र है. पर आपको भारत की नागरिकता पाने के लिए डिजर्व करना पड़ेगा. आपको बताना पड़ेगा कि आप भारत की नागरिकता क्यों चाहते हैं. आपके निवेदन पर हमारी सरकार विचार करेगी. हमें कलाकार नहीं दोगलेपन से परहेज है.’’

देखिए, मेरे लिए उस जवान के परिवार का दुःख अहमियत रखता है. सिर्फ शहीद हुआ सैनिक व उसका परिवार ही नहीं, उनके अलावा हमारा जो सैनिक देश की सीमा पर खड़ा है और उनकी मांएं रात में सो नहीं पा रही हैं, उन्हें क्या जवाब दूं. क्या यह कहूं कि हम कलाकार की आरती सजा रहे हैं? यह कलाकार हैं, इन्हें  आने दो. हमारे लिए आज यह बहुत बड़ी बात है कि शहीद सैनिक के परिवार और देश की सीमा पर खडे़ सैनिक के परिवार को किस बात से शांति मिलती है?’’

पाक कलाकारों के बैन का विरोध करने वाले लोग अपने बच्चों को सीमा पर भेजें. इन सभी को चाहिए कि यह अपने परिवार से एक एक बंदा सीमा पर एकदम आगे भेजकर दिखाओ, उसके बाद बात करो. ‘कलाकार की सीमा नहीं होती है’ यह बोलते हुए अच्छा लगता है और बड़प्पन का अहसास मुझे भी होता है.

पाकिस्तान ने हमारी फिल्म ‘मिर्जिया’ को बैन कर दिया, इसके यह मायने नहीं है कि हम भी वही करें. पर हम यह कह रहे हैं कि आप पहले अपनी नागरिकता बदलिए, तब हमारे देश में काम कीजिए. वैसे भी आपको आपके देश में ज्यादा काम दिया नही जाता. आप वहां गाना गाते हो और कोई आपके पीछे बम फेंक कर निकल जाता है. आपकी वहां कोई अभिव्यक्ति नहीं है.’’ मैं देश की भावना समझता हूं. मेरी नजर में उड़ी में शहीद हुआ सैनिक भी मेरा भाई है. आज मैं मुंबई के बांदरा इलाके में चैन की नींद सो रहा हूं, क्योंकि वह वहां पर खड़ा हुआ है.

अनुराग कश्यप के बयान कि ‘प्रधानमंत्री ने अब तक अपनी पाकिस्तान यात्रा के लिए माफी नहीं मांगी है’ का जिक्र चलने पर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने कहा-‘‘यह तो बहुत ही ज्यादा दुःखद बात है. यदि आपके दिल में आपके देश के प्रधानमंत्री के लिए इज्जत नहीं है, भले ही आपकी विचार धारा अलग हो, तो इसके मायने यह हैं कि आपको अपने देश के प्रति इज्जत नहीं है. मेरी राय में हर पत्रकार को चाहिए कि ऐसे लोगों के बयानों को समाचार पत्र में  न छापें.’’ 

किशोरों में बढ़ती ईर्ष्या की प्रवृत्ति

किशोरावस्था उम्र का वह पड़ाव है जब किशोरकिशोरियों में एकदूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगी रहती है, लेकिन कभीकभी यह होड़ ईर्ष्या में तबदील हो जाती है. ईर्ष्या की कई वजहें होती हैं, जैसे अमीर व स्मार्ट बौयफ्रैंड, सहपाठी का कक्षा में फर्स्ट आना, फर्राटेदार अंगरेजी बोलना, दोस्तों के पास महंगे मोबाइल फोन का होना आदि. श्वेता 10वीं कक्षा की स्टूडैंट थी. वह देखने में बहुत खूबसूरत थी. सभी लड़कियां उसे ब्यूटी क्वीन कह कर बुलाती थीं लेकिन वह अन्य किशोरियों की तरह चंचल नहीं थी. वह हमेशा शांत रहती और क्लास में फर्स्ट आती थी. सुरेश भी श्वेता की क्लास में पढ़ता था. वह अमीर घर का था, देखने में स्मार्ट. जब वह क्लास में आता तो सभी लड़कियों की नजरें उस पर ही टिक कर रह जातीं. सभी लड़कियां उस से दोस्ती करने को लालायित रहतीं, पर वह किसी को लिफ्ट नहीं देता था.

उस का दिल कब श्वेता पर आ गया किसी को पता ही नहीं चला. श्वेता और सुरेश के प्यार के चर्चे अब पूरे स्कूल में होने लगे. बात तब हद से गुजर गई जब क्लास के कुछ मनचलों ने श्वेता को धमकी दी कि वह सुरेश से दोस्ती तोड़ दे वरना उस के साथ बहुत बुरा होगा. श्वेता ने जब यह बात सुरेश को बताई तो वह बौखला गया और उन लड़कों के पास जा कर बोला, ‘‘यार, तुम लोगों ने श्वेता को धमकी दे कर अच्छा नहीं किया. हम सब एक क्लास में पढ़ते हैं, हमारे बीच कोई ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए. हमें एकदूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए. अगर मेरी और श्वेता की दोस्ती है तो तुम्हें क्या हर्ज है अपने अच्छे व्यवहार से तुम भी किसी को दोस्त बना सकते हो. क्लास में और भी अच्छी लड़कियां हैं अगर वे तुम में इंट्रैस्टेड हैं तो तुम उन के साथ दोस्ती कर लो. फिर हम सब दोस्त मिल कर ऐंजौय किया करेंगे.’’

सुरेश की बात ने उन पर असर किया. इस की प्रतिक्रियास्वरूप प्रदीप बोला, ‘‘सुरेश ठीक कह रहा है. हमें श्वेता और सुरेश से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए.’’ किशोरों में ही नहीं किशोरियों में भी बौयफ्रैंड को ले कर अकसर ईर्ष्या देखी गई है. कभीकभी यह ईर्ष्या इतनी बढ़ जाती है कि अवसाद का कारण बन जाती है. मोहिनी 9वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस की क्लास में हर लड़की का बौयफ्रैंड था. मोहिनी भी दूसरी लड़कियों की देखादेखी बौयफ्रैंड बनाना चाहती थी, पर नाटी व काली होने की वजह से कोई लड़का उस की तरफ अट्रैक्ट नहीं होता था. नतीजतन उसे अपनी सहेलियों से ईर्ष्या होने लगी और वह उन से कटीकटी रहने लगी. इस का असर उस पर ऐसा पड़ा कि उस ने उस स्कूल को ही छोड़ दिया.

बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड को ले कर किशोरकिशोरियों में अकसर ईर्ष्या की भावना पैदा होती है, पर किसी को आगे बढ़ते देख भी किशोर मन में ईर्ष्या की भावना पनपने लगती है.

दिनेश क्लास में तो फर्स्ट आता ही था साथ ही अन्य ऐक्टिविटीज में भी वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. इस साल उस ने इंटरस्कूल डिबेट कंपीटिशन जीता था. स्कूल के प्रिंसिपल ने भी दिनेश की पीठ थपथपा कर उस की इस जीत पर उसे बधाई दी थी, लेकिन विनीत दिनेश की जीत से कुढ़ कर रह गया. एक दिन दिनेश जब प्लेग्राउंड से क्लास की ओर जा रहा था तो विनीत और उस के  दोस्तों ने उस पर कमैंट पास करते हुए कहा, ‘‘भई, रट्टू तोता बाजी मार ले गया. जीत तो तब कही जाती जब बिना रटे डिबेट जीतता.’’ दिनेश चाहता तो विनीत को उलटासीधा कह सकता था, पर शिष्टाचार में रहते हुए उस ने बस इतना ही कहा, ‘‘दोस्तो, अगली बार तुम लोग भी रट कर डिबेट में हिस्सा लेना. मुझे उम्मीद है कि जीत तुम्हारी ही होगी.’’

यह सुन कर विनीत और उस के दोस्त एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए लेकिन विनीत दिनेश को गले लगाते हुए बोला, ‘‘दोस्त, हम ने तुम्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. यू आर रियली ग्रेट माई डियर दिनेश.’’ इस तरह की ईर्ष्या की घटनाएं स्कूलों में किशोरकिशोरियों के बीच अकसर देखने को मिलती हैं.

किशोरियों में एकदूसरे की ब्यूटी को ले कर ईर्ष्या होना आम बात है. सुंदर किशोरियों के मिजाज सातवें आसमान पर रहते हैं. वे बातबात पर अपनी फिगर और फेस की तारीफ करती नहीं थकतीं. ऐसे इतराती हैं मानो कोई अप्सरा हों. ऐसी किशोरियों को देख कर दूसरी किशोरियों में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है, जो अंदर ही अंदर उन्हें बेचैन करती रहती है. ऐसी किशोरियों को ईर्ष्या करने की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्हें अपने दूसरे गुणों को उभारने का प्रयास करना चाहिए. उन्हें उन लोगों को उदाहरण के तौर पर देखना चाहिए जिन्होंने बदसूरत होते हुए भी अपनेअपने क्षेत्र में बुलंदियों को छुआ और लोगों के दिलों में बस गईं.

महान कवयित्री महादेवी वर्मा शक्लसूरत में साधारण थीं, लेकिन अपने लेखन से वे लोगों का दिल जीतने में सफल रहीं. ऐसे न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं.

भाई बहनों के बीच ईर्ष्या

केवल दोस्तों के बीच ही ईर्ष्या नहीं होती बल्कि सगे भाईबहनों के बीच भी ईर्ष्या देखने को मिलती है. वैसे तो मातापिता अपने सभी बच्चों को सामान्य रूप से प्यार करते हैं, पर ऐसा देखने में आया है कि उन बच्चों को अधिक प्यार व उन की तारीफ रिश्तेदारों से करते हैं जो पढ़ने में तेज होते हैं. दूसरों के सामने तारीफ करने से दूसरे भाईबहनों में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है और वे उस से बातबात में झगड़ने लगते हैं.

रोहित, रश्मि और राहुल भाईबहन थे. राहुल बड़ा था और रोहित छोटा. राहुल क्लास में हमेशा फर्स्ट आता पर एक साल बीमार हो जाने की वजह से राहुल की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई. उस की क्लास में थर्ड पोजिशन आई जबकि रोहित और रश्मि अपनीअपनी क्लास में फर्स्ट आए. बात यहीं खत्म हो जाती अगर मातापिता दूसरों के सामने राहुल की बुराई न करते, लेकिन राहुल की बुराई करने से उस ने इस असफलता को दिल पर ले लिया और अपने भाईबहन से ईर्ष्या तो करने ही लगा बल्कि मातापिता के साथ भी शिष्टता भूल बैठा. वह सब से अलगअलग रहने लगा और बातबात पर मातापिता को उलटासीधा कहने से भी बाज न आता. इसलिए बच्चों के बीच ईर्ष्या के लिए बहुत हद तक पेरैंट्स भी जिम्मेदार होते हैं.

ईर्ष्या से कैसे बचें

पौजिटिव सोच रखें

हमेशा अच्छा सोचें. अगर असफलता को गंभीरता से न लें और न ही सफल व्यक्तियों को देख कर कुढ़ें. उन जैसा बनने का प्रयास करें तो एक दिन सफलता अवश्य आप के कदम चूमेगी. ईर्ष्या करने से आप का मनोबल गिरेगा और आप अपना कौन्फिडैंस खो बैठेंगे. महान मुक्केबाज मुहम्मद अली जब पहली बार बौक्सिंग रिंग में उतरे थे तो उन्हें दूसरे मुक्केबाज ने चंद मिनट में ही हरा दिया था, पर मुहम्मद अली ने उस दिन ही पक्का इरादा कर लिया था कि वे बौक्सिंग के विश्व चैंपियन बन कर रहेंगे. उन की पौजिटिव थिंकिंग ने उन को विश्व चैंपियन बना दिया. इसी तरह महान धावक मिल्खा सिंह ने हार में भी जीत तलाशी और ओलिंपिक में गोल्ड मैडल प्राप्त किया. सही सोच और कुछ कर दिखाने के जज्बे ने उन्हें विश्व का महान धावक बना दिया. लोग मिल्खा सिंह को उड़न सिख के नाम से संबोधित करते हैं.

मेहनत से आगे बढ़ें 

किशोरकिशोरियों को एकदूसरे को आगे बढ़ता देख ईर्ष्या होने लगती है. वे यह नहीं सोच पाते कि क्यों पीछे रह गए और दूसरे कैसे आगे बढ़ गए? सब से पहले उन्हें अपनी कमियां तलाशने की जरूरत है. कमियां तलाश कर सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ने के रास्ते तलाशिए. इस के लिए भले ही कितनी मेहनत करनी पड़े.

ईर्ष्या नहीं तारीफ करें

अगर दोस्त के पास स्मार्टफोन है या दूसरे गैजेट्स हैं तो उस से ईर्ष्या न करें, बल्कि खुल कर उस के स्मार्टफोन व गैजेट्स की तारीफ करें. दोस्त खुश हो जाएगा और अपनी चीजें आप से शेयर भी करेगा. अगर दोस्त क्लास में फर्स्ट आता है या डिबेट व अन्य खेलों में विजयी होता है तो भी उसे बधाई देना न भूलें. दोस्त के कपड़ों की तारीफ करें और कहें, ‘यार, इन कपड़ों में तो तू हीरो जैसा लगता है,’ फिर देखिए वह आप का कितना पक्का दोस्त बन जाएगा.

स्वस्थ स्पर्धा हो

सभी किशोरों में एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है, पर कुछ किशोरकिशोरियां आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन शौर्टकट अपनाते हैं और इस तरह आगे भी निकल जाते हैं. यह सफलता स्थायी नहीं होती और न ही कौन्फिडैंस पैदा करती है. आप हमेशा अंदर ही अंदर यह जरूर महसूस करेंगे कि शौर्टकट से आज तो सफलता मिल गई पर आगे क्या होगा. इसलिए आपस में स्वस्थ स्पर्धा होनी चाहिए. कभीकभी किशोरकिशोरियों में ईर्ष्या इतनी हद तक बढ़ जाती है कि वे बदला लेने पर उतर आते हैं. उन का ऐसा सोचना ठीक नहीं है बल्कि उन्हें अपनी अहमियत दिखानी चाहिए और श्रेष्ठ बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि दूसरे को बरबाद करने में अपनी पूरी ऐनर्जी लगानी चाहिए. इसलिए हमेशा पौजिटिव सोचें और दोस्तों के अच्छे काम की दिल खोल कर प्रशंसा करें.

डिजिटल सैक्स का मकड़जाल

आजकल सबकुछ डिजिटल हो रहा है. स्कूलकालेज, औफिस, पुलिस स्टेशन, अदालत सबकुछ डिजिटल हो रहे हैं, ठीक इसी प्रकार संबंध भी डिजिटल हो रहे हैं. शादीब्याह के न्योते हों या कोई अन्य खुशखबरी या फिर शोक समाचार सबकुछ ईमेल, व्हाट्सऐप, एसएमएस, ट्विटर या फेसबुक के जरिए दोस्तों और सगेसंबंधियों तक पहुंचाया जा रहा है. मिठाई का डब्बा या खुद कार्ड ले कर पहुंचने की परंपरा धीरेधीरे लुप्त हो रही है.

कुछ ऐसा ही प्रयोग युवकयुवतियों के संबंधों में भी हो रहा है. ऐसे युवकों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो यौन सुख के लिए वास्तविक सैक्स संबंधों के बजाय डिजिटल सैक्स और औनलाइन पोर्नोग्राफी पर ज्यादा निर्भर हैं. ऐसे युवकों को वास्तविक दुनिया के बजाय आभासी दुनिया के सैक्स में ज्यादा आनंद आता है और ज्यादा आसानी महसूस होती है. इन्हें युवतियों को टैकल करना और उन से भावनात्मक व शारीरिक संबंधों का निर्वाह करना बेहद मुश्किल लगता है, इसलिए ये उन से कन्नी काटते हैं. पढ़ेलिखे और शहरी लोगों में डिजिटल सैक्स की आदत ज्यादा देखी जाती है. मनोवैज्ञानिक इन्हें ‘हौलो मैन’ यानी खोखला आदमी कहते हैं. ऐसे लोगों को वास्तविक यौन सुख या इमोशनल सपोर्ट तो मिल नहीं पाता नतीजतन ये ऐंग्जायटी और डिप्रैशन का शिकार होने लगते हैं और भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं.

मुंबई की काउंसलर शेफाली, जो ‘टीन मैटर्स’ पुस्तक की लेखिका भी हैं, हफ्ते में कम से कम एक ऐसे युवक से जरूर मिलती हैं, जो पोर्न देखने का अभ्यस्त होता है और वास्तविक सैक्स से कतराता है. दरअसल, युवावस्था में लगभग हर युवक डिजिटल सैक्स का शौकीन होता है. कुछ युवक इस के इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें इस का नशा हो जाता है और वे सामाजिक जीवन से कतराने लगते हैं. उन्हें जो युवतियां मिलती भी हैं उन में वे आकर्षण नहीं ढूंढ़ पाते, क्योंकि उन की ब्रैस्ट या अन्य अंग पोर्न ऐक्ट्रैस जैसे नहीं होते. कई बार घर वालों के कहने या सामाजिक दबाव में आ कर ये शादी तो कर लेते हैं, लेकिन अपनी बीवी से इन की ज्यादा दिन तक पटरी नहीं बैठती, क्योंकि ये अपनी बीवी के साथ सैक्स संबंध बनाते वक्त उस से पोर्न जैसी ऊटपटांग हरकतें और वैसी ही सैक्सुअल पोजिशंस चाहते हैं. कोई भी बीवी यह सब कब तक बरदाश्त कर सकती है? नतीजतन या तो बीवी इन्हें छोड़ देती है या फिर ये खुद ही ऊब कर अलग हो जाते हैं.

व्यवहार विशेषज्ञों के मुताबिक इंटरनैट पर पोर्न साइट्स की बाढ़, थ्रीडी सैक्स गेम, कार्टून सैक्स गेम, वर्चुअल रिएलिटी सैक्स गेम और अन्य तरहतरह की पोर्न फिल्में जिन में एक युवती या युवक को 3-4 लोगों के साथ सैक्स संबंध बनाते हुए दिखाया जाता है, ने युवाओं के दिमाग को बुरी तरह डिस्टर्ब कर के रख दिया है. स्मार्टफोन पर आसानी से इन की उपलब्धता ने स्थिति ज्यादा बिगाड़ दी है. यह स्थिति सिर्फ भारत की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की है. ‘मेन (डिस) कनैक्टेड : हाउ टैक्नोलौजी हैज सबोटेज्ड व्हाट इट मीन्स टू बी मेल’ में मनोविज्ञानी फिलिप जिम्वार्डो ने लिखा है, ‘औनलाइन पोर्नोग्राफी और गेमिंग टैक्नोलौजी पौरुष को नष्ट कर रही है. अलगअलग देशों के 20 हजार से ज्यादा युवाओं पर किए गए सर्वे में हम ने पाया कि आसानी से उपलब्ध पोर्न से हर देश में पोर्न एडिक्टों की भरमार हो गई. यूथ्स को युवतियों के साथ यौन संबंध बनाने के बजाय पोर्न देखते हुए हस्तमैथुन करने में ज्यादा आनंद आता है.’

मेन (डिस) कनैक्टेड की सह लेखिका निकिता कूलोंबे कहती हैं, ‘इंटरनैट युवाओं को अंतहीन नौवेल्टी और वर्चुअल हरमखाने की सुविधा देता है. 10 मिनट में ये यूथ इतनी निर्वस्त्र और सैक्सरत युवतियों को देख लेते हैं, जितनी इन के पुरखों ने ताउम्र नहीं देखी होंगी.’

व्यवहार विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल युग में कई यूथ ऐसे मिलेंगे जो स्क्रीन पर चिपके रहेंगे और सोशल साइट्स पर तो युवतियों से खूब गुफ्तगू करेंगे, लेकिन वास्तविक दुनिया में उन्हें युवतियों के सामने जाने पर घबराहट होती है और ये अपनी भावनाएं उन के साथ शेयर करने का सही तरीका नहीं ढूंढ़ पाते.

ये युवा फेस टू फेस बात करने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सऐप, टैक्स्ट मैसेज या मोबाइल फोन का सहारा लेते हैं. जाहिर सी बात है कि ये युवतियों के सामने नर्वस हो जाते हैं और उन से संबंध बनाने से कतराते हैं. पोर्न से उन्हें तत्काल आनंद और संतुष्टि मिलती है, जबकि वास्तविक दुनिया में सैक्स संबंध बनाने से पहले मित्रता, प्रेम, आत्मीयता या शादीविवाह जरूरी होता है.

डिजिटल सैक्स का यह एडिक्शन युवतियों की तुलना में युवकों को अधिक प्रभावित करता है. इस की वजह यह है कि इंटरनैट पोर्न में यौन संबंधों का आनंद उठाते हुए युवकों को ही अधिक दिखाया जाता है.

मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ‘‘हमारे देश में सैक्स के बारे में बात करना एक प्रकार से गुनाह माना जाता है. ऐेसे में यूथ्स के लिए अपनी सैक्सुअल जिज्ञासाओं को शांत करने का सब से आसान जरिया इंटरनैट पोर्न ही है. इस का एक दुष्प्रभाव यह है कि ये युवक इन पोर्न क्लिपिंग्स या फिल्मों के जरिए सैक्स ज्ञान प्राप्त करने के बजाय मन में ऊटपटांग ग्रंथियां पाल लेते हैं.’’

पोर्न नायक के अतिरंजित मैथुन और उस के यौनांग के अटपटे साइज को ले कर ये युवा अपने मन में हीनभावना पाल लेते हैं और खुद को नाकाबिल या कमजोर मान कर युवतियों का सामना करने से कतराते हैं. ये युवक अपने छोटे लिंग और कथित शीघ्रपतन की समस्या को ले कर अकसर मनोवैज्ञानिक या सैक्स विशेषज्ञों के चक्कर काटते नजर आते हैं. कुछ युवा तो झोलाछाप डाक्टरों या तंत्रमंत्र के चंगुल में भी फंस जाते हैं.

‘इंडिया इन लव’ की लेखिका इरा त्रिवेदी के मुताबिक डिजिटल सैक्स के मकड़जाल में फंस कर कई यूथ्स तो अपनी बसीबसाई गृहस्थी को भी तबाह कर बैठते हैं. दरअसल, पोर्न फिल्मों में हिंसक यौन संबंध दिखाए जाते हैं, जिन में युवतियों को जानवरों की तरह ट्रीट किया जाता है और उन के चीखनेचिल्लाने के बावजूद उन के साथ जबरन सैक्स करते दिखाया जाता है.

हाल ही में कोलकाता में एक महिला ने तलाक की अपील करते हुए शिकायत की कि उस का पति पोर्न फिल्मों के ऐक्शन उस पर दोहराना चाहता है. अजीबोगरीब आसनों में सैक्स करना चाहता है, जिसे सहन करना उस के बस की बात नहीं. पति के साथ यौन संबंध बनाने में उसे न तो रोमांस का अनुभव होता है, न ही आनंद आता है बल्कि सैक्स संबंध उस के लिए टौर्चर बन चुके हैं.

कुछ हद तक डिजिटल सैक्स की इस आधुनिक बीमारी का शिकार कई महिलाएं बन चुकी हैं. गायनोकोलौजिस्ट बताती हैं कि उन के पास कुछ महिलाएं वैजाइनल ब्यूटीफिकेशन के उपाय पूछने भी आती हैं, तो कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो अपने पति से संतान तो चाहती हैं मगर सैक्स नहीं करना चाहतीं. संतान की उत्पत्ति के लिए वे कृत्रिम रूप से गर्भाधान करना चाहती हैं.

82 वर्षीय जिंबारडो कहते हैं कि युवाओं को डिजिटल सैक्स के इस मकड़जाल से निकालने के लिए वास्तविक दुनिया में इन्वौल्व होने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा. उन्हें डिजिटल दुनिया से दूर रहने और अपने जैसे हाड़मांस के दूसरे लोगों से मिलनेजुलने और खासकर युवतियों से मिलनेजुलने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा.               

पोर्न फैक्ट, जो चौंकाते हैं

–  आमतौर पर हम पोर्न की खपत विदेश में ज्यादा मानते हैं, लेकिन 2014 में हुए एक औनलाइन सर्वे में ‘पोर्नहब’ ने पाया कि भारत पोर्न कंटैंट का सब से बड़ा उपभोक्ता है.

–  भारतीय डैस्कटौप के बजाय स्मार्टफोन पर पोर्न ज्यादा देखते हैं.

–  देशभर में आंध्र प्रदेश के लोग पोर्न हब पर सब से कम समय 6 मिनट 40 सैकंड बिताते हैं जबकि पश्चिम बंगाल में रोज 9 मिनट 5 सैकंड और असम में यह आंकड़ा 9 मिनट 55 सैकंड का है.

– सनी लियोनी अब तक की सब से फेवरिट पोर्न स्टार है.

– दुनिया के ज्यादातर देशों में पोर्न फिल्म सोमवार को देखी जाती है जबकि भारत में शनिवार को.

प्यार का फैवीकोल सैक्स

कहते हैं प्यार जब अपनी ऊंचाइयों पर पहुंचता है तो वह अपनी सारी हदें पार कर जाता है और इन हदों के परे सबकुछ एकाकार हो जाता है, चाहे वह मन हो या फिर तन. प्रेम में शारीरिक मिलन अकसर एक चुंबक की तरह काम करता है. तमाम नाकाम कोशिशों के बावजूद मिलन के इस आकर्षण से बचा नहीं जा सकता. म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग के साथ शुरू हुए इस रिश्ते में शुरू में तो खूब गर्माहट होती है, मरमिटने के कसमेवादे होते हैं, पर वक्त के साथसाथ ये सब फीके पड़ने लगते हैं, जब तक इसे संसर्गता की डोर से बांधा न जाए. अधिकतर प्लैटोनिक रिश्ते एक मोड़ पर आ कर टूट जाते हैं, बशर्ते वे किसी कमिटमैंट के साथ शुरू न किए गए हों.

ऐसा भी नहीं है कि सैक्सुअल बौंडिंग, लवबौंडिंग को बनाए रखने की एक अहम कड़ी है, पर हां, प्रेम की ताजगी को बनाए रखने के लिए शारीरिक संबंध बनाना बहुत जरूरी है. यदि एक स्त्री और पुरुष के बीच प्रेम है तो वह तब तक लगातार बना रहेगा जब तक उन में शारीरिक संबंध जारी रहेंगे. इसलिए अगर आप प्रेम करते हैं तो सहवास के लिए भी तैयार रहें. कभी भी अपने मन में कुंठा न पालें कि आप गलत कर रही हैं. वैसे भी प्यार में शारीरिक निकटता स्वाभाविक है. इस में कुछ भी अनैतिक नहीं है. हां, पर यह जरूरी है कि शारीरिक संबंध बनाने से पहले अपने पार्टनर की लोआयलिटी टैस्ट जरूर कर लें. रिश्तों की मजबूती व स्वयं की सुरक्षा के लिए बेहद आवश्यक है कि आप अपने पार्टनर को ठीक से जानसमझ लें.

फिजिकल रिलेशन बनाने से पहले इन बातों का खयाल जरूर रखें :

–       फिजिकल रिलेशन बनाने से पहले ट्रस्ट बिल्डिंग ऐक्सरसाइज जरूर करें.

–       फिजिकल रिलेशन आपसी रजामंदी पर निर्भर करते हैं इसलिए अपने पार्टनर पर एकतरफा दबाव न बनाएं.

–       फिजिकल बौंडिंग आप की रिलेशनशिप को सिर्फ स्मूद और स्ट्रौंग बनाती है, लेकिन यह लौंग लास्टिंग रिलेशन की कतई गारंटी नहीं देती. इसलिए सोचसमझ कर कदम बढ़ाएं.

–       फिजिकल रिलेशन आप के लवमेकिंग प्रोसैस को मजबूती प्रदान करते हैं पर इस के अच्छे और बुरे परिणाम के बारे में जरूर जानें. कभीकभी ज्यादा फिजिकल होना भी रिश्ते के लिए नुकसानदेह साबित होता है.

–       प्रेम की आड़ में शारीरिक संबंध बनाना कई युवकों का शगल होता है इसलिए अपने पार्टनर को परखें, जल्दबाजी न करें. कई बार फिजिकल होने के बाद युवकों का इंटरैस्ट खत्म हो जाता है और वे पार्टनर को नजरअंदाज करने लगते हैं, इसलिए इस हैबिट को रूटीन में लाने से पहले पार्टनर की ब्रेन मैपिंग जरूर करें.

–       अपनी सुरक्षा का पूरा खयाल रखें.  संबंध बनाते समय कंट्रासैप्टिक का इस्तेमाल जरूर करें.

प्रेम में यदि धोखा मिलना होगा तो मिलेगा ही, चाहे आप अपने पार्टनर के साथ फिजिकल हों या प्लैटोनिक, पर इस बात की तो पक्की गारंटी है कि फिजिकल रिलेशन आप के प्रेम को टिकाऊ और लचीला बनाता है और यह भी सही है कि प्लैटोनिक लव को ज्यादा लंबा नहीं खींचा जा सकता. प्रेम करने वालों को सैक्स का आकर्षण अपनी ओर खींच ही लेता है और क्या पता यही सैक्स आप के प्रेम के लिए टौनिक का काम कर जाए. लेकिन ध्यान रखें कि जिस्म की यह जरूरत कहीं वासना न बन जाए. कहीं इस की आड़ में आप का शोषण न हो.

आपसी समझ और साझेदारी ही दीर्घ रिश्ते की गारंटी है. आप अपने प्रेम को बनाए रखना चाहती हैं तो उस में सैक्स का फैवीकोल तो मिलाना ही पड़ेगा. प्रेम है तो सैक्स है और सैक्स है तो प्रेम जिंदा है, यही आज का फलसफा भी है.               

एथिकल हैकिंग में कैरियर

सूचना तकनीक के रूप में कंप्यूटर, मोबाइल और इंटरनैट के बढ़ते प्रयोग के फलस्वरूप हाल के वर्षों में साइबर क्राइम का दायरा भी बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है. किसी यूजर के कंप्यूटर से इंटरनैट की मदद से उस के पर्सनल डाटा की चोरी से ले कर इंटेलैक्चुअल प्रौपर्टी के कौपीराइट का गैरकानूनी प्रयोग, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, बुलिंग, वित्तीय धोखाधड़ी से ले कर कई अन्य अपराध भी साइबर क्राइम के अंतर्गत आते हैं.

वर्तमान में इस प्रकार की वित्तीय धोखाधड़ी की वारदातों के अतिरिक्त बड़े कौर्पोरेट और्गेनाइजेशंस से ले कर गवर्नमैंट डिपार्टमैंट्स के महत्त्वपूर्ण डाटा और इनफौर्मेशन के लीक होने और हैक कर लिए जाने की खबरें अकसर मीडिया में छाई रहती हैं.

लिहाजा, डाटा की प्राइवेसी की मैंटेनैंस और फिशिंग की अन्य घटनाओं पर नियंत्रण करने के लिए एथिकल हैकिंग का कौन्सैप्ट अब बड़े कैरियर औप्शन के रूप में विकसित हो चुका है.

इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 1990 के आर्थिक सुधार के बाद जिस तरह से ग्लोब्लाइजेशन का विकास हुआ है और दुनिया सिमट कर एक ग्लोबल विलेज के रूप में तबदील हो गई है, उस में इंटरनैट की तेजी से विकास के साथ बिजनैस और कौर्पोरेट और्गेनाइजेशंस से ले कर बैंकिंग मैनेजमैंट, शौपिंग और कम्युनिकेशन की दुनिया में औनलाइन डीलिंग्स में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है. इसी के साथ औनलाइन धोखाधड़ी के मामलों में भी काफी वृद्धि हुई है.

इंटरनैट के मौडर्न युग में महत्त्वपूर्ण डाटा और इनफौर्मेशन की सिक्योरिटी एक बड़ी प्रौब्लम और चैलेंज के रूप में उभर कर आई है. औनलाइन जिस के ट्रांजैक्शन की प्राइवेसी और सैंसिटिव डाटा की चोरी पर नियंत्रण के लिए एथिकल हैकर का रोल काफी अहम हो गया है. हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 तक देश के विभिन्न डिपार्टमैंट्स में 5 लाख से अधिक साइबर सिक्योरिटी प्रोफैशनल्स की आवश्यकता होगी.

क्या करता है एथिकल हैकर

हैकिंग को कानूनी रूप से एक अपराध माना गया है लेकिन यह दंडनीय अपराध भी है. जब कोई हैकर अपनी और्गेनाइजेशन के लिए किसी कौंट्रैक्ट और सहमति के अंतर्गत डाटा और इनफौर्मेशन की सिक्योरिटी के लिए हैकिंग करता है तो उसे एथिकल हैकर कहा जाता है. एथिकल हैकर को ‘वाइट हैट हैकर’ भी कहते हैं, क्योंकि वह किसी भी सिस्टम और डाटा की प्राइवेसी में कानूनी रूप से नैतिकता के आधार पर प्रवेश करता है. इन्हें पेनेट्रेशन टैस्टिंग ऐक्सपर्ट के नाम से भी जाना जाता है. एक एथिकल हैकर  जिस और्गेनाइजेशन के लिए काम करता है वह उस के डाटा, कौन्फिडैंशिएल डौक्यूमैंट्स और अन्य प्रकार की प्राइवेसी के लिए उस के सिस्टम और सर्वर का कास्टोडियन होता है और वह निरंतर इन की जांच करता रहता है.

इस के अतिरिक्त कई अन्य तकनीकी समस्याओं और सिस्टम की कमियों को दूर कर के वह अपने क्लाइंट्स को सिक्योरिटी और प्राइवेसी प्रोवाइड करता है. कुल मिला कर एक एथिकल हैकर किसी प्रोफैशनल हैकर को हैक करने का नैतिक और कानूनी कार्य करता है.

एथिकल हैकर बनने के लिए किन स्किल्स की जरूरत होती है

एथिकल हैकर की जिम्मेदारी काफी संवेदनशील होती है. उसे बड़ी कठिन और संकट की परिस्थितियों में काम करने की आवश्यकता होती है. यही कारण है कि एथिकल हैकिंग में कैरियर बनाने के लिए इच्छुक कैंडिडेट में साहस, धैर्य और संकट सहन करने की क्षमता होनी चाहिए.

इस के अतिरिक्त कैंडिडेट में क्रिएटिविटी, प्रौब्लमसौल्विंग, एनालिटिकल एबिलिटी और क्विक डिसिजनमेकिंग जैसे गुणों का होना भी आवश्यक है. साथ ही तार्किक क्षमता से भरपूर और अच्छी सोच वाले कैंडिडेट इस प्रकार के सैंसिटिव कार्यों के लिए अधिक योग्य और उपयुक्त समझे जाते हैं.

एक एथिकल हैकर को अपना असाइनमैंट पूरा करने के लिए विदेश भी जाना पड़ता है. लिहाजा, उसे विदेश ट्रैवलिंग के लिए भी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार रहना चाहिए. एथिकल हैकर की चाह रखने वाले प्रौस्पैक्टिव कैंडिडेट को कंप्यूटर, नैटवर्किंग और प्रोग्रामिंग का भी गहरा ज्ञान होना जरूरी है.

जौब प्रौस्पैक्ट्स

ग्लोबल भारत आज डिजिटल संस्करण की क्रांति के दौर से गुजर रहा है. रोजमर्रा की चीजों से ले कर बिजनैस की सारी गतिविधियां डिजिटल एडिशन की तरफ बढ़ती जा रही हैं. यही कारण है कि एक समय एथिकल हैकर की डिमांड केवल आईटी कंपनियां ही करती थीं, लेकिन आज इस की डिमांड औनलाइन डीलिंग करने वाली सभी संस्थाओं और व्यक्तियों द्वारा की जा रही है. ऐसी स्थिति में भविष्य में एथिकल हैकर की डिमांड में वृद्धि की काफी संभावनाएं हैं.

कोर्स

एथिकल हैकिंग में कैरियर बनाने के लिए 2 ही मुख्य कोर्स हैं :

1. सर्टिफिकेट कोर्स इन एथिकल हैकिंग.

2. पीजी डिप्लोमा इन इनफौर्मेशन सिक्योरिटी ऐंड सिस्टम ऐडमिनिस्ट्रेशन.

कोर्स और रिक्वायर्ड क्वालिफिकेशन

हैकर का मुख्य कार्य कंप्यूटर, नैटवर्किंग और प्रोग्रामिंग की नौलेज पर आधारित होता है. यही कारण है कि एथिकल हैकिंग में कैरियर बनाने की चाह रखने वाले उम्मीदवार का कंप्यूटर साइंस या आईटी में कोर्स करना बहुत जरूरी है, क्योंकि बड़ीबड़ी कंपनियों द्वारा अपने डाटा की प्राइवेसी और फिशिंग जैसे फ्रौड की घटनाओं से बचने के लिए कंप्यूटर साइंस या इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी में डिग्री होल्डर्स का रिक्रूटमैंट किया जाता है.

कभीकभी ये कंपनियां अपने एथिकल हैकर की योग्यता और कुशलता से संतुष्ट नहीं होतीं और फिर उसे अपनी जरूरतों के मुताबिक ट्रेंड करती हैं. मौलिक रूप से कोई कैंडिडेट जो एथिकल हैकर के रूप में अपना कैरियर बनाने का इच्छुक है तो उसे कंप्यूटर साइंस में बीएससी और आईटी में बीटैक करना जरूरी है. इस के अतिरिक्त इस क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए उत्सुक उम्मीदवार को बीसीए या एमसीए की डिग्री प्राप्त करने की आवश्यकता होती है. कंप्यूटर साइंस और आईटी में इन बेसिक डिग्री के अतिरिक्त एथिकल हैकिंग में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स करने पर भी काफी सहायता मिलती है. इस तरह के प्रोफैशनल कोर्स कैंडिडेट को रिक्रूटमैंट कंपनियां प्रैफर करती हैं और अच्छा सैलरी पैकेज भी देती हैं. एथिकल हैकिंग में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स औफलाइन और औनलाइन दोनों तरह से किया जा सकता है.

सामान्य रूप से एथिकल हैकिंग में कैरियर बनाने के लिए कैंडिडेट को कंप्यूटर नैटवर्किंग की नौलेज और प्रोग्रामिंग की अच्छी जानकारी होनी चाहिए. जावा या C++ अथवा किसी एक ऐप्लिकेशन में कैंडिडेट का ऐक्सपर्ट होना जरूरी है. इन स्किल्स में बिना मास्टरी के एथिकल हैकर की सफलता की राह आसान नहीं होती.

सैलरी पैकेज

किसी और्गेनाइजेशन के लिए काम करने वाले एथिकल हैकर की शुरुआती सैलरी 20 से 30 हजार रुपए मासिक होती है, लेकिन एथिकल हैकिंग का सैगमैंट जौब प्रोस्पैक्ट्स की दृष्टि  से काफी नया और संभावनाओं से भरा है. इसीलिए ऐक्सपीरियंस और स्किल प्राप्त करने के साथ एथिकल हैकर का पारिश्रमिक बहुत तेजी से बढ़ता है.

वैसे इस क्षेत्र में सैलरी पैकेज क्लाइंट्स के टर्नओवर पर भी निर्भर करता है. बड़ीबड़ी मल्टीनैशनल कंपनियों में काम कर रहे एथिकल हैकर्स को आकर्षक पैकेज और पर्क्स प्राप्त होते हैं. यूरोपीय देशों में एथिकल हैकर 50 लाख रुपए तक की वार्षिक सैलरी प्राप्त कर सकता है. कुल मिला कर एथिकल हैकिंग के सैगमैंट में सैलरी पैकेज एथिकल हैकर की व्यक्तिगत स्किल्स और ऐक्सपीरियंस के साथसाथ उस के ऐंप्लौयर के लाभ और प्रसिद्धि पर भी निर्भर करती है.

ऐंप्लौयमैंट्स कहां उपलब्ध हैं

वैसे तो एथिकल हैकर का कौन्सैप्ट काफी नया है, लेकिन साइबर क्राइम के बढ़ते ग्राफ के कारण एथिकल हैकर की डिमांड भी काफी बढ़ गई है. बड़ी मल्टीनैशनल कंपनियां अपने सिस्टम में सैंसिटिव डाटा की प्राइवेसी मैंटेन करने और उन्हें हैकिंग से बचाने के लिए एथिकल हैकर रिक्रूट करती हैं. डिफैंस डिपार्टमैंट में जहां देश की सिक्योरिटी संबंधी अति संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण डाटा मैंटेन किया जाता है, उस डाटा की प्राइवेसी और सिक्योरिटी के लिए सरकार एथिकल हैकर रिक्रूट करती है.

इस के अतिरिक्त सरकार के अन्य महत्त्वपूर्ण डिपार्टमैंट्स जैसे सीबीआई, इसरो, फोरैंसिक लैबोरेटरी, आईटी फर्म, फाइनैंशियल कंपनी, बैंक, एयरलाइंस, रिसर्च ऐंड डैवलपमैंट, होटल्स, रियल्टी और अन्य कई क्षेत्रों में डाटा की प्राइवेसी के लिए एथिकल हैकर की डिमांड रहती है.

प्रमुख इंस्टिट्यूट्स

 

एथिकल हैकिंग के कोर्स के लिए प्रमुख संस्थान हैं :

 

1. स्कूल औफ वोकेशनल ऐजुकेशन ऐंड ट्रेनिंग, इंदिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू).

 

 2. नैशनल इंस्टिट्यूट औफ इलैक्ट्रौनिक ऐंड इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी.

 

 3. आईआईआई टी, इलाहाबाद.

 

 4. एसआरएम यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु.

 

 5. इंडिया स्कूल औफ हैकिंग, कोलकाता.

 

 6. प्रेस्टीन इन्फोसौल्यूशन कैरियर डैवलपमैंट ऐंड ट्रेनिंग सैंटर, पुणे.

 

7. आईएमटी गाजियाबाद.

तेल का खेल

पश्चिम एशिया के देशों में कामगारों को नौकरियां मिलना एक अद्भुत सपना रहा है. तेल के ऊंचे दामों ने इन देशों में खूब पैसा बरसाया. उन्हें जब मजदूरों की जरूरत हुई ताकि मकान, सड़कें, फैक्टरियां, व्यवसाय बना सकें तो दुनियाभर से लोग जमा किए गए. अब तेल की मांग घट गई है, क्योंकि आर्थिक प्रगति धीरेधीरे शून्य पर आ गई है. दूसरी तरफ  अमेरिका में शेल गैस का उत्पादन तेजी से बढ़ा, जिस से तेल के दाम आधे रह गए.

नतीजा यह है कि सऊदी अरब और कुवैत जैसे देशों में हजारों मजदूर, जिन में लगभग अनपढ़ व छोटे काम करने वाले ज्यादा हैं, बेकार हो गए हैं. उन को काम देने वाली कंपनियों का दिवाला निकल गया है और उन्होंने बकाया वेतन भी नहीं दिया है. उन मजदूरों में से बहुतों ने भारत में कर्ज ले कर वहां नौकरी पाई थी. अब भारत लौटने पर उन की दुर्गति होगी, यह पक्का है.

भारत सरकार का विदेश मंत्रालय इस बार थोड़ा सक्रिय है और सऊदी अरब में काम करने वाले 1 हजार भारतीयों को मुफ्त में भारत ला भी रहा है. फिलहाल वह वहां उन के खाने का इंतजाम कर रहा है. लेकिन यह दया नहीं है, एक तरह का मुआवजा है, क्योंकि हमारे विदेशी मुद्रा के भंडार में इन लोगों के पैसे ही की भरमार रही है. भारत की चमक के पीछे भारत से बाहर जा कर कमा कर लाने वालों का बहुत योगदान है.

भारतीय मजदूर आज दुनिया के बहुत देशों में छोटे काम कर रहे हैं. उन में से कुछ लौटते हैं, कुछ वहीं बस जाते हैं और उन की अगली पीढ़ी अपने पांवों पर खड़ी हो जाती है. पहली पीढ़ी को हर मुसीबत सहनी पड़ती है. उन्हें न केवल दड़बे टाइप मकानों में रहना पड़ता है, अपनों से बिछुड़ना पड़ता है, बल्कि उन का बहुत पैसा सूदखोर और एजेंट खा भी जाते हैं. जो पैसा वे घर भेजते हैं वह मकान, शादी, कपडे़, बीमारी में खर्च हो जाता है.

भारत वापस आ कर वे बेकार हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें यहां उसी स्तर की नौकरियां मिलती हैं, तो यहां मिलने वाला वेतन उन्हें बहुत कम लगता है. लिहाजा, वे कुंठा में घिरे रहते हैं. भारत में लौट कर वे बेगाने से हो जाते हैं और इसीलिए नौकरी समाप्त हो जाने के बाद भी महीनों वहीं बने रहते हैं. वे एक तरह से गिरमिटिया मजदूर ही हैं जिन्हें 150 साल पहले दुनियाभर में भेजा गया था.

भारत सरकार की पेशकश कि वह उन का खयाल रखेगी, अच्छी बात है. वैसे, वे देश को कहीं ज्यादा दे ही चुके हैं.

‘मुन्ना माइकल’ की कहानी चोरी का विवाद पहुंचा कोर्ट

सबीर खान निर्देशित और टाइगर श्राफ के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘बागी’’ भी अदालत में फंसी थी. सबीर खान पर एक विदेशी फिल्म को चुराकर ‘बागी’ बनाने का आरोप लगा था. अब एक बार फिर सबीर खान और टाइगर श्राफ विवादों में हैं. इस बार इन पर फिल्म ‘‘मुन्ना माइकल’’ को चोरी की कहानी पर बनाने का आरोप है.

जब फिल्म ‘‘मुन्ना माइकल’’ की घोषणा हुई थी, तभी लेखक व निर्देशक कृतिक कुमार पांडे ने आरोप लगाया था कि यह कहानी उनकी है, जिसे उन्होंने टाइगर श्राफ को दी थी और टाइगर श्राफ अब उनकी ही कहानी चुराकर ‘मुन्ना माइकल’ बनवा रहे हैं. मगर कृतिक के आरोपों को दरकिनार करते हुए निर्देशक सबीर खान और अभिनेता टाइगर श्राफ ने फिल्म ‘‘मुन्ना माइकल’’ की शूटिंग शुरू कर दी है. फिल्म की शूटिंग लगातार जारी है.

जब कृतिक कुमार पांडे ने देखा कि उनके आरोपों पर कोई कुछ नहीं कर रहा है, तो कृतिक पांडे ने ‘मुन्ना माइकल’ के खिलाफ 13 अक्टूबर को मुंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.

कृतिक कुमार पांडे कहते हैं-‘‘यह फिल्म माइकल जैक्सन के एक प्रशंसक की जिंदगी पर आधारित है. यह कहानी मैंने टाइगर श्राफ को दिमाग में रखकर लिखी थी. हमने टाइगर श्राफ को यह कहानी सुनायी थी. उसके बाद करीबन एक साल तक टाइगर श्राफ से इस कहानी को लेकर ईमेल के जरिए भी लंबी बातचीत होती रही. टाइगर की टीम ने भी मुझसे ईमेल पर काफी जानकारी मांगी. फिर एक दिन मुझे पता एक समाचार पत्र में छपी खबर से पता चला कि मेरी कहानी पर सबीर खान फिल्म बना रहे हैं और हीरो टाइगर श्राफ हैं, तो मैने टाइगर श्राफ व उनकी टीम से संपर्क करने की कोशिश की, पर इन लोगों ने मुझसे बात करनी बंद कर दी. फिर मैंने मीडिया में इस बारे में बात की. पर कोई फायदा नहीं हुआ, तब मजबूरन अपने हक व न्याय के लिए मुझे अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा है.’’

जब कृतिक पांडे ने पहली बार टाइगर श्राफ पर कहानी चोरी का आरोप लगाया था, तब टाइगर श्राफ ने खुद को पाक साफ बताते हुए कहा था-‘‘मुझे इस विवाद के बारे में कुछ पता नहीं है. मैंने कहानी नहीं चुरायी. मैं चोर नहीं हूं. मैं झूठ नहीं बोल रहा. मैं धोखेबाज नहीं.’’ पर अब मामला अदालत पहुंचा है, देखना है कि अदालत का निर्णय क्या आता है.

मुलायम और मायावती को नीतीश की नसीहत

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिह यादव और बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती को मुफ्त में सियासी सलाह दी है. इतना ही नहीं मुलायम को चेताया भी है कि अगर उनकी सलाह पर अमल नहीं किया तो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की फजीहत हो सकती है. लगे हाथ यही नसीहत उन्होंने मायावती ओर सोनिया गांधी को भी दे डाली है.

मुलायम पर निशाना साध कर नीतीश ने एक तीर से 2 शिकार कर डाले हैं. महागठबंधन को ठुकराने के बाद ऐन चुनाव के मौके पर अपने ही परिवार की लड़ाई में उलझे मुलायम को बता दिया कि उनसे हाथ नहीं मिला कर मुलायम ने कितनी बड़ी गलती की थी. इसके साथ ही बिहार में महागठबंधन के अपने साथी मुलायम के समधी लालू यादव को भी तिलमिला दिया है. लालू बार-बार कहते रहे हैं कि वह उत्तर प्रदेश के चुनाव में तटस्थ रहेंगे और अपने समधी के लिए किसी तरह की चुनौती और परेशानी खड़ी नहीं करेंगे. इसके बाद भी नीतीश बार-बार मुलायम को महागठबंधन बनाने की सलाह देते रहते हैं.

बिहार के राजगीर में जदयू की राष्ट्रीय परिषद की 2 दिनी बैठक में नीतीश और उनके सिपाहसलारों ने जदयू को मुख्यधरा की राष्ट्रीय पार्टी बनाने की पुरजोर वकालत की और भाजपा पर जम कर निशाना साधा. इसके साथ ही गैर भाजपाई दलों को आगाह किया कि अगर वे एक बैनर के तले नहीं आएंगे, तो भाजपा की जीत आसान होती रहेगी. उन्होंने मुलायम, मायावती और कांग्रेस को नसीहत दी कि उत्तर प्रदेश चुनाव में भी     महागठबंधन का बिहार मौडल अपनाएं, वरना गैर भाजपाई दलों की हालत खास्ता हो जाएगी.

पिछले साल हुए बिहार विधान सभा के चुनाव में लालू और नीतीश के गठजोड़ ने साबित कर दिया है कि उनके पास मजबूत वोट बैंक है. 243 सदस्यों वाले बिहार विधान सभा में 178 सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है. इसमें जदयू की झोली में 71, राजद के खाते में 80 और कांग्रेस के हाथ में 27 सीटें हैं. नीतीश की पार्टी जदयू को 16.8, राजद को 18.4 और कांग्रेस को 6.7 फीसदी वोट मिले जो कुल 41.9 फीसदी हो जाता है. ऐसे में महागठबंधन को फिलहाल किसी दल या गठबंधन से चुनौती मिलना दूर की कौड़ी ही लग रही है. इस दमदार आंकड़ें एवं अपने दोनों बेटों को विधायक और मंत्री बना कर लालू ने एक बार फिर से बिहार की राजनीति में अपने पांव मजबूती से जमा लिए हैं.

नीतीश ने मुलायम सिह यादव पर कटाक्ष करते हुए कहा कि बिहार विधान सभा चुनाव से पहले जनता दल परिवार ने उन्हें अपने गठबंधन का नेता चुना था और उन्हें नई पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह रखने को कहा गया था, पर उन्होंने उसे ठुकरा दिया था. बिहार विधान सभा चुनाव में उन्होंने महागठबंधन के खिलाफ प्रचार किया. नीतीश ने इशारों-इशारों में जता दिया कि जनता दल परिवार का मुखिया बनना मुलायम को गंवारा नहीं हुआ और आज वह अपने परिवार के भीतर ही कलह झेल रहे हैं और कोई उनकी बात नहीं सुन रहा है. विधान सभा चुनाव सिर पर हैं और भाजपा से दो-दो हाथ करने के बजाए वह अपने ही परिवार में ही लड़ाई लड़ रहे हैं. अब भी समय है और वह चेत जाएं और महागठबंधन के बिहार मौडल को अपना लें.

बैठक में बार-बार इस बात पर जोर दिया गया कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में सपा, बसपा और कांग्रेस के हाथ मिलाए बगैर भाजपा को रोकना मुश्किल है. इसके साथ ही जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के कुल 171 सदस्यों ने अगले लोक सभा चुनाव में नीतीश को प्रधनमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने के मामले में सुर में सुर मिलाया. जदयू सांसद केसी त्यागी ने कहा कि समूचे देश में प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबसे दमदार और भरोसेमद चेहरा नीतीश कुमार का ही है.

दिल्ली, उत्तर प्रदेश, केरल और झारखंड समेत 20 राज्यों से पहुंचे मित्रा दलों के नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि नीतीश कुमार को अब दूसरे राज्यों में भी समय देना चाहिए, क्योंकि वही नरेंद्र मोदी के सबसे बेहतरीन विकल्प हैं.      

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