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इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के लिए जरूरी होगा ई-अकाउंट

इंश्योरेंस रेग्युलेटरी ऐंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDAI) ने 1 अक्टूबर से इलेक्ट्रॉनिक इंश्योरेंस अकाउंट रखना अनिवार्य कर दिया है. इस अकाउंट को खोलने और ई-पॉलिसी खरीदने के बारे में फ्यूचर जेनराली इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर ईश्वर नारायणन यहां दे रहे हैं महत्वपूर्ण जानकारी.

ई-इंश्योरेंस की शुरुआत दो वर्ष पहले हुई थी, लेकिन ई-इंश्योरेंस अकाउंट को अभी अनिवार्य किया गया है. इसका मकसद आपके इंश्योरेंस पोर्टफोलियो को कंसॉलिडेट करना और क्लेम का प्रोसेस आसान बनाना है. यह अकाउंट खोलने के लिए कोई अतिरिक्त कॉस्ट नहीं है. अकाउंट खोलने के बाद आपकी सभी इंश्योरेंस पॉलिसीज एक स्थान पर उपलब्ध होंगी. आप क्लेम करने या कोई शिकायत दर्ज कराने के लिए पॉलिसी को कभी भी एक्सेस कर सकते हैं. आपको इसके लिए इंश्योरेंस कंपनी के ऑफिस में खुद जाने की जरूरत नहीं होगी.

शिकायत का निपटारा रिपॉजिटरी की ओर से बनाए गए ग्रिवेंसेज सेल की ओर से किया जाएगा. इस सिस्टम में डेटा भी पूरी तरह गोपनीय रहेगा. इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा फायदा KYC का होगा, जिससे एक विश्वसनीय और बड़ा डेटाबेस बनेगा, जिसमें कस्टमर की इंश्योरेंस हिस्ट्री के साथ उसके क्लेम की डिटेल्स भी होंगी.

कैसे खोलें अकाउंट

सबसे पहले इंश्योरेंस रिपॉजिटरी चुनें. आप IRDAI की ओर से अधिकृत पांच रिपॉजिटरी- CAMS रिपॉजिटरी सर्विसेज, कार्वी इंश्योरेंस रिपॉजिटरी, सेंट्रल इंश्योरेंस रिपॉजिटरी, NSDL डेटाबेस मैनेजमेंट और SHCIL प्रॉजेक्ट्स में से किसी एक को चुन सकते हैं.

इसके बाद रिपॉजिटरी की वेबसाइट पर लॉग इन कर ऐप्लिकेशन फॉर्म भरें. फॉर्म के साथ KYC डॉक्युमेंट्स अटैच करें और उन्हें ऑनलाइन जमा करें. अकाउंट खोलने के लिए आधार कार्ड और परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) कार्ड अनिवार्य हैं. इसके अलावा ऐड्रेस प्रूफ के लिए आप रजिस्टर्ड लीज और सेल के लिए लाइसेंस अग्रीमेंट, आधार लेटर, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे अन्य डॉक्युमेंट्स जमा कर सकते हैं.

आप रिपॉजिटरी की ओर से नियुक्त 'अप्रूव्ड पर्सन' यानी पॉइंट ऑफ सेल (PoS) के पास भी डॉक्युमेंट्स जमा कर सकते हैं. इसके बाद रिपॉजिटरी डॉक्युमेंट्स की जांच करेगी और इलेक्ट्रॉनिक अकाउंट खोलने के लिए अपने सिस्टम में डेटा दर्ज करेगी. ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा करने के सात दिनों के अंदर ई-इंश्योरेंस अकाउंट खोला जाएगा. अकाउंट खुलने के बाद आपको लॉग इन आईडी और पासवर्ड के साथ एक वेलकम किट भेजी जाएगी. अब आप रिपॉजिटरी की वेबसाइट पर लॉग इन कर अकाउंट का इस्तेमाल कर सकते हैं.

ई-इंश्योरेंस पॉलिसी कैसे खरीदें

अगर आपने ऑथराइज्ड इंश्योरेंस रिपॉजिटरी की वेबसाइट के जरिए ई-इंश्योरेंस अकाउंट खोला है तो आपको पॉलिसी ऑनलाइन या व्यक्तिगत तौर पर खरीदने के लिए इंश्योरेंस कंपनी को अपना ई-अकाउंट नंबर बताना होगा. रिपॉजिटरीज को कस्टमर्स को पॉलिसीज बेचने की अनुमति नहीं है.

अगर आपने इंश्योरेंस कंपनी के जरिए अकाउंट खोला है तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि पॉलिसी खरीदने से जुड़ी सभी प्रोसेसिंग और अन्य एक्टिविटीज कंपनी की ओर से ही पूरी की जाएंगी.

अकाउंट खोलने के बाद आप लॉग इन कर प्रीमियम चुका सकते हैं. ऑनलाइन शॉपिंग और बैंकिंग की वजह से इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट का अब काफी इस्तेमाल हो रहा है. इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट करने के लिए आपको अलग-अलग इंश्योरेंस कंपनियों की वेबसाइट्स पर जाने की जरूरत नहीं होगी और आप अपने ई-अकाउंट के साथ ये पेमेंट आसानी से कर सकते हैं.

फिजिकल पॉलिसी को ई-पॉलिसी में बदलना

ये रूल केवल नई पॉलिसी के लिए लागू होंगे और मौजूदा पॉलिसीज को फिजिकल फॉर्म में रखा जा सकता है. हालांकि, अगर आप अपनी फिजिकल पॉलिसीज को कन्वर्ट करना चाहते हैं तो आप इसके लिए फॉर्म भर सकते हैं. ई-इंश्योरेंस अकाउंट से इंश्योरेंस पॉलिसीज डिजिटल फॉर्म में तुरंत जारी की जा सकेंगी और इससे पॉलिसी जारी करने में देरी या पॉलिसी न मिलने जैसी समस्याएं नहीं होंगी.

जीएसटी के तहत मंथली रिटर्न होगा अनिवार्य

कर विभाग ने जीएसटी (GST) रिटर्न व रिफंड पर नियमों व उनके प्रारूप के दो और मसौदे जारी किए. इसके तहत करदाता द्वारा करों, ब्याज व शुल्कों के रिफंड का दावा करने के लिए मासिक रिटर्न भरना होगा और तय प्रक्रिया का पालन करना होगा.

भागीदारों को उक्त मसौदा नियमों पर टिप्पणी के लिए कल तक का समय दिया गया है. इन नियमों को वस्तु व सेवा कर (GST) परिषद की 30 सितंबर को होने वाली दूसरी बैठक में अंतिम रूप दिया जाएगा. सरकार जीएसटी का कार्यान्वयन एक अप्रैल 2017 से करने का लक्ष्य लेकर चल रही है.

रिफंड के नियमों के तहत प्रत्येक पंजीकृत करदाता को एक तय फार्म (जीएसटीआर-3) में मासिक रिटर्न दाखिल करना होगा. इसी तरह प्रत्येक पंजीकृत करदाता द्वारा सालाना रिटर्न इलेक्ट्रोनिक रूप से दाखिल करने का प्रावधान है. नियम के अनुसार कराधान के दायरे में आने वाले हर उस व्यक्ति को सालाना रिटर्न दाखिल करनी होगी जिसका कुल कारोबार किसी वित्त वर्ष में एक करोड़ रुपए से अधिक है.

तो चीन को पीछे छोड़ देगा भारत

ब्रिक्स देशों में चीन के बाद भारत सबसे अधिक कॉम्पिटिटिव इकनॉमी बन गया है. वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के ग्लोबल कॉम्पिटिटिवनेस इंडेक्स के मुताबिक, इस वर्ष भारत की ग्रोथ चीन से अधिक रहेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बड़े क्षेत्रों में सुधार और फाइनेंशियल सिस्टम में ट्रांसपैरेंसी के साथ सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है. 2015-16 में भारत की कॉम्पिटिटिवनेस में सबसे अधिक सुधार हुआ है और यह इंडेक्स में शामिल 139 देशों में 16 पायदान ऊपर चढ़कर 39वें स्थान पर पहुंच गया है.

ग्लोबल कॉम्पिटिटिवनेस रिपोर्ट 2016 में कहा गया है, 'भारत की कॉम्पिटिटिवनेस विशेषतौर पर गुड्स मार्केट एफिशिएंसी, बिजनेस के तौर तरीकों और इनोवेशन में बढ़ी है. बेहतर मॉनेटरी और फिस्कल पॉलिसीज के साथ ही ऑयल के कम प्राइसेज के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर हुई है और अब यह जी20 देशों में सबसे अधिक ग्रोथ वाली है.

एनालिस्ट्स ने साउथ एशिया में भारत को सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्था और इस रीजन में ग्रोथ का एक इंजन बताया है. इसके पीछे पब्लिक इंस्टीट्यूशंस में सुधार, इकनॉमी को विदेशी इनवेस्टर्स और इंटरनेशनल ट्रेड के लिए खोलना और फाइनेंशियल सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी जैसे कारण हैं. एनालिस्ट्स का कहना है कि अगर गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को बेहतर तरीके से लागू किया जाता है तो भारत को इससे काफी फायदा हो सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल कॉम्पिटिटिवनेस के लिए खुलेपन में कमी एक बड़ा खतरा है, जबकि भारत के प्रदर्शन में सुधार की वजह इसके खुलेपन में वृद्धि है.रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की कॉम्पिटिटिवनेस में निकटता देखी जा रही है.

ईडन गार्डन्स टेस्ट मैच भी दर्ज होगा इतिहास में

कानपुर के ग्रीन पार्क में ऐतिहासिक 500वां टेस्ट मैच खेलने वाली भारतीय क्रिकेट टीम जब शुक्रवार को कोलकाता के ईडन गार्डन्स में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ दूसरा मैच खेलने के लिए उतरेगी, तो वह घरेलू धरती पर उसका 250वां टेस्ट मैच होगा. भारत ने अब तक अपनी धरती पर 249 टेस्ट मैच खेले हैं, जिनमें से 88 में उन्होंने जीत दर्ज की है, और 51 में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा. एक मैच टाई रहा है, जबकि 109 मैच ड्रॉ रहे. दूसरी ओर, विदेशी धरती पर खेले 251 मैचों में से भारत ने 42 में जीत हासिल की है, जबकि 106 में उन्हें हार मिली और 103 मैच ड्रॉ रहे.

लेकिन ग्रीन पार्क के बाद अब ईडन गार्डन्स भी ऐतिहासिक मैच बनने जा रहा है, और इसके साथ ही भारत दुनिया का ऐसा तीसरा देश बन जाएगा, जिसने अपनी सरजमीं पर 250 या उससे अधिक मैच खेले हैं. इंग्लैंड ने अपनी धरती पर सर्वाधिक 501 टेस्ट मैच खेले हैं. उसके बाद ऑस्ट्रेलिया (404 टेस्ट) का नंबर आता है. इस सूची में वेस्ट इंडीज (237) चौथे और दक्षिण अफ्रीका (217) पांचवें नंबर पर है.

अपनी धरती पर ज्यादातर मैच खेले आज़ादी के बाद…

भारत ने अपनी सरजमीं पर अपने अधिकतर मैच आजादी के बाद खेले हैं. उसने 1947 से पहले घरेलू मैदानों पर केवल तीन मैच खेले थे, जिनमें से दो में उन्हें हार मिली थी. इनमें से पहला मैच उसने 15 दिसंबर, 1933 को इंग्लैंड के खिलाफ मुंबई जिमखाना में खेला था, जिसमें उन्हें नौ विकेट से हार मिली थी. यह वही मैच था, जिसमें लाला अमरनाथ ने पदार्पण करते हुए शतक जड़ा था.

घरेलू धरती पर 100वां टेस्ट था पाकिस्तान के खिलाफ…

घरेलू धरती पर भारत ने 50वां टेस्ट मैच फरवरी, 1964 में इंग्लैंड के खिलाफ दिल्ली में खेला था. इस मैच में हनुमंत सिंह ने पदार्पण किया था और 105 रन बनाए थे. मंसूर अली खां पटौदी ने भी इस मैच में अपना दोहरा शतक (नाबाद 203 रन) जड़ा था, जिससे यह ड्रॉ छूटा था. भारत ने अपनी सरजमीं पर 100वां टेस्ट मैच नवंबर, 1979 में पाकिस्तान के खिलाफ बेंगलुरू में खेला था, जो ड्रा रहा था, जबकि 150वां मैच जिम्बाब्वे के खिलाफ मार्च, 1993 में दिल्ली में खेला था, जिसमें उसने पारी और 13 रन से जीत दर्ज की थी. उस मैच में विनोद कांबली ने 227 रन की पारी खेली थी.

सबसे अधिक घरेलू टेस्ट मैच ईडन गार्डन्स में ही खेले टीम इंडिया ने…

यह भी दिलचस्प है कि भारत ने अपनी सरजमीं पर सर्वाधिक टेस्ट मैच ईडन गार्डन्स में ही खेले हैं. कोलकाता के इस मैदान पर न्यूजीलैंड के खिलाफ शुक्रवार को होने वाला यह मैच उसका यहां कुल 40वां टेस्ट मैच होगा. अभी तक ईडन गार्डन्स पर जो 39 मैच खेले गए हैं, उनमें से भारत ने 11 में जीत दर्ज की है, जबकि नौ में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

सबसे अधिक घरेलू टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ खेले भारत ने…

वैसे, भारत के लिए दिल्ली का फिरोजशाह कोटला और चेन्नई का एमए चिदंबरम स्टेडियम अधिक भाग्यशाली रहे हैं, जिन पर टीम इंडिया 13-13 जीत दर्ज की हैं. टीम ने दिल्ली में 33 और चेन्नई में 31 टेस्ट मैच खेले हैं. भारत वैसे अपनी सरजमीं पर कुल 21 मैदानों पर टेस्ट मैच खेल चुका है, जिनमें से नौ स्टेडियम ऐसे हैं, जिनमें उसने पिछले 20 साल से भी अधिक समय से कोई टेस्ट मैच नहीं खेला है. अपनी सरजमीं पर भारत ने सर्वाधिक 55 टेस्ट मैच इंग्लैंड के खिलाफ खेले हैं, जिनमें से उसे 15 में जीत और 13 में हार मिली. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया (46 टेस्ट, 19 जीत, 12 हार), वेस्ट इंडीज़ (45 मैच, 11 जीत, 14 हार), पाकिस्तान (33 मैच, 7 जीत, 5 हार) और न्यूज़ीलैंड (32 मैच, 14 जीत, 2 हार) का नंबर आता है.

भारत ने अब तक टेस्ट खेलने वाले देशों में से बांग्लादेश के खिलाफ अपनी सरजमीं पर कोई मैच नहीं खेला है. पिछले कुछ वर्षों से भारत का अपनी सरजमीं पर प्रदर्शन बेहद शानदार रहा है. भारत ने अपनी धरती पर जो आखिरी 49 मैच खेले हैं, उनमें से 29 में उसे जीत मिली, जबकि केवल छह मैचों में उसे हार का सामना करना पड़ा. इसके विपरीत उसने जो पहले 50 टेस्ट मैच अपनी धरती पर खेले थे, उनमें उसे आठ में जीत और 12 में हार मिली थी.

बिटकौइन के खुलते रहस्य

दुनियाभर में प्रचलित करेंसी पर सरकार या बैंकों का नियंत्रण रहता है, लेकिन बिटकौइन ही एक मात्र ऐसी करेंसी है जिस पर किसी का कोई दखल नहीं है. यह डिजिटल या वर्चुअल करेंसी है. इसे दुनियाभर की करेंसी से ऐक्सचेंज किया जा सकता है. आजकल यह करेंसी प्रचलन में है.

दुनिया में जितनी भी मुद्राएं यानी करेंसी नोट आदि हैं, उन पर किसी न किसी बैंक या सरकार का नियंत्रण है. बैंकों और सरकार की साख व आर्थिक हैसियत के हिसाब से ही उन मुद्राओं का मूल्य तय होता है, जैसे इस समय ब्रिटेन के पाउंड, यूरोपीय संघ के यूरो और अमेरिका के डौलर की कीमत हमारे रुपए के मुकाबले कई गुना ज्यादा है, पर क्या कोई ऐसी मुद्रा भी हो सकती है जिसे न तो छापा या ढाला जाए और न ही जिस पर किसी बैंक या सरकार का अधिकार हो?

जी हां, ऐसी ही एक वर्चुअल या डिजिटल करेंसी है बिटकौइन, जिसे वर्ष 2009 में चलन में लाया गया था. इसे ले कर एक रहस्य था कि आखिर इसे किस ने बनाया? वैसे तो इस के आविष्कारक के रूप में ‘सातोशी नाकामोतो’ का नाम लिया जाता था, लेकिन सातोशी कभी सामने आया ही नहीं, पर अब आस्ट्रेलिया के एक उद्योगपति ‘क्रेग राइट’ ने स्वीकार किया है कि वे ही बिटकौइन को चलन में लाने वाले हैं. उन्होंने ही अपना एक छद्म नाम सातोशी नाकामोतो रखा था.

यह बात उन्होंने कुछ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के सामने तब स्वीकारी, जब मैगजीन वायर्ड ने यह खुलासा किया कि क्रेग राइट ही बिटकौइन को बनाने वाले हैं और उन के पास लाखों डौलर मूल्य की यह करेंसी यानी बिटकौइन है. इस खुलासे के बाद दिसंबर, 2015 में सिडनी पुलिस ने क्रेग राइट के घर और दफ्तर पर छापा मारा था.

क्या है बिटकौइन

यह एक डिजिटल अथवा वर्चुअल करेंसी है. नोट या सिक्के जैसे किसी भौतिक रूप में इस करेंसी का वजूद नहीं है, बल्कि यह एक कोड है. इस कोड को कंप्यूटर पर ही खरीद कर या तो कंप्यूटर में या फिर किसी औनलाइन वौलेट में स्टोर कर के रखा जा सकता है. चूंकि यह करेंसी कंप्यूटर पर ही जरनेट की जाती है, इसलिए इस पर किसी भी सरकार या बैंकिंग व्यवस्था का नियंत्रण नहीं होता. हालांकि इस के जरिए पूरी दुनिया में लेनदेन किया जाना संभव है. दुनिया की कई बड़ी करेंसियों डौलर, पाउंड, यूरो से इसे ऐक्सचेंज किया जा सकता है. कभी इस का इस्तेमाल केवल कंप्यूटर हैकर और अपराधी करते थे, पर अब इसे दुनिया के कई नामी अर्थशास्त्री सब से अच्छा प्रदर्शन करने वाली करेंसी करार दे रहे हैं.

इस के साथ ही कई बड़ी कंपनियां मसलन, रेडिट, वर्डप्रेस भी इस का इस्तेमाल कर रही हैं. जापानी कंपनी एमटी गौक्स बिटकौइंस की दुनिया की सब से बड़ी औनलाइन ऐक्सचेंज कंपनी है. अमेरिकी कंपनी कौयनलैब ने इस के साथ करार किया है, जिस के जरिए अमेरिका या कनाडा में बैठे लोग बिटकौइंस खरीद या बेच सकते हैं.

कैसे बनाते हैं इसे

यह एक डिजिटल करेंसी है, इसलिए इसे कंप्यूटर पर ही एक विशेष कम्युनिटी आधारित सौफ्टवेयर के जरिए बनाया या किसी के नाम जारी किया जाता है. जानकारों का मानना है कि प्रत्येक 10 मिनट पर नए बिटकौइन बनाए जाते हैं और इन का लोग शौपिंग करने, डोनेशन देने या बिजनैस के सिलसिले में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के मौजूदा मौडल के अनुसार फिलहाल दुनिया में केवल 2.1 करोड़ या 21 मिलियन बिटकौइन बनाए जाते हैं, जिन में से 15 मिलियन बिटकौइन चलन में हैं यानी उन का लेनदेन हो रहा है.

कंप्यूटर में इस का सौफ्टवेयर डालने पर एक खास कोड मिलता है, जिसे बिटकौइन एड्रेस कहा जाता है. रकम के लेनदेन यानी ट्रांजैक्शन में यह कोड ही सबकुछ होता है, क्योंकि यह बैंक अकाउंट की तरह काम करता है. बिटकौइन से किसी भी खरीदारी या लेनदेन के लिए यह कोड जरूरी है. यदि आप को किसी को रकम भेजनी है तो उस का बिटकौइन एड्रेस आप के पास होना चाहिए. अगर आप को रकम हासिल करनी है तो अपना एड्रैस उसे भेजना होगा. मोबाइल फोन पर मौजूद सौफ्टवेयर या कंप्यूटर पर इंस्टौल किए गए प्रोग्राम से इस कोड के जरिए रकम भेजी जा सकती है. एक बार बिटकौइन जनरेट होने के बाद इस कोड को यूजर अपनी हार्डड्राइव या पैनड्राइव में सेव कर सकते हैं या अपने वर्चुअल वौलेट में रख सकते हैं. कोड सुरक्षित होते हैं, लेकिन डिजिटल वौलेट नहीं. इसलिए इसे सुरक्षित रखने के लिए पासवर्ड का इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा कागज  पर कोड को प्रिंट कर के सुरक्षित रखा जा सकता है.

ऐसे हासिल कर सकते हैं बिटकौइन

यदि कोई पहली बार बिटकौइन का इस्तेमाल करना चाहता है, तो इस के 2 तरीके हैं, पहला, अपने कंप्यूटर सिस्टम पर बिटकौइन से जुड़े कम्युनिटी सौफ्टवेयर को इंस्टौल कर के कोई भी व्यक्ति इस सिस्टम का हिस्सा बन सकता है. कम्युनिटी सौफ्टवेयर डाउनलोड करने पर शुरुआत में कुछ बिटकौइन मुफ्त में मिलते हैं. इस प्रक्रिया को माइनिंग भी कहा जाता है. दूसरा, इंनटरनैट पर दर्जनों ऐसी ऐक्सचेंज वैबसाइट्स हैं जो दुनिया में प्रचलित कुछ प्रमुख करेंसियों के बदले बिटकौइन उपलब्ध कराती हैं.

क्या है इस की कीमत

शुरू में बिटकौइन की कुछ भी कीमत नहीं थी. दिसंबर, 2010 में एक बिटकौइन करीब 22 सेंट के बराबर माना गया था. इस के बाद 2011 में यह करेंसी 2.11 डौलर के बराबर पहुंच गई. इस तरह साल भर में ही इस की कीमत में 1,336 डौलर का इजाफा हुआ. बीच में वर्ष 2013 में एक मौका ऐसा भी आया, जब एक बिटकौइन की कीमत 1,147.25 डौलर तक पहुंच गई. बाद में यह कीमत 200 से 600 डौलर के बीच रहती आई है और 2 मई, 2016 को एक बिटकौइन की कीमत करीब 460 डौलर थी.

क्या हैं फायदे

बिटकौइन कंप्यूटरजनित कोड है, इसलिए इसे क्रिप्टोकरेंसी भी कहते हैं. सरकार या बैंकिंग व्यवस्था के किसी मुश्किल में पड़ने से इस करेंसी पर असर नहीं होगा. बिटकौइन से लेनदेन पर्सन टू पर्सन मनी ट्रांसफर जैसा है यानी इस के लिए बैंक या गेटवे सिस्टम को मोटी ट्रांजैक्शन फीस चुकाने की जरूरत नहीं. एक आकलन के मुताबिक, अमेरिका में क्रैडिट कार्ड से लेनदेन की फीस के तौर पर सालाना अरबों डौलर चुकाए जाते हैं, वह सारी रकम लोग बिटकौइन के इस्तेमाल से बचा सकते हैं.

बिटकौइन से रकम भेजना या हासिल करना बहुत आसान है. यह एक ईमेल भेजने जैसा है. इस का इस्तेमाल दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में आसानी से रकम भेजने के लिए किया जा सकता है. थर्ड पार्टी या सरकार इस करेंसी पर कोई सैंसरशिप नहीं लगा सकती. कई बार किसी विवाद के शुरू होने पर सरकारें सब से पहले बैंक अकाउंट फ्रीज कर देती हैं, जो बिटकौइन की अर्थव्यवस्था से संभव नहीं है. बिटकौइन से जुड़ी जालसाजी करना या इस के सिस्टम को हैक करना लगभग नामुमकिन है. इस का सिस्टम क्रैश नहीं हो सकता, क्योंकि एक सिस्टम के बंद होने पर पूरी दुनिया में फैले दूसरे सिस्टम इसे बैलेंस कर लेते हैं.

इस में फर्जीवाड़ा भी संभव नहीं है. इस में फर्जी कोड जनरेट करना मुमकिन नहीं है. इस की वजह मैथेमैटिकल कोड पर आधारित सिस्टम का होना है. इस सिस्टम में यह तय है कि 21 मिलियन बिटकौइन से ज्यादा नहीं बनाए जा सकते. ऐसे में कोई भी व्यक्ति अलग से बिटकौइन नहीं बना सकता. इस में हर लेनदेन पूरी तरह से गुप्त होता है. यह कुछ ऐसा ही है जैसा नकद रकम से खरीदारी. कोई भी एजेंसी या सरकार इस के लेनदेन का पता नहीं लगा सकती. लेकिन इस खूबी का फायदा कई बार हैकर और अपराधीतत्त्व उठाते हैं, जैसे इस साल के आरंभ में मैसूर स्थित एक आईटी कंपनी के दर्जनों कंप्यूटरों को हैक कर लिया गया. बाद में सौदे के तहत हैकरों ने कंप्यूटरों से अपना कब्जा छोड़ने के लिए प्रति कंप्यूटर एक रकम तय की, जिसे बिटकौइन के रूप में मांगा गया.

यही वजह है कि यह करेंसी हैकरों और अपराधियों की भी पहली पसंद बन गई है. बिटकौइन से बेहतर रेजगारी किसी किस्म की करेंसी में नहीं हो सकती. आज जहां 25 और 50 पैसे के सिक्के बाजार से गायब हो गए हैं, लेकिन बिटकौइन में दशमलव के 8वें अंक तक की छोटी रकम भेजी जा सकती है.

फूटेगा बिटकौइन का बुलबुला

कई अर्थशास्त्री और निवेशक इस के भविष्य को ले कर चिंतित भी हैं. उन का मानना है कि बिटकौइन इकौनोमी में इजाफा एक गुब्बारे सरीखा है, जो फूटने ही वाला है. जिस तरह इस की कीमत 2013 में एक ऊंचाई तक पहुंचने के बाद एकदम से घटी, उसे देखते हुए विशेषज्ञ बिटकौइन में पूरी जमापूंजी लगा देने को गलत मानते हैं. भारत में बिटकौइन करेंसी ऐक्सचेंज के तौर पर काम करने वाली कंपनियां फिलहाल भारतीय मुद्रा से बिटकौइन बदलने की सहूलियत नहीं दे रही हैं. खुद रिजर्व बैंक का इस बारे में निर्देश यह है कि जिस रकम के लेनदेन पर नजर रखना ही संभव न हो, उस का इस्तेमाल भारत में गैरकानूनी है.

बिटकौइन जैसा भारत का लक्ष्मीकौइन

2 साल पहले 2014 में दुनिया की सब से मशहूर वर्चुअल करेंसी बिटकौइन के भारतीय संस्करण को बाजार में लाने से पहले देश में नियामक संस्थाओं से इस बारे में पूछा गया था कि क्या लक्ष्मीकौइन को देश के बाजार में पेश किया जा सकता है? एक आकलन के मुताबिक, भारत में करीब 30 हजार बिटकौइन धारक हैं, जिन के पास पूरी दुनिया में प्रचलित 12 मिलियन बिटकौइंस का 1त्न हिस्सा जमा है. हालांकि इस से संबंधित दिशानिर्देशों का अभी अभाव बना हुआ है. गौरतलब है कि पूरी दुनिया में पहले से ही 70 से अधिक वर्चुअल करेंसी चलन में हैं, जिन का कुल बाजार मूल्य करीब 15 अरब डौलर (90 हजार करोड़ रुपए) है. इस में सिर्फ बिटकौइन की नैट वर्थ (कुल कीमत) करीब 10 अरब डौलर की है.

भारत में अवैध कारोबार में बिटकौइन

बिटकौइन का ज्यादातर अवैध कारोबार में इस्तेमाल हो रहा है. उल्लेखनीय यह है कि अब भारत में ऐसे कारोबार में बिटकौइन के इस्तेमाल की बात सामने आई है. जुलाई, 2016 में देश में नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी पर नजर रखने वाली कानूनी व खुफिया एजेंसी नौरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने 2 तरह के आपराधिक सिस्टम को प्रतिबंधित किया, जिन में से एक बिटकौइन से जुड़ा था. एनसीबी ने बताया कि ड्रग्स कारोबार को ‘डार्कनैट’ और अवैध मुद्रा बिटकौइन के जरिए अंजाम दिया जा रहा है. इस बारे में खुलासा करते हुए एनसीबी के महानिदेशक आर आर भटनागर ने बताया कि भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब डार्कनैट और बिटकौइन का इस्तेमाल करते हुए ड्रग्स का धंधा किया जा रहा है.

डार्कनैट इंटरनैट का बेहद गुप्त नैटवर्क है जिस का इस्तेमाल विशेष सौफ्टवेयर, कौन्फिग्रेशन और प्राधिकार के जरिए ही किया जा सकता है और सामान्य कम्युनिकेशन प्रोटोकौल और पोर्ट के जरिए इस का पता लगाना बेहद मुश्किल है, जबकि बिटकौइन एक प्रकार की डिजिटल करेंसी है.

गौरतलब है कि देश में अवैध रूप से मादक पदार्थों की खरीदफरोख्त बढ़ रही है, जो चिंताजनक है. एनसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर से विभिन्न एजेंसियों ने 2015 में 1,687 किलो अफीम, 1,416 किलो हेरोइन, 94,403 किलो गांजा, 3,349 किलो हशीश, 113 किलो कोकेन, 827 किलो इफ्रेडिन या सूडोएफेड्रिन समेत कई नशीले पदार्थ जब्त किए थे. हालांकि इस धंधे की रोकथाम के उपाय के तौर पर पिछले कुछ समय में देशभर में 5 हजार एकड़ इलाके में हो रही अफीम की अवैध खेती को नष्ट किया गया है जोकि पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले 60त्न अधिक है.

बिटकौइन और डार्क वैब सिर्फ भारत के लिए समस्या नहीं है, बल्कि दुनिया भर में फैल रहे हथियारों, ड्रग्स और चरमपंथ के जाल में ‘बिटकौइन’ और ‘डार्क वैब’ ने बड़ी भूमिका निभाई है. इस का कारण यह है कि सुरक्षा एजेंसियां इन के जाल को पूरी तरह भेदने में नाकाम रहती हैं. इस संकट से निबटने के लिए वर्ष 2015 में 33 से ज़्यादा देशों के सुरक्षा अधिकारी दिल्ली में जमा हुए थे. इस बैठक का आयोजन इंटरपोल और यूनाइटेड नेशंस औफिस औन ड्रग्स ऐंड क्राइम (यूएनडीओसी) ने किया था जिसे सीबीआई यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो ने संचालित किया था. इस बैठक में भी कहा गया था कि बिटकौइन, एक तरह से हवाला की तरह का लेनदेन है, जिस में ड्रग्स और हथियार पैसों से नहीं बल्कि बिटकौइन के जरिए खरीदेबेचे जाते हैं. इसी तरह डार्क वैब के सहारे इंटरनैट की गतिविधियों पर किसी की नजर नहीं रह सकती. डार्क वैब के जरिए अवैध धंधे एक पासवर्ड के सहारे चलते हैं.       

फुटबॉल वर्ल्ड कप के एम्बलेब का हुआ अनावरण

अगले साल भारत की मेजबानी में होने वाले फीफा अंडर-17 फुटबॉल विश्व कप की आयोजक समिति ने मंगलवार को विश्व कप के प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया. इस मौके पर फीफा के अध्यक्ष गिआनी इन्फैनटीनो और अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल मौजूद थे. एक बयान के अनुसार इन्फैनटीनो ने कहा, 'सभी को यह साफ पता चल रहा है कि फुटबॉल भारत में किस तरह आगे बढ़ रहा है.'

उन्होंने कहा, 'लेकिन, अभी प्रगति की और संभवनाएं हैं. फीफा अंडर-17 विश्व कप देश में खेल को इस ओर ले जाने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है. यह फीफा की दो योजनाओं, टूर्नमेंट आयोजित करने और फुटबॉल को बढ़ावा देने के कार्यक्रम को भुनाने का अच्छा मौका है.'

इस प्रतीक चिह्न में भारतीय महासागर, बरगद का पेड़, पतंग, सितारों की श्रृंखला जिसे अशोक चक्र की तरह बनाया गया है, शामिल हैं. पटेल ने इस मौके पर कहा, 'भारत और एआईएफएफ के लिए यह ऐतिहासिक मौका है. पहले फीफा विश्व कप की मेजबानी करना इस देश में फुटबॉल के प्रति नजरिए को बदल देगा.'

आपके सिक्योरिटी की धज्जियां उड़ा सकता है जियो!

इस समय रिलायंस जियो सबसे अधिक चर्चा का विषय बना हुआ है. हो भी क्यों न! जियो 4जी की धुआंधार स्पीड, वेलकम ऑफर में मिल रहा शानदार अनलिमिटेड इंटरनेट डाटा और 31 दिसम्बर तक मुफ्त सभी सेवाओं से भारतीय टेलिकॉम सेक्टर में तो जैसे बवाल ही मच गया था.

लेकिन एयरटेल, वोडाफोन और बीएसएनएल जैसी बड़ी टेलिकॉम कंपनियों ने भी अपने यूजर्स को खुश करने के लिए एक से एक ऑफर पेश करना शुरू कर दिया है.

लेकिन इन सब चीजों के बीच रिलायंस जियो को कुछ आलोचनाएं भी झेलनी पड़ रही हैं. कभी कॉल ड्राप के लिए तो कभी सिम कार्ड न मिलने की वजह से. लेकिन हम अब जो आपको बताने जा रहे हैं वो कुछ और ही है.

रिस्क में है प्राइवेसी

एक हैक्टिविस्ट ग्रुप के अनुसार, रिलायंस जियो यूजर्स का कॉल डाटा बेचकर पैसे बनाने का काम कर यूएस व सिंगापुर में एड नेटवर्क कायम कर रहा हो. इस बात से सभी यूजर्स अंजान हैं. यह भी हो सकता है कि इस कारण यूजर्स को कई अनचाहे कॉल्स, मैसेज और मेल आदि प्राप्त हों.

एप्स से लीक हो सकती है जानकारी

ग्रुप के अनुसार, जियो एप्स, जिनमें माय जियो और जियो डायलर शामिल हैं, एक एड नेटवर्क मैड-मी को यूजर्स की जानकरियां भेज रहे होंगे.

पहली बार नहीं है ये

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी ने रिलायंस की सेवाओं पर उंगली उठाई हो. पिछले साल ही ग्रुप ने बताया था कि आरजियो की चैटएप जियो चैट यूजर्स का डाटा चाइनीज आईपी को भेज रही है.

क्या कहना है रिलायंस जियो का

रिलायंस जियो के एक वक्ता ने सामने आकर इस विषय में बात की है. उनके अनुसार जियो अपने यूजर्स और ग्राहकों की सिक्योरिटी और प्राइवेसी सबसे ज्यदा महत्ता देते हैं और गंभीरता से लेते हैं. जियो यूजर्स का कोई भी डाटा किसी से शेयर नहीं करता है. अपने आप से ही जानें हैकर्स के ग्रुप ने इस बात को पूरी तरह समझाया भी है कि कैसे जियो यूजर्स को डाटा शेयर कर रहा है. उनके ब्लॉग में इसकी स्टेप बाय स्टेप जानकरी दी गई है, जिससे यूजर्स खुद ही टेस्ट कर सकते हैं.

गौतम गंभीर की हुई टेस्ट टीम में वापसी

जैसा कि अनुमान था, कोलकाता टेस्ट के लिए भारतीय टीम में ओपनर गौतम गंभीर की वापसी हो गई है. केएल राहुल के कानपुर टेस्ट में चोटिल होने के कारण गंभीर को न्यूजीलैंड के खिलाफ दूसरे और तीसरे टेस्ट में मौका दिया गया है. भारत और न्यूजीलैंड के बीच तीन टेस्ट मैच की सीरीज का दूसरा टेस्ट 30 सितम्बर से खेला जाएगा. अब जबकि गंभीर को टीम में शामिल किया गया है, तो ऐसी उम्मीद है कि उन्हें आखिरी एकादश में भी मौका मिलेगा.

गंभीर के अलावा ऑफ स्पिनर जयंत यादव को भी टेस्ट टीम में पहली बार शामिल किया गया है. इशांत शर्मा के सीरीज से बाहर होने के कारण उन्हें ये मौका दिया गया है. इशांत बीमार होने के कारण पहले टेस्ट में भी नहीं खेल पाए थे.

हालांकि अगर खबरों की माने तो विराट कोहली नहीं चाहते थे कि टीम में गौतम गंभीर को मौका मिले क्योंकि उनके पास पहले से ही एक अतिरिक्त ओपनर शिखर धवन मौजूद है. लेकिन कोच अनिल कुंबले ने उन्हें फिर मनाया. हाल में संपन्न हुई दिलीप ट्रॉफी में गंभीर ने शानदार प्रदर्शन किया था और उनकी कप्तानी में इंडिया ब्लू ने खिताब भी जीता था. गंभीर ने तीन मैचों में तीन अर्धशतक लगाते हुए 356 रन  बनाये थे और इसमें दो स्कोर 90 और 94 थे.

जयंत यादव अभी भारत की ए टीम के साथ ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गए थे. वैसे उन्होंने वहां उतना बढ़िया प्रदर्शन नहीं किया लेकिन फिर भी वो टीम में जगह बनाने में कामयाब रहे. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया ए के खिलाफ दो टेस्ट में 7 विकेट लिए थे. इस साल जयंत यादव आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स की तरफ से खेले थे और उनक प्रदर्शन अच्छा रहा था.

भारतीय टीम ने पहले टेस्ट में न्यूजीलैंड को 197 रनों से हराया था और सीरीज में 1-0 की बढ़त ले ली थी. अब भारत कोलकाता में ही सीरीज जीतने की कोशिश करेगा. इस सीरीज में जीत भारत को टेस्ट रैंकिंग में फिर से टॉप पर पहुंचा देगी.

रोहित शेट्टी का क्या होगा?

पुरानी कहावत है, ‘एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है.’ पर बौलीवुड में तो यह कहावत कुछ यूं हो गयी है ‘एक असफल फिल्म कईयों का करियर खत्म कर देती है.’ फिल्म ‘दिल वाले’ की असफलता के असर से शाहरुख खान और निर्देशक रोहित शेट्टी दोनो ही उबर नहीं पाए हैं. रोहित शेट्टी के तमाम प्रयासों के बावजूद उनकी एक भी फिल्म शुरू नहीं हो पा रही है. जबकि उन्होंने अभिनेता रणवीर सिंह के साथ एक विज्ञापन फिल्म बनायी और उसके बाद से वह रणवीर सिंह की तारीफों के पुल बांधते चले आ रहे हैं.

रोहित शेट्टी पिछले एक सप्ताह के अंदर कुछ अंग्रेजी पत्रकारों को इंटरव्यू दे चुके हैं. अपने इंटरव्यू में वह सिर्फ रणवीर सिंह की ही तारीफ कर रहे हैं. मगर रणवीर सिंह ने अभी तक रोहित शेट्टी के साथ काम करने की इच्छा नहीं जतायी है. रोहित शेट्टी शाहरुख खान का दामन छोड़कर फिर से अजय देवगन का दामन थामते हुए ‘गोलमाल 4’ के निर्माण की बात की थी. ‘सरिता’ पत्रिका ने बताया था कि ‘गोलमाल 4’ का बनना असंभव सा है.

रोहित शेट्टी ने गोलमाल 4 में अजय देवगन के ही साथ करीना कपूर को लिया था, पर गर्भवती होने के कारण करीना कपूर गोलमाल 4 से बाहर हो गयीं. उसके बाद दीपिका पादुकोण से लेकर कई अभिनेत्रियों के संग रोहित शेट्टी ने बात की. पर बात जमी नहीं. बड़ी मुश्किल से आलिया भट्ट ने गोलमाल 4 के लिए हामी भरी थी. सूत्र बताते हैं कि रोहित शेट्टी ने आलिया भट्ट के मैनेजर के साथ मीटिंग कर शूटिंग की तारीखें तय कर ली थी. मगर एक बार फिर रोहित शेट्टी की तकदीर ने उनका साथ छोड़ दिया.

जिस दिन आलिया भट्ट फिल्म गोलमाल 4 साइन करने वाली थीं, उससे एक दिन पहले अजय देवगन ने अपनी फिल्म ‘शिवाय’ के प्रमोशन के मद्दे नजर ही करण जोहर के साथ केआरके वाला विवाद कर डाला. इस विवाद ने कई समीकरण तेजी से बदले और आलिया भट्ट ने अपने मेंटर करण जोहर का साथ देते हुए रोहित शेट्टी की फिल्म गोलमाल 4 यह कह करने से मना कर दी, कि उनके पास शूटिंग के लिए तारीखें नहीं है. वह 2018 तक कई फिल्मों में व्यस्त हैं. अब रोहित शेट्टी की समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें?

फिलहाल कोई भी अदाकारा रोहित शेट्टी के साथ काम करने को तैयार नजर नहीं आ रही है. उधर अजय देवगन कैंप का एक तबका मानने लगा है कि रोहित शेट्टी के साथ जुड़कर अजय देवगन ने उनकी बदकिस्मती को गले लगा लिया है. इसी के चलते वह बेवजह विवादों में फंसते जा रहे हैं. इसी के चलते अब अजय देवगन के

नजदीकी सूत्र दावा कर रहे हैं कि अजय देवगन गोलमाल 4 के साथ रहेंगें या नहीं, इसका फैसला फिल्म शिवाय के प्रदर्शन के बाद ही होगा. सवाल यह है कि क्या अजय देवगन ने भी रोहित शेट्टी से दूरी बनाने का फैसला कर लिया है या वह अपनी फिल्म षिवाय की बाक्स ऑफिस सफलता को लेकर आश्वस्त नहीं है? जिस तरह से हालात बार बार बदल रहे हैं, उससे बौलीवुड में चर्चा है कि अब रोहित शेट्टी का क्या होगा?

एटमी फ्यूजन से सूरज बनाने की तैयारी

तमाम देशों के वैज्ञानिक एटमी फ्यूजन से सूर्य बनाने की तकनीक की तलाश कर रहे हैं, लेकिन इस में किसी को कोई सफलता नहीं मिली. ऐसा अनुमान है कि समुद्र के पानी में भारी हाइड्रोजन का भंडार है जो एक सूर्य बनाने में पर्याप्त है. अगर इस में सफलता मिल गई तो एक नया कृत्रिम सूरज हमारे बीच होगा.

हमारे जीवन में ऊर्जा का बहुत महत्त्व है. इंसान की तरक्की के लिए ऊर्जा जरूरी है. ऊर्जा हमें ईंधन से मिलती है. आज दुनिया में कई तरह के ईंधन काम में लाए जा रहे हैं. इस में सब से ज्यादा कोयला और तेल इस्तेमाल हो रहा है. ये दोनों ईंधन जमीन के अंदर से निकाले जाते हैं, लेकिन इन का भंडार सीमित है. इसलिए इन का विकल्प खोजना अति आवश्यक है.

वह वक्त भी जल्दी आने वाला है जब इन दोनों का स्रोत खत्म हो जाएगा. साथ ही इन से प्रदूषण बहुत होता है, जिस का असर हमारे वातावरण पर पड़ रहा है. इसीलिए तमाम देश एटमी ईंधन पर जोर दे रहे हैं. मगर एटमी प्लांट लगाना बेहद खर्चीला है.

दूसरी तरफ इस के बाई प्रोडक्ट के तौर पर निकलने वाले रेडियो ऐक्टिव कचरे को ठिकाने लगाना भी बड़ी चुनौती है. इसीलिए काफी दिनों से वैज्ञानिक एक ऐसे ईंधन की तलाश कर रहे हैं, जिस से पर्यावरण को भी नुकसान न हो और उस का कोई बाई प्रोडक्ट भी न हो.

हमारी धरती को बहुत सारी ऊर्जा की जरूरत होती है, जो कोयले और तेल से पूरी नहीं होने वाली. इस चुनौती का मुकाबला एटमी पावर प्लांट से भी नहीं किया जा सकता. फ्यूजन ही वह तकनीक है, जिस से धरती की ऊर्जा की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं. फ्यूजन में 2परमाणुओं का मेल होने से ऐनर्जी निकलती है. जैसे एटमी विस्फोट में 2 परमाणुओं की टकराहट से बेहिसाब ऊर्जा निकलती है. वैसे ही जब 2 परमाणु, एकदूसरे से जुड़ते हैं तो दोनों के मिश्रण से काफी ऊर्जा निकलती है.

इसी तकनीक से हाइड्रोजन बम भी बनाए जाते हैं. सूर्य हमारी ऊर्जा का इकलौता स्रोत है. वहां भी इतनी तेज आग फ्यूजन के चलते ही है. वैज्ञानिकों को लगता है कि अगर इंसान 2 परमाणुओं का मेल करा कर उस में से ईंधन बना सके तो ऐनर्जी का इस से अच्छा सोर्स कोई और हो ही नहीं सकता. इस से प्रदूषण भी नहीं फैलेगा और इस के खत्म होने का भी कोई खतरा नहीं होगा. फिर हमारी ऊर्जा की सारी जरूरतें इस से पूरी हो सकती हैं.

फ्यूजन पावर की अनियंत्रित ऊर्जा

जब से फ्यूजन पावर के बारे में पता चला है तब से ही तमाम वैज्ञानिक इस तकनीक से चलने वाले पावर प्लांट बनाने के लिए काम कर रहे हैं. फ्रांस में तो फ्यूजन तकनीक से चलने वाला एक रिऐक्टर बरसों से बनाया जा रहा है. इस का नाम है आईटर. इस प्रोजैक्ट में कई देशों ने पैसे लगाए हैं.

इस की कामयाबी का पूरी दुनिया को बेसब्री से इंतजार है. मगर अभी इस के पूरा होने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है.

फ्यूजन तकनीक से ऊर्जा पैदा करने में जो परेशानी आ रही है वह यह है कि 2 परमाणुओं की टक्कर लगातार कैसे कराई जाए? फिर इस से निकलने वाली ऊर्जा को इकट्ठा कैसे किया जाए? दरअसल, 2 एटमों को टकराने में काफी ताकत लगती है. अब तक वैज्ञानिक वह तरीका नहीं निकाल पाए हैं जिस से एटमों की टक्कर के बाद उन का मिलान कर के जो ऊर्जा निकले, वह इस प्रक्रिया को पूरा करने से ज्यादा हो.

ऐसा नामुमकिन नहीं है और यह बात हाइड्रोजन बम के तमाम टैस्टों से साबित भी हो चुकी है. मगर एटमों के फ्यूजन से निकलने वाली ऊर्जा को कैसे नियंत्रित कर के दूसरे काम में लाया जाए, वह तरीका अब तक किसी ने नहीं ढूंढ़ा.

वैसे वैज्ञानिक फ्यूजन से प्राप्त ऐनर्जी को संगृहीत करने के शोध में जुटे हुए हैं. अगर ऐसा संभव हो गया तो ऐनर्जी की कोई कमी नहीं होगी.

अरबपति खोलेंगे झोली

अमेरिका भी अभी तक कोई फ्यूजन रिऐक्टर नहीं बना सका है, लेकिन कुछ अरबपति अपनी झोली खोलने को तैयार हैं, जो फ्यूजन तकनीक को कामयाब बनाना चाहते हैं और इंसानियत की मदद करना चाहते हैं. ऐसे अरबपति कारोबारियों में पहला नाम है अमेजन कंपनी के मालिक जेफ बेजोस का. उन्होंने कनाडा के एक फ्यूजन ऐनर्जी प्रोजैक्ट में करोड़ों का दांव खेला है. कनाडा के वैंकुवर शहर में चल रहे इस प्रोजैक्ट का नाम है जनरल फ्यूजन. इस के अगुआ हैं मिशेल लाबर्ज.

मिशेल ने साल 2001 में लेजर प्रिंटिंग कंपनी क्रियो की नौकरी छोड़ कर फ्यूजन तकनीक को कामयाब बनाने का मिशन शुरू किया था. मिशेल का कहना है कि हमारी धरती को बहुत सारी ऊर्जा की जरूरत है, जो कोयले और तेल से पूरी नहीं होने वाली. इस चुनौती का मुकाबला, एटमी पावर प्लांट से भी नहीं किया जा सकता. उन की नजर में फ्यूजन ही वह तकनीक है जिस से धरती की ऊर्जा की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं.

सूर्य हमारे अस्तित्व के लिए प्रमुख ऊर्जा का स्रोत है. सूर्य का ताप इस में मौजूद हाइड्रोजन गैस के बीच होने वाले नाभिकीय फ्यूजन के परिणामस्वरूप पैदा होता है. इसलिए विश्व के विभिन्न देशों के वैज्ञानिक हमेशा से यह कोशिश कर रहे हैं कि एक दिन वे सूर्य के बराबर ऊर्जा पैदा कर सकेंगे. अगर ऐसा हो गया तो मानव के सामने मौजूद ऊर्जा की समस्या आसानी से खत्म हो जाएगी.

इसलिए ये वैज्ञानिक कृत्रिम सूर्य बनाने वाले हैं. चीन भी ऐसी तकनीक प्राप्त करने वाला है. चीन में निर्मित नए चरण वाले नाभिकीय फ्यूजन उपकरण पर काम शुरू हो गया है. यह विश्व में औपचारिक तौर पर काम करने वाला प्रथम ऐसा उपकरण है, जिसे चीन ने बनाया है. इस उपकरण के निर्माण से विश्व के नागरिकों को उपयोगी नाभिकीय ऊर्जा का लाभ मिल सकेगा. ऐसी संभावना है कि कृत्रिम सूर्य की कल्पना शायद कुछ समय बाद ही संपन्न हो जाए.

नाभिकीय फ्यूजन की क्षमता

नाभिकीय फ्यूजन की क्षमता अतुल्य है, क्योंकि नाभिकीय फ्यूजन हाइड्रोजन से पैदा होता है,जबकि हाइड्रोजन तत्त्व का अनगिनत भंडार है. अभी तक भारी हाइड्रोजन यानी ड्यूटरियम से नाभिकीय फ्यूजन कराया जाता है. नाभकीय फ्यूजन कराने के लिए उपयोगी सामग्री का समुद्री जल में काफी भंडार है. ऐसा अनुमान है कि समुद्र के पानी में भारी हाइड्रोजन का भंडार 450 खरब टन तक है, जो एक कृत्रिम सूर्य बनाने के लिए पर्याप्त है.

पिछले सौ वर्षों में मानव की उपयोगी ऊर्जा में भारी परिवर्तन आया है. पहले मानव केवल लकड़ी जलाता था, इस के बाद कोयला और तेल आया. आज हम रासायनिक ईंधन के अतिरिक्त नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा और जलीय ऊर्जा आदि का प्रयोग कर रहे हैं.

विभिन्न देशों के नाभिकीय बिजली घरों में नाभिकीय फिशन का रिऐक्टर काम कर रहा है,लेकिन नाभिकीय फ्यूजन से चलाए जाने वाले बिजली घर का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है. अब तो चीन, अमेरिका, जापान, फ्रांस और रूस आदि ने नाभिकीय फ्यूजन से चलाए जाने वाले बिजली घर पर शोध कार्य शुरू कर दिया है. चीन ने वर्ष 1998 से नई शैली वाले नाभिकीय फ्यूजन रिऐक्टर पर अनुसंधान शुरू किया था, जिस पर बहुत पैसा खर्च हुआ था.

लेकिन अभी नाभिकीय फ्यूजन पैदा करने में अन्य कठिनाइयों को दूर करना बाकी है,क्योंकि नाभिकीय फ्यूजन पैदा करने के लिए 40-50 करोड़ डिग्री ऊंचा तापमान चाहिए. पृथ्वी पर कोई भी सामग्री ऐसे उच्च तापमान को झेलने में समर्थ नहीं है.

इस तापमान में हर वस्तु तुरंत गैस बन जाएगी. इसलिए नाभिकीय फ्यूजन करने के लिए किस किस्म के बिजली घरों का निर्माण किया जाए? यह कठिन सवाल है, जिस पर शोध कार्य जारी है. अगर इस में सफलता मिल गई तो एक नया कृत्रिम सूरज हमारे बीच होगा,क्योंकि प्राकृतिक सूरज अब बूढ़ा हो रहा है.     

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