दुनियाभर में प्रचलित करेंसी पर सरकार या बैंकों का नियंत्रण रहता है, लेकिन बिटकौइन ही एक मात्र ऐसी करेंसी है जिस पर किसी का कोई दखल नहीं है. यह डिजिटल या वर्चुअल करेंसी है. इसे दुनियाभर की करेंसी से ऐक्सचेंज किया जा सकता है. आजकल यह करेंसी प्रचलन में है.
दुनिया में जितनी भी मुद्राएं यानी करेंसी नोट आदि हैं, उन पर किसी न किसी बैंक या सरकार का नियंत्रण है. बैंकों और सरकार की साख व आर्थिक हैसियत के हिसाब से ही उन मुद्राओं का मूल्य तय होता है, जैसे इस समय ब्रिटेन के पाउंड, यूरोपीय संघ के यूरो और अमेरिका के डौलर की कीमत हमारे रुपए के मुकाबले कई गुना ज्यादा है, पर क्या कोई ऐसी मुद्रा भी हो सकती है जिसे न तो छापा या ढाला जाए और न ही जिस पर किसी बैंक या सरकार का अधिकार हो?
जी हां, ऐसी ही एक वर्चुअल या डिजिटल करेंसी है बिटकौइन, जिसे वर्ष 2009 में चलन में लाया गया था. इसे ले कर एक रहस्य था कि आखिर इसे किस ने बनाया? वैसे तो इस के आविष्कारक के रूप में ‘सातोशी नाकामोतो’ का नाम लिया जाता था, लेकिन सातोशी कभी सामने आया ही नहीं, पर अब आस्ट्रेलिया के एक उद्योगपति ‘क्रेग राइट’ ने स्वीकार किया है कि वे ही बिटकौइन को चलन में लाने वाले हैं. उन्होंने ही अपना एक छद्म नाम सातोशी नाकामोतो रखा था.
यह बात उन्होंने कुछ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के सामने तब स्वीकारी, जब मैगजीन वायर्ड ने यह खुलासा किया कि क्रेग राइट ही बिटकौइन को बनाने वाले हैं और उन के पास लाखों डौलर मूल्य की यह करेंसी यानी बिटकौइन है. इस खुलासे के बाद दिसंबर, 2015 में सिडनी पुलिस ने क्रेग राइट के घर और दफ्तर पर छापा मारा था.
क्या है बिटकौइन
यह एक डिजिटल अथवा वर्चुअल करेंसी है. नोट या सिक्के जैसे किसी भौतिक रूप में इस करेंसी का वजूद नहीं है, बल्कि यह एक कोड है. इस कोड को कंप्यूटर पर ही खरीद कर या तो कंप्यूटर में या फिर किसी औनलाइन वौलेट में स्टोर कर के रखा जा सकता है. चूंकि यह करेंसी कंप्यूटर पर ही जरनेट की जाती है, इसलिए इस पर किसी भी सरकार या बैंकिंग व्यवस्था का नियंत्रण नहीं होता. हालांकि इस के जरिए पूरी दुनिया में लेनदेन किया जाना संभव है. दुनिया की कई बड़ी करेंसियों डौलर, पाउंड, यूरो से इसे ऐक्सचेंज किया जा सकता है. कभी इस का इस्तेमाल केवल कंप्यूटर हैकर और अपराधी करते थे, पर अब इसे दुनिया के कई नामी अर्थशास्त्री सब से अच्छा प्रदर्शन करने वाली करेंसी करार दे रहे हैं.
इस के साथ ही कई बड़ी कंपनियां मसलन, रेडिट, वर्डप्रेस भी इस का इस्तेमाल कर रही हैं. जापानी कंपनी एमटी गौक्स बिटकौइंस की दुनिया की सब से बड़ी औनलाइन ऐक्सचेंज कंपनी है. अमेरिकी कंपनी कौयनलैब ने इस के साथ करार किया है, जिस के जरिए अमेरिका या कनाडा में बैठे लोग बिटकौइंस खरीद या बेच सकते हैं.
कैसे बनाते हैं इसे
यह एक डिजिटल करेंसी है, इसलिए इसे कंप्यूटर पर ही एक विशेष कम्युनिटी आधारित सौफ्टवेयर के जरिए बनाया या किसी के नाम जारी किया जाता है. जानकारों का मानना है कि प्रत्येक 10 मिनट पर नए बिटकौइन बनाए जाते हैं और इन का लोग शौपिंग करने, डोनेशन देने या बिजनैस के सिलसिले में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के मौजूदा मौडल के अनुसार फिलहाल दुनिया में केवल 2.1 करोड़ या 21 मिलियन बिटकौइन बनाए जाते हैं, जिन में से 15 मिलियन बिटकौइन चलन में हैं यानी उन का लेनदेन हो रहा है.
कंप्यूटर में इस का सौफ्टवेयर डालने पर एक खास कोड मिलता है, जिसे बिटकौइन एड्रेस कहा जाता है. रकम के लेनदेन यानी ट्रांजैक्शन में यह कोड ही सबकुछ होता है, क्योंकि यह बैंक अकाउंट की तरह काम करता है. बिटकौइन से किसी भी खरीदारी या लेनदेन के लिए यह कोड जरूरी है. यदि आप को किसी को रकम भेजनी है तो उस का बिटकौइन एड्रेस आप के पास होना चाहिए. अगर आप को रकम हासिल करनी है तो अपना एड्रैस उसे भेजना होगा. मोबाइल फोन पर मौजूद सौफ्टवेयर या कंप्यूटर पर इंस्टौल किए गए प्रोग्राम से इस कोड के जरिए रकम भेजी जा सकती है. एक बार बिटकौइन जनरेट होने के बाद इस कोड को यूजर अपनी हार्डड्राइव या पैनड्राइव में सेव कर सकते हैं या अपने वर्चुअल वौलेट में रख सकते हैं. कोड सुरक्षित होते हैं, लेकिन डिजिटल वौलेट नहीं. इसलिए इसे सुरक्षित रखने के लिए पासवर्ड का इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा कागज पर कोड को प्रिंट कर के सुरक्षित रखा जा सकता है.
ऐसे हासिल कर सकते हैं बिटकौइन
यदि कोई पहली बार बिटकौइन का इस्तेमाल करना चाहता है, तो इस के 2 तरीके हैं, पहला, अपने कंप्यूटर सिस्टम पर बिटकौइन से जुड़े कम्युनिटी सौफ्टवेयर को इंस्टौल कर के कोई भी व्यक्ति इस सिस्टम का हिस्सा बन सकता है. कम्युनिटी सौफ्टवेयर डाउनलोड करने पर शुरुआत में कुछ बिटकौइन मुफ्त में मिलते हैं. इस प्रक्रिया को माइनिंग भी कहा जाता है. दूसरा, इंनटरनैट पर दर्जनों ऐसी ऐक्सचेंज वैबसाइट्स हैं जो दुनिया में प्रचलित कुछ प्रमुख करेंसियों के बदले बिटकौइन उपलब्ध कराती हैं.
क्या है इस की कीमत
शुरू में बिटकौइन की कुछ भी कीमत नहीं थी. दिसंबर, 2010 में एक बिटकौइन करीब 22 सेंट के बराबर माना गया था. इस के बाद 2011 में यह करेंसी 2.11 डौलर के बराबर पहुंच गई. इस तरह साल भर में ही इस की कीमत में 1,336 डौलर का इजाफा हुआ. बीच में वर्ष 2013 में एक मौका ऐसा भी आया, जब एक बिटकौइन की कीमत 1,147.25 डौलर तक पहुंच गई. बाद में यह कीमत 200 से 600 डौलर के बीच रहती आई है और 2 मई, 2016 को एक बिटकौइन की कीमत करीब 460 डौलर थी.
क्या हैं फायदे
बिटकौइन कंप्यूटरजनित कोड है, इसलिए इसे क्रिप्टोकरेंसी भी कहते हैं. सरकार या बैंकिंग व्यवस्था के किसी मुश्किल में पड़ने से इस करेंसी पर असर नहीं होगा. बिटकौइन से लेनदेन पर्सन टू पर्सन मनी ट्रांसफर जैसा है यानी इस के लिए बैंक या गेटवे सिस्टम को मोटी ट्रांजैक्शन फीस चुकाने की जरूरत नहीं. एक आकलन के मुताबिक, अमेरिका में क्रैडिट कार्ड से लेनदेन की फीस के तौर पर सालाना अरबों डौलर चुकाए जाते हैं, वह सारी रकम लोग बिटकौइन के इस्तेमाल से बचा सकते हैं.
बिटकौइन से रकम भेजना या हासिल करना बहुत आसान है. यह एक ईमेल भेजने जैसा है. इस का इस्तेमाल दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में आसानी से रकम भेजने के लिए किया जा सकता है. थर्ड पार्टी या सरकार इस करेंसी पर कोई सैंसरशिप नहीं लगा सकती. कई बार किसी विवाद के शुरू होने पर सरकारें सब से पहले बैंक अकाउंट फ्रीज कर देती हैं, जो बिटकौइन की अर्थव्यवस्था से संभव नहीं है. बिटकौइन से जुड़ी जालसाजी करना या इस के सिस्टम को हैक करना लगभग नामुमकिन है. इस का सिस्टम क्रैश नहीं हो सकता, क्योंकि एक सिस्टम के बंद होने पर पूरी दुनिया में फैले दूसरे सिस्टम इसे बैलेंस कर लेते हैं.
इस में फर्जीवाड़ा भी संभव नहीं है. इस में फर्जी कोड जनरेट करना मुमकिन नहीं है. इस की वजह मैथेमैटिकल कोड पर आधारित सिस्टम का होना है. इस सिस्टम में यह तय है कि 21 मिलियन बिटकौइन से ज्यादा नहीं बनाए जा सकते. ऐसे में कोई भी व्यक्ति अलग से बिटकौइन नहीं बना सकता. इस में हर लेनदेन पूरी तरह से गुप्त होता है. यह कुछ ऐसा ही है जैसा नकद रकम से खरीदारी. कोई भी एजेंसी या सरकार इस के लेनदेन का पता नहीं लगा सकती. लेकिन इस खूबी का फायदा कई बार हैकर और अपराधीतत्त्व उठाते हैं, जैसे इस साल के आरंभ में मैसूर स्थित एक आईटी कंपनी के दर्जनों कंप्यूटरों को हैक कर लिया गया. बाद में सौदे के तहत हैकरों ने कंप्यूटरों से अपना कब्जा छोड़ने के लिए प्रति कंप्यूटर एक रकम तय की, जिसे बिटकौइन के रूप में मांगा गया.
यही वजह है कि यह करेंसी हैकरों और अपराधियों की भी पहली पसंद बन गई है. बिटकौइन से बेहतर रेजगारी किसी किस्म की करेंसी में नहीं हो सकती. आज जहां 25 और 50 पैसे के सिक्के बाजार से गायब हो गए हैं, लेकिन बिटकौइन में दशमलव के 8वें अंक तक की छोटी रकम भेजी जा सकती है.
फूटेगा बिटकौइन का बुलबुला
कई अर्थशास्त्री और निवेशक इस के भविष्य को ले कर चिंतित भी हैं. उन का मानना है कि बिटकौइन इकौनोमी में इजाफा एक गुब्बारे सरीखा है, जो फूटने ही वाला है. जिस तरह इस की कीमत 2013 में एक ऊंचाई तक पहुंचने के बाद एकदम से घटी, उसे देखते हुए विशेषज्ञ बिटकौइन में पूरी जमापूंजी लगा देने को गलत मानते हैं. भारत में बिटकौइन करेंसी ऐक्सचेंज के तौर पर काम करने वाली कंपनियां फिलहाल भारतीय मुद्रा से बिटकौइन बदलने की सहूलियत नहीं दे रही हैं. खुद रिजर्व बैंक का इस बारे में निर्देश यह है कि जिस रकम के लेनदेन पर नजर रखना ही संभव न हो, उस का इस्तेमाल भारत में गैरकानूनी है.
बिटकौइन जैसा भारत का लक्ष्मीकौइन
2 साल पहले 2014 में दुनिया की सब से मशहूर वर्चुअल करेंसी बिटकौइन के भारतीय संस्करण को बाजार में लाने से पहले देश में नियामक संस्थाओं से इस बारे में पूछा गया था कि क्या लक्ष्मीकौइन को देश के बाजार में पेश किया जा सकता है? एक आकलन के मुताबिक, भारत में करीब 30 हजार बिटकौइन धारक हैं, जिन के पास पूरी दुनिया में प्रचलित 12 मिलियन बिटकौइंस का 1त्न हिस्सा जमा है. हालांकि इस से संबंधित दिशानिर्देशों का अभी अभाव बना हुआ है. गौरतलब है कि पूरी दुनिया में पहले से ही 70 से अधिक वर्चुअल करेंसी चलन में हैं, जिन का कुल बाजार मूल्य करीब 15 अरब डौलर (90 हजार करोड़ रुपए) है. इस में सिर्फ बिटकौइन की नैट वर्थ (कुल कीमत) करीब 10 अरब डौलर की है.
भारत में अवैध कारोबार में बिटकौइन
बिटकौइन का ज्यादातर अवैध कारोबार में इस्तेमाल हो रहा है. उल्लेखनीय यह है कि अब भारत में ऐसे कारोबार में बिटकौइन के इस्तेमाल की बात सामने आई है. जुलाई, 2016 में देश में नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी पर नजर रखने वाली कानूनी व खुफिया एजेंसी नौरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने 2 तरह के आपराधिक सिस्टम को प्रतिबंधित किया, जिन में से एक बिटकौइन से जुड़ा था. एनसीबी ने बताया कि ड्रग्स कारोबार को ‘डार्कनैट’ और अवैध मुद्रा बिटकौइन के जरिए अंजाम दिया जा रहा है. इस बारे में खुलासा करते हुए एनसीबी के महानिदेशक आर आर भटनागर ने बताया कि भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब डार्कनैट और बिटकौइन का इस्तेमाल करते हुए ड्रग्स का धंधा किया जा रहा है.
डार्कनैट इंटरनैट का बेहद गुप्त नैटवर्क है जिस का इस्तेमाल विशेष सौफ्टवेयर, कौन्फिग्रेशन और प्राधिकार के जरिए ही किया जा सकता है और सामान्य कम्युनिकेशन प्रोटोकौल और पोर्ट के जरिए इस का पता लगाना बेहद मुश्किल है, जबकि बिटकौइन एक प्रकार की डिजिटल करेंसी है.
गौरतलब है कि देश में अवैध रूप से मादक पदार्थों की खरीदफरोख्त बढ़ रही है, जो चिंताजनक है. एनसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर से विभिन्न एजेंसियों ने 2015 में 1,687 किलो अफीम, 1,416 किलो हेरोइन, 94,403 किलो गांजा, 3,349 किलो हशीश, 113 किलो कोकेन, 827 किलो इफ्रेडिन या सूडोएफेड्रिन समेत कई नशीले पदार्थ जब्त किए थे. हालांकि इस धंधे की रोकथाम के उपाय के तौर पर पिछले कुछ समय में देशभर में 5 हजार एकड़ इलाके में हो रही अफीम की अवैध खेती को नष्ट किया गया है जोकि पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले 60त्न अधिक है.
बिटकौइन और डार्क वैब सिर्फ भारत के लिए समस्या नहीं है, बल्कि दुनिया भर में फैल रहे हथियारों, ड्रग्स और चरमपंथ के जाल में ‘बिटकौइन’ और ‘डार्क वैब’ ने बड़ी भूमिका निभाई है. इस का कारण यह है कि सुरक्षा एजेंसियां इन के जाल को पूरी तरह भेदने में नाकाम रहती हैं. इस संकट से निबटने के लिए वर्ष 2015 में 33 से ज़्यादा देशों के सुरक्षा अधिकारी दिल्ली में जमा हुए थे. इस बैठक का आयोजन इंटरपोल और यूनाइटेड नेशंस औफिस औन ड्रग्स ऐंड क्राइम (यूएनडीओसी) ने किया था जिसे सीबीआई यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो ने संचालित किया था. इस बैठक में भी कहा गया था कि बिटकौइन, एक तरह से हवाला की तरह का लेनदेन है, जिस में ड्रग्स और हथियार पैसों से नहीं बल्कि बिटकौइन के जरिए खरीदेबेचे जाते हैं. इसी तरह डार्क वैब के सहारे इंटरनैट की गतिविधियों पर किसी की नजर नहीं रह सकती. डार्क वैब के जरिए अवैध धंधे एक पासवर्ड के सहारे चलते हैं.