भाजपा में ‘बाहर वालों’ बनाम ‘घर वालों’ के बीच पाला खिच चुका है. यह मैच जीत हार के फैसले पर चुनाव के बाद पहुंचेगा. पर इसका असर पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर पड़ेगा. भाजपा के लोग मानते हैं कि जब पार्टी के पक्ष में हवा चल रही है तो बाहरी नेताओं को शामिल क्यो किया जा रहा है? बाहरी नेता घर वालों से तालमेल के पक्ष में न होकर पार्टी हाईकमान के आगे पीछे घूमने में ही लगे हैं. जिससे बाकी संगठन में अंसतोष बढ़ रहा है.

असल में भाजपा में बड़ी संख्या में बाहरी नेताओं को शामिल किया जा रहा है जो दलबदल कर आ रहे हैं. इनमें से ज्यादातर अपने लिये और कुछ लोग अपने परिवार के लोगों के लिये विधानसभा का टिकट मांग रहे हैं और इसी शर्त पर वह भाजपा में शामिल भी हो रहे हैं. इससे भाजपा के वह कार्यकर्ता परेशान हो रहे हैं जो सालों साल से पार्टी के साथ अपना, खून पसीना बहा रहे हैं. बाहर से आने वाले यह नेता पार्टी के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्व भी नहीं है. कई लोग तो ऐसे भी है जो कल तक भाजपा उसकी नीतियों और नेताओं को पानी पी पी कर कोसते थे. अब भाजपा के साथ हैं.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उत्तर प्रदेश में एक ऐसी टीम बनाना चाहते हैं जो पूरी तरह से उनके दबाव में रहे. पार्टी के दूसरे नेताओं के गुट में शामिल न हो. जिससे उनके आदेश का कहीं से कोई उल्लघंन न हो सके. प्रदेश के किसी नेता का कद बढ़ाने का काम नहीं किया जा रहा है. यही वजह है कि भाजपा मुख्यमंत्री पद के लिये अपना चेहरा सामने नहीं ला रही है. अमित शाह की सोच है कि सीनियर नेताओं को किनारे करके जूनियर नेताओं की एक टीम तैयार हो, जो उनके किसी काम में हस्तक्षेप न कर सके. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 को लेकर भाजपा ने अभी भी अपने सभी प्रत्याशी घोषित नहीं किये हैं. इसकी वजह है कि भाजपा दूसरे दलों से उन लोगों को पार्टी में शामिल कर रही है जो विधानसभा सीट जितवाने की हैसियत रखता हो.

भाजपा के पुराने कार्यकर्ता अभी खुलकर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं, टिकट वितरण के समय इन लोगों का गुस्सा सामने आयेगा. कई नेता और कार्यकर्ता चुनाव में पूरी तैयारी के साथ नहीं लगेंगे. जिससे बाहरी नेताओं को हराया जा सके. इस तरह का भीतरघात दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सहना पड़ा था. जिसकी वजह से आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीत लिया. बाहरी नेता केवल अपनी सीट जीतने से मतलब रख रहा है. उसे बाकी काम से मतलब नहीं है. पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि बाहरी नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं से ठीक तरह से व्यवहार नहीं कर रहे.

यह लोग पार्टी कार्यालय तभी आते हैं जब राष्ट्रीय अध्यक्ष पार्टी कार्यालय आते हैं. कुछ बडे पदाधिकारियों को छोड़ कर यह बाहरी नेता किसी कार्यकर्ता की बात नहीं सुनते हैं. चुनाव जीतने में बूथस्तर तक के कार्यकर्ता की मेहनत शामिल होती है. यह हर दल को पता होता है. भाजपा में बाहरी नेताओं और घर वालों का जो विवाद चल रहा है उससे साफ लग रहा है कि पार्टी दो हिस्सों में बंटी है. इनके बीच आपस में कोई तालमेल नहीं है. लोकसभा चुनाव में भी यह मानसिकता थी कार्यकर्ता यह सोच रहा था कि उसे मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है. विधानसभा चुनाव में पार्टी का कोई ऐसा चेहरा सामने नहीं है जिसके नाम पर लोग एकजुट हो सके.

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